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रविवार, 14 फ़रवरी 2021

मुक्तिका बात

।मुक्तिका
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
बात करिए तो बात बनती है
बात बेबात हो तो खलती है

बात कह मत कहें उसे जुमला-
बात भूलें तो नाक कटती है

बात सच्ची तो मूँछ ऊँची हो
बात कच्ची न तुझ पे फबती है

बात की बात में जो बात बने 
बात सौगात होती रचती है

बात का जो धनी भला मानुस
बात से जात पता चलती है

बात सदानंद दे मिटाए गम
बात दुनिया में तभी पुजती है

बात करता 'सलिल' कवीश्वर से
होती करताल जिह्वा भजती है
*
९४२५१८३२४४

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

भवानी प्रसाद तिवारी

पुण्य स्मरण 
भवानी प्रसाद तिवारी 
(१२-२-१९१२, सागर - १३-१२-१९७७ जबलपुर) 
*
जबलपुर के जननायक भवानी प्रसाद तिवारी  वर्ष १९३० में  राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़कर मात्र १८  वर्ष की उम्र में पहली बार और इसके बाद कई बार राष्ट्रीय आंदोलन के लिए संघर्ष करते हुए ब्रिटिश प्रशासन द्वारा कैद किए गए। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन के अंतर्गत शहर की तिलक भूमि तलैया में हुए सिग्नल कोर के विद्रोह की अगुवाई करने के साथ ही शहर में होने वाले हर आंदोलन की अगुवाई की। त्रिपुरी अधिवेशन में सहभागिता के लिए उन्होंने हितकारिणी स्कूल में शिक्षक की नौकरी छोड़  दी। और तिलक भूमि तलैया में हुए तीन दिवसीय अनशन में शामिल रहे। वर्ष १९४७ में तिवारी जी ने 'प्रहरी' समाचार पत्र का संपादन दक्षतापूर्वक किया । 
वे वर्ष १९३६ से लेकर १९४७ तक लगातार नगर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष तथा १९६४ से दो बार राज्यसभा सांसद रहे। जबलपुर नगर पालिका (अब नगर निगम) में अधिकतम सात बार महापौर होने का गौरव भवानी प्रसाद तिवारीजी के ही नाम है। वे १९५२, १९५३, १९५५, १९५६, १९५७, १९५८ और १९६१ में महापौर चुने गए।राजनीतिक सक्रियता के समांतर श्रेष्ठ साहित्यकार के रूप में भी पंडित आपकी ख्याति अक्षुण्ण है। 
छायावादी काव्यशिल्प और भाव-भंगिमा पर सामाजिक संवेदना और राष्ट्रीय प्रवृत्ति को आपने वरीयता दी। वर्ष १९४२ में विख्यात नेता हरिविष्णु कामथ  की प्रेरणा से किए गए रवींद्रनाथ टैगोर की अमर कृति गीतांजलि के सारगर्भित मधुर काव्यानुवाद ने उन्हें विशेष ख्याति दिलाई। गीतांजलि के अंग्रेजी काव्यानुवाद से प्रेरित तिवारी जी द्वारा किये गए अनुगायन में मूल गीतांजलि के अनुरूप अनुक्रम भावगत समानता है। इसे गुरुदेव ने इसे गीतांजलि का अनुवाद मात्र न मानकर सर्वथा मौलिक कृति निरूपित करते हुए तिवारी जी को आशीषित किया।
असाधारण सामाजिक-साहित्यिक अवदान हेतु वर्ष १९७२ में भारत सरकार ने आपको 'पद्मश्री' से अलंकृत किया। १३ दिसंबर १९७७ को आपका महाप्रस्थान हुआ, जबलपुर ही नहीं देश ने भी एक महान और समर्पित नेता खो दिया।
आपके पुत्र सतीश तिवारी (अब स्वर्गीय), सुपुत्री डॉ. आभा दुबे तथा पुत्रवधु डॉ. अनामिका तिवारी ने भी अपनी असाधारण योग्यता से साहित्यिक सांस्कृतिक क्षेत्र में अपने पहचान बनाई है। अनामिका जी देश की अग्रगण्य पादप विज्ञानी भी हैं। मेरा सौभाग्य है कि मुझे अनामिका जी द्वारा भवानीप्रसाद तिवारी जी की स्मृति में स्थापित प्रथम साहित्य श्री सम्मान प्राप्त हुआ है। प्रस्तुत है तिवारी जी की एक रचना आभा जी के सौजन्य से -  

आम पर मंजरी













भवानी प्रसाद तिवारी
*
घने आम पर मंजरी आ गई .....
शिशिर का ठिठुरता हुआ कारवां
गया लाद कर शीत पाला कहाँ
गगन पर उगा एक सूरज नया
धरा पर उठा फूल सारा जहां
अभागिन वसनहीनता खुश कि लो
नई धूप आ गात सहला गई ........
नए पात आए पुरातन झड़े
लता बेल द्रुम में नए रस भरे
चहक का महक का समाँ बन्ध गया
नए रंग ....धानी गुलाबी हरे
प्रकृति के खिलौने कि जो रंग गई
मनुज के कि दुख दर्द बहला गई ........
पवन चूम कलियाँ चटकने लगीं
किशोरी अलिनियां हटकने लगीं
रसानंद ,मकरंद ,मधुगन्ध में
रंगीली तितलियाँ भटकने लगीं
मलय -वात का एक झोंका चला
सुनहली फसल और लहरा गई ........ 

