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शनिवार, 2 फ़रवरी 2019

अष्टक मात्रिक छंद

अभिनव प्रयोग:
पदांत बंधन मुक्त अष्ट मात्रिक वासव 
जातीय छंद 
संजीव 
पदादि यगण
विधाता नमन
न हारे कभी
हमारा वतन
सदा हो जयी
सजीला चमन
करें वंदना
दिशाएँ-गगन
*
२. पदादि मगण
जो बोओगे
वो काटोगे
जो बाँटोगे
वो पाओगे
*
चूं-चूं आई
दाना लाई
खाओ खाना
चूजे भाई
चूहों ने भी
रोटी पाई
बिल्ली मौसी
है गुस्साई
*
३. पदादि तगण
जज्बात नए
हैं घाट नए
सौगात नई
आघात नए
ऊगे फिर से
हैं पात नए
चाहें बेटे
हों तात नए
गायें हम भी
नग्मात नए
*
४. पदादि रगण
मीत आइए
गीत गाइए
प्रीत बाँटिए
प्रीत पाइए
नेह नर्मदा
जा नहाइए
जिंदगी कहे
मुस्कुराइए
बन्दगी करें
जीत जाइए
*
५. पदादि जगण
कहें कहानी
सदा सुहानी
बिना रुके ही
कमाल नानी
करें करिश्मा
कहें जुबानी
बुजुर्गियत भी
उम्र लुभानी
हुई किसी की
न राजधानी
*
६. पदादि भगण
हुस्न जहाँ है
इश्क वहाँ है
बोल-बताएँ
आप कहाँ हैं?
*
७. पदादि नगण
सुमन खिला है
गगन हँसा है
प्रभु धरती पर
उतर फँसा है
श्रम करता जो
सुफल मिला है
फतह किया क्या
व्यसन-किला है
८. पदादि सगण
हम हैं जीते
तुम हो बीते
जल क्या देंगे
घट हैं रीते?
सिसके जनता
गम ही पीते
कहता राजा
वन जा सीते
नभ में बादल
रिसते-सीते
***

doha dosh

गौ भाषा को दूहकर, 
दोहा कर पय-पान।
छंद राज बन सच कहे,
समझ बनो गुणवान।।
*
दोहा लिखते समय निम्न दोषों से बचें- 
१. कथ्य दोष, 
२. तथ्य दोष, 
३. क्रम दोष, 
४. वचन दोष, 
५. लिंग दोष, 
६. काल दोष, 
७. कारक दोष,
८. उपमा दोष, 
९. बिंब दोष,
१०. मात्रा दोष,
११. यति दोष,
१२. तुकांत दोष। 
*

geet

एक रचना
*
गुरु में होना
ज्ञान जरूरी
*
टीचर-प्रीचर के क्या फीचर?
ऐसे मत हों जैसे क्रीचर
रोजी-रोटी साध्य न केवल
अंतर्मन है बाध्य व बेकल
कहता-सुनता
बात अधूरी
गुरु में होना
ज्ञान जरूरी
*
शिक्षक अगर न खुद सीखा तो
समझहीन सब सा दीखा तो
कुछ मौलिकता, कुछ अन्वेषण
करे ग्रहण नित, नित कुछ प्रेषण
पढ़े-पढ़ाये
बिन मजबूरी
गुरु में होना
ज्ञान जरूरी
*
कौन बताये आदि कहाँ है?
कोई न जाने अंत कहाँ है?
झुक जाते हैं वहीं अगिन सर
पड़ जाते गुरु-चरण जहाँ हैं
सत्य बात
समझाये पूरी
गुरु में होना
ज्ञान जरूरी
*
४-१२-२०१६
प्रीमिअर टेक्निकल इंस्टीटयूट जबलपु

शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2019

तकनीक: पॉलीमर इंजीनियरिंग

हमारे दैनिक जीवन में प्रयोग होनेवाले रबर टायर,  प्लास्टिक कंटेनर,  नायलॉन, रेक्सिन आदि सामग्री का निर्माण और उत्पादन बहुलकों (पॉलीमर्स) के बिना संभव नहीं है। बहुलक से पालीइथिलीन के विविध प्रकार, कम घनत्व, मध्यम घनत्व और उच्च घनत्व पॉलीथीन (एलडीपीई, एमपीडीई, एचपीडीई) का निर्माण किया जाता है। पॉलीमर पदार्थों की निरंतर बढ़ती माँग ने उद्योगों और रोजगार अवसरों की संभावना बढ़ाई है। पॉलीमर इंजीनियरिंग के द्वारा पॉलीमर यौगिक, पॉलीमर मिश्रित सामग्री, कार्बन ब्लैक,  कैल्शियम कार्बोनेट, टाइटेनियम ऑक्साइड, नैनो क्ले, ग्लास फाइबर,  ऑर्गेनिक फिलर्स,  नैनोफिलर्स,  प्रोसेसिंग एड्स, फ्लेम रिटार्डेंट्स आदि पदार्थों व रसायनों का निर्माण / उत्पादन संभव होता है।
पॉलीमर इंजीनियरिंग (बहुलक अभियांत्रिकी) रसायन शास्त्र संबंधी उच्च शोध में रुचि रखनेवाले युवाओं का भविष्य है।असीमित रोजगार अवसरों तथा शोध संभावनाओं से समृद्ध इस क्षेत्र में जेएपीएल, एनसीएल, सीपीआरआई,  एनएमएल आदि अनेक प्रयोग शालाएँ तथा डॉव, ड्यूपॉन्ट, एसएबीआईसी, क्लायंट आदि बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ  निरंतर अनुसंधानरत हैं। आईआईटी तथा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की में कई शोधकार्य चल रहे हैं।
महत्व
मानव निर्मित बहुलक सामान्यतः प्लास्टिक के रूप में पहचाने जाते हैं। इन्हें अनेक रूपाकारों में ढाला जा सकता है। पेट्रोलियम तेल से प्राप्त होनेवाले सिंथेटिक बहुलकों नायलॉन, पॉलीथीन,  पालिएस्टर, रेयान, टेफ्लॉन, एपॉक्सी आदि के उत्पादन में सम्मिलित होते हैं। आधुनिक पॉलीमर इंजीनियरिंग कच्चे पॉलीमर पदार्थों का उत्पादन करने के साथ-साथ नैनोटैक्नॉलॉजी व बायो मेडिकल तकनीक का भी विकास करती है। विविध प्रक्रियाओं से नए पॉलीमर पदार्थों, नए पदार्थों व तकनीकों का अनुसंधान किया जाता है। भौतिकी तथा रसायन शास्त्र के सहयोग से पॉलीमर इंजीनियरिंग श्रेष्ठ संचार कौशल, लागत ह्रास व उत्पादन वृद्धि  को संभव बनाती है।
क्या है पॉलीमर
जो अणु न्यूनतम दो अन्य अणुओं के साथ संयुक्त होने की सामर्थ्य रखते हैं, उन्हें सरल अणु (मोनोमर) कहा जाता है। दो या दो से अधिक सरल अणुओं का सम्मिलन होने से पॉलीमर बनाए जा सकते हैं। मोनोमर की कार्यक्षमता पॉलीमर की गुणवत्ता का निर्धारण करती है। सरल अणु द्वारा बनाई गई बांड संख्या बहुलक की रासायनिक संरचना निर्धारित करती है। एक सरल अणु दो अन्य सरल अणुओं के साथ मोनोबांड करे तो एक चैन जैसी संरचना बनती है। तीन या अधिक सरल अणुओं के साथ बांड हो तो त्रिआयामी क्रॉस लिंक्ड संरचना बनती है। अणुओं के जुड़ने की प्रक्रिया (बांडिंग) पॉलीमराइजेशन कहलाती है। इस प्रक्रिया में समान या भिन्न प्रकार के अणु इलैक्ट्रॉन के युग्म (जोड़े) को साझा करते हैं। बहुलक बहुत अधिक अणुवाला कार्बनिक यौगिक होता है। मोनोमर की स्वरूप बंधन (बांड) की संख्या के आधार पर एकल (मोनो), द्वि (डाइ), त्रि (ट्राइ), चतुष् (टैट्रा), पंचम (पैंटा), षष्ठम् (हैक्सा) या बहु (पॉली) होता है। असंतृप्त हाइड्रोकार्बन को लाखों लघु अणुओं के जुड़ने से बहुलक का निर्माण होता है। पॉलीथीन एथिलीन, प्लास्टिक आदि के निर्माण में पॉलिस्टरीन स्टाइरीन, अंडे के कार्टन, गर्म खाद्य पात्र आदि के निर्माण में पॉलिविनाइल मोनोविनाइल क्लोराइड, पीवीसी पाइप, हैंड बैग क्लोराइड आदि में पॉलीटैट्रा-टैट्राफ्लारोएथिलीन, नॉनस्टिक बर्तन में फ्लूरो  एथिलीन या टेफ्लॉन नोवोलक फिनॉइल फार्मल्डिहाइड रेडियो कैबिनेट तथा कैमरों को आवरण, रोजिन निर्माण में पहली विनाइल,  विनाइल एसीटेट, लेटेक्स पेंट तथा एस्टेट आसंजक के निर्माण में पॉलीकार्बोनेट बुलेटप्रूफ जैकेट आदि को निर्माण में होता है। पॉलीमर को सामान्यत: निम्नानुसार वर्गीकृत किया जाता है-
१. भौतिक-रासायनिक संरचना
२. पॉलीमर निर्माण विधि
३. भौतिक गुण
४. अनुप्रयोग
पॉलीमर को भौतिक गुणों के आधार पर निम्न अनुसार बाँट गया है-
१. थर्मोप्लास्टिक
२. थर्मोसेटिंग
३. इलास्टोमर
४. फाइबर / रेशे
***                                                    पॉलीमर इंजीनियरिंग- संभावनाएँ ही संभावनाएँ
वर्तमान में रासायनिक अभियांत्रिकी की एक शाखा के रूप में जाने जा रही  पॉलीमर अभियांत्रिकी बहुलक (पॉलीमर) पदार्थों को विविध प्रक्रियाओं द्वारा आवश्यक पदार्थों में परिवर्तित करने के साथ-साथ नए पदार्थों व प्रविधियों की खोज, बहुलक पदार्थों का रूपांकन संधारण व उत्पादन भी किया जाता है।

