छंदशाला १
लौकिक जातीय, सुगती छंद
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विधान-
प्रति पद सात मात्रा, पदांत गुरु।
उदाहरण-
सत लोक है।
सुख-शोक है।।
धीरज धरो।
साहस वरो।।
कुछ काम हो।
कुछ नाम हो।।
कुछ नित पढ़ो।
कुछ नित लिखो।।
जीवन खिले।
सुगती मिले।।
२५-९-२०२२
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ॐ
छंदशाला २
वासव जातीय, छवि छंद
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विधान-
प्रति पद आठ मात्रा, पदांत जगण।
अठ वसु न भूल।
छवि सदृश फूल।।
रख जगण अंत।
रच छंद कंत।।
उदाहरण-
पुरखे अनाम।
पुरखों प्रणाम।।
तुम थे महान।
हम हों महान।।
कर काम चाम।
हो कीर्ति-नाम।।
तन तज न राग।
मन वर विराग।।
जप ईश-नाम।
चुप सुबह-शाम।।
२५-९-२०२२
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ॐ
छंदशाला ३
गंग छंद
(सुगती छंद तथा छवि छंद के बाद)
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विधान-
प्रति पद नौ मात्रा, पदांत दो गुरु।
अंक नौ सीखो।
सफलतम दीखो।।
अंत गुरु दो हो।
गंग रच डोलो।।
उदाहरण-
सूरज उगाओ।
तम को मिटाओ।।
आलस्य छोड़ो।
नाहक न जोड़ो।।
रखो दोस्ताना।
करो न बहाना।।
सच मत बिसारो।
दुनिया सँवारो।।
पौधे लगाओ।
सींचो बढ़ाओ।।
२५-९-२०२२
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ॐ
छंदशाला ४
निधि छंद
(अब तक पठित छंद- सुगती, छवि तथा गंग छंद)
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विधान-
प्रति पद नौ मात्रा, पदांत लघु।
निधि नौ न बिसार।
तुम लो न उधार।।
लघु अंत न भूल।
चुभ सके न शूल।।
उदाहरण-
जग सको उजार।
कुछ करो सुधार।।
हँस, भुला न नीत।
झट पाल न प्रीत।।
यदि कर उपकार।
मत समझ उधार।।
उठ उगा विहान।
मत मिटा निशान।।
बन फूल गुलाब।
अब छोड़ हिजाब।।
२५-९-२०२२
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ॐ
छंदशाला ५
दीप छंद
(अब तक पठित छंद- सुगती, छवि, गंग तथा निधि छंद)
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विधान-
प्रति पद दस मात्रा, पदांत नगण गुरु लघु।
बाल कर दस दीप।
रख प्रभु-पग महीप।।
नगण गुरु लघु साथ।
पद अंत नत माथ।।
उदाहरण-
हो पुलकित निशांत।
गगनपति रवि कांत।।
प्राची विहँस धन्य।
कहे नमन प्रणम्य।।
दें धरणि उजियार।
बाँट कण-कण प्यार।।
रच पुलक शुभ गीत।
हँसे कलम विनीत।।
कूक पिक हर शाम।
करे विनत प्रणाम।।
२५-९-२०२२
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ॐ
छंदशाला ६
अहीर छंद
(अब तक पठित छंद- सुगती, छवि, गंग, निधि तथा दीप छंद)
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विधान-
प्रति पद १२ मात्रा, पदांत जगण।
ग्यारह कला अहीर।
पद-अंत जगण सुधीर।।
रौद्र जातीय छंद।
रस गंग हो न मंद।।
उदाहरण-
भारत देश महान।
देव भूमि शुभ जान।।
नगपति हिमगिरि ताज।
जन हितमयी सुराज।।
जनगण धीर उदार।
पलता हर दिल प्यार।।
हैं अनेक पर एक।
जाग्रत रखें विवेक।।
देश हेतु बलिदान।
होते विहँस जवान।।
२५-९-२०२२
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ॐ
छंदशाला ७
शिव छंद
(अब तक पठित छंद- सुगती, छवि, गंग, निधि, दीप तथा अहीर छंद)
विधान-
प्रति पद ११ मात्रा, पदांत सरन।
एकादश शिव भज मन।
पद अंत रखो सरन।।
रख भक्ति पूज उमा।
माँ सदय करें क्षमा।।
उदाहरण-
नदी नर्मदा नहा।
श्रांति-क्लांति दे बहा।
धुआँधार घूम ले।
संग देख झूम ले।।
लहर-लहर मचलती।
नाच मीन फिसलती।।
ईश भक्ति तारती।
पूज करो आरती।।
गहो देव की शरण।
करो नेक आचरण।।
२५-९-२०२२
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ॐ
छंदशाला ८
भव छंद
(अब तक पठित छंद- सुगती, छवि, गंग, निधि, दीप, अहीर तथा शिव छंद)
