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शनिवार, 24 जून 2017

ghanakshari

 
घनाक्षरी
- संजीव 'सलिल'
०३. फूँकता कवित्त प्राण, डाल मुरदों में जान, दीप बाल अंधकार, ज़िन्दगी का हरता।     
      नर्मदा निनाद सुनो,सच की ही राह चुनो, जीतता सुधीर वीर, पीर पीर सहता।।
      'सलिल'-प्रवाह पैठ, आगे बढ़ नहीं बैठ, सागर है दूर पूर, दूरी हो निकटता।
      आना-जाना खाली हाथ, कौन कभी देता साथ, हो अनाथ भी सनाथ, प्रभु दे निकटता।।  

०४. गीत-ग़ज़ल गाइये / डूबकर सुनाइए / त्रुटि नहीं छिपाइये / सीखिये-सिखाइए
      शिल्प-नियम सीखिए / कथ्य समझ रीझिए / भाव भरे शब्द चुन / लय भी बनाइए
      बिम्ब नव सजाइये / प्रतीक भी लगाइये / अलंकार कुछ नये / प्रेम से सजाइए
      वचन-लिंग, क्रिया रूप / दोष न हों देखकर / आप गुनगुनाइए / वाह-वाह पाइए  
.
०५. कौन किसका है सगा? / किसने ना दिया दगा? / फिर भी प्रेम से पगा / जग हमें दुलारता
      जो चला वही गिरा / उठ हँसा पुन: बढ़ा / आदि-अंत सादि-सांत / कौन छिप पुकारता?
      रात बनी प्रात नित / प्रात बने रात फिर / दोपहर कथा कहे / साँझ नभ निहारता
      काल-चक्र कब रुका? / सत्य कहो कब झुका? /मेहनती नहीं चुका / धरांगन बुहारता
.
०६. न चाहतें, न राहतें / न फैसले, न फासले / दर्द-हर्ष मिल सहें / साथ-साथ हाथ हों
      न मित्रता, न शत्रुता / न वायदे, न कायदे / कर्म-धर्म नित करें / उठे हुए माथ हों 
      न दायरे, न दूरियाँ / रहें न मजबूरियाँ / फूल-शूल, धूप-छाँव / नेह नर्मदा बनें
      गिर-उठें, बढ़े चलें / काल से विहँस लड़ें / दंभ-द्वेष-छल मिटें / कोशिशें कथा बुनें

०७. चाहते रहे जो हम / अन्य सब करें वही / हँस तजें जो भी चाह / उनके दिलों में रही 
      मोह वासना है यह / परार्थ साधना नहीं / नेत्र हैं मगर मुँदे  / अग्नि इसलिए दही 
      मुक्त हैं मगर बँधे / कंठ हैं मगर रुँधे / पग बढ़े मगर रुके / सर उठे मगर झुके 
      जिद्द हमने ठान ली / जीत मन ने मान ली / हार छिपी देखकर / येन-केन जय गही 
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सावन में झूम-झूम, डालों से लूम-लूम,
                                       झूला झूल दुःख भूल, हँसिए हँसाइये. 
एक दूसरे की बाँह, गहें बँधें रहे चाह,
                                         एक दूसरे को चाह, कजरी सुनाइये..
दिल में रहे न दाह, तन्नक पले न डाह,
                                          मन में भरे उछाह, पेंग को बढ़ाइए.
राखी की है साखी यही, पले प्रेम-पाखी यहीं,
                                भाई-भगिनी का नाता, जन्म भर निभाइए..
*

 

बागी थे हों अनुरागी, विरागी थे हों सुहागी,
                                     कोई भी न हो अभागी, दैव से मनाइए.
सभी के माथे हो टीका, किसी का न पर्व फीका,
                                   बहनों का नेह नीका, राखी-गीत गाइए..
कलाई रहे न सूनी, राखी बाँध शोभा दूनी,
                                   आरती की ज्वाल धूनी, अशुभ मिटाइए.
मीठा खाएँ मीठा बोलें, जीवन में रस घोलें,
                                        बहना के पाँव छूलें, शुभाशीष पाइए..
*

 

बंधन न रास आये, बँधना न मन भाये,
                                       स्वतंत्रता ही सुहाये, सहज स्वभाव है.
निर्बंध अगर रहें, मर्याद को न गहें,
                                   कोई किसी को न सहें, चैन का अभाव है..
मना राखी नेह पर्व, करिए नातों पे गर्व,
                                        निभायें संबंध सर्व, नेह का निभाव है.
बंधन जो प्रेम का हो, कुशल का क्षेम का हो,
                                    धरम का नेम हो, 'सलिल' सत्प्रभाव है..
*

 

संकट में लाज थी, गिरी सिर पे गाज थी,
                                        शत्रु-दृष्टि बाज थी, नैया कैसे पार हो?
करनावती महारानी, पूजतीं माता भवानी,
                                         शत्रु है बली बहुत, देश की न हार हो..
राखी हुमायूँ को भेजी, बादशाह ने सहेजी,
                                       बहिन की पत राखी, नेह का करार हो.
शत्रु को खदेड़ दिया, बहिना को मान दिया,
                                     नेह का जलाया दिया, भेंट स्वीकार हो..
*

 

महाबली बलि को था, गर्व हुआ संपदा का,
                                   तीन लोक में नहीं है, मुझ सा कोई धनी.
मनमानी करूँ भी तो, रोक सकता न कोई,
                                    हूँ सुरेश से अधिक, शक्तिवान औ' गुनी..
महायज्ञ कर दिया, कीर्ति यश बल लिया,
                                      हरि को दे तीन पग, धरा मौन था गुनी.
सभी कुछ छिन गया, मुख न मलिन हुआ,
                                       हरि की शरण गया, सेवा व्रत ले धुनी..

