दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शुक्रवार, 28 अगस्त 2009
क्या विचार हैं आपके ???????
हिन्दी में कवितायें खूब लिखी जा रही है ,जिन्हें काव्य के रचना शास्त्र का ज्ञान नही है वे भी निराला जी के रबड़ छंदो मे लिख कर स्वनाम धन्य कवि हैं ..अपनी पूंजी लगाकर पुस्तके भी छपवा कर ..विजिटिग कार्ड की तरह बांट रहे है ..जुगाड़ टेक्नालाजी के चलते सम्मानित भी हो रहे है ...पर नाटक नही लिखे जा रहे ...उपन्यास नही लिखे जा रहे .. आलोचना का कार्य विश्वविद्यालयो के परिसर तक सीमित हो गया है ..शोध प्रबंध ही हिन्दी का गंभीर लेखन बनता जा रहा है ... लघुकथा को , मुक्तक को गंभीर साहित्य नही माना जाता .. इस सब पर क्या विचार हैं आपके ???????..........vivek ranjan shrivastava , jabalpur
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हिन्दी
सामाजिक लेखन हेतु ११ वें रेड एण्ड व्हाईट पुरस्कार से सम्मानित .
"रामभरोसे", "कौआ कान ले गया" व्यंग संग्रहों ," आक्रोश" काव्य संग्रह ,"हिंदोस्तां हमारा " , "जादू शिक्षा का " नाटकों के माध्यम से अपने भीतर के रचनाकार की विवश अभिव्यक्ति को व्यक्त करने का दुस्साहस ..हम तो बोलेंगे ही कोई सुने न सुने .
यह लेखन वैचारिक अंतर्द्वंद है ,मेरे जैसे लेखकों का जो अपना श्रम, समय व धन लगाकर भी सच को "सच" कहने का साहस तो कर रहे हैं ..इस युग में .
लेखकीय शोषण , व पाठकहीनता की स्थितियां हम सबसे छिपी नहीं है , पर समय रचनाकारो के इस सारस्वत यज्ञ की आहुतियों का मूल्यांकन करेगा इसी आशा और विश्वास के साथ ..
बुधवार, 26 अगस्त 2009
नव गीत: आचार्य संजीव 'सलिल'
नव गीत:
आचार्य संजीव 'सलिल'
जिनको कीमत नहीं
समय की
वे न सफलता
कभी वरेंगे...
*
समय न थमता,
समय न झुकता.
समय न अड़ता,
समय न रुकता.
जो न समय की
कीमत जाने,
समय नहीं
उसको पहचाने.
समय दिखाए
आँख तनिक तो-
ताज- तख्त भी
नहीं बचेंगे.....
*
समय सत्य है,
समय नित्य है.
समय तथ्य है,
समय कृत्य है.
साथ समय के
दिनकर उगता.
साथ समय के
शशि भी ढलता.
हो विपरीत समय
जब उनका-
राहु-केतु बन
ग्रहण डसेंगे.....
*
समय गिराता,
समय उठाता.
समय चिढाता,
समय मनाता.
दुर्योधन-धृतराष्ट्र
समय है.
जसुदा राधा कृष्ण
समय है.
शूल-फूल भी,
गगन-धूल भी
'सलिल' समय को
नमन करेंगे...
***********
आचार्य संजीव 'सलिल'
जिनको कीमत नहीं
समय की
वे न सफलता
कभी वरेंगे...
*
समय न थमता,
समय न झुकता.
समय न अड़ता,
समय न रुकता.
जो न समय की
कीमत जाने,
समय नहीं
उसको पहचाने.
समय दिखाए
आँख तनिक तो-
ताज- तख्त भी
नहीं बचेंगे.....
*
समय सत्य है,
समय नित्य है.
समय तथ्य है,
समय कृत्य है.
साथ समय के
दिनकर उगता.
साथ समय के
शशि भी ढलता.
हो विपरीत समय
जब उनका-
राहु-केतु बन
ग्रहण डसेंगे.....
*
समय गिराता,
समय उठाता.
समय चिढाता,
समय मनाता.
दुर्योधन-धृतराष्ट्र
समय है.
जसुदा राधा कृष्ण
समय है.
शूल-फूल भी,
गगन-धूल भी
'सलिल' समय को
नमन करेंगे...
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कृष्ण,
जसुदा,
नव गीत: आचार्य संजीव 'सलिल',
राधा,
समय
करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
गीत: अमन dalal
रिश्तो के इस शहर में,
जो हम संवर रहे हैं..
भावो की हर छुवन में,
अब हम सिहर रहे हैं....….रिश्तो के इस शहर में,
राहे-गुजर बड़ी थी,
गमो की इक झडी थी,
के मन ही मन में खिलने
अब हम ठहर रहे हैं,
रिश्तो को इस शहर में,
जो हम सँवर रहे हैं...
ये फूल और ये कलियाँ,
ये गाँव और गलियां,
न जाने क्यों यहाँ पर,
हैं कहते हमको छलियाँ,
पर कुछ कहो यहाँ की,
अब हम खबर रहे हैं....... रिश्तो के इस शहर में
हैं फिर से माँ की लोरी,
रेशम की सुर्ख डोरी,
बचपन के सारे वादे,
जो सच हैं वो बता दें,
बनते बिगड़ते कैसे,
ये हम सुधर रहे हैं..... रिश्तो के इस शहर में,
जब जाओं तुम वहां पर,
मैं गा रहा जहाँ पर,
ये वादा बस निभाना
तुम सबको ये बताना,
सपनो के इस नगर में,
हम कैसे रह रहे हैं......
रिश्तो को इस शहर में,
जो हम सँवर रहे हैं...
जो हम संवर रहे हैं..
भावो की हर छुवन में,
अब हम सिहर रहे हैं....….रिश्तो के इस शहर में,
राहे-गुजर बड़ी थी,
गमो की इक झडी थी,
के मन ही मन में खिलने
अब हम ठहर रहे हैं,
रिश्तो को इस शहर में,
जो हम सँवर रहे हैं...
ये फूल और ये कलियाँ,
ये गाँव और गलियां,
न जाने क्यों यहाँ पर,
हैं कहते हमको छलियाँ,
पर कुछ कहो यहाँ की,
अब हम खबर रहे हैं....... रिश्तो के इस शहर में
हैं फिर से माँ की लोरी,
रेशम की सुर्ख डोरी,
बचपन के सारे वादे,
जो सच हैं वो बता दें,
बनते बिगड़ते कैसे,
ये हम सुधर रहे हैं..... रिश्तो के इस शहर में,
जब जाओं तुम वहां पर,
मैं गा रहा जहाँ पर,
ये वादा बस निभाना
तुम सबको ये बताना,
सपनो के इस नगर में,
हम कैसे रह रहे हैं......
रिश्तो को इस शहर में,
जो हम सँवर रहे हैं...
मंगलवार, 25 अगस्त 2009
tv रियलिटी शो में दिखाई गई छबि ही यही भारतीय महिलाओं की वास्तविक छबि है?
मेरा मानना है कि tv शो में दिखाई गई छबि भारतीय महिलाओं की वास्तविक छबि बिल्कुल नही है?महिलाओं की छवि फिल्मों और टीवी चैनलों ने सबसे ज्यादा खराब की है.देश की बहुसंख्यक महिलाये आज भी पारंपरिक सांस्कृतिक परिवेश का ही प्रतिनिधित्व करती है ..क्या सोचते है आप ????
सामाजिक लेखन हेतु ११ वें रेड एण्ड व्हाईट पुरस्कार से सम्मानित .
"रामभरोसे", "कौआ कान ले गया" व्यंग संग्रहों ," आक्रोश" काव्य संग्रह ,"हिंदोस्तां हमारा " , "जादू शिक्षा का " नाटकों के माध्यम से अपने भीतर के रचनाकार की विवश अभिव्यक्ति को व्यक्त करने का दुस्साहस ..हम तो बोलेंगे ही कोई सुने न सुने .