नवगीत मफलर की जय

नवगीत:
संजीव
.
मफलर की जय
सूट-बूट की मात हुई.
चमरौधों में जागी आशा
शीश उठे,
मुट्ठियाँ तनीं,
कुछ कदम बढ़े.
.
मेहनतकश हाथों ने बढ़
मतदान किया.
झुकाते माथों ने
गौरव का भान किया.
पंजे ने बढ़
बटन दबाया
स्वप्न बुने.
आशाओं के
कमल खिले
जयकार हुआ.
अवसर की जय
रात हटी तो प्रात हुई.
आसमान में आयी ऊषा.
पौध जगे,
पत्तियाँ हँसी,
कुछ कुसुम खिले.
मफलर की जय
सूट-बूट की मात हुई.
चमरौधों में जागी आशा
शीश उठे,
मुट्ठियाँ तनीं,
कुछ कदम बढ़े.
.
आम आदमी ने
खुद को
पहचान लिया.
एक साथ मिल
फिर कोइ अरमान जिया.
अपने जैसा,
अपनों जैसा
नेता हो,
गड़बड़ियों से लड़कर
जयी विजेता हो.
अलग-अलग पगडंडी
मिलकर राह बनें
केंद्र-राज्य हों सँग
सृजन का छत्र तने
जग सिरमौर पुनः जग
भारत बना सकें
मफलर की जय
सूट-बूट की मात हुई.
चमरौधों में जागी आशा
शीश उठे,
मुट्ठियाँ तनीं,
कुछ कदम बढ़े.
११.२.२०१५
.

मुक्तिका पटवारी जी

मुक्तिका
संजीव 'सलिल'
*
यहीं कहीं था, कहाँ खो गया पटवारी जी?
जगते-जगते भाग्य सो गया पटवारी जी..

गैल-कुआँ घीसूका, कब्जा ठाकुर का है.
फसल बैर की, लोभ बो गया पटवारी जी..

मुखिया की मोंड़ी के भारी पाँव हुए तो.
बोझा किसका?, कौन ढो गया पटवारी जी..

कलम तुम्हारी जादू करती मान गये हम.
हरा चरोखर, खेत हो गया पटवारी जी..

नक्शा-खसरा-नकल न पायी पैर घिस गये.
कुल-कलंक सब टका धो गया पटवारी जी..

मुट्ठी गरम करो लेकिन फिर दाल गला दो.
स्वार्थ सधा, ईमान तो गया पटवारी जी..

कोशिश के धागे में आशाओं का मोती.
'सलिल' सिफारिश-हाथ पो गया पटवारी जी..
***
१२-२-२०११ 

मुक्तिका

मुक्तिका
आचार्य संजीव वर्मा  'सलिल'
*
आँखों जैसी गहरी झील.
सकी नहीं लहरों को लील..

पर्यावरण प्रदूषण की
ठुके नहीं छाती में कील..

समय-डाकिया महलों को
कुर्की-नोटिस कर तामील..

मिष्ठानों का लोभ तजो.
खाओ बताशे के संग खील..

जनहित-चुहिया भोज्य बनी.
भोग लगायें नेता-चील..

लोकतंत्र की उड़ी पतंग.
थोड़े ठुमके, थोड़ी ढील..

पोशाकों की फ़िक्र न कर.
हो न इरादा गर तब्दील..

छोटा मान न कदमों को
नाप गये हैं अनगिन मील..

सूरज जाये महलों में.
'सलिल' कुटी में हो कंदील..
*******************
१२-२-२०११ 

मुक्तिका,

मुक्तिका
*
आज खत का जवाब आया है
धूल में फूल मुस्कुराया है
*
याद की है किताब हाथों में
छंद था मौन; खिलखिलाया है
*
नैन नत बोलते बिना बोले
रोज डे रोज ही मनाया है
*
कौन किसको प्रपोज कब करता
चाह ने चाहकर बुलाया है
*
हाथ बढ़ हाथ थामकर सिहरा
पैर ने पैर झट मिलाया है
*
देख मुखड़ा बना लिया मुखड़ा
अंतर में अंतरा बसाया है
*
दे दिया दिल न दिलरुबा छोड़ा
दिलवरि की न दिल दुखाया है
*

