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शुक्रवार, 4 अगस्त 2017

navgeet

नवगीत:
महका-महका
संजीव
*
महका-महका
मन-मंदिर रख सुगढ़-सलौना
चहका-चहका
आशाओं के मेघ न बरसे
कोशिश तरसे
फटी बिमाई, मैली धोती
निकली घर से
बासन माँजे, कपड़े धोए
काँख-काँखकर
समझ न आए पर-सुख से
हरसे या तरसे
दहका-दहका
बुझा हौसलों का अंगारा
लहका-लहका
एक महल, सौ यहाँ झोपड़ी
कौन बनाए
ऊँच-नीच यह, कहो खोपड़ी
कौन बताए
मेहनत भूखी, चमड़ी सूखी
आँखें चमकें
कहाँ जाएगी मंजिल
सपने हों न पराए
बहका-बहका
सम्हल गया पग, बढ़ा राह पर
ठिठका-ठहका
लख मयंक की छटा अनूठी
सज्जन हरषे.
नेह नर्मदा नहा नवेली
पायस परसे.
नर-नरेंद्र अंतर से अंतर
बिसर हँस रहे.
हास-रास मधुमास न जाए-
घर से, दर से.
दहका-दहका
सूर्य सिंदूरी, उषा-साँझ संग
धधका-दहका...
***
salil.sanjiv@gmil.com
#दिव्यनर्मदा
#divyanarmada.blogspot.com
#हिंदी_ब्लॉगर

गुरुवार, 3 अगस्त 2017

पुस्तक सूची भीलवाड़ा

 ॐ
    
 विश्व वाणी हिंदी संस्थान - शांति-राज पुस्तक संस्कृति अभियान 
समन्वय प्रकाशन अभियान 
समन्वय ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१  
***
 ll हिंदी आटा माढ़िए, उर्दू मोयन डाल l 'सलिल' संस्कृत सान दे, पूड़ी बने कमाल ll  
ll जन्म ब्याह राखी तिलक, गृह प्रवेश त्यौहार  'सलिल' बचा पौधे लगा, दें पुस्तक उपहार ll
***

