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बुधवार, 19 मई 2010

रचना प्रति रचना : ...क्या कीजे? --महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’, संजीव 'सलिल'

रचना प्रति रचना 
 वरिष्ठ और ख्यातिलब्ध शायर श्री महेश चन्द्र गुप्त 'खलिश' रचित यह ग़ज़ल ई-कविता के पृष्ठ पर प्रकाशित हुई. इसे पढ़कर हुई प्रतिक्रिया प्रस्तुत हैं. जो अन्य रचनाकार इस पर लिखेंगे वे रचनाएँ और प्रतिक्रियाएँ भी यहाँ प्रकाशित होंगी. उद्देश्य रचनाधर्मिता और पठनीयता को बढाकर रचनाकारों को निकट लाना मात्र है.
 जब घाव लगे हों दिल पर तो बातों की मरहम क्या कीजे ईकवितामई २०१० 
महेश चन्द्र गुप्त ख़लिश

जब घाव लगे हों दिल पर तो बातों की मरहम क्या कीजे
जब हार गए हों  मैदाँ में, शमशीरी दम-खम क्या कीजे
दुनिया में अकेले आए थे, दुनिया से अकेले जाना है
दुनिया की राहों में पाया हमराह नहीं ग़म क्या कीजे
बिठला कर के अपने दिल में हम उनकी पूजा करते हैं
वो समझें हमको बेगाना, बतलाए कोई हम क्या कीजे
दिल में तो उनके नफ़रत है पर  मीठी बातें करते हैं
वो प्यार-मुहब्बत के झूठे लहराएं परचम, क्या कीजे
क्या वफ़ा उन्हें मालूम नहीं, बेवफ़ा हमें वो कहते हैं
सुन कर ऐसे इल्ज़ाम ख़लिश जब आँखें हों नम क्या कीजे

महेश चन्द्र गुप्त ख़लिश
*
मुक्तिका:
...
क्या कीजे?
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
जब घाव लगे हों दिल पर तो बातों की मरहम क्या कीजे?

सब भुला खलिश, आ नेह-नर्मदा से चुल्लू भर जल पीजे.

दे बदी का बदला नेकी से, गम के बदले में खुशी लुटा.
देता है जब ऊपरवाला, नीचेवाले से क्या लीजे?

दुनियादारी की वर्षा में तू खुद को तर मत होने दे.
है मजा तभी जब प्यार-मुहब्बत की बारिश में तू भीजे.

जिसने बाँटा वह ज्यों की त्यों चादर निर्मल रख चला गया.
जिसने जोड़ा वह चिंता कर अंतिम दम तक मुट्ठी मीजे.

सागर, नदिया या कूप न रीता कभी पिलाकर जल अपना.
मत सोच 'सलिल' किसको कितना कब-कब कैसे या क्यों दीजे?
*

नवगीत: मुँह में नहीं जुबान...... --संजीव 'सलिल'

नवगीत:

संजीव वर्मा 'सलिल'


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मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*
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शांति-शिष्टता,
धैर्य-भद्रता,
जीवट की पहचान.
शांत सतह के
नीचे हलचल,
मचल रहे अरमान.

श्वेत-शयन लख
यह मत समझो
रंगों से अनजान.
मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*
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ऊपर-नीचे
सब जानें पर
ऊँच-नीच से दूर.
दिक्-दिगंत पर
नजर जमाये
आशान्वित भरपूर.

मुस्कानों से
'सलिल' न होगा
पीड़ा का अनुमान.
मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*
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उत्तर का
प्रत्युत्तर देना 
बहुत सहज आसान.
कह न अनर्गल
मौन साधना
क्या जानें नादान?

जो सचमुच
है बड़ा, 'सलिल' वह
नहीं दिखता शान.
मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*






ले-दे बढ़ते,
ऊपर चढ़ते
पा लेते है जीत.
मिला ताल से
ताल  सुनते
निज हित का संगीत.
स्वार्थ मित्र,
सर्वार्थ शत्रु कह
लिखें कर्म उन्वान...
*
संबंधों को
अनुबंधों में
बाँध भुनाते रीत.
नेह भाव
निस्वार्थ मनोहर,
ठोकर दें बन मीत.
सत्य न बिसरा
पछतायेगा
'सलिल' समय बलवान...
***
Acharya Sanjiv सलिल / http://divyanarmada.blogspot.com

मंगलवार, 18 मई 2010

रोचक चर्चा: कौन हैं ये और कैसे? आप करिए आकलन.... ---vijay kaushal


ये हैं नेता?.... ये अधिकारी?..... ये हैं साथी?.... ये हैं प्रेरक?.... ये अनुयायी?....

