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बुधवार, 3 नवंबर 2010

स्नेह-दीप ------- संजीव 'सलिल'

स्नेह-दीप

संजीव 'सलिल'
*
स्नेह-दीप, स्नेह शिखा, स्नेह है उजाला.
स्नेह आस, स्नेह प्यास, साधना-शिवाला.

स्नेह राष्ट्र, स्नेह विश्व, सृष्टि नव समाज.
स्नेह कल था, स्नेह कल है, स्नेह ही है आज.

स्नेह अजर, स्नेह अमर, स्नेह है अनश्वर.
स्नेह धरा, स्नेह गगन, स्नेह मनुज-ईश्वर..

स्नेह राग शुभ विराग, योग-भोग-कर्म.
स्नेह कलम,-अक्षर है. स्नेह सृजन-धर्म..

स्नेह बिंदु, स्नेह सिन्धु, स्नेह आदि-अंत.
स्नेह शून्य, दिग-दिगंत, स्नेह आदि-अंत..

स्नेह सफल, स्नेह विफल, स्नेह ही पुरुषार्थ.
स्नेह चाह, स्नेह राह, स्वार्थ या परमार्थ..

स्नेह पाएं, स्नेह बाँट, स्नेह-गीत गायें.
स्नेह-दीप जला 'सलिल', दिवाली मनायें..

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स्नेह = प्रेम, स्नेह = दीपक का घी/तेल.

एक कविता: दिया : संजीव 'सलिल'

एक कविता:                                      

दिया :

संजीव 'सलिल'
*

राजनीति कल साँप
लोकतंत्र के
मेंढक को खा रहा है.
भोली-भाली जनता को
ललचा-धमका रहा है.
जब तक जनता
मूक होकर सहे जाएगी.
स्वार्थों की भैंस
लोकतंत्र का खेत चरे जाएगी..
एकता की लाठी ले
भैंस को भागो अब.
बहुत अँधेरा देखा
दीप एक जलाओ अब..

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एक कविता: दिया संजीव 'सलिल'

एक कविता:                       

दिया

संजीव 'सलिल'
*
सारी ज़िन्दगी
तिल-तिल कर जला.
फिर भर्र कभी
हाथों को नहीं मला.
होठों को नहीं सिला.
न किया शिकवा गिला.
आख़िरी साँस तक
अँधेरे को पिया
इसी लिये तो मरकर भी
अमर हुआ
मिट्टी का दिया.
*

छंद सलिला: १ सांगोपांग सिंहावलोकन छंद : नवीन सी. चतुर्वेदी

छंद सलिला: १

 ३ नवम्बर २०१०... धन तेरस आइये, आज एक नया स्तम्भ प्रारंभ करें 'छंद सलिला'. इस स्तम्भ में  हिन्दी काव्य शास्त्र की मणि-मुक्ताओं की चमक-दमक से आपका परिचय होगा. श्री गणेश कर रहे हैं श्री नवीन सी. चतुर्वेदी. आप जिक छंद से परिचित हों उसे लिख-भेजें...

सांगोपांग सिंहावलोकन छंद   : नवीन सी. चतुर्वेदी
(घनाक्षरी कवित्त)

कवित्त का विधान:
कुल ४ पंक्तियाँ
हर पंक्ति ४ भागों / चरणों में विभाजित
पहले, दूसरे और तीसरे चरण में ८ वर्ण
चौथे चरण में ७ वर्ण
इस तरह हर पंक्ति में ३१ वर्ण

सिंहावलोकन का विधान
कवित्त के शुरू और अंत में समान शब्द
जैसे प्रस्तुत कवित्त शुरू होता है "लाए हैं" से और समाप्त भी होता है "लाए हैं" से

सांगोपांग विधान
ये मुझे प्रात:स्मरणीय गुरुवर स्व. श्री यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम' जी ने बताया कि छंद के अंदर भी हर पंक्ति जिस शब्द / शब्दों से समाप्त हो, अगली पंक्ति उसी शब्द / शब्दों से शुरू हो तो छंद की शोभा और बढ़ जाती है| वे इस विधान के छंन्द को सांगोपांग सिंहावलोकन छंद कहते थे|


कवित्त:
लाए हैं बाजार से दीप भाँति भाँति के हम,
द्वार औ दरीचों पे कतार से सजाए हैं|
सजाए हैं बाजार हाट लोगों ने, जिन्हें देख-
बाल बच्चे खुशी से फूले ना समाए हैं|
समाए हैं संदेशे सौहार्द के दीपावली में,
युगों से इसे हम मनाते चले आए हैं|
आए हैं जलाने दीप खुशियों के जमाने में,
प्यार की सौगात भी अपने साथ लाए हैं||

यदि किसी मित्र के मन में कुछ शंका हो तो कृपया निस्संकोच पूछने की कृपा करें| जितना मालुम है, आप सभी के साथ बाँटने में आनंद आएगा| जो हम नहीं जानते, अगर कोई और बता सके, तो बड़ी ही प्रसन्नता होगी|

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मुक्तिका: संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

संजीव 'सलिल'
*
दीवाली को दीप-पर्व बोलें या तम-त्यौहार कहें?
लें उजास हम दीपशिखा से या तल से अँधियार गहें??....
*
कंकर में शंकर देखें या शंकर को कंकर कह दें.
शीतल-सुरभित शुद्ध पवन को चुभती हुई बयार कहें??
*
धोती कुरता धारे है जो देह खुरदुरी मटमैली.
टीम-टाम के व्याल-जाल से तौलें उसे गँवार कहें??
*
कथ्य-शिल्प कविता की गाड़ी के अगले-पिछले पहिये.
भाव और रस इंजिन-ईंधन, रंग देख बेकार कहें??
*
काम न देखें नाम-दाम पर अटक रहीं जिसकी नजरें.
नफरत के उस सौदागर को क्या हम रचनाकार कहें??
*
उठा तर्जनी दोष दिखानेवाले यह भी तो सोचें.
तीन उँगलियों के इंगित उनको भी हिस्सेदार कहें??
*
नेह-नर्मदा नित्य नहा हम शब्दब्रम्ह को पूज रहे.
सूरज पर जो थूके हो अनदेखा, क्यों निस्सार कहें??
*
सहज मैत्री चाही सबसे शायद यह अपराध हुआ.
अहम्-बुद्धिमत्ता के पर्वत गरजें बरस गुहार कहें??
*
पंकिल पद पखारकर निर्मल करने नभ से इस भू पर
आया, सागर जा नभ छूले 'सलिल' इसे क्यों हार कहें??
*
मिले विजय या अजय बनें यह लक्ष्य 'सलिल' का नहीं रहा.
मैत्री सबसे चाही, सब में वह, न किसे अवतार कहें??
*
बेटा बाप बाप का तो विद्यार्थी क्यों आचार्य नहीं?
हो विचार-आचार शब्दमय, क्यों न भाव-रस सार कहें??
*

