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शनिवार, 3 अप्रैल 2021

राग और रागी जातीय छंद

विमर्श
एक चर्चा:
राग और रागी जातीय छंद
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हिंदी पिंगल में छ: रागों के आधार पर छ: मात्रिक छंद को 'रागी जातीय' छंद कहा गया है। 'षटराग' का अभ्यासी अपनी धुन में मस्त रहा और जन सामान्य उसे न 'खटरागी' कहकर उपहास करता रहा।
रागों के वर्गीकरण की परंपरागत पद्धति (१९वीं सदी तक) के अनुसार हर एक राग का परिवार है। मुख्य छः राग हैं पर विविध मतों के अनुसार उनके नामों व पारिवारिक सदस्यों की संख्या में अन्तर है। इस पद्धति को मानने वालों के चार मत हैं।
१. शिव मत इसके अनुसार छः राग माने जाते थे, प्रत्येक की छः-छः रागिनियाँ तथा आठ पुत्र हैं। इस मत में मान्य छः राग- १. राग भैरव, २. राग श्री, ३. राग मेघ, ४. राग बसंत, ५. राग पंचम, ६. राग नट नारायण हैं।
कल्लिनाथ मत- इसमें भी वही छः राग माने गए हैं जो शिव मत के हैं, पर रागिनियाँ व पुत्र-रागों में अन्तर है।
भरत मत- के अनुसार छः राग, प्रत्येक की पाँच-पाँच रागिनियाँ आठ पुत्र-राग तथा आठ पुत्र वधू हैं। इस मत में मान्य छः राग निम्नलिखित हैं- १. राग भैरव, २. राग मालकोश, ३. राग मेघ, ४. राग दीपक, ५. राग श्री, ६. राग हिंडोल।
हनुमान मत- इस मत के अनुसार भी छः राग वही हैं जो 'भरत मत' के हैं, परन्तु इनकी रागिनियाँ, पुत्र-रागों तथा पुत्र-वधुओं में अन्तर है।
ये चारों पद्धति १८१३ ई. तक चलीं तत्पश्चात पं॰ भातखंडे जी ने 'थाट राग' पद्धति का प्रचार व प्रसार किया।
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३-४-२०१७ 

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