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शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

valentine rose day tofee day muktak

हास्य सलिला:
लाल गुलाब 
संजीव
*
लालू जब घर में घुसे, लेकर लाल गुलाब
लाली जी का हो गया, पल में मूड ख़राब
'झाड़ू बर्तन किये बिन, नाहक लाये फूल
सोचा, पाकर फूल मैं जाऊंगी सच भूल
लेकिन मुझको याद है ए लाली के बाप!
फूल शूल के हाथ में देख हुआ संताप
फूल न चौका सम्हालो, मैं जाऊं बाज़ार
सैंडल लाकर पोंछ दो जल्दी मैली कार.'
****
हास्य सलिला:
वैलेंटाइन पर्व:
संजीव
*
भेंट पुष्प टॉफी वादा आलिंगन भालू फिर प्रस्ताव
लला-लली को हुआ पालना घर से 'प्रेम करें' शुभ चाव
कोई बाँह में, कोई चाह में और राह में कोई और
वे लें टाई न, ये लें फ्राईम, सुबह-शाम बदलें का दौर

***
मुक्तक :
संजीव
.
जो हुआ अनमोल है बहुमूल्य, कैसे मोल दूँ मैं ?
प्रेम नद में वासना-विषज्वाल कैसे घोल दूँ मैं?
तान सकता हूँ नहीं मैं तार, संयम भंग होगा-
बजाना वीणा मुझे है कहो कैसे झोल दूँ मैं ??
.
मानकर पूजा कलम उठायी है
मंत्र गायन की तरह चलायी है
कुछ न बोले मौन हैं गोपाल मगर
जानता हूँ कविता उन्हें भायी है
.
बेरुखी ज्यों-ज्यों बढ़ी ज़माने की
करी हिम्मत मैंने आजमाने की
मिटेंगे वे सब मुझे भरोसा है-
करें जो कोशिश मुझे मिटाने की
.
सर्द रातें भी कहीं सोती हैं?
हार वो जान नहीं खोती हैं
गर्म जो जेब उसे क्या मालुम
जाग ऊसर में बीज बोती हैं
.
बताओ तो कौन है वह, कहो मैं किस सा नहीं हूँ?
खोजता हूँ मैं उसे, मैं तनिक भी जिस सा नहीं हूँ
हर किसी से कुछ न कुछ मिल साम्यता जाती है मुझको-
इसलिए हूँ सत्य, माने झूठ मैं उस सा नहीं हूँ
.
राह कितनी भी कठिन हो, पग न रुकना अग्रसर हो
लाख ठोकर लगें, काँटें चुभें, ना तुझ पर असर हो
स्वेद से श्लथ गात होगा तर-ब-तर लेकिन न रुकना
सफल-असफल छोड़ चिंता श्वास से जब भी समर हो
...

९-२-२०१५ 

doha valentine

दोहा सलिला:
वैलेंटाइन 
संजीव
*
उषा न संध्या-वंदना, करें खाप-चौपाल 
मौसम का विक्षेप ही, बजा रहा करताल
*
लेन-देन ही प्रेम का मानक मानें आप
किसको कितना प्रेम है?, रहे गिफ्ट से नाप
*
बेलन टाइम आगया, हेलमेट धर शीश
घर में घुसिए मित्रवर, रहें सहायक ईश
*
पर्व स्वदेशी बिसरकर, मना विदेशी पर्व
नकद संस्कृति त्याग दी, है उधार पर गर्व
*
उषा गुलाबी गाल पर, लेकर आई गुलाब
प्रेमी सूरज कह रहा, प्रोमिस कर तत्काल
*
धूप गिफ्ट दे धरा को, दिनकर करे प्रपोज
देख रहा नभ मन रहा, वैलेंटाइन रोज
*
रवि-शशि से उपहार ले, संध्या दोनों हाथ
मिले गगन से चाहती, बादल का भी साथ
*
चंदा रजनी-चाँदनी, को भेजे पैगाम
मैंने दिल कर दिया है, दिलवर तेरे नाम
*
पुरवैया-पछुआ कहें, चखो प्रेम का डोज
मौसम करवट बदलता, जब-जब करे प्रपोज
*

