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शनिवार, 23 मार्च 2013

suvichar


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धरोहर: ब्राह्म मुहूर्त:स्वस्ति वाचन अज्ञेय

धरोहर:
ब्राह्म मुहूर्त:स्वस्ति वाचन अज्ञेय
 *

जिओ उस प्यार में
जो मैंने तुम्हे दिया है,
उस दुःख में नहीं, जिसे
बेझिझक मैंने पिया है|
उस गान में जिओ
जो मैंने तुम्हे सुनाया है,
उस आह में नहीं, जिसे
मैनें तुमसे छिपाया है|
वह छादन तुम्हारा घर हो
जिसे मैं असीसों से बुनता हूँ, बुनूँगा;
वो कांटे गोखरू तो मेरे हैं
जिन्हें मैं राह से चुनता हूँ, चुनूँगा|
सागर के किनारे तुम्हे पहुँचाने का
उदार उद्यम ही मेरा हो,
फिर वहाँ जो लहर हो, तारा हो,
सोन तरी हो, अरुण सवेरा हो,
वो सब ओ मेरे वर्य! ( श्रेष्ठ )
तुम्हारा हो, तुम्हारा हो, तुम्हारा हो|

दोहा सलिला: होली हो अबकी बरस संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
होली हो अबकी बरस
संजीव 'सलिल'
*
होली होली हो रही, होगी बारम्बार.
होली हो अबकी बरस, जीवन का श्रृंगार.१.

होली में हुरिया रहे, खीसें रहे निपोर.
गौरी-गौरा एक रंग, थामे जीवन डोर.२.

होली अवध किशोर की, बिना सिया है सून.
जन प्रतिनिधि की चूक से, आशाओं का खून.३.

होली में बृजराज को, राधा आयीं याद.
कहें रुक्मिणी से -'नहीं, अब गुझियों में स्वाद'.४.

होली में कैसे डले, गुप्त चित्र पर रंग.
चित्रगुप्त की चतुरता, देख रहे सबरंग.५.

होली पर हर रंग का, 'उतर गया है रंग'.
जामवंत पर पड़ हुए, सभी रंग बदरंग.६.

होली में हनुमान को, कहें रंगेगा कौन.
लाल-लाल मुँह देखकर, सभी रह गए मौन.७.

होली में गणपति हुए, भाँग चढ़ाकर मस्त.
डाल रहे रंग सूंढ़ से, रिद्धि-सिद्धि हैं त्रस्त.८.

होली में श्री हरि धरे, दिव्य मोहिनी रूप.
ठंडाई का कलश ले, भागे दूर अनूप.९.

होली में निर्द्वंद हैं, काली जी सब दूर.
जिससे होली मिलें हो, वह चेहरा बेनूर.१०.

होली मिलने चल पड़े, जब नरसिंह भगवान्.
ठाले बैठे  मुसीबत गले पड़े श्रीमान.११.

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Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

शुक्रवार, 22 मार्च 2013

आओ! देखें दुर्लभ चित्र:

समय-पृष्ठ पलटें :
समय के पन्नों को पलटकर कुछ अजाना, कुछ अबूझा, करें साझा ...
उपन्यास सम्राट 



सितम्बर1936 उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का रामकटोरा, बनारस स्थित घर में रोगशैय्या पर अंतिम चित्र। 'अज्ञेय' द्वारा इस चित्र को लेने के एक माह पश्चात प्रेमचंद का देहावसान हुआ।अज्ञेय की पहली कहानी 'अमर-वल्लरी' प्रेमचंद ने 5 अक्तूबर, 1932के  'जागरण' में  प्रकाशित की थी। अज्ञेय तब, अन्य क्रांतिकारियों के साथ, दिल्ली षड्यंत्र मुकदमे में जेल काट रहे थे, जहाँ से तीन साल बाद छूटे।
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संविधान निर्माता 
 
राष्ट्रकवि और राष्ट्रपति  

 
देशरत्न डॉ। राजेंद्र प्रसाद तत्कालीन राष्ट्रपति को 'संस्कृति के चार अध्याय' की प्रति भेंट करते हुए राष्ट्रकवि दिनकर।
 

सबसे बाएंफणीश्वरनाथ रेणु, रामधारी सिंह दिनकर (वक्ता)। आभार: अखिलेश शर्मा, रांची। 
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सुभाषद्रोही या देशद्रोही?

