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बुधवार, 30 अप्रैल 2025

हिंदी के बढ़ते कदम

लेख 
हिंदी के बढ़ते कदम
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
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स्वतंत्रता और हिंदी 
                    स्वतंत्रता और स्वभाषा का साथ चोली-दामन का सा है। भारत की स्वतंत्रता हेतु क्रांतिकारियों, सत्याग्रहियों, आदिवासियों, आजाद हिंद फौज  तथा सैन्य विद्रोह जैसे सभी प्रयासों का जन्म हिंदी व अन्य भारतीय भाषा-बोलिओं के माध्यम से ही हुआ। गाँधी जी गुजराती, नेताजी बांग्ला भाषी थे तथापि वे हिंदी के पक्षधर रहे। हिंदी को भारत की जनभाषा बनाने में गुजराती भाषी स्वामी दयानंद सरस्वती तथा पंजाबी भाषी देवकी नंदन खत्री का योगदान अबूतपूर्व रहा। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ ने न्यायालय के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए हिंदी और भारतीय भाषाओं के पक्ष में बहुत महत्वपूर्ण बात कही कि हमें अंग्रेजों के युग की मानसिकता को दफनाना होगा। यह 'अंग्रेज़ी मानसिकता' क्या है? अंग्रेजी मानसिकता है, जन सामान्य से दूरी बनाना, उस भाषा में बहस करना जिसे मुवक्किल समझ ही न सके कि क्या कहा या किया जा रहा है? किसी भी देश के लोकतंत्र के लिए यह अच्छा नहीं हो सकता। गृहमंत्री अमित शाह ने हिंदी दिवस पर कहा कि  इस सरकार के नेतृत्व में सभी भारतीय भाषाएँ आगे बढ़ रही है। उनमें कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है और हिंदी इन सबको जोड़ने वाली एक कड़ी है। १५ अगस्त स्वतंत्रता दिवस और १४ सितंबर हिंदी दिवस का होना संयोग मात्र नहीं है, इसका निहितार्थ यह है कि स्वभाषा के बिना स्वतंत्रता प्राप्त नहीं की जा सकती तथा उसकी रक्षा के लिए भी स्वभाषा आवश्यक है। यह सत्य भारतेन्दु हरिश्चंद्र बहुत पहले उद्घाटित कर चुके थे-  

''निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल । बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।। 
अँग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन। पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।।'' 

इंडिया बनाम भारत 

                    जिस भारत को दुनिया केवल 'इंडिया' नाम से जानती थी, अब उसे ‘भारत’ के रूप में जानने लगी है। लगभग सभी अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर ‘भारत’ शब्द का उपयोग क्रमश: बढ़ता जा रहा है। स्वतंत्रता के पश्चात संविधान में पहले से ही ‘इंडिया’ और ‘भारत’ दोनों शब्द सम्मिलित  थे।  यह बिना कहे ही कह दिया गए था कि स्वतंत्र देश के रूप में हमें 'इंडिया' से 'भारत' की दिशा में बढ़ना है। १५ अगस्त से १४ सितंबर तक यह यात्रा क्रमश: मंथर गति से की जाने का कारण यह था कि कई भारतीय भाषाएँ आधुनिक हिंदी के जन्म लेने से सदियों पहले से प्रचलित थीं और उनमें विपुल स्तरीय साहित्य उपलब्ध था। स्वाभाविक ही था कि वे नवजात हिंदी को अस्वीकार करते। राजनैतिक स्वार्थों ने भी हिंदी की राह में बाधा डाली तथापि भारत की हर सरकार हिंदी को राजभाषा बनाए रखकर कार्य करती रही। यहाँ तक कि दक्षिण भारत में हिंदी के विरोध के बावजूद स्व. पी. वी. नरसिहम्मा राव और श्री एच. डी. देवेगौड़ा जैसे दक्षिण भारतीय प्रधान मंत्रियों के कार्यकालों में भी हिंदी सरकार की राजभाषा बनी रही। गत  कुछ वर्षों में भारतीय भाषाओं की प्रगति के लिए अनेक ठोस कदम उठाए गए हैं। पहला युगांतरकारी परिवर्तन तो यह है कि आजादी के बाद हिंदी में काम करने की बात की गई। राजनैतिक स्वार्थों ने उत्तर और मध्य भारत में इसे अंग्रेजी विरोध का रूप दे दिया। प्रकृति के नियमानुसार इसकी विपरीत प्रतिक्रिया दक्षिण भारत में हुई, वहाँ हिंदी विरोध आरंभ हो गया जबकि भारत सरकार ने विश्व तमिल दिवस, विश्व तेलुगु दिवस आदि के भव्य अनुष्ठान किए, उन पर डाक टिकिट भी निकाले।

हिंदी-अंग्रेजी टकराव 

                    हिंदीतर भारतीय भाषाओं के हाशिए पर आकर नष्ट होने की आशंका को जड़-मूल से मिटाने तथा १९९१  के उदारीकरण के बाद उद्दंड साँड़ की तरह उछल रही अंग्रेजी परस्त मानसिकता को नियंत्रित करते हुए  भारतीय भाषाओं को शिक्षा माध्यम बनाने की मुहिम आरंभ की गई। अमेरिका समेत पश्चिमी देश अंग्रेजी को बढ़ाने में जी-जान से जुटे रहे। कभी वैश्वीकरण (ग्लोबलाइजेशन) के नाम पर, कभी ज्ञान की समृद्ध परंपरा और कभी शिक्षा को बेहतर करने के नाम पर। इस कारण वर्ष २००१ के बाद दुनिया में अंग्रेजी भाषा में सर्वाधिक किताबें भारत में छपीं। भारत में हर साल लगभग १ लाख किताबें छपती हैं, जिनमें से २५% हिंदी, २०% अंग्रेजी और शेष अन्य भारतीय भाषाओं में होती हैं।  यह पुस्तक प्रकाशन उद्योग हर साल लगभग १०% की दर से बढ़ रहा है। दुनिया में २५०  सबसे अधिक बिकने वाली किताबों की सूची में ५० % पुस्तकें भारतीय लेखकों की हैं। इसका प्रमुख कारण बहुत बड़ी जनसंख्या है। सरकारी स्कूल घटने और निजी स्कूल और विश्वविद्यालय बढ़ने का प्रभाव भारतीय भाषाओं पर अंग्रेजी को वरीयता देने के रूप में सामने आ रहा है। हिंदी क्षेत्र में  अंग्रेजी का दबदबा बढ़ने का  दुष्प्रभाव यह हुआ की विद्यार्थी न तो अंग्रेजी सीख सके, न हिंदी।  इसका दुष्प्रभाव हिंदीभाषी राज्यों के युवाओं की रचनात्मक उर्वरता पर हुआ, फलत: बेरोजगारी बढ़ती गई। बांग्ला, मराठी, मलयालम, तमिल, कन्नड़, मराठी और गुजराती भाषाओं से भी अंग्रेजी का टकराव हुआ किंतु ये राज्य अपनी भाषाओं को बचाने में हिंदीभाषी राज्यों से अधिक  सक्षम साबित हुए हैं। इसका कारण हिंदी भाषी क्षेत्रों में मानक हिंदी की तुलना में स्थानीय बोलिओं के प्रति लगाव तथा अंग्रेजी को शासकों की भाषा मानकर शासक वर्ग में प्रवेश के लिए अंग्रेजी का पिछलग्गू बनने की मानसिकता है। 

हिंदी में तकनीकी शिक्षा 

                    अपवाद स्वरूप मध्य प्रदेश में वर्ष १९७०- ७१ में जबलपुर पॉलिटेकनिक के छात्रों के नेतृत्व में अभियांत्रिकी पाठ्यक्रम हिंदी में पढ़ाने के लिए प्रांत व्यापी हड़ताल हुई। हड़ताल तो जैसे-तैसे समाप्त कर दी गई किंतु यह विचार नष्ट नहीं हुआ और चिंगारी धीरे-धीरे सुलगती रही। अभियंता संघों ने अपने सदस्यों से हिंदी में अधिकाधिक कार्य करने का आग्रह किया, अभियांत्रिकी जानकारियों की डायरी हिंदी में छापी गई, सरकारी दस्तावेजों और पत्राचार में हिंदी का अधिकाधिक उपयोग किया जाता रहा। मैं स्वयं भी  इन गतिविधियों को गति देने में समर्पित रहा। मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध आदर्शवादी नेता स्व। कुशभाऊ ठाकरे के अनुज स्व. जयंत ठाकरे मराठी भाषी होते हुए भी हिंदी के प्रति समर्पित रहे। निरंतर बढ़ते जन-दबाव के कारण प्रांतीय सरकार ने भी हिंदी के प्रति समर्थन की नीति बनाई। फलत: पहले त्रिवर्षीय डिप्लोमा फिर बी.ई./बी.टेक. और अब एम.बी.बी.एस. आदि के  पाठ्यक्रम हिंदी में पढ़ाए जा रहे हैं। विद्यार्थी हिंदी या अंग्रेजी या मिश्रित भाषा में उत्तर लिख सकते हैं। फार्मेसी, कंप्यूटर साइन्स, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि विषय हिंदी माध्यम से ही पढ़ाए जा रहे हैं। खेद यह है कि मध्य प्रदेश में हिंदी में तकनीकी शिक्षा की नीति शेष हिंदी भाषी राज्यों छत्तीसगढ़, बिहार, झटखण्ड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान दिल्ली आदि में अब तक नहीं अपनाई जा सकी है। हिंदी भाषी जनता, साहित्यकार और जनप्रतिनिधि इस दिशा में उदासीन हैं।  नई शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं को आगे बढ़ने का मूल मंत्र चुना गया है। पूरे देश में प्राइमरी शिक्षा उनकी मातृभाषा में दिए जाना अनिवार्य कर दिया गया है। तकनीकी और उच्च  शिक्षा मातृभाषा में दिए जाने का प्रभाव यह होगा कि बच्चों को लाखों अंग्रेजी शब्दों के हिज्जे (स्पेलिंग) रटने से मुक्ति मिल जाएगी, विषय कम कठिन लगेगा और जल्दी समझ में आने से लिखित व मौखिक परीक्षा में बेहतर अंक मिलेंगे। भाषा समझकर उत्तर देने से साक्षात्कार में बेहतर प्रस्तुति करना संभव होगा। हिंदी में प्रवीणता और तकनीकी विषयों को अभिव्यक्त करने की सामर्थ्य बढ़ने पर तकनीकी किताबें लिखने, अनुवादित करने तथा तकनीकी परियोजनाओं के प्राक्कलन, प्रतिवेदन, मूल्यांकन, शोध आदि कार्य करने के लिए रोजगार अवसर बढ़ेंगे।     