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

समीक्षा दोहा गाथा अमरनाथ

कृति चर्चा :
दोहा गाथा : छंदराज पर शोधपरक कृति
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
[कृति विवरण : दोहा गाथा, शोध कृति, अमरनाथ, प्रथम संस्करण २०२०, २१ से.मी. x १४ से.मी., आवरण पेपरबैक बहुरंगी, पृष्ठ ९६, मूल्य १५०/-, समन्वय प्रकाशन अभियान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१] 
विश्ववाणी हिंदी के छंद कोष का कालजयी रत्न छंदराज दोहा, कवियों हो सर्वाधिक प्रिय रहा है और रहेगा भी। छन्दाचार्य अभियंता अमरनाथ जी द्वारा रचित 'दोहागाथा' गागर में सागर की तरह लघ्वाकारी किन्तु गहन शोध परक कृति है। खंड काव्य जटायु व कालजयी, कहानी संग्रह जीवन के रंग तथा आस पास बिखरी हुई जिंदगी, नव विधा क्षणिका संग्रह चुटकी, भजन संग्रह चरणों में, व्यंग्य संग्रह खरी-खोटी तथा सूक्ष्म समीक्षा कृति काव्य रत्न के सृजन के पश्चात् दोहागाथा अमरनाथ साहित्य का नौवा रत्न है। कहावत है 'लीक तोड़ तीनों चलें शायर सिंह सपूत' अमर नाथ जी इन तीनों गुणों से संपन्न हैं। शायर अर्थात कवि तो वे हैं ही, अभियंता संघों में आंदोलन-काल में सिंह की तरह दहाड़ते अमरनाथ को जिन्होंने सुना है, वे भूल नहीं सकते। अमरनाथ जी जैसा सपूत हर माता-पिता चाहता है। अमरनाथ जी के व्यक्तित्व के अन्य अनेक पक्ष पर्यावरण कार्यकर्ता, समाज सुधारक, बाल शिक्षाविद, समीक्षक तथा संपादक भी हैं। 
दोहा गाथा में दोहे का इतिहास, उत्पत्ति, परिभाषा एवं विकास क्रम, दोने का विधान एवं संरचना तथा दोहे के भेद, दोहे के उर्दू औजान शीर्षकों के अन्तर्गत नव दोहाकारों ही नहीं वरिष्ठ दोहाकारों के लिए भी बहुमूल्य सामग्री संकलित की गई है। विषय सामग्री का तर्कसम्मत प्रस्तुतीकरण करते समय सम्यक उदाहरण 'सोने में सुहागा' की तरह हैं। दोय, होय जैसे क्रिया रूप शोध कृति में उचित नहीं प्रतीत होते। लेखन का नाम मुखपृष्ठ पर 'अमरनाथ', पृष्ठ ८-९ पर 'अमर नाथ' होना खीर में कंकर की तरह खटकता है। दोहा-विधान पर प्रकाश डालते समय कुछ नए-पुराने दोहाकारों के दोहे प्रस्तुत किये जाने से कृति की उपयोगिता में वृद्धि हुई है। हिंदी छंद संबंधी शोध में फ़ारसी बह्रों और छंद दोषों का उल्लेख क्यों आवश्यक क्यों समझा गया? क्या उर्दू छंद शास्त्र की शोध कृति में हिंदी या अन्य भाषा के छंदों का विवेचन किया जाता है? विविध भाषाओँ के छंदों का तुलनात्मक अध्ययन उद्देश्य हो तो भारत की अन्य भाषाओँ-बोलिओं से भी सामग्री ली जानी चाहिए। हिंदी छंद की चर्चा में उर्दू की घुसपैठ खीर और रायते के मिश्रण की तरह असंगत प्रतीत होता है। 
दोहा रचना संबंधी विधान विविध पिङगल ग्रंथों से संकलित किये जाना स्वाभाविक है, वैशिष्ट्य यह है कि विषम-चरणों की कल-बाँट सोदाहरण समझाई गई है। विविध भाषाओँ/बोलिओं तथा रसों के दोहे कृति को समृद्ध करते हैं किंतु इसे और अधिक समृद्ध किया जा सकता है। दोहे के विविध रूप संबंधी सामग्री रोचक तथा ज्ञानवर्धक है। 
दोहा के चरणों की अन्य छंदों के चरणों से तुलना श्रमसाध्य है। यह कार्य अपूर्ण रहना ही है, यह छंद प्रभाकर में जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' द्वारा दी गई छंद संख्या (मात्रिक छंद ९२,२७,७६३, वर्णिक छंद १३, ४२,१७, ६२६, उदाहरण ७०० से कुछ अधिक) से ही समझा जा सकता है। दोहा रचना में इस तुलनात्मक अध्ययन की आवश्यकता नहीं है तथापि शोध की दृष्टी से इसकी उपादेयता असंदिग्ध है। 
दोहे के विषम या सैम चरणों में संशोधन से निर्मित छंद संबंधी सामग्री के संबंध में यह कैसे निर्धारित किया जाए की उन छड़ों में परिवर्तन से दोहा बना या दोहे में परिवर्तन से वे छंद बने। विविध छंदों के निर्माण की तिथि ज्ञात न होने से यह निर्धारित नहीं किया जा सकता की किस छंद में परिवर्तन से कौन सा छंद बना या वे स्वतंत्र रूप से बने। दोहे के उलटे रूप शीर्षक से प्रस्तुत सामग्री रोचक है। चौबीस मात्रिक अन्य  ७५,०२५ छंदों में से केवल २० छंदों का उल्लेख ऊँट के मुंह में जीरे की तरह है। 
दोहे का अन्य छंदों के साथ प्रयोग शीर्षक अध्याय प्रबंध काव्य रचना की दृष्टि से बहुत उपयोगी है। 
दोहे में परिवर्तन कर बनाये गए नए छंदों का औचित्य भविषा निर्धारित करेगा की इन्हें अपनाया जाता है या नहीं? 
संख्यावाचक शब्दावली का उल्लेख अपर्याप्त है। 
कृति के अंत में आभार प्रदर्शन लेखक की ईमानदारी की मिसाल है। 
मुखपृष्ठ पर कबीर, रहीम, तुलसी तथा बिहारी के चित्रों से कृति की शोभा वृद्धि हुई है किंतु प्रकाशन की चूक से बिहारी के नाम के साथ विद्यापति का चित्र लग गया है। इस गंभीर त्रुटि का निवारण बिहारी के वास्तविक चित्र के स्टिकर यथस्थान चिपकाकर किया जा सकता है।  
यह निर्विवाद है कि इस कृति की अधिकांश सामग्री पूर्व प्राप्य नहीं है। अमरनाथ जी ने वर्षों तक सैंकड़ों पुस्तकों और पत्रिकाओं का अध्ययन कर उदाहरण संकलित किये हैं। किसी भी नई सामग्री के विवेचन और विश्लेषण में मतभेद स्वाभाविक है किंतु विषय के विकास की दृष्टि से ऐसे गूढ़ अध्ययन की प्रासंगिकता, उपादेयता और मौलिकता प्रशंसनीय ही नहीं पठनीय एवं मननीय भी है। इस सारस्वत शोधपरक प्रस्तुति हेतु अमरनाथ जी साधुवाद के पात्र हैं। दोहाकारों  ही नहीं अन्य छंदों के अध्येताओं और रचनाकारों को भी इस कृति का अध्ययन करना चाहिए। 
***
संपर्क - विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, 
चलभाष ९४२५१८३२४४, ईमेल salil.sanjiv@gmail.com    

दोहा

आज का दोहा
*
अपनी अपनी रोटियाँ सकें नेता लोग। 
मँहगाई से मर रही जनता इन्हें न सोग।।

नवगीत दिल्ली बोली

नवगीत
दिल्ली बोली
*
बड़बोलों ने खाई पटकनी
दिल्ली बोली
पैदल ने वजीर को मारा
औंधे मुँह वह जो हुंकारा
जो गरजे वे मेघ न बरसे
जनहितकारी की पौबारा
अब जुबान पर लगा चटकनी
बड़बोलों ने खाई पटकनी
दिल्ली बोली
कथनी करनी का जो अंतर
लोग समझते; चला न मंतर
भानुमती का कुनबा आया
रोगी भोगी सब छूमंतर
शुरू हो गई पैर तले से दरी सरकनी
बड़बोलों ने खाई पटकनी
दिल्ली बोली
बंदर बाँट कर रहे लड़वा
सेठों के हित विधि से सधवा
पूज गोडसे; गाँधी ठुकरा
बेकारी मँहगाई बढ़वा
कड़वी गोली पड़ी गटकनी
बड़बोलों ने खाई पटकनी
दिल्ली बोली
***