९.२.२०१५ 

das matrik chhand

दस मात्रिक छंद
२५. १० लघु मात्रा
हर दम छल मत कर
शुभ तज, अशुभ न वर
पथ पर बढ़, मत रुक
नित नव करतब कर
.
'सलिल' प्रवह कलकल
सुख गहकर पल-पल
रुक मत कल रख चल
मनुज न बन अब कल
*
२६. ८ लघु, १ गुरु
नित नर्तित नटवर
गुरु गर्वित गिरिधर
चिर चर्चित चंचल
मन हरकर मनहर
*
२७. ६ लघु, २ गुरु
नित महकती कली
खिल चहकती भली
ललच भँवरे मिले
हँस, बहकती कली
राह फिसलन भरी
झट सँभलती कली
प्रीत कर मत अभी
बहुत सँकरी गली
संयमित रह सदा
सुरभि देकर ढली
*
२८. ४ लघु, ३ गुरु
धन्य-धन्य शंकर
वन्दन संकर्षण
भोले प्रलयंकर
दृढ़ हो आकर्षण
आओ! डमरूधर
शाश्वत संघर्षण
प्रगटे गुप्तेश्वर
करें कृपा-वर्षण
.
हमें साथ रहना
मिला हाथ रहना
सुख-दुःख हैं सांझा
उठा माथ कहना
*
२९. २ लघु, ४ गुरु
बोलो, सच बोलो
पोल नहीं खोलो
सँग तुम्हारे जो
तुम भी तो हो लो
.
तू क्यों है बेबस?
जागो-भागो हँस
कोई देगा न साथ
सोते-रोते नाथ?
*
३०. ५ गुरु
जो चाहो बोलो
बातों को तोलो
झूठों को छोड़ा
सच्चे तो हो लो
.
जो होना है हो
रोकोगे? रोको
पाया खो दोगे
खोया पा लोगे
*

मुक्तक

मुक्तक 
मुक्त मन से लिखें मुक्तक 
सुप्त को दें जगा मुक्तक 
तप्त को शीतल करेंगे 
लुप्त को लें बुला मुक्तक
*

muktak

मुक्तक 
हमें ही है आना 
हमें ही है छाना 
बताता है नेता 
सताता है नेता 
*

तकनीक- जीन एडिटिंग: कल और आज

तकनीक-
जीन एडिटिंग: कल और आज
संजीव
*
भारतीय पौराणिक वांग्मय में अनेक प्रसंग हैं जिनमें असामान्य जन्म संकेतित है। गणेश,  कार्तिकेय, दशरथ नंदन, सीता, कौरव, द्रौपदी आदि के प्रसंग सर्वविदित हैं। विग्यान सम्मत टैस्ट ट्यूब बेबी और सरोगेसी जन्म काल्पनिक कहे जाते अनेक प्रसंगों को प्रामाणिक ठहरा रहा है।महाभारत कालीन विश्वामित्र के जन्म की कथा तथा विश्वामित्र की बहिन सत्यवती की कोख से महर्षि जमदग्नि के जन्म की कथा असामान्य हैं। गांधारी को गर्भपात पश्चात् मांसपिंड से वेदव्यास द्वारा सौ कौरवों का जन्म कराना अब तक अविश्वसनीय माना जाता रहा है।

राजा गाधि की पुत्री सत्यवती की विवाह ऋषि ऋचीक से हुआ था। सत्यवती को संतान न होने पर ऋचीक ने कृत्रिम विधि से संतान प्राप्ति का निश्चय किया। सत्यवती ने अपनी माता के लिए पुत्र प्राप्ति का उपाय करने को कहा ताकि उनके पिता को गद्दी का वारिस मिल सके। भृगु ने दिव्य औषधियों से युक्त दो चरु (घड़ा की तरह के पात्र)
तैयार किए। सत्यवती को लिए वैदग्य पुत्र तथा उनकी माता के लिए क्षत्रिय पुत्र हो ऐसे गुण सूत्रों की रचना ऋचीक ने की। सत्यवती की माँ को संदेह हुआ कि जामाता ने अपनी पत्नि को लिए श्रेष्ठ पुत्र की उपाय किया होगा। उन्होंने चुपचाप चरु बदल लिए। फलत: सत्यवती को वीरवर जमदग्नि तथा माँ को ऋषि विश्वामित्र की- प्राप्ति हुई। जमदग्नि-पुत्र परशुराम भी वीर हुए।

महाभारत काल में ही गर्भ-धारण के नवें माह में गांधारी का गर्भपात होने पर महर्षि व्यास ने सौ चरुओं में औषधियुक्त घी भरकर इनमें मांस पिंड को टुकड़े डालकर उनके मुँह बंद कर दिए। कुथ दिन बाद गांधारी ने एक पुत्री की कामना की तो व्यास ने एक चरु खोलकर उसके मांसपिंड का उपचार कर चरु बंद  कर दिया। इनसे दो वर्ष बाद ९९ कौरव भाइयों तथा उनकी एक बहिन दुबला का जन्म हुआ।

मार्स काल में चाणक्य द्वारा बिंबसार का जन्म भी असाधारण विधि से कराया गया था। ऐसे प्रसंगों को गल्प कहा जाता रहा पर अब विग्यान इन पर सत्यता की मुहर लगाने जा रहा है।

विग्यान के अनुसार हर नया जीव पुराने का नया संस्करण होता है। वह नए रंग-रूप को साथ वंशानुगत गुण-दोष लेकर पैदा होता है। यदि भ्रूण की कोशिकाओं में बदलाव किया जा सके तो वंशानुगत दोषों, बीमारियों को दूर किया जा सकता है तथा वांछित गुण संपन्न जातक प्राप्त किया जा सकता है। चीनी वैग्यानिक हे जियानकुई ने वंशानुगत संशोधन (जीन एडिटिंग) की तकनीक 'क्लस्टर्ड रेगुलरली इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पैलिनड्रोमिक रिपीट्स' (सीआरआईएसपीआर) द्वारा नवंबर २०१८ के अंतिम सप्ताह में दो बच्चियों को जन्म की दावा किया है। इस तकनीक में एक जीनोम से- आनुवंशिक तत्व निकालकर अन्य जीनोम में डाला जाता है। डीएनए में कोशिका स्तर पर बदलाव से संतान को माता-पिता की बीमारियों से मुक्त किया जा सकता है।
जियानकुई का दावा है कि उन्होंने एचआईवी (एड्स) संक्रमित पिता की जीन कुंडली में बदलाव कर नवजातों को इस वंशानुगत रोग से मुक्ति दिलाई है।

इसके पूर्व चीन ने २०१८ में ही वंशाणु परिवर्धन और भ्रूणीय स्तंभ कोशिका (एंब्रायोनिक स्टेम सेल) की मदद से २०-१० भ्रूणों से २९ स्वस्थ संतानों को जन्म दिया गया जिन्होंने संतानों को जन्म दिया तथा खुद पूरी उम्र जिए। चीन में दो चूहों की मदद से संतानोत्पत्ति का प्रयोग किया गया पर वह अल्पजीवी रही। शोधकर्ता क्ली धोई के अनुसार जो नर या दो मादा चूहों से भी संतानोत्पत्ति संभव है। भारत में 'पुनर्मूषको भव' (फिर चुहिया हो जा) कहानी में ऋषि बाज से त्रस्त चुहिया को मानवी बनाकर पाते हैं तथा  विवाहयोग्य होने पर उसके द्वारा सूर्य, बादल, पवन व पर्वत को ठुकराकर चूहे को पसंद करने पर फिर चुहिया बनाकर ब्याह देते हैं। यह कथा  वंशानुगत गुण-दोष का प्रभाव तथा बदलाव का सत्य युगों से बताती आई है जिसे अब विग्यान सत्य सिद्ध कर रहा है।

मनचाहे गुणयुक्त संतान की कामना पूर्ति की राह सहज नहीं है। जीन विलीन करने की तकनीकों से सरीसृपों व उभयचर जीवों तथा मछलियों में केवल नर या मादा से संतान उत्पन्न करने में सफलता मिलने का बाद भी दो चुहियों से पैदा की गई संतान में कमियाँ पाई गईं जिन्हें हैप्लॉयड एंब्रायोनिक स्टेम सेल की मदद से दूर किया गया। २०१८ के आरंभ में चाइनीज़ इंस्टीयूट अॉफ न्यूरोसाइंस के वैग्यानिकों ने बंदर की त्वचा से ली गई स्तंभ कोशिकाओं से भ्रूण की विकास कर बंदरों को अस्तित्व में लाए हैं। लगभग २-२ साल पहले डॉली नामित भेड़ का उत्सर्जन विभाजित स्तंभ कोशिकाओं को विशिष्ट कोशिका के रूप में विकसित कर किया गया था। मेंढक,  भेड़,  कुत्ता, बिल्ली, सुअर, चूहे, खरगोश व गाय आदि २० से अधिक जैव-प्रजातियों को क्लोन से उत्पन्न किया जा चुका है किंतु मानव क्लोन बनाना अब तक संभव नहीं हुआ था।

किसी प्राणी की कायिक कोशिका (सोमोटिक सेल) के केंद्रक (न्यूक्लियस) का स्थानांतरण अति कठिन है। यह ऐसी अलिंगी प्रक्रिया है जिससे किसी प्राणी की प्रतिकृति तैयार की जा सकती है। चीनी वैग्यानिकों ने 'मकैक' प्रजाति के वानरों के क्लोन से 'हुआ-हुआ' और 'झोंग-झोंग' वानरों को अवतरित कर चमत्कार किया। इसका उद्देश्य एक जैसे जींसवाले वानरों का निर्माण करना बताया गया ताकि मानवों हेतु अनिवार्य औषधियों के परीक्षण किए जा सकें। इस तरह पार्किंसन,  हृदय रोग आदि पर नियंत्रण पाया जा सकेगा।

