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गुरुवार, 23 मार्च 2023

सॉनेट,रश्मि,विलियम वर्ड्सवर्थ डैफोडिल,मनहरण घनाक्षरी,राजा अवस्थी,कज्जल छंद,

गौरैया! चुप रहना सीखो 
*
बाज कहे जो वही सही है 
जो बहेलिया गलत नहीं है 
शक्तिहीन का ही कुसूर सब 
छाया ही कब संग रही है 
साथ धार के बहना सीखो 
*
सहन न होगा गर चहकोगी 
साथ कली के यदि महकोगी 
कर शिकार मरघट ले जाएँ 
तापें हाथ कहें दहकोगी 
हाँ में हाँ ही कहना सीखो 
जनके हाथों में है सत्ता 
उनके हाथों में हर पत्ता 
सहमत उनसे नहीं हुए तो 
मिल न सकेगा एकउ लत्ता 
निज पीड़ाएँ तहना सीखो 
***
सॉनेट
रश्मि
रश्मि तिमिर का पाश काटती
कण-कण करता है अभिनंदन
करतल ध्वनि हो अक्षत चंदन
नव आशा निशि-दिवस बाँटती

रश्मि सलिल लहरों सँग खेले
सिकता-कण कनकाभित होते
नित नव अनगिन सपने बोते
रविकर पल पल लगें नवेले

रश्मि रचे रचना हर रुचिकर
धूप-छाँव कर, मन बहलाए
शुभ प्रयास की जय जय गाए

रश्मिरथी सबके मन में हो
किरण करे किसलय हर पोषित
तुहिन कणों को करे न शोषित
२४-३-२०२३
•••
भाषा सेतु 
अंग्रेजी हिंदी 
*
William Wordsworth - daffodils               विलियम वर्ड्सवर्थ - डैफोडिल
I wandered lonely as a cloud                    मैं एकाकी बादल जैसे भटक रहा था
That floats on high o'er vales and hills,    जो उड़ता है ऊपर घाटी अरु पर्वत के
When all at once I saw a crowd,               एकाएक झुण्ड देखा मैंने जब एक
A host, of golden daffodils,                      आतिथेय ज्यों एक सुनहरे डैफोडिल का
Beside the lake, beneath the trees,            बाजू में सरवर के; पेड़ों की छाया में
Fluttering and dancing in the breeze.        झूम- झूमकर नाच रहा साथ पवन के।
Continuous as the stars that shine             लगातार जैसे तारे चमका करते हैं
And twinkle on the milky way,                 झिलमिल करते आकाशी गंगा के पथ में
They stretch'd in never-ending line           बँधे हुए वे अंतहीन रेखा में जैसे
Along the margin of a bay:                        साथ-साथ खाड़ी की तटरेखा के मैंने
Ten thousand saw I at a glance                 दस हजार को देखा एक साथ ही मैंने
Tossing their heads in sprightly dance.     झूमा रहे अपने सर होकर मुदित, नाचते।
The waves beside them danced, but they  लहरें उनके बाजू में नाचीं लेकिन वे
Out-did the sparkling waves in glee:--      अनदेखा करते लहरों को निज मस्ती में
A Poet could not but be gay                       एक कवि हो सकता नहीं और नाकारा
In such a jocund company!                        ऐसी अद्भुत और अलौकिक प्रिय संगति में
I gazed--and gazed--but little thought        देखा रहा देखता तुक फिर मैंने सोचा
What wealth the show to me had brought; क्या निधि दृश्य अनोखा मुझ तक ले आया है।
For oft, when on my couch I lie                 जब फुरसत में लेटा होता हूँ मैं कोच पर
In vacant or in pensive mood,                    खालीपन में या चिंतन में लीन हुआ मैं
They flash upon that inward eye                वे दमकते हैं मेरी अंतर्दृष्टि में
Which is the bliss of solitude;                    जो वरदान अकेलेपन का मैंने पाया
And then my heart with pleasure fills        तब मेरा हृद प्रफुल्लता से पूर्ण भर गया
And dances with the daffodils.                  और उठा मैं नाच संग में डैफोडिल के।

