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रविवार, 14 सितंबर 2025

सितंबर १४, हिंदी दिवस, सॉनेट, भारत, कुण्डलिया, राजस्थानी मुक्तिका, मुक्तक


सलिल सृजन सितंबर १४
*
सॉनेट
भारत में लेकर इकतारा,
यायावरी साधु करते हैं,
अलखनिरंजन कर जयकारा,
नगर गाँव घर घर फिरते हैं।
प्रेमगीत वे प्रभु के गाते,
करते मंगलभाव व्यक्त वे,
जन-मन में शुभ भाव जगाते
समरसता के दूत शक्त वे।
इटली में प्रेमी यायावर,
प्रेम गीत गा रहे घूमते,
प्रेम गीत सॉनेट सुनाकर,
वाद्य बजा लब रहे चूमते।
साथ समय के भारत आया।
सॉनेट ने नवजीवन पाया।।
१४.९.२०२३
•••
मुक्तक
हिंदी का उद्घोष छोड़, उपयोग सतत करना है
कदम-कदम चल लक्ष्य प्राप्ति तक संग-संग बढ़ना है
भेद-भाव की खाई पाट, सद्भाव जगाएँ मिलकर
गत-आगत को जोड़ सके जो वह पीढ़ी गढ़ना है
*
दोहा
हर पल हिंदी को जिएँ, दिवस न केवल एक।
मानस मैया मानकर, पूजें सहित विवेक।।
*
विश्व में सर्वाधिक बोले जानेवाली भाषा हिंदी- डॉ. जयंती प्रसाद नौटियाल
*
विश्व में सर्वाधिक बोले जानेवाली भाषा निर्विवाद रूप से हिंदी है। आज हिंदी दिवस पर सभी हिंदीभाषियों का कर्तव्य है कि
१. वे अपना अधिकतम कार्य (सोचना, बोलना, लिखना, पढ़ना आदि) हिंदी में करें।
२. यथा संभव हिंदी में बातचीत करें।
३. अपना हस्ताक्षर हिंदी में करें।
४. बैंक तथा अन्य सरकारी कार्यालयों/विभागों से हिंदी में पत्राचार करें तथा उन्हें दस्तावेज (बैंक लेखा पुस्तिका आदि) हिंदी में देने हेतु अनुरोध करें।
५. अपनी नाम पट्टिका, परिचय पत्रक (विजिटिंग कार्ड) आदि पर हिंदी ही रखें।
६. अभियंता परियोजना संबंधी प्राक्कलन, प्रतिवेदन, मूल्यांकन, देयक, आदि हिंदी में ही बनायें। अधिवक्ता वाद-परिवाद, बहस तथा अन्य न्यायालयीन लिखा-पढ़ी हिंदी में करें। चिकित्सक मरीज से बातचीत करने, औषधि पर्ची तथा रोग का इतिहास आदि लिखने में हिंदी को वरीयता दें। शिक्षक शिक्षण कार्य में हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग करें।
७. आंग्ल/अहिन्दी भाषी विद्यालयों में शिक्षणेतर कार्य (प्रार्थना, शुभकामना आदान-प्रदान, अभिवादन आदि) हिंदी में हो।
८. सभी कार्यों में हिंदी अंकों, प्रतीकाक्षरों आदि का प्रयोग करें। बच्चों को हिंदी संख्याओं का ज्ञान अवश्य दें।
डॉ जयंती प्रसाद नौटियाल (महानिदेशक, वैश्विक हिन्दी शोध संस्थान, मनोजय भवन, ११५, विष्णुलोक कॉलोनी, तपोवन रोड, देहरादून २४८००८ उत्तराखंड, भारत, चलभाष ९९०००६८७२२, ईमेल: dr.nautiyaljp@gmail.com) ने अपनी शोध में यह सिद्ध किया है कि विश्व में हिन्दी विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है।
विश्व में भाषाओं की रैंकिंग प्रक्रिया :
विश्व में भाषाओं कि रैंकिंग गैर सरकारी संस्था “एथ्नोलोग” (मुख्यालय अमेरिका) नामक संस्था करती है। यह संस्था, विश्व की भाषाओं के आँकड़े (डेटाबेस) अपने प्रतिनिधियों/प्रतिनिधि संस्थाओं से एकत्र कर; जारी करती है । जिस भाषा के बोलनेवाले संसार में सबसे अधिक होते हैं वह भाषा पहले नंबर पर आती है। भाषा के जानकारों की संख्या को स्थूल रूप में दो वर्गों में रखा जाता है; इन्हें एल-1 और एल-2 कहा जाता है । एल-1 अर्थात वे लोग जिनकी यह मातृभाषा हो अथवा जिन्हें इस भाषा पर दक्षता हासिल हो। एल-2 अर्थात वे लोग जिनकी वह भाषा अर्जित भाषा हो। उदाहरण के लिए हिन्दी के लिए एल-1 के अंतर्गत हिन्दी भाषी प्रदेशों की जनसंख्या और जिन्हें हिन्दी में दक्षता प्राप्त हो उनकी गणना होगी तथा एल-2 के अंतर्गत जो लोग सामन्य (कामचलाऊ) हिन्दी जानते हैं गिने जाएँगे।
हिन्दी विश्व में प्रथम कैसे?
डॉ. नौटियाल द्वारा की गयी शोध के अनुसार हिन्दी का विश्व में पहला स्थान है लेकिन एथ्नोलोग ने अपनी वर्ष २०२१ की रिपोर्ट में अँग्रेजीभाषी 1348 मिलियन (१ अरब ३४ करोड़ ८), मंदारिनभाषी ११२० मिलियन (१अरब १२ करोड़) तथा हिन्दी भाषी ६०० मिलियन (६० करोड़) दर्शाए हैं। वस्तुत: विश्व में हिन्दीभाषी १३५६ मिलियन (१ अरब ३५ करोड़ ६० लाख) हैं। हिन्दीभाषी अँग्रेजीभाषियों से १ करोड़ ५२ लाख अधिक हैं। अतः, हिन्दी विश्व में सबसे अधिक बोली जानेवाली भाषा, विश्व भाषाओं की रैंकिंग में पहले स्थान पर है।
हिन्दी को तीसरे स्थान पर क्यों दर्शाया जाता है? :
हिन्दी को तीसरे स्थान पर दर्शाये जाने के दो कारण हैं-
१. एथ्नोलोग एक दशक पुरानी जनगणना के सरकारी आंकड़े के आधार पर हिंदीभाषियों की गणना करता है। भारत सरकार ने इस पर आपत्ति नहीं की; न ही एथ्नोलोग के गलत आंकड़े में संशोधन करने में रूचि ली। अन्य भाषा-भाषियों के नवीनतम आंकड़ों के साथ हिंदी भाषा-भाषियों के ११ साल पुराने आँकड़े के आधार पर हिंदी को तीसरी सर्वाधिक बोली जानेवाली भाषा कह दिया गया।
