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सोमवार, 5 अक्टूबर 2020

अरदास गणपत मेघवाल नाड़सर

अरदास 
गणपत मेघवाल नाड़सर
*
आँगन कंवारो रेबा दीज्यै पणं रंडापो मत दीज्ये
भगवान जवानी दे दीज्यै पणं पछै बुढापो मत दीज्यै
हाथी दीज्ये घोडा दीज्यै गधा गधेडी मत दीज्यै
सुगरां री संगत दे दीज्यै नशा नशैडी मत दीज्यै
घर दीज्यै घरवाली दीज्यै खींचाताणीं मत दीज्यै
जूणं बलद री दे दीज्ये तेली री घाणीं मत दीज्यै
काजल दीज्यै टीकी दीज्यै पोडर वोडर मत दीज्यै
पतली नार पदमणीं दीज्यै तूं बुलडोजर मत दीज्यै
टाबर दीज्यै टींगर दीज्यै बगनां बोगा मत दीज्यै
जोगो एक देय दीज्यै पणं दो नांजोगा मत दीज्यै
भारत री मुद्रा दै दीज्यै डालर वालर मत दीज्यै
कामेतणं घर वाली दीज्यै ब्यूटी पालर मत दीज्यै
कैंसर वैंसर मत दीज्यै तूं दिल का दौरा दे दीज्यै
जीणों दौरो धिक ज्यावेला मरणां सौरा दे दीज्यै
नेता और मिनिस्टर दीज्यै भ्रष्टाचारी मत दीज्यै
भारत मां री सेवा दीज्यै तूं गद्दारी मत दीज्यै
भागवत री भगती दीज्यै रामायण गीता दीज्यै
नर में तूं नारायण दीज्यै नारी में सीता दीज्यै
मंदिर दीज्यै मस्जिद दीज्ये दंगा रोला मत दीज्यै
हाथां में हुन्नर दे दीज्यै तूं हथगोला मत दीज्यै
दया धरम री पूंजी दीज्यै वाणी में सुरसत दीज्यै
भजन करणं री खातर दाता थौडी तूं फुरसत दीज्यै
घी में गच गच मत दीज्यै तूं लूखी सूखी दे दीज्यै
मरती बेल्यां महर करीज्यै लकड्यां सूखी दे दीज्यै
कवि नें कीं मत दीज्यै कविता नें इज्जत दीज्यै
जिवूं जठा तक लिखतो रेवूं इतरी तूं हिम्मत दीज्यै
घर वाली न सद् बुद्धि दीज्ये बेटा बहू की भीड़ मती बोलज्य्
एक का इक्कीस दिज्ये होता ही सब न कण कण का कर दीजै
पन वृद्धाश्रम में भेजण आळा मत दीजे
गैली गूंगी दीजै पण ज्यादा सुन्दर करकसा नार मत दीजै
*

राजस्थान

राजस्थान खास क्यों हैं...?


१. भारत के सबसे अधिक अमीर सौ व्यक्तियों में से ३५ राजस्थानी/मारवाड़ी व्यापारी हैं।
२. दंगो में हजारों लोग मारे गए हैं राजस्थान में एक भी नहीं।
३. राजस्थान अकेले इतने सैनिक देश को देता है जितने केरल, आन्ध्र-प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात मिलकर भी नहीं दे पाते।
४. सबसे ज्यादा कर्नल सूबेदार राजस्थान से हैं।
५. उच्च शिक्षण संस्थानों में राजस्थानी इतने हैं कि महाराष्ट्र और गुजरात मिलाने से भी बराबरी नहीं कर सकते।
६. राजस्थान अकेला ऐसा राज्य है जहाँ किसान कृषि कारणों से आत्म- हत्या नहीं करते। राजस्थानी बुज़दिल नही दिलेर होते हैं।
7. आज भी राजस्थान में सबसे ज्यादा संयुक्त परिवार हैं।
८. हम एक रिक्शा चलानेवालों को भी भाई कह कर बुलाते हैं।
प्यारो राजस्थान.....
रंगीलो राजस्थान.

 
: ताज महल अगर प्रेम की निशानी है
तो "गढ़ चित्तोड़" एक शेर की कहानी है.
"कुछ लोग हार कर भी जीत जाते हैं !
कुछ लोग जीत कर भी हार जाते हैं !!
नहीं दिखते है अकबर के ताबूत कहीं पर भी,
लेकिन
"राणा के घोड़े हर चौराहे पर आज भी नज़र आते है।।