हिंदी काव्यानुवाद : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
२३-३-२०२२
***
मनहरण घनाक्षरी (३१ वर्ण)
*
मनहरण घनाक्षरी में १६,१५ वर्ण पर यति तथा चरणांत में गुरू होता है।
शालिनी हो, माननी हो, नहीं अभिमाननी हो,
श्वास-आस स्वामिनी हो मीत मेरी कविता
गति यति लय रस भाव बिंब रूप जस,
प्राण मन आत्मा हो प्रीत मेरी कविता
साधना हो वंदंना हो प्रार्थना हो अर्चना हो
मोहिनी आराधना हो रीत मेरी कविता
शब्द शब्द हो निशब्द सुनें सभी श्रोता गण
हो अतीत अव्यतीत गीत मेरी कविता
२३-३-२०१९
***
पुस्तक सलिला:
'जिस जगह यह नाव है' नवगीत का वह घाट है
*
[कृति विवरण- जिस जगह यह नाव है, नवगीत संग्रह, राजा अवस्थी, वर्ष २००६, आकार डिमाई, आवरण सजिल्द, बहुरंगी, जैकेट सहित, पृष्ठ १३६, मूल्य १२०रु., अनुभव प्रकाशन, ई २८ लाजपत नगर, साहिबाबाद, गाज़ियाबाद २०१००५, ०१२० ४११२२१०, रचनाकार संपर्क- गाटरघाट मार्ग, आजाद चौक, कटनी ४८३५०१, चलभाष ९६१७९१३२८७}
*
सनातन सलिला नर्मदा के अंचल में आधुनिक हिंदी के उद्भव काल से ही साहित्य की हर विधा में सतत सत्साहित्य का सृजन होता रहा है। वर्तमान पीढ़ी के सृजनशील नवगीतकारों में राजा अवस्थी का नाम साहित्य सृजन को सारस्वत पूजन की तरह समर्पित भाव से निरंतर कर रहे रचनाकारों में सम्मिलित है। हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ-ज्येष्ठ हस्ताक्षर डॉ. देवेन्द्र शर्मा 'इंद्र' तथा नर्मदांचल के वरिष्ठ साहित्य साधक श्यामनारायण मिश्र द्वारा आशीषित 'जिस जगह यह नाव है' ७८ समसामयिक, सरस नवगीतों का पठनीय संग्रह है। मध्य प्रदेश के बड़े जंक्शन कटनी में बसे राजा के नवगीत विंध्याटवी के नैसर्गिक सौंदर्य, ग्राम्यांचल के संघर्ष, नगरीकरण की घुटन, राजनीति के दिशाभ्रम, आम जन के अंतर्द्वंद तथा युवाओं के सपनों के बहुदिशायी रेलगाड़ियों में यात्रारत मनोभावों को मन में बसाते हैं। करुणा और व्यथा काव्य का उत्स है. गाँव की माटी की व्यथा-कथा गाँव के बेटों तक न पहुँचे यह कैसे संभव है?
आज गाँव की व्यथा बाँचती / चिट्ठी मेरे नाम मिली
विधवा हुई रमोली की भी / किस्मत कैसी फूटी
जेठ-ससुर की मैली नज़रें / अब टूटीं, तब टूटीं
तमाम विसंगतियों से लड़ते-जूझते हुए भी अक्षर आराधना किसी सैनिक के पराक्रम से कम नहीं है।
चंदन वन काट-काट / शव का श्रृंगार करें
शिशुओं को दें शव सा जीवन
यौवन में सन्नाटा / मरघट सा छाता है
आस-ओस दुर्लभ आजीवन
यश अर्जन को होता
भूख को हमारी, साहित्य में उतारना
माँ शारदा को क्षुधा-दीप समर्पित करती कलम का संघर्ष गाँव और शहर हर जगह एक सा है। विडम्बनाओं व विसंगतियों से जूझना ही नियति है-
स्वार्थ-पोषित आचरण को / यंत्रवत निष्ठुर शहर को / सौपने बैठा
भाव की पहचान भूले / चेहरे पढ़ना कठिन है
धुंध, सन्नाटा, अँधेरा / और बहरापन कठिन है
विवशताएँ, व्यस्तताएँ / ह्रदय में छल वर्जनाएं / थोपने बैठा
अनचाही पीड़ाएँ प्रकृति प्रदत्त कम, मनुष्य रचित अधिक हैं-
गाँव के पंचों ने मिलकर / फिर खड़ी दीवार की
फिर वही हालत, नियति / वह ही प्रकृति के प्यार की
किशनवा-रधिया की / घुटती साँस का मौसम।
किसी समाज के सामने सर्वाधिक चिंतनीय स्थिति तब होती है जब बिखराव के कारण मानव-मन दूर होने लगें। राजा इस परिस्थिति का अनुमान कर अपनी चिंता नवगीत में उड़ेल देते हैं-
अंतस के समतल की / चिकनाई गायब अब
रोज बढ़े, फैले, ज़हरीला बिखराव
रिश्तों का ताप चुका / आ बैठा ठंडापन
चहक-पुलक में में पसरा जाता ठहराव
कैसी इच्छाओं के / ज्वार और भाटे ये
दूर हुए जाते मन, सदियों के द्वीप
विषमताओं के कुम्भ में सपनों की आहट बेमानी प्रतीत होने लगे तो नवगीत मन की पीड़ा को स्वर देता है -
किसलिए सजें / सपने, तो बस विशुद्ध रेत हैं
नरभक्षी पौधों से / आश्रय की आशा क्या?
सब के सब इक जैसे / टोला क्या, माशा क्या?
कोई भी अमृत फल / इन पर आ पायेगा?
छोडो भी आशा, ये बेंत हैं
बेशर्मी जेहन से / आँखों में उतरी
ढंकेंगी कब तक / ये पोशाकें सुथरी
बच पाना मुश्किल है / ये भोंडे संस्कार
दम लेंगे हंसकर ही, ये करैत हैं
राजा केवल नाम के ही नहीं अनुभूतियों और अभिव्यक्ति-क्षमता के भी राजा हैं। लोकतंत्र में भी सामंतवादी प्रवृत्तियों का बढ़ते जाना, प्रगति की मरीचिका मैं आम आदमी का दर्द बढ़ते जाना उनके मन की पीड़ा को बढ़ाता है-
फिर उसी सामंतवादी / जड़ प्रकृति को रोपता
एक विध्वंसक समय को / हाथ बाँधे न्योतता
जड़ तमाचे पर तमाचे / अमन के मुँह पर
पढ़ कसीदे पर कसीदे / दमन के मुँह पर
गर्व से मुस्की दबाये / है प्रगति का देवता
मुहावरेदार भाषा राजा अवस्थी के नवगीतों की जान है। रेवड़ी बेभाव बाँटी / प्रगति को दे दी धता, ढिबरी का तेल चुका / फैला अँधियार, खेतिहर बिजूकों से / भय खाएं राम, मस्तक में बोकर नासूर / टोपी के ये नकली बाल क्या सँवारना?, संविधान के मकड़जाल में / उलझा अक्सर न्याय हमारा, तार पर दे जीवन आघात / बेसुरे सुर दे रहे धता, कुँवारी इच्छाएं ऐसी / खिले ज्यों हरसिंगार के फूल जैसी अभिव्यक्तियाँ कम शब्दों में अधिक अनुभूतियों से पाठक का साक्षात करा देती हैं।
ग्राम्यांचली पृष्ठभूमि राजा अवस्थी को देशज शब्दों के उस ख़ज़ाने से संपन्न करती है जो शहरों के कोंवेंटी कवि के लिए आकाश कुसुम है। बरुआ, ठकुरवा, छप्पर, छुअन, झरोखा, निठुराई, बिजूका, झोपड़, जांगर. कहतें, पांग, बढ़ानी, हिय, पर्भाती, सुग्गे, ढिबरी, किशनवा, कुछबन्दियों, खटती, बहुँटा, अंकुई, दलिद्दर, चरित्तर, पैताने आदि ग्रामीण शब्दों के साथ उर्दू लफ्ज़ खातिर, रैयत, खबर, गुजरे, बैर, ज़ुल्मों, खस्ताहाल, नज़रें, ख्याल, आमद, बदन, यकीन, ज़ेहन, नुस्खे, नासूर, इन्तिज़ार, ज़हर, आफत, एहसान, तकादा, एहसान, चस्पा, लफ़्फ़ाज़ी आदि मिलकर उस गंगो-जमुनी जीवन की बानगी पेश करते हैं जिसमें शुद्ध हिंदी के अनुपूरित, प्रतिकार, अंतर्मन, उल्लास, ग्रसित, व्याल, आतंकित, प्रतिबंधित, मराल, भ्रान्ति, आलिंगन, उत्कंठा, वीथिकाएँ, वर्जनाएं,अंतस, निष्कलुष, बड़वानल, हिमगलित, संभरण आदि पुलाव में मेवे की तरह प्रतीत होते हैं। राजा अवस्थी ने शब्द-युग्मों की शक्ति और उपदेयता को पहचाना और उपयोग किया है। खबर-दबर, जेठ-ससुर, माँ-दद्दा, रात-दिन, हम-तुम, मन-मान, आस-ओस, उठना-गिरना, साँझ-सँझवाती, लड़ी-फड़ी, डगर-मगर, सुख-दुःख, घर-गाँव, सुबह-शाम, दोपहरी-रात, नून-तेल, आस-पास, दूध-भात, मरते-कटते, चोर-लबार, अमन-चैन, चहक-पुलक, सीलन-सन्नाटे, दंभ-छ्ल्, है-मेल, हवा-पानी, प्रीति-गीति-रीति, मोह-ममता-नेह, तन-मन-जेहन आदि शब्द युगन इन नवगीतों की भाषा को जीवंतता देते हैं।
राजा अवस्थी की प्रयोगधर्मी वृत्ति फाइलबाजों, कंठ-लावनी, वर्ण-कंपित, हिटलरी डकार, श्रध्दाशा, ममता की अलगनी, सुधियों की डोर, काँटों की गलियाँ, मुस्कानों के झोंके, शब्दों का संत्रास, पीड़ाओं के शिलाखंड जैसे शब्दावलियों से पाठक को बाँध पाये हैं। शब्द-सामर्थ्य, भाषा-शैली, नव बिम्ब, नए प्रतीक, मौलिक कथ्य की कसौटी पर ये गीत खरे उतरते हैं। इन नवगीतों में मात्रिक छंदों का प्रयोग किया गया है। दो से लेकर चार पंक्तियों तक के मुखड़े तथा आठ पंक्तियों तक के अंतरे प्रयुक्त हुए हैं। नवगीतों में अंतरों की संख्या दो या तीन है।
हिंदी के समर्थ समीक्षक डॉ. विजय बहादुर सिंह ने इन गीतों में 'समकालीन जीवन व् उसके यथार्थ के प्रति अत्यधिक सजगता एवं संवेदनशीलता, स्थानीयता के रंगों से कुछ अधिक रंगीनियत' ठीक ही लक्षित की है। इस कृति के प्रकाशन के एक दशक बाद राजा अवस्थी की कलम अधिक पैनी हुई है, उनके नवगीतों के नये संकलन की प्रतीक्षा स्वाभाविक है।
२३-३-२०१६
***
छंद सलिला:
कज्जल छंद
*
लक्षण: सममात्रिक छंद, जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४ मात्रा, चरणांत लघु-गुरु
लक्षण छंद:
कज्जल कोर निहार मौन,
चौदह रत्न न चाह कौन?
गुरु-लघु अंत रखें समान,
रचिए छंद सरस सुजान
उदाहरण:
१. देव! निहार मेरी ओर,
रखें कर में जीवन-डोर
शांत रहे मन भूल शोर,
नयी आस दे नित्य भोर
२. कोई नहीं तुमसा ईश
तुम्हीं नदीश, तुम्ही गिरीश।
अगनि गगन तुम्हीं पृथीश
मनुज हो सके प्रभु मनीष।
३. करेंगे हिंदी में काम
तभी हो भारत का नाम
तजिए मत लें धैर्य थाम
समय ठीक या रहे वाम
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मधुभार, मनहरण घनाक्षरी, मानव, माली, माया, माला, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)
२३-३-२०१४
***
विज्ञापन या ठगी ??????
1) घोटालों से परेशान ना हों, Tata की चाय पीयें, इससे देश बदल
जाएगा|
2) पानी की जगह Coca Cola और Pepsi पीयें और प्यास बुझायें|
3) Lifebuoy और Dettol 99.9% कीटाणु मारते है पर 0.1 %
पुनः प्रजनन के लिए छोड़ ही देते हैं|
4) महिलाओं को बचाने और बटन खुले होने
की चेतावनी देने का ठेका केवल Akshay Kumar ने लिया है|
5) अगर आप Sprite पीते हैं तो लड़की पटाना आपके बाये हाँथ
का खेल है|
6) Salman Khan के अनुसार
महीने भर का Wheel Detergent ले आओ
और कई किलो सोने के मालिक बन जाओ.
आपको नौकरी करने की कोई जरुरत नहीं|
7) Saif Ali Khan और Kreena Kapoor ने शादी एक दुसरे के सर
का Dandruff देख कर की है|
8)यदि किसी के Toothpaste में नमक है तो; यह पूछने के लिए आप
किसी के भी घर का बाथरूम तोड़ सकते हैं|
9) Samsung Galaxy S3 फोन के
अलावा बाकी सभी फोन बंदरों के लिए बने हैं| केवल यही फ़ोन
इंसानों के लिए है!
10) Mountain Dew पीकर पहाड़ से कूद जाइये, कुछ नहीं होगा|
11) Cadbury Dairy Milk Silk Chocolate खाएं कम और मुंह
पर ज्यादा लगायें|
12) Happident चबाइए और बिजली का कनेक्शन कटवा लीजिये|
13) आपके insurance Agents को अपने पापा से
ज्यादा आपकी फ़िक्र रहती हैं|
14) फलमंडी से ज्यादा फल आपके Shampoo में होते हैं|
15) अपने घर का Toilet सदा साफ़ रखें अन्यथा एक Handsome
सा लड़का Harpic और Camera लेकर आपकेToilet की सफाई
का Live Broadcast
करने लगेगा|
16) अगर आपने घर में Asian Paints किया है तो आप दुनिया के
सबसे Intelligent इन्सान हैं|
17) अगर आपने Lux Cozy Big Shot
नहीं पहनी तो आपको मर्द कहलाने काकोई हक़ नहीं|
18) अगर तुम्हारा बेटा Bournvita
नहीं पीता तो वो मंदबुद्धि हो जायेगा|
***
फागुन के मुक्तक
*
बसा है आपके ही दिल में प्रिय कब से हमारा दिल.
बनाया उसको माशूका जो बिल देने के है काबिल..
चढ़ायी भाँग करके स्वांग उससे गले मिल लेंगे-
रहे अब तक न लेकिन अब रहेंगे हम तनिक गाफिल..
*
दिया होता नहीं तो दिया दिल का ही जला लेते.
अगर सजती नहीं सजनी न उससे दिल मिला लेते..
वज़न उसका अधिक या मेक-अप का कौन बतलाये?
करा खुद पैक-अप हम क्यों न उसको बिल दिला लेते..
*
फागुन में गुन भुलाइए बेगुन हुजूर हों.
किशमिश न बनिए आप अब सूखा खजूर हों..
माशूक को रंग दीजिए रंग से, गुलाल से-
भागिए मत रंग छुड़ाने खुद मजूर हों..
२३-३-२०१३
*
पर्वत शिखरों पर बसी, धूप-छाँव सँग शाम.
वृक्षों पर कलरव करें, नभचर आ आराम..

