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बुधवार, 9 अगस्त 2023

शिव नारायण जौहरी

 पुरोवाक्: 

''काव्यांजलि'' : मननीय विमलांजलि 

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

*

                         सृष्टि का विनाश करने वाले जगत्पिता शिव और जग-पालक नारायण का समावेश अपने नाम में रखनेवाले श्रेष्ठ-ज्येष्ठ साहित्यकार ने स्वातंत्र्य आंदोलन, वकालत और काव्य लेखन जैसे एक दूसरे से सर्वथा भिन्न क्षेत्रों में आपनी कुशलता, श्रेष्ठता और कर्म-नैपुण्य की छाप छोड़ने का जौहर दिखाकर अपने कुलनाम 'जौहरी' को सार्थक किया है। यह एक सुखद संयोग है की आपके पितृश्री हरनारायण जी के नाम में भी शिव और विष्णु का सम्मिलन था। ३ जनवरी १९२६ को शाजापुर मध्य प्रदेश में जन्मे जौहरी जी ने कैशोर्य और तरुणाई स्वतंत्रता सत्याग्रही के रूप में अंग्रेज सरकार से जूझते हुए बिताई। मात्र १४ वर्ष की उम्र से आप सत्यग्रहों और अन्य राजनैतिक गतिविधियों में भाग लेने लगे। १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन में आपके पराक्रम को पुरस्कृत करने में ब्रिटिश प्रशासन ने कोताही नहीं की। पहले तो आपको १७ जून १९४२ से कारावास में कैद रखा गया।  उसके बाद  ८ अगस्त १९४२ से आरंभ भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व करने के कारण आपको पुलिसिया लाठी प्रहारों से भी नवाज़ा गया। गोरखी हाई स्कूल ग्वालियर में आपने पहली से १० वीं तक अध्ययन किया।  यहाँ आप पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी बाजपेई के सहपाठी भी रहे।  देश स्वतंत्र होने के पश्चात् आपने बी. एस-सी., बी.ए., एल-एल.बी., एल-एल.एम्., साहित्यरत्न की उपाधियाँ अर्जित कीं तथा मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा में प्रवेश कर जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पद से सेवा निवृत्ति ली। आप विधि विभाग में सचिव भी रहे।  स्वनामधन्य निराला जी के साथ मंच साजः करने का सौभाग्य प्राप्त कर चुके जौहरी जी ने भोपाल, रांची तथा मुम्बई रेडियो स्टेशनों से ;एकल काव्य पाठ भी किया है।  आपके लिखे भजनों का गायन अनूप जलोटा तथा अन्य गायकों ने किया है।आपकी छै कृतियाँ रूपा (खंड काव्य), अंतर्मन के साथ, जिजीविषा, त्रिपथगा, क्षितिज से तथा प्रपात पूर्व में प्रकाशित हो चुकी हैं।  इसके अतिरिक्त आपने विधि विषयक पुस्तकें भी लिखी हैं। मध्य प्रदेश शासन द्वारा प्रकाशित 'मध्य प्रदेश के स्वतन्त्रता संग्राम सैनिक' शीर्षक ग्रंथ माला के खंड ४ में  मुरैना जिले के अंतर्गत आपका सचित्र संक्षिप्त परिचय २६८ पर प्रकाशित है।  आपको मध्य के मुख्या मंत्री प्रकाश चंद्र सेठी जी द्वारा ताम्र पत्र से सम्मानित भी किया गया है।  स्वतंत्रता की २५ वीं वर्ष गाँठ पर मुरैना जिला मुख्यालय में शासन द्वारा लगवाए गए शिलालेख पर भी आपका नाम अंकित है।  

                         'काव्यांजलि' काव्य संग्रह में शिवनारायण जी की छंद मुक्त रचनाएँ संकलित हैं। जीवन का आठवाँ दशक पूर्ण करने के बाद भी आपकी सजगता, सचेतनता तथा सृजनात्मक सक्रियता काबिले-तारीफ ही नहीं अनुकरणीय भी है। हिंदी, उर्दू तथा अंग्रेजी भाषाओँ में दक्षता आपका वैशिष्ट्य है। आपकी रचनाओं में यथार्थवाद जमीनी सचाइयों से अंकुरित होता है, वैचारिक प्रतिबद्धता के नाम पर थोपा नहीं जाता।  'तैयार हो जाओ' शीर्षक रचना  में साँसों का मीजान मिलाते हुए कवि वार्धक्य की उपलब्धि से आनंदित होता है-  

                                                                 उतार कर रख दिया मैंने 
                                                                 अपने बुढ़ापे का वजन, 
                                                                 ज़िंदगी की अर्जित गाठ का पूरा बदन 
                                                                 और हल्का हो गया है 
                                                                 गठरी का वजन और उसकी व्यथा 
                                                                 आँख का रंगीन चश्मा 
                                                                 कान में बजती तरंगें और
                                                                 सब कुछ जो अर्जित किया था 
                                                                 मैंने अपनी जवानी में 
                                                                 अपनी कहानी में जितनी खाई थी ठोकरें  
                                                                 एक एक सीढ़ी पर चढ़ने के लिए 
                                                                 दुनिया में बढ़ने के लिए 
                                                                 सहज सा हल्का हो गया हूँ।  

                        यह अकृत्रिम आत्मानुभूति पटक के मर्म को स्पर्श करती है। जीवनांत में शिथिल होती इन्द्रियों जनित विवशता को स्वीकारते हुए कवि 'मैं आ रहा हूँ' का उद्घोष करता हुआ अपनी माता का स्मरण करता है- 

                                                                 आ रहा हूँ ,माँ 
                                                                 आ रहा हूँ मैं 
                                                                 गति से लगाता होड़
                                                                 चाहता हूँ मैं 
                                                                 तुम्हारी गोद में जलते 
                                                                 निरंतर हवन में समिधा की तरह 
                                                                 डूब जाने के लिये। 

                        'जिंदगी हारी नहीं है; शीर्षक कविता में जौहरी जी प्राकृतिक विनाश लीलाओं को चुनौती की तरह स्वीकार कर नव निर्माण का आह्वान करते हुए कहते हैं की अपनी बनाई सृष्टि को खुद ही मिटा दे, विधाता इतना नादान नहीं हो सकता अर्थात इस विनाश लीला के मूल में मानवीय कदाचरण ही है- 

                                                                 जिंदगी अब तक मगर हारी नहीं है 
                                                                 जवानी ने चुनौती मान ली है 
                                                                 जिसने बनाया है खिलौना वही 
                                                                 इसको तोड़ डालेगा 
                                                                 नासमझ इतना रचियता 
                                                                 हो नहीं सकता।

सृष्टि में जीव के 'जन्म' के साथ ही 'मृत्यु' अस्तित्व में आ जाती है, अजर-अमर कोई नहीं हो सकता। यह अटल सत्य है। अवतार लेने पर ईश्वर को भी मरना ही पड़ता है हम भले ही उसे 'लीला संवरण' कह दें। मृत्यु के संसाधनों को निरंतर बनाने की मानवीय दुष्प्रप्रवृत्ति की विवेचना करते हुए कवी चेतावनी देता है कि समूची सृष्टि में पृथ्वी एकमात्र गृह है, जहाँ जीवन है, इसलिए अन्य ग्रह पृथ्वी से ईर्ष्या करते हैं।  मनुष्य को ऐसा कोइ काम नहीं करना चाहिए जिससे जीवन ही संकट में पड़ जाए - 

                                                                 हरेक ग्रह पर न पानी है, 
                                                                 न प्राण, न हँसना, न रोना 
                                                                 बस सन्नाटा रहता है 
                                                                 सब ग्रहों पर 
                                                                 इस तरह से हमारी धरती को 
                                                                 दूसरे ग्रह जलन से देखते हैं। 

                        प्रथम दृष्टि में ये कविताएँ 'अमिधा' में लिखी गयी प्रतीत होती हैं किन्तु मर्म समझने पर अनुभव होता है कि जो कहा जा रहा वह उस अनकहे के लिए कहा जा रहा है जो प्रतिक्रिया स्वरूप पाठक के मन में उपजता है। 'अमिधा' का आश्रय लेकर, 'लक्षणा' के सहारे कथ्य प्रस्तुत कर व्यंजनपरक प्रतिक्रिया उपजाना सहज नहीं होता. इसके लिए गहन साधना की आवश्यकता होती है।

                        जौहरी जी की कुछ काव्य पंक्तियाँ 'सूत्र' की तरह गागर में सागर समाहित किए हैं - 'गीत की कोई पाठशाला नहीं होती', 'मृत्यु शाश्वत सत्य है', 'अन्तर की पुलक फिर जगाओ', चलो चलें सूरज के गाँव',  आदि।  

                        जौहरी जी मूलत: गीतकार हैं। श्रृंगार परक प्रणय गीतों में उनका कवि अनुभूतियों को इस तरह अभिव्यक्त करता है कि पाठक/श्रोता उसमें अवगाहन कर एकाकार हो जाता है -

'प्राण को पाजेब सी पहिना रहे थे पल
और सब कुछ हारते ही जा रहे थे पल'   
*
'तुम क्या गए बिदेस 
नयन का काजल छूट गया 
प्राण का बचपन रूठ गया 
प्यार का सपना टूट गया'
*
'दाह दे रही किशोर चन्द्रिका मुझे 
इसलिए जगा जगा कि सो रहा नहीं! 
कुछ धुवां घुटा घुटा कुछ कसक उठी उठी 
कुछ भरे भरे नयन आस कुछ मिटी मिटी
प्यास दे रही किशोर चन्द्रिका मुझे 
कोई यह अधर मगर भिगो रहा नहीं '

                        जौहरी जी के इन गीतों में भीग कर मन-प्राण जुड़ा जाते हैं।  पद्म भूषण नीरज जी ने हिंदी को श्रृंगार गीतों की जो अभिनव शैली दी, ये गीत उसे पुनर्जन्म देकर आगामी पीढ़ी तक पहुँचाते हैं। 

                        प्रकृति और साहित्य विशेषकर गीतों का साथ धूप-छाँव का सा होता है। सुख-दुख आँखमिचौली खेलते हुए, सवासों और आसों को छकाते रहते हैं।

बरखा के पैरों में पायल को बाँधकर
 बैठ गई सांध्य किरण बादल के पास
*
फागुनी हवाओं में देह गंध ओढ़ ओढ़ 
तृष्णा जब सेंक उठी वासंती भाव 
गोरी को काट रहा नैहर का गाँव  
*
तुम शब्द, शब्द में अर्थ-अर्थ में दिव्य अक्षरी ज्ञान 
मैं इन सबका हूँ व्यक्त रूप तेरी गीता का ज्ञान 
तेरे हस्ताक्षर का अनुमान

                        'लिव इन' को अमृत समझकर, विष घूँट पी-पीकर जीने के भ्रम में मर रही आधुनिकाएँ इन निर्मल-निर्दोष भावनाओं को समझ सकेंगी इसमें संदेह होते हुए भी, उन्हें इनका रस चखाना ही होगा। जौहरी जी अपने गीतों के माध्यम से देहवाद से संत्रस्त इस मनोरोगी समाज को आत्मिक प्रेम और पारलौकिक साहचर्य की कायाकल्पकारी औषधि उपलब्ध कराकर नवजीवन की रह दिखा रहे हैं। साधुवाद। 
                        
                        इन गीतों में सटीक बिंबों, सरस कथ्य, लालित्यवर्धक अलंकारों और चारुत्व वृद्धि कर रहे प्रतीकों का यथास्थान होना रसानन्द की वृष्टि करता है। काव्यानंद के पर्याय इन गीतों को नव रचनाकार आत्मसात करें तो उनका अपना सृजन समृद्ध होगा। यह कृति लोकप्रिय हो और कविवर शिवनारायण जी की एक और नई कृति हमें आत्मानंदित करने के लिए आए, यही कामना है। 

***
संपर्क- विश्व वाणी हिंदी संस्थान, ४०१, विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर 482001, चलभाष : ९४२५१८३२४४  

 

   


आचार्य कृष्णकान्त चतुर्वेदी

आचार्य कृष्णकान्त चतुर्वेदी 

जन्म : 19 दिसंबर 1937, जबलपुर, मध्य प्रदेश, भारत।

विशेषज्ञ : संस्कृत, पाली, प्राकृत साहित्य शस्त्र, भारतीय तथा बौद्ध दर्शन।  

संप्रति : पूर्व निदेशक कालिदास अकादमी मध्य प्रदेश । 

            पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष संस्कृत, पाली, प्राकृत विभाग, रानी दुर्गावती विश्व विद्यालय जबलपुर। 

            शास्त्र चूड़ामणि, भारत सरकार द्वारा मनोनीत। 

           सर्वाध्यक्ष अखिल भारतीय प्राच्य विद्या परिषद वाराणसी अधिवेशन 2000 । 

भारत सरकार - कार्यकारिणी सदस्य राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन 2010 से अब तक । सांस्कृतिक आदान-प्रदान के अंतर्गत अफ्रीका, केन्या, वेबुए की यात्रा।  

विश्व विद्यालय अनुदान आयोग - राष्ट्रीय आचार्य 1992, सदस्य राष्ट्रीय पाठ्यक्रम समिति 1996, अध्यक्ष शोध परियोजना समिति दिल्ली 1997, सदस्य राष्ट्रीय मूल्यांकन समिति, सदस्य पाठ्यक्रम निर्धारण / शोध समिति / योजना एवं मूल्यांकन बोर्ड 35 विश्व विद्यालय । 

साहित्य अकादमी दिल्ली - आचार्य राष्ट्रीय व्याख्यान हेतु 1995, 2011, संस्कृत विशेषज्ञ 2010 से अब तक। 

म. प्र. शासन - सदस्य संस्कृति परिषद 1976 - 2003, सदस्य साहित्य परिषद 1972-1979, सदस्य माध्यमिक शिक्षण मण्डल 1969-1973, सदस्य कालिदास समारोह समिति 1975 से अब तक ।              

रानी दुर्गावती विश्व विद्यालय जबलपुर - 

           अधिष्ठाता प्राच्य विद्या संकाय 1967, कला संकाय 1982 । 

          निदेशक राजशेखर अकादमी 1971 ।  

          प्रभारी - आई. ए. एस. प्रशिक्षण केंद्र 1983, संस्कृति एवं कला प्रभाग 1985, ग्रंथालय एवं सूचना-प्रसारण                  विभाग 1986,  वि. वि. अनुदान आयोग योजना समिति 1987, सदस्य वि.वि. कार्यकारिणी समिति 1987-                  1990 । 

अन्य विश्वविद्यालय - अधिष्ठाता कला संकाय, इंदिरा गाँधी कला संगीत विश्व विद्यालय खैरागढ़ 1975-83 । 

          सदस्य कार्यकारिणी कमेश्वर सिंह संस्कृति वि. वि. दरभंगा बिहार 1883 । 

          सदस्य केन्द्रीय संस्कृत बोर्ड 1995, 2000 (महामहिम राष्ट्रपति जी द्वारा)

          सदस्य शोध समिति अकादमिक सभा, कला संकाय, प्लानिंग एंड एवेल्यूएशन बोर्ड 35 बार ।

शोध मार्गदर्शन - 40 पी-एच. डी., ए डी. लिट.। 

कृतियाँ - 1. अथातो ब्रह्म जिज्ञासा, द्वैत वेदान्त तत्व: समीक्षा, भारतीय परंपरा एवं अनुशीलन,वैष्णव वेदान्त की दार्शनिक पीठिका, मध्य प्रदेश में बुद्ध दर्शन ।  

संपादन - विवेक मकरंदम्, ऋतंभरा त्रैमसिकी, जयतीर्थ स्तुति:, डॉ. प्रभुदयालु अग्निहोत्री अभिनंदन ग्रंथ, स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी अभिनंदन ग्रंथ, समन्वय साधना पथ मासिकी । 

शोध पत्र - 40 । 

षष्ठी पूर्ति अभिनन्दन ग्रंथ - 1997, संपादन आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी, अमृत महोत्सव स्मारिका 2013। 

प्रमुख सम्मान - विशिष्ट विद्वान सम्मान अखिल भारतीय प्राच्य विद्या परिषद वाराणसी 2000, महामहिम राष्ट्रपति द्वारा, केन्द्रीय शासन विद्वत सम्मान 2000 मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा 2000, डी. लिट. (मानद) ल. बा.शासकीय केन्द्रीय विश्व विद्यालय दिल्ली, शिखर सम्मान मध्य प्रदेश संस्कृति विभाग।अखिल भारतीय जगद्गुरु रामानंदाचार्य सम्मान वाराणसी, पद्मश्री श्रीधर वाकणकर सम्मान उज्जैन, अ. भा. कला सम्मान उज्जैन, ज्योतिष रत्न सम्मान जोधपुर, विद्वत मार्तंड-विद्वतरत्न सम्मान प्रयाग, स्वामी अखंडनन्द सरस्वती शताब्दी सम्मान सकेतधम, युगतुलसी रामकिंकर सम्मान अयोध्या, ललित कला आचार्य भोपाल।      

   


मंगलवार, 8 अगस्त 2023

सॉनेट, मीरा, नवगीत, राखी, आजाद, लघुकथा,

सॉनेट
संसद
यह संसद है लोकतंत्र की,
सत्य देखना यहाँ मना है,
झलक नहीं है जन-गण मन की,
अहंकार का शीश तना है।

यह संसद है प्रजातंत्र की,
सत्य बोलना यहाँ मना है,
जय जुमलों के महामंत्र की,
दलबंदी कोहरा घना है।