प्रशासनिक परीक्षाओं में हिंदी 

                  केंद्र सरकार के कर्मचारी चयन आयोग ने २५ मंत्रालयों के लिए कर्मचारियों की भर्ती के लिए २३ भारतीय भाषाओं में परीक्षा की तैयारी की है। पिछले ८ सालों से यह परीक्षा हिंदी समेत १३ भाषाओं में हो रही है। पहले इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। वर्ष २०११ में तत्कालीन सरकार ने संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा  के प्रथम चरण में ही अंग्रेजी लाद दी थी। फलत:, ३ वर्ष में हिंदी और भारतीय भाषाओं में पढ़ने-लिखने वाले उम्मीदवार लुप्त हो गए। महाराष्ट्र व तमिलनाडु सहित देशभर में छात्रों ने आंदोलन किया, दिल्ली के मुखर्जी नगर और करोल बाग में बच्चे सड़कों पर उतरे। मामला न्यायालय तक गया। दिल्ली उच्च न्यायालय ने सरकार से कोठारी रिपोर्ट के खिलाफ प्रथम चरण में अंग्रेजी थोपने का कारण पूछा, सरकार संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाई। अंततः २०१४ में प्रथम चरण में थोपी गई अंग्रेजी को हटाया गया। अब सिविल सेवा परीक्षा के परिणामों में हिंदी और भारतीय भाषाओं के उम्मीदवारों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है। अब लगभग ९% बच्चे भारतीय भाषाओं के चुने गए हैं जबकि सन १९८०-९० के दशकों में यह लगभग २०% थी। 

                  वर्ष १९७९ में शिक्षाविद दौलत सिंह ‘कोठारी आयोग’ की सिफारिश के अनुसार सिविल सेवा परीक्षा में  पहली बार भारतीय भाषाओं में परीक्षा देने की शुरुआत की गई थी। कोठारी कमेटी का तर्क था कि क्या प्रतिभा (टैलेंट) सिर्फ अंग्रेजी माध्यम से पढ़नेवालों में ही होती है? भारतीय भाषाओं के अधिकांश बच्चे कहां जाएंगे? क्या इनका उच्च सेवाओं में जाने का कोई अधिकार नहीं है? इसलिए एक सच्चे लोकतंत्र में सभी भाषाओं को आठवीं सूची में उल्लेखित सभी भाषाओं को मौका मिलना चाहिए! उन्होंने अपनी सिफारिशों में यह तक कहा था की जिन अधिकारियों को भारतीय भाषाएँ नहीं आती, उनको इस देश पर शासन करने का कोई हक नहीं है।" तब गाँधीवादी मोरारजी देसाई की जनता सरकार ने सिफारिश को लागू कर दिया गया। इसका चमत्कारिक असर यह था कि जिस परीक्षा में बैठनेवालों की संख्या लगभग १०,००० थी, वह वर्ष १९७९ में वह एक लाख से भी ज्यादा हो गई। वर्ष १९८९ में ‘सतीश चंद्र कमेटी’ ने माना कि सिविल सेवा परीक्षा में भारतीय भाषाओं को शामिल करने से लोकतंत्र तो मजबूत हुआ है और भारतीय भाषाओं कोसम्मान मिला है। वर्ष २००० में जाने-माने अर्थशास्त्री योगेंद्र अलग की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने भी भारतीय भाषाओं के प्रवेश पर मुहर लगाई। लेकिन अफसोस यूपीएससी की बाकी परीक्षाएँ जैसे वन सेवा, आर्थिकी सेवा, मेडिकल सेवा, इंजीनियरिंग परीक्षा इत्यादि अभी भी सिर्फ अंग्रेजी माध्यम में ही होती हैं। हमें सभी परीक्षाओं में भारतीय भाषाओं को माध्यम बनवाने के लिए सजग और सचेष्ट होना होगा। 

भाषा और गुलामी की मानसिकता 

                  संयुक्त राष्ट्र संघ के एक अध्ययन के अनुसार विश्व के सर्वोन्नत १० देश रूस, चीन, जापान, जर्मनी आधी ऐसे हैं जो उच्च और तकनीकी शिक्षा स्वभाषा में देते हैं जबकि १० सर्वाधिक पिछड़े देश वे हैं जो पूर्व में गुलाम रहे। वे विदेशी भाषा को संप्रभुओं की भाषा मानकर  उच्च व तकनीकी शिक्षा विदेशी भाषा में दे रहे हैं। रूस- यूक्रेन युद्ध में वहाँ पढ़ रहे २०,००० भारतीय डॉक्टरों की पढ़ाई आगे भारत में नहीं कराई जा सकी चूँकि वहाँ की प्रांतीय व राज्य की भाषा सिखाकर उसे में मेडिकल की पढ़ाई कराई जाती है। मेडिकल प्रवेश परीक्षा, जिसे ‘नीट’ जो पहले केवल अंग्रेजी में होती थी, अब १५ भाषाओं में कराई जा रही है। ग्रामीण अंचलों में सिर्फ प्रांतीय भाषाओं में ही बेहतर शिक्षा उपलब्ध है।

मानक हिंदी और बोध गम्यता   

                  दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, जामिया विश्वविद्यालय अंबेडकर आदि केंद्रीय विश्वविद्यालयान में ने वर्ष १९७४-७६ में २०% से ज्यादा बच्चे स्नातकोत्तर में हिंदी माध्यम चुनते थे, अंग्रेजी के कैंसर ने ऐसा असर किया कि छात्रों ने हिंदी माध्यम चुनना बंद कर दिया।इसका मुख्य कारण यह है कि पुस्तकीय हिंदी इतनी क्लिष्ट और अप्रचलित है कि उसकी तुलना में अंग्रेजी पढ़ना सहज लगता है। हिंदी माध्यम तब ही लोकप्रिय होगा जब पाठ्य पुस्तकों की भाषा सहज बोधगम्य होगी, उसमें प्रचलित शब्दों का प्रयोग किया जाएगा और तकनीकी तथा पारिभाषिक शब्द ज्यों के त्यों देवनागरी लिपि में लिखे जाएँगे। यदि तकनीकी तथा पारिभाषिक शब्दावली अलग-अलग भाषाओं में भिन्न-भिन्न रूपों में अनुवादित किए जाएँगे तो एक प्रांत से पढ़ा छात्र दूसरे प्रांत में अध्ययन, अध्यापन या कार्य नहीं कर सकेगा। तकनीकी भाषा को सरल-सहज रखने के लिए पहले सरकार और फिर समाज को आगे बढ़ना होगा। 

                  हिंदी और भारतीय भाषाओं के लिए सुखद स्थिति इस समय यह है कि सत्ता पर बैठे प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और सभी राजनेता अपनी बात भारतीय भाषा और हिंदी में करते हैं। संसद में भी अधिकतर बहस हिंदी और भारतीय भाषाओं में होती है। राज्य की विधानसभाओं में तो ऐसा होता ही है। नौकरशाहों की तुलना में राजनेता जन-भाषा लोक भाषा के अधिक निकट हैं । पत्रकारिता में अंग्रेजी के दीवाने एंकरों  को अंग्रेजी में  प्रश्न पूछने पर हिंदी में जवाब मिलता है। परिदृश्य बदल रहा है। 

