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मंगलवार, 17 जनवरी 2012

Subject: Clever ideas to make life easier Clever Ideas to Make Life Easier

Subject:  Clever ideas to make life easier

Clever  Ideas to Make Life Easier

Why didn’t I think of that?! We guarantee you’ll
be uttering those words more than once at these
ingenious little tips, tricks and ideas that solve
everyday problems.
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Hull strawberries easily using a straw.
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Rubbing a walnut over scratches in your furniture
will disguise dings and scrapes.

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Remove crayon masterpieces from your TV or
computer screen with WD40.


Stop cut apples browning in your child’s lunch box
by securing with a rubber band.


Overhaul your linen cupboard, store bed linen sets
inside one of their own pillowcases and there will
be no more hunting through piles for a match.


Pump up the volume by placing your iPhone & iPod
in a bowl. The concave shape amplifies the music.


Re-use a wet-wipes container to store plastic bags.


Add this item to your beach bag. Baby powder
gets sand off your skin easily, who knew?!

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Attach a Velcro strip to the wall to store soft toys.


Use wire to make a space to store gift wrap rolls
against the ceiling, rather than cluttering up the
floor.

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Find tiny lost items like earrings by putting a
stocking over the vacuum hose.


Make an instant cupcake carrier by cutting
crosses into a box lid.


For those who can’t stand the scrunching and
bunching: how to perfectly fold a fitted sheet.


Forever losing your bathroom essentials? Use
magnetic strips to store bobby pins, tweezers
and clippers, behind a vanity door


Store shoes inside shower caps to stop dirty
soles rubbing on your clothes. And you can
find them in just about every hotel.

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A muffin pan becomes a craft caddy. Magnets
hold the plastic cups down to make them
tip-resistant.


Bread tags make the perfect cord labels.


Bake cupcakes directly in ice-cream cones, so
much more fun and easier for kids to eat.

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Microwave your own popcorn in a plain brown paper
bag. Much healthier and cheaper than the packet
stuff.


Install a tension rod to hang your spray bottles.

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Turn your muffin pan upside down, bake cookie-dough
over the top and voila, you have cookie bowls for fruit
or ice-cream.

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Freeze Aloe Vera in ice-cube trays for soothing
sunburn relief.

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Create a window-box veggie patch using guttering.

मंगलवार, 10 जनवरी 2012

सँग चले दोहा-यमक: --संजीव 'सलिल'

सँग चले दोहा-यमक
संजीव 'सलिल'
*
चल न अकेले चलन है, चलना सबके साथ.
कदममिलाकर कदम से, लिये हाथ में हाथ..
*
सर गम हो अनुभव अगर, सरगम दे आनंद.
झूम-झूमकर गाइए, गीत गजल नव छंद..
*
कम ला या ज्यादा नहीं, मुझको किंचित फ़िक्र.
कमला-पूजन कर- न कर, धन-संपद का ज़िक्र..
*
गमला ला पौधा लगा, खुशियाँ मिलें अनंत.
गम लाला खो जायेंगे, महकें दिशा-दिगंत..
*
ग्र कोशिश चट की नहीं, होगी मंजिल दूर.
चटकी मटकी की तरह, सृष्टि लगे बेनूर..
*
नाम रखा शिशु का नहीं, तो रह अज्ञ अनाम.
नाम रखा यदि बड़े का, नाम हुआ बदनाम..
*
लाला ला ला कह मँगे, माखन मिसरी खूब.
मैया प्रीत लुटा रहीं, नेह नर्मदा डूब..
*
आँसू जल न बने अगर, दिल की जलन जनाब.
मिटे न कम हो तनिक भी, टूटें पल में ख्वाब..
*
छप्पर छाया तो मिली, सिर पर छाया मीत.
सोजा पाँव पखार कर, घर हो स्वर्ग प्रतीत..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
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रचना-प्रति रचना: कुसुम सिन्हा-संजीव 'सलिल

मेरी एक कविता
सांसों में महकता था चन्दन
आँखों में सपने फुले थे  ल
लहराती आती थी बयार
बालों को छेड़कर जाती थी
                   जब तुम बसंत बन थे आये
 जब शाम  घनेरी जुल्फों  से
पेड़ों को ढकती आती थी
चिड़िया भी मीठे  कलरव से
मन के सितार पर गाती थी
                    जब तुम बसंत बन थे आये
खुशियों  के बदल भी जब तब
मन के आंगन   घिर आते थे
 मन नचा करता मोरों  सा
कोयल कु कु  कर जाती थी
                      जब तुम बसंत बन थे आये
 तुम क्या रूठे   की जीवन से
अब तो खुशियाँ ही  रूठ गईं
मेरे आंगन से खुशियों के
पंछी  आ आ कर लौट गए
                       जब तुम बसंत बन थे आये
साँझ ढले   अंधियारे   संग
यादें उनकी आ जाती हैं
रात रात भर रुला   मुझ्रे
बस सुबह हुए ही जाती हैं


आदरणीय कुसुम जी!
मर्मस्पर्शी रचना हेतु साधुवाद... प्रतिक्रियास्वरूप प्रतिपक्ष प्रस्तुत करती पंक्तियाँ आपको समर्पित हैं.
प्रति गीत :
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
संजीव 'सलिल'
*
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
मेरा जीवन वन प्रांतर सा
उजड़ा उखड़ा नीरस सूना-सूना.
हो गया अचानक मधुर-सरस
आशा-उछाह लेकर दूना.
उमगा-उछला बन मृग-छौना
जब तुम बसंत बन थीं आयीं..
*
दिन में भी देखे थे सपने,
कुछ गैर बन गये थे अपने.
तब बेमानी से पाये थे
जग के मानक, अपने नपने.
बाँहों ने चाहा चाहों को
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
तुमसे पाया विश्वास नया.
अपनेपन का आभास नया.
नयनों में तुमने बसा लिया
जब बिम्ब मेरा सायास नया?
खुद को खोना भी हुआ सुखद
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
अधरों को प्यारे गीत लगे
भँवरा-कलिका मन मीत सगे.
बिन बादल इन्द्रधनुष देखा
निशि-वासर मधु से मिले पगे.
बरसों का साथ रहा पल सा
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
तुम बिन जीवन रजनी-'मावस
नयनों में मन में है पावस.
हर श्वास चाहती है रुकना
ज्यों दीप चाहता है बुझना.
करता हूँ याद सदा वे पल
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
सुन रुदन रूह दुःख पायेगी.
यह सोच अश्रु निज पीता हूँ.
एकाकी क्रौंच हुआ हूँ मैं
व्याकुल अतीत में जीता हूँ.
रीता कर पाये कर फिर से
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
तुम बिन जग-जीवन हुआ सजा
हर पल चाहूँ आ जाये कजा.
किससे पूछूँ क्यों मुझे तजा?
शायद मालिक की यही रजा.
मरने तक पल फिर-फिर जी लूँ
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*******
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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सोमवार, 9 जनवरी 2012

नीर-क्षीर दोहा यमक: -- संजीव 'सलिल'