यह संसद है भ्रष्ट तंत्र की,
सुनना-कहना सत्य मना है,
जगह नहीं जन की बातों को,
सत्ता पाना लक्ष्य बना है।

तंत्र न यह जन-गण-मन सुनता।
यंत्र स्वार्थ के सपने बुनता।।
८-८-२०२३
•••
सॉनेट
मीरा
दुख में सुख मीरा की प्रीत
मिले फूल को पत्थर मीत
सिसक रहे चुप होकर गीत
समय न बदले काहे रीत
मीरा कभी न हुई अतीत
लगे हार भी उसको जीत
दुनियादारी कहे अनीत
वह गुंजाती हरि के गीत
मीरा किंचित हुई न भीत
जन्म-जन्म से हरि की क्रीत
मिलन हेतु नित रहे अधीत
आत्म हुई परमात्म प्रणीत
मीरा को है वही सुनीत
जग कहता है जिसे कुरीत
८-८-२०२२
•••
नवगीत:
अब भी बहनें
बाँध रही हैं राखी
लायीं मिठाई भी
*
उन्हें पता है उनकी रक्षा
भाई नहीं कर पायेगा
अगर करे तो बेबस खुद भी
अपनी जान गँवायेगा
विधवा भौजी-माँ कलपेगी
बच्चे होंगे बिलख अनाथ-
अख़बारों में छप अपराधी
सहज जमानत पायेगा
मानवतावादी-वकील मिल
मुक्त करा घर भर लेंगे
दूरदर्शनी चैनल पर
अपराधी आ मुस्कायेगा
बहनें कहाँ भूलती
हैं भाई का स्नेह
कलाई भी
अब भी बहनें
बाँध रही हैं राखी
लायीं मिठाई भी
*
दुनिया का बाज़ार बड़ा है
पुरा संस्कृति का यह देश
विश्व गुरु को रोज पढ़ाते
आतंकी घुस पाठ विशेष
छप्पन इंची चौड़ी छाती
अच्छे दिन ले आयी है
सैनिक अनशन पर बैठे
पर शर्म न आयी अब तक लेश
सैद्धांतिक सहमति पर
अफसर कुंडलि मारे बैठे हैं
नेता जी खुश विजय-पर्व पर
सैनिक नोचें अपने केश
बहनें दुबली हुई
फ़िक्र से, भूखा
सैनिक भाई भी
अब भी बहनें
बाँध रही हैं राखी
लायीं मिठाई भी
*
व्यथा न सुनता कोई
नौ-नौ आँसू रुला रही है प्याज
भरी तिजोरी तेजडियों की
चंदा दे, लूटें कर राज
केर-बेर का संग, बना
सरकार दोष दें पिछलों को
वादों को जुमला कह भूले
जनगण-मन पर गिरती गाज
प्रोफाइल है हाई, शादियाँ
पाँच करें बेटी मारें
मस्ती मौज मजा पाने को
बेच रहे हैं धनपति लाज
बने माफिया खुद
जनप्रतिनिधि,
संसद लख शर्माई भी
अब भी बहनें
बाँध रही हैं राखी
लायीं मिठाई भी
*
लघु कथा
काल्पनिक सुख
*
'दीदी! चलो बाँधो राखी' भाई की आवाज़ सुनते ही उछल पडी वह। बचपन से ही दोनों राखी के दिन खूब मस्ती करते, लड़ते का कोई न कोई कारण खोज लेते और फिर रूठने-मनाने का दौर।
'तू इतनी देर से आ रहा है? शर्म नहीं आती, जानता है मैं राखी बाँधे बिना कुछ खाती-पीती नहीं। फिर भी जल्दी नहीं आ सकता।'
"क्यों आऊँ जल्दी? किसने कहा है तुझे न खाने को? मोटी हो रही है तो डाइटिंग कर रही है, मुझ पर अहसान क्यों थोपती है?"
'मैं और मोटी? मुझे मिस स्लिम का खिताब मिला और तू मोटी कहता है.... रुक जरा बताती हूँ.'... वह मारने दौड़ती और भाई यह जा, वह जा, दोनों की धाम-चौकड़ी से परेशान होने का अभिनय करती माँ डांटती भी और मुस्कुराती भी।
उसे थकता-रुकता-हारता देख भाई खुद ही पकड़ में आ जाता और कान पकड़ते हुई माफ़ी माँगने लगता। वह भी शाहाना अंदाज़ में कहती- 'जाओ माफ़ किया, तुम भी क्या याद रखोगे?'
'अरे! हम भूले ही कहाँ हैं जो याद रखें और माफी किस बात की दे दी?' पति ने उसे जगाकर बाँहों में भरते हुए शरारत से कहा 'बताओ तो ताकि फिर से करूँ वह गलती'...
"हटो भी तुम्हें कुछ और सूझता ही नहीं'' कहती, पति को ठेलती उठ पड़ी वह। कैसे कहती कि अनजाने ही छीन गया है उसका काल्पनिक सुख।
८-८-२०१७
***
मुक्तक
मधु रहे गोपाल बरसा वेणु वादन कर युगों से
हम बधिर सुन ही न पाते, घिरे हैं छलिया ठगों से
कहाँ नटनागर मिलेगा,पूछते रणछोड़ से क्यों?
बढ़ चलें सब भूल तो ही पा सकें नन्हें पगों से
*
रंज ना कर मुक्ति की चर्चा न होती बंधनों में
कभी खुशियों ने जगह पाई तनिक क्या क्रन्दनों में?
जो जिए हैं सृजन में सच्चाई के निज स्वर मिलाने
'सलिल' मिलती है जगह उनको न किंचित वंदनों में
8-8-2017

***

दोहा सलिलाः
संजीव
*
प्राची पर आभा दिखी, हुआ तिमिर का अन्त
अन्तर्मन जागृत करें, सन्त बन सकें सन्त
*
आशा पर आकाश है, कहते हैं सब लोग
आशा जीवन श्वास है, ईश्वर हो न वियोग
*
जो न उषा को चाह्ता, उसके फूटे भाग
कौन सुबह आकर कहे, उससे जल्दी जाग
*
लाल-गुलाबी जब दिखें, मनुआ प्राची-गाल
सेज छोड़कर नमन कर, फेर कर्म की माल
*
गाल टमाटर की तरह, अब न बोलना आप
प्रेयसि के नखरे बढ़ें, प्रेमी पाये शाप.
*
प्याज कुमारी से करे, युवा टमाटर प्यार
किसके ज्यादा भाव हैं?, हुई मुई तकरार
*
८.८.२०१४

दोहा सलिला:

अलंकारों के रंग-राखी के संग
*
राखी ने राखी सदा, बहनों की मर्याद.
संकट में भाई सदा, पहलें आयें याद..
राखी= पर्व, रखना.
*
राखी की मक्कारियाँ, राखी देख लजाय.
आग लगे कलमुँही में, मुझसे सही न जाय..
राखी= अभिनेत्री, रक्षा बंधन पर्व.
*
मधुरा खीर लिये हुए, बहिना लाई थाल.
किसको पहले बँधेगी, राखी मचा धमाल..
*
अक्षत से अ-क्षत हुआ, भाई-बहन का नेह.
देह विदेहित हो 'सलिल', तनिक नहीं संदेह..
अक्षत = चाँवल के दाने,क्षतिहीन.
*
रो ली, अब हँस दे बहिन, भाई आया द्वार.
रोली का टीका लगा, बरसा निर्मल प्यार..
रो ली= रुदन किया, तिलक करने में प्रयुक्त पदार्थ.
*
बंध न सोहे खोजते, सभी मुक्ति की युक्ति.
रक्षा बंधन से कभी, कोई न चाहे मुक्ति..
बंध न = मुक्त रह, बंधन = मुक्त न रह
*
हिना रचा बहिना करे, भाई से तकरार.
हार गया तू जीतकर, जीत गयी मैं हार..
*
कब आएगा भाई? कब, होगी जी भर भेंट?
कुंडी खटकी द्वार पर, भाई खड़ा ले भेंट..
भेंट= मिलन, उपहार.
*
मना रही बहिना मना, कहीं न कर दे सास.
जाऊँ मायके माय के, गले लगूँ है आस..
मना= मानना, रोकना.
*
गले लगी बहिना कहे, हर संकट हो दूर.
नेह बर्फ सा ना गले, मन हरषे भरपूर..
गले=कंठ, पिघलना.
8-8-2014
*
गीत:
कब होंगे आजाद
*
कब होंगे आजाद?
कहो हम कब होंगे आजाद?....
*
गए विदेशी पर देशी अंग्रेज कर रहे शासन.
भाषण देतीं सरकारें पर दे न सकीं हैं राशन..
मंत्री से संतरी तक कुटिल कुतंत्री बनकर गिद्ध-
नोच-खा रहे भारत माँ को ले चटखारे स्वाद.
कब होंगे आजाद?कहो हमकब होंगे आजाद?....
*
नेता-अफसर दुर्योधन हैं, जज-वकील धृतराष्ट्र.
धमकी देता सकल राष्ट्र को खुले आम महाराष्ट्र..
आँख दिखाते सभी पड़ोसी, देख हमारी फूट-
अपने ही हाथों अपना घर करते हम बर्बाद.
कब होंगे आजाद?कहो हमकब होंगे आजाद?....
*
खाप और फतवे हैं अपने मेल-जोल में रोड़ा.
भष्टाचारी चौराहे पर खाए न जब तक कोड़ा.
तब तक वीर शहीदों के हम बन न सकेंगे वारिस-
श्रम की पूजा हो समाज में, ध्वस्त न हो मर्याद.
कब होंगे आजाद?कहो हमकब होंगे आजाद?....
*
पनघट फिर आबाद हो सकें, चौपालें जीवंत.
अमराई में कोयल कूके, काग न हो श्रीमंत.
बौरा-गौरा साथ कर सकें नवभारत निर्माण-
जन न्यायालय पहुँच गाँव में विनत सुनें फ़रियाद-
कब होंगे आजाद?कहो हम कब होंगे आजाद?....
*
रीति-नीति, आचार-विचारों, भाषा का हो ज्ञान.
समझ बढ़े तो सीखें रुचिकर, धर्म प्रीति विज्ञान.
सुर न असुर, हम आदम यदि बन पायेंगे इंसान-
स्वर्ग 'सलिल' हो पायेगा तब धरती पर आबाद.
कब होंगे आजाद?कहो हम कब होंगे आजाद?....
८-९-२०१०
***