गीत
*
वक़्त ने दिल को दिए हैं
घाव कितने?...
*
हम समझ ही नहीं पाए
कौन क्या है?
और तुमने यह न समझा
मौन क्या है?
साथ रहकर भी रहे क्यों
दूर हरदम?
कौन जाने हैं अजाने
भाव कितने?
वक़्त ने दिल को दिए हैं
घाव कितने?...
*
चाहकर भी तुम न हमको
चाह पाए.
दाहकर भी हम न तुमको
दाह पाए.
बाँह में थी बाँह लेकिन
राह भूले-
छिपे तन-मन में रहे
अलगाव कितने?
वक़्त ने दिल को दिए हैं
घाव कितने?...
*
अ-सुर-बेसुर से नहीं,
किंचित शिकायत.
स-सुर सुर की भुलाई है
क्यों रवायत?
नफासत से जहालत क्यों
जीतती है?
बगावत क्यों सह रही
अभाव इतने?
वक़्त ने दिल को दिए हैं
घाव कितने?...
*
खड़े हैं विषधर, चुनें तो
क्यों चुनें हम?
नींद गायब तो सपन
कैसे बुनें हम?
बेबसी में शीश निज अपना
धुनें हम-
भाव नभ पर, धरा पर
बेभाव कितने?
वक़्त ने दिल को दिए हैं
घाव कितने?...
*
साँझ सूरज-चंद्रमा सँग
खेलती है.
उषा रुसवाई, न कुछ कह
झेलती है.
हजारों तारे निशा के
दिवाने है-
'सलिल' निर्मल पर पड़े
प्रभाव कितने?
वक़्त ने दिल को दिए हैं
घाव कितने?...
***
नवगीत
विडंबना
*
कोई न चाहे
पुत्र बने निज
भगत गुरु सुखदेव.
नेता जी से पूछो भाई .
व्यापारी से पूछो भाई .
अधिकारी से पूछो भाई .
न्यायमूर्ति से पूछो भाई
वकील साब से पूछो भाई
सब चाहें केवल यश गाना.
भाषण देना चित्र छपाना.
कोई न चाहे
पुत्र बने निज
भगत गुरु सुखदेव.
*
कोई न चाहे
पत्नि-सुता हो
रानी लक्ष्मी बाई.
नेता जी से पूछो भाई .
व्यापारी से पूछो भाई .
अधिकारी से पूछो भाई .
न्यायमूर्ति से पूछो भाई
वकील साब से पूछो भाई
सब चाहें केवल यश गाना.
भाषण देना चित्र छपाना.
कोई न चाहे
पत्नि-सुता हो
रानी लक्ष्मी बाई.
*
मेरे घर में
रहे लक्ष्मी
तेरे घर में काली.
तू ले ले वनवास विरासत
सत्ता मैंने पा ली.
वादे किये न पूरे लेकिन
मुझसे तू मत पूछ.
मुँह मत खोल भले ही मैंने
दी जी भर कर गाली.
चार साल की पूछ न बातें
सत्तर की बतला दे.
अपना वोट मुझे दे दे
जुमलेबाजी बिसरा दे.
२३-३-२०१०
***