मंगलवार, 2 नवंबर 2010

एक कविता: मीत मेरे संजीव 'सलिल'

एक कविता:                                        

मीत मेरे

संजीव 'सलिल'
*
मीत मेरे!
राह में हों छाये
कितने भी अँधेरे,
उतार या कि चढ़ाव
सुख या दुःख
तुमको रहें घेरे.
सूर्य प्रखर प्रकाश दे
या घेर लें बादल घनेरे.
खिले शीतल ज्योत्सना या
अमावस का तिमिर घेरे.
मुस्कुराकर, करो स्वागत
द्वार पर जब-जो हो आगत
आस्था का दीप मन में
स्नेह-बाती ले जलाना.
बहुत पहले था सुना
अब फिर सुनाना
दिए से तूफ़ान का
लड़ हार जाना..

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व्यंग्यपरक मुक्तिका: क्यों डरूँ? संजीव 'सलिल'

व्यंग्यपरक मुक्तिका:                                      

क्यों डरूँ?

संजीव 'सलिल'
*
उठ रहीं मेरी तरफ कुछ उँगलियाँ तो क्यों डरूँ?
छोड़ कुर्सी, स्वार्थ तजकर, मुफ्त ही मैं क्यों मरूँ??

गलतियाँ करना है फितरत पर सजा पाना नहीं.
गैर का हासिल तो अपना खेत नाहक क्यों चरूँ??

बेईमानी की डगर पर सफलताएँ मिल रहीं.
विफलता चाही नहीं तो राह से मैं क्यों फिरूँ??

कौन किसका कब हुआ अपना?, पराये हैं सभी.
लूटने में किसीको कोई रियायत क्यों करूँ ??

बाज मैं,  नेता चुनें चिड़िया तो मेरा दोष क्या?
लाभ अपना छोड़कर मैं कष्ट क्यों उनके हरूँ??

आँख पर पट्टी, तुला हाथों में, करना न्याय है.
कोट काला कहे किस पलड़े पे कितना-क्या धरूँ??

गरीबी को मिटाना है?, दूँ गरीबों को मिटा.
'सलिल' जिंदा रख उन्हें मैं मुश्किलें क्योंकर वरूँ??

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मुक्तिका: संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

संजीव 'सलिल'
*
ज्यों मोती को आवश्यकता सीपोंकी.
मानव मन को बहुत जरूरत दीपोंकी..

संसद में हैं गर्दभ श्वेत वसनधारी
आदत डाले जनगण चीपों-चीपोंकी..

पदिक-साइकिल के सवार घटते जाते
जनसंख्या बढ़ती कारों की, जीपोंकी..

चीनी झालर से इमारतें है रौशन
मंद हो रही ज्योति झोपड़े-चीपों की..

नहीं मिठाई और पटाखे कवि माँगे
चाह 'सलिल' मन में तालीकी, टीपोंकी..

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मुक्तिका: संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:                                          

संजीव 'सलिल'
*
सारा जग पाये उपहार ये दीपोंका.
हर घर को भाये सिंगार ये दीपोंका..

रजनीचर से विहँस प्रभाकर गले मिले-
तारागण करते सत्कार ये दीपोंका..

जीते जी तम को न फैलने देते हैं
हम सब पर कितना उपकार ये दीपोंका..

निज माटी से जुड़ी हुई जो झोपड़ियाँ.
उनके जीवन को आधार है दीपों का..

रखकर दिल में आग, अधर पर हास रखें.
'सलिल' सीख जीवन-व्यवहार ये दीपोंका..
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मुक्तिका: किसलिए?... -----संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:                               
किसलिए?...
संजीव 'सलिल'
*
हर दिवाली पर दिए तुम बालते हो किसलिए?
तिमिर हर दीपक-तले तुम पालते हो किसलिए?

चाह सूरत की रही सीरत न चाही थी कभी.
अब पियाले पर पियाले ढालते हो किसलिए?

बुलाते हो लक्ष्मी को लक्ष्मीपति के बिना
और वह भी रात में?, टकसालते हो किसलिए?

क़र्ज़ की पीते थे मय, ऋण ले के घी खाते  रहे.
छिप तकादेदार को अब टालते हो किसलिए?

शूल बनकर फूल-कलियों को 'सलिल' घायल किया.
दोष माली पर कहो- क्यों डालते हो किसलिए?
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सोमवार, 1 नवंबर 2010

गीत : प्यार किसे मैं करता हूँ संजीव 'सलिल'

गीत :                           
प्यार किसे मैं करता हूँ
संजीव 'सलिल'
*
बतलाने की नहीं जरूरत प्यार किसे मैं करता हूँ.
जीता हूँ मैं इन्हें देखकर, कैसे कह दूँ मरता हूँ??
*
प्यार किया माता को मैंने, बहिनों को भी प्यार किया.
भाभी पर की जान निछावर, सखियों पर दिल हार दिया..
खुद को खो पत्नि को पाया, सलहज-साली पर रीझा.
बेटी राजदुलारी की छवि दिल में हर पल धरता हूँ..
बतलाने की नहीं जरूरत प्यार किसे मैं करता हूँ.
जीता हूँ मैं इन्हें देखकर, कैसे कह दूँ मरता हूँ??
*
प्यार हमारी परंपरा है, सकल विश्व में नीड़ रहा.
सारी वसुधा ही कुटुंब है, नहीं किसी को गैर कहा..
पिता, बंधु, जीजा, साले, साढू, मित्रों बिन चैन नहीं.
बेटा सब सँग कंधा देगा, यह जीवन-पथ वरता हूँ.
बतलाने की नहीं जरूरत प्यार किसे मैं करता हूँ.
जीता हूँ मैं इन्हें देखकर, कैसे कह दूँ मरता हूँ??
*
जामाता बेटा बनकर, सुतवधु बेटी बन आयेगी.
भावी पीढ़ी परंपरा को युग अनुरूप बनायेगी..
पश्चिम, उत्तर, दक्षिण को, पूरब निज हृदय बसाएगा.
परिवर्तन शुभ-सुंदर निर्झर, स्नेह-सलिल बन झरता हूँ.
बतलाने की नहीं जरूरत प्यार किसे मैं करता हूँ.
जीता हूँ मैं इन्हें देखकर, कैसे कह दूँ मरता हूँ??
*