प्रति- निदेशक / प्राचार्य, 
वेदांत इंटरनेशनल स्कूल, 
समीप सुखाड़िया स्टेडियम, 
गोविन्द नगर, भीलवाड़ा।  
चलभाष: ९२१४२३२४१५/२९०४५०२५ /५४१५६४। 
विषय: शांतिराज पुस्तकालय योजना के अंतर्गत पुस्तक प्रदाय। 
सन्दर्भ: आपका आवेदन दिनांक ५ जुलाई २-१७। 
महोदय, 
वंदे भारत-भारती। 
सहर्ष सूचित किया जाता है की आपके आवेदन पर विचार कर संस्थान-कार्यकारिणी द्वारा शांतिराज पुस्तकालय योजना के अन्तर्गत निशुल्क पुस्तक प्रदाय हेतु आपकी संस्था का चयन किया गया है। 
तदनुसार निम्नानुसार पुस्तकें भेजी जा रही हैं। इस योजना के नियम भी संलग्न हैं। 
आपसे अपेक्षा है कि यथाशीघ्र पुस्तकों की पावती भेजें।  पुस्तकों को अभिलेखों में दर्ज कर, पाठकों को उपलब्ध कराएं।  पुस्तकालय में यथास्थान 'विश्व वाणी हिंदी संस्थान - शांति-राज पुस्तक संस्कृति अभियान, समन्वय प्रकाशन अभियान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१' का बोर्ड या बैनर लगाएं। हर तीन माह में पाठकों को दी गयी पुस्तकों तथा पाठकों की संख्या सूचित करते रहें ताकि हम पुनः: पुस्तकें उपलब्ध कराने हेतु पुस्तकों के सदुपयोग से आश्वस्त हो सकें। पुस्तकालय के स्वामित्व तथा सञ्चालन दायित्व पूर्णत: आपका होगा। 
पुस्तक सूची- 
००१. काल है संक्रांति का, नवगीत संग्रह, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', ३००/- समन्वय प्रकाशन अभियान जबलपुर।
००२. मीत मेरे, कविता संग्रह, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', ८०/- समन्वय प्रकाशन अभियान जबलपुर। 
००३. कुरुक्षेत्र गाथा, प्रबंध काव्य, स्व. द्वारका प्रसाद खरे- आचार्य संजीव वर्मा ३००/- समन्वय प्रकाशन अभियान जबलपुर। 
००४. भूकंप के साथ जीना सीखें, तकनीकी, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', २०/- समन्वय प्रकाशन अभियान जबलपुर। 
००५. ऑफ़ एंड ऑन, अंग्रेजी ग़ज़ल, डॉ. अनिल जैन, ८०/- समन्वय प्रकाशन अभियान जबलपुर।
००६. यदा-कदा, काव्यानुवाद, डॉ. बाबू जोसेफ, ८०/- समन्वय प्रकाशन अभियान जबलपुर।
००७. काव्य मन्दाकिनी २००८, काव्य संग्रह, श्यामलाल उपाध्याय, ३२५/-, भारतीय वांग्मय पीठ कोलकाता।
००८. काव्य मन्दाकिनी २०१०, काव्य संग्रह, श्यामलाल उपाध्याय, ३२५/-, भारतीय वांग्मय पीठ कोलकाता। 
००९. देश का नसीब, क्षणिकाएं, रमेश मनोहरा, १००/-, मांडवी प्रकाशन गाजियाबाद। 
०१०. काँटों के बीच, गीत संग्रह, सूर्यदेव पाठक 'पराग', ७५/-, प्रत्यय प्रकाशन पटना। 
०११. दिमाग में बकरा युद्ध, व्यंग्य संग्रह, सुधारानी श्रीवास्तव, १००/-, विधि चेतना प्रकाशन जबलपुर। 
०१२. कौआ कान ले गया, व्यंग्य संग्रह, विवेक रंजन श्रीवास्तव, ६०/-, सुकीर्ति प्रकाशन कैथल। 
०१३. हँसोगे तो फँसोगे, हास्य कवितायें, राम सहाय वर्मा, ५०/-, मकरंद प्रकाशन नोएडा
०१४. इक्कीसवीं सदी की ओर, बाल नाटक, डॉ. शकुंतला चौधरी, २०/-, प्रसाद प्रकाशन जबलपुर। 
०१५. अनाम भामाशाह, कमलेश शर्मा, कहानी संग्रह, १००/-, साधु आश्रम होश्यारपुर। 
०१६. मुक्त उड़ान, हाइकु, कुमार गौरव अजितेंदु, १००/-, शुक्तिका प्रकाशन कोलकाता। 
०१७. उदगार, डॉ. कमला डोगरा, कवितायें, १५०/-, पहले पहल प्रकाशन भोपाल। 
०१८. पूजाग्नि, बृजेंद्र अग्निहोत्री, कवितायें, ९५/-, उमा प्रेस फतेहपुर। 
०१९. कमबख्त तीसरा बच्चा, व्यंग्य संग्रह, रविशंकर परसाई, ८०/-, कैलाश प्रकाशन पिपरिया। 
०२०. कलम मुखबिर है, व्यंग्य संग्रह, रविशंकर परसाई, ८०/-, कैलाश प्रकाशन पिपरिया।
२१. नीरव का संगीत, कवितायें डॉ. अग्निभ मुखर्जी, ८०/-, समन्वय प्रकाशन अभियान जबलपुर। 
०२२. गाँधी दर्शन, सुमन जेतली, ५०/-, लोक हितकारी परिषद् मुरादाबाद। 
०२३. दूध का दूध, समीक्षाएँ, सदाशिव कौतुक, १००/-, साहित्य संगम इंदौर। 
०२४. मानस के मोती, विवेचना, प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव 'विदग्ध', १५०/-, गणपति प्रकाशन दिल्ली। 
