कुल पेज दृश्य

रविवार, 1 नवंबर 2020

मेजर शैतान सिंह

मेजर शैतान सिंह


जन्म : १ दिसंबर १९२४, जोधपुर राज्य। 
शहादत : १८ नवंबर १९६२, रेजांग ला वॉर मेमोरियल, अहिर धामपुर।
पत्नी: शगुन कंवर (विवाह –१९६२) ।
माता-पिता: हेम सिंह भाटी।
परमवीर चक्र (मरणोपरांत): १९६३। 
पराक्रम कथा :


अक्टूबर १९६२ में चीन ने भारत पर आक्रमण किया। १३ वीं कुमाऊंनी बटालियन की सी कंपनी के १२० जवान लद्दाख में तैनात थे। १८ नवंबर १९६२ को २००० चीनी सैनिकों ने रेजांग ला में भारतीय सीमा का अतिक्रमण किया। चीनी मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में वीर सैनिकों ने हाड़ जमा देने वाली भीषण शीत में पर्याप्त कपड़ों और आधुनिक हथियारों के बिना चीनी सैनिकों का सामना किया। चीनी सेना अपेक्षाकृत उन्नत शस्त्रास्त्रोँ और साजो सामान से सुसज्जित थी। 
अनूठी रणनीति 
जब शैतान सिंह को आभास हुआ चीन की ओर से बड़ा हमला होने वाला है तो उन्होंने अपने अधिकारियों को रेडियो संदेश भेजा और मदद माँगी। विधि की विडंबना कि खराब मौसम के कारण कोई मदद पहुँचाना संभव नहीं हो सका। अत:, उनसे कहा गया कि सभी सैनिकों को लेकर चौकी छोड़कर पीछे हट जाओ। स्वाभिमानी मेजर शैतान सिंह ने हार मानकर पीछे न हटने का फैसला लिया। वह बखूबी जानते थे कि वक्त कम है और चीनी सेना कभी भी हमला बोल सकती है। ऐसी विषम परिस्थिति में तुरंत उन्होंने अपने सैनिकों को बुलाया और कहा- "हम १२० हैं, दुश्मनों की संख्या हमसे ज्यादा हो सकती है। पीछे से हमें कोई मदद नहीं मिल रही है। हो सकता है हमारे पास मौजूद हथियार कम पड़ जाए। हो सकता है हम से कोई न बचे और हम सब शहीद हो जाएँ, जो भी अपनी जान बचाना चाहते हैं वह पीछे हटने के लिए आजाद हैं, लेकिन मैं मरते दम तक मुकाबला करूँगा। मेजर शैतान सिंह ने संसाधनों की कमी और शत्रुओं की अधिक सैनिक संख्या को देखते हुए एक रणनीति तैयार की ताकि एक भी गोली बर्बाद न जाए। हर गोली निशाने पर लगे और शत्रु सैनिक के मारे जाने पर उनसे बंदूकें तथा कारतूस आदि छीन लिए जाएँ। 
चीनी सेना के दाँत खट्टे हुए
चीनी सेना ये मान चुकी थी कि भारतीय सेना ने चौकी छोड़ दी है। वह नहीं जानती थी उसका सामना जाबांज शैतान सिंह और उनके पराक्रमी वीर सैनिकों के साथ है। सवेरे लगभग ५ बजे भारतीय सैनिकों ने चीनी सेना पर गोली बरसाकर दुश्मनों को ढेर कर दिया। हर तरफ शत्रु सैनिकों की लाशें पड़ी थीं। मेजर शैतान सिंह ने कहा था कि यह मत समझो युद्ध का अंत हो गया है, यह तो सिर्फ शुरुआत है। कुछ समय बाद चीन ने दोबारा आक्रमण किया। लड़ते-लड़ते भारतीय सैनिकों के पास केवल ५-७ गोलियाँ बचीं। चीनियों ने रेजांग ला में मोर्टार तथा रॉकेटों से भारी गोलीबारी शुरू कर दी। भारतीय सैनिकों को केवल अपने जोश का सहारा था, क्योंकि रेजांग ला पर भारतीय बंकर भी नहीं थे और दुश्मन रॉकेट पर रॉकेट दागे जा रहा था। लड़ते हुएमेजर शैतान सिंह के हाथ में गोली भी लग चुकी थी। 
दूरंदेश मेजर शैतान सिंह
मेजर शैतान सिंह अच्छे से जानते थे कि २००० चीनी सैनिकों और उन्नत हथियारों का केवल १२० भारतीय अपेक्षाकृत कम उन्नत हत्यारों के साथ भारतीय सेना बहुत देर तक सामना नहीं कर सकेगी। यह भी कि सभी जवान शहीद हो गए तो भारत के लोग और सरकार यह बात कभी नहीं जान सकेगी कि आखिर रेजांग ला में क्या हुआ था? उन्होंने दो घायल सैनिकों रामचंद्र और निहाल सिंह से कहा कि वह तुरंत पीछे चले चले जाएँ। निहाल सिंह को चीनी सैनिकों ने पकड़ लिया और अपने साथ ले गए। १३ वीं कुमाऊँ बटालियन की इस पलटन में १२० में से केवल १४ जवान जिंदा बचे थे जिनमें से ९ गंभीर रूप से घायल थे. बता दें। भारत के केवल जवानों ने १३०० चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। बाद में चीन ने अपनी आधिकारिक रिपोर्ट में ये कबूल कर लिया कर लिया था कि १९६२ के युद्ध में सबसे ज्यादा नुकसान इसी मोर्चे पर हुआ था। 
जब बर्फ में दबे मिले शव
युद्ध को खत्म हुए ३ महीने हो गए थे किन्तु मेजर शैतान सिंह और उनके सैनिकों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी थी। मौसम बदलने के साथ रेजांग ला की बर्फ पिघली और रेड क्रॉस सोसायटी और सेना के जवानों ने उन्हें खोजना शुरू किया। एक दिन एक गड़रिये अपनी भेड़ें चराने रेजांग की ओर जा रहा था। उसे बड़ी सी चट्टान में वर्दी में कुछ नजर आया। उसने तुरंत यह सूचना वहाँ पदस्थ सैन्य अधिकारियों को दी। सेना ने अविलंब वाहन पहुँचकर जांच-पड़ताल की। उन्होंने जो दृश्य देखा, उसे देखकर सबके होश उड़ गए। एक-एक सैनिक उस दिन भी अपनी-अपनी बंदूकें थामे ऐसे बैठे थे मानो अभी भी लड़ाई चल रही हो। उनमें शैतान सिंह भी अपनी बंदूक थामे बैठे थे। ऐसा लग रहे थे जैसे मानो अभी भी युद्ध के लिए तैयार हैं। युद्ध कितनी दे तक चला यह तो जानकारी नहीं मिल सकी किन्तु यह स्पष्ट हो गया था कि मेजर शैतान सिंह अपने बहादुर जवानों के साथ अंतिम गोली और अंतिम सांस तक देश के लिए लड़ते रहे थे और लड़ते-लड़ते बर्फ की आगोश में आ गए थे। मेजर शैतान सिंह का उनके होमटाउन जोधपुर में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। उन्हें देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। आज रेजांग ला आज शूरवीरों का तीर्थ है। मेजर शैतान सिंह और उनकी बटालियन सैनिकों का अद्वितीय पराक्रम सैन्य इतिहास में अमर हो गया।
***