हिंदी शब्द सलिला : २० संजीव 'सलिल'

हिंदी शब्द सलिला : २०
         
संजीव 'सलिल' 
*
संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा  बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा,  यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदास-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, सूर.-सूरदास, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.      
'अग' से प्रारंभ शब्द : ७.
संजीव 'सलिल'
*
अग्रांश/अग्रान्श- पु. सं. देखें अग्रभाग.
अग्रांशु/अग्रान्शु- पु. सं. केन्द्रीय बिंदु, धुरी.
अग्राक्षण-पु./अग्राक्षि-स्त्री. - सं. कटाक्ष, तिरछी चितवन.
अग्राणीक/आग्रानीक- पु. सं. सेना का आगे जानेवाला भाग.
अग्राम्य-वि. सं. जो देहाती न हो, नागर, नगरीय, नगर का, श्री, शहर का, जो पालतू न हो, जंगली, वन्य.
अग्राशन- पु. सं. भोजन से देवता, पितरों या गऊ के निमित्त निकाला जानेवाला अंश.
अग्रासन- पु. सं. सम्मान का आसान/स्थान.
अग्राह्य- वि. सं. ग्रहण न करने योग्य, त्याज्य, अविचारणीय, अविश्वसनीय.-व्यक्ति-पु. किसी देश का राजदूत/राजपुरुष/अन्य व्यक्ति जो अन्य देश को मान्य/ग्राह्य/स्वीकार्य न हो, परसोना नों ग्रेटा इ., अमान्य/अग्राह्य/अस्वीकार्य  व्यक्ति.
अग्राह्या- वि. सं. ग्रहण न करने योग्य, त्याज्य स्त्री, शौचादि के काम आनेवाली मिट्टी, उपयोग न की जा सकनेवाली मिट्टी.
अग्रिम- वि. सं. पहला, अगला, श्रेष्ठ, उत्तम, पेशगी, आगामी, सबसे बड़ा. पु. सबसे बड़ा भाई.-धन-पु. एडवांस, वेतन/पारिश्रमिक/मूल्य का नियत तिथि/समय से पहले दिया गया अंश.
अग्रिम देय धन- पु. कार्य विशेष पर व्यय पहले से हेतु दिया गया धन जिसका समायोजन कार्य होने के बाद किया जाए, बयाना,पेशगी, इम्प्रेस्ट मनी इ.
अग्रिमा- स्त्री. सं. ग्रीष्मजा/लोणा नामक फल/वृक्ष.
अग्रिय-वि. सं. श्रेष्ठ, उत्तम.पु. बड़ा भाई, पहले लगनेवाले फल.
अग्रेदिधिशु- पु. सं. पूर्व विवाहित स्त्री से विवाह करनेवाला द्विज.
अग्रेदिधिषू- स्त्री. सं. वह विवाहिता स्त्री जिसकी बड़े बहिन अविवाहिता हो.
अग्रेमूल्य- पु. भविष्य में बिकनेवाली वस्तु का वर्तमान में लगाया गया मूल्य.
अग्रेसर पु./अग्रेसरी स्त्री.- वि. सं. आगे जानेवाला/वाली, अगुआ, नायक-नायिका.
अग्रेसरिक- पु. सं. नेता/स्वामी.मालिक के आगे जानेवाला नौकर.
अग्रय- वि सं. जो सबसे आगे हो, श्रेष्ठ, कुशल, योग्य. पु. बड़ा भाई, मकान की छत.
                                                                                  -निरंतर ....

गीत: आँसू और ओस संजीव 'सलिल'

गीत:

आँसू और ओस

संजीव 'सलिल'
*
हम आँसू हैं,
ओस बूँद मत कहिये हमको...
*
वे पल भर में उड़ जाते हैं,
हम जीवन भर साथ रहेंगे,
हाथ न आते कभी-कहीं वे,
हम सुख-दुःख की कथा कहेंगे.
छिपा न पोछें हमको नाहक
श्वास-आस सम सहिये हमको ...
*
वे उगते सूरज के साथी,
हम हैं यादों के बाराती,
अमल विमल निस्पृह वे लेकिन
दर्द-पीर के हमीं संगाती.
अपनेपन को अब न छिपायें,
कभी कहें: 'अब बहिये' हमको...
*
ऊँच-नीच में, धूप-छाँव में,
हमने हरदम साथ निभाया.
वे निर्मोही-वीतराग हैं,
सृजन-ध्वंस कुछ उन्हें न भाया.
हारे का हरिनाम हमीं हैं,
'सलिल' संग नित गहिये हमको...
*

