कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

मुक्तिका ... मुहब्बतनामा संजीव 'सलिल'

मुक्तिका ...                                                                            

 मुहब्बतनामा

संजीव 'सलिल'
*
'सलिल' सद्गुणों की पुजारी मुहब्बत.
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत.१.

गंगा सी पावन दुलारी मुहब्बत.
रही रूह की रहगुजारी मुहब्बत.२.

अजर है, अमर है हमारी मुहब्बत.
सितारों ने हँसकर निहारी मुहब्बत.३.

महुआ है तू महमहा री मुहब्बत.
लगा जोर से कहकहा री मुहब्बत.४.

पिया बिन मलिन है दुखारी मुहब्बत.
पिया संग सलोनी सुखारी मुहब्बत.५.

सजा माँग सोहे भ'तारी मुहब्बत.
पिला दूध मोहे म'तारी मुहब्बत.६.

नगद है, नहीं है उधारी मुहब्बत.
है शबनम औ' शोला दुधारी मुहब्बत.७.

माने न मन मनचला री मुहब्बत.
नयन-ताल में झिलमिला री मुहब्बत.८.

नहीं ब्याहता या कुमारी मुहब्बत.
है पूजा सदा सिर नवा री, मुहब्बत.९.

जवां है हमारी-तुम्हारी मुहब्बत..
सबल है, नहीं है बिचारी मुहब्बत.१०.

उजड़ती है दुनिया, बसा री मुहब्बत.
अमन-चैन थोड़ा तो ब्या री मुहब्बत.११.

सम्हल चल, उमरिया है बारी मुहब्बत.
हो शालीन, मत तमतमा री मुहब्बत.१२.

दीवाली का दीपक जला री मुहब्बत.
न बम कोई लेकिन चला री मुहब्बत.१३.

न जिस-तिस को तू सिर झुका री मुहब्बत.
जो नादां है कर दे क्षमा री मुहब्बत.१४.

जहाँ सपना कोई पला री मुहब्बत.
वहीं मन ने मन को छला री मुहब्बत.१५.

न आये कहीं जलजला री मुहब्बत.
लजा मत तनिक खिलखिला री मुहब्बत.१६.

अगर राज कोई खुला री मुहब्बत.
तो करना न कोई गिला री मुहब्बत.१७.

बनी बात काहे बिगारी मुहब्बत?
जो बिगड़ी तो क्यों ना सुधारी मुहब्बत?१८.

कभी चाँदनी में नहा री मुहब्बत.
कभी सूर्य-किरणें तहा री मुहब्बत.१९.

पहले तो कर अनसुना री मुहब्बत.
मानी को फिर ले मना री मुहब्बत.२०.

चला तीर दिल पर शिकारी मुहब्बत.
दिल माँग ले न भिखारी मुहब्बत.२१.

सजा माँग में दिल पियारी मुहब्बत.
पिया प्रेम-अमृत पिया री मुहब्बत.२२.

रचा रास बृज में रचा री मुहब्बत.
हरि न कहें कुछ बचा री मुहब्बत.२३.

लिया दिल, लिया रे लिया री मुहब्बत.
दिया दिल, दिया रे दिया, री मुहब्बत.२४.

कुर्बान तुझ पर हुआ री मुहब्बत.
काहे सारिका से सुआ री मुहब्बत.२५.

दिया दिल लुटा तो क्या बाकी बचा है?
खाते में दिल कर जमा री मुहब्बत.२६.

दुनिया है मंडी खरीदे औ' बेचे.
कहीं तेरी भी हो न बारी मुहब्बत?२७.

सभी चाहते हैं कि दर से टरे पर
किसी से गयी है न टारी मुहब्बत.२८.

बँटे पंथ, दल, देश बोली में इंसां.
बँटने न पायी है यारी-मुहब्बत.२९.

तौलो अगर रिश्तों-नातों को लोगों
तो पाओगे सबसे है भारी मुहब्बत.३०.

नफरत के काँटे करें दिल को ज़ख़्मी.
मिलें रहतें कर दुआ री मुहब्बत.३१.

कभी माँगने से भी मिलती नहीं है.
बिना माँगे मिलती उदारी मुहब्बत.३२.

अफजल को फाँसी हो, टलने न पाये.
दिखा मत तनिक भी दया री मुहब्बत.३३.

शहादत है, बलिदान है, त्याग भी है.
जो सच्ची नहीं दुनियादारी मुहब्बत.३४.

धारण किया धर्म, पद, वस्त्र, पगड़ी.
कहो कब किसी ने है धारी मुहब्बत.३५.

जला दिलजले का भले दिल न लेकिन
कभी क्या किसी ने पजारी मुहब्बत?३६.

कबीरा-शकीरा सभी तुझ पे शैदा.
हर सूं गई तू पुकारी मुहब्बत.३७.

मुहब्बत की बातें करते सभी पर
कहता न कोई है नारी मुहब्बत?३८.

तमाशा मुहब्बत का दुनिया ने देखा
मगर ना कहा है 'अ-नारी मुहब्बत.३९.

चतुरों की कब थी कमी जग में बोलो?
मगर है सदा से अनारी मुहब्बत.४०.

बहुत हो गया, वस्ल बिन ज़िंदगी क्या?
लगा दे रे काँधा दे, उठा री मुहब्बत.४१.

निभाये वफ़ा तो सभी को हो प्यारी
दगा दे तो कहिये छिनारी मुहब्बत.४२.

भरे आँख-आँसू, करे हाथ सजदा.
सुकूं दे उसे ला बिठा री मुहब्बत.४३.

नहीं आयी करके वादा कभी तू.
सच्ची है या तू लबारी मुहब्बत?४४.

महज़ खुद को देखे औ' औरों को भूले.
कभी भी न करना विकारी मुहब्बत.४५.

हुआ सो हुआ अब कभी हो न पाये.
दुनिया में फिर से निठारी मुहब्बत.४६.
.
कभी मान का पान तो बन न पायी.
बनी जां की गाहक सुपारी मुहब्बत.४७.

उठाते हैं आशिक हमेशा ही घाटा.
कभी दे उन्हें भी नफा री मुहब्बत.४८.

न कौरव रहे कोई कुर्सी पे बाकी.
जो सारी किसी की हो फारी मुहब्बत.४९.

कलाई की राखी, कजलियों की मिलनी.
ईदी-सिवँइया, न खारी मुहब्बत.५०.

नथ, बिंदी, बिछिया, कंगन औ' चूड़ी.
पायल औ मेंहदी, है न्यारी मुहब्बत.५१.

करे पार दरिया, पहाड़ों को खोदा.
न तू कर रही क्यों कृपा री मुहब्बत?५२.