गैंग्रीन, Osteomyelitis, सिरोसी, एक्जिमा, मधुमक्खी, गेंदा, जलन, दस्त, दाँत, सुपारी नीबू, केला, गंजापन, आयुर्वेद, बवासीर

बवासीर, पाईल्स, हेमोरोइड्स, फिसचुला, फिसर .
एक कप मुली का रस सबेरे नाश्ते के बड़ या दोपहर खाना खाने के बाद लें, शाम या रात में को मत लें। अनार का रस भी इन रोगों की दवा है।
अण्डकोशों में जल भरना
लगभग ३० ग्राम इमली की ताजा पत्तियाँ को गौमूत्र में औटाये | एकबार मूत्र जल जाने पर पुनः गौमूत्र डालकर पकायें | इसके बाद गरम – गरम पत्तियों को निकालकर किसी अन्डी या बड़े पत्ते पर रखकर सुहाता- सुहाता अंडकोष पर बाँध कपड़े की पट्टी और ऊपर से लगोंट कास दे | सारा पानी निकल जायेगा और अंडकोष पूर्ववत मुलायम हो जायेगें |
गंजापन
पारिजात की पत्तियों और बीजों का चूर्ण तेल में मिलाकर प्रतिदिन रात को बालों की जडों तक मालिश करते हुए लगाया जाए तो बालों का पुन: उगना शुरु हो जाता है, साथ ही बालों के झडने को रोकने में मदद करता है।
पारिजात को हरसिंगार भी कहते है ।
कनेर- कनेर की पत्तियों को दूध में कुचल कर बालों पर लगाया जाए तो गंजापन दूर होता है, साथ ही बालों का असमय पकना दूर हो जाता है
नीम के बीजों से प्राप्त तेल को रात में सिर पर लगा लेते हैं और सुबह सिर को साफ धो लिया जाता है। माना जाता है कि नीम के
बीजों का तेल बालों में एक माह तक लगातार इस्तमाल करने से बालों का झडना रुक जाता है। डेंड्रफ होने पर 100 मिली नारियल तेल में नीम के बीजों का चूर्ण (20ग्राम) अच्छी तरह से मिलाकर सप्ताह में दो बार रात में मालिश की जाए, आराम मिल जाता है।
अरण्डी-इसके बीजों के तेल के इस्तमाल से बालों का काला होना शुरु हो जाता है। सप्ताह में कम से कम दो बार अरण्डी का तेल बालों में अवश्य लगाना चाहिए। रात में तेल लगाकर सुबह इसे किसी प्राकृतिक शैम्पू का इस्तेमाल कर साफ किया जा सकता है।
मेथी-मेथी की सब्जी का ज्यादा सेवन बालों की सेहत के लिए उत्तम माना जाता है। मेथी के बीजों का चूर्ण तैयार करके पानी के साथ मिलाया जाए और पेस्ट बना लिया जाए।इस पेस्ट को सिर पर लेपित करके आधे घंटे के लिए रखदिया जाए और बाद में इसे धो लिया जाए, ऐसा करने से बालों से डेंड्रफ खत्म हो जाते हैं, ऐसा सप्ताह में कम से कम दो बार किया जाना चाहिए
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किशमिश खाने के स्वास्थ्यवर्धक फायदे.....!
अंगूर को जब विशेषरूप से सुखाया जाता है तब उसे किशमिश कहते हैं। अंगूर के लगभग सभी गुण किशमिश में होते हैं। यह दो प्रकार का होता है, लाल और काला। किशमिश खाने से खून बनता है, वायु दोष दूर होता है, पित्त दूर होता है, कफ दूर होता, और हृदय के लिये बड़ा हितकारी तथा हार्ट अटैक को दूर रखने में मदद करता है।
किशमिश के स्वास्थ्यवर्धक गुड-
1. कब्ज - जब किशमिश को खाई जाती है तो यह पेट में जा कर पानी को सोख लेती हैं। जिस वजह से यह फूल जाती है और कब्ज में राहत दिलाती है।
2. वजन बढाए- हर मेवे की तरह किशमिश भी वजन बढाने में मददगार साबित होती है क्योंकि इसमें फ्रकटोज़ और ग्लूकोज़ पाया जाता है जिससे एनर्जी मिलती है। अगर आपको भी अपना वजन बढाना है और वो भी कोलेस्ट्रॉल बढाए बिना तो आज से ही किशमिश खाना शुरु कर दें।
3. अम्लरक्तता- जब खून में एसिड बढ जाता है तो यह परेशानी पैदा हो जाती है। इसकी वजह से स्किन डिज़ीज, फोडे़, गठिया, गाउट, गुर्दे की पथरी, बाल झड़ने, हृदय रोग, ट्यूमर और यहां तक कि कैंसर होने की संभावना पैदा हो जाती है। किशमिश में अच्छी मात्रा में पोटैशियम और मैगनीशियम पाया जाता है जिसको खाने से अम्लरक्तता की परेशानी दूर हो जाती है।
4. एनीमिया- किशमिश में भारी मात्रा में आयरन होता है जो कि सीधे एनीमिया से लड़ने की शक्ति रखता है। खून को बनाने के लिये विटामिन बी कॉमप्लेक्स की जरुरत को भी यही किशमिश पूरी करती है। कॉपर भी खून में लाल रक्त कोशिका को बनाने का काम करता है।
5. बुखार- किशमिश में मौजूद फिनॉलिक पायथोन्यूट्रियंट जो कि जर्मीसाइडल, एंटी बॉयटिक और एंटी ऑक्सीडेंट तत्वों की वजह से जाने जाते हैं, बैक्टीरियल इंफेक्शन तथा वाइरल से लड़ कर बुखार को जल्द ठीक कर देते हैं।
6. शराब के नशे से छुटकारा- शराब पीने की इच्छा हो तब शराब की जगह 10 से 12 ग्राम किशमिश चबा-चबाकर खाते रहें या किशमिश का शरबत पियें। शराब पीने से ज्ञानतंतु सुस्त हो जाते हैं परंतु किशमिश के सेवन से शीघ्र ही पोषण मिलने से मनुष्य उत्साह, शक्ति और प्रसन्नता का अनुभव करने लगता है। यह प्रयोग प्रयत्नपूर्वक करते रहने से कुछ ही दिनों में शराब छूट जायेगी।
7. यौन दुर्बलता- इस समस्या के लिये रोजाना किशमिश खाएं क्योंकि यह कामेच्छा को प्रोत्साहित करती है। इसमें मौजूद अमीनो एसिड, यौन दुर्बलता को दूर करता है। इसीलिये तो शादी-शुदा जोडों को पहली रात दूध का गिलास दिया जाता है जिसमें किशमिश और केसर होता है।
8. हड्डी की मजबूती- किशमिश में बोरोन नामक माइक्रो न्यूट्रियंट पाया जाता है जो कि हड्डी को कैल्शियम सोखने में मदद करता है। बोरोन की वजह से ऑस्टियोप्रोसिस से बडी़ राहत मिलती है साथ ही किशमिश खाने से घुटनों की भी समस्या नहीं पैदा होती।
9. आंखों के लिये- इसमें एंटी ऑक्सीडेंट प्रोपर्टी पाई जाती है, जो कि आंखों की फ्री रैडिकल्स से लड़ने में मदद करता है। किशमिश खाने से कैटरैक, उम्र बढने की वजह से आंखों की कमजोरी, मसल्स डैमेज आदि नहीं होता। इसमें विटामिन ए, ए-बीटा कैरोटीन और ए-कैरोटीनॉइड आदि होता है, जो कि आंखों के लिये अच्छा होता है।
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भुट्टा खाओ, सेहत बनाओ....!
मक्का के ताजे दानों को पानी में अच्छी तरह से उबालकर उस पानी को छानकर शहद या मिश्री मिलाकर सेवन करने से गुर्दों की कमजोरी दूर होती है। मक्का के दाने भूनकर खाने से पाचन तंत्र के रोग दूर होते हैं। भूना हुआ भुट्टा खाने से दाँत एवं दाढ़ मजबूत होते हैं, तथा ये दाने लार बनाने में भी सहायक हैं, जिससे मुख व दाँतों की दुर्गंध भी दूर होती है। मक्का के दानों को जलाकर उसकी राख में सेंधा नमक एवं पानी मिलाकर पीने से खाँसी एवं पथरी रोगों में लाभ होता है। भुट्टे के भूने हुए नरम मुलायम दाने हृदय रोगियों के लिए एक अच्छा आहार है, क्योंकि इसमें वसा की मात्रा बहुत ही कम होती है। इसका उपयोग उचित मात्रा में करने से शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा नियंत्रित रहती है।मक्का के ताजे पत्तों को पीसकर सिर पर लेप करने से सिरदर्द दूर हो जाता है। वर्षा की फुहारों में भुट्टे के दानों से बना हलवा खाने से अमाशय को बल मिलता है। यह रक्तवर्धक भी है।
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आयुर्वेद चिकित्सा
गैंग्रीन (Osteomyelitis)
मधुमेह के रोगी (डाईबेटिक पेशेंट) का घाव जल्दी ठीक नहीं होता और धीरे धीरे गैंग्रीन (अंग का सड़ जाना) में हो जाता है। अंतत: चोटिल अँग काटना पड़ता है। एक आयुर्वेदिकऔषधि गैंग्रीन और Osteomyelitis (अस्थिमज्जा-प्रदाह) को ठीक करती है।
गैंग्रीन अर्थात अंग का सड़ जाना, नई कोशिका विकसित न होना। मांस और हड्डी में और सब पुरानी कोशिकाएँ मरती जाति हैं। Osteomyelitis में भी कोशिका कभी पुनर्जीवित नहीं होती, बहुत बड़ा घाव हो जाता है और वो ऐसा सड़ता है कि काटने के अलावा और कोई दूसरा उपाय नही है। ऐसी विषम स्थिति में आयुर्वेदिक औषधि है देशी गाय का मूत्र (सूती कपड़े की आठ परत से छान कर), हल्दी और गेंदे का फूल। गेंदे के पीले या नारंगी फूल की पंखुड़ी में हल्दी और गौ मूत्र डालकर उसकी चटनी बनानी है। छोटे घाव पर एक फूल, बड़े घाव पर आकार के अनुसार दो, तीन या चार फूलों की पंखुड़ियाँ लें। इसकी चटनी जहाँ भी बाहर से घाव हो जिससे खून निकल चुका है और ठीक नही हो रहाके ऊपर दिन में कम से कम दो बार लगाना है। सुबह लगाकर उसके ऊपर रुई पट्टी बाँध दीजिए। शाम को घाव ताजे गौ मूत्र से धोकर दुबारा लगाएँ। फिर अगले दिन सुबह पट्टी कीजिये।यह औषधि को हमेशा ताजा बनाकर लगाएँ। गीला सोराइसिस जिसमें खून-पस भी निकलता है ,उसे यह औषधि पूर्णरूप से ठीक कर देती है। दुर्घटना जनित ताजे घाव में इसे लगाते ही खून बंद हो जाता है। ऑपरेशन से हुए घाव के लिए भी यह सबसे अच्छी औषधि है। गीले एक्जीमा तथा जलने से हुए घाव में भी औषधि बहुत उपयोगी है।
मधुमक्खी काटे तो गेंदे की पत्तियों को मलिए, कांटा भी निकल जाता है।
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हाथ, पैर और तलुओं की जलन खत्म कर देता है कच्चा बेल....!
हाथ-पैर, तालुओं और शरीर में अक्सर जलन की शिकायत रहती हो उन्हे करीब ५ कच्चे बेल के फलों के गूदे को २५० मिली नारियल तेल में एक सप्ताह तक डुबोए रखना चाहिए और बाद में इसे छानकर जलन देने वाले शारीरिक हिस्सों पर मालिश करनी चाहिए, अतिशीघ्र जलन की शिकायत दूर हो जाएगी।
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दस्त और डायरिया का अचूक इलाज...!
नींबू का रस निकालने के बाद छिल्कों को फेकें नहीं..इन्हें छाँव में रखकर सुखा लें ।
कच्चे हरे केले का छिल्का उतारकर बारीक-बारीक टुकड़े करें और इसे भी छाँव में सुखा लें। दोनो अच्छी तरह सूख जाए तो दोनो की समान मात्रा लेकर मिक्सर में एक साथ ग्राइंड कर लें। ये चूर्ण है, दस्त और डायरिया का अचूक इलाज है।
बस १ चम्मच चूर्ण हर २ घंटे के अंतराल से खाइए। देखते ही देखते दस्त बवँड़ हो जाएंगे।
केले मे स्टार्च और नीबू के छिल्कों मे सबसे ज्यादा मात्रा में पेक्टिन होता है।
चमकदार दाँत
करीब ३ सुपारी लीजिए और इन्हें भून लें और बाद में अच्छी तरह से कुचलकर चूर्ण तैयार कर लें। इस चूर्ण में नींबू रस की करीब ५ बूंदे डाल दीजिए और करीब १ ग्राम काला नमक भी मिला दें। रोज दिन में दो बार इस मिश्रण से अपने दांतों की सफाई करें, एक सप्ताह में असर होगा।
पेशाब में कमी और कब्ज
एक कप दही, एक मध्यम आकार की खीरा ककडी, दो टमाटर, धनिया पत्ती (कोथमीर), आधा नींबू एक चुटकी पीपर और स्वाद अनुसार नमक मिलाकर इस सभी सामग्री को मिक्सर में पीसकर गिलास में डालकर काम में लें । इसके इस्तेमाल से मूत्र में रुकावट व निर्जलीकरण की समस्या दूर होती है और कब्ज की समस्या में इससे राहत भी पाई जा सकती है ।
8-8-2014
***
 