रविवार, 31 अक्टूबर 2010

हिंदी शब्द सलिला : २०          
संजीव 'सलिल'*
संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा  बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा,  यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदास-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, सूर.-सूरदास, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.      
'अग' से प्रारंभ शब्द : ७.
संजीव 'सलिल'*
अग्निक- पु. सं. इंद्रगोप, बीरबहूटी, एक पौधा, साँप की एक जाति.
अग्निमान/मत- पु. सं. विधि अनुसार अग्न्याधान करनेवाला द्विज, अग्निहोत्री.
अग्नीध्र- पु. सं. यज्ञाग्नि जलानेवाला ऋत्विक, ब्रम्हा, यज्ञ, होम, स्वायंभुव मनु का एक पुत्र.  
अग्न्यगार/अग्न्यागार- पु. सं. यज्ञाग्नि रखने का स्थान.
अग्न्यस्त्र/अग्न्यास्त्र- पु. सं. मन्त्रप्रेरित बाण/तीर जिससे आग निकले, अग्निचालित अस्त्र बंदूक, रायफल इ.,तमंचा, पिस्तौल इ., तोप, मिसाइल आदि.
अग्न्याधा- पु.सं. वेद मन्त्र द्वारा अग्नि की स्थापना, अग्निहोत्र.
अग्न्यालय- पु. सं. देखें अग्न्यागार.
अग्न्याशय- पु. सं. जठराग्नि का स्थान.
अग्न्याहित- पु. सं. अग्निहोत्री, साग्निक.
अग्न्युत्पात- पु. सं. अग्निकाण्ड, उल्कापात.
अग्न्युत्सादी/दिन- वि. सं. यज्ञाग्नि को बुझने देनेवाला.
अग्न्युद्धार- पु. सं. दो अरणिकाष्ठों को रगड़कर अग्नि उत्पन्न करना.  
अग्न्युपस्थान- पु.सं. अग्निहोत्र के अंत में होनेवाली पूजा/मन्त्र.
अग्य- वि. स्त्री. दे. देखें अज्ञ.
अग्या/आग्या- स्त्री. दे. देखें आज्ञा.
अग्यारी- स्त्री. आग में गुड़/दशांग आदि डालना, अग्यारी-पात्र.
अग्र- वि. सं. अगला, पहला, मुख्य, अधिक. अ. आगे. पु. अगला भाग, नोक, शिखर, अपने वर्ग का सबसे अच्छा पदार्थ, बढ़-चढ़कर होना, उत्कर्ष, लक्ष्य आरंभ, एक तौल, आहार की के मात्रा, समूह, नायक.-कर-पु. हाथ का अगला हिस्सा, उँगली, पहली किरण,-- पु. नेता, नायक, मुखिया.-गण्य-वि. गिनते समय प्रथम, मुख्य, पहला.--गामी/मिन-वि. आगे चलनेवाला. पु. नायक, अगुआ, स्त्री. अग्रगामिनी.-दल-पु. फॉरवर्ड ब्लोक भारत का एक राजनैतिक दल जिसकी स्थापना नेताजी सुभाषचन्द्र बोसने की थी, सेना की अगली टुकड़ी,.--वि. पहले जन्मा हुआ, श्रेष्ठ. पु. बड़ा भाई, ब्राम्हण, अगुआ.-जन्मा/जन्मन-पु. बड़ा भाई, ब्राम्हण.-जा-स्त्री. बड़ी बहिन.-जात/ जातक -पु. पहले जन्मा, पूर्व जन्म का.-जाति-स्त्री. ब्राम्हण.-जिव्हा-स्त्री. जीभ का अगला हिस्सा.-णी-वि. आगे चलनेवाला, प्रथम, श्रेष्ठ, उत्तम. पु. नेता, अगुआ, एक अग्नि.-तर-वि. और आगे का, कहे हुए के बाद का, फरदर इ.-दाय-अग्रिम देय, पहले दिया जानेवाला, बयाना, एडवांस, इम्प्रेस्ट मनी.-दानी/निन- पु. मृतकके निमित्त दिया पदार्थ/शूद्रका दान ग्रहण करनेवाला निम्न/पतित ब्राम्हण,-दूत- पु. पहले से  पहुँचकर किसी के आने की सूचना देनेवाला.-निरूपण- पु. भविष्य-कथन, भविष्यवाणी, भावी. -सुनहु भरत भावी प्रबल. राम.,-पर्णी/परनी-स्त्री. अजलोमा का वृक्ष.-पा- सबसे पहले पाने/पीनेवाला.-पाद- पाँव का अगला भाग, अँगूठा.-पूजा- स्त्री. सबसे पहले/सर्वाधिक पूजा/सम्मान.-पूज्य- वि. सबसे पहले/सर्वाधिक सम्मान.-प्रेषण-पु. देखें अग्रसारण.-प्रेषित-वि. पहले से भेजना, उच्चाधिकारी की ओर आगे भेजना, फॉरवर्डेड इ.-बीज- पु. वह वृक्ष जिसकी कलम/डाल काटकर लगाई जाए. वि. इस प्रकार जमनेवाला पौधा.-भाग-पु. प्रथम/श्रेष्ठ/सर्वाधिक/अगला भाग -अग्र भाग कौसल्याहि दीन्हा. राम., सिरा, नोक, श्राद्ध में पहले दी जानेवाली वस्तु.-भागी/गिन-वि. प्रथम भाग/सर्व प्रथम  पाने का अधिकारी.-भुक/-वि. पहले खानेवाला, देव-पिटर आदि को खिलाये बिना खानेवाला, पेटू.-भू/भूमि-स्त्री. लक्ष्य, माकन का सबसे ऊपर का भाग, छत.--महिषी-स्त्री. पटरानी, सबसे बड़ी पत्नि/महिला.-मांस-पु. हृदय/यकृत का रक रोग.-यान-पु. सेना की अगली टुकड़ी, शत्रु से लड़ने हेतु पहले जानेवाला सैन्यदल. वि. अग्रगामी.-यायी/यिन वि. आगे बढ़नेवाला, नेतृत्व करनेवाला-योधी/धिन-पु. सबसे आगे बढ़कर लड़नेवाला, प्रमुख योद्धा.-लेख- सबसे पहले/प्रमुखता से छपा लेख, सम्पादकीय, लीडिंग आर्टिकल इ.,-लोहिता-स्त्री. चिल्ली शाक.-वक्त्र-पु. चीर-फाड़ का एक औज़ार.-वर्ती/तिन-वि. आगे रहनेवाला.-शाला-स्त्री. ओसारा, सामने की परछी/बरामदा, फ्रंट वरांडा इं.-संधानी-स्त्री. कर्मलेखा, यम की वह पोथी/पुस्तक जिसमें जीवों के कर्मों का लिखे जाते हैं.-संध्या-स्त्री. प्रातःकाल/भोर.-सर-वि. पु. आगेजानेवाला, अग्रगामी, अगुआ, प्रमुख, स्त्री. अग्रसरी.-सारण-पु. आगे बढ़ाना, अपनेसे उच्च अधिकारी की ओर भेजना, अग्रप्रेषण.-सारा-स्त्री. पौधे का फलरहित सिरा.-सारित-वि. देखें अग्रप्रेषित.-सूची-स्त्री. सुई की नोक,  प्रारंभ में लगी सूची, अनुक्रमाणिका.-सोची-वि. समय से पहले/पूर्व सोचनेवाला, दूरदर्शी. -अग्रसोची सदा सुखी मुहा.,-स्थान-पहला/प्रथम स्थान.--हर-वि. प्रथम दीजानेवाली/देय वस्तु.-हस्त-पु. हाथ का अगला भाग, उँगली, हाथी की सूंड़  की नोक.-हायण-पु. अगहन माह,-हार-पु. राजा/राज्य की प्र से ब्राम्हण/विद्वान को निर्वाहनार्थ मिलनेवाला भूमिदान, विप्रदान हेतु खेत की उपज से निकाला हुआ अन्न.
अग्रजाधिकार- पु. देखें ज्येष्ठाधिकार.
अग्रतः/तस- अ. सं. आगे, पहले, आगेसे.
अग्रवाल- पु. वैश्यों का एक वर्गजाति, अगरवाल.
अग्रश/अग्रशस/अग्रशः-अ. सं. आरम्भ से ही.
अग्रह- पु.संस्कृत ग्रहण न करना, गृहहीन, वानप्रस्थ.              ----------निरंतर                                                                                                                 

