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बुधवार, 25 मई 2016

दोहा

दोहा सलिला :
*
अक्षर अजर अमर असित, अजित अतुल अमिताभ 
अकत अकल अकलक अकथ, अकृत अगम अजिताभ 
*
आप आब आनंदमय, आकाशी आल्हाद 
आक़ा आक़िल अजगबी, आज्ञापक आबाद 
*
इक्षवाकु इच्छुक इरा, इर्दब इलय इमाम 
इड़ा इदंतन इदंता, इन इब्दिता इल्हाम 
*
ईक्षा ईक्षित ईक्षिता, ई ईड़ा ईजान 
ईशा ईशी ईश्वरी, ईश ईष्म ईशान 
*
उत्तम उत्तर उँजेरा, उँजियारी उँजियार 
उच्छ्वासित  उज्जवल उतरु,  उजला उत्थ उकार
ऊजन ऊँचा ऊजरा, ऊ ऊतर ऊदाभ 
ऊष्मा ऊर्जा ऊर्मिदा, ऊर्जस्वी ऊ-आभ 
*
एकाकी एकाकिनी, एकादश एतबार 
एषा एषी एषणा, एषित एकाकार
*​
ऐश्वर्यी ऐरावती, ऐकार्थ्यी ऐकात्म्य
ऐतरेय ऐतिह्यदा, ऐणिक ऐंद्राध्यात्म 
*
ओजस्वी ओजुतरहित, ओंकारित ओंकार 
ओल ओलदा ओबरी, ओर ओट ओसार
*  
औगत औघड़ औजसिक, औत्सर्गिक औचिंत्य
औंगा औंगी औघड़ी, औषधीश औचित्य
*
अंक अंकिकी आंकिकी, अंबरीश अंबंश  
अंहि अंशु अंगाधिपी, अंशुल अंशी अंश 
*

मंगलवार, 24 मई 2016

muktika

मुक्तिका
*
बँधी नीलाकाश में
मुक्तता भी पाश में
.
प्रस्फुटित संभावना
अगिन केवल 'काश' में
.
समय का अवमूल्यन
हो रहा है ताश में
.
अचेतन है ज़िंदगी
शेष जीवन लाश में
.
दिख रहे निर्माण के
चिन्ह व्यापक नाश में
.
मुखौटों की कुंडली
मिली पर्दाफाश में
.
कला का अस्तित्व है
निहित संगतराश में
***
[बारह मात्रिक आदित्य जातीय छन्द}
११.५.२०१६, ६.४५
सी २५६ आवास-विकास, हरदोई

muktika

मुक्तिका
*
कलश हो या नहीं हो, आधार हो
ज़िंदगी को ज़िंदगी से प्यार हो
.
कदम छोटे-बड़े तय कर फासले
सँग उठें तो सफलता गलहार हो
.
दिल दिया या दिल लिया दिल ने 'सलिल'
दिलवरी पूजा, नहीं व्यापार हो
.
शिलापट के लेख बन-मिटते रहे
कंकरों में शंकरी दीदार हो
.
छल-फरेबों से विजय, कब चाहिए?
बेहतर है साथ सच के हार हो
.
खिड़कियों से लाख झाँके धूप आ
देख लेना घरमें आँगन-द्वार हो
.
कमर के नीचे न हमला कीजिए
सामने आ सामने से वार हो
***
१०-५-२०१६
२५६ आवास-विकास हरदोई