यह लेखन वैचारिक अंतर्द्वंद है ,मेरे जैसे लेखकों का जो अपना श्रम, समय व धन लगाकर भी सच को "सच" कहने का साहस तो कर रहे हैं ..इस युग में .
लेखकीय शोषण , व पाठकहीनता की स्थितियां हम सबसे छिपी नहीं है , पर समय रचनाकारो के इस सारस्वत यज्ञ की आहुतियों का मूल्यांकन करेगा इसी आशा और विश्वास के साथ ..
सोमवार, 24 अगस्त 2009
लघुकथाएँ: “शिष्टता” और “जंगल में जनतंत्र” श्री प्राण शर्मा और आचार्य संजीव ‘सलिल’
दो लघुकथाएँ: श्री प्राण शर्मा और आचार्य संजीव ‘सलिल’ की लघुकथाएँ Posted by श्रीमहावीर
कुछ दिन पूर्व दिव्य नर्मदा में 'तितली' पर दो रचनाकारों की रचनाएँ आपने पढी और सराही थीं. आज उन्ही दोनों अर्थात श्री प्राण शर्मा जी और सलिल जी की एक-एक लघु कथा “शिष्टता” और “जंगल में जनतंत्र” 'मंथन' दिनांक १९-८-२००९ से प्रस्तुत हैं पाठकीय टिप्पणियों सहित-
लघुकथा
शिष्टता
प्राण शर्मा
किसी जगह एक फिल्म की शूटिंग हो रही थी. किसी फिल्म की आउटडोर शूटिंग हो वहां दर्शकों की भीड़ नहीं उमड़े, ये मुमकिन ही नहीं है. छोटा-बड़ा हर कोई दौड़ पड़ता है उस स्थल को जहाँ फिल्म की आउटडोर शूटिंग हो रही होती है. इस फिल्म की आउटडोर शूटिंग के दौरान भी कुछ ऐसा ही हुआ. दर्शक भारी संख्या में जुटे. उनमें एक अंग्रेज भी थे. किसी भारतीय फिल्म की शूटिंग देखने का उनका पहला अवसर था.
पांच मिनटों के एक दृश्य को बार-बार फिल्माया जा रहा था. अंग्रेज महोदय उकताने लगे. वे लौट जाना चाहते थे लेकिन फिल्म के हीरो के कमाल का अभिनय उनके पैरों में ज़ंजीर बन गया था.
आखिर फिल्म की शूटिंग पैक अप हुई. अँगरेज़ महोदय हीरो की ओर लपके. मिलते ही उन्होंने कहा-” वाह भाई, आपके उत्कृष्ट अभिनय की बधाई आपको देना चाहता हूँ.”
एक अँगरेज़ के मुंह से इतनी सुन्दर हिंदी सुनकर हीरो हैरान हुए बिना नहीं रह सका.
उसके मुंह से निकला-”Thank you very much.”
” क्या मैं पूछ सकता हूँ कि आप भारत के किस प्रदेश से हैं?
” I am from Madya Pradesh.” हीरो ने सहर्ष उत्तर दिया.
” यदि मैं मुम्बई आया तो क्या मैं आपसे मिल सकता हूँ?
” Of course”.
” इस के पहले कि विदा लूं आपसे मैं एक बात पूछना चाहता हूँ. आपसे मैंने आपकी भाषा में प्रश्न किये किन्तु आपने उनके उत्तर अंगरेजी में दिए. बहुत अजीब सा लगा मुझको.”
” देखिये, आपने हिंदी में बोलकर मेरी भाषा का मान बढ़ाया, क्या मेरा कर्त्तव्य नहीं था कि अंग्रेजी में बोलकर मैं आपकी भाषा का मान बढ़ाता?”
**********************************************
लघुकथा
जंगल में जनतंत्र
आचार्य संजीव ‘सलिल’
जंगल में चुनाव होनेवाले थे. मंत्री कौए जी एक जंगी आमसभा में सरकारी अमले द्वारा जुटाई गयी भीड़ के आगे भाषण दे रहे थे.- ‘ जंगल में मंगल के लिए आपस का दंगल बंद कर एक साथ मिलकर उन्नति की रह पर कदम रखिये. सिर्फ़ अपना नहीं सबका भला सोचिये.’
‘ मंत्री जी! लाइसेंस दिलाने के लिए धन्यवाद. आपके कागज़ घर पर दे आया हूँ. ‘ भाषण के बाद चतुर सियार ने बताया. मंत्री जी खुश हुए.
तभी उल्लू ने आकर कहा- ‘अब तो बहुत धांसू बोलने लगे हैं. हाऊसिंग सोसायटी वाले मामले को दबाने के लिए रखी’ और एक लिफाफा उन्हें सबकी नज़र बचाकर दे दिया.
विभिन्न महकमों के अफसरों उस अपना-अपना हिस्सा मंत्री जी के निजी सचिव गीध को देते हुए कामों की जानकारी मंत्री जी को दी.
समाजवादी विचार धारा के मंत्री जी मिले उपहारों और लिफाफों को देखते हुए सोच रहे थे – ‘जंगल में जनतंत्र जिंदाबाद. ‘
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कुछ दिन पूर्व दिव्य नर्मदा में 'तितली' पर दो रचनाकारों की रचनाएँ आपने पढी और सराही थीं. आज उन्ही दोनों अर्थात श्री प्राण शर्मा जी और सलिल जी की एक-एक लघु कथा “शिष्टता” और “जंगल में जनतंत्र” 'मंथन' दिनांक १९-८-२००९ से प्रस्तुत हैं पाठकीय टिप्पणियों सहित-
लघुकथा
शिष्टता
प्राण शर्मा
किसी जगह एक फिल्म की शूटिंग हो रही थी. किसी फिल्म की आउटडोर शूटिंग हो वहां दर्शकों की भीड़ नहीं उमड़े, ये मुमकिन ही नहीं है. छोटा-बड़ा हर कोई दौड़ पड़ता है उस स्थल को जहाँ फिल्म की आउटडोर शूटिंग हो रही होती है. इस फिल्म की आउटडोर शूटिंग के दौरान भी कुछ ऐसा ही हुआ. दर्शक भारी संख्या में जुटे. उनमें एक अंग्रेज भी थे. किसी भारतीय फिल्म की शूटिंग देखने का उनका पहला अवसर था.
पांच मिनटों के एक दृश्य को बार-बार फिल्माया जा रहा था. अंग्रेज महोदय उकताने लगे. वे लौट जाना चाहते थे लेकिन फिल्म के हीरो के कमाल का अभिनय उनके पैरों में ज़ंजीर बन गया था.
आखिर फिल्म की शूटिंग पैक अप हुई. अँगरेज़ महोदय हीरो की ओर लपके. मिलते ही उन्होंने कहा-” वाह भाई, आपके उत्कृष्ट अभिनय की बधाई आपको देना चाहता हूँ.”
एक अँगरेज़ के मुंह से इतनी सुन्दर हिंदी सुनकर हीरो हैरान हुए बिना नहीं रह सका.
उसके मुंह से निकला-”Thank you very much.”
” क्या मैं पूछ सकता हूँ कि आप भारत के किस प्रदेश से हैं?
” I am from Madya Pradesh.” हीरो ने सहर्ष उत्तर दिया.
” यदि मैं मुम्बई आया तो क्या मैं आपसे मिल सकता हूँ?
” Of course”.
” इस के पहले कि विदा लूं आपसे मैं एक बात पूछना चाहता हूँ. आपसे मैंने आपकी भाषा में प्रश्न किये किन्तु आपने उनके उत्तर अंगरेजी में दिए. बहुत अजीब सा लगा मुझको.”
” देखिये, आपने हिंदी में बोलकर मेरी भाषा का मान बढ़ाया, क्या मेरा कर्त्तव्य नहीं था कि अंग्रेजी में बोलकर मैं आपकी भाषा का मान बढ़ाता?”