नीर-क्षीर दोहा यमक
संजीव 'सलिल'
*
कभी न हो इति हास की, रचें विहँस इतिहास.
काल करेगा अन्यथा, कोशिश का उपहास.
*
रिसा मकान रिसा रहे, क्यों कर आप हुजूर?
पानी-पानी हो रहे, बादल-दल भरपूर..
*
दल-दल दलदल कर रहे, संसद में है कीच
नेता-नेता पर रहे लांछन-गंद उलीच.. 
*
धन का धन उपयोग बिन, बन जाता है भार.
धन का ऋण, ऋण दे डुबा, इज्जत बीच बज़ार..
*
माने राय प्रवीण की, भारत का सुल्तान.
इज्जत राय प्रवीण की, कर पाये सम्मान..
*
कभी न कोई दर्द से, कहता 'तू आ भास'.
सभी कह रहे हर्ष से, हो हर पल आभास..
*
बीन बजाकर नचाते, नित्य सँपेरे नाग.
बीन रहे रूपये पुलक, बुझे पेट की आग..
*
बस में बस इतना बचा, कर दें हम मतदान.
किन्तु करें मत दान मत, और न कुछ आदान..
*
नपना सबको नापता,  नप ना पाता आप.
नपने जब नपने गये, विवश बन गये नाप..
*

Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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गले मिले दोहा यमक : -- संजीव 'सलिल'

गले मिले दोहा यमक
संजीव 'सलिल'
*
दस सिर तो देखे मगर, नौ कर दिखे न दैव.
नौकर की ही चाह क्यों, मालिक करे सदैव..
*
करे कलेजा चाक री, लगे चाकरी सौत.
सजन न आये चौथ पर, अरमानों की मौत..
*
बिना हवा के चाक पर, है सरकार सवार.
सफर करे सर कार क्यों?, परेशान सरदार..
*
चाक जनम से घिस रहे, कोई न समझे पीर.
पीर सिया की सलिल थी, राम रहे प्राचीर..
*
कर वट की आराधना, ब्रम्हदेव का वास.
करवट ले सो चैन से, ले अधरों पर हास..
*
पी मत खा ले जाम तू, गह ले नेक सलाह.
जाम मार्ग हो तो करे, वाहन-इंजिन दाह..
*
माँग न रम पी ले शहद, पायेगा नव शक्ति.
नरम जीभ टूटे नहीं, टूटे रद की पंक्ति..
*
कर धन गह कर दिवाली, मना रहे हैं रोज.
करधन-पायल ठुमकतीं, क्यों करिए कुछ खोज?
*
सीना चीरें पवनसुत, दिखे राम का नाम.
सीना सीना जानता, कहिये कौन अनाम?
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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रविवार, 8 जनवरी 2012

रचना-प्रति रचना: महेश चन्द्र गुप्त ख़लिश-संजीव वर्मा

रचना-प्रति रचना
ताबीर जिस की कुछ नहीं, बेकार का वो ख़्वाब हूँ 

महेश चन्द्र गुप्त ख़लिश

ताबीर जिसकी कुछ नहीं, बेकार का वो ख़्वाब हूँ
कोई जिसे समझा नहीं मैं वो अजब किताब हूँ
 
न रंग है न रूप है, मैं फूल हूँ खिजाओं का
मीज़ान जिसका है सिफ़र वो ना-असर हिसाब हूँ
 
जो आँसुओं को सोख कर भीतर ही भीतर रहे नम
बाहर से दिखे मखमली वो रेशमी हिजाब हूँ
 
हस्ती मेरी किस काम की जीवन ही मेरा घुट गया
जो उम्र-कैद पा चुकी, बोतल की वो शराब हूँ
 
लिखता तो हूँ गज़ल ख़लिश, न शायरों में नाम है
जिस की रियासत न कोई वो नाम का नवाब हूँ.
 
ताबीर = स्वप्नफल
खिजा = पतझड़
मीज़ान = जोड़, कुल जमा
 *
मुक्तिका: संजीव वर्मा
*
ताबीर चाहे हो न हो हसीन एक ख्वाब हूँ.
पढ़ रहे सभी जिसे वो प्यार की किताब हूँ..


अनादि हूँ, अनंत हूँ, दिशाएँ हूँ, दिगंत हूँ.
शून्य हूँ ये जान लो, हिसाब बेहिसाब हूँ..

मुस्कुराता अश्रु हूँ, रो रही हँसी हूँ मैं..
दिख रहा  हिजाब सा, लग रहा खिजाब हूँ..
 
दिख रहा अतीत किन्तु आज भी नवीन हूँ.
दे रहा मजा अधिक-अधिक कि ज्यों शराब हूँ..
 
ले मिला मैं कुछ नहीं, दे चला मैं कुछ नहीं.
खाली हाथ फिर रहा दिल का मैं नवाब हूँ..

'सलिल' खलिश बटोरता, लुटा रहा गुलाब हूँ.
जवाब की तलाश में, सवाल लाजवाब हूँ..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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शनिवार, 7 जनवरी 2012

भोजपुरी के संग: दोहे के रंग --संजीव 'सलिल'

भोजपुरी के संग: दोहे के रंग


संजीव 'सलिल'

भइल किनारे जिन्दगी, अब के से का आस?
ढलते सूरज बर 'सलिल', कोउ न आवत पास..
*
अबला जीवन पड़ गइल, केतना फीका आज.
लाज-सरम के बेंच के, मटक रहल बिन काज..
*
पुड़िया मीठी ज़हर की, जाल भीतरै जाल.
मरद नचावत अउरतें, झूमैं दै-दै ताल..
*
कवि-पाठक के बीच में, कविता बड़का सेतु.
लिखे-पढ़े आनंद बा, सब्भई जोड़े-हेतु..
*
रउआ लिखले सत्य बा, कहले दूनो बात.
मारब आ रोवन न दे, अजब-गजब हालात..
*
पथ ताकत पथरा गइल, आँख- न दरसन दीन.
मत पाकर मतलब सधत, नेता भयल विलीन..
*
हाथ करेजा पे धइल, खोजे आपन दोष.
जे नर ओकरा सदा ही, मिलल 'सलिल' संतोष..
*
मढ़ि के रउआ कपारे, आपन झूठ-फरेब.
लुच्चा बाबा बन गयल, 'सलिल' न छूटल एब..
*
कवि कहsतानी जवन ऊ, साँच कहाँ तक जाँच?
सार-सार के गह 'सलिल', झूठ-लबार न बाँच..
***************************************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

गुरुवार, 5 जनवरी 2012

चंद चौपदे: --संजीव 'सलिल'

चंद चौपदे
संजीव 'सलिल'
*
ज़िन्दगी है कि जिए जाते हैं.
अश्क अमृत सा पिए जाते हैं.
आह भरना भी ज़माने को गवारा न हुआ
इसलिए होंठ चुपचाप सिये जाते हैं..
*
नेट ने जेट को था मार दिया.
हमने भी दिल को तभी हार दिया.
नेट अब हो गया जां का बैरी.
फिर भी हमने उसे स्वीकार किया..
*
ज़िन्दगी हमेशा बेदाम मिली.
काम होते हुए बेकाम मिली.
मंजिलें कितनी ही सर की इसने-
फिर भी हमेशा नाकाम मिली..
*
छोड़कर छोड़ कहाँ कुछ पाया.
जो भी छोड़ा वही ज्यादा भाया.
जिसको छोड़ा उसी ने जकड़ा है-
दूर होकर न हुआ सरमाया..
*
हाथ हमदम का पकड़ना आसां
साथ हमदम के मटकना आसां
छोड़ना कहिये नहीं मुश्किल क्या?
माथ हमदम के चमकना आसां..
*
महानगर में खो जाता है अपनापन.
सूनापन भी बो जाता है अपनापन.
कभी परायापन गैरों से मिलता है-
देख-देखकर रो जाता है अपनापन..
*
फायर न हो सके मिसफायर ही हो गये.
नेट ना हुए तो वायर ही हो गये.
सारे फटीचरों की यही ज़िंदगी रही-
कुछ और न हुए तो शायर ही हो गये..
*
हाय अब तक न कुछ भी लिख पाया.
खुद को भी खुद ही नहीं दिख पाया.
जो हुआ, हुआ खुदा खैर करे.
खुद को सबसे अधिक नासिख पाया..
*
अब न दम और न ख़म बाकी है.
नहीं मैखाना है, न साकी है.
जिसने सबसे अधिक गुनाह किये-
उसका दावा है वही पाकी है..
*
चाहा सम्हले मगर बहकती है.
भ्रमर के संग कली चहकती है.
आस अंगार, साँस की भट्टी-
फूँक कोशिश की पा दहकती है..
*
हमने खुद को भले गुमनाम किया.
जगने हमको सदा बदनाम किया.
लोग छिपकर गुनाहकर पुजते-
 हम पिटे, पुण्य सरेआम किया..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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मंगलवार, 3 जनवरी 2012

