छंद सलिला:
सुजान छंद
संजीव
*
द्विपदीय मात्रिक सुजान छंद में चौदह तथा नौ मात्राओं पर यति तथा पदांत में गुरु-लघु का विधान होता है.
चौदह-नौ यति रख रचें, कविगण छंद सुजान
हो पदांत लघु-गुरु 'सलिल', रचना रस की खान
उदाहरण :
१. चौदह-नौ पर यति सुजान / में'सलिल'-प्रवाह
गुरु-लघु से पद-अंत करे, कवि पाये वाह
२. डर न मुझको किसी का भी / है दयालु ईश
देश-हित हँसकर 'सलिल' कर / अर्पित निज शीश
३. कोयल कूके बागों में / पनघट पर शोर
मोर नचे अमराई में / खेतों में भोर
* * *
सुजान छंद
संजीव
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द्विपदीय मात्रिक सुजान छंद में चौदह तथा नौ मात्राओं पर यति तथा पदांत में गुरु-लघु का विधान होता है.
चौदह-नौ यति रख रचें, कविगण छंद सुजान
हो पदांत लघु-गुरु 'सलिल', रचना रस की खान
उदाहरण :
१. चौदह-नौ पर यति सुजान / में'सलिल'-प्रवाह
गुरु-लघु से पद-अंत करे, कवि पाये वाह
२. डर न मुझको किसी का भी / है दयालु ईश
देश-हित हँसकर 'सलिल' कर / अर्पित निज शीश
३. कोयल कूके बागों में / पनघट पर शोर
मोर नचे अमराई में / खेतों में भोर
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