भारतीय भाषाएँ और न्यायपालिका 

                  सर्वाधिक शोचनीय स्थिति न्यायालयों में है। भारत के संविधान के अनुच्छेद ३४८ (१) (ए) में यह कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाही अंग्रेजी भाषा में होगी। हालाँकि, भारत के संविधान के अनुच्छेद ३४८ (२) में यह प्रावधान है कि किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से, उस राज्य में अपनी मुख्य पीठ वाले उच्च न्यायालय की कार्यवाही में हिंदी भाषा, या राज्य के किसी भी आधिकारिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली किसी अन्य भाषा के प्रयोग को अधिकृत कर सकता है। इसके अलावा, राजभाषा अधिनियम, १९६३ की धारा ७ में यह कहा गया है कि किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से, उस राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय, डिक्री या आदेश के प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा के साथ-साथ हिंदी या राज्य की आधिकारिक भाषा के प्रयोग को अधिकृत कर सकता है। अगर कोई निर्णय, डिक्री या आदेश किसी ऐसी भाषा (अंग्रेजी भाषा के अलावा) में पारित या दिया जाता है, तो उच्च न्यायालय के अधिकार के तहत उसका अंग्रेजी भाषा में अनुवाद भी संलग्न होगा।सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय भारतीय भाषाओं में अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध कराए हैं। उच्च न्यायालय वकीलों की बात उनकी अपनी भाषा में सुनने लगे हैं। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में २ दसक पूर्व न्यायमूर्ति गुलाब गुप्ता  ने हिंदी में फैसला दिया।  केरल हाईकोर्ट अपना निर्णय मलयालम भाषा में दे चुकी है। 

                  तमिलनाडु सरकार हिंदी का विरोध के बावजूद तमिल को महत्व देती है। दक्षिण के राज्यों में उनकी अपनी भाषा मैट्रिक तक अनिवार्य है। महाराष्ट्र के मैट्रिक पढ़ने वाले ज्यादातर छात्रों के पास तो चार भाषाएँ (मराठी, इंग्लिश, हिंदी और संस्कृत या उर्दू) होती हैं। पंजाब में नई सरकार ने दसवीं कक्षा तक पंजाबी भाषा को अनिवार्य किया है। दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्र में लगभग ४००० स्कूल हैं। निजी स्कूलों में हिंदी मुश्किल से सिर्फ आठवीं तक पढ़ाई जाती है जबकि अंग्रेजी, चीनी, जापानी, फ्रेंच, जर्मन आदि भाषाएँ  पढ़ाई जा रही हैं। इन निजी स्कूलों में ९ वीं कक्षा में अंग्रेजी अनिवार्य  है, हिंदी नहीं। इस स्थिति को बदलना होगा। गुजरात के स्कूलों में अंग्रेजी बढ़ने के विरोध में समाज उठ खड़ा हुआ। ३ महीने में मुख्य मंत्री मानना पड़ा कि गुजराती न केवल दसवीं बल्कि १२ वीं तक पढ़ाई जाएगी। दिल्ली के लिए उदाहरण प्रासंगिक है। यहाँ सभी सरकारी और निजी स्कूलों में १२ वी  तक हिंदी तुरंत अनिवार्य की जाए। समाज शास्त्रियों का आकलन है कि समझ के विकास के लिए अपनी भाषा में शिक्षा बहुत जरूरी है।  यही समझ अपने समाज व उसकी समस्याओं को हल करने के काम आती है। यह अचानक नहीं है कि दक्षिण के राज्य उत्तर के मुकाबले में ज्यादा तार्किक और बेहतर विकास की तरफ अग्रसर हैं। फिर वह चाहे जनसंख्या नियंत्रण का मामला हो, स्त्री शिक्षा का हो, शिक्षा की बेहतरीन का हो या फिर कानून व्यवस्था का। व्यापार और उद्योग के क्षेत्र में भी उत्तर भारत के मुकाबले वे कहीं बेहतर साबित कर रहे हैं। 

हिंदी का उज्ज्वल भविष्य 

                  हिंदी भाषा के भविष्य की चर्चा करते समय हम सबका यह दायित्व है कि हम अपने चारों तरफ ऐसा वातावरण तैयार करें जिसमें बच्चे विदेशी भाषा के दबाव में किताबों और शिक्षा से दूर न हो। गाँधी जी ने भारत की सभी भाषाओं को देवनागरी लिपि में लिखने की अनुशंसा की थी ताकि हर भारतीय एक दूसरे की भाषा को पढ़ और धीरे-धीरे समझ सके। भारत की भाषिक एकता का जो सपना गाँधी जी ने देखा था उसे साकार करने का समय आ गया है। विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर ने सद्य प्रकाशित साझा काव्य संकलन 'चंद्रविजय अभियान में देश की ५३ भाषा-बोलियों की कविताएँ देवनागरी लिपि में अर्थ सहित प्रकाशित कर महत्वपूर्ण कदम उठाया है। मैंने इस संकलन में १५ बोलिओं में चंद्र यान परियोजना पर केंद्रित काव्य रचना की है। हम सबको देश के विविध अंचलों की यात्रा करते समय वहाँ के कुछ शब्द सीखकर अपने शब्द भंडार में सहेज लेना चाहिए। गत वर्ष मलेशिया यात्रा में मैंने शौचालय के लिए 'टंडास' शब्द देखा और अपने साथियों को बताया कि यह शब्द भारत में प्रयुक्त होते शब्द 'संडास' का रूपांतरण है, ऐसे अनेक शब्द हैं जी भारत से फारस, इंगलेंड और अन्य देशों में पहुँचे हैं। दीवाल - द वाल, मातृ-मातर-मादर-मदर, पितृ-पितर-फिदर-फादर, भातृ-बिरादर-ब्रदर आदि हजारों शब्द भारत से अन्य देशों में गए और अन्य देशों से भारत में आए हैं। भाषिक शुद्धिकरण के नाम पर ऐसे शब्दों कोअमान्य करने की ओछी मानसिकता को रोक जाना चाहिए। शब्दों और भाषा को व्यापक बनाने का कार्य महिलाएँ, कर्मचारी, विद्यार्थी और व्यापारी सर्वाधिक करते हैं। महिलाएँ मायके के शब्दों और भाषा को ससुराल ले जाती हैं। कर्मचारी स्थानांतरण में जगह-जगह अपनी भाषा ले जाते हैं। विद्यार्थी जहां पढ़ने जाते हैं वहाँ की भाषा सीखते और वहाँ अपनी भाषा में काम करते हैं। व्यापारी अपने माल के साथ-साथ भाषा का भी विनिमय करते हैं। भारत में ये सभी वर्ग दिनों दिन अधिकाधिक सक्रिय व समर्थ हो रहे हैं। राजनैतिक नेता स्वार्थ सिद्धि हेतु भाषिक टकराव को हवा न दें तो भाषिक एकता और समन्वय शीघ्र हो सकेगा। यह स्पष्ट है की भारत ही नहीं विश्व में भी हिंदी समझने, बोलने, लिखने और काम करने वालों की संख्या टेजी से बढ़ रही है, इसलिए हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है।
***
संपर्क- विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१ 
चलभाष ९४२५१८३२४४ ईमेल- salil.sanjiv@gmail.com 
  

पंडित कमलापति त्रिपाठी ने हिंदी को भारतीय संस्कृति की आत्मा कहा है।

हिंदी भाषा की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह अन्य भाषाओं को भी अपने अंदर आत्मसात कर लेती है ।हिंदी भाषा ने अन्य भाषाओं को उर्दू, अरबी, अंग्रेजी सभी को अपने अंदर शामिल कर लिया है जिस प्रकार सागर अपने अंदर सभी नदियों को समाहित कर लेता है वैसे ही हिंदी भाषा ने भी अपने अंदर अन्य भाषाओं को समाहित कर लिया है।



इस तरह हम अपनी भाषा को राजभाषा से राष्ट्रभाषा का दर्जा दिला सकते है ।यह जन -जन की भाषा है। हिंदी उत्तर भारत में बोली जाने वाली मुख्य भाषा है। आम बोल चाल की भाषा होने के कारण हर व्यक्ति इसको आसानी से समझ सकता है। इसलिए हम हिंदी के इस सफर में उसे वह सम्मान दिलाना चाहते हैं जिससे वह राष्ट्रभाषा के पद पर सुशोभित हो सके।

हिंदी से है हिंदुस्तान ,ये है भारत की पहचान

हिंदी है भारत की शान ,हिंदी है हमारा अभिमान

विश्व धरा पे हम इसको ,एक नयी पहचान दिलायें

"Hindi ke Badhte Charan" (हिन्दी के बढ़ते चरण) विषय बहुत महत्वपूर्ण है और इसे भारतीय भाषाओं के विकास के संदर्भ में समझना चाहिए। यह विकास कई चरणों में हुआ है:

1. प्राचीनकाल (Ancient Period): हिन्दी की उम्र को सबसे पहले आदिकाल कहा जा सकता है, जब इसकी प्रारंभिक रूपेण प्रयोग हुआ। इस समय हिन्दी का संबंध वेदों और महाभारत जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथों से था।

2. मध्यकाल (Medieval Period): मुग़ल साम्राज्य के बाद, हिन्दी का विकास और आलोचना सहित विभिन्न भाषाओं के प्रभाव में था। अवधी, ब्रज और खड़ी बोल इस दौरान महत्वपूर्ण थे।