मारवाड़ी कविता

मारवाड़ी कविता
"गाँव री याद" 
*गाँव रा गुवाड़ छुट्या, लारे रह गया खेत । 
धोरां माथली झीणी झीणी,उड़ती बाळू रेत ।।
उड़ती बाळू रेत,नीम री छाया छूटी । 
फोफलिया रो साग ,छूटी बाजरी री रोटी ।। 
अषाढ़ा रे महीने में जद,खेत बावण जाता । 
हळ चलाता,तेजो गाता, कांदा रोटी खाता ।। 
कांदा रोटी खाता,भादवे में काढता 'नीनाण'। 
खेत मायला झुपड़ा में,सोता खूंटी ताण ।। 
गरज गरज कर मेह बरसतो,खूब नाचता मोर।
खेजड़ी रा खोखा खाता,बोरटी रा बोर ।। 
बोरटी रा बोर ,खावंता काकड़िया मतीरा । 
'सिराधां' में जीमता ,देसी घी रा सीरा ।। 
आसोजां में बाजरी रा,सिट्टा भी पक जाता । 
काती रे महीने में सगळा,मोठ उपाड़न जाता ।।
मोठ उपाड़न जाता,सागे तोड़ता गुवार । 
सर्दी गर्मी सहकर के भी, सुखी हो परिवार ।। 
गाँव के हर एक घर में, गाय भैंस रो धीणो । 
घी दूध भी घर का मिलता, वो हो असली जीणो ।।
वो हो असली जीणो, कदे नहीं पड़ता था बीमार ।
गाँव में ही छोड़ आया ,ज़िन्दगी रो सार ।। 
सियाळे में धूंई तपता, करता खूब हताई । 
आपस में मिलजुल कर रहता,सगळा भाई भाई ।।
(संकलित)

मारवाड़ी मेंहदी

 


हाड़ौती रचना दा'जी रामेश्वर शर्मा 'रामू भैया'

हाड़ौती रचना
दा'जी
रामेश्वर शर्मा 'रामू भैया'
*
कांधा पै 
बठाण'र म्हने 
च्यारूं मेरी फरै छा 
म्हारा दा'जी 
म्हूं 
बैठ्यो-बैठ्यो 
वांका कांधा पै 
वांकी खोपड़ी में 
मारतो रैवेछो
कड़कोल्या 
होता रैवेछा राजी 
म्हारा दा'जी

हाड़ौती रचना ऊँड़ाई रामेश्वर शर्मा 'रामू भैया'


हाड़ौती रचना
ऊँड़ाई 
रामेश्वर शर्मा 'रामू भैया' 
*
पाँच हात 
दस हात 
पचास,
सौ पान सौ। 
नापतो ई चाल्ज्या 
तू ई 
थाक जावैगो,
ऊमर की पीढ्याँ 
पाक जावैगो 
नै मलैगी 
थाह 
अथाह छै 
ऊंडो 
भ्रस्टाचार को मूंडो। 
*

हरयाणवी सरस्वती वंदना वीना तवंर

हरयाणवी
सरस्वती वंदना
वीना तवंर, गुरुग्राम
*
शारदे माता वीणा वादिनी,
करू तनै प्रणाम। 
वन्दना करु हे मेरी माता,
दे दे बुध्दि ज्ञान। 
मेरी लेखनी नै वर दे, 
शक्ति मनै दे दे।
मैं भीतर ले मन तै चाहू,
तू मेट मेरा अज्ञान।
धौले-धौले कपड़े पहनै,
मोर की करै सवारी।
वीणा बाजै हाथ मै थारे,
तोडे सै अभिमान।
सदा हाथ मै पत्रा रखती, 
कलम मै करै सै वास,
कवि, लेखक और गुणीजनो का,
करती तू कल्याण। 
थोड़ा सा मनै भी वर दे,
दे दे शब्द भंडार। 
कलम दवा त तै लिखती जाऊँ,
जीभ गावै गुणगान 
सच्चाई लिखवाईए री माता, 
झूठ ना धरू ध्यान।
शब्दों सै सेवा करके मैं,
बढ़ाऊँ देस का मान।
***

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र हिंदी काव्यानुवाद

 नवरात्रि और सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र हिंदी काव्यानुवाद सहित)*

