सलिल सृजन मई २७
नोटबंदी पर गीत
खोट
(छंद : दोहा-सोरठा)
*
एक दूसरे पर करे, नाहक मानव चोट।
*
नेता देता साथ, सेठों में लालच बहुत।
रहें मिलाए हाथ, अफसर रिश्वत जोड़ते।।
जिआ उठाए माथ, सब के मन भाया बहुत।
कोई रहा न नाथ, मानव मन में कपट था।।
खुद का मुँह काला करें, टैक्स न दे, रख जोड़।
मुझको मत काला कहें, कहूँ यही कर जोड़ ।।
क्यों ठगते इंसान तुम, इक-दूजे को पोट।
खोट नोट में है नहीं, नीयत में है खोट।।
*
पृष्ठभूमि है श्वेत, रंग बैगनी गुलाबी।
गला रहे क्यों रेत, गाँधी जी चुप पूछते?
रहे न नेता चेत, परेशान जन गण हुआ।
रखे दबाए प्रेत, पकड़ जेल में डालिए।।
रुपया-रुपया बचाया, गृहणी को संतोष।
गुल्लक फोड़ी गँवाया, मन में बेहद रोष।।
हाय! नहीं बाकी रही, बचा रखे की ओट।
खोट नोट में है नहीं, नीयत में है खोट।।
*
बच्चे उनका बाप, देख कर रहे खर्च मिल।
नेता तुमको शाप, कभी नहीं संतोष हो।।
सुख न सकेगा व्याप, चाहे जितना जोड़ लो।
नहीं फलेगा पाप, सत्ता पा जो कर रहे।।
करती नहीं सुधार क्यों, शासन में सरकार।
पत्रकार सच्चे नहीं, बिके हुए अखबार।।
चुनकर गलती हो गई, मनुआ कहे कचोट।
खोट नोट में है नहीं, नीयत में है खोट।।
***
सामयिक कविता
ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा
*
दो कवि मंच पर कविता सुनाएँ
दो अभिनेता फिल्म में अभिनय करें
दो महिलाएँ बात-चीत करें
तो भी वे शत्रु नहीं, मित्र होते हैं
इतनी सरल बात
नफरत के सौदागर
हुड़दंगी नहीं समझते।
राष्ट्रपति पद के अपने उम्मीदवार की
कितनी खूबियाँ गिनाईं थीं आपने
भूल गए?
राष्ट्रपति का पद सर्वोच्च होता है
संसद अर्थात लोक सभा और विधान सभा
थल, जल और नभ सेनाओं
समूची न्याय व्यवस्था
अर्थात भारतीय लोकतंत्र का प्रधान है वह।
प्रधानमंत्री भी अपनी सरकार
राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाने के बाद
बना पाते हैं।
सरकार राष्ट्रपति की होती है
जिसके मुख्य कार्यकारी प्रधान मंत्री होते हैं।
नियुक्त किया गया व्यक्ति
नियोक्ता से अधिक बड़ा नहीं होता।
प्रधान मंत्री का आचरण
कभी नहीं दर्शाता कि वे विपक्ष के भी हैँ।
वे दलीय प्रमुख के नाते
अन्य दलों पर
हमेशा कीचड़ उछालते हैं।
भारत के इतिहास में
इतना कमजोर प्रधान मंत्री कभी नहीं हुआ
जिसे विपक्ष का विश्वास प्राप्त न हो।
अभी भी अवसर है
विपक्ष का अनुरोध मानकर बड़प्पन दिखाएँ,
महामहिम राष्ट्रपति जी को आमंत्रितकर
संसद भवन का उद्घाटन कराएँ ।
विपक्ष का दिल जीतने का
ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा।
***
आयुर्वेद -
हृदय रोग