doha

दोहा सलिला 

लहर-लहर लहर रहे, नागिन जैसे केश। 
कटि-नितम्ब से होड़ ले, थकित न होते लेश।।
*
वक्र भृकुटि ने कर दिए, खड़े भीत के केश।
नयन मिलाये रह सके, साहस रहा न शेष।।
*
मनुज-भाल पर स्वेद सम, केश सजाये फूल।
लट षोडशी कुमारिका, रूप निहारे फूल।।
*
मदिर मोगरा गंध पा, केश हुए मगरूर।
जुड़े ने मर्याद में, बाँधा झपट हुज़ूर।।
*
केश-प्रभा ने जब किया, अनुपम रूप-सिंगार।
कैद केश-कारा हुए, विनत सजन बलिहार।।
*
पलक झपक अलसा रही, बिखर गये हैं केश।
रजनी-गाथा अनकही, कहतीं लटें हमेश।।
*
केश-पाश में जो बँधा, उसे न भाती मुक्ति।
केशवती को पा सकें, अधर खोजते युक्ति।।
*
'सलिल' बाल बाँका न हो, रोज गूँथिये बाल।
किन्तु निकालें मत कभी, आप बाल की खाल।।
*
बाल खड़े हो जाएँ तो, झुका लीजिए शीश।
रुष्ट रूप से भीत ही, रहते भूप-मनीष।।
***
२४-५०२०१६

सोमवार, 23 मई 2016

doha salila

दोहा सलिला 
*
कर अव्यक्त को व्यक्त हम, रचते नव 'साहित्य' 
भगवद-मूल्यों का भजन, बने भाव-आदित्य 
.
मन से मन सेतु बन, 'भाषा' गहती भाव
कहे कहानी ज़िंदगी, रचकर नये रचाव 
.
भाव-सुमन शत गूँथते, पात्र शब्द कर डोर 
पाठक पढ़-सुन रो-हँसे, मन में भाव अँजोर 
.
किस सा कौन कहाँ-कहाँ, 'किस्सा'-किस्सागोई 
कहती-सुनती पीढ़ियाँ, फसल मूल्य की बोई 
.
कहने-सुनने योग्य ही, कहे 'कहानी' बात 
गुनने लायक कुछ कहीं, कह होती विख्यात 
.
कथ्य प्रधान 'कथा' कहें, ज्ञानी-पंडित नित्य 
किन्तु आचरण में नहीं, दीखते हैं सदकृत्य 
व्यथा-कथाओं ने किया, निश-दिन ही आगाह 
सावधान रहना 'सलिल', मत हो लापरवाह 
'गल्प' गप्प मन को रुचे, प्रचुर कल्पना रम्य 
मन-रंजन कर सफल हो, मन से मन तक गम्य 
.
जब हो देना-पावना, नातों की सौगात 
ताने-बाने तब बनें, मानव के ज़ज़्बात  
.
कहानी गोष्ठी, २२-५-२०१७ 
कान्हा रेस्टॉरेंट, जबलपुर, १९.३०

रविवार, 22 मई 2016

मुक्तिका

मुक्तिका
*
घुलें-मिल, बनें हम
न मैं-तुम, रहें अब
.
कहो तुम, सुनें हम
मिटें दूरियाँ सब
.
सभी सच, सुनें हम
न कोई नबी-रब
.
बढ़ो तुम, बढ़ें हम
मिलें मंज़िलें तब
.
लिखो तुम, पढ़ें हम
रहें चुप, सुनें जब
.
सिया-सत वरें हम
सियासत अजब ढब
.
बराबर हुए हम
छिना मत, नहीं दब
.
[दस मात्रिक दैशिक छन्द,
मापनी- १२ ११ १२११,
रुक्न- फऊलुन फऊलुन]
१०-५-२०१६, हरदोई