शिक्षा व रोजगार-
पॉलीमर विग्यान में स्नातक (बी.एससी.) के बाद
कैमिस्ट, इंडस्ट्रियल रिसर्च साइंटिस्ट, मैटीरियल टैक्नॉलॉजिस्ट,  क्वालिटी कंट्रोलर, प्रॉडक्शन ऑफिसर,  सेफ्टी हैल्प एंड एंवरॉन्मेंट स्पेशलिस्ट आदि पदों पर कार्य-अवसर मिल सकता है। फार्मास्यूटिकल,  कृषिरसायन (एग्रोकैमिकल), पैट्रोरसायन,  प्लास्टिक उत्पादन, रसायन उत्पादन, फुड प्रोसेसिंग, पेंट उत्पादन, वस्त्रोद्योग (टैक्सटाइल), फॉरेंसिक,  सिरेमिक्स आदि उद्योगों में पॉलीमर टैक्नॉलॉजिस्ट की माँग लगातार बढ़ रही है।
मेसाचुसेस्ट्स, टेक्सास, डेलावेयर, मिनियोस्टा, केयूलियूवन,  आक्रॉन जैसे विश्व विख्यात विश्वविद्यालयों में पॉलीमर इंजीनियरिंग में शोधोपाधि (पीएच.डी.) पाठ्यक्रम हैं।