बुधवार, 22 मार्च 2023

ब्रह्मोस मिसाइल,वर्ण पिरामिड,हाइकु गीत,कविता दिवस,रैप सौंग,लघुकथा

श्री दुर्गाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
हिंदी काव्यानुवाद
*
शिव बोलेः ‘हे पद्ममुखी! मैं कहता नाम एक सौ आठ।
दुर्गा देवी हों प्रसन्न नित सुनकर जिनका सुमधुर पाठ।१।
ओम सती साघ्वी भवप्रीता भवमोचनी भवानी धन्य।
आर्या दुर्गा विजया आद्या शूलवती तीनाक्ष अनन्य।२।
पिनाकिनी चित्रा चंद्रघंटा, महातपा शुभरूपा आप्त।
अहं बुद्धि मन चित्त चेतना, चिता चिन्मया दर्शन प्राप्त।३।
सब मंत्रों में सत्ता जिनकी, सत्यानंद स्वरूपा दिव्य।
भाएॅं भाव-भावना अनगिन, भव्य-अभव्य सदागति नव्य।४।
शंभुप्रिया सुरमाता चिंता, रत्नप्रिया हों सदा प्रसन्न।
विद्यामयी दक्षतनया हे!, दक्षयज्ञ ध्वंसा आसन्न।५।
देवि अपर्णा अनेकवर्णा पाटल वदना-वसना मोह।
अंबर पट परिधानधारिणी, मंजरि रंजनी विहॅंसें सोह।६।
अतिपराक्रमी निर्मम सुंदर, सुर-सुंदरियॉं भी हों मात।
मुनि मतंग पूजित मातंगी, वनदुर्गा दें दर्शन प्रात।७।
ब्राम्ही माहेशी कौमारी, ऐंद्री विष्णुमयी जगवंद्य।
चामुंडा वाराही लक्ष्मी, पुरुष आकृति धरें अनिंद्य।८।
उत्कर्षिणी निर्मला ज्ञानी, नित्या क्रिया बुद्धिदा श्रेष्ठ ।
बहुरूपा बहुप्रेमा मैया, सब वाहन वाहना सुज्येष्ठ।९।
शुंभ-निशुंभ हननकर्त्री हे!, महिषासुरमर्दिनी प्रणम्य।
मधु-कैटभ राक्षसद्वय मारे, चंड-मुंड वध किया सुरम्य।१०।
सब असुरों का नाश किया हॅंस, सभी दानवों का कर घात।
सब शास्त्रों की ज्ञाता सत्या, सब अस्त्रों को धारें मात।११।
अगणित शस्त्र लिये हाथों में, अस्त्र अनेक लिये साकार।
सुकुमारी कन्या किशोरवय, युवती यति जीवन-आधार।१२।
प्रौढ़ा नहीं किंतु हो प्रौढ़ा, वृद्धा मॉं कर शांति प्रदान।
महोदरी उन्मुक्त केशमय, घोररूपिणी बली महान।१३।
अग्नि-ज्वाल सम रौद्रमुखी छवि, कालरात्रि तापसी प्रणाम।
नारायणी भद्रकाली हे!, हरि-माया जलोदरी नाम।१४।
तुम्हीं कराली शिवदूती हो, परमेश्वरी अनंता द्रव्य।
हे सावित्री! कात्यायनी हे!!, प्रत्यक्षा विधिवादिनी श्रव्य।१५।
दुर्गानाम शताष्टक का जों, प्रति दिन करें सश्रद्धा पाठ।
देवि! न उनको कुछ असाध्य हो , सब लोकों में उनके ठाठ।१६।
मिले अन्न धन वामा सुत भी, हाथी-घोड़े बँधते द्वार।
सहज साध्य पुरुषार्थ चार हो, मिले मुक्ति होता उद्धार।१७।
करें कुमारी पूजन पहले, फिर सुरेश्वरी का कर ध्यान।
पराभक्ति सह पूजन कर फिर, अष्टोत्तर शत नाम ।१८।
पाठ करें नित सदय देव सब, होते पल-पल सदा सहाय।
राजा भी हों सेवक उसके, राज्य लक्ष्मी प् वह हर्षाय।१९।
गोरोचन, आलक्तक, कुंकुम, मधु, घी, पय, सिंदूर, कपूर।
मिला यंत्र लिख जो सुविज्ञ जन, पूजे हों शिव रूप जरूर।२०।
भौम अमावस अर्ध रात्रि में, चंद्र शतभिषा हो नक्षत्र।
स्तोत्र पढ़ें लिख मिले संपदा, परम न होती जो अन्यत्र।२१।
।।इति श्री विश्वसार तंत्रे दुर्गाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र समाप्त।।
--------------
विमर्श:

प्रश्न - क्या किसी को बिना छुए किसी की ' आत्मा/रूह' को भी तोड़ा, जर्जर, घायल किया जा सकता है?