शनिवार, 21 मई 2016

नवगीत-

एक रचना 
*
मात्र मेला मत कहो
जनगण हुआ साकार है। 
*
'लोक' का है 'तंत्र' अद्भुत 
पर्व, तिथि कब कौन सी है?
कब-कहाँ, किस तरह जाना-नहाना है? 
बताता कोई नहीं पर
सूचना सब तक पहुँचती। 
बुलाता कोई नहीं पर 
कामना मन में पुलकती 
चलें, डुबकी लगा लें 
यह मुक्ति का त्यौहार है।  
*
'प्रजा' का है 'पर्व' पावन 
सियासत को लगे भावन 
कहीं पण्डे, कहीं झंडे- दुकाने हैं  
टिकाता कोई नहीं पर 
आस्था कब है अटकती?  
बुझाता कोई नहीं पर  
भावना मन में सुलगती 
करें अर्पित, पुण्य पा लें   
भक्ति का व्यापार है।  
*
'देश' का है 'चित्र' अनुपम  
दृष्ट केवल एकता है।
भिन्नताएँ भुला, पग मिल साथ बढ़ते 
भुनाता कोई नहीं पर 
स्नेह के सिक्के खनकते। 
स्नान क्षिप्रा-नर्मदा में  
करे, मानें पाप धुलते 
पान अमृत का करे  
मन आस्था-आगार है।  
*

चन्द माहिया :क़िस्त 33



:1:
जब तुम ने नहीं माना
टूटे रिश्तों को
फिर क्या ढोते जाना

:2:
मुझ को न गवारा है
ख़ामोशी तेरी
आ, दिल ने पुकारा है

:3:
तुम तोड़ गए सपने
ऐसा भी होगा
सोचा ही नहीं हमने

  :4:
क्या वो भी ज़माना था
आँख मिचौली थी
तुम से छुप जाना था

:5:
इक राह अनोखी है
जाना है सब को
पर किसने देखी है

-आनन्द पाठक-
09413395592


muktika

मुक्तिका 
संजीव 
*
मखमली-मखमली 
संदली-संदली 
.
भोर- ऊषा-किरण 
मनचली-मनचली  
.
दोपहर है जवाँ 
खिल गयी नव कली 
.
साँझ सुन्दर सजी
साँवली-साँवली  
.
चाँद-तारें चले 
चन्द्रिका की गली 
.
रात रानी न हो  
बावली-बावली
.
राह रोके खड़ा 
दुष्ट बादल छली 
***
(दस मात्रिक दैशिक छन्द 
रुक्न- फाइलुन फाइलुन)

शुक्रवार, 20 मई 2016

samiksha

पुस्तक चर्चा-
संक्रांतिकाल की साक्षी कवितायें

आचार्य भगवत दुबे 
*
[पुस्तक विवरण- काल है संक्रांति का, गीत-नवगीत संग्रह, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', प्रथम संस्करण २०१६, आकार २२ से.मी. x १३.५ से.मी., आवरण बहुरंगी, पेपरबैक जैकेट सहित, पृष्ठ १२८, मूल्य जन संस्करण २००/-, पुस्तकालय संस्करण ३००/-, समन्वय प्रकाशन, २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१]