शनिवार, 31 अक्टूबर 2020

सराइकी दोहा

सराइकी दोहा:
भाषा विविधा:
दोहा सलिला सिरायकी :
संजीव
[सिरायकी पाकिस्तान और पंजाब के कुछ क्षेत्रों में बोले जानेवाली लोकभाषा है. सिरायकी का उद्गम पैशाची-प्राकृत-कैकई से हुआ है. इसे लहंदा, पश्चिमी पंजाबी, जटकी, हिन्दकी आदि भी कहा गया है. सिरायकी की मूल लिपि लिंडा है. मुल्तानी, बहावलपुरी तथा थली इससे मिलती-जुलती बोलियाँ हैं. सिरायकी में दोहा छंद अब तक मेरे देखने में नहीं आया है. मेरे इस प्रथम प्रयास में त्रुटियाँ होना स्वाभाविक है. जानकार पाठकों से त्रुटियाँ इंगित करने तथा सुधार हेतु सहायता का अनुरोध है.]
*
बुरी आदतां दुखों कूँ, नष्ट करेंदे ईश।
साडे स्वामी तुवाडे, बख्तें वे आशीष।।
*
रोज़ करन्दे हन दुआ, तेडा-मेडा भूल।
अज सुणीज गई हे दुआं,त्रया-पंज दा भूल।।
*
दुक्खां कूँ कर दूर प्रभु, जग दे रचनाकार।
डेवणवाले देवता, वरण जोग करतार।।
*
कोई करे तां क्या करे, हे बदलाव असूल।
कायम हे उम्मीद पे, दुनिया कर के भूल।।
*
शर्त मुहाणां जीत ग्या, नदी-किनारा हार।
लेणें कू धिक्कार हे, देणे कूँ जैकार।।
*
२९.५.२०१५

गीत मेरे भैया

भाई दूज पर विशेष रचना :
मेरे भैया
संजीव 'सलिल'
*
मेरे भैया!,
किशन कन्हैया...
*
साथ-साथ पल-पुसे, बढ़े हम
तुमको पाकर सौ सुख पाये.
दूर हुए एक-दूजे से हम
लेकिन भूल-भुला न पाये..
रूठ-मनाने के मधुरिम दिन
कहाँ गये?, यह कौन बताये?
टीप रेस, कन्ना गोटी है कहाँ?
कहाँ है 'ता-ता थैया'....
*
मैंने तुमको, तुमने मुझको
क्या-क्या दिया, कौन बतलाये?
विधना भी चाहे तो स्नेहिल
भेंट नहीं वैसी दे पाये.
बाकी क्या लेना-देना? जब
हम हैं एक-दूजे के साये.
भाई-बहिन का स्नेह गा सके
मिला न अब तक कोई गवैया....
*
देकर भी देने का मन हो
देने की सार्थकता तब ही.
तेरी बहिना हँसकर ले-ले
भैया का दुःख विपदा अब ही..
दूज-गीत, राखी-कविता संग
तूने भेजी खुशियाँ सब ही.
तेरी चाहत, मेरी ताकत
भौजी की सौ बार बलैंया...
*****
संजीव
९४२५१८३२४४

मुक्तक

मुक्तक 
संजीव 
*
वामन दर पर आ विराट खुशियाँ दे जाए
बलि के लुटने से पहले युग जय गुंजाए
रूप चतुर्दशी तन-मन निर्मल कर नव यश दे
पंच पर्व पर प्राण-वर्तिका तम पी पाए
*

छंद, सवैया

एक सवैया छंद
*
विदा दें, बाद में बात करेंगे, नेता सा वादा किया, आज जिसने
जुमला न हो यह, सोचूँ हो हैरां, ठेंगा दिखा ही दिया आज उसने
गोदी में खेला जो, बोले दलाल वो, चाचा-भतीजा निभाएं न कसमें
छाती कठोर है नाम मुलायम, लगें विरोधाभास ये रसमें
*