 

बाधा दनु-गुरु बने, विपद मेघ थे घने,
                                      एक नेत्र गँवा भगे, थी व्यथा अनसुनी.
रक्षा सूत्र बाँधे बलि, हरि से अभय मिली,
                                     हृदय की कली खिली, पटकथा यूँ बनी..
विप्र जब द्वार आये, राखी बांध मान पाये,
                                     शुभाशीष बरसाये, फिर न हो ठनाठनी.
कोई किसी से न लड़े, हाथ रहें मिले-जुड़े,
                                       साथ-साथ हों खड़े, राखी मने सावनी..
 *
कल : 
 
कज्जल के कूट पर दीप शिखा सोती है कि, श्याम घन मंडल मे दामिनी की धारा है ।

 भामिनी के अंक में कलाधर की कोर है कि, राहु के कबंध पै कराल केतु तारा है ।
 

शंकर कसौटी पर कंचन की लीक है कि, तेज ने तिमिर के हिये मे तीर मारा है ।




काली पाटियों के बीच मोहनी की माँग है कि, ढ़ाल पर खाँड़ा कामदेव का दुधारा है ।



काले केशों के बीच सुन्दरी की माँग की शोभा का वर्णन करते हुए कवि ने ८ उपमाएँ दी हैं.-

१. काजल के पर्वत पर दीपक की बाती.
२. काले मेघों में बिजली की चमक.
३. नारी की गोद में बाल-चन्द्र.
४. राहु के काँधे पर केतु तारा.
५. कसौटी के पत्थर पर सोने की रेखा.
६. काले बालों के बीच मन को मोहने वाली स्त्री की माँग.
७. अँधेरे के कलेजे में उजाले का तीर.
८. ढाल पर कामदेव की दो धारवाली तलवार.

कबंध=धड़. राहु काला है और केतु तारा स्वर्णिम, कसौटी के काले पत्थर पर रेखा खींचकर सोने को पहचाना जाता है. ढाल पर खाँडे की चमकती धार. यह सब केश-राशि के बीच माँग की दमकती रेखा का वर्णन है.

*****
आज : संजीव


संसद के मंच पर, लोक-मत तोड़े दम,  राजनीति सत्ता-नीति,  दल-नीति कारा है ।

 


नेताओं को निजी हित, साध्य- देश साधन है, मतदाता घुटालों में, घिर बेसहारा है ।
 


 

'सलिल' कसौटी पर, कंचन की लीक है कि, अन्ना-रामदेव युति, उगा ध्रुवतारा है।
 

 

स्विस बैंक में जमा जो, धन आये भारत में, देर न करो भारत, माता ने पुकारा है।


 

लाख़ मतभेद रहें, पर मनभेद न हों, भाई को हमेशा गले, हँस के लगाइए|

लात मार दूर करें, दशमुख सा अनुज, शत्रुओं को न्योत घर, कभी भी न लाइए|

भाई नहीं दुश्मन जो, इंच भर भूमि न दें, नारि-अपमान कर, नाश न बुलाइए|

छल-छद्म, दाँव-पेंच, दन्द-फंद अपना के, राजनीति का अखाड़ा घर न बनाइये||
*
जिसका जो जोड़ीदार, करे उसे वही प्यार, कभी फूल कभी खार, मन-मन भाया है|

पास आये सुख मिले, दूर जाये दुःख मिले, साथ रहे पूर्ण करे, जिया हरषाया है|

चाह-वाह-आह-दाह, नेह नदिया अथाह, कल-कल हो प्रवाह, डूबा-उतराया है|

गर्दभ कहे गधी से, आँख मूँद - कर - जोड़, देख तेरी सुन्दरता चाँद भी लजाया है||
(श्रृंगार तथा हास्य रस का मिश्रण)
*
शहनाई गूँज रही, नाच रहा मन मोर, जल्दी से हल्दी लेकर, करी मनुहार है|

आकुल हैं-व्याकुल हैं, दोनों एक-दूजे बिन, नया-नया प्रेम रंग, शीश पे सवार है|

चन्द्रमुखी, सूर्यमुखी, ज्वालामुखी रूप धरे, सासू की समधन पे, जग बलिहार है|

गेंद जैसा या है ढोल, बन्ना तो है अनमोल, बन्नो का बदन जैसे, क़ुतुब मीनार है||
*
ये तो सब जानते हैं, जान के न मानते हैं, जग है असार पर, सार बिन चले ना|

मायका सभी को लगे - भला, किन्तु ये है सच, काम किसी का भी, ससुरार बिन चले ना|

मनुहार इनकार, इकरार इज़हार, भुजहार, अभिसार, प्यार बिन चले ना|

रागी हो, विरागी हो या हतभागी बड़भागी, दुनिया में काम कभी, 'नार' बिन चले ना||

(श्लेष अलंकार वाली अंतिम पंक्ति में 'नार' शब्द के तीन अर्थ ज्ञान, पानी और स्त्री लिये गये हैं.)
*
बुन्देली  


जाके कर बीना सजेबाके दर सीस नवे, मन के विकार मिटेनित गुनगाइए 


ज्ञानबुधिभासाभावतन्नक  हो अभावबिनत रहे सुभावगुननसराहिए|


किसी से नाता लें जोड़कब्बो जाएँ नहीं तोड़फालतू  करें होड़नेह सोंनिबाहिए 


हाथन तिरंगा थामकरें सदा राम-राम, 'सलिलसे हों  वामदेस-वारीजाइए||


छत्तीसगढ़ी


अँचरा मा भरे धानटूरा गाँव का किसानधरती मा फूँक प्राणपसीनाबहावथे 


बोबरा-फार बनावबासी-पसिया सुहाव,  महुआ-अचार खावपंडवानीभावथे|


बारी-बिजुरी बनायउरदा के पीठी भाय, थोरको  ओतियायटूरीइठलावथे 


भारत के जय बोलमाटी मा करे किलोलघोटुल मा रस घोलमुटियारीभावथे||  


निमाड़ी


गधा का माथा का सिंगजसो नेता गुम हुयोगाँव बटोs वोs,उल्लूकी दुम हुयो|  

मनखको सुभाsव छेनहीं सहे अभाव छे, हमेसs खांव-खांव छेआपsसे तुम हुयो|

टीला पाणी झाड़s नद्दीहाय खोद रएs पिद्दी, भ्रष्टसरsकाररद्दीपतानामालुम हुयो
 
'सलिलआँसू वादsलाधsरा कहे खाद ला, मिहsनतका स्वाद पादूरsमाsतम हुयो||

मालवी:
दोहा:

भणि ले म्हारा देस कीसबसे राम-रहीम|

जल ढारे पीपल तलेअँगना चावे नीम|| 

कवित्त

शरद की चांदणी सेरात सिनगार करे, बिजुरी गिरे धरा पेफूल नभ सेझरे|

आधी राती भाँग बाटीदिया की बुझाई बाती, मिसरी-बरफ़ घोल्यो,नैना हैं भरे-भरे|

भाभीनी जेठानी रंगेकाकीनी मामीनी भीजें, सासू-जाया नहीं आया,दिल धीर  धरे|

रंग घोल्यो हौद भरबैठी हूँ गुलाल धर, राह में रोके हैं यारहायटारे टरे||

 राजस्थानी
जीवण का काचा गेलाजहाँ-तहाँ मेला-ठेला, भीड़-भाड़ ठेलं-ठेलामोड़तरां-तरां का|

ठूँठ सरी बैठो काईं?, चहरे पे आई झाईं, खोयी-खोयी परछाईंजोड़ तरां-तरां का|

चाल्यो बीज बजारा रे?, आवारा बनजारा रे?, फिरता मारा-मारा रे?,होड़ तरां-तरां का||

नाव कनारे लागैगीसोई किस्मत जागैगी, मंजिल पीछे भागेगीतोड़तरां-तरां का||

हिन्दी+उर्दू

दर्दे-दिल पीरो-गमकिसी को दिखाएँ मत, दिल में छिपाए रखेंहँस-मुस्कुराइए|

हुस्न के  ऐब देखेंदेखें भी तो नहीं लेखें, दिल पे लुटा के दिलवारी-वारी जाइए|

नाज़ो-अदा नाज़नीं केदेख परेशान  हों, आशिकी की रस्म है किसिरभी मुड़ाइए|

चलिए  ऐसी चालफालतू मचे बवाल, कोई  करें सवालनखरेउठाइए||

भोजपुरी

चमचम चमकलचाँदनी सी झलकल, झपटल लपकलनयन कटरिया|

तड़पल फड़कलधक्-धक् धड़कल, दिल से जुड़ल दिलगिरलबिजुरिया|

निरखल परखलरुक-रुक चल-चल, सम्हल-सम्हल पगधरलगुजरिया|

छिन-छिन पल-पलपड़त नहीं रे कल, मचल-मचल चलचपलसंवरिया||

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घनाक्षरी: वर्णिक छंद, चतुष्पदी, हर पद- ३१ वर्ण, सोलह चरण- 
हर पद के प्रथम ३ चरण ८ वर्ण, अंतिम ४ चरण ७ वर्ण.  

******

घनाक्षरी / मनहरण कवित्त
... झटपट करिए
संजीव 'सलिल'
*
लक्ष्य जो भी वरना हो, धाम जहाँ चलना हो,
काम जो भी करना हो, झटपट करिए.
तोड़ना नियम नहीं, छोड़ना शरम नहीं,
मोड़ना धरम नहीं, सच पर चलिए.
आम आदमी हैं आप, सोच मत चुप रहें,
खास बन आगे बढ़, देशभक्त बनिए-
गलत जो होता दिखे, उसका विरोध करें,
'सलिल' न आँख मूँद, चुपचाप सहिये.
*
छंद विधान: वर्णिक छंद, आठ चरण,
८-८-८-७ पर यति, चरणान्त लघु-गुरु.
*********
३०-५-२०११

samiksha


कृति चर्चा: 

'पराई जमीन पर उगे पेड़' मन की तहें टटोलती कहानियाँ 
चर्चाकार: आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
[कृति विवरण: 'पराई जमीन पर उगे पेड़, कहानी संग्रह, विनीता राहुरीकर, प्रथम संस्करण, २०१३, आकार २२ से. मी. x १४ से. मी., आवरण बहुरंगी, सजिल्द जैकेट सहित,  पृष्ठ १७८, मूल्य २५०/-, अरुणोदय प्रकाशन, ९ न्यू मार्किट, तात्या टोपे नगर भोपाल, ९१७५५२६७३६२४]
*
                मनुष्य के विकास के साथ ही कहने की कला का विकास हुआ कहने की कला ने विज्ञान बनकर साहित्य की कई विधाओं को जन्म दिया। गद्य में कहानी, भाषण, लघुकथा, परिचर्चा, साक्षात्कार, व्यंग्य, संस्मरण, चर्चा, संगोष्ठी आदि और पद्य में गीत, भजन आदि कहने की कला के विधिवत विकास के ही परिणाम हैं। कहानी वह जो कही जाए। कही वह जाए जो कहने योग्य हो।  कहने योग्य वह जो किसी का शुभ करे। सत्य-शिव-सुन्दर की प्रस्तुति भारतीय वांग्मय का आदर्श है। साम्यवादी यथार्थवादी विडंबनाओं और विसंगतियों या पाश्चात्य विलासितापूर्ण लेखन को भारतीय मनीषा ने कभी भी नहीं सराहा। भारत में काम पर भी लिखा गया तो विज्ञान सम्मत तरीके से शालीनतापूर्वक। सबके मंगल भाव की कामना कर लिखा जाए तो उसके पाठक या श्रोता को अपने जीवन पथ में जाने-अनजाने आचरण को संयमित-संतुलित करने में सहायता मिल जाती है। सोद्देश्य लेखन की सकारात्मक ऊर्जा नकारात्मक ऊर्जा का शमन करती है।  
                युवा कहानीकार विनीता राहुरीकर के कहानी संग्रह 'पराई ज़मीं पर उगे पेड़' को पढ़ना जिंदगी की रेल में विविध यात्रियों से मिलते-बिछुड़ते हुए उनके साथ घटित प्रसंगों का साक्षी बनने जैसा है। पाठक के साथ न घटने पर भी कहानी के पात्रों के साथ घटी घटनाएँ पाठक के अंतर्मन को प्रभावित करती हैं। वह तटस्थ रहने का प्रयास करे तो भी उसकी संवेदना किसी पात्र के पक्ष और किसी अन्य पात्र के विरुद्ध हो जाती है। कभी सुख-संतोष, कभी दुःख-आक्रोश, कभी विवशता, कभी विद्रोह की लहरों में तैरता-डूबता पाठक-मन विनीता के कहानीकार की सामर्थ्य का लोहा मानता है। 
                विनीता जी की इन कहानियों में न तो लिजलिजी भावुकता है, न छद्म स्त्री विमर्श। ये कहानियाँ तथाकथित नारी अधिकारों की पैरोकारी करते नारों की तरह नहीं हैं। इनमें गलत से जूझकर सुधारने की भावना तो है किन्तु असहमति को कुचलकर अट्टहास करने की पाशविक प्रवृत्ति सिरे से नहीं है। इन कहानियों के पात्र सामान्य हैं। असामान्य परिस्थितियों में भी सामान्य रह पाने का पौरुष जीते पात्र जमीन से जुड़े हैं। पात्रों की अनुभूतियों और प्रतिक्रियाओं के आधार पर पाठक उन्हें अपने जीवन में देख-पहचान सकता है 
                विनीता जी का यह प्रथम कहानी संकलन है।  उनके लेखन में ताजगी है। कहानियों के नए कथानक, पात्रों की सहज भाव-भंगिमा, भाषा पर पकड़, शब्दों का सटीक उपयोग कहानियों को पठनीय बनाता है। प्राय: सभी कहानियाँ सामाजिक समस्याओं से जुडी हुई हैं। समाज में अपने चतुर्दिक जो घटा है, उसे देख-परखकर उसके सकारात्मक-नकारात्मक पक्षों को उभारते हुए अपनी बात कहने की कला विनीता जी में है। विवेच्य संग्रह में १६ कहानियाँ हैं।  कृति की शीर्षक कहानी 'पराई ज़मीं पर उगे पेड़' में पति-पत्नी के जीवन में प्रवेश करते अन्य स्त्री-पुरुषों के कारण पनपती दूरी, असुरक्षा फिर वापिस अपने सम्बन्ध-सूत्र में बँधने और उसे बचाने के मनोभाव बिम्बित हुए हैं। वरिष्ठ कथाकार मालती जोशी ने इस कहानी में प्रयुक्त प्रतीक के बार-बार दूहराव से आकर्षण खोने का तथ्य ठीक ही इंगित किया है। अपने सम्बन्ध को स्थायित्व देने और असुरक्षा से मुक्त होने के लिए संतति की कामना करना आदर्श भले ही न हो यथार्थ तो है ही। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार शिशु के जन्म से दाम्पत्य को स्थायित्व मिलता है।