नवरात्रि पर्व में मां दुर्गा की आराधना हेतु नौ दिनों तक व्रत किया जाता है। रात्रि में गरबा व डांडिया रास कर शक्ति की उपासना तथा विशेष कामनापूर्ति हेतु दुर्गा सप्तशती, चंडी तथा सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ किया जाता है। दुर्गा सप्तशती तथा चंडी पाठ जटिल तथा प्रचण्ड शक्ति के आवाहन हेतु है। इसके अनुष्ठान में अत्यंत सावधानी आवश्यक है, अन्यथा क्षति संभावित हैं। दुर्गा सप्तशती या चंडी पाठ करने में अक्षम भक्तों हेतु प्रतिदिन दुर्गा-चालीसा अथवा सप्तश्लोकी दुर्गा के पाठ का विधान है जिसमें सामान्य शुद्धि और पूजन विधि ही पर्याप्त है। त्रिकाल संध्या अथवा दैनिक पूजा के साथ भी इसका पाठ किया जा सकता है जिससे दुर्गा सप्तशती,चंडी-पाठ अथवा दुर्गा-चालीसा पाठ के समान पूण्य मिलता है।
कुमारी पूजन
नवरात्रि व्रत का समापन कुमारी पूजन से किया जाता है। नवरात्रि के अंतिम दिन दस वर्ष से कम उम्र की ९ कन्याओं को माँ दुर्गा के नौ रूप (दो वर्ष की कुमारी, तीन वर्ष की त्रिमूर्तिनी चार वर्ष की कल्याणी, पाँच वर्ष की रोहिणी, छः वर्ष की काली, सात वर्ष की चण्डिका, आठ वर्ष की शाम्भवी, नौ वर्ष की दुर्गा, दस वर्ष की सुभद्रा) मान पूजन कर मिष्ठान्न, भोजन के पश्चात् व दान-दक्षिणा भेंट करें।
सप्तश्लोकी दुर्गा
निराकार ने चित्र गुप्त को, परा प्रकृति रच व्यक्त किया।
महाशक्ति निज आत्म रूप दे, जड़-चेतन संयुक्त किया।।
नाद शारदा, वृद्धि लक्ष्मी, रक्षा-नाश उमा-नव रूप-
विधि-हरि-हर हो सके पूर्ण तब, जग-जीवन जीवंत किया।।
*
जनक-जननि की कर परिक्रमा, हुए अग्र-पूजित विघ्नेश।
आदि शक्ति हों सदय तनिक तो, बाधा-संकट रहें न लेश ।।
सात श्लोक दुर्गा-रहस्य को बतलाते, सब जन लें जान-
क्या करती हैं मातु भवानी, हों कृपालु किस तरह विशेष?
*
शिव उवाच-
देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी।
कलौ हि कार्यसिद्धयर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः॥
शिव बोले: 'सब कार्यनियंता, देवी! भक्त-सुलभ हैं आप।
कलियुग में हों कार्य सिद्ध कैसे?, उपाय कुछ कहिये आप।।'
*
देव्युवाच-
श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम्‌।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते॥
देवी बोलीं: 'सुनो देव! कहती हूँ इष्ट सधें कलि-कैसे?
अंबा-स्तुति बतलाती हूँ, पाकर स्नेह तुम्हारा हृद से।।'
*
विनियोग-
ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ऋषिः
अनुष्टप्‌ छन्दः, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः
श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः।
ॐ रचे दुर्गासतश्लोकी स्तोत्र मंत्र नारायण ऋषि ने
छंद अनुष्टुप महा कालिका-रमा-शारदा की स्तुति में
श्री दुर्गा की प्रीति हेतु सतश्लोकी दुर्गापाठ नियोजित।।
*
ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति॥१॥
ॐ ज्ञानियों के चित को देवी भगवती मोह लेतीं जब।
बल से कर आकृष्ट महामाया भरमा देती हैं मति तब।१।
*
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्‌यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता॥२॥
माँ दुर्गा का नाम-जाप भयभीत जनों का भय हरता है,
स्वस्थ्य चित्त वाले सज्जन, शुभ मति पाते, जीवन खिलता है।
दुःख-दरिद्रता-भय हरने की माँ जैसी क्षमता किसमें है?
सबका मंगल करती हैं माँ, चित्त आर्द्र पल-पल रहता है।२।
*
सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥३॥
मंगल का भी मंगल करतीं, शिवा! सर्व हित साध भक्त का।
रहें त्रिनेत्री शिव सँग गौरी, नारायणी नमन तुमको माँ।३।
*
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते॥४॥
शरण गहें जो आर्त-दीन जन, उनको तारें हर संकट हर।
सब बाधा-पीड़ा हरती हैं, नारायणी नमन तुमको माँ ।४।
*
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते॥५॥
सब रूपों की, सब ईशों की, शक्ति समन्वित तुममें सारी।
देवी! भय न रहे अस्त्रों का, दुर्गा देवी तुम्हें नमन माँ! ।५।
*
रोगानशोषानपहंसि तुष्टा
रूष्टा तु कामान्‌ सकलानभीष्टान्‌।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति॥६॥
शेष न रहते रोग तुष्ट यदि, रुष्ट अगर सब काम बिगड़ते।
रहे विपन्न न कभी आश्रित, आश्रित सबसे आश्रय पाते।६।
*
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्यद्वैरिविनाशनम्‌॥७॥
माँ त्रिलोकस्वामिनी! हर कर, हर भव-बाधा।
कार्य सिद्ध कर, नाश बैरियों का कर दो माँ! ।७।
*
॥इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा संपूर्णम्‌॥
।श्री सप्तश्लोकी दुर्गा (स्तोत्र) पूर्ण हुआ।