मुक्तक

मुक्तक
*
स्नेह का उपहार तो अनमोल है
कौन श्रद्धा-मान सकता तौल है?
भोग प्रभु भी आपसे ही पा रहे
रूप चौदस भावना का घोल है
*
स्नेह पल-पल है लुटाया आपने।
स्नेह को जाएँ कभी मत मापने
सही है मन समंदर है भाव का
इष्ट को भी है झुकाया भाव ने
*
फूल अंग्रेजी का मैं,यह जानता
फूल हिंदी की कदर पहचानता
इसलिए कलियाँ खिलता बाग़ में
सुरभि दस दिश हो यही हठ ठानता
*
उसी का आभार जो लिखवा रही
बिना फुरसत प्रेरणा पठवा रही
पढ़ाकर कहती, लिखूँगी आज पढ़
सांस ही मानो गले अटका रही
*

नवगीत: नेता

नवगीत: 
नेता 
संजीव 
*
ज़िम्मेदार
नहीं है नेता
छप्पर औरों पर
धर देता
वादे-भाषण
धुआंधार कर
करे सभी सौदे
उधार कर
येन-केन
वोट हर लेता
सत्ता पाते ही
रंग बदले
यकीं न करना
किंचित पगले
काम पड़े
पीठ कर लेता
रंग बदलता
है पल-पल में
पारंगत है
बेहद छल में
केवल अपनी
नैया खेता
***

नवगीत

नवगीत:
सुख-सुविधा में
मेरा-तेरा
दुःख सबका
साझा समान है
पद-अधिकार
करते झगड़े
अहंकार के
मिटें न लफ़ड़े
धन-संपदा
शत्रु हैं तगड़े
परेशान सब
अगड़े-पिछड़े
मान-मनौअल
समाधान है
मिल-जुलकर जो
मेहनत करते
गिरते-उठते
आगे बढ़ते
पग-पग चलते
सीढ़ी चढ़ते
तार और को
खुद भी तरते
पगतल भू
करतल वितान है
***
२८ -११-२०१४
संजीवनी चिकित्सालय रायपुर

नवगीत

नवगीत :
देव सोये तो
सोये रहें
हम मानव जागेंगे
राक्षस
अति संचय करते हैं
दानव
अमन-शांति हरते हैं
असुर
क्रूर कोलाहल करते
दनुज
निबल की जां हरते हैं
अनाचार का
शीश पकड़
हम मानव काटेंगे
भोग-विलास
देवता करते
बिन श्रम सुर
हर सुविधा वरते
ईश्वर पाप
गैर सर धरते
प्रभु अधिकार
और का हरते
हर अधिकार
विशेष चीन
हम मानव वारेंगे
मेहनत
अपना दीन-धर्म है
सच्चा साथी
सिर्फ कर्म है
धर्म-मर्म
संकोच-शर्म है
पीड़ित के
आँसू पोछेंगे
मिलकर तारेंगे
***
२८ -११-२०१४
संजीवनी चिकित्सालय रायपुर

शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2020

अभियान जबलपुर



अभियान जबलपुर : एक परिचय 

२० अगस्त १९७३ को समन्वय अभियान जबलपुर संस्था का गठन १६२० कोतवाली वार्ड, राजा सागर मार्ग, जबलपुर में किया गया। संथा का उद्देश्य साहित्यिक-सामाजिक-सांस्कृतिक एकता को सुदृढ़ कर सदस्यों की प्रतिभा का विकास करने हेतु विधान सम्मत गतिविधियाँ संचालित करना निश्चित किया गया। संस्था के संरक्षक श्री राजबहादुर वर्मा (अब स्व.), सुश्री आशा वर्मा, इंजी. संजीव वर्मा 'सलिल', इंजी. अशोक नौगरइया, श्री राजेश वत्सल (अब स्व.) बने। संस्था ने मासिक गोष्ठियों के माध्यम से नगर के बुद्धिजीवियों का आशीष और युवाओं का अकल्पनीय सहयोग पाया। संस्था का पंजीयन क्रमांक जे जे ३८९० है। 
  
महाकवि रामेश्वर शुक्ल 'अंचल', डॉ. जवाहल  लाल चौरसिया 'तरुण', डॉ. पूनमचंद्र तिवारी, डॉ. सत्यनारायण प्रसाद, राजेंद्र तिवारी, आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी, सुधारानी श्रीवास्तव, डॉ. छाया राय, विश्वनाथ दुबे, डॉ. चित्रा चतुर्वेदी, के. बी. सक्सेना, डॉ. सुमित्र, मोहन शशि, आशा रिछारिया, आचार्य भगवत दुबे, मनमोहन दुबे, सुभाष पांडे, मनमोहन दुबे, इंजी. मुरलीधर दुबे,   रामेन्द्र तिवारी, डॉ. गार्गीशरण मिश्र, साधना उपाध्याय, डॉ. अनामिका तिवारी, छाया त्रिवेदी, जगदीश किंजल्क, श्यामा शांडिल्य, किरण दुबे, आशा जड़े, उषा नावलेकर, इंजी गोपाल कृष्ण चौरसिया मधुर, इंजी सुरेंद्र पवार, इंजी शिव कुमार चौबे, रत्न ओझा, नलिन सूर्यवंशी, दुर्गेश ब्योहार, संध्या श्रुति, विजय किसलय,  निर्मल अग्रवाल, हरी ठाकुर, गिरीश पंकज, चेतन भारती, डॉ, विनय पाठक  आदि ने संस्था को समय-समय पर महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान किया।   

