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रविवार, 8 मार्च 2020

बहुमुखी प्रतिभा की धनी विधि पंडिता सुधारानी श्रीवास्तव

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आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
                      श्रीमती सुधारानी श्रीवास्तव का महाप्रस्थान रंग पर्व के रंगों की चमक कम कर गया है। इल बहुमुखी बहुआयामी प्रतिभा का सम्यक् मूल्यांकन समय और समाज नहीं कर सका। वे बुंदेली और भारतीय पारंपरिक परंपराओं की जानकार, पाककला में निष्णात, प्रबंधन कला में पटु, वाग्वैदग्धय की धनी, शिष्ट हास-परिहासपूर्ण व्यक्तित्व की धनी, प्रखर व्यंग्यकार, प्रकांड विधिवेत्ता, कुशल कवयित्री, संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू साहित्य की गंभीर अध्येता, संगीत की बारीकियों को समझनेवाली सुरुचिपूर्ण गरिमामयी नारी हैं। अनेकरूपा सुधा दीदी संबंधों को जीने में विश्वास करती रहीं। उन जैसे व्यक्तित्व काल कवलित नहीं होते, कालातीत होकर अगणित मनों में बस जाते हैं।

                      सुधा दीदी १९ जनवरी १९३२ को मैहर राज्य के दीवान बहादुर रामचंद्र सहाय व कुंतीदेवी की आत्मजा होकर जन्मीं। माँ शारदा की कृपा उन पर हमेशा रही। संस्कृत में विशारद, हिंदी में साहित्य रत्न, अंग्रेजी में एम.ए.तथा विधि स्नातक सुधा जी मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में अधिवक्ता रहीं। विधि साक्षरता के प्रति सजग-समर्पित सुधा जी १९९५ से लगातार दो दशकों तक मन-प्राण से समर्पित रहीं। सारल्य, सौजन्य, ममत्व और जनहित को जीवन का ध्येय मानकर सुधा जी ने शिक्षा, साहित्य और संगीत की त्रिवेणी को बुंदेली जीवनशैली की नर्मदा में मिलाकर जीवनानंद पाया-बाँटा।                                              वे नारी के अधिकारों तथा कर्तव्यों को एक दूसरे का पूरक मानती रहीं। तथाकथित स्त्रीविमर्शवादियों की उन्मुक्तता को उच्छृंखलता को नापसंद करती सुधा जी, भारतीय नारी की गरिमा की जीवंत प्रतीक रहीं। सुधा दीदी और उन्हें भौजी माननेवाले विद्वान अधिवक्ता राजेंद्र तिवारी की सरस नोंक-झोंक जिन्होंने सुनी है, वे आजीवन भूल नहीं सकते। गंभीरता, विद्वता, स्नेह, सम्मान और हास्य-व्यंग्य की ऐसी सरस वार्ता अब दुर्लभ है।  कैशोर्य में संस्कारधानी के दो मूर्धन्य गाँधीवादी हिंदी प्रेमी व्यक्तित्वों ब्यौहार राजेंद्र सिंह व सेठ गोविंददास द्वारा संविधान में हिंदी को स्थान दिलाने के लिए किए गए प्रयासों में सुधा जी ने निरंतर अधिकाधिक सहयोग देकर उनका स्नेहाशीष पाया।
अधिवक्ता और विधिवेत्ता -
                      १३ अप्रैल १९७५ को महान हिंदी साहित्यकार, स्त्री अधिकारों की पहरुआ,महीयसी महादेवी जी लोकमाता महारानी दुर्गावती की संगमर्मरी प्रतिमा का अनावरण करने पधारीं। तब किसी मुस्लिम महिला पर अत्याचार का समाचार सामने आया था। महादेवी जी ने मिलने पहुँची सुधा जी से पूछा- "सुधा! वकील होकर तू महिलाओं के लिए क्या कर रही है?" महीयसी की बात मन में चुभ गयी। सुधा दीदी ने इलाहाबाद जाकर सर्वाधिक लोकप्रिय पत्रिका मनोरमा के संपादक को प्रेरित कर महिला अधिकार स्तंभ आरंभ किया। शुरू में ४ अंकों में पत्र और उत्तर दोनों वे खुद ही लिखती रहीं। बाद में यह स्तंभ इतना अधिक लोकप्रिय हुआ कि रोज ही पत्रों का अंबार लगने लगा। यह स्तंभ १९८१ तक चला। विधिक प्रकरणों, पुस्तक लेखन तथा अन्य व्यस्तताओं के कारण इसे बंद किया गया। १९८६ से १९८८ तक दैनिक नवीन दुनिया के साप्ताहिक परिशिष्ट नारी निकुंज में "समाधान" शीर्षक से सुधा जी ने विधिक परामर्श दिया।
स्त्री अधिकार संरक्षक -
                      सामान्य महिलाओं को विधिक प्रावधानों के प्रति सजग करने के लिए सुधा जी ने मनोरमा, धर्मयुग, नूतन कहानियाँ, वामा, अवकाश, विधि साहित्य समाचार, दैनिक भास्कर आदि में बाल अपराध, किशोर न्यायालय, विवाह विच्छेद, स्त्री पुरुष संबंध, न्याय व्यवस्था, वैवाहिक विवाद, महिला भरण-पोषण अधिकार, धर्म परिवर्तन, नागरिक अधिरार और कर्तव्य, तलाक, मुस्लिम महिला अधिकार, समानता, भरण-पोषण अधिकार, पैतृक संपत्ति अधिकार, स्वार्जित संपत्ति अधिकार, विधिक सहायता, जीवनाधिकार, जनहित विवाद, न्याय प्रक्रिया, नागरिक अधिकार, मताधिकार, दुहरी अस्वीकृति, सहकारिता, महिला उत्पीड़न, मानवाधिकार, महिलाओं की वैधानिक स्थिति, उपभोक्ता संरक्षण, उपभोक्ता अधिकार आदि ज्वलंत विषयों पर शताधिक लेख लिखे। कई विषयों पर उन्होंने सबसे पहले लिखा।
विधिक लघुकथा लेखन-
                      १९८७ में सुधा जी ने म.प्र.राज्य संसाधन केंद्र (प्रौढ़ शिक्षा) इंदौर के लिए कार्यशालाओं का आयोजन कर नव साक्षर प्रौढ़ों के लिए न्याय का घर, भरण-पोषण कानून, अमन की राह पर, वैवाहिक सुखों के अधिकार, सौ हाथ सुहानी बात, माँ मरियम ने राह सुझाई, भूमि के अधिकार आदि पुस्तकों में विधिक लघुकथाओं के माध्यम से हिंदू, मुस्लिम, ईसाई कानूनों का प्राथमिक ग्यान दिया।
उपभोक्ता हित संरक्षण
                      १९८६ में उपभोक्ता हित संरक्षण कानून बनते ही सुधा जी ने इसका झंडा थाम लिया और १९९२ में "उपभोक्ता संरक्षण : एक अध्ययन" पुस्तक लिखी। भारत सरकार के नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने इसे पुरस्कृत किया।
मानवाधिकार संरक्षण
                      वर्ष १९९३ में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम बना। सुधा जी इसके अध्ययन में जुट गईं। भारतीय सामाजिक अनुसंधान परिषद दिल्ली के सहयोग से शोध परियोजना "मानवाधिकार और महिला उत्पीड़न" पर कार्य कर २००१ में पुस्तकाकार में प्रकाशित कराया। इसके पूर्व म.प्र.हिंदी ग्रंथ अकादमी ने सुधा जी लिखित "मानवाधिकार'' ग्रंथ प्रकाशित किया।
विधिक लेखन
                      सुधा दीदी ने अपने जीवन का बहुमूल्य समय विधिक लेखन को देकर ११ पुस्तकों (भारत में महिलाओं की वैधानिक स्थिति, सोशियो लीगल अास्पेक्ट ऑन कन्ज्यूमरिज्म, उपभोक्ता संरक्षण एक अध्ययन, महिलाओं के प्रति अपराध, वीमेन इन इंडिया, मीनवाधिकार, महिला उत्पीड़न और मानवाधिकार, उपभोक्ता संरक्षण, भारत में मानवाधिकार की अवधारणा, मानवाधिरार और महिला शोषण, ह्यूमैनिटी एंड ह्यूमन राइट्स) का प्रणयन किया।
सशक्त व्यंग्यकार -
                      सुधा दीदी रचित वकील का खोपड़ा, दिमाग के पाँव तथा दिमाग में बकरा युद्ध तीन व्यंग्य संग्रह तथा ग़ज़ल-ए-सुधा (दीवान) ने सहृदयों से प्रशंसा पाई। नर्मदा तट सनातन साधनास्थली है। सुधा दीदी ने आजीवन सृजन साधना कर हिंदी माँ के साहित्य कोष को समृद्ध किया है। दलीय राजनीति प्रधान व्यवस्था में उनके अवदान का सम्यक् मूल्यांकन नहीं हुआ। उन्होंने जो मापदंड स्थापित किए हैं, वे अपनी मिसाल आप हैं। सुधा जी जैसे व्यक्तित्व मरते नहीं, अमर हो जाते हैं। मेरा सौभाग्य है कि मुझे उनका स्नेहाशीष और सराहना निरंतर मिलती रही।
***

*ॐ*
 विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर 
४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१ 
ईमेल : salil.sanjiv@gmail.com, चलभाष : ९४२५१८३२४४ वाट्सएप, ७९९९५५९६१८ जिओ 
 सहभागिता आमंत्रण

विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर द्वारा शीघ्र ही राष्ट्रीय भावधारापरक गीति रचनाओं का काव्य संग्रह प्रसिद्ध साहित्यकार आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' के संपादन में सहभागिता के आधार पर प्रकाशित किया जाना है। 

इच्छुक रचनाकार स्वलिखित ४ पृष्ठीय मौलिक अथवा मनपसंद काव्य रचनाएँ (रचनाकार के नाम, चित्र, जन्मतिथि, पता, अनुमति तथा ११०० रु. सहभागिता निधि सहित) ३० अप्रैल २०२० तक कार्यालय में अथवा सहसंपादकों के माध्यम से प्रेषित करें।

सहसंपादक : सर्व श्री बसंत शर्मा, छाया सक्सेना, संतोष नेमा

संकलन का विमोचन अगस्त क्रांति दिवस (९ अगस्त २०२०) पर होना प्रस्तावित है।
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: विश्व वाणी हिंदी संस्थान जबलपुर : : समन्वय प्रकाशन अभियान जबलपुर :
- हिंदी के विकास हेतु समर्पित स्वैच्छिक, अव्यवसायिक, अशासकीय संस्था -
कार्यालय: समन्वयम, २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१
ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com, चलभाष: ९४२५१८३२४४
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सञ्चालन समिति: अध्यक्ष- आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जबलपुर,
वरिष्ठ उपाध्यक्ष: अभियंता अरुण अर्णव खरे भोपाल
उपाध्यक्ष: गोपाल बघेल कनाडा,
परामर्शदाता: आशा वर्मा, डॉ. आरती प्रसाद अल्बुकर्क, संजीव वर्मा रोचेस्टर, डॉ. राजीव वर्मा ओंटेरियो, अर्चना नोगरैया राज यू के.,
मुख्यालय प्रभारी: अभियंता विवेकरंजन 'विनम्र',
मुख्यालय सचिव : छाया सक्सेना
कार्यालय प्रभारी: बसंत शर्मा,
कार्यालय सचिव- मिथलेश बड़गैया,
वित्त सचिव- डॉ. साधना वर्मा,
संस्कृति सचिव- पं, कामता तिवारी, आशा रिछारिया, सह सचिव- दिनेश सोनी,
कार्यकारिणी सदस्य- निहारिका सरन कोलम्बस, पूजा अनिल स्वीडन, डॉ. प्रार्थना निगम उज्जैन, प्रो. किरण श्रीवास्तव रायपुर, जयप्रकाश श्रीवास्तव,
प्रकोष्ठ प्रभारी
उद्देश्य तथा गतिविधियाँ-
अ. हिंदी भाषा के व्याकरण, पिंगल, साहित्य, शोध आदि संबंधी मौलिक विचारों/योजनाओं को प्रोत्साहित/क्रियान्वित/प्रकाशित करना।
आ. सदस्य निर्धारित कार्यक्रमों का स्वयं के तथा जुटाए गए संसाधनों से क्रियान्वयन करेंगे।
इ. सदस्यता शुल्क संरक्षक ११,००० रु., आजीवन ६,००० रु., वार्षिक ११०० रु., विद्यार्थी स्वैच्छिक।
ई. सदस्य बहुमत से प्रतिवर्ष सञ्चालन समिति का चुनाव करेंगे।
उ. सदस्यता राशि बैंक में जमा कर उसके ब्याज से गतिविधियाँ संचालित की जायेंगी।
ऊ. प्रति वर्ष संस्था का आय-व्यय सदस्यों को सूचित किया जायेगा।
ए. सञ्चालन समिति सदस्यों से प्राप्त सुझावों के अनुसार ही गतिविधियाँ संचालित करेगी।
ऐ. वर्तमान में १. अंतरजाल पर हिंदी भाषा के व्याकरण व पिंगल के शिक्षण, २. नव छंदों पर शोध,३. सदस्यों की पुस्तक लेखन, संपादन, पाण्डुलिपि संशोधन, भूमिका/समीक्षा लेखन, ४. समन्वय प्रकाशन अभियान के माध्यम से मुद्रण- प्रकाशन, ५. शांति राज पुस्तकालय योजना के अंतर्गत विद्यालयों में पुस्तकालय स्थापना में सहायता, ६. विद्यार्थियों में सामाजिक चेतना, पर्यावरण बोध तथा राष्ट्रीयता भाव जागरण, ७. नवलेखन गोष्ठी में विधा विशेष के मानक/विधान सम्बन्धी मार्गदर्शन, ८. पुस्तक गोष्ठी में पुस्तक पर चर्चा, ९. शालाओं में पौधारोपण आदि योजनायें क्रियान्वित की जा रही हैं।
ओ. साहित्य सलिला, मुक्तिका/ग़ज़ल सलिला, लघुकथा सलिला, कुण्डलिनी सलिला, दोहा सलिला, पुस्तक सलिला, चौपाल चर्चा, पोएट्री सलिला, बाल साहित्य सलिला, हाइकू सलिला, छंद सलिला, कहावत/लोकोक्ति/मुहावरा सलिला आदि पृष्ठों के माध्यम से सदस्यों का मार्गदर्शन किया जाता है।