२. अन्य देशों में भाषा-भाषियों की गणना करते समय उस भाषा का अक्षर ज्ञान मात्र होने पर उसे भाषाभाषी गिन लिया जाता है।भारत में हिन्दी के लिए अलग मापदंड बनाकर जिनकी मातृभाषा हिंदी है सिर्फ उन्हें ही हिंदी भाषा-भाषी गिना जाता है। यह भारत और हिंदी की गरिमा घटाने की सोची समझी-चाल है। इसे इस प्रकार समझें-
भारत में अँग्रेजी जाननेवाले सिर्फ ६ % (८ करोड़ ४० लाख) हैं, इसे १०% (१४ करोड़) और कई जगह २०% प्रतिशत (२८ करोड़) दिखा दिया जाता है। भारत में प्रशासन की मानसिकता अंगेरजीभाषियों की संख्या अधिकतम दिखाकर खुद को उन्नत समझने की है।
चीन में ७० से अधिक बोलियाँ है। ये एक दूसरे से बिलकुल नहीं मिलती हैं अर्थात ये आपस में बोधगम्य नहीं हैं। मंदारिनभाषियों में इन बोलियों को बोलनेवालों की संख्या बढ़ा-चढ़ाकर जोड़कर १ अरब १२ करोड़ बताकर, इसे दूसरे नंबर पर दिखाया गया है।
भारत में हिंदी मातृभाषावाले ११ राज्यों (राजभाषा नियम के अनुसार 'क' क्षेत्र) की जनसंख्या ६५ करोड़ ५८ लाख है, एथ्नोलोग हिन्दीभाषियों की संख्या केवल ६० करोड़ दर्शाता है ।
कुछ अन्य राज्यों में जिनकी भाषा हिंदी से मिलती-जुलती है और वहाँ के निवासी हिंदी समझते हैं ('ख' क्षेत्र) की कुल जनसंख्या है २२ करोड़ ४९ लाख। इनमें ९०% प्रतिशत जनता (२० करोड़ २४ लाख) हिंदी जानती है। तीसरा 'ग' क्षेत्र है, हिंदीतर भाषी क्षेत्र जहाँ का प्रचलन कम है लेकिन हिंदी जाननेवाले बड़ी संख्या में हैं। इन राज्यों की कुल जनसंख्या है ४९ करोड़ ९८ लाख जिनमें हिंदी के जानकार हैं २९ करोड़ ७८ लाख। इन तीनों क्षेत्रों को जोड़कर भारत में हिन्दी जाननेवालों की संख्या है: क क्षेत्र में ६५ करोड़ ५८ लाख + ख क्षेत्र २० करोड़ २४ लाख + ग क्षेत्र २९ करोड़ ७८ लाख = १ अरब १६ करोड़।
विश्व में ग हिंदीभाषी- प्रत्येक उर्दूभाषी हिन्दी जानता है। एथ्नोलोग के अनुसार विश्व में उर्दूभाषी १७ करोड़ हैं। एथ्नोलोग के अनुसार विश्व के अन्य देशों में हिन्दी जाननेवालों की संख्या है ४२ लाख। (डॉ. नौटियाल के शोध के अनुसार यह संख्या २ करोड़ है)। भारत में जो अवैध आप्रवासी हिंदी बोलते हैं उनकी संख्या है १करोड़ ६०लाख । इस प्रकार विश्व में हिन्दी भाषा के जानकार हैं : १ अरब ३३ करोड़ (भारत में) + ४२ लाख (अन्य देशों में) + १ करोड़ ६० लाख (अवैध शरणार्थी) = १ अरब ३५ करोड़ से अधिक। यहाँ भी हिंदीभाषियों की संखया कम से कम गिनी गयी है ताकि विवाद न हो ।जिस सिद्धान्त से अँग्रेजी और मंदारिन के आँकड़े लिए गए हैं यदि वही तरीका हिंदी के लिए लें तो विश्व में हिंदीभाषियों की संख्या १ अरब ४५ करोड़ होगी।
क्रम भाषा विश्व में बोलनेवालों की संख्या विश्व में स्थान /रैंकिंग
१. हिंदी १ अरब ३५ करोड़ (१३५० मिलियन ) प्रथम
२. अँग्रेजी १ अरब २६ करोड़ (१२६८ मिलियन ) द्वितीय
३. मंदारिन १ अरब १२ करोड़ (११६८ मिलियन ) तृतीय
रैंकिंग की वर्तमान स्थिति :
डॉ. नौटियाल ने अपनी शोध एथ्नोलोग को भेजी कि वे हिंदी को प्रथम स्थान पर दिखाएँ। एथ्नोलोग ने सुझाव दिया कि हिंदी में उर्दू भाषा को विलीन करने के लिए आइ. एस. ओ. में परिवर्तन करने की आवश्यकता है। इसलिए लाइब्रेरी ऑफ कॉंग्रेस से संपर्क कर आगे की कार्रवाई की जाए। डॉ. नौटियाल ने एथ्नोलोग को उत्तर भेजा कि उर्दू भाषा का अस्तित्व मिटाने कि आवश्यकता नहीं है, सिर्फ उर्दू जाननेवालों कि गणना हिंदी जाननेवालों मे भी की जानी है, जैसे अन्य भाषाओं में किया जाता है। यह तर्क संगत है तथा एथ्नोलोग के मानदंडों के अनुरूप भी है। यह मामला संपादक मण्डल के पास विचारार्थ है । शीघ्र ही वे अपने डाटा बेस में सुधार करके हिंदी को प्रथम स्थान पर दर्शाने की प्रक्रिया आरंभ करेंगे।
कानूनी स्थिति :
हिंदी आज कि तारीख में तथ्यतः (D Facto) विश्व में पहले स्थान पर है व एथ्नोलोग से रैंकिंग बदलने के बाद यह विधितः (D Jure) भी प्रथम स्थान पर होगी। यह मामला कानूनी विशेषज्ञ के पास विधिक राय के लिए भी भेजा गया था। कानूनी विशेषज्ञ ने भी कानूनी रूप से यह पुष्टि की है कि हिंदी का विश्व में पहला स्थान है ।
प्रमाणीकरण :