दोहा सलिला: दोहा-यमक-मुहावरे, मना रहे नव साल --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
दोहा-यमक-मुहावरे, मना रहे नव साल
संजीव 'सलिल'
*
बरस-बरस घन बरस कर, तनिक न पाया रीत.
बदले बरस न बदलती, तनिक प्रीत की रीत..
*
साल गिरह क्यों साल की, होती केवल एक?
मन की गिरह न खुद खुले, खोलो कहे विवेक..
*
गला काट प्रतियोगिता, कर पर गला न काट.
गला बैर की बर्फ को, मन की दूरी पाट..
*
पानी शेष न आँख में, यही समय को पीर.
पानी पानी हो रही, पानी की प्राचीर..
*
मन मारा, नौ दिन चले, सिर्फ अढ़ाई कोस.
कोस रहे संसार को, जिसने पाला पोस..
*
अपनी ढपली उठाकर, छेड़े अपना राग.
राग न विराग न वर सका, कर दूषित अनुराग..
*
गया न आये लौटकर, कभी समय सच मान.
पल-पल का उपयोग कर, करो समय का मान..
*
निज परछाईं भी नहीं, देती तम में साथ.
परछाईं परछी बने, शरणागत सिर-माथ..
*
दोहा यमक मुहावरे, मना रहे नव साल.
साल रही मन में कसक, क्यों ना बने मिसाल?
*
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रविवार, 1 जनवरी 2012

नव वर्ष पर नवगीत: महाकाल के महाग्रंथ का --संजीव 'सलिल'

नव वर्ष पर नवगीत: महाकाल के महाग्रंथ का --संजीव 'सलिल'

नव वर्ष पर नवगीत


संजीव 'सलिल'

*
महाकाल के महाग्रंथ का

नया पृष्ठ फिर आज खुल रहा....

*
वह काटोगे,

जो बोया है.

वह पाओगे,

जो खोया है.

सत्य-असत, शुभ-अशुभ तुला पर

कर्म-मर्म सब आज तुल रहा....
*
खुद अपना

मूल्यांकन कर लो.

निज मन का

छायांकन कर लो.

तम-उजास को जोड़ सके जो

कहीं बनाया कोई पुल रहा?...

*
तुमने कितने

बाग़ लगाये?

श्रम-सीकर

कब-कहाँ बहाए?

स्नेह-सलिल कब सींचा?

बगिया में आभारी कौन गुल रहा?...

*

स्नेह-साधना करी

'सलिल' कब.

दीन-हीन में

दिखे कभी रब?

चित्रगुप्त की कर्म-तुला पर

खरा कौन सा कर्म तुल रहा?...

*
खाली हाथ?

न रो-पछताओ.

कंकर से

शंकर बन जाओ.

ज़हर पियो, हँस अमृत बाँटो.

देखोगे मन मलिन धुल रहा...

**********************

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नव वर्षमंगलमय हो deepti gupta ✆ drdeepti25@yahoo.co.in

      वसुधैव  कुटुम्बकम्

नव वर्ष की शुभकामनाएँ / नव वर्षमंगलमय हो
नव  वर्षाची शुभेच्छा (मराठी)
नवे साल दी बधाईयाँ (पंजाबी)
नूतन  वर्षाभिनन्दन (गुजराती)
नुआ  बर्षा  शुभेच्छा  (उडिया)
नव्यु  साल मुबारक  होजे  (सिंधी)  
शुवो   नबो  बर्षो  (बंगाली)
Bonne  Annee (French)  
Prosit  Neujahr (German)
Felice  Anno  Nuovo (Italian) 
Szczesliwego Nowego Roku  (Polish) 
S  Novim Godom (Russian)

Let us   have a look  around  the amazing world.  It  is  simply  beautiful....!

                                                                            Deepti


 
  The world's highest chained carousel, located in Vienna , at a height of 117 meters.
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/000yxb77/g21
Thor's Well a/k/a "the gates of the dungeon" on Cape Perpetua, Oregon. At moderate tide and strong surf, flowing water creates a fantastic landscape
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/000z04gr/g21 

Emerald Lake in the crater of an extinct volcano. Tongariro National Park - New Zealand
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/000z1x80/g21 

Restaurant on a cliff on the east coast of Zanzibar . Depending on the tide the restaurant can be reached both on foot and by boat.
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/000z20ec/g21 
Office of Selgas Cano in Madrid
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/000z3wa1/g21 

Desert with Phacelia (Scorpion Weed). Flowering once in several years.
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/000z50fr/g21 

Balloons in Cappadocia .
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/000z64wd/g21 

Dubai. The view from the skyscraper BurjKhalifa. The height of buildings is 828 m (163 floors).
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/000z9h8k/g21
And this is the view down
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/00111edt/g21 

These trees grow in the forest near Gryfino, Poland. The cause of the curvature is unknown
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/000zcpp1/g21 

The border between Belgium and the Netherlands in a cafe
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/000zfe1s/g21 

Twice a year in the Gulf of Mexico rays migrate. About 10 thousand stingrays swim from the Yucatan Peninsula to Florida in the spring and back in the fall.
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/000zgrkg/g21

In the resort town of Skagen you can watch an amazing natural phenomenon. This city is the northernmost point of Denmark, where the Baltic and North Seas meet. The two opposing tides in this place can not merge because they have different densities.
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/000zhspy/g21 

In the Chinese province of Shandong is a bridge across the Gulf of Jiaozhou . The bridge length over 36 km is calculated for eight car lanes, and is the longest sea bridge in the world.
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/000zpqd2/g21 

Day and night. The monument in Kaunas , Lithuania
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/000zq1rc/g21

An unusual tunnel in California 's Sequoia National Park
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/000zryfx/g21
This statue, created by Bruno Catalano, is located in France
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/000zttg7/g21 



The longest traffic jam in the world recorded in China . Its length is 260 kilometers
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/000zxcy7/g21

Paris computer games store. In fact, the floor is absolutely flat.
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/000zyp7c/g21 

Marcus Levine - slaughtering an artist in the literal sense. He creates his paintings by nailing a white wooden panel. At his latest series of paintings exhibited in a gallery in London, Marcus has sp
In the city of Buford , WY (USA) lives just one person. He works as a janitor and as a mayor.
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/001015se/g21 

Autumn camouflage
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/00104y5y/g21 

Haus Rizzi - Germany .
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/00107yzr/g21 

Lena Pillars. Russia , the Lena River .
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/00108w7r/g21 

Banpo Bridge in Seoul , South Korea
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/001093r6/g21 

Favelas of Brazil . The boundary between wealth and poverty.
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/0010apfd/g21 

Lost paradise in the Indian Ocean . Isle of Lamu.
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/0010bxsk/g21 

Balcony of floor 103 in Chicago .
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/0010cw1b/g21

From the outside it looks like
http://www.bloginday.ru/img/pics_uploaded/20100208_133517.jpg 