समीक्षा राजलक्ष्मी शिवहरे

कृति सलिला:
"उत्सर्ग" कहानीपन से भरी पूरी कहानियाँ - राज कुमार तिवारी 'सुमित्र'
*
[उत्सर्ग, , प्रथम संस्करण २००, आकार २१.५ से.मी. x १४ से.मी., आवरण बहुरंगी सजिल्द, जैकेट सहित, पृष्ठ १४२, मूल्य १६०/-, पाथेय प्रकाशन जबलपुर]
- कहानी यानी ... ? 'था', 'है' और 'होगा' का अर्थपूर्ण सूत्र बंधन अर्थात कथ्य। 'कथ्य' को कथा-कहानी बनाता है किस्सागो या कहानीकार। किस्सागो कलम थाम ले तो क्या कहना... .सोन सुगंध की उक्ति चरितार्थ हो जाती है।
- कहानी को जनपथ पर उतरने के सहभागी प्रेमचंद से वर्तमान युग तक अनेक कथाकार हुए। कहानी ने अनेक आन्दोलन झेले, अनेक शिविर लगे, अनेक झंडे उड़े, झंडाबरदार लड़े, फतवे जारी किये गये किंतु अंतिम निर्णायक पाठक या श्रोता ही होता है। पाठकों की अदालत ही सर्वोच्च होती है।
- सो इसी बल पर कहानी आज तक बनी और बची रही और सृजन रत रहे कहानीकार। इसी सृजन समर्पित श्रृंखला की एक कड़ी हैं डॉ. राजलक्ष्मी शिवहरे। अरसे से समाजसेवा के साथ सृजन साधना कर रही डॉ. राजलक्ष्मी के उपन्यासों धूनी और अधूरा मन को पाठकों की अपार सराहना मिली। डॉ. राजलक्ष्मी के प्रस्तुत कहानी संग्रह ' उत्सर्ग' में १६ कहानियां संग्रहीत हैं जो स्वरूप, शाश्वतता, कला और लोक्प्रोयता को प्रमाणित करती हैं।
- संग्रह की पहली कहानी 'उत्सर्ग' देश हितार्थ प्रतिभाशाली संतान को जन्म देने के वैज्ञानिक प्रयोग की कथा है। लेखिका ने वैज्ञानिक तथ्य, कल्पना और राष्ट्रीय चेतना के योग से प्रभावी कथानक बुना है। 'पछतावा' में पुत्र से बिछुड़े पिता की मनोदशा और द्वार तक आये पिता को खो देने का पछतावा मार्मिकता के साथ चित्रित है। 'झुग्गी' में बुधुआ के सात्विक प्रेम का प्रतिबिंबन है। 'त्रिकोण' सिद्ध करती है कि ईर्ष्या भाव केवल स्त्रियों में नहीं पुरुषों में भी होता है। वापसी ऐसी यात्रा कथा है जो जीवन और समाज के प्रश्नों से साक्षात् कराती है। 'दायरे' सास-बहू के मध्य सामंजस्य के सूत्र प्रस्तुत करती है। 'कुत्ते की रोटी' एक ओर कवि भूपत के स्वाभिमान और दूसरी ओर नीलिमा और करुणा के विरोधाभासी चरित्रों को उजागर करती है। 'दूसरा पति' सहनशील पत्नी राधा की व्यथा कथा है जी पति के स्वाभाव को परिवर्तित करती है। 'परिवर्तन में 'साधू इतना चाहिए जामे कुटुम समाय' का संदेश निहित है और हिअ रिश्वत का दुष्परिणाम। 'दीप जले मेरे अँगना' विदेश प्रवास और प्रसिद्धि की महत्वाकांक्षा पर देश प्रेम की विजय गाथा है। 'परतें' के माध्यम से लेखिका ने मन की परतें खोलने के साथ ही अनाथ बच्चों की समस्या और उसका हल प्रस्तुत किया है। 'रूपकीरण यादों की भाव भरी मंजूषा है। 'नसीब' कहानी से हटकर कहानी है। घोड़े को माध्यम बनाकर लेखिका ने सूझ, परिश्रम और सामाजिक व्यवहार का महत्व प्रतिपादित किया है। 'मंगल मुहिम' वैवाहिक रूढ़ियों पर एक मखमली प्रहार है। 'एक बार' कहानी दर्शाती है कि स्वयं का अतीतजीवी होना दूसरे के वर्तमान को कितना कष्टदायी बना देता है। अंतिम कहानी 'सुख की खोज' में पारिवारिक संतुलन के सूत्र संजोये गए हैं और बताया गया है कि 'रिटायरमेंट' को अभिशाप बनने से कैसे बचाया जा सकता है।
- 'उत्सर्ग' की कहानियों की भाषा सहज, स्वाभाविक और प्रवाहपूर्ण है। तद्भव और देशज शब्दों के साथ तत्सम शब्दावली तरह है। भाषा में चित्रात्मकता है। संवाद कहानियों को प्रभावी बनाते हैं। मनोविज्ञान, एहसास और सूक्ष्म निरीक्षण लेखिका की शक्ति है। कहानियाँ राष्ट्रीय भावधारा, प्रेम, करुणा, सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना से परिपूरित हैं।
*