यह शोध प्रमाणीकरण प्रक्रिया के २० चरण सफलतापूर्वक पूर्ण कर चुकी है, पूरी तरह प्रामाणिक है। राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार ने इस शोध को “फ़ैक्ट चेक” हेतु केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा को भेजा। संस्थान ने इस शोध के तथ्यों की जाँच के लिए विधिवत विशेषज्ञ नियुक्त किया जिसने इस रिपोर्ट को प्रामाणिक मानते हुए इसकी प्रबल रूप में संपुष्टि की है तथा अपनी विस्तृत सकारात्मक रिपोर्ट दी है। भारत सहित विश्व के शीर्ष १७२ भाषाविदों, विशेषज्ञों व विद्वानों ने इस रिपोर्ट की प्रामाणिकता की पुष्टि की है। संसदीय राजभाषा समिति के माननीय सदस्य राजभाषा निरीक्षणों के दौरान इस शोध की सगर्व चर्चा करते हैं। इस शोध की प्रामाणिकता को देखते हुए वित्त मंत्रालय , वित्तीय सेवाएँ विभाग, भारत सरकार ने बैंकों, वित्तीय संस्थाओं एवं बीमा कंपनियों द्वारा आयोजित कार्यशालाओं में इसको प्रशिक्षण में अनिवार्य कर दिया है साथ ही उक्त सगठनों द्वारा प्रकाशित पत्रिकाओं में भी इस शोध को प्रकाशित करने के सरकारी आदेश जारी किए हैं। मूल शोध रिपोर्ट, शोध के प्रमाणीकरण संबंधी दस्तावेज़ या इनके प्रमाण डॉ. नौटियाल से प्राप्त किए जा सकते हैं। सुधी पाठकों के सुझावों का स्वागत है ।
***
डॉ जयंती प्रसाद नौटियाल का अति सूक्ष्म परिचय
जन् ३ मार्च १९५६, देहरादून । शिक्षा- एम.ए. (हिंदी), एम.ए. (अँग्रेजी), पी-एच.डी., डी.लिट, एम.बी.ए., एल-एल.बी. सहित ८१ डिग्री/डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स। से.नि. उपमहाप्रबंधक यूनियन बैंक ऑफ इंडिया। 'विश्व का सर्वाधिक बहुमुखी प्रतिभा संपन्न व्यक्ति' होने का गौरव प्राप्त। आपका बायोडाटा (Resume) विश्व का सबसे वृहद (७ खंड, ४२०० पृष्ठ) एवं अद्वितीय है। इसमें डॉ. नौटियाल की ५०३० उपलब्धियाँ दर्ज हैं। लेखन- ८१ पुस्तकों के लेखन में योगदान, अधिकांश विश्वविद्यालयों में पाठ्य पुस्तक व संदर्भ पुस्तकें। १८०० से अधिक रचनाएँ प्रकाशित। सम्मान- ११२ अवॉर्ड, सम्मान, और पुरस्कार, २२५ प्रशंसा पत्र। राष्ट्र की १४० शीर्ष समितियों में प्रतिनिधित्व। १६५ शोध कार्य। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में ६८६ व्याख्यान। १५० प्रकार के बौद्धिक कार्यों में योगदान। ७३ प्रकार के व्यवसायों/ पदों पर कार्य करने का अनुभव। ९११ से अधिक वेबसाइटों में विवरण उपलब्ध। प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी स्थान । हिंदी विकिपीडिया,अंग्रेजी विकिटिया जैसे अन्य पोर्टलों पर विवरण उपलब्ध हैं।
***
हिंदी - कुण्डलिया
हिंदी की जय बोलिए, उर्दू से कर प्रीत
अंग्रेजी को जानिए, दिव्य संस्कृत रीत
दिव्य संस्कृत रीत, तमिल-असमी रस घोलें
गुजराती डोगरी, मराठी कन्नड़ बोलें
बृज मलयालम गले मिलें गारो से निर्भय
बोलें तज मतभेद, आज से हिंदी की जय
*
हिंदी की जय बोलिए, हो हिंदीमय आप.
हिंदी में नित कार्य कर, सकें विश्व में व्याप..
सकें विश्व में व्याप, नाप लें समुद ज्ञान का.
नहीं व्यक्ति का, बिंदु 'सलिल' राष्ट्रीय आन का..
नेह-नरमदा नहा, बोलिए होकर निर्भय.
दिग्दिगंत में गूँज उठे, फिर हिंदी की जय..
*
हिंदी की जय बोलिए, तज विरोध-विद्वेष
विश्व नीड़ लें मान तो, अंतर रहे न शेष
अंतर रहे न शेष, स्वच्छ अंतर्मन रखिए
जगवाणी हिंदी अपनाकर, नव सुख गहिए
धरती माता के माथे पर, शोभित बिंदी
मूक हुए 'संजीव', बोल-अपनाकर हिंदी
***
परमपिता ने जो रचा, कहें नहीं बेकार
ज़र्रे-ज़र्रे में हुआ, ईश्वर ही साकार
ईश्वर ही साकार, मूलतः: निराकार है
व्यक्त हुआ अव्यक्त, दैव ही गुणागार है
आता है हर जीव, जगत में समय बिताने
जाता अपने आप, कहा जब परमपिता ने
*
निर्झर - नदी न एक से, बिलकुल भिन्न स्वभाव
इसमें चंचलता अधिक, उसमें है ठहराव
उसमें है ठहराव, तभी पूजी जाती है
चंचलता जीवन में, नए रंग लाती है
कहे 'सलिल' बहते चल,हो न किसी पर निर्भर
रुके न कविता-क्रम, नदिया हो या हो निर्झर
***
राजस्थानी मुक्तिका
*
नेह नर्मदा तैर भायला
बह जावैगौ बैर भायला
गेलो आपूं आप मलैगौ
मंज़िल की सुन टेर भायला
मुश्किल है हरदा सूं खड़बो
तू आवैगो फेर भायला
घणू कठण है कविता करबो
आकासां की सैर भायला
स्कूल गइल पै यार 'सलिल' तू
चाल मेलतो पैर भायला
***
भाषा विविध: दोहा
संस्कृत दोहा: शास्त्री नित्य गोपाल कटारे
वृक्ष-कर्तनं करिष्यति, भूत्वांधस्तु भवान्। / पदे स्वकीये कुठारं, रक्षकस्तु भगवान्।।
मैथली दोहा: ब्रम्हदेव शास्त्री
की हो रहल समाज में?, की करैत समुदाय? / किछु न करैत समाज अछि, अपनहिं सैं भरिपाय।।
अवधी दोहा: डॉ. गणेशदत्त सारस्वत
राम रंग महँ जो रँगे, तिन्हहिं न औरु सुहात। / दुनिया महँ तिनकी रहनि, जिमी पुरइन के पात।।
बृज दोहा: महाकवि बिहारी