शब्दकोष निमाड़ी

https://books.google.co.in/books/about/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%80_%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%80.html?id=cokqQwAACAAJ&redir_esc=y

फरवरी कब क्या

फरवरी
कब-क्या
*
०६- कवि प्रदीप जयंती।
०७- रोज डे।
०८- प्रपोज डे।
०९- चॉकलेट डे।
१०- वसंत पंचमी, टैडी डे।
११- दीनदयाल उपाध्याय पुण्य तिथि, प्रॉमिस डे।
१२-नर्मदा जयंती, हर डे।
१३- सरोजिनी नायडू जयंती, किस डे।
१४-वैलेंटाइन डे।
१५- सुभद्रा कुमारी चौहान पुण्य तिथि।
१७- विश्वकर्मा जयंती।
१९- संत रनिवास,  शिवाजी, गुरु गोलवलकर जयंती।
२६-सावरकर पुण्य तिथि।
२७- चंद्रशेखर आजाद शहीद दिवस।
२८- राष्ट्रीय विग्यान दिवस।
***

अंग्रेज़ी-निमाड़ी

मालवा की भाषा सीखने के लिए प्राचीन Dictionary से लिए गए कुछ चुनिंदा शब्द
अनिल खंडेलवाल, इंदौर
Excuse me - सुन तो सई
What happened - कयी हुयो?
What - कंई
Really - कयी वात करीरो?
Oh no- अरे नी रे
Hey dude- कयी भीया
Hey girl- कयी धापूड़ी
What's up- कयी हुई रो
Done -हुई ग्यो
Not done - नी हुयो
my-म्हारो
your-थारो
own -आपणो
Let him go - जावा दे परो
Don't know- म्हके नी मालम
Hurry - फटाफट
Smooth -चिकणो
I'm -हु
Lady - लुगाई
Man - आदमी
Mother-बई/जी
father-दायजी
boy/girl-छोरा /छोरी
Sleeping - हुतो सुईरियो
Run away -  भागी जा
Stay here - याज रूक
study-भन्डने 
Now - अबार
.Not now- अबार कोनी
Never- कदी भी नी.
Come here- आई आ
Go There- वई जा
Same 2same-असो को असो
Sunlight - तडको
Very- गंज
Gate- कमाड़
Neck- घेंटो
mouth -मुंडो
Knee- गोड़ो
Finger -आंगली
Ox- बेल
Rat-ऊंदरो
Monkey-बांदरो
Dog- टेगड़ो
Pig- सुअड़्लो
Mad- वेंडो
stupid-गैलिओ
ILL- मांदो
Head - माथो
Dust- धूळो
Onion-कॉंदो
Bathing- हॉंपड़ी रो
Stone- भाटो
Good- हाऊ
Shirt- बुसट
Shoes- बूट
There- वायडी
Here- अयाडी
धन्य हो म्हारा मालवा
मालवा माटी गहन गम्भीर,..डग डग रोटी पग पग नीर ! जय मध्यप्रदेश

गुरुवार, 31 जनवरी 2019

कविता। पानी

कविता
पानी
*
देखकर
मनुष्य की करनी
हो रही है मनुष्यता
पानी-पानी।
विस्मित है विधाता
कहाँ गया
इसकी आँखों का पानी।
कहीं अतिवृष्टि
कहीं अनावृष्टि
प्रकृति
दिला रही याद
छठी का दूध।
पानी पी-पीकर
कोस रहा इंसान
नियति को
ईश्वर को
एक-दूसरे को।
समझकर भी
नहीं चाहता समझना
कि उसकी हरकतों से
नाराज कुदरत
मार रही है उसे
पिला-पिलाकर पानी।
***

