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सोमवार, 19 मई 2025

निराला

महाप्राण निराला 
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• निराला जी (२१ फरवरी १८९९ - १५ अक्टूबर १९६१) अपने जीवन-काल में ही मिथक बन चुके थे।
• सूर्यकान्त त्रिपाठी नाम के साथ जुड़ा 'निराला' दरअसल पहले उनका छद्म नाम था जिससे वे मतवाला नामक पत्र में कॉलम लिखते थे। बाद में यह छद्मनाम ऐसा चर्चित हुआ कि उनके नाम का हिस्सा हो गया।
• निराला जी सफल कवि, उपन्यासकार, निबन्धकार और कहानीकार थे। उन्होंने कई रेखाचित्र भी बनाये।
• निराला जी ने आनंद मठ, विष वृक्ष, कृष्णकांत का वसीयतनामा, कपालकुंडला, दुर्गेश नन्दिनी, राज सिंह, राजरानी, देवी चौधरानी, युगलांगुल्य, चन्द्रशेखर, रजनी, श्री रामकृष्ण वचनामृत, भरत में विवेकानंद तथा राजयोग का बांग्ला से हिन्दी में अनुवाद किया।
• १९१८ के इन्फ्लुएन्जा में उनके तमाम सगे-सम्बन्धी दिवंगत हो गए, पत्नी भी। सिर्फ़ दो बच्चे ही बचे- बेटा रामकृष्ण और बेटी सरोज। १९३५ में सरोज के निधन पर निराला ने चर्चित कविता 'सरोज-स्मृति' की रचना की थी।
• निराला ने जब मुक्त छंद में रचनाएँ लिखनी शुरू कीं तो बहुत विरोध हुआ। रबर छंद और केंचुआ छंद कहकर इसका मज़ाक उड़ाया गया। आज हिंदी कविता का यह मिज़ाज़ बन चुका है।
• निराला अपनी दानशीलता के लिए बहुत जाने जाते थे। अपना सर्वस्व दान करने की प्रवृत्ति से हमेशा तंगी में ही रहते रहे।
• हिन्दी कविता में छायावाद के साथ ही प्रगतिवाद होते हुए नयी कविता और नवगीत काव्यांदोलन उनसे अपना जुड़ाव महसूस करते रहे।
• हिंदी में अकेले निराला पर जितनी कविताएँ लिखी गयी हैं उतनी शायद किसी एक व्यक्ति पर कविताएँ कहीं नहीं लिखी गयीं।
• उनमें विरोध का सामर्थ्य था और असहमति का साहस। इसीलिए वे जनता के कवि थे।
• जब गांधी जी का दौर था, हिंदी के ही सवाल पर निराला जी ने गांधी का विरोध किया और 'बापू तुम मुर्गी खाते यदि' जैसी व्यंग्य कविता लिखी।
• उन्होंने नेहरू जी का विरोध किया और 'काले-काले बादल छाये न आये वीर जवाहर लाल' कविता लिखी।
• तमाम संघर्षों-विरोधों और समझौता-विहीन जीवन ने उन्हें मानसिक तौर पर तोड़ दिया था। लेखन के बूते आजीविका चलाने वाला यह कवि स्वतंत्रता मिलने के दौरान १८४६ से १९४९ तक कुछ भी न लिख सका। ये दिन विभाजन संत्रास के भी दिन थे। साहित्य में कई बार त्वरित प्रतिक्रिया नहीं होती। मौन भी मुखर होता है।
• एक बार महीयसी महादेवी वर्मा (जिन्हे निराला छोटी बहिन मानते थे) और अन्य साहित्यकारों ने उनके प्रकाशक दुलारे लाल भार्गव पर दबाब डालकर रॉयल्टी की कुछ राशि निराला जी को दिलवाई। अगले दिन वे राशि महादेवी जी को देने लगे तो उन्होंने मनाकर निराला जी को वापिस लौटा दी। कुछ दिन बाद भेंट होने पर महादेवी जी ने पूछा कि राशि का क्या किया? उत्तर मिला कि तुम्हारे घर से लौट रहा था पेड़ के नीचे एक दुखियारी बुढ़िया मिली, भीख माँग रही थी, उसे दे दी। महादेवी जी ने पूछा कि क्यों दे दी? निराला जी बोले कि माँ भीख माँग रही हो तो बेटा बिना दिए कैसे रह सकता है?   
• महादेवी जी को कश्मीर यात्रा में बहुमूल्य पशमीना का शाल भेंट किया गया। उनके इलाहाबाद लौटने पर निराला जी मिलने आए तो ठंड से काँप रहे थे, महादेवी जी ने वक शाल निराला जी को उढ़ा दिया। कुछ दिन निराला जी फिर वैसे ही मिले तो पूछा की शाल का क्या किया तो बोले कि भिखारी को उढ़ा दिया।
• १९७९ में मुक़दमा जीतने के बाद सारा निराला साहित्य एक जगह जुटाया गया और नन्दकिशोर    