शारद स्तुति

 *शारद स्तुति*

शारदे आकर विराजें
सृजन सुंदर सृष्टिमय ।
सुमन सौरभ सुरभि सुरभित
सलिल सलिला दृष्टिमय ।।
शुभ्र ज्योतित वेद दात्री
ज्ञान मातु प्रदायनी ।
भक्त वत्सल, सप्त सुरमय
आप शुभ वरदायनी ।।
हंस वाहन शोभते माँ
शारदे भव तार दे।
काज ऐसे नित करूँ माँ
ज्ञान का नव सार दे ।।
दिव्य पोषित दिव्यता उर
अर्चना नित आपकी ।
भाव पुष्पों के समर्पित
वंदना नित आपकी ।।
साधना आराधना हो
आपकी सेवा सतत ।
कमल आसन शोभते माँ
पूजते देवा सतत ।।
विमल विमला वस्त्र धारे
ब्रह्म शब्दों से सजी ।
मातु मेरे हिय समाओ
मधुर मधुरिम धुनि बजी ।।
छाया सक्सेना 'प्रभु '

दुर्गा सप्तशती में सृष्टि उत्पत्ति और सरस्वती जी अथ प्राधानिकं रहस्यं

 दुर्गा सप्तशती में सृष्टि उत्पत्ति और सरस्वती जी

अथ प्राधानिकं रहस्यं
*
ॐ अस्य श्री सप्तशतीरहस्यत्रयस्य नारायण
ऋषिरनुष्टुप छंद:, महाकाली-महालक्ष्मी-महा
सरस्वती देवता यथोक्त फला वाप्यर्थं जपे विनियोग:।
ॐ सतशती के रहस्य त्रय, ऋषिवर श्री नारायण हैं।
देव महा काली-रमा-शारद, छंद अनुष्टुप धारण है।
मिले यथोचित फल इस हेतु करें जप में विनियोग सदा।
राजोवाच
भगवन्नवतारा में चंडीकायास्त्वयोदिता:।
एतेषां प्रकृतिं ब्रह्मन् प्रधानं वक्तुमर्हसि।।१।।
राजा बोले प्रभु! चण्डी के अवतारों की कथा कही।
अब इनकी प्रधान प्रकृति की ब्रह्मन्! मुझसे कथा कहें।।
आराध्यं यन्मया देव्या: स्वरूपं येन च द्विज।
विधिना ब्रूहि सकलं यथावत्प्रणतस्य मे।।२।।
देवी की आराधना किस छवि में द्विजश्रेष्ठ!
करूँ कहें उसकी विधि चरण-शरण मैं ज्येष्ठ!
ऋषिरुवाच
इदं रहस्यं परममनाख्येयं प्रचक्षते।
भक्तोsसीति न मे किञ्चत्तवावाच्यं नराधिप।।३।।
ऋषि बोले आख्यान यह परम गुप्त है भूप।
कह न सकूँ निज भक्त से, है कुछ नहीं अनूप।।
सर्वस्याद्या महालक्ष्मीस्त्रिगुणा परमेश्वरी।
लक्ष्यालक्ष्यस्वरूपा सा व्याप्य कृत्स्नं व्यवस्थिता।।४।।
सर्व मूल महालक्ष्मी त्रिगुणमयी जगदंब।
दिखें अदिख रह व्याप्त हैं सकल सृष्टि में अंब।।
मातुलिङ्ग गदां खेटं पानपात्रं च बिभ्रती।
नागं लिङ्गं च योनिं च बिभ्रती नृप मूर्द्धनी।।५।।
कर में सोहे मातुलिंग गदा, ढाल, पानदान।
नाग, लिंग, योनि करे शोभित दिव्य ललाट।।
तप्तकाञ्चन वर्णाभा तप्तकाञ्चनभूषणा।
शून्यं तदखिलं स्वेन पूरयामास तेजसा।।६।।
तप्त स्वर्ण सा रंग है, तप्त स्वर्ण श्रृंगार।
करतीं अपने तेज से, पूर्ण सकल संसार।।
शून्यं तदखिलं लोकं विलोक्य परमेश्वरी।
बभार परमं रूपं तमसा केवलेन हि।।७।।
शून्य सकल संसार को, देखें देवी आप।