View of the sunset from inside the wave.
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/0010dkt4/g21 
This is a unique geological phenomenon known as Danxia landform. These phenomena can be observed in several places in China . This example is located in Zhangye, Province of Gansu. The color is the result of an accumulation for millions of years of red sandstone and other rocks.
???
dhttp://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/0010ea2r/g21

In northwestern Montana , USA . The water is so transparent that it seems that this is a quite shallow lake. In fact, it's very deep.
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/0010fh6s/g21 

Airport in the Maldives is located on an artificial island in the middle of the Indian Ocean
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/0010g25x/g21 

Lighthouse guard in Mare , France must be one of the most courageous people on the planet!  Not everyone will have a smoke in such weather, and in such a place!
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/0010rtz1/g21 

Photo of storm in Montana , USA , 2010
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/0010stbc/g21 

Skyscraper-Crescent Crescent Moon Tower ( Dubai )
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/0010t1tg/g21 
Heavy fog in Sydney , which enveloped the whole city
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/0010w9tr/g21 

The river above the river: Magdeburg Water Bridge, Germany.
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/0010xqy0/g21 

Morning Glory - kind of clouds observed in the Gulf of Carpentaria in northern Australia
http://pics.livejournal.com/neferjournal/pic/00112pse/g21

गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

गले मिले दोहा-यमक भोग लगा प्रभु को प्रथम --संजीव 'सलिल

गले मिले दोहा-यमक
भोग लगा प्रभु को प्रथम
संजीव 'सलिल
*
सर्व नाम हरि के 'सलिल', है सुंदर संयोग.
संज्ञा के बदले हुए, सर्वनाम उपयोग.. 
*
भोग लगा प्रभु को प्रथम, फिर करना सुख-भोग.
हरि को अर्पण किये बिन बनता भोग कुरोग..
*
कहें दूर-दर्शन किये, दर्शन बहुत समीप.
चाहा था मोती मिले, पाई खाली सीप..
*
जी! जी! कर जीजा करें, जीजी का दिल शांत.
जी, जा जी- वर दे रहीं, जीजी कोमल कांत..
*
वाहन बिना न तय किया, सफ़र किसी ने मीत.
वाह न की जिसने- भरी, आह गँवाई प्रीत..
*
बटन न सोहे काज बिन, हो जाता निर्व्याज.
नीति- कर्म कर फल मिले, मत कर काज अकाज.
*
मन भर खा भरता नहीं, मन- पर्याप्त छटाक.
बरसों काम रुका रहा, पल में हुआ फटाक..
*
बाटी-भरता से नहीं, मन भरता भरतार.
पेट फूलता बाद में, याद आये करतार..
*                                                                                                            
उसका रण वह ही लड़े, किस कारण रह मौन.
साथ न देते शेष क्यों, बतलायेगा कौन??
*
ताज महल में सो रही, बिना ताज मुमताज.
शिव-मंदिर को मकबरा, बना दिया बेकाज.                                                    .
*
योग कर रहे सेठ जी, योग न कर कर जोड़.
जोड़ सकें सबसे अधिक, खुद से खुद कर होड़..
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एक हुए दोहा-यमक: दिलवर का दिल वर लिया संजीव 'सलिल'

एक हुए दोहा-यमक
दिलवर का दिल वर लिया
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
दिलवर का दिल वर लिया, सिल ने सधा काज.
दिलवर ने दिल पर किया, ना जाने कब राज?

जीवन जीने के लिये, जी वन कह इंसान.
अगर न जी वन सका तो, भू होगी शमशान..

 मंजिल सर कर मगर हो, ठंडा सर मत भूल.
अकसर केसर-दूध पी, सुख-सपनों में झूल..

जिसके सर चढ़ बोलती, 'सलिल' सफलता एक.
अवसर पा बढ़ता नहीं, खोता बुद्धि-विवेक..

टेक यही बिन टेक के, मंजिल पाऊँ आज.
बिना टेक अभिनय करूँ, हो हर दिल पर राज..

दिल पर बिजली गिराकर, हुए लापता आप.
'सलिल' ला पता आपका, करे प्रेम का जाप..                   

कर धो खा जिससे न हो, बीमारी का वार.
कर धोखा जो जी रहे, उन्हें न करिए प्यार..

पौधों में जल डाल- दें, काष्ठ हवा फल फूल.  
डाल कभी भी काट मत, घातक है यह भूल..

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Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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सोमवार, 19 दिसंबर 2011

प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध द्वारा किया गया श्रीमद्भगवत गीता का हिन्दी पद्यानुवाद

ई बुक के रूप में प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध द्वारा किया गया श्रीमद्भगवत गीता का हिन्दी पद्यानुवाद उपहार स्वरूप आपको और पाठको को समर्पित है !!
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मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

लघुकथा: काल की गति --संजीव 'सलिल'

लघुकथा: काल की गति संजीव 'सलिल' * 'हे भगवन! इस कलिकाल में अनाचार-अत्याचार बहुत बढ़ गया है. अब तो अवतार लेकर पापों का अंत कर दो.' - भक्त ने भगवान से प्रार्थना की. ' नहीं कर सकता.' भगवान् की प्रतिमा में से आवाज आयी . ' क्यों प्रभु?' 'काल की गति.' 'मैं कुछ समझा नहीं.' 'समझो यह कि परिवार कल्याण के इस समय में केवल एक या दो बच्चों के होते राम अवतार लूँ तो लक्ष्मण, शत्रुघ्न और विभीषण कहाँ से मिलेंगे? कृष्ण अवतार लूँ तो अर्जुन, नकुल और सहदेव के अलावा कौरव ९८ कौरव भी नहीं होंगे. चित्रगुप्त का रूप रखूँ तो १२ पुत्रों में से मात्र २ ही मिलेंगे. तुम्हारा कानून एक से अधिक पत्नियाँ भी नहीं रखने देगा तो १२८०० पटरानियों को कहाँ ले जाऊंगा? बेचारी द्रौपदी के ५ पतियों की कानूनी स्थिति क्या होगी? भक्त और भगवान् दोनों को चुप देखकर ठहाका लगा रही थी काल की गति. *****

मतदान मशीन कितनी निष्पक्ष ?...

मतदान मशीन कितनी निष्पक्ष ?... देखिये दुरूपयोग का तरीका...

रविवार, 4 दिसंबर 2011

Festivals in India 05 Thursday Vaikuntha Ekadashi 09 Monday Paush Purnima 12 Thursday Sakat Chauth 15 Sunday Pongal, Sankranti 19 Thursday Shattila Ekadashi 23 Monday Mauni Amavas 28 Saturday Basant Panchami kalash February 2012 kalash decoration 03 Friday Bhaimi Ekadashi 07 Tuesday Magha Purnima 17 Friday Vijaya Ekadashi 20 Monday Maha ShivRatri kalash March 2012 kalash decoration 04 Sunday Amalaki Ekadashi 07 Wednesday Holi/Holika Dahan 08 Thursday Rangwali Holi 18 Sunday Papmochani Ekadashi 23 Friday Yugadi, Gudi Padwa 25 Sunday Gauri Puja/Gangaur 29 Thursday Yamuna Chhath kalash April 2012 kalash decoration 01 Sunday Ram Naumi 03 Tuesday Kamada Ekadashi 06 Friday Hanuman Jayanti 13 Friday Orissa New Year 14 Saturday Tamil New Year 16 Monday Varuthini Ekadashi 24 Tuesday Akshaya Tritiya, ParashuRam Jayanti kalash May 2012 kalash decoration 02 Wednesday Mohini Ekadashi 04 Friday Narasimha Jayanti 06 Sunday Buddha Purnima 16 Wednesday Apara Ekadashi 20 Sunday Surya Grahan, Wat Savitri Vrat 31 Thursday Nirjala Ekadashi, Ganga Dussehra kalash June 2012 kalash decoration 01 Friday Dujee Ekadashi 04 Monday Chandra Grahan, Wat Purnima Vrat 15 Friday Yogini Ekadashi 21 Thursday Jagannath Rathyatra 30 Saturday Devshayani Ekadashi kalash July 2012 kalash decoration 03 Tuesday Guru Purnima 14 Saturday Kamika Ekadashi 22 Sunday Hariyali Teej 23 Monday Nag Panchami 27 Friday Varalakshmi Vrat 29 Sunday Putrada Ekadashi kalash August 2012 kalash decoration 02 Thursday Narali Purnima, Raksha Bandhan 09 Thursday Janmashtami * 10 Friday Janmashtami *ISKCON 13 Monday Ajaa Ekadashi 27 Monday Padimini Ekadashi kalash September 2012 kalash decoration 12 Wednesday Parama Ekadashi 19 Wednesday Ganesh Chaturthi 23 Sunday Radha Ashtami 26 Wednesday Parsva Ekadashi 29 Saturday Ganesh Visarjan, Anant Chaturdashi 30 Sunday Pratipada Shraddha, BhadraPad Purnima kalash October 2012 kalash decoration 11 Thursday Indira Ekadashi 15 Monday SarvaPitru Amavasya 16 Tuesday Navratri Started 20 Saturday Saraswati Avahan 21 Sunday Sarasvati Puja 22 Monday Durga Ashtami 23 Tuesday Maha Navami 24 Wednesday Dussehra 25 Thursday Pasankusha Ekadashi 29 Monday Sharad Purnima kalash November 2012 kalash decoration 02 Friday Karwa Chauth 07 Wednesday Ahoi Ashtami 10 Saturday Rama Ekadashi 11 Sunday Dhan Teras 13 Tuesday Surya Grahan,Diwali/Lakshami Puja, Narak Chaturdashi 14 Wednesday Gowardhan Puja 15 Thursday Bhaiya Duj 19 Monday Chhath Puja 23 Friday Kansa Vadh 24 Saturday Devutthana Ekadashi 25 Sunday Tulasi Vivah 28 Wednesday Chandra Grahan, Kartik Purnima kalash December 2012 kalash decoration 09 Sunday Utpanna Ekadashi 17 Monday Vivah Panchami 23 Sunday Gita Jayanti, Mokashada Ekadashi 28 Friday Margashirsha Purnima