 

सोमवार, 7 अगस्त 2023

सॉनेट, लघुकथा, जयप्रकाश श्रीवास्तव, दोहा, स्मृति गीत, सुषमा स्वराज

सॉनेट
असली-नकली
असली-नकली चित-पट जैसे,
रहते साथ, न साथ निभाते,
दृश्य दिखाते कैसे-कैसे,
कभी नाचते, कभी नचाते।

जब मिलते लड़ते टें-टें कर,
यह उसको है धता बताता,
पक्ष-विपक्ष सदृश चें-चें कर
वह इसको है जीभ चिढ़ाता।

नूरा कुश्ती करते रहते,
ताल ठोंकते, ताली मारें,
नीर-क्षीर सम कभी न मिलते,
यह चिंघाड़े, वह फुंँफकारे।

खोटी मुद्रा कब्जा करती।
खरी न टिक पाती है डरती।।
७-८-२०२३
•••
कृतिचर्चा :
'रेत हुआ दिन' गीत के बिन
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
[कृति विवरण : रेत हुआ दिन, नवगीत संग्रह, जयप्रकाश श्रीवास्तव, प्रथम संस्करण अगस्त २०२०, आकार २१.५ से.मी. x १४ से.मी., पृष्ठ संख्या १२४, आवरण बहुरंगी पेपरबैक लेमिनेटेड, मूल्य १५०/-, युगधारा प्रकाशन लखनऊ, गीतकार संपर्क : ७८६९१ ९३९२७, ९७१३५ ४४६४२।]
*
मनुष्य का गीत से प्रथम परिचय माँ की लोरी के मध्यम से होता है। गर्भ में लोरता (करवट बदलता) गुनगुनाहट की प्रतीति से हर्षित होता है। अभिमन्यु ने चक्रव्यूह प्रवेश की विद्या माँ सुभद्रा के गर्भ में ही सीखी थी। इस पौराणिक आख्यान की पुष्टि आधुनिक विज्ञान भी करता है। श्वास-प्रश्वास की लय के साथ माँ के कंठ से नि:सृत गीत को शिशु जन्म पूर्व ही पहचान लेता है और जन्मोपरांत सुन कर रोते-रोते चुप हो जाता है। वाचिक लय बद्ध गीतिकाव्य लिपिबद्ध होने पर वार्णिक-मात्रिक छंद के रूप में पहचाना जाकर 'गीत' कहलाता है। गीत के अनिवार्य तत्व कथ्य, रस, छंद, अलंकार, बिम्ब, प्रतीक, मिथक, शैली आदि हैं। गीत के किसी तत्व में 'नवता' होने पर उसे 'नवगीत' कहा जाना चाहिए जैसे यौवन में प्रवेश करते युवा को 'नवयुवक' कहा जाता है। 'नवता' रूढ़ नहीं हो सकती, वह सतत परिवर्तित होती चेतना है। हिंदी में नवगीत को आंदोलन की तरह अधिरोपित करने का प्रयास साम्यवाद के प्रति प्रतिबध्द गीतकारों ने लगभग आठ दशक पूर्व किया। तब जिसने जैसी परिभाषा प्रस्तुत की उसे रूढ़ मानकर आज भी नवगीत रचे जा रहे हैं। अंतर मात्र यह है कि आरंभ में जो विषय और विचार नए थे, वे अब घिसते-घिसते जराजीर्ण होकर नवता का उपहास करते प्रतीत होते हैं। सामाजिक विसंगतियों, विडंबनाओं और टटकेपन के नाम पर नवगीत को नकारात्मक ऊर्जा का भंडार बना दिया गया है। भारतीय लोक मनीषा उत्सव धर्मी है। वह अभावों में भी हँसना जानती है, लोकदेवता शिव विष पीकर भी अमर हो जाते हैं। ऋतु परिवर्तन, कृषि जन्य बीज बोने, रोपे लगाने, फसल देखने-काटने आदि ही नहीं भोर और साँझ होने पर भी गीत गायन लोक जीवन का अंग है। सरस गीतों को गाकर जिजीविषाजयी होते लोक को तथाकथित नवगीतीय शोकमुद्रा रास नहीं आई। फलत:, नवगीत लोक से कटकर नवगीतकारों के खेमे तक सीमित रहकर दम तोड़ने लगा।
नवगीत को इस विवशता से मुक्ति देकर नवजीवन देने के लिए सतत सृजनरत कलमों में एक कलम है जयप्रकाश श्रीवास्तव की। संयोगवश उनका नाम ही प्रकाश का जयघोष करता है और यह भी कि नवगीत को 'श्री' वास्तव में तभी मिल सकती है जब वह प्रकाश की जय बोले, जीवन में रस घोले, जिसे गुनगुनाकर कोई आमजन किसी नदी-निर्झर के किनारे डोले। रचनात्मक परिवर्तन एकाएक और पूरी तरह एक बार में नहीं होता, वह क्रमिक रूप से सामने आता है। पहली दो गीत कृतियों मन का साकेत और परिंदे संवेदना के में जयप्रकाश के गीत विविध रसों में स्नान करते प्रति होते हैं जबकि तीसरा संग्रह 'शब्द वर्तमान' के गीत विसंगति-विडंबना प्रधान हैं। जय प्रकाश का 'शिक्षक' जानता है उजाला और अँधेरा सहोदर होते हैं किंतु पर्व 'अँधेरे का नहीं, उजाले का मनाया जाता है और यह भी कि अँधेरा स्वयमेव हो जाता है, उजाला करना होता है। वे अपने चौथी गीत कृति 'रेत हुआ दिन' में गीतों के माध्यम से उजाला करने की ओर कदम बढ़ाते हैं।
आँगनों की धूप
छत की मुँडेरों पर
बैठ दिन को भेज रही है।
यहाँ किसी एक आँगन की नहीं, आँगनों की जा रही है, धूप दिन को भज रही है, दिन कर्मठता का आह्वान करता है। गीतकार धूप के माध्यम से कर्मयोग का संकेत करता है।
सुबह की ठिठुरन
रजाई में दुबकी
रात भरती उसाँसें
लेती है झपकी
सिहरते से रूप
काजल कोर बहती
आँख सपने तज रही है।
यह अन्तरा विश्राम करती रात और सुबह की ठिठुरन से उबरकर आँख को सपने तजकर सच से साक्षात करने की प्रेरणा दे रहा है। अगले अन्तरे में कर्म-संदेश और उभरता है आलस अंगड़ाई लेकर हँसते हुए फटकने-बुहारने का काम करने को उद्यत होता है।
अलस अँगड़ाई
उठा घूँघट खड़ी है
झटकती सी सिर
हँसी होंठों जड़ी है
फटकती है सूप
झाड़ू से बुहारे
भोर उजली सज रही है।
अंतिम अंतरे में सुआ बटलोई चढ़ाकर चित्रकोटी पढ़ रहा है, कूप जग गए हैं, पनघट टेर रहा है और पायल छनक रही है। स्पष्ट: समूचा गीत, नकारात्मकता पर सकारात्मकता का विजय नाद गुँजा रहा है। यह नवता ही नवगीत को नवजीवन देने में समर्थ होगी। अभिव्यक्ति ही जन-गण के मन को श्रम सीकर बहाने की प्रेरणा देगा।
जयप्रकाश विसंगतियों का महिममण्डन नहीं करते, वे व्यवस्था के सामने सवाल उठाते हैं -
क्यों हैं चिड़िया गुमसुम बैठी?
क्यों आँगन खामोश हुआ है?
गीत की १४ पंक्तियाँ 'क्यों' के माध्यम से, बिना कहे पाठक के मन में बदलाव की चिंगारी सुलगाने के लिए ईंधन का काम करती हैं। घिसे-पिटे नवगीतों का वैषम्य-विलाप यहाँ नहीं है।
नवगीतों के कलेवर को और अधिक स्पष्ट और प्रेरक हुए जयप्रकाश आशावादिता, हर्ष और हुलास को नवगीत का कलेवर बनाते हुए 'आओ तो' शीर्षक गीत में श्रृंगार सुरभि से नवगीत का सत्कार करते हैं-
कुछ सपनों ने
जन्म लिया है
तुम आओ तो आँखें खोलें।
नींद सुलाकर
गई अभी है
चंदा ने गाई है लोरी
रात झुलाती रही पालना
दूध-भात की लिए कटोरी
फूलों ने है
गंध बिखेरी
तुम हँस दो तो दर्पन बोलें।
किरन डोर से बँधे उजाले लेकर आती भोर, धूप उगाता सूरज, मंदिर में बजती घंटियाँ, पंछियों के कलरव, सुवासित समीर में अमृत घोलते भजन-आरती आदि को प्रतिबद्ध विचारधारा के बंदी मठाधीशों ने बहिष्कृत कर रखा था। 'काल है संक्रांति का' से नवगीतों की जमीन में लोक छंदों और लोक गीतों को रोपने के जिस कार्य का श्री गणेश किया गया था, उसे जयप्रकाश जी ने आगे बढ़ाया है। विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर की नवगीत कार्यशालाओं के अभिन्न अंग के रूप में जयप्रकाश जी नवगीत के जमीनी जुड़ाव को भाषिक टटकापन तक सीमित न रखकर लोक जीवन से संश्लिष्ट रखने के पक्षधर रहे हैं।