कविता को परखने की कोई सर्वमान्य कसौटी तो है नहीं जिस पर कविता को परखा जा सके। कविता के सही मूल्याङ्कन की सबसे बड़ी बाधा यह है कि लोग अपने पूर्वाग्रहों और तैयार पैमानों को लेकर किसी कृति में प्रवेश करते हैं और अपने पूर्वाग्रही झुकाव के अनुरूप अपना निर्णय दे देते हैं। अतः, ऐसे भ्रामक नतीजे हमें कृतिकार की भावना से सामंजस्य स्थापित नहीं करने देते। कविता को कविता की तरह ही पढ़ना अभी अधिकांश पाठकों को नहीं आता है। इसलिए श्री दिनकर सोनवलकर ने कहा था कि 'कविता निश्चय ही किसी कवि के सम्पूर्ण व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति है। किसी व्यक्ति का चेहरा किसी दूसरे व्यक्ति से नहीं मिलता, इसलिए प्रत्येक कवी की कविता से हमें कवी की आत्मा को तलाशने का यथासम्भव यत्न करना चाहिए, तभी हम कृति के साथ न्याय कर सकेंगे।' शायद इसीलिए हिंदी के उद्भट विद्वान डॉ. रामप्रसाद मिश्र जब अपनी पुस्तक किसी को समीक्षार्थ भेंट करते थे तो वे 'समीक्षार्थ' न लिखकर 'न्यायार्थ' लिखा करते थे।
रचनाकार का मस्तिष्क और ह्रदय, अपने आसपास फैले सृष्टि-विस्तार और उसके क्रिया-व्यापारों को अपने सोच एवं दृष्टिकोण से ग्रहण करता है। बाह्य वातावरण का मन पर सुखात्मक अथवा पीड़ात्मक प्रभाव पड़ता है। उससे कभी संवेद नात्मक शिराएँ पुलकित हो उठती हैं अथवा तड़प उठती हैं। स्थूल सृष्टि और मानवीय भाव-जगत तथा उसकी अनुभूति एक नये चेतन संसार की सृष्टि कर उसके साथ संलाप का सेतु निर्मित कर, कल्पना लोक में विचरण करते हुए कभी लयबद्ध निनाद करता है तो कभी शुष्क, नीरस खुरदुरेपन की प्रतीति से तिलमिला उठता है।
गीत-नवगीत संग्रह 'काल है संक्रांति का' के रचनाकार आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' श्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिका 'दिव्य नर्मदा' के यशस्वी संपादक रहे हैं जिसमें वे समय के साथ चलते हुए १९९४ से अंतरजाल पर अपने चिट्ठे (ब्लॉग) के रूप में निरन्तर प्रकाशित करते हुए अब तक ४००० से अधिक रचनाएँ प्रकाशित कर चुके हैं। अन्य अंतर्जालीय मंचों (वेब साइटों) पर भी उनकी लगभग इतनी ही रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। वे देश के विविध प्रांतों में भव्य कार्यक्रम आयोजित कर 'अखिल भारतीय दिव्य नर्मदा अलंकरण' के माध्यम से हिंदी के श्रेष्ठ रचनाकारों के उत्तम कृतित्व को वर्षों तक विविध अलंकरणों से अलंकृत करने, सत्साहित्य प्रकाशित करने तथा पर्यावरण सुधर, आपदा निवारण व् शिक्षा प्रसार के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने का श्रेय प्राप्त अभियान संस्था के संस्थापक-अध्यक्ष हैं। इंजीनियर्स फॉर्म (भारत) के महामंत्री के अभियंता वर्ग को राष्ट्रीय-सामाजिक दायित्वों के प्रति सचेत कर उनकी पीड़ा को समाज के सम्मुख उद्घाटित कर सलिल जी ने सथक संवाद-सेतु बनाया है। वे विश्व हिंदी परिषद जबलपुर के संयोजक भी हैं। अभिव्यक्ति विश्वम दुबई द्वारा आपके प्रथम नवगीत संग्रह 'सड़क पर...' की पाण्डुलिपि को 'नवांकुर अलंकरण २०१६' (१२०००/- नगद) से अलङ्कृत किया गया है। अब तक आपकी चार कृतियाँ कलम के देव (भक्तिगीत), लोकतंत्र का मक़बरा तथा मीत मेरे (काव्य संग्रह) तथा भूकम्प ले साथ जीना सीखें (लोकोपयोगी) प्रकाशित हो चुकी हैं।
सलिल जी छन्द शास्त्र के ज्ञाता हैं। दोहा छन्द, अलंकार, लघुकथा, नवगीत तथा अन्य साहित्यिक विषयों के साथ अभियांत्रिकी-तकनीकी विषयों पर आपने अनेक शोधपूर्ण आलेख लिखे हैं। आपको अनेक सहयोगी संकलनों, स्मारिकाओं तथा पत्रिकाओं के संपादन हेतु साहित्य मंडल श्रीनाथद्वारा ने 'संपादक रत्न' अलंकरण से सम्मानित किया है। हिंदी साहित्य सम्मलेन प्रयाग ने संस्कृत स्त्रोतों के सारगर्भित हिंदी काव्यानुवाद पर 'वाग्विदाम्बर सम्मान' से सलिल जी को सम्मानित किया है। कहने का तात्पर्य यह है कि सलिल जी साहित्य के सुचर्चित हस्ताक्षर हैं। 'काल है संक्रांति का' आपकी पाँचवी प्रकाशित कृति है जिसमें आपने दोहा, सोरठा, मुक्तक, चौकड़िया, हरिगीतिका, आल्हा अदि छन्दों का आश्रय लेकर गीति रचनाओं का सृजन किया है।
भगवन चित्रगुप्त, वाग्देवी माँ सरस्वती तथा पुरखों के स्तवन एवं अपनी बहनों (रक्त संबंधी व् मुँहबोली) के रपति गीतात्मक समर्पण से प्रारम्भ इस कृति में संक्रांतिकाल जनित अराजकताओं से सजग करते हुए चेतावनी व् सावधानियों के सन्देश अन्तर्निहित है। 
'सूरज को ढाँके बादल
सीमा पर सैनिक घायल 
नाग-सांप फिर साथ हुए 
गुँजा रहे वंशी मादल 
लूट-छिप माल दो 
जगो, उठो।'