25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 आपातकाल के दौरान डॉ. रामजी सिंह के मार्गदर्शन में संस्था ने जयप्रकाश नारायण जी के नेतृत्व में संपूर्ण क्रांति संबंधी अनेक आयोजन किये जिन्हें सर्व स्व. दादा धर्माधिकारी, द्वारकाप्रसाद मिश्र, सत्येंद्र मिश्रा,गणेश प्रसाद नायक, ब्योहार राजेंद्र सिंह, कालिकाप्रसाद दीक्षित 'कुसुमाकर', बाबूराव परांजपे, बद्रीनाथ गुप्ता, बल्लभदास जैन, निर्मल चंद्र जैन, भगवती धर बाजपेयी, प्रभाकर रुसिआ आदि का आशीष और सहयोग मिला। लोकनायक व्याख्यानमाला के अंतर्गत डॉ. रामजी सिंह, सुब्बाराव जी, यदुनाथ थत्ते, इंदुमती केलकर, मृणाल गोरे,  किशन पटनायक, के. पी. जाधव आदि विचारक व् चिंतकों ने प्रेरक सारगर्भित व्याख्यानों से राष्ट्रीय चेतना की अलख जलाने में महत्वपूर्ण मार्गदर्शन दिया।       

वर्ष १९९७ से अखिल भारतीय दिव्य नर्मदा अलंकरण समारोह आरंभ किया गया जिसमें राष्ट्रीय भावधारा, पर्यावरण संरक्षण, दलितोद्धार, स्त्री विमर्श,  ग्राम्योत्थान आदि पर केंद्रित श्रेष्ठ साहित्य को पुरस्कृत किया गया। ये आयोजन जबलपुर, नैनपुर, मंडला, खंडवा, लखनऊ, नाथद्वारा, बेलगाम कर्णाटक आदि स्थानों पर आयोजित किये गए। इनमें पद्म भूषण आचार्य विष्णुकांत शास्त्री राजयपाल उत्तर प्रदेश, केदारनाथ सहन्नी राज्यपाल गोवा, पद्म श्री के.पी. सक्सेना व्यंग्य कर, पद्मश्री डॉ, एम्, सी राय महापौर लखनऊ, पद्म श्री नूर, नरेंद्र कोहली, नरेश सक्सेना, देवकीनंदन शांत, अमरनाथ, मनोज श्रीवास्तव, राजेश अरोरा शलभ, श्रीमती सीमा रिज़वी मंत्री उत्तर प्रदेश, श्री शिव कुमार श्रीवास्तव कुलपति सागर वि.वि., डॉ. जे पी शुक्ल कुलपति जबलपुर वि.वि., चद्रसेन विराट, भगवतीप्रसाद देवपुरा की उपस्थिति ने  गरिमा वृद्धि की। 

वर्ष २००० से २००९ तक दिव्य नर्मदा साहित्यिक पत्रिका का प्रकाशनः किया गया।  इसके संपादन-संचालन में  डॉ. चित्रा चतुर्वेदी  जी, वीणा तिवारी जी, सुभाष पांडे जी, डॉ. गार्गीशरण मिश्र मराल जी, आशा वर्मा जी, डॉ. प्रभा ब्योहार जी, साधना वर्मा जी. मुरलीधर दुबे जी, लक्ष्मी शर्मा जी, विवेकरंजन जी, महेश किशोर शर्मा जी, निर्मल अग्रवाल जी का महत्वपूर्ण सहयोग रहा। अंतरजाल के आने पर इसे अंतर्जालीय पत्रिका का रूप दे दिया गया जिसे लगभग ३२ लाख  पाठक पढ़ चुके हैं। इसमें प्रतिदिन नई रचनाएँ प्रस्तुत की जा रही हैं। 

अभियान ने समय समय पर समन्वय प्रकाशन के माध्यम से अनेक पुस्तकें व् स्मारिकाएँ प्रकाशित की हैं। वर्ष २०१० में अंतर्जालीय गतिविधियों और अन्य देशों के हिंदी प्रेमियों को जोड़कर हिंदी व्याकरण-छंद शास्त्र का ज्ञान साझा करने के लिए विश्ववाणी हिंदी संस्थान को मूर्त रूप दिया गया। समय समय पर ब्लॉग, ऑरकुट, फेसबुक, वॉट्सऐप आदि पर तथा नगर में विश्ववाणी  अभियान द्वारा  साहित्यिक गोष्ठियाँ, परिचर्चाएँ, परिसंवाद आदि निरन्तर आयोजित किये जाते हैं जिनके माध्यम से सदस्यों की प्रतिभा संवर्धन, नयी-नयी विधाओं में सृजन, पुस्तक लेखन-प्रकाशन आदि में निरंतर मार्गदर्शन और सहयोग दिया जाता है। कोरोना काल में विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान ने सर्वप्रथम वाट्स ऐप पर दैनिक समय सारिणी निर्धारित कर  हिंदी साहित्य तथा कला की सभी विधाओं को समन्वित करते हुए सदस्यों को गतिशील बनाये रखा। राष्ट्रीय एकता और शक्ति कार्यक्रम के अंतर्गत विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान  कार्यक्रम समय-समय पर किये हैं। दिनांक  १७ मई २०२० को आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय एकता एवं शक्ति पर्व तथा डॉ. अनामिका तिवारी की अध्यक्षता में २० मई २०२० को राष्ट्र भक्ति पर्व के ओनलाइन आयोजन में ५ राज्यों से २८ साहित्यकारों ने सहभागिता की। 

विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान की ६ राज्यों में सक्रिय इकाइयाँ तथा  सहयोगी संस्थाएँ स्वसेवा समिति सिहोरा, युवा उत्कर्ष समिति दिल्ली, अभियान लखनऊ आदि राष्ट्रीय एकता और शक्ति पर केंद्रित कई कार्यक्रम आगामी समय में करने  हैं जिनका उद्देश्य बाल, किशोर तथा युवा पीढ़ी में राष्ट्रीय एकता, सहिष्णुता,  समानता की  बीजारोपण कर उसे सशक्त बनाना है। 