                वैभवशाली पति को ठुकरानेवाली 'ठकुराइन' दिवंगता सौतन के पुत्र को अपनाकर गरीबी में किन्तु स्वाभिमानपूर्वक जीवन गुजारती है। यह चरित्र असाधारण है। 'वट पूजा' कहानी में एक दूसरे को 'स्पेस' देने के मुगालते में दूर होते जाने की मरीचिका, अन्यों के प्रति आकर्षण तथा समय रहते अपने नैकट्य स्थापित कर संबंध को पुनर्जीवित करने की ललक स्पन्दित है। अपनी जड़ों से जुड़े रहने की चाहत में अतीतजीवी होकर जड़ होते बुजुर्गो, उनके मोह में अपने भविष्य को सँवारने में चूकते या भविष्य को संवारने में कर्तव्य निभाने से चूकने का मलाल पाले युवा दंपति की कशमकश 'चिड़िया उड़ गई फुर्र' कहानी में उठाई गई है। 'समानांतर रेखाएँ कहानी में पति से घरेलू कार्य में सहयोग की अपेक्षा कर निराह होती कामकाजी पत्नी की विवशता पाठक के मन में सहानुभूति तो जगाती है किन्तु पति की भी कुछ अपेक्षा हो सकती है यह पक्ष अनछुआ रह जाने से बात एकतरफा हो गयी है।  
                पिता के सामान में किसी अपरिचित स्त्री के प्रेम-पत्र मिलने से व्यथित किशोरी पुत्री 'खंडित मूर्ति' कहानी के केंद्र में हैं। यह कथानक लीक से हटकर है। माता से यह जानकर कि वे पत्र किसी समय उन्हीं पति द्वारा रखे गए नाम ने लिखे थे, बेटी पूर्ववत हो पाती है। 'अनमोल धरोहर' कहानी में संयुक्त परिवार, पारिवारिक संबंधों और बुजुर्गों की महत्ता प्रतिपादित करती है। वृद्धों को अनुपयोगी करार देकर किनारे बैठाने के स्थान पर उन्हें उनके उपयुक्त जिम्मेदारी देकर उनकी उपादेयता और महत्त्व बनाये रखने का सत्य प्रतिपादित करती है कहानी 'नई जिम्मेदारी'। कैशोर्य में बलात्कार का शिकार हुई युवती का विवाह के प्रति अनिच्छुक होना और एक युवक द्वारा सब कुछ जानकर भी उसे उसके निर्दोष होने की अनुभूति कराकर विवाह हेती तत्पर होना कहानी 'तुम्हारी कोई गलती नहीं' में वर्णित है। निस्संतान पत्नी को बिना बताये दूसरा विवाह करनेवाले छलिया पति के निधन पर पत्नी के मन में भावनात्मक आवेगों की उथल-पुथल को सामने लाती है कहानी 'अनुत्तरित प्रश्न'। 'जिंदगी फिर मुस्कुरायेगी' में मृत्यु पश्चात अंगदान की महत्ता प्रतिपादित की गई है। 'दिखावे की काट' कहानी दिवंगत पिता की संपत्ति के प्रति पुत्र के मोह और पुत्री के कर्तव्य भाव पार आधृत है। 
                'बिना चेहरे की याद' में भिन्न रुचियों के विवाह से उपजी विसंगति और असंतोष को उठाया गया है किन्तु कोई समाधान सामने नहीं आ सका है। परिवारजनों की सहमति के बिना प्रेमविवाह कर अलग होने के बावजूद परिवारों से अलग न हो पाने से उपजी शिकायतों के बीच भी मुस्कुराते रहने का प्रयास करते युवा जोड़े की कहानी है 'धूल और जाले'। निस्संतान दम्पति द्वारा अन्य के सहयोग से संतान प्राप्ति के स्थान पर अनाथ शिशु को अपनाने को वरीयता 'चिड़िया और औरत' कहानी का कथ्य है। अंतिम कहानी 'गाँठ' का कथानक सद्य विवाहिता नायिका और उसकी सास में मध्य तालमेल में कमी के कारण पति के सामने उत्पन्न उलझन और पिता द्वारा बेटी को सही समझाइश देने के ताने-बाने से बुना गया है। 
                विनीता जी की कहानियाँ वर्तमान समाज में हो रहे परिवर्तनों, टकरावों, सामंजस्यों और समाधानों को लेकर लिखी गयी हैं। कहानियों का शिल्प सहज ग्राह्य है। नाटकीयता या अतिरेक इन कहानियों में नहीं है। भाषा शैली और शब्द चयन पात्रों और घटनाओं के अनुकूल है। 'हालत' शब्द का बहुवचन हिंदी में 'हालतों' और उर्दू में 'हालात' होता है, 'हालातों' पूरी तरह गलत है (खंडित मूर्ति, पृष्ठ ६५)। चरिते चित्रण स्वाभाविक और कथानुकूल है। अधिकांश कहानियों में स्त्री-विमर्श का स्वर मुखर होने के बावजूद एकांगी नहीं है। वे स्त्री विमर्श के नाम पर अशालीन होने की महिला कहानीकारों की दुष्प्रवृत्ति से पूरी तरह दूर रहकर शालीनता से समस्या को सामने लाती हैं। पारिवारिक इकाई, पुरुष या बुजुर्गों को समस्या का कारण न कहकर वे व्यक्ति-व्यक्ति में तालमेल की कमी को कारण मानकर परिवार के भीतर ही समाधान खोजते पात्र सामने लाती हैं। यह दृष्टिकोण स्वस्थ्य सामाजिक जीवन के विकास में सहायक है। उनके पाठक इन कहानियों में अपने जीवन में उत्पन्न समस्याओं के समाधान पा सकते हैं। एक कहानीकार के नाते यह विनीता जी की सफलता है कि वे समस्याओं का समाधान संघर्ष और जय-पराजय में नहीं सद्भाव और साहचर्य में पाती हैं।
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संपर्क- आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', विश्व वाणी हिंदी संस्थान, 204 विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, 
चलभाष: ९४२५१ ८३२४४, ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com   
