चीन जीन संशोधन से चूहे और क्लोन पद्धति से- दो वानरों का निर्माण कर कृत्रिम मानव निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाया है। एड्स पीड़ित पिता - एड्स मुक्त माता की संतान को वंशानुगत एड्स से मुक्त रखने के लिए कोशिका से एड्स विषाणु को 'क्रिस्पर कैश ९' तकनीक द्वारा अलग किया गया। इस तकनीक को 'अणु कैंची' कहा जा सकता है। यह तकनीक 'कैश ९' नामक एंजाइम का प्रयोग कर डीएनए में प्रवाहित विषाणु को काटकर पृथक कर देती है। इस प्रक्रिया में आरएनए अणु दिशा-निदेशक की तरह कार्य करता है। जीव परिवर्तन द्वारा इच्छित गुण युक्त बच्चे या 'डिजाइनर बच्चे' उत्पन्न किए जा सकेंगे। इसमें अनंत संभावनाएँ छिपी हैं। बच्चों को रोगमुक्त करने के साथ अति बुद्धिमान बनाना भी संभव हो सकेगा। 

'जीन संपादन' (जीन एडिटिंग) मानव जीवन के रहस्य छिपाए तीन अरब रासायनिक रेखा-तंतु मानव जीनोमों में परिवर्तन कर मनचाहे गुणयुक्त संतति प्राप्ति का प्रयास है। 

मानव-जीनोम की संरचना को वर्ष २००० में अमरीका के क्लेग वेंटर व फ्रांसिस कॉलिंस ने जीवन की आधारभूत संजीवनी डीएनए (डिअॉक्सीरिबोन्यूक्लिक एसिड) के असंख्य अणुओं का प्रक्रिया को समझा। दुनिया के सामने पहली बार डीएनए की जटिल-रहस्यमय संरचना प्रकट हुई। मानव मस्तिष्क में क्रिया-प्रतिक्रिया संकेतक एक लाख से अधिक डीएनए-तंतु (जीन) होने की पूर्वधारणा भंग हुई। इन दोनों ने प्रमाणित किया कि मानव शरीर में तीस हजार जीन हैं। मनुष्यों और चूहों के जीवों में सादृश्यता के कारण मनुष्य की आंतरिक संरचना को समझने के लिए सर्वाधिक प्रयोग चूहों पर किए गए। जीनों के व्यवहार व प्रभाव की जानकारी बढ़ने के साथ रोगों पर नियंत्रण कोशिका स्तर पर ही पाया जा सकेगा। जीन एडिटिंग चिकित्सा जगत में क्रांतिकारी परिवर्तन की वाहक होगी।

हम एक-

वसुधैव कुटुंबकम् और विश्वैक नीड़म् की भारतीय अवधारणाओं को इस अनुसंधान ने सत्य प्रमाणित किया है। दुनिया के सभी मनुष्यों के ९९.९९ प्रतिशत जीन समान पाए गए हैं। भारतीय अध्यात्म एक ब्रम्ह से सकल सृष्टि की उत्पत्ति मानता  है। पौराणिक साहित्य सबको मनु-शतरूपा का वंशज कहता है। ईसाई व मुसलमान मत आदम-हव्वा की औलाद बताते हैं। अमरीकी वैग्यानिकों मार्क स्टोकर व डेविड थॉलर ने एक लाख प्रजातियों के पचास लाख पशुओं व मानवों के डीएनए बारकोड परीक्षण कर सब मानवों को एक ही स्त्री-पुरुष की संतानें बताया है जो लगभग दो लाख साल पहले पृथ्वी पर कहीं रहते थे। 

यह भी कि हर दस में से नौ प्राणियों का जन्म व विकास एक ही माता-पिता से- हुआ है और सभी जीवों की ९९ प्रतिशत प्रजातियाँ विद्यमान हैं। सनातन धर्म में प्रचलित दशावतार की अवधारणा को यह खोज सही बताती है।