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

स्वस्तिक के अर्थ, प्रभाव, परिणाम एवं कारणों का विश्लेषण – पंडित दयानन्द शास्त्री

स्वस्तिक के अर्थ, प्रभाव, परिणाम एवं कारणों का विश्लेषण – पंडित दयानन्द शास्त्री स्वस्तिक अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वस्तिक चिह्व अंकित करके उसका पूजन किया जाता है। स्वस्तिक शब्द सु+अस+क से बना है। ‘सु’ का अर्थ अच्छा, ‘अस’ का अर्थ ‘सत्ता’ या ‘अस्तित्व’ और ‘क’ का अर्थ ‘कर्त्ता’ या करने वाले से है। इस प्रकार ‘स्वस्तिक’ शब्द का अर्थ हुआ ‘अच्छा’ या ‘मंगल’ करने वाला। ‘अमरकोश’ में भी ‘स्वस्तिक’ का अर्थ आशीर्वाद, मंगल या पुण्यकार्य करना लिखा है। अमरकोश के शब्द हैं – ‘स्वस्तिक, सर्वतोऋद्ध’ अर्थात् ‘सभी दिशाओं में सबका कल्याण हो।’ इस प्रकार ‘स्वस्तिक’ शब्द में किसी व्यक्ति या जाति विशेष का नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व के कल्याण या ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना निहित है। ‘स्वस्तिक’ शब्द की निरुक्ति है – ‘स्वस्तिक क्षेम कायति, इति स्वस्तिकः’ अर्थात् ‘कुशलक्षेम या कल्याण का प्रतीक ही स्वस्तिक है। स्वस्तिक में एक दूसरे को काटती हुई दो सीधी रेखाएँ होती हैं, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं। इसके बाद भी ये रेखाएँ अपने सिरों पर थोड़ी और आगे की तरफ मुड़ी होती हैं। स्वस्तिक की यह आकृति दो प्रकार की हो सकती है। प्रथम स्वस्तिक, जिसमें रेखाएँ आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दायीं ओर मुड़ती हैं। इसे ‘स्वस्तिक’ कहते हैं। यही शुभ चिह्व है, जो हमारी प्रगति की ओर संकेत करता है। दूसरी आकृति में रेखाएँ पीछे की ओर संकेत करती हुई हमारे बायीं ओर मुड़ती हैं। इसे ‘वामावर्त स्वस्तिक’ कहते हैं। भारतीय संस्कृति में इसे अशुभ माना जाता है। जर्मनी के तानाशाह हिटलर के ध्वज में यही ‘वामावर्त स्वस्तिक’ अंकित था। ऋग्वेद की ऋचा में स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना गया है और उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। सिद्धान्त सार ग्रन्थ में उसे विश्व ब्रह्माण्ड का प्रतीक चित्र माना गया है। उसके मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में निरूपित किया गया है। अन्य ग्रन्थों में चार युग, चार वर्ण, चार आश्रम एवं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के चार प्रतिफल प्राप्त करने वाली समाज व्यवस्था एवं वैयक्तिक आस्था को जीवन्त रखने वाले संकेतों को स्वस्तिक में ओत-प्रोत बताया गया है। भारतीय संस्कृति में मांगलिक कार्यो में हर काम की शुरुआत में स्वस्तिक का चिन्ह बनाया जाता है। स्वस्तिक को कल्याण का प्रतीक माना जाता है। हिन्दू परंपरा के अनुसार स्वस्तिक को सर्व मंगल , कल्याण की दृष्टि से , सृष्टि में सर्व व्यापकता ही स्वास्तिक का रहस्य है। अनंत शक्ति, सौन्दर्य, चेतना , सुख समृद्धि, परम सुख का प्रतीक माना जाता है। स्वस्तिक चिन्ह लगभग हर समाज मे आदर से पूजा जाता है क्योंकि स्वस्तिक के चिन्ह की बनावट ऐसी होती है, कि वह दसों दिशाओं से सकारात्मक एनर्जी को अपनी तरफ खींचता है। इसीलिए किसी भी शुभ काम की शुरुआत से पहले पूजन कर स्वस्तिक का चिन्ह बनाया जाता है। ऐसे ही शुभ कार्यो में आम की पत्तियों को आपने लोगों को अक्सर घर के दरवाजे पर बांधते हुए देखा होगा क्योंकि आम की पत्ती ,इसकी लकड़ी ,फल को ज्योतिष की दृष्टी से भी बहुत शुभ माना जाता है। आम की लकड़ी और स्वास्तिक दोनों का संगम आम की लकड़ी का स्वस्तिक उपयोग किया जाए तो इसका बहुत ही शुभ प्रभाव पड़ता है। यदि किसी घर में किसी भी तरह वास्तुदोष हो तो जिस कोण में वास्तु दोष है उसमें आम की लकड़ी से बना स्वास्तिक लगाने से वास्तुदोष में कमी आती है क्योंकि आम की लकड़ी में सकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित करती है। यदि इसे घर के प्रवेश द्वार पर लगाया जाए तो घर के सुख समृद्धि में वृद्धि होती है। इसके अलावा पूजा के स्थान पर भी इसे लगाये जाने का अपने आप में विशेष प्रभाव बनता है। मंगल प्रसंगों के अवसर पर पूजा स्थान तथा दरवाजे की चौखट और प्रमुख दरवाजे के आसपास स्वस्तिक चिह्न् बनाने की परंपरा है। वे स्वस्तिक कतई परिणाम नहीं देते, जिनका संबंध प्लास्टिक, लोहा, स्टील या लकड़ी से हो। सोना, चांदी, तांबा अथवा पंचधातु से बने स्वस्तिक प्राण प्रतिष्ठित करवाकर चौखट पर लगवाने से सुखद परिणाम देते हैं, जबकि रोली-हल्दी-सिंदूर से बनाए गए स्वस्तिक आत्मसंतुष्टि ही देते हैं। अशांति दूर करने तथा पारिवारिक प्रगति के लिए स्वस्तिक यंत्र रवि-पुष्य, गुरु-पुष्य तथा दीपावली के अवसर पर लक्ष्मी श्रीयंत्र के साथ लगाना लाभदायक है। अकेला स्वस्तिक यंत्र ही एक लाख बोविस घनात्मक ऊर्जा उत्पन्न करने में सक्षम है। वास्तुदोष के निवारण में भी चीनी कछुआ ७00 बोविस भर देने की क्षमता रखता है, जबकि गणोश की प्रतिमा और उसका वैकल्पिक स्वस्तिक आकार एक लाख बोविस की समानता रहने से प्रत्येक घर में स्थापना वास्तु के कई दोषों का निराकरण करने की शक्ति प्रदान करता है। गाय के दूध, गाय के दूध से बने हुए दही और घी, गोनीत, गोबर, जिसे पंचगव्य कहा जाता है, को समानुपात से गंगा जल के साथ मिलाकर आम अथवा अशोक के पत्ते से घर तथा व्यावसायिक केंद्रों पर प्रतिदिन छिटकाव करने से ऋणात्मक ऊर्जा का संहार होता है। तुलसी के पौधे के समीप शुद्ध घी का दीपक प्रतिदिन लगाने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक को मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वस्तिक चिह्व अंकित करके उसका पूजन किया जाता है। गृहप्रवेश से पहले मुख्य द्वार के ऊपर स्वस्तिक चिह्व अंकित करके कल्याण की कामना की जाती है। देवपूजन, विवाह, व्यापार, बहीखाता पूजन, शिक्षारम्भ तथा मुण्डन-संस्कार आदि में भी स्वस्तिक-पूजन आवश्यक समझा जाता है। महिलाएँ अपने हाथों में मेहन्दी से स्वस्तिक चिह्व बनाती हैं। इसे दैविक आपत्ति या दुष्टात्माओं से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है। स्वस्तिक की दो रेखाएँ पुरुष और प्रकृति की प्रतीक हैं। भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक चिह्व को विष्णु, सूर्य, सृष्टिचक्र तथा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का प्रतीक माना गया है। कुछ विद्वानों ने इसे गणेश का प्रतीक मानकर इसे प्रथम वन्दनीय भी माना है। पुराणों में इसे सुदर्शन चक्र का प्रतीक माना गया है। वायवीय संहिता में स्वस्तिक को आठ यौगिक आसनों में एक बतलाया गया है। यास्काचार्य ने इसे ब्रह्म का ही एक स्वरूप माना है। कुछ विद्वान इसकी चार भुजाओं को हिन्दुओं के चार वर्णों की एकता का प्रतीक मानते हैं। इन भुजाओं को ब्रह्मा के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में भी स्वीकार किया गया है। स्वस्तिक धनात्मक चिह्व या प्लस को भी इंगित करता है, जो अधिकता और सम्पन्नता का प्रतीक है। स्वस्तिक की खडी रेखा को स्वयं ज्योतिर्लिंग का तथा आडी रेखा को विश्व के विस्तार का भी संकेत माना जाता है। इन चारों भुजाओं को चारों दिशाओं के कल्याण की कामना के प्रतीक के रूप में भी स्वीकार किया जाता है, जिन्हें बाद में इसी भावना के साथ रेडक्रॉस सोसायटी ने भी अपनाया। इलेक्ट्रोनिक थ्योरी ने इन दो भुजाओं को नगेटिव और पोजिटिव का भी प्रतीक माना जाता है, जिनके मिलने से अपार ऊर्जा प्राप्त होती है। स्वस्तिक के चारों ओर लगाये जाने वाले बिन्दुओं को भी चार दिशाओं का प्रतीक माना गया है। एक पारम्परिक मान्यता के अनुसार चतुर्मास में स्वस्तिक व्रत करने तथा मन्दिर में अष्टदल से स्वस्तिक बनाकर उसका पूजन करने से महिलाओं को वैधव्य का भय नहीं रहता। पद्मपुराण में इससे संबंधित एक कथा का भी उल्लेख है। हमारे मांगलिक प्रतीकों में स्वस्तिक एक ऐसा चिह्व है, जो अत्यन्त प्राचीन काल से लगभग सभी धर्मों और सम्प्रदायों में प्रचलित रहा है। भारत में तो इसकी जडें गहरायी से पैठी हुई हैं ही, विदेशों में भी इसका काफी अधिक प्रचार प्रसार हुआ है। अनुमान है कि व्यापारी और पर्यटकों के माध्यम से ही हमारा यह मांगलिक प्रतीक विदेशों में पहुँचा। भारत के समान विदेशों में भी स्वस्तिक को शुभ और विजय का प्रतीक चिह्व माना गया। इसके नाम अवश्य ही अलग-अलग स्थानों में, समय-समय पर अलग-अलग रहे। सिन्धु-घाटी से प्राप्त बर्तन और मुद्राओं पर हमें स्वस्तिक की आकृतियाँ खुदी मिली हैं, जो इसकी प्राचीनता का ज्वलन्त प्रमाण है। सिन्धु-घाटी सभ्यता के लोग सूर्यपूजक थे और स्वस्तिक चिह्व, सूर्य का भी प्रतीक माना जाता रहा है। ईसा से पूर्व प्रथम शताब्दी की खण्डगिरि, उदयगिरि की रानी की गुफा में भी स्वस्तिक चिह्व मिले हैं। मत्स्य पुराण में मांगलिक प्रतीक के रूप में स्वस्तिक की चर्चा की गयी है। पाणिनी की व्याकरण में भी स्वस्तिक का उल्लेख है। पाली भाषा में स्वस्तिक को साक्षियों के नाम से पुकारा गया, जो बाद में साखी या साकी कहलाये जाने लगे। जैन परम्परा में मांगलिक प्रतीक के रूप में स्वीकृत अष्टमंगल द्रव्यों में स्वस्तिक का स्थान सर्वोपरि