०२५. अंतर्ध्वनि, कवितायेँ, प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव 'विदग्ध', १५०/-, अर्पित प्रकाशन कैथल।
०२६. रघुवंशम, काव्यानुवाद, प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव 'विदग्ध', १५०/-, अर्पित प्रकाशन कैथल।
०२७. स्वयं प्रभा, पद्य, प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव 'विदग्ध', १५०/-, पाथेय प्रकाशन जबलपुर।  
०२८. बाल कौमुदी, कविता, प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव 'विदग्ध', ६०/-, विमल प्रकाशन जयपुर।
०२९. सुमन साधिका, बालगीत, प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव 'विदग्ध', १५०/-, ०/-, विमल प्रकाशन जयपुर
०३०. गहराती हुई धुंध,काव्य, डॉ. मणि शंकर प्रसाद, ८५ /-, अ. भा. भाषा साहित्य सम्मेलन पटना। 
०३१. हिंदी भाषा के विविध आयाम, निबंध, डॉ. राजेश्वरी शांडिल्य, २००/-, राज्य श्री प्रकाशन लखनऊ। 
०३२. साँझ का सूनापन, गद्य काव्य, डॉ. ॐप्रकाश हयारण 'दर्द', ५०/-, चंद्रकांता प्रकाशन झाँसी। 
०३३. आकाश के मोती, कविता संग्रह, अनिरुद्ध सिंह सेंगर, २५/-, राजेश्वरी प्रकाशन गुना। 
०३४. अंतर-संवाद, कहानी संग्रह, रजनी सक्सेना, १२०/-, जन परिषद् भोपाल।
०३५. तुम्हारे लिए, गद्य काव्य, डॉ. ॐ प्रकाश हयारण 'दर्द', १५०/-, चंद्रकांता प्रकाशन झाँसी
०३६. स्वर्णिम कलश, डॉ. जगदीश चंद्र चौरे, २५०/-, श्रेष्ठ प्रकाशन खंडवा। 
०३७. जादू शिक्षा का, नाटक, विवेकरंजन श्रीवास्तव, ९०/-, विमल प्रकाशन जयपुर। 
०३८. मेरे प्रिय व्यंग्य लेख, विवेक रंजन श्रीवास्तव, ७०/-, विमल प्रकाशन जयपुर। 
०३९. सद्विचार, छंटन, दामोदर भगेरिया,  १००/-, भगेरिया प्रकाशन जयपुर। 
०४०. शहर में सांप ज़िंदा है, कवितायें, संतोष शर्मा 'चहेता,  २०/-, स्मृति प्रकाशन शाजापुर। 
०४१. समीक्षा के अभिनव सोपान, डॉ. पशुपतिनाथ उपाध्याय, २००/-, शिव संकल्प साहित्य परिषद् होशंगाबाद। 
०४२. अनुभव सतसई, दोहा संग्रह, आत्म प्रकाश, १००/-, तक्षशिला अपार्टमेंट अहमदाबाद। 
०४३. वक़्त का शाहकार, कविताएँ,डॉ. रामप्रकाश 'अनंत', २५/-, आल्टरनेटिव पब्लिकेशन आगरा। 
०४४. निसर्ग, काव्य संग्रह, प्रमोद सक्सेना, ६०/-, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति भोपाल। 
०४५. हालात से दो-दो हाथ, ग़ज़ल संकलन, श्री राम मीणा, ५१/-, राष्ट्र भारती प्रकाशन नर्मदापुरम। 
०४६.तितलियाँ आसपास, तसलीस (त्रिपदी), अज़ीज़ अंसारी, १२०/-, सुर्खाब पब्लिकेशन उज्जैन।  
०४७. स्मृतियों के दीप, काव्य संकलन, राजेंद्र प्रसाद 'ऱाज, १५०/-, प्रेरणा साहित्य परिषद्, रहटवाड़ा, होशंगाबाद। 
०४८. तपिश, कविता संग्रह, लक्ष्मी ताम्रकार, ६०/-, श्री प्रकाशन दुर्ग। 
०४९. शब्दों के शिला खंड, कवितायें, जगदीश चंद्र शर्मा, ६०/-, हंसा प्रकाशन जयपुर।
०५०. परछाइयाँ, ग़ज़ल संग्रह, आत्म प्रकाश, ७०/-, तक्षशिला अपार्टमेंट अहमदाबाद।\
०५१. इंद्रधनुषी, कवितायेँ, शास्त्री राम गोपाल चतुर्वेदी 'निस्छल, १००/-, मनसा ग्राफिक्स भोपाल। 
०५२. उड़ान, कवितायें, प्रो. धर्मवीर साहनी, २००/-, अमृत प्रकाशन ग्वालियर।  
०५३. हास्य बम, कवितायेँ, इंजी.राजेश अरोरा 'शलभ', २५/-, डायमंड पॉकेट बुक्स दिल्ली। 
०५४. खटमल दर्शन, हास्य कुण्डलिया, केहरि एस. जी. पटेल, २०/-, मुक्त चेतना विचार मंच, बाँसा, हरदोई। 
०५५. लोक सतसई, दोहा संग्रह, शिव गुलाम सिंह 'केहरि', ४०/-, अक्षय प्रकाशन कानपुर। 
०५६. भावनामृत, काव्य, डिहुर राण निर्वाण, ६/-, संगम साहित्य समिति. मगरलोड छत्तीसगढ़। 
०५७. जपु जी साहिब,समूह सिख संगत जबलपुर। 
०५८. समाधान, उपन्यास, जी. वी.एस. ए. पाण्डुरंगइया, ४०/-, विजय प्रिंटर्स मेरठ।  
०५९. गायत्री सार, , शिव गुलाम सिंह 'केहरि', १/-, केहरि प्रकाशन तेंदुआ हरदोई
०६०. कटपीस, हास्य कविता, रासबिहारी पांडेय, ३०/-, सरयू प्रकाशन जबलपुर। 
०६१. शेयर खाता खोल सजनिया, हास्य कविता, प्रबोध कुमार गोविल, १८/-, राही सहयोग संस्थान वनस्थली। ०६२. तृप्ति, लघुकथा संग्रह, रविंद्र खरे 'अकेला', ४०/-, समीर प्रकाशन जबलपुर। 
०६३. काका के जूते, व्यंग्य लेख, रासबिहारी पांडेय, ३०/-, सरयू प्रकाशन जबलपुर। 
०६४. काव्य अर्चना, कवितायेँ, रत्न लाल वर्मा, २०/-, हमीरपुर हिमाचल प्रदेश। 
०६५. वेद काव्य, कवितायेँ, आचार्य ॐ प्रकाश, गाज़ियाबाद। 
०६६. वतन को नमन, कवितायेँ, प्रो. सी. बी. श्रीवास्तव 'विदग्ध', १५०/-, विकास प्रकाशन मंडला।  
०६७. अनुगुंजन, काव्य संग्रह, प्रो. सी. बी. श्रीवास्तव 'विदग्ध', १५०/-, विकास प्रकाशन मंडला।
०६८. बिजली का बदलता परिदृश्य, लोकोकपयोगी,  विवेक रंजन श्रीवास्तव, २००/-, विमल प्रकाशन जयपुर। 
०६९. मन का साकेत, गीत, जयप्रकाश श्रीवास्तव,  १५०/-, विभोर ग्राफिक्स भोपाल। 
०७०. पनघट पर गागर, काव्य, रामखिलावन गर्ग, १५०/-,  प्रकाशन जबलपुर। 
०७१. श्री गीता मानस, काव्यानुवाद, डॉ. उदयभानु तिवारी 'मधुकर', २७१/-, गुप्तेश्वर मंदिर जबलपुर। 
०७२. खोया हुआ शहर, काव्य, अमरनाथ मेहरोत्रा, १००/-, समीक्षा प्रकाशन दिल्ली। 
०७३. आक्रोश कवितायें, विवेक रंजन श्रीवास्तव 'विनम्र', ३५/-, विकास प्रकाशन मंडला। 
०७४. ईशाराधन, प्रार्थना संग्रह, प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव 'विदग्ध', २५/-, विकास  प्रकाशन मंडला 
७५. मुद्रा विज्ञान, डॉ. जयशंकर यादव-वीर राजेंद्र जैन, २०/-, महावीर इंटरनेशनल बेलगाम। 
०७६. आदित्य ह्रदयस्तोत्रम, काव्यानुवाद, डॉ. सतीश सक्सेना 'शून्य', ५/-, शानू पब्लिकेशन ग्वालियर।
०७७. सिक्ख इतिहास की झलक, मनमोहन दुबे, २०/-, खन्ना बुक डिपो जबलपुर।  
०७८. यादें, कवितायें, बृजेन्द्र अग्निहोत्री, ५०/-, फतेहपुर। 
०७९. अहल्याकरण, आर. सी. शर्मा 'आरसी', १०५/-, दीपशिखा प्रकाशन कोटा। 
०८०. हाशिये पर, क्षणिकाएँ, सुगन चंद्र जैन 'नलिन', १००/-, रूपसी प्रकाशन भोपाल। 
०८१. आँगन भर आकाश, गीत संग्रह, मधु प्रसाद, १००/-, श्री प्रकाशन कोलकाता। 
०८२. सतपुड़ा के स्वर, काव्य संग्रह, अब्बास खान संगदिल, ७५/-, समय प्रकाशन दिल्ली। 
०८३. म्हां सूं असी बणी, काव्य संग्रह, रामेश्वर शर्मा 'रामू भैया', ८०/-, हितैषी प्रकाशन कोटा। 
०८४. कल की कलकल, सुशीला अवस्थी, ४००/-, सर्जनात्मक संतुष्टि संस्थान जोधपुर। 
०८५. सदी के इन अंतिम दिनों में, कवितायें, राजेंद्र नागदेव, ९०/-, राजसूर्य प्रकाशन दिल्ली। 
०८६. अंतर्मन के साथ, काव्य, शिवनारायण जौहरी 'विमल', १५०/-, कैलाश पुस्तक सदन भोपाल। 
०८७. अब तक रही कुँवारी धूप, नवगीत, निर्मल शुक्ल, १५०/-, उत्तरायण प्रकाशन लखनऊ। 
०८८. नावक के तीर, दोहा संग्रह, अनंत राम मिश्र 'अनंत', १८०/-, भारती भाषा प्रकाशन दिल्ली। 
०८९. मैं सागर सी, हाइकु-ताँका संग्रह, मञ्जूषा मन, १४०/-, पोएट्री बुक बाजार लखनऊ। 
०९०. उपकार जनरल नॉलेज २०११, कुमार सुंदरम, १४५/-, उपकार प्रकाशन आगरा। 
०९१. ईयर बुक २०१०, पी. एस. ब्राइट, १८०/-, ब्राइट पब्लिकेशन दिल्ली। 
०९२. यथार्थ, कवितायें, देवेंद्र मिश्र, १००/-, श्री विष्णु प्रकाशन छिंदवाड़ा। 
०९३. माई अर्ली लाइफ, आत्म कथा, विंस्टन चर्चिल, कोलिन्स फोंटाना बुक्स
०९४. १९८४, उपन्यास, जोर्ज ओरवेल, सिग्नेट बुक्स
०९५. लेस मिजेरेब्लस, उपन्यास, विक्टर ह्यूगो, मैकमिलन
०९६. डेविड कोपर फील्ड, उपन्यास, चार्ल्स डिकेंस, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस
०९७. द लाइफ एंड डेथ ऑफ़ मेयर ऑफ़ कैस्टरब्रिज, थॉमस हार्डी, मैकमिलन
०९८. द माँउंटेंस ऑफ़ एडवेंचर्स, उपन्यास, स्निड ब्लायटन, कोलिन्स एंड कंपनी
०९९. लिविंग इंग्लिश स्ट्रक्चर, स्टेनर्ड एलन ओरिएंट लॉन्गमैन
१००. एक्सरसाइज़ इन इंग्लिश कंपोजीशन, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस
  