3. आधुनिककाल (Modern Period): हिन्दी की स्थिति और विकास अंग्रेजी ब्रिटिश साम्राज्य के आगमन के बाद बदली। हिन्दी और उसकी विभिन्न लहजों का आधिकारिक रूप सरकार के द्वारा स्वीकृत हुआ, और यह अधिक प्रमिनेंट हो गई।

4. स्वतंत्रता संग्राम (Independence Movement): हिन्दी भाषा ने स्वतंत्रता संग्राम के समय एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और इसके बाद भी यह भाषा भारतीय संघर्ष के एक प्रतीक के रूप में जीवंत रही।

5. समकालीन (Contemporary Period): हिन्दी आजकल भारत की राजभाषा है और यह देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह भाषा सिनेमा, साहित्य, संगीत, और विज्ञान में भी विकसन कर रही है।

समग्र रूप में, "हिन्दी के बढ़ते चरण" दिखाते हैं कि हिन्दी भाषा का विकास एक लंबे और समृद्ध इतिहास के साथ हुआ है, और यह भाषा भारतीय समाज के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में आज भी महत्वपूर्ण है।

भारत की राजभाषा होने के साथ-साथ, हिंदी एक समृद्ध एवं विकसित भाषा है। हिंदी का विकास निरंतर जारी है और आज हिंदी के बढ़ते चरण देखे जा सकते हैं।

हिंदी के बढ़ते चरण के कई कारण हैं। पहला कारण है कि हिंदी भारत की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। भारत की जनसंख्या का लगभग 40% हिस्सा हिंदी भाषी है। दूसरा कारण है कि हिंदी एक सरल और सुबोध भाषा है। हिंदी शब्दावली में अन्य भारतीय भाषाओं के शब्दों का समावेश है। तीसरा कारण है कि हिंदी में आधुनिक वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दों का विकास तेजी से हो रहा है। चौथा कारण है कि हिंदी साहित्य में निरंतर नवाचार हो रहे हैं।

हिंदी के बढ़ते चरण के कई सकारात्मक प्रभाव भी हैं। हिंदी भारत की एकता और अखंडता को बढ़ावा देती है। हिंदी भारत की सांस्कृतिक विविधता को संजोने का कार्य करती है। हिंदी भारत के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

हिंदी के बढ़ते चरण को बनाए रखने के लिए हमें कई प्रयास करने होंगे। सबसे पहले हमें हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए जागरूकता फैलानी होगी। दूसरा हमें हिंदी में आधुनिक तकनीकों का प्रयोग बढ़ाना होगा। तीसरा हमें हिंदी साहित्य के विकास के लिए प्रोत्साहन देना होगा।

यदि हम इन प्रयासों को जारी रखते हैं तो हिंदी भविष्य में भी एक प्रमुख भाषा बनी रहेगी।

यहाँ कुछ विशिष्ट उदाहरण दिए गए हैं जो हिंदी के बढ़ते चरण को दर्शाते हैं:

भारत सरकार ने सभी सरकारी दस्तावेजों को हिंदी में भी प्रकाशित करने का आदेश दिया है।
कई प्राइवेट कंपनियां भी अपने उत्पादों और सेवाओं को हिंदी में उपलब्ध करा रही हैं।
हिंदी साहित्य और फिल्म उद्योग में तेजी से विकास हो रहा है।
हिंदी को भारत के बाहर भी बढ़ावा दिया जा रहा है।
ट्रक साहित्य एक बड़ा ही दिलचस्प विषय है और यह सच है कि यह अक्सर हिन्दी में ही देखने को मिलता है। मुझे लगता है कि इसकी कुछ खास वजहें हैं:
* भारतीय संस्कृति और सड़कें: ट्रक भारतीय परिवहन व्यवस्था की एक महत्वपूर्ण रीढ़ हैं, और ट्रक ड्राइवरों का जीवन भारतीय संस्कृति और सड़कों से गहराई से जुड़ा हुआ है। उनके अनुभव, उनकी भावनाएं और उनके विचार स्वाभाविक रूप से हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में व्यक्त होते हैं।
* सीधा और सरल संवाद: ट्रक साहित्य में अक्सर जीवन की सीधी-सादी बातें, दुःख-सुख और रोज़मर्रा की चुनौतियों का वर्णन होता है। हिन्दी, अपनी व्यापक पहुंच और सरल अभिव्यक्ति के कारण, इन भावनाओं को आसानी से व्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम बनती है।
* लोकप्रिय अभिव्यक्ति का माध्यम: ट्रकों के पीछे लिखी हुई शायरी, संदेश और हास्योक्तियाँ लोक कला और लोकप्रिय अभिव्यक्ति का एक अनूठा रूप हैं। यह ड्राइवरों और आम लोगों के बीच एक सहज संवाद स्थापित करता है।
* साहित्यिक मान्यता की कमी: शायद यही कारण है कि मुख्यधारा के साहित्य में इसे उतना महत्व नहीं दिया गया है, और यह ज़्यादातर हिन्दी भाषी क्षेत्रों तक ही सीमित रह गया है।
यह ज़रूर है कि ट्रक साहित्य में जीवन के कई अनछुए पहलू और गहरी बातें छिपी होती हैं। अगर इसे और अधिक लोगों तक पहुँचाया जाए, तो यह एक समृद्ध साहित्यिक विधा के रूप में उभर सकता है। आपके क्या विचार हैं इस बारे में? क्या आपने कभी कोई दिलचस्प ट्रक शायरी या संदेश पढ़ा है?

अप्रैल ३०, सॉनेट, कोरोना, लघुकथा, राजीव छंद, साधना छंद, रासलीला,

सलिल सृजन अप्रैल ३०
अंतर्राष्ट्रीय जाज़ दिवस
https://www.facebook.com/sanjiv.salil/videos/10217635823869612?idorvanity=305272936324664
जीवन मधुवन
अपर्णा हुई शाख 
धरा ने धरा धैर्य
तना था तना, न झुक
गगन ने लुटाई छाँह
पवन ने पकड़ बाँह
सलिल से कहा 'सींच
जड़ जड़ न हो सके,
पल्लव उगें नए
कलियाँ जवान हों
तितलियाँ उड़ान भर
ख्वाब की तामीर कर
आसमान हाथ में
उठा सकें, सुना सकें
गीत नए मीत को।
फूल उठा फूल झूम
बगिया में मची धूम
नव बहार आ गई।
लोरियाँ, प्रयाण गीत
सुपर्णा सुना गई।
दिनकर का थाम हाथ
ऊषा हँस उठा माथ
जी वन कह जीवन का
मधुवन महका गई।
३०.४.२०२५
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सॉनेट (इटेलीयन)
यह मेहनत करता, वह खाता,
यह पानी पी भूख मिटाता,
वह बोटी खा मौज मनाता,
यह मुश्किल से रोटी पाता।
यह मत दे, वह सत्ता पाता,
यह सरहद पर जान गँवाता,
वह घड़ियाली अश्रु बहाता,
यह उसके हित जान गँवाता।
यह श्रम; वह पूँजीपति; चित-पट,
इसे रौंदकर ठठा रह वह,
यह-वह दो पर अंत एक है।
यह बेरंग और वह गिरगिट,
बना रहा यह; मिटा रहा वह,
यह भी; वह भी राख शेष है।
३०.४.२०२४
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सॉनेट
आदिमानव
आदिमानव भूमिसुत था
नदी माता, नभ पिता कह
पवन पावक पूजता था
सलिल प्रता श्रद्धा विनत वह
उषा संध्या निशा रवि शशि
वृक्ष प्रति आभार माना
हो गईं अंबर दसों दिशि
भूख मिटने तलक खाना
छीनने या जोड़ने की
लत न उसने सीख पाली
बम बनाने फोड़ने की
उठाई थी कब भुजाली?
पुष्ट था खुश आदिमानव
तुष्ट था हँस आदिमानव
३०-४-२०२२
•••
सॉनेट
परीक्षा
पल पल नित्य परीक्षा होती
उठे बढ़े चल फिसल सम्हल कर
कदम कदम धर, विहँस पुलककर
इच्छा विजयी धैर्य न खोती।
अकरणीय क्या, क्या करना है?
खुद ही सोचो सही-गलत क्या?
आगत-अब क्या, रहा विगत क्या?
क्या तजना है, क्या वरना है?
भाग्य भोगना या लिखना है
कब किसके जैसे दिखना है
अब झुकना है, कब अड़ना है?
कोशिश फसल काटती-बोती
भाग्य भरोसे रहे न रोती
पल-पल नित्य परीक्षा होती।
ज्ञानगंगा
३०-४-२०२२
•••
कोरोना क्षणिका
*
काहे को रोना?
कोरो ना हाथ मिला
सत्कार सखे!
कोरोना झट
भेंट शत्रु को कर
उद्धार सखे!
*
को विद? पूछे
कोविद हँसकर
विद जी भागे
हाथ समेटे
गले न मिलते
करें नमस्ते!
*
गीत-अगीत
प्रगीत लिख रहे
गद्य गीत भी
गीतकार जी
गीत करे नीलाम
नवगीत जी
*
टाटा करते
हाय हाय रुचता
बाय बाय भी
बाटा पड़ते
हाय हाय करते
बाय फ्रैंड जी
*
केक लाओ जी!
फरमाइश सुन
पति जी हैरां
मी? ना बाबा
मीना! बाहर खड़ा
सिपाही मोटा
*
रस - हास्य, छंद वार्णिक षट्पदी, यति ५७५५७५, अलंकार - अनुप्रास, यमक, पुनरुक्ति, शक्ति - व्यंजना।
३०-४-२०२०
***
मुक्तक:
पाँव रख बढ़ते चलो तो रास्ता मिल जाएगा
कूक कोयल की सुनो नवगीत खुद बन जाएगा
सलिल लहरों में बसा है बिम्ब देखो हो मुदित
ख़ुशी होगी विपुल पल में, जन्म दिन मन जाएगा
२६-१०-२०१५
***
लघुकथा
अंगार
*
वह चिंतित थी, बेटा कुछ दिनों से घर में घुसा रहता, बाहर निकलने में डरता। उसने बेटे से कारण पूछा। पहले तो टालता रहा, फिर बताया उसकी एक सहपाठिनी भयादोहन कर रही है।
पहले तो पढ़ाई के नाम पर मिलना आरंभ किया, फिर चलभाष पर चित्र भेज कर प्रेम जताने लगी, मना करने पर अश्लील संदेश और खुद के निर्वसन चित्र भेजकर धमकी दी कि महिला थाने में शिकायत कर कैद करा देगी। बाहर निकलने पर उस लड़की के अन्य दोस्त मारपीट करते हैं।
स्त्री-विमर्श के मंच पर पुरुषों को हमेशा कटघरे में खड़ा करती आई थी वह। अभी भी पुत्र पर पूरा भरोसा नहीं कर पा रही थी। बेटे के मित्रों तथा अपने शुभेच्छुओं से- विमर्श कर उसने बेटे को अपराधियों को सजा दिलवाने का निर्णय लिया और बेटे को महाविद्यालय भेजा। उसके सोचे अनुसार उस लड़की और उसके यारों ने लड़के को घेर लिया। यह देखते ही उसका खून खौल उठा। उसने आव देखा न ताव, टूट पड़ी उन शोहदों पर, बेटे को अपने पीछे किया और पकड़ लिया उस लड़की को, ले गई पुलिस स्टेशन। उसने वकील को बुलाया और थाने में अपराध पंजीकृत करा दिया। आधुनिका का पतित चेहरा देखकर उसका चेहरा और आँखें हो रही थीं अंगार।
***
लघुकथा
भवानी
*
वह महाविद्यालय में अध्ययन कर रही थी। अवकाश में दादा-दादी से मिलने गाँव आई तो देखा जंगल काटकर, खेती नष्ट कर ठेकेदार रेत खुदाई करवा रहा है। वे वृक्ष जिनकी छाँह में उसने गुड़ियों को ब्याह रचाए थे, कन्नागोटी, पिट्टू और टीप रेस खेले थे, नौ दुर्गा व्रत के बाद कन्या भोज किया था और सदियों की शादी के बाद रो-रोकर उन्हें बिदा किया था अब कटनेवाले थे। इन्हीं झाड़ों की छाँह में पंचायत बैठती थी, गर्मी के दिनों में चारपाइयाँ बिछतीं तो सावन में झूल डल जाते थे।
हर चेहरे पर छाई मुर्दनी उसके मन को अशांत किए थी। रात भर सो नहीं सकी वह, सोचता रही यह कैसा लोकतंत्र और विकास है जिसके लिए लोक की छाती पर तंत्र दाल दल रहा है। कुछ तो करना है पर कब, कैसे?
सवेरे ऊगते सूरज की किरणों के साथ वह कर चुकी थी निर्णय। झटपट महिलाओं-बच्चों को एकत्र किया और रणनीति बनाकर हर वृक्ष के निकट कुछ बच्चे एकत्र हो गए। वृक्ष कटने के पूर्व ही नारियाँ और बच्चे उनसे लिपट जाते। ठेकेदार के दुर्गेश ने बल प्रयोग करने का प्रयास किया तो अब तक चुप रहे पुरुष वर्ग
का खून खौल उठा। वे लाठियाँ लेकर निकल आए।
उसने जैसे-तैसे उन्हें रोका और उन्हें बाकी वृक्षों की रक्षा हेतु भेज दिया। खबर फैला अखबारनवीस और टी. वी. चैनल के नुमाइंदों ने समाचार प्रसारित कर दिया।
एक जग-हितकारी याचिका की सुनवाई को बाद न्यायालय ने परियोजना पर स्थगन लगा गिया। जनतंत्र में जनमत की जीत हुई।
उसने विकास के नाम पर किए जा रहे विनाश का रथ रोक दिया था और जनगण ने उसे दे दिया था एक नया नाम भवानी।
***
मुक्तिका
पंच मात्रिक राजीव छंद
गण सूत्र: तगण
मापनी २२१
*
दो तीन
क्यों दीन?
.
खो चैन
हो चीन
.
दो झेल
दे तीन
.
पा नाग
हो बीन
.
दीदार
हो लीन
.
गा रोज
यासीन
.
जा बोल
आमीन
.
यासीन कुरआन की एक आयत
***
संवस
३०-४-२०१९
***
मुक्तिका
छंद: साधना छंद
विधान: पंचमात्रिक, पदांत गुरु।
गण सूत्र: रगण
*
एक दो
मूक हो
भक्त हो?
वोट दो
मन नहीं?
नोट लो
दोष ही
'कोट' हो
हँस छिपा
खोट को
विमत को
सोंट दो
बात हर
चोट हो
३०-४-२०१९
***
मुक्तिका: ग़ज़ल
*
निर्जीव को संजीव बनाने की बात कर
हारे हुओं को जंग जिताने की बात कर
'भू माफिये'! भूचाल कहे: 'मत जमीं दबा
जो जोड़ ली है उसको लुटाने की बात कर'
'आँखें मिलायें' मौत से कहती है ज़िंदगी
आ मारने के बाद जिलाने की बात कर'
तूने गिराये हैं मकां बाकी हैं हौसले
काँटों के बीच फूल खिलाने की बात कर
हे नाथ पशुपति! रूठ मत तू नीलकंठ है
हमसे ज़हर को अमिय बनाने की बात कर
पत्थर से कलेजे में रहे स्नेह 'सलिल' भी
आ वेदना से गंग बहाने की बात कर
नेपाल पालता रहा विश्वास हमेशा
चल इस धरा पे स्वर्ग बसाने की बात कर
३०-४-२०१५
***
गीत:
समय की करवटों के साथ
*
गले सच को लगा लूँ मैँ समय की करवटों के साथ
झुकाया, ना झुकाऊँगा असत के सामने मैं माथ...
*
करूँ मतदान तज मत-दान बदलूँगा समय-धारा
व्यवस्था से असहमत है, न जनगण किंतु है हारा
न मत दूँगा किसी को यदि नहीं है योग्य कोई भी-
न दलदल दलोँ की है साध्य, हमकों देश है प्यारा
गिरहकट, चोर, डाकू, मवाली दल बनाकर आये
मिया मिट्ठू न जनगण को तनिक भी क़भी भी भाये
चुनें सज्जन चरित्री व्यक्ति जो घपला प्रथा छोड़ें
प्रशासन को कसे, उद्यम-दिशा को जमीं से जोड़े
विदेशी ताकतों से ले न कर्जे, पसारे मत हाथ.…
*
लगा चौपाल में संसद, बनाओ नीति जनहित क़ी
तजो सुविधाएँ-भत्ते, सादगी से रहो, चाहत की
धनी का धन घटे, निर्धन न भूखा कोई सोयेगा-
पुलिस सेवक बने जन की, न अफसर अनय बोयेगा
सुनें जज पंच बन फ़रियाद, दें निर्णय न देरी हो
वकीली फ़ीस में घर बेच ना दुनिया अँधेरी हो
मिले श्रम को प्रतिष्ठा, योग्यता ही पा सके अवसर
न मँहगाई गगनचुंबी, न जनता मात्र चेरी हो
न अबसे तंत्र होगा लोक का स्वामी, न जन का नाथ…
३०-४-२०१४
***
रासलीला :
*
आँख में सपने सुनहरे झूलते हैं.
रूप लख भँवरे स्वयं को भूलते हैं.
झूमती लट नर्तकी सी डोलती है.
फिजा में रस फागुनी चुप घोलती है.
कपोलों की लालिमा प्राची हुई है.
कुन्तलों की कालिमा नागिन मुई है.
अधर शतदल पाँखुरी से रसभरे हैं.
नासिका अभिसारिका पर नग जड़े हैं.
नील आँचल पर टके तारे चमकते.
शांत सागर मध्य दो वर्तुल उमगते.
खनकते कंगन हुलसते गीत गाते.
राधिका है साधिका जग को बताते.
कटि लचकती साँवरे का डोलता मन.
तोड़कर चुप्पी बजी पाजेब बैरन.
सिर्फ तू ही तो नहीं; मैं भी यहाँ हूँ.
खनखना कह बज उठी कनकाभ करधन.
चपल दामिनी सी भुजाएँ लपलपातीं.
करतलों पर लाल मेंहदी मुस्कुराती.
अँगुलियों पर मुन्दरियाँ नग जड़ी सोहें.
कज्जली किनार सज्जित नयन मोहें.
भौंह बाँकी, मदिर झाँकी नटखटी है.
मोरपंखी छवि सुहानी अटपटी है.
कौन किससे अधिक, किससे कौन कम है?
कौन कब दुर्गम-सुगम है?, कब अगम है?
पग युगल द्वय कब धरा पर, कब अधर में?
कौन बूझे?, कौन-कब, किसकी नजर में?
कौन डूबा?, डुबाता कब-कौन?, किसको?
कौन भूला?, भुलाता कब-कौन?, किसको?
क्या-कहाँ घटता?, अघट कब-क्या-कहाँ है?
क्या-कहाँ मिटता?, अमिट कुछ-क्या यहाँ है?
कब नहीं था?, अब नहीं जो देख पाए.
सब यहीं था, सब नहीं थे लेख पाए.
जब यहाँ होकर नहीं था जग यहाँ पर.
कब कहाँ सोता-न-जगता जग कहाँ पर?
ताल में बेताल का कब विलय होता?
नाद में निनाद मिल कब मलय होता?
थाप में आलाप कब देता सुनायी?
हर किसी में आप वह देता दिखायी?
अजर-अक्षर-अमर कब नश्वर हुआ है?
कब अनश्वर वेणु गुंजित स्वर हुआ है?
कब भँवर में लहर?, लहरों में भँवर कब?
कब अलक में पलक?, पलकों में अलक कब?
कब करों संग कर, पगों संग पग थिरकते?
कब नयन में बस नयन नयना निरखते?
कौन विधि-हरि-हर? न कोई पूछता कब?
नट बना नटवर, नटी संग झूमता जब.
भिन्न कब खो भिन्नता? हो लीन सब में.
कब विभिन्न अभिन्न हो? हो लीन रब में?
द्वैत कब अद्वैत वर फिर विलग जाता?
कब निगुण हो सगुण आता-दूर जाता?
कब बुलाता?, कब भुलाता?, कब झुलाता?
कब खिझाता?, कब रिझाता?, कब सुहाता?
अदिख दिखता, अचल चलता, अनम नमता.
अडिग डिगता, अमिट मिटता, अटल टलता.
नियति है स्तब्ध, प्रकृति पुलकती है.
गगन को मुँह चिढ़ा, वसुधा किलकती है.
आदि में अनादि बिम्बित हुआ कण में.
साsदि में फिर सांsत चुम्बित हुआ क्षण में.
अंत में अनंत कैसे आ समाया?
दिक् में दिगंत जैसे था समाया.
कंकरों में शंकरों का वास देखा.
और रज में आज बृज ने हास देखा.
मरुस्थल में महकता मधुमास देखा.
नटी नट में, नट नटी में रास देखा.
रास जिसमें श्वास भी था, हास भी था.
रास जिसमें आस, त्रास-हुलास भी था.
रास जिसमें आम भी था, खास भी था.
रास जिसमें लीन खासमखास भी था.
रास जिसमें सम्मिलित खग्रास भी था.
रास जिसमें रुदन-मुख पर हास भी था.
रास जिसको रचाता था आत्म पुलकित.
रास जिसको रचाता परमात्म मुकुलित.
रास जिसको रचाता था कोटि जन गण.
रास जिसको रचाता था सृष्टि-कण-कण.
रास जिसको रचाता था समय क्षण-क्षण.
रास जिसको रचाता था धूलि तृण-तृण..
रासलीला विहारी खुद नाचते थे.
रासलीला सहचरी को बाँचते थे.
राधिका सुधि-बुधि बिसारे नाचतीं थीं.
नटी नट की प्रणय पोथी बाँचती थीं.
'सलिल' की हर बूँद ने वह छवि निहारी.
जग जिसे कहता है श्रीबाँकेबिहारी.
३०-४-२०१०
***

मंगलवार, 29 अप्रैल 2025

अप्रैल २९, पूर्णिका, सरस्वती, बुंदेली, सॉनेट, सिंधी, त्रिलोकी छंद, मुक्तक, दोहा

सलिल सृजन अप्रैल २९
*
पूर्णिका
.
अपने सहायक आप हो
नहीं ईश्वर को दोष दो
.
सुख-दुख सहो सम भाव से
खुद को न कोस, न श्रेय लो
.
होनी न रोके से रुके
चुप देख तू हो या न हो
.
औषध व पथ्य न भूलना
मत दे गँवा मन-शांति को
.
कुछ ट्रेन छोड़ उतर गए
कुछ चढ़ गए हैं संग जो
.
ग़म की जमीं पे धैर्य से
संतोष की हँस फसल बो
.
संजीवनी हो श्वास हर
मत व्यर्थ मन का चैन खो
.
जीवन जिओ जिंदा रहो
मत आह भर, तज चाह ढो
२९.४.२०२५
०००
पूर्णिका
हर हर बम बम
मेटो प्रभु तम
.
नयन मूँदकर
ध्याते हैं हम
.
पर पीड़ा लख
नयन हुए नम
.
दहशतगर्दों
खातिर हम यम
.
कोमल हैं तो
मत समझो कम
.
गौरी-काली
नारी में दम
.
भाग न कायर
हो अब बेदम
.
शक्ति-भक्ति मिल
होती अणुबम
.
सलिल समर्पित
हर हर बम बम
२९.४.२०२५
०००

सरस्वती वंदना (बुंदेली)
ओ मैहरवारी सारदा! दरसन दै दो मात।
किरपा बिन सब काम बिगर रय, बनै नें कौनऊ बात।।
*
तुमखों पूजें सबई देवता, देवी, मनु-दनु-संत।
तुमईं सार, तुम बिन कौनउ में तनकउ कऊँ नें तंत।।
करुनाकर मैया! करुना कर, तुम बिन कोऊ नें तात।
ओ मैहरवारी सारदा! दरसन दै दो मात।
*
दसों दिसा मा गूँज रई रे मैया तोरी बीन।
सबई कलाओं में हो मैया सच्ची तुमई प्रबीन।।
सबरे स्वर-ब्यंजन मिल माता तोरे ही गुन गात।
ओ मैहरवारी सारदा! दरसन दै दो मात।
*
चित्र गुप्त है तोरो मैया, दरसन दै दो आज।
भवसागर सें तारो जननी, कर दो पग-रज ताज।।
मैं कपूत पर मैया तुम हो भगतबसल बिख्यात।
ओ मैहरवारी सारदा! दरसन दै दो मात।
२९.४.२०२४
•••
सॉनेट
माँगा, हाथ रहा रीता ही
बिन माँगे जो चाहा, पाया
साथ रहा चुप, पल बीता ही
चला गया जो भी मन भाया
वन जाती केवल सीता ही
सिंहासन रामों ने पाया
जनवाणी रहती क्रीता ही
चरण ने ईनाम कमाया
रहा सुनाता जो गीता ही
काम उसी के मन क्यों भाया?
रीति-नीति जिसकी प्रीता थी
अनय उसी ने ह्रदय बसाया
अपना ही हो गया पराया
साथ न तम में देता साया
२९-४-२०२२
***
नवगीत
*
चार आना भर उपज है,
आठ आना भर कर्ज
बारा आना मुसीबत,
कौन मिटाए मर्ज?
*
छिनी दिहाड़ी,
पेट है खाली कम अनुदान
शीश उठा कैसे जिएँ?
भीख न दो बिन मान
मेहनत कर खाना जुटे
निभा सकें हम फर्ज
*
रेल न बस, परबस भए
रेंग जा रहे गाँव
पीने को पानी नहीं
नहीं मूँड़ पर छाँव
बच्चे-बूढ़े परेशां
नहीं किसी को गर्ज
*
डंडे फटकारे पुलिस
मानो हम हैं चोर
साथ न दे परदेस में
कोई नगद न और
किस पर मुश्किल के लिए
करें मुकदमा दर्ज
२९-४-२०२०
***
गीत
*
नटखट गोपाल श्याम जसुमति का लाला
बरज रही बिरज मही जाओ मत तजकर
टेर रहीं धेनु दुलराओ भुज भरकर
माखन की मटकी लो गोरस का प्याला
जमुना की लहरें-तट, झूमते करील
कुंजों में राधिका, नयन गह्वर झील
वेणु का निनाद; कदंब ऊँचा रखवाला
रास का हुलास, फोड़ मटकी खो जाना
मीठी मुसकान मधुर मन में बो जाना
बाबा का लाड़, मोह मैया ने पाला
***
गीत
आज के इस दौर में भी
*
आज के इस दौर में भी समर्पण अध्याय हम
साधना संजीव होती किस तरह पर्याय हम
मन सतत बहता रहा है नर्मदा के घाट पर
तन तुम्हें तहता रहा है श्वास की हर बाट पर
जब भरी निश्वास; साहस शांति आशा ने दिया
सदा करता राज बहादुर; हुए सदुपाय हम
आपदा पहली नहीं कोविद; अनेकों झेलकर
लिखी मन्वन्तर कथाएँ अगिन लड़-भिड़ मेलकर
साक्ष्य तुहिना-कण कहें हर कली झरकर फिर खिले
हौसला धरकर; मुसीबत हर मिटाने धाय हम
ओम पुष्पा व्योम में, हनुमान सूरज की किरण
वरण कर को विद यहाँ? खोजें करें भारत भ्रमण
सूर सुषमा कृष्ण मोहन की सके बिन नयन लख
खिल गया राजीव पूनम में विनत मुस्काय हम
महामारी पूजते हम तुम्हें; माता शीतला
मिटा निर्बल मंदमति, मेटो मलिनता बन बला
श्लोक दुर्गा शती, चौपाई लिए मानस मुदित
काय को रोना?, न कोरोना हुए निरुपाय हम
गीत गूँजेंगे मिलन के, सृजन के निश-दिन सुनो
जहाँ थे हम बहुत आगे बढ़ेंगे, तुम सिर धुनो
बुनो सपने मीत मिल, अरि शीघ्र माटी में मिलो
सात पग धर, सात जन्मों संग पा हर्षाय हम
***
मुक्तक
सीता की जयकार से खुश हों राजा राम
जय न उमा की यदि करें झट शंकर हों वाम
अर्णव में अवगाह कर अरुण सुसज्जित पूर्व
चला कर्मपथ पर अडिग उषा रश्मि कर थाम
*
अपनी धरा अपना गगन, हम नवा सिर करते नमन
रवि तिमिर हर उजयार दे, भू भारती को कर चमन
जनगण करे सब काम मिल, आलस्य-स्वार्थ न साथ हो
श्रम-स्वेद की जयकार कर, कम हो न किंचित भी लगन
*
शीतल पवन बह कह रहा, आ मनुज प्राणायाम कर
पंछी करे कलरव मधुर उड़, उठ न अब आराम कर
धरकर धरा पर चरण बाँहों में उठा ले आसमां
सूरज तनय पहचान खुद को जगत में कुछ नाम कर
पूछता कोविद यहाँ को विद?
सभी हित काम कर
द्वेष-स्वार्थों में उलझ मत जिंदगी बदनाम कर
बहुत सोया जाग जा अब, टेरता है समय सुन
स्वेद सीकर में नहाकर हँस सुबह को शाम कर
उषा अगवानी करेगी, तम मिटाकर नामवर
भेंट भुजभर हँसे संध्या, रुक थक न चुक न विरामकर
निशा आँचल में सुलाये सुनहरे सपने दिखा
एक दिन तो 'संजीव' सारे काम तू निष्काम कर
२९-४-२०२०
***
सृजन चर्चा
सुमित्र जी के जिजीविषाजयी व्यंग्य दोहे
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
सनातन सलिल नर्मदा का अंचल सनातन काल से सृजनधर्मियों का साधना क्षेत्र रहा है. सम-सामयिक साहित्य सर्जकों में अग्रगण्य डॉ. राजकुमार तिवारी 'सुमित्र' विविध विधाओं में अपने श्रेष्ठ सृजन से सर्वत्र सतत समादृत हो रहे हैं।
दोहा हिंदी साहित्य कोष का दैदीप्यमान रत्न है। कथ्य की संक्षिप्तता, शब्दों की सटीकता, कहन की लयबद्धता , बिम्बों-प्रतीकों की मर्मस्पर्शिता तथा भाषा की लोक-ग्राह्यता के पञ्चतत्वी निकष पर खरे दोहे रचना सुमित्र जी के लिए सहज-साध्य है। सामयिकता, विसंगतियों का संकेतन, विडंबनाऑं पर प्रहार, जनाक्रोश की अभिव्यक्ति और परोक्षतः ही सही पारिस्थितिक वैषम्य निदान की प्रेरणा व्यंग्य विधा के पाँच सोपान हैं। सुमित्र की दशरथी कलम ''विगतं वा अगं यस्य'' की कसौटी पर खरे उतारनेवाले व्यंग्य दोहे रचकर अपनी सामर्थ्य का लोहा मनवाती है।
''आएगा, वह आयेगा, राह देखती नित्य / कहाँ न्याय का सिंहासन, कहाँ विक्रमादित्य'' कहकर दोहाकार आम आदमी की आशावादिता और उसकी निष्फलता दोनों को पूरी शिद्दत से बयां करता है।
समाज में येन-केन-प्रकारेण धनार्जन कर स्वयं को सकल संवैधानिक प्रावधानों से ऊपर समझनेवाले नव धनाढ्य वर्ग की भोगवादी मनोवृत्ति पर तीक्ष्ण कटाक्ष करते हुए निम्न दोहे में दोहाकार 'रसलीन' शब्द का सार्थक प्रयोग करता है- ''दिन को राहत बाँटकर, रात हुई रसलीन / जिस्म गरम करता रहा, बँगले का कालीन'' ।
राजनीति का ध्येय जनकल्याण से बदलकर पद-प्राप्ति और आत्म कल्याण होने की विडम्बना पर सुमित्र का कवि-ह्रदय व्यथित होकर कहता है-
नीतिहीन नेतृत्व है, नीतिबद्ध वक्तव्य।
चूहों से बिल्ली कहे, गलत नहीं मंतव्य।।
*
सेवा की संकल्पना, है अतीत की बात।
फोटो माला नोट है, नेता की औकात।।
*
शैक्षणिक संस्थाओं में व्याप्त अव्यवस्था पर व्यंग्य दोहा सीधे मन को छूता है-
पैर रखा है द्वार पर, पल्ला थामे पीठ।
कोलाहल का कोर्स है, मन का विद्यापीठ।।
*
पात्रता का विचार किये बिना पुरस्कार चर्चित होने की यशैषणा की निरर्थकता पर सुमित्र दोहा को कोड़े की तरह फटकारते हैं-
अकादमी से पुरस्कृत, गजट छपी तस्वीर।
सम्मानित यों कब हुए, तुलसी सूर कबीर।।
*
अति समृद्धि और अति सम्पन्नता के दो पाटों के बीच पिसते आम जन की मनस्थिति सुमित्र की अपनी है-
सपने में रोटी दिखे, लिखे भूख तब छंद।
स्वप्न-भूख का परस्पर, हो जाए अनुबंध।।
*
आँखों के आकाश में, अन्तःपुर आँसू बसें, नदी आग की, यादों की कंदील, तृष्णा कैसे मृग बनी, दरस-परस छवि-भंगिमा, मन का मौन मजूर, मौसम की गाली सुनें, संयम की सीमा कहाँ, संयम ने सौगंध ली, आँसू की औकात क्या, प्रेम-प्यास में फर्क, सागर से सरगोशियाँ, जैसे शब्द-प्रयोग और बिम्ब-प्रतीक दोहाकार की भाषिक सामर्थ्य की बानगी बनने के साथ-साथ नव दोहकारों के लिए सृजन का सबक भी हैं।
सुमित्र के सार्थक, सशक्त व्यंग्य दोहों को समर्पित हैं कुछ दोहे-
पंक्ति-पंक्ति शब्दित 'सलिल', विडम्बना के चित्र।
संगुम्फित युग-विसंगति, दोहा हुआ सुमित्र।।
*
लय भाषा रस भाव छवि, बिम्ब-प्रतीक विधान।
है दोहा की खासियत, कम में अधिक बखान।।
*
सलिल-धार की लहर सम, द्रुत संक्षिप्त सटीक।
मर्म छुए दोहा कहे, सत्य हिचक बिन नीक।।
*
व्यंग्य पहन दोहा हुआ, छंदों का सरताज।
बन सुमित्र हृद-व्यथा का, कहता त्याग अकाज।।
***
छंद कोष से नया छंद
विधान
मापनी- २१२ २११ १२१ १२१ १२१ १२१ १२१ १२।
२३ वार्णिक, ३२ मात्रिक छंद।
गण सूत्र- रभजजजजजलग।
मात्रिक यति- ८-८-८-८, पदांत ११२।
वार्णिक यति- ५-६-६-६, पदांत सगण।
*
उदाहरण
हो गयी भोर, मतदान करों, मत-दान करो, सुविचार करो।
हो रहा शोर, उठ आप बढ़ो, दल-धर्म भुला, अपवाद बनो।।
है सही कौन, बस सोच यही, चुन काम करे, न प्रचार वरे।
जो नहीं गैर, अपना लगता, झट आप चुनें, नव स्वप्न बुनें।।
*
हो महावीर, सबसे बढ़िया, पर काम नहीं, करता यदि तो।
भूलिए आज, उसको न चुनें, पछता मत दे, मत आज उसे।।
जो रहे साथ, उसको चुनिए, कब क्या करता, यह भी गुनिए।
तोड़ता नित्य, अनुशासन जो, उसको हरवा, मन की सुनिए।।
*
नर्मदा तीर, जनतंत्र उठे, नव राह बने, फिर देश बढ़े।
जागिए मीत, हम हाथ मिला, कर कार्य सभी, निज भाग्य गढ़ें।।
मुश्किलें रोक, सकतीं पथ क्या?, पग साथ रखें, हम हाथ मिला।
माँगिए खैर, सबकी रब से, खुद की खुद हो, करना न गिला।।
२९-४-२०१९
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हिंदी-सिंधी सेतु
एक महत्वपूर्ण सारस्वत अनुष्ठान. हिंदी-सिन्धी समन्वय सेतु, देवी नागरानी जी द्वारा संकलित, अनुवादित, संपादित ५५ हिंदी कवियों की रचनाएँ सिन्धी अनुवाद सहित एक संकलन में पढ़ना अपने आपमें अनूठा अनुभव. काश इसमें सिंधी वर्णमाला, वाक्य रचना और अन्य कुछ नियन परिशिष्ट के रूप में होता तो मैं सिंधी सीखकर उसमें कुछ लिखने का प्रयास करता.
देवी नागरानी जो और सभी सहभागियों को बधाई. मेरा सौभाग्य कि इसमें मेरी रचना भी है.अन्य भाषाओँ के रचनाकार भी ऐसा प्रयास करें.
अंग्रेजी, मलयालम और पंजाबी के बाद अब सिन्धी में भी रचना अनुदित हुई.
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१. शब्द सिपाही................. १. लफ्ज़न जो सिपाही
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मैं हूँ अदना....................... माँ आहियाँ अदनो
शब्द सिपाही......................लफ्ज़न जो सिपाही.
अर्थ सहित दें......................अर्थ साणु डियन
शब्द गवाही.......................लफ्ज़ गवाही.
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२. सियासत.......................२. सियासत
तुम्हारा हर........................तुंहिंजो हर हिकु सचु
सच गलत है...................... गलत आहे.
हमारा हर......................... मुंहिंजो
सच गलत है.......................हर हिकु सचु गलत आहे
यही है...............................इहाई आहे
अब की सियासत.................अजु जी सियासत
दोस्त ही............................दोस्त ई
करते अदावत.....................कन दुश्मनी
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[आमने-सामने, हिंदी-सिन्धी काव्य संग्रह, संपादन व अनुवाद देवी नागरानी
शिलालेख, ४/३२ सुभाष गली, विश्वास नगर, शाहदरा दिल्ली ११००३२. पृष्ठ १२६, २५०/-]
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नवगीत:
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जो हुआ सो हुआ
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बाँध लो मुट्ठियाँ
चल पड़ो रख कदम
जो गये, वे गये
किन्तु बाकी हैं हम
है शपथ ईश की
आँख करना न नम
नीलकण्ठित बनो
पी सको सकल गम
वृक्ष कोशिश बने
हो सफलता सुआ
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हो चुका पूर्व में
यह नहीं है प्रथम
राह कष्टों भरी
कोशिशें हों न कम
शेष साहस अभी
है बहुत हममें दम
सूर्य हैं सच कहें
हम मिटायेंगे तम
उठ बढ़ें, जय वरें
छोड़कर हर खुआ
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चाहते क्यों रहें
देव का हम करम?
पालते क्यों रहें
व्यर्थ मन में भरम?
श्रम करें तज शरम
साथ रहना धरम
लोक अपना बनाएंगे
फिर श्रेष्ठ हम
गंग जल स्वेद है
माथ से जो चुआ
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यमकीय दोहा
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अंतर में अंतर पले, तब कैसे हो स्नेह
अंतर से अंतर मिटे, तब हो देह विदेह
अंतर = मन / भेद
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देख रहे छिप-छिप कली, मन में जागी प्रीत
देख छिपकली वितृष्णा, क्यों हो छू भयभीत?
छिप कली = आड़ से रूपसी को देखना / एक जंतु
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मूल्य बढ़े जीना हुआ, अब सचमुच दुश्वार
मूल्य गिरे जीना हुआ, अब सचमुच दुश्वार
मूल्य = कीमत, जीवन के मानक
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अंचल से अंचल ढँकें, बची रह सके लाज
अंजन का अंजन करें, नैन बसें सरताज़
अंचल = दामन / भाग या हिस्सा, अंजन = काजल, आँख में लगाना
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दिनकर तिमिर अँजोरता, फैले दिव्य प्रकाश
संध्या दिया अँजोरता, महल- कुटी में काश
अँजोरता = समेटता या हर्ता, जलाता या बालता
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एक कविता : दो कवि
शिखा:
एक मिसरा कहीं अटक गया है
दरमियाँ मेरी ग़ज़ल के
जो बहती है तुम तक
जाने कितने ख़याल टकराते हैं उससे
और लौट आते हैं एक तूफ़ान बनकर
कई बार सोचा निकाल ही दूँ उसे
तेरे मेरे बीच ये रुकाव क्यूँ?
फिर से बहूँ तुझ तक बिना रुके
पर ये भी तो सच है
कि मिसरे पूरे न हों तो
ग़ज़ल मुकम्मल नहीं होती
*
संजीव
ग़ज़ल मुकम्मल होती है
तब जब
मिसरे दर मिसरे
दूरियों पर पुल बनाती है
बह्र और ख़याल
मक्ते और मतले
एक दूसरे को अर्थ देते हैं
गले मिलकर
काश! हम इंसान भी
साँसों और आसों के मिसरों से
पूरी कर सकें ज़िंदगी की ग़ज़ल
जिसे गुनगुनाकर कहें:
आदाब अर्ज़
आ भी जा ऐ अज़ल!
२९-४-२०१५
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दोहा सलिला
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अगम अनाहद नाद ही, सकल सृष्टि का मूल
व्यक्त करें लिख ॐ हम, सत्य कभी मत भूल
निराकार ओंकार का, चित्र न कोई एक
चित्र गुप्त कहते जिसे, उसका चित्र हरेक
सृष्टि रचे परब्रम्ह वह, पाले विष्णु हरीश
नष्ट करे शिव बन 'सलिल', कहते सदा मनीष
कंकर-कंकर में रमा, शंका का कर अन्त
अमृत-विष धारण करे, सत-शिव-सुन्दर संत
महाकाल के संग हैं, गौरी अमृत-कुण्ड
सलिल प्रवाहित शीश से, देखेँ चुप ग़ज़-तुण्ड
विष-अणु से जीवाणु को, रचते विष्णु हमेश
श्री अर्जित कर रम रहें, श्रीपति सुखी विशेष
ब्रम्ह-शारदा लीन हो, रचते सुर-धुन-ताल
अक्षर-शब्द सरस रचें, कण-कण हुआ निहाल
नाद तरंगें संघनित, टकरातीं होँ एक
कण से नव कण उपजते, होता एक अनेक
गुप्त चित्र साकार हो, निराकार से सत्य
हर आकार विलीन हो, निराकार में नित्य
आना-जाना सभी को, यथा समय सच मान
कोई न रहता हमेशा, परम सत्य यह जान
नील गगन से जल गिरे, बहे समुद मेँ लीन
जैसे वैसे जीव हो, प्रभु से प्रगट-विलीन
कलकल नाद सतत सुनो, छिपा इसी में छंद
कलरव-गर्जन चुप सुनो, मिले गहन आनंद
बीज बने आनंद ही, जीवन का है सत्य
जल थल पर गिर जीव को, प्रगटाता शुभ कृत्य
कर्म करे फल भोग कर, जाता खाली हाथ
शेष कर्म फल भोगने, फ़िर आता नत माथ
सत्य समझ मत जोड़िये, धन-सम्पद बेकार
आये कर उपयोग दें, औरों को कर प्यार
सलिला कब जोड़ें 'सलिल', कभी न रीते देख
भर-खाली हो फ़िर भरे, यह विधना का लेख
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छंद सलिला:
त्रिलोकी छंद
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छंद-लक्षण: जाति त्रैलोक , प्रति चरण मात्रा २१ मात्रा, चंद्रायण (५ + गुरु लघु गुरु लघु, / ५ + गुरु लघु गुरु ) तथा प्लवंगम् (गुरु + ६ / ८ + गुरु लघु गुरु ) का मिश्रित रूप ।
लक्षण छंद:
पाँच मात्रा गुरु लघु / गुरु लघु पहिले लें
पाँच मात्रा गुरु लघु / गुरु चंद्रायण है
है गुरु फ़िर छै / मात्रा छंद प्लवंगम्
आठ तथा गुरु / लघु गुरु मात्रा रखें हम
उदाहरण:
१. नाद अनाहद / जप ले रे मन बाँवरे
याद ईश की / कर ले सो मत जाग रे
सदाशिव ओम ओम / जप रहे ध्यान मेँ
बोल ओम ओम ओम / संझा-विहान में
२. काम बिन मन / कुछ न बोल कर काम तू
नीक काम कर / तब पाये कुछ नाम तू
कभी मत छोड़ होड़ / जय मिले होड़ से
लक्ष्य की डोर जोड़ / पथ परे मोड़ से
३. पुरातन देश-भूमि / पूजिए धन्य हो
मूल्य सनातन / सदा मानते प्रणम्य हो
हवा पाश्चात्य ये न / दे बदल आपको
छोड़िये न जड़ / न ही उखड़ें अनम्य हो
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(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, कीर्ति, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दीप, दीपकी, दोधक, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)
।। हिंदी आटा माढ़िये, उर्दू मोयन डाल । 'सलिल' संस्कृत सान दे, पूरी बने कमाल ।।
२९-४-२०१४
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मुक्तक:
जो दूर रहते हैं वही समीप होते हैं.
जो हँस रहे, सचमुच वही महीप होते हैं.
जिनको मिला मेहनत बिना अतृप्त हैं वहीं-
जो पोसते मोती वही तो सीप होते हैं.
२९-४-२०१०
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