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रविवार, 11 मई 2014

chhand salila: sujan / virhani chhand -sanjiv


छंद सलिला:   ​​​

सुजान / विरहणी छंद ​

संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति रौद्राक, प्रति चरण मात्रा २३ मात्रा, यति १४-९, चरणांत गुरु लघु (तगण, जगण)

लक्षण छंद:
   बनिए सुजान नित्य तान / छंद का वितान
   रखिए भुवन-निधि अंत में / गुरु-लघु पहचान
   तजिए न आन रीति जान / कर्म कर महान
   करिए निदान मीत ठान / हो नया विहान 
   
उदाहरण:

१.  प्रभु चित्रगुप्त निराकार / होते साकार
    कण-कण में आत्म रूप हैं, देव निराकार 

    अक्षर अनादि शब्द ब्रम्ह / सृजें काव्य धार
    कथ्य लय ऱस बिम्ब सोहें / सजे अलंकार
 
२. राम नाम ही जगाधार / शेष सब असार
    श्याम नाम ही जप पुकार / बाँट 'सलिल' प्यार 

    पुरुषार्थ-भाग्य नीति सुमति / भवसागर पार
    करे-तरे ध्यान धरें हँस / बाँके करतार 
 
३. समय गँवा मत, काम बिना / सार सिर्फ काम 
    बिना काम सुख-चैन छिना / लक्ष्य एक काम
    काम कर निष्काम तब ही / मिल पाये नाम
    ज्यों की त्यों चादर धर जा / ईश्वर के धाम 

                   *********

(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, रसामृत, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी) 

शनिवार, 10 मई 2014

geet-pratigeet: rakesh khandelwal - sanjiv

गीत-प्रतिगीत 
राकेश खंडेलवाल - संजीव 
*
जहाँ फ़िसलते हुए बचे थे पाँव  उम्र के उन मोड़ों पर
जमी हुई परतों में से अब प्रतिबिम्बित होती परछाईं
जहाँ मचलते गुलमोहर ने एक दिवस अनुरागी होकर
सौंपी थी प्राची को अपने संचय की पूरी अरुणाई


उसी मोड़ से गये समेटे कुछ अनचीन्हे से भावों को
मैं अपनी एकाकी संध्याओं में नित टाँका करता हूँ
*
अग्निलपट सिन्दूर चूनरी, मंत्र और कदली स्तंभों ने
जिस समवेत व्यूह रचना के नये नियम के खाके खींचे
उससे जनित कौशलों के अनुभव ने पथ को चिह्नित कर कर
जहाँ जहाँ विश्रान्ति रुकी थी वहीं वहीं पर संचय सींचे


निर्निमेष हो वही निमिष अब ताका करते मुझे निरन्तर
और खोजने उनमें उत्तर मैं उनको ताका करता हूँ


षोडस सोमवार के व्रत ने दिये पालकी को सोलह पग
था तुलसी चौरे का पूजन ,गौरी मन्दिर का आराधन
खिंची हाथ की रेखाओंका लिखा हुआ था घटित वहाँ पर
जबकि चुनरिया पआंखों में आ आ कर उतरा था सावन


हो तो गया जिसे होना था, संभव नहींनहीं हो पाता
उस अतीत के वातायन में, मैं अब भी झाँका करता हूँ


तय कर चुका अकल्पित दूरी कालचक्र भी चलते चलते
जहाँ आ गया पीछे का कुछ दृश्य नहीं पड़ता दिखलाई
फ़िर भी असन्तुष्ट इस मन की ज़िद है वापिस लौटें कुछ पल
वहाँ, जहाँ पर धानी कोई किरण एक पल थी लहराई


इस स्थल से अब उस अमराई की राहों को समय पी गया
मैं फ़िर भी तलाश थामे पथ की सिकता फ़ाँका करता हूँ
____________
गीत
*
अटल सत्य गत-आगत फिसलन-मोड़ मिलाएंगे फ़िर हमको

किसके नयनों में छवि किसकी कौन बताये रही समाई 
वहीं सृजन की रची पटकथा  विधना ने चुपचाप हुलसकर
संचय अगणित गणित हुआ ज्यों ध्वनि ने प्रतिध्वनि थी लौटाई

मौन मगन हो सतनारायण के प्रसाद में मिली पँजीरी
अँजुरी में ले बुक्का भर हो आनंदित फाँका करता हूँ
*
खुदको तुममें गया खोजने जब तब पाया खुदमेँ तुमको
किसे ज्ञात कब तुम-मैं हम हो सिहर रहे थे अँखियाँ मीचे
बने सहारा जब चाहा तब अहम सहारा पा नतमस्तक
हुआ और भर लिया बाँह में खुदको खुदने उठ-झुक नीचे

हो अवाक मन देख रहा था कैसे शून्य सृष्टि रचता है
हार स्वयं से, जीत स्वयं को नव सपने आँका करता हूँ
*
चमका शुक्र हथेली पर हल्दी आकर चुप हुई विराजित
पुरवैया-पछुआ ने बन्ना-बन्नी गीत सुनाये भावन
गुण छत्तीस मिले थे उस पल, जिस पल पलभर नयन मिले थे
नेह नर्मदा छोड़ मिली थी, नेह नर्मदा मन के आँगन 

पाकर खोना, खोकर पाना निमिष मात्र में जान मनीषा
मौन हुई, विश्वास सितारे मन नभ पर टाँका करता हूँ
*
आस साधना की उपासना करते उषा हुई है संध्या
रजनी में दोपहरी देखे चाहत, राहत हुई पराई
मृगमरीचिका को अनुरागा, दौड़ थका तो भुला विकलता
मन देहरी सँतोष अल्पना की कर दी हँसकर कुड़माई

सुधियों के दर्पण में तुझको, निरखा थकन हुई छूमंतर
कलकल करती 'सलिल'-लहर में, छवि तेरी झाँका करता हूँ
*

rachna-prati rachna - rakesh khandelwal - sanjiv

रचना - प्रति रचना :
राकेश खंडेलवाल - संजीव
*
 करू श्री से कामना दे दें नया प्रकाश
चाहत जीवन में मिले, सहज सुखद आनन्द
सलिल बूँद से तृप्त मन करना दीनानाथ
कुसुमित हो ममतामयी, बरसायें नव वृंद
 
प्रणव करूँ करबद्ध मैं अचल ओम महिपाल
सम्मुख रखूँ सुरेन्द्र को, रक्षा करें महेश
शार्दूल विचरण करूँ निर्भय काव्य अरण्य
गौतम के अभिज्ञान से बिसरायें सब क्लेश
 
शतदल कमलों से बने नित्य विजय का हार
खलिश मिटायें ह्रदय से हर पल परमानन्द
सुरभित हो बहती रहे मलय काव्य की नित्य
सराबोर करते रहें नित संजीवित छन्द.
 
सादर शुभकामनाओं सहित
 
राकेश
*
मातु शारदा दीजिये, सुत को नित आशीष
कथ्य भाव भाषा सरस, छंद बिम्ब दें ईश
शैली शीतल छाँव सी, अलंकार शालीन
गद्य-पद्य पढ़ किसी का, आनन हो न मलीन
सँग अनूप राकेश के, शार्दूला सा काव्य
हो अमिताभ सुरेन्द्र सा, कहे अकह संभाव्य

प्रणव नाद सुन मन कमल, पाये अचल प्रकाश
शब्द-कुसुम अर्पित करूँ, हे महेश हर पाश
ओम व्योम महिपाल श्री, गौतम खलिश प्रवीण
मोहन ममता किरण की, कृपा नहीं हो क्षीण
तंज़-रंज से परे रह, दे  कविता आनंद
'सलिल' लीन हो अगम में, रचते-गाते  छंद
*
 

शुक्रवार, 9 मई 2014

chhand salila: mohan chhand -sanjiv


छंद सलिला:   ​​​

मोहन छंद ​


संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति रौद्राक, प्रति चरण मात्रा २३ मात्रा, यति ५-६-६-६, चरणांत गुरु लघु लघु गुरु


लक्षण छंद:
   गोपियाँ / मोहन के / संग रास / खेल रहीं
   राधिका / कान्हा के / रंग रंगी / मेल रहीं
   पाँच पग / छह छह छह / सखी रखे / साथ-साथ

   कहीं गुरु / लघु, लघु गुुरु / कहीं, गहें / हाथ-हाथ

​उदाहरण:

१.  सुरमयी / शाम मिले / सजन शर्त / हार गयी
    खिलखिला / लाल हुई / चंद्र देख / भाग गयी
    रात ने / जाल बिछा / तारों के / दीप जला
    चाँद को / मोह लिया / हवा बही / हाय छला


२. कभी खुशी / गम कभी / कभी छाँव / धूप कभी
    नयन नम / करो न मन / नमन करो / आज अभी
    कभी तम / उजास में / आस प्यास / साथ मिले
    कभी हँस / प्रयास में / आम-खास / हाथ मिले

   

३. प्यार में / हार जीत / जीत हार / प्यार करो
    रात भी / दिवस लगे / दिवस रात / प्यार वरो
    आह भी / वाह लगे / डाह तजो / चाह करो
    आस को / प्यास करो / त्रास सहो / हास करो

                    *********

(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, रसामृत, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

chhand salila: sampada chhand -sanjiv


छंद सलिला:   ​​​



संपदा छंद

संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति रौद्राक, प्रति चरण मात्रा २३ मात्रा, यति ११-१२, चरणांत लघु गुरु लघु (जगण/पयोधर)


लक्षण छंद: 
   शक्ति-शारदा-रमा / मातृ शक्तियाँ सप्राण
   सदय हुईं मनुज पर / पीड़ा से मुक्त प्राण
   ग्यारह-बारह सुयति / भाव सरस लय निनाद
   मधुर छंद संपदा / अंत जगण का प्रसाद
 
​उदाहरण:
१.  मीत! गढ़ें नव रीत / आओ! करें शुचि प्रीत
    मौन न चाहें और / गायें मधुरतम गीत
    मन को मन से जोड़ / समय से लें हम होड़
    दुनिया माने हार / सके मत लेकिन तोड़  
 
२. जनता से किया जो / वायदा न भूल आज
    खुद ही बनाया जो / कायदा न भूल आज
    जनगण की चाह जो / पूरी कर वाह वाह
    हरदम हो देश का / फायदा न भूल आज
   

३. मन मसोसना न मन / जो न सही, वह न ठान
    हैं न जन जो सज्जन / उनको मत मीत मान
    धन-पद-बल स्वार्थ का / कलम कभी कर न गान-
    निर्बल के परम बल / राम सत्य 'सलिल' मान.  
 
                    *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, रसामृत, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)
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गुरुवार, 8 मई 2014

puja geet: ravindranath thakur

बाङ्ग्ला-हिंदी भाषा सेतु:

पूजा गीत

रवीन्द्रनाथ ठाकुर

*

जीवन जखन छिल फूलेर मतो

पापडि ताहार छिल शत शत।

बसन्ते से हत जखन दाता

रिए दित दु-चारटि  तार पाता,

तबउ जे तार बाकि रइत कत

आज बुझि तार फल धरेछे,

ताइ हाते ताहार अधिक किछु नाइ।

हेमन्ते तार समय हल एबे

पूर्ण करे आपनाके से देबे

रसेर भारे ताइ से अवनत। 

*

पूजा गीत:  रवीन्द्रनाथ ठाकुर

हिंदी काव्यानुवाद : संजीव 



फूलों सा खिलता जब जीवन

पंखुरियां सौ-सौ झरतीं।

यह बसंत भी बनकर दाता 

रहा झराता कुछ पत्ती।

संभवतः वह आज फला है 

इसीलिये खाली हैं हाथ।

अपना सब रस करो निछावर

हे हेमंत! झुककर माथ।

*

मंगलवार, 6 मई 2014

geet: sanjiv


गीत:
संजीव
*
आन के स्तन न होते, किस तरह तन पुष्ट होता
जान कैसे जान पाती, मान कब संतुष्ट होता?
*
पय रहे पी निरन्तर विष को उगलते हम न थकते
लक्ष्य भूले पग भटकते थक गये फ़िर भी न थकते
मौन तकते हैं गगन को कहीँ क़ोई पथ दिखा दे
काश! अपनापन न अपनोँ से कभी भी रुष्ट होता
*
पय पिया संग-संग अचेतन को मिली थी चेतना भी
पयस्वनि ने कब बतायी उसे कैसी वेदना थी?
प्यार संग तकरार या इंकार को स्वीकार करना
काश! हम भी सीख पाते तो मनस परिपुष्ट होता
*
पय पिला पाला न लेकिन मोल माँगा कभी जिसने
वंदनीया है वही, हो उऋण उससे कोई कैसे?
आन भी वह, मान भी वह, जान भी वह, प्राण भी वह
​खान ममता की न होती, दान कैसे तुष्ट होता?
*​
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chhand salila: avtar chhand -sanjiv


छंद सलिला:   

अवतार छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति रौद्राक, प्रति चरण मात्रा २३ मात्रा, यति १३ - १०, चरणान्त गुरु लघु  गुरु (रगण) ।
 

लक्षण छंद:
   दुष्ट धरा पर जब बढ़ें / तभी अवतार हो
   तेरह दस यति, रगण रख़ / अंत रसधार हो
   सत-शिव-सुंदर ज़िंदगी / प्यार ही प्यार हो

   सत-चित-आनँद हो जहाँ / दस दिश दुलार हो
उदाहरण:
१.  अवतार विष्णु ने लिये / सब पाप नष्ट हो
    सज्जन सभी प्रसन्न हों / किंचित न कष्ट हो
    अधर्म का विनाश करें / धर्म ही सार है-
    ईश्वर की आराधना / सच मान प्यार है  


२. धरती की दुर्दशा / सब ओर गंदगी
    पर्यावरण सुधारना / ईश की बंदगी
    दूर करें प्रदूषण / धरा हो उर्वरा
    तरसें लेनें जन्म हरि / स्वर्ग है माँ धरा

 
३. प्रिय की मुखछवि देखती / मूँदकर नयन मैं
    विहँस मिलन पल लेखती / जाग-कर शयन मैं 
    मुई बेसुधी हुई सुध / मैं नहीं मैं रही-
    चक्षु से बही जलधार / मैं छिपाती रही.  
 
                    *********  

(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, रसामृत, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

सोमवार, 5 मई 2014

chhand salila: jag chhand -sanjiv


छंद सलिला: 
 
जग छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति रौद्राक, प्रति चरण मात्रा २३ मात्रा, यति १० - ८ - ५, चरणान्त गुरु लघु (तगण, जगण) ।
 

लक्षण छंद:
  
कदम-कदम मंज़िल / को छू पायें / पग आज
   कोशिश-शीश रखेँ / अनथक श्रम कर / हम ताज
   यति दस आठ पाँच / पर, गुरु लघु हो / चरणांत

   तेइस मात्री जग / रच कवि पा यश / इस व्याज

उदाहरण:
१.  धूप-छाँव, सुख-दुःख / धीरज धरकर / ले झेल
    मन मत विचलित हो / है यह प्रभु / का खेल
    सच्चे शुभ चिंतक / को दुर्दिन
मेँ / पहचान
   
संग रहे तम मेँ / जो- हितचिंतक / मतिमान  

२. चित्रगुप्त परब्रम्ह / ही निराकार / साकार 
    कंकर-कंकर मेँ  / बसते लेकर / आकार
    घट-घटवासी हैं / तन में आत्मा / ज्यों गुप्त
    जागृत देव सदै
व /  होते न कभी / भी सुप्त
 
 ३. हम सबको रहना / है मिलकर हर/दम साथ 
    कभी न छोड़ेंगे / हमने थामे / हैं हाथ 
    एक-नेक होँ हम / सब भेद करें/गे दूर
    'सलिल' न झुकने दें/गे हम भारत / का माथ


                    *********
 
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, रसामृत, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

रविवार, 4 मई 2014

chhand salila: drirh pad (upman) chhand -sanjiv


छंद सलिला: 
 
दृढ़पद (दृढ़पत/उपमान) छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति रौद्राक, प्रति चरण मात्रा २३ मात्रा, यति १३ - १०, चरणान्त गुरु गुरु (यगण, मगण) ।
 

लक्षण छंद:
  
तेईस मात्रा प्रति चरण / दृढ़पद रचें सुजान
   तेरह-दस यति अन्त में / गुरु गुरु- है उपमान
   कथ्य भाव रस बिम्ब लय / तत्वों का एका
   दिल तक सीधे पहुँचता / लगा नहीं टेका


उदाहरण:
१.  हरि! अवगुण से दूरकर / कुछ सद्गुण दे दो  
    भक्ति - भाव अर्पित तुम्हें /  दिक् न करो ले लो
    दुनियादारी से हुआ / तंग- शरण आया-
   
एक तुम्हारा आसरा / साथ न दे साया  

२. स्वेद बिन्दु से नहाकर / श्रम से कर पूजा 
    फल अर्पित प्रभु को करे / भक्त नहीं दूजा
    काम करो निष्काम सब / बतलाती गीता
    जो आत्मा सच जानती / क्यों हो वह भीता?

 
 ३. राम-सिया के रूप हैं / सच मानो बच्चे
    बेटी-बेटे में करें / फर्क नहीं सच्चे 
    शक्ति-लक्ष्मी-शारदा / प्रकृति रूप  तीनो
    जो न सत्य पहचानते / उनसे हक़ छीनो


                    *********
 
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, रसामृत, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

chhand salila: hari chhand -sanjiv



छंद सलिला: 
हरि छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति रौद्राक, प्रति चरण मात्रा २३ मात्रा, चरणारंभ गुरु, यति ६ - ६ - ११, चरणान्त गुरु लघु गुरु (रगण) ।
 

लक्षण छंद:
  
रास रचा / हरि तेइस / सखा-सखी खेलते
   राधा की / सखियों के / नखरे हँस झेलते
   गुरु से शुरु / यति छह-छह / ग्यारह पर सोहती
   अंत रहे / गुरु लघु गुरु /  कला 'सलिल' मोहती


उदाहरण:
१.  राखो पत / बनवारी / गिरधारी साँवरे   
    टेर रही / द्रुपदसुता / बिसरा मत बावरे
    नंदलाल / जसुदासुत / अब न करो देर रे
   
चीर बढ़ा / पीर हरो / मेटो अंधेर रे    

२. सीता को / जंगल में / भेजा क्यों राम जी?
    राधा को / छोड़ा क्यों / बोलो कुछ श्याम जी??
    शिव त्यागें / सती कहो / कैसे यह ठीक है?  
    नारी भी / त्यागे नर / क्यों न उचित लीक है??
 

 ३. नेता जी / भाषण में / जो कुछ है बोलते
    बात नहीं / अपनी क्यों / पहले वे तोलते?
    मुकर रहे / कह-कहकर / माफी भी माँगते
    देश की / फ़िज़ां में / क्यों नफरत घोलते?


४. कौन किसे / बिना बात / चाहता-सराहता?
    कौन जो न / मुश्किलों से / आप दूर भागता?
    लोभ, मोह / क्रोध द्रोह / छोड़ सका कौन है?
    ईश्वर से / कौन और / अधिक नहीं माँगता?
                    *********
 
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दीप, दीपकी, दोधक, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, रसामृत, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

muktak salila: sanjiv

मुक्तक सलिला :
संजीव
*
मन सागर, मन सलिला भी है, नमन अंजुमन विहँस कहें
प्रश्न करे यह उत्तर भी दे, मन की मन में रखेँ-कहें?
शमन दमन का कर महकाएँ चमन, गमन हो शंका का-
बेमन से कुछ काम न करिए, अमन-चमन में 'सलिल' रहे
*
तेरी निंदिया सुख की निंदिया, मेरी निंदिया करवट-करवट”
मेरा टीका चौखट-चौखट, तेरी बिंदिया पनघट-पनघट
तेरी आसें-मेरी श्वासें, साथ मिलें रच बृज की रासें-
तेरी चितवन मेरी धड़कन, हैं हम दोनों सलवट-सलवट
*
बोरे में पैसे ले जाएँ, संब्जी लायें मुट्ठी में
मोबाइल से वक़्त कहाँ है, जो रुचि ले युग चिट्ठी में
कुट्टी करते घूम रहे हैं सभी सियासत के मारे-
चले गये दिन रहे खेलते जब हम संगा मिट्ठी में
*
नहीं जेब में बचीं छदाम, खास दिखें पर हम हैँ आम
कोई तो कविता सुनकर, तनिक दाद दे करे सलाम
खोज रहीं तन्मय नज़रें, कहाँ वक़्त का मारा है?
जिसकी गर्दन पकड़ें हम फ़िर चुकवाएँ बिल बेदाम
*

शनिवार, 3 मई 2014

chhand salila: rasamrit chhand -sanjiv

​ॐ
छंद सलिला: 
रसामृत छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महारौद्र , प्रति चरण मात्रा २२ मात्रा, यति १६ - ६, चरणान्त गुरु लघु (तगण, जगण) ।
लक्षण छंद:
   काव्य रसामृत का करिए / नित विहँस पान
   ईश - देश महिमा का करिए / सतत गान
   सोलह कला छहों रस गुरु लघु / चरण अंत 
   सत-शिव-सुन्दर, सत-चित-आनंद / तज न संत                                                                                                                        
उदाहरण:
१.  राजनीति ने लोकनीति का / किया त्याग 
    लूटें नेता, लुटे न जनता / कहे भाग
    शोषक अफसर पत्रकार ले / रहे घूस
   
पूँजीपति डॉक्टर अधिवक्ता / हुए मूस 
    जाग कृषक - मजदूर मिटा दे / अनय जाग 
    देशभक्ति का छेड़े जनगण / पुण्य राग 

२. हुआ महाभारत भारत में / सीख पाठ
    शासक शासित की दम पर मत / करे ठाठ
    जाग गयी जनता तो देगी / लगा आग  
    फूँक देश को नेता खेलें / अब न फाग
    धन विदेश में ले जाकर जो / रहे जोड़
    उनका मुँह काला करने की / मचे होड़
    भाषा भूषा धर्म जोड़ते, देँ न फ़ूड
    लसलिल; देश-हिट खातिर दें मत/भेद छोङ
   
 
३. महाराष्ट्र में राष्ट्रवाद क्यों / रहा हार?
    गैर मैराथन को लगता है / क्यों बिहार?
    काश्मीर का दर्ज़ा क्यों है / हुआ खास?
    राजनीती के स्वार्थ गले की / बने फाँस
    राष्ट्रीय सरकार बने दल / मिटें आज
    संसद में हुड़दंग न हो कुछ / करो लाज 

    असम विषम हो रहा रोक लो / बढ़ा हाथ
    आतंकी बल जो- दें उनका / झुका माथ 
    देशप्रेम की राह चलें हम / उठा शीश 
    दे पाये निज प्राण देश-हित / 'सलिल' ईश
                    *********
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दीप, दीपकी, दोधक, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, रसामृत, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)

।। हिंदी आटा माढ़िये, उर्दू मोयन डाल । 'सलिल' संस्कृत सान दे, पूरी बने कमाल ।।
।। जन्म ब्याह राखी तिलक, गृह प्रवेश त्यौहार । हर अवसर पर दे 'सलिल', पुस्तक ही उपहार ।।
।। नीर बचा, पौधे लगा, मित्र घटायें शोर । कचरे का उपयोग कर उजली करिए भोर ।। 

शुक्रवार, 2 मई 2014

chhand salila: prabhati (udiyana) chhand -sanjiv

​ॐ
छंद सलिला:
 
प्रभाती (उड़ियाना) छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महारौद्र , प्रति चरण मात्रा २२ मात्रा, यति १२ - १०, चरणान्त गुरु (यगण, मगण, रगण, सगण, ) ।

लक्षण छंद:
   राग मिल प्रभाती फ़िर / झूम-झूम गाया

   बारहमासा सुन- दस / दिश नभ मुस्काया
   चरण-अन्त गुरु ने गुर / हँसकर बतलाया 
   तज विराम पूर्णकाम / कर्मपथ दिखाया                                                                                                                        
उदाहरण:
१. 
गौरा ने बौराकर / बौरा को हेरा 
    बौराये अमुआ पर / कोयल ने टेरा
    मधुकर ने कलियों को, जी भर भरमाया 
    सारिका की गली लगा / शुक का पगफेरा  

२. प्रिय आये घर- अँगना / खुशियों से चहका 
    मन-मयूर नाच उठा / महुआ ज्यों महका
    गाल पर गुलाल लाल / लाज ने लगाया 
    पलकों ने अँखियों पर / पहरा बिठलाया
    कँगना भी खनक-खनक / गीत गुनगुनाये
    बासंती मौसम में /  कोयलिया गाये
    करधन कर-धन के सँग  लिपट/लिपट जाए
    उलझी लट अनबोली / बोल खिलखिलाये
   
३. राम-राम सिया जपे / श्याम-श्याम राधा
    साँवरें ने भक्तों की / काटी हर बाधा
    हरि ही हैं राम-कृष्ण / शिव जी को पूजें  
    सत-चित-आनंद त्रयी / जग ने आराधा 
    कंकर-कंकरवासी / गिरिजा मस्जिद में
    जिसको जो रूप रुचा / उसने वह साधा
                    *********
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दीप, दीपकी, दोधक, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)

।। हिंदी आटा माढ़िये, उर्दू मोयन डाल । 'सलिल' संस्कृत सान दे, पूरी बने कमाल ।।
।। जन्म ब्याह राखी तिलक, गृह प्रवेश त्यौहार । हर अवसर पर दे 'सलिल', पुस्तक ही उपहार ।।
।। नीर बचा, पौधे लगा, मित्र घटायें शोर । कचरे का उपयोग कर उजली करिए भोर ।। 

गुरुवार, 1 मई 2014

chhand salila: kundal chhand -sanjiv

​ॐ
छंद सलिला:

कुंडल छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महारौद्र , प्रति पद मात्रा २२ मात्रा, यति १२ - १०, पदांत गुरु गुरु (यगण, मगण) ।

लक्षण छंद:
   कुंडल बाईस कला / बारह दस बाँटो

   चरण-अंत गुरु-गुरु हो / सरस शब्द छाँटो
   भाव बिम्ब रस लय का / कोष छंद प्यारा
   अलंकार सह प्रतीक / रखिए चुन न्यारा                                                                                                                        
उदाहरण:
१. करण कवच कुण्डल में / सूरज सम सोहें

    बारह घंटे दस शर / लक्ष्य बेध मोहे
    गुरु के गुरु परशुराम / शुभाशीष देते
    चरणों से उठा शिष्य / बाँहों भर लेते

२. शिव शंकर प्रलयंकर अभ्यंकर भोले 
     गंगाधर डमरूधर मणि-विषधर डोले
     डिम डिम डम निगमागम / मंत्र ऋचा व्यापे
     नाद ताल थाप अगम / दशकंधर काँपे 
     सुरसरिधर मस्तक पर / शिशु शशि छवि चमके
     शक्ति-भक्ति, युक्ति-मुक्ति / कर त्रिशूल दमके
     जटाजूट बिखर बिखर / कहते शुचि गाथा
     स्वेद-बिंदु कन सज्जित / नीलभित माथा
     नीलकण्ठ उमानाथ / पशुपति त्रिपुरारी
     विश्वनाथ सोमनाथ / जगपति कामारी
     महाकाल वैद्यनाथ / सति-पति अविनाशी
     नर्मदेश शशिपतेश / गंगेश्वर योगी
     वैरागी-अनुरागी / भूतेश्वर भोगी
     दयानाथ क्षमानाथ / कृपानाथ दाता
     रामेश्वर गोपेश्वर / गुप्तेश्वर त्राता
     कंकर-कंकरवासी / घट-घट सन्यासी
     ओढ़े दिक्-अम्बर हँस / सत-शिव आभासी
     सुंदर सुन्दरतर हे! / सुन्दरतम देवा
     सत-चित-आनंद तुम्हीं / करो सफल सेवा
                    *********
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दीप, दीपकी, दोधक, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)
।। हिंदी आटा माढ़िये, उर्दू मोयन डाल । 'सलिल' संस्कृत सान दे, पूरी बने कमाल ।।
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chhand salila: radhika chhand -sanjiv