नर ही प्रमुख 

जीनों में अधिकतम परिवर्तन नर प्रजातियों में पाए गए हैं। वे आनुवंशिक गुण-दोषों के वाहक हैं। संभवत: इसीलिए नर को प्रमुखता प्राप्त हुई। लगभग ढाई करोड़ साल पहले वनमानुष से मानव के विकास का राज भी तथा ग्यानेंद्रियों-कर्मेंद्रियों के विकास का मूल यहीं मिला। पंद्रह हजार मानव रोगों में से पाँच हजार को ही विग्यान अब तक जान सका है । इनमें से भी अधिकतर का उपचार प्रतिरोधी (एंटीबायोटिक्स) औषधियों पर आधारित है। एचआईवी, एड्स, स्तन कैंसर, वंशानुगत अंधत्व, मिरगी आदि तीस जीन आधारित बीमारियों का पता लग चुका है। अमरीकी व दक्षिण कोरियाई वैग्यानिकों ने २०१७ में साइंस पत्रिका में हृदय की धमनियों में चर्बी बढ़ानेवाला जीन की खोजकर उसे जीन एडिटिंग वंशाणु परिवर्धन प्रौद्योगिकी कैश ९ द्वारा दूर करने का दावा किया है। वंशानुगत कर्क रोग (कैंसर), मधुमेह, सीजोफ्रेनिया, नशा आदि रोगों के जड़-मूल से समाप्त करने मेंजीन एडिटिंग सक्षम होगी पर दमा, रक्तचाप, जोड़ दर्द का कारण जीन न होने से इन पर प्रभावी नहीं होगी। 

सवालों का चक्रव्यूह 

जीन एडिटिंग को प्रकृति या विधाता के काम में हस्तक्षेप मानकर इसका विरोध करनेवाले आस्तिक असंख्य हैं। इसके राजनैतिक दुरुपयोग व सामाजिक दुष्प्रभावों की आशंकाएँ भी अनंत हैं। भारत में अल्ट्रासोनोग्राफी का सामाजिक दुष्प्रभाव पुरुषों की तुलना में स्त्री जन्म दर में गिरावट के रूप में देखा गया। जीन एडिटिंग को रंग विशेष की संतानों कि लिए प्रयोग किए जाने पर विषमता बढ़ेगी। हर दंपति विद्वान, सुंदर,  सबल संतान लाएगा तो समाज से विविधता समाप्त हो जाएगी। विधिक व कानूनी पहलू की दृष्टि से भी जीन एडिटिंग नई चुनौतियाँ प्रस्तुत करेगी। आज डाटा कनेक्शन,  डाटा चोरी का संकट सामने है,  कल डीएनए बैंक, डीएनए चोरी व दुरुपयोग का संकट जीना हराम करेगा। 

प्रश्न यह भी है कि क्या जीन एडिटिंग से आतंकवादी और आपराधिक मानसिकता को समाप्त किया जा सकेगा?  भारतीय वांग्मय में अनेक कथाएँ हैं जिनमें देवताओं से- विशिष्ट शक्तियाँ पाने, उनका दुरुपयोग कर आतंक फैलाने और मानवता के खतरे में पड़ने का वर्णन है। क्या यह जीनथिरैपी से ही नहीं हुआ होगा या भविष्य में नहीं होगा? ऐसा हुआ तो जीन थिरैपी वरदान कम अभिशाप अधिक होगी। मनुष्य विग्यान की इस अनुपम तकनीक से क्या करेगा यह तो भविष्य के गर्भ में है पर फिलहाल तो अनंत संभावनाओं के दरवाजे खोल रही है जीन कुंडली।

***                                                     

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019

मुक्तक

मुक्तक
साहित्य की आराधना आनंद ही आनंद है. 
काव्य-रस की साधना आनंद ही आनंद है. 
'सलिल' सा बहते रहो, सच की शिला को फोड़कर. 
रहे सुन्दर भावना आनंद ही आनंद है.

दोहा वैलेंटाइन

दोहा वैलेंटाइन
उषा दुपहरी सांझ से, पाल रहा जो प्रीत. 
छलिया सूरज को कहे, जग क्यों 'सलिल' पुनीत?.
८.२.२०१० 

नवगीत मर्तबान में

नवगीत:
संजीव
.
तह करके 
रख दिये ख्वाब सब 
धूप दिखाकर
मर्तबान में
.
कोशिश-फाँकें
बाधा-राई-नोन
समय ने रखा अथाना
धूप सफलता
मिल न सकी तो
कैसा गलना, किसे गलाना?
कल ही
कल को कल गिरवी रख
मोल पा रहा वर्तमान में
.
सत्ता सूप
उठाये घूमे
कह जनगण से 'करो सफाई'
पंजा-झाड़ू
संग नहीं तो
किसने बाती कहो मिलायी?
सबने चुना
हो गया दल का
पान गया ज्यों पीकदान में.
.
८-२-२०१५

maithili haiku

मैथिली हाइकु 
*
स्नेह करब 
हमर मंत्र अछि 
गरा लागब.
*

दोहा वैलेंटाइन

दोहा वैलेंटाइन
दिनकर प्रिय सुधि रश्मि से, करे प्रणय शुरुआत।
विरह तिमिर का अंत कर, जगा रहा जज्बात।।
*