तमोगुणी नव रूप ले प्रगटें सबमें व्याप।।
सा भिन्नाञ्जनसंकाशा दंष्ट्राङ्कित वरानना।
विशाललोचना नारी बभूव तनुमध्यमा।।८।।
श्यामल अंजन सदृश वह, मुख पर शोभित दंत।
मृगनयनी मध्यम बदन, नारी रूप अनंत।।
खड्गपात्रशिर:खेटैरलङ्कृत चतुर्भुजा।
कबंधहारं शिरसा बिभ्राणा हि शिर:स्रजम्।।९।।
खड्ग पात्र सिर ढाल ले, भुजा सुशोभित चार।
मुंड माल धारण किये, कर कबंध श्रृंगार।।
सा प्रोवाच महालक्ष्मीं तामसी प्रमदोत्तमा।
नाम कर्म च मे मातर्देहि तुभ्यं नमो नम:।।१०।।
तामसी प्रमदोत्तमा ने महालक्ष्मी से कहा।
माँ! मुझे दें नाम; कह दें काम भी; तुमको नमन।।
तां प्रोवाच महालक्ष्मीस्तामसीं प्रमादोत्तमाम्।
ददामि तव नामानि यानी कर्माणि तानि ते।।११।।
महालक्ष्मी ने कहा हे तामसी प्रमदोत्तमा!
नाम देती हूँ तुम्हें मैं, काम कहती तुम्हारा।।
महामाया महाकाली महामारी क्षुधा तृषा।
निद्रा तृष्णा चैकवीरा कालरात्रिर्दुरत्यया।।१२।।
महामाया महाकाली महामारी क्षुधा तृषा।
निद्रा तृष्णा व एकवीरा कालरात्रि दुरत्यया।।
इमानि तव नामानि प्रतिपाद्यानि कर्मभिः।
एभि: कर्माणि ते ज्ञात्वा योsधीते सोsश्नुते सुखं।।१३।।
ये हैं नाम तुम्हारे; जा कर्मों द्वारा चरितार्थ कर।
जो कर्मों को जान जपेंगे, सुख पाएँगे नारी-नर।।
तामित्युक्त्वा महालक्ष्मी: स्वरूपमपरं नृप।
सत्त्वाख्येनातिशुद्धेन गुणेनेंदुप्रभं दधौ।।१४।।
महालक्ष्मी ने यह कहकर, रूप दूसरा प्रगट किया।
सत्वगुणी अति शुद्ध शशि सदृश प्रभापूर्ण नव रूप लिया।।
अक्षमालाङ्कुशधरा वीणा पुस्तक धारिणी।
सा बभूव वरा नारी नामान्यस्यै च सा ददौ।।१५।।
अक्षमाल अंकुश सहित, वीणा पुस्तक थाम।
महीयसी को रमा ने, दिए अलौकिक नाम।।
महाविद्या महावाणी भारती वाक् सरस्वती।
आर्या ब्राह्मी कामधेनुर्वेदगर्भा च धीश्वरी।।१६।।
महाविद्या महावाणी, भारती वाक् सरस्वती।
आर्या ब्राह्मी कामधेनु, वेदगर्भा व धीश्वरी।।
अथोवाच महालक्ष्मीर्महाकालीं सरस्वतीं।
युवां जनयतां देव्यौ मिथुन स्वानुरूपत:।।१७।।
महाकाली सरस्वती से, महा लक्ष्मी ने कहा।
देवियों! दो जन्म निज, अनुरूप जोड़ों को अभी।।
इत्युक्त्वा ते महालक्ष्मी: ससर्ज मिथुनं स्वयं।
हिरण्यगर्भौ रुचिरौ स्त्रीपुंसौ कमलसानौ।।१८।।
महालक्ष्मी ने यह कहकर आप मिथुन कर सृजन किया।
कनकगर्भ प्रगटे नारी-नर, कमलासन आसीन किया।।
ब्रह्मन् विधे विरंचेति धातरित्याह तं नरं।
श्री: पद्मे कमले लक्षिमत्याह माता च तां स्त्रियं।।१९।।
ब्रह्मन विधे विरंचि धात:, दिए पुरुष को नाम।
श्री पद्मा कमला लक्ष्मी, नामित नारि ललाम।।