हाँ, किसी को छुए बिना भी उसका मनोबल तोड़ा जा सकता है। आत्मा तो अजर, अमर और परमात्मा का अंश है। उसे तलवार काट नहीं सकती, पानी भिगा नहीं सकता, आग जल नहीं सकती तो उसे तोड़ा भी नहीं जा सकता।
***
विमर्श :
ब्रह्मोस मिसाइल प्रक्षेपण गलती या ???
***
९ मार्च २०२२ को भारत की एक परीक्षण ब्रह्मोस मिसाइल (वारहेड के बिना) पाकिस्तान में १२४ कि.मी. अंदर मियां चन्नू में भारत की ब्रह्मोस मिसाइल गिरी। मिसाइल से पाकिस्तान में कोई जान माल का नुकसान नहीं हुआ।
-भारत की संसद में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि यह गलती से चल गयी जिसकी जाँच (कोर्ट ऑफ इन्क्वॉयरी) करवाई जा रही है ।
- सूत्रों के अनुसार असल मुद्दा कुछ और है। भारत जाँचना चाहता था कि पाकिस्तान की वायु रक्षा प्रणाली (एयर डिफेंस सिस्टम) कितना सतर्क और सुरक्षित है? पाकिस्तान के पास चीन से खरीदी गई HQ9 वायु सुरक्षा प्रणाली है। चीन का दावा है कि यह दुनिया की श्रेष्ठ वायु सुरक्षा प्रणाली है । भारतीय ब्रह्मोस मिसाइल को खोज या रोक न पाने से पाकिस्तान और चीन की कलई खुल गयी है।
-चीन अपने कई मित्र देशों को HQ9 वायु सुरक्षा प्रणाली बेचना चाहता है। अब कोई भी समझदार देश चीन की यह वायु सुरक्षा प्रणाली खरीदना नहीं चाहेगा। भारत ने सिर्फ एक प्रहार से दुनिया को बता दिया है कि चीन की वायु सुरक्षा प्रणाली किसी काम की नहीं है।
- पाकिस्तान अपने रक्षा तंत्र और सेना की बहुत डींग मारता है। भारत ने ब्रह्मोस मिसाइल १२४ किलोमीटर अंदर तक मिसाइलदाग कर सिद्ध कर दिया कि पाकिस्तान के पास प्रभावी वायु सुरक्षा प्रणाली नहीं है। बांगला देश युद्ध, करगिल युद्ध, सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद भारत ने ब्रह्मोस के जरिए पाकिस्तान की सेना को फिर उसकी औकात बता दी है।
- इस कदम से चीन निर्मित वायु रक्षा प्रणाली की छवि ख़राब हुई है और उसके युद्धास्त्र उद्योग को भारी झटका लगा है। भारत की ब्रह्मोस मिसाइल की लक्ष्य भेदन क्षमता सामने आते ही, इसे खरीदने के लिए कई देश आगे आ रहे हैं। अब भारत के युद्धास्त्र उत्पादन उद्योग की उन्नति सुनिश्चित है।
-फिलीपींस, वियतमान, ताइवान आदि भारत से ब्रह्मोस मिसाइल खरीदना चाहते हैं। ये तीनों देश चीन के पड़ोसी हैं। भारत ब्रह्मोस के माध्यम से चीन के खिलाफ उसके पड़ोसियों को मजबूत कर चीन की घेराबंदी कर सकेगा।
***
वर्ण पिरामिड
*
री तू!
कल सी!
बीते पल सी।
मधुरिम यादें
सुधि कोमल सी।
साकी प्याला हाला
बिन मधुबाला मन की
गाती गीत मधुर कोयल सी।
रीत न कलकल करे हमेशा ही
तेरी यादों की कलसी, मानो तुलसी
२२.३.२०२०
***
विश्व कविता दिवस २२ मार्च पर
एक रचना
*
विश्व में कविता समाहित
या कविता में विश्व?
देखें कंकर में शंकर
या शंकर में प्रलयंकर
नाद ताल ध्वनि लय रस मिश्रित
शक्ति-भक्ति अभ्यंकर
अक्षर क्षर का गान करे जब
हँसें उषा सँग सविता
तभी जन्म ले कविता
शब्द अशब्द निशब्द हुए जब
अलंकार साकार हुए सब
बिंब प्रतीक मिथक मिल नर्तित
अर्चित चर्चित कविता हो तब
सत्-शिव का प्रतिमान रचे जब
मन मंदिर की सुषमा
शिव-सुंदर हो कविता
मन ही मन में मन की कहती
पीर मौन रह मन में तहती
नेह नर्मदा कलकल-कलरव
छप्-छपाक् लहरित हो बहती
गिरि-शिखरों से कूद-फलाँगे
उद्धारे जग-पतिता
युग वंदित हो कविता
***
कार्यशाला
बनाइए सेनेटाइजर:
सामग्री - १ लीटर स्प्रिट ( कीमत ११० रुपए)
२०० मि.ली. ग्लिसरीन (६० रुपए)
एक ढक्कन डिटोल का
पसंदीदा इत्र
विधि - पहले स्प्रिट व ग्लिसरीन को मिलाइये।
फिर डिटोल और इत्र मिला दीजिए।
मात्र २०० रुपए में १२०० मि.ली. सेनिटाइजर तैयार है।
बाजार में १०० मि.ली. सेनिटाइजर १५० रुपए में बिक रहा है।
आप फिटकरी से भी सेनेटाइजर बना सकते हैं।
१ लीटर पानी मे १०० ग्राम फिटकरी, 1 ढक्कन डिटोल, गाढ़ा करने के लिए ग्लिसरीन या एलोवरा मिलाकर सेनिटाइजर बना लें।
२१-३-२०२०
***
कविता दिवस
*
कविता कविता जप रहे,
नासमिटी है कौन?
पूछ रहीं श्रीमती जी,
हम भय से हैं मौन।
हम भय से हैं मौन,
न ताली आप बजाएँ।
दुर्गा काली हुई,
किस तरह जान बचाएँ।
हाथ जोड़, पड़ पैर,
मनाते खुश हो सविता।
लाख कहे सब मित्र,
ऩ लिखना हमको कविता।।
२२-३-२०१८
***
द्विपदियाँ
सुबह उषा का पीछा करता, फिर संध्या से आँख मिला
रजनी के आँचल में छिपता, सूरज किससे करें गिला?
*
कांत सफलता पाते तब ही, रहे कांति जब साथ सदा
मिले श्रेय जब भी जीवन में, कांता की जयकार लिखें
​​***
दोहा सलिला
*
उसको ही रस-निधि मिले, जो होता रस-लीन।
पान न रस का अन्य को, करने दे रस-हीन।।
*
सलिल साधना स्नेह की, सच्ची पूजा जान।
प्रति पल कर निष्काम तू, जीवन हो रस-खान।।
*
शब्द-शब्द अनुभूतियाँ, अक्षर-अक्षर भाव।
नाद, थाप, सुर, ताल से, मिटते सकल अभाव।।
*
रास न रस बिन हो सखे!, दरस-परस दे नित्य।
तरस रहा मन कर सरस, नीरस रुचे न सत्य।।
*
सावन-फागुन कह रहे, लड़े न मन का मीत।
गले मिले, रच कुछ नया, बढ़े जगत में प्रीत।।
*
सावन-फागुन कह रहे, लड़े न मन का मीत।
गले मिले, रच कुछ नया, बढ़े जगत में प्रीत।।
***
मुक्तक
'दिग्गी राजा' भटक रहा है, 'योगी' को सिंहासन अर्पण
बैठ न गद्दी बिठलाता है, 'शाह' निराला करे समर्पण
आ 'अखिलेश' बधाई दें, हँस कौतुक से देखा 'नरेंद्र' ने
साइकिल-पंजा-हाथी का मिल जनगण ने कर डाला तर्पण
***
कुंडलिया
कुंडल पहना कान में, कुंडलिनी ने आज
कान न देती, कान पर कुण्डलिनी लट साज
कुण्डलिनी लट साज, राज करती कुंडल पर
मौन कमंडल बैठ, भेजता हाथी को घर
पंजा-साइकिल सर धुनते, गिरते जा दलदल
खिला कमल हँस पड़ा, फन लो तीनों कुंडल
***
कर्फ्यू वंदना
(रैप सौंग)
*
घर में घर कर
बाहर मत जा
बीबी जो दे
खुश होकर खा
ठेला-नुक्कड़
