मुक्तक
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पंडित को पेट हेतु राम की जरूरत है
मंदिर को छत हेतु खाम की जरूरत है
सीता को दंडित कर राजदंड ठठा रहा
काल कहे नाश परिणाम की जरूरत है
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रोजी और रोटी ही अवाम की जरूरत है
हाथों को भीख नहीं काम की जरूरत है
स्वाति सलिल मोतियों के ढेर लगा देंगे पर
मोल लेने के लिए दाम की जरूरत है
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शीत कहे सूर्य तपो घाम की जरूरत है
जेठ कहे अब न तपो शाम की जरूरत है
सूर्य ठिठक सोच रहा, जो कहते कहने दो
पहले कर काम फिर आराम की जरूरत है
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आधुनिका को चिकने चाम की जरूरत है
मद्यप को साकी को जाम की जरूरत है
सत्ता को अमन-चैन से न रहा वास्ता
कैसे भी, कहीं भी अवाम की जरूरत है
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कोरोना को तुरत लगाम की जरूरत है
घर में खुश रह कहें विराम की जरूरत है
मदद करें यथाशक्ति, पढ़ें-लिखें, योग करें
साहस सुख शांति दे, अनाम की जरूरत है
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संजीव
१६-४-२०२०
९४२५१८३२४४
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