जबलपुर, १.८.२०१७                                                                                         (संजीव वर्मा 'सलिल')
सभापति विश्व वाणी हिंदी संस्थान 
                                                                                                २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन,
                                                                                                                        जबलपुर ४८२००१,  

बुधवार, 2 अगस्त 2017

pustakalaya

 ॐ
    
 विश्व वाणी हिंदी संस्थान - शांति-राज पुस्तक संस्कृति अभियान 
समन्वय प्रकाशन अभियान 
समन्वय ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१  
***
              ll हिंदी आटा माढ़िए, उर्दू मोयन डाल l 'सलिल' संस्कृत सान दे, पूड़ी बने कमाल ll  
ll जन्म ब्याह राखी तिलक, गृह प्रवेश त्यौहार  'सलिल' बचा पौधे लगा, दें पुस्तक उपहार ll
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शांतिराज पुस्तकालय योजना 
उद्देश्य: 
१. नयी पीढ़ी में हिंदी साहित्य पठन-पाठन को प्रोत्साहित करना। 
२. हिंदी तथा अन्य भाषाओं के बीच रचना सेतु बनाना। 
३. गद्य-पद्य की विविध विधाओं में रचनाकर्म हेतु मार्गदर्शन उपलब्ध करना। 
४. सत्साहित्य प्रकाशन में सहायक होना। 
५. पुस्तकालय योजना की ईकाईयों की गतिविधियों को दिशा देना। 
गतिविधि: 
१. १०० अथवा ११,००० रुपये मूल्य की पुस्तकें निशुल्क प्रदान की जायेंगी। 
२. संस्था द्वारा चाहे जाने पर की गतिविधियों के उन्नयन हेतु मार्गदर्शन प्रदान करना। 
३. संस्था के सदस्यों की रचना-कर्म सम्बन्धी कठिनाइयों का निराकरण करना। 
४. संस्था के सदस्यों को शोध, पुस्तक लेखन तथा प्रकाशन में मदद करना। 
५. संस्था के चाहे अनुसार उनके आयोजनों में सहभागी होना।   
पात्रता:
इस योजना के अंतर्गत उन्हीं संस्थाओं की सहायता की जा सकेगी जो- 
१. अपनी संस्था के गठन, उद्देश्य, गतिविधियों, पदाधिकारियों आदि की समुचित जानकारी देते हुए आवेदन करेंगी।
२. लिखित रूप से पुस्तकालय के नियमित सञ्चालन, पाठकों को पुस्तकें देने-लेने तथा सुरक्षित रखने का वचन देंगी। 
३. हर तीन माह में पाठकों को दी गयी पुस्तकों तथा पाठकों की संख्या तथा अपनी अन्य गतिविधियाँ संस्थान को सूचित करेंगी। उनकी सक्रियता की नियमित जानकारी से दुबारा सहायता हेतु पात्रता प्रमाणित होगी। 
४. 'विश्ववाणी हिंदी संस्थान-शान्ति-राज पुस्तक संस्कृति अभियान' से सम्बद्ध का बोर्ड या बैनर समुचित स्थान पर लगायेंगी। 
५. पाठकों के चाहने पर लेखन संबंधी गोष्ठी, कार्यशाला, परिचर्चा आदि का आयोजन अपने संसाधनों तथा आवश्यकता अनुसार करेंगी। 
आवेदन हेतु संपर्क सूत्र- आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', सभापति विश्ववाणी हिंदी संस्थान, २०४ विजय अपार्टमेंट नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१, चलभाष- ९४२५१ ८३२४४ / ७९९९५ ५९६१८।       