महाकाली भारती च मिथुन सृजत: सह।
एतयोरपि रूपाणि नामानि च वदामि ते।।२०।।
महाकाली भारती ने, भी युग्म दो पैदा किये।
रूप गुण उनके हुए कैसे, बताता हूँ तुम्हें।।
नीलकण्ठं रक्तबाहुं श्वेतांग चंद्रशेखरं।
जनयामास पुरुषं महाकाली सितां स्त्रियं।।२१।।
नील कंठ भुज लाल श्वेत तन चंद्र शीश पर।
जन्मा नर; माँ काली से गोरी नारी सँग।।
स रूद्र: शंकर: स्थाणुः कपर्दी च त्रिलोचन:।
त्रयी विद्या कामधेनु: सा स्त्री भाषाक्षरा स्वरा।।२२।।
पुरुष रूद्र शंकर स्थाणु कपर्दी त्रिलोचन।
स्त्री त्रयी विद्या कामधेनु भाषाक्षरा स्वरा।।
सरस्वती स्त्रियाँ गौरीन कृष्णं च पुरुषं नृप।
जनयामास नामानि तयोरपि वदामि ते।।२३।।
सरस्वती से गोरी नारी श्यामल पुरुष हुए राजन!।
उन दोनों को नाम मिले जो कहता हूँ, वे भी सुन लो।
विष्णु: कृष्णो हृषीकेशो वासुदेवो जनार्दन:।
उमा गौरी सती चंडी सुंदरी सुभगा शिवा।।२४।।
विष्णु कृष्ण हृषिकेश वासुदेव जनार्दन नाम पुरुष के।
उमा गौरी सती चंडी सुंदरी सुभगा शिवा स्त्री के।।
एवं युवतय: सद्य: पुरुषत्वं प्रपेदिरे।
चक्षुष्मंतो नु पश्यंति नेतरेsतद्विदो जना:।।२५।।
हुईं शीघ्र ही तीन नारियाँ तीनों पुरुष रूप को प्राप्त।
देख न सकते चर्म चक्षु यह, देखें ज्ञान नेत्र ही आप्त।।
ब्रह्मणे प्रददौ पत्नीं महालक्ष्मीर्नृप त्रयीम्।
रुद्राय गौरी वरदां वासुदेवाय च श्रियम्।।२६।।
महालक्ष्मी ने ब्रह्मा को सौंपी त्रयी पत्नि राजन!।
और रूद्र को गौरी दी, दी वासुदेव को श्री नृपवर!।।
स्वरया सह संभूय विरिंचोsण्डमजीजनत्।
विभेद भगवान् रुद्रस्तद् गौर्या सह वीर्यवान्।।२७।।
स्वर के साथ मिले ब्रह्मा जी, तब ब्रह्माण्ड यहाँ जन्मा।
वीर्यवान शिव ने गौरी के साथ किया भेदन उसका।।
अण्डमध्ये प्रधानादि कार्यजातमभून्नृप।
महाभूतात्मकं सर्वं जगत्स्थावरजंगमम्।।२८।।
अंड मध्य में मूल मुख्य कारज से भू जन्मी राजन।
महाभूतमय है समस्त जड़-जंगम कहते विद्वज्जन।।
पुपोष पालयामास तल्लक्षम्या सह केशव:।
संजहार जगत्सर्वं सह गौर्या महेश्वर:।।२९।।
पोषण-पालन किया जगत का साथ लक्ष्मी के केशव ने।
और किया संहार सर्व का गौरी साथ महेश्वर ने।।
महालक्ष्मीर्महाराज सर्वसत्वमयीश्वरी।
निराकारा च साकारा सैव नानाभिधानभृत।।३०।।
महाराज! है महालक्ष्मी तत्वमयी सर्वेश्वरी।
निराकार-साकार वही हैं नाना नाम उन्हीं के हैं।।
नामांतरैर्निरूप्यैषा नाम्ना नान्येन केनचित्।।३१।।
नाम भेद से करें निरूपण, एक नाम से हो न सके।।
(टीप - नामभेद सत्य, ज्ञान, चित्, महामाया आदि)
***