जीतने की ज़िद और जीने की जिजीविषा को नवगीत में लाता है नवगीत 'एक जंगल'-
एक जंगल
खड़ा है चुपचाप
पीकर आग का दरिया
है अभी जीवित
सदी मुझमें
हरापन बोलता है
जड़ों से लेकर
शिराओं में
लहू बन डोलता है
चहकती है
सुन नई पदचाप
आँगन गंध गौरैया।
'फटेहाल / सी रहा ज़िंदगी / बैठ मेड़ पर रमुआ' कोशिश करते रहने का संदेश देता नवगीत है।
नवगीत में 'जगती आस / पत्ते नयापन बुनते', 'डालियों पर / फुदकते संलाप', 'अंकुरित फिर से / हुआ है बीज' शब्दावली मरुथल में ताजी सावनी बयार के झोंके की तरह जान में जान फूँकने में समर्थ है।
नवगीत में प्रेम को वर्ज्य मानने की जड़ता पर शब्द प्रहार करते जयप्रकाश 'चलो प्रेम की ऊँगली थामें / कुछ दूरी तक साथ चलें', 'आओ, स्नेह भरे बालों से / मन के सब कल्मष धोलें', 'माटी सोंधी अपनेपन की / बोयें खुशियों की फसलें' पर ही न रुककर नवगीत को सकारात्मक सोद्देश्यता देते हुए 'घुट-घुटकर जीने से अच्छा / पल दो पल गालें। हँस लें' का जय घोष करते हैं।
विसंगति और त्रासदी में भी जीवट और जिजीविषा को मरने न देना इन नवगीतों का वैशिष्ट्य है।
वह लड़की
कचरे के ढेर में
खोजे टुकड़े सपनों के।
काँधे पर लादे
सूरज की गठरी
परे हटा जागे
अंधियारी कथरी
बढ़ती कुछ
पाने के फेर में
काम आए जो अपनों के।
नवगीतों में संदेशपरकता, बोधात्मकता तथा संप्रेषणीयता का सम्यक तालमेल जयप्रकाश कर सके हैं। 'हमने साथ / भीड़-भाड़ से/ हरकर चलना सीख लिया', 'मत डराओ / खौलती खामोशियों से / हमने कोलाहल पिया है', 'आओ मिल-बैठकर / सुलझाएँ गुत्थियाँ / धो डालें मन के सब मैल' आदि दृष्टव्य हैं।
नवगीतों में पारिवारिक सहजता और स्नेहपरकता घोलकर उसे सहजग्राह्य बनाने में विनोद निगम का सानी नहीं है। जयप्रकाश भी पीछे नहीं है- 'तुम आँगन में / स्वेटर बुनती / मैं पढ़ता अखबार / वहीं धूप अठखेली करती', 'फिर यादों के / नीम झरोखे में आ बैठा / दादी का सपना', तुम नहीं आए / तुम्हारी याद आई / आँख से आँसू झरे'।
'रेत हुआ दिन' नवगीतकार जयप्रकाश श्रीवास्तव के नए तेवरों से समृद्ध ऐसा नवगीत संकलन है जो नई कलमों को नैराश्य के दंडकारण्य से निकाल कर उल्लास के सतपुड़ा-वनों में, हरसिंगारी पौधरोपण की प्रेरणा देकर नवगीत को 'स्यापा गीत' बनने से बचाकर, सोहर, चैती या राई के निकट ले जाएगा। इन नवगीतों में आह्वान गीत की छुअन, मिलन गीत का हुलास, बोध गीत की संदेशपरकता, जागरण गीत की सोद्देश्यता का परस इन्हें हर दिन छाप रहे नवगीतों की भीड़ से अलग खड़ा करता है। स्वाभाविक है कि लकीर के फकीर मठाधीशों को यह स्वर सहज स्वीकार न हो किन्तु बहुसंख्यक पाठक और नवगीतकार इनमें डूब-उतरा कर फिर-फिर रसास्वादन करने के साथ-साथ अगले संकलन की प्रतीक्षा करेंगे।
७-८-२०२१
***
भावांजलि
*
शारद सुता विदा हुई, माँ शारद के लोक
धरती माँ व्याकुल हुई, चाह न सकती रोक
*
सुषमा से सुषमा मिली, कमल खिला अनमोल
मानवता का पढ़ सकीं, थीं तुम ही भूगोल
*
हर पीड़ित की मदद कर, रचा नया इतिहास
सुषमा नारी शक्ति का, करा सकीं आभास
*
पा सुराज लेकर विदा, है स्वराज इतिहास
सब स्वराज हित ही जिएँ, निश-दिन किए प्रयास
*
राजनीति में विमलता, विहँस करी साकार
ओजस्वी वक्तव्य से, दे ममता कर वार
*
वाक् कला पटु ही नहीं, कौशल का पर्याय
लिखे कुशलता के कई, कौशलमय अध्याय
*
राजनीति को दे दिया, सुषमामय आयाम
भुला न सकता देश यह, अमर तुम्हारा नाम
*
शब्द-शब्द अंगार था, शीतल सलिल-फुहार
नवरस का आगार तुम, अरि-हित घातक वार
*
कर्म-कुशलता के कई, मानक रचे अनन्य
सुषमा जी शत-शत नमन, पाकर जनगण धन्य
*
शब्दों को संजीव कर, फूँके उनमें प्राण
दल-हित से जन-हित सधे, लोकतंत्र संप्राण
*
महिमामयी महीयसी, जैसा शुचि व्यक्तित्व
फिर आओ झट लौटकर, रटने नव भवितव्य
*
चिर अभिलाषा पूर्ति से, होकर परम प्रसन्न
निबल देह तुमने तजी, हम हो गए विपन्न
*
युग तुमसे ले प्रेरणा, रखे लक्ष्य पर दृष्टि
परमेश्वर फिर-फिर रचे, नव सुषमामय सृष्टि
७-८-२०१९
***
लघुकथा
दूषित वातावरण
*
अपने दल की महिला नेत्री की आलोचना को नारी अपमान बताते हुए आलोचक की माँ, पत्नि, बहन और बेटी के प्रति अपमानजनक शब्दों की बौछार करते चमचों ने पूरे शहर में जुलूस निकाला। दूरदर्शन पर दृश्य और समाचार देख के बुरी माँ सदमें में बीमार हो गयी जबकि बेटी दहशत के मारे विद्यालय भी न जा सकी। यह देख पत्नी और बहन ने हिम्मत कर कुछ पत्रकारों से भेंट कर विषम स्थिति की जानकारी देते हुए महिला नेत्री और उनके दलीय कार्यकर्ताओं को कटघरे में खड़ा किया।
कुछ वकीलों की मदद से क़ानूनी कार्यवाही आरम्भ की। उनकी गंभीरता देखकर शासन - प्रशासन को सक्रिय होना पड़ा, कई प्रतिबन्ध लगा दिए गए ताकि शांति को खतरा न हो। इस बहस के बीच रोज कमाने-खानेवालों के सामने संकट उपस्थित कर गया दूषित वातावरण।
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लघुकथा
निज स्वामित्व
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आप लघुकथा में वातावरण, परिवेश या पृष्ठ भूमि क्यों नहीं जोड़ते? दिग्गज हस्ताक्षर इसे आवश्यक बताते हैं।
यदि विस्तार में जाए बिना कथ्य पाठक तक पहुँच रहा है तो अनावश्यक विस्तार क्यों देना चाहिए? लघुकथा तो कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक कहने की विधा है न? मैं किसी अन्य विचारों को अपने लेखन पर बन्धन क्यों बनने दूँ। किसी विधा पर कैसे हो सकता है कुछ समीक्षकों या रचनाकारों का निज स्वामित्व?
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लघुकथा
शर संधान
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आजकल स्त्री विमर्श पर खूब लिख रही हो। 'लिव इन' की जमकर वकालत कर रहे हैं तुम्हारी रचनाओं के पात्र। मैं समझ सकती हूँ।
तू मुझे नहीं समझेगी तो और कौन समझेगा?
अच्छा है, इनको पढ़कर परिवारजनों और मित्रों की मानसिकता ऐसे रिश्ते को स्वीकारने की बन जाए उसके बाद बताना कि तुम भी ऐसा करने जा रही हो। सफल हो तुम्हारा शर-संधान।