बिसरा भुख्खड़
बेमतलब की
बोल न बातें
हाँ में हाँ कर
पा सौगातें
ताँक-झाँक तज
भुला पड़ोसन
बीबी के संग
कर योगासन
चौबिस घंटे
तुझ पर भारी
काम न आए
प्यारे यारी
बन जा पप्पू
आग्याकारी
तभी बेअसर
हो बीमारी
बिसरा झप्पी
माँग न पप्पी
चूड़ी कंगन
करें न खनखन
कहे लिपिस्टिक
माँजो बर्तन
झाड़ू मारो
जरा ठीक से
पौंछा करना
बिना पीक के
कपड़े धोना
पर मत रोना
बाई न आई
तुम हो भाई
तुरुप के इक्के
बनकर छक्के
फल चाहे बिन
करो काम गिन
बीबी चालीसा
हँस पढ़ना
अपनी किस्मत
खुद ही गढ़ना
जब तक कहें न
किस मत करना
मिस को मिस कर
मन मत मरना
जान बचाना
जान बुलाना
मिल लड़ जाएँ
नैन झुकाना
कर फ्यू लेकिन
कई वार हैं
कर्फ्यू में
झुक रहो, सार है
बीबी बाबा बेबी की जय
बोल रहो घुस घर में निर्भय।।
***
हाइकु गीत
*
लोकतंत्र में
मनमानी की छूट
सभी ने पाई।
*
सबको प्यारा
अपना दल-दल
कहते न्यारा।
बुरा शेष का
तुरत ख़तम हो
फिर पौबारा।
लाज लूटते
मिल जनगण की
कह भौजाई।
*
जिसने लूटा
वह कहता: 'तुम
सबने लूटा।
अवसर पा
लूटता देश, हर
नेता झूठा।
वादा करते
जुमला कहकर
जीभ चिढ़ाई।
*
खुद अपनी
मूरत बनवाते
शर्म बेच दी।
संसद ठप
भत्ते लें, लाज न
शेष है रही।
कर बढ़वा
मँहगाई सबने
खूब बढ़ाई।
***
दोहा पंचक
*
उसको ही रस-निधि मिले, जो होता रस-लीन।
पान न रस का अन्य को, करने दे रस-हीन।।
*
सलिल साधना स्नेह की, सच्ची पूजा जान।
प्रति पल कर निष्काम तू, जीवन हो रस-खान।।
*
शब्द-शब्द अनुभूतियाँ, अक्षर-अक्षर भाव।
नाद, थाप, सुर, ताल से, मिटते सकल अभाव।।
*
रास न रस बिन हो सखे!, दरस-परस दे नित्य।
तरस रहा मन कर सरस, नीरस रुचे न सत्य।।
*
सावन-फागुन कह रहे, लड़े न मन का मीत।
गले मिले, रच कुछ नया, बढ़े जगत में प्रीत।।
*
लघुकथा
समझदार
*
नगर में कोरोना पोसिटिव केस... खबर सुनते ही जिज्ञासा, चिंता और कौतूहल होना स्वाभाविक है। कुछ देर बाद समाचार मिला रोगी बेटा और उससे संक्रमित माँ चिकित्सकों से विवाद कर रहे हैं। फिर खबर आई की दोनों चिकित्सालय की व्यवस्थाओं से अंतुष्ट हैं। शुभचिंतकों ने सरकारी व्यवस्थाओं को कोसने में पल भर देर न की। माँ-बेटे अपने शिक्षित होने और उच्च संपर्कों की धौंस दिखाकर अस्पताल से निकल कई लोगों से मिले और अपनी शेखी बघारते रहे।
इस बीच किसी ने चुपचाप बनाया हुई वीडियो पोस्ट कर दिया। हैरत कि अस्पताल पूरी तरह साफ़ था, पंखे-ट्यूबलाइट, पलंग, चादर, तकिये नर्स, डॉक्टर आदि सब एकदम दुरुस्त, दुर्व्यवहार करते माँ-बेटे को विनम्रता से समझाने के बाद अन्य मरीज को देखने में व्यस्त डॉक्टर की अनुपस्थिति का लाभ उठाकर निकलते माँ-बेटे।
अस्पताल प्रशासन ने पुलिस और कलेक्टर को सूचित किया। तुरंत गाड़ियां दौड़ीं, दोनों को पकड़ा गया और सख्त हिदायत देकर अस्पताल में भर्ती किया गया। तब भी दोनों सरकार को कोसते रहे किन्तु इस मध्य संक्रमित हो गए थे संपर्क में आये सैंकड़ों निर्दोष नागरिक जिन्हें खोजकर उनकी जाँच करना भूसे के ढेर में सुई खोजने की तरह है। पता चला माँ कॉलेज में प्रोफेसर और बेटा विदेश में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। दोनों बार-बार दुहाई दे रहे हैं कि कि वे समझदार हैं, उन्हें छोड़ दिया जाए पर उनकी नासमझी देखकर प्रश्न उठता है की उन्हें कैसे कहाजाए समझदार?
***
चित्र अलंकार : पिरामिड
वर्ण पिरामिड
*
री तू!
कल सी!
बीते पल सी।
मधुरिम यादें
सुधि कोमल सी।
साकी प्याला हाला
बिन मधुबाला मन की
गाती गीत मधुर कोयल सी।
रीत न कलकल करे हमेशा ही
तेरी यादों की कलसी, मानो तुलसी
***
*
है
खरा
सलिल
नहीं खोटा
इसके बिना
बेमानी है लोटा
मिटाता है पिपासा
करे सृष्टि को संप्राण
अकाल से दिलाता त्राण
हाथों को मलता पछताता
अहसान फरामोश कृतघ्न
आदमी में नहीं है समझदारी
खोदता रहा है खुद ही निज कब्र
क्यों और कब तक करे प्रकृति सब्र
कहते हैं ''विनाश काले विपरीत बुद्धि''
*
२२.३.२०२०
९४२५१८३२४४
😆
आज विशेष सावधानी बरतें
२४ घंटे घर में रहना है
'बीबी से सावधान'
मास्क नहीं हैलमेट धारण करें
बेलन, चिमटा, झाड़ू जैसे घातक अण्वास्त्रों को छिपा दें।
"बीबी कहे सो सत्य" के सनातन सिद्धांत का पालन करें।
चुपचाप सुनने और कुछ न कहने से कोरोना भी आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
इस महामंत्र का चार बार पाठ कर गृहणी को प्रणाम कर सुरक्षित रहें।
जान है तो जहान है।
२४ घंटे बाद फिर अपना आसमान है, फिर भरना उड़ान है।
😆😆😆
***
कोरोना वायरस काफी बड़े साइज का है इसके कारण वह किसी भी तरीके के मास्क से रोका जा सकता है।
बड़ा साइज होने के कारण यह हवा में ज्यादा देर नहीं रहता है और आसपास की धरती पर सामान पर बैठ जाता है यह हवा में 1 घंटे से भी कम रह पाता है तांबे की बर्तन पर 4 घंटे,
कागज या गत्तों पर 24 घंटे,
कांच और प्लास्टिक के सामान पर करीब करीब 72 घंटे,
तक जीवित रहता है।
इसलिए किसी भी साधारण साबुन पानी से हाथ धोने पर इससे बचाव संभव है।
अपनी कपड़ों को साबुन पानी से धोने के बाद अगर 2 घंटे धूप में सुखा दिया जाए तो इस वायरस से मुक्ति मिल जाती है।
साबुन पानी की व्यवस्था ना होने पर अल्कोहल वाले सैनिटाइजर का भी उपयोग किया जा सकता है।
गुनगुने पानी से नमक डालकर गरारे करने पर गले के अंदर पहुंचे रोगाणुओं को फेफड़ों में जाने से हम रोक सकते हैं।
अगर हम यह तीन चार बातें मान ले तो अपने घर के अंदर कोरोना वायरस का आना और हमें इस बीमारी से बचाना दोनों बहुत आसानी से संभव है।
कृपया कर इतनी सावधानी जरूर बरतें।
जय हिंद जय भारत जय श्री राम
इस संदेश को अपने घर वालों के साथ बैठकर समझे और कार्यपालन में लाएं इसके बाद इसे अपने अन्य ग्रुप में साझा करें धन्यवाद
- डॉ. सचिन कुचया
***