 

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को विश्व युद्ध अपराधी के रूप में अंग्रेजों को सौंपने पर गाँधी, नेहरु, जिन्ना एकमत: भारत की एकमात्र विश्वस्नीय समाचार सेवा PTI द्वारा दिए समाचार के अनुसार नेताजी के लापता होने संबंधी दुर्घटना की जाँच हेतु गठित खोसला आयोग के समक्ष बयां देते हुए नेताजी के अंगरक्षक रहे उस्मान पटेल ने बताया कि मोहनदास करमचंद गांधी, जवाहरलाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना और मौलाना आज़ाद ने अंग्रेज जज से समझौता किया था की नेताजी के मिलने पर उन्हें अंग्रेजोन को सौंपा जायेगा।
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स्वतंत्रता का सच 


 

कृपया निम्न तथ्यों को ध्यान से पढ़िये:-
1. 1942 : ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन ब्रिटिश सरकार ने कुछ हफ्तों में कुचला।2. 1945 : ब्रिटेन ने विश्वयुद्ध में ‘विजयी’ देश के रूप सिंगापुर को वापस अपने कब्जे में लिया। उसका भारत से लेकर सिंगापुर तक जमे रहने का इरादा था। दिल्ली के ‘संसद भवन’ से लेकर अण्डमान के ‘सेल्यूलर जेल’ तक- हर निर्माण 500 से 1000 वर्षों तक सत्ता बनाये रखने के इरादे से किया गया था
3. 1945 - 1946 ब्रिटेन ने हड़बड़ी में भारत छोड़ने का निर्णय लिया? क्यों? क्या घटा इस बीच जिसने अंग्रेजों को पलायन करने पर मजबूर किया?
4. बचपन से सुने - 'दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल, साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल' को भुला कर सच जानें इस काल में ‘नेताजी और आजाद हिन्द फौज की सैन्य गतिविधियों के कारण’ ही 1947   में आजादी मिली। विश्वास न हो नीचे दिए गए तथ्य देखें:
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ब्रिटिश संसद में विपक्षी सदस्य द्वारा प्रश्न पूछने पर कि ब्रिटेन भारत को क्यों छोड़ रहा है, ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली जवाब
दो विन्दुओं में देते हैं:
1. भारतीय मर्सिनरी (वेतनभोगी पेशेवर
सेना) ब्रिटिश राजमुकुट के प्रति वफादार नहीं रही और
2. इंग्लैण्ड इस स्थिति में नहीं है कि वह अपनी खुद की सेना को इतने बड़े पैमाने पर संगठित कर सके कि वह भारत पर नियंत्रण रख सके।
अंग्रेजी इतिहासकार माईकल एडवर्ड के शब्दों में ब्रिटिश राज के अन्तिम दिनों का आकलन:
“भारत सरकार ने आजाद हिन्द सैनिकों पर मुकदमा चलाकर भारतीय सेना के मनोबल को मजबूत बनाने की आशा की थी। इसने उल्टे अशांति पैदा कर दी- जवानों के मन में कुछ-कुछ शर्मिन्दगी पैदा होने लगी कि उन्होंने विदेशियों का साथ दिया। अगर सुभाषचन्द्र बोस और उनके आदमी सही थे- जैसाकि सारे देश ने माना कि वे सही थे भी- तो सेना के भारतीय जरूर गलत थे। भारत सरकार को धीरे-धीरे यह दीखने लगा कि ब्रिटिश राज की रीढ़- भारतीय सेना- अब भरोसे के लायक नहीं रही। सुभाष बोस का भूत, हैमलेट के पिता की तरह, लालकिले (जहाँ आजाद हिन्द सैनिकों पर मुकदमा चला) के कंगूरों पर चलने-फिरने लगा, और उनकी अचानक विराट बन गयी छवि ने उन बैठकों को बुरी तरह भयाक्रान्त कर दिया, जिनसे आजादी का रास्ता प्रशस्त होना था।”
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निष्कर्ष के रुप में यह कहा जा सकता है कि:-
1. अँग्रेजों के भारत छोड़ने के हालाँकि कई कारण थे, मगर प्रमुख कारण यह था कि भारतीय थलसेना एवं जलसेना के सैनिकों के मन में ब्रिटिश राजमुकुट के प्रति राजभक्ति में कमी आ गयी थी और- बिना राजभक्त भारतीय सैनिकों के- सिर्फ अँग्रेज सैनिकों के बल पर सारे भारत को नियंत्रित करना ब्रिटेन के लिए सम्भव नहीं था।
2. सैनिकों के मन में राजभक्ति में जो कमी आयी थी, उसके कारण थे- नेताजी का सैन्य अभियान, लालकिले में चला आजाद हिन्द सैनिकों पर मुकदमा और इन सैनिकों के प्रति भारतीय जनता की सहानुभूति।
3. अँग्रेजों के भारत छोड़कर जाने के पीछे गाँधीजी या काँग्रेस की अहिंसात्मक नीतियों का योगदान नहीं के बराबर रहा। --जय हिन्द ।
 आभार :- गौरी राय
 

