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रविवार, 7 सितंबर 2025

हिंदी, सिंहली, भाषा सेतु, भारत, श्रीलंका, देवनागरी

हिंदी और सिंहली : एक अध्ययन   

                    हिंदी और सिंहली, दोनों ही भाषाएँ इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार से संबंधित हैं। श्रीलंका की मुख्य भाषा सिंहली, इंडो-आर्यन भाषा परिवार का अंग है।  सिंहली भाषा सीलोन (श्रीलंका) में राजा अशोक द्वारा बौद्ध धर्म के प्रचार के साथ अस्तित्व में आई। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में  भारतीय बौद्ध धर्म प्रचारक पाली/संस्कृत बोलते थे। उनके प्रारंभिक उपदेशों में पाली, संस्कृत, तमिल तथा अन्य स्थानीय बोलियों का मिश्रण होता था।  क्रमश: उन्होंने सिंहली को एक नई भाषा बना दिया। सिंहली व्याकरण, वर्णमाला और ध्वन्यात्मक संरचना तमिल से समानता रखती है। संस्कृत और पाली के प्रभाव के कारण सिंहली भाषा में बा, गा और फा को छोड़कर दोनों भाषाओं में अक्षरों की संख्या लगभग समान है। 

                    हिंदी भारत की एक प्रमुख भाषा है। दोनों भाषाओं की व्याकरणिक संरचना में  संस्कृत और पाली के प्रभाव के कारण कुछ समानताएँ हैं। हिंदी में पाली, संस्कृत, अरबी और उत्तर भारत, मध्य प्रदेश, बिहार, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र आदि की स्थानीय बोलियों का प्रभाव  है। इसका कारण भाषिक क्षेत्रों में वैवाहिक संबंध, श्रमिक आप्रवासी तथा व्यापार-वाणिज्य है। हिंदी और सिंहली में कई ऐसे शब्द समान हैं जिनकी जड़ें संस्कृत और पाली में हैं। 

शब्द-भंडार:
                    सिंहली भाषा में पार्किएर्ट+ तमिल+ बाली+ मिस्री भाषाओं के शब्द अधिक हैं। हिंदी भाषा में अपभ्रंश, संस्कृत, उर्दू , पुर्तगाली, जापानी, अंग्रेजी आदि सहित विश्व की अनेक भाषाओं के शब्द हैं। दोनों भाषाओं में विज्ञान संबंधी विषयों के अध्ययन के लिए अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग क्रमश: बढ़ता जा रहा है। हिंदी-सिंहली तथासिंहली-हिंदी में जीवन के विविध आयामों से संबंधित साहित्य का अनुवाद कार्य किया जाए तो न केवल दो भाषाओं अपितु दो देशों के मध्य संबंध सुदृढ़ होंगे जिससे दोनों देशों में पर्यटन, शिक्षा, साहित्य तथा व्यापार-वाणिज्य को प्रातसहन मिलेगा और आर्थिक समृद्धि का पथ प्रशस्त होगा। 

समानताएँ:
                    हिंदी और सिंहली दोनों भाषाएँ इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार से संबंधित हैं, जो उनकी संरचना और शब्दावली में कुछ समानताएँ लाती है। दोनों भाषाओं पर संस्कृत और पाली भाषाओं का प्रभाव है, जिससे व्याकरण और शब्दावली में कुछ समानताएँ और कुछ भिन्नताएँ होना स्वाभाविक है। .

द्वि रूपता:
                    हिंदी और सिंहली दोनों में  साहित्यिक भाषा और सामान्य जन-जीवन या बाजार में बोली जाने वाली भाषा में अंतर होता है। हिंदी  में स्थानीय बोलिओं के प्रभाव इसकी बहुवर्णीय छटाओं (बुंदेली, बृज, अवधी, भोजपुरी, मैथिली, मालवी, निमाड़ी, मारवाड़ी, मेवाड़ी आदि) को जन्म देता है।
बोलचाल की सिंहली साहित्यिक सिंहली से काफी अलग है।  

बोलचाल की सिंहली

मैंने किया = मामा / मांग कला।

हमने किया = अपी कला.

आपने (अभद्र, एकवचन) किया = उम्बा काला।

आपने (अभद्र, बहुवचन) किया = उम्बाला कला।

आपने (विनम्र, एकवचन) किया = ओया कला।

आपने (विनम्र, बहुवचन) किया = ओयाला / ओयागोलो काला।

उसने किया = ईया कला.

उसने किया = ईया कला.

उन्होंने किया = इयाला / एगोलो काला।

वर्तमान काल

मैं करता हूँ = मामा / मांग कारणवा।

हम करते हैं = अपि कारणवा।

आप (एकवचन) करते हैं = ओया / उम्बा करणवा।

आप (बहुवचन) करते हैं = ओयाला / उम्बाला करनवा।

वह करता है = एया कारणवा।

वह करती है = एया कारणवा।

वे करते हैं = इयाला / एगोलो करणवा।

भविष्य काल

मैं करूँगा = मामा कारणवा।

मैं कल कार चलाऊंगा = मामा / मांग हेता कार एका ड्राइव करानावा।

ठीक है, मैं कल कार चलाऊंगा = हरि, मामा / मांग हेता कार एका ड्राइव करनांग।

हम करेंगे = अपि कारणवा।

हम कल कार को पेंट करेंगे = अपी हेता कार एका पेंट करनावा।

चलो कल कार को पेंट करते हैं = Api heta Car eka Paint karamu.

आप (एकवचन) करेंगे = ओया कराई।

आप (बहुवचन) करेंगे = ओयाला / ओयागोलो कराई।

वह करेगा = ईया कराई।

वह करेगी = ईया कराई।

वे करेंगे = इयाला / एगोलो कराई।

भूतकाल

साहित्यिक सिंहली 

मैंने किया = मामा कलेमी.

हमने किया = अपी कालेमु.

आपने (अशिष्ट, एकवचन) किया = नुम्बा कालेही। (संपादन सुझाएँ)

आपने (अशिष्ट, बहुवचन) किया = नम्बला कालेहु। (संपादन सुझाएँ)

आपने (विनम्र, एकवचन) किया = ओबा कालेही। (संपादन सुझाएँ)

आपने (विनम्र, बहुवचन) किया = ओबाला कालेहु। (संपादन सुझाएँ)

उसने किया = ओहु कालेया.

उसने किया = ईया कलाया.

उन्होंने किया = ओवुन कालोया / कलहा। 

ध्वनि:
                    सिंहली में, कुछ ध्वनियाँ (महाप्राण व्यंजन) हिंदी से अलग हैं। हिंदी के महाप्राण व्यंजन वे हैं जिनके उच्चारण में मुख से अधिक वायु निकलती है जबकि अल्प प्राण व्यंजनों का उच्चारण करते समय मुख से वायु प्रवाह कम होता है।  महाप्राण व्यंजन में सभी वर्ग (क, च, ट, त, प) का दूसरा और चौथा वर्ण तथा सभी ऊष्म वर्ण (श, ष, स, ह) शामिल हैं। इस प्रकार ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ, श, ष, स, ह और एक उच्छिप्त व्यंजन ढ़, हिंदी के १५ महाप्राण व्यंजन कहलाते हैं। सिंहली भाषा (sinhala) में महाप्राण व्यंजन में ध्वन्यात्मक अंतर को दर्शाने के लिए ऐतिहासिक रूप से मौजूद महाप्राण ध्वनियों को वर्तनी में दिखाया जाता है। आधुनिक सिंहली ध्वनियों में महाप्राण और अल्पप्राण ध्वनियों के बीच वास्तविक अंतर नहीं है, क्योंकि सभी ध्वनियों को शुद्ध अक्षरों से दर्शाया जा सकता है। कुछ व्यंजन समूहों को सिंहली में अनुमति दी जाती है, जैसे कि संस्कृत से लिए गए "प्रश्नाय" (praśnaya) शब्द में, लेकिन यह जटिल व्यंजन समूह ऋण शब्दों में ही मिलते हैं। सिंहली भाषा में महाप्राण व्यंजन का विचार मुख्य रूप से ऐतिहासिक वर्तनी और ध्वन्यात्मकताओं के संदर्भ में है, जबकि हिंदी में यह उच्चारण-आधारित अवधारणा है जिसमें अधिक वायु-प्रवाह के साथ उच्चारित होने वाले व्यंजन शामिल हैं। तमिल आदि भाषाओं में महाप्राण व्यञ्जन होते ही नहीं और अंग्रेजी आदि ऐसी भी भाषाएँ  हैं जिनमें महाप्राण और अल्पप्राण व्यञ्जन दोनों बोलनेवालों को एक जैसे प्रतीत होते हैं  

लिपि:
                    प्राचीन ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई देवनागरी और सिंहली लिपियाँ क्रमश: भारत और श्रीलंका में अलग-अलग भाषाओं के लेखन में प्रयुक्त होती तथा बाएँ से दाएँ लिखी जाती हैं। देवनागरी भारत की कई भाषाओं जैसे हिंदी, संस्कृत, मराठी और अनेक बोलियों) को लिखने में प्रयुक्त होती है, जबकि सिंहली श्रीलंका की आधिकारिक भाषा सिंहली को लिखने के काम आती है। दोनों लिपियाँ बाएँ से दाएँ लिखी जाती हैं और इनमें स्वर और व्यंजन होते हैं। भारत में किसी समय साक्षरता का पर्याय समझे जाने वाले कायस्थ समाज में प्रचलित कैथी आदि अन्य लिपियाँ समय के साथ काल के गाल में समा गईं जबकि मुगल और ब्रिटिश शासनकाल में प्रचाली हुई फारसी और रोमन लिपियाँ क्रमश: उर्दू और अंग्रेजी लेखन में प्रयुक्त हो रही हैं।  

                    देवनागरी प्राचीन भारत में पहली से चौथी शताब्दी ईस्वी तक विकसित और ७वीं शताब्दी ईस्वी तक नियमित उपयोग में रही। देवनागरी लिपि, जिसमें ५२ अक्षर (१४ स्वर और ३८ व्यंजन) हैं, दुनिया में चौथी सबसे व्यापक रूप से अपनाई जाने वाली लेखन प्रणाली है, जिसका उपयोग १२० से अधिक भाषाओं के लिए होता है। भारतीय ही नहीं विश्व की लगभग सभी भाषाओं के किसी भी शब्द या ध्वनि को देवनागरी लिपि में ज्यों का त्यों लिखा जा सकता है और फिर लिखे पाठ को लगभग 'हू-ब-हू' उच्चारण किया जा सकता है, जो कि रोमन लिपि और अन्य कई लिपियों में संभव नहीं है, जब तक कि उनका आइट्राँस या अंतर्राष्ट्रीय संस्कृत लिप्यंतरण वर्णमाला में विशेष मानकीकरण न किया जाए भारत तथा एशिया की अनेक लिपियों के संकेत देवनागरी से अलग होते हुए भी उच्चारण व वर्णक्रम आदि देवनागरी के ही समान हैं, क्योंकि उर्दू को छोड़कर वे सभी ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न हुई हैं। इसलिए इन लिपियों का परस्पर लिप्यंतरण आसानी से संभव है। देवनागरी लेखन की दृष्टि से सरल, सौंदर्य की दृष्टि से सुन्दर और वाचन की दृष्टि से सुपाठ्य है।

                    भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से देवनागरी लिपि अक्षरात्मक (सिलेबिक) लिपि है। लिपि की दृष्टि से "चित्रात्मक", "भावात्मक" और "भावचित्रात्मक" लिपियों के बाद "अक्षरात्मक" स्तर की लिपियों का विकास होना मान्य है।से लिपि की अक्षरात्मक अवस्था के बाद वर्णात्मक (अल्फाबेटिक) प्रणाली का विकास हुआ। ध्वन्यात्मक (फोनेटिक) लिपि सर्वकाधिक विकसित प्रणाली है। "देवनागरी" के वर्ण-अक्षर (सिलेबिल) स्वर भी हैं और व्यंजन भी।  "क", "ख" आदि सस्वर व्यंजन  केवल ध्वनियाँ नहींअपितु सस्वर अक्षर भी हैं। ग्रीक, रोमन आदि वर्णमालाएँ हैं। भारत की "ब्राह्मी" या "भारती" वर्णमाला की ध्वनियों में व्यंजनों का "पाणिनि" ने वर्णसमाम्नाय के १४ सूत्रों में जो स्वरूप परिचय दिया है, उसके विषय में "पतंजलि" (द्वितीय शताब्दी ई॰ पू॰) ने यह स्पष्ट कहा कि व्यंजनों में संनियोजित "अकार" स्वर का उपयोग केवल उच्चारण के उद्देश्य से है। वह तत्वतः वर्ण का अंग नहीं है। अत: देवनागरी लिपि की वर्णमाला तत्वतः ध्वन्यात्मक है, अक्षरात्मक नहीं।

                    सिंहली भाषा श्रीलंका में सर्वाधिक नागरिकों द्वारा बोली जानेवाली भाषा है। सिंहल द्वीप की विशेषता है कि उसमें बसनेवाली जाति और उस जाति द्वारा व्यवहृत होने वाली भाषा दोनों "सिंहल" हैं। अनेक भारतीय भाषाओं की लिपियों की तरह सिंहल भाषा की लिपि भी ब्राह्मी लिपि का ही परिवर्तित विकसित रूप हैं। सिंहल भाषा के दो रूप शुद्ध सिंहल तथा मिश्रित सिंहल हैं। शुद्ध सिंहल में  ३२  अक्षर अ, आ, ऍ, ऐ, इ, ई, उ, ऊ, ऒ, ओ, ऎ, ए क, ग ज ट ड ण त द न प ब म य र ल व स ह क्ष तथा अं हैं। सिंहल के प्राचीनतम व्याकरण ग्रन्थ सिदत्संगरा (Sidatsan̆garā (१३०० ए डी)) के अनुसार ऍ तथा ऐ - अ, तथा आ की ही मात्रा वृद्धि वाली मात्राएँ हैं। वर्तमान मिश्रित सिंहल ने अपनी वर्णमाला को न केवल पाली वर्णमाला के अक्षरों से समृद्ध कर लिया है, बल्कि संस्कृत वर्णमाला में भी जो और जितने अक्षर अधिक थे, उन सब को भी अपना लिया है। इस प्रकार वर्तमान मिश्रित सिंहल में अक्षरों की संख्या ५४ है। १८ अक्षर "स्वर" तथा शेष ३६ अक्षर  "व्यंजन" हैं। 

शब्द क्रम:
                    हिंदी और सिंहली दोनों में, शब्द क्रम कर्ता-कर्म-क्रिया या विषय-वस्तु-क्रिया (SOV सब्जेक्ट-ऑब्जेक्ट-वर्ब ) होता है, जो जापानी और कोरियाई जैसी कुछ अन्य एशियाई भाषाओं से साम्यता रखता है। 

वचन (संख्या भेद):
                    हिंदी, सिंहली और अंग्रेजी तीनों में  वचन दो (एकवचन और बहुवचन) होते हैं। संस्कृत में ३ वचन (एक वचन, द्वि वचन, तथा बहुवचन) होते हैं। 

काल:
                    हिंदी में ३ काल (वर्तमान, भूत और भविष्यत) होते हैं जबकि सिंहली में दो काल (वर्तमान तथा भूत) होते हैं। अंग्रेजी में ३ काल प्रेजेंट, पास्ट और फ्यूचर (Present-Past-Future)  होते हैं। 

लिंग:
                    हिंदी और शुद्ध सिंहल दोनों में दो लिंग स्त्रीलिंग और पुल्लिंग होते हैं। संकृत में ३ लिंग स्त्रीलिंग, पुल्लिंग और नपुंसक लिंग हॉटे हैं जबकि अंग्रेजी में ४ लिंग स्त्रीलिंग, पुल्लिंग, उभय लिंग और नपुंसक (फेमिनाइन, मैसक्यूलाइन, कॉमन और न्यूट्रल जेंडर) लिंग होते हैं। हिंदी का लिंगभेद समझना अहिंदीभाषियों के लिए कठिन है किंतु सिंहल भाषा इस दृष्टि से सरल है। वहाँ "अच्छा" शब्द के समानार्थी "होंद" शब्द का प्रयोग  "लड़का" तथा "लड़की" दोनों के लिए होता है।

पुरुष: 
                    हिंदी और सिंहल दोनों  में तीन पुरुष- प्रथम पुरुष, मध्यम पुरुष तथा उत्तम पुरुष। तीनों पुरुषों में व्यवहृत होने वाले सर्वनामों के आठ कारक हैं, जिनकी अपनी-अपनी विभक्तियाँ हैं। "कर्म" के बाद प्राय: "करण" कारक की गिनती होती है, किंतु सिंहल के आठ कारकों में "कर्म" तथा "करण" के बीच में "कर्तृ" कारक है। "संबोधन" कारक नहीं होने से "कर्तृ" कारक के बावजूद ८ कारक हैं। 

क्रिया:

                    सिंहल व्याकरण अधिकांश बातों में संस्कृत तथा हिंदी के समान है किंतु उसमें संस्कृत की तरह न तो  "परस्मैपद" तथा "आत्मनेपद" हैं, न ही लट्, लोट् आदि दस लकार। सिंहल में क्रियाओं के आठ प्रकार कर्ता कारक क्रिया, कर्म कारक क्रिया, प्रयोज्य क्रिया, विधि क्रिया, आशीर्वाद क्रिया, असंभाव्य, पूर्व क्रिया तथा मिश्र क्रिया हैं। 

संधि:

                    शुद्ध सिंहल में संधियों के दस प्रकार हैं। आधुनिक सिंहल में संस्कृत शब्दों की संधि अथवा संधिच्छेद संस्कृत व्याकरणों के नियमों के अनुसार किया जाता है। "एकाक्षर" अथवा "अनेकाक्षरों" के समूह पदों को भी संस्कृत की ही तरह चार भागों में विभक्त किया जाता है - नामय, आख्यात, उपसर्ग तथा निपात। सिंहल में हिंदी की ही तरह दो वचन (एकवचन" तथा "बहुवचन") हैं, संस्कृत की तरह "द्विवचन" नहीं है। 

मुहावरे, लोकोक्तियाँ:

                    प्रत्येक भाषा के मुहावरे उसके अपने होते हैं। दूसरी भाषाओं में उनके ठीक-ठीक पर्याय खोजना व्यर्थ की कसरत है। अनुभव साम्य के कारण दो भिन्न जातियों द्वारा बोली जाने वाली दो भिन्न भाषाओं में एक जैसी मिलती-जुलती कहावतें उपलब्ध हो सकती हैं। सिंहल तथा हिंदी के कुछ मुहावरों तथा कहावतों में एकरूपता होते हुए भी अधिकतर भिन्नता है। 

सिंहली मुहावरे 

मुहावराहिंदी अनुवादअर्थ
इंगुरू दीला मिरिस गत्था वेज जैसे अदरक की जगह मिर्च लेना किसी बुरी चीज़ से छुटकारा पाने के बाद, उससे भी बुरी चीज़ मिलती है।
रावुलाई केंदई देकामा बेरागन्ना बाए कोई भी व्यक्ति अपनी मूछों पर दलिया लगे बिना इसे पी नहीं सकता।ऐसी स्थिति जहाँ दो विकल्प समान रूप से महत्वपूर्ण हों।
वेराडी गहाता केतुवे गलत पेड़ पर चोंच मार दी।कठिन कार्य करने के प्रयास में मुसीबत में पड़ जाना।
हिसाराधेता कोट्टे मारु काला वेगी सिर दर्द से छुटकारा पाने के लिए तकिया बदलना।किसी समस्या का वास्तविक कारण ढूंढकर उसे ठीक करने का प्रयास करना चाहिए।
गंगाता केपु इनि वेज जैसे बाड़ के खंभे काटकर उन्हें नदी में फेंक देना।ऐसे व्यर्थ कार्यों करना जिनसे कोई लाभ या प्रतिफल नहीं मिला है।
जिया लूला महा एका लू जो मछली आपके हाथ से बच निकली है वह सबसे बड़ी है।एक बड़े अवसर के नुकसान का वर्णन करता है।
गहाता पोत्था वेगी एक दूसरे के उतने ही करीब जितने पेड़ की छाल तने के करीब होती है।वास्तव में करीबी दोस्तों/लोगों का वर्णन करता है।
मिति थेनिन वाथुरा बहिनावा पानी सबसे निचले बिंदु से नीचे की ओर बहता है।जब गरीब और निर्दोष लोगों के साथ दूसरों द्वारा बुरा व्यवहार किया जाता है।
अनुंगे मगुल दाता थमांगे अडारे पेनवन्ना वेगी जैसे वह व्यक्ति जो किसी दूसरे की शादी में अपना आतिथ्य दिखाता है।जब कोई व्यक्ति किसी विशेष अनुकूल परिस्थिति का लाभ उठाता है, और उसका श्रेय लेने का प्रयास करता है।
कटुगाले पिपुनु माला वेगी उस फूल की तरह जो झाड़ियों के बीच खिलता है।आमतौर पर यह उस व्यक्ति को संदर्भित करता है जो भ्रष्ट और अनैतिक लोगों से घिरे होने पर भी धर्मी बना रहता है।
एंजेय इंदन काना कनवालु सींग पर बैठकर कान से भोजन लेना।साथ रहते हुए भी चोट पहुँचाना या फायदा उठाना।
मिते उन कुरुल्ला अरला गाहे उन कुरुल्ला अल्लीमाता गिया वेगी हाथ में लिए पक्षी को छोड़कर पेड़ पर चढ़े हुए पक्षी को पकड़ने की कोशिश करना।हाथ में एक पक्षी जंगल में दो पक्षियों से बेहतर है।
ओरुवा पेरलुना पिटा होंडाई कीवा वेगी जैसे यह कहना कि नाव पलटने पर नीचे का हिस्सा बेहतर होता है।जब कोई व्यक्ति बुरी परिस्थिति में भी उजला पक्ष देखने का प्रयास करता है।
एंजें अतायक गन्नावा वेगी जैसे किसी के शरीर से हड्डी मांगना।जब कोई व्यक्ति किसी का उपकार करने में बहुत अनिच्छुक हो।
अल्लापु अट्ठथ न, पया गहापु अथथथ न हाथ में पकड़ी शाखा तथा जिस शाखा पर पैर टिके हों, दोनों को खोना।जब कोई व्यक्ति अधिक पाने की कोशिश करता है और अंत में वह सब खो देता है जो उसके पास पहले से था।
आनंदी हाथ देनागे केंदा हलिया वागेई सात अण्डीयों के कुन्जी (दलिया) के बर्तन की तरह।हर व्यक्ति योगदान देने की बात कहे लेकिन वास्तव में कोई भी योगदान न करे। 
बलालुन लावा कोस अता बावा वेगी बिल्लियों से भुने हुए जैक बीजों को आग से बाहर निकालने को कहना।जब किसी व्यक्ति का उपयोग किसी अन्य के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है।
यकाता बया नाम सोहोने गेवल हदन्ने हेहे जो लोग शैतान से डरते हैं वे कब्रिस्तान पर घर नहीं बनाएंगे।यदि आप किसी चीज़ से डरते हैं, तो आप जानबूझकर खुद को उसके दायरे में नहीं रखेंगे।