समीक्षा राजलक्ष्मी शिवहरे

समीक्षा 
चिम्पी जी की दुल्हनियाँ : बालोपयोगी कहानियाँ - 
प्रो (डॉ.) साधना वर्मा
*
भारत में बाल कथा हर घर में कही-सुनी जाती है। पंचतत्र और हितोपदेश की लोकोपयोगी विरासत को आगे बढ़ाती है डॉ. राजलक्ष्मी शिवहरे की कृति ''चिम्पी जी की दुल्हनियाँ''। आठ बाल कहानियों का यह संग्रह रोचक विषय चयन, बाल रुचि के पक्षी-पक्षी पात्रों, सरल-सहज भाषा व सोद्देश्यता के कारण पठनीय बना पड़ा है। 'चिंपी जी की दुल्हनिया' में सहयोग भावना, 'अक्ल बड़ी या भैंस' में शिक्षा का महत्व, 'बाज चाचा' में सच्चे व् कपटी मित्र, 'चिंपी जी की तीर्थ यात्रा', 'सुनहरी मछली' व 'चिंटू चूहा और जेना जिराफ' में परोपकार से आनंद, 'लालू लोमड़ की बारात' में दहेज़ की बुराई तथा 'चिंपी बंदर की समझ' में बुद्धि और सहयोग भाव केंद्र में है।
राजलक्ष्मी जी बाल पाठकों के मानस पटल पर जो लिखना चाहती हैं उसे शुष्क उपदेश की तरह नहीं रोचक कहानी के माध्यम से प्रस्तुत करने में सफल हुई हैं। कहानियों की विषय वस्तु व्यावहारिक जीवन से जुडी हैं। थोथा आदर्शवाद इनमें न होना ही इन्हें उपयोगी बनाता है। बच्चे इन्हें पढ़ते, सुनते, सुनाते हुए अनजाने में ही वह ग्रहण कर लें जो उनके विकास के लिए आवश्यक है। इस उद्देश्य को पूर्ण करने में ये कहानियाँ पूरी तरह सफल हैं। बाल शिक्षा से जुडी रही छाया त्रिवेदी के अनुसार "बच्चों समाये निराधार भय को हटाने में हुए उनमें आत्मविश्वास बढ़ाने में सहायक हैं ये कहानियाँ। बाल नाटककार अर्चना मलैया ने इन कहानियों को "बच्चों को पुरुषार्थ पथ पर प्रेरित करने में सहायक" पाया है। कवयित्री प्रभा पाण्डे 'पुरनम' की दृष्टि में इनका "अपना सौंदर्य है, इनमें बालकों को संस्कारित करने की आभा है।"
मैंने इन कहानियों को बच्चों ही नहीं बड़ों के लिए भी आवश्यक और उपयोगी पाया है। हमारे सामान्य सामाजिक जीवन में विघटित होते परिवार, टूटते रिश्ते, चटकते मन, बढ़ती दूरियाँ और दिन-ब-दिन अधिकाधिक अकेला होता जाता आदमी इन कहानियों को पढ़कर स्वस्थ्य जीवन दृष्टि पाकर संतुष्टि की राह पर कदम बढ़ा सकता है। सामान्यत: बाल मन छल - कपट से दूर होता है किंतु आजकल हो रहे बाल अपराध समाज के लिए चिंता और खतरे की घंटी हैं। बालकों में सरलता के स्थान पर बढ़ रही कुटिलतापूर्ण अपराधवृत्ति को रोककर उन्हें आयु से अधिक जानने किन्तु न समझने की अंधी राह से बचाने में सकारात्मक भूमिका निभा सकता है ऐसा बाल साहित्य। बाल शिक्षा से जुडी रही राजलक्ष्मी जी को बाल मनोविज्ञान की जानकारी है। किसी भी कहानी में अवैज्ञानिक किस्सागोई न होना सराहनीय है। पुस्तक का आकर्षक आवरण पृष्ठ, सुंदर छपाई इसे प्रभावशाली बनाती है।