आरती भारत माता की

भारत आरती
संजीव 
*
आरती भारत माता की
सनातन जग विख्याता की
*
सूर्य ऊषा वंदन करते
चाँदनी चाँद नमन करते
सितारे गगन कीर्ति गाते
पवन यश दस दिश गुंजाते
देवगण पुलक, कर रहे तिलक 
ब्रह्म हरि शिव उद्गाता की
आरती भारत माता की
*
हिमालय मुकुट शीश सोहे
चरण सागर पल पल धोए
नर्मदा कावेरी गंगा
ब्रह्मनद सिंधु करें चंगा
संत-ऋषि विहँस,  कहें यश सरस 
असुर सुर मानव त्राता की
आरती भारत माता की
*
करें श्रृंगार सकल मौसम
कहें मैं-तू मिलकर हों हम
ऋचाएँ कहें सनातन सच
सत्य-शिव-सुंदर कह-सुन रच
मातृवत परस, दिव्य है दरस  
अगिन जनगण सुखदाता की
आरती भारत माता की
*
द्वीप जंबू छवि मनहारी
छटा आर्यावर्ती न्यारी
गोंडवाना है हिंदुस्तान 
इंडिया भारत देश महान
दीप्त ज्यों अगन, शुद्ध ज्यों पवन 
जीव संजीव विधाता की
आरती भारत माता की
*
मिल अनल भू नभ पवन सलिल
रचें सब सृष्टि रहें अविचल
अगिन पंछी करते कलरव
कृषक श्रम कर वरते वैभव
अहर्निश मगन, परिश्रम लगन 
ज्ञान-सुख-शांति प्रदाता की
आरती भारत माता की
*
३०-१०-२०२०

गुरुवार, 29 अक्टूबर 2020

सराइकी दोहा

सराइकी दोहा:
भाषा विविधा:
दोहा सलिला सिरायकी :
संजीव 
[सिरायकी पाकिस्तान और पंजाब के कुछ क्षेत्रों में बोले जानेवाली लोकभाषा है. सिरायकी का उद्गम पैशाची-प्राकृत-कैकई से हुआ है. इसे लहंदा, पश्चिमी पंजाबी, जटकी, हिन्दकी आदि भी कहा गया है. सिरायकी की मूल लिपि लिंडा है. मुल्तानी, बहावलपुरी तथा थली इससे मिलती-जुलती बोलियाँ हैं. सिरायकी में दोहा छंद अब तक मेरे देखने में नहीं आया है. मेरे इस प्रथम प्रयास में त्रुटियाँ होना स्वाभाविक है. जानकार पाठकों से त्रुटियाँ इंगित करने तथा सुधार हेतु सहायता का अनुरोध है.]
*
बुरी आदतां दुखों कूँ, नष्ट करेंदे ईश। 
साडे स्वामी तुवाडे, बख्तें वे आशीष।।
*
रोज़ करन्दे हन दुआ, तेडा-मेडा भूल। 
अज सुणीज गई हे दुआं,त्रया-पंज दा भूल।।
*
दुक्खां कूँ कर दूर प्रभु, जग दे रचनाकार। 
डेवणवाले देवता, वरण जोग करतार।। 
*
कोई करे तां क्या करे, हे बदलाव असूल। 
कायम हे उम्मीद पे, दुनिया कर के भूल।।
*
शर्त मुहाणां जीत ग्या, नदी-किनारा हार। 
लेणें कू धिक्कार हे, देणे कूँ जैकार।।
*
२९.५.२०१५

नवगीत भाई दूज

भाई दूज पर विशेष रचना :
मेरे भैया
संजीव 'सलिल'
*
मेरे भैया!,
किशन कन्हैया...
*
साथ-साथ पल-पुसे, बढ़े हम
तुमको पाकर सौ सुख पाये.
दूर हुए एक-दूजे से हम
लेकिन भूल-भुला न पाये..
रूठ-मनाने के मधुरिम दिन
कहाँ गये?, यह कौन बताये?
टीप रेस, कन्ना गोटी है कहाँ?
कहाँ है 'ता-ता थैया'....
*
मैंने तुमको, तुमने मुझको
क्या-क्या दिया, कौन बतलाये?
विधना भी चाहे तो स्नेहिल
भेंट नहीं वैसी दे पाये.
बाकी क्या लेना-देना? जब
हम हैं एक-दूजे के साये.
भाई-बहिन का स्नेह गा सके
मिला न अब तक कोई गवैया....
*
देकर भी देने का मन हो
देने की सार्थकता तब ही.
तेरी बहिना हँसकर ले-ले
भैया का दुःख विपदा अब ही..
दूज-गीत, राखी-कविता संग
तूने भेजी खुशियाँ सब ही.
तेरी चाहत, मेरी ताकत
भौजी की सौ बार बलैंया...
*****
संजीव
९४२५१८३२४४
२९-१०-२०१९ 

मुक्तक

मुक्तक
विदा दें, बाद में बात करेंगे, नेता सा वादा किया, आज जिसने
जुमला न हो यह, सोचूँ हो हैरां, ठेंगा दिखा ही दिया आज उसने
गोदी में खेला जो, बोले दलाल वो, चाचा-भतीजा निभाएं न कसमें
छाती कठोर है नाम मुलायम, लगें विरोधाभास ये रसमें
*
२९-१०-२०१७