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विमोचन समाचार: डॉ सुधा ओम ढींगरा का काव्य संग्रह 'धूप से रूठी चांदनी'

नार्थ कैरोलाईना । प्रतिष्ठित पत्रकार, कवयित्री, कहानीकार, उपन्यासकार डॉ सुधा ओम ढींगरा का काव्य संग्रह 'धूप से रूठी चांदनी' का विमोचन समारोह अमेरिका और भारत में एक साथ हुआ। अमेरिका में हिन्दू भवन (मौरिसविल, नॉर्थ कैरोलाईना) के सांस्कृतिक भवन में हिंदी विकास मंडल और अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति की नॉर्थ कैरोलाईना शाखा के तत्वावधान में संपन्न हुआ। हिंदी विकास मंडल के संरक्षक गंगाधर शर्मा ने ज्योति प्रज्जवलित कर कार्यक्रम को आरंभ किया। 600 से अधिक श्रोतागणों के सम्मुख कवयित्री बिंदु सिंह ने डॉ. सुधा ओम ढींगरा के रचना संसार की झलक लोगों को दी और हिंदी के प्रति उनकी निष्ठा और कार्यों का चित्रात्मक वर्णन करते हुए संग्रह की कविताओं से परिचय करवाया ।
इस कृति का विमोचन समवेत रूप से श्रीमती सरोज शर्मा (अध्यक्ष हिंदी विकास मंडल), अफ़रोज़ ताज़ (प्रोफेसर यू.एन.सी. चैपल हिल), कवि आश कर्ण अटल, महेन्द्र अजनबी और अरुण जैमिनी ने किया । विमोचन के पश्चात हुए कवि सम्मलेन में आश कर्ण अटल, महेन्द्र अजनबी और अरुण जैमिनी जी ने हास्य और व्यंग्य के तीरों से श्रोताओं का मंनोरंजन किया।
भारत में डॉ. सुधा ओम ढींगरा की इसी किताब का विमोचन सीहोर की प्रकाशन संस्था शिवना प्रकाशन तथा मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। सुकवि मोहन राय की स्मृति में अखिल भारतीय मुशायरे का आयोजन भी किया गया। सीहोर के कुइया गार्डन में आयोजित कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि विधायक श्री रमेश सक्सेना, सुकवि स्व. मोहन राय की धर्मपत्नी श्रीमती शशिकला राय सहित पद्मश्री बशीर बद्र, पद्मश्री बेकल उत्साही, डॉ. राहत इन्दौरी तथा मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी की सचिव नुसरत मेहदी सहित सभी शायरों ने माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण तथा सुकवि स्व. मोहन राय के चित्र पर पुष्पाँजलि तथा दीप प्रावलित करके किया। सभी अतिथियों का स्वागत संयोजक श्री राजकुमार गुप्ता द्वारा तथा आयोजन प्रमुख श्री पुरुषोत्तम कुइया ने किया। अन्य नई पुस्तकों का विमोचन भी सभी अतिथियों द्वारा किया गया। कार्यक्रम में मोनिका हठीला की 'एक ख़ुशबू टहलती रही', सीमा गुप्ता की 'विरह के रंग', मेजर संजय चतुर्वेदी की 'चाँद पर चाँदनी नहीं होती' का भी विमोचन किया गया, । इस अवसर पर डॉ. आजम को सुकवि मोहन राय स्मृति पुरस्कार प्रदान किया गया। इस रूप में उन्हें शाल श्रीफल, सम्मान पत्र तथा स्मृति चिन्ह भेंट किया गया । डॉ. आजम का संक्षिप्त परिचय चयन समिति की अध्यक्ष हिंदी की प्रोफ़ेसर डॉ. श्रीमती पुष्पा दुबे द्वारा दिया गया। मुख्य अतिथि विधायक रमेश सक्सेना ने आयोजकों का आभार माना । पद्मश्री डॉ. बशीर बद्र ने कहा कि सीहोर आना हमेशा से ही मेरे लिये आकर्षण का विषय रहता है क्योंकि यहाँ पर मुझे बहुत प्यार मिलता है।
कार्यक्रम के द्वितीय चरण में अखिल भारतीय मुशायरे में पद्मश्री बेकल उत्साही, डॉ. राहत इन्दौरी, नुसरत मेहदी, शकील जमाली, खुरशीद हैदर, अख़्तर ग्वालियरी, शाकिर रजा, सिकन्दर हयात गड़बड़, अतहर सिरोंजी, सुलेमान मज़ाज, जिया राना, सुश्री राना जेबा, फारुक अंजुम, काज़ी मलिक नवेद, ताजुद्दीन ताज़, मोनिका हठीला, मेजर संजय चतुर्वेदी, सीमा गुप्ता, डॉ. आम में भाग लिया । कार्यक्रम में प्रदीप एस चौहान व पंकज सुबीर सहित पंडित शैलेष तिवारी, सोनू ठाकुर, विक्की कौशल, सनी गौस्वामी, सुधीर मालवीय, नवेद खान, प्रवीण विश्वकर्मा, प्रकाश अर्श, वीनस केसरी, अंकित सफर, रविकांत पांडे आदि की महत्वपूर्ण भूमिका रही ।
नार्थ कैरोलाईना से कुबेरनी हनुमंथप्पा की रपट