समीक्षा राजलक्ष्मी शिवहरे

पुस्तक सलिला 
*रहस्यमयी गुफा*
 छाया सक्सेना प्रभु
[रहस्यमयी गुफा, बाल कहानियाँ, डॉ राजलक्ष्मी शिवहरे प्रकाशक- पाथेय प्रकाशन , जबलपुर (म.प्र.) पृष्ठ- 64, मूल्य- 100₹]
*
सभी बच्चों को समर्पित यह बाल कहानियों का संग्रह 3 से 12 साल के बच्चों को अवश्य ही पसंद आयेगा । बाल्यकाल में ही नैतिक आचरण की नींव पड़ जाती है, ऐसे समय में अच्छी कहानियाँ बच्चों को न केवल समझदार बनाती हैं वरन उनका जीवन के प्रति नजरिया भी बदल देती हैं ।आपस में प्रेम भाव से मिलकर रहना, सूझबूझ, नैतिक शिक्षा का पाठ , इन्हीं बाल कथाओं के माध्यम से सीखा जा सकता है । पुस्तक का आकर्षक आवरण पृष्ठ, सुंदर प्रिंटिंग इसे और भी प्रभावशाली बनाती है । इसमें छह कहानियाँ हैं -
*पहली कहानी- फूटी ढोलकिया*
इस कहानी को लेखिका ने बहुत ही रोचक ढंग से लिखा है । ऐसा लगता है मानो कोई बड़ा बूढ़ा कहानी सुना रहा हो । इस कहानी में चतुर सुजान नामक पात्र के माध्यम से बहुत ही अच्छे तरीके से शिक्षा दी गयी है कि बुद्धिमानी से कुछ भी संभव है । कैसे चतुरसुजान ने अकेले ही चोर लुटेरों को बुद्धू बना अपनी यात्रा निर्विघ्न सम्पन्न की ।
बीच - बीच में कुछ गीत की पंक्तियाँ हैं जिससे उत्सुकता और बढ़ रही है ।
वाह रे चतुर सुजान
चले हैं देखो ससुराल
लाने को बहुरिया
चेहरे पर सजी है शान
पर साथ में लाना है दहेज का माल
खरी तौर से संभाल ।
ये कहानी पूरे तारतम्य के साथ सधी हुयी शैली में आगे बढ़ती जाती है , अब क्या होगा यह जिज्ञासा भी बनी रहती है । किस प्रकार से चतुर सुजान समस्या से निपटेंगे । फूटी ढोलकिया में टेप रिकार्डर के द्वारा आवाज उतपन्न कर एक अलग ही रोमान्च पैदा किया है । बच्चों को काल्पनिकता बहुत भाती है ।
*दूसरी कहानी- जन्मदिन की गुड़िया*
सभी बच्चों को जन्मदिन का बेसब्री से इंतजार रहता है और वे इसे खास बनाने हेतु कोई न कोई योजना मन में बना लेते हैं व अपने पापा मम्मी से पूरी करवा कर ही दम लेते हैं ।
ऐसी ही कहानी शिवी की है जिसके पापा सीमा पर हैं जहाँ लड़ाई चल रही है । माँ सिलाई करके जीविका चलाती है । शिवी का माँ से पाँच रुपये का माँगना और माँ ने उसे दे दिया अब कैसे वो उसका उपयोग समझदारी से करती है ये इस कथानक का मुख्य उद्देश्य है । ये शिक्षा बच्चों को ऐसी ही कहानियों द्वारा दी जा सकती है ।
जन्मदिन पर जैसा अक्सर घरों में होता है वैसा ही इस कहानी में खूबसूरती के साथ लिखा गया है -
*भगवान को प्रणाम करके शिवी माँ के पास गयी तो देखा माँ हलवा बना रही थी ।*
माँ का हलवे को भोग लगाकर शिवी को खिलाना, टीका करना , ये सब भारतीय संस्कृति के हिस्से हैं जिनसे बच्चों का परिचय होना जरूरी है ।
शिवी ने कैसे पड़ोस में रहनेवाली दादी की मदद की दवाई खरीदने में, उसने अपने 5 रुपये उन्हें दे दिए । माँ के पूछने पर क्या तुम सहेलियों के साथ जन्मदिन मना आयी तो बहुत ही समझदारी भरा जबाब दिया । वो माँ द्वारा बनायी गयी गुड़िया से संतुष्ट हो गयी । ये सब शिक्षा बड़े आसानी से बच्चों को समझ में आ जायेगी । देने का सुख क्या होता है । मिल बाँट कर इस्तेमाल की आदत का विकास भी ऐसी ही बाल कथाओं से होता है ।
*तीसरी कहानी- मैं झूठ क्यों बोला*
हम बच्चों को सदैव सिखाते हैं सच बोलना चाहिए, पर कई बार ऐसे अवसर आते हैं जब झूठ बोलने से किसी का भला हो जाता है तो ऐसे अवसर पर समझदारी से कार्य करना पड़ता है ।
इस कहानी द्वारा यही सीख मिलती है । तीन दोस्त किस तरह से अच्छे नंबरों से पास हुए , पढ़ाई अलग- अलग बैठकर अच्छे से होती है ये भी समझ में आया । बहुत सरल तरीके से अच्छे उदाहरण के द्वारा लेखिका ने अपनी बात बच्चों तक पहुँचायी ।
*चौथी कहानी- सोने का अंडा*
छोटे बच्चों को परी की कहानी बहुत लुभाती है । इसकी ये लाइन देखिए इसमें छोटी बच्ची जिसका नाम मीनू है परी से कह रही है - हाँ दीदी , माँ कहती हैं , सबकी सहायता करने से भगवान खुश होते हैं ।
इस कहानी में जो सोने का अंडा उन्हें मिलता उसे बेचकर वे थोड़ा सा खुद रखतीं बाकी गरीबो को बाँट देती ये सीख आज के समय बहुत जरूरी है क्योंकि अक्सर लोग लालच में अंधे होकर सब मेरा हो इसी लिप्सा की पूर्ति में आजीवन लगे रहते हैं ।
*पाँचवी कहानी- रहस्यमयी गुफा*
तिलिस्म पर आधारित बालकथा , बहुत ही धाराप्रवाह तरीके से लिखी गयी है । अजीत नामक बालक न केवल न्याय करता है बल्कि पूरी विनम्रता के साथ राजदरबार के कार्यों का संचालन करता है ।
छोटे छोटे संवाद कहानी की सहजता को बढ़ाते हैं । आसानी से बच्चे इसको पढ़कर या सुनकर आनन्दित होंगे ।
तो क्या हम भी सुबह कैद कर लिए जायेंगे ?
महाराज यह तो आपकी न्याय बुद्धि बतायेगी ।
ठीक है कहकर अजीत सिंहासन पर बैठ गया ।
हमारी मुहर लाओ ।
ऐसे ही छोटे- छोटे वाक्यों के प्रयोग से बात आसानी से पाठकों तक पहुँचती है ।
तथ्यों को सुनकर फैसला देना, सबको आजाद करना ये सब घटनाएँ रोचक तरीके से लिखी गयी हैं ।
*छटवीं कहानी- बच्चों का अखबार*
आज की ताजी खबर, सुनों मुन्ना जी इधर ।
सुनो रीना जी इधर, आज की ताजा खबर ।।
इस पंक्ति से शुरू व इसी पर समाप्त होती ये कहानी बहुत ही सिलसिलेवार ढंग से आगे बढ़ती है । बच्चे खुद ही अखबार सम्पादित करें, उन्हीं की खबरें हों, वे ही इसे बाँटे इस कल्पना को साकार करती हुयी अच्छी शिक्षाप्रद कहानी ।
काल्पनिकता को विकसित करने हेतु ऐसी कहानियों को अवश्य ही बच्चों को पढ़ने हेतु देना चाहिए ।
चूँकि लेखिका वरिष्ठ उपन्यासकार , कथाकार व कवयित्री हैं इसलिए उनके अनुभवों का असर इन बालकथाओं पर स्पष्ट दिख रहा है । सभी कहानियाँ शिक्षाप्रद होने के साथ- साथ सहज व सरल हैं जिससे इन्हें पढ़ने या सुनने वाला अवश्य ही लाभांवित होगा ।
*समीक्षक*
छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर (म. प्र.)
7024285788