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लघुकथा
बेपेंदी का लोटा
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'आज कल किसी का भरोसा नहीं, जो कुर्सी पर आया लोग उसी के गुणगान करने लगते हैं और स्वार्थ साधने की कोशिश करते हैं। मनुष्य को एक बात पर स्थिर रहना चाहिए।' पंडित जी नैतिकता का पाठ पढ़ा रहे थे।
प्रवचन से ऊब चूका बेटा बोल पड़ा- 'आप कहते तो ठीक हैं लेकिन एक यजमान के घर कथा में सत्यनारायण भगवान की जयकार करते हैं, दूसरे के यहाँ रुद्राभिषेक में शंकर जी की जयकार करते हैं, तीसरे के निवास पर जन्माष्टमी में कृष्ण जी का कीर्तन करते हैं, चौथे से अखंड रामायण करने के लिए कह कर राम जी को सर झुकाते हैं, किसी अन्य से नवदुर्गा का हवन करने के लिए कहते हैं। परमात्मा आपको भी तो कहता होंगे बेपेंदी का लोटा।'
७-८-२०१६
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जन्म लग्न, रोग और भोजन पात्र -
मेष, सिंह, वृश्चिक लग्न- ताँबे के बर्तन पित्त, गुरदा, ह्रदय, श्रम भगंदर, यक्ष्मा आदि रोगों से बचायेंगे।
मिथुन, कन्या, धनु, मीन लग्न- स्टील के बर्तनों से अनिद्रा, गठिया, जोड़ दर्द, तनाव, अम्लता, आंत्र दोष की संभावना। कांसे के बर्तन लाभदायक।
वृष, कर्क, तुला लग्न - स्टील के बर्तनों से आँख, कान, गले, श्वास, मस्तिष्क संबंधी रोग हो सकते हैं। चाँदी - पीतल मिश्र धातु का प्रयोग लाभप्रद।
मकर लग्न - किसी धातु के साथ लकड़ी के पात्र का प्रयोग वायु दोष, चर्म रोग, तिल्ली, उर्वरता, स्मरण शक्ति हेतु फायदे मन्द।
कुम्भ लग्न - स्टील पात्र लाभप्रद, मिट्टी के पात्र में केवड़ा मिला जल लाभदायक।
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चित्रगुप्त पूजन क्यों और कैसे?
श्री चित्रगुप्त का पूजन कायस्थों में प्रतिदिन प्रातः-संध्या में तथा विशेषकर यम द्वितीया को किया जाता है। कायस्थ उदार प्रवृत्ति के सनातन (जो सदा था, है और रहेगा) धर्मी हैं। उनकी विशेषता सत्य की खोज करना है इसलिए सत्य की तलाश में वे हर धर्म और पंथ में मिल जाते हैं। कायस्थ यह जानता और मानता है कि परमात्मा निराकार-निर्गुण है इसलिए उसका कोई चित्र या मूर्ति नहीं है, उसका चित्र गुप्त है। वह हर चित्त में गुप्त है अर्थात हर देहधारी में उसका अंश होने पर भी वह अदृश्य है। जिस तरह खाने की थाली में पानी न होने पर भी हर खाद्यान्न में पानी होता है उसी तरह समस्त देहधारियों में चित्रगुप्त अपने अंश आत्मा रूप में विराजमान होते हैं।
चित्रगुप्त ही सकल सृष्टि के मूल तथा निर्माणकर्ता हैं:
सृष्टि में ब्रम्हांड के निर्माण, पालन तथा विनाश हेतु उनके अंश ब्रम्हा-महासरस्वती, विष्णु-महालक्ष्मी तथा शिव-महाशक्ति के रूप में सक्रिय होते हैं। सर्वाधिक चेतन जीव मनुष्य की आत्मा परमात्मा का ही अंश है। मनुष्य जीवन का उद्देश्य परम सत्य परमात्मा की प्राप्ति कर उसमें विलीन हो जाना है। अपनी इस चितन धारा के अनुरूप ही कायस्थजन यम द्वितीय पर चित्रगुप्त पूजन करते हैं। सृष्टि निर्माण और विकास का रहस्य: आध्यात्म के अनुसार सृष्टिकर्ता की उपस्थिति अनहद नाद से जानी जाती है। यह अनहद नाद सिद्ध योगियों के कानों में प्रति पल भँवरे की गुनगुन की तरह गूँजता हुआ कहा जाता है। इसे 'ॐ' से अभिव्यक्त किया जाता है। विज्ञान सम्मत बिग बैंग थ्योरी के अनुसार ब्रम्हांड का निर्माण एक विशाल विस्फोट से हुआ जिसका मूल यही अनहद नाद है। इससे उत्पन्न ध्वनि तरंगें संघनित होकर कण (बोसान पार्टिकल) तथा क्रमश: शेष ब्रम्हांड बना।
यम द्वितीया पर कायस्थ एक कोरा सफ़ेद कागज़ लेकर उस पर चन्दन, हल्दी, रोली, केसर के तरल 'ॐ' अंकित करते हैं। यह अंतरिक्ष में परमात्मा चित्रगुप्त की उपस्थिति दर्शाता है। 'ॐ' परमात्मा का निराकार रूप है। निराकार के साकार होने की क्रिया को इंगित करने के लिये 'ॐ' को सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ काया मानव का रूप देने के लिये उसमें हाथ, पैर, नेत्र आदि बनाये जाते हैं। तत्पश्चात ज्ञान की प्रतीक शिखा मस्तक से जोड़ी जाती है। शिखा का मुक्त छोर ऊर्ध्वमुखी (ऊपर की ओर उठा) रखा जाता है जिसका आशय यह है कि हमें ज्ञान प्राप्त कर परमात्मा में विलीन (मुक्त) होना है।
७-८-२०१४
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दोहा सलिला:
'मैं'-'मैं' मिल जब 'हम' हुए...
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'मैं'-'मैं' मिल जब 'हम' हुए, 'तुम' जा बैठा दूर.
जो न देख पाया रहा, आँखें रहते सूर..
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'मैं' में 'तुम' जब हो गया, अपने आप विलीन.
व्याप गयी घर में खुशी, हर पल 'सलिल' नवीन..
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'तुम' से 'मैं' की गैरियत, है जी का जंजाल.
'सलिल' इसी में खैरियत, 'हम' बन हों खुशहाल..
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'मैं' ने 'मैं' को कब दिया, याद नहीं उपहार?
'मैं' गुमसुम 'तुम' हो गयी, रूठीं 'सलिल' बहार..
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'मैं' 'तुम' 'यह' 'वह' प्यार से, भू पर लाते स्वर्ग.
'सलिल' करें तकरार तो, दूर रहे अपवर्ग..
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'मैं' की आँखों में बसा, 'तू' बनकर मधुमास.
जिस-तिस की क्यों फ़िक्र हो, आया सावन मास..
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'तू' 'मैं' के दो चक्र पर, गृह-वाहन गतिशील.
'हम' ईधन गति-दिशा दे, बाधा सके न लील..
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'तू' 'तू' है, 'मैं' 'मैं' रहा, हो न सके जब एक.
तू-तू मैं-मैं न्योत कर, विपदा लाईं अनेक..
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'मैं' 'तुम' हँस हमदम हुए, ह्रदय हर्ष से चूर.
गाल गुलाबी हो गये, नत नयनों में नूर..
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'मैं' में 'मैं' का मिलन ही, 'मैं'-तम करे समाप्त.
'हम'-रवि की प्रेमिल किरण, हो घर भर में व्याप्त..
७-८-२०१२
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रविवार, 6 अगस्त 2023