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लघुकथा
जंगल में जनतंत्र
आचार्य संजीव ‘सलिल’
जंगल में चुनाव होनेवाले थे. मंत्री कौए जी एक जंगी आमसभा में सरकारी अमले द्वारा जुटाई गयी भीड़ के आगे भाषण दे रहे थे.- ‘ जंगल में मंगल के लिए आपस का दंगल बंद कर एक साथ मिलकर उन्नति की रह पर कदम रखिये. सिर्फ़ अपना नहीं सबका भला सोचिये.’
‘ मंत्री जी! लाइसेंस दिलाने के लिए धन्यवाद. आपके कागज़ घर पर दे आया हूँ. ‘ भाषण के बाद चतुर सियार ने बताया. मंत्री जी खुश हुए.
तभी उल्लू ने आकर कहा- ‘अब तो बहुत धांसू बोलने लगे हैं. हाऊसिंग सोसायटी वाले मामले को दबाने के लिए रखी’ और एक लिफाफा उन्हें सबकी नज़र बचाकर दे दिया.
विभिन्न महकमों के अफसरों उस अपना-अपना हिस्सा मंत्री जी के निजी सचिव गीध को देते हुए कामों की जानकारी मंत्री जी को दी.
समाजवादी विचार धारा के मंत्री जी मिले उपहारों और लिफाफों को देखते हुए सोच रहे थे – ‘जंगल में जनतंत्र जिंदाबाद. ‘
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प्राण शर्मा,
लघुकथा,
सन्जीव 'सलिल'
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आघात

ज्वलंत प्रश्न.....जिन्ना पर लिखी उनकी किताब जसवंत के निष्कासन की अहम वजह बनी क्या यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आघात है ....?
मेरा अपना मानना है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर इतिहास से खिलवाड़ करने की इजाजत किसी को नही होनी चाहिये ...फिर जसवंत जी ने तो जाने क्यो गड़े मुर्दे उखाड़कर ..शायद स्वयं की मुसलमानो के प्रति लिबरल छबि बनाकर अगले प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने के लिये देश द्रोह जैसा कुछ कर डाला है ..क्या नही ..आप क्या सोचते है ?????
सामाजिक लेखन हेतु ११ वें रेड एण्ड व्हाईट पुरस्कार से सम्मानित .
"रामभरोसे", "कौआ कान ले गया" व्यंग संग्रहों ," आक्रोश" काव्य संग्रह ,"हिंदोस्तां हमारा " , "जादू शिक्षा का " नाटकों के माध्यम से अपने भीतर के रचनाकार की विवश अभिव्यक्ति को व्यक्त करने का दुस्साहस ..हम तो बोलेंगे ही कोई सुने न सुने .
यह लेखन वैचारिक अंतर्द्वंद है ,मेरे जैसे लेखकों का जो अपना श्रम, समय व धन लगाकर भी सच को "सच" कहने का साहस तो कर रहे हैं ..इस युग में .
लेखकीय शोषण , व पाठकहीनता की स्थितियां हम सबसे छिपी नहीं है , पर समय रचनाकारो के इस सारस्वत यज्ञ की आहुतियों का मूल्यांकन करेगा इसी आशा और विश्वास के साथ ..
रविवार, 23 अगस्त 2009
भजन: भोले घर बाजे बधाई -स्व. शांति देवी वर्मा
भोले घर बाजे बधाई
स्व. शांति देवी वर्मा
मंगल बेला आयी, भोले घर बाजे बधाई ...
गौरा मैया ने लालन जनमे,
गणपति नाम धराई.
भोले घर बाजे बधाई ...
द्वारे बन्दनवार सजे हैं,
कदली खम्ब लगाई.
भोले घर बाजे बधाई ...
हरे-हरे गोबर इन्द्राणी अंगना लीपें,
मोतियन चौक पुराई.
भोले घर बाजे बधाई ...
स्वर्ण कलश ब्रम्हाणी लिए हैं,
चौमुख दिया जलाई.
भोले घर बाजे बधाई ...
लक्ष्मी जी पालना झुलावें,
झूलें गणेश सुखदायी.
भोले घर बाजे बधाई ...
******************
स्व. शांति देवी वर्मा
मंगल बेला आयी, भोले घर बाजे बधाई ...
गौरा मैया ने लालन जनमे,
गणपति नाम धराई.
भोले घर बाजे बधाई ...
द्वारे बन्दनवार सजे हैं,
कदली खम्ब लगाई.
भोले घर बाजे बधाई ...
हरे-हरे गोबर इन्द्राणी अंगना लीपें,
मोतियन चौक पुराई.
भोले घर बाजे बधाई ...
स्वर्ण कलश ब्रम्हाणी लिए हैं,
चौमुख दिया जलाई.
भोले घर बाजे बधाई ...
लक्ष्मी जी पालना झुलावें,
झूलें गणेश सुखदायी.
भोले घर बाजे बधाई ...
******************
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गणपति,
गणेश,
गौरा,
भजन: भोले घर बाजे बधाई -स्व. शांति देवी वर्मा
नकली नोट और काले धन पर अंकुश लगाने के लिए क्या करना चाहिए?
आज का प्रश्न .... नकली नोट और काले धन पर अंकुश लगाने के लिए क्या करना चाहिए?

हमारा उत्तर .... नकली नोट और काले धन पर अंकुश लगाने के लिए एक हजार और पाँच सौ रुपए के नोटों को बंद करने की अपेक्षा उनके साइज व प्रिंट तुरंत बदल देने चाहिये आश्चर्य तो यह है कि अब तक ऐसा क्यो नही किया गया है .,

हमारा उत्तर .... नकली नोट और काले धन पर अंकुश लगाने के लिए एक हजार और पाँच सौ रुपए के नोटों को बंद करने की अपेक्षा उनके साइज व प्रिंट तुरंत बदल देने चाहिये आश्चर्य तो यह है कि अब तक ऐसा क्यो नही किया गया है .,
सामाजिक लेखन हेतु ११ वें रेड एण्ड व्हाईट पुरस्कार से सम्मानित .
"रामभरोसे", "कौआ कान ले गया" व्यंग संग्रहों ," आक्रोश" काव्य संग्रह ,"हिंदोस्तां हमारा " , "जादू शिक्षा का " नाटकों के माध्यम से अपने भीतर के रचनाकार की विवश अभिव्यक्ति को व्यक्त करने का दुस्साहस ..हम तो बोलेंगे ही कोई सुने न सुने .
यह लेखन वैचारिक अंतर्द्वंद है ,मेरे जैसे लेखकों का जो अपना श्रम, समय व धन लगाकर भी सच को "सच" कहने का साहस तो कर रहे हैं ..इस युग में .
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शुक्रवार, 21 अगस्त 2009
नयी कलम: गीत - अमन दलाल
गीत
अमन दलाल
तुम्हे निमंत्रण जो दिया है
जिससे रोशन हूँ मैं,वो दिया है...
चंदन की महकती छाप है उसमें
स्नेह भरा मधुर अलाप हैं उसमें
धड़कने जो हैं, ह्रदय में,
उनकी जीवंत थाप हैं उसमें,
तुम्ही पर निर्भर हैं गान उसका
तुम्ही पर निर्भर मान उसका
तुम्हारी यादों के एकांत में,
हर पल बोझिल जो जिया है
तुम्हे जो निमंत्रण दिया है.......
स्वरों में तुम्हारे जो झनकार सी है,
अधरों पर ये हँसी अलंकार सी है,
मन को मात्र उन्ही की मुग्धता है ,
माथे पर जो सलवटें श्रृंगार सी हैं.
अब तुम भी कहो,दो बातें छल की,
नैनों में छिपे गहरे जल की,
अब क्यों इन होंठो को सिया हैं
तुम्हे जो निमंत्रण दिया हैं…….
*************************
अमन दलाल
तुम्हे निमंत्रण जो दिया है
जिससे रोशन हूँ मैं,वो दिया है...
चंदन की महकती छाप है उसमें
स्नेह भरा मधुर अलाप हैं उसमें
धड़कने जो हैं, ह्रदय में,
उनकी जीवंत थाप हैं उसमें,
तुम्ही पर निर्भर हैं गान उसका
तुम्ही पर निर्भर मान उसका
तुम्हारी यादों के एकांत में,
हर पल बोझिल जो जिया है
तुम्हे जो निमंत्रण दिया है.......
