सॉनेट
अरण्य वाणी
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मनुज पुलक; सुन अरण्य वाणी
जीवन मधुवन बन जाएगा
कंकर शंकर बन गाएगा
श्वास-आस होगी कल्याणी
भुज भेंटे आलोक तिमिर से
बारी-बारी आए-जाए
शयन-जागरण चक्र चलाए
सीख समन्वय गिरि-निर्झर से
टिट्-टिट् करती विहँस टिटहरी
कुट-कुट कुतरे सुफल गिलहरी
गरज करे वनराज अफसरी
खेलें-खाएँ हिल-मिल प्राणी
मधुरस पूरित टपरी-ढाणी
दस दिश गुंजित अरण्य वाणी
२०-९-२०२२
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मुक्तिका
निराला हो
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जैसे हुए, न वैसा ही हो, अब यह साल निराला हो
मेंहनतकश ही हाथों में, अब लिये सफलता प्याला हो
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उजले वसन और तन जिनके, उनकी अग्निपरीक्षा है
सावधान हों सत्ता-धन-बल, मन न तनिक भी काला हो
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चित्र गुप्त जिस परम शक्ति का, उसके पुतले खड़े न कर
मंदिर-मस्जिद के झगड़ों में, देव न अल्लाताला हो
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कल को देख कलम कल का निर्माण आज ही करती है
किलकिल तज कलकल वरता मन-मंदिर शांत शिवाला हो
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माटी तन माटी का दीपक बनकर तिमिर पिये हर पल
आए-रहे-जाए जब भी तब चारों ओर उजाला हो
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क्षर हो अक्षर को आराधें, शब्द-ब्रम्ह की जय बोलें
काव्य-कामिनी रसगगरी, कवि-आत्म छंद का प्याला हो
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हाथ हथौड़ा कन्नी करछुल कलम थाम, आराम तजे
जब जैसा हो जहाँ 'सलिल' कुछ नया रचे, मतवाला हो
२०-९-२०१७
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मुक्तक सलिला:
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प्रभु ने हम पर किया भरोसा, दिया दर्द अनुपम उपहार
धैर्य सहित कर कद्र, न विचलित हों हम, सादर कर स्वीकार
जितनी पीड़ा में खिलता है, जीवन कमल सुरभि पाता- 'सलिल' गौरवान्वित होता है, अन्यों का सुख विहँस निहार
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भक्ति गीत:
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हे प्रभु दीनानाथ दयानिधि
कृपा करो, हर विघ्न हमारे.
जब-जब पथ में छायें अँधेरे
तब-तब आशा दीप जला रे….
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हममें तुम हो, तुममें हम हों
अधर हँसें, नैन ना नम हों.
पीर अधीर करे जब देवा!
धीरज-संबल कहबी न कम हों.
आपद-विपदा, संकट में प्रभु!
दे विवेक जो हमें उबारे….
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अहंकार तज सकें ज्ञान का
हो निशांत, उद्गम विहान का.
हम बेपर पर दिए तुम्हीं ने
साहस दो हरि! नव उड़ान का.
सत-शिव-सुंदर राह दिखाकर
सत-चित-आनंद दर्श दिखा रे ….
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शब्द ब्रम्ह आराध्य हमारा
अक्षर, क्षर का बना सहारा.
चित्र गुप्त है जो अविनाशी
उसने हो साकार निहारा.
गुप्त चित्र तव अगम, गम्य हो
हो प्रतीत जो जन्म सँवारे ….
२०-९-२०१३
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नव गीत :
उत्सव का मौसम.....
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तुम मुस्काईं जिस पल
उस पल उत्सव का मौसम.....
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लगे दिहाड़ी पर हम
जैसे कितने ही मजदूर.
गीत रच रहे मिलन-विरह के
आँखें रहते सूर..
नयन नयन से मिले झुके
उठ मिले मिट गया गम.
तुम शर्माईं जिस पल
उस पल उत्सव का मौसम.....
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देखे फिर दिखलाये
एक दूजे को सपन सलोने.
बिना तुम्हारे छुए लग रहे
हर पकवान अलोने..
स्वेद-सिंधु में नहा लगी
हर नेह-नर्मदा नम.
तुम अकुलाईं जिस पल
उस पल उत्सव का मौसम.....
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कंडे थाप हाथ गुबरीले
सुना रहे थे फगुआ.
नयन नशीले दीपित
मना रहे दीवाली अगुआ..
गाल गुलाबी 'वैलेंटाइन
डे' की गाते सरगम.
तुम भर्माईं जिस पल
उस पल उत्सव का मौसम.....
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प्रार्थना
भक्ति-भाव की विमल नर्मदा में अवगाहन कर तर जाएँ.
प्रभु ऐसे रीझें, भू पर आ, भक्तों के संग नाचें-गाएँ..
हम आरती उतारें प्रभु की, उनके चरणों पर गिर जाएँ.
जय महेश! जय बम-बम भोले, सुन प्रभु हमको कंठ लगाएँ..
स्वप्न देख ले 'सलिल' सुनहरे, पूर्व जन्म के पुण्य भुनाएँ..
प्रभु को मन-मंदिर में पाकर, तन को हँसकर भेंट चढ़ाएँ..
२०-९-२०१०
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