                                                                                             (संजीव वर्मा 'सलिल')
                                                                                                २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन,
                                                                                        जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२५१ ८३२४४ 
                                                                                                          salil.sanjiv@gmail.com
                                                                                           http://divyanarmada.blogspot.in
                                                                      facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil' 

मंगलवार, 1 अगस्त 2017

navekhan karyashala 1


नवलेखन कार्यशाला:
पाठ १.  
भाषा और बोली 

मुख से उच्चारित होनेवाले सार्थक शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह जिसके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है, भाषा कहलाता है। अपने मन की अनुभूतियाँ व्यक्त करने के लिए जिन ध्वनियों का प्रयोग किया जाता है उन्हें स्वन कहते हैं । इन ध्वनियों को व्यवस्थित रूप से प्रयोग करना ही भाषा का प्रयोग करना है। ध्वनियों की अभिव्यक्ति बोलकर की जाती है, इसलिए यह बोली है। बोली को वाणी तथा जुबान भी कहा जाता है। 
भाषा और बोली में अंतर: 
शब्दों को निरंतर बोलने पर उनकी अर्थवत्ता को बढ़ाने तथा विविध मनुष्यों की अभिव्यक्ति में एकरूपता लाने के लिए कुछ बनाये गए नियमों के अनुसार व्यवस्थित रूप से की गयी अभिव्यक्ति को भाषा कहते हैं। भाषा अपने बोलनेवालों की अभिव्यक्ति को एक सा रूप देती है। बोलनेवालों की शिक्षा, क्षेत्र, व्यवसाय, धर्म, पंथ, लिंग या विचार भिन्न होने के बाद भी भाषा में एकरूपता होती है।   
बोली सहज रूप से बोला जानेवाला वाचिक रूप है जबकि भाषा नियमानुसार बोला जानेवाला रूप। सामान्यत: ग्राम्य जन दैनिक जीवन में उपयोग होने वाले शब्दों को छोटे से छोटा तथा सरल कर बोलते हैं, यह बोली है। बोली के वाक्य छोटे और सरल होते हैं। बड़े तथा कठिन शब्दों को सरल कर लिया जाता है जैसे- मास्टर साहब को मास्साब, हॉस्पिटल को अस्पताल आदि। बोली पर बोलनेवाले के परिवेश, शिक्षा, व्यवसाय आदि की छाप होती है। विश्व विद्यालय के प्राध्यापक और किसान एक ही बात कहें तो उनके द्वारा चुने गये शब्दों में अंतर होना स्वाभाविक है। यही भाषा और बोली का अन्तर है। 
अक्षर / वर्ण  

शाब्दिक अर्थ में अक्षर का अर्थ है जिसका 'क्षरण' (घटाव या विनाश) न हो। दर्शन शास्त्र के अनुसार यह परमात्मा का लक्षण है। भाषा के सन्दर्भ में 'अक्षर' छोटे से छोटी या मूल ध्वनि है, जिसे बोला जाता है तथा व्यक्त करने के लिए विशेष संकेत या आकृति का उपयोग किया जाता है। वर्णों के समुदाय को ही वर्णमाला कहते हैं। हिन्दी वर्णमाला में ४४ वर्ण हैं। उच्चारण और प्रयोग के आधार पर हिन्दी वर्णमाला के दो भेद स्वर और व्यंजन हैं।  
स्वर- स्वतंत्र रूप से बोले जानेवाले और जो व्यंजनों को बोलने में में सहायक ध्वनियाँ 'स्वर' कहलाती हैं। ये संख्या में ग्यारह हैं: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।