छंद सलिला:
राधिका छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महारौद्र लोक , प्रति चरण मात्रा २२ मात्रा, यति १३ - ९ ।


छंद सलिला:
राधिका छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महारौद्र , प्रति चरण मात्रा २२ मात्रा, यति १३ - ९ ।

लक्षण छंद:
   सँग गोपों राधिका के  / नंदसुत - ग्वाला
   नाग राजा महारौद्र  / कालिया काला
   तेरह प्रहार नौ फणों / पर विष न बाकी
   गंधर्व किन्नर सुर नरों / में कृष्ण आला   
*
राधिका बाईस कला / लख कृष्ण मोहें
तेरह - नौ यति क़ृष्ण-पग / बृज गली सोहें
भक्त जाते रीझ, भय / से असुर जाते काँप
भाव-भूखे कृष्ण कण / कण जाते  व्याप
                                                                                                                     
उदाहरण:
१. जब जब जनगण ने फ़र्ज़ / आप बिसराया
    तब तब नेता ने छला / देश पछताया
    अफसर - सेठों ने निजी / स्वार्थ है साधा
    अन्ना आंदोलन बना / स्वार्थ पथ-बाधा
    आक्षेप और आरोप / अनेक लगाये
    जनता को फ़िर भी  दूर / नहीं कर पाये

२. आया है आम चुनाव / चेत जनता रे
     मतदान करे चुपचाप / फ़र्ज़ बनता रे
     नेता झूठे मक्कार / नहीं चुनना रे
     ईमानदार सरकार / स्वप्न बुनना रे 
 
३. नारी पर अत्याचार / जहाँ भी होते
    अनुशासन बिन नागरिक / शांति-सुख खोते
     जननायक साधें स्वार्थ / न करते सेवा
     धन रख विदेश में खूब / उड़ाते मेवा
     गणतंत्र वहाँ अभिशाप / सदृश हो जाता
     अफसर  -सेठों में जुड़े / घूस का  नाता
     अन्याय न्याय का  रूप / धरे पलता है
     विश्वास - सूर्य दोपहर / लगे ढलता है 

४. राजनीति कोठरी, काजल की कारी
   हर युग हर काल में, आफत की मारी
   कहती परमार्थ पर, साधे सदा स्वार्थ
   घरवाली से अधिक, लगती है प्यारी

५. बोल-बोल थक गये, बातें बेमानी
    कोई सुनता नहीं, जनता है स्यानी
    नेता और जनता , नहले पर दहला
    बदले तेवर दिखा, देती दिल दहला
 
६. कली-कली चूमता, भँवरा हरजाई
    गली-गली घूमता, झूठा सौदाई
    बिसराये वायदे, साध-साध कायदे
    तोड़े सब कायदे, घर मिला ना घाट

                         *********
टीप राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त जी ने साकेत में राधिका छंद का प्रयोग किया है.

    हा आर्य! भरत का भाग्य, रजोमय ही है,
    उर रहते उर्मि उसे तुम्हीं ने दी है.
    उस जड़ जननी का विकृत वचन तो पाला
    तुमने इस जन की ओर न देखा-भाला।
          ******************************

(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, कीर्ति, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दीप, दीपकी, दोधक, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)
।। हिंदी आटा माढ़िये, उर्दू मोयन डाल । 'सलिल' संस्कृत सान दे, पूरी बने कमाल ।।


          ******************************



बुधवार, 30 अप्रैल 2014

gazal: rajendra swarnkar

एक ग़ज़ल श्रृंगार की


राजेंद्र स्वर्णकार


Jokes -Dr. M.C. Gupta 'khalish'

A laugh a Day ::
 

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One laugh per day is better than eating one apple a day....
 
A man was granted two wishes by God.
He asked for the best drink and the best woman ever.
He got mineral water and Mother Teresa. 

. . . . . . . . . . . 

There are three kinds of men in this world.
Some remain single and make wonders happen.

Some have girlfriends and see wonders happen.

The rest get married and wonder what happened!
 

. . . . . . . . . . . 


Wives are magicians. They can turn anything into an argument.
. . . . . . . . . . .

When asked in class; Why do women live a better, longer and a more peaceful life than men?

A very INTELLIGENT student replied:

"Because women don't have wives!"
 

. . . . . . . . . . . 


Husband to his wife: "Honey... I've invited a friend home for supper."
Wife: "What? Are you crazy? The house is a mess, I haven't been shopping, all the dishes are dirty and I don't feel like cooking a fancy meal!"