भारत में ३००० साल पहले महाऋषि वागवट जी ने 'अष्टांग हृदयम' पुस्तक में बीमारियों को ठीक करने के ७००० सूत्र लिखे। एक सूत्र में वागवट जी लिखते हैं कि कभी भी हृदय को घात हो रहा है मतलब दिल की नलियाँ अवरुद्ध (ब्लॉक) होने का मतलब है कि रक्तमें अम्लता (एसिडिटी) बढ़ी है। अम्लता दो तरह की होती है एक होती है पेट की अम्लता और दूसरी रक्त की अम्लता। आपके पेट में अम्लता से पेट में जलन होती है, खट्टी डकार आती है, मुँह से लार निकलती है। अम्लता अधिक बढ़ जाये तो हायपर एसिडिटी होगी। पेट की अम्लता बढ़ते-बढ़ते जब रक्त में आती है तो रक्त अम्लता होती है। जबअम्लीय रक्त दिल की नलियों में से निकल नहीं पाता तो नलियों में अवरोध कर देता है। तभी हृदयाघात होता है। वागवट जी लिखते हैं कि जब रक्तमें अम्लता बढ़े तो क्षारीय आहार लें। दो तरह की चीजें होती हैं अम्लीय और क्षारीय। अम्ल और क्षार को मिलाने पर अम्लता समाप्त हो जाती है। रक्त में अम्लता neutral हो तो हृद रोग की संभावना समाप्त।
लौकी (दुधी, बॉटल गॉर्ड) सर्वाधिक क्षारीय खाद्य है। रोज शौच जाने के बाद खाली पेट लगभग २५० ग्राम लौकी का रस पिएँ या नाश्ते के आधे घंटे के बाद पिएँ। लौकी के रस को ज्यादा क्षारीय बनाने के लिए से १० पत्ते तुलसी या पुदीने के तथा काला नमक या सेंधा नमक डालिए। ये सभी बहुत क्षारीय हैं। आयोडीन युक्त नमक अम्लीय है, इसे कभी मत डालिए। इस जूस का सेवन २ से ३ महीने की अवधि में हृदय अवरोध मिटा देगा, शल्य क्रिया की आवश्यकता न होगी।
२७.५ २०२३
***
सॉनेट
सुख-दुख
•
सुख-दुख माया या सच्चाई?
किसने देखा है बतलाओ?
नापा-तौला-मापा किसने?
गिना?, चित्र ही खींच दिखाओ।
रखो-उठा या पहन-ओढ़ या
बिछा-ओढ़ या खा-पी सकते?
बोओ-काटो, भिगा-सुखाकर
साथ बिठा मिल रो-गा- हँसते?
मेरा-तेरा, इसका-उसका
सबका सुख-दुख साझा है क्या?
अलग-अलग तो भी बतलाओ
सबका सुख-दुख न्यारा है क्या?
अगर नहीं तो कैसे जाना
सुख-दुख का अस्तित्व जगत में?
२७-५-२०२२
६:२६
•••
नवान्वेषित सवैया
सत्यमित्रानंद सवैया
*
विधान -
गणसूत्र - य न त त र त र भ ल ग।
पदभार - १२२ १११ २२१ २२१ २१२ २२१ २१२ २११ १२ ।
यति - ७-६-६-७ ।
*
गए हो तुम नहीं, हो दिलों में बसे, गई है देह ही, रहोगे तुम सदा।
तुम्हीं से मिल रही, है हमें प्रेरणा, रहेंगे मोह से, हमेशा हम जुदा।
तजेंगे हम नहीं, जो लिया काम है, करेंगे नित्य ही, न चाहें फल कभी।
पुराने वसन को, है दिया त्याग तो, नया ले वस्त्र आ, मिलेंगे फिर यहीं।
*
तुम्हारा यश सदा, रौशनी दे हमें, रहेगा सूर्य सा, घटेगी यश नहीं।
दिये सा तुम जले, दी सदा रौशनी, बँधाई आस भी, न रोका पग कभी।
रहे भारत सदा, ही तुम्हारा ऋणी, तुम्हीं ने दी दिशा, तुम्हीं हो सत्व्रती।
कहेगा युग कथा, ये सन्यासी रहे, हमेशा कर्म के, विधाता खुद जयी।
*
मिला जो पद तजा, जा नई लीक पे, लिखी निर्माण की, नयी ही पटकथा।
बना मंदिर नया, दे दिया तीर्थ है, नया जिसे कहें, सभी गौरव कथा।
महामानव तुम्हीं, प्रेरणास्रोत हो, हमें उजास दो, गढ़ें किस्मत नयी।
खड़े हैं सुर सभी, देवतालोक में, प्रशस्ति गा रहे, करें स्वागत सभी।
२७-५-२०२०
***
तीन नवगीत
*
१.
