कुल पेज दृश्य

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

मुक्तिका

मुक्तिका :
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
राजनीति ठठाती रोती नहीं.
भावनाओं की फसल बोती नहीं..
*
स्वार्थ के सौदे नगद होते यहाँ.
दोस्ती या दुश्मनी होती नहीं..
*
रुलाती है विरोधी को सियासत
सुधारों की फसल यह बोती नहीं..
*
सुन्दरी सत्ता की है सबकी प्रिया.
त्याग-सेवा-श्रम का सगोती नहीं..
*
दाग-धब्बों की नहीं है फ़िक्र कुछ.
यह मलिन चादर 'सलिल' धोती नहीं..
*
२३-४-२०१० 

कोई टिप्पणी नहीं: