प्रकृति-पुरूष का मेल ही,'सलिल' सनातन सत्य।
शिवा और शिव पूजकर,हमने तजा असत्य।
योनि-लिंग हैं सृजन के,माध्यम सबको ज्ञात।
आत्म और परमात्म का,नाता क्यों अज्ञात?
गूढ़ सहज ही व्यक्त हो,शिष्ट सुलभ शालीन।
शिव पूजन निर्मल करे,चित्त- न रहे मलीन।
नर-नारी, बालक-युवा,वृद्ध पूजते साथ।
सृष्टि मूल को नवाते, 'सलिल' सभी मिल माथ।
आचार्य संजीव 'सलिल' sanjivsalil.blogspot.comsanjivsalil.blog.co.indivyanarmada.blogspot.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें