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सोमवार, 8 अप्रैल 2013

English poetry 2 : Acrostic Poems : dr. deepti gupta

अँग्रेज़ी काव्य विधाएँ-२
Acrostic Poems :   (आक्रोस्टिक पोयम्स): 

dr. deepti gupta
* 
यह अँग्रेज़ी कविता  का ऐसा  रूप है  जिसमें हर पंक्ति  में पहले शब्द
का पहला अक्षर आगे आने वाले अक्षरों के साथ जुड कर संयुक्त रूप से
एक  सार्थक शब्द या सन्देश  का सृजन  करता है- जो कविता का
शीर्षक भी हो सकता है! जैसे&
 
THE ROSE
 
T hirty two steps through the yellow 
  green grass led me to you.
H aving to choose which one, my heart 
  will no doubt choose you.   
E very rose bloomed quite differently 
 though nothing meretricious like you.
 
R ed is knewn to be the favourite 
  colour to man,colour blinded, my 
  soul desired you.
O of all the roses, my senses were 
  captivated and comly to you. 
S ome man may pick up more than one 
  rose, but I only want you.
E ven mother nature pulchritudinous 
  can't compare you. 
  
MY POETRY SOUP 


M y eyes see what your heart is 
  feeling
Y our feelings you write out as 
  poetry
 

P ain, love, joy, wonder, 
  inspiration
O nly you can help me see, hear
  and feel you
E ven though only words you have 
  written they
T ouch my heart and mind deeply 
  from within
R equiring me to write a poem so 
  full of feeling as
Y ou become my poetry I write 
  from my heart
 
S mile, laugh, cry, whisper, or 
  shout
O pen your heart, mind, and soul
U tter your words on paper or 
  screen
P oetry is where I see and feel 
  your soul
*
Nicky
by
Marie Hughes
0                         
Nicky is a Nurse
It's her chosen career
c hiidren or old folks
k indness in abundance
Y ear after year
  
 
अभिनव प्रयोग-
आद्याक्षरी कविता सरस 
संजीव वर्मा 'सलिल'
०
आदि-अंत से रहित है, सबका पालनहार.
द्याना सबको यथोचित, कारया करे करतार..
क्षमा वीर को सोहती, दे उदार ही दान. 
रीझे कवि सौंदर्य पर, संत तजे अभिमान..
कन्या को शालीनता, सुत को संयम-सीख.
विग्य सदा कहते रहे, ज़्यादा रह कम दीख..
तालमेल से शांति-सुख, अहंकार दुख-ख़ान.
सदाचार से स्नेह हो, नष्ट करे अभिमान..
रसना रस की दास बन, नष्ट करे सम्मान.
सविनय सीखे सबक जो, वही बने गुणवान..
०
टीप: द्याना = दिलाना 
उक्त आद्याक्षरी रचना दोहा के छन्द-विधान के 
अनुरूप है. 
हर दो पंक्तियों में समान तुक का पालन होने 
से यह कप्लेट(द्विपदी)भी है. 
*
madhu gupta
 
MADHU 
M y struggle in life
A rise from the past strife
D ead are the by gone moments 
H ell and fury would scream aloud
U nder the ruins of pain I live 
  and will one day die.
*
SHIVER

S he rose from the dust of her ashes
H aving nothing on herself except
I nsult of being born
V aluable future did'nt forsake
E ver went ahead looking straight in
  the eyes of the Sun
R aring not to subdue, daring the pain.
 (Audi Riak a 6 yeared Sudani refugee girl
  along with thousadns leved, died & 
  survived above reaction 0n her.)
*
नींजा जी   
नीं द कैसे आयगी गर भूखे ही रह जायेंगे
र ह रह के करवटें बदलेंगे सो नहीं पायेंगे 
जा नेमन न हुईं जो शबे रात में पास तुम
जी कैसे बहलाएँगे तरसते ही रह जायेंगे 
*

महेश चन्द्र द्विवेदी
-
नींजा जी   
नी रव जीवन में प्रतिपल झंकृत 
र जनी के तम में चिरआलोकित
जा न्हवी सम महेश को अर्पित,
जी वनसंगिनि! यह तुम्हे समर्पित 
 
*
 

                                                                                             
 

doha salila sanjiv 'salil'

दोहा सलिला
संजीव सलिल

ठिठुर रहा था तुम मिलीं, जीवन हुआ बसंत0
दूर हुईं पतझड़ हुआ, हेरूँ हर पल कन्त

तुम मैके मैं सासरे, हों तो हो आनंद
मैं मैके तुम सासरे, हों तो गाएँ छन्द

तू-तू मैं-मैं तभी तक, जब तक हों मन दूर
तू-मैं ज्यों ही हम हुए, साँस हुई संतूर
0
दो हाथों में हाथ या, लो हाथों में हाथ
अधरों पर मुस्कान हो, तभी सार्थक साथ
0
नयन मिला छवि बंदकर, मून्दे नयना-द्वार
जयी चार, दो रह गये, नयना खुद को हार
000

geet: shri prakash shukla

xhr%
श्रीप्रकाश शुक्ल
0




सब समय तुम्ही ले लेती हो

सब समय तुम्ही ले लेती हो 
 कैसे संभव हो कोई काम 

प्राची में बन तुम अरुण किरण
मेरी खिडकी के द्वार खोल
छूती जब आ मेरे कपोल
मैं सेज छोड़ उठ जाता हूँ 
ले प्राण तुम्हारा मधुर नाम 
कैसे संभव हो कोई काम 

अध्ययन को पुस्तक खोलूँ,
तो शब्द शब्द धुंधले होते
ना जाने क्यों विकल नयन
अपनी चेतन प्रज्ञा खोते
बस प्रष्ट प्रष्ट पर दिखती हो  
गुंजन करती स्वर ललाम  
कैसे संभव हो कोई काम  

ध्यान अर्थ जब बैठूं मैं
तुम सन्मुख आ जाती हो 
नभ में छिटकी बदली सी
बस अंतस में छा जाती हो 
मन्त्र मुग्ध मैं खो जाता हूँ 
चित्र सजा मोहक अभिराम 
कैसे संभव हो कोई काम 

सब समय तुम्ही ले लेती हो 
कैसे संभव हो कोई काम 
000

bodh katha: panchayat ka nirnay


बोध कथा 

पंचायत का निर्णय

एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए उजड़े, वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये !

हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ? यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं ! यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा ! भटकते २ शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज कि रात बिता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे !

रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे उस पर एक उल्लू बैठा था। वह जोर २ से चिल्लाने लगा।

हंसिनी ने हंस से कहा, अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते। ये उल्लू चिल्ला रहा है। हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ? ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही। पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों कि बात सुन रहा था। सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ कर दो। हंस ने कहा, कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद !

यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा, पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो। हंस चौंका, उसने कहा, आपकी पत्नी? अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है, मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है !

उल्लू ने कहा, खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है। दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग इक्कठा हो गये। कई गावों की जनता बैठी। पंचायत बुलाई गयी। पंच लोग भी आ गये ! बोले, भाई किस बात का विवाद है ? लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है !

लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पञ्च लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे। हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है। इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना है ! फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों कि जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है !

यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया। उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली ! रोते- चीखते जब वहआगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई - ऐ मित्र हंस, रुको ! हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ? पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे

उल्लू ने कहा, नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी ! लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है ! मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है । यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पञ्च रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं !

शायद ६५ साल कि आजादी के बाद भी हमारे देश की दुर्दशा का मूल कारण यही है कि हमने हमेशा अपना फैसला उल्लुओं के ही पक्ष में सुनाया है। इसलिए कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैं।
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शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

ravan ki mritu kab? devesh shastree

: शोध :

रावण दशहरा (क्वार सुदी दशमी) को नहीं मारा गया

देवेश शास्त्री 

*

‘‘विजया दशमी यानी क्वार सुदी दशहरा को रावण मारा गया। यह महापर्व सदियों से मनाया जाता है। हम और आप सभी पीढ़ी दर पीढ़ी विजय दशहरा का पर्व मना रहे हैं। बाल्मीकि रामायण तथा राम चरित मानस में भगवान राम का ऋष्यमूक पर्वत पर चातुर्मास प्रवास का उल्लेख मिलता है। ‘‘वर्षा और शरद ऋतु में जब राम-लक्ष्मण एक स्थान पर रहे तो क्वार में युद्ध हुआ ही नहीं होगा तो क्वार सुदी दशमी को रावण का संहार नहीं हुआ होगा।’’ इस जिज्ञासा को लेकर मैंने कई ग्रन्थ खंगाले, कहीं रावण बध की तिथि का प्रमाण नहीं मिला। पदम पुराण के पातालखंड में मेरी शंका का समाधान हुआ। ‘‘युद्धकाल पौष शुक्ल द्वितीया से चैत्र कृष्ण चौदस तक 87 दिन, 15 दिन अलग-अलग युद्धबंदी, 72 दिन चले महासंग्राम में लंकाधिराज रावण का संहार क्वार सुदी दशमी को नहीं चैत्र वदी चतुर्दशी को हुआ।
घन घमंड गरजत चहु ओरा। प्रियाहीन डरपत मन मोरा।। 

रामचरित मानस हो, बाल्मीकि रामायण अथवा ‘रामायण शत कोटि अपारा’ हर जगह ऋष्यमूक पर्वत पर चातुर्मास प्रवास के प्रमाण मिलते हैं। पद्मपुराण के पाताल खंड में श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के प्रसंग में अश्व रक्षा के लिए जा रहे शत्रुध्न ऋषि आरण्यक के आश्रम में पहुंचते हैं। परिचय देकर प्रणाम करते है। शत्रुघ्न को गले से लगाकर प्रफुल्लित आरण्यक ऋषि बोले- ''गुरु का वचन सत्य हुआ। सारूप्य मोक्ष का समय आ गया।'' उन्होंने गुरू लोमश द्वारा पूर्णावतार राम के महात्म्य का उपदेश देते हुए कहा था कि जब श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा काश्रम में आयेगा, रामानुज शत्रुघ्न से भेंट होगी। वे तुम्हें राम के पास पहुंचा देंगे।