नवगीत: आम आदमी

नवगीत:
आम आदमी  
संजीव
.
आम आदमी
हर्ष हुलास
हक्का-बक्का
खासमखास
रपटे
धारों-धार गये
.
चित-पट, पट चित, ठेलमठेल
जोड़-घटाकर हार गये
लेना- देना, खेलमखेल
खुद को खुद ही मार गये
आश्वासन या
जुमला खास
हाय! कर गया
आज उदास
नगदी?
नहीं, उधार गये
.
छोडो-पकड़ो, देकर-माँग
इक-दूजे की खींचो टाँग
छत पानी शौचालय भूल
फाग सुनाओ पीकर भाँग
जितना देना
पाना त्रास
बिखर गया क्यों
मोद उजास?
लोटा ले
हरि द्वार गये
.
११-२-२०१५

नवगीत दुनिया बहुत सयानी

नवगीत : दुनिया
बहुत सयानी
संजीव
.
दुनिया
बहुत सयानी लिख दे
.
कोई किसी की पीर न जाने
केवल अपना सच, सच माने
घिरा तिमिर में
जैसे ही तू
छाया भी
बेगानी लिख दे
.
अरसा तरसा जमकर बरसा
जनमत इन्द्रप्रस्थ में सरसा
शाही सूट
गया ठुकराया
आयी नयी
रवानी लिख दे
.
अनुरूपा फागुन ऋतु हर्षित
कुसुम कली नित प्रति संघर्षित
प्रणव-नाद कर
जनगण जागा
याद आ गयी
नानी लिख दे
.
भूख गरीबी चूल्हा चक्की
इनकी यारी सचमुच पक्की
सूखा बाढ़
ठंड या गर्मी
ड्योढ़ी बाखर
छानी लिख दे
.
सिहरन खलिश ख़ुशी गम जीवन
उजली चादर, उधड़ी सीवन
गौरा वर
धर कंठ हलाहल
नेह नरमदा
पानी लिख दे
.
११-२-२०१५ 

नवगीत

 नवगीत:

संजीव 

अधर पर धर अधर १० 
छिप २ 
नवगीत का मुखड़ा कहा १४ 

चाह मन में जगी १० 
अब कुछ अंतरे भी गाइये १६ 
पंचतत्वों ने बनाकर १४ 
देह की लघु अंजुरी १२ 
पंच अमृत भर दिये १२ 
कर पान हँस-मुस्काइये १४ 
हाथ में पा हाथ १० 
मन २ 
लय गुनगुनाता खुश हुआ १४ 
अधर पर धर अधर १० 
छिप २ 
नवगीत का मुखड़ा कहा १४ 

सादगी पर मर मिटा १२ 
अनुरोध जब उसने किया १४ 
एक संग्रह अब मुझे १२ 
नवगीत का ही चाहिए १४ 
मिटाकर खुद को मिला क्या? १४ 
कौन कह सकता यहाँ? १२ 
आत्म से मिल आत्म १० 
हो २ 
परमात्म मरकर जी गया १४ 
अधर पर धर अधर १० 
छिप २ 
नवगीत का मुखड़ा कहा १४ 

नवगीत

सर्वोदय गीत 
सर्वोदय भारत का सपना।
हो साकार स्वप्न हर अपना।।
*
हम सब करें प्रयास निरंतर।
रखें न मनुज मनुज में अंतर।।
एक साथ हम कदम बढ़ाएँ।
हाथ मिला श्रम की जय गाएँ।।
युग अनुकूल गढ़ों नव नपना।
सर्वोदय भारत का सपना।।
*
हर जन हरिजन हुआ जन्म से।
ले-देकर है वणिक कर्म से।।
रक्षा कर क्षत्रिय हैं हम सब।
हो मतिमान ब्राह्मण हैं सब।।
कर्म साध्य नहिं माला जपना।
सर्वोदय भारत का सपना।।
*
श्रम सीकर में विहँस नहाएँ।
भूमिहीन को भू दे गाएँ।।
ऊँच-नीच दुर्भाव मिटाएँ। 
स्नेह सलिल में सतत नहाएँ।।
अंधभक्ति तज, सच है वरना।
सर्वोदय भारत का सपना।।
*

सर्वोदय

सर्वोदय गीत 
सर्वोदय भारत का सपना।
हो साकार स्वप्न हर अपना।।
*
हम सब करें प्रयास निरंतर।
रखें न मनुज मनुज में अंतर।।
एक साथ हम कदम बढ़ाएँ।
हाथ मिला श्रम की जय गाएँ।।
युग अनुकूल गढ़ों नव नपना।
सर्वोदय भारत का सपना।।
*
हर जन हरिजन हुआ जन्म से।
ले-देकर है वणिक कर्म से।।
रक्षा कर क्षत्रिय हैं हम सब।
हो मतिमान ब्राह्मण हैं सब।।
कर्म साध्य नहिं माला जपना।
सर्वोदय भारत का सपना।।
*
श्रम सीकर में विहँस नहाएँ।
भूमिहीन को भू दे गाएँ।।
ऊँच-नीच दुर्भाव मिटाएँ। 
स्नेह सलिल में सतत नहाएँ।।
अंधभक्ति तज, सच है वरना।
सर्वोदय भारत का सपना।।
*

