अभिनव प्रयोग:
यमकमयी मुक्तिका:
संजीव सलिल'
*
नहीं समस्या कोई हल की.
कोशिश लेकिन रही न हलकी..
विकसित हुई सोच जब कल की.
तब हरि प्रगटें बनकर कलकी..
सुना रही है सारे बृज को
छल की कथा गगरिया छलकी..
बिन पानी सब सून हो रहा
बंद हुई जब नलकी नल की..
फल की ओर निशाना साधा.
किसे लगेगा फ़िक्र न फल की?
*************
यमकमयी मुक्तिका:
संजीव सलिल'
*
नहीं समस्या कोई हल की.
कोशिश लेकिन रही न हलकी..
विकसित हुई सोच जब कल की.
तब हरि प्रगटें बनकर कलकी..
सुना रही है सारे बृज को
छल की कथा गगरिया छलकी..
बिन पानी सब सून हो रहा
बंद हुई जब नलकी नल की..
फल की ओर निशाना साधा.
किसे लगेगा फ़िक्र न फल की?
नभ लाया चादर मखमल की.
चंदा बिछा रहा मलमल की..
खल की बात न बट्टा सुनता.
जब से संगत पायी खल की..
श्रम पर निष्ठां रही सलिल की.
दुनिया सोचे लकी-अनलकी..
कर-तल की ध्वनि जग सुनता है.
'सलिल' अनसुनी ध्वनि पग-तल की..*************
13 टिप्पणियां:
Vishwa Deepak
आचार्य जी,
मज़ा आ गया पढकर।
यह अनुपम प्रयोग आप हीं कर सकते थे।
सच में...
बोलचाल के शब्दों से यमक क़ी उत्पत्ति आपके असाधारण काव्य-कौशल का मुंह बोलता प्रमाण है.
सादर
मदन मोहन 'अरविन्द
आदरणीय संजीव जी:
बहुत सुन्दर लगे आप के यह प्रयोग ।
सादर
अनूप
Anoop Bhargava
732-407-5788 (Cell)
609-275-1968 (Home)
732-420-3047 (Work)
I feel like I'm diagonally parked in a parallel universe.
Visit my Hindi Poetry Blog at http://anoopbhargava.blogspot.com/
Visit Ocean of Poetry at http://kavitakosh.org/
आदरणीय आचार्य जी,
सुंदर ग़ज़ल हेतु बधाई स्वीकार करें।
सादर
धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’
आ० आचार्य जी,
यमक अलंकार का अभिनव प्रयोग मन मुग्ध कर गया |
साधुवाद |
सादर,
कमल
हरबार कुछ नया है
जो मोहता है मन को
हम भी हैं भाग्यशाली ,
माथा झुका नमन को
Your's ,
Achal Verma
पढ़ कर दिल से आई आवाज़
सलिल नर्मदा ज़िंदाबाद.
--ख़लिश
गुणग्राहकता को नमन
६:५१ अपराह्न,22-2-2011
हे राम, कितना कितना काव्य कौशल!
नमन है आपको आचार्य जी.
शिल्प तो अनूठा है ही, कथ्य भी कुछ कम नहीं.
सादर शार्दुला
आपकी पारखी दृष्टि और गुणग्राहकता को नमन.
२४ फरवरी 2011
आदरणीय सलिल जी,
चातुर्यपूर्ण शब्द्प्रयोंगों से रचना रोचक हो गयी है|
सादर
अमित
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