शनिवार, 30 अक्टूबर 2010

विशेष रचना : मेरे भैया संजीव 'सलिल'

भाई दूज पर विशेष रचना :

मेरे भैया

संजीव 'सलिल'
*
मेरे भैया!,
किशन कन्हैया...
*
साथ-साथ पल-पुसे, बढ़े हम
तुमको पाकर सौ सुख पाये.
दूर हुए एक-दूजे से हम
लेकिन भूल-भुला न पाये..
रूठ-मनाने के मधुरिम दिन
कहाँ गये?, यह कौन बताये?
टीप रेस, कन्ना गोटी है कहाँ?
कहाँ है 'ता-ता थैया'....
*
मैंने तुमको, तुमने मुझको
क्या-क्या दिया, कौन बतलाये?
विधना भी चाहे तो स्नेहिल
भेंट नहीं वैसी दे पाये.
बाकी क्या लेना-देना? जब
हम हैं एक-दूजे के साये.
भाई-बहिन का स्नेह गा सके
मिला न अब तक कोई गवैया....
*
देकर भी देने का मन हो
देने की सार्थकता तब ही.
तेरी बहिना हँसकर ले-ले
भैया का दुःख विपदा अब ही..
दूज-गीत, राखी-कविता संग
तूने भेजी खुशियाँ सब ही.
तेरी चाहत, मेरी ताकत
भौजी की सौ बार बलैंया...
*****

हिंदी शब्द सलिला : १९ 'अग' से प्रारंभ शब्द : ६. ---संजीव 'सलिल'

