पुरोवाक
भौजी सरसों खिल रही, छेड़े नंद बयार।
भैया गेंदा रीझता, नाम पुकार पुकार।।
समय नहीं; हर किसी पर, करें भरोसा आप।
अपना बनकर जब छले, दुख हो मन में व्याप।।
उसकी आए याद जब, मन जा यमुना-तीर।
बिन देखे देखे उसे, होकर विकल अधीर।।
दाँत दिए तब थे नहीं, चने हमारे पास।
चने मिले तो दाँत खो, हँसते हम सायास।।
पावन रेवा घाट पर, निर्मल सलिल प्रवाह।
मन को शीतलता मिले, सलिला भले अथाह।।
हर काया में बसा है, चित्रगुप्त बन जान।
सबसे मिलिए स्नेह से, हम सब एक समान।।
*
मुझमें बैठा लिख रहा, दोहे कौन सुजान?
लिखता कोई और है, पाता कोई मान।।
शीत लहर
शीत-लहर
मचा कहर
डगर-डगर
गई ठहर
ठिठुर रही
ग़ज़ल-बहर
एक हुईं
साँझ-सहर
राम जपो
आठ पहर
हिचकी
**
सुबह-सुबह
आई हिचकी
दौड़ा दिमाग
किया किसने याद?
कोई करता
अब नहीं याद
जमाने गए जब
आने पर हिचकी
लेते थे हम कई नाम
जिस नाम पे
रुकती थी हिचकी
कहते थे-
उसने किया याद
अब हैं
सभी बहुत व्यस्त
व्यस्त नहीं वे,
सच तो ये है कि
सब हो गए हैं
अस्त व्यस्त।
बचपन
**
चंचल बचपन नटखट बचपन
रहती सदा छना छन छन छन
उछल कूद थी भागा दौड़ी
कभी रेल जाती थी दौड़ी
चेयर हो या आलू रेस
दौड़ भाग कर जीतो रेस
छुपन-छुपाई गिट्टी फोड़ो
गिरो पड़ो हिम्मत मत छोड़ो
इण्टरवल की घण्टी बजती
दौड़ सभी की घर की लगती
जैसे-तैसे खाना खाकर
झट विद्यालय पहुँचे जाकर
मिला न खाली यदि वो झूला
गाल हमारा फिर तो फूला
खेल कबड्डी, टूटी हड्डी
कभी न लेकिन हुए फिसड्डी
बचपन की खुशियां अनन्त
मन रहता था सदा बसंत
सपना
बूंद बूंद से घट भर जाये
थोड़े से ही धन बढ़ जाये
साथ अगर दे दें सारे जन
पूर्ण तुरत सपना हो जाय
यमुना किनारे
यूं चाँदनी रात में यमुना किनारे
बैठी हैं राधा जिनके नैन कजरारे
आऊँ कैसे श्याम, हैं केश मेरे उलझे
कंघी करें श्याम, राधा मुखड़ा निहारे
जब तक आया नही अभिनन्दन
भारतीय मन करता रहा क्रन्दन
धोखेबाज रहा दुश्मन तो हरदम
कैसे कर पाता विश्वास राष्ट्र मन
दोपदी
सब कुछ गुरुवर को अर्पण
अब यही है सुख का दर्पण
सवैया
मुझे क्यों बुलाया, नहीं बात कोई, बताई बनाया बहाना
नहीं जान पाना, कहानी जहां की, सुनाना किसी को फसाना
बहाना बनाना उसे, भूल जाना नहीं याद आना जमाना
न चाहो किसी को, न भूलो किसी को, बने ना किसी का फसाना
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