सिंहली कहावतें

कहावतअंग्रेजी अनुवादअर्थ
पिरुनु काले दिया नोसेले पानी भरा बर्तन हिलाने पर आवाज नहीं करता।जिन्हें कम जानकारी है वे बहुत अधिक बोलते हैं, जबकि जिन्हें अच्छी जानकारी है वे चुप रहते हैं।
उगुराता होरा बेहेथ गन्ना बा गले को बताए बिना दवा नहीं निगल सकते।आप अपने आप से सच्चाई नहीं छिपा सकते।
उदा पन्नोथ बीमा वटेलु उत्थान के बाद पतन अवश्यंभावी है।जो चीज ऊपर उठी है , उसे अंततः नीचे गिरना ही होगा।
उनाहापुलुवेगे पतिया उता मानिकक लू लोरिस का बच्चा उसके लिए एक रत्न है एक व्यक्ति के लिए बेकार चीज़ दूसरे के लिए बहुत मूल्यवान हो सकती है।
अथथिन अट्ठथा पनीना कुरुल्ला थीमी नासी जो पक्षी वर्षा से बचने हेतु एक डालसे दूसरी डाल पर कूदता है, ठंड से मर जाता है।पक्ष बदलना या लगातार किसी समस्या से भागना आपको दीर्घकाल में नुकसान पहुँचाएगा।
अंदायाता मोना पाहन एलियादा अंधे आदमी के लिए दीपक किस काम का?लोगों को ऐसी चीजें न दें जिनका वे उपयोग न कर सकें।
हदीसियता कोरोस कटेथ अथलंता बारिलु जल्दबाजी में कोई व्यक्ति अपना हाथ मिट्टी के बर्तन में भी नहीं डाल सकता।जल्दबाजी और जल्दबाजी में काम करने से आप साधारण चीजों को नजरअंदाज कर देते हैं।
काना कोकागे सुदा पेनेने इगिलुनामालु सारस की सफेदी केवल तभी दिखाई देती है जब वह उड़ता है।लोगों को किसी चीज़ का मूल्य तभी पता चलता है जब वह चली जाती है।
गिनिपेनेलेन बटाकापू मिनिहा कानामादिरी एलियाथ बययी लूजो व्यक्ति आग की लपटों से मारा गया हो, वह जुगनू की रोशनी से भी डरता है।जब कोई व्यक्ति किसी दर्दनाक अनुभव से गुजरता है, तो वह हर उस चीज से बचने की कोशिश करता है जो उस अनुभव से थोड़ी भी मिलती-जुलती हो।
जिया हकुराता नादान्ने, थियेना हकुरा राकागन्ने खोए हुए गुड़ के टुकड़े पर शोक किए बिना बचे हुए गुड़ के टुकड़े को बचाकर रखना ।किसी भी नुकसान की स्थिति में आगे बढ़ना सीखना चाहिए।
राए वेतुनु वलेह दवल वतेन्ने नै जो आदमी रात को गड्ढे में गिर गया, वह दिन के उजाले में फिर उसमें नहीं गिरता।लोगों को अपनी गलतियों से सीखना चाहिए।
पाला अथि गहे कोई साथथ वाहनवालु एक फलदार वृक्ष हर प्रकार के जीव को आकर्षित करता है।सफलता और धन कई लोगों को आकर्षित करते हैं।
थलेना याकदे दुतुवामा अचारिया उडा पाना पाना थलानावालु लोहार को लचीला लोहा मिल जाए तो वह अपना हथौड़ा नीचे लाने के लिए खुशी से उछल पड़ता है।जितना अधिक कोई झुकता है, उतना ही अधिक उसे पीटा जाता है।

कुछ प्रमुख सिंहल शब्द और उनके हिंदी पर्यायवाची  

गिया -- गया
यायी -- जायेगा
अवे -- आया
मम -- मैं
ओहु -- वह
अय -- वह
ओय -- तुम
 -- यह
ओयाघे -- तुम्हारा धन्यवाद
सुदु -- सफेद
सीनि -- चीनी
हिना वेनवा -- हँसना
हितनवा -- सोचना
सीय -- सौ
सिंहय -- शेर
सेप -- स्वास्थ्य
सेकय -- संदेह
सम -- समान
सपत्तुव -- जूता
सत्यय -- सत्य
सतिय -- सप्ताह
मून्न -- चेहरा
मिहिरि -- मीठा
मिनिसा -- मनुष्य
मिट्टि -- छोटा
मामा -- मामा
माल्लुवा -- मछली
मासय -- मास
मन -- मन
हिम -- बर्फ
सिहिनय -- सपना
सुलंग -- हवा
मल -- गन्दगी
मरनवा -- मारना
मरन्नय -- मृत्यु
अवुरुद्द -- वर्ष
सामय -- शान्ति
रूपय -- सुन्दरता
रोगय -- रोग
रोहल -- अस्पताल
रुवन -- रत्न
रिदी -- चाँदी
रेय -- रात
रहस -- रहस्य
रस्ने -- गरम
रस्नय -- गर्मी
रिदेनवा -- चोट पहुँचाना
रॅय -- रात
रहस -- रहस्य
रसने -- गरम
रसनय -- गरमी
रतु -- लाल
रजय -- सरकार
रज -- राजा
रट -- विदेश
रट -- देश
ओबनवा -- प्रेस
ओककोम -- सब
एळिय -- प्रकाश
एया -- वह
एनवा -- आना
ऋतुव -- ऋतु
ऋण -- ऋण
उयनवा -- खाना बनाना
ईये -- कल
ईलन्गट -- बाद में
ईय -- तीर
ॲनुम अरिनवा -- जम्हाई लेना
ॲत -- दूर
इरनवा -- देखा
ऍस कण्णडिय -- चश्मा

ऍन्गिलल -- अंगुलू
सेनसुरादा -- शनिवार
सिकुरादा -- शुक्रवार
ब्रहसपतिनदा -- गुरुवार
ब्रदादा -- बुधवार
अन्गहरुवादा -- मंगलवार
सन्दुदा -- सोमवार
इरिदा -- रविवार
देसॅमबरय -- दिसम्बर
नोवॅमबरय -- नवम्बर
ओकतोबरय -- अक्टूबर
सॅपतॅमबरय -- सितम्बर
अगोसतुव -- अगस्त
जूलि -- जुलाई
जूनि -- जून
मॅयि -- मई
अप्रियेल -- अप्रैल
मारतुव -- मार्च
पेबरवारिय -- फरवरी
जनवारिय -- जनवरी
चूटि -- छोटा
गहनवा -- पीटना
गल -- पत्थर
गननवा -- लेना
गन्ग -- नदी
क्रीडव -- खेल
कोपि -- कॉफी
केटि -- छोटा
कुससिय -- रसोईघर
कुलिय -- वेतन
कुरुलला -- पक्षी
किकिळी -- मुर्गी
कट -- मुँह
कतुर -- कैंची
आता -- दादा
आच्ची -- दादी
सिंहल -- सिंहली
गम -- गाँव
मिनिहा -- आदमी
मिनिससु -- मनुष्य
हरिय -- क्षेत्र
कोयि -- कौन सा
पलात -- प्रान्त
दकुण्उ -- दक्षिण
उपन गम -- जन्मस्थान
नमुत -- लेकिन
पदिंcइय -- निवासी
कोहे -- कहाँ
ने -- ऐसा है या नहीं?
आयुबोवन -- Hello
नम -- नाम
सुब उपनदिनयक -- शुभ जन्मदिन
दननवा -- जानना
मतकय -- स्मृति
मतक वेनवा -- याद करना
कोलल -- बालक
केलल -- स्त्री
लोकु -- लम्बा
लससण -- सुन्दर
दत -- दाँत
दत -- दाँत
दिव -- जीभ
गसनवा -- beat
गॅयुव -- गाया
गयनवा -- गाना
हदवत -- हृदय
कपनवा -- काटना
कॅपुव -- काटा
कोन्द -- बाल
पोड्इ -- तुच्छ
रिदेनव -- hurt
ककुल -- पाँव
ऍस -- आँख
कन -- कान

ऍन्ग -- शरीर
कोनन्द -- पीठ
बलला -- कुत्ता
गिया -- जाना (perfect)
इससर -- पहले
नपुरु -- निर्दयी
पोहोसती -- धनी स्त्री
पोहोसता -- धनी पुरुष
पोहोसत -- धनी
तर -- मजबूत
तद -- कठिन
नव -- आधुनिक
ऍयि -- क्यों
कवद -- कौन
अद -- आज
मगे -- खान
ऊरो -- सूअर
ऊरु मस -- सूअर का मांस
ऊरा -- सूअर
उण -- ज्वर
गेवल -- घर
गेय -- घर
वॅड करनवा -- काम करनाकार्य
वॅड -- कार्य
देवल -- वस्तुएँ
देय -- वस्तु
देननु -- गायें
देन -- गाय
अशवयो -- घोड़े
अशवय -- घोड़ा
कपुटो -- कौवे
कपुट -- कौवा
दिविया -- चीता
बोहोम सतुतियि -- बहुत-बहुत धन्यवाद
करुणाकर -- कृपया
ओवु -- हाँ
एकदाह -- हजार
एकसीय -- सौ
दहय -- दस
नवय -- नौ
अट -- आठ
हत -- सात
हय -- छ:
पह -- पाँच
हतर -- चार
तुन -- तीन
देक -- दो
इर -- सूर्य
वन्दुरा -- बन्दर
नॅवत हमुवेमु -- अलविदा
सललि -- धन
वॅसस -- वर्षा
वहिनवा -- बरसना (वर्षा होना) पिहिय -- चाकू
हॅनद -- चम्मच
लियुम -- पत्र
कनतोरुव -- कार्यालय
तॅPआआEल -- डाकघर
यवननवा -- भेजना
पनसल -- मन्दिर
आदरय -- प्यार
गोविपळअ -- खेत
मेसय (न.) -- मेज
मेहे -- यहाँ
काल -- चौथाई
कालय -- समय
कल -- समय
कोच्चर -- कितना देर
ओया -- तुम
इननवा -- होना
होन्द -- अच्छा
इसतुति -- धन्यवाद
सनीप -- स्वास्थ्य
सॅप -- स्वास्थ्य