विश्व वाणी हिंदी संस्थान - शांति-राज पुस्तक संस्कृति अभियान
समन्वय प्रकाशन अभियान
समन्वय ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१
***
ll हिंदी आटा माढ़िए, उर्दू मोयन डाल l 'सलिल' संस्कृत सान दे, पूड़ी बने कमाल ll
ll जन्म ब्याह राखी तिलक, गृह प्रवेश त्यौहार l 'सलिल' बचा पौधे लगा, दें पुस्तक उपहार ll
***
शांतिराज पुस्तकालय योजना
उद्देश्य:
१. नयी पीढ़ी में हिंदी साहित्य पठन-पाठन को प्रोत्साहित करना।
२. हिंदी तथा अन्य भाषाओं के बीच रचना सेतु बनाना।
३. गद्य-पद्य की विविध विधाओं में रचनाकर्म हेतु मार्गदर्शन उपलब्ध करना।
४. सत्साहित्य प्रकाशन में सहायक होना।
५. पुस्तकालय योजना की ईकाईयों की गतिविधियों को दिशा देना।
गतिविधि:
१. नियमित पुस्तकालय संचालित कर रही चयनित संस्थाओं को लगभग १०,००० रुपये मूल्य की अथवा १०० पुस्तकें निशुल्क प्रदान करना।
२. संस्था द्वारा चाहे जाने पर की गतिविधियों के उन्नयन हेतु मार्गदर्शन प्रदान करना।
३. संस्था के सदस्यों की रचना-कर्म सम्बन्धी कठिनाइयों का निराकरण करना।
४. संस्था के सदस्यों को शोध, पुस्तक लेखन, भूमिका लेखन तथा प्रकाशन तथा समीक्षा लेखन में मदद करना।
५. संस्था के चाहे अनुसार उनके आयोजनों में सहभागी होना।
पात्रता:
इस योजना के अंतर्गत उन्हीं संस्थाओं की सहायता की जा सकेगी जो-
१. अपनी संस्था के गठन, उद्देश्य, गतिविधियों, पदाधिकारियों आदि की समुचित जानकारी देते हुए आवेदन करेंगी।
२. लिखित रूप से पुस्तकालय के नियमित सञ्चालन, पाठकों को पुस्तकें देने-लेने तथा सुरक्षित रखने का वचन देंगी।
३. हर तीन माह में पाठकों को दी गयी पुस्तकों तथा पाठकों की संख्या तथा अपनी अन्य गतिविधियाँ संस्थान को सूचित करेंगी। उनकी सक्रियता की नियमित जानकारी से दुबारा सहायता हेतु पात्रता प्रमाणित होगी।
४. 'विश्ववाणी हिंदी संस्थान-शान्ति-राज पुस्तक संस्कृति अभियान' से सम्बद्ध का बोर्ड या बैनर समुचित स्थान पर लगायेंगी।
५. पाठकों के चाहने पर लेखन संबंधी गोष्ठी, कार्यशाला, परिचर्चा आदि का आयोजन अपने संसाधनों तथा आवश्यकता अनुसार करेंगी।
६. पुस्तकें भेजने का डाक व्यय लगभग १०% पुस्तकें लेनेवाली संस्था को देना होगा।
आवेदन हेतु संपर्क सूत्र- आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', सभापति विश्ववाणी हिंदी संस्थान, २०४ विजय अपार्टमेंट नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१, चलभाष- ९४२५१ ८३२४४ / ७९९९५ ५९६१८।
*****

क्षणिका महिला

क्षणिका
महिला 
*
खुश हो तो
खुशी से दुनिया दे हिला
नाखुश हो तो
नाखुशी से लोहा दे पिघला
खुश है या नाखुश
विधाता को भी न पता चला
अनबूझ पहेली
अनन्य सखी-सहेली है महिला

८-३-२०२० 

मुक्तिका

मुक्तिका
*
भुज पाशों में कसता क्या है?
अंतर्मन में बसता क्या है?
*
जितना चाहा फेंक निकालूँ
उतना भीतर धँसता क्या है?
*
ऊपर से तो ठीक-ठाक है
भीतर-भीतर रिसता क्या है?
*
दिल ही दिल में रो लेता है.
फिर होठों से हँसता क्या है?
*
दाने हुए नसीब न जिनको
उनके घर में पिसता क्या है?
*
'सलिल' न पाई खलिश अगर तो
क्यों है मौन?, सिसकता क्या है?
८-३-२०१० 
*************************

मुक्तिका

मुक्तिका
*
झुका आँखें कहर ढाए
मिला नज़रें फतह पाए
चलाए तीर जब दिल पर
न कोई दिल ठहर पाए
गहन गंभीर सागर सी
पवन चंचल भी शर्माए
धरा सम धैर्य धारणकर
बदरियों सी बरस जाए
करे शुभ भगवती हो यह
अशुभ हो तो कहर ढाए
कभी अबला, कभी सबला
बला हर पल में हर गाए
न दोधारी, नहीं आरी
सुनारी सभी को भाए
***
संजीव
८-३-२०२०

शनिवार, 7 मार्च 2020

याद तुम्हारी

याद तुम्हारी
*
याद तुम्हारी नेह नर्मदा
आकर देती है प्रसन्नता
हर लेती है हर विपन्नता

याद तुम्हारी है अखण्डिता
सह न उपेक्षा हो प्रचंडिता
शुचिता है साकार वन्दिता

याद तुम्हारी आदि अमृता
युग युग पुजती हो समर्पिता
अभिनंदित हो आत्म अर्पिता
*
संजीव
७-३-२०२०

शुक्रवार, 6 मार्च 2020

षट्पदी

षट्पदी 
लाल लाल गाल पीला माथ ठोड़ी नीली है।
नायिका की नाक चना दाल की पकौड़ी है।
श्वेत केश श्याम हुए, छैला बदनाम हुए
साठवाली लग रही, ज्यों सोलह की छोरी है।
छेड़ रही सखी संग, नायक हुआ है तंग
दांव-पेंच दिखा, रिझा रही, बनी भोली है।