जु ज्यों उझकी झंपति वदन, झुकति विहँसि सतरात। / तुल्यो गुलाल झुठी-मुठी, झझकावत पिय जात।।
कवि वृंद:
भले-बुरे सब एक सौं, जौ लौं बोलत नांहिं। / जान पडत है काग-पिक, ऋतु वसंत के मांहि।।
बुंदेली दोहा: रामेश्वर प्रसाद गुप्ता 'इंदु'
कीसें कै डारें विथा, को है अपनी मीत? इतै सबइ हैं स्वारथी, स्वारथ करतइ प्रीत।।
पं. रामसेवक पाठक 'हरिकिंकर': नौनी बुंदेली लगत, सुनकें मौं मिठियात। बोलत में गुर सी लगत, फर-फर बोलत जात।।
बघेली दोहा: गंगा कुमार 'विकल'
मूडे माँ कलशा धरे, चुअत प्यार की बूँद। / अँगिया इमरत झर रओ, लीनिस दीदा मूँद।।
पंजाबी दोहा: निर्मल जी
हर टीटली नूं सदा तो, उस रुत दी पहचाण। / जिस रुत महकां बाग़ विच, आके रंग बिछाण।।
-डॉ. हरनेक सिंह 'कोमल'
हलां बरगा ना रिहा, लोकां दा किरदार।/ मतलब दी है दोस्ती, मतलब दे ने यार।।
गुरुमुखी: गुरु नानक
पहले मरण कुबूल कर, जीवन दी छंड आस। / हो सबनां दी रेनकां, आओ हमरे पास।।
भोजपुरी दोहा: संजीव 'सलिल'-
चिउड़ा-लिट्ठी ना रुचे, बिरयानी की चाह।/ नवहा मलिकाइन चली, घर फूँके की राह।।
मालवी दोहा: संजीव 'सलिल'-
भणि ले म्हारा देस की, सबसे राम-रहीम। /जल ढारे पीपल तले, अँगना चावे नीम।।
निमाड़ी दोहा: संजीव 'सलिल'-
रयणो खाणों नाचणो, हँसणो वार-तिवार। / गीत निमाड़ी गावणो, चूड़ी री झंकार।।
छत्तीसगढ़ी दोहा: संजीव 'सलिल'-
जाँघर तोड़त सेठ बर, चिथरा झूलत भेस । / मुटियारी माथा पटक, चेलिक रथे बिदेस ।।
राजस्थानी दोहा:
पुरस बिचारा क्या करै, जो घर नार कुनार। /ओ सींवै दो आंगळा, वा फाडै गज च्यार।।
अंगिका दोहा: सुधीर कुमार
ऐलै सावन हपसलो', लेनें नया सनेस । / आबो' जल्दी बालमां, छोड़ी के परदेश।।
बज्जिका दोहा: सुधीर गंडोत्रा
चाहू जीवन में रही, अपने सदा अटूट। / भुलिओ के न परे दू, अपना घर में फूट।।
हरयाणवी दोहा: श्याम सखा 'श्याम'
मनै बावली मनचली, कहवैं सारे लोग। / प्रेम-प्रीत का लग गया, जिब तै मन म्हं रोग।।
मगही दोहा :
रउआ नामी-गिरामी, मिलल-जुलल घर फोर। / खम्हा-खुट्टा लै चली,
राजस्थानी दोहा:
पुरस बिचारा क्या करै, जो घर नार कुनार। / ओ सींवै दो आंगळा, वा फाडै गज च्यार।।
कन्नौजी दोहा:
ननदी भैया तुम्हारे, सइ उफनाने ताल। / बिन साजन छाजन छवइ, आगे कउन हवाल।।
सिंधी दोहा: चंद्रसिंह बिरकाली
ग्रीखम-रुत दाझी धरा कळप रही दिन रात। / मेह मिलावण बादळी बरस बरस बरसात ।।
दग्ध धरा ऋतु ग्रीष्म से, कल्प रही रही दिन-रात। / मिलन मेह से करा दे, बरस-बरस बरसात।।
गढ़वाली दोहा: कृष्ण कुमार ममगांई
धार अड़ाली धार माँ, गादम जैली त गाड़। / जख जैली तस्ख भुगत ली, किट ईजा तू बाठ।।
सराइकी दोहा: संजीव 'सलिल'
शर्त मुहाणां जीत ग्या, नदी-किनारा हार। / लेणें कू धिक्कार हे, देणे कूँ जैकार।।
मराठी दोहा: वा. न. सरदेसाई
माती धरते तापता, पर्जन्यची आस। / फुकट न तृष्णा भागवी, देई गंध जगास।।
गुजराती दोहा: श्रीमद योगिंदु देव
अप्पा अप्पई जो मुणइ जो परभाउ चएइ। / सो पावइ सिवपुरि-गमणु जिणवरु एम भणेइ।।
दोहा दिव्य दिनेश से साभार
*
कार्यशाला
दो कवि एक कुण्डलिया
*
आओ! सब मिलकर रचें, ऐसा सुंदर चित्र।
हिंदी पर अभिमान हो, स्वाभिमान हो मित्र।। -विशम्भर शुक्ल
स्वाभिमान हो मित्र, न टकरायें आपस में।
फूट पड़े तो शत्रु, जयी हो रहे न बस में।।
विश्वंभर हों सदय, काल को जूझ हराओ।
मोदक खाकर सलिल, गजानन के गुण गाओ।। -संजीव 'सलिल'
****
दोहा
हर पल हिंदी को जिएँ, दिवस न केवल एक।
मानस मैया मानकर, पूजें सहित विवेक।।
१४-९-२०१८
***
हाइकु गीत
*
बोल रे हिंदी
कान में अमरित
घोल रे हिंदी
*
नहीं है भाषा
है सभ्यता पावन
डोल रे हिंदी
*
कौन हो पाए
उऋण तुझसे, दे
मोल रे हिंदी?
*
आंग्ल प्रेमी जो
तुरत देना खोल
पोल रे हिंदी
*
झूठा है नेता
कहाँ सच कितना?
तोल रे हिंदी
*
मुक्तक
हिंदी का उद्घोष छोड़, उपयोग सतत करना है
कदम-कदम चल लक्ष्य प्राप्ति तक संग-संग बढ़ना है
भेद-भाव की खाई पाट, सद्भाव जगाएँ मिलकर
गत-आगत को जोड़ सके जो वह पीढ़ी गढ़ना है
*
***
गीत
*
देश-हितों हित
जो जीते हैं
उनका हर दिन अच्छा दिन है।
वही बुरा दिन
जिसे बिताया
हिंद और हिंदी के बिन है।
*
अपने मन में
झाँक देख लें
क्या औरों के लिए किया है?
या पशु, सुर,
असुरों सा जीवन
केवल निज के हेतु जिया है?
क्षुधा-तृषा की
तृप्त किसी की,
या अपना ही पेट भरा है?
औरों का सुख छीन
बना जो धनी
कहूँ सच?, वह निर्धन है।
*
जो उत्पादक
या निर्माता
वही देश का भाग्य-विधाता,
बाँट, भोग या
लूट रहा जो
वही सकल संकट का दाता।
आवश्यकता
से ज्यादा हम
लुटा सकें, तो स्वर्ग रचेंगे
जोड़-छोड़ कर
मर जाता जो