स्वरों में तुम्हारे जो झनकार सी है,
अधरों पर ये हँसी अलंकार सी है,
मन को मात्र उन्ही की मुग्धता है ,
माथे पर जो सलवटें श्रृंगार सी हैं.
अब तुम भी कहो,दो बातें छल की,
नैनों में छिपे गहरे जल की,
अब क्यों इन होंठो को सिया हैं
तुम्हे जो निमंत्रण दिया हैं…….
*************************
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अमन दलाल,
गीत,
दिव्यनर्मदा
सोमवार, 17 अगस्त 2009
गायत्री मंत्र भावानुवाद द्वारा ..प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव "विदग्ध

गायत्री मंत्र का भावानुवाद
मूल संस्कृत मंत्र
ॐ भूर्भुव स्वः । तत् सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
हिन्दी छंद बद्ध भावानुवाद
"
जो जगत को प्रभा ओ" ऐश्वर्य देता है दान
जो है आलोकित परम औ" ज्ञान से भासमान ॥
शुद्ध है विज्ञानमय है ,सबका उत्प्रेरक है जो
सब सुखो का प्रदाता , अज्ञान उन्मूलक है जो ॥
उसकी पावन भक्ति को हम , हृदय में धारण करें
प्रेम से उसके गुणो का ,रात दिन गायन करें ॥
उसका ही लें हम सहारा , उससे ये विनती करें
प्रेरणा सत्कर्म करने की ,सदा वे दें हमें ॥
बुद्धि होवे तीव्र ,मन की मूढ़ता सब दूर हो
ज्ञान के आलोक से जीवन सदा भरपूर हो ॥
शब्दार्थ ...
उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें । वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे ।
संपर्क ... ob 11 MPSEB Colony ,Rampur ,Jabalpur मोब. ०९४२५४८४४५२
सामाजिक लेखन हेतु ११ वें रेड एण्ड व्हाईट पुरस्कार से सम्मानित .
"रामभरोसे", "कौआ कान ले गया" व्यंग संग्रहों ," आक्रोश" काव्य संग्रह ,"हिंदोस्तां हमारा " , "जादू शिक्षा का " नाटकों के माध्यम से अपने भीतर के रचनाकार की विवश अभिव्यक्ति को व्यक्त करने का दुस्साहस ..हम तो बोलेंगे ही कोई सुने न सुने .
यह लेखन वैचारिक अंतर्द्वंद है ,मेरे जैसे लेखकों का जो अपना श्रम, समय व धन लगाकर भी सच को "सच" कहने का साहस तो कर रहे हैं ..इस युग में .
लेखकीय शोषण , व पाठकहीनता की स्थितियां हम सबसे छिपी नहीं है , पर समय रचनाकारो के इस सारस्वत यज्ञ की आहुतियों का मूल्यांकन करेगा इसी आशा और विश्वास के साथ ..
भोजपुरी गीतिका : आचार्य संजीव 'सलिल'
भोजपुरी गीतिका :
आचार्य संजीव 'सलिल'
पल मा तोला, पल मा मासा इहो साँच बा.
कोस-कोस प' बदल भासा इहो साँच बा..
राजा-परजा दूनो क हो गइल मुसीबत.
राजनीति कटहर के लासा इहो साँच बा..
जनगण के सेवा में लागल, बिरल काम बा.
अपना ला दस-बीस-पचासा, इहो साँच बा..
धँसल स्वार्थ मा साँसों के गाडी के पहिया.
सटते बनी गइल फुल्हों कांसा, इहो साँच बा..
सोन्ह गंध माटी के, महतारी के गोदी.
मुर्दों में दउरा दे सांसा, इहो साँच बा..
सून सपाट भयल पनघट, पौरा-चौबारा.
पौ बारा है नगर-सहर के, इहो साँच बा..
हे भासा-बोली के एकइ राम-कहानी.
जड़ जमीन मां जमा हरी है इहो साँच बा..
कुरसी के जय-जय ना कइल 'सलिल' एही से
असफलता के मिलल उंचासा, इहो साँच बा..
**************************
आचार्य संजीव 'सलिल'
पल मा तोला, पल मा मासा इहो साँच बा.
कोस-कोस प' बदल भासा इहो साँच बा..
राजा-परजा दूनो क हो गइल मुसीबत.
राजनीति कटहर के लासा इहो साँच बा..
जनगण के सेवा में लागल, बिरल काम बा.
अपना ला दस-बीस-पचासा, इहो साँच बा..
धँसल स्वार्थ मा साँसों के गाडी के पहिया.
सटते बनी गइल फुल्हों कांसा, इहो साँच बा..
सोन्ह गंध माटी के, महतारी के गोदी.
मुर्दों में दउरा दे सांसा, इहो साँच बा..
सून सपाट भयल पनघट, पौरा-चौबारा.
पौ बारा है नगर-सहर के, इहो साँच बा..
हे भासा-बोली के एकइ राम-कहानी.
जड़ जमीन मां जमा हरी है इहो साँच बा..
कुरसी के जय-जय ना कइल 'सलिल' एही से
असफलता के मिलल उंचासा, इहो साँच बा..
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
आरोग्य आशा: स्वाइन फ्लू की दावा तुलसी -हेम पांडे
स्वाइन फ्लू के प्रकोप ने आजकल लोगों में आतंक फैला रखा है.अब तक ८०० से अधिक मरीज पाए गए हैं, जिनमें २४ की मौत हो चुकी है. भीड़ भाड़ भरे स्थानों में जाने, मास्क पहनने आदि की सलाह दी जा रही है. सरकारी स्तर पर हर संभव प्रयत्न किये जा रहे हैं. लोग भी जागरूक नजर आ रहे हैं और साधारण फ्लू होने पर भी तुंरत जांच के लिए पंहुच रहे हैं. ऐसे में एक सुखद समाचार मेरी नजर में आया जिसे मैं आप लोगों से साझा करना चाहता हूँ.
तुलसी के २०-२५ पत्तों का रस या पेस्ट प्रतिदिन खाली पेट सेवन करने से स्वाइन फ्लू की संभावना से बचा जा सकता है. तुलसी वाइरल बीमारियों से लड़ने में मदद करती है.यदि व्यक्ति स्वाइन फ्लू से पीड़ित हो चुका हो तो भी इसके सेवन से स्वास्थ्य लाभ करने में मदद मिलती है. मेरी इस जानकारी का स्त्रोत याहू समाचार है.
तुलसी के औषधीय गुणों से भारतीय बहुत पहले से परिचित हैं और साधारण सर्दी जुकाम (जो वाइरस का प्रकोप है) में काढ़े के रूप में इसका सेवन करना हम लोगों के लिए आम बात है. हर हिन्दू के घर में तुलसी का पौधा होना तो आम बात है, हर गैर हिन्दू को भी तुलसी अपने घर में लगानी चाहिए. मेरी यह अपील साम्प्रदायिक न मानी जाए. आज तुलसी के औषधीय गुण विज्ञान सम्मत हैं. कल अगर तुलसी को पर्यावरण शुद्ध करने वाला पौधा पाया गया तो कोई ताज्जुब नहीं.इसलिए मैं उन लोगों को अधिक बुद्धिमान मानता हूँ जो किसी अंधविश्वास या धार्मिक मान्यताओं के अधीन तुलसी को आज भी महत्त्व देते हैं बनिस्बत उनके जो तुलसी को महत्व देने के लिए उसकी महत्ता सिद्ध होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं. इसी लिए मैं कहता हूँ यदि किसी मान्यता को मान लेने में कोई नुक्सान नहीं तो उसे मान लेना चाहिए.