उच्चारण के समय की दृष्टि से स्वर के तीन भेद किए गएहैं:
१. ह्रस्व स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में कम-से-कम समय लगता हैं उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं। ये चार हैं- अ, इ, उ, ऋ। इन्हें मूल स्वर भी कहते हैं।
२. दीर्घ स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दुगुना समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। ये हिन्दी में सात हैं- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
विशेष- दीर्घ स्वरों को ह्रस्व स्वरों का दीर्घ रूप नहीं समझना चाहिए। यहाँ दीर्घ शब्द का प्रयोग उच्चारण में लगने वाले समय को आधार मानकर किया गया है।
३. प्लुत स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता है उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं। प्रायः इनका प्रयोग दूर से बुलाने में किया जाता है। 
मात्रा- स्वरों के समयाधारित स्वरूप को मात्रा कहते हैं स्वरों की मात्राएँ निम्नलिखित हैं:
स्वर       अ     आ       इ      ई      उ      ऊ     ए      ऐ    ओ     औ   ऋ
मात्राएँ     -       ा     ि      ी     ु     ू       े     ै      ो     ौ     ृ 
मात्रा भार १      २       १        २     १       २       २     २      २      २      १   
शब्द      हम   नाम   किन   खीर  गुम   घूम    बेर   तैर    शोर    नौ     कृष  
अ वर्ण (स्वर) की कोई मात्रा नहीं होती। 
व्यंजन- जिन ध्वनियों / वर्णों के पूर्ण उच्चारण के लिए स्वरों की सहायता ली जाती है वे व्यंजन कहलाते हैं।  व्यंजन बिना स्वरों की सहायता के बोले ही नहीं जा सकते। ये संख्या में ३३ हैं। इसके निम्नलिखित तीन भेद हैं:
१. स्पर्श- इन्हें पाँच वर्गों में रखा गया है और हर वर्ग में पाँच-पाँच व्यंजन हैं। हर वर्ग का नाम पहले वर्ग के अनुसार रखा गया है जैसे: कवर्ग- क् ख् ग् घ् ड़्, चवर्ग- च् छ् ज् झ् ञ्, टवर्ग- ट् ठ् ड् ढ् ण् (ड़् ढ्), तवर्ग- त् थ् द् ध् न् तथा पवर्ग- प् फ् ब् भ् म्।  
२. अंतःस्थ-  य् र् ल् व्। 
३. ऊष्म- श् ष् स् ह्। 
संयुक्त व्यंजन- जहाँ  दो अथवा दो से अधिक व्यंजन मिल जाते हैं वे संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं। देवनागरी लिपि में संयोग के बाद रूप-परिवर्तन हो जाने के कारण इन तीन को गिनाया गया है। ये दो-दो व्यंजनों से मिलकर बने हैं। जैसे-क्ष=क्+ष अक्षर, ज्ञ=ज्+ञ ज्ञान, त्र=त्+र नक्षत्र कुछ लोग क्ष् त्र् और ज्ञ् को भी हिन्दी वर्णमाला में गिनते हैं, पर ये संयुक्त व्यंजन हैं। अतः इन्हें वर्णमाला में गिनना उचित प्रतीत नहीं होता।
व्यंजनों का अपना स्वरूप निम्नलिखित हैं:
क् च् छ् ज् झ् त् थ् ध् आदि।
अ लगने पर व्यंजनों के नीचे का (हल) चिह्न हट जाता है। तब ये इस प्रकार लिखे जाते हैं:
क च छ ज झ त थ ध आदि।
अनुस्वार- इसका प्रयोग पंचम वर्ण के स्थान पर होता है। इसका चिन्ह अक्षर के ऊपर बिंदी (ं) है। जैसे- सम्भव=संभव, सञ्जय=संजय, गड़्गा=गंगा।
विसर्ग- इसका उच्चारण ह् के समान होता है। इसका चिह्न अक्षर के बगल में एक के ऊपर एक दो बिंदी (ः) है। जैसे-अतः, प्रातः।
अनुनासिक- जब किसी स्वर का उच्चारण नासिका और मुख दोनों से किया जाता है तब उसके ऊपर चंद्रबिंदु (ँ) लगा दिया जाता है। यह अनुनासिक कहलाता है। जैसे-हँसना, आँख। हिन्दी वर्णमाला में ११ स्वर तथा ३३ व्यंजन गिनाए जाते हैं, परन्तु इनमें ड़्, ढ़् अं तथा अः जोड़ने पर हिन्दी के वर्णों की कुल संख्या ४८ हो जाती है।
हलंत- जब कभी व्यंजन का प्रयोग स्वर से रहित किया जाता है तब उसके नीचे एक तिरछी रेखा (्) लगा दी जाती है। यह रेखा हल कहलाती है। हलयुक्त व्यंजन हलंत वर्ण कहलाता है। जैसे-विद्यां।
वर्ण का उच्चारण स्थल- मुख के जिस भाग से जिस वर्ण का उच्चारण होता है उसे उस वर्ण का उच्चारण स्थान कहते हैं।
क्रमवर्णउच्चारणश्रेणी
१.अ आ क् ख् ग् घ् ड़् ह्विसर्ग कंठ और जीभ का निचला भागकंठस्थ
२.इ ई च् छ् ज् झ् ञ् य् शतालु और जीभतालव्य
३.ऋ ट् ठ् ड् ढ् ण् ड़् ढ़् र् ष्मूर्धा और जीभमूर्धन्य
४.त् थ् द् ध् न् ल् स्दाँत और जीभदंत्य
५.उ ऊ प् फ् ब् भ् मदोनों होंठओष्ठ्य
६.ए ऐकंठ तालु और जीभकंठतालव्य
७.ओ औकंठ जीभ और होंठकंठोष्ठ्य
८.व्दाँत जीभ और होंठदंतोष्ठ्य 
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muktak

मुक्तक:
दूर रहकर भी जो मेरे पास है.
उसी में अपनत्व का आभास है..
जो निपट अपना वही तो ईश है-
क्या उसे इस सत्य का अहसास है
*
भ्रम तो भ्रम है, चीटी हाथी, बनते मात्र बहाना.
खुले नयन रह बंद सुनाते, मिथ्या 'सलिल' फ़साना..
नयन मूँदकर जब-बज देखा, सत्य तभी दिख पाया-
तभी समझ पाया माया में कैसे सत्पथ पाना..
*
भीतर-बाहर जाऊँ जहाँ भी, वहीं मिले घनश्याम.
खोलूँ या मूंदूं पलकें, हँसकर कहते 'जय राम'..
सच है तो सौभाग्य, अगर भ्रम है तो भी सौभाग्य-
सीलन, घुटन, तिमिर हर पथ दिखलायें उमर तमाम..
*
l'******
१-८-२०१६
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kavita

आज नाग पन्चमी सुभद्रा जयन्ती
*
नाग पंचमी पर विधना ने विष हरने तुमको भेजा
साथ महादेवी ने देकर कहाः 'सौख्य मेरा लेजा'
.
'वीरों के वसंत' की गाथा, 'मर्दानी' की कथा कही
शिशुओं को घर छोड़ जेल जा, मन ही मन थीं खूब दहीं
.
तीक्ष्ण लेखनी से डरता था राज्य फिरंगी, भारत माँ
गर्व किया करती थी तुम पर, सत्याग्रह में फूँकी जां
.
वज्र सरीखे माखन दादा, कुसुम सदृश केशव का संग
रामानुज नर्मदा भवानी कवि पुंगव सुन दुनिया दंग
.
देश हुआ आजाद न तुम गुटबाजों को किन्चित भायीं
गाँधी-पथ की अनुगामिनी तुम, महलों से थीं टकरायीं
.
शुभाशीष सरदार ने दिया, जनसेवा की राह चलीं
निहित स्वार्थरत नेताओं को तनिक न भायीं खूब खलीं
.
आम आदमी की वाणी बन, दीन दुखी की हरने पीर
सत्ता को प्रेरित करने सक्रिय थीं मन में धरकर धीर
.
नियति नटी ने देख तुम्हारी कर्मठता यम को भेजा
सुरपुर में सत्याग्रहचाहा कहा- 'सुभद्रा को ले आ'
.
जनपथ पर चलनेवाली ने राजमार्ग पर प्राण तजे
भू ने अश्रु बहाये, सुरपुर में थे स्वागत द्वार सजे
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खुद गोविन्द द्वारिका तुम पर अश्रु चढ़ाकर रोये थे
अगणित जनगण ने निज नयना, खोकर तुम्हें भिगोये थे
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दीप प्रेरणा का अनुपम तुम, हम प्रकाश अब भी पाते
मन ही मन करते प्रणाम शत, विष पीकर भी जी जाते
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१-८-२०१६
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