६-३-२०१८
😚😀😂😅😋

अहीर छंद

छंद सलिला:
अहीर छंद
संजीव
* लक्षण: जाति रौद्र, पद २, चरण ४, प्रति चरण मात्रा ११, चरणान्त लघु गुरु लघु (जगण)
लक्षण छंद:
चाहे रांझ अहीर, बाला पाये हीर
लघु गुरु लघु चरणांत, संग रहे हो शांत
पूजें ग्यारह रूद्र, कोशिश लँघे समुद्र
जल-थल-नभ में घूम, लक्ष्य सके पद चूम
उदाहरण:
१. सुर नर संत फ़क़ीर, कहें न कौन अहीर?
आत्म-ग्वाल तज धेनु, मन प्रयास हो वेणु
प्रकृति-पुरुष सम संग, रचे सृष्टि कर दंग
ग्यारह हों जब एक, मानो जगा विवेक
२. करो संग मिल काम, तब ही होगा नाम
भले विधाता वाम, रखना साहस थाम
सुबह दोपहर शाम, रचना छंद ललाम
कर्म करें निष्काम, सहज गहें परिणाम
३. पूजें ग्यारह रूद्र, मन में रखकर भक्ति
जनगण-शक्ति समुद्र, दे अनंत अनुरक्ति
लघु-गुरु-लघु रह शांत, रच दें छंद अहीर
रखता ऊंचा मअ खाली हाथ फ़क़ीर
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रदोष, प्रेमा, बाला, मधुभार, मनहरण घनाक्षरी, माया, माला, ऋद्धि, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)
-------------

मुक्तक

मुक्तक
संजीव
*
नया हो या पुराना कुछ सुहाना ढूँढता हूँ मैं
कहीं भी हो ख़ुशी का ही खज़ाना ढूँढता हूँ मैं
निगाहों को न भटकाओ कहा था शिष्य से गुरुने-
मिलाऊँ जिससे हँस नज़रें निशाना ढूँढता हूँ मैं
*
चुना जबसे गया मौके भुनाना सीखता हूँ मैं
देखकर आईना खुद पर हमेशा रीझता हूँ मैं
ये संसद है अखाडा चाहो तो मण्डी इसे मानो-
गले मिलता कभी मैं, कभी लड़ खम ठोंकता हूँ मैं
*
खड़ा मैदान में मारा शतक या शून्य पर आउट
पकड़ लूँ कठिन, छोड़ूँ सरल यारों कैच हो शाउट
तेजकर गेंद घपलों की, घोटालों की करी गुगली
ये नूरा कुश्ती है प्यारे न नोटों से नज़र फिसली

६.३.२०१४
*

दोहा सलिला

दोहा सलिला
*
खिली मंजरी देखकर, झूमा मस्त बसंत
फगुआ के रंग खिल गए, देख विमोहित संत
*
दोहा-पुष्पा सुरभि से, दोहा दुनिया मस्त
दोस्त न हो दोहा अगर, रहे हौसला पस्त
*
जब से ईर्ष्या बढ़ हुई, है आपस की जंग
तब से होली हो गयी, है सचमुच बदरंग
*
दोहे की महिमा बड़ी, जो पढ़ता हो लीन
सारी दुनिया सामने, उसके दिखती दीन
*
लता सुमन से भेंटकर, है संपन्न प्रसन्न
सुमन लता से मिल गले, देखे प्रभु आसन्न
*
भक्ति निरुपमा चाहती, अर्पित करना आत्म
कुछ न चाह, क्या दूँ इसे, सोच रहे परमात्म
*

५.३.१८ 
होली का हर रंग दे, खुशियाँ कीर्ति समृद्धि.
मनोकामना पूर्ण हों, सद्भावों की वृद्धि..
स्वजनों-परिजन को मिले, हम सब का शुभ-स्नेह.
ज्यों की त्यों चादर रखें, हम हो सकें विदेह..
प्रकृति का मिलकर करें, हम मानव श्रृंगार.
दस दिश नवल बहार हो, कहीं न हो अंगार..
स्नेह-सौख्य-सद्भाव के, खूब लगायें रंग.
'सलिल' नहीं नफरत करे, जीवन को बदरंग..
जला होलिका को करें, पूजें हम इस रात.
रंग-गुलाल से खेलते, खुश हो देख प्रभात..
भाषा बोलें स्नेह की, जोड़ें मन के तार.
यही विरासत सनातन, सबको बाटें प्यार..
शब्दों का क्या? भाव ही, होते 'सलिल' प्रधान.
जो होली पर प्यार दे, सचमुच बहुत महान..
५-३-२०१५

हिंदी ग़ज़ल

हिंदी ग़ज़ल इसने पढ़ी
फूहड़ हज़ल उसने गढ़ी
बेबात ही हर बात क्यों
सच बोल संसद में बढ़ी?
कुछ दूर तुम, कुछ दूर हम
यूँ बेल नफरत की चढ़ी
डालो पकौड़ी प्रेम की
स्वादिष्ट हो जीवन-कढ़ी
दे फतह ठाकुर श्वास को
हँस आस ठकुराइन गढ़ी
कोशिश मनाती जीत को
माने न जालिम नकचढ़ी
***
संजीव
९४२५१८३२४४

दोहा-दोहा अलंकार

दोहा-दोहा अलंकार
*
होली हो ली अब नहीं, होती वैसी मीत
जैसी होली प्रीत ने, खेली कर कर प्रीत
*
हुआ रंग में भंग जब, पड़ा भंग में रंग
होली की हड़बोंग है, हुरियारों के संग
*
आराधा चुप श्याम को, आ राधा कह श्याम
भोर विभोर हुए लिपट, राधा लाल ललाम
*
बजी बाँसुरी बेसुरी, कान्हा दौड़े खीझ
उठा अधर में; अधर पर, अधर धरे रस भीज
*
'दे वर' देवर से कहा, कहा 'बंधु मत माँग,
तू ही चलकर भरा ले, माँग पूर्ण हो माँग
*
'चल बे घर' बेघर कहे, 'घर सारा संसार'
बना स्वार्थ दे-ले 'सलिल', जो वह सच्चा प्यार
*
जितनी पायें; बाँटिए, खुशी आप को आप।
मिटा संतुलन अगर तो, होगा पश्चाताप।।
*
संजीव

गुरुवार, 5 मार्च 2020

सरस्वती वंदना

सरस्वती वंदना
*
हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अम्ब विमल मति दे.....
जग सिरमौर बनाएँ भारत.
सुख-सौभाग्य करे नित स्वागत.
आशिष अक्षय दे.....
साहस-शील हृदय में भर दे.
जीवन त्याग तपोमय करदे.
स्वाभिमान भर दे.....
लव-कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें हम.
मानवता का त्रास हरें हम.
स्वार्थ सकल तज दे.....
दुर्गा, सीता, गार्गी, राधा,
घर-घर हों काटें भव बाधा.
नवल सृष्टि रच दे....
सद्भावों की सुरसरि पावन.
स्वर्गोपम हो राष्ट्र सुहावन.
'सलिल'-अन्न भर दे...

गोपी छंद

छंद - " गोपी " ( सम मात्रिक )
शिल्प विधान: मात्रा भार - १५, आदि में त्रिकल अंत में गुरु/वाचिक अनिवार्य (अंत में २२ श्रेष्ठ)। आरम्भ में त्रिकल के बाद समकल, बीच में त्रिकल हो तो समकल बनाने के लिएएक और त्रिकल आवश्यक। यह श़ृंगार छंद की प्रजाति (उपजाति नहीं ) का है। आरम्भ और मध्य की लय मेल खाती है।
उदाहरण:
१. आरती कुन्ज बिहारी की।
कि गिरधर कृष्ण मुरारी की।।
२. नीर नैनन मा भरि लाए।
पवनसुत अबहूँ ना आए।।
३. हमें निज हिन्द देश प्यारा ।
सदा जीवन जिस पर वारा।।
सिखाती हल्दी की घाटी ।
राष्ट्र की पूजनीय माटी ।। -राकेश मिश्र
४. हमारी यदि कोई माने।
प्यार को ही ईश्वर जाने।
भले हो दुनियाँ की दलदल।
निकल जायेगा अनजाने।। -रामप्रकाश भारद्वाज
हिंदी आरती
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
भारती भाषा प्यारी की।
आरती हिन्दी न्यारी की।।
*
वर्ण हिंदी के अति सोहें,
शब्द मानव मन को मोहें।
काव्य रचना सुडौल सुन्दर
वाक्य लेते सबका मन हर।
छंद-सुमनों की क्यारी की
आरती हिंदी न्यारी की।।
*
रखे ग्यारह-तेरह दोहा,
सुमात्रा-लय ने मन मोहा।
न भूलें गति-यति बंधन को-
न छोड़ें मुक्तक लेखन को।
छंद संख्या अति भारी की
आरती हिन्दी न्यारी की।।
*
विश्व की भाषा है हिंदी,
हिंद की आशा है हिंदी।
करोड़ों जिव्हाओं-आसीन
न कोई सकता इसको छीन।
ब्रम्ह की, विष्णु-पुरारी की
आरती हिन्दी न्यारी की।।
*

दोहा सलिला

दोहा सलिला
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खिली मंजरी देखकर, झूमा मस्त बसंत
फगुआ के रंग खिल गए, देख विमोहित संत
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दोहा-पुष्पा सुरभि से, दोहा दुनिया मस्त
दोस्त न हो दोहा अगर, रहे हौसला पस्त
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जब से ईर्ष्या बढ़ हुई, है आपस की जंग
तब से होली हो गयी, है सचमुच बदरंग
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दोहे की महिमा बड़ी, जो पढ़ता हो लीन
सारी दुनिया सामने, उसके दिखती दीन
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लता सुमन से भेंटकर, है संपन्न प्रसन्न
सुमन लता से मिल गले, देखे प्रभु आसन्न
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भक्ति निरुपमा चाहती, अर्पित करना आत्म
कुछ न चाह, क्या दूँ इसे, सोच रहे परमात्म
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५-३-२०१८

दोहा सलिला होली

दोहा सलिला 
होली 
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होली का हर रंग दे, खुशियाँ कीर्ति समृद्धि.
मनोकामना पूर्ण हों, सद्भावों की वृद्धि..
स्वजनों-परिजन को मिले, हम सब का शुभ-स्नेह.
ज्यों की त्यों चादर रखें, हम हो सकें विदेह..
प्रकृति का मिलकर करें, हम मानव श्रृंगार.
दस दिश नवल बहार हो, कहीं न हो अंगार..
स्नेह-सौख्य-सद्भाव के, खूब लगायें रंग.
'सलिल' नहीं नफरत करे, जीवन को बदरंग..
जला होलिका को करें, पूजें हम इस रात.
रंग-गुलाल से खेलते, खुश हो देख प्रभात..
भाषा बोलें स्नेह की, जोड़ें मन के तार.
यही विरासत सनातन, सबको बाटें प्यार..
शब्दों का क्या? भाव ही, होते 'सलिल' प्रधान.
जो होली पर प्यार दे, सचमुच बहुत महान..
५.३.२०१५ 
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दोहा सलिला

अंगरेजी में खाँसते...
संजीव 'सलिल'
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अंगरेजी में खाँसते, समझें खुद को श्रेष्ठ.
हिंदी की अवहेलना, समझ न पायें नेष्ठ..
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टेबल याने सारणी, टेबल माने मेज.
बैड बुरा माने 'सलिल', या समझें हम सेज..
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जिलाधीश लगता कठिन, सरल कलेक्टर शब्द.
भारतीय अंग्रेज की, सोच करे बेशब्द..
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नोट लिखें या गिन रखें, कौन बताये मीत?
हिन्दी को मत भूलिए, गा अंगरेजी गीत..
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जीते जी माँ ममी हैं, और पिता हैं डैड.
जिस भाषा में श्रेष्ठ वह, कहना सचमुच सैड..
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चचा फूफा मौसिया, खो बैठे पहचान.
अंकल बनकर गैर हैं, गुमी स्नेह की खान..
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गुरु शिक्षक थे पूज्य पर, टीचर हैं लाचार.
शिष्य फटीचर कह रहे, कैसे हो उद्धार?.
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शिशु किशोर होते युवा, गति-मति कर संयुक्त.
किड होता एडल्ट हो, एडल्ट्री से युक्त..
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कॉपी पर कॉपी करें, शब्द एक दो अर्थ.
यदि हिंदी का दोष तो अंगरेजी भी व्यर्थ..
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टाई याने बाँधना, टाई कंठ लंगोट.
लायर झूठा है 'सलिल', लायर एडवोकेट..
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टैंक अगर टंकी 'सलिल', तो कैसे युद्धास्त्र?
बालक समझ न पा रहा, अंगरेजी का शास्त्र..
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प्लांट कारखाना हुआ, पौधा भी है प्लांट.
कैन नॉट को कह रहे, अंगरेजीदां कांट..
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खप्पर, छप्पर, टीन, छत, छाँह रूफ कहलाय.
जिस भाषा में व्यर्थ क्यों, उस पर हम बलि जांय..
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लिख कुछ पढ़ते और कुछ, समझ और ही अर्थ.
अंगरेजी उपयोग से, करते अर्थ-अनर्थ..
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हीन न हिन्दी को कहें, भाषा श्रेष्ठ विशिष्ट.
अंगरेजी को श्रेष्ठ कह, बनिए नहीं अशिष्ट..
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बुधवार, 4 मार्च 2020