उठो सूरज, जागो सूर्य आता है, उगना नित, आओ भी सूरज, उग रहे या ढल रहे?, छुएँ सूरज, हे साल नये आदि शीर्षक नवगीतों में जागरण का सन्देश मुखर है। 'सूरज बबुआ' नामक बाल-नवगीत में प्रकृति उपादानों से तादात्म्य स्थापित करते हुए गीतकार सलिल जी ने पारिवारिक रिश्तों के अच्छे रूपक बाँधे हैं- 
'सूरज बबुआ! 
चल स्कूल।
धरती माँ की मीठी लोरी 
सुनकर मस्ती खूब करी।
बहिम उषा को गिर दिया 
तो पिता गगन से डाँट पड़ीं।
धूप बुआ ने लपक उठाया 
पछुआ लायी 
बस्ते फूल।'

गत वर्ष के अनुभवों के आधार पर 'में हिचक' नामक नवगीत में देश की सियासी गतिविधियों को देखते हुए कवी ने आशा-प्रत्याशा, शंका-कुशंका को भी रेखांकित किया है।
'नये साल 
मत हिचक 
बता दे क्या होगा?
सियासती गुटबाजी 
क्या रंग लाएगी?
'देश एक' की नीति 
कभी फल पाएगी?
धारा तीन सौ सत्तर 
बनी रहेगी क्या?
गयी हटाई 
तो क्या 
घटनाक्रम होगा?'

पाठक-मन को रिझाते ये गीत-नवगीत देश में व्याप्त गंभीर समस्याओं, बेईमानी, दोगलापन, गरीबी, भुखमरी, शोषण, भ्रष्टाचार, उग्रवाद एवं आतंक जैसी विकराल विद्रूपताओं को बहुत शिद्दत के साथ उजागर करते हुए गम्भीरता की ओर अग्रसर होते हैं।
बुंदेली लोकशैली का पुट देते हुए कवि ने देश में व्याप्त सामाजिक, आर्थिक, विषमताओं एवं अन्याय को व्यंग्यात्मक शैली में उजागर किया है। 
मिलती काय ने ऊँचीबारी 
कुर्सी हमखों गुईंया 
पैला लेऊँ कमिसन भारी
बेंच खदानें सारी 
पाँछू घपले-घोटालों सों 
रकम बिदेस भिजा री