                
      

navgeet

नवगीत
 संजीव
*
इसरो को शाबाशी
किया अनूठा काम
*
'पैर जमाकर
भू पर
नभ ले लूँ हाथों में'
कहा कभी
न्यूटन ने
सत्य किया
इसरो ने
पैर रखे
धरती पर
नभ छूते अरमान
एक छलाँग लगाई
मंगल पर
है यान
पवनपुत्र के वारिस
काम करें निष्काम
*
अभियंता-वैज्ञानिक
जाति-पंथ
हैं भिन्न
लेकिन कोई
किसी से
कभी न
होता खिन्न
कर्म-पुजारी
सच्चे
नर हों या हों नारी
समिधा
लगन-समर्पण
देश हुआ आभारी
गहें प्रेरणा हम सब
करें विश्व में नाम
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२४-९-२०१४

शुक्रवार, 23 जून 2017

baal geet

🗼उड़ान 🗼
🌾जय माँ शारदे🌾
🎄आज २३-६-२०१७ का विषय🎄
आज की विधा: 🌷🌷चित्र-लेखन🌷🌷
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बाल गीत
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पानी दो, अब पानी दो मौला धरती धानी दो, पानी दो... * तप-तप धरती सूख गयी बहा पसीना, भूख गई. बहुत सयानी है दुनिया प्रभु! थोड़ी नादानी दो, पानी दो... * टप-टप-टप बूँदें बरसें छप-छपाक-छप मन हरषे टर्र-टर्र बोले दादुर मेघा-बिजुरी दानी दो, पानी दो... * रोको कारें, आ नीचे नहा-नाच हम-तुम भीगे ता-ता-थैया खेलेंगे सखी एक भूटानी दो, पानी दो... * सड़कों पर बहता पानी याद आ रही क्या नानी? जहाँ-तहाँ लुक-छिपते क्यों? कर थोड़ी मनमानी लो, पानी दो... * छलकी बादल की गागर नचे झाड़ ज्यों नटनागर हर पत्ती गोपी-ग्वालन करें रास रसखानी दो, पानी दो... * 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

mukatak

🌱 मुक्तक 🍀🌵
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हम हैं धुर देहाती शहरी दंद-फंद से दूर पुलकित होते गाँव हेर नभ, ऊषा, रवि, सिंदूर कलरव-कलकल सुन कर मन में भर जाता है हर्ष किलकिल तनिक न भाती, घरवाली लगती है हूर. * तुम शहरी बंदी रहते हो घर की दीवारों में पल-पल घिरे हुए अनजाने चोरों, बटमारों में याद गाँव की छाँव कर रहे, पनघट-अमराई भी सोच परेशां रहते निश-दिन जलते अंगारों में **********************************************

ghanshyam chhand

छंद सलिला:
सोलह अक्षरी वार्णिक घनश्याम छंद
लक्षण: जगण जगण भगण भगण भगण गुरु
मापनी: १२१  १२१  २११  २११  २११  २
लय: ललालल लाल लाल ललालल लाल लला
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यति: ५-५-६
नहीं रुकना, नहीं झुकना, बदनाम न हो
नहीं जगना, नहीं उठना, यश-नाम न हो
नहीं लड़ना, नहीं भिड़ना, चुक शाम न हो
यहीं मरना, यहीं तरना, प्रभु वाम न हो
*
यति: १०, ६
विशाल वितान देख जरा, मत भाग कभी
ढलाव-चढ़ान लेख जरा, मत हार कभी
प्रयास-विकास रेख बने, मनुहार सदा
मिलाप-विछोह दे न भुला, कर प्यार सदा
*
यति ६, १०
करो न विनाश, हो अब तो कुछ काम नया
रहो न हताश, हो अब तो परिणाम नया
जुटा न कबाड़, सूरज सा नव भोर उगा
बना न बिगाड़, हो तब ही यश-नाम नया
***
टीप: कृपया बताएँ-
१. घनश्याम एक छंद है या छंद समूह (जाति)?
२. एक ही मापनी पर रचित छंदों में गति-यति परिवर्तन स्वीकार्य हो या न हो?
३. क्या गति-यति परिवर्तन से बनी छंद, नए छंद कहे जाएँ?
४. यदि हाँ, तो इस तरह बने असंख्य छंदों के नामकरण कौन, किस आधार पर करेगा?
५. हिंदीतर छंदों (लावणी, माहिया, सोनेट, कपलेट, बैलेड, हाइकु, तांका स्नैर्यु आदि) को हिंदी छन्दशास्त्र का अंग कहा जाए या नहीं?
६. गणों से साम्य रखनेवाले लयखंड (रुक्न) और उनसे निर्मित छंद (बहर) हिंदी की हैं या अन्य भाषा की?
७. लोकगीतों में प्रयुक्त लयखंड हिंदी छंद शास्त्र का हिस्सा हैं या नहीं? यदि हैं तो उनकी मापनी कौन-कैसे-कब निर्धारित करेगा?
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संपर्क: ९४२५१८३२४४, salilsanjiv@gmail.com
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गुरुवार, 22 जून 2017