नवगीत: पीढ़ियाँ अक्षम हुई हैं --संजीव वर्मा 'सलिल'

 नवगीत:  पीढ़ियाँ अक्षम हुई हैं : संजीव वर्मा 'सलिल'

पीढ़ियाँ अक्षम हुई हैं,
निधि नहीं जाती सँभाली...
*
छोड़ निज जड़ बढ़ रही हैं.
नए मानक गढ़ रही हैं.
नहीं बरगद बन रही ये-
पतंगों सी चढ़ रही हैं.

चाह लेने की असीमित-
किंतु देने की कंगाली.
पीढ़ियाँ अक्षम हुई हैं,
निधि नहीं जाती सँभाली...
*
नेह-नाते हैं पराये.
स्वार्थ-सौदे नगद भाये.
फेंककर तुलसी घरों से-
कैक्टस शत-शत उगाये.

तानती हैं हर प्रथा पर
अरुचि की झट से दुनाली.
पीढ़ियाँ अक्षम हुई हैं,
निधि नहीं जाती सँभाली...
*
भूल देना-पावना क्या?
याद केवल चाहना क्या?
बहुत जल्दी 'सलिल' इनको-
नहीं मतलब भावना क्या?

जिस्म की कीमत बहुत है.
रूह की है फटेहाली.
पीढ़ियाँ अक्षम हुई हैं,
निधि नहीं जाती सँभाली...
*

दोहा का रंग भोजपुरी के संग: संजीव वर्मा 'सलिल'

दोहा के रंग भोजपुरी के संग:

संजीव वर्मा 'सलिल'

*















सपन दिखावैं रात भर, सुधि के दीपक बार.
जिया जरत बा बिरह में, अँखियाँ दें जल ढार..
*
पल-पल लागत बरस सम, मिल न दिन के चैन.
करवट बदल-बदल कटल, बैरन भइले रैन..
*
सावन सुलगल  जेठ सम, साँसें लागल भार.
पिया बसल परदेस जा, बारिश लगल कटार..
*
अंसुंअन ले फफकलि नदी, अंधड़ भयल उसांस.
विरह अँधेरा, मिलन के आस बिजुरि उर-फांस..
*
ठगवा के लगली नजर, बगिया गइल झुराइ.
अंचरा बोबाइल अगन, मैया भइल पराइ..
*
रोटी के टुकड़ा मिलल, जिनगी भइल रखैल.
सत्य अउर ईमान के, कबहूँ न पकड़ल गैल..
*
प्रभु-मरजी कह कर लिहिल, 'सलिल' चुप्प संतोष.
नेता मेवा खा गइल, सेवा का कर घोष..
*

दोहा के रंग जम गइल, भोजपुरी के संग.
लला-लली पढ़ सीख लिहिल, हे जिनगी के ढंग..
*
केहू मत कहिबे सगा, मत केहू के गैर.
'सलिल' जोड़ कर ईश से, मान सबहिं के खैर..

दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

चार चतुष्पदियाँ : तितली पर ---संजीव वर्मा 'सलिल'


                                                         तितली से बगिया हुई, प्राणवान-जीवंत.
तितली यह सच जानती, नहीं मोह में तंत..
भ्रमर लोभ कर रो रहा, धोखा पाया कंत.
फूल कहे, सच को समझ, अब तो बन जा संत..
*

जग-बगिया में साथ ही, रहें फूल औ' शूल.
नेह नर्मदा संग ही, जैसे रहते कूल..
'सलिल' न भँवरा बन, न दे मतभेदों को तूल.
हर दिल बस, हर दिल बसा दिल में, झगड़े भूल..
*

नहीं लड़तीं, नहीं जलतीं, हमेशा मेल से रहतीं.
तितलियों को न देखा आदमी की छाँह भी गहतीं..
हँसों-खेलो, न झगड़ो ज़िंदगी यह चंद पल की है-
करो रस पान हो गुण गान, भँवरे-तितलियाँ कहतीं..
*

तितलियाँ ही न हों तो फूल का रस कौन पायेगा?
भ्रमर किस पर लुटा दिल, नित्य किसके गीत गायेगा?
न कलियाँ खिल सकेंगीं, गर न होंगे चाहनेवाले-
'सलिल' तितली न होगी, बाग़ में फिर कौन जायेगा?.

******************

सोमवार, 17 मई 2010

मस्ती : गर्दन युद्धाभ्यास --- विजय कौशल

गर्दन युद्धाभ्यासwww.FunAndFunOnly.org

परिचर्चा : चिट्ठाकारी का सामाजिक दायित्व और प्रभाव


परिचर्चा : चिट्ठाकारी का सामाजिक दायित्व और प्रभाव जबलपुर. 
स्थानीय सिविक सेंटर में चिट्ठाकारी का सामाजिक दायित्व और प्रभाव विषय पर केन्द्रित एक जीवंत परिचर्चा का आयोजन श्री अनिल माधव सप्रे नव निर्वाचित अध्यक्ष बी.जे.पी. आई.टी.सेल. के मुख्यातिथ्य तथा दिव्य नर्मदा के संपादक श्री संजीव वर्मा 'सलिल' की अध्यक्षता में संपन्न हुआ. विशेष वक्ता थे श्री सचिन खरे प्रांतीय महामंत्री बी.जे.पी. आई.टी.सेल तथा वरिष्ठ चिट्ठाकार श्री विवेकरंजन श्रीवास्तव 'विनम्र'.
परिचर्चा के संयोजक श्री प्रशांत कर्मवीर ने अतिथियों एवं वक्ताओं का स्वागत करते हुए चिट्ठाकारी के आशय, उपयोग तथा भविष्य पर चर्चा को आवश्यक बताया. तकनीकी मार्गदर्शक श्री मन्वंतर ने गत आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी द्वारा चल भाष पर एस.एम्.एस. तथा बड़े नेताओं की वेब साइटों द्वारा आम आदमी से जुड़ने के प्रयास की सराहना करते हुए इसे एक शुभ आरम्भ मात्र निरूपित किया जिसका अनुकरण अन्य दलों द्वारा किया जाना है. 
श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ने चिट्ठाकारी की तकनीक से उपस्थितों का परिचय कराया तथा विद्युत् चोरी एवं अन्य सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध संघर्ष में चिट्ठे को एक सशक्त औजार बताया. उन्होंने चिट्ठाकारिता को शौक नहीं आदत बनाने का संदेश दिया. 
श्री सचिन खरे ने चिट्ठाकारी के सामने उपस्थित चुनौतियों की चर्चा करते हुए बताया कि अभी न तो नेताओं न ही आम लोगों को इस तकनीक के असर का अंदाज़ न इस पर भरोसा है. उन्होंने बड़े नेताओं की वेब साइटें बनाने के अपने अनुभव को श्रोताओं से बाँटते हुए कहा कि जहाँ प्रारंभ में उन्हें यह फालतू का बखेड़ा लगता था वहीं अब उनमें से कई खुद अपने चिट्ठे देखते-लिखते हैं. चिट्ठाकारी के सामाजिक प्रभाव की चर्चा करते हुए वक्ता ने इसे भावी निर्णायक शक्ति बताया. 
मुख्य अतिथि की आसंदी से श्रोताओं व् प्रशिक्षुओं के संबोधित करते हुए श्री श्री अनिल माधव सप्रे ने चिट्ठाकारी से सम्बंधित सूक्ष्म तथा प्रामाणिक जानकारी देकर उपस्थितों को विस्मित कर दिया. उन्होंने चिट्ठाकारी के अच्छे पक्ष को जानने के साथ-साथ बुरे पक्ष से सजग रहने की अपरिहार्यता प्रतिपादित की. संगणक द्वारा किए जा रहे अपराधों की चर्चा करते हुए वक्ता ने चिट्ठाकारी करते समय जरूरी सावधानियों का उल्लेख किया. 
प्रथम सत्र के समापन के पूर्व अध्यक्षीय उद्बोधन में दिव्य नर्मदा के यशस्वी संपादक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने चिट्ठाकारी के अतीत, वर्तमान तथा भविष्य के शब्द-चित्र उपस्थित करते हुए युवा पीढी के लिये इसकी उपादेयता पर प्रकाश डाला. वक्ता ने चिट्ठों को शिक्षा, अध्ययन, आजीविका, शोध, सामाजिक परिवर्तन, विश्व बन्धुत्व तथा सकल मानवता हेतु वरदान निरूपित करते हुए इसे अभिशाप बनानेवालों से सजग रहने का संदेश दिया. 
आयोजन का समापन श्री मन्वंतर द्वारा तकनीकी कार्यशाला में पूछे गए सवालों के समाधान से हुआ. आभार प्रदर्शन श्री कर्मवीर ने किया. 
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दोहा का रंग : छत्तीसगढ़ी के संग ---संजीव वर्मा 'सलिल'