हिंदी शब्द सलिला : १९       संजीव 'सलिल'*
संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा  बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा,  यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदास-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, सूर.-सूरदास, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.     
'अग' से प्रारंभ शब्द : ६.
संजीव 'सलिल'*
अग्नि - स्त्री. सं. आग, पंच महाभूतों/पंचतत्वों में से तेज तत्व, प्रकाश, उष्णता, गर्मी, गरमी, जठराग्नि, पित्त, अग्निकर्म जलने की क्रिया, सोना, ३ की संख्या (वैद्यक/आयुर्वेद के अनुसार अग्नि के ३ भेद: १. भौमाग्नि=काष्ठादि  से उत्पन्न, २. दिव्याग्नि = उल्का, विद्युत्, तड़ित आदि, ३. जठराग्नि = उदार/पेट में उत्पन्न अग्नि. कर्मकांड के अनुसार ३ अग्नियाँ: गार्हपत्य, आहवनीय, दक्षिणाग्नि. शरीरस्थ १० अग्नियाँ: भ्राजक, रंजक, क्लेदक, स्नेहक, धारक, बंधक, द्रावक,व्यापक, मापक, श्लेष्मक), चित्रक, नीबू, भिलावाँ,' र' का प्रतीक.-कण-पु. चिंगारी, चिन्गारी.-कर्म/कर्मन -पु. अग्निहोत्र, शवदाह, अंत्येष्टि, गर्म लोहे से दागना.-कला-स्त्री. अग्नि के दशविध अवयवों-वर्णों या मूर्तियों में से कोई एक.-काण्ड/कांड-पु.
आग लगाना, जलाना, आगजनी.-कारिका-स्त्री. 'अग्निदूतं पुरोदधे...' मन्त्र जिससे अग्न्याध्यान किया जाता है.-कार्य- पु. अग्नि में आहुति देना, लोहे से दागना, गर्म तेल आदि से अर्बुद/मस्से आदि को जलाना, देखें 'प्रतिसारण'.-काष्ठ- पु. अरणीकी लकड़ी.-कीट-पु. समंदर नामक कीड़ा.-कुण्ड/कुंड-पु. वेदी, हवनकुंड.-कुक्कुट-पु. लूका.-कुमार-पु. शिवके पुत्र कार्तिकेय, एक अग्निवर्धक रस. -कुल-पु.क्षत्रियों का एक वंश जिसकी उत्पत्ति अग्निकुंड से मान्य है: परमार, 
परिहार,चालुक्य/सोलंकी, चौहान/चव्हाण.-केतु-पु. धुआँ, शिव, रावण सेना के दो राक्षस जो राम द्वारा मारे गये थे.-कोण-पु., आग्नेय-पु.-दिक्/दिशा-स्त्री. पूर्व-दक्षिण का कोना,-क्रिया-स्त्री. शव का दाह, दागना.-क्रीड़ा-स्त्री. आतिशबाजी, रंग-बिरंगी विद्युत्-सज्जा, बिजली से सजावट.-गर्भ- वि.जिसके अन्दर आग हो, जिससे आग उत्पन्न हो. पु. अरनी, सूर्यकांत मणि, आतिशी शीशा. -पर्वत-पु. ज्वालामुखी पहाड़,.-गर्भा-स्त्री. शमी वृक्ष, महाज्योतिष्मती लता, पृथ्वी.-गृह-पु.होमाग्नि रखने का स्थान.-चक्र-शरीर के अन्दर के ६ चक्रों में से एक योग.-चय/चयन- पु. अग्न्याधान/अग्न्याधान करने का मन्त्र,-चित-अग्निहोत्री,-/जन्/जन्मा/जात-पु. अग्निजार वृक्ष, सुवर्ष, कार्तिकेय, विष्णु.वि. अग्नि से उत्पन्न, अग्नि उत्पन्न करनेवाला/अग्निद, पाचक.-जार/जा-पु.सिन्धुफला, गजपिप्पली का पेड़.-जिव्ह-पु. देवता, वाराह रूपधारी विष्णु, वि. अग्नि ही जिसकी जीभ है.-जिव्हा-स्त्री. आग की लपट, अग्नि की ७ जीभें काली, कराली, मनोजवा, सुलोहिता,धूम्रवर्णा, उग्रा, प्रदीप्ता, लांगली वृक्ष, जिसकी जीभ आग उगलती हो, जिसके बोलने से सुननेवाले को आग लगने की तरह प्रतीत हो.-जीवी/विन-पु. अग्नि के आधार पर काम करनेवाला/जिसका काम बिना अग्नि के न हो सके-सुनार, लुहार, हलवाई आदि. -ज्वाल- पु. शिव.-ज्वाला-स्त्री.
आग की लपट, जलपिप्पली, घातकी.-टुंडावती-स्त्री. अजीर्ण दूर करने की एक गोली आयु.-तेजा/तेजस- वि. अग्नि सदृश तेजधारी.-त्रय- पु.-त्रेता/त्रयी- स्त्री. यथाविधि स्थापित ३ प्रकार की अग्नि गार्हपत्य, आहवनीय, रक्षित. -दंड- पु. आग में जलाने का दंड.-- पु. आग देने/लगाने वाला दाहक, जलानेवाला.-दग्ध-वि. चिता पर विधिवत जलाया गया.पु. एक पितृवर्ग.-दमनी-स्त्री. एक क्षुप.-दाता/तृ-पु. अंतिम कृत्य (दाहकर्म) करनेवाला. -दान-पु. जलाना, शवदाह,-दिव्य-पु.अग्निपरीक्षा,-दीपक-वि. पाचनशक्तिवर्धक,-दीपन-पु. जठराग्नि का दीपन, पाचनशक्ति की वृद्धि, पाचनशक्तिवर्धक औषधि. -दीप्ता- स्त्री. महाज्योतिष्मती लता.-दूत-पु. यज्ञ, यज्ञ में आवाहित देवता.-देव-अग्नि भगवान -'प्रगटे अगिनी देव चरु लीन्हें' राम.-देवा-स्त्री. कृत्तिका नक्षत्र.-धान- पवित्र अग्नि रखने का स्थान.-नक्षत्र-कृत्तिका नक्षत्र.-निर्यास- पु. अग्निजार वृक्ष.-नेत्र- पु. देवता मात्र.-पक्व-वि. आगपर पकाया हुआ.-पथ-पु. जलते अंगारे जिन पर भक्त चलते हैं, डॉ. हरिवंशराय बच्चन की प्रसिद्ध कविता, अमिताभ बच्चन अभिनीत हिन्दी चलचित्र. 
-परिक्रिया-स्त्री. अग्निचर्या, होमादि करना.-परिगृह-पु. शास्त्रोक्त अग्नि को अखंड रखने का व्रत.-परिधान-पु. यज्ञाग्नि को परदेसे घेरना.-परीक्षा-स्त्री. अग्नि द्वारा परीक्षा,जलती आग या खौलते तेल से किसी के दोषी/
निर्दोष होने की जाँच, सोने-चाँदीआदि को आग में तपकर परखना, कठिन परीक्षा.-पर्वत-पु. ज्वालामुखी पहाड़ -पुराण-पु. महर्षि व्यास द्वारा लिखे गये १८ महापुराणों में
से एक जिसे अग्नि ने सर्वप्रथम वशिष्ठ ऋषि को सुनाया था.-पूजक-पु. आग की पूजा करनेवाला, पारसी.-प्रणयन-पु. अग्निहोत्रकी अग्नि का मन्त्रपूर्वक संस्कार करना.-प्रतिष्ठा-स्त्री. धार्मिक कृत्यों विशेषकर विवाह के अवसर पर अग्नि का आवाहन-पूजन.-प्रवेश-पु. आग में प्रवेश, स्त्री का पति की चिता में प्रवेश.-प्रस्तर-पु. चकमक पत्थर.-बाण- वह तीर जिससे आग की लपट निकले.बाहु-धुआँ, स्वायंभुव मनु का एक पुत्र.-बीज- सोना, 'र' अक्षर.--पु. सोना, कृत्तिका नक्षत्र. वि. अग्नि जैसा चमकनेवाला.-भक्षक/भक्षी-आग खानेवाला. -भू-पु.कार्तिकेय.-भूति-अंतिम तीर्थ करके लौटे ११ शिष्यों में से एक.-मंथ/मंथन-अरणी से रगड़कर आग उत्पन्न करना/इस हेतु प्रयुक्त मंत्र, गनयारी का पेड़.-मथ-पु. अरनी की दो टहनियों से रगड़कर आग उत्पन्न करनेवाला याज्ञिक, अग्निमंथनका मंत्र. अरणीकी लकड़ी.-मणि- पु. सूर्यकांत मणि, आतिशी शीशा.-मान्द्य-पु. जठराग्नि का मंद हो जाना, मन्दाग्नि, हाजमें की खराबी.-मारुति-पु. अगस्त्य ऋषि.-मित्र-पु. शुंगवंशका एक राजा, पुष्यमित्र का बेटा.मिसाइल-स्त्री.भारत का  प्रक्षेपास्त्र जो सुदूर लक्ष्य का अचूक भेदन करने में सक्षम है.-मुख-ब्राम्हण, देवता, प्रेत, अग्निहोत्री, चीते का पेड़,
भिलावाँ, एक अग्निवर्धक चूर्ण.-मुखी-स्त्री. गायत्री मंत्र, भिलावाँ, पाकशाला.-युग-पु. ज्योतिष में मानेगये ५ युगों में से एक.-योजन-पु. अग्नि प्रज्वलित करने की क्रिया.-रंजक-वि. आग से मनोरंजन करनेवाला.-रंजन-आग से खेलकर मनोरंजन करने की कला.-रजा/रजस-पु. बीरबहूटी, वर्षाकाल के बाद हरी घास में मिलनेवाला लाल-मखमली कीड़ा, सोना.-रहस्य-पु. अग्नि की उपासना का रहस्य, शतपथ ब्राम्हण का दसवाँ काण्ड.-रक्षक-पु. आगसे बचानेवाला/लड़नेवाला, फायरफाइटर.-रुहा-स्त्री. मांसरोहिणी नामक पौधा,-रेता/रेतस-पु. सोना.-रोधक- पु. वि. वारक, आग से बचनेवाला, जिस पर आग असर न करे, फायरप्रूफ देखें अग्निसह.इ.-रोहिणी-स्त्री. काँख में
निकलनेवाला फोड़ा जिसमें ज्वर होता है, कँखौरी.-लिंग-पु. आग की लपट
देखकर शुभाशुभ बताने की विद्या.-लोक- पु. अग्निदेव का लोक.-वंश- पु. अग्निकुल.-वधु-स्त्री. स्वाहा.-वर्च/वर्चस-पु. अग्नि का तेज.-वर्ण-वि. अग्नि जैसे रंगवाला.-वर्णा-स्त्री. तेज शराब.-वर्धक/न-वि. पाचनशक्ति बढ़ानेवाला.-वर्षा- स्त्री. बंदूक की गोली, तोप के गोले, बम आदि लगातार गिरना/मिलना/पड़ना.-वल्लभ-पु. अग्निदेव, शाल वृक्ष, राल.-वारक-पु. वि. रोधक, आग से बचनेवाला, जिस पर आग असर न करे, फायरप्रूफ देखें अग्निसह.-वासा/सस-वि. अग्नितुल्य शुद्ध वस्त्रवाला, जो लाल कपड़े पहने हो.-वाह-धुआँ, बकरा.वि. अग्निवाहक.-वाहन- पु. बकरा.-बिंदु-चिंगारी.-विद-वि. अग्निहोत्र जाननेवाला, पु. अग्निहोत्री.-विद्या- स्त्री. अग्निहोत्र, आग से लड़ने/को
नियंत्रित करने की विद्या.-विसर्प-पु. अर्बुद/बवासीर रोगजनित जलन.-वीर्य-अग्नि जैसे तेजवाला. पु. अग्नि का तेज, सोना.-वेश-अग्नि जैसे तेजस्वी, एक आयुर्वेदाचार्य/प्राचीन ऋषि.-शर्मा/शर्मन-अति क्रोधी, एक ऋषि.-शामक दल-दमकल, अग्नि बुझानेवाला प्रशिक्षित दल.-शाला-स्त्री. अग्न्याधान का स्थान.-शिख-पु. कुसुम का वृक्ष, केसर, सोना, दीपक, बाण.-वि. अग्नि जैसी शिखा, ज्वाला या दीप्तिवाला.-शिखा-स्त्री. आग की ज्वाला/लपट, कलियारी पौधा.-शुद्धि-स्त्री. आग में तपाकर शुद्ध करना, अग्निपरीक्षा.-शेखर-पु. केसर, कुसुम, सोना.-ष्टोम-पु. यज्ञविशेष.-ष्ठ-वि. आग पर रखा हुआ, आग पर स्थित, विस्फोटक स्थिति.-ष्वात्त-पु. पितरों का एक गण/वर्ग.-संभव-वि. आग से उत्पन्न. पु.अरन्यकुसुम, सोना, भोजन का रस.-संस्कार-पु. आग जलाना/लगाना, तप्त/गरम करना, अग्नि द्वारा शुद्धि करना, मृतक-दाह, श्राद्ध में एक विधि,-संहिता-स्त्री. अग्निवेश-रचित चिकित्सा-ग्रन्थ,-सखा/सहाय-पु. वायु, धुआँ, जंगली कबूतर,-समाधि-स्त्री.
यौगिक क्रिया द्वारा अपने शरीर को जलाना.-सह-जिस पर अग्नि का असर न हो, जो अग्नि/ताप को सहन करले, अदाह्य, जिसे जलाया न जा सके, फायरप्रूफ इ.-साक्षिक-वि. अग्नि जिसका साक्षी हो, अग्नि को साक्षी कर किया 
गया कार्य.-सात-वि. आग में जलाया हुआ, भस्मसात.-सार-पु. रसांजन.-सेवन- आग तपना/सेंकना.-स्तंभ/स्तंभन-पु. अग्नि की दाहक शक्ति रोकने की क्रिया.हेतु मन्त्र/औषधि.-स्तोक-पु. चिंगारी.-स्नान-पु. आग में जल जाना.-होत्र-पु. वैदिक मन्त्रों से अग्नि में आहुति देना, विवाह की साक्षीभूत अग्नि में नियमपूर्वक हवन करना.-होत्री/त्रिन-वि. पु. अग्निहोत्र करनेवाला.

