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रविवार, 17 फ़रवरी 2013

सामयिक लघुकथा: ढपोरशंख संजीव 'सलिल'

सामयिक लघुकथा: 
ढपोरशंख
                                                                    संजीव 'सलिल'
                                                                               *
               कल राहुल के पिता उसके जन्म के बाद घर छोड़कर सन्यासी हो गए थे, बहुत तप किया और बुद्ध बने. राहुल की माँ ने उसे बहुत अरमानों से पाला-पोसा बड़ा किया पर इतिहास में कहीं राहुल का कोई योगदान नहीं दीखता.

               आज राहुल के किशोर होते ही उसके पिता आतंकवादियों द्वारा मारे गए. राहुल की माँ ने उसे बहुत अरमानों से पाला-पोसा बड़ा किया पर देश के निर्माण में कहीं राहुल का कोई योगदान नहीं दीखता.

               सबक : ढपोरशंख किसी भी युग में हो ढपोरशंख ही रहता है.

17 टिप्‍पणियां:

Mahipal Tomar ने कहा…

Mahipal Tomar द्वारा yahoogroups.com


सटीक शीर्षक ,पैनी दीर्घ प्रभावी ,लघु कथा ,बधाई ।

महिपाल

Dr.M.C. Gupta ने कहा…

Dr.M.C. Gupta द्वारा yahoogroups.com



बहुत कहा, थोड़ा लिखा, गागर में सागर


--ख़लिश

sanjiv verma 'salil' ने कहा…

खलिश जी, महिपाल जी
आपको लघुकथा पसाद आई, मेरा लेखन कर्म सार्थक हुआ. आभार

Saurabh Pandey ने कहा…

Saurabh Pandey

"इशारों-इशारों में आपने बहुत ही भेदती बातें कहीं हैं, आचार्य सलिलजी. प्रथमदृष्ट्या तो यह कथा तुलनात्मकता भर दीखती है. परन्तु, इसका संकेत वस्तुतः उन दो नेपथ्यों की ओर है जिनका होना घटनाक्रम के थोथे विकास का कारण है. जिनके गर्भ में भविष्य का छूँछापन ही…"

Ashok Kumar Raktale ने कहा…

Ashok Kumar Raktale

"परम आदरणीय सलिल जी सादर, व्यंग करती सुन्दर लघुकथा."


Aarti Sharma ने कहा…

Aarti Sharma

"प्रणाम सर..
अति सुन्दर और प्रेरक लघुकथा पर बधाई स्वीकारें .."

rajesh kumari ने कहा…

rajesh kumari

"आदरणीय सलिल जी
चंद शब्दों में युगों का तुलनात्मक विश्लेषण कर एक सटीक व्यंग्य द्वारा बहुत बड़ी बात कही लघु कथा शीर्षक के साथ पूर्णतः न्याय कर रही है|बधाई आपको "

sadeep tomar ने कहा…

sandeep tomar

’"लघु कथाकार जगदीश कश्यप की याद आती है जब वो नागरिक लघु कथा संग्रह में लघु कथा के तरीके बताते हैं "


sandeep tomar ने कहा…

sandeep tomar

"मजेदार बात ये है कि जिन दो राहुलो की तुलना हो रही है उनमे कोई तुलना ही नहीं है फिर भी लघु कथा तो अपनी बात कह गयी। वह मज़ा आ गया पढ़कर "

Tushar Raj rastogi ने कहा…

Tushar Raj Rastogi

हा हा हा हा हा बहुत बढ़िया कहानी | लाजवाब


Brajesh kumar singh 'neeraj' ने कहा…

बृजेश कुमार सिंह (बृजेश नीरज)

ढपोरशंखों के देश में ढपोरशंख की ही पूछ है और पूंछ है। पूंछ जो दिखती नहीं पर बिक रही है।

Dr.Prachi Singh ने कहा…

Dr.Prachi Singh

आदरणीय संजीव जी,

सामयिक लघुकथा के लिए बहुत बहुत बधाई..

इस कथा के गठन और शिल्प की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है.

कथा का शीर्षक बिलकुल चुन कर रखा गया है... दो राहुल की तुलना का ये सार्थक ख्याल गज़ब का लगा.

पुनः बधाई .सादर.

Comment by वेदिका . yesterday
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आदरणीय संजीव ’सलिल’ जी !

नमस्कार!

बहुत सटीक व्यंग ... बरबस ही कथा के अंत में मुस्कान आजाती है।

वाह ...

शुभकामनायें !!!

sanjiv verma 'salil' ने कहा…

सौरभ जी, राजेश जी, प्राची जी, अशोक जी, आरती जी, बृजेश जी, तुषार जी, संदीप जी, वेदिका जी

आपकी गुणग्राहकता और संवेदनशीलता को नमन.

SANDEEP KUMAR PATEL ने कहा…

SANDEEP KUMAR PATEL

वाह आदरणीय वाह क्या तुलनात्मक अध्ययन है

सटीक व्यंग सर जी

प्रणाम सहित बधाई आपको

ram shiromani pathak ने कहा…

ram shiromani pathak

सटीक व्यंग सर जी

प्रणाम सहित बधाई आपको!!!!!!!!!!!!!

sanjiv verma 'salil' ने कहा…

राम शिरोमणि जी, संदीप जी
लघुकथा आपको रुची तो मेरा लेखन कर्म सार्थक हो गया.

Satyanarayan Shivram Singh ने कहा…

Satyanarayan Shivram Singh

आदरणीय आचार्य जी, सामायिक, तुलनात्मक और लघुकथा के माध्यम से प्रेरक व्यंग है. सादर बधाई.