श्री महालक्ष्यमष्टक स्तोत्र

II श्री महालक्ष्यमष्टक स्तोत्र II
मूल पाठ-तद्रिन, हिंदी काव्यानुवाद-संजीव 'सलिल'
II ॐ II
II श्री महालक्ष्यमष्टक स्तोत्र II
नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते I
शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोsस्तुते II१II
सुरपूजित श्रीपीठ विराजित, नमन महामाया शत-शत.
शंख चक्र कर-गदा सुशोभित, नमन महालक्ष्मी शत-शत..
नमस्ते गरुड़ारूढ़े कोलासुर भयंकरी I
सर्व पापहरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II२II
कोलाsसुरमर्दिनी भवानी, गरुड़ासीना नम्र नमन.
सरे पाप-ताप की हर्ता, नमन महालक्ष्मी शत-शत..
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयंकरी I
सर्व दु:ख हरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II३II
सर्वज्ञा वरदायिनी मैया, अरि-दुष्टों को भयकारी.
सब दुःखहरनेवाली, नमन महालक्ष्मी शत-शत..
सिद्धि-बुद्धिप्रदे देवी भुक्ति-मुक्ति प्रदायनी I
मन्त्रमूर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II४II
भुक्ति-मुक्तिदात्री माँ कमला, सिद्धि-बुद्धिदात्री मैया.
सदा मन्त्र में मूर्तित हो माँ, नमन महालक्ष्मी शत-शत..
आद्यांतर हिते देवी आदिशक्ति महेश्वरी I
योगजे योगसंभूते महालक्ष्मी नमोsस्तुते II५II
हे महेश्वरी! आदिशक्ति हे!, अंतर्मन में बसो सदा.
योग्जनित संभूत योग से, नमन महालक्ष्मी शत-शत..
स्थूल-सूक्ष्म महारौद्रे महाशक्ति महोsदरे I
महापापहरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II६II
महाशक्ति हे! महोदरा हे!, महारुद्रा सूक्ष्म-स्थूल.
महापापहारी श्री देवी, नमन महालक्ष्मी शत-शत..
पद्मासनस्थिते देवी परब्रम्ह स्वरूपिणी I
परमेशीजगन्मातर्महालक्ष्मी नमोsस्तुते II७II
कमलासन पर सदा सुशोभित, परमब्रम्ह का रूप शुभे.
जगज्जननि परमेशी माता, नमन महालक्ष्मी शत-शत..
श्वेताम्बरधरे देवी नानालंकारभूषिते I
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोsस्तुते II८II
दिव्य विविध आभूषणभूषित, श्वेतवसनधारे मैया.
जग में स्थित हे जगमाता!, नमन महालक्ष्मी शत-शत..
महा लक्ष्यमष्टकस्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर: I
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यंप्राप्नोति सर्वदा II९II
जो नर पढ़ते भक्ति-भाव से, महालक्ष्मी का स्तोत्र.
पाते सुख धन राज्य सिद्धियाँ, नमन महालक्ष्मी शत-शत..
एककालं पठेन्नित्यं महापाप विनाशनं I
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन-धान्यसमन्वित: II१०II
एक समय जो पाठ करें नित, उनके मिटते पाप सकल.
पढ़ें दो समय मिले धान्य-धन, नमन महालक्ष्मी शत-शत..
त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रु विनाशनं I
महालक्ष्मीर्भवैन्नित्यं प्रसन्नावरदाशुभा II११II
तीन समय नित अष्टक पढ़िये, महाशत्रुओं का हो नाश.
हो प्रसन्न वर देती मैया, नमन महालक्ष्मी शत-शत..
II तद्रिन्कृत: श्री महालक्ष्यमष्टकस्तोत्रं संपूर्णं II
तद्रिंरचित, सलिल-अनुवादित, महालक्ष्मी अष्टक पूर्ण.
नित पढ़ श्री समृद्धि यश सुख लें, नमन महालक्ष्मी शत-शत..
*******************************************
आरती क्यों और कैसे?
संजीव 'सलिल'
*
ईश्वर के आव्हान तथा पूजन के पश्चात् भगवान की आरती, नैवेद्य (भोग) समर्पण तथा अंत में विसर्जन किया जाता है। आरती के दौरान कई सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। इन सबका विशेष अर्थ होता है। आरती करने ही नहीं, इसमें सम्मिलित होंने से भी पुण्य मिलता है। देवता की आरती करते समय उन्हें 3बार पुष्प अर्पित करें। आरती का गायन स्पष्ट, शुद्ध तथा उच्च स्वर से किया जाता है। इस मध्य शंख, मृदंग, ढोल, नगाड़े , घड़ियाल, मंजीरे, मटका आदि मंगल वाद्य बजाकर जयकारा लगाया जाना चाहिए।
आरती हेतु शुभ पात्र में विषम संख्या (1, 3, 5 या 7) में रुई या कपास से बनी बत्तियां रखकर गाय के दूध से निर्मित शुद्ध घी भरें। दीप-बाती जलाएं। एक थाली या तश्तरी में अक्षत (चांवल) के दाने रखकर उस पर आरती रखें। आरती का जल, चन्दन, रोली, हल्दी तथा पुष्प से पूजन करें। आरती को तीन या पाँच बार घड़ी के काँटों की दिशा में गोलाकार तथा अर्ध गोलाकार घुमाएँ। आरती गायन पूर्ण होने तक यह क्रम जरी रहे। आरती पांच प्रकार से की जाती है। पहली दीपमाला से, दूसरी जल से भरे शंख से, तीसरा धुले हुए वस्त्र से, चौथी आम और पीपल आदि के पत्तों से और पांचवीं साष्टांग अर्थात शरीर के पांचों भाग [मस्तिष्क, दोनों हाथ-पांव] से। आरती पूर्ण होने पर थाली में अक्षत पर कपूर रखकर जलाएं तथा कपूर से आरती करते हुए मन्त्र पढ़ें:
कर्पूर गौरं करुणावतारं, संसारसारं भुजगेन्द्रहारं।
सदावसन्तं हृदयारवंदे, भवं भवानी सहितं नमामि।।
पांच बत्तियों से आरती को पंच प्रदीप या पंचारती कहते हैं। यह शरीर के पंच-प्राणों या पञ्च तत्वों की प्रतीक है। आरती करते हुए भक्त का भाव पंच-प्राणों (पूर्ण चेतना) से ईश्वर को पुकारने का हो। दीप-ज्योति जीवात्मा की प्रतीक है। आरती करते समय ज्योति का बुझना अशुभ, अमंगलसूचक होता है। आरती पूर्ण होने पर घड़ी के काँटों की दिशा में अपने स्थान पट तीन परिक्रमा करते हुए मन्त्र पढ़ें:
यानि कानि च पापानि, जन्मान्तर कृतानि च।
तानि-तानि प्रदक्ष्यंती, प्रदक्षिणां पदे-पदे।।
अब आरती पर से तीन बार जल घुमाकर पृथ्वी पर छोड़ें। आरती प्रभु की प्रतिमा के समीप लेजाकर दाहिने हाथ से प्रभु को आरती दें। अंत में स्वयं आरती लें तथा सभी उपस्थितों को आरती दें। आरती देने-लेने के लिए दीप-ज्योति के निकट कुछ क्षण हथेली रखकर सिर तथा चेहरे पर फिराएं तथा दंडवत प्रणाम करें। सामान्यतः आरती लेते समय थाली में कुछ धन रखा जाता है जिसे पुरोहित या पुजारी ग्रहण करता है। भाव यह हो कि दीप की ऊर्जा हमारी अंतरात्मा को जागृत करे तथा ज्योति के प्रकाश से हमारा चेहरा दमकता रहे।
सामग्री का महत्व आरती के दौरान हम न केवल कलश का प्रयोग करते हैं, बल्कि उसमें कई प्रकार की सामग्रियां भी डालते जाते हैं। इन सभी के पीछे न केवल धार्मिक, बल्कि वैज्ञानिक आधार भी हैं।
कलश-कलश एक खास आकार का बना होता है। इसके अंदर का स्थान बिल्कुल खाली होता है। कहते हैं कि इस खाली स्थान में शिव बसते हैं।
यदि आप आरती के समय कलश का प्रयोग करते हैं, तो इसका अर्थ है कि आप शिव से एकाकार हो रहे हैं। किंवदंति है कि समुद्र मंथन के समय विष्णु भगवान ने अमृत कलश धारण किया था। इसलिए कलश में सभी देवताओं का वास माना जाता है।
जल-जल से भरा कलश देवताओं का आसन माना जाता है। दरअसल, हम जल को शुद्ध तत्व मानते हैं, जिससे ईश्वर आकृष्ट होते हैं।
दीपमालिका का हर दीपक अमल-विमल यश-कीर्ति धवल दे......
शक्ति-शारदा-लक्ष्मी मैया, 'सलिल' सौख्य-संतोष नवल दें...
__________
नवगीत
*
मन-कुटिया में
दीप बालकर
कर ले उजियारा।
तनिक मुस्कुरा
मिट जाएगा
सारा तम कारा।।
*
ले कुम्हार के हाथों-निर्मित
चंद खिलौने आज।
निर्धन की भी धनतेरस हो
सध जाए सब काज।
माटी-मूरत,
खील-बतासे
है प्रसाद प्यारा।।
*
रूप चतुर्दशी उबटन मल, हो
जगमग-जगमग रूप।
प्रणय-भिखारी गृह-स्वामी हो
गृह-लछमी का भूप।
रमा रमा में
हो मन, गणपति
का कर जयकारा।।
*
स्वेद-बिंदु से अवगाहन कर
श्रम-सरसिज देकर।
राष्ट्र-लक्ष्मी का पूजन कर
कर में कर लेकर।
निर्माणों की
झालर देखे
विस्मित जग सारा।।
*
अन्नकूट, गोवर्धन पूजन
भाई दूज न भूल।
बैरी समझ कूट मूसल से
पैने-चुभते शूल।
आत्म दीप ले
बाल, तभी तो
होगी पौ बारा।।
***********
एक रचना
: पाँच पर्व :
*
पाँच तत्व की देह है,
ज्ञाननेद्रिय हैं पाँच।
कर्मेन्द्रिय भी पाँच हैं,
पाँच पर्व हैं साँच।।
*
माटी की यह देह है,
माटी का संसार।
माटी बनती दीप चुप,
देती जग उजियार।।
कच्ची माटी को पका
पक्का करती आँच।
अगन-लगन का मेल ही
पाँच मार्ग का साँच।।
*
हाथ न सूझे हाथ को
अँधियारी हो रात।
तप-पौरुष ही दे सके
हर विपदा को मात।।
नारी धीरज मीत की
आपद में हो जाँच।
धर्म कर्म का मर्म है
पाँच तत्व में जाँच।।
*
बिन रमेश भी रमा का
तनिक न घटता मान।
ऋद्धि-सिद्धि बिन गजानन
हैं शुभत्व की खान।।
रहें न संग लेकिन पूजें
कर्म-कुंडली बाँच।
अचल-अटल विश्वास ही
पाँच देव हैं साँच।।
*
धन्वन्तरि दें स्वास्थ्य-धनहरि दें रक्षा-रूप।
श्री-समृद्धि, गणपति-मति
देकर करें अनूप।।
गोवर्धन पय अमिय दे
अन्नकूट कर खाँच।
बहिनों का आशीष ले
पाँच शक्ति शुभ साँच।।
*
पवन, भूत, शर, अँगुलि मिल
हर मुश्किल लें जीत।
पाँच प्राण मिल जतन कर
करें ईश से प्रीत।।
परमेश्वर बस पंच में
करें न्याय ज्यों काँच।
बाल न बाँका हो सके
पाँच अमृत है साँच
*****
गीत:
दीप, ऐसे जलें...
संजीव 'सलिल'
दीप के पर्व पर जब जलें-
दीप, ऐसे जलें...
स्वेद माटी से हँसकर मिले,
पंक में बन कमल शत खिले।
अंत अंतर का अंतर करे-
शेष होंगे न शिकवे-गिले।।
नयन में स्वप्न नित नव खिलें-
दीप, ऐसे जलें...
श्रम का अभिषेक करिए सदा,
नींव मजबूत होगी तभी।
सिर्फ सिक्के नहीं लक्ष्य हों-
साध्य पावन वरेंगे सभी।।
इंद्र के भोग, निज कर मलें-
दीप, ऐसे जलें...
जानकी जान की खैर हो,
वनगमन-वनगमन ही न हो।
चीर को चीर पायें ना कर-
पीर बेपीर गायन न हो।।
दिल 'सलिल' से न बेदिल मिलें-
दीप, ऐसे जलें...
दीवाली के संग : दोहा का रंग
संजीव 'सलिल'
*
सरहद पर दे कटा सर, हद अरि करे न पार.
राष्ट्र-दीप पर हो 'सलिल', प्राण-दीप बलिहार..
*
आपद-विपदाग्रस्त को, 'सलिल' न जाना भूल.
दो दीपक रख आ वहाँ, ले अँजुरी भर फूल..
*
कुटिया में पाया जनम, राजमहल में मौत.
रपट न थाने में हुई, ज्योति हुई क्यों फौत??
*
तन माटी का दीप है, बाती चलती श्वास.
आत्मा उर्मिल वर्तिका, घृत अंतर की आस..
*
दीप जला, जय बोलना, दुनिया का दस्तूर.
दीप बुझा, चुप फेंकना, कर्म क्रूर-अक्रूर..
*
चलते रहना ही सफर, रुकना काम-अकाम.
जलते रहना ज़िंदगी, बुझना पूर्ण विराम.
*
सूरज की किरणें करें नवजीवन संचार.
दीपक की किरणें करें, धरती का सिंगार..
*
मन देहरी ने वर लिये, जगमग दोहा-दीप.
तन ड्योढ़ी पर धर दिये, गुपचुप आँगन लीप..
*
करे प्रार्थना, वंदना, प्रेयर, सबद, अजान.
रसनिधि है रसलीन या, दीपक है रसखान..
*
मन्दिर-मस्जिद, राह-घर, या मचान-खलिहान.
दीपक फर्क न जानता, ज्योतित करे जहान..
*
मद्यप परवाना नहीं, समझ सका यह बात.
साक़ी लौ ले उजाला, लाई मरण-सौगात..
*
यह तन माटी का दिया, भर दे तेल-प्रयास।
'सलिल' प्राण-बाती जला, दस दिश धवल उजास ।।
***
२९-१०-२०१६