है। स्वस्तिक चिह्व की चार रेखाओं को चार प्रकार के मंगल की प्रतीक माना जाता है। वे हैं – अरहन्त-मंगल, सिद्ध-मंगल, साहू-मंगल और केवलि पण्णत्तो धम्मो मंगल। महात्मा बुद्ध की मूर्तियों पर और उनके चित्रों पर भी प्रायः स्वस्तिक चिह्व मिलते हैं। अमरावती के स्तूप पर स्वस्तिक चिह्व हैं। विदेशों में इस मंगल-प्रतीक के प्रचार-प्रसार में बौद्ध धर्म के प्रचारकों का भी काफी योगदान रहा है। बौद्ध धर्म के प्रभाव के कारण ही जापान में प्राप्त महात्मा बुद्ध की प्राचीन मूर्तियों पर स्वस्तिक चिह्व अंकित हुए मिले हैं। ईरान, यूनान, मैक्सिको और साइप्रस में की गई खुदाइयों में जो मिट्टी के प्राचीन बर्तन मिले हैं, उनमें से अनेक पर स्वस्तिक चिह्व हैं। आस्ट्रिया के राष्ट्रीय संग्रहालय में अपोलो देवता की एक प्रतिमा है, जिस पर स्वस्तिक चिह्व बना हुआ है। टर्की में ईसा से २२०० वर्ष पूर्व के ध्वज-दण्डों में अंकित स्वस्तिक चिह्व मिले हैं। इटली के अनेक प्राचीन अस्थि कलशों पर भी स्वस्तिक चिह्व हैं। एथेन्स में शत्रागार के सामने यह चिह्व बना हुआ है। स्कॉटलैण्ड और आयरलैण्ड में अनेक ऐसे प्राचीन पत्थर मिले हैं, जिन पर स्वस्तिक चिह्व अंकित हैं। प्रारम्भिक ईसाई स्मारकों पर भी स्वस्तिक चिह्व देखे गये हैं। कुछ ईसाई पुरातत्त्ववेत्ताओं का विचार है कि ईसाई धर्म के प्रतीक क्रॉस का भी प्राचीनतम रूप स्वस्तिक ही है। छठी शताब्दी में चीनी राजा वू ने स्वस्तिक को सूर्य के प्रतीक के रूप में मानने की घोषणा की थी। चीन में ताँगवंश के इतिहास-लेखक फुंगल्से ने लिखा है – प्रतिवर्ष सातवें महीने के सातवें दिन मकडयों को लाकर उनसे जाले में स्वस्तिक चिह्व बुनवाते हैं। अगर कहीं किसी को पहले से ही जाले में स्वस्तिक चिह्व बना हुआ मिल जाए तो उसे विशेष सौभाग्य का सूचक मानते हैं। तिब्बत में मृतकों के साथ स्वस्तिक चिह्व रखने की प्राचीन परम्परा रही है। बेल्जियम के नामूर संग्रहालय में एक ऐसा उपकरण रखा है, जो हड्डी से बना हुआ है। उस पर क्रॉस के कई चिह्व बने हुए हैं तथा उन चिह्वों के बीच में एक स्वस्तिक चिह्व भी है। इटली के संग्रहालय में रखे एक भाले पर भी स्वस्तिक का चिह्व है। रेड इण्डियन, स्वस्तिक को सुख और सौभाग्य का प्रतीक मानते हैं। वे इसे अपने आभूषणों में भी धारण करते हैं। इस प्रकार हमारा मंगल-प्रतीक स्वस्तिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सदैव पूज्य और सम्माननीय रहा है तथा इसके इस स्वरूप में हमारे यहाँ आज भी कोई कमी नहीं आयी है। हिन्दू धर्म परंपराओं में स्वस्तिक शुभ व मंगल का प्रतीक माना जाता है। इसलिए हर धार्मिक, मांगलिक कार्य, पूजा या उपासना की शुरुआत स्वस्तिक का चिन्ह बनाकर की जाती है। धर्मशास्त्रों में स्वस्तिक चिन्ह के शुभ होने और बनाने के पीछे विशेष कारण बताया गया हैं। जानते हैं यह खास बात - सूर्य और स्वस्तिक सूर्य देव अनेक नामो वाले प्रत्यक्ष देव है , यह अपनी पृथ्वी को ही नहीं अपितु अपने विशाल परिवार जिसमें गृह नक्श्तर आदि प्रमुख हैं अक सञ्चालन करते हैं स्वस्तिक का अर्थ है >>सुख,और आनंद देने वाला चतुष्पथ चोराहा . सूर्य और स्वस्तिक का कितना गहरा सम्बन्ध है यह इस से सोपस्ट हो जाता है देवत गोल और नक्श्तर मार्ग में से चारो दिशाओं के देवताओं से स्वस्तिक बनता है और इस मार्ग में आने वाले सभी देवी देव भी हमें स्वस्ति प्रदान करते हैं . वेदों में इसका लेख बहुत देखने को मिलता है..स्वस्तिक का बहुत ही महत्व है , इससे सुख,वैभव,यश,लक्ष्मी , कीर्ति और आनंद मिलता है, और हर शुभ कार्य में स्वस्तिक को प्रथम और प्रमुख स्थान प्राप्त होता है, वैदिक युग से ही इनकी सर्व मान्यता पाई और देखी जाती है, दरअसल, शास्त्रों में स्वस्तिक विघ्रहर्ता व मंगलमूर्ति भगवान श्री गणेश का साकार रूप माना गया है। स्वस्तिक का बायां हिस्सा गं बीजमंत्र होता है, जो भगवान श्री गणेश का स्थान माना जाता है। इसमें जो चार बिन्दियां होती हैं, उनमें गौरी, पृथ्वी, कूर्म यानी कछुआ और अनन्त देवताओं का वास माना जाता है। विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ वेदों में भी स्वस्तिक के श्री गणेश स्वरूप होने की पुष्टि होती है। हिन्दू धर्म की पूजा-उपासना में बोला जाने वाला वेदों का शांति पाठ मंत्र भी भगवान श्रीगणेश के स्वस्तिक रूप का स्मरण है। यह शांति पाठ है – स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा: स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा: स्वस्तिनस्ता रक्षो अरिष्टनेमि: स्वस्ति नो बृहस्पर्तिदधातु इस मंत्र में चार बार आया स्वस्ति शब्द चार बार मंगल और शुभ की कामना से श्री गणेश का ध्यान और आवाहन है। असल में स्वस्तिक बनाने के पीछे व्यावहारिक दर्शन यही है कि जहां माहौल और संबंधों में प्रेम, प्रसन्नता, श्री, उत्साह, उल्लास, सद्भाव, सौंदर्य, विश्वास, शुभ, मंगल और कल्याण का भाव होता है, वहीं श्री गणेश का वास होता है और उनकी कृपा से अपार सुख और सौभाग्य प्राप्त होता है। चूंकि श्रीगणेश विघ्रहर्ता हैं, इसलिए ऐसी मंगल कामनाओं की सिद्धि में विघ्रों को दूर करने के लिए स्वस्तिक रूप में गणेश स्थापना की जाती है। इसीलिए श्रीगणेश को मंगलमूर्ति भी पुकारा जाता है। स्वस्तिक को हिन्दू धर्म ने ही नहीं, बल्कि विश्व के सभी धर्मों ने परम पवित्र माना है। स्वस्तिक शब्द सू + उपसर्ग अस् धातु से बना है। सु अर्थात अच्छा, श्रेष्ठ, मंगल एवं अस् अर्थात सत्ता। यानी कल्याण की सत्ता, मांगल्य का अस्तित्व। स्वस्तिक हमारे लिए सौभाग्य का प्रतीक है।स्वस्तिक दो रेखाओं द्वारा बनता है। दोनों रेखाओं को बीच में समकोण स्थिति में विभाजित किया जाता है। दोनों रेखाओं के सिरों पर बायीं से दायीं ओर समकोण बनाती हुई रेखाएं इस तरह खींची जाती हैं कि वे आगे की रेखा को न छू सकें। स्वस्तिक को किसी भी स्थिति में रखा जाए, उसकी रचना एक-सी ही रहेगी। स्वस्तिक के चारों सिरों पर खींची गयी रेखाएं किसी बिंदु को इसलिए स्पर्श नहीं करतीं, क्योंकि इन्हें ब्रहाण्ड के प्रतीक स्वरूप अन्तहीन दर्शाया गया है। स्वस्तिक की खड़ी रेखा स्वयंभू ज्योतिर्लिंग का संकेत देती है। आड़ी रेखा विश्व के विस्तार को बताती है। स्वस्तिक गणपति का भी प्रतीक है। स्वस्तिक को भगवान विष्णु व श्री का प्रतीक चिह्न् माना गया है। स्वस्तिक की चार भुजाएं भगवान विष्णु के चार हाथ हैं। इस धारणा के अनुसार, भगवान विष्णु ही स्वस्तिक आकृति में चार भुजाओं से चारों दिशाओं का पालन करते हैं। स्वस्तिक के मध्य में जो बिन्दु है, वह भगवान विष्णु का नाभिकमल यानी ब्रम्हा का स्थान है। स्वस्तिक धन की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी उपासना के लिए भी बनाया जाता है। हिंदू व्यापारियों के बहीखातों पर स्वस्तिक चिह्न् बना होता है। जब इसकी कल्पना गणेश रूप में हो तो स्वस्तिक के दोनों ओर दो सीधी रेखाएं बनायी जाती हैं, जो शुभ-लाभ एवं ऋद्धि-सिद्धि की प्रतीक हैं। हिन्दू पौराणिक मान्यता के अनुसार, अभिमंत्रित स्वस्तिक रूप गणपति पूजन से घर में लक्ष्मी की कमी नहीं होती। पतंजलि योगशास्त्र के अनुसार, कोई भी कार्य निर्विघ्न समाप्त हो जाए, इसके लिए कार्य के प्रारम्भ में मंगलाचरण लिखने का प्रचलन रहा है। परन्तु ऐसे मंगलकारी श्लोकों की रचना सामान्य व्यक्तियों से संभव नहीं। इसी लिए ऋषियों ने स्वस्तिक का निर्माण किया। मंगल कार्यो के प्रारम्भ में स्वस्तिक बनाने मात्र से कार्य संपन्न हो जाता है, यह मान्यता रही है। वैज्ञानिक आधार - स्वस्तिक चिह्न् का वैज्ञानिक आधार भी है। गणित में + चिह्न् माना गया है। विज्ञान के अनुसार, पॉजिटिव तथा नेगेटिव दो अलग-अलग शक्ति प्रवाहों के मिलनबिन्दु को प्लस (+) कहा गया है, जो कि नवीन शक्ति के प्रजनन का कारण है। प्लस को स्वस्तिक चिह्न् का अपभ्रंश माना जाता है, जो सम्पन्नता का प्रतीक है। किसी भी मांगलिक कार्य को करने से पूर्व हम स्वस्तिवाचन करते हैं अर्थात मरीचि, अरुन्धती सहित वसिष्ठ, अंगिरा, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह तथा कृत आदि सप्त ऋषियों का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। वास्तुशास्त्र में स्वस्तिक - स्वस्तिक का वास्तुशास्त्र में अति विशेष महत्व है। यह वास्तु का मूल चिह्न् है। स्वस्तिक दिशाओं का ज्ञान करवाने वाला शुभ चिह्न् है। घर को बुरी नजर से बचाने व उसमें सुख-समृद्धि के वास के लिए मुख्य द्वार के दोनों तरफ स्वस्तिक चिह्न् बनाया जाता है। स्वस्तिक चक्र की गतिशीलता बाईं से दाईं ओर है। इसी सिद्धान्त पर घड़ी की दिशा निर्धारित की गयी है। पृथ्वी को गति प्रदान करने वाली ऊर्जा का प्रमुख स्रोत उत्तरायण से दक्षिणायण की ओर है। इसी प्रकार वास्तुशास्त्र में उत्तर दिशा का बड़ा महत्व है। इस ओर भवन अपेक्षाकृत अधिक खुला रखा जाता है, जिससे उसमें चुम्बकीय ऊर्जा व दिव्य शक्तियों का संचार रहे। वास्तुदोष क्षय करने के लिए स्वस्तिक को बेहद लाभकारी माना गया है। मुख्य द्वार के ऊपर सिन्दूर से स्वस्तिक का चिह्न् बनाना चाहिए। यह चिह्न् नौ अंगुल लम्बा व नौ अंगुल चौड़ा हो। घर में जहां-जहां वास्तुदोष हो, वहां यह चिह्न् बनाया जा सकता है।