कृति चर्चा : भारतीय कला में सलिल-क्रीड़ाएं एवं सद्य: स्नाता नायिका


Bhartiya kala mein salil kreedayein evam sadyah snata nayika book review

इस हफ्ते की किताब

भारतीय कला में सलिल-क्रीड़ाएं एवं सद्य: स्नाता नायिका

अंकिता बंगवाल
इस पुस्तक में सलिल क्रीड़ा एक उत्सव की तरह है, जिसके परिवेश में नायिकाओं के सौंदर्य पर बात हुई है। लेकिन इस उत्सव में अपनी संस्कति की कई कथा भी हैं।

भारतीय परंपरा  में वास्तुकला के अभिन्न अवयव मूर्तिकला और चित्रकला का स्वतंत्र अस्तित्व है और इनका निरूपण वास्तुकला के अंतर्गत ही होता रहा है। भारतीय परंपरा में मूर्तियों का निर्माण आध्यात्मिक और धार्मिक भावनाओं को अंतर्निहित करते हुए किया जाता रहा है, लेकिन पाश्चात्य मूर्तियों का सृजन सौंदर्य की भावन से ओत-प्रोत है। प्रकृति की अद्भुत देन है सौंदर्य। और सौंदर्य का धर्म है आकर्षण। वहीं, भारतीय वाङ्मय, मूर्तियों, चित्रों में आदिकाल में स्नान करती नायिकाएं, जल-क्रीड़ा करते देव, गंधर्व, किन्नर और अप्सराएं दृष्टिगोचर हैं। मध्यकालीन और परवर्तीकाल के चित्रों में भी राधा-कृष्ण का जल-विहार, जिसे हम सलिल-क्रीड़ा कहते हैं, प्रमुखता से प्रकट होता रहा है। इसी क्रम में सलिल क्रीड़ाओं और सद्य: स्नाता पर प्रकाश डालने का एक अद्भुत प्रयास डॉ. क्षेत्रपाल गंगवार और संजीव कुमार सिंह द्वारा लिखित पुस्तक ‘भारतीय कला में सलिल क्रीड़ाएं एवं सद्यस्नाता नायिका’ में दिखता है। 

यह हिन्दी में लिखी गई...

यह हिन्दी में लिखी गई एक कला पुस्तक है, जो मूल अनुसंधान पर आधारित है , जिसे राष्ट्रीय संग्रहालय द्वारा प्रकाशित किया गया है। इस पुस्तक में जल क्रीड़ाओं का बखूबी वर्णन किया गया है। कला का यह रूप पुरातन काल से ही भारतीय कला का हिस्सा रहा है। साहित्यिक स्रोत और पुरातात्विक साक्ष्य यह सिद्ध करते हैं कि यह हमेशा से ही हमारा प्रिय विषय रहा है। संस्कृत काव्य में सलिल क्रीड़ाओं का विशेष उल्लेख है। ऋग्वेद में उषा का वर्णन सौंदर्य-संपन्न सद्य:स्नाता के रूप में किया गया है। वहीं, वाल्मीकि द्वारा लिखी गई रामायण में माहिष्मती-नरेश अर्जुन का रानियों के साथ नर्मदा में जल-क्रीड़ा का वर्णन भी है, जहां अर्जुन सहस्रों हथिनियों के मध्य गजराज के समान शोभायमान थे।


कालिदास ने मेघदूत में...

कालिदास ने मेघदूत में जल-क्रीड़ा का उल्लेख मात्र करते हुए कहा है कि उज्जयिनी में महाकाल मंदिर के निकट जल-विहार करती युवतियों की शरीर-सुगंध से वायु भी सुगंधित हो जाती थी। अयोध्या-नरेश कुश, राजा अग्निवर्ण, राजशेखर, कलचुरि शासक विजयसिंह, भागवतपुराण हों या ग्यारहवीं शताब्दी में सोमदेव, सभी ने कहीं न कहीं जल-क्रीड़ाओं का वर्णन किया है। वहीं, अपनी चित्रकारी के रूप में भी कई चित्रकारों ने इसका उल्लेख किया है। हिंदी काव्य में भी देव, विश्वनाथ सिंह, रघुराज सिंह, चाचा हित वृंदावनदास, खुमान आदि ने अष्टायाम काव्यों में नायक-नायिकाओं की दिनचर्या के अंतर्गत उनके मृगया तथा वन विहार के साथ जल-विहार का वर्णन है। इसी तरह मूर्ति कला में नायिकाओं की भाव-भंगिमा को मूर्तिकारों ने अपने कौशल से जीवंत रूप दिया है। सलिल क्रीड़ा जैसे विषय पर सभी सामग्रियों और जानकारियों को जुटाना मेहनत का काम जरूर है।

लेखक - क्षेत्रपाल गंगवार, संजीव कुमार सिंह, प्रकाशन - राष्ट्रीय संग्राहलय, नई दिल्ली, मूल्य - 240 रुपये

मंगलवार, 3 मार्च 2020

लेख : सतत स्थाई विकास

लेख:
सतत स्थाई विकास : मानव सभ्यता की प्राथमिक आवश्यकता 
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
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स्थायी-निरंतर विकास : हमारी विरासत

मानव सभ्यता का विकास सतत स्थाई विकास की कहानी है। निस्संदेह इस अंतराल में बहुत सा अस्थायी विकास भी हुआ है किन्तु अंतत: वह सब भी स्थाई विकास की पृष्ठ भूमि या नींव ही सिद्ध हुआ। विकास एक दिन में नहीं होता, एक व्यक्ति द्वारा भी नहीं हो सकता, किसी एक के लिए भी नहीं किया जाता। 'सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामय:, सर्वे भद्राणु पश्यन्ति, माँ कश्चिद दुःखभाग्भवेद" अर्थात ''सभी सुखी हों, सभी स्वस्थ्य हों, शुभ देखें सब, दुःख न कहीं हो"का वैदिक आदर्श तभी प्राप्त हो सकता  है जब विकास, निरंतर विकास, सबकी आवश्यकता पूर्ति हित विकास, स्थाई विकास होता रहे। ऐसा सतत और स्थाई विकास जो मानव की भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं और उनके समक्ष उपस्थित होने वाले संकटों और अभावों का पूर्वानुमान कर किया  जाए, ही हमारा लक्ष्य हो सकता है। सनातन वैदिक चिंतन धारा द्वारा प्रदत्त वसुधैव कुटुम्बकम" तथा  'विश्वैक नीडं' के मन्त्र  ही वर्तमान में 'ग्लोबलाइज विलेज' की अवधारणा का आधार हैं। 

'सस्टेनेबल डेवलपमेंट अर्थ स्थायी या टिकाऊ विकास से हमारा अभिप्राय विकास ऐसे कार्यों की निरन्तरता से है जो मानव ही नहीं, सकल जीव जंतुओं की भावी पीढ़ियों का आकलन कर, उनकी प्राप्ति सुनिश्चित करते हुए, वर्तमान समय की आवश्यकताएँ पूरी करे। दुर्गा सप्तशतीकार कहता है 'या देवी सर्व भूतेषु प्रकृतिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:'। पौर्वात्य चिन्तन प्रकृति को 'माँ' और सभी प्राणियों को उसकी संतान मानता है। इसका आशय यही है कि जैसे शिशु माँ का स्तन पान इस तरह करता है की माँ को कोई  नहीं होती, अपितु उसका जीवन पूर्णता पता है, वैसे ही मनुष्य प्रकृति संसाधनों का उपयोग इस  कि प्रकृति अधिक समृद्ध हो। भारतीय परंपरा में प्रकृति के अनुकूल विकास की मानता है, प्रकृति के प्रतिकूल विकास की नहीं।'सस्टेनेबल डवलेपमेन्ट कैन ओनली बी इन एकॉर्डेंस विथ नेचर एन्ड नॉट, अगेंस्ट और एक्सप्लोयटिंग द नेचर।' 

प्रकृति माता - मनुष्य पुत्र 

स्वयं को प्रकृति पुत्र मानने की अवधारणा ही पृथ्वी, नदी, गौ और भाषा को माता मानने की परंपरा बनकर भारत के जान-जन के मन में बसी है। गाँवों में गरीब से गरीब परिवार भी गाय और कुत्ते के लिए रोटी बनाकर उन्हें खिलाते हैं। देहरी से भिक्षुक को खाली हाथ नहीं लौटाते। आंवला, नीम, पीपल, बेल, तुलसी, कमल, दूब, महुआ, धान, जौ, लाई, आदि पूज्यनीय हैं। नर्मदा ,गंगा, यमुना, क्षिप्रा आदि नदियाँ पूज्य हैं। नर्मदा कुम्भ, गंगा दशहरा, यमुना जयंती आदि पर्व मनाये जाते हैं। पोला लोक पर्व पोला पर पशुधन का पूजन किया जाता है। आँवला नवमी, तुलसी जयंती आदि लोक पर्व मनाये जाते हैं। नीम व जासौन को देवी, बेल व धतूरा को शिव, कदंब व करील को कृष्ण, कमल व धान को लक्ष्मी, हरसिंगार को विष्णु  से जोड़कर पूज्यनीय कहा गया है। यही नहीं पशुओं  और पक्षियों को भी देवी-देवताओं से संयुक्त किया गया ताकि उनका शोषण न कर, उनका ध्यान रखा जाए। बैल, सर्प व नीलकंठ को शिव, शेर व बाघ को देवी, राजहंस व मोर को सरस्वती, हाथी को लक्ष्मी,  मोर को कृष्ण आदि देवताओं के साथ संबद्ध बताया गया ताकि उनका संरक्षण किया जाता रहे। यही नहीं हनुमान जी को वायु, लक्ष्मी जी को जल,  पार्वती जी को पर्वत, सीता जी  भूमि की संतान कहा गया ताकि जन सामान्य इन प्राकृतिक तत्वों तत्वों की शुद्धता और सीमित सदुपयोग के प्रति सचेष्ट हो। 

विश्व रूपांतरण : युग की महती आवश्यकता


हम पृथ्वी को माता मानते है और सतत विकास सदैव हमारे दर्शन और विचारधारा का मूल सिद्धांत रहा है। सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अनेक मोर्चों पर कार्य करते हुए हमें महात्मा गांधी की याद आती है, जिन्होंने हमें चेतावनी दी थी कि धरती प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकताओं को तो पूरा कर सकती है, पर प्रत्येक व्यक्ति के लालच को नहीं। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पारित 'ट्रांस्फॉर्मिंग आवर वर्ल्ड : द 2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट' के संकल्प कोभारत सहित १९३  देशों ने सितंबर, २०१५ में संयुक्त राष्ट्र महासभा की उच्च स्तरीय पूर्ण बैठक में स्वीकार और इसे एक जनवरी, २०१६ से लागू किया। इसे सतत विकास लक्ष्यों के घोषणापत्र के नाम से भी जाना जाता है। सतत विकास का उद्देश्य सबके लिए समान, न्यायसंगत, सुरक्षित, शांतिपूर्ण, समृद्ध और रहने योग्य विश्व का निर्माण हेतु विकास में सामाजिक परिवेश, आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण को व्यापक रूप से समाविष्ट करना है। २००० से २०१५ तक के लिए निर्धारित नए लक्ष्यों का उद्देश्य विकास के अधूरे कार्य को पूरा करना और ऐसे विश्व की संकल्पना को मूर्त रूप देना है, जिसमें चुनौतियाँ कम और आशाएँ अधिक हों। भारत विश्व कल्याणपरक विकास के मूलभूत सिद्धांतों को अपनी विभिन्न विकास नीतियों में आराम से ही सम्मिलित करता रहा है। वर्तमान विश्वव्यापी अर्थ संकट के संक्रमण काल में भी विकास की अच्छी दर बनाए रखने में भारत सफल है। गाँधी जी ने 'आखिरी आदमी के भले', विनोबा जी ने सर्वोदय और दीनदयाल उपाध्याय ने अंत्योदय के माध्यम से निर्धनों को को गरीबी रेखा से ऊपर लाने और निर्बल को सबल बनाने की संकल्पना का विकास किया। वर्ष २०३० तक निर्धनता को समाप्त करने का लक्ष्य हमारा नैतिक दायित्व ही नहीं, शांतिपूर्ण, न्यायप्रिय और चिरस्थायी भारत और विश्व को सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य प्राथमिकता भी है।  

सतत विकास कार्यक्रम : लक्ष्य 

वित्तीय  लक्ष्य:
विकसित देश सरकारी विकास सहायत का अपना लक्ष्य प्राप्त कर, अपनी सकल राष्ट्रीय आय का ०.७%० विकासशील देशों को तथा ०.१५% से ०.२०% सबसे कम विकसित राष्ट्रों को दें। विकासशील देश एकाधिक स्रोत से साधन जुटाएँ तथा समन्वित नीतियों द्वारा दीर्घिकालिक ऋण संवहनीयता प्राप्त कर अत्यधिक ऋणग्रस्त निर्धन देशों पर ऋण बोझ कम कर निवेश संवर्धन को करें।  

तकनीकी लक्ष्य:
विकसित, विकासशील व् अविकसित देशों के मध्य विज्ञान, प्रौद्योगिकी, तकनालोजी व नवाचार सुलभ कर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना। वैश्विक तकनॉलॉजी तंत्र का विकास करना।  परस्पर सहमति पर रियायती और वरीयता देते हुए हितकारी शर्तों पर पर्यावरण अनुकूल तकनोलॉजी का विकास, हस्तांतरण, प्रसार व् समन्वय करना। तकनोलॉजी बैंक बनाकर सामर्थ्यवान तकनोलॉजी का प्रयोग बढ़ाना। 