आभार: शकुनाखर
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तुलसी के २०-२५ पत्तों का रस या पेस्ट प्रतिदिन खाली पेट सेवन करने से स्वाइन फ्लू की संभावना से बचा जा सकता है. तुलसी वाइरल बीमारियों से लड़ने में मदद करती है.यदि व्यक्ति स्वाइन फ्लू से पीड़ित हो चुका हो तो भी इसके सेवन से स्वास्थ्य लाभ करने में मदद मिलती है. मेरी इस जानकारी का स्त्रोत याहू समाचार है.
तुलसी के औषधीय गुणों से भारतीय बहुत पहले से परिचित हैं और साधारण सर्दी जुकाम (जो वाइरस का प्रकोप है) में काढ़े के रूप में इसका सेवन करना हम लोगों के लिए आम बात है. हर हिन्दू के घर में तुलसी का पौधा होना तो आम बात है, हर गैर हिन्दू को भी तुलसी अपने घर में लगानी चाहिए. मेरी यह अपील साम्प्रदायिक न मानी जाए. आज तुलसी के औषधीय गुण विज्ञान सम्मत हैं. कल अगर तुलसी को पर्यावरण शुद्ध करने वाला पौधा पाया गया तो कोई ताज्जुब नहीं.इसलिए मैं उन लोगों को अधिक बुद्धिमान मानता हूँ जो किसी अंधविश्वास या धार्मिक मान्यताओं के अधीन तुलसी को आज भी महत्त्व देते हैं बनिस्बत उनके जो तुलसी को महत्व देने के लिए उसकी महत्ता सिद्ध होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं. इसी लिए मैं कहता हूँ यदि किसी मान्यता को मान लेने में कोई नुक्सान नहीं तो उसे मान लेना चाहिए.
आभार: शकुनाखर
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रविवार, 16 अगस्त 2009
नवगीत: आचार्य संजीव 'सलिल'
गीत ३
मगरमचछ सरपंच
मछलियाँ घेरे में
फंसे कबूतर आज
बाज के फेरे में...
सोनचिरैया विकल
न कोयल कूक रही
हिरनी नाहर देख
न भागी, मूक रही
जुड़े पाप ग्रह सभी
कुण्डली मेरे में...
गोली अमरीकी
बोली अंगरेजी है
ऊपर चढ़ क्यों
तोडी स्वयं नसेनी है?
सन्नाटा छाया
जनतंत्री डेरे में...
हँसिया फसलें
अपने घर में भरता है
घोड़ा-माली
हरी घास ख़ुद चरता है
शोले सुलगे हैं
कपास के डेरे में...
*****
मगरमचछ सरपंच
मछलियाँ घेरे में
फंसे कबूतर आज
बाज के फेरे में...
सोनचिरैया विकल
न कोयल कूक रही
हिरनी नाहर देख
न भागी, मूक रही
जुड़े पाप ग्रह सभी
कुण्डली मेरे में...
गोली अमरीकी
बोली अंगरेजी है
ऊपर चढ़ क्यों
तोडी स्वयं नसेनी है?
सन्नाटा छाया
जनतंत्री डेरे में...
हँसिया फसलें
अपने घर में भरता है
घोड़ा-माली
हरी घास ख़ुद चरता है
शोले सुलगे हैं
कपास के डेरे में...
*****
गीत: नए रंग छान्टेंगे --अमन दलाल
गीत
अमन दलाल
जिन्दगी के नए रंग छान्टेंगे
गम सबके जब संग बाँटेंगे....
ये ग़म के बदल जीवन में
रोज आने जाने हैं.
फिर भला दीपो में जलते,
कयू नादान [नादाँ] परवाने हैं.
कोसो न अपनी किस्मत को,
रोशन होने दो मेहनत को,
अपने इरादों की रहमत को,
ये बादल खुद-ब-खुद छाटेंगे,
गम सबके जब संग बाँटेंगे.....
कहोगे गर तुम ग़म अपने,
हो कोई मुश्किल या हो सपने
हम चलेंगे लेकर वहां पर
सपने बनते हो जहाँ पर,
भर देंगे नए रंग नस्लों में.
खुशिया महकेगी फसलो में,
जो बोयेंगे,वो काटेंगे,
ग़म सबके जब संग बाँटेंगे....
****************
जीवन के नए रंग छान्टेंगे.
अमन दलाल
जिन्दगी के नए रंग छान्टेंगे
गम सबके जब संग बाँटेंगे....
ये ग़म के बदल जीवन में
रोज आने जाने हैं.
फिर भला दीपो में जलते,
कयू नादान [नादाँ] परवाने हैं.
कोसो न अपनी किस्मत को,
रोशन होने दो मेहनत को,
अपने इरादों की रहमत को,
ये बादल खुद-ब-खुद छाटेंगे,
गम सबके जब संग बाँटेंगे.....
कहोगे गर तुम ग़म अपने,
हो कोई मुश्किल या हो सपने
हम चलेंगे लेकर वहां पर
सपने बनते हो जहाँ पर,
भर देंगे नए रंग नस्लों में.
खुशिया महकेगी फसलो में,
जो बोयेंगे,वो काटेंगे,
ग़म सबके जब संग बाँटेंगे....
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जीवन के नए रंग छान्टेंगे.
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गीत: नए रंग छान्टेंगे --अमन दलाल
ज्योतिष: शनि की नज़र
ज्योतिष:
: शनि की दृष्टि (साढे़ साती) 9 सितम्बर 2009 के उपरांत कन्या राशि पर
शनि किस को कष्ट देंगे किस को लाभ ?
पं. राजेश कुमार शर्मा, भृगु ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र, सदर, मेरठ.
9 सितम्बर 2009 को शनि कन्या राशि में तथा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में भ्रमण करेंगे तथा पूरे साल कन्या राशि में ही रहेंगे.
मत्स्य पुराण में महात्मा शनि देव का शरीर इन्द्र कांति की नीलमणि जैसी है, वे गिद्ध पर सवार है, हाथ मे धनुष बाण है एक हाथ से वर मुद्रा भी है, शनि देव का विकराल रूप भयावना भी है. शनि पापियों के लिये हमेशा ही संहारक हैं.
शनि प्रधान जातक तपस्वी और परोपकारी होता है,वह न्यायवान, विचारवान तथा विद्वान होता है,बुद्धि कुशाग्र होती है,शान्त स्वभाव होता है,और वह कठिन से कठिन परिस्थति में अपने को जिन्दा रख सकता है. सूर्य एक राशि पर एक महीने, चंद्रमा सवा दो दिन, मंगल डेढ़ महीने, बुध और शुक्र एक महीने, वृहस्पति तेरह महीने रहते हैं, शनि किसी राशि पर साढ़े सात वर्ष (साढ़े साती) तक रहते है.
शनि की कुदृष्टि से राजाओं तक का वैभव पलक झपकते ही नष्ट हो जाता है. शनि की साढ़े साती दशा जीवन में नेक दु:खों, विपत्तियों का समावेश करती है. अत:, मनुष्य को शनि की कुदृष्टि से बचने के लिए शनिवार का व्रत करते हुए शनि देवता की पूजा-अर्चना करनी चाहिए.
मेष: मेष राशि के जातकों के लिए शनि छठे भाव में आए हैं. शत्रु, बीमारी तथा कर्जे से मुक्ति मिलेगी. वैवाहिक जीवन का आनंद उठाएंगे तथा धन प्राप्ति के योग बनेंगे.
वृष: शनि पंचम भाव में विचरण करेंगे. विवादों एवं झूठे प्रत्यारोप धन हानि की ओर संकेत देते हैं. मानसिक तनाव के साथ-साथ संतान से मतभेद की स्थिति आ सकती है.
मिथुन: शनि की लघु कल्याणी ढैया चलेगी. पारिवारिक विवादों असंतुष्टि आर्थिक हानि के साथ-साथ खर्चों में वृद्धि से परेशानी बनेगी। विवाद तथा खिन्नता रहेगी.
कर्क: तृतीय भाव में शनि सफलता, आनंद, उत्सव, नौकरी अथवा व्यापार में उन्नति के साथ-साथ धन लाभ के योग बनेंगे. शत्रुओं की पराजय के साथ-साथ सम्मान के पात्र भी बनेंगे.