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उन्नीस वर्ष में विश्व विजय:
 
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नेहरु - शास्त्री मूल्यांकन 
 
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सनातन सत्य 
 
 

फागुन त्रिभंगी छंद: संजीव 'सलिल'

फागुन
त्रिभंगी छंद:
 संजीव 'सलिल'
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ऋतु फागुन आये, मस्ती लाये, हर मन भाये, यह मौसम।
अमुआ बौराये, महुआ भाये, टेसू गाये, को मो सम।।
होलिका जलायें, फागें गायें, विधि-हर शारद-रमा मगन-
बौरा सँग गौरा, भूँजें होरा, डमरू बाजे, डिम डिम डम।।
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Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

गुरुवार, 21 मार्च 2013

होरी के जे हुरहुरे संजीव 'सलिल' *

होरी के जे हुरहुरेसंजीव 'सलिल'

होरी के जे हुरहुरे, लिये स्नेह-सौगात,
कौनौ पढ़ मुसक्या रहे, कौनौ दिल सहलात।
कौनौ दिल सहलात, किन्हउ  खों चढ़ि गओ पारा,
जिन खों पारा चढ़े, होय उनखों मूं कारा।   
*
मुठिया भरे गुलाल से, लै पिचकारी रंग। 
रंग भ्रमर खों मूं-मले, कमल करि रह्यो दंग।। 
कि बोलो सा रा रा रा.....
*
सुमिरों मैं परताप खों, मानो मम परताप।
फागुन-भरमायो शिशिर, आग रह्यो है ताप।। 
कि बोलो सा रा रा रा.....
*
गायें संग महेस के, किरण-नीरजा फाग।
प्रणव-दीप्ति-आतिश जुरे, फूल-धतूरा पाग।। 
कि बोलो सा रा रा रा.....
*
भूटानी-छबि बनी है, नेपाली सी आज।
भंग पिलातीं इंदिरा, कुसुम-किन्शुकी ताज।। 
कि बोलो सा रा रा रा.....
*
महिमा की महिमा 'सलिल', मो सें बरनि न जाय।
तज दीन्यो संतोष- पी,  भंग गजब इठलाय ।। 
कि बोलो सा रा रा रा.....
*
नभ का रंग परकास के, चेहरे-छाया खूब।
श्यामल घन घनश्याम में, जैसे जाए डूब।। 
कि बोलो सा रा रा रा.....
*
गूझों का आनंद लें, लुक-छिप पाठक भाग। 
ओम व्योम से झाँककर, माँग रहे हैं भाग।। 
कि बोलो सा रा रा रा.....
*
काट लिए वनकोटि फिर, चाहें पुष्प पलाश। 
ममता औ समता बिना, फगुआ हुआ हताश।। 
कि बोलो सा रा रा रा.....
*