धनतेरस पर विशेष गीत... प्रभु धन दे... संजीव 'सलिल'

धनतेरसपर विशेष गीत...

प्रभु धन दे...

संजीव 'सलिल'
*
प्रभु धन दे निर्धन मत करना.
माटी को कंचन मत करना.....
*
निर्बल के बल रहो राम जी,
निर्धन के धन रहो राम जी.
मात्र न तन, मन रहो राम जी-
धूल न, चंदन रहो राम जी..

भूमि-सुता तज राजसूय में-
प्रतिमा रख वंदन मत करना.....
*
मृदुल कीर्ति प्रतिभा सुनाम जी.
देना सम सुख-दुःख अनाम जी.
हो अकाम-निष्काम काम जी-
आरक्षण बिन भू सुधाम जी..

वन, गिरि, ताल, नदी, पशु-पक्षी-
सिसक रहे क्रंदन मत करना.....
*
बिन रमेश क्यों रमा राम जी,
चोरों के आ रहीं काम जी?
श्री गणेश को लिये वाम जी.
पाती हैं जग के प्रणाम जी..

माटी मस्तक तिलक बने पर-
आँखों का अंजन मत करना.....
*
साध्य न केवल रहे चाम जी,
अधिक न मोहे टीम-टाम जी.
जब देना हो दो विराम जी-
लेकिन लेना तनिक थाम जी..

कुछ रच पाए कलम सार्थक-
निरुद्देश्य मंचन मत करना..
*
अब न सुनामी हो सुनाम जी,
शांति-राज दे, लो प्रणाम जी.
'सलिल' सभी के सदा काम जी-
आये, चल दे कर सलाम जी..

निठुर-काल के व्याल-जाल का
मोह-पाश व्यंजन मत करना.....
*

गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010

हिंदी शब्द सलिला : १८ 'अग' से प्रारंभ शब्द : ५. --संजीव 'सलिल'

हिंदी शब्द सलिला : १८       संजीव 'सलिल'

*
संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा  बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा,  यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदास-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, सूर.-सूरदास, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.     

'अग' से प्रारंभ शब्द : ५.