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विधान-
प्रति पद ११ मात्रा, पदांत यगण।
भव का भय भुला रे।
यगण अंत लगा रे।।
ग्यारह कल जमाएँ।
कविता गुनगुनाएँ।।
उदाहरण-
अरि से डर न जाएँ।
भय से मर न जाएँ।।
बना न अब बहाना।
लगा सही निशाना।।
आँख मिला न पाए।
दुश्मन बच न पाए।।
शीश सदा उठाएँ।
मुट्ठियाँ लहराएँ।।
पताका फहराएँ।
जय के गीत गाएँ।।
२५-९-२०२२
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ॐ
छंदशाला ९
तोमर छंद
(अब तक पठित छंद- सुगती, छवि, गंग, निधि, दीप, अहीर शिव तथा भव छंद)
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विधान-
प्रति पद १२ मात्रा, पदांत गुरु लघु।
बारह कल रहें साथ।
तोमर में लिए हाथ।
गुरु लघु पद अंत मीत।
निभा सकें अटल प्रीत।।
उदाहरण
आल्हा तलवार थाम।
जूझ पड़ा बिन विराम।।
दुश्मन दल मुड़ा भाग।
प्राणों से हुआ राग।।
ऊदल ने लगा होड़।
जा पकड़ा बाँह तोड़।।
अरि भय से हुआ पीत।
चरण-शरण मुआ भीत।।
प्राणों की माँग भीख।
भागा पर मिली सीख।।
२५-९-२०२२
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ॐ
छंदशाला १०
ताण्डव छंद
(अब तक पठित छंद- सुगती, छवि, गंग, निधि, दीप, अहीर शिव, भव व तोमर छंद)
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विधान-
प्रति पद १२ मात्रा, पदादि-पदांत लघु।
करें ताण्डव मुदित मन।
कल बारह बिसर न मन।।
पद आदि लघु रख विहँस।
लघु पदांत सरस बरस।।
उदाहरण
जप शिव को मन हर पल।
रह आपद में अविचल।।
भव-भय मिटे, मिले फल।
बन कलकल करता जल।।
कल को दोष न दे कल।
मनुज न कल बन खो कल।।
उगकर रवि सम चल ढल।
ढलकर उग हँस फिर कल।।
दिनकर दिन कर, मत छल।
तम हर सतत अचंचल।।
२७-९-२०२२
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(काव्य रूप- हिंदी ग़ज़ल)
***
तरही मुशायरा
दर्द का साग़र भी साक़ी मेरी क़िस्मत में न था
शौक़ में करना पड़ा आख़िर लहू पानी मुझे - यगाना चंगेजी






22 -- फ़ानी, सानी , बानी ,धानी, आनी, जानी, खानी, मानी, पानी, रानी, दानी, नानी, ठानी, लानी,
222 -- आसानी, तुग्यानी, तूफानी, नूरानी, लाफ़ानी, रूमानी, मर्दानी, निगरानी, मरजानी, जज़मानी, लासानी, शैतानी मस्तानी, अन्जानी, दीवानी,जेठानी,सेठानी, रूहानी, नादानी,
1222 -- पशेमानी, महारानी, ... आदि ।
इसी बह्र पर गीत गुनगुना कर देखें
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गीत
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1 -- यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िन्दगी
2 -- मंज़िलें अपनी जगह हैं रास्ते अपनी जगह
3 -- चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
4 -- सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
5 -- आपकी नज़रों ने समझा प्यार के क़ाबिल हमें
6 -- होश वालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है
7 -- दिल के टुकड़े-टुकड़े करके मुस्क्रुरा के चल दिए
8 -- दिल दिया है यार ने तो मेहरबानी यार की
9 -- दिल दिया है जां भी देंगे ए वतन तेरे लिए
मुक्तिका
2122 2122 2122 212
रोज मन की बात सहनी पड़ी मनमानी मुझे
श्रीमती की डाँट भी तो रोज है खानी मुझे
सूर्य ऊषा का लिए था हाथ भागा जा रहा
देख दोपहरी मुई थी दे रही पानी मुझे
प्यार बस लिव इन नहीं है, साथ होना प्यार है
रोज लड़-मिल एक होना रीत भानी है मुझे
इश्क़ संध्या से किया, कुड़माई रजनी से करी
चाँद धोखा चाँदनी को दे परेशानी मुझे
ठोकरों पे ठोकरें दे रो जमाना क्यों रहा
देखता है दर्द लगता है मिहरबानी मुझे
रिज़्क़ ने परवाज को रोका हमेश ही 'सलिल'
शौक़ में करना पड़ा आख़िर लहू पानी मुझे
***
दोहा सलिला:
राम सत्य हैं, राम शिव.......