दोहा वैलेंटाइन

दोहा वैलेंटाइन 
रोज, प्रप्रोज पठा रहा, नाती कैसा काल।
पोता हो लव बर्ड तो, आ जाए भूचाल।।

दस मात्रिक छंद

दस मात्रिक छंद
९. पदांत यगण
मनुआ! जग गा रे!
प्राची रवि लाई
ऊषा मुसकाई
रहा टेर कागा
पहुना सुधि आई
विधना झट ला रे!
कुण्डी खटकाई
गोरी झट आई
अँखियाँ टकराईं
झुक-उठ शरमाईं
मुड़कर मात जारे!
हुई मन मिलाई
सुध-बुध बिसराई
गयी खनक चूड़ी
ननदी झट आई
चट-पट छिप जा रे!
*
१०. पदांत मगण
मन क्यों आवारा?
जैसे बंजारा
हर दम चाहे हो
केवल पौबारा
*
११. पदांत तगण
ख्वाब में हैं आप
साथ में हैं आप
हम जहाँ मौजूद
न हों पर हैं आप
*
१२. पदांत रगण
बात जब कीजिए
साथ चल दीजिए
सच नहीं भी रुचे
तो नहीं खीजिए
कर मिलें, ना मिलें
मन मिला लीजिए
आँख से भी कभी
कुछ लगा पीजिए
नेह के नीर में
सँग नहा भीजिए
*
१३. पदांत जगण ६+१२१
किसे कहें अनाथ?
सभी मनुज सनाथ
सबका ईश एक
झुकाएँ नित माथ
*
१४. पदांत भगण
लाया है सावन
त्यौहार सुपावन
मिल इसे मनायें
राखी मन भावन
.
सीमा पर दुर्जन
दें मार सैन्य जन
अरि के घर मातम
बोयेगा सावन
*
१५, पदांत नगण
जब से गए सजन
बेसुध सा तन-मन
दस दिश चहल-पहल
सूना मन-मधुवन
किया सतत सुमिरन
हर दिन, हर पल-छिन
पौधारोपण कर
जी पायें फिर वन
वह दिखता रहबर
हो न कहीं रहजन
*
१६. पदांत सगण
हमको है कहना
दूर नहीं रहना
चुप, कब तक पहनें
सुधियों का गहना?
मजबूरी अपनी
विरह व्यथा तहना
सलिला कब कहती
मुझे नहीं बहना?
मंगल मन रही
क्यों केवल बहना?
*
१७. २ यगण
निहारो-निहारो
सितारों निहारो
सदा भारती की
करो आरती ही
हसीं चाँदनी को
धरा पर उतारो
सँवारो-सँवारो
धरा को सँवारो
१८. २ तगण
सीता वरें राम
सीता तजें राम
छोड़ें नहीं राग
सीता भजें राम
१९. २ रगण
आपसे काम ना
हो, यही कामना
गर्व का वास ना
हो, नहीं वासना
स्वार्थ को साध ना
छंद को साधना
माप की नाप ना
नाप ही नापना
उच्च हो भाव ना
शुद्ध हो भावना
*
२०. यगण तगण
कहीं है नीलाभ
कहीं है पीताभ
कपासी भी मेघ
कहीं क्यों रक्ताभ?
कड़े हो या नर्म
रहो जैसे डाभ
सहेगा जो हानि
कमाएगा लाभ
२१. तगण यगण
वादा न निभाया
कर्जा न चुकाया
जोड़ा धन थोड़ा
मोहे मत माया
जो पुन्य कमाया
आ अंत भुनाया
ठानो न करोगे
जो काम न भाया
२१. यगण रगण
किये जाओ मजा
चली आती क़ज़ा
किया तो भोग भी
यही दैवी रजा
कहो तो स्वार्थ को
कभी क्या है तजा?
रही है सत्य की
सदा ऊँची ध्वजा
न बोले प्रेयसी
'मुझे क्या जा-न जा'
*
२२. रगण यगण
आपका सहारा
दे रहा इशारा
हैं यही मुरादें
साथ हो हमारा
दूर जा पुकारा
पास आ निहारा
याद है न वादा?
प्यार हो न कारा?
आँख में बसा है
रूप ये तुम्हारा
*
२३. तगण रगण २२१ २१२
आओ! कहीं चलें
बोलो कहाँ मिलें?
माँगें यही दुआ
कोई नहीं छले
*
२४. रगण तगण
आज का पैगाम
जीत पाए लाम
आपका सौभाग्य
आप आये काम
सोचते हैं लोग
है विधाता वाम
चाहिए क्यों पुण्य
कर्म है निष्काम
खूब पाया नाम
बात है ये ख़ास
प्रेरणा लें आम
*

हिंदी साहित्य: प्रश्नोत्तर

हिंदी साहित्य: प्रश्नोत्तर 
१ . सूरदास ने सूरसागर किस बोली में लिखी?----ब्रज
२ . पहेलियाँ और मुकेरियाँ किसकी रचना हैं?----अमीर खुसरो
३ . कामायनी के लेखक कौन हैं?----जयशंकर प्रसाद
४ . साकेत और भारतभारती के लेखक कौन है?----मैथिलीशरण गुप्त
५ . चिदंबरा के लेखक कौन हैं?---सुमित्रानंदन पन्त
६ . बिहारी ने सतसई की रचना किस बोली में की है?---मैथिली
७ . अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी बोलियाँ हिंदी की किस उपभाषा के अंतर्गत आती हैं?---पूर्वी हिंदी
८ . रामचरितमानस की रचना किसने की और किस बोली में?---तुलसीदास ने अवधी में
९ . मलिक मोहम्मद जायसी ने पद्मावत की रचना किस बोली में की?---अवधी
१० . मेवाती, मारवाड़ी, हाडौती, मेवाड़ी किस उपभाषा की बोलियाँ हैं?----राजस्थानी
११. मैथिली, मगही, भोजपुरी किस उपभाषा की बोलियाँ हैं?---बिहारी
१२ . मैथिल कोकिल के नाम से कौन प्रसिद्ध है जिन्होंने पदावली की रचना मैथिली में की?---विद्यापति
१३ . मंडियाली(हिमाचली), कुमाऊनी, गढ़वाली किस उपभाषा की बोलियाँ हैं?---पहाड़ी
१४ . ब्रज, खड़ीबोली, बांगरू (हरियाणवी), बुन्देली, कन्नौजी किस उपभाषा की बोलियाँ हैं?---पश्चिमी हिंदी
१५ . हिंदी विश्व के किस भाषा परिवार से संबंधित है?---भारत-यूरोपीय भाषा परिवार
१६ . भारतीय आर्य भाषा परिवार की प्राचीनतम भाषा कौनसी है?---संस्कृत
१७ . देवनागरी लिपि का विकास किस प्राचीन लिपि से हुआ है?--ब्राह्मी लिपि
१८ . पंजाबी भाषा की लिपि कौनसी है?---गुरुमुखी
१९ . उर्दू की लिपि कौनसी है?---फारसी
२० . कौनसी लिपि दांये से बांये लिखी जाती है?--फारसी
२१ . अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, स्पेनिश भाषाओं की लिपि कौनसी है?---रोमन
२२ . हिंदी का विकास किस भाषा से हुआ है?---संस्कृत

क्रिकेट के दोहे

क्रिकेट के दोहे 
*
चहल-पहल कर चहल ने, खड़ी करी है खाट 
कम गेंदें ज्यादा विकेट, मारा धोबीपाट 
*
धोनी ने धो ही दिया, सब अंग्रजी ठाठ
बल्ले-बल्ले कर रहा, बल्ला पढ़ लो पाठ
*
रैना चैना छीनकर, नैना रहा तरेर
ढेर हो गए सर झुका, सब अंग्रेजी शेर
*
है विराट के नाम की, है विराट ही धाक
कुक ने स्तीफा दिया, हाय कट गयी नाक
*
अंग्रेजों से छिन गया, ट्वंटी का भी ताज
गोरी बाला वर जयी, हुए विहँस युवराज
*
नेहरा गहरा वार कर, पहरा देता खूब
विकट नहीं या रन नहीं, गए विपक्षी डूब
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विद्या छंद मुक्तिका

एक मुक्तिका
छंद- यौगिक जातीय विद्या छंद
मापनी- २१२२ २१२२ २१२२ २१२२
बहर- फाइलातुन x ४
*
फूलने दो बाग़ में गुंचे मिलेगी खूब खुश्बू
गीत गायेंगे ख़ुशी से झूम भौंरे देख जादू
कौन बोलेगा न झूमो? कौन चाहेगा न गाओ?
राह में राही मिलेंगे, थाम लेना हाथ ही तू
उम्र का ही है तकाजा लोग मानें या न मानें
जोश में होता कहाँ है होश?, होता है न काबू
आप नेता हैं, नहीं तो आपका कोई न चर्चा
आपकी पीड़ा न पीड़ा, फेंक एसिड, मार चाकू
सांसदों को खूब भत्ते और भूखों को न दाना
वाह रे आजाद लोगो! है न आज़ादी गुड़ाखू
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नव गीतः सुग्गा बोलो