चिंतन

चिंतन
शिक्षा व्यवस्था और शिक्षक
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शासकीय विद्यालयों के परीक्षा परिणाम आने के साथ ही सर्वाधिक अंक प्राप्त करनेवाले विद्यार्थियों को वाहवाही मिलने, पत्रकारों द्वारा खोजबीन, हेराफेरी और गत वर्षों के सफलता प्रतिशत की तुलना जैसी खबरों के बीच कुछ आत्महत्याओं के समाचार आने लगते हैं।
शिक्षा प्रणाली
सबसे पहली बात तो यह है कि देश में शिक्षा की एक ही प्रणाली होना चाहिए। भारत में शासकों और आम जनों के मध्य खाई को बनाए रखने ही नहीं उसे बढ़ाते जाने में भी नेता, अफसर और सेठों की रुची रही है. इस कारण मँहगे विद्यालय और सरकारी विद्यालय अस्तित्व में थे, हैं और रहेंगे।
मेरे पिताजी ने अधिकारी होने के बाद भी मुझे और मैंने अपने अभियंता और श्रीमती जी के कोलेज प्राध्यापक होने के बाद भी बच्चों को सरकारी विद्यालयों में ही पढ़ाया। हमें अपने निर्णय पर कोई पछतावा नहीं है किन्तु बच्चों को कभी-कभी शिकायत करते सुना है। अब अगली पीढ़ी को शायद ही सरकारी विद्यालय में पढ़ाया जाए। इसका कारण निजी विद्यालयों की श्रेष्ठता नहीं, सरकारी विद्यालयों में राजनीति, विद्यार्थियों का आरक्षण के आधार पर प्रवेश, शिक्षकों की अध्यापन में अरुचि, पुस्तकालयों का न होना तथा प्रयोगों हेतु उपकरणों का न होना है। दुःख यह है कि निजी विद्यालय भी श्रेष्ठ नहीं केवल कुछ बेहतर हैं। वस्तुत: भारत में शिक्षा को ही महत्व नहीं दिया जा रहा है।
शिक्षक: नौकर या गुरु?
शासकीय विद्यालयों के शिक्षकों को निजी विद्यालयों की तुलना में पर्याप्त अधिक वेतन मिलाता है, नौकरी स्थानान्तरणीय किन्तु सुरक्षित होती है जबकि निजी विद्यालयों में वेतन कम, आजीविका अनिश्चित किन्तु अस्थानान्तरणीय होती है। शिक्षक की आजीविका के साथ एक विशेष सामाजिक सम्मान जुड़ा होता है जो बड़े से बड़े नेता, अधिकारी या धनपति को नहीं मिलता। भारत में अधिकांश विद्यार्थी अपने शिक्षक के चरण स्पर्श करते हैं। शिक्षक को फटीचर टीचर नहीं गुरु माना जाता है। क्या शिक्षक स्वयं 'गुरुत्व' प्राप्त करने के प्रति सजग हैं?, अधिकांश नहीं। अधिकांश शिक्षक केवल फर्ज़ अदायगी और वेतन की चिंता करते हैं। यह स्थिति चिन्तनीय और शिक्षा के गिरते स्तर का कारण है। जिस व्यक्ति की शिक्षा कर्म में रुची न हो उसे शिक्षण नहीं होना चाहिए। शिक्षक स्वयं अस्थायी और शोषण का शिकार होगा तो अध्यापन कैसे कराएगा? योग्य शिक्षक को अपने विषय का ज्ञान, अध्यापन विधियों की जानकारी, बाल मनोविज्ञान की समझ तथा अपने कार्य में रुचि होना जरूरी है।
जानकारी, ज्ञान और दायित्व?
शिक्षा का लक्ष्य क्या है? पाठ्यक्रम की जानकारी या विषय का ज्ञान? हमारी शिक्षा प्रणाली विषय को समझने और उसमें कुछ नया सोचने-करने के प्रति उदासीन है। किताबी जानकारी को यादकर परीक्षा पुस्तिका में वामन कर देना ही शिक्षा का पर्याय मान लिया गया है। फलत:, अभियंता और चिकित्सक भी किताबी हैं जिन्हें व्यावहारिक ज्ञान नहीं के बराबर है। यह स्थिति बदली जाना बहुत जरूरी है। प्राथमिक शालेय शिक्षा से ही विद्यार्थी को व्यावहारिक शिक्षा, प्रकृति से जुड़ाव, देश और समाज के प्रति दायित्व आदि की बीज बो दिए जाने चाहिए। हमें बचपन में प्रभात फेरी, जुलूस, व्यायाम, बागवानी, कक्षा की सफाई आदि के काम कराकर अपने दायित्व का भान कराया गया किन्तु आजकल निजी विद्यालयों तो दूर शासकीय विद्यालयों में भी यह नहीं कराया जा रहा। विद्यालयों में राजनैतिक तथा प्रशासनिक हस्तक्षेप न्यूनतम हो। सभी विद्यार्थियों को समान सुविधाएँ, व्यवहार व अवसर मिले तो भविष्य के लिए जिम्मेदार नागरिक तैयार होंगे जो स्वस्थ्य समाज का निर्माण करेंगे। अच्छे नागरिक और मनुष्य किसी कारखाने में किसी तकनीक से तैयार नहीं किये जा सकते केवल शिक्षक विद्यालयों में उन्हें विकसित कर सकता है। इसलिए शिक्षा और शिक्षक को सर्वाधिक महत्त्व दिया जाना चाहिए।
व्यावहारिक पाठ्यक्रम व विषय चयन