व्यंग्य लेख: काम तमाम

व्यंग्य लेख:
काम तमाम
संजीव
*
'मुझे राम से काम' जपकर कथनी-करनी एक रखनेवाले कबीर और तुलसी आज होते तो वर्तमान रामभक्तों की करतूतें देखकर क्या करते यह शोध का विषय है लेकिन इस पर शोध की नहीं जा सकती।
क्यों?
सब जानते हैं कि आजकल शोध की नहीं कराई जाती हैं और कराने के लिए पहले हो चुके शोधकार्यों से सामग्री निकालकर पुनर्व्यवस्थित कर ली जाती है। कुछ अति प्रतिभाशाली विभूतियाँ तकनीकी क्रांति का लाभ उठाने के कला जानती हैं। वे 'अंतर्जाल करे कमाल' का जयघोष किए बिना देशी-विदेशी जालस्थलों से संबंधित सामग्री जुटाने में जिस कौशल का परिचय देतीे हैं, उसे देख पाए तो ठग शिरोमणि नटवरलाल भी उन का शागिर्द हो जाए।

'काम से काम रखने' की सीख देनेवाले पुरखे नहीं रहे तो उनकी सीख ही क्यों रहे? अब तो बिना किसी काम हर किसी के फटे में टाँग अड़ाने का जमाना है। 'टाँग अड़ाने' भर से तो काम चलता नहीं, 'टाँग मारने' और कभी-कभी तो 'टाँग तोड़ने' की कला भी प्रदर्शित करनी पड़ती है, भले ही 'टाँग तुड़ाकर' वैसे ही लौटना पड़े जैसे बांग्लादेश और कारगिल से पाकिस्तान लौटा था।

हम हिंदुस्तानी वसुधैव कुटुंबकम्, विश्वैक नीड़म् आदि कहते ही नहीं, तहे-दिल से मानते भी हैं। तभी तो मेरा-तेरा का भेदभाव न कर जब जहाँ जो सामग्री मिले, उसे उपयोग कर अपना बना लेते हैं। किसी दूसरे की शोध सामग्री को हाथ न लगाकर हम उसे अछूत कैसे बना सकते हैं? हमारा संविधान छुआछूत को अपराध मानता है। हम इतने अधिक संविधान-परस्त हैं कि 'गरीब की लुगाई को गाँव की भौजाई' बनाने में पल भर की भी देर नहीं करते।

'राम से काम' हो तो उन्हें भगवान, मर्यादा पुरुषोत्तम और न जाने क्या-क्या कह देते हैं। काम न हो तो राम को भूलने में ही भलाई है। पिता के वचन का पूर्ति के लिए राज्य छोड़ने की जगह पिता को ही छोड़ देते हैं हम। हमें मालूम है ये सब रिश्ते-नाते छलना हैं,  हम रोज आरती में गाते हैं 'तुम बिन और न दूजा' फिर पिता के वचन से हमारा कोई नाता कैसे हो सकता है? राम जी यह सनातन सच भूल गए इसी लिए उन्हें 'न माया मिली न राम।'

हमने राम से सीख लेकर काम से काम रखने का जीवन-मंत्र अपना लिया है। अब 'सलिल तभी है राम का, रहे राम जब काम का' हमारा ध्येय-वाक्य है। इसलिए हम हर आम चुनाव के पहले राम का जीना हराम कर अलादीन के जिन्न की तरह, बावरी मस्जिद की बोतल से उसे बाहर निकाल लेते हैं और चुनाव जीतते ही निष्काम भाव से भुला देते हैं।

काम साधने की कला में श्याम राम से अधिक सफल हैं। इनके भक्तों को 'माया मिले न राम' उनके भक्तों के बनें हमेशा काम। ये अपने भक्त के जूठे बेर भी नहीं छोड़ते, वे अपने निर्धन भक्त को शाह (अमित न समझें) बना देते हैं।

काम साधने की कलाकारी करनेवाले कलाधर को सोलह हजार आठ सौ मिल गईं जबकि मर्यादा के लिए मरनेवाले की इकलौती भी नहीं  जी सकी। इसलिए 'खाने के दाँत और,  दिखाने के और' की बहुमूल्य विरासत को सहेजते-सम्हालते हमने राम को प्रचार में, श्याम को आचार में अपनाकर काम निकालने और काम बनाने का मौका भुनाने का मौका न चूककर काम साध लिया है