नवल के संपादन में राजकमल प्रकाशन से निराला-रचनावली ८ खण्डों में प्रकाशित हुई। राज कमल प्रकाशन से ही डॉ। राम विलास शर्मा द्वारा लिखित निराला जी की जीवनी 'निराला की साहित्य साधना' २ भागों में प्रकाशित हुई। 
• निराला मांसाहारी थे किन्तु इससे परहेज़ करने वालों के प्रति बेहद सतर्क रहते थे। एक बार परम वैष्णव, राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त के आगमन पर वे उन्हें कमरे में बैठाकर गायब हो गए। क़रीब आधे घंटे बाद जब कमरे में आए तो उनके हाथों में एक पत्तल था और कंधे पर घड़ा। पूछे जाने पर बताया कि दद्दा (गुप्त जी) उनके यहाँ न कुछ खाते, न पीते इसलिए वे गंगाजल से भरा घड़ा और फलाहारी बर्फी लेने चले गए थे।
• निराला जी के प्रकाशक दुलारेलाल भार्गव ने दोहा सतसई 'दुलारे दोहावली' प्रकाशित कराई तो उसके विमोचन कार्यक्रम में निराला जी को भी आमंत्रित किया। कार्यक्रम में चतुकारों ने दुलारे लाल जी के महिमा मंडन में अति का दी, यहाँ तक कि एक सज्जन ने दुलारे दोहावली के दोहों को बिहारी की सतसई के दोहों से भी श्रेष्ठ बता दिया। उस समय निराला जी वितरित किए गए शुद्ध घी के हलुए का भोग लगा रहे थे। तभी उनके नाम की घोषणा संबोधन के लिए की गई। निराला जी ने डन में शेष हलुआ समेटा, ग्रहण किया, दोन फेंककर कुर्ते की बाँह से मुँह पोंछा, सिर ऊँचा किए मंच पर पहुँचे और गरजते हुए अपनी जिंदगी का पहला और अंतिम दोहा कहा-  
कहाँ बिहारी लाल हैं, कहाँ दुलारे लाल। 
कहाँ मूँछ के बाल हैं, कहाँ पूँछ के बाल।।  
उसके बाद सन्नाटा तो छाया ही, आयोजन ही समाप्त हो गया और दुलारे लाल जी का मुँह देखते ही बनता था 'काटो तो खून नहीं'।  
• नेहरू जी के कहने पर निराला जी को १०० रुपये प्रतिमाह की मदद मिलनी तय हुई थी और यह भी तय हुआ कि यह राशि निराला को दी जायेगी तो वे इसे भी दान कर देंगे इसलिए कमलाशंकर सिंह जिनके यहाँ वे रहते थे, उन्हें दी जाती थी। इसके बाद भी निराला जी नेहरू जी के मुखर विरोधी बने रहे। क्या वर्तमान समय में कोई सत्ताधारी ऐसा हो सकता है जो अपने घोर विरोधी साहित्यकार को मदद करे और साहित्यकार सत्ता की सहायता के बदले कलम न बेचे?
• संस्कृत, हिंदी, बैसवाड़ी और बांग्ला के साथ रवींद्र संगीत के भी अच्छे जानकार थे निराला। उन्होंने 'विवेकानंद साहित्य' के बांग्ला से हिंदी अनुवाद में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया। महादेवी जी कहती थीं कि निराला मानव नहीं महा मानव थे, ऐसा इंसान दुबारा नहीं हो सकता।    
• दारागंज में वे आज भी देवता की तरह पूजे जाते हैं। दुकानों के नाम भी उनके नाम के साथ ही हैं जैसे दारागंज स्थित उनकी प्रतिमा के सामने निराला मिष्ठान भण्डार या निराला चाट भण्डार। लखनऊ में उनके नाम पर एक कॉलोनी है निराला नगर किंतु उसमें निराला के व्यक्तित्व की कोई छाप नहीं है।  
• निराला जी ने पत्नी के ज़ोर देने पर ही हिन्दी सीखी थी। फिर बांग्‍ला में कविता लिखने के बजाय हिन्दी में कविता लिखना शुरू कर दिया।
• स्कूल में पढ़ने से अधिक उनकी रुचि घूमने, खेलने, तैरने और कुश्ती लड़ने इत्यादि में थी। संगीत में उनकी विशेष रुचि थी।
• एक वक्‍त था जब हजारों निराला प्रेमियों को राम की शक्‍ति पूजा कविता याद थी और वे गर्व से सुनाते थे।
• उनके देहांत के बाद उनके पुत्र रामकृष्ण को १९ वर्ष तक प्रकाशकों से कॉपीराइट का मुकद्दमा लड़ना पड़ा। प्रकाशक जीवन भर शोषण करने के बाद भी कॉपीराइट स्वीकार नहीं कर रहे थे।

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