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गुरुवार, 9 मई 2013

dopade-chaupade acharya sanjiv verma 'salil'

चंद दोपदे -चौपदे
संजीव
*
जब जग हुआ समीप तब, पाई खुशी समीप।
खुद के हुए समीप जब, मन हो गया महीप।।

मिले समीप समीप मन, तन हो गया प्रसन्न।
अंतर से अंतर मिटा, खुशिया हैंआसन्न ..
*
ऊन न छोड़े गडरिया, भेड़ कर सके माफ़।
मांस नोच चूसे लहू, कैसे हो इन्साफ??
*
वक़्त के ज़ख्म पे मलहम भी लगाना है हमें।
चोट अपनी निरी अपनी, न दिखाना है हमें।।
सिसकियाँ कौन सुनेगा?, कहो सुनाएँ क्यों?
अश्क औरों के पोंछना, न बहाना  है हमें।।
*
हर भाषा-बोली मीठी है, लेकिन मन से बोलें तो,
हर रिश्ते में प्रेम मिलेगा, मन से नाता जोड़ें तो।
कौन पराया? सब अपने हैं, यदि अपनापन बाँट सकें-
हुई अपर्णा क्यों धरती माँ?, सोचें बिरवा बोयें तो।।
*

Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

6 टिप्‍पणियां:

kusum vir ने कहा…

Kusum Vir via yahoogroups.com

आदरणीय सलिल जी,
आपने बहुत ही सुन्दर, रुचिकर और मनभावन दोपदे -चौपदे लिखे हैं l
मेरे मन को अंतिम दोनों चौपदे बहुत ही भाए l

वक़्त के ज़ख्म पे मलहम भी लगाना है हमें।
चोट अपनी निरी अपनी, न दिखाना है हमें।।
सिसकियाँ कौन सुनेगा?, कहो सुनाएँ क्यों?
अश्क औरों के पोंछना, न बहाना है हमें।।
*
हर भाषा-बोली मीठी है, लेकिन मन से बोलें तो,
हर रिश्ते में प्रेम मिलेगा, मन से नाता जोड़ें तो।
कौन पराया? सब अपने हैं, यदि अपनापन बाँट सकें-
हुई अपर्णा क्यों धरती माँ?, सोचें बिरवा बोयें तो।।

हम अपने जीवन को यदि सच में ऐसा बना सकें, तो यह धरती स्वर्ग हो जाए l
मैं तो कहती हूँ ;

हर भाषा में मीत मिला है
मीठी वाणी बोलो तुम
कोई नहीं पराया जग में
सबको गले लगाओ तुम

सादर,

कुसुम वीर

deepti gupta ने कहा…

deepti gupta via yahoogroups.com

मस्त हास्य रचना !

सादर,
दीप्ति

kusum sinha ने कहा…

kusum sinha

priy sanjiv jee
aapki kavya pratibha ko mera shat shat naman

Madhu Gupta via yahoogroups ने कहा…

Madhu Gupta via yahoogroups.com

ऊन न छोड़े गडरिया ------------
बहुत गहरी सोच , ईसा मसीह की याद दिला दी आपने . बहुत सुन्दर दोपद व चौपद
मधु

deepti gupta ने कहा…

deepti gupta via yahoogroups.com

खुद के हुए समीप जब, मन हो गया महीप।।..........वाह.....वाह.....!

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बढ़िया....
बेहतरीन रचना....

अनु