सोनेट, नवगीत, बाल गीत,

सॉनेट
माँ की हैं हम सब संतानें,
माँ की आती सबको याद,
माँ में बसतीं सबकी जानें,
माँ सुनती सबकी फरियाद।

माँ ने जन्म दिया पाला है,
माँ धरती अपना आवास,
माँ गैया का पय आला है,
माँ नदियों से बुझती प्यास।

मांँ भाषा से बोल मिले हैं,
माँ भारत की घटे न शान,
माँ ममता से हृदय खिले हैं,
माँ सबकी सबका अभिमान।

माँ हम हर्षित तुमको पाकर।
मांँ को वंदन शीश झुकाकर।।
६-८-२०२३
•••
नवगीत
*
संसद की दीवार पर
दलबन्दी की धूल
राजनीति की पौध पर
अहंकार के शूल
*
राष्ट्रीय सरकार की
है सचमुच दरकार
स्वार्थ नदी में लोभ की
नाव बिना पतवार
हिचकोले कहती विवश
नाव दूर है कूल
लोकतंत्र की हिलाते
हाय! पहरुए चूल
*
गोली खा, सिर कटाकर
तोड़े थे कानून
क्या सोचा था लोक का
तंत्र करेगा खून?
जनप्रतिनिधि करते रहें
रोज भूल पर भूल
जनगण का हित भुलाकर
दे भेदों को तूल
*
छुरा पीठ में भोंकने
चीन लगाये घात
पाक न सुधरा आज तक
पाकर अनगिन मात
जनहित-फूल कुचल रही
अफसरशाही फूल
न्याय आँख पट्टी, रहे
ज्यों चमगादड़ झूल
*
जनहित के जंगल रहे
जनप्रतिनिधि ही काट
देश लूट उद्योगपति
खड़ी कर रहे खाट
रूल बनाने आये जो
तोड़ रहे खुद रूल
जैसे अपने वक्ष में
शस्त्र रहे निज हूल
*
भारत माता-तिरंगा
हम सबके आराध्य
सेवा-उन्नति देश की
कहें न क्यों है साध्य?
हिंदी का शतदल खिला
फेंकें नोंच बबूल
शत्रु प्रकृति के साथ
मिल कर दें नष्ट समूल
***
[प्रयुक्त छंद: दोहा, १३-११ समतुकांती दो पंक्तियाँ,
पंक्त्यान्त गुरु-लघु, विषम चरणारंभ जगण निषेध]
6-8-2015
***
नवगीत:
आओ! तम से लड़ें...
*
आओ! तम से लड़ें,
उजाला लायें जग में...
***
माटी माता,
कोख दीप है.
मेहनत मुक्ता
कोख सीप है.
गुरु कुम्हार है,
शिष्य कोशिशें-
आशा खून
खौलता रग में.
आओ! रचते रहें
गीत फिर गायें जग में.
आओ! तम से लड़ें,
उजाला लायें जग में...
***
आखर ढाई
पढ़े न अब तक.
अपना-गैर न
भूला अब तक.
इसीलिये तम
रहा घेरता,
काल-चक्र भी
रहा घेरता.
आओ! खिलते रहें
फूल बन, छायें जग में.
आओ! तम से लड़ें,
उजाला लायें जग में...
6-8-2014
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बाल गीत:
बरसे पानी
*
रिमझिम रिमझिम बरसे पानी.
आओ, हम कर लें मनमानी.
बड़े नासमझ कहते हमसे
मत भीगो यह है नादानी.
वे क्या जानें बहुतई अच्छा
लगे खेलना हमको पानी.
छाते में छिप नाव बहा ले.
जब तक देख बुलाये नानी.
कितनी सुन्दर धरा लग रही,
जैसे ओढ़े चूनर धानी.
काश कहीं झूला मिल जाता,
सुनते-गाते कजरी-बानी.
'सलिल' बालपन फिर मिल पाये.
बिसराऊँ सब अकल सयानी.
6-8-2011
*