संजीव 'सलिल'
*
अगु - पु. सं. राहु, अन्धकार.
अगुआ - पु. आगे चलनेवाला, मुखिया. पथप्रदर्शक, विवाह तय करानेवाला, बिचौलिया, दलाल, बिचुआ, घटक,  आगे का हिस्सा.
अगुआई - स्त्री. नेतृत्व, मार्गदर्शन, अगवानी, नायकत्व.
अगुआना - सक्रि. अगुआ बनना, अक्रि. आगे जाना.
अगुआनी - स्त्री. आगे जाकर स्वागत करना.
अगुण - वि. सं. निर्गुण, गुणरहित, गुणहीन, अनाड़ी. पु. अवगुण, दोष.-ज्ञ -जिसे गुण की परख न हो, गँवार.-वादी/दिन-वि. दोष निकलने वाला, छिद्रान्वेषी.-शील-वि. अयोग्य, निकम्मा.
अगुणी / णिन - वि. सं. गुणहीन, निर्गुण.
अगुरु - पु. सं. अगर, शीशम का पेड़. वि. हल्का, लघु (वर्ण), निगुरा, गुरु से भिन्न, जो गुरु न हो.
अगुवा - पु. देखें अगुआ.
अगुवानी - स्त्री, देखें अगवानी.
अगुसरना - अक्रि. आगे बढ़ना.
अगुसारना - सक्रि. आगे बढ़ाना.
अगूठना - सक्रि. अगोटना, घेर लेना.
अगूठा -  पु. घेरा.
अगूढ़ -  वि. सं. प्रगट, स्पष्ट, सहज.-गंध-पु.,-गंधा-स्त्री. हींग.-भाव-वि. जिसका भाव/अर्थ गूढ़/छिपा न हो. सरलचित्त.
अगूता - अ. आगे, सामने.
अगृ - वि. सं. गृहहीन, बेघर, बिना घर-द्वार का. पु. वानप्रस्थ.
अगेंद्र - पु. सं. हिमालय, हिमगिरि.
अगेथू - पु. देखें अँगेथू.
अगेह - वि. सं. देखें अगृह.
अगोई - वि. स्त्री. जो गुप्त न हो, प्रगट. नोक या सिरा -'हिरनी की खुरियाँ... जिनकी नुकीली अगोइयों ने उसकी खाल उधेड़ दी हो. -नवनीत, दिसंबर १९६२.
अगोचर - वि. सं. जिसका ज्ञान इंद्रियों से न हो सके, इन्द्रियों से परे, इन्द्रियातीत, अप्रगट. पु. वह जो इन्द्रियातीत हो, वह जिसे देखा या जाना न जा सके, ब्रम्ह, ईश्वर, भगवान.
अगोट - पु. आड़, रोक, बाधा, अटक, आश्रय, सहारा, सुरह्षित स्थान. वि. अकेला, गुटरहित, सुरक्षित.
अगोटना - सक्रि. छेंकना, घेरना, छिपा/रोक रखना, फँसना, उलझना.
अगोता - अ. सम्मुख/आगे. पु. अगवानी.
अगोरदार - पु. रखवाली करनेवाला, रखवाला, रक्षक.
अगोरना - सक्रि. बाट जोहना, रखवाली करना, रोकना.
अगोरा - पु. अगोरने की क्रिया, रखवाली देखें अगोरिया.
अगोरिया - पु. खेत आदि की रखवाली करने वाला.
अगोही - पु. आगे की ओर निकले हुए सींगोंवाला बैल.
अगोह्य - वि. सं. जो छिपाये/ढँके जाने योग्य न हो, प्रकाश्य. 
अगौंड़ी - वि. जो गौंड़ (आदिवासियों की एक जाति) न हो. स्त्री. देखें अगाव.
अगौका (कस)  - पु. सं. पर्वतवासी, सिंह, पक्षी, शरभ.
अगौढ़ - पु. पेशगी/अग्रिम ड़ी जानेवाली रकम/धनराशि.
अगौता - अ. आगे. पु. अगवानी, पेशगी.
अगौनी - स्त्री. देखें अगवानी, बरात आने पर द्वार पूजा के समय छोड़ी जानेवाली आतिशबाजी. अ. आगे.
अगौरा - पु. देखें अगाव.
अगौरी/अगौली - स्त्री. एक तरह की ईख/गन्ना.
अगौहें - अ. आगे, आगे की ओर.
अग्ग - वि., अ. देखें अग्र.
अग्गरवाल - वि. वैश्यों/वणिकों का एक वर्ग., देखें अग्रवाल.
अग्गई - स्त्री. हाथभर लम्बी पत्तियोंवाला एक वृक्ष जो अवध क्षेत्र में अधिक पाया जाता है.
अग्गे - अ. आगे, अग्र.
अग्नायी - स्त्री. सं. अग्नि देव की स्त्री/शक्ति, स्वाहा, समिधा, त्रेता युग. 
                                                                                                                                                                     निरंतर......
    

बालगीत: अनुष्का संजीव 'सलिल'

बालगीत:

अनुष्का

संजीव 'सलिल'
*
(लोस एंजिल्स अमेरिका से अपनी मम्मी रानी विशाल के साथ ददिहाल-ननिहाल भारत आई नन्हीं अनुष्का के लिए है यह गीत)

 लो भारत में आई अनुष्का.
सबके दिल पर छाई अनुष्का.

यह परियों की शहजादी है.
खुशियाँ अनगिन लाई अनुष्का..

है नन्हीं, हौसले बड़े हैं.
कलियों सी मुस्काई अनुष्का..

दादा-दादी, नाना-नानी,
मामा के मन भाई अनुष्का..

सबसे मिल मम्मी क्यों रोती?
सोचे, समझ न पाई अनुष्का..

सात समंदर दूरी कितनी?
कर फैला मुस्काई अनुष्का..

जो मन भाये वही करेगी.
रोको, हुई रुलाई अनुष्का..

मम्मी दौड़ी, पकड़- चुपाऊँ.  
हाथ न लेकिन आई अनुष्का..

ठेंगा दिखा दूर से हँस दी .
भरमा मन भरमाई अनुष्का..

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रवींद्र खरे का कथा संग्रह 'तुम्हारे लिये' विमोचित


रवींद्र खरे का कथा संग्रह 'तुम्हारे लिये' विमोचित

भोपाल. हिन्दी के यशस्वी कथाकार श्री रवींद्र खरे 'अकेला' की आकाशवाणी से प्रसारित कहानियों का संग्रह 'तुम्हारे लिये' का विमोचन मध्य प्रदेश के साहित्य प्रेमी राज्यपाल महामहिम रामेश्वर ठाकुर के कर कमलों से अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के अखिल भारतीय अध्यक्ष श्री कैलाश नारायण सारंग, भूतपूर्व सांसद की विशेष उपस्थिति में संपन्न हुआ. श्री खरे को दिव्यनर्मदा परिवार की अनंत-अशेष शुभ कामनाएँ और बधाइयाँ.