नवगीत:
जिजीविषा अंकुर की
पत्थर का भी दिल
दहला देती है
*
धरती धरती धीरज
बनी अहल्या गुमसुम
बंजर-पड़ती लोग कहें
ताने दे-देकर
सिसकी सुनता समय
मौन देता है अवसर
हरियाती है कोख
धरा हो जाती सक्षम
तब तक जलती धूप
झेलकर घाव आप
सहला लेती है
*
जग करता उपहास
मारती ताने दुनिया
पल्लव ध्यान न देते
कोशिश शाखा बढ़ती
द्वैत भुला अद्वैत राह पर
चिड़िया चढ़ती
रचती अपनी सृष्टि आप
बन अद्भुत गुनिया
हार न माने कभी
ज़िंदगी खुद को खुद
बहला लेती है
*
छाती फाड़ पत्थरों की
बहता है पानी
विद्रोहों का बीज
उठाता शीश, न झुकता
तंत्र शिला सा निठुर
लगे जब निष्ठुर चुकता
याद दिलाना तभी
जरूरी उसको नानी
जन-पीड़ा बन रोष
दिशाओं को भी तब
दहला देती है
*
जिजीविषा अंकुर की
पत्थर का भी दिल
दहला देती है
*
धरती धरती धीरज
बनी अहल्या गुमसुम
बंजर-पड़ती लोग कहें
ताने दे-देकर
सिसकी सुनता समय
मौन देता है अवसर
हरियाती है कोख
धरा हो जाती सक्षम
तब तक जलती धूप
झेलकर घाव आप
सहला लेती है
*
जग करता उपहास
मारती ताने दुनिया
पल्लव ध्यान न देते
कोशिश शाखा बढ़ती
द्वैत भुला अद्वैत राह पर
चिड़िया चढ़ती
रचती अपनी सृष्टि आप
बन अद्भुत गुनिया
हार न माने कभी
ज़िंदगी खुद को खुद
बहला लेती है
*
छाती फाड़ पत्थरों की
बहता है पानी
विद्रोहों का बीज
उठाता शीश, न झुकता
तंत्र शिला सा निठुर
लगे जब निष्ठुर चुकता
याद दिलाना तभी
जरूरी उसको नानी
जन-पीड़ा बन रोष
दिशाओं को भी तब
दहला देती है
*
14 टिप्पणियां:
Sitaram Chandawarkar chandawarkarsm@gmail.com [ekavita]
3:37 pm (1 घंटे पहले)
ekavita
आचार्य ’सलिल’ जी,
अति सुंदर!
संत तुकाराम ने कहा है:
"ओलें मूळ भेदी पाषाणाचें अंग ।
प्रयत्नांची सांग । कार्यसिद्धीं॥
(कोमल जड तोडती है पाषाण का अंग
प्रयत्नों की साथ हो कर्यसिद्धि के लिए)
सस्नेह,
सीताराम चंदावरकर
Jagdish Prasad Jend
अपनी सफल प्रयोगात्मकता सहित उत्कृष्ट नवगीत। बधाई
Seema Hari sharma
बहुत सुंदर
Hari Sharma
अति सुन्दर...बधाई आपको.
Ranvir Bhadauria
सुंदर
Sanjiv Verma 'salil'
पवन जी, कृष्णनंदन जी, सीमा जी, हरी जी, जगदीश जी, रणवीर जी हार्दिक धन्यवाद
Sanjiv Verma 'salil'
kalpana ji, shashi ji dhanyavad.
Shivji Srivastava
सुन्दर बिम्बों से सजा नवगीत
shiv ji abhar
Asha Pandey Ojha Asha
बहुत सुन्दर
Asha Mukharya
बहुत सुंदर है.
Suresh Saxena
बहुत सुंदर बहुत दिन बाद आपकी रचना देखने को मिली। क्या आप परेशानी मे थे। घर मे सब ठीक है।
Sanjiv Verma 'salil'
सुरेश जी, आशा द्वय, वंदना जी, राजीवजी, मुकेश जी आभार. मैं २ से ५ तक इटावा तथा ५ से १० तक मैनपुरी में था. ११ को जबलपुर लौटा। यह रचा गया और अब पाठक पंचायत में प्रस्तुत है.
Ram Gautam
आ. आचार्य 'सलिल' जी,
प्रणाम:
बहुत दूर की बात, गुनिया ठीक से दिखाई तो नहीं दी किन्तु
'द्वैत भुला अद्वैत राह पर चिड़िया चढ़ती' के सुन्दर भाव, बधाई !!
सादर- आरजी
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