रचना-प्रति रचना दिल के तार महेश चन्द्र गुप्ता-संजीव 'सलिल'

रचना-प्रति रचना दिल के तार महेश चन्द्र गुप्ता-संजीव 'सलिल' ***** लिखा तुमने खत में इक बार — २ दिसंबर २०११ लिखा तुमने खत में इक बार मिला लें दिल से दिल के तार मगर मैंने न दिया ज़वाब नहीं भेजा मैंने इकरार खली होगी तुमको ये बात लगा होगा दिल को आघात तुम्हारी आँखों से कुछ रोज़ बहे होंगे संगीं जज़्बात बतादूँ तुमको मैं ये आज छिपाऊँ न तुमसे ये राज़ हसीं हो सबसे बढ़ कर तुम तुम्हारे हैं दिलकश अंदाज़ मगर इक सूरत सादी सी रहे बिन बात उदासी सी बसी है दिल के कोने में लगे मुझको रास आती सी बहुत मन में है ऊहापोह रखूँ न गर तुमसे मैं मोह लगेगी तुमको अतिशय ठेस करेगा मन मेरा विद्रोह पिसा मैं दो पाटों के बीच रहे हैं दोनों मुझको खींच नहीं जाऊँ मैं जिसके संग रहे वो ही निज आँखें सींच भला है क्या मुझको कर्तव्य बताओ तुम अपना मंतव्य कहाँ पर है मेरी मंज़िल किसे मानूँ अपना गंतव्य. महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’ २७ नवंबर २०११ -- (Ex)Prof. M C Gupta MD (Medicine), MPH, LL.M., Advocate & Medico-legal Consultant www.writing.com/authors/mcgupta44 आत्मीय! यह रचना मन को रुची प्रतिरचना स्वीकार. उपकृत मुझको कीजिये- शत-शत लें आभार.. प्रति-रचना: संजीव 'सलिल' * न खोजो मन बाहर गंतव्य. डूब खुद में देखो भवितव्य. रहे सच साथ यही कर्त्तव्य- समय का समझ सको मंतव्य.. पिसो जब दो पाटों के बीच. बैठकर अपनी ऑंखें मींच. स्नेह सलिला से साँसें सींच. प्राण-रस लो प्रकृति से खींच.. व्यर्थ सब संशय-ऊहापोह. कौन किससे करता है मोह? स्वार्थ से कोई न करता द्रोह. सत्य किसको पाया है सोह? लगे जो सूरत भाती सी, बाद में वही उबाती सी. लगे गत प्यारी थाती सी. जले मन में फिर बाती सी.. राज कब रह पाता है राज? सभी के अलग-अलग अंदाज. किसी को बोझा लगता ताज. कोई सुनता मन की आवाज.. सहे जो हँसकर सब आघात. उसी की कभी न होती मात. बदलती तनिक नहीं है जात. भूल मत 'सलिल' आप-औकात.. करें या मत करिए इजहार, जहाँ इनकार, वहीं इकरार. बरसता जब आँखों से प्यार. झनक-झन बजते दिल के तार.. ************* Acharya Sanjiv verma 'Salil' http://divyanarmada.blogspot.com http://hindihindi.in २ दिसम्बर २०११ १:१० पूर्वाह्न को, Dr.M.C. Gupta ने लिखा: