कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 5 अक्टूबर 2017

doha ram

दोहा पंचक
*
मिलते हैं जगदीश यदि, मन में हो विश्वास
सिया-राम-जय गुंजाती, जीवन की हर श्वास
*
आस लखन शत्रुघ्न फल, भरत विनम्र प्रयास
पूर्ण समर्पण पवनसुत, दशकंधर संत्रास
*
त्याग-ओज कैकेई माँ, कौसल्या वनवास
दशरथ इन्द्रिय, सुमित्रा है कर्तव्य-उजास
*
संयम-नियम समर्पिता, सीता-तनया हास
नेह-नर्मदा-सलिल है, सरयू प्रभु की ख़ास
*
वध न अवध में सत्य का, होगा मानें आप
रामालय हित कीजिए, राम-नाम का जाप
*****
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.com
२०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर
#हिंदी_ब्लॉगर

बुधवार, 4 अक्टूबर 2017

laghukatha

लघुकथा:
मुखडा देख ले
*
कक्ष का द्वार खोलते ही चोंक पड़े संपादक जी. गाँधी जी के चित्र के ठीक नीचे विराजमान तीनों बंदर इधर-उधर ताकते हुए मुस्कुरा रहे थे. आँखें फाड़कर घूरते हुए पहले बंदर के गले में लटकी पट्टी पर लिखा था- ' बुरा ही देखो'.
हाथ में माइक पकड़े दिगज नेता की तरह मुंह फाड़े दूसरे बंदर का कंठहार बनी पट्टी पर अंकित था- 'बुरा ही बोलो'.
' बुरा ही सुनो' की पट्टी दीवार से कान सटाए तीसरे बंदर के गले की शोभा बढ़ा रही थी.
' अरे! क्या हो गया तुम तीनों को?' गले की पट्टियाँ बदलकर मुट्ठी में नोट थामकर मेज के नीचे हाथ क्यों छिपाए हो?] संपादक जी ने डपटते हुए पूछा.
'हमने हर दिन आपसे कुछ न कुछ सीखा है. कोई कमी रह गई हो तो बताएं.'
ठगे से खड़े संपादक जी के कानों में गूँज रहा था- 'मुखडा देख ले प्राणी जरा दर्पण में ...'
******
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogdpot.com
#hindi_blogger

muktak

मुक्तक सलिला: मंगल इसरो
मंगल पर पग रख दिया
नाम देश का कर दिया
इस रो में कोई नहीं-
इसरो ने साबित किया।
रो = कतार, पंक्ति
*
शक्ति पर्व है, भक्ति पर्व है
सीमा पर जो घटित हो रहा
उसे देखकर दिल रोता है
क्यों निवेश ही साध्य-सर्व है?
*
कोई न ले चीनी सामान
'लो देशी' अब हो अभियान
घाटा करें समाप्त तुरत
लेन-देन हो एक समान
*
दोहा मुक्तक:
आये आकर चले गए, मिटी नहीं तकरार
दिलविहीन दिलवर रहा, बेदिल था दिलदार
समाचार-फोटो कहें, खूब मिले थे हाथ
धन्यवाद ये कह रहे, वे कहते आभार
*
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogdpot.com
#hindi_blogger
लघुकथा:
एकलव्य
- दूरदर्शन और सभाओं में नेताओं और संतों के वाग्विलास से ऊबे पोते ने कहा
- 'नानाजी! एकलव्य महान धनुर्धर था?'
- 'हाँ; इसमें कोई संदेह नहीं है.'
- उसने व्यर्थ ही भोंकते कुत्तों का मुंह तीरों से बंद कर दिया था ?'
-हाँ बेटा.'
- 'काश वह आज भी होता.'
********
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogdpot.com
#hindi_blogger