कार्यशाला- दोहा / रोला/ कुण्डलिया

कार्यशाला- दोहा / रोला/ कुण्डलिया
मन का डूबा डूबता , बोझ अचिन्त्य विचार ।
चिन्तन का श्रृंगार ही , देता इसे उबार ॥ -शंकर ठाकुर चन्द्रविन्दु 
देता इसे उबार, राग-वैराग साथ मिल। 
तन सलिला में कमल, मनस का जब जाता खिल।। 
चंद्रबिंदु शिव भाल, सोहता सलिल-धार बन। 
उन्मन भी हो शांत, लगे जब शिव-पग में मन।। -संजीव वर्मा 'सलिल'
***
कार्य शाला: दोहा / रोला / कुण्डलिया
*
तुहिन कणों से सज गए,किसलय कोमल फूल।
"दीपा" कैसे दिख रहे, धूल सने सब शूल।। - माँ प्रदीपा
धूल सने सब शूल, त्रास दे त्रास पा रहे।
दे परिमल सब सुमन, जगत का प्यार पा रहे।।
सुलझे कोई प्रश्न, कभी कब कहाँ रणों से।
किसलय कोमल फूल सज गए तुहिन कणों से।। - संजीव
***
५.१०.२०१८
 

PREFACE "THE SECOND THOUGHT

 PREFACE

"THE SECOND THOUGHT" - Portrait of real life
Acharya Sanjiv Verma 'Salil'
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A commoner relates Poetry with imagination rather than the realities of life but in his second poetry collection titled "the Second Thought" Pro. Anil Jain contradict it by giving poems related with day to day life. He has successfully and very beautifully used the famous lines by notable western poets Becon, Wordsworth, Shelley, James Hadley Chase, Irving Washington, Irving Wallace etc. in Present Indian contexts proving that poetry is eternal and can't be imprisoned in the cages of nations, colour or creeds.
We are all worried about position of women in the Indian society as well as exploitation and crimes against women. According to Anil ji the reason behind this scenario is that every man wants a woman of his dreams, see her through the eyes of his imagination and try to fix her in the casing. It is really sad that in a society where women are termed goddess saying "yatra naaryastu poojyante ramante tatra devata" i.e. God live there where women are worshiped, they are suffering beyond limits. None can appreciate this. It is miserable that women are bound to say "I am ashamed of myself." This ugly and unwanted social scenario gives birth to so called "stree vimarsh" (clash between men and women).
Anil ji being a profesor, is closely connected with our education system. He rightly raise finger on the system saying "You are breeding only servants / You have no enterpreneurship."
In another poem Anil ji describes about lives of maid servants- "She came every morning / And worked hard / From dawn to dusk / She never complained / And sing all along / While she works."But what she got in receprocation? Only hatrat and exploitation by all her husband, society ant master, Ultimately resulting in "She does / Neither work / Nor sing." This is the real picture of our society and we all have to change it. ee
All these poems look the life with a different angel and give a healthy thought to make it better. We are rapidly getting alchohalic to web world and our routine is disturbed, Anil ji is worried looking the ill effects increasing day by day. He correctly warns- "We had our line crossed / While surfing / And caught in the web."
Sometimes we are made bound to face the so called "swadeshi" instinct when mob compel us not to use foreign made material though it is permitted by the government. Anil ji condem such activity saying- "they have stopped using electricity / For it was invented by an infidal / And living in the dark." Anil ji correctly warns us to be practical and broad minded.
Acharya Chatursen a prominent Hindi novelist critisised narrow nationalism as an evil as it killed numberless people on borders. Anil ji take one step forward saying " The globe is defining itself / A new.... Nations internationalized / No discrimination of cultures." just following Vedik ideal "Vasudhaiv kutumbakam and Vishvaik needam" etc.
In all the four parts titled Pal, Fantasy, Harmony and Passing away Anil ji used the notable lines of great poets in such a way that they became indifferent and integral part of the poems.
In the age when we are being divided on the name of languages by the narrow minded, power oriented politicians, it is really courageous to take a step forward in the interest of man kaind as a whole. I'm sure that the poems of "The Second tThought" wiill be admired by the readers.
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एक दोहा

एक दोहा 
लिखा शब्द बिन कर्म से, खुद ही अपना भाग्य
पढ़ी जिंदगी शब्द बिन, लिया नहीं वैराग्य.

लेख -अभियंता बने बाबू

 विशेष लेख: देश का दुर्भाग्य : ४००० अभियंता बाबू बनने की राह पर

रोम जल रहा... नीरो बाँसुरी बजाता रहा...

 

-: अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल' :-

 

किसी देश का नव निर्माण करने में अभियंताओं से अधिक महत्वपूर्ण भूमिका और किसी की नहीं हो सकती. भारत का दुर्भाग्य है कि यह देश प्रशासकों और नेताओं से संचालित है जिनकी दृष्टि में अभियंता की कीमत उपयोग कर फेंक दिए जानेवाले सामान से भी कम है. स्वाधीनता के पूर्व अंग्रेजों ने अभियंता को सर्वोच्च सम्मान देते हुए उन्हें प्रशासकों पर वरीयता दी. सिविल इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को 'सर' का सर्वोच्च सम्मान देकर धन्यता अनुभव की.

 

स्वतंत्रता के पश्चात् अभियंताओं के योगदान ने सुई तक आयत करनेवाले देश को विश्व के सर्वाधिक उन्नत देशों की टक्कर में खड़ा होने योग्य बना दिया पर उन्हें क्या मिला? विश्व के भ्रष्टतम नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों ने अभियंता का सतत शोषण किया. सभी अभियांत्रिकी संरचनाओं में प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी बना दिए गये. अनेक निगम बनाये गये जिन्हें अधिकारियों और नेताओं ने अपने स्वार्थ साधन और आर्थिक अनियमितताओं का केंद्र बना दिया और दीवालिया हो जाने पा भ्रष्टाचार का ठीकरा अभियंताओं के सिर पर फोड़ा. अपने लाड़ले गुंडों को ठेकेदार बनाकर, उनके लाभ के अनुसार नियम बनाकर, प्रशासनिक दबाब बनाकर अभियंताओं को प्रताड़ित कर अपने मन मर्जी से काम करना-करना और न मानने पर उन पर झूठे आरोप लगाना, उनकी पदोन्नति के रास्ते बंद कर देना, वेतनमान निर्धारण के समय कम से कम वेतनमान देना जैसे अनेक हथकंडों से प्रशासन ने अभियंताओं का न केवल मनोबल कुचल दिया अपितु उनका भविष्य ही अंधकारमय बना दिया.