मंगलवार, 21 मार्च 2023

सॉनेट,अँजुरी,दुर्गा, लोकगीत,शारदा,इब्नबतूता,नवगीत,कुण्डलिया,हाइकूगीत,मुक्तिका,

सॉनेट 
अँजुरी 
हरि मैं हारा, अँजुरी खाली।
नीर लिया अभिषेक करूँगा।
बूँद बूँद बह गया मुरारी।।
नत शिर, पीछे पग न धरूँगा।।

पवन न अँजुरी में टिक पाया।
गगर विशाल न मैं पाया गह।
पावक दायक दारुण पाया।।
भू का भार नहीं पाया सह।।

पंच तत्व से परे मिले क्या?
भक्ति भाव आता नहीं मन में।
काम क्रोध मद लोभ न छोड़ें।।
भरे लबालब नाहक तन में।।

देह अंजुरी में विकार सब
लाया हरि हर लो,मैं हारा।।
२१-३-२०२३
एक लोकरंगी गीत-
देवी को अर्पण.
*
मैया पधारी दुआरे
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
घर-घर बिराजी मतारी हैं मैंया!
माँ, भू, गौ, भाषा प्यारी हैं मैया!
अब लौं न पैयाँ पखारे रे हमने
काहे रहा मन भुलावा
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
आसा है, श्वासा भतारी है मैया!
अँगना-रसोई, किवारी है मैया!
बिरथा पड़ोसन खों ताकत रहत ते,
भटका हुआ लौट आवा
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
राखी है, बहिना दुलारी रे मैया!
ममता बिखरे गुहारी रे भैया!
कूटे ला-ला भटकटाई -
सवनवा बहुतै सुहावा
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
बहुतै लड़ैती पिआरी रे मैया!
बिटिया हो दुनिया उजारी रे मैया!
'बज्जी चलो' बैठ काँधे कहत रे!
चिज्जी ले ठेंगा दिखावा
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
तोहरे लिए भए भिखारी रे मैया!
सूनी थी बखरी, उजारी रे मैया!
तार दये दो-दो कुल तैंने
घर भर खों सुरग बनावा
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
पत्रिका विमर्श २०२३ / १
सरस्वती सुमन दोहा विशेषांक, मार्च २०२३, प्रधान संपादक श्री (डॉ.) आनंद कुमार सिंह देहरादून, विशेषांक संपादक श्री अशोक अंजुम अलीगढ़।
हिंदी की शुद्ध साहित्यिक अव्यावसायिक पत्रिकाओं में अग्रणी पत्रिका 'सरस्वती सुमन'का २१ वें वर्ष में प्रकाशित यह अंक, ९९ वाँ अंक है। प्रसिद्ध दोहाकार-संपादक-समीक्षक अशोक अंजुम जी ने हेतु सामग्री संकलन और संपादन में जिस निपुणता का परिचय दिया है, वह असाधारण और प्रशंसनीय है।

इस दोहा विशेषांक का श्रीगणेश 'वेदवाणी' के अन्तर्गत ऋग्वेद इस एक ऋचा ( शब्दार्थ-भावार्थ सहित) तथा संपादकीय से डॉ. आनंद सुमन द्वारा किया गया है। अतिथि संपादकीय में अशोक अंजुम ने दोहे के गतागत के मध्य वैचारिक सृजन सेतु दोहे बनाया है। पद्मभूषण नीरज जी के साथ अंजुम का साक्षात्कार दोहा के सृजन, भविष्य आदि प्रश्नों का सटीक संतोषजनक समाधान सुझा सका है।

'विवेचन खंड' में डॉ. शिव ॐ अंबर, फर्रुखाबाद, डॉ. रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर' फ़िरोज़ाबाद, राजेंद्र वर्मा लखनऊ तथा डॉ. ब्रह्मजीत गौतम गाज़ियाबाद, डॉ. कल्पना शर्मा, दीपक गोस्वामी चिराग तथा अशोक अंजुम ने ने दोहा छंद के रचना पक्ष, शिल्प, त्रुटि संकेतन, त्रुटि सुधार, आधुनिकता बोध आदि बिंदुओं पर सटीक जानकारी देकर नव दोहाकारों का पथ प्रदर्शन किया है। इन लेखों ने इस विशेषांक को समृद्ध किया है।

'धरोहर' खंड में कबीर, जायसी, तुलसी, ददौ, रहीम, मलूकदास. बिहारी, रसलीन, वृन्द, भारतेन्दु, काका हाथरसी, नागार्जुन, पद्मश्री चिरंजीत, पद्मभूषण नीरज, उदयभानु 'हंस, पद्मश्री बेकल उत्साही, हरिकृष्ण शर्मा, डॉ. किशोर काबरा, इंजी. चंद्र सेन विराट, निदा फ़ाज़ली, पदम् श्री माणिक वर्मा, कुमार रवींद्र, हुल्लड़, डॉ. कुँअर बेचैन, कैलाश गौतम, ज़ाहिर कुरैशी, डॉ. उर्मिलेश, इब्राहीम 'अश्क', डॉ, वर्षा सिंह, कमलेश द्विवेदी, योगेंद्र मौदगिल तथा मन चाँदपुरी के दोहे श्रद्धांजलि स्वरूप देना एक स्वास्थ्य परंपरा को पुष्ट करना है।

'वर्तमान' खंड में २३ महिला दिहकारों तथा ११ पुरुष दोहाकारों को सम्मिलित कर अंजुम जी ने गागर में सागर की उक्ति को चरितार्थ किया है। इस अंक का वैशिष्ट्य १०५ दोहा कृतियों के आवरण चित्र तथा उन पर सूक्ष्म समीक्षा का समावेशन है। सारत: यह अंक हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता के इतिहास में मील के पत्थर की तरह है। इस अंक के संयोजक, संपादक, प्रकाशक तथा सभी रचनाकार इस सारस्वत अनुष्ठान के लिए साधुवाद के पात्र हैं।
*

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
संयोजक विश्ववाणी हिंदी संस्थान, संपादक कृष्ण प्रज्ञा
४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१
चलभाष ९४२५१८३२४४, ईमेल salil.sanjiv@gmail.com
***
सॉनेट
रंग
रंगरहित बेरंग न कोई।
श्याम जन्मता सदा श्वेत को।
प्रगटाए पाषाण रेत को।।
रंगों ने नव आशा बोई।।
रंगोत्सव सब झूम मनाते।
रंग लगाना बस अपनों को।
छोड़ न देते क्यों नपनों को?
राग-रागिनी, गीत गुँजाते।।
रंग बिखेरें सूरज-चंदा।
नहीं बटोरें घर-घर चंदा।
यश न कभी भी होता मंदा।।
रंगों को बदरंग मत करो।
श्वेत-श्याम को संग नित वरो।
नवरंगों को हृदय में धरो।।
२१-३-२०२२
•••
दोहा
हिंदू मरते हों मरें, नहीं कहीं भी जिक्र।
काँटा चुभे न अन्य को, नेताजी को फ़िक्र।।
***
***
मुक्तक कविता दिवस पर
कवि जी! मत बोलिये 'कविता से प्यार है'
भूले से मत कहें 'इस पे जां निसार है'
जिद्द अब न कीजिए मुश्किल आ जाएगी
कविता का बाप बहुत सख्त थानेदार है
*
***
शारद विनय
*
सरसुति सुरसति सब सुख दैनी,
हंस चढ़त लटकावति बैनी।
बीना थामे सुर गुंजाँय-
कर किरपा कुछ मातु सुनैनी।।
*
सरन तुमाई आय हम, ठुकराओ न मैया!
सिर पै कर धर आसिस, बरसाओ न मैया!
हैं संतान तिहारी सच बिसर गओ जब
भव बाधा ने घेरो सुख बिखर गओ सब
दर पर आ टेर लगाई, अपनाओ न मैया!
सरन तुमाई आय हम, ठुकराओ न मैया!
*
अपढ़-अनाड़ी ठैरे, आ दरसन देओ
इत-उत भटके, ईसें सेवा में लेओ
उबर सके संकट सें ऊ जिसे उबारो
एक आसरो तुमरो, ऐ माँ न बिसारो
ओ माँ! औसर देओ, अंबे अ: मैया!
सरन तुमाई आय हम, ठुकराओ न मैया!
*
आखर सबद न सरगम, जाने सिखला दो
नाद अनाहद तन्नक मैया! सुनवा दो
कलकल-कलरव ब्यापी माँ बीनापानी
भवसागर सें तारो हमखों कल्यानी
चरन सरन स्वीकारो ठुकराओ न दैया!
सरन तुमाई आय हम, ठुकराओ न मैया!
***
एक रचना
*
विश्व में कविता समाहित
या कविता में विश्व?
देखें कंकर में शंकर
या शंकर में प्रलयंकर
नाद ताल ध्वनि लय रस मिश्रित
शक्ति-भक्ति अभ्यंकर
अक्षर क्षर का गान करे जब
हँसें उषा सँग सविता
तभी जन्म ले कविता
शब्द अशब्द निशब्द हुए जब
अलंकार साकार हुए सब
बिंब प्रतीक मिथक मिल नर्तित
अर्चित चर्चित कविता हो तब
सत्-शिव का प्रतिमान रचे जब
मन मंदिर की सुषमा
शिव-सुंदर हो कविता
मन ही मन में मन की कहती
पीर मौन रह मन में तहती
नेह नर्मदा कलकल-कलरव
छप्-छपाक् लहरित हो बहती
गिरि-शिखरों से कूद-फलाँगे
उद्धारे जग-पतिता
युग वंदित हो कविता
***
इब्नबतूता
*
इब्नबतूता भूल के जूता
कोरोना से डर भागा
नहीं किसी को शकल दिखाता
घर के अंदर बंद हुआ है
राम राम करता दूरी से
ज्यों पिंजरे में कोई सुआ है
गले मत मिला, हाथ मत मिलो
कुरता सिलता बिन धागा
इब्नबतूता भूल के जूता
कोरोना से डर भागा
सगा न कोई रहा किसी का
हाय न कोई गैर है
सबको पड़े जान के लाले
नहीं किसी की खैर है
सोना चाहे; नींद न आए
आँख न खुलती पर जागा
इब्नबतूता भूल के जूता
कोरोना से डर भागा
***
नवगीत
क्या होएगा?
*
इब्नबतूता
पूछे: 'कूता?
क्या होएगा?'
.
काय को रोना?
मूँ ढँक सोना
खुली आँख भी
सपने बोना
आयसोलेशन
परखे पैशन
दुनिया कमरे का है कोना
येन-केन जो
जोड़ धरा है
सब खोएगा
.
मेहनतकश जो
तन के पक्के
रहे इरादे
जिनके सच्चे
व्यर्थ न भटकें
घर के बाहर
जिनके मन निर्मल
ज्यों बच्चे
बाल नहीं
बाँका होएगा
.
भगता क्योंहै?
डरता क्यों है?
बिन मारे ही
मरता क्यों है?
पैनिक मत कर
हाथ साफ रख
हाथ साफ कर अब मत प्यारे!
वह पाएगा
जो बोएगा
२१-३-२०२०
***
हाइकु गीत
*
आया वसंत
इन्द्रधनुषी हुए
दिशा-दिगंत..
शोभा अनंत
हुए मोहित,
सुर-मानव संत..
*
प्रीत के गीत
गुनगुनाती धूप
बनालो मीत.
जलाते दिए
एक-दूजे के लिए
कामिनी-कंत..
*
पीताभी पर्ण
संभावित जननी
जैसे विवर्ण..
हो हरियाली
मिलेगी खुशहाली
होगे श्रीमंत..
*
चूमता कली
मधुकर गुंजार
लजाती लली..
सूरज हुआ
उषा पर निसार
लाली अनंत..
*
प्रीत की रीत
जानकर न जाने
नीत-अनीत.
क्यों कन्यादान?
'सलिल' वरदान
दें एकदंत..
***
कुण्डलिया
*
रूठी राधा से कहें, इठलाकर घनश्याम
मैंने अपना दिल किया, गोपी तेरे नाम
गोपी तेरे नाम, राधिका बोली जा-जा
काला दिल ले श्याम, निकट मेरे मत आ, जा
झूठा है तू ग्वाल, प्रीत भी तेरी झूठी
ठेंगा दिखा न भाग, खिजाती राधा रूठी
*
कुंडल पहना कान में, कुंडलिया ने आज
कान न देती, कान पर कुण्डलिनी लट साज
कुण्डलिनी लट साज, राज करती कुंडल पर
मौन कमंडल बैठ, भेजता हाथी को घर
पंजा-साइकिल सर धुनते, गिरते जा दलदल
खिला कमल हँस पड़ा, फन लो तीनों कुंडल
२१-३-२०१७
***
मुक्तिका
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आया वसंत, / इन्द्रधनुषी हुए / दिशा-दिगंत..
शोभा अनंत / हुए मोहित, सुर / मानव संत..
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प्रीत के गीत / गुनगुनाती धूप / बनालो मीत.
जलाते दिए / एक-दूजे के लिए / कामिनी-कंत..
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पीताभी पर्ण / संभावित जननी / जैसे विवर्ण..
हो हरियाली / मिलेगी खुशहाली / होगे श्रीमंत..
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चूमता कली / मधुकर गुंजार / लजाती लली..
सूरज हुआ / उषा पर निसार / लाली अनंत..
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प्रीत की रीत / जानकार न जाने / नीत-अनीत.
क्यों कन्यादान? / 'सलिल' वरदान / दें एकदंत..
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मुक्तिका
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खर्चे अधिक आय है कम.
दिल रोता आँखें हैं नम..
पाला शौक तमाखू का.
बना मौत का फंदा यम्..
जो करता जग उजियारा
उस दीपक के नीचे तम..
सीमाओं की फ़िक्र नहीं.
ठोंक रहे संसद में ख़म..
जब पाया तो खुश न हुए.
खोया तो करते क्यों गम?
टन-टन रुचे न मन्दिर की.
रुचती कोठे की छम-छम..
वीर भोग्या वसुंधरा
'सलिल' रखो हाथों में दम..
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मुक्तक
मौन वह कहता जिसे आवाज कह पाती नहीं.
क्या क्षितिज से उषा-संध्या मौन हो गाती नहीं.
शोरगुल से शीघ्र ही मन ऊब जाता है 'सलिल'-
निशा जो स्तब्ध हो तो क्या तुम्हें भाती नहीं?
२१-३-२०१०

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