Husband: "I know all that."

Wife: "Then why did you invite a friend home for supper?"

Husband: "Because the poor fool is thinking of getting married!" 

. . . . . . . . . . .
 

Cool message to mother-in-law:
"Dear Mother-in-law, Don't teach me how to handle my children. I am living with one of yours and he needs a lot of improvement!" 

. . . . . . . . . . .
 


When a married man replies; "I'll think about it." -- What he really means is that he hasn't asked his wife for permission yet! 

. . . . . . . . . . . 

A lady says to her doctor: "My husband has a habit of talking in his sleep! What should I give him to cure it?"
The doctor replies: "Give him the opportunity to speak while he's awake!"

मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

geet: samay ki karvaton ke sath -sanjiv

गीत:
समय की करवटों के साथ
संजीव
*
गले सच को लगा लूँ मैँ समय की करवटों के साथ
झुकाया, ना झुकाऊँगा असत के सामने मैं माथ...
*
करूँ मतदान तज मत-दान बदलूँगा समय-धारा
व्यवस्था से असहमत है, न जनगण किंतु है हारा
न मत दूँगा किसी को यदि नहीं है योग्य कोई भी-
न दलदल दलोँ की है साध्य, हमकों देश है प्यारा
गिरहकट, चोर, डाकू, मवाली दल  बनाकर आये
मिया मिट्ठू न जनगण को तनिक भी क़भी भी भाये
चुनें सज्जन चरित्री व्यक्ति जो घपला प्रथा छोड़ें
प्रशासन को कसे, उद्यम-दिशा को जमीं से जोड़े
विदेशी ताकतों से ले न कर्जे, पसारे मत हाथ.…
*
लगा चौपाल में संसद, बनाओ नीति जनहित क़ी
तजो सुविधाएँ-भत्ते, सादगी से रहो, चाहत की
धनी का धन घटे, निर्धन न भूखा कोई सोयेगा-
पुलिस सेवक बने जन की, न अफसर अनय बोयेगा
सुनें जज पंच बन फ़रियाद, दें निर्णय न देरी हो
वकीली फ़ीस में घर बेच ना दुनिया अँधेरी हो
मिले श्रम को प्रतिष्ठा, योग्यता ही पा सके अवसर
न मँहगाई गगनचुंबी, न जनता मात्र चेरी हो
न अबसे तंत्र होगा लोक का स्वामी, न जन का नाथ…
*

chitra par kavita: sanjiv

चित्र पर कविता:
संजीव
*
 
*
अगम अनाहद नाद हीं, सकल सृष्टि का मूल
व्यक्त करें लिख ॐ हम, सत्य कभी मत भूल
निराकार ओंकार का, चित्र न कोई एक
चित्र गुप्त कहते जिसे, उसकाचित्र हरेक
सृष्टि रचे परब्रम्ह वह, पाले विष्णु हरीश
नष्ट करे शिव बन 'सलिल', कहते सदा मनीष

कंकर-कंकर में रमा, शंका का  कर अन्त
अमृत-विष धारण करे, सत-शिव-सुन्दर संत
महाकाल के संग हैं, गौरी अमृत-कुण्ड
सलिल प्रवाहित शीश से, देखेँ चुप ग़ज़-तुण्ड
विष-अणु से जीवाणु को, रचते विष्णु हमेश
श्री अर्जित कर रम रहें, श्रीपति सुखी विशेष
ब्रम्ह-शारदा लीन हो, रचते सुर धुन ताल
अक्षर-शब्द सरस रचें, कण-कण देता ताल
नाद तरंगें संघनित, टकरातीं होँ एक
कण से नव कण उपजते, होता एक अनेक
गुप्त चित्र साकार हो, निराकार से सत्य
हर आकार विलीन हो, निराकार में नित्य
आना-जाना सभी को, यथा समय सच मान
कोई न रहता हमेशा, परम सत्य यह जान
नील गगन से जल गिरे, बहे समुद मेँ लीन
जैसे वैसे जीव हो, प्रभु से प्रगट-विलीन
कलकल नाद सतत सुनो, छिपा इसी में छंद
कलरव-गर्जन चुप सुनो, मिले गहन आनंद
बीज बने आनंद ही, जीवन का है सत्य
जल थल पर गिर जीव को, प्रगटाता शुभ कृत्य
कर्म करे फल भोग कर, जाता खाली हाथ
शेष कर्म फल भोगने, फ़िर आता नत माथ
सत्य समझ मत जोड़िये, धन-सम्पद बेकार
आये कर उपयोग दें, ओरों को कर प्यार
सलिला कब जोड़ें सलिल, कभी न रीते देख
भर-खाली हो फ़िर भरे, यह विधना का लेख