सिंह: स्वास्थ्य में कमी, धन हानि विवादों तथा अनावश्यक खर्चों से परेशानी का अनुभव होगा. मानसिक अशांति, पत्नी के स्वास्थ्य में गिरावट, शत्रु बाधा से परेशानी अनुभव करेंगे. शनि साढ़े साती की अंतिम ढैया से भी परेशानी एवं धन हानि के योग बनेंगे.
कन्या: शनि साढ़े साती मध्य में रहेगी. पारिवारिक सदस्यों के स्वास्थ्य में कमी के कारण परेशानी होगी. शत्रुओं से भय प्राप्त, सम्मान हानि के योग बनेंगे. प्रयासों में असफलता तथा खर्चों में बढ़ोत्तरी के कारण परेशान रहेंगे.
तुला: शनि साढ़ेसाती की प्रथम ढैया रहेगी. दुर्घटना से खतरा रहेगा. परिवार में विवाद-कानूनी विवाद उत्पन्न हो सकते हैं.
वृश्चिक: धन लाभ के साथ-साथ स्थाई सम्पत्ति का लाभ प्राप्त होने के योग बनेंगे. सम्मान उन्नति के अवसर प्राप्त होंगे और पारिवारिक प्रसन्नता रहेगी.
धनु: बीमारी तथा परिवार में अशान्ति बनने से खिन्नता रहेगी. धन हानि के संकेत भी हैं. विवादों से बचें. सम्मान में कमी का अनुभव करेंगे.
मकर: आय में कमी तथा शत्रु बाधा से परेशानी होगी. प्रयासों में असफलता से खिन्नता का अनुभव करेंगे. विवादों तथा झगड़े झंझटों से बचना बेहतर रहेगा.
कुंभ: परिवार में विवाद, स्वास्थ्य में गिरावट, पत्नी को कष्ट रिश्तेदारों से अनबन तथा निन्दा के पात्र बनेंगे. असफलता के कारण खिन्नता, शत्रुओं द्वारा नुकसान की संभावना रहेगी. शनि की अष्टम लघु कल्याणी ढैया बड़ी परेशानी का कारण बन सकती है.
मीन: परिवार में अलगाव खर्च में बढ़ोतरी से परेशानी, स्वास्थ्य में कमी तथा सदूर कष्टदायी यात्रा का योग है. पत्नी का स्वास्थ्य भी प्रभावित हो सकता है.
शनि की अशुभता जानने के लिये जन्म पत्रिका में शनि की स्थिति को देखा जाता हैं जिन व्यक्तियों कि जन्म पत्रिका में शनि (6.8.12) भावो का स्वामी होकर निर्बल हो मारकेश हो चतुर्थेश व पंचमेश होकर स्थिति में हों नीच राशीगत हों शत्रु राशीगत हो वक्री व अस्त हो बलहीन हो उन्हें शनि के अशुभ फल प्रप्त होते है. शनि के कष्टो से छुटकारा पाने के लिये शनि को प्रसन्न करने के लिये अनेक उपायो का वर्णन ज्योतिष शास्त्रो एवं हिन्दू धर्मग्रन्थो में मिलते हैं. शनि की अनुकूलता के लिये हमारे ग्रर्न्थो मे अनेक स्तोत्र मन्त्र टोटकें पूजा दान आदि अनेक उपाय हैं.
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: शनि की दृष्टि (साढे़ साती) 9 सितम्बर 2009 के उपरांत कन्या राशि पर
शनि किस को कष्ट देंगे किस को लाभ ?
पं. राजेश कुमार शर्मा, भृगु ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र, सदर, मेरठ.
9 सितम्बर 2009 को शनि कन्या राशि में तथा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में भ्रमण करेंगे तथा पूरे साल कन्या राशि में ही रहेंगे.
मत्स्य पुराण में महात्मा शनि देव का शरीर इन्द्र कांति की नीलमणि जैसी है, वे गिद्ध पर सवार है, हाथ मे धनुष बाण है एक हाथ से वर मुद्रा भी है, शनि देव का विकराल रूप भयावना भी है. शनि पापियों के लिये हमेशा ही संहारक हैं.
शनि प्रधान जातक तपस्वी और परोपकारी होता है,वह न्यायवान, विचारवान तथा विद्वान होता है,बुद्धि कुशाग्र होती है,शान्त स्वभाव होता है,और वह कठिन से कठिन परिस्थति में अपने को जिन्दा रख सकता है. सूर्य एक राशि पर एक महीने, चंद्रमा सवा दो दिन, मंगल डेढ़ महीने, बुध और शुक्र एक महीने, वृहस्पति तेरह महीने रहते हैं, शनि किसी राशि पर साढ़े सात वर्ष (साढ़े साती) तक रहते है.
शनि की कुदृष्टि से राजाओं तक का वैभव पलक झपकते ही नष्ट हो जाता है. शनि की साढ़े साती दशा जीवन में नेक दु:खों, विपत्तियों का समावेश करती है. अत:, मनुष्य को शनि की कुदृष्टि से बचने के लिए शनिवार का व्रत करते हुए शनि देवता की पूजा-अर्चना करनी चाहिए.
मेष: मेष राशि के जातकों के लिए शनि छठे भाव में आए हैं. शत्रु, बीमारी तथा कर्जे से मुक्ति मिलेगी. वैवाहिक जीवन का आनंद उठाएंगे तथा धन प्राप्ति के योग बनेंगे.
वृष: शनि पंचम भाव में विचरण करेंगे. विवादों एवं झूठे प्रत्यारोप धन हानि की ओर संकेत देते हैं. मानसिक तनाव के साथ-साथ संतान से मतभेद की स्थिति आ सकती है.
मिथुन: शनि की लघु कल्याणी ढैया चलेगी. पारिवारिक विवादों असंतुष्टि आर्थिक हानि के साथ-साथ खर्चों में वृद्धि से परेशानी बनेगी। विवाद तथा खिन्नता रहेगी.
कर्क: तृतीय भाव में शनि सफलता, आनंद, उत्सव, नौकरी अथवा व्यापार में उन्नति के साथ-साथ धन लाभ के योग बनेंगे. शत्रुओं की पराजय के साथ-साथ सम्मान के पात्र भी बनेंगे.
सिंह: स्वास्थ्य में कमी, धन हानि विवादों तथा अनावश्यक खर्चों से परेशानी का अनुभव होगा. मानसिक अशांति, पत्नी के स्वास्थ्य में गिरावट, शत्रु बाधा से परेशानी अनुभव करेंगे. शनि साढ़े साती की अंतिम ढैया से भी परेशानी एवं धन हानि के योग बनेंगे.
कन्या: शनि साढ़े साती मध्य में रहेगी. पारिवारिक सदस्यों के स्वास्थ्य में कमी के कारण परेशानी होगी. शत्रुओं से भय प्राप्त, सम्मान हानि के योग बनेंगे. प्रयासों में असफलता तथा खर्चों में बढ़ोत्तरी के कारण परेशान रहेंगे.
तुला: शनि साढ़ेसाती की प्रथम ढैया रहेगी. दुर्घटना से खतरा रहेगा. परिवार में विवाद-कानूनी विवाद उत्पन्न हो सकते हैं.
वृश्चिक: धन लाभ के साथ-साथ स्थाई सम्पत्ति का लाभ प्राप्त होने के योग बनेंगे. सम्मान उन्नति के अवसर प्राप्त होंगे और पारिवारिक प्रसन्नता रहेगी.
धनु: बीमारी तथा परिवार में अशान्ति बनने से खिन्नता रहेगी. धन हानि के संकेत भी हैं. विवादों से बचें. सम्मान में कमी का अनुभव करेंगे.
मकर: आय में कमी तथा शत्रु बाधा से परेशानी होगी. प्रयासों में असफलता से खिन्नता का अनुभव करेंगे. विवादों तथा झगड़े झंझटों से बचना बेहतर रहेगा.
कुंभ: परिवार में विवाद, स्वास्थ्य में गिरावट, पत्नी को कष्ट रिश्तेदारों से अनबन तथा निन्दा के पात्र बनेंगे. असफलता के कारण खिन्नता, शत्रुओं द्वारा नुकसान की संभावना रहेगी. शनि की अष्टम लघु कल्याणी ढैया बड़ी परेशानी का कारण बन सकती है.
मीन: परिवार में अलगाव खर्च में बढ़ोतरी से परेशानी, स्वास्थ्य में कमी तथा सदूर कष्टदायी यात्रा का योग है. पत्नी का स्वास्थ्य भी प्रभावित हो सकता है.
शनि की अशुभता जानने के लिये जन्म पत्रिका में शनि की स्थिति को देखा जाता हैं जिन व्यक्तियों कि जन्म पत्रिका में शनि (6.8.12) भावो का स्वामी होकर निर्बल हो मारकेश हो चतुर्थेश व पंचमेश होकर स्थिति में हों नीच राशीगत हों शत्रु राशीगत हो वक्री व अस्त हो बलहीन हो उन्हें शनि के अशुभ फल प्रप्त होते है. शनि के कष्टो से छुटकारा पाने के लिये शनि को प्रसन्न करने के लिये अनेक उपायो का वर्णन ज्योतिष शास्त्रो एवं हिन्दू धर्मग्रन्थो में मिलते हैं. शनि की अनुकूलता के लिये हमारे ग्रर्न्थो मे अनेक स्तोत्र मन्त्र टोटकें पूजा दान आदि अनेक उपाय हैं.
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ज्योतिष,
पं. राजेश शर्मा,
शनि
करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
शनिवार, 15 अगस्त 2009
स्वाधीनता दिवस पर- आचार्य संजीव 'सलिल'
http://divyanarmada.blogspot.com
स्वाधीनता दिवस पर-
आचार्य संजीव 'सलिल'
*
जनगण के
मन में जल पाया,
नहीं आस का दीपक.
कैसे हम स्वाधीन
देश जब
लगता हमको क्षेपक.
हम में से
हर एक मानता
निज हित सबसे पहले.
नहीं देश-हित
कभी साधता
कोई कुछ भी कह ले.
कुछ घंटों
'मेरे देश की धरती'
फिर हो 'छैंया-छैंया'
वन काटे,
पर्वत खोदे,
भारत माँ घायल भैया.
किसको चिंता?
यहाँ देश की?
सबको है निज हित की.
सत्ता पा-
निज मूर्ति लगाकर,
भारत की दुर्गति की.
श्रद्धा, आस्था, निष्ठा बेचो
स्वार्थ साध लो अपना.
जाये भाड़ में
किसको चिंता
नेताजी का सपना.
कौन हुआ आजाद?
भगत है कौन
देश का बोलो?
झंडा फहराने के पहले
निज मन जरा टटोलो.
तंत्र न जन का
तो कैसा जनतंत्र
तनिक समझाओ?
प्रजा उपेक्षित
प्रजातंत्र में
क्यों कारण बतलाओ?
लोक तंत्र में
लोक मौन क्यों?
नेता क्यों वाचाल?
गण की चिंता तंत्र न करता
जनमत है लाचार.
गए विदेशी,
आये स्वदेशी,
शासक मद में चूर.
सिर्फ मुनाफाखोरी करता
व्यापारी भरपूर.
न्याय बेचते
जज-वकील मिल
शोषित- अब भी शोषित.
दुर्योधनी प्रशासन में हो
सत्य किस तरह पोषित?
आज विचारें
कैसे देश हमारा साध्य बनेगा?
स्वार्थ नहीं सर्वार्थ
हमें हरदम आराध्य रहेगा.
*******************
स्वाधीनता दिवस पर-
आचार्य संजीव 'सलिल'
*
जनगण के
मन में जल पाया,
नहीं आस का दीपक.
कैसे हम स्वाधीन
देश जब
लगता हमको क्षेपक.
हम में से
हर एक मानता
निज हित सबसे पहले.
नहीं देश-हित
कभी साधता
कोई कुछ भी कह ले.
कुछ घंटों
'मेरे देश की धरती'
फिर हो 'छैंया-छैंया'
वन काटे,
पर्वत खोदे,
भारत माँ घायल भैया.
किसको चिंता?
यहाँ देश की?
सबको है निज हित की.
सत्ता पा-
निज मूर्ति लगाकर,
भारत की दुर्गति की.
श्रद्धा, आस्था, निष्ठा बेचो
स्वार्थ साध लो अपना.
जाये भाड़ में
किसको चिंता
नेताजी का सपना.
कौन हुआ आजाद?
भगत है कौन
देश का बोलो?
झंडा फहराने के पहले
निज मन जरा टटोलो.
तंत्र न जन का
तो कैसा जनतंत्र
तनिक समझाओ?
प्रजा उपेक्षित
प्रजातंत्र में
क्यों कारण बतलाओ?
लोक तंत्र में
लोक मौन क्यों?
नेता क्यों वाचाल?
गण की चिंता तंत्र न करता
जनमत है लाचार.
गए विदेशी,
आये स्वदेशी,
शासक मद में चूर.
सिर्फ मुनाफाखोरी करता
व्यापारी भरपूर.
न्याय बेचते
जज-वकील मिल
शोषित- अब भी शोषित.
दुर्योधनी प्रशासन में हो
सत्य किस तरह पोषित?
आज विचारें
कैसे देश हमारा साध्य बनेगा?
स्वार्थ नहीं सर्वार्थ
हमें हरदम आराध्य रहेगा.
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आज़ादी,
इंडिया सन्जीव 'सलिल',
फ्रीडम,
भारत हिंद,
स्वतंत्रता,
स्वाधीनता
शुक्रवार, 14 अगस्त 2009
भजन: श्री राधा मोहन -स्व पं. नरेन्द्र शर्मा.
दिव्य नर्मदा के पाठकों के लिए लावण्यम्`~अन्तर्मन्`के सौजन्य से प्रस्तुत है स्व पं. नरेन्द्र शर्मा की रचना श्री राधा मोहन
यदा यदा ही धर्मस्य,
ग्लानिर्भवति भारत..
अभ्युत्थानम अधर्मस्य
तदात्मानम सृजाम्यहम
परित्राणायाय साधुनाम,
विनाशायच दुष्कृताम
धर्म सँस्थापनार्थाय,
सँभावामि, युगे, युगे ! "
*********************
श्री राधा मोहन,
श्याम शोभन,
अँग कटि पीताँबरम
जयति जय जय,
जयति जय जय ,
जयति श्री राधा वरम्
आरती आनँदघन,
घनश्याम की अब कीजिये,
कीजिये विनीती ,
हमेँ, शुभ ~ लाभ,
श्री यश दीजिये
दीजिये निज भक्ति का वरदान
श्रीधर गिरिवरम् ..
जयति जय जय,
जयति जय जय ,
जयति श्री राधा वरम्
*********************************
रचनाकार [स्व. पँ. नरेन्द्र शर्मा ]
यदा यदा ही धर्मस्य,
ग्लानिर्भवति भारत..
अभ्युत्थानम अधर्मस्य
तदात्मानम सृजाम्यहम
परित्राणायाय साधुनाम,
विनाशायच दुष्कृताम
धर्म सँस्थापनार्थाय,
सँभावामि, युगे, युगे ! "
*********************
श्री राधा मोहन,
श्याम शोभन,
अँग कटि पीताँबरम
जयति जय जय,
जयति जय जय ,
जयति श्री राधा वरम्
आरती आनँदघन,
घनश्याम की अब कीजिये,
कीजिये विनीती ,
हमेँ, शुभ ~ लाभ,
श्री यश दीजिये
दीजिये निज भक्ति का वरदान
श्रीधर गिरिवरम् ..
जयति जय जय,
जयति जय जय ,
जयति श्री राधा वरम्
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रचनाकार [स्व. पँ. नरेन्द्र शर्मा ]
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भजन: श्री राधा मोहन -स्व पं. नरेन्द्र शर्मा.