नगरय -- शहर
अपिरिसिदु -- गन्दा
पिरिसिदु वेनवा -- साफ होना
पिरिसिदु करनवा -- साफ
पिरिसिदु -- साफ करना
यट -- नीचे
कलिन -- पहले
नरक -- बुरा
ळदरुवा -- बच्चा
नॅनद -- चाची
सतुन -- जानवर
सह -- और
पिळितुर -- उत्तर
अतर -- के बीच में
तनिव -- अकेले
अवसर दिम -- अनुमति देना
सियलल -- सब
वातय -- हवा
एकन्गयि -- सहमत हुआ
कलहख़कर -- आक्रामक
वयस -- आयु
विरुदडव -- विरुद्ध
नॅवत -- पुन:
पसुव -- बाद में
अहसयानय -- वायुयान
वॅड्इहिति -- वयस्क
लिपिनय -- पता
हरहा -- आर-पार
अनतुर -- दुर्घटना
पिळिगननवा -- स्वीकार करना
पिटरट -- बाहर
उड -- उपर
करनवा -- काम करना
ओळूव -- सिर
मललि -- छोटा भाई
नंगि -- छोटी बहन
अकका -- बड़ी बहन
अयया -- बड़ा भाई
मेसय -- मेज
बत -- उबला चावल
हरि -- ठीक है
हरि -- बहुत
नॅहॅ -- नहीं
मोककद -- क्या
अममा -- माँ
दुवनव -- दौड़ना
गेदर -- घर
लोकु मीया -- चूहा
मीया -- चूहा
उड -- के उपर
इरिदा -- रविवार
एक -- यह
एक -- एक
एपा -- नहीं
दोर -- दरवाजा
वहनवा -- बन्द करना
पोत -- पुस्तक
इकमन -- तेज
कनवा -- खाना
अत -- भुजा
मल -- फूल
वतुर -- पानी
ले -- रक्त
किरि -- दूध
अपि -- हम लोग
मम -- मै
यनवा -- जाना
मोकक्द -- क्या
कीयद -- कितना
कोहेन्द 

 भाषिक साम्य 


सिंहली और भारतीय भाषाओं में पर्याप्त साम्य है।  


हिंदी-सिंहली

मैं आया = मामा आवेमी।  

हम आये = अपी आवेमु 

तू आया = नुम्बा आवेही।

तुम (बहुवचन) आए = नम्बला आवेहु।

आप (विनम्र, एकवचन) आए = ओबा आवेही।

आप (विनम्र, बहुवचन) आए = ओबाला आवेहु।

वह आया = ओहु आवेया।

वह आई = ईया आवाया।

वे आए = ओवुन आवोया.

मैं करता हूँ = मामा करामी/कर्णनेमि।

हम करते हैं = अपि करामु / करणनेमु।

आप (एकवचन) करते हैं = ओबा/नुम्बा करननेही।

आप (बहुवचन) करते हैं = ओबला / नुम्बाला करण्नेहु।

वह करता है = ओहू करै/करणेय।

वह करती है = ईया करै/करन्नेयया।

वे करते हैं = ओवुन कराथी / करन्नोया।

हिंदी : वचन देना 

सिंहली : वचन (याक) दीमा। 

बंगाली और सिंहली 

                    बंगाली और सिंहली दोनों ही इंडो-आर्यन भाषाएँ हैं। इसलिए इन दोनों भाषाओं में काफ़ी समानताएँ हैं। कोई इनमें से एक भाषा जानता हो तो वह दूसरी भाषा आसानी से सीख सकता है।  

सिंहली 
मैंने किया = मामा कलेमी.

हमने किया = अपी कालेमु.

आपने (अभद्र, एकवचन) किया = नुम्बा कलेही।

आपने (अभद्र, बहुवचन) किया = नुम्बाला कलेहु।

आपने (विनम्र, एकवचन) किया = ओबा कालेही।

आपने (विनम्र, बहुवचन) किया = ओबाला कालेहु।

उसने किया = ओहु कालेया.

उसने किया = ईया कलाया.

उन्होंने किया = ओवुन कालोया / कलहा।

बांग्ला 

मैंने किया = अमी कोरलाम.

हमने किया = अमरा कोरलाम.

आपने (अशिष्ट, एकवचन) किया = तुई कोर्ली।

आपने (अशिष्ट, बहुवचन) किया = तोरा कोर्ली।

आपने (अभद्र, एकवचन) किया = तुमी कोरले।

आपने (अभद्र, बहुवचन) किया = टॉमरा कोरले।

आपने (विनम्र, एकवचन) किया = अपनी कोरलेन।

आपने (विनम्र, बहुवचन) किया = अपनारा कोरलेन।

उसने / उसने किया = से कोर्लो।

उसने/उसने (विनम्र) किया = टिनी कोरलेन।

उन्होंने किया = तारा कोरलो.

सिंहली 

मैं करता हूँ = मामा करामि (/करणनेमि)।

हम करते हैं = अपि करामु (/करणनेमु)।

आप (एकवचन) करते हैं = ओबा/नुम्बा करननेही।

आप (बहुवचन) करते हैं = ओबला / नुम्बाला करण्नेहु।

वह करता है = ओहू करै/करणेय।

वह करती है = ईया करै/करन्नेयया।

वे करते हैं = ओवुन कराथी / करन्नोया।

बांग्ला 

मैं करता हूँ = अमी कोरी.

हम करते हैं = अमरा कोरी.

आप (अशिष्ट, एकवचन) करते हैं = तुई कोरिस।

आप (अशिष्ट, बहुवचन) करते हैं = तोरा कोरिस।

आप (अभद्र, एकवचन) करते हैं = तुमी कोरो।

आप (अभद्र, बहुवचन) करते हैं = तोमरा कोरो।

आप (विनम्र, एकवचन) करते हैं = अपनी कोरेन।

आप (विनम्र, बहुवचन) करते हैं = अपनारा कोरेन।

वह / वह करता है = से कोरे.

वह / वह (विनम्र) करता है = टिनी कोरेन।

वे करते हैं = तारा कोरे.

सिंहली 

मैं करूँगा = मामा करामी.

हम करेंगे = अपी करमु.

आप (एकवचन) करेंगे = ओबा / नुम्बा करन्नेही।

आप (बहुवचन) करेंगे = ओबाला / नुम्बाला करण्नेहु।

वह करेगा = ओहु कराई।

वह करेगी = ईया कराई।

वे करेंगे = ओवुन कराथी.

बांग्ला 

मैं करूँगा = अमी कोरबो.

हम करेंगे = अमरा कोरबो.

आप (अशिष्ट, एकवचन) करेंगे = तुई कोरबी।

आप (अशिष्ट, बहुवचन) करेंगे = तोरा कोरबी।

आप (अभद्र, एकवचन) करेंगे = तुमी कोर्बे।

आप (अशिष्ट, बहुवचन) करेंगे = तोमरा कोर्बे।

आप (विनम्र, एकवचन) करेंगे = अपनी कोरबेन।

आप (विनम्र, बहुवचन) करेंगे = अपनारा कोरबेन।

वह / वह करेगा = से कोर्बे।

वह/वह (विनम्र) करेगा = टिनी कोरबेन।

वे करेंगे = तारा कोर्बे.

                    बंगाली में 'बा' ध्वनि को सिंहली में 'वा' ध्वनि से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए। सिंहली भाषा में बंगा का उच्चारण वंगा होता है। शारीरिक भाग
                    शब्दों की अधिकांश समानताएँ स्पष्ट हैं और किसी विस्तार की आवश्यकता नहीं है। केश - केस, नाक - नासय, अक्षी - अस, मुख - मुकाय, जीव - दिवा, दथ - दथ, रिदोई - हरदय, हाथ - हाथ - अथ, अंगुल - अंगिली, लप - कुले - उकुले, पद - पाड़ा, लिंग - लिंग, देवियों - नारी - नारी, छोटा आदमी - बेटी मानुष - बेटी मिनिसा, लंबा आदमी - लोम्बा - लम्बायक जितना लंबा। इसके अलावा रक्थो का अर्थ लाल होता है और इसका तात्पर्य रक्त से है।

फल- 

                    आम - आंब - अंबा, बेल फल - बेल - बेली, अमरूद - पेरा - पेरा, गन्ना - आक - उक, अनानास - अन्नास - अन्नासी, केला - कोला - केसेल। यहां बंगाली व्यंजनों में से दो तीन सिंहली व्यंजनों के बीच दिखाई देते हैं और लेखक को छिपी हुई समानता का एहसास करने में कई साल लग गए क्योंकि कोला ध्वनि आपको पत्तियों या हरे रंग की ओर ले जाती है। स्टार फल - कबरंका - काबरंका। यह संयोग से था, जब मैंने कोलकाता में एक फुटपाथ विक्रेता को 'कबरंका, कबरंका' कहते सुना। इस गैर-व्यावसायिक, कुछ हद तक दुर्लभ फल को सिंहली शब्द से पुकारा जाना एक बड़ा आश्चर्य था।

खाद्य पदार्थ- 

                    चावल - भात - स्नान, खाना - कबेन - कन्ना, पानी - झोल - जलाया, लाल मिर्च - मोरिच - मिरिस, रोटी - रोटी, गिंगिली बॉल्स - थिला गुली - थाला गुली, कड़वा - थेथो - थिट्ठा, शराब - शरा - रा, आलू - आलू - आलु।  

स्थानों के नाम- 
                    निम्नलिखित स्थानों के नाम महानगर कोलकाता से हैं। रत्नों का मैदान - मानिकतला - मानिक थलावा, धर्म का मैदान - धर्मतला - धर्मतालवा, साल्ट लेक - नून पोकुर - लुनु पोकुना, नेशन लवर्स पार्क - देशप्रियो पार्क - देशप्रिया पार्क आदि। 

कैलेंडर/समय- 

                    चार ऋतुओं को ग्रिशमो-ग्रीष्मा, शोरोट-सारथ, शीथ-शीथा और बोसोन्टो-वसंथा कहा जाता है। सप्ताह के अंत में दिनों के बंगाली नाम 'बार' में होते हैं। ध्वनि 'बा' को सिंहली समकक्ष के लिए 'वा' से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए ताकि 'बार' 'वर' या 'वरया' या 'टर्न' हो। सोमवार से शुरू होने वाले दिनों के नाम हैं - रोबिबर - रविगेवरया, सोंबर, मोंगलबार - मंगलावरया, बुधबार - बदादा, बृहस्पतिबर - ब्रहस्पतिंडा, शुक्रोबर - सिकुराडा और शोनिबार - सेनासुरधा। नामों की ये दोनों सूची कुछ ग्रहों को संदर्भित करती हैं। एएम, पीएम - शोकले, विकले। रात्रि - रात्रि - रात्रि, शुभ रात्रि - शुबा रात्रि - सुबा रात्रिक।

तमिल और सिंहल 

                    तमिल और सिंहल दोनों में, वाक्यांश संरचना ज़्यादातर मामलों में काफी समान होती है। उदाहरण के लिए, "मैं भूखा हूँ" को "सिंहल" में "माता बदागिनी" और "तमिल" में "एनक्कु पासिक्कुथु" कहा जा सकता है। यहाँ "माता" का अर्थ "एनक्कु" और "बदागिनी" का अर्थ "पसिक्कुथु" है। कोई शिक्षक या दोस्त जब जवाब चाहता है, तो वह कहता है "कियान्ना बलन्ना", जिसका अनुवाद "सोली परपोम" है।"कियाला देनावादा" - "सोल्ली थरवा"। 

उड़िया और सिंहल  

मैंने किया = म्यू करिली.