chitr-chitr sandesh

 
 
 
 
 
 


 

बुधवार, 20 मार्च 2013

चित्र पर कविता:

चित्र पर कविता:


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    १. एस.एन. शर्मा 'कमल'
       विधि के हाथों खींची  लकीरें         
           नहीं  मिटी  है नहीं मिटेंगी

लाख जतन कर लिखो भाल पर
तुम कितनी ही अपनी भाषा
होगा वही जो विधि रचि राखा
शेष बनेगी  मात्र दुराशा 
            साधू संत फ़कीर सभी पर
             हावी  भाग्य  लकीर रहेंगी

बलि ने घोर तपस्या की थी
पाने को गद्दी इन्द्रलोक की
छला गया बावन अंगुल से
मिली सजा पाताल भोग  की
              बस न चलेगा होनी पर कुछ
              बात बनी बन कर बिगड़ेगी

कुंठित  हुए कुलिश,गाण्डीव
योधा तकते रहे भ्रमित  से
रहा अवध सिंहासन खाली
चौदह वर्ष नियति की गति से 
             भाग्य-रेख पढ़ सका न कोई
              वह अबूझ  ही बनी  रहेगी


sn Sharma <ahutee@gmail.com>
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 २. संजीव 'सलिल'

कर्म प्रधान विश्व है,
बदलें चलो भाग्य की रेख ...
*
विधि जो जी सो चाहे लिख दे, करें न हम स्वीकार,
अपना भाग्य बनायेंगे हम, पथ के दावेदार।
मस्तक अपना, हाथ हमारे, घिसें हमीं चन्दन,
विधि-हरि-हर उतरेंगे भू पर, करें भक्त-वंदन।
गल्प नहीं है सत्य यही
तू देख सके तो देख ...
*
पानी की प्राचीर नहीं है मनुज स्वेद की धार,
तोड़ो कारा तोड़ो मंजिल आप करे मनुहार।
चन्दन कुंकुम तुलसी क्रिसमस गंग-जमुन सा मेल-
छिड़े राग दरबारी चुप रह जनगण देखे खेल।
भ्रान्ति-क्रांति का सुफल शांति हो,
मनुज भाल की रेख… 
*
है मानस का हंस, नहीं मृत्युंजय मानव-देह,
सबहिं नचावत राम गुसाईं, तनिक नहीं संदेह।    
प्रेमाश्रम हो जीवन, घर हो भू-सारा आकाश,
सतत कर्म कर काट सकेंगे मोह-जाल का पाश।
कर्म-कुंडली में कर अंकित
मानव भावी लेख ...
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पथ के दावेदार, उपन्यास, शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय 
पानी की प्राचीर, उपन्यास, रामदरस मिश्र 
तोड़ो कारा तोड़ो, उपन्यास, नरेन्द्र कोहली 
राग दरबारी, उपन्यास, श्रीलाल शुक्ल 
मानस का हंस, उपन्यास, अमृतलाल नागर 
मृत्युंजय, उपन्यास, शिवाजी सावंत
सबहिं नचावत राम गुसाईं, उपन्यास, भगवतीचरण वर्मा 
प्रेमाश्रम, उपन्यास, मुंशी प्रेमचंद 
सारा आकाश, उपन्यास, राजेन्द्र यादव 

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विवेकानंद सन्देश