हमें भली-भाँति विदित है कि भारतीय जनता भोले शंकर की तरह मन ही मन काम को अपनाते हुए भी सार्वजनिक जीवन में काम के प्रकट होते ही उसे क्षार करने से नहीं चूकती। इससे दो काम बन जाते हैं। एक तो खुद निष्काम घोषित हो जाते हैं, दूसरे काम के अकाम होते ही रति तक पहुँचने की राह खुल जाती है।

'सबै भूमि गोपाल की यामें अटक कहाँ' इसलिए तमाम काम का काम तमाम करना ही जीवन का उद्देश्य बना लेने में ही समझदारी है। इतनी समझदारी हममें तो है,  आपमें न हो इसी में हमारी भलाई है। आप कोई गैर तो हैं नहीं। हमारी भलाई में ही आपकी भी भलाई है। हमें काम निकालने के काम आने में ही आपकी सार्थकता है। आप तमाम काम सधने की आस में दीजिए मत, और हमें करने दीजिए अगले पाँच साल तक अपना काम तमाम।
***
३१-१-२०१९

बुधवार, 30 जनवरी 2019

नवगीत

एक रचना:
जोड़े हाथ
*
गोली मारी
फिर समाधि पर
फूल चढ़ाकर
जोड़े हाथ।
*
दोषी मानो
या पूजो,
पर छलो न खुद को।
करो सियासत
जी भरकर
पर ठगो न उसको।
मंदिर-मस्जिद
तोड़-बनाओ
बिन श्रद्धा क्यों
नत हो माथ?
गोली मारी
फिर समाधि पर
फूल चढ़ाकर
जोड़े हाथ।
*
लोकतंत्र का
यही तकाजा
रंग-रंग के फूल संग हों।
सहमत हों या
रहें असहमत,
किंतु बाग में शत-शत रंग हों।
दिल हो दिल में
हाथ-हाथ में,
भले न हों पर
सब हों साथ।
गोली मारी
फिर समाधि पर
फूल चढ़ाकर
जोड़े हाथ।
*
क्यों हों मुक्त
एक दूजे से?
दिया दैव ने हमको बाँध।
श्वास न बाकी
रही अगर तो
मरघट तक भी देंगे काँध।
जिएँ याद में
एक-दूजे की
राष्ट्र-देव है
सबका नाथ।
गोली मारी
फिर समाधि पर
फूल चढ़ाकर
जोड़े हाथ।
**
संजीव
३०-१-२०१९

shringar tatank kakubh

कार्य शाला-
*
मिथिलेश कुमार:
आदरणीय नमन ।
आपका मार्गदर्शन चाहूँगा ।
१.क्या श्रंगार छंद और महाश्रंगार छन्द में कोई अंतर है ? मैंने महाश्रंगार छंद का विधान खोजने की कोशिश की,परंतु संतोषजनक कुछ मिला नहीं।
२.क्या किसी छंद में यदि १६-१४ की यति पर कोई सृजन हो और चारों पदों का चरणांत हो तो उसे ताटंक तो कहते ही हैं परंतु क्या उसे कुकुभ नहीं मान सकते ? क्योंकि न्यूनतम दो गुरुओं से चरणांत की अनिवार्यता तो वह पूर्ण कर ही रही है ?
उत्तर की अपेक्षा में ।
सादर ।
संजीव वर्मा सलिल

संजीव सलिल
श्रृंगार छंद
*
सोलह मात्रिक संस्कारी जातीय श्रृंगार छंद के आदि में ३ + २ तथा अंत में ३ मात्राओं का विधान है। लघु गुरु क्रम-बंधन नहीं है।
उदाहरण-
फहरती ध्वजा तिरंगी नित्य। सलामी देते वीर अनित्य।।
महाश्रृंगार नाम से कोई छंद मेरी जानकारी में नहीं है।