दोहा का रंग : छत्तीसगढ़ी के संग

संजीव वर्मा 'सलिल'
*
महतारी छत्तिसगढ़ी, बार-बार परनाम.
माथ नबावों तोरला, बनहीं बिगरे काम..
*
बंधे रथे सुर-ताल से, छत्तिसगढ़िया गीत.
किसिम-किसिम पढ़तच बनत, गारी होरी मीत..
*

कब परधाबौं अरघ दे, सुरज देंव ल गाँव.
अँधियारी मिल दूर कर, छा ले छप्पर छाँव..
*
सुख-सुविधा के लोभ बर, कस्बा-कस्बा जात.
डउका-डउकी बाँट-खुट, दू-दू दाने खात..
*
खुल्ली आँखी निहारत, हन पीरा-संताप.
भोगत हन बदलाव चुप, आँचर बर मुँह ढांप..
*   
कस्बा-कस्बा जात हे, लोकाचार निहार.
टुटका-टोना-बैगई,  झांग-पाग उतार..
*
शोषण अउर अकाल बर, गिरवी भे घर-घाट.
खेत-खार खाता लीहस, निगल- सेठ के ठाठ..
*
हमर देस के गाँव मा, सुनहा सुरज बिहान.
अरघ देहे बद अंजुरी, रीती- रोय किसान..
*

जिनगानी के समंदर, गाँव-गँवई के रीत.                      
जिनगी गुजरत हे 'सलिल', कुरिय-कुंदरा मीत..
*
महतारी भुइयाँ असल, बंदत हौं दिन-रात.
दाई! पइयां परत हौं, मूँड़ा पर धर हात..
*
जाँघर टोरत सेठ बर, चिथरा झूलत भेस.
मुटियारी माथा पटक, चेलिक रथे बिदेस..
*
बाँग देही कुकराकस, जिनगी बन के छंद.
कुररी कस रोही 'सलिल', 'मावस दूबर चंद..
*
छेंका-बांधा बहुरिया, सारी-लुगरा संग.
अंतस मं किलकत-खिलत, हँसत- गाँव के रंग..
*
गुनगुनात-गावत-सुनत, अइसन हे दिन-रात.
दोहा जिनगी के चलन, जुरे-जुरे से गात..
*
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
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