हमने किया = अमे करिलु.

आपने (अशिष्ट, एकवचन) किया = तू करिलु।

तुमने (अशिष्ट, एकवचन) किया = तुमे करीला।

आपने (अशिष्ट, बहुवचन) किया = तुमेमेन करीला। (संपादन सुझाएँ)

आपने (Polite) किया = अपोनो करिले. (संपादन सुझाएँ)

उसने / उसने किया = से करीला।

उसने / उसने (विनम्र) किया = से करिले।

उन्होंने किया = सेमेन कारिले.

सिंहली

मैं करता हूँ = मामा करामि (/करणनेमि)।

हम करते हैं = अपि करामु (/करणनेमु)।

आप (एकवचन) करते हैं = ओबा/नुम्बा करननेही।

आप (बहुवचन) करते हैं = ओबला / नुम्बाला करण्नेहु।

वह करता है = ओहू करै/करणेय।

वह करती है = ईया करै/करन्नेयया।

वे करते हैं = ओवुन कराथी / करन्नोया।

उड़िया  

मैं करता हूँ = मु करे.

हम करते हैं = अमे कारू।

आप (अशिष्ट, एकवचन) करते हैं = तू करु।

तुम (अशिष्ट, एकवचन) करते हो = तुमे कारा।

आप (अशिष्ट, बहुवचन) करते हैं = तुममेमने कारा।

आप (विनम्र, एकवचन) करते हैं = अपोनो कारंती।

वह / वह करता है = से करे।

वह/वह (विनम्र) करता है = से कारंति।

वे करते हैं = सेमने कारंती।

अन्य साम्यताएँ  
                    भारत और लंका में व्यक्तियों के नाम प्रसन्ना, महेंद्र, आदि एक जैसे हैं। सिंहली नाम "विजयरत्न" तमिल में "विजयरत्नम" हो जाता है। सिंहली लोग "भगवान कटारागामा" की पूजा करते हैं । भगवान कटारागामा को  "भगवान कंठस्वामी" के नाम से जाना जाता है, जो शिव के पुत्र हैं। सिंहली और तमिल दोनों ही उनके अनुयायी हैं। बौद्ध सिंहली कोविल भी जाते हैं। 

                    
                    सिंहली भाषा में वाक्यांशों को “कर्ता-क्रिया-कर्ता” (अंग्रेजी में शब्द क्रम सख्त है) प्रारूप का पालन करना आवश्यक नहीं है।अंग्रेजी में, यदि आप कहते हैं “लड़के ने लड़की का पीछा किया”, और यदि आप एसवीओ से शब्दों के क्रम को पलट देते हैं, और इसे “लड़की ने लड़के का पीछा किया” लिखते हैं, तो विचार अलग होगा। सिंहल में SVO क्रम लचीला है। उदाहरण के लिए, "मामा अय्याता गहुवा (मैं, भाई को, मारो)" को "अय्याता, मामा, गहुवा" (भाई को, मैं, मारो) भी कहा जा सकता है। 

                    सिहली और तमिल संस्कृतियाँ मिलती-जुलती हैं। सिंहली महिलाएँ हल्के रंग की साड़ियाँ पहनती हैं, और तमिल महिलाएँ चटकीले और गहरे रंग की साड़ियाँ पहनती हैं। सिंहली और तमिल दोनों ही रूढ़िवादी हैंऔर उन्हें अपनी भाषा और इतिहास पर बहुत गर्व है। सिंहली और तमिल लोग एक जैसे दिखते हैं। 

                        सार यह कि दक्षिण भारतीयों और सिंहलियों में कई समानताएँ और असमानताएँ  हैं तथापि इस समूचे भूखंड के निवासियों की सभ्यता, संस्कृति, इतिहास, धर्म, भाषाएँ, परंपराएँ और भाग्य साझा हैं। आधुनिक विश्व के फलक पर भारत और लंका का भविष्य भी एक समान रहना संभावित है। विश्व की महाशक्तियाँ भारत और अलंका को अलग-अलग करने  के कितने भी प्रयास कर लें, सफल नहीं हो सकेंगे। श्री लंका और भारत की सरकारें और राजनेता पारस्परिक हितों का संरक्षण करते हुए साझा उज्जवल भविष्य का निर्माण करने की दिशा में सक्रिय हैं। भारत और श्रीलंका के साहित्यकारों का दायित्व है कि वे समय की पुकार को सुनकर एक दूसरे के साथ मिलकर सारस्वत अनुष्ठानों को साकार करें और साझा साहित्य का सृजन करें। 

***
संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन। जबलपुर ४८२००१, वाट्स ऐप ९४२५१८३२४४ 

शनिवार, 6 सितंबर 2025

सितंबर ५, फुलबगिया, शिक्षक, दोहा, सॉनेट, पुनरुक्ति अलंकार, प्रातस्मरण स्तोत्र, नवगीत

ॐ  
* विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर *
* समन्वय प्रकाशन जबलपुर *
कृति चर्चा : 'फुलबगिया' साझा संकलन
पर्यटन चर्चा : श्रीलंका यात्रा में साहित्यकार
दिनाँक- १६.९.२०२५ मंगलवार, समय- शाम ५ बजे
स्थान जानकी रमण महाविद्यालय, आगा चौक, जबलपुर
हिंदी साहित्य में पहली बार १२१ फूलों पर ७७ रचनाकारों की २७० रचनाओं के साझा संकलन फुलबगिया तथा संस्कारधानी के साहित्यकारों द्वारा श्रीलंका पर्यटन संबंधी विमर्श वार्ता में सभी सुहृद जन सादर आमंत्रित हैं।

अध्यक्ष- डॉ. मुकुल तिवारी।
मुख्य अतिथि- डॉ. रोहित मिश्रा।

वक्ता एवं कवि :

इं. दुर्गेश ब्योहार 'दर्शन', श्रीमती साधना साहू, डॉ. सुरेंद्र साहू।
डॉ. अनामिका तिवारी, अनुराधा गर्ग 'दीप्ति', अल्पना श्रीवास्तव, अविनाश ब्योहार, अश्विनी पाठक, अस्मिता शैली, उमेश साहू 'ओज', काली दास ताम्रकार, छाया सक्सेना 'प्रभु', प्रकाश चंद्र अग्रवाल, मदन श्रीवास्तव, मनोहर चौबे 'आकाश', मीना भट्ट, यतिश जैन, क्षिप्रा सेन, डॉ. शोभा सिंह।
ooo
* उमेश साहू 'ओज' संचालक==मनोहर चौबे 'आकाश' संयोजक == बसंत शर्मा अध्यक्ष == आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' सभापति * 

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फुलबगिया विमोचित

रामबोड़ा श्रीलंका, ३० अगस्त २०२५। संस्कारधानी की भजनीक स्व. शांति देवी वर्मा की कृति राम नाम सुखदाई', भजन गायक दुर्गेश ब्यौहार लिखित 'रामायण भजनावली' तथा आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' द्वारा संपादित १२१ फूलों पर ७७ ओं की २७० रचनाओं का साझा संकलन 'फुलबगिया' का लोकार्पण, 'अशोक वाटिका' में, हनुमान जी के पवित्र पगचिन्ह के निकट, सीता नदी के पवित्र सलिल प्रवाह के मध्य हिंदीविद प्रोफेसर अर्जुन चव्हाण की अध्यक्षता, मुख्य अतिथि प्रो. प्रदीप सिंह के मुख्यातिथ्य, आचार्य इं. संजीव वर्मा 'सलिल', इं. दुर्गेश ब्योहार 'दर्शन', प्रो. वीणा सिंह, प्रो. सतीश कनौजिया की विशेष उपस्थिति में संपन्न हुआ। सांस्कृतिक शोध संस्थान मुंबई तथा विश्व वाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न इस अंतर्राष्ट्रीय सारस्वत अनुष्ठान में मारिशस से पधारे दंपत्ति डॉ. ज्ञान धनुक चंद-डॉ. मिला धनुकचंद, डॉ. शीरीन कुरेशी इंदौर, हुस्न तबस्सुम 'निहां' मुंबई, प्रो. ऊषा शाह कोलकाता, ललित सिंह ठाकुर भाटापारा, डॉ. सुरेन्द्र साहू-श्रीमती साधना साहू जबलपुर, आनंद श्रीवास्तव-श्रीमती पूनम श्रीवास्तव प्रयागराज, प्रो. गोविंद 'निर्मल' मुंबई, श्री कालिका प्रसाद सेमवाल-श्रीमती बसंती सेमवाल गढ़वाल की सहभागिता उल्लेखनीय रही।