ताटंक छंद
*
सोलह-चौदह यतिमय दो पद, 'मगण' अंत में आया हो।
रचें छंद ताटंक कर्ण का, आभूषण लहराया हो।।

तीस मात्रिक तैथिक जातीय ककुभ छंद
*
सोलह-चौदह पर यति रखकर, अंत रखें गुरु दो-दो।
ककुभ छंद रच आनंदित हों, छंद फसल कवि बोदो।।
*
आटा और पानी मिला होने के शर्त पूरी होने पर भी पराठे को रोटी नहीं कहा जा सकता।
ताटंक और ककुभ में मात्रिक भर तथा यति समय होने पर भी पदांत का अंतर ही उन्हें अलग करता है।

ककुभ छंद

तीस मात्रिक तैथिक जातीय ककुभ छंद
*
सोलह-चौदह पर यति रखकर, अंत रखें गुरु दो-दो।
ककुभ छंद रच आनंदित हों, छंद फसल कवि बोदो।।



लेख : ऋतु-मौसम

निबंध:
ऋतुएँ और मौसम 
संजीव 
*
ऋतु एक छोटा कालखंड है जिसमें मौसम की दशाएँ एक खास प्रकार की होती हैं। यह कालखण्ड एक वर्ष को कई भागों में विभाजित करता है जिनके दौरान पृथ्वी के सूर्य की परिक्रमा के परिणामस्वरूप दिन की अवधि, तापमान, वर्षा, आर्द्रता इत्यादि मौसमी दशाएँ एक चक्रीय रूप में बदलती हैं। मौसम की दशाओं में वर्ष के दौरान इस चक्रीय बदलाव का प्रभाव पारितंत्र पर पड़ता है और इस प्रकार पारितंत्रीय ऋतुएँ निर्मित होती हैं यथा पश्चिम बंगाल में जुलाई से सितम्बर तक वर्षा ऋतु होती है, यानि पश्चिम बंगाल में जुलाई से अक्टूबर तक, वर्ष के अन्य कालखंडों की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है। तमिलनाडु में मार्च से जुलाई तक ग्रीष्म ऋतु होती है, इसका अर्थ है कि तमिलनाडु में मार्च से जुलाई तक के महीने साल के अन्य समयों की अपेक्षा गर्म रहते हैं। एक ॠतु = २ मास। ऋतु साैर और चान्द्र दाे प्रकार के हाेते हैं। धार्मिक कार्य में चन्द्र ऋतुएँ ली जाती हैं। 

ऋतु चक्र-
भारत में मुख्यतः छः ऋतुएँ मान्य हैं -१. वसन्त (Spring) चैत्र से वैशाख (वैदिक मधु और माधव) मार्च से अप्रैल, २. ग्रीष्म (Summer) ज्येष्ठ से आषाढ (वैदिक शुक्र और शुचि) मई से जून, ३. वर्षा (Rainy) श्रावन से भाद्रपद (वैदिक नभः और नभस्य) जुलाई से सितम्बर, ४, शरद् (Autumn) आश्विन से कार्तिक (वैदिक इष और उर्ज) अक्टूबर से नवम्बर, ५. हेमन्त (pre-winter) मार्गशीर्ष से पौष (वैदिक सहः और सहस्य) दिसम्बर से १५ जनवरी, ६. शिशिर (Winter) माघ से फाल्गुन (वैदिक तपः और तपस्य) १६ जनवरी से फरवरी।
ऋतू चक्र क्यों?
ऋतु परिवर्तन का कारण पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों ओर परिक्रमण और पृथ्वी का अक्षीय झुकाव है। पृथ्वी का डी घूर्णन अक्ष इसके परिक्रमा पथ से बनने वाले समतल पर लगभग ६६.५ अंश का कोण बनाता है जिसके कारण उत्तरी या दक्षिणी गोलार्धों में से कोई एक गोलार्द्ध सूर्य की ओर झुका होता है। यह झुकाव सूर्य के चारों ओर परिक्रमा के कारण वर्ष के अलग-अलग समय अलग-अलग होता है जिससे दिन-रात की अवधियों में घट-बढ़ का एक वार्षिक चक्र निर्मित होता है। यही ऋतु परिवर्तन का मूल कारण बनता है। विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ समय-समय पर छः ऋतुएं अपनी छटा बिखेरती हैं। प्रत्येक ऋतु दो मास की होती है।