दोष गैर के
करते इंगित
पथ भूले नवगीत.
देखें, खुद की कमी
सुधारें तो
रच दें नव रीत.
*
अँगुली एक उठी गैरों पर
खुद पर उठतीं तीन.
अनदेखी कर
रहे बजाते
सुर साधे बिन बीन.
काला चश्मा चढ़ा
आज की
आँखों पर ऐसा-
धवन श्वेत
हंसा भी दिखता
करिया काग अतीत.
*
सब कुछ बुरा
न कभी रहा है,
भला न हो सकता.
नहीं बचाया
शुभ-उजियारा
तो वह खो सकता.
नव आशा का
सूर्य उगाएँ
तब निशांत होगा-
अमावसी तं
अमर हुआ, भ्रम
अब हो नहीं प्रतीत.
११.००
***
२.
सिसक रही क्यों कविता?
बोलो क्यों रोता नवगीत?
*
प्रगतिवाद ने
छीनी खुशियाँ
थोप दिया दुःख-दर्द.
ठूँस-ठूँस
कृत्रिम विडम्बना
खून कर दिया सर्द.
हँसी-ख़ुशी की
अनदेखी से
हार गयी है जीत.
*
महलों में बैठे
कुटियों का
दर्द बखान रहे.
नर को छल
नारी-शोषण का
कर यशगान रहे.
लेश न मतलब
लोक-देश से
हैं वैचारिक क्रीत.
*
नहीं लोक का
मंगल चाहें
करा रहे मत-भेद.
एक्य भुलाकर
फूट दिखाते
ताकि बढ़े मन-भेद.
नकली संत्रासों
को जय गा
करते सबको भीत.
११.४०
***
३.
मैं हूँ नवगीत
आइना दिल का,
दर्द-पीड़ा की कैद दो न मुझे.
*
मैं नहीं देह का
बाज़ार महज.
मैं नहीं दर्द की
मीनार महज.
मैं नया ख्वाब
एक बगीचा
रौंद नियमों से, खेद दो न मुझे.
*
अब भी
अरमान-हौसले बाकी.
कौतुकी हूँ
न हो टोका-टाकी.
मैं हूँ कोशिश
की केसरी क्यारी
शूल नफरत के, छेद दो न मुझे.
*
मैं हूँ गर मर्द
दोष दो न मुझे.
मैंने कविता से
मुहब्बत की है.
चाहकर भी न
न सँग रह पाए
कैसे मुमकिन है, खेद हो न मुझे?
*
जिंदगी मुझको
अपनी जीने दो.
थोड़ा हँसने दो
खिलखिलाने दो.
राग या त्याग
एक ही हैं मुझे
सुख या दुःख में भी भेद है न मुझे.
१२.३५
सरस्वती इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेकनोलोजी जबलपुर.
***
गीत
*
इतना बड़ा हमारा देश
नहीं बड़प्पन हममें शेष।
*
पैर तले से भूमि छिन गयी
हाथों में आकाश नहीं।
किसे दोष दूँ?, कौन कर रहा
मेरा सत्यानाश नहीं।
मानव-हाथ छ्ल जाकर नित
नोच रहा हूँ अपने केश।
इतना बड़ा हमारा देश
नहीं बड़प्पन हममें शेष।
*
छाँह, फूल.पत्ते,लकड़ी ले
कभी नहीं आभार किया।
जड़ें खोद, मेरे जीवन का
स्वार्थ हेतु व्यापार किया।
मुझको जीने नहीं दिया, खुद
मानव भी कर सका न ऐश।
इतना बड़ा हमारा देश
नहीं बड़प्पन हममें शेष।
*
मेरे आँसू की अनदेखी
करी काटकर बोटी-बोटी।
निष्ठुर-निर्मम दानव बनकर
मुझे जलाकर सेंकी रोटी।
कोेेई नहीं अदालत जिसमें
करून वृक्ष मैं, अर्जी पेश
इतना बड़ा हमारा देश
नहीं बड़प्पन हममें शेष
*
***
नवगीत
*
सभ्य-श्रेष्ठ
खुद को कहता नर
करता अत्याचार।
पालन-पोसें वृक्ष
उन्हीं को क्यों
काटे? धिक्कार।
*
बोये बीज, लगाईं कलमें
पानी सींच बढ़ाया।
पत्ते, काली, पुष्प, फल पाकर
मनुज अधिक ललचाया।
सोने के
अंडे पाने
मुर्गी को डाला मार।
पालन-पोसें वृक्ष
उन्हीं को नित
काटें? धिक्कार।
*
शाखा तोड़ी, तना काटकर
जड़ भी दी है खोद।
हरी-भरी भू मरुस्थली कर
बोनसाई ले गोद।
स्वार्थ साधता क्रूर दनुज सम
मानव बारम्बार।
पालन-पोसें वृक्ष
उन्हीं को क्यों
काटें? धिक्कार।
*
ताप बढ़ा, बरसात घट रही
सूखे नदी-सरोवर।
गलती पर गलती, फिर गलती
करता मानव जोकर।
दण्ड दे रही कुदरत क्रोधित
सम्हलो करो सुधार।
पालें-पोसें वृक्ष
उन्हीं को हम
काटें? धिक्कार।
२७-५-२०१६
*
गीत :
तुम
*
तुमको देखा
तो मरुथल मन
हरा हो गया।
*
चंचल चितवन मृगया करती
मीठी वाणी थकन मिटाती।
रूप माधुरी मन ललचाकर -
संतों से वैराग छुड़ाती।
खोटा सिक्का
दरस-परस पा
खरा हो गया।
तुमको देखा
तो मरुथल मन
हरा हो गया।
*
उषा गाल पर, माथे सूरज
अधर कमल-दल, रद मणि-मुक्ता।
चिबुक चंदनी, व्याल केश-लट
शारद-रमा-उमा संयुक्ता।
ध्यान किया तो
रीता मन-घट
भरा हो गया।
तुमको देखा
तो मरुथल मन
हरा हो गया।
*
सदा सुहागन, तुलसी चौरा
बिना तुम्हारे आँगन सूना।
तुम जितना हो मुझे सुमिरतीं
तुम्हें सुमिरता है मन दूना।
साथ तुम्हारे गगन
हुआ मन, दूर हुईं तो
धरा हो गया।
तुमको देखा
तो मरुथल मन
हरा हो गया।
*
तक्षशिला इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग एन्ड टेक्नोलॉजी
जबलपुर, २६.५.२०१६
***
मुक्तक:
*
भाषण देते उपन्यास सा, है प्रयास लघुकथा हमारा
आश्वासन वह महाकाव्य है, जिसे लिखा बिन पढ़े बिसारा
मत देकर मत करो अपेक्षा, नेताजी कुछ काम करेंगे-
भूल न करते मतदाता को चेहरा दिखलायें दोबारा
*
***
नवगीत:
*
चलो मिल सूरज उगायें
*
सघनतम तिमिर हो जब