पाती प्रभु के नाम : संजीव 'सलिल'
जन्म-जन्म जन्माष्टमी, मना सकूँ हे नाथ.
कृष्ण भक्त को नमन कर, मैं हो सकूँ सनाथ.
वृन्दावन की रेणु पा, हो पाऊँ मैं धन्य.
वेणु बना लो तो नहीं मुझ सा कोई अन्य.
जो जन तेरा नाम ले, उसको करे प्रणाम.
चाकर तेरा है 'सलिल', रसिक शिरोमणि श्याम..
कृष्ण भक्त को नमन कर, मैं हो सकूँ सनाथ.
वृन्दावन की रेणु पा, हो पाऊँ मैं धन्य.
वेणु बना लो तो नहीं मुझ सा कोई अन्य.
जो जन तेरा नाम ले, उसको करे प्रणाम.
चाकर तेरा है 'सलिल', रसिक शिरोमणि श्याम..
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कृष्ण,
जन्माष्टमी,
दोहे,
श्याम वृन्दावन,
संजीव 'सलिल'
करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
भजन: कान्हा जी आप आओ ना -गार्गी
कान्हा जी आप आओ ना ......
मेरा मन तुम्हे बुला रहा है !!
अपनी मधुर मुरली सुनाओ ना ....
जो मेरे अन्दर के कोलाहल को मिटा दे !!
अपनी साँवरी छवि दिखा जाओ ना ...
जो मन, आत्मा और शरीर को निर्मल कर दे !!
अपना सुदर्शन चक्र घुमाओ ना ...
जो इस दुनिया की सारी बुराइयों को नष्ट कर दे !!
हर तरफ झूठ ही झूठ है .....
आप सत्या की स्थापना करने आओ ना !
फिर से अपना विराठ रूप दिखाओ ना !!
हे कान्हा ! तुम सारथी बनो .....
जैसे अर्जुन को राह दिखाई थी....
मुझको भी राह दिखाओ ना !!
मेरी हिम्मत टूट रही है .....
मुझको भी गीता का ज्ञान सुनाओ ना !!
जीवन की इस रण भूमि में ....
अपने ही मेरे शत्रु बने है ....
आप ही कोई सच्ची राह दिखाओ ना !!
तड़प रही हूँ इस देह की जंजीरो में ....
मुझको मुक्त कराओ ना !!
भाव सागर में डूब रही हूँ ....
तुम मुझको पार लगओ ना !!
कान्हा जी आप आओ ना ..........
कान्हा जी आप आओ ना ...........
***************
मेरा मन तुम्हे बुला रहा है !!
अपनी मधुर मुरली सुनाओ ना ....
जो मेरे अन्दर के कोलाहल को मिटा दे !!
अपनी साँवरी छवि दिखा जाओ ना ...
जो मन, आत्मा और शरीर को निर्मल कर दे !!
अपना सुदर्शन चक्र घुमाओ ना ...
जो इस दुनिया की सारी बुराइयों को नष्ट कर दे !!
हर तरफ झूठ ही झूठ है .....
आप सत्या की स्थापना करने आओ ना !
फिर से अपना विराठ रूप दिखाओ ना !!
हे कान्हा ! तुम सारथी बनो .....
जैसे अर्जुन को राह दिखाई थी....
मुझको भी राह दिखाओ ना !!
मेरी हिम्मत टूट रही है .....
मुझको भी गीता का ज्ञान सुनाओ ना !!
जीवन की इस रण भूमि में ....
अपने ही मेरे शत्रु बने है ....
आप ही कोई सच्ची राह दिखाओ ना !!
तड़प रही हूँ इस देह की जंजीरो में ....
मुझको मुक्त कराओ ना !!
भाव सागर में डूब रही हूँ ....
तुम मुझको पार लगओ ना !!
कान्हा जी आप आओ ना ..........
कान्हा जी आप आओ ना ...........
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कान्हा,
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गार्गी,
भजन,
श्री कृष्ण
करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
गोकुल तुम्हें बुला रहा हे कृष्ण कन्हैया ।
वन वन भटक रही हैं ब्रजभूमि की गैया
प्रो सी बी श्रीवास्तव
OB11, विद्युत मण्डल कालोनी
रामपुर जबलपुर
गोकुल तुम्हें बुला रहा हे कृष्ण कन्हैया ।
वन वन भटक रही हैं ब्रजभूमि की गैया ।
दिन इतने बुरे आये कि चारा भी नही है
इनको भी तो देखो जरा हे धेनू चरैया ।।१।।
करती हे याद देवी माँ रोज तुम्हारी
यमुना का तट औ. गोपियाँ सारी ।
गई सुख धार यमुना कि उजडा है वृन्दावन
रोती तुम्हारी याद में नित यशोदा मैया ।।२।।
रहे गाँव वे , न लोग वे , न नेह भरे मन
बदले से है घर द्वार , सभी खेत , नदी , वन।
जहाँ दूध की नदियाँ थीं , वहाँ अब है वारूणी
देखो तो अपने देश को बंशी के बजैया ।।३।।
जनमन न रहा वैसा , न वैसा है आचरण
बदला सभी वातावरण , सारा रहन सहन ।
भारत तुम्हारे युग का न भारत है अब कहीं
हर ओर प्रदूषण की लहर आई कन्हैया ।।४।।
आकर के एक बार निहारो तो दशा को
बिगड़ी को बनाने की जरा नाथ दया हो ।
मन मे तो अभी भी तुम्हारे युग की ललक है
पर तेज विदेशी हवा मे बह रही नैया ।।५।।
OB11, विद्युत मण्डल कालोनी
रामपुर जबलपुर
गोकुल तुम्हें बुला रहा हे कृष्ण कन्हैया ।
वन वन भटक रही हैं ब्रजभूमि की गैया ।
दिन इतने बुरे आये कि चारा भी नही है
इनको भी तो देखो जरा हे धेनू चरैया ।।१।।
करती हे याद देवी माँ रोज तुम्हारी
यमुना का तट औ. गोपियाँ सारी ।
गई सुख धार यमुना कि उजडा है वृन्दावन
रोती तुम्हारी याद में नित यशोदा मैया ।।२।।
रहे गाँव वे , न लोग वे , न नेह भरे मन
बदले से है घर द्वार , सभी खेत , नदी , वन।
जहाँ दूध की नदियाँ थीं , वहाँ अब है वारूणी
देखो तो अपने देश को बंशी के बजैया ।।३।।
जनमन न रहा वैसा , न वैसा है आचरण
बदला सभी वातावरण , सारा रहन सहन ।
भारत तुम्हारे युग का न भारत है अब कहीं
हर ओर प्रदूषण की लहर आई कन्हैया ।।४।।
आकर के एक बार निहारो तो दशा को
बिगड़ी को बनाने की जरा नाथ दया हो ।
मन मे तो अभी भी तुम्हारे युग की ललक है
पर तेज विदेशी हवा मे बह रही नैया ।।५।।
सामाजिक लेखन हेतु ११ वें रेड एण्ड व्हाईट पुरस्कार से सम्मानित .
"रामभरोसे", "कौआ कान ले गया" व्यंग संग्रहों ," आक्रोश" काव्य संग्रह ,"हिंदोस्तां हमारा " , "जादू शिक्षा का " नाटकों के माध्यम से अपने भीतर के रचनाकार की विवश अभिव्यक्ति को व्यक्त करने का दुस्साहस ..हम तो बोलेंगे ही कोई सुने न सुने .
यह लेखन वैचारिक अंतर्द्वंद है ,मेरे जैसे लेखकों का जो अपना श्रम, समय व धन लगाकर भी सच को "सच" कहने का साहस तो कर रहे हैं ..इस युग में .
लेखकीय शोषण , व पाठकहीनता की स्थितियां हम सबसे छिपी नहीं है , पर समय रचनाकारो के इस सारस्वत यज्ञ की आहुतियों का मूल्यांकन करेगा इसी आशा और विश्वास के साथ ..
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