चैत - बैसाख़ में बसंत ऋतु अपनी शोभा बिखेरती है। इस ऋतु को ऋतुराज की संज्ञा दी गयी है। धरती का सौंदर्य इस प्राकृतिक आनंद के स्रोत में बढ़ जाता है। रंगों का त्यौहार होली बसंत ऋतु के आनंद को दुगना कर देता है। हमारा जीवन चारों ओर के मोहक वातावरण को देखकर मुस्करा उठता है।
ज्येष्ठ -आषाण ( ग्रीष्म ऋतु) में सू्र्य उत्तरायण की ओर बढ़ता है। ग्रीष्म ऋतु प्राणी मात्र के लिये कष्टकारी अवश्य है पर तप के बिना पूर्णता या सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती। यदि गर्मी न पड़े तो हमें पका हुआ अन्न भी प्राप्त न हो।
श्रावण-भाद्र (वर्षा ऋतु) में मेघ गर्जन के साथ मोर नाचते हैं । तीज, रक्षाबंधन आदि त्यौहार इस ऋतु में मनाए जाते हैं।
आश्विन और कातिर्क के मास शरद ऋतु के मास हैं। शरद ऋतु प्रभाव की दृश्र्टि से बसंत ऋतु का ही दूसरा रूप है। वातावरण में स्वच्छता का प्रसार दिखा़ई पड़ता है। दशहरा और दीपावली  त्यौहार इसी ऋतु में आते हैं।
मार्गशीर्ष और पौष हेमन्त ऋतु के मास हैं। इस ऋतु में शरीर प्राय स्वस्थ रहता है। पाचन शक्ति बढ़ जाती है।
माघ - फाल्गुन शिशिर अर्थात पतझड़ के मास हैं। इसका आरंभ मकर संक्राति से होता है। इस ऋतु में प्रकृति पर बुढ़ापा छा जाता है। वृक्षों के पत्ते झड़ने लगते हैं। चारों ओर कुहरा छाया रहता है।
भारत को भूलोक का गौरव तथा प्रकृति का पुण्य स्थल कहा गया है। -ऋतुएँ  जीवन-फलक के भिन्न- भिन्न दृश्य हैं, जो जीवन में रोचकता, सरसता और पूर्णता लाती हैं।
ऋतु और राग- शिशिर - भैरव, बसंत - हिंडोल, ग्रीष्म - दीपक, वर्षा - मेघ, शरद - मलकन, हेमंत - श्री।
***

मंगलवार, 29 जनवरी 2019

लघुकथा- छाया

लघुकथा
छाया
*
गणतंत्र दिवस, देशभक्ति का ज्वार, भ्रष्टाचार के आरोपों से- घिरा अफसर, मत खरीदार चुनाव जीता नेता,  जमाखोर अपराधी, चरित्रहीन धर्माचार्य और घटिया काम कर रहा ठेकेदार अपना-अपना उल्लू सीधा कर तिरंगे को सलाम कर रहे थे।
आसमान में उड़ रहा तिरंगा निहार रहा था जवान और किसान को जो सलाम नहीं अपना काम कर रहे थे।
उन्हें देख तिरंगे का मन भर आया, आसमान से बोला "जब तक पसीने की हरियाली, बलिदान की केसरिया क्यारी समय चक्र के साथ है तब तक
मुझे कोई झुका नहीं सकता।

सहमत होता हुआ कपसीला बादल तीनों पर कर रहा था छाया।
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