मुक्तक

मुक्तक 
वामन दर पर आ विराट खुशियाँ दे जाए
बलि के लुटने से पहले युग जय गुंजाए
रूप चतुर्दशी तन-मन निर्मल कर नव यश दे
पंच पर्व पर प्राण-वर्तिका तम पी पाए
*
२९-१०-२०१६ 

एक छंद

एक छंद
*
विदा दें, बाद में बात करेंगे, नेता सा वादा किया, आज जिसने
जुमला न हो यह, सोचूँ हो हैरां, ठेंगा दिखा ही दिया आज उसने
गोदी में खेला जो, बोले दलाल वो, चाचा-भतीजा निभाएं न कसमें
छाती कठोर है नाम मुलायम, लगें विरोधाभास ये रसमें
*

एक छंद

 एक छंद

राम के काम को, करे प्रणाम जो, उसी अनाम को, राम मिलेगा
नाम के दाम को, काम के काम को, ध्यायेगा जो, विधि वाम मिलेगा
देश ललाम को, भू अभिराम को, स्वच्छ करे इंसान तरेगा
रूप को चाम को, भोर को शाम को, पूजेगा जो, वो गुलाम मिलेगा
*
२९-१०-२०१६

मुक्तक

मुक्तक
*
स्नेह का उपहार तो अनमोल है
कौन श्रद्धा-मान सकता तौल है?
भोग प्रभु भी आपसे ही पा रहे
रूप चौदस भावना का घोल है
*
स्नेह पल-पल है लुटाया आपने।
स्नेह को जाएँ कभी मत मापने
सही है मन समंदर है भाव का
इष्ट को भी है झुकाया भाव ने
*
फूल अंग्रेजी का मैं,यह जानता
फूल हिंदी की कदर पहचानता
इसलिए कलियाँ खिलता बाग़ में
सुरभि दस दिश हो यही हठ ठानता
*
उसी का आभार जो लिखवा रही
बिना फुरसत प्रेरणा पठवा रही
पढ़ाकर कहती, लिखूँगी आज पढ़
सांस ही मानो गले अटका रही
*

नवगीत

नवगीत:

आओ रे!
मतदान करो
भारत भाग्य विधाता हो
तुम शासन-निर्माता हो
संसद-सांसद-त्राता हो
हमें चुनो
फिर जियो-मरो
कैसे भी
मतदान करो
तूफां-बाढ़-अकाल सहो
सीने पर गोलियाँ गहो
भूकंपों में घिरो-ढहो
मेलों में
दे जान तरो
लेकिन तुम
मतदान करो
लालटेन, हाथी, पंजा
साड़ी, दाढ़ी या गंजा
कान, भेंगा या कंजा
नेता करनी
आप भरो
लुटो-पिटो
मतदान करो
पाँच साल क्यों देखो राह
जब चाहो हो जाओ तबाह
बर्बादी को मिले पनाह
दल-दलदल में
फँसो-घिरो
रुपये लो
मतदान करो
नाग, साँप, बिच्छू कर जोड़
गुंडे-ठग आये घर छोड़
केर-बेर में है गठजोड़
मत सुधार की
आस धरो
टैक्स भरो
मतदान करो
***
(कश्मीर तथा अन्य राज्यों में चुनाव की खबर पर )
sanjivani hospital raipur
29-11-1014.