 

इस देश में वकील, शिक्षक,चिकित्सक और बाबू सबके लिये न्यूनतम योग्यताएँ निर्धारित हैं किन्तु ठेकेदार जिसे हमेशा तकनीकी निर्माण कार्य करना है, के लिये कोई निर्धारित योग्यता नहीं है. ठेकेदार न तो तकनीक जानता है,  न जानना चाहता है, वह कम से कम में काम निबटाकर अधिक से अधिक देयक चाहता है और इसके लिये अपने आका नेताओं और अफसरों का सहारा लेता है. कम वेतन के कारण आर्थिक अभाव झेलते अभियंता के सामने कार्यस्थल पर ठेकेदार के अनुसार चलने या ठेकेदार के गुर्गों के हाथों पिटकर बेइज्जत होने के अलावा दूसरा रस्ता नहीं रहता. सेना और पुलिस के बाद सर्वाधिक मृत्यु दर अभियंताओं की ही है. परिवार का पेट पलने के लिये मरने-मिटाने के स्थान पर अभियंता भी समय के अनुसार समझौता कर लेता है और जो नहीं कर पाता जीवन भार कार्यालय में बैठाल कर बाबू बना दिया जाता है. 

 

शासकीय नीतियों की अदूरदर्शिता का दुष्परिणाम अब युवा अभियंताओं को भोगना पड़ रहा है. सरकारों के मंत्रियों और सचिवों ने अभियांत्रिकी शिक्षा निजी हाथों में देकर अरबों रुपयों कमाए. निजी महाविद्यालय इतनी बड़ी संख्या में बिना कुछ सोचे खोल दिए गये कि अब उनमें प्रवेश के लिये छात्रों का टोटा हो गया है. दूसरी तरफ भारी शुल्क देकर अभियांत्रिकी उपाधि अर्जित किये युवाओं के सामने रोजगार के लाले हैं. ठेकेदारी में लगनेवाली पूंजी के अभाव और राजनैतिक संरक्षण प्राप्त गुंडे ठेकेदारों के कारण सामान्य अभियंता इस पेशे को जानते हुए भी उसमें सक्रिय नहीं हो पाता तथा नौकरी तलाशता है. नौकरी में न्यूनतम पदोन्नति अवसर तथा न्योंतम वेतनमान के कारण अभियंता जब प्रशासनिक परीक्षाओं में बैठे तो उन्हें सर्वाधिक सफलता मिली किन्तु सब अभियंता तो इन पदों की कम संख्या के कारण इनमें आ नहीं सकते. फलतः अब अभियंता बैंकों में लिपिकीय कार्यों में जाने को विवश हैं.

 

गत दिनों स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की लिपिकवर्गीय सेवाओं में २०० से अधिक अभियांत्रिकी स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त तथा ३८०० से अधिक अभियांत्रिकी स्नातक चयनित हुए हैं. इनमें से हर अभियंता को अभियांत्रिकी की शिक्षा देने में देश का लाखों रूपया खर्च हुआ है और अब वे राष्ट्र निर्माण करने के स्थान पर प्रशासन के अंग बनकर देश की अर्थ व्यवस्था पर भार बन जायेंगे. वे कोई निर्माण या कुछ उत्पादन करने के स्थान पर अनुत्पादक कार्य करेंगे. वे देश की राष्ट्रीय और प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने के स्थान पर देश का राष्ट्रीय और प्रति व्यक्ति व्यय बढ़ाएंगे किन्तु इस भयावह स्थिति की कोई चिंता नेताओं और अफसरों को नहीं है. 

 

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लघुकथा सियाह लहरें

 लघुकथा

सियाह लहरें
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दस नौ आठ सात
उलटी गिनती आरम्भ होते ही सबके हृदयों की धड़कनें तेज हो गयीं। अनेक आँखें स्क्रीन पर गड गयीं। कुछ परदे पर दुःख रही नयी रेखा को देख रहे थे तो कुछ हाथों में कागज़ पकड़े परदे पर बदलते आंकड़ों के साथ मिलान कर रहे थे। कुछ अन्य कक्ष में बैठे अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों को कुछ बता रहे थे।
दूरदर्शन के परदे पर अग्निपुंज के बीच से निकलता रॉकेट। नील गगन के चीरता बढ़ता गया और पृथ्वी के परिपथ के समीप दूसरा इंजिन आरम्भ होते ही परिपथ में प्रविष्ट हो गया। आनंद से उछल पड़े वे सब।
प्रधान मंत्री, रक्षा मंत्री आदि ने प्रमुख वैज्ञानिक, उनके पूरे दल और सभी कर्मचारियों को बधाई देते हुए अल्प साधनों, निर्धारित से कम समय तथा पहले प्रयास में यह उपलन्धि पाने को देश का गौरव बताया। आसमान पर इस उपलब्धि का डंका पीट रही थीं रहीं थीं रॉकेट के जले ईंधन से बनी फैलती जा रही सियाह लहरें।
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