बुधवार, 20 जनवरी 2021

भोजपुरी पर्व

ॐ 
भोजपुरी भाषा और बोली पर्व
....................................
परिचर्चा के मुख्य बिंदु ःः
(1)- भोजपुरी बोली का भौगोलिक क्षेत्र - 1-आ.रंजना सिंह जी 
2-मगही बोली का भौगोलिक क्षेत्र एवं साहित्य - आ.पूनम कतरियार जी
(3)- उद्भव एवं विकास - आ.संगीत सुभाष पांडे जी
(4) भोजपुरी/मगही बोली का इतिहास- आ. भगवती प्रसाद द्विवेदी
(बोलियां, उप बोलियाँ
(5)- भोजपुरी /मगही बोली के शब्दकोश- आ. प्रियंका श्रीवास्तव जी
6)- भोजपुरी /मगही
*- खान-पान- आ.डा.श्वेता सिन्हा
*-पहनावा- आ.सुधा पांडे जी
(7)- धार्मिकता..आ.ऊषा पाण्डेय जी 
(8) लोकसाहित्य-- आ. सुधा पांडे जी
(9)- लोकोक्तियां और मुहावरे,(उखान) - 1- आ.प्रियंका श्रीवास्तव
(10)- लघुकथा- आदरणीयां पूनम आनंद जी
(11)- व्रत-पर्व-त्योहारों एवं सामाजिक कार्यों में गाये जाने वाले गीत, - 
1- छठ पर्व गीत.. आ. प्रियंका श्रीवास्तव और आ. कुमकुम प्रसाद
आ. श्वेता श्रीवास्तव
2-- श्याम कूंवर भारती, बोकारो 
विषय -व्रत पर्व त्योहारो एवं सामाजिक कार्यों में जाए जाने वाले गीत
(12)- लिखित साहित्य आ. संजय मिश्रा जी
[20/01, 14:42] वीना सिंह: 🌹*भोजपुरी भाषा और बोली पर्व* 🌹
🙏*कार्यक्रम विवरण*🙏
दिनांक --२०/०१/२०२०
दिन- बुधवार।
*समय*
दोपहर ३:०० - ४.३० बजे
💐💐💐💐💐💐💐💐
*सरस्वतीवंदना* 
💐💐💐💐💐💐
*स्वागत* 
श्रीमती वीणा सिंह
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
*मुख्य अतिथि* 
आ० श्री संगीत सुभाष पांडे जी 
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
*विशिष अतिथि*
आ० संजय मिश्र "संजय" जी
🌲🌹🌲🌹🌲🌹🌲🌹
*अध्यक्ष*
आ० आचार्य संजीव वर्मा सलिल जी
🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀
*मार्ग दर्शक मंडल*
आ.भगवती प्रसाद द्विवेदी 
पटना (बिहार) 
आ. प्रियंका श्रीवास्तव
पटना (बिहार)
🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
*कार्यक्रम संचालन* 
आ० श्याकुँवर भारती जी
बोकारो (झारखंड )
🌸🍀🌸🍀🌸🍀🌸🍀
*विषेष सहयोग*
आ.रमा सरावगी जी
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
*कार्यक्रम संयोजक*
आ. वीणा सिंह
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
*आभार प्रदर्शन*
आ. सुधा दुबे जी
🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀
सरस्वती वंदना 
भोजपुरी 
संजीव 
पल-पल सुमिरत माई सुरसती, अउर न पूजी केहू 
कलम-काव्य में मन केंद्रित कर, अउर न लेखी केहू 
रउआ जनम-जनम के नाता, कइसे ई छुटि जाई 
नेह नरमदा नहा-नहा माटी कंचन बन जाई 
अलंकार बिन खुश न रहेलू, काव्य-कामिनी मैया 
काव्य कलश भर छंद क्षीर से, दे आँचल के छैंया 
आखर-आखर साँच कहेलू, झूठ न कबहूँ बोले 
हमरा के नव रसधार पिलाइल, बिम्ब-प्रतीक समो ले 
किरपा करि सिखवावलु कविता, शब्द ब्रह्म रस खानी
बरनौं तोकर कीर्ति कहाँ तक, चकराइल मति-बानी 
जिनगी भइल व्यर्थ आसिस बिन, दस दिस भयल अन्हरिया 
धूप-दीप स्वीकार करेलु, अर्पित दोऊ बिरिया 
***

कहावत सलिला: 
भोजपुरी कहावतें: 
कहावतें किसी भाषा की जान होती हैं. कहावतें कम शब्दों में अधिक भाव व्यक्त करती हैं. कहावतों के गूढार्थ तथा निहितार्थ भी होते हैं. भोजपुरी कहावतें दी जा रही हैं. पाठकों से अनुरोध है कि अपने-अपने अंचल में प्रचलित लोक भाषाओँ, बोलियों की कहावतें भावार्थ सहित यहाँ दें ताकि अन्य जन उनसे परिचित हो सकें. .
१. अबरा के मेहर गाँव के भौजी. 
२. अबरा के भईंस बिआले कs टोला. 
३. अपने मुँह मियाँ मीठू बा. 
४. अपने दिल से जानी पराया दिल के हाल. 
५. मुर्गा न बोली त बिहाने न होई. 
६. पोखरा खनाचे जिन मगर के डेरा. 
७. कोढ़िया डरावे थूक से. 
८. ढेर जोगी मठ के इजार होले. 
९. गरीब के मेहरारू सभ के भौजाई. 
१०. अँखिया पथरा गइल. 
*
भोजपुरी हाइकु: 
संजीव 
आपन बोली 
आ ओकर सुभाव 
मैया क लोरी. 
खूबी-खामी के 
कवनो लोकभासा 
पहचानल. 
तिरिया जन्म 
दमन आ शोषण 
चक्की पिसात. 
बामनवाद 
कुक्कुरन के राज 
खोखलापन. 
छटपटात 
अउरत-दलित 
सदियन से. 
राग अलापे 
हरियल दूब प 
मन-माफिक. 
गहरी जड़ 
देहात के जीवन 
मोह-ममता. 
*

शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020

सरस्वती वंदना बृज

सरस्वती वंदना
बृज भाषा
*
सुरसती मैया की किरपा बिन, नैया पार करैगो कौन?
बीनाबादिनि के दरसन बिन, भव से कओ तरैगो कौन?
बेद-पुरान सास्त्र की मैया, महिमा तुमरी अपरंपार-
तुम बिन तुमरी संतानन की, बिपदा मातु हरैगो कौन?
*
धरा बरसैगी अमरित की, माँ सारद की जै कहियौ
नेह नरमदा बन जीवन भर, निर्मल हो कै नित बहियौ
किशन कन्हैया तन, मन राधा रास रचइयौ ग्वालन संग
बिना-मुरली बजा मोह जग, प्रेम गोपियन को गहियौ
***
संजीव
७९९९५५९६१८