इसी के साथ ऋषि आरण्यक रामनाम की महिमा के साथ नर रूप में राम के जीवन वृत्त को तिथिवार उद्घाटित करते है- ''जनक पुरी में धनुषयज्ञ में राम-लक्ष्मण कें साथ विश्वामित्र का पहुँचना और राम द्वारा धनुषभंग, राम-सीता विवाह का प्रसंग सुनाते हुए आरण्यक ने बताया विवाह के समय राम 15 वर्ष के और सीता 06 वर्ष की थी। विवाहोपरांत वे 12 वर्ष अयोध्या में रहे 27 वर्ष की आयु में राम के अभिषेक की तैयारी हुई मगर रानी कैकेई के वर मांगने पर सीता व लक्ष्मण के साथ श्रीराम को चौदह वर्ष के वनवास में जाना पड़ा।

वनवास में राम प्रारंभिक 3 दिन जल पीकर रहे, चौथे दिन से फलाहार लेना शुरू किया। पांचवें दिन वे चित्रकूट पहुँचे। श्री राम चित्रकूट में पूरे 12 वर्ष रहे। 13वें वर्ष के प्रारंभ में राम, लक्ष्मण और सीता के साथ पंचवटी पहुँचे और शूर्पनखा को कुरूप किया। माघ कृष्ण अष्टमी को वृन्द मुहूर्त में लंकाधिराज दशानन ने साधुवेश में सीता का हरण किया। श्रीराम व्याकुल होकर सीता की खोज में लगे रहे। जटायु का उद्धार व शबरी मिलन के बाद ऋष्यमूक पर्वत पर पहुँचे, सुग्रीव से मित्रता कर बालि का बध किया।  

आषाढ़ सुदी एकादशी से चातुर्मास प्रारंभ हुआ। शरद ऋतु के उत्तरार्द्ध यानी कार्तिक शुक्लपक्ष से वानरों ने सीता की खोज शुरू की। समुद्र तट पर कार्तिक शुक्ल नवमी को संपाती नामक गिद्ध ने बताया कि सीता लंका की अशोक वाटिका में हैं। तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवोत्थानी) को हनुमान ने छलांग लगाई, और रात में लंका प्रवेश कर सीता की खोज-बीन करने लगे। कार्तिक शुक्ल द्वादशी को अशोक वाटिका में शिंशुपा वृक्ष पर छिप गये और माता सीता को रामकथा सुनाई। कार्तिक शुक्ल तेरस को अशोक वाटिका विध्वंश किया, उसी दिन अक्षय कुमार का बध किया। कार्तिक शुक्ल चौदस को मेघनाद का ब्रह्मपाश में बंधकर दरबार में गये और लंकादहन किया। हनुमानजी कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को वापसी में समुद्र पार किया। प्रफुल्लित सभी वानरों ने नाचते गाते 5 दिन मार्ग में लगाये और अगहन कृष्ण षष्ठी को मधुवन में आकर वन ध्वंस किया हनुमान की अगवाई में सभी वानर अगहन कृष्ण सप्तमी को श्रीराम के समक्ष पहुँचे,  हाल-चाल दिये।  

अगहन कृष्ण अष्टमी उ. फाल्गुनी नक्षत्र विजय मुहूर्त में श्रीराम ने वानरों के साथ दक्षिण दिशा को कूच किया और 7 दिन में किष्किंधा से समुद्र तट पहुचे। अगहन शुक्ल प्रतिपदा से तृतीया तक विश्राम किया। अगहन शुक्ल चतुर्थ को रावणानुज श्रीरामभक्त विभीषण शरणागत हुआ। अगहन शुक्ल पंचमी को समुद्र पार जाने के उपायों पर परिचर्चा हुई। सागर से मार्ग याचना में श्रीराम ने अगहन शुक्ल षष्ठी से नवमी तक 4 दिन अनशन किया। नवमी को अग्निवाण का संधान हुआ तो रत्नाकर प्रकट हुए और सेतुबंध का उपाय सुझाया। अगहन शुक्ल दशमी से तेरस तक 4 दिन में श्रीराम सेतु बनकर तैयार हुआ

अगहन शुक्ल चौदस को श्रीराम ने समुद्र पार सुवेल पर्वत पर प्रवास किया, अगहन शुक्ल पूर्णिमा से पौष कृष्ण द्वितीया तक 3 दिन में वानरसेना सेतुमार्ग से समुद्र पार कर पाई। पौष कृष्ण तृतीया से दशमी तक एक सप्ताह लंका का घेराबंदी चली। पौष कृष्ण एकादशी को सुक सारन वानर सेना में घुस आये। पौष कृष्ण द्वादशी को वानरों की गणना हुई और पहचान करके उन्हें अभयदान दिया। पौष कृष्ण तेरस से अमावस्या तक रावण ने गोपनीय ढंग से सैन्याभ्यास किया। पौष शुक्ल प्रतिपदा को अंगद को दूत बनाकर भेजा गया।

इसके बाद पौष शुक्ल द्वितीया से युद्ध आरंभ हुआ। अष्टमी तक वानरों व राक्षसों में घमासान युद्ध हुआ। पौष शुक्ल नवमी को मेघनाद द्वारा राम लक्ष्मण को नागपाश में बांध दिया गया। श्रीराम के कान में कपीश द्वारा पौष शुक्ल दशमी को गरुड़ मंत्र का जप किया गया, पौष शुक्ल एकादशी को गरुड़ का प्राकट्य हुआ और उन्होंने नागपाश काटकर राम-लक्ष्मण को मुक्त किया। पौष शुक्ल द्वादशी को ध्रूमाक्ष्य बध, पौष शुक्ल तेरस को कंपन बध, पौष शुक्ल चैदसचौदस से माघ कृष्ण प्रतिपदा तक 3 दिनों में कपीश नील द्वारा प्रहस्तादि का वध किया गया।  

माघ कृष्ण द्वितीया से राम-रावण में तुमुल युद्ध प्रारम्भ हुआ। माघ कृष्ण चतुर्थी को रावण को भागना पड़ा। रावण ने माघ कृष्ण पंचमी से अष्टमी तक 4 दिन में कुंभकरण को जगाया। माघ कृष्ण नवमी से शुरू हुए युद्ध में छठे दिन चौदस को कुंभकरण को श्रीराम ने मार गिराया। कुंभकरण बध पर माघ कृष्ण अमावस्या को शोक में रावण द्वारा युद्ध विराम किया गया। माघ शुक्ल प्रतिपदा से चतुर्थी तक युद्ध में विसतंतु आदि 5 राक्षसों का बध हुआ। माघ शुक्ल पंचमी से सप्तमी तक युद्ध में अतिकाय मारा गया। माघ शुक्ल अष्टमी से द्वादशी तक युद्ध में निकुम्भ-कुम्भ व्ध, माघ शुक्ल तेरस से फागुन कृष्ण प्रतिपदा तक युद्ध में मकराक्ष वध हुआ। 

फागुन कृष्ण द्वितीया को लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध प्रारंभ हुआ। फागुन कृष्ण सप्तमी को लक्ष्मण मूर्छित हुए, उपचार आरम्भ हुआ। इस घटना के कारण फागुन कृष्ण तृतीया से सप्तमी तक 5 दिन युद्ध विराम रहा। फागुन कृष्ण अष्टमी को वानरों ने यज्ञ विध्वंस किया, फागुन कृष्ण नवमी से फागुन कृष्ण तेरस तक चले युद्ध में लक्ष्मण ने मेघनाद को मार गिराया। इसके बाद फागुन कृष्ण चौदस को रावण की यज्ञ दीक्षा ली और फागुन कृष्ण अमावस्या को युद्ध के लिए प्रस्थान किया।

फागुन शुक्ल प्रतिपदा से पंचमी तक भयंकर युद्ध में अनगिनत राक्षसों का संहार हुआ। फागुन शुक्ल षष्टी से अष्टमी तक युद्ध में महापार्श्व आदि का राक्षसों का वध हुआ। फागुन शुक्ल नवमी को पुनः लक्ष्मण मूर्छित हुए, सुखेन वैद्य के परामर्श पर हनुमान द्रोणागिरि लाये और लक्ष्मण पुनः चैतन्य हुए।

राम-रावण युद्ध फागुन शुक्ल दशमी को पुनः प्रारंभ हुआ। फागुन शुक्ल एकादशी को मातलि द्वारा श्रीराम को विजयरथ दान किया। फागुन शुक्ल द्वादशी से रथारूढ़ राम का रावण से तक 18 दिन युद्ध चला। चैत्र कृष्ण चौदस को दशानन रावण मौत के घाट उतारा गया। 

युद्धकाल पौष शुक्ल द्वितीया से चैत्र कृष्ण चौदस तक (87 दिन) 15 दिन अलग-अलग युद्धबंदी रही, 72 दिन महासंग्राम चला और श्रीराम विजयी हुए। चैत्र कृष्ण अमावस्या को विभीषण द्वारा रावण का दाह संस्कार किया गया।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (नव संवत्सर) से लंका में नये युग का प्रारंभ हुआ। चैत्र शुक्ल द्वितीया को विभीषण का राज्याभिषेक किया गया। अगले दिन चैत्र शुक्ल तृतीया का सीता की अग्निपरीक्षा ली गई और चैत्र शुक्ल चतुर्थी को पुष्पक विमान से राम, लक्ष्मण, सीता उत्तर दिशा में उड़े। चैत्र शुक्ल पंचमी को भरद्वाज के आश्रम में पहुँचे। चैत्र शुक्ल षष्ठी को नंदीग्राम में राम-भरत मिलन हुआ। चैत्र शुक्ल सप्तमी को अयोध्या में श्रीराम का राज्याभिषेक किया गया। यह पूरा आख्यान ऋषि आरण्यक ने शत्रुघ्न को सुनाया। फिर शत्रुघ्न ने आरण्यक को अयोध्या पहुँचाया, जहाँ अपने आराध्य पूर्णावतार श्रीराम के सान्निध्य में ब्रह्मरंध्र द्वारा सारूप्य मोक्ष पाया।

सप्रमाण स्वाध्याय-शोध: देवेश शास्त्री ।। सत्यमेव जयते।।

muktika AMMI sanjiv 'salil'

मुक्तिका%
अम्मी

संजीव सलिल
0
माहताब की जुन्हाई में
झलक तुम्हारी पाई अम्मी
दरवाजे, कमरे आँगन में
हरदम पडी दिखाई अम्मी

कौन बताये कहाँ गयीं तुम
अब्बा की सूनी आँखों में
जब भी झाँका पडी दिखाई
तेरी ही परछाईं अम्मी

भावज जी भर गले लगाती
पर तेरी कुछ बात और थी
तुझसे घर अपना लगता था
अब बाकी पहुनाई अम्मी

बसा सासरे केवल तन है
मन तो तेरे साथ रह गया
इत्मीनान हमेशा रखना-
बिटिया नहीं परायी अम्मी

अब्बा में तुझको देखा है
तू ही बेटी-बेटों में है
सच कहती हूँ, तू ही दिखती
भाई और भौजाई अम्मी.

तू दीवाली, तू ही ईदी
तू रमजान फाग होली है
मेरी तो हर श्वास-आस में
तू ही मिली समाई अम्मी
0000

English Poetry 1 : Couplet Dr. deepti Gupta



अंगरेजी काव्य विधाएं और हिंदी रूपंरातण  १ 

दीप्ति गुप्ता  
*
आदरणीय  संजीव जी के  आदेश एवं  सुन्दर  सुझाव के तहत  अपनी तुच्छ  जानकारी के  अनुसार  अंग्रेजी की कविता के  विविध प्रकार  के बारे में  हम जानकारी   देने  की  कोशिश करेगें !  इससे  हमें  भी  एक लाभ होगा कि हमारा  विद्यार्थी जीवन पुनर्जीवित हो उठेगा और  हमारी  पढाई- लिखाई   की   जंग  भी साफ़  हो जायेगी !  कहीं - कहीं भूल-चूक  होने की संभावना  है, सो  उसके लिए  अभी से  आप सबको   हमें  'क्षमा'  करने के लिए  तैयार रहना  होगा ! 

अस्तु,   आज  सबसे पहले -  अंग्रेजी कविता के  विविध रूपों का  उल्लेख मात्र - जिनके नाम  इस प्रकार है -  

Acrostic Poems,  

ABC Poems,  

Blank Verse Poems,    

Cinquain Poems,

Circle Poems,
 
Concrete Poems, 

Couplet Poems,
Diamante, 

Haiku,  

Limerick,
 
Name Poem,   

Ode,
 
Parody Poems,
 
Quatrain Poems, Sonnets,
   
Who-What-When-Where-Why Poems,

     इनके बारे में हम  एक-एक करके  लिखेगें -  आज  सबसे आसान और प्रचलित  कविता  Couplet के बारे में  


Couplet  :

समध्वनियों   वाले शब्दों  पे  अंत होने वाली   दो  लयात्मक  पंक्तियों   की कविता  को   couplet  कहा  जाता  है !   दोनों पंक्तियों  का मीटर  समान होता है !  जैसे -


Watering rain on the leaves
Orchid plant mutely sleeps


Under the pillow raining night
Memory coins may or might!
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बुधवार, 3 अप्रैल 2013

kavitayen : sanjiv 'salil'

क़ानून

क़ानून को
आम आदमी तोड़े तो बदमाश
निर्बल तोड़े तो शैतान
असहाय तोड़े तो गुंडा
समर्थ या नेता तोड़े तो निर्दोष
और अभिनेता तोड़े तो
सहानुभूति का पात्र.

कंधा

आँसू को कंधा देकर
क्या मुझको मरना है
नेह नर्मदा सम आँसू में
पुलक सपरना है
मैं-तुम आँसू की गंगा में
हुलस नहाएँगे
एक-दूसरे की आँखों में
जन्नत पाएँगे
 &&&&&&&&
salil.sanjiv@gmail.com
divyanarmada.blogspot.in

gazal: anand pathak

ग़ज़ल :  
क्या करेंगे....
आनन्द पाठक,जयपुर

 
क्या करेंगे आप से हम याचनाएं
मर चुकी जिनकी सभी संवेदनाएं
 
जो मिले अनुदान रिश्वत में बँटे है फ़ाइलों में चल रही परियोजनाएं
 
रोशनी के नाम दरवाजे खुले हैं हादसों की बढ़ गई संभावनाएं
 
पत्थरों के शहर में कुछ आइनें हैं डर सताता है कहीं वो बिक न जाएं
 
आप की हर आहटें पहचानते हैं जब कभी जितना दबे भी पाँव आएं
 
चाहता है जब कहे वो बात कोई बेझिझक हम हाँमें उसकी हाँमिलाएं
 
वो इशारों से नहीं समझेगा आननजब तलक आवाज न अपनी बढ़ाएं
-
 

मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

memories: amrita pritam

संस्मरण 

                                             
अमृता प्रीतम जी
विजय निकोर
*
यह संस्मरण एक उस लेखक पर है जिसने केवल अपनी ही ज़िन्दगी नहीं जी, अपितु उस प्रत्येक मानव की ज़िन्दगी जी है जिसने ज़िदगी और मौत को,खुशी और ग़म को, एक ही प्याले में घोल कर पिया है ... जिसके लिए ज़िन्दगी की "खामोशी की बर्फ़ कहीं से भी टूटती पिघलती नहीं थी।"

यह संस्मरण उस महान कवयित्री पर है जो सारी उम्र कल्पना के गीत लिखती रही...."पर मैं वह नहीं हूँ जिसे कोई आवाज़ दे, और मैं यह भी जानती हूँ, मेरी आवाज़ का कोई जवाब नहीं आएगा।" उसने एक बार फिर ज़िन्दगी से निवेदन किया, "तुम्हारे पैरों की आहट सुनकर मैंने ज़िन्दगी से कहा था, अभी दरवाज़ा बंद नहीं करो हयात। रेगिस्तान से किसी के कदमों की आवाज़ आ रही है।"

इस भूमिका के बाद, अब कह दूँ कि यह संस्मरण है पंजाबी की सर्वश्रेष्ठ लेखिका अमृता प्रीतम से मिलने का, जिनसे मुझको १९६३ में मेरी २१ वर्ष की अल्प आयु में कई बार मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। हर कोई शायद उस पड़ाव पर सोचता है कि वह बहुत बुध्दिशाली है, बहुत कुछ जानता है, समझता है, पर मैं समय के माहौल के लिए उपयुक्त नहीं था। मैं दुनियादारी में बहुत भोला था, सरल था, और अभी भी हूँ। एक बड़ा अंतर था मुझमें और मेरे हम-उम्र वालों में। उनके लिए ज़िन्दगी हँसी-मज़ाक के लिए थी, मैं भी उनके साथ खेलता था, हँसता था, पर अकेले में उदासी की खाई में उतर कर ज़िन्दगी को परखता था ... ऊपर-नीचे-आगे-पीछे। अमृता जी से मिलने पर पहली बार ही उन्होंने मेरी इस प्रकृति को पहचान लिया।   

अमृता जी के लिए उनकी सारी ज़िन्दगी जैसे एक खत थी, ... "मेरे दिल की हर धड़कन एक अक्षर है, मेरी हर साँस जैसे कोई मात्रा, हर दिन जैसे कोई वाक्य, और सारी ज़िन्दगी जैसे एक ख़त। अगर किसी तरह यह ख़त तुम्हारे पास पहुँच जाता, मुझे किसी भी भाषा के शब्दों की मोहताजी न होती।"

मैं उस समय तक अमृता प्रीतम जी की कई पुस्तकें शौक से पढ़ चुका था ...‘रंग का पत्ता’, ‘अशु’, ‘एक थी अनीता’, ‘बंद दरवाज़ा’, आदि ... अब धर्मयुग पत्रिका में उनकी एक कविता प्रकाशित हुई जिसके नीचे उनका पता भी लिखा हुआ था ... K-25 हौज़ खास, नई दिल्ली। मैं बहुत प्रसन्न हुआ। मैं भी तब नई दिल्ली में ही रहता था, सोचा, कितना अच्छा हो कि यदि उनसे संपर्क हो जाए। अत: एक छोटे-से पत्र में अपना परिचय दे कर उन्हें लिखा कि मैं उनसे मिलने को उत्सुक हूँ।

अमृता जी के हाथ का लिखा पत्र:

बार-बार संकोच हो रहा था कि वह मुझको, एक २१ वर्ष के अनुभवहीन को, अपना समय क्यूँ देंगी, परन्तु मैं गलत था। हैरान था, विश्वास नहीं हो रहा था जब डाक में मेरे नाम एक लिफ़ाफ़ा आया ... यह अमृता जी का पत्र था ... दूरभाष नम्बर दिया और कहा कि वह मुझसे मिल सकती हैं। सच? मैं २१ साल का ‘बच्चा’ मन ही मन फूला नहीं समा रहा था। खुशी बाँटूं तो किस से? मित्रों को तो साहित्य में रूचि नहीं थी ... हाँ, मैंने यह खुशी बाँटी एक "उससे" जो अपनी-सी लगती थी, और अपनी भाभी से जिसको मेरी उदास रचनाएँ भी अच्छी लगती थीं। मैं इस खत को हाथ में लिए न जाने कितनी बार सीढ़ियों पर ऊपर-से-नीचे-से-ऊपर गया... जैसे कोई बच्चा हाथ में नया खिलोना लिए मेले में खो जाता है ... खिलोने की खुशी और खो जाने की चिंता!

भारत में १९६३ में घरों में दूरभाष अभी आम नहीं थे। मैं अमीर परिवार से नहीं था, घर में तब दूरभाष नहीं था। लगबघ ८०० गज़ चल कर बाज़ार में अनाज की दुकान पर दुकानदार को ५० पैसे दे कर उसके दूरभाष से अमृता जी से बात करी। उन्होंने स्वयं ही उठाया ... उनकी आवाज़ सुन कर मैं हैरान ... कि जैसे पल भर को मेरे मुँह में आवाज़ नहीं थी। "मैं.. मैं.. विजय निकोर" मेरा नाम सुनने पर उन्होंने कोई दूरी नहीं दिखाई ... कि जैसे उन्हें मेरा नाम याद था। यह ३० मई १९६३ थी, ३ जून को मिलना तय हुआ। कहने लगीं, "कुछ देर से घर पर मज़दूर काम कर रहे हैं, शायद कुछ आवाज़ होगी... आप बुरा न माने तो..।" मैं ..? मैं बुरा क्या मानता, मेरे तो पाँव धरती पर नहीं टिक रहे थे। मिलने की प्रत्याशा में इस २१ वर्ष के ‘बच्चे’ को रातों नींद नहीं आ रही थी। एक-एक पहर भारी हो रहा था।

३ जून की शाम आई और मैं बस पर दिल्ली के ‘जंगपुरा’ से ‘हौज़ खास’ गया ...... # K-25 पर घंटी बजाई तो दरवाज़े पर अमृता जी खुद ही थीं ... बैठक में ले गईं और बैठने के लिए सोफ़े की ओर संकेत किया। २ लम्बे सोफ़े थे, १ सोफ़ा-कुर्सी थी, और तीनों का रंग अलग -अलग था (इस पर करी बात भी नीचे लिखी है)।

अमृता जी स्वयं कुर्सी पर बैठीं। सादी सलवार-कमीज़, चेहरे पर रौनक थी, सुखद मुस्कान थी जो मेरी ’‘उत्सुक्तावश चिंता’ को दूर कर रही थी। मेरे चेहरे पर उन्हें कुछ दिखा होगा कि उन्होंने कहा, "आराम से बैठिए, घर की ही बात है"। पहले थोड़ी इधर-उधर की बात की, और फिर कविता की, उनके साहित्य की ....

विजय, " आप पहले पटेल नगर में रहती थीं न?"

अमृता जी, " हाँ, हाल ही में आए हैं यहाँ, तभी तो कब से घर पर काम चल रहा है।"

वि० .. "आप तो वैसे मुझसे पहली बार मिल रही हैं, लेकिन मुझको लगता है कि मैं आपसे बहुत बार मिल चुका हूँ। जब-जब आपकी कोई किताब पढ़ी, नज़्म पढ़ी, उसकी गहराई बहुत अपनी-सी लगी, कि जैसे उसमें मैं आपको देख रहा हूँ, उसे आपसे ही सुन रहा हूँ।"

अमृता जी ने एक हल्की आधी मुस्कान दी, पलकें झपकीं, कि जैसे उन्होंने मेरी बात को, सराहना को, स्वीकार कर लिया हो।

अ० ..." आप यहाँ दिल्ली में ही रहते हैं?"

वि० ..." हाँ, माता-पिता यहाँ हैं, मैं ४ साल से इन्जनीयरिन्ग कालेज में बाहर था, अभी मई में दिल्ली वापस आया हूँ। फ़ाईनल परीक्षा के नतीजे का इन्तज़ार है।"

अ० ... " आपने मेरी चीज़ें हिन्दी और अन्ग्रेज़ी में ही पढ़ी होंगी?"              

वि० ... " हाँ, बहुत सारी तो हिन्दी में, और कुछ अन्ग्रेज़ी में भी। आप तो पंजाबी में लिखती हैं न, तो यह हिन्दी और अन्ग्रेज़ी में अनुवाद हैं क्या?"

अ० ... " मैं, जी, actually तो पंजाबी में ही लिखती हूँ, और कभी-कभी हिन्दी में भी। अन्ग्रेज़ी की तो सभी translated ही हैं।"

वि० ... "धर्मयुग में आपकी कविता अभी हाल में ही पढ़ी थी, जिसमें आपने लिखा है, .... ‘विरह के नीले खरल में हमने ज़िन्दगी का काजल पीसा रोज़ रात को आसमान आता है और एक सलाई माँगता है’

अ० ... " अच्छा वह!"

वि० ... " उसमें एक चीज़ मेरे लिए clear नहीं हुई। वहाँ पर आपने ‘नीला खरल’ कैसे कहा है?"

अ० ... " वह पंजाबी में इस तरह है जी कि ... आप पंजाबी जानते हैं क्या, तो मैं आपको पंजाबी में ही बताती हूँ।

वि० ... " जी, मैं भी पंजाबी हूँ... बोलता हूँ, समझता हूँ। आप गुजरांवाला से हैं, मेरा परिवार मुल्तान से है ... मैं लाहोर में पैदा हुआ था।"

अ० ... " अच्छा, फिर तो पंजाबी में ही अच्छी तरह बात कर लेंगे।" अब वह "नीले खरल" पर प्रश्न का उत्तर पंजाबी में देने लगीं। उनके मुँह से पंजाबी सुन कर मुझको बहुत अच्छा लगा, कि जैसे वह मुझको अब कुछ ही देर में "अपना" मान रही हैं। उनके चेहरे पर भी मुझको कुछ और सरलता का आभास हुआ ... बहुत सादगी दिख रही थी उनमें। इतने ऊँचे स्तर पर.. इतनी सादगी! उनमें अहम नहीं दिख रहा था।

अ० ...(पंजाबी में) अनुवाद नीचे दिया है.." ए खरल होंदा ए न, जिदे विच ए कुटदे ने, ओ नीले पत्थर दा बंढ़या होंदा ए। ऐ इक बड़ा ई खूबसूरत पत्थर होंदा वे, ते ओदे अंदर जिवें ज़िन्दगी दा सुर्मा पीसढ़ाँ होवे ... ऐथे ओदी गल कीती ए। अनुवाद: यह ओखली होती है न जिसमें किसी चीज़ को कूटते हैं, वह नीले पत्थर की बनी होती है। यह एक बहुत ही खूबसूरत पत्थर होता है, तो उसमें जैसे ज़िन्दगी का सुर्मा पीसना हो ... यहाँ उसकी बात करी है।

वि०... "और आगे आपने कहा, ‘रोज़ रात को आसमान आता है और एक सलाई माँगता है’.. this gives a beautiful anology to life!

अ०... "पंजाबी में सुनाऊँ? ... रोज़ रातीं अम्बर आंदा ए, ते इक सलाई मंगदा ए।"

वि०... "इतने थोड़े-से शब्दों में आपने ज़िन्दगी की कि-त-नी गहराई दे दी है! सच, हम विरह को रात को ही ज़्यादा अनुभव करते हैं .. नींद के समय।

अ० ... "विजय जी आप हिन्दी में लिखते हैं या ...?"

वि० ... "इससे पहले कि मैं आपके सवाल का जवाब दूँ, आप मुझको यह ‘आप’ कह कर क्यूँ बुला रही हैं?... मैं तो आपसे कितना छोटा हूँ.. अभी-अभी कालेज खत्म किया है।

अ० ... "छोटे भले ही हो, पर समझदारी में, ख़यालों में, शक्ल में, अलग किस्म की सचाई उभर रही है, यह समझदारी २१ साल की उम्र की नहीं लगती।

वि० ... "हाँ तो आपके सवाल का जवाब ... जी, ज़्यादातर तो हिन्दी में लिखता हूँ, और कुछ अन्ग्रेज़ी में भी ... (अमृता जी को अपने college magazines देते हुए) ... यह एक है जो अभी हाल ही में छपी थी। पढ़ कर सुनाऊँ क्या?

अ० ... "नहीं, छपी हुई है तो मैं खुद ही अच्छी तरह पढ़ लूँगी, ज़्यादा अच्छा लगेगा।" इस पर अमृता जी ने मेरी रचना को पढ़ कर सुनाया, और मुझको भी अपनी रचना उनके मुँह से सुनी ज़्यादा अच्छी लगी। पढ़ते-पढ़ते अंत में उन्होंने रचना के नीचे मेरा नाम थोड़ा ज़ोर से पढ़ा ... Vijay Nikore, Electrical Engineering Final Year. उसी समय उन्हें एक टेलीफ़ोन आ गया... घर पर काम चल रहा था न, उसके बारे में। अमृता जी किसी से पंजाबी में कह रही थीं, " हाँ जी, मरज़ी दा कम कराण लई, पैसे वी ते मरज़ी दे ई देणें पैंदें ने न।" ... अनुवाद .. "मर्ज़ी का काम कराने के लिए पैसे भी तो मर्ज़ी के ही देने पड़ते है न।"

वि० ... "कालेज में मेरे दोस्तों को मेरा लिखना अच्छा नहीं लगता था, उन्हें सिर्फ़ हँसी-मज़ाक चाहिए था न"
अ० ... " हाँ जी, ऐसा तो होता ही है ... तो आप लिखते कब थे?"
         
वि० ... "रात को जब सो जाते थे ... लिखने के लिए बस थोड़ी-सी चिंगारी की ज़रूरत होती है, एक बार शूरू करो तो कलम लिखती ही चली जाती है।"

अ० ... "हाँ, एक बार शूरू हो जाए बस।" ... एक और magazine में मेरी रचना `Knitting Goes On' को ऊँचा पढ़ते हुए, कहने लगीं, " विजय जी, यह तो बहुत ही serious है" ... कुछ हैरानी, कुछ अधखिली मुसकान के साथ, कहने लगीं, "इतनी serious! यह आपके दोस्तों ने, आपके कालेज ने कैसे accept कर ली?

उसके बाद मैंने उनसे उनकी अपनी कविताएँ पढ़ कर सुनाने के लिए कहा तो कहने लगीं, "आज आपकी पढ़ेंगे, अगली बार मिलेंगे तो मैं और सुनाऊँगी" ... उनके यह शब्द मेरे लिए...खाली २१ साल के युवक के लिए कितना मान्य रखते थे (और रखते हैं) मै यहाँ शब्दों में अभिव्यक्त नहीं कर सकता.. मुझे लगा कि मैंने नादानी में कोई गलती नहीं करी... कि वह खुद ही फिर से मिलने के लिए कह रही हैं।

कहने लगीं, "और कौन-सी चीज़ लाए हो?" ... इस पर मैंने उन्हें अपनी कविता "अंगीठी" पढ़ने को दी, जिसकी अंतिम पंक्ति थी..‘ माँ, और ऐसा भी तो हो सकता है कि किसी दिन इस अंगीठी में मिट्टी कम और कालिख अधिक रह जाए ’ ... यह पढ़ते ही वह कहने लगीं, " यह तो बहुत ही अच्छी लिखी है ... पढ़ते-पढ़ते हमें भी लगा कि इसका अंत आप कुछ ऐसा गहरा ही करेंगे! अब मैं आपकी सोच की गहराई को देख सकती हूँ।"

एक लम्बी साँस ले कर ... (मुझको लगा मेरी ‘अंगीठी’ कविता ने उन्हें किसी हादसे की याद दिला दी, पर मैंने उस समय कुछ भी कहना ठीक नहीं समझा) ... कहने लगीं, "इतनी छोटी उम्र में ज़िन्दगी का असली अहसास कैसे हो गया?"

वि० ... "यह बात उम्र की इतनी नहीं है, बात अनुभव की.. अपनी-अपनी प्रकृति की है।"

अ० ... (पंजाबी में) ... "आहो, आदमी दे experience दे नाल बड़ा फ़रक पैंदा ए। ओ ते है, पर ज़िन्दगी दी जेड़ी प्यास होंदी वे, ओदा एहसास बोंताँ नूँ चाली साल दी उमर दे बाद ई होंदा ए " अनुवाद ... " हाँ, आदमी के experience के साथ बड़ा फ़रक पड़ता है ... पर ज़िन्दगी की जो प्यास होती है, उसका एहसास बहुतों को चालीस की आयु के बाद ही होता है।"

वि० ... " मेरे सामने तीन किस्म के लोग हैं जो ज़िन्दगी को अलग-अलग तरीके से देखते हैं ... एक जो ज़िन्दगी को दूर से देखने में खुश हैं, दूसरे जो ज़िन्द्गी से थोड़ा भीग जाते हैं, और तीसरे वह जो ज़िन्दगी को घूँट-घूँट पीते हैं।"

अ० ... " हाँ, writers, philosophers का तो अपना ही angle होता है। देखने को आपका भी वैसा ही है। उनकी तो अन्दर से आवाज़ आती है, और बाकी तो अपना-अपना तरीका होता है लिखने का जिसे आम दुनिया समझ नहीं सकती।" ...और फिर अमृता जी ने मेरी एक और कविता पढ़ी ... अंतिम पंक्ति थी, ... ‘इस व्यथित जीवन को वही पहचाने जिसने अश्रुजल से प्यास बुझाई हो’

अ० ... "आपके ख़याल अच्छे हैं, आपकी नज़्में इतनी अच्छी हैं, इनको रसालों में क्यों नहीं छपवाते?"

वि० ... "अभी तो कालेज में था तो ऐसा सोचा नहीं, कालेज magazines में देता रहा, अब आपने कहा, अच्छी हैं, तो बाहर भी भेजूँगा। एक बात पूछूँ? आपको इतना लिखने का वक्त कैसे मिलता है?"

अ० ... "यही तो मुश्किल है... आजकल तो और भी कम मिलता है, घर में contractors काम कर रहे हैं न।"

अमृता जी ने काम करने वाली से चाय और समोसे लाने के लिए कह रखा था। वह बना चुकी थी, अत: rolling cart पर tray में चाय,दूध, चीनी और समोसे ले आई।चाय प्याले में डालने लगी थी, पर अमृता जी ने उसे मना कर दिया, कहने लगीं ... " मैं अपने हाथ से चीनी-दूध डाल कर बनाऊँगी इनके लिए।" उसी समय अमृता जी का लड़का 'Sally' भी मिलने के लिए कमरे में आ गया।

अ० ... "यह मेरा बेटा है जी 'Sally' ... Higher secondary अभी खतम करी है, exams हो रहे हैं ... engineering में जाने के लिए तैयार था, पर अब जाने क्यूँ अचानक खयाल बदल लिया है। ....Sally, यह विजय हैं, अभी engineering का exam दे कर आए हैं, कहते हैं, बहुत मेहनत करनी पड़ती है।"

Sally.. " अब मैं Dufferin से Merchant Navy में जाना चाहता हूँ।

अ० ... " इसका कल इम्तहान है और आज खेल रहा है। वैसे Baroda Engineering College में इसे आराम से admission मिल जाती, जान-पहचान भी थी,पर अब यह engineering के लिए जाना ही नहीं चाहता।"

मैं Sally से थोड़ी बातें कर रहा था, और अमृता जी ने तब तक प्याले में चाय बना दी और समोसे के साथ मुझको दी। प्यालों को देख कर मुझको अमृता जी के बारे में कुछ याद आ गया ... और मैंने उनसे पूछा ....

वि० ... पंजाबी में ... " तुसीं अजकल multi-coloured cup नईं रखे होए? इक थां ते लिखया सी न तुसीं, तिन रंग दे कप दे बारे विच ?" अनुवाद... "आपने आजकल multi-coloured cups नहीं रखे हुए? आपने एक
जगह पर लिखा था न तीन रंगों के कप के बारे में?"

अ० ... पंजाबी में ... " अच्छा ओ! ओ ते सारे ई टुट गय नें। थुवानूँ इना किदाँ याद रैंदै, कमाल ए!" अनुवाद ... " अच्छा वह! वह तो सारे ही टूट गए हैं," उन्होंने एक बहुत ही उदास लम्बी साँस ले कर कहा। " आपको इतना कैसे याद रहता है, कमाल है!"

वि० ... पंजाबी में ... " इक काला सी,ओ मातम दे लै, फ़िर पीला, ते तीजा केड़ा सी?" अनुवाद ... " एक काला था, वह मातम के लिए, फिर पीला, और तीसरा ?"

अ० ... पंजाबी में ..." हाँ जी, काला मातम दा, पीला विरह दा, ते तीजा ’केसरी’ .. ओ शौख़ रंग हौंदा ए। ओ ते सारा ई सैट खतम हो गया ऐ।Readers दी curiosity appreciate करणी पैयगी... इक होर ने वी एदाँ ई क्या सी। अनुवाद .... " हाँ जी, ’काला’ मातम का, ’पीला” विरह का, और तीसरा ’केसरी" ... केसरी ’शोख़’ रंग होता है। वह तो सारा ही set खतम हो गया है । Readers की curiosity तो appreciate करनी पड़ेगी, एक और
ने भी ऐसे ही कहा था।"

वि० ... " Or, shall I say that you write so nice that you go deep into the hearts of the readers, and they cannot help remember the details और फिर आपने रंगों के combination तो अभी भी रखे ही हुए हैं (दो सोफ़ा, और एक सोफ़ा-चेयर ... तीनों अलग-अलग रंग के थे। अमृता जी ने सामने की बिलडिंग दिखाई, "वहाँ एक Colonel रहते हैं।"

वि० ... " आपके मकान पर हो रहे काम को देख कर मुझको एक बात याद आ गई है। आपने डा० राम दरश मिश्र का नाम सुना होगा, आजकल अहमदाबाद में हैं"

अ० ... " हाँ जी, मैं जानती हूँ"

वि० ... " अभी उनकी एक किताब आई है...‘बैरंग बेनाम चिठ्ठियाँ’ ... उसमें एक नज़्म है, ‘निशान’ ... उसकी आखरी लाईनों में उन्होंने कहा है... ... तुमने जो मज़ाक-मज़ाक में गीली सीमेंट पर मुलायम पाँव रख दिया था
उसका निशान ज्यों का त्यों है।

अ० ... " यह तो बहुत ही अच्छा ख़याल है"

वि० ... " हाँ जी, डाक्टर मिश्र के कहने का अंदाज़ कुछ और ही है"

अ० ... " हाँ जी, बिलकुल"

वि० ... " आपने भी तो कहीं पर लिखा था ... ‘मेरे इश्क के घाव ...’ .."

अ० ... " हाँ, अरे, आपको याद है!" और फिर अमृता जी कुछ ज़ोर से हँस पड़ीं।

पल-दो-पल की चुप्पी ... उन्होंने पलकें बंद कर लीं ... जैसे भीतर कुछ डस रहा हो, और फिर कहा, " सुनेंगे?"...और उन्होंने वह ’इश्क के घाव’ की सारी कविता अपने मुँह सुना दी ... कैसे कहूँ, अमृता जी के संग बीते वह पल कैसे थे, कितने सुनहले, कितने मर्मस्पर्शी थे!

अ० ... (मेरे हाथ में एक लेख था, पंजाबी कविता पर ... हरबंस सिंह जी का लिखा) " वैसे तुसीं पंजाबी poetry वी पढ़ी ओई ए?" अनुवाद ... " वैसे आपने पंजाबी poetry भी पढ़ी हुई है?"

वि० ... " पंजाबी बोल लेता हूँ। पढ़ना चाहता हूँ पर मुझको गुरमुखी नहीं आती। उर्दु poetry भी अच्छी लगती है, मुझको उर्दु पढ़नी नहीं आती, इसलिए उर्दु की किताबें हिन्दी script में खरीदता हूँ। सच में, साहिर लुधियानवी
उर्दु के मेरे सब से favourite poet हैं ... उनमें भी बहुत गहराई है ... मेरे यह कहते ही अमृता जी ने पलकें भींच लीं, और एक अन्तराल के बाद खोलीं, और कहा, " आओ, बाहर ज़्यादा pleasant ए " (आईए बाहर ज़्यादा pleasant है) .. और balcony की ओर संकेत करते हुए वह मुझको balcony पर ले गईं ... और बड़ी देर तक वह सामने के बन रहे मकान को देखती रहीं ... दो-मंज़िले--तिमंज़िले मकान के लिए ऊँची scaffolding लगी हुई थी ... वह चुप, मैं भी चुप। कुछ था जो मुझको समझ न आ रहा था। क्या मैंने अनजाने कोई गल्ती कर दी थी क्या? मेरा मन अब अचानक तिलमिला रहा था ... मन भी भारी हो गया था, और scaffolding की ओर
संकेत करते हुए मैंने उस कठिन नीरवता को तोड़ा, और कहा ...

वि० ... पंजाबी में ... " एदाँ क्यों होंदा ए कि मकान बँड़ जांदे ने, फटे उतर जांदे ने, लेकिन ज़िन्दगीयाँ कदी नीं बँड़दीयाँ...?" अनुवाद .... " ऐसा क्यों होता है कि मकान बन जाते हैं, फटे उतर जाते हैं,
लेकिन ज़िन्दगीयाँ कभी नहीं बनती।" वह मेरी आवाज़ से पल भर को मानो चौंक गईं, और फिर उसी पल संभल भी गईं। कहने लगीं..

अ० ... पंजाबी में ... " ए ते जी इक खेड होंदा वे ... जेड़ा कदी वी पूरा नईयों होंदा ..।" अनुवाद ...... " यह तो जी एक खेल होता है ... जो कभी भी पूरा नहीं होता।"

वि० ... " हाँ जी, मैं भी रोज़ रात को सोने से पहले कहता हूँ कि कल नया होगा, कल मैं नया बनूँगा, पर मुझमें कहीं कुछ नहीं बदलता, बस circumstances बदलजाते हैं। हम नहीं बदलते!"

इसके बाद मैंने अमृता जी से विदा ली, कहा ... फिर कभी मिलेंगे, उन्होंने भी कहा,"हाँ" और फिर "नमस्ते"

"नमस्ते"

बहुत सालों के बाद मुझको आभास हुआ कि मुझसे क्या गल्ती हुई थी। मुझको अमृता जी और साहिर जी के रिश्ते के बारे में उन दिनों कुछ नहीं पता था, और मैं अनजाने साहिर जी का नाम ले बैठा था, उनकी नज़्मों को favourite कह बैठा था ... अमृता जी के मन की गहरी, बहुत गहरी चोट को मैं अनजाने छू बैठा था।

यह सन १९६३ था ... मैं २१ साल का था। अब ... अब जैसे ज़िन्दगी बीत गई है।
२००५ में अमृता जी जा चुकी हैं, २०१२ में उनके लड़के की मुंबई/बोरीवली में उनके
अपार्टमेंन्ट में किसी ने हत्या कर दी ... कितना कुछ ... कैसे हो जाता है!
***

चित्र पर कविता पानी


चित्र पर कविता%
निम्न चित्र को देखिए& पानी के लिए संघर्ष] नारियों का जीवट] पत्थर फोड़ कर निकलता पानी आदि विविध आयाम समेटे चित्र पर अपने मनोभावों को केंद्रित कीजिए और लोहा मनवाइए अपनी कलम के पानी का ---




पानी पानी हो रहा] पानी देख प्रयास-
श्रम के चरण पखारता] जी में भरे हुलास--

कोशिश पानीदार है]  जीवट का पर्याय-
एक साथ मिल लिख रही]  नारी नव अध्याय--

आँखों में पानी हया] लाज] शर्म] संकोच-
आँखों का पानी न ले ] और न दे उत्कोच--

आँखों से पानी गिरे] धरती जाए डोल-
पानी उतरे तो नहीं] मोती का कुछ मोल--

पानी का सानी नहीं]  रखिए  सलिल  संभाल-
फोड़ वक्ष पाषाण का]  बहे उठाकर भाल--

नभ  गिरि  भू  सागर किए]  जब पानी ने एक-
त्राहि त्राहि जग कर उठें]  रक्षा करे विवेक--

अनाचार जाता नहीं] क्यों पानी में डूब-
सदाचार क्यों दूबवत]  जड़ न जमाता खूब--

बिन अमृत भी ज़िंदगी] खुशियों का आगार-
निराकार पानी बिना हो जाता साकार--

मटकी धर मटकी कमर] लचकी मटकी साथ-
हाथ लगाने जो नहीं] आते रहें अनाथ--

काई-फिसलन मानतीं- संयम&सम्मुख हार-
अंगद सा पग जमाकर मुस्काती है नार--

पानी भू के गर्भ में] छिपा इस तरह आज-
करे सासरा तज बहू] ज्यों मैके में राज--

 &&&&&&&&
सन्तोष कुमार सिंह
 
चित्र पर कविता
कहो नहीं हमको अबलायें हम सबलायें हैं।
गिरिवर के रिसते जल से घट भर-भर लायें हैं।।
 
जीवन के इस महायज्ञ में हमको श्रम करना।
टेढ़े-मेड़े पथ पर हमको, निशदिन है चढ़ना।।
 
जीवन की हर डगर कठिन पर मानें हार नहीं।
अगर होंसला मंजिल पाना है दुश्वार नहीं।।
 
जल भरते या कहीं और भी जब-जब हम भेंटे।
एक दूसरे से सुख-दुःख की चर्चा कर लेते।।
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
मधु 
 
पानी की एक बूँद को तरसे  नर और नार 
जीवन और मरण के बीच पानी की दौड़ 
न्याय ये कौनसा  किस ईश्वर का काम 
कही बहता मिटटी में पानी और कहीं 
मिटटी निचोड़ , बचाए प्राणों की प्यास 
 
0000
कमल




 दोहे
शिला चीर पानी बहे बुझे सभी की प्यास
यह पनघट नित घट भरे फिरे न कोइ उदास
कठिन परिश्रमशील है गिरि का नारि समाज
घर तक दूरी तय करें  घट भर सर पर साध
सखियाँ मिल बतिया रहीं हुलसित पनघट तीर
दुःख  सुख बाँटें साथ मिल बहे  चरण तल नीर
ऊंची  नीची चट्टाने दुर्गम पहाड़ की राह
माथे धरतीं चरण वे, देखि नारि उत्साह
कई अभावों से घिरा  इनका जीवन क्रम
चित्र यही चित्रित करे धन्य है इनका श्रम
000

गज़ल नज़र आने लगे धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’


गज़ल
नज़र आने लगे
धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’
बहर : २१२२ २१२२ २१२२ २१२
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जिस घड़ी बाजू मेरे चप्पू नज़र आने लगे
झील सागर ताल सब चुल्लू नज़र आने लगे

झुक गये हम क्या जरा सा जिंदगी के बोझ से
लाट साहब को निरा टट्टू नज़र आने लगे

हर पुलिस वाला अहिंसक हो गया अब देश में
पाँच सौ के नोट पे बापू नज़र आने लगे

कल तलक तो ये नदी थी आज ऐसा क्या हुआ
स्वर्ग जाने को यहाँ तंबू नज़र आने लगे

भूख इतनी भी न बढ़ने दीजिए मेरे हुजूर
सोन मछली आपको रोहू नज़र आने लगे
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dks poet

शनिवार, 30 मार्च 2013

बसंत पंचमी



बसंत पंचमी का महत्व

भारत में जीवन के हर पहलू को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है | और इसी आधार पर पूजा - उपासना की व्यवस्था की गयी है | अगर धन के लिए दीपावली पर माता लक्ष्मी की उपासना की जाती है तो नेघा और बुद्धि के लिए माघ शुक्ल पंचमी को माता सरस्वती की भी उपासना की जाती है | धार्मिक और प्राकृतिक पक्ष को देखे तो इस समय व्यक्ति का मन अत्यधिक चंचल होता है | और भटकाव बड़ता है | इसीलिए इस समय विद्याऔर बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की उपासना से हम अपने मन को नियंत्रित और बुद्धि को कुशाग्र करते है | वर्तमान संदर्भो की बात करे तो आजकल विधार्थी भटकाव से परेशान है | पढाई में एकाग्रता की समस्या है | और चीजो को लम्बे समय तक याद नहीं रख सकते है , इस दशा में बसंत पंचमी को की गयी माँ सरस्वती की पूजा से न केवल एकाग्रता में सुधार होगा बल्कि बेहतर यादाश्त और बुद्धि की बदोलत विधार्थी परीक्षा में बेहतरीन सफलता भी पायेंगे | विधार्थियों के आलावा बुद्धि का कार्य करने वाले तमाम लोग जैसे पत्रकार , वकील , शिक्षक आदि भी इस दिन का विशेष लाभ ले सकते है |
राशी अनुसार पूजन विधान :-
मेष :- स्वभावत: चंचल राशी होती है | इसीलिए अक्सर इस राशी के लोगो को एकाग्रता की समस्या परेशान करती है | बसंत पंचमी को सरस्वती को लाल गुलाब का पुष्प और सफ़ेद तिल चढ़ा दे | इससे चंचलता और भटकाव से मुक्ति मिलेगी |
वृष:- गंभीर और लक्ष के प्रति एकाग्र होते है परन्तु कभी कभी जिद और कठोरता उनकी शिक्षा और करियर में बाधा उत्पन्न कर देती है | चूँकि इनका कार्य ही आम तौर पर बुद्धि से सम्बन्ध रखने वाला होता है , अत : इनको नीली स्याही वाली कलम और अक्षत सरस्वती को समर्पित करना चाहिए | ताकि बुद्धि सदेव नियंत्रित रहती है |
मिथुन : - बहुत बुद्धिमान होने के बावजूद भ्रम की समस्या परेशान करती है | इसीलिए ये अक्सर समय पर सही निर्णय नहीं ले पाते | बसंत पंचमी के दिन सरस्वती को सफ़ेद पुष्प और पुस्तक अर्पित करने से भ्रम समाप्त हो जाता है एवं बुद्धि प्रखर होती है |
कर्क : - इन पर ज्यादातर भावनाए हावी हो जाती है | यही समस्या इनको मुश्किल में डाले रखती है | अगर बसंत पंचमी के दिन सरस्वती को पीले फूल और सफ़ेद चन्दन अर्पित करे तो भावनाए नियंत्रित कर सफलता पाई जा सकती है |
सिंह : - अक्सर शिक्षा में बदलाव व् बाधाओ का सामना करना पड़ता है | ये योग्यता के अनुसार सही जगह नहीं पहुच पाते है शिक्षा और विधा की बाधाओ से निपटने के लिए सरस्वती को पीले फूल विशेष कर कनेर और धान का लावा अर्पित करना चाहिए |
कन्या : - अक्सर धन कमाने व् स्वार्थ पूर्ति के चक्कर में पड़ जाते है | कभी कभी बुद्धि सही दिशा में नहीं चलती है | बुद्धि सही दिशा में रहे इसके लिए सरस्वती को कलम और दावत के साथ सफ़ेद फूल अर्पित करना चाहिए |
तुला :- जीवन में भटकाव के मौको पर सबसे जल्दी भटकने वाले होते है | चकाचोंध और शीघ्र धन कमाने की चाहत इसकी शिक्षा और करियर में अक्सर बाधा ड़ाल देती है | भटकाव और आकर्षण से निकल कर सही दिशा पर चले इसके लिए नीली कमल और शहद सरस्वती को अर्पित करे |
वृश्चिक : - ये बुद्धिमान होते है | लेकिन कभी कभार अहंकार इनको मुश्किल में ड़ाल देता है | अहंकार और अति आत्म विश्वास के कारण ये परीक्षा और प्रतियोगिता में अक्सर कुछ ही अंको से सफलता पाने से चुक जाते है | इस स्थिति को बेहतर करने के लिए सरस्वती को हल्दी और सफ़ेद वस्त्र अर्पित करना चाहिए |
धनु : - इस राशी के लोग भी बुद्धिमान होते है | कभी कभी परिस्थितिया इनकी शिक्षा में बाधा पहुचाती है | और शिक्षा बीच में रुक जाती है | जिस कारण इन्हें जीवन में अत्यधिक संघर्ष करना पड़ता है | इस संघर्ष को कम करने के लिए इनको सरस्वती को रोली और नारियल अर्पित करना चाहिए |
मकर : - अत्यधिक मेहनती होते है | पर कभी कभी शिक्षा में बाधाओ का सामना करना पड़ता है | और उच्च शिक्षा पाना कठिन होता है | शिक्षा की बाधाओ को दूर करके उच्च शिक्षा प्राप्ति और सफलता प्राप्त करने के लिए इनको सरस्वती को चावल की खीर अर्पित करनी चाहिए |
कुम्भ :- अत्यधिक बुद्धिमान होते है | पर लक्ष के निर्धारण की समस्या इनको असफलता तक पंहुचा देती है | इस समस्या से बचने के लिए और लक्ष पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए इसको बसंत पंचमी के दिन सरस्वती को मिश्री का भोग चडाना चाहिए |
मीन : - इस राशी के लोग सामान्यत : ज्ञानी और बुद्धिमान होते है | पर इनको अपने ज्ञान का बड़ा अहंकार होता है | और यही अहंकार इनकी प्रगति में बाधक बनता है | अहंकार दूर करके जीवन में विनम्रता से सफलता प्राप्त करने के लिए इनको बसंत पंचमी के दिन सरस्वती को पंचामृत समर्पित करना चाहिए |
बसंत पंचमी के दिन अगर हर राशी के जातक इन सरल उपायों को अपनाये तो उनको बागिस्वरी , सरस्वती से नि: संदेह विधा और बुद्धि का वरदान मिलेगा |
कैसे करे सरस्वती आराधना : -
बसंत पंचमी के दिन प्रात: कल स्नान करके पीले वस्त्र धारण करे | सरस्वती का चित्र स्थापित करे यदि उनका चित्र सफ़ेद वस्त्रो में हो तो सर्वोत्तम होगा | माँ के चित्र के सामने घी का दीपक जलाए और उनको विशेष रूप से सफ़ेद फूल अर्पित करे | सरस्वती के सामने बैठ " ऍ सरस्वतये नम : " का कम से कम १०८ बार जप करे | एसा करने से विधा और बुद्धि का वरदान मिलेगा तथा मन की चंचलता दूर होगी |
पूजा अर्चना और उसके लाभ : -
लाल गुलाब , सफ़ेद तिल अर्पित करे तथा अक्षत चढाए |
सफ़ेद पुष्प , पुस्तक अर्पित करे |
पीले फूल , सफ़ेद चन्दन अर्पित करे |
पीले पुष्प , धान का लावा चढाए |
कलम - दवात , सफ़ेद फूल अर्पित करे |
नीली कलम , शहद अर्पित करे |
हल्दी और सफ़ेद वस्त्र अर्पित कर रोली , नारियल अर्पित करे |
चावल की खीर और मिश्री का भोग अर्पित करे |
लाभ : -
मन की स्थिरता और ताजगी महसूस होगी तथा बुद्धि विवेक नियंत्रित होंगे |
मन की कशमकश ख़त्म होगी बुद्धि प्रखर होगी |
भावनाए काबू में रहेगी , सफलता मिलेगी |
शिक्षा में सफलता , बुद्धि में वृद्धि होगी |
बुद्धि तेज , सोच सकारात्मक होगी |
सही दिशा मिलेगी |
अहंकार से मुक्ति मिलेगी |
संघर्ष और बाधाऍ कम होगी |
एकाग्रचित्तता में बढ़ोतरी होगी |

होली पर साधनाए

होली पर साधनाए

सम्पूर्ण भारत वर्ष के लोग विभिन्न रीती रिवाज के अनुसार होली के अवसर को मनाने में गौरव महसूस करते है । वेद पुराणो से लेकर सम्पूर्ण विश्व में भी होली के प्रचलन का पता चलता है । भगवान शिव से लेकर गुरु गोरखनाथ जी ने भी इसे विशेष साधना पर्व कहा जाता है ।
कैसे करे पूजन

एक थाली में कुमकुम , हल्दी , मेहंदी ,साबुत मुंग , अक्षत , अबीर गुलाल , कपूर , फूल ,प्रसाद , घर में बने पकवान , नारियल , फल आदि के अलावा नए वस्त्र का टुकड़ा या कच्चा सूत धुप अगरबत्ती और जल कलश रखे । होलिका को किसी भी प्रकार के पुष्प अर्पित किये जा सकते है । सर्वप्रथम "ॐ श्री गणेशाय नम:" पञ्च बार बोल कर होलिका को जल अर्पित करे । इसके बाद उस पर कुमकुम ,अबीर, गुलाल, हल्दी, मेहंदी तथा अक्षत चढ़ाये । साबुत मुंग प्रसाद , फल भी अर्पित करे । फिर वस्त्र और कच्चा सूत होलिका के चारो और लपेट ले । पुष्प अर्पित करे और होलिका की परिक्रमा करे । परिक्रमा के अंत में बचा हुआ जल भी वाही चढ़ा दे । हाथ जोड़कर पुष्पांजली नमस्कार करे और निम्न मंत्रो का 9 बार उच्चारण करे ।
ॐ होलीकाय नम: ॐ प्रहलादाय नम: ।।
ॐ भगवान न्रसिन्हाय नम:।।
परिक्रमा करते समय अपने और परिवार के कल्याण की कमाना करे । यह भी प्रार्थना करे की होलिका माता हमें आरोग्य दो , शांति दे , हमें हर तरह से सुखी रखे , हम स्वस्थ रहे , प्रसन्नचित रहे । इस व्प्रकार आप जो भी कामना करे , अंत में थोड़े से कपूर को जलाकर होलिका की आरती करे । होलिका दहन के दुसरे दिन सर्वप्रथम अपने इष्ट व् माता पिता , गुरु व् बड़ो को अबीर गुलाल अर्पित करे । अपने घर के इशान कोण का पूजन कर वहा भी गुलाल अर्पित करे । इससे निवास के सभी वष्टु दोष दूर हो जाते है ।
कामना के साथ आराधना

नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति प्राप्त करने हेतु :-
नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति हेतु होलिका दहन के पश्चात् होली की जलती हुई राख लाये । इसे किसी पत्र में रख दे । उसके ऊपर लोबान , शुद्ध गुग्गुल , चन्दन डाले और घर के कोने कोने में घुमाये । अंत में मुख्य दरवाजे पर आ जाये । वह इसे निचे रखकर इसके ऊपर कपूर की तीन गोलिया रखे और जला दे । उनके जल जाने के बाद उसे ढक दे । जिससे हवा से उसकी राख न उड़े । दुसरे दिन प्रात: काल उठकर होलिका की राख पर ठंडा पानी डाल कर उसे जल में प्रवाहित करे या पीपल वृक्ष के नीचे रख दे । आपका घर किसी भी नजर दोष तथा नकारात्मक शक्तियों से मुक्त रहेगा । रोग , शोक दूर होकर सुख समृद्धि मिलेगी ।
व्यापार और कारोबार में सफलता प्राप्ति हेतु :-
यह उपाय उन लोगो के लिए लाभदायक है जो व्यवसाय ठीक से न चल पाने के कारण कर्ज आदि की समस्या से पीड़ित है । 11 गोमती चक्र लाये । धन के बाद होली की राख लाये और दरवाजे के पास किसी चीज से ढक कर रख दे । सोने से पहले इस राख के चारो और जल डाले । गोमती चक्र राख के नीचे दबा दे और रात को पुन: ढंक दे । दुसरे दिन प्रात : राख पर ठन्डे जल के छीटे मारे और दबे हुए गोमती चक्र निकाल कर सुरक्षित रख ले । राख को बहते हुए पानी में प्रवाहित करे या पीपल के वृक्ष के नीचे रख दे । जल का एक छोटा पात्र रखे दीपक प्रज्वलित कर अपने आराध्य के किसी मन्त्र या "ॐ श्री यै नम:" का 108 बार जाप कर प्रणाम कर , गोमती चक्र को लाल वस्त्र में बांधकर अपने तिजोरी में या गल्ले में रख दे इसके बाद पूरी क्षमता से कार्य करे । सकारात्मक सोच रखे व्यवसाय में आ रही बढ़ाये शीघ्र समाप्त हो जाएगी
संतान सम्बन्धी समस्याओं के निराकरण हेतु :-
यदि बच्चो सम्बन्धी किसी कार्यो में रूकावट आ रही हो तो होली के दिन होलिका दहन से पूर्व मंदिर में भगवान कृष्ण की सुंदर पोशाक अर्पित करे । संभव हो तो वह पोशाक भगवान को उसी दिन पहन दे । इसी के साथ संतान के कल्याण की कामना करे । इस से सुख समृद्धि तथा संतान सम्बन्धी कष्टों से छुटकारा मिलेगा ।
रोग मुक्ति हेतु :-
परिवार में यदि कोई असाध्य रोगी है , तो चार गोमती चक्र लाकर उन्हें जल से स्वच्छ करे डंठल सहित 2 पान के पत्ते ले । एक जोड़ा लॉन्ग को को शुद्ध घी में डुबोकर पान के पत्तो पर रखे । और पान के पत्तो को इस प्रकार लपेट ले की की साडी सामग्री अन्दर बंद हो जाये । चाहे तो काले धागे में लपेट सकते है । अब दाये हाथ में चार गोमती चक्र तथा बाए हाथ में पान को लेकर होलिका की अग्नि में डाल दे । होलिका को प्रणाम करे और गोमती चक्र घर ले जाए । वे चारो गोमती चक्र रोगी के पलंग के चारो पायो पर बांध दे । रोगी की जो चिकित्सा चल रही है उसे चलने दे । रोजाना सुबह उठते ही रोगी के स्वास्थ्य की कामना करे , लाभ मिलेगा ।
धन वृद्धि करने हेतु :-
हल्दी मिले पीले चावल ले । चावल किसी डिब्बे में रखे । डिब्बा अगर चंडी का हो तो अति उत्तम । डिब्बे में तीन कमल गट्टे के दाने और ताम्बे का सिक्का रखे और लाल कपडे में लपेट ले । होलिका दहन होने पर डिब्बे के साथ 7 परिक्रमा करे । परिक्रमा करते समय होलिका से प्रार्थना करते जाए । इस डिब्बे को तिजोरी या धन रखने वाली जगह रखे ।
राशी और होली के रंग

मेष :- गहरा लाल , टेसू के फूलो से तैयार पीला रंग ।

वृषभ :- क्रीम , सिल्वर , हरा , नीला कलर खुशबू मिलाकर ।

मिथुन :- हरा , सिल्वर या क्रीम और हल्का नीला ।

कर्क :- हल्का नीला , गुलाबी , सुनहरी या हार सिंगार के फूलो से तैयार ।

सिंह :-सुर्ख पीला या केसरिया , हल्का पीला और गुलाबी रंग ।
कन्या :- गहरा हरा रंग , गहरा नीला , सिल्वर कलर ।

तुला :- हल्का गुलाबी , हल्का नीला , और हरा रंग ।

वृश्चिक :- गहरा लाल रंग , पीला और हल्का नीला रंग ।

धनु :- पीला यी हार सिंगार के फूलो का रंग , गहरा लाल और गहरा कुसुमल रंग ।

मकर :-गहरा नीला , सिल्वर या क्रीम रंग और हरा रंग ।

कुम्भ :-हल्का नीला , हरा और हल्का गुलाबी रंग ।

मीन :- सुनहरी या हार सिंगार के फूलो का रंग , हल्का नीला और गुलाबी ।

होली के अवसर पर दान करते समय सावधानिया

होली , दीपावली , ग्रहण आदि कुछ ऐसे विशेष अवसर होते है । जिन पर सोच समझ कर ही दान करना चाहिए । राशी के अनुसार हमारी दशा अंतर दशा देख कर ही दान करना चाहिए अगर हम सोच समझ कर दान नहीं करे तो उसका विपरीत प्रभाव भी देखने को मिल सकता है ।
अत: आईये जाने की राशियों के अनुसार हमें किस चीज का और क्या दान करना चाहिए ।
बुध की दशा :- अंतर दशा बुध की चल रही हो या बुध गृह कमजोर हो , बुध बलहीन हो या पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो आपको हरा वस्त्र , मुंग कपूर , पालक , घी , हरी घास दान करे ।
मंगल की दशा :- मंगल की अन्तर्दशा चल रही हो । मंगल बलहीन और उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो ताम्बा , सोना , गेहू , लाल वस्त्र , गुड , लाल चन्दन , मसूर की दाल आदि का दान करे ।
चन्द्र की दशा :- चन्द्र की अंतर दशा चल रही हो । चन्द्र बलहीन हो या उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो तम्बा , सोना , गेहू , दूध , चावल , कपूर , सफ़ेद वस्त्र , चाँदी , शंख , चीनी आदि दान करे ।
राहू की दशा :- राहू की अन्तर्दशा चल रही हो । रहू बलहीन हो या उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो । तो लोहा , तिल , पुराना वस्त्र , कम्बल सप्त धान , उड़द , तेल आदि का दान करे ।
गुरु की दशा :- गुरु की अन्तर्दशा चल रही हो या गुरु बलहीन हो । या उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो पीला वस्त्र , हल्दी , चने की दाल , पपीता , घी , पुस्तक आदि का दान करे ।
केतु की दशा :-केतु की अंतर दशा चल रही हो या केतु बलहीन हो तो तिल का दान , काला वस्त्र , सप्त धान , कम्बल , उड़द , तेल , लोहा आदि दान करे ।
सूर्य की दशा :-सूर्य की अंतर दशा चल रही हो । सूर्य बलहीन हो या उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो गेंहू , गुड , रक्त चन्दन , लाल वस्त्र , ताम्बा आदि का दान करे ।

शुक्रवार, 29 मार्च 2013

शनिवार, 23 मार्च 2013

होली की कुण्डलियाँ: मनायें जमकर होली संजीव 'सलिल'

होली की कुण्डलियाँ:
मनायें जमकर होली
संजीव 'सलिल'
*
होली अनहोली न हो, रखिए इसका ध्यान.
मही पाल बन जायेंगे, खायें भंग का पान.. 
खायें भंग का पान, मान का पान न छोड़ें.
छान पियें ठंडाई, गत रिकोर्ड को तोड़ें..
कहे 'सलिल' कविराय, टेंट में खोंसे गोली.
भोली से लग गले, मनायें जमकर होली..
*
होली ने खोली सभी, नेताओं की पोल. 
जिसका जैसा ढोल है, वैसी उसकी पोल..
वैसी उसकी पोल, तोलकर करता बातें.
लेकिन भीतर ही भीतर करता हैं घातें..
नकली कुश्ती देख भ्रनित है जनता भोली.
एक साथ मिल भत्ते बढ़वा करते होली..
*
होली में फीका पड़ा, सेवा का हर रंग.
माया को भायी सदा, सत्ता खातिर जंग..
सत्ता खातिर जंग, सोनिया को भी भाया.
जया, उमा, ममता, सुषमा का भारी पाया..
मर्दों पर भारी है, महिलाओं की टोली.
पुरुष सम्हालें चूल्हा-चक्की अबकी होली..
*

फागुन के मुक्तक संजीव 'सलिल'

फागुन के मुक्तक
संजीव 'सलिल'
*

बसा है आपके ही दिल में प्रिय कब से हमारा दिल.
बनाया उसको माशूका जो बिल देने के है काबिल..
चढ़ायी भाँग करके स्वांग उससे गले मिल लेंगे-
रहे अब तक न लेकिन अब रहेंगे हम तनिक गाफिल..
*
दिया होता नहीं तो दिया दिल का ही जला लेते.
अगर सजती नहीं सजनी न उससे दिल मिला लेते..
वज़न उसका अधिक या मेक-अप का कौन बतलाये?
करा खुद पैक-अप हम क्यों न उसको बिल दिला लेते..
*
फागुन में गुन भुलाइए बेगुन हुजूर हों.
किशमिश न बनिए आप अब सूखा खजूर हों..
माशूक को रंग दीजिए रंग से, गुलाल से-
भागिए मत रंग छुड़ाने खुद मजूर हों..
*
salil.sanjiv@gmail.com
divyanarmada.blogspot.in

त्रिभंगी छंद: संजीव 'सलिल'

फागुन आये ...
त्रिभंगी छंद:
 संजीव 'सलिल'
*
ऋतु फागुन आये, मस्ती लाये, हर मन भाये, यह मौसम।
अमुआ बौराये, महुआ भाये, टेसू गाये, को मो सम।।
होलिका जलायें, फागें गायें, विधि-हर शारद-रमा मगन-
बौरा सँग गौरा, भूँजें होरा, डमरू बाजे, डिम डिम डम।।