सलिल सृजन सितंबर ५
*
अज्ञान तिमिरांधस्य ज्ञानांजन शलाकया.
चक्षुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरूवे नम:
.
अज्ञान के तिमिर में ले ज्ञान की शलाका
जो आँख खोल देता उस गुरु को नमन है
*
सलिल दोहावली
शिक्षक
शिक्षक का वंदन करें, श्रद्धा सहित हमेश।
सीख सीख आगे बढ़ें, नर से बनें नरेश।।
शिक्षक ने शिक्षित किया, सबको एक समान।
हंस-काग दोनों पढ़े, किंतु रहे असमान।।
शिक्षक को सम्मान दे, सम्मानित हो छात्र।
वह गुड़ यह शक्कर बने, रहे न छाया मात्र।।
शिक्षक जो सिखला रहा, सीख सका क्या आप?
खुद से खुद ही प्रश्न कर, ले गहराई नाप।।
शिक्षक गुरु हो सके तो, शिष्य बनें भगवान।
गहते चरण सुरेश भी, भू पर बन इंसान।।
शिक्षक टीचर है नहीं, करता सिर्फ न टीच।
प्रीचर मत कहिए उसे, करे न केवल प्रीच।।
शिक्षक देता शिष्य को, सत्य सनातन सीख।
सबके जैसा है मगर, सबसे बेहतर दीख।।
शिक्षक भी इंसान हैं, यह सच कभी न भूल।
शोषित हो तो शिष्य का, कर भविष्य दे धूल।।
अति उत्तम आचार कर, शिक्षक हो आचार्य।
चीरे तम प्राचीर बन, रवि तो हो प्राचार्य।।
करे अध्ययन आप फिर, अध्यापन में लीन।
जो हो अध्यापक वही, दे दे हो नहिं दीन।।
शिक्षक से जो सीख ली, सिखलाएँ भी आप।
साथ न लेकर जाइए, ज्ञान सके जग व्याप।।
५.९.२०२४
•••
मुक्तक
तिमिर हरकर भोर करती है अरुणिमा।
शांत रहती, शोर नहिं करती अरुणिमा।।
जागरण संदेश देकर नित जगाती-
सकल जग को मुदित करती है अरुणिमा।।
•••
कुंडलिया
शक-सेना का अंत कर, वर श्रद्धा-विश्वास।
सक्सेस सक्सेना वरें, तम हर करें उजास।।
तम हर करें उजास, सुसंतति चित्रगुप्त की।
करते कठिन प्रयास, साधना ज्ञान लुप्त की।।
कहें सलिल कविराय, नियति से कभी डरे ना।
सक्सेना थे वीर, पराजित की शक सेना।।
५.९.२०२४
सॉनेट
नेता
*
मन की बात करे हर नेता,
जन की बात न उसको भाती,
वादे कर जुमला कह देता,
अच्छी लगती ठकुरसुहाती।
खुद विपक्ष से नफरत करता,
कहता 'वे नफरत करते हैं',
मिलने आएँ गले; न मिलता,
कहता ठठा 'गले पड़ते हैं'।
अंधभक्त जयकार गुँजाते,
चमचे चारण विरुद सुनाते,
'हुआ; न होगा' कह उकसाते,
अपनी छवि पर आप लुभाते।
खोई सत्ता क्रय कर लेता।
हारे तो भी बने विजेता।।
५-९-२०२३
***
सॉनेट
शिक्षक दिवस
नित्य नया सीखिए,
नित्य नव सिखाइए,
अग्रगण्य दीखिए,
राह नव दिखाइए।
अंधकार को गले,
दीप बन लगाइए,
दें प्रकाश गर ढले,
भोर रवि उगाइए।
बने क्षर अक्षर सभी,
शब्द नित सिखाइए,
भाव बिंब रस नदी,
नर्मदा बहाइए।
जीवन को जिताइए।
सजीवित बनाइए।।
५-९-२०२३
शिक्षक दिवस
•••
सॉनेट
शिक्षक
शिक्षक सब कुछ रहे सिखाते
हम ही सीख नहीं कुछ पाए
खोटे सिक्के रहे भुनाते
धन दे निज वंदन करवाए
मितभाषी गुरु स्वेद बहाते
कंकर से शंकर गढ़ पाए
हम ढपोरशंखी पछताते
आपन मुख आपन जस गाए
गुरु नेकी कर रहे भुलाते
हमने कर अहसान जताए
गुरु बन दीपक तिमिर मिटाते
हमने नाते-नेह भुनाए
गुरु पग-रज यदि शीश चढ़ाते
आदम हैं इंसान कहाते
५-९-२०२२
***
अलंकार सलिला
पुनरुक्ति अलंकार
*
पुनरुक्ति अथवा वीप्सा अलङ्कार में काव्य अथवा वाक्य में एक ही शब्द किसी भाव को पुष्ट करने के लिए उसी अर्थ में बार-बार प्रयोग किया जाता है। यथा इस अलङ्कार को परिभाषित करते हुए मेरा 'बार-बार' का उसी अर्थ में प्रयोग पुनरुक्ति है।
यह संस्कृत श्लोक वीप्सा अलङ्कार का सुन्दर उदाहरण है :
शैले-शैले न माणिक्यं, मौक्तिकं न गजे-गजे।
साधवो न हि सर्वत्रं, चन्दनं न वने-वने ॥
इस अलङ्कार के तीन भेद हैं, और उन भेदों में भी सूक्ष्म विभेद हैं।
१. पूर्ण पुनरुक्ति अलङ्कार - पूर्ण पुनरुक्ति अलङ्कार में एक ही शब्द उसी रूप में दोबारा प्रयोग किया जाता है। इसके ७ भेद हैं :
१.१ सञ्ज्ञा पूर्ण पुनरुक्ति - जिसमें सञ्ज्ञा शब्दों की पुनरावृत्ति होती है। साहिर लुधियानवी का लिखा, रवि का संगीतबद्ध किया और आशा भोंसले का गाया नीलकमल का यह गीत जिसमें रोम शब्द की पुनरुक्ति हुई है :
हे रोम रोम में बसने वाले राम
हे रोम रोम में बसने वाले राम
जगत के स्वामी हे अंतर्यामी
मै तुझसे क्या माँगू?
१.२ सर्वनाम पूर्ण पुनरुक्ति — जिसमें सर्वनाम शब्दों की पुनरावृत्ति होती है। जैसे, जी एम दुर्रानी के गाए कमर जलालाबादी के लिखे पण्डित अमरनाथ तथा हुस्नलाल-भगतराम के संगीत निर्देशन में मिर्जा-साहिबान (१९४७) का यह गीत जिसमें सर्वनाम शब्द 'कहाँ-कहाँ' पूर्ण पुनरुक्ति हुई है।
खायेगी ठोकरें ये जवानी कहाँ-कहाँ -२
बदनाम होगी मेरी कहानी कहाँ-कहाँ -२
ओ रोने वाले अब तेरा दामन भी फट गया -२
पहुँचेगी आँसुओँ की रवानी कहाँ-कहाँ -२
खायेगी ठोकरें ये जवानी कहाँ-कहाँ
जिस बाग़ पर निगाह पड़ी वो उजड़ गया -२
बरसाऊँ अपनी आँख का पानी कहाँ-कहाँ -२
खायेगी ठोकरें ये जवानी कहाँ-कहाँ
१.३ विशेषण पूर्ण पुनरुक्ति अलङ्कार का प्रयोग 'जाने-अनजाने' (१९७१) के लता मंगेशकर और मुहम्मद रफी के गाए, शंकर जयकिशन के संगीत निर्देशन में हसरत जयपुरी के लिखे इस गीत में 'नीली नीली' शब्द का आँखों के विशेषण के रूप में प्रयोग
तेरी नीली नीली आँखों के
दिल पे तीर चल गए
चल गए चल गए चल गए
ये देख के दुनियावालों के
दिल जल गए
जल गए जल गए जल गए
१.४ क्रिया-विशेषण पुनरुक्ति अलङ्कार - क्रिया-विशेषण पुनरुक्ति प्रयोग 'झूम झूम' के रूप में 'अंदाज़' में नौशाद के संगीत निर्देशन में मुकेश के गाए इस गीत में देखा जा सकता है। इस गीत में सञ्ज्ञा 'आज' तथा क्रिया 'नाचो' की भी पुनरुक्ति है। यह गीत मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखा है।
झूम झूम के नाचो आज नाचो आज
गाओ खुशी के गीत हो
गाओ खुशी के गीत
आज किसी की हार हुई है,
आज किसी की जीत हो
गाओ खुशी के गीत हो
१.५ विस्मयादिबोधक पुनरुक्ति अलङ्कार का प्रयोग 'रामा रामा' के अनूठे प्रयोग से 'नया जमाना' (१९७१) लता मंगेशकर के गाए इस गीत में देखा जा सकता है। संगीतकार सचिन देव बर्मन तथा गीतकार आनन्द बख्शी हैं।
हाय राम
रामा रामा गजब हुई गवा रे
रामा रामा गजब हुई गवा रे
हाल हमारा अजब हुई गवा रे
रामा रामा गजब हुई गवा रे
१.६ विभक्ति सहित पुनरुक्ति, इसमें पुनरुक्त शब्दों के मध्य में विभक्ति शब्द होता है। जैसे कि 'सन्त ज्ञानेश्वर' (१९६४) फिल्म के लिए मुकेश तथा लता मंगेशकर के गाए इस गीत में शब्दों की पुनरावृत्ति के बीच विभक्ति सूचक शब्द 'से' का प्रयोग हुआ है। गीतकार भरत व्यास हैं तथा संगीत लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का है।
ज्योत से ज्योत जगाते चलो,
ज्योत से ज्योत जगाते चलो
प्रेम की गंगा बहाते चलो,
प्रेम की गंगा बहाते चलो
राह में आये जो दीन दुखी,
राह में आये जो दीन दुखी
सब को गले से लगते चलो,
प्रेम की गंगा बहाते चलो
१.७ क्रिया पुनरुक्ति का प्रयोग भी कुछ गीतों में देखा जा सकता है। जैसे कि हेमन्त कुमार तथा लता मंगेशकर के गाए इस गीत में क्रिया और क्रिया-विशेषण दोनों ही की पुनरावृत्ति होती है। पायल(१९५७) के इस गीत के गीतकार राजेन्द्र कृष्ण तथा संगीतकार हेमन्त कुमार स्वयं ही हैं
चलो चले रे सजन धीरे धीरे
बलम धीरे धीरे सफर है प्यार का
खोई खोई है यह रात रंगीली
नजर है नशीली समां इकरार का
२. अपूर्ण पुनरुक्ति - इसके ३ प्रकार हैं।
२.१ दो सार्थक सानुप्रास शब्दों का मेल, यह शब्द सञ्ज्ञा, क्रिया, विशेषण, क्रिया-विशेषण कुछ भी हो सकते हैं। 'मिस इण्डिया' फिल्म के इस गीत में विभक्ति सहित सानुप्रास सञ्ज्ञा तथा सर्वनाम शब्दों का प्रयोग देखा जा सकता है। राजेन्द्र कृष्ण के गीत को सचिन देव बर्मन के संगीत निर्देशन में शमशाद बेगम ने यह गीत गाया है।
है जैसे को तैसा
नहले पे दहला
दुनिया का प्यारे
असूल है ये पहला
जैसे को तैसा
नहले पे दहला
२.२ दो निरर्थक शब्दों की पुनरुक्ति से, जैसे खटा खट, झटा झट, फटाफट, फट फट, लाटू बाकू आदि इसका उदाहरण नीचे दिया गया है। जैसे किशोर कुमार और शमशाद बेगम के गाए इस गीत में अपूर्ण पुनरुक्ति अलङ्कार का बहुतायत से प्रयोग हुआ है, और अनेक स्थानों पर सार्थक अथवा निरर्थक शब्दों का मेल दिखता है। प्रेम धवन के लिखे गीत को मदनमोहन ने संगीत दिया है फिल्म है 'अदा' (१९५१)।
जो तुम करो मैं कर सकता हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
मैं कर सकती हूँ तुमसे भी बढ़ चढ़ के बढ़ चढ़ के
जो तुम करो मैं कर सकता हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
मैं कर सकती हूँ तुमसे भी बढ़ चढ़ के बढ़ चढ़ के
मैं उँचे सुरों में गाऊँ
मैं तुमसे भी उँचा जाऊँ
होय मैं उँचे सुरों में गाऊँ
अजि मैं तुमसे भी उँचा जाऊँ
सा रे गा
रे गा मा
गा मा पा
मा पा धा
पा धा नि
धा नि पा
नि सा रे ए ए ए
सा रे गा रे गा मा गा मा पा
जो तुम करो मैं कर सकता हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
मैं कर सकती हूँ तुमसे भी बढ़ चढ़ के बढ़ चढ़ के
जो तुम करो मैं कर सकता हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
मैं कर सकती हूँ तुमसे भी बढ़ चढ़ के बढ़ चढ़ के
मैं झट पट झटा पट बोलूं
मैं फट फट फटा फट बोलूं
मैं झट पट झटा पट बोलूं
मैं फट फट फटा फट बोलूं
झट पट झट पट
फट फट फट फट
झट पट झट पट
फट फट फट फट
झट पट झट पट
फट फट फट फट
झट पट झट पट
फट फट फट फट
झट फट झट फट
फट फट फट फट ट्र्र्रर्र्र
जो तुम करो मैं कर सकता हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
मैं कर सकती हूँ तुमसे भी बढ़ चढ़ के बढ़ चढ़ के
जो तुम करो मैं कर सकता हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
मैं कर सकती हूँ तुमसे भी बढ़ चढ़ के बढ़ चढ़ के
मैं धीरे धीरे बोलूँ
मैं तुमसे भी धीरे बोलूँ
मैं धीरे धीरे बोलूँ
मैं तुमसे भी धीरे बोलूँ
आओ दिल की बात करें
आप हमसे दूर रहें
हम तुम पे मरते हैं
हम तुमसे डरते हैं
हम जान लुटाते हैं
हम जान छुडाते हैं
हम दिल के
तुम दिल के खोटे हो
बेपेंदी के लोटे हो
डबल रोटे हो
तुम बहुत ही मोटे हो
ओएँऽऽऽऽ
आँऽऽऽऽ
जो तुम करो मैं कर सकती हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
मैं कर सकता हूँ तुमसे भी बढ़ चढ़ के बढ़ चढ़ के
जो तुम करो मैं कर सकती हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
मैं कर सकता हूँ तुमसे भी बढ़ चढ़ के बढ़ चढ़ के
मैं मीठा मीठा गाऊँ
मैं तुमसे भी मीठा गाऊँ
मैं मीठा मीठा गाऊँ
मैं तुमसे भी मीठा गाऊँ
जिया बेक़रार है
छाई बहार है
आजा मोरे बालमा
तेरा इंतेज़ार है
जिया बेक़रार है
छाई बहार है
आजा मोरे बालमा
बालम आए बसो मोरे मन मै बा आ आ आऽऽऽऽ
जो तुम करो मैं कर सकती हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
तुम कर सकती हो मुझसे भी बढ चढ के बढ चढ के
जो तुम करो मैं कर सकती हूँ बढ़ के बढ चढ के
तुम कर सकती हो मुझसे भी बढ चढ के बढ चढ के
बढ चढ के बढ चढ के
२.३ एक सार्थक और एक निरर्थक शब्द की पुनरुक्ति से, उदाहरणार्थ गोल-माल, गोल-मोल-झोल आदि। 'हाफ-टिकट' में किशोर कुमार के गाए, सलिल चौधरी के संगीत में सजे इस गीत में अपूर्ण पुनरुक्ति अलङ्कार के सभी रूपों का आनन्द लिया जा सकता है।
या या या ब ग या युं या ब ग उन
आ रहे थे इस्कूल से रास्ते में हमने देखा
एक खेल सस्ते में
क्या बेटा क्या आन मान
चील चिल चिल्लाके कजरी सुनाए
झूम-झूम कौवा भी ढोलक बजाए
चील चिल चिल्लाके कजरी सुनाए
झूम-झूम कौवा भी ढोलक बजाए
अरे वाह वाह वाह, अरे वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह अरे वाह वाह वाह
चील चिल चिल्लाके कजरी सुनाए
झूम-झूम कौवा भी ढोलक बजाए
अरे वाह वाह वाह, अरे वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह अरे वाह वाह वाह वाह
होय लाटू बाकू ओ बाकू
होय लाटू बाकू ओ बाकू
छुक-छुक-छुक चली जाती है रेल
छुक-छुक-छुक चली जाती है रेल
छुप-छुप-छुप तोता-मैना का मेल
प्यार की पकौड़ी, मीठी बातों की भेल
प्यार की पकौड़ी, मीठी बातों की भेल
थोड़ा नून, थोड़ी मिर्च, थोड़ी सूँठ, थोड़ा तेल
अरे वाह वाह वाह, अरे वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह बोल
चील चिल चिल्लाके कजरी सुनाए अरे वाह रे बेटा
झूम-झूम कौवा भी ढोलक बजाए
अरे वाह वाह वाह, अरे वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह
गोल-मोल-झोल मोटे लाला शौकीन
गोल-मोल-झोल मोटे लाला शौकीन
तोंद में छुपाए हैं चिराग़-ए-अलादीन
तीन को हमेशा करते आए साढ़े-तीन
तीन को हमेशा करते आए साढ़े-तीन
ज़रा नाप, ज़रा तोल, इसे लूट, उससे छीन
अरे वाह वाह वाह, अरे वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह
चील चिल चिल्लाके कजरी सुनाए
झूम-झूम कौवा भी ढोलक बजाए
अरे वाह वाह वाह, अरे वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह
होय लाटू बाकू ओ बाकू
होय लाटू बाकू ओ बाकू
होय लाटू बाकू ओ बाकू
कोई मुझे चोर कहे कोई कोतवाल
कोई मुझे चोर कहे कोई कोतवाल
किसपे यक़ीन करूँ मुश्किल सवाल
दुनिया में यारो है बड़ा-ही गोलमाल
दुनिया में यारो है बड़ा-ही गोलमाल
कहीं ढोल, कहीं पोल, सीधी बात टेढ़ी चाल
अरे वाह वाह वाह, अरे वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह
अरे चील चिल चिल्लाके कजरी सुनाए
झूम-झूम कौवा भी ढोलक बजाए
अरे वाह वाह वाह, अरे वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह अरे वाह वाह वाह वाह
उन बाबा मन की आँखें खोल
३. अनुकरणात्मक पुनरुक्ति अलङ्कार, इसमें किसी वस्तु की कल्पित ध्वनि को आधारित कर बने शब्दों का प्रयोग करते हैं। जैसे, रेल के लिए 'छुक छुक' (पिछले गीत में), बरसात के लिए 'रिमझिम', 'झमाझम', मेंढक की 'टर्र-टर्र', घोड़े की 'हिनहिन' आदि। इसमें सार्थक-निरर्थक किसी भी प्रकार के शब्द हो सकते हैं। जैसे मनोज कुमार की फिल्म 'यादगार' (१९७०) के इस गीत का मुखड़ा, वर्मा मलिक के इस गीत को कल्याणजी-आनंदजी ने सुरों में सजाया है और महेन्द्र कपूर ने गाया है।
एक तारा बोले तुन तुन
क्या कहे ये तुमसे सुन सुन
एक तारा बोले तुन तुन
क्या कहे ये तुमसे सुन सुन
बात है लम्बी मतलब गोल
खोल न दे ये सबकी पोल
तो फिर उसके बाद
एक तारा बोले
तुन तुन सुन सुन सुन
एक तारा बोले तुन तुन
क्या कहे ये तुमसे सुन सुन
एक तारा बोले
तुन तुन तुन तुन तुन
और अन्त में इस गीत में भी अपूर्ण पुनरुक्ति अलङ्कार का पूर्ण आनन्द लें
ईना मीना डीका, डाइ, डामोनिका
माका नाका नाका, चीका पीका रीका
ईना मीना डीका डीका डे डाइ डामोनिका
माकानाका माकानाका चीका पीका रोला रीका
रम्पम्पोश रम्पम्पोश
विशेष टिप्पणी - वीप्सा अलङ्कार के समान ही यमक अलङ्कार में शब्दों की पुनरावृत्ति होती है, किन्तु इनमें अन्तर यह है कि वीप्सा / पुनरुक्ति अलङ्कार में शब्द का अर्थ एक ही होता है, किन्तु यमक अलङ्कार में स्थान के अनुसार शब्द का अर्थ परिवर्तित हो जाता है। जैसे आशा भोंसले के गाए 'सौदागर' (१९७३) के इस गीत में सजना दो अर्थों में प्रयोग किया गया है, यह यमक अलङ्कार का उत्तम उदाहरण है। गीत और संगीत दोनों रवीन्द्र जैन के हैं।
सजना है मुझे सजना के लिए
सजना है मुझे सजना के लिए
ज़रा उलझी लटें सँवार लूँ
हर अंग का रंग निखार लूँ
के सजना है मुझे सजना के लिए
सजना है मुझे सजना के लिए
*
***
सरस्वती वंदना
लेखनी ही साध मेरी,लेखनी ही साधना हो।
तार झंकृत हो हृदय के,मात! तेरी वंदना हो।
शक्ति ऐसी दो हमें माँ,सत्य लिख संसार का दूँ।
सार समझा दूँ जगत का,ज्ञान बस परिहार का दूँ।
आन बैठो नित्य जिह्वा,कंठ में मृदु राग भर दो-
नाद अनहद बज उठे उर,प्राण निर्मल भावना हो।
काव्य हो अभिमान मेरा,तूलिका पहचान मेरी।
छंद रंगित पृष्ठ शोभित,वंद्य कूची शान मेरी।
छिन भले लो साज सारे,पर कलम को धार दो माँ-
मसि धवल शुचि नीर लेकर,अम्ब!तेरी अर्चना हो।
लिख सकूँ अरमान सारे,रच सकूँ इतिहास स्वर्णिम।
ठूँठ पतझर के हृदय पर,रख सकूँ मधुमास स्वर्णिम।
शब्द अभिधा अर्थ अभिनव,रक्त कणिका में घुला दो-
शारदे! निज कर बढ़ा दो,शुभ चरण आराधना हो।
लेखनी ही साध मेरी,लेखनी ही साधना हो।
तार झंकृत हो हृदय के,मात! तेरी वंदना हो।
५-९-२०१९
***
नव गीत
*
देश हमारा है
सरकार हमारी है,
क्यों न निभायी
हमने जिम्मेदारी है?
*
नियम व्यवस्था का
पालन हम नहीं करें,
दोष गैर पर-
निज, दोषों का नहीं धरें।
खुद क्या बेहतर
कर सकते हैं, वही करें।
सोचें त्रुटियाँ कितनी
कहाँ सुधारी हैं?
देश हमारा है
सरकार हमारी है,
क्यों न निभायी
हमने जिम्मेदारी है?
*
भाँग कुएँ में
घोल, हुए मदहोश सभी,
किसके मन में
किसके प्रति आक्रोश नहीं?
खोज-थके, हारे
पाया सन्तोष नहीं।
फ़र्ज़ भुला, हक़ चाहें
मति गई मारी है।
देश हमारा है
सरकार हमारी है,
क्यों न निभायी
हमने जिम्मेदारी है?
*
एक अँगुली जब
तुम को मैंने दिखलाई।
तीन अंगुलियाँ उठीं
आप पर, शरमाईं
मति न दोष खुद के देखे
थी भरमाई।
सोचें क्या-कब
हमने दशा सुधारी है?
देश हमारा है
सरकार हमारी है,
क्यों न निभायी
हमने जिम्मेदारी है?
*
जैसा भी है
तन्त्र, हमारा अपना है।
यह भी सच है
बेमानी हर नपना है।
अँधा न्याय-प्रशासन,
सत्य न तकना है।
कद्र न उसकी
जिसमें कुछ खुद्दारी है।
देश हमारा है
सरकार हमारी है,
क्यों न निभायी
हमने जिम्मेदारी है?
*
कौन सुधारे किसको?
आप सुधर जाएँ।
देखें अपनी कमी,
न केवल दिखलायें।
स्वार्थ भुला,
सर्वार्थों की जय-जय गायें।
अपनी माटी
सारे जग से न्यारी है।
देश हमारा है
सरकार हमारी है,
क्यों न निभायी
हमने जिम्मेदारी है?
*
११-८-२०१६
***
आदरणीय श्री संजीव सलिल जी के सम्मान में सादर समीक्षाधीन एक मुक्तक ।
= = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = =
कभी उसके मुकदमों में, वकालत हो नहीें सकती ।
कहे कोई भले उसकी, खिलाफत हो नहीें सकती ।
भले हो देर ही लेकिन, सदा वह न्याय करता है,
बड़ी उससे जमाने में, अदालत हो नहीें सकती ।
४-९-२०१६
गीतकार राजवीर सिंह
सबलगढ़ ( मुरैना ) म.प्र
फोन - 9827856799
***
प्रातस्मरण स्तोत्र (दोहानुवाद सहित) -संजीव 'सलिल'
II ॐ श्री गणधिपतये नमः II
*
प्रात:स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं सिंदूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मं
उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्डमाखण्डलादि सुरनायक वृन्दवन्द्यं
*
प्रात सुमिर गणनाथ नित, दीनस्वामि नत माथ.
शोभित गात सिंदूर से, रखिये सिर पर हाथ..
विघ्न-निवारण हेतु हों, देव दयालु प्रचण्ड.
सुर-सुरेश वन्दित प्रभो!, दें पापी को दण्ड..
*
प्रातर्नमामि चतुराननवन्द्यमान मिच्छानुकूलमखिलं च वरं ददानं.
तं तुन्दिलंद्विरसनाधिप यज्ञसूत्रं पुत्रं विलासचतुरं शिवयो:शिवाय.
*
ब्रम्ह चतुर्मुखप्रात ही, करें वन्दना नित्य.
मनचाहा वर दास को, देवें देव अनित्य..
उदर विशाल- जनेऊ है, सर्प महाविकराल.
क्रीड़ाप्रिय शिव-शिवासुत, नमन करूँ हर काल..
*
प्रातर्भजाम्यभयदं खलु भक्त शोक दावानलं गणविभुंवर कुंजरास्यम.
अज्ञानकाननविनाशनहव्यवाह मुत्साहवर्धनमहं सुतमीश्वरस्यं..
*
जला शोक-दावाग्नि मम, अभय प्रदायक दैव.
गणनायक गजवदन प्रभु!, रहिए सदय सदैव..
*
जड़-जंगल अज्ञान का, करें अग्नि बन नष्ट.
शंकर-सुत वंदन नमन, दें उत्साह विशिष्ट..
*
श्लोकत्रयमिदं पुण्यं, सदा साम्राज्यदायकं.
प्रातरुत्थाय सततं यः, पठेत प्रयाते पुमान..
*
नित्य प्रात उठकर पढ़े, त्रय पवित्र श्लोक.
सुख-समृद्धि पायें 'सलिल', वसुधा हो सुरलोक..
***
***
नवगीत:
*
राम भरोसे
चलता चल
कह सूरज से:
'काम शेष है
अभी न ढल.'
*
गड्ढों की
गिनती मत कर
मत खोज सड़क.
रुपया माँगे
अगर सिपाही
नहीं भड़क.
पैडल घुमा
न थकना-रुकना
बढ़ना है.
खड़ी चढ़ैया
दम-ख़म साधे
चढ़ना है.
बहा पसीना
गमछा लेकर
पोंछ, न रुक.
रामभरोसे!
बढ़ता चल
सुन सूरज की
बात: 'कीमती
है हर पल.'
राम भरोसे
चलता चल
कह सूरज से:
'काम शेष है
अभी न ढल.'
*
बचुवा की
लेना किताब,
पैसे हैं कम.
खाँस-खाँस
अम्मा की आँखें
होतीं नम.
चाब न पाते
रोटी, डुकर
दाँत टूटे.
धुतिया फ़टी
पहन घरनी
चुप, सुख लूटे.
टायर-ट्यूब
बदल, खालिस
सपने मत बुन.
चाय-समोसे
गटक,
सवारी बैठा,
खाली हाथ
न मल.
राम भरोसे
चलता चल
कह सूरज से:
'काम शेष है
अभी न ढल.'
*
डिजिटल-फिजिटल
काम न कुछ भी
आना है.
बिटिया को
लोटा लेकर ही
जाना है.
मुई सियासत
अपनेपन में
आग लगा.
दगा दे गयी
नहीं किसी का
कोई सगा.
खाली खाता
ठेंगा दिखा
चिढ़ाता है.
अच्छा मन
कब काम
कभी कुछ
आता है?
अच्छे दिन,
खा खैनी,
रिक्सा खींच
सम्हाल रे!
नहीं फिसल।
राम भरोसे
चलता चल
कह सूरज से:
'काम शेष है
अभी न ढल.'
***
शुभकामनायें
रचना-रचनाकार को, नित कर नम्र प्रणाम
'सलिल' काम निष्काम कर, भला करेंगे राम
ईश्वर तथा प्रकृति को नमन कर निस्वार्थ भाव से कार्य करने से प्रभु कृपा करते हैं.
परमात्मा धारण करे, काया होकर आत्म
कहलाये कायस्थ तब, तजे मिले परमात्म
निराकार परब्रम्ह अंश रूप में काया में रहता है तो कायस्थ कहलाता है. जब वह काया का त्याग करता है तो पुन: परमात्मा में मिल जाता है.
श्री वास्तव में मिले जब, खरे रहें व्यवहार
शक-सेना हँस जय करें, भट-नागर आचार
वास्तव में समृद्धि तब ही मिलती है जब जुझारू सज्जन अपने आचरण से संदेहों को ख़ुशी-ख़ुशी जीत लेते हैं।
संजय दृष्टि तटस्थ रख, देखे विधि का लेख
वर्मा रक्षक सत्य का, देख सके तो देख
महाभारत युद्ध में संजय निष्पक्ष रहकर होनी को घटते हुए देखते रहे. अपनी देश और प्रजा के रक्षक नरेश (वर्मा = अन्यों की रक्षा करनेवाला) परिणाम की चिंता किये बिना अपनी प्रतिबद्धता के अनुसार युद्ध कर शहीद हुए।
शांत रखे तन-मन सदा, शांतनु तजे न धैर्य
हो न यादवी युद्ध अब, जीवन हो निर्वैर्य
देश के शासक हर स्थिति में तन-मन शांत रखें, धीरज न तजें. आपसी टकराव (कृष्ण के अवसान के तुरंत बाद यदुवंश आपस में लड़कर समाप्त हुआ) कभी न हो. हम बिना शत्रुता के जीवन जी सकें।
सिंह सदृश कर गर्जना, मेघ बरस हर ताप
जगती को शीतल करे, भले शेष हो आप
परोपकारी बदल शेर की तरह गरजता है किन्तु धरती की गर्मी मिटाने के लिये खुद मिट जाने तक बरसता है।
***
पर्व नव सद्भाव के
*
हैं आ गये राखी कजलियाँ, पर्व नव सद्भाव के.
सन्देश देते हैं न पकड़ें, पंथ हम अलगाव के..
भाई-बहिन सा नेह-निर्मल, पालकर आगे बढ़ें.
सत-शिव करें मांगल्य सुंदर, लक्ष्य सीढ़ी पर चढ़ें..
शुभ सनातन थाती पुरातन, हमें इस पर गर्व है.
हैं जानते वह व्याप्त सबमें, प्रिय उसे जग सर्व है..
शुभ वृष्टि जल की, मेघ, बिजली, रीझ नाचे मोर-मन.
कब बंधु आये? सोच प्रमुदित, हो रही बहिना मगन..
धारे वसन हरितिमा के भू, लग रही है षोडशी.
सलिला नवोढ़ा नारियों सी, कथा है नव मोद की..
शालीनता तट में रहें सब, भंग ना मर्याद हो.
स्वातंत्र्य उच्छ्रंखल न हो यह, मर्म सबको याद हो..
बंधन रहे कुछ तभी तो हम, गति-दिशा गह पायेंगे.
निर्बंध होकर गति-दिशा बिन, शून्य में खो जायेंगे..
बंधन अप्रिय लगता हमेशा, अशुभ हो हरदम नहीं.
रक्षा करे बंधन 'सलिल' तो, त्याज्य होगा क्यों कहीं?
यह दृष्टि भारत पा सका तब, जगद्गुरु कहला सका.
रिपुओं का दिल संयम-नियम से, विजय कर दहला सका..
इतिहास से ले सबक बंधन, में बंधें हम एक हों.
संकल्पकर इतिहास रच दें, कोशिशें शुभ नेक हों..
***
कविता:
आत्मालाप:
*
क्यों खोते?, क्या खोते?,औ' कब?
कौन किसे बतलाए?
मन की मात्र यही जिज्ञासा
हम क्या थे संग लाए?
आए खाली हाथ
गँवाने को कुछ कभी नहीं था.
पाने को थी सकल सृष्टि
हम ही कुछ पचा न पाए .
ऋषि-मुनि, वेद-पुराण,
हमें सच बता-बताकर हारे
कोई न अपना, नहीं पराया
हम ही समझ न पाए.
माया में भरमाये हैं हम
वहम अहम् का पाले.
इसीलिए तो होते हैं
सारे गड़बड़ घोटाले.
जाना खाली हाथ सभी को
सभी जानते हैं सच.
धन, भू, पद, यश चाहें नित नव
कौन सका इनसे बच?
जब, जो, जैसा जहाँ घटे
हम साक्ष्य भाव से देखें.
कर्ता कभी न खुद को मानें
प्रभु को कर्ता लेखें.
हम हैं मात्र निमित्त,
वही है रचने-करनेवाला.
जिससे जो चाहे करवा ले
कोई न बचनेवाला.
ठकुरसुहाती उसे न भाती
लोभ, न लालच घेरे.
भोग लगा खाते हम खुद ही
मन से उसे न टेरें.
कंकर-कंकर में वह है तो
हम किससे टकराते?
किसके दोष दिखाते हरदम?
किससे हैं भय खाते?
द्वैत मिटा, अद्वैत वर सकें
तभी मिल सके दृष्टि.
तिनका-तिनका अपना लागे
अपनी ही सब सृष्टि.
कर अमान्य मान्यता अन्य की
उसका हृदय दुखाएँ.
कहें संकुचित सदा अन्य को
फिर हम हँसी उड़ाएँ..
कितना है यह उचित?,
स्वयं सोचें, विचार कर देखें.
अपने लक्ष्य-प्रयास विवेचें,
व्यर्थ अन्य को लेखें..
जिनके जैसे पंख,
वहीं तक वे पंछी उड़ पाएँ.
ऊँचा उड़ें,न नीचा
उड़नेवाले को ठुकराएँ..
जैसा चाहें रचें,
करे तारीफ जिसे भाएगा..
क्या कटाक्ष-आक्षेप तनिक भी
नेह-प्रीत लाएगा??..
सृजन नहीं मसखरी,न लेखन
द्वेष-भाव का जरिया.
सद्भावों की सतत साधना
रचनाओं की बगिया..
शत-शत पुष्प विकसते देखे
सबकी अलग सुगंध.
कभी न भँवरा कहे: 'मिटे यह,
उस पर हो प्रतिबन्ध.'
कभी न एक पुष्प को देखा
दे दूजे को टीस,
व्यंग्य-भाव से खीस निपोरे
जो वह दिखे कपीश..
नेह नर्मदा रहे प्रवाहित
चार दिनों का साथ.
जीते-जी दें कष्ट
बिछुड़ने पर करते नत माथ?
माया है यह, वहम अहम् का
इससे यदि बच पाये.
शब्द-सुतों का पग-प्रक्षालन
करे 'सलिल' तर जाये.
५-९-२०१०
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