*
राम सत्य हैं, राम शिव, सुन्दरतम हैं राम.
घट-घटवासी राम बिन सकल जगत बेकाम..
वध न सत्य का हो जहाँ, वही राम का धाम.
अवध सकल जग हो सके, यदि मन हो निष्काम..
न्यायालय ने कर दिया, आज दूध का दूध.
पानी का पानी हुआ, कह न सके अब दूध..
देव राम की सत्यता, गया न्याय भी मान.
राम लला को मान दे, पाया जन से मान..
राम लला प्रागट्य की, पावन भूमि सुरम्य.
अवधपुरी ही तीर्थ है, सुर-नर असुर प्रणम्य..
शुचि आस्था-विश्वास ही, बने राम का धाम.
तर्क न कागज कह सके, कहाँ रहे अभिराम?.
आस्थालय को भंगकर, आस्थालय निर्माण.
निष्प्राणित कर प्राण को, मिल न सके सम्प्राण..
मन्दिर से मस्जिद बने, करता नहीं क़ुबूल.
कहता है इस्लाम भी, मत कर ऐसी भूल..
बाबर-बाकी ने कभी, गुम्बद गढ़े- असत्य.
बनीं बाद में इमारतें, निंदनीय दुष्कृत्य..
सिर्फ देवता मत कहो, पुरुषोत्तम हैं राम.
राम काम निष्काम है, जननायक सुख-धाम..
जो शरणागत राम के, चरण-शरण दें राम.
सभी धर्म हैं राम के, चाहे कुछ हो नाम..
पैगम्बर प्रभु के नहीं, प्रभु ही हैं श्री राम.
पैगम्बर के प्रभु परम, अगम अगोचर राम..
सदा रहे, हैं, रहेंगे, हृदय-हृदय में राम.
दर्शन पायें भक्तजन, सहित जानकी वाम..
रामालय निर्माण में, दें मुस्लिम सहयोग.
सफल करें निज जन्म- है, यह दुर्लभ संयोग..
पंकिल चरण पखार कर, सलिल हो रहा धन्य.
मल हर निर्मल कर सके, इस सा पुण्य न अन्य..
***
तरही मुक्तिका ३ :
क्यों है?
*
रूह पहने हुए ये हाड़ का पिंजर क्यों है?
रूह सूरी है तो ये जिस्म कलिंजर क्यों है??
थी तो ज़रखेज़ ज़मीं, हमने ही बम पटके हैं.
और अब पूछते हैं ये ज़मीं बंजर क्यों है??
गले मिलने की है ख्वाहिश, ये संदेसा भेजा.
आये तो हाथ में दाबा हुआ खंजर क्यों है??
नाम से लगते रहे नेता शरीफों जैसे.
काम से वो कभी उड़िया, कभी कंजर क्यों है??
उसने बख्शी थी हमें हँसती हुई जो धरती.
आज रोती है बिलख, हाय ये मंजर क्यों है?
३०-९-२०१०
***
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