समीक्ष्य कृति में 'अच्छे दिन आने वाले' नारे एवं स्वच्छता अभियान को सटीक काव्यात्मक अभिव्यक्ति दी गयी है। 'दरक न पायेन दीवारें नामक नवगीत में सत्ता एवं विपक्ष के साथ-साथ आम नागरिकों को भी अपनी ज़िम्मेदारियों के प्रति सचेष्ट करते हुए कवि ने मनुष्यता को बचाये रखने की आशावादी अपील की है।
कवी आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने वर्तमान के युगबोधी यथार्थ को ही उजागर नहीं किया है अपितु अपनी सांस्कृतिक अस्मिता के प्रति सुदृढ़ आस्था का परिचय भी दिया है। अतः, यह विश्वास किया जा सकता है कि कविवर सलिल जी की यह कृति 'काल है संक्रांति का' सारस्वत सराहना प्राप्त करेगी।
आचार्य भगवत दुबे
महामंत्री कादंबरी 
पिसनहारी मढ़िया के निकट 
जबलपुर ४८२००३, चलभाष ९३००६१३९७५

doha

दोहा सलिला
*
सपने देखे तो किया, हमने हसीं गुनाह
टैक्स लगा दो जेटली, हमें नहीं परवाह
*
अच्छे दिन की आस में, जीना हुआ हराम
मरने की हिम्मत नहीं, लकड़ी-ऊँचे दाम
*
सूर्य आग बरसा रहा, ताप सके तो ताप
कांग्रेस सुनकर हुई, इस चुनाव में भाप
*
दीदी का दम देखकर, बड़े-बड़े हैं दंग
दादाओं की हो गयी, अब तो हुलिया तंग
*
जनता परकम्मा करे, अम्मा दें आशीष
करुण अंत करुणानिधी, खड़े झुकाये शीश
*
लेफ्ट जहाँ राइट हुआ, राइट लगता रॉन्ग
बंद हो गया गूंजना, जय राहुल का सांग
*
आसू के आँसू बहे, देख सर्व आनंद
कमल लिये सम असम में, सुना रहे हैं छंद
*
चित्त अखाड़ेबाज हैं, हार चुनावी दाँव
बड़े-बड़ों के शीश पर, रही न बाकी छाँव
*
हुए प्रमाणित खबरिए, गलत न जानें हाल
जो था इनके भरोसे, महसूसे भूचाल
*

गुरुवार, 19 मई 2016

doha

 दोहा सलिला 
देव लात के मानते, कब बातों से बात 
जैसा देव उसी तरह, पूजा करिए तात 
*
चरण कमल झुक लात से, मना रहे हैं खैर 
आये आम चुनाव क्या?, पड़ें  पैर के पैर 
​*
पाँव पूजने का नहीं, शेष रहा आनंद 
'लिव इन' के दुष्काल में, भंग हो रहे छंद 
*
पाद-प्रहार न भाई पर, कभी कीजिए भूल 
घर भेदी लंका ढहे, चुभता बनकर शूल 
*
'सलिल न मन में कीजिए, किंचित भी अभिमान 
तीन पगों में नाप भू, हरि दें जीवन-दान 
*

doha

मुहावरेदार दोहे
*
पाँव जमकर बढ़ 'सलिल', तभी रहेगी खैर
पाँव फिसलते ही हँसे, वे जो पाले बैर
*
बहुत बड़ा सौभाग्य है, होना भारी पाँव
बहुत बड़ा दुर्भाग्य है होना भारी पाँव
*
पाँव पूजना भूलकर, फिकरे कसते लोग
पाँव तोड़ने से मिटे, मन की कालिख रोग
*
पाँव गए जब शहर में, सर पर रही न छाँव 
सूनी अमराई हुई, अश्रु बहाता गाँव
*
जो पैरों पर खड़ा है, मन रहा है खैर
धरा न पैरों तले तो, अपने करते बैर
*
सम्हल न पैरों-तले से, खिसके 'सलिल' जमीन
तीसमार खाँ हबी हुए, जमीं गँवाकर दीन
*
टाँग अड़ाते ये रहे, दिया सियासत नाम
टाँग मारते वे रहे, दोनों है बदनाम
*
टाँग फँसा हर काम में, पछताते हैं लोग
एक पूर्ण करते अगर, व्यर्थ न होता सोग
*
बिन कारण लातें न सह, सर चढ़ती है धूल
लात मार पाषाण पर, आप कर रहे भूल
*
चरण कमल कब रखे सके, हैं धरती पर पैर?
पैर पड़े जिसके वही, लतियाते कह गैर
*
धूल बिमाई पैर  का, नाता पक्का जान
चरण कमल की कब हुई, इनसे कह पहचान?
***