लगे अटपटी खटपटी चटपटी जो
कहें क्या उसे हम अचारी मुहब्बत?५३.

अमन-चैन लूटा, हुई जां की दुश्मन.
हुई या खुदा! अब बला री मुहब्बत.५४.

तू है बदगुमां, बेईमां जानते हम
कभी धोखे से कर वफा री मुहब्बत.५५.

कभी ख़त-किताबत, कभी मौन आँसू.
कभी लब लरजते, पुकारी मुहब्बत.५६.

न टमटम, न इक्का, नहीं बैलगाड़ी.
बसी है शहर, चढ़के लारी मुहब्बत.५७.

मिला हाथ, मिल ले गले मुझसे अब तो
करूँ दुश्मनों को सफा री मुहब्बत.५८.

तनिक अस्मिता पर अगर आँच आये.
बनती है पल में कटारी मुहब्बत.५९.

है जिद आज की रात सैयां के हाथों.
मुझे बीड़ा दे तू  खिला री मुहब्बत.६०.

न चौका, न छक्का लगाती शतक तू.
गुले-दिल खिलाती खिला री  मुहब्बत.६१.

न तारे, न चंदा, नहीं चाँदनी में
ये मनुआ प्रिया में रमा री मुहब्बत.६२.

समझ -सोच कर कब किसी ने करी है?
हुई है सदा बिन विचारी मुहब्बत.६३.

खा-खा के धोखे अफ़र हम गये हैं.
कहें सब तुझे अब अफारी मुहब्बत.६४.

तुझे दिल में अपने हमेशा है पाया.
कभी मुझको दिल में तू पा री मुहब्बत.65.

अमन-चैन हो, दंगा-संकट हो चाहे
न रोके से रुकती है जारी मुहब्बत.६६.

सफर ज़िंदगी का रहा सिर्फ सफरिंग
तेरा नाम धर दूँ सफारी मुहब्बत.६७.

जिसे जो न भाता उसे वह भगाता
नहीं कोई कहता है: 'जा री मुहब्बत'.६८.

तरसती हैं आँखें  झलक मिल न पाती.
पिया को प्रिया से मिला री मुहब्बत.६९.

भुलाया है खुद को, भुलाया है जग को.
नहीं रबको पल भर बिसारी मुहब्बत.७०.

सजन की, सनम की, बलम की चहेती.
करे ढाई आखर-मुखारी मुहब्बत.७१.

न लाना विरह-पल जो युग से लगेंगे.
मिलन शायिका पर सुला री मुहब्बत.७२.

उषा के कपोलों की लाली कभी है.
कभी लट निशा की है कारी मुहब्बत.७३. 

मुखर, मौन, हँस, रो, चपल, शांत है अब
गयी है विरह से उबारी मुहब्बत..

न तनकी, न मनकी,  न सुध है बदनकी.
कहाँ हैं प्रिया?, अब बुला री मुहब्बत.७४.

नफरत को, हिंसा, घृणा, द्वेष को भी
प्रचारा, न क्योंकर प्रचारी मुहब्बत?७५.

सातों जनम तक है नाता निभाना.
हो कुछ भी न डर, कर तयारी मुहब्बत.७६.

बसे नैन में दिल, बसे दिल में नैना.
सिखा दे उन्हें भी कला री मुहब्बत.७७.

कभी देवता की, कभी देश-भू की 
अमानत है जां से भी प्यारी मुहब्बत.७८.

पिए बिन नशा क्यों मुझे हो रहा है?
है साक़ी, पियाला, कलारी मुहब्बत.७९.

हो गोकुल की बाला मही बेचती है.
करे रास लीलाविहारी मुहब्बत.८०.

हवन का धुआँ, श्लोक, कीर्तन, भजन है.
है भक्तों की नग्मानिगारी मुहब्बत.८१.

ज़माने ने इसको कभी ना सराहा.
ज़माने पे पड़ती है भारी मुहब्बत.८२.

मुहब्बत के दुश्मन सम्हल अब भी जाओ.
नहीं फूल केवल, है आरी मुहब्बत.८३.

फटेगा कलेजा न हो बदगुमां तू.
सिमट दिल में छिप जा, समा री मुहब्बत.८४.

गली है, दरीचा है, बगिया है पनघट
कुटिया-महल है अटारी मुहब्बत.८५.

पिलाया है करवा से पानी पिया ने.
तनिक सूर्य सी दमदमा री मुहब्बत.८६.

मुहब्बत मुहब्बत है, इसको न बाँटो.
तमिल न मराठी-बिहारी मुहब्बत.८७.

न खापों का डर है न बापों की चिंता.
मिटकर निभा दे तू यारी मुहब्बत.८८.

कोई कर रहा है, कोई बच रहा है.
गयी है किसी से न टारी मुहब्बत.८९.

कली फूल कांटा है तितली- भ्रमर भी
कभी घास-पत्ती है डारी मुहब्बत.९०.

महल में मरे, झोपड़ी में हो जिंदा.
हथेली पे जां, जां पे वारी मुहब्बत.९१.

लगा दाँव पर दे ये खुद को, खुदा को.
नहीं बाज आये, जुआरी मुहब्बत.९२.

मुबारक है हमको, मुबारक है तुमको.
मुबारक है सबको, पिआरी मुहब्बत.९३.

रहे भाजपाई या हो कांगरेसी
न लेकिन कभी हो सपा री मुहब्बत.९४.

पिघल दिल गया जब कभी मृगनयन ने
बहा अश्क जीभर के ढारी मुहब्बत.९५.

जो आया गया वो न कोई रहा है.
अगर हो सके तो न जा री मुहब्बत.९६.

समय लीलता जा रहा है सभी को.
समय को ही क्यों न खा री मुहब्बत?९७.

काटे अनेकों लगाया न कोई.
कर फिर धरा को हरा री मुहब्बत.९८.

नंदन न अब देवकी के रहे हैं.
न पढ़ने को मिलती अयारी मुहब्बत.९९.

शतक पर अटक मत कटक पार कर ले.
शुरू कर नयी तू ये पारी मुहब्बत.१००.

न चौके, न छक्के 'सलिल' ने लगाये.
कभी हो सचिन सी भी पारी मुहब्बत.१०१.

'सलिल' तर गया, खुद को खो बेखुदी में
हुई जब से उसपे है तारी मुहब्बत.१०२.

'सलिल' शुबह-संदेह को झाड़ फेंके.
ज़माने की खातिर बुहारी मुहब्बत.१०३.

नए मायने जिंदगी को 'सलिल' दे.
न बासी है, ताज़ा-करारी मुहब्बत.१०४.

जलाती, गलाती, मिटाती है फिर भी
लुभाती 'सलिल' को वकारी मुहब्बत.१०५.

नहीं जीतकर भी 'सलिल' जीत पायी.
नहीं हारकर भी है हारी मुहब्बत.१०६.

नहीं देह की चाह मंजिल है इसकी.
'सलिल' चाहता निर्विकारी मुहब्बत.१०७.

'सलिल'-प्रेरणा, कामना, चाहना हो.
होना न पर वंचना री मुहब्बत.१०८.

बने विश्व-वाणी ये हिन्दी हमारी.
'सलिल' की यही कामना री मुहब्बत.१०९.

ये घपले-घुटाले घटा दे, मिटा दे.
'सलिल' धूल इनको चटा  री मुहब्बत.११०.

'सलिल' घेरता चीन चारों तरफ से.
बहुत सोये अब तो जगा री मुहब्बत.१११.

अगारी पिछारी से होती है भारी.
सच यह 'सलिल' को सिखा री मुहब्बत.११२.

'सलिल' कौन किसका हुआ इस जगत में?
न रह मौन, सच-सच बता री मुहब्बत.११३.

'सलिल' को न देना तू गारी मुहब्बत.
सुना गारी पंगत खिला री मुहब्बत.११४.

'सलिल' तू न हो अहंकारी मुहब्बत.
जो होना हो, हो निराकारी मुहब्बत.११५.

'सलिल' साधना वन्दना री मुहबत.
विनत प्रार्थना अर्चना री मुहब्बत.११६.

चला, चलने दे सिलसिला री मुहब्बत.
'सलिल' से गले मिल मिल-मिला री मुहब्बत.११७.

कभी मान का पान लारी मुहब्बत.
'सलिल'-हाथ छट पर खिला री मुहब्बत.११८.

छत पर कमल क्यों खिला री मुहब्बत?
'सलिल'-प्रेम का फल फला री मुहब्बत.११९.

उगा सूर्य जब तो ढला री मुहब्बत.
'सलिल' तम सघन भी टला री मुहब्बत.१२०.

'सलिल' से न कह, हो दफा री मुहब्बत.
है सबका अलग फलसफा री मुहब्बत.१२१.

लड़ाती ही रहती किला री मुहब्बत.
'सलिल' से न लेना सिला री मुहब्बत.१२२.

तनिक नैन से दे पिला री मुहब्बत.
मरते 'सलिल' को जिला री मुहब्बत.१२३.

रहे शेष धर, मत लुटा री मुहब्बत.
कल को 'सलिल' कुछ जुटा री मुहब्बत.१२४.

प्रभाकर की रौशन अटारी मुहब्बत.
कुटिया 'सलिल' की सटा री मुहब्बत.१२५.

********************************

19 टिप्‍पणियां:

navin c. chaturvedi. ने कहा…

Navin C. Chaturvedi

हाइश.................१ नहीं २ नहीं २५ नहीं ५० नहीं १०० भी नहीं, पूरे के पूरे १२१ शे'र|

कई बार पढ़ा, फिर पढ़ा, फिर पढ़ा और लगा कि सलिल जी ने समीक्षकों का काम वाकई काफ़ी कठिन कर दिया है|

सलिल जी आप ने तो सारे रिकार्ड तोड़ दिए|

तखल्लुस इस्तेमाल करने के रिकार्ड भी शायद टूटे हैं इस बार|

काफिया और रद्दिफ के बारे में भी शायद एक मिसाल लग रही है ये ग़ज़ल|

तरही के मिसरे को ग़ज़ल से संवाद में परिवर्तित करना दर्शनीय अंग है इस ग़ज़ल का|

ग़ज़ल की बारीक जानकारी रखने वाले लोग ही बता पाएँगे कि इस ग़ज़ल में क्या क्या खूबियाँ हैं| अन्य पाठकों की तरह मुझे भी उस्तादों की टिप्पणियों की प्रतीक्षा रहेगी इस ग़ज़ल पर|

बहरहाल मैं तो वही दोहराऊंगा:- "तजुर्बे का पर्याय नहीं"................. आप वाकई भिन्न हैं काफ़ी सारे लोगों से

सादर प्रणाम|

yograj prabhakar ने कहा…

Yograj Prabhakar
इसे कहते हैं (पंजाबी भाषा में) "सुनियार दी ठक ठक - लुहार दी इक्को सट्ट !" आचार्य जी, अभी थोडा आपके शेअरों से लुत्फंदोज़ हो लूँ, एक एक शेअर सवा सवा लाख का है - सभी पर अपने दिल की बात कहूँगा !

yograj prabhakar ने कहा…

Yograj Prabhakar

'सलिल' सद्गुणों की पुजारी मुहब्बत.
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत.१.

//मोहब्बत को इस बड़ी श्रधांजली, तथा तरही मिसरे को इस से बेहतर गिरह और क्या होगी ? //

गंगा सी पावन दुलारी मुहब्बत.
रही रूह की रहगुजारी मुहब्बत.२.

//रूह की रह्गुजारी - वाह वाह ! //

अजर है, अमर है हमारी मुहब्बत.
सितारों ने हँसकर निहारी मुहब्बत.३.

//बहुत खूब !//

महुआ है तू महमहा री मुहब्बत.
लगा जोर से कहकहा री मुहब्बत.४.

//महुए का महमाहाना - आ हा हा हा हा ! //

पिया बिन मलिन है दुखारी मुहब्बत.
पिया संग सलोनी सुखारी मुहब्बत.५.

//क्या बात है !//

सजा माँग सोहे भ'तारी मुहब्बत.
पिला दूध मोहे म'तारी मुहब्बत.६.

//दो अलग र्लग रंगों क़ी जुगलबंदी को ग़ज़ल के कनवास पर बहुत ही बेहतरीन ढंग से चित्रित किया है आपने आचार्य जी ! चटख रंग के साथ साथ अपनी मिट्टी की सोंधी सोंधी महक भी - बेहतरीन प्रयोग !//

नगद है, नहीं है उधारी मुहब्बत.
है शबनम औ' शोला दुधारी मुहब्बत.७.

//नगद और उधारी का फंडा समझ में नहीं आया आचार्य जी, अलबत्ता दूजा मिसरा बेहतरीन है ! //

माने न मन मनचला री मुहब्बत.
नयन-ताल में झिलमिला री मुहब्बत.८.

//आहा - मोहब्बत को आवाज़ देने का यह ढंग बहुत दिल्फ्काश है !//

नहीं ब्याहता या कुमारी मुहब्बत.
है पूजा सदा सिर नवा री, मुहब्बत.९.

//बढ़िया ख्याल है !//

जवां है हमारी-तुम्हारी मुहब्बत..
सबल है, नहीं है बिचारी मुहब्बत.१०.

//ये जज्बा और एतमाद भी काबिल-ए-तारीफ है !//

उजड़ती है दुनिया, बसा री मुहब्बत.
अमन-चैन थोड़ा तो ब्या री मुहब्बत.११.

//"ब्या" शब्द कमाल का इस्तेमाल किया है आचार्य जी !//

सम्हल चल, उमरिया है बारी मुहब्बत.
हो शालीन, मत तमतमा री मुहब्बत.१२.

//"उमरिया" और "बारी" से शेअर में आंचलिकता के जो रंग आपने भरे हैं - वो दिल जीतने वाले हैं !//


दीवाली का दीपक जला री मुहब्बत.
न बम कोई लेकिन चला री मुहब्बत.१३.

//ये मतला भी बढ़िया है !//

न जिस-तिस को तू सिर झुका री मुहब्बत.
जो नादां है कर दे क्षमा री मुहब्बत.१४.

//पहले मिसरे में "जिस तिस" के बाद "को तू" थोडा अटपटा सा लग रहा है ! जिस तिस के आगे तो सुना था लेकिन "जिस तिस को" यहाँ जाच नहीं रहा ! //

जहाँ सपना कोई पला री मुहब्बत.
वहीं मन ने मन को छला री मुहब्बत.१५.

//वाह वाह !//

न आये कहीं जलजला री मुहब्बत.
लजा मत तनिक खिलखिला री मुहब्बत.१६.

//लजाने मात्र से ज़लज़ला आचार्य जी ?//


अगर राज कोई खुला री मुहब्बत.
तो करना न कोई गिला री मुहब्बत.१७.

//बहुत खूब !//

बनी बात काहे बिगारी मुहब्बत?
जो बिगड़ी तो क्यों ना सुधारी मुहब्बत?१८.

//अच्छा सवाल किया है !//

कभी चाँदनी में नहा री मुहब्बत.
कभी सूर्य-किरणें तहा री मुहब्बत.१९.

//आचार्य जी. "तहा" शब्द का अर्थ समझ नहीं आया - कृपया रौशनी डालें !//

पहले तो कर अनसुना री मुहब्बत.
मानी को फिर ले मना री मुहब्बत.२०.

//"मानी" से क्या अभिप्राय: आचार्य जी ?//

yograj prabhakar ने कहा…

चला तीर दिल पर शिकारी मुहब्बत.
दिल माँग ले न भिखारी मुहब्बत.२१.

//बहुत खूब !//

सजा माँग में दिल पियारी मुहब्बत.
पिया प्रेम-अमृत पिया री मुहब्बत.२२.

//आहा हा हा हा हा हा !//

रचा रास बृज में रचा री मुहब्बत.
हरि न कहें कुछ बचा री मुहब्बत.२३.

//बहुत खूब ! मगर हरि की शिकायत के मद्देनज़र बजाये रास रचाने की सलाह के सब कुछ लुटा देने की शिक्षा यहाँ क्या ज्यादा उचित न होती ? !//

लिया दिल, लिया रे लिया री मुहब्बत.
दिया दिल, दिया रे दिया, री मुहब्बत.२४.

//क्या मोती पिरो दिए हैं आपने इस शेअर में - वाह ! //

कुर्बान तुझ पर हुआ री मुहब्बत.
काहे सारिका से सुआ री मुहब्बत.२५.

//अति उत्तम !//

दिया दिल लुटा तो क्या बाकी बचा है?
खाते में दिल कर जमा री मुहब्बत.२६.

//क्या बात है, दिल लुट भी गया और खाते में जमा भी उसी को करवाना है - बहुत आला !//

दुनिया है मंडी खरीदे औ' बेचे.
कहीं तेरी भी हो न बारी मुहब्बत?२७.

//बहुत खूब !//

सभी चाहते हैं कि दर से टरे पर
किसी से गयी है न टारी मुहब्बत.२८.

//बहुत खूब !//

बँटे पंथ, दल, देश बोली में इंसां.
बँटने न पायी है यारी-मुहब्बत.२९.

//बिलकुल सत्य कहा आचार्य जी !//

तौलो अगर रिश्तों-नातों को लोगों
तो पाओगे सबसे है भारी मुहब्बत.३०.

//बहुत खूब !//

नफरत के काँटे करें दिल को ज़ख़्मी.
मिलें रहतें कर दुआ री मुहब्बत.३१.

//"रहतें" या कि "राहतें ?"

कभी माँगने से भी मिलती नहीं है.
बिना माँगे मिलती उदारी मुहब्बत.३२.

//बहुत खूब !//

अफजल को फाँसी हो, टलने न पाये.
दिखा मत तनिक भी दया री मुहब्बत.३३.

//बहुत खूब !//

शहादत है, बलिदान है, त्याग भी है.
जो सच्ची नहीं दुनियादारी मुहब्बत.३४.

//आचार्य जी यहाँ "जो" शब्द थोडा सा भ्रम पैदा कर सकता है ! ("जो" = who , "जो" = that ) आपने संभवतय: "जो" को "अगर" की तरह प्रयोग किया है ! //

धारण किया धर्म, पद, वस्त्र, पगड़ी.
कहो कब किसी ने है धारी मुहब्बत.३५.

//कमाल की बात कही है आचार्य जी - वाह वाह !//

जला दिलजले का भले दिल न लेकिन
कभी क्या किसी ने पजारी मुहब्बत?३६.

//बहुत खूब !//

कबीरा-शकीरा सभी तुझ पे शैदा.
हर सूं गई तू पुकारी मुहब्बत.३७.

//बहुत खूब !//

मुहब्बत की बातें करते सभी पर
कहता न कोई है नारी मुहब्बत?३८.

//अति उत्तम - नारी सम्मान को उजागर करता यह शेअर बहुत सुन्दर है !//

तमाशा मुहब्बत का दुनिया ने देखा
मगर ना कहा है 'अ-नारी मुहब्बत.३९.

//बहुत खूब !//

चतुरों की कब थी कमी जग में बोलो?
मगर है सदा से अनारी मुहब्बत.४०.

yograj prabhakar ने कहा…

//बहुत खूब !//

बहुत हो गया, वस्ल बिन ज़िंदगी क्या?
लगा दे रे काँधा दे, उठा री मुहब्बत.४१.

//क्या कहने हैं इस शेअर के भी !//

निभाये वफ़ा तो सभी को हो प्यारी
दगा दे तो कहिये छिनारी मुहब्बत.४२.

//हाय हाय हाय - इंसानी दोमुहेपन की बात किस आसानी से कह गए आप आचार्य जी - वाह वाह !//

भरे आँख-आँसू, करे हाथ सजदा.
सुकूं दे उसे ला बिठा री मुहब्बत.४३.

//बहुत खूब !//

नहीं आयी करके वादा कभी तू.
सच्ची है या तू लबारी मुहब्बत?४४.

//आचार्य जी ये शेअर भर्ती का है !//

महज़ खुद को देखे औ' औरों को भूले.
कभी भी न करना विकारी मुहब्बत.४५.

//बहुत खूब !//

हुआ सो हुआ अब कभी हो न पाये.
दुनिया में फिर से निठारी मुहब्बत.४६.

//बहुत खूब !//

कभी मान का पान तो बन न पायी.
बनी जां की गाहक सुपारी मुहब्बत.४७.

//बहुत खूब !//

उठाते हैं आशिक हमेशा ही घाटा.
कभी दे उन्हें भी नफा री मुहब्बत.४८.

//बहुत खूब !//

न कौरव रहे कोई कुर्सी पे बाकी.
जो सारी किसी की हो फारी मुहब्बत.४९.

//बेहतरीन !//

कलाई की राखी, कजलियों की मिलनी.
ईदी-सिवँइया, न खारी मुहब्बत.५०.

//बहुत खूब !//

नथ, बिंदी, बिछिया, कंगन औ' चूड़ी.
पायल औ मेंहदी, है न्यारी मुहब्बत.५१.

//बहुत खूब !//

करे पार दरिया, पहाड़ों को खोदा.
न तू कर रही क्यों कृपा री मुहब्बत?५२.

//बहुत खूब, यहाँ "कृपा" शब्द को इस तरह से पिरोया है कि आनंद ही आ गया !//

लगे अटपटी खटपटी चटपटी जो
कहें क्या उसे हम अचारी मुहब्बत?५३.

//आचार्य जी ये शेअर भी भर्ती का ही है !//

अमन-चैन लूटा, हुई जां की दुश्मन.
हुई या खुदा! अब बला री मुहब्बत.५४.

//बहुत बढ़िया !//

तू है बदगुमां, बेईमां जानते हम
कभी धोखे से कर वफा री मुहब्बत.५५.

//वाह वाह ! "धोखे से कर वफ़ा" - बहुत खूब आचार्य जी !//

कभी ख़त-किताबत, कभी मौन आँसू.
कभी लब लरजते, पुकारी मुहब्बत.५६.

//मोहब्बत की आवाज़ की इतनी सारी बानगियाँ ? वाह वाह !!//

न टमटम, न इक्का, नहीं बैलगाड़ी.
बसी है शहर, चढ़के लारी मुहब्बत.५७.

//बहुत खूब !//

मिला हाथ, मिल ले गले मुझसे अब तो
करूँ दुश्मनों को सफा री मुहब्बत.५८.

//इस शेअर की खूबसूरती दूसरे मिसरे के "सफ़ा" शब्द में है ! यहाँ गालिबन "सफ़ा" का अर्थ "साफ" कर देने से है, लेकिन अगर यहाँ "सफ़ा" को यदि "पन्ना या पृष्ठ" भी मानकर पढ़ा जाए तो एक अर्थ बिना बदले हुए वो बात थोड़े दूसरे ढंग से स्पष्ट हो जाएगी कि दुश्मनों को "सफ़ा" यानि कि "हिस्टरी" बना दूँ ! //

तनिक अस्मिता पर अगर आँच आये.
बनती है पल में कटारी मुहब्बत.५९.

//बिलकुल सत्य कहा आचार्य जी !//

है जिद आज की रात सैयां के हाथों.
मुझे बीड़ा दे तू खिला री मुहब्बत.६०.

//ये सादगी, ये कोमल भाव, ये मासूम सी तमन्ना - बहुत ही मनभावन लगी आचार्य जी !//

yograj prabhakar ने कहा…

न चौका, न छक्का लगाती शतक तू.
गुले-दिल खिलाती खिला री मुहब्बत.६१.

//मोहब्बत को तो शायद "शून्य" ज्यादा अजीज़ है, लेकिन शेअरों शतक तो आपने लगाया है महामहिम !//

न तारे, न चंदा, नहीं चाँदनी में
ये मनुआ प्रिया में रमा री मुहब्बत.६२.

//बहुत ही कोमल भाव !//

समझ -सोच कर कब किसी ने करी है?
हुई है सदा बिन विचारी मुहब्बत.६३.

//बहुत खूब !//

खा-खा के धोखे अफ़र हम गये हैं.
कहें सब तुझे अब अफारी मुहब्बत.६४.

//आचार्य जी ये शेअर भी भर्ती का है, इसके बिना गुज़ारा हो सकता था !//

तुझे दिल में अपने हमेशा है पाया.
कभी मुझको दिल में तू पा री मुहब्बत.65.

//बहुत खूब !//

अमन-चैन हो, दंगा-संकट हो चाहे
न रोके से रुकती है जारी मुहब्बत.६६.

//बहुत खूब !//


सफर ज़िंदगी का रहा सिर्फ सफरिंग
तेरा नाम धर दूँ सफारी मुहब्बत.६७.

//अच्छा है !//

जिसे जो न भाता उसे वह भगाता
नहीं कोई कहता है: 'जा री मुहब्बत'.६८.

//बहुत खूब !//

तरसती हैं आँखें झलक मिल न पाती.
पिया को प्रिया से मिला री मुहब्बत.६९.

//क्या बात है !//

भुलाया है खुद को, भुलाया है जग को.
नहीं रबको पल भर बिसारी मुहब्बत.७०.

//बहुत खूब !//

सजन की, सनम की, बलम की चहेती.
करे ढाई आखर-मुखारी मुहब्बत.७१.

//ढाई आखर का इस प्रकार प्रयोग बहुत अच्छा लगा आचार्य जी !//

न लाना विरह-पल जो युग से लगेंगे.
मिलन शायिका पर सुला री मुहब्बत.७२.

//बहुत खूब !//

उषा के कपोलों की लाली कभी है.
कभी लट निशा की है कारी मुहब्बत.७३.

//ऊषा और निशा की सुन्दरता का बहुत सुन्दर चित्रण !//

मुखर, मौन, हँस, रो, चपल, शांत है अब
गयी है विरह से उबारी मुहब्बत..

//"गयी है विरह से" में शब्दों का क्रम ज़रा अजीब सा लग रहा है !//

न तनकी, न मनकी, न सुध है बदनकी.
कहाँ हैं प्रिया?, अब बुला री मुहब्बत.७४.

//ये शेअर झरने की सी रवानी लिए हुए है - वाह वाह वाह !//

नफरत को, हिंसा, घृणा, द्वेष को भी
प्रचारा, न क्योंकर प्रचारी मुहब्बत?७५.

//बहुत ही सुन्दर संदेश !//

सातों जनम तक है नाता निभाना.
हो कुछ भी न डर, कर तयारी मुहब्बत.७६.

//बहुत खूब !//

बसे नैन में दिल, बसे दिल में नैना.
सिखा दे उन्हें भी कला री मुहब्बत.७७.

//ये है असली रिवायती तगज्जुल - वाह वाह ! //

कभी देवता की, कभी देश-भू की
अमानत है जां से भी प्यारी मुहब्बत.७८.

//बहुत खूब !//

पिए बिन नशा क्यों मुझे हो रहा है?
है साक़ी, पियाला, कलारी मुहब्बत.७९.

//वाह वाह !//

हो गोकुल की बाला मही बेचती है.
करे रास लीलाविहारी मुहब्बत.८०.

//वाह वाह !//

Divya Narmada ने कहा…

हवन का धुआँ, श्लोक, कीर्तन, भजन है.
है भक्तों की नग्मानिगारी मुहब्बत.८१.

//बहुत खूब !//

ज़माने ने इसको कभी ना सराहा.
ज़माने पे पड़ती है भारी मुहब्बत.८२.

//बहुत खूब !//

मुहब्बत के दुश्मन सम्हल अब भी जाओ.
नहीं फूल केवल, है आरी मुहब्बत.८३.

//वाह वाह !//

फटेगा कलेजा न हो बदगुमां तू.
सिमट दिल में छिप जा, समा री मुहब्बत.८४.

//बहुत खूब !//

गली है, दरीचा है, बगिया है पनघट
कुटिया-महल है अटारी मुहब्बत.८५.

//बहुत खूब !//

पिलाया है करवा से पानी पिया ने.
तनिक सूर्य सी दमदमा री मुहब्बत.८६.

//क्या बात है इस शेअर की !//

मुहब्बत मुहब्बत है, इसको न बाँटो.
तमिल न मराठी-बिहारी मुहब्बत.८७.

//ये संदेश बहुत ही सम-सामयिक है, और जन जन तक पहुँचाने वाला भी - वाह ! //

न खापों का डर है न बापों की चिंता.
मिटकर निभा दे तू यारी मुहब्बत.८८.

//खाप पंचायतों और रूढ़ीवाद पर करार प्रहार !//

कोई कर रहा है, कोई बच रहा है.
गयी है किसी से न टारी मुहब्बत.८९.

//"गयी है किसी से" - शब्दों का कर्म देख लें !/


कली फूल कांटा है तितली- भ्रमर भी
कभी घास-पत्ती है डारी मुहब्बत.९०.

//बहुत खूब !//

महल में मरे, झोपड़ी में हो जिंदा.
हथेली पे जां, जां पे वारी मुहब्बत.९१.

//वाह वाह वाह !//

लगा दाँव पर दे ये खुद को, खुदा को.
नहीं बाज आये, जुआरी मुहब्बत.९२.

//वाह वाह वाह - बहुत खूब आचार्य जी !//


मुबारक है हमको, मुबारक है तुमको.
मुबारक है सबको, पिआरी मुहब्बत.९३.

//बहुत खूब//


रहे भाजपाई या हो कांगरेसी
न लेकिन कभी हो सपा री मुहब्बत.९४.

// हा हा हा हा , सपा ने ऐसा कर दिया आचार्य जी ?//

पिघल दिल गया जब कभी मृगनयन ने
बहा अश्क जीभर के ढारी मुहब्बत.९५.

//बहुत खूब !//

जो आया गया वो न कोई रहा है.
अगर हो सके तो न जा री मुहब्बत.९६.

//बहुत खूब !//

समय लीलता जा रहा है सभी को.
समय को ही क्यों न खा री मुहब्बत?९७.

//ये ख्याल बिलकुल नया है - वाह !!//

काटे अनेकों लगाया न कोई.
कर फिर धरा को हरा री मुहब्बत.९८.

//बहुत खूब !!//

नंदन न अब देवकी के रहे हैं.
न पढ़ने को मिलती अयारी मुहब्बत.९९.

//सही फरमा रहे हैं आचार्य जी !//

शतक पर अटक मत कटक पार कर ले.
शुरू कर नयी तू ये पारी मुहब्बत.१००.

//फील्डिंग साईड (टिप्पणीकारों) पर भी थोड़ी दया कीजिए आचार्य जी !! हा हा हा हा हा !!//

yograj prabhakar ने कहा…

न चौके, न छक्के 'सलिल' ने लगाये.
कभी हो सचिन सी भी पारी मुहब्बत.९६.

//अगले इवेंट में आप से दोहरे शतक की उम्मीद है आपके फैन्ज़ को !!//

'सलिल' तर गया, खुद को खो बेखुदी में
हुई जब से उसपे है तारी मुहब्बत.९७.

//बहुत खूब !//

'सलिल' शुबह-संदेह को झाड़ फेंके.
ज़माने की खातिर बुहारी मुहब्बत.९८.

//बहुत खूब !//

नए मायने जिंदगी को 'सलिल' दे.
न बासी है, ताज़ा-करारी मुहब्बत.९९.

//बहुत खूब !//

जलाती, गलाती, मिटाती है फिर भी
लुभाती 'सलिल' को वकारी मुहब्बत.१००.

//वाह वाह वाह !!//

नहीं जीतकर भी 'सलिल' जीत पायी.
नहीं हारकर भी है हारी मुहब्बत.१०१.

//क्या शब्द-शिल्प है आचार्य जी - वाह वाह !//

नहीं देह की चाह मंजिल है इसकी.
'सलिल' चाहता निर्विकारी मुहब्बत.१०२.

//बहुत खूब !//

'सलिल'-प्रेरणा, कामना, चाहना हो.
होना न पर वंचना री मुहब्बत.१०४.

//बहुत खूब !//

बने विश्व-वाणी ये हिन्दी हमारी.
'सलिल' की यही कामना री मुहब्बत.१०५.

//आपकी इस कामना में हम सब की दुआएं भी सम्मिलित हैं !//

ये घपले-घुटाले घटा दे, मिटा दे.
'सलिल' धूल इनको चटा री मुहब्बत.१०६.

//बहुत खूब !//

'सलिल' घेरता चीन चारों तरफ से.
बहुत सोये अब तो जगा री मुहब्बत.१०७.

//सही कह रहे हैं आचार्य जी, इस ड्रैगन का कोई भरोसा नही ! भाई कह कर पीठ पर वार करने वाले इस दानव से सावधानी बहुत ज़रूरी है !//

अगारी पिछारी से होती है भारी.
सच यह 'सलिल' को सिखा री मुहब्बत.१०८.

//आचार्य जी इस ग़ज़ल में भर्ती बहुत की है शेअरों की आपने !!//

'सलिल' कौन किसका हुआ इस जगत में?
न रह मौन, सच-सच बता री मुहब्बत.१०९.

//बहुत खूब !//

'सलिल' को न देना तू गारी मुहब्बत.
सुना गारी पंगत खिला री मुहब्बत.११०.

//बहुत खूब !//

'सलिल' तू न हो अहंकारी मुहब्बत.
जो होना हो, हो निराकारी मुहब्बत.१११.

//बहुत खूब !//

'सलिल' साधना वन्दना री मुहबत.
विनत प्रार्थना अर्चना री मुहब्बत.११२.

//आ हा हा हा हा हा हा - बहुत ही निर्मल भाव !!//

चला, चलने दे सिलसिला री मुहब्बत.
'सलिल' से गले मिल मिल-मिला री मुहब्बत.११३.

//बहुत खूब !//

कभी मान का पान लारी मुहब्बत.
'सलिल'-हाथ छट पर खिला री मुहब्बत.११४.

//क्या कहने हैं आचार्य जी !//

छत पर कमल क्यों खिला री मुहब्बत?
'सलिल'-प्रेम का फल फला री मुहब्बत.११५.

//बहुत खूब !//

उगा सूर्य जब तो ढला री मुहब्बत.
'सलिल' तम सघन भी टला री मुहब्बत.११६.

//बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ - वाह वाह !!//

'सलिल' से न कह, हो दफा री मुहब्बत.
है सबका अलग फलसफा री मुहब्बत.११७.

//ये भी अच्छा है !//

लड़ाती ही रहती किला री मुहब्बत.
'सलिल' से न लेना सिला री मुहब्बत.११८.

//बहुत खूब !//

तनिक नैन से दे पिला री मुहब्बत.
मरते 'सलिल' को जिला री मुहब्बत.११९.

//बहुत खूब !//

रहे शेष धर, मत लुटा री मुहब्बत.
कल को 'सलिल' कुछ जुटा री मुहब्बत.१२०.

//बहुत आला !//

प्रभाकर की रौशन अटारी मुहब्बत.
कुटिया 'सलिल' की सटा री मुहब्बत.१२१.

//बहुत ही सुंदर अंतिम शेअर आचार्य जी !//

आपकी इस १२१ शेअरों की ग़ज़ल को पढने और उस पर अपने विचार लिखते बेशक कई घंटे लग गए - लेकिन ऐसी सम्पूर्ण काव्य-कृति पढ़ कर मानो आज का दिन सकीरत हो गया ! इस बेहद सुन्दर और सार्थक ग़ज़ल के लिए मैं दिल से आपको साधुवाद देते हुए मैं बहुत ही गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ आचार्य जी !

navin c. chaturvedi. ने कहा…

Navin C. Chaturvedi

सलिल जी को प्रणाम इतने सारे शे'र लिखने के लिए और भाई योगराज जी आपको भी शत शत अभिनंदन एक एक शे'र को चुन चुन के विवेचित करने के लिए| आप दोनो वाकई धन्य हैं|

Divya Narmada ने कहा…

आत्मीय जनों.
वन्दे मातरम.
२४२ पंक्तियों के मुहब्बतनामे को पढ़ने और प्रतिक्रिया व्यक्त करनेवालों के सब्र को सलाम. भाई योगराज प्रभाकर जी और नवीन जी ने जो हौसलाअफजाई की उसका शुक्रिया. कमियों और गलतियों को मानने और सुधारने से परहेज नहीं है... कुछ बिन्दुओं पर अपनी बात स्पष्ट करना चाहता हूँ.

नगद है, नहीं है उधारी मुहब्बत.
है शबनम औ' शोला दुधारी मुहब्बत.७.

//नगद और उधारी का फंडा समझ में नहीं आया आचार्य जी, अलबत्ता दूजा मिसरा बेहतरीन है ! //

नगद में लेन-देन एक साथ होता है, उधारी में अलग-अलग. जब प्रेम का आदान-प्रदान दोनों ओर से एक साथ हो तो नगद... जब एक ओर से हो दूसरी ओर से होना शेष रह जाये तो उधारी... इस अर्थ में प्रयोग है.

न जिस-तिस को तू सिर झुका री मुहब्बत.
जो नादां है कर दे क्षमा री मुहब्बत.१४.

//पहले मिसरे में "जिस तिस" के बाद "को तू" थोडा अटपटा सा लग रहा है ! जिस तिस के आगे तो सुना था लेकिन "जिस तिस को" यहाँ जाच नहीं रहा ! //

प्रभु के आगे शीश नवाता हूँ के / प्रभु को शीश नवाता हूँ इन दोनों का प्रयोग इस अंचल में होता है... यही छूट ली गयी है.

न आये कहीं जलजला री मुहब्बत.
लजा मत तनिक खिलखिला री मुहब्बत.१६.

//लजाने मात्र से ज़लज़ला आचार्य जी ?//

मुहब्बत मिलन की खुशी खिलखिलाकर व्यक्त करना चाहती है, लाज के कारण नहीं कर रही है. हार्दिक प्रसन्नता को कलेजे में दबाने के कारण जलजला होने की सम्भावना होने से लाज को परे रख खिलखिलाने का मशवरा है.

कभी चाँदनी में नहा री मुहब्बत.
कभी सूर्य-किरणें तहा री मुहब्बत.१९.

//आचार्य जी. "तहा" शब्द का अर्थ समझ नहीं आया - कृपया रौशनी डालें !//

तहाना याने समेटकर रखना. शीतल चाँदनी में नहाने के बाद ठण्ड भागने के लिये सूर्य की तप्त किरणों को समेटने की बात है.

पहले तो कर अनसुना री मुहब्बत.
मानी को फिर ले मना री मुहब्बत.२०.

//"मानी" से क्या अभिप्राय: आचार्य जी ?//

मानिनी = प्रेमिका, मानी = मान करनेवाला = प्रेमी.

Divya Narmada ने कहा…

रचा रास बृज में रचा री मुहब्बत.
हरि न कहें कुछ बचा री मुहब्बत.२३.

//बहुत खूब ! मगर हरि की शिकायत के मद्देनज़र बजाये रास रचाने की सलाह के सब कुछ लुटा देने की शिक्षा यहाँ क्या ज्यादा उचित न होती ? !//

रास रचनेवाली तो हरि पर पहले ही सब कुछ लुटा चुकी होती हैं. रास में तो सुध-बुध भी खो जाती हैं.

नफरत के काँटे करें दिल को ज़ख़्मी.
मिलें रहतें कर दुआ री मुहब्बत.३१.

//"रहतें" या कि "राहतें ?"

आपने ठीक पकड़ा... टंकण त्रुटि हेतु खेद है. 'राहतें ही है.

शहादत है, बलिदान है, त्याग भी है.
जो सच्ची नहीं दुनियादारी मुहब्बत.३४.

//आचार्य जी यहाँ "जो" शब्द थोडा सा भ्रम पैदा कर सकता है ! ("जो" = who , "जो" = that ) आपने संभवतय: "जो" को "अगर" की तरह प्रयोग किया है ! //

प्रभाकर जी आपकी पैनी दृष्टि को नमन. 'गर' की जगह 'जो' का प्रयोग है.

नहीं आयी करके वादा कभी तू.
सच्ची है या तू लबारी मुहब्बत?४४.

//आचार्य जी ये शेअर भर्ती का है !//

सहमत.

लगे अटपटी खटपटी चटपटी जो
कहें क्या उसे हम अचारी मुहब्बत?५३.

//आचार्य जी ये शेअर भी भर्ती का ही है !//

सहमत.

खा-खा के धोखे अफ़र हम गये हैं.
कहें सब तुझे अब अफारी मुहब्बत.६४.

//आचार्य जी ये शेअर भी भर्ती का है, इसके बिना गुज़ारा हो सकता था !//

सहमत.

मुखर, मौन, हँस, रो, चपल, शांत है अब
गयी है विरह से उबारी मुहब्बत..

//"गयी है विरह से" में शब्दों का क्रम ज़रा अजीब सा लग रहा है !//

सही... 'विरह से गई है उबारी मुहब्बत' किया जा सकता है.

कोई कर रहा है, कोई बच रहा है.
गयी है किसी से न टारी मुहब्बत.८९.

//"गयी है किसी से" - शब्दों का कर्म देख लें !/

सहमत. 'किसी से गयी है' किया जा सकता है.

रहे भाजपाई या हो कांगरेसी
न लेकिन कभी हो सपा री मुहब्बत.९४.

// हा हा हा हा , सपा ने ऐसा कर दिया आचार्य जी ?//

वैसे तो यह सिर्फ मजाहिया शे'र है. सपा ने समाजवादी आन्दोलन और विचारधारा का कुर्सी के लिये खत्म कर दिया. बाजपा और कोंग्रेस सब कुछ के बाद भी अपनी विचारधारा को जिन्दा रखे हैं. इस पृष्ठभूमि में यह द्विपदी है.

अगारी पिछारी से होती है भारी.
सच यह 'सलिल' को सिखा री मुहब्बत.१०८.

//आचार्य जी इस ग़ज़ल में भर्ती बहुत की है शेअरों की आपने !!//

शिल्प की दृष्टि से 'पिछाड़ी से अगाड़ी भारी होती है' मुहावरे का प्रयोग इस शे'र में है. कहन में सादगी है. अर्थवत्ता मुहावरे का अर्थ लेने पर प्रतीत हुई. शेष सहमत हूँ. सच यह है कि किसी भी शे'र को दुबारा देखने का अवसर नहीं पा सका. भारती के शे'रों के लिये खेद है.

पुनः ओबीओ परिवार और संचालकों का आभार.

Shekhar Chaturvedi ने कहा…

Wondorfull!!!!!!!!

dr. sanjay dani ने कहा…

Dr. Sanjay dani

सर्व प्रथम 121 अशआर के लिये तहे दिल मुबारक बाद और आपको सलाम,

"री मुहब्बत"को अधिकांश वाक्यों में कर्ता बनाकर काफ़िया -रदीफ़ को इस तरह जोड़ीदार बना दिया

कि बड़ी आसानी से सैकड़ों शे'र कह डाले। "री मुहब्बत" को कर्ता बनाना आपके कथ्य की सबसे बड़ी ख़ूबी है

जो दूसरों का भी मार्ग दर्शन करेगी , इक नये तरह से सोचने की । बाक़ी आगे लिखूंगा।

Digamber Naswa ने कहा…

१२१ शेरों का सगन ... वाह आचार्य जी .. चाहिए तो था की हम आपको गुरु दक्षिणा दें पर आपने सब को ज्ञान की वर्षा कर दी ... आनद की लहरों में नर्तन कर रहा हूँ .....

Digamber Naswa ने कहा…

कहने को कुछ भी बाकी नही रहा ... कहाँ काफियों की कमी क़ाहसूस कर रहे थे हम तो ... कहाँ आपने तो सूनामी ला दिया काफियों का ...

नमन है सलिल जी कलाम को तुम्हारी

ज़ुबाँ कुछ नही बोल सकती हमारी ....

sn Sharma ने कहा…

धन्य है आचार्य सलिल जी !
आपकी गगनचुम्बी प्रतिभा के सामने नतमस्तक हूँ | मुहब्बत पर इतने दृष्टिकोणों से शब्द-चित्र
की विशद प्रस्तुति शायद ही एक साथ कहीं हुई हो | इतनी सहज भी और गंभीर भी मनोरंजक
कृतित्व के लिये कुछ कमल-कुसुम आपको समर्पित -
सजा मुक्तिका छंद में योँ मुहब्बत
रोचक सवारी निकारी सलिल ने
शतक पर न अटका ये अदभुत खिलाड़ी
सवासौ कि पारी उतारी सलिल ने

गुणगान कर के मुहब्बत का ऐसा
गागर में सागर भराया सलिल ने
सीमायें भी इसकी सारी गिनाईं
बता वर्जनाएं डराया सलिल ने

मुहब्बत को इतना जांचा या परखा
कभी क्या किसी ने कि जितना सलिल ने
नमन है उस जादूगर लेखनी को
दिये शब्द जिसको महाकवि सलिल ने

कमल

kusum sinha ने कहा…

priy sanjiv ji
aapki vidwata ki prashansa karna sury ko deepak dikhane jaisa hai har kavita apne me bejod hoti hai badhai bahut bahut baur aapki vidwata ko sau sau bar naman
kusum

achal verma ने कहा…

१७


मुहब्बत, है ये मोह की बात
न तो ये प्रेम ही है और नही प्रीत |
राह चलते बजाएं सीटी
यही मुहब्बत करने की है रीत |
भाव गंदे हों तो फिर अर्थ बदल जाते हैं
सच्चे अर्थों में क्या प्रेमी यहाँ मिल पाते हैं |
प्रेम में बस दिया ही जाता है
लेने की कोई भावना उसमे कभी नहीं होती
सुना है प्रेम तो किया भी नहीं जाता है
वोतो बस भावना समर्पण की दिलों में है बोती|

Your's ,

Achal Verma

shyam gupta ने कहा…

सब ठीक है----ग़ज़ल तो सुन्दर है -----परन्तु इतनी लम्बाई किसी भी रचना का अवगुण होता है ....मूल उद्देश्य व तथ्य गायब होजाता है और पाठक भी भूल जाता है कि कहाँ से प्रारम्भ हुआ था, क्या विषय था.....