उज्ज्वलतम कल हो तब
जब निराश अंतर्मन-
नव आशा फल हो तब
विघ्न-बाधा मिल भगायें
चलो मिल सूरज उगायें
*
पत्थर का वक्ष फोड़
भूतल को दें झिंझोड़
अमिय धार प्रवहित हो
कालकूट जाल तोड़
मरकर भी जी जाएँ
चलो मिल सूरज उगायें
*
अपनापन अपनों का
धंधा हो सपनों का
बंधन मत तोड़ 'सलिल'
अपने ही नपनों का
भूसुर-भुसुत बनायें
चलो मिल सूरज उगायें
***
नवगीत:
संजीव
*
पूज रहे हैं
खोखले आधार
*
संसद में बातें ही बातें हैं
उठ-पटक, छीन-झपट मातें हैं
अपने ही अपनों को छलते हैं-
अपने-सपने करते घातें हैं
अवमूल्यन
का गरम बाज़ार
पूज रहे हैं
खोखले आधार
*
तिमिराये दिन, गुमसुम रातें हैं
सबब फूट का बनती जातें हैं
न्यायालय दुराचार का कैदी-
सर पर चढ़, बैठ रही लातें हैं
मनमानी
की बनी मीनार
पूज रहे हैं
खोखले आधार
*
असमय ही शुभ अवसर आते हैं
अक्सर बिन आये ही जाते हैं
पक्षपात होना ही होना है-
बारिश में डूब गये छाते हैं
डोक्टर ही
हो रहे बीमार
पूज रहे हैं
खोखले आधार
***
नवगीत:
*
ध्वस्त हुए विश्वास किले
*
जूही-चमेली
बगिया तजकर
वन-वन भटकें
गोदी खेली
कलियाँ ही
फूलों को खटकें
भँवरे करते मौज
समय के अधर सिले
ध्वस्त हुए विश्वास किले
*
चटक-मटक पर
ठहरें नज़रें
फिर फिर अटकें
श्रम के दर की
चढ़ें न सीढ़ी
युव मन ठिठकें
शाखों से क्यों
वल्लरियों के वदन छिले
ध्वस्त हुए विश्वास किले
***
नवगीत:
*
मुस्कानें विष बुझी
निगाहें पैनी तीर हुईं
*
कौए मन्दिर में बैठे हैं
गीध सिंहासन पा ऐंठे हैं
मन्त्र पढ़ रहे गर्दभगण मिल
करतल ध्वनि करते जेठे हैं.
पुस्तक लिख-छपते उलूक नित
चीलें पीर भईं
मुस्कानें विष बुझी
निगाहें पैनी तीर हुईं
*
चूहे खलिहानों के रक्षक
हैं सियार शेरों के भक्षक
दूध पिलाकर पाल रहे हैं
अगिन नेवले वासुकि तक्षक
आश्वासन हैं खंबे
वादों की शहतीर नईं
*
न्याय तौलते हैं परजीवी
रट्टू तोते हुए मनीषी
कामशास्त्र पढ़ रहीं साध्वियाँ
सुन प्रवचन वैताल पचीसी
धुल धूसरित संयम
भोगों की प्राचीर मुईं
२७-५-२०१५
***
नवगीत:
*
अंधड़-तूफां आया
बिजली पल में
गोल हुई
*
निष्ठा की कमजोर जड़ें
विश्वासों के तरु उखड़े
आशाओं के नीड़ गिरे
मेघों ने धमकाया
खलिहानों में
दौड़ हुई.
*
नुक्कड़ पर आपाधापी
शेफाली थर-थर काँपी
थे ध्वज भगवा, नील, हरे
दोनों को थर्राया
गिरने की भी
होड़ हुई.
*
उखड़ी जड़ खापों की भी
निकली दम पापों की भी
गलती करते बिना डरे
शैतां भी शर्माया
घर खुद का तो
छोड़ मुई!.
*
२६-५-२००१५: जबलपुर में ५० कि.मी. की गति से चक्रवातजनित आंधी-तूफ़ान, भारी तबाही के बाद रचित.
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