blog

ब्‍लॉग बनाना कितना आसान

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ब्‍लॉग का नाम, पता (और वर्ड वेरीफिकेशन भरने) के बाद दूसरे स्‍टेप में आपसे टेम्‍पलेट चुनने के लिए कहा जाएगा। टेम्‍पलेट का मतलब होता है, ब्‍लॉग का रंग-रूप। वहाँ पर जो भी डिजाइन उपलब्‍ध हों, उसमें से कोई एक चुन लें औरकन्‍टीन्‍यू करें। वर्तमान में आप अपने ब्‍लॉग के पोस्टिंग मोड में हैं। ब्‍लॉग के नाम के नीचे जहाँ पर पोस्टिंग लिखा हुआ दिख रहा है, उसके दाईं ओर क्रमश: कमेंट्स और सेटिंग लिखा हुआ है। आप सेटिंग विकल्‍प का चयन कर लें। सेटिंग मोड में सर्वप्रथम बेसिक टैब होता है। उसमें पेज के नीचे की ओर इनेबल ट्रांसलिटरेशन होता है। उसेयस कर दें तथा किये गये संशोधन को सेव कर लें। तदुपरांत सेटिंग के फॉरमेटिंग टैब का चयन करें। इसमेंटाइम ज़ोन के सामने दिये गये विकल्‍पों में (GMT+05.30) India Standard Time तथा लैंग्‍वेज में हिन्‍दी’ का ऑप्‍शन चुन लें। ऐसा करने के बाद पेज के नीचे मौजूद सेव ऑप्‍शन को क्लिक करके सभी सेटिंग को सुरक्षित कर लें।

ब्‍लॉग की सेटिंग संशोधित करने के बाद पोस्टिंग और सेटिंग वाली लाइन के ऊपर बाईं ओर नजर डालें। वहां पर ईमेल आईडी के बगल में डैशबोर्ड लिखा नजर आएगा। इसे क्लिक करें, जिससे ब्‍लॉग का डैशबोर्ड खुल जाएगा।डैशबोर्ड में आप द्वारा बनाये गये  (सभी) ब्‍लॉग के उपलब्‍ध ऑप्‍शन, आपकी ब्‍लॉग सम्‍बंधी प्रोफाइल और आप द्वाराफालो (पसंद) किये गये अन्‍य ब्‍लॉगों की ताजी पोस्‍टें (लेख) प्रदर्शित होते हैं। डैशबोर्ड में बाईं ओर दिये एडिट प्रोफाइल का चयन करें और जरूरत के अनुसार जानकारी भरकर अपनी प्रोफाइल अपडेट कर लें। यदि आपके पास अपने फोटो की डिजिटल इमेज हो, तो उसे भी यहां पर अपलोड कर दें। इससे डैशबोर्ड में आपका फोटो दिखने लगेगा। संशोधन करने के बाद नीचे की ओर दिये सेव बटन को दबा कर इन्‍हें सुरक्षित कर लें।

अब आप पुन: डैशबोर्ड में जाएँ। वहाँ पर ब्‍लॉग के नाम के नीचे पोस्टिंग, कमेंट्स, सेटिंग, डिजाइन, मोनेटाइज, स्‍टैट्स आदि विकल्‍प दिख रहे होंगे। पोस्टिंग के द्वारा नया लेख लिखने (ब्‍लॉग की भाषा में इसे पोस्‍ट कहा जाता है) और पुरानी पोस्‍ट को एडिट (संशोधित) करने का काम किया जाता है। कमेंट्स के द्वारा ब्‍लॉग पर आने वाली टिप्‍पणियों को मैनेज किया जाता है। सेटिंग विकल्‍प के द्वारा ब्‍लॉग की तकनीकी व्‍यवस्‍था बदली जाती है। डिजाइनके द्वारा ब्‍लॉग की बनावट संशोधित की जाती है तथा मोनेटाइज के द्वारा ब्‍लॉग पर विज्ञापन लगाए जाते हैं। (ये दोनों विकल्‍प अभी आपके काम के नहीं हैं।) उसके बाद स्‍टैटस का विकल्‍प है, जिसमें ब्‍लॉग पर आने वाले सभी पाठकों का विस्‍तृत विवरण दर्ज रहता है।

कैसे करें हिन्‍दी टाइपिंग? 
ब्‍लॉग में लिखना आरम्‍भ करने के लिए डैशबोर्ड में‍ स्थित पोस्टिंग विकल्‍प को चुनें और न्‍यू पोस्‍ट के कम्‍पोजमोड का चयन करके अपनी मनचाही बात लिखना शुरू कर दें। इस समय आपके ब्‍लॉग में ट्रांसलिटरेशन सुविधा ऑन है, जिसके द्वारा आप रोमन अक्षरों का प्रयोग करके हिन्‍दी में लिख सकते हैं। जैसे अगर आपको लिखना है-मेरा भारत महान। इसके लिए आप अपने कीबोर्ड से टेक्‍स्‍ट एरिया में ‘meraa bhaarat mahaan’ लिखें, वह अपने आप मेरा भारत महान में बदल जाएगा।

कम्‍प्‍यूटर द्वारा टाइप की जाने वाली यह हिन्‍दी आमतौर से प्रयोग में लाए जाने वाले ट्रू टाइप फांट से भिन्‍न होती है और यूनिकोड टाइप फांट कहलाती है। हमारे कम्‍प्‍यूटरों में यह  फांट मंगल के नाम से उपलब्‍ध रहता है। (हो सकता है यह आपको शुरू में थोड़ा सा असहज लगे, लेकिन दो-चार दिन प्रैक्टिस करने के बाद आप इसे सीख जाएंगे और धड़ल्‍ले से टाइप करने लगेंगे।) यदि किन्‍हीं कारणवश यहाँ पर ट्रांसलिटरेशन अर्थात लिप्‍यांतरण काम नहीं कर रहा है, तो आप http://hindikalam.com/ अथवा यहां पर जाकर वहाँ लिप्‍यांतरण के द्वारा हिन्‍दी में लिख सकते हैं। उसके बाद उसे वहां से कॉपी करके यहाँ पर पेस्‍ट कर सकते हैं। 

यदि आपने हिन्‍दी टाइपिंग सीखी है, तो यहां पर जाकर टाइप मशीन की तरह सीधे हिन्‍दी में टाइप कर सकते हैं। और हाँ, यदि आप अपने कम्‍प्‍यूटर में बिना इंटरनेट चलाए (ऑफलाइन रहकर) भी यूनिकोड में टाइप करना चाहते हैं, तो उसके लिए इस लिंक पर जाकर वहाँ दिये गये निर्देशों का पालन करें। आपका कम्‍प्‍यूटर यूनिकोड हिन्‍दी के लिए सक्षम हो जाएगा।

ब्‍लॉग को बनाने के बाद सबसे जरूरी काम है, उसको पाठकों के अनुकूल बनाना, ताकि आपके ब्‍लॉग के बारे में अधिक के अधिक लोग जानें और आपकी लेखनी से लाभान्वित हो सकें।
साभार- हिंदी वर्ल्ड