हर कक्षा के लिए पाठ्यक्रम विद्यार्थी की औसत उम्र में हुए मानसिक विकास के आधार पर बनाया जाए। अनावश्यक विषय न पढ़ाए जाए तथा आवश्यक विषय छोड़े भी न जाएँ। साथ ही साथ मानवीय, नैतिक, सामाजिक और राष्ट्रीय मूल्यों के विकास, शारीरिक मजबूती, चारित्रिक दृढ़ता के विकास संबंधी कार्यक्रम भी होना चाहिए। विद्यार्थियों का मनोवैज्ञानिक परिक्षण कर उनमें अंतर्निहित गुणों और प्रतिभा का आकलन कर तदनुसार विषय या शिल्प की शिक्षा दी जाना चाहिए ताकि उनका सर्वश्रेष्ठ विकास हो। अभिभावकों की इच्छा या समृद्धि को विषय चयन का आधार नहीं होना चाहिए।
एक ही शिक्षा प्रणाली
तत्काल संभव न हो तो भी क्रमश: पूरे देश में सभी व्द्यार्थियों को क्रमश: सामान्य पाठ्यक्रम तथा विद्यालय मिलना चाहिए। सभी जनप्रतिनिधियों और जनसेवकों के लिए अपने बच्चों को सरकारी विद्यालयों में पढ़ाना अनिवार्य किया जाना चाहिए। शिक्षा का व्यवसायीकरण बंद करने के लिए निजी विद्यालयों को हतोत्साहित करना आवश्यक है। कमजोर समाज के मतों के लिए राजनीति कर रहे दलों को इस ओर प्रतिबद्ध होना चाहिए। सरकारी विद्यालयों को अधिकाधिक साधन संपन्न और विकसित बनाकर निजी विद्यालयों को हतोत्साहित किया जा सकता है।
शासकीय विद्यालय अभिशाप नहीं वरदान
प्राय: साधन संपन्न जन अपने बच्चों को शासकीय विद्यालयों में नहीं भेजते। यह स्थिति बदली जानी चाहिए। शासकीय संस्थानों में सुयोग्य शिक्षक, समृद्ध पुस्तकालय, सुसज्ज प्रयोगशाला, खेल-कूद उपकरण, समयानुकूल पाठ्यक्रम तथा परिणामोन्मुखी वेतनमान हों तो विद्यार्थी उन्हें चुनने लगेंगे। शासकीय विद्यालयों के श्रेष्ठ विद्यार्थियों को शासकीय सेवा में वरीयता दी जाने से भी स्थिति में सुधार होगा।
शासकीय शक्षकों को अपनी सोच बदलनी होगी। शासकीय विद्यालयों में निम्न अंक प्रतिशत के विद्यार्थी आने का लाभ कुशल शिक्षक ले सकता है। ४० % अंक ला रहे विद्यार्थी पर ध्यान देकर उसे ६०% के स्तर पर ले जाना आसान है किन्तु ९०% अंक ला रहे विद्यार्थी के स्तर को बढ़ाना या बनाये रखना अधि कठिन है। शासकीय विद्यालय के शिक्षक अपने हर विद्यार्थी को पूर्व परीक्षा से बेहतर अंक पाने योग्य बनाने का लक्ष्य रखें। जो शिक्षक यह लक्ष्य पा सकें उन्हें वार्षिक वेतन वृद्धि दी जाए, जो यह लक्ष्य न पा सकें उन्हें पूर्वत वेतन दिया जाए और जिनके विद्यार्थियों का परीक्षा परिणाम घटे उनके वेतन में एक वार्षिक वेतन वृद्धि की राशि काम कर दी जाए। ऐसी व्यवस्था होने पर शिक्षक पूरी क्षमता से अध्यापन कराएँगे।
परिणाम बेहतर आने औए उच्च कक्षा में प्रवेश में प्राथमिकता मिलने से विद्यार्थी भी मनोयोग से पढ़ने के लिए उत्साहित होंगे। निजी विद्यालयों में कमजोर विद्यार्थी जायेंगे तो उन्हें योग्य शिक्षक समुचित वेतनमान पट रखना होंगे। लाभांश कम होगा तो धंधेबाज शिक्षाजगत से बाहर होते जायेंगे और केवल समाज सेवा या देश सेवा को लक्ष्य बनाने वाले ही शिक्षा संस्थाएँ चलाएँगे।
शिक्षक असहाय नहीं
शिक्षा स्तर सुढारने की दिशा में हर शिक्षक अपने स्तर पर पहल कर सकता है। सत्र आरम्भ होने पर वह हर विद्यार्थी के प्राप्तांक की जानकारी ले ले तथा खुद अपने लिए लक्ष्य बनाए की हर विद्यार्थी के अंकों में कम से कम ५% अंक वृद्धि हो, इस तरह अध्यापन कराएगा। इससे और कुछ न हो उसे आत्म संतोष मिलेगा तथा विद्यार्थियों के समय परीक्षा परिणाम के समय यह घोषणा किये जाने पर विद्यार्थियों का सम्मान पायेगा। प्राचार्य ऐसे शिक्षकों के वार्षिक प्रतिवेदन में इस तथ्य का उल्लेख करते हुए पुरस्कार हेतु अनुशंसा करें तथा जिला शिक्षाधिकारी पुरस्कृत करें। शासन उदासीन हो तो यह कार्य शिक्षक संघ भी कर सकते हैं या अन्य सामाजिक संस्थाएँ भी। शिक्षक का सम्मान बढ़ेगा तो उसमें अध्यापन के प्रति रुचि भी बढ़ेगी।
धनहीन विद्यार्थियों के लिए गत वर्ष उत्तीर्ण हो चुके विद्यार्थियों की पुस्तकें उपलब्ध कराकर शिक्षक सहायता कर सकते हैं। इसी तरह निर्धन होशियार छात्रों से निचली कक्षा के कमजोर विद्यार्थी को ट्यूशन दिलाकर दोनों की मदद की जा सकती है। शिक्षकों को साधनहीनता, शासकीय उपेक्षा, काम वेतन आदि का रोना रोना बंद कर स्थिति को सुधारने के उपाय खोजना अपना कार्य मानना होगा तभी वे 'गुरु' हो सकेंगे।
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