नव गीतः 
सुग्गा बोलो 
जय सिया राम...
सन्जीव
*
सुग्गा बोलो
जय सिया राम...
*
काने कौए कुर्सी को
पकड़ सयाने बन बैठे
भूल गये रुकना-झुकना
देख आईना हँस एँठे
खिसकी पाँव तले धरती
नाम हुआ बेहद बदनाम...
*
मोहन ने फिर व्यूह रचा
किया पार्थ ने शर-सन्धान
कौरव हुए धराशायी
जनगण सिद्‍ध हुआ मतिमान
खुश मत हो, सच याद रखो
जन-हित बिन होगे गुमनाम...
*
हर चूल्हे में आग जले
गौ-भिक्षुक रोटी पाये
सांझ-सकारे गली-गली
दाता की जय-जय गाये
मौका पाये काबलियत
मेहनत पाये अपना दाम...
*
१३-७-२०१४

मुक्तिका

मुक्तिका 
मिल गया 
*
घर में आग लगानेवाला, आज मिल गया है बिन खोजे. 
खुद को खुदी मिटानेवाला, हाय! मिल गया है बिन खोजे.
*
जयचंदों की गही विरासत, क्षत्रिय शकुनी दुर्योधन भी
बच्चों को धमकानेवाला, हाथ मिल गया है बिन खोजे.
*
'गोली' बना नारियाँ लूटीं, किसने यह भी तनिक बताओ?
निज मुँह कालिख मलनेवाला, वीर मिल गया है बिन खोजे.
*
सूर्य किरण से दूर रखा था, किसने शत-शत ललनाओं को?
पूछ रहे हैं किले पुराने, वक्त मिल गया है बिन खोजे.
*
मार मरों को वीर बन रहे, किंतु सत्य को पचा न पाते
अपने मुँह जो बनता मिट्ठू, मियाँ मिल गया है बिन खोजे.
*
सत्ता बाँट रही जन-जन को, जातिवाद का प्रेत पालकर
छद्म श्रेष्ठता प्रगट मूढ़ता, आज मिल गया है बिन खोजे.
*
अब तक दिखता जहाँ ढोल था, वहीं पोल सब देख हँस रहे
कायर से भी ज्यादा कायर, वीर मिल गया है बिन खोजे.
***
२५.१.२०१८

काह न स्त्री कर सके

पुरुष बिचारा
स्त्री को हमेशा एक पुरुष का साथ चाहिए जिसे हर गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार ठहराना जा सके।
पिता तानाशाह
भाई लापरवाह
पति नाकाबिल
बेटा नालायक
पोता नादान
देवियाँ भी पीछे नहीं हैं।
- लक्ष्मी विष्णु से- 'दिन भर पसरे रहते हो, कभी तो बाहर जाओ।'
- पार्वती शिव से 'कभी तो भले मानुषों की तरह घर में रहा करो।'
- राधा कृष्ण से बुढ़ापा आ रहा है अब तो सुधर जाओ।
- सरस्वती ब्रम्हा से- बूढ़े हो गए, पीछा छोड़ो।
- रिद्धि-सिद्धि की किचकिच से घबराकर गणेश जी ने हाथी से कान उधार लेकर रुई ठूँस ली।
- शंकर जी ने पंगा लिया तो पार्वती जी महाकाली बन उनकी छाती पर सवार हो गईं।
- नंदिनी-इरावती से घबराकर कायस्थों के कुलदेवता ऐसे भागे कि लौटे ही नहीं, इसलिए  उनका नाम ही हो गया चित्रगुप्त।
खैर चाहते हो बने रहो जोरू के गुलाम, वह भी बेदाम।
***

कविता भेड़िया

एक रचना
*
तुम नहीं माने
घने जंगल काट डाले।
खोद दिए हैं पहाड़,
गुफाएँ दी हैं उजाड़,
धरती को कर दिया है नंगा
जंगलों में मजा दिया है दंगा।
प्रकृति से खिलवाड़
विकास की ले आड़।
अपनी समझ में
तुमने उसे मार डाला है।
अब वह
कहीं नहीं दिखता,
उसके भय से
आदमी नहीं छिपता।
लेकिन
तुम्हें नहीं पता,
कर चुके हो खता।
उसने नहीं किया माफ
पाते ही मैदान साफ
बदलकर अपना
डेरा और चोला
तुम्हीं में आ बसा है।
अनजाने-अनचाहे
अनदेखे-अनलेखे
तुम्हें अपनी गिरफ्त में कसा है।
वह धूर्त है,
निर्मम है।
हर्ष नहीं, मातम है।
खोजो,
कितना भी खोजो
यही कहोगे
वह कहीं दिखाई नहीं दिया
दिखाई देगा भी नहीं।
यह न सोचो कि नहीं है
वह रहता यहीं है
पर दिखता नहीं है
क्योंकि तुम्हीं में आ बसा है
जंगल का
खूँखार भेड़िया।
***