क्षमता निर्माण तथा व्यापार : 
विकाशील देशों में लक्ष्य क्षमता निर्माण कर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना। राष्ट्रीय योजनाओं को समर्थन दिलाना। विश्व व्यापार संगठन के अन्तर्गत सार्वभौम, नियमाधारित, भेदभावहीन, खुली और समान बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को प्रोत्साहित करना। विकासशील देशों के निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि कर, सबसे कम देशों की भागीदारी दोगुनी करना। सबसे कम विकसित देशों को शुल्क और कोटा मुक्त  बाजार प्रवेश सुविधा देना, पारदर्शी व् सरल व्यापार नियम बनाकर बाजार में प्रवेश सरल बनाना। 

नीतिगत-संस्थागत  सामंजस्य:
सतत विकास हेतु वैश्विक वृहद आर्थिक स्थिरता वृद्धि हेतु नीतिगत-संस्थागत सामंजस्य बनाना। गरीबी मिटाने हेतु पारस्परिक नीतिगय क्षमता और नेतृत्व का सम्मान करना। सभी देशों के साथ सतत विकास लक्ष्य पाने में सहायक बहुहितकारी भागीदारियाँ  कर विशेषज्ञता, तकनोलॉजी, तहा संसाधन जुटाना। प्रभावी सार्वजनिक व् निजी संसाधन जुटाना। सबसे कम विकसित,  द्वीपीय व विकासशील देशों के लिए क्षमता निर्माण समर्थन बढ़ाना। २०३० तक सकल घेरलू उत्पाद के पूरक प्रगति के पैमाने विकसित करना।


स्थायी विकास लक्ष्य : केंद्र के प्रयास 

सतत् विकास लक्ष्‍यों को हासिल करने के लिए खरबों डॉलर के निजी संसाधनों की काया पलट ताकत जुटाने, पुनःनिर्देशित करने और बंधन मुक्‍त करने हेतु तत्‍काल कार्रवाई करने, विकासशील देशों में संवहनीय ऊर्जा, बुनियादी सुविधाओं, परिवहन - सूचना - संचार प्रौद्योगिकी आदि महत्‍वपूर्ण क्षेत्रों में प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश सहित दीर्घकालिक निवेश जुटाने के साथ सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के लिए  एक स्‍पष्‍ट दिशा निर्धारित करनी है। इस हेतु सहायक समीक्षा व  निगरानी तंत्रों के विनियमन और प्रोत्‍साहक संरचनाओं हेतु नए साधन जुटाकर निवेश आकर्षित कर सतत विकास को पुष्‍ट करना प्राथमिक आवश्यकता है। सर्वोच्‍च ऑडिट संस्‍थाओं, राष्‍ट्रीय निगरानी तंत्र और विधायिका द्वारा निगरानी के कामकाज को अविलंब पुष्‍ट किया जाना है। हमारे मेक इन इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान, बेटी बचाओ-बेटी पढाओ, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, प्रधानमंत्री ग्रामीण और शहरी आवास योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, डिजिटल इंडिया, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, स्किल इंडिया और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना शामिल हैं। इसके अलावा अधिक बजट आवंटनों से बुनियादी सुविधाओं के विकास और गरीबी समाप्त करने से जुड़े कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जा रहा है। केंद्र सरकार ने सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन पर निगरानी रखने तथा इसके समन्वय की जिम्मेदारी नीति आयोग को, संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद द्वारा प्रस्तावित संकेतकों की वैश्विक सूची से उपयोगी संकेतकों की पहचान कर राष्ट्रीय संकेतक तैयार करने का कार्य सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय को सौंपा है।न्यूयार्क में जुलाई, २०१७ में आयोजित होने वाले उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच (एचएलपीएफ) पर अपनी पहली स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा (वीएनआर) प्रस्तुत कर भारत सरकार ने  सतत विकास लक्ष्यों के सफल कार्यान्वयन को सर्वोच्च महत्व दिया है। 
राज्यों की भूमिका :
भारत के संविधान केंद्रों और राज्यों के मध्य राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक शक्ति संतुलन  के अनुरूप  राज्यों में विभिन्न राज्य स्तरीय विकास योजनायें कार्यान्वित की जा रही हैं। इन योजनाओं का सतत विकास लक्ष्यों के साथ तालमेल है। केंद्र और राज्य सरकारों को सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन में आनेवाली विभिन्न चुनौतियों का मुकाबला मिलकर करना है। भारतीय संसद विभिन्न हितधारकों के साथ सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने के लिए सक्रिय है। अध्यक्षीय शोध कदम (एसआरआई) सतत विकास लक्ष्यों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर सांसदों और विशेषज्ञों के मध्य विमर्श हेतु है। नीति आयोग सतत विकास लक्ष्यों पर राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर परामर्श शृंखलाएं आयोजित कर विशेषज्ञों, विद्वानों, संस्थाओं, सिविल सोसाइटियों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और केंद्रीय मंत्रालयों  राज्य सरकारों व हितधारकों के साथ गहन विचार-विमर्श कर रहा है। पर्यावरण संरक्षण व संपूर्ण विकास हेतु जन आकांक्षा पूर्ण करने हेतु  राष्ट्रीय, राज्यीय, स्थानीय प्रशासन तथा जन सामान्य  द्वारा सतत समन्वयकर कार्य किये जा रहे हैं। 

जन सामान्य की भूमिका :
भारत के संदर्भ में दृष्टव्य है कि सतत स्थाई  कार्यक्रमों की प्रगति में जान सामान्य की भूमिका नगण्य है। इसका कारण उनका समन्वयहीन धार्मिक-राजनैतिक संगठनों से जुड़ाव, प्रशासन तंत्र में जनमत और जनहित के प्रति उपेक्षा, व्यापारी वर्ग में येन-केन-प्रकारेण अधिकतम लाभार्जन की प्रवृत्ति तथा संपन्न वर्ग में विपन्न वर्ग के शोषण की प्रवृत्ति का होना है। किसी लोकतंत्र में सब कुछ तंत्र के हाथों में केंद्रित हो तो लोक  निराशा होना स्वाभाविक है। सतत विकास नीतियाँ  गाँधी के 'आखिरी आदमी' अर्थात सबसे कमजोर को उसकी योग्यता और सामर्थ्य के अनुरूप आजीविका साधन उपलब्ध करा सकें तभी उनकी सार्थकता है। सरकारी अनुदान आश्रित जनगण कमजोर और तंत्र द्वारा शोषित होता है। भारत के राजनीतिक नेतृत्व को दलीय हितों पर राष्ट्रीय हितों को वरीयता देकर राष्ट्रोन्नयनपरक सतत विकास कार्यों में परस्पर सहायक होना होगा तभी संविधान की मंशा के अनुरूप लोकहितकारी नीतियों का क्रियान्वय कर मानव ही नहीं, समस्त प्राणियों और प्रकृति की सुरक्षा और विकास का पथ प्रशस्त  सकेगा। 
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संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, 
चलभाष ९४२५१८३२४४, ईमेल : salil.sanjiv@gmail.com