सज्जन दिखे मगर दुर्जन है।
*
बल में नहीं
मोह-ममता में
जन्मे-विकसे जीवन-आशा।
निबल-नासमझ
करता-रहता
अपने बल का व्यर्थ तमाशा।
पागल सांड
अगर सत्ता तो
जन-गण सबक सिखा देता है
नहीं सभ्यता
राजाओं की,
आम जनों की कथा-भजन है
***
सलिल-लहर से रश्मि मिले तो, झिलमिल हो जीवन नदिया
रश्मि न हो तम छाये दस-दिश, बंजर हो जग की बगिया
रश्मि सूर्य को पूज्य बनाती, शशि को देती रूप छटा-
रश्मि ज्ञान की मिल जाए तो जीवात्मा होती अभया
*
हिंदी दिवस २०१६
***
गीत
*
छंद बहोत भरमाएँ
राम जी जान बचाएँ
*
वरण-मातरा-गिनती बिसरी
गण का? समझ न आएँ
राम जी जान बचाएँ
*
दोहा, मुकतक, आल्हा, कजरी,
बम्बुलिया चकराएँ
राम जी जान बचाएँ
*
कुंडलिया, नवगीत, कुंडली,
जी भर मोए छकाएँ
राम जी जान बचाएँ
*
मूँड़ पिरा रओ, नींद घेर रई
रहम न तनक दिखाएँ
राम जी जान बचाएँ
*
कर कागज़ कारे हम हारे
नैना नीर बहाएँ
राम जी जान बचाएँ
*
ग़ज़ल, हाइकू, शे'र डराएँ
गीदड़-गधा बनाएँ
राम जी जान बचाएँ
*
ऊषा, संध्या, निशा न जानी
सूरज-चाँद चिढ़ाएँ
राम जी जान बचाएँ
१४-९-२०१६
***
कविता का अनुकथन :
हिंदी के किसी प्रसिद्ध कवि की कविता का चयन कर उसके कथ्य को किसी अन्य कवि की शैली में लिखिए। अपनी रचना भी प्रस्तुत कर सकते हैं। शालीनता और मौलिकता आवश्यक है।
रचनाकार: संजीव
*
शैली : बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'
राधावत, राधसम हो जा, रे मेरे मन,
पेंग-पेंग पायेगा , राधा से जुड़ता तन
शुभदा का दर्शन कर, जग की सुध दे बिसार
हुलस-पुलक सिहरे मन, राधा को ले निहार
नयनों में नयन देखे मन सितार बज
अग-जग की परवा तज कर, जमुना जल मज्जन
राधावत, राधसम हो जा, रे मेरे मन
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मूल पंक्तियाँ:
अंतर्मुख, अंतर्मुख हो जा, रे मेरे मन,
उझक-उझक देखेगा तू किस-किसके लांछन?
कर निज दर्शन, मानव की प्रवृत्ति को निहार
लख इस नभचारी का यह पंकिल जल विहार
तू लख इस नैष्ठि का यह व्यभिचारी विचार,
यह सब लख निज में तू, तब करना मूल्यांकन
अंतर्मुख, अंतर्मुख हो जा, रे मेरे मन.
हम विषपायी जनम के, पृष्ठ १९
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शैली : वीरेंद्र मिश्र
जमुन तट रसवंत मेला,
भूल कर जग का झमेला,
मिल गया मन-मीत, सावन में विहँस मन का।
मन लुभाता संग कैसे,
श्वास बजती चंग जैसे,
हुआ सुरभित कदंबित हर पात मधुवन का।
प्राण कहता है सिहर ले,
देह कहती है बिखर ले,
जग कहे मत भूल तू संग्राम जीवन का।
मन अजाने बोलता है,
रास में रस घोलता है,
चाँदनी के नाम का जप चाँद चुप मनका।
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मूल रचना-
यह मधुर मधुवन्त वेला,
मन नहीं है अब अकेला,
स्वप्न का संगीत कंगन की तरह खनका।
साँझ रंगारंग है ये,
मुस्कुराता अंग है ये,
बिन बुलाये आ गया मेहमान यौवन का।
प्यार कहता है डगर में,
बाह नहीं जाना लहर में,
रूप कहता झूम जा, त्यौहार है तन का।
घट छलककर डोलता है,
प्यास के पट खोलता है,
टूट कर बन जाय निर्झर, प्राण पाहन का।
अविरल मंथन, सितंबर २०००, पृष्ठ ४४
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शैली : डॉ. शरद सिंह
आ झूले पर संग झूलकर, धरा-गगन को एक करे
जमुना जल में बिंब देखकर, जीवन में आनंद भरें
ब्रिज करील वन में गुंजित है, कुहू कुहू कू कोयल की
जैसे रायप्रवीण सुनाने, कजरी मीठी तान भरे
रंग कन्हैया ने पाया है, अंतरिक्ष से-अंबर से
ऊषा-संध्या मौक़ा खोजें, लाल-गुलाबी रंग भरे
बाँहों में बाँहें डालो प्रिय!, मुस्का दो फिर हौले से
कब तक छिपकर मिला करें, हम इस दुनिया से डरे-डरे
चलो कोर्ट मेरिज कर लें या चल मंदिर में माँग भरूँ
बादल की बाँहों में बिजली, देख-देख दिल जला करे
हममें अपनापन इतना है, हैं अभिन्न इक-दूजे से
दूरी तनिक न शेष रहे अब, मिल अद्वैत का पंथ वरे
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मूल रचना-
रात चाँद की गठरी ढोकर, पूरब-पश्चिम एक करे
नींद स्वप्न के पोखर में से, अँजुरी-अँजुरी स्वप्न भरे
घर के आँगन में फ़ैली है, आम-नीम की परछाईं
जैसे आँगन में बिखरे हों, काले-काले पात झरे
उजले रंग की चादर ओढ़े, नदिया सोई है गुपचुप
शीतल लहरें सोच रही हैं, कल क्या होगा कौन डरे?
कोई जब सोते-सोते में, मुस्का दे यूँ हौले से
समझो उसने देख लिये हैं काले आखर हरे-हरे
बड़ा बृहस्पति तारा चमके, जब मुँडेर के कोने पर
ऐसा लगता है छप्पर ही, खड़ा हुआ है दीप धरे
यूँ तो अपनापन सिमटा है, मंद हवा के झोंकें में
फिर भी कोई अपना आये, कहता है मन राम करे!
१४-९-२०१५

शनिवार, 13 सितंबर 2025

रानी लक्ष्मी बाई, झाँसी


रानी लक्ष्मी बाई की अंतिम लड़ाई  
अंग्रेज़ों की तरफ़ से कैप्टन रॉड्रिक ब्रिग्स पहला शख़्स था जिसने रानी लक्ष्मीबाई को अपनी आँखों से लड़ाई के मैदान में लड़ते हुए देखा.

उन्होंने घोड़े की रस्सी अपने दाँतों से दबाई हुई थी. वो दोनों हाथों से तलवार चला रही थीं और एक साथ दोनों तरफ़ वार कर रही थीं.

उनसे पहले एक और अंग्रेज़ जॉन लैंग को रानी लक्ष्मीबाई को नज़दीक से देखने का मौका मिला था, लेकिन लड़ाई के मैदान में नहीं, उनकी हवेली में.

जब दामोदर के गोद लिए जाने को अंग्रेज़ों ने अवैध घोषित कर दिया तो रानी लक्ष्मीबाई को झाँसी का अपना महल छोड़ना पड़ा था.

उन्होंने एक तीन मंज़िल की साधारण सी हवेली 'रानी महल' में शरण ली थी.

रानी ने वकील जॉन लैंग की सेवाएं लीं जिसने हाल ही में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ एक केस जीता था।लैंग का जन्म ऑस्ट्रेलिया में हुआ था और वो मेरठ में एक अख़बार, 'मुफ़ुस्सलाइट' निकाला करते थेा

रानी से मुलाकात के बारे में लैंग ने लिखा

" रानी लक्ष्मीबाई शामियाने के एक कोने में एक पर्दे के पीछे बैठी हुई थीं. तभी अचानक रानी के दत्तक पुत्र दामोदर ने वो पर्दा हटा दिया.।रानी मध्यम कद की तगड़ी महिला थीं. अपनी युवावस्था में उनका चेहरा बहुत सुंदर रहा होगा, लेकिन अब भी उनके चेहरे का आकर्षण कम नहीं था. मुझे एक चीज़ थोड़ी अच्छी नहीं लगी, उनका चेहरा ज़रूरत से ज़्यादा गोल था. हाँ उनकी आँखें बहुत सुंदर थीं और नाक भी काफ़ी नाज़ुक थी. उनका रंग बहुत गोरा नहीं था. उन्होंने एक भी ज़ेवर नहीं पहन रखा था, सिवाए सोने की बालियों के. उन्होंने सफ़ेद मलमल की साड़ी पहन रखी थी, जिसमें उनके शरीर का रेखांकन साफ़ दिखाई दे रहा था. "

बहरहाल कैप्टन रॉड्रिक ब्रिग्स ने तय किया कि वो ख़ुद आगे जा कर रानी पर वार करने की कोशिश करेंगे.

लेकिन जब-जब वो ऐसा करना चाहते थे, रानी के घुड़सवार उन्हें घेर कर उन पर हमला कर देते थे. उनकी पूरी कोशिश थी कि वो उनका ध्यान भंग कर दें.

कुछ लोगों को घायल करने और मारने के बाद रॉड्रिक ने अपने घोड़े को एड़ लगाई और रानी की तरफ़ बढ़ चले थे.

उसी समय अचानक रॉड्रिक के पीछे से जनरल रोज़ की अत्यंत निपुण ऊँट की टुकड़ी ने एंट्री ली. इस टुकड़ी को रोज़ ने रिज़र्व में रख रखा था.

इसका इस्तेमाल वो जवाबी हमला करने के लिए करने वाले थे. इस टुकड़ी के अचानक लड़ाई में कूदने से ब्रिटिश खेमे में फिर से जान आ गई. रानी इसे फ़ौरन भाँप गईं.

उस लड़ाई में भाग ले रहे जॉन हेनरी सिलवेस्टर ने अपनी किताब 'रिकलेक्शंस ऑफ़ द कैंपेन इन मालवा एंड सेंट्रल इंडिया' में लिखा, "अचानक रानी ज़ोर से चिल्लाई, 'मेरे पीछे आओ.' पंद्रह घुड़सवारों का एक जत्था उनके पीछे हो लिया. वो लड़ाई के मैदान से इतनी तेज़ी से हटीं कि अंग्रेज़ सैनिकों को इसे समझ पाने में कुछ सेकेंड लग गए. अचानक रॉड्रिक ने अपने साथियों से चिल्ला कर कहा, 'दैट्स दि रानी ऑफ़ झाँसी, कैच हर.'"

रानी और उनके साथियों ने भी एक मील ही का सफ़र तय किया था कि कैप्टेन ब्रिग्स के घुड़सवार उनके ठीक पीछे आ पहुंचे. जगह थी कोटा की सराय.

लड़ाई नए सिरे से शुरू हुई. रानी के एक सैनिक के मुकाबले में औसतन दो ब्रिटिश सैनिक लड़ रहे थे. अचानक रानी

के सीने में संगीन लगी . वो तेज़ी से मुड़ीं और अपने ऊपर हमला करने वाले पर पूरी ताकत से तलवार लेकर टूट पड़ीं.

रानी को लगी चोट बहुत गहरी नहीं थी, लेकिन उसमें बहुत तेज़ी से ख़ून निकल रहा था. अचानक घोड़े पर दौड़ते-दौड़ते उनके सामने एक छोटा-सा पानी का झरना आ गया.

उन्होंने सोचा वो घोड़े की एक छलांग लगाएंगी और घोड़ा झरने के पार हो जाएगा. तब उनको कोई भी नहीं पकड़ सकेगा.

उन्होंने घोड़े में एड़ लगाई, लेकिन वो घोड़ा छलाँग लगाने के बजाए इतनी तेज़ी से रुका कि वो क़रीब क़रीब उसकी गर्दन के ऊपर लटक गईं.

उन्होंने फिर एड़ लगाई, लेकिन घोड़े ने एक इंच भी आगे बढ़ने से इंकार कर दिया. तभी उन्हें लगा कि उनकी कमर में बाई तरफ़ किसी ने बहुत तेज़ी से वार हुआ है.

उनको राइफ़ल की एक गोली लगी थी. रानी के बांए हाथ की तलवार छूट कर ज़मीन पर गिर गई.

उन्होंने उस हाथ से अपनी कमर से निकलने वाले ख़ून को दबा कर रोकने की कोशिश की.

एंटोनिया फ़्रेज़र अपनी पुस्तक, 'द वॉरियर क्वीन' में लिखती हैं, "तब तक एक अंग्रेज़ रानी के घोड़े की बगल में पहुंच चुका था. उसने रानी पर वार करने के लिए अपनी तलवार ऊपर उठाई. रानी ने भी उसका वार रोकने के लिए दाहिने हाथ में पकड़ी अपनी तलवार ऊपर की. उस अंग्रेज़ की तलवार उनके सिर पर इतनी तेज़ी से लगी कि उनका माथा फट गया और वो उसमें निकलने वाले ख़ून से लगभग अंधी हो गईं."

तब भी रानी ने अपनी पूरी ताकत लगा कर उस अंग्रेज़ सैनिक पर जवाबी वार किया. लेकिन वो सिर्फ़ उसके कंधे को ही घायल कर पाई. रानी घोड़े से नीचे गिर गईं.

तभी उनके एक सैनिक ने अपने घोड़े से कूद कर उन्हें अपने हाथों में उठा लिया और पास के एक मंदिर में ले लाया. रानी तब तक जीवित थीं.

मंदिर के पुजारी ने उनके सूखे हुए होठों को एक बोतल में रखा गंगा जल लगा कर तर किया. रानी बहुत बुरी हालत में थीं. धीरे-धीरे वो अपने होश खो रही थीं.

उधर, मंदिर के अहाते के बाहर लगातार फ़ायरिंग चल रही थी. अंतिम सैनिक को मारने के बाद अंग्रेज़ सैनिक समझे कि उन्होंने अपना काम पूरा कर दिया है.

तभी रॉड्रिक ने ज़ोर से चिल्ला कर कहा, "वो लोग मंदिर के अंदर गए हैं. उन पर हमला करो. रानी अभी भी ज़िंदा है."

उधर, पुजारियों ने रानी के लिए अंतिम प्रार्थना करनी शुरू कर दी थी. रानी की एक आँख अंग्रेज़ सैनिक की कटार से लगी चोट के कारण बंद थी.

उन्होंने बहुत मुश्किल से अपनी दूसरी आँख खोली. उन्हें सब कुछ धुंधला दिखाई दे रहा था और उनके मुंह से रुक-रुक कर शब्द निकल रहे थे, "....दामोदर... मैं उसे तुम्हारी... देखरेख में छोड़ती हूँ... उसे छावनी ले जाओ... दौड़ो उसे ले जाओ."

बहुत मुश्किल से उन्होंने अपने गले से मोतियों का हार निकालने की कोशिश की. लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाई और फिर बेहोश हो गईं.

मंदिर के पुजारी ने उनके गले से हार उतार कर उनके एक अंगरक्षक के हाथ में रख दिया, "इसे रखो... दामोदर के लिए."

रानी की साँसे तेज़ी से चलने लगी थीं. उनकी चोट से ख़ून निकल कर उनके फेफड़ों में घुस रहा था. धीरे-धीरे वो डूबने लगी थीं. अचानक जैसे उनमें फिर से जान आ गई.

वो बोलीं, "अंग्रेज़ों को मेरा शरीर नहीं मिलना चाहिए." ये कहते ही उनका सिर एक ओर लुड़क गया. उनकी साँसों में एक और झटका आया और फिर सब कुछ शांत हो गया.

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अपने प्राण त्याग दिए थे. वहाँ मौजूद रानी के अंगरक्षकों ने आनन-फ़ानन में कुछ लकड़ियाँ जमा की और उन पर रानी के पार्थिव शरीर को रख आग लगा दी थी.

उनके चारों तरफ़ रायफ़लों की गोलियों की आवाज़ बढ़ती चली जा रही थी. मंदिर की दीवार के बाहर अब तक सैकड़ों ब्रिटिश सैनिक पहुंच गए थे.

मंदिर के अंदर से सिर्फ़ तीन रायफ़लें अंग्रेज़ों पर गोलियाँ बरसा रही थीं. पहले एक रायफ़ल शांत हुई... फिर दूसरी और फिर तीसरी रायफ़ल भी शांत हो गई.

जब अंग्रेज़ मंदिर के अंदर घुसे तो वहाँ से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी. सब कुछ शांत था. सबसे पहले रॉड्रिक ब्रिग्स अंदर घुसे.

वहाँ रानी के सैनिकों और पुजारियों के कई दर्जन रक्तरंजित शव पड़े हुए थे. एक भी आदमी जीवित नहीं बचा था. उन्हें सिर्फ़ एक शव की तलाश थी.

तभी उनकी नज़र एक चिता पर पड़ी जिसकीं लपटें अब धीमी पड़ रही थीं. उन्होंने अपने बूट से उसे बुझाने की कोशिश की.

तभी उसे मानव शरीर के जले हुए अवशेष दिखाई दिए. रानी की हड्डियाँ क़रीब-क़रीब राख बन चुकी थीं.

इस लड़ाई में लड़ रहे कैप्टन क्लेमेंट वॉकर हेनीज ने बाद में रानी के अंतिम क्षणों का वर्णन करते हुए लिखा, "हमारा विरोध ख़त्म हो चुका था. सिर्फ़ कुछ सैनिकों से घिरी और हथियारों से लैस एक महिला अपने सैनिकों में कुछ जान फूंकने की कोशिश कर रही थी. बार-बार वो इशारों और तेज़ आवाज़ से हार रहे सैनिकों का मनोबल बढ़ाने का प्रयास करती थी, लेकिन उसका कुछ ख़ास असर नहीं पड़ रहा था. कुछ ही मिनटों में हमने उस महिला पर भी काबू पा लिया. हमारे एक सैनिक की कटार का तेज़ वार उसके सिर पर पड़ा और सब कुछ समाप्त हो गया. बाद में पता चला कि वो महिला और कोई नहीं स्वयं झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई थी."

रानी के बेटे दामोदर को लड़ाई के मैदान से सुरक्षित ले जाया गया. इरा मुखोटी अपनी किताब 'हीरोइंस' में लिखती हैं, "दामोदर ने दो साल बाद 1860 में अंग्रेज़ों के सामने आत्म समर्पण किया. बाद में उन्हें अंग्रेज़ों ने पेंशन भी दी. 58 साल की उम्र में उनकी मौत हुई. जब वो मरे तो वो पूरी तरह से कंगाल थे. उनके वंशज अभी भी इंदौर में रहते हैं और अपने आप को 'झाँसीवाले' कहते हैं."

दो दिन बाद जयाजीराव सिंधिया ने इस जीत की खुशी में जनरल रोज़ और सर रॉबर्ट हैमिल्टन के सम्मान में ग्वालियर में भोज दिया.

रानी की मौत के साथ ही विद्रोहियों का साहस टूट गया और ग्वालियर पर अंग्रेज़ों का कब्ज़ा हो गया.

नाना साहब वहाँ से भी बच निकले, लेकिन तात्या टोपे के साथ उनके खास मित्र नवाड़ के राजा ने ग़द्दारी की.

तात्या टोपे पकड़े गए और उन्हें ग्वालियर के पास शिवपुरी ले जा कर एक पेड़ से फाँसी पर लटका दिया गया.

सितंबर १३, सुंदरी सवैया, हिंदी ग़ज़ल, दोहा, कुण्डलिया,

सलिल सृजन सितंबर १३
*
सुंदरी सवैया
प्रियदर्शिनि के प्रिय दर्शन पा गति-यति-लय-रस नव धार बहेगी।
कर काव्य कामिनी का थामा, वामा गुण गा तब जान बचेगी।।
विधि-हरि-हर त्रय है मुश्किल में, नारद जिह्वा क्या कथा कहेगी।
रस हरष बरस जस कथा कहे या अपजस सुन निज दृष्टि झुकेगी।।
१३-९-२०२३
***
गीत सम्राट राकेश खंडेलवाल की दौहित्री आहना के स्वागत में-
गीत
*
एक नन्हीं परी का धरा अवतरण
पर्व उल्लास का ऐ परिंदो! उड़ो
कलरवों से गुँजा दो दिशाएँ सभी
लक्ष्य पाए बिना तुम न पीछे मुड़ो
ऐ सलिल धार कलकल सुनाओ मधुर
हो लहर का लहर से मिलन रात-दिन
झूम गाओ पवन गीत सोहर अथक
पर्ण दो ताल, कलियाँ नचें ताक धिन
ऐ घटाओं गगन से उतर आओ री!
छाँह पल-पल करो, वृष्टि कर स्नेह की
रश्मि ऊषा लिए भाल पर कर तिलक
दुपहरी से कहे आज जी जिंदगी
साँझ हो पुरनमी, हो नशीली निशा
आहना के कोपलों का चुंबन करे
आह ना एक भी भाग्य में हो लिखी
कहकहों की कहकशा निछावर करे
चाँदनी कज्जरी दे डिठौना लगा
धूप नजरें उतारे विहँस रूप की
नाच राकेश रवि को लिए साथ में
ईश को शत नमन पूर्ण आकांक्षा की
देख मुखड़ा नया नित्य मुखड़ा बने
अंतरा अंतरा गीत सलिला बहे
आहना मुस्कुरा नव ऋचाएँ रचे
खिलखिला मन हरे, नव कहानी कहे
१३.९.२०२१
***
हिंदी ग़ज़ल (मुक्तिका)
*
परदेशी भाषा रुचे, जिनको वे जन सूर.
जनवाणी पर छा रहा, कैसा अद्भुत नूर
*
जन आकांक्षा गीत है, जनगण-हित संतूर
अंग्रेजी-प्रेमी कुढ़ें, देख रहे हैं घूर
*
हिंदी जग-भाषा बने, विधि को है मंजूर
उन्नत पिंगल व्याकरण, छंद निहित भरपूर
*
अंग्रेजी-उर्दू नशा, करते मिले हुजूर
हिंदी-रोटी खा रहे, सत्य नहीं मंजूर
*
हिंदी-प्रेमी हो रहे, 'सलिल' हर्ष से चूर
कल्प वृक्ष पिंगल रहे, नित्य कलम ले झूर
*
छंद - दोहा
१३-९-२०१९
***
दोहा लेखन विधान
१. दोहा के सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व हैं कथ्य व लय। कथ्य को सर्वोत्तम रूप में प्रस्तुत करने के लिए ही विधा (गद्य-पद्य, छंद आदि) का चयन किया जाता है। कथ्य को 'लय' में प्रस्तुत किया जाने पर 'लय' के अनुसार छंद-निर्धारण होता है। छंद-लेखन हेतु विधान से सहायता मिलती है। रस, अलंकार, बिंब, प्रतीक, मिथक आदि लालित्यवर्धन हेतु है। कथ्य, लय व विधान से न्याय जरूरी है।
२. दोहा द्विपदिक छंद है। दोहा में दो पंक्तियाँ (पद) होती हैं। हर पद में दो चरण होते हैं।
३. दोहा मुक्तक छंद है। कथ्य (जो बात कहना चाहें वह) एक दोहे में पूर्ण हो जाना चाहिए। सामान्यत: प्रथम चरण में कथ्य का उद्भव, द्वितीय-तृतीय चरण में विस्तार तथा चतुर्थ चरण में उत्कर्ष या समाहार होता है।
४. विषम (पहला, तीसरा) चरण में १३-१३ तथा सम (दूसरा, चौथा) चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं।
५. तेरह मात्रिक पहले तथा तीसरे चरण के आरंभ में एक शब्द में जगण (लघु गुरु लघु) वर्जित होता है। पदारंभ में 'इसीलिए' वर्जित, 'इसी लिए' मान्य।
६. विषम चरणांत में 'सरन' तथा सम चरणांत में 'जात' से लय साधना सरल होता है है किंतु अन्य गण-संयोग वर्जित नहीं हैं।
७. विषम कला से आरंभ दोहे के विषम चरण मेंकल-बाँट ३ ३ २ ३ २ तथा सम कला से आरंभ दोहे के विषम चरण में में कल बाँट ४ ४ ३ २ तथा सम चरणों की कल-बाँट ४ ४.३ या ३३ ३ २ ३ होने पर लय सहजता से सध सकती है। अन्य कल बाँट वर्जित नहीं है।
८. हिंदी दोहाकार हिंदी के व्याकरण तथा मात्रा गणना नियमों का पालन करें। दोहा में वर्णिक छंद की तरह लघु को गुरु या गुरु को लघु पढ़ने की छूट नहीं होती।
९. आधुनिक हिंदी / खड़ी बोली में खाय, मुस्काय, आत, भात, आब, जाब, डारि, मुस्कानि, हओ, भओ जैसे देशज / आंचलिक क्रिया-रूपों का उपयोग न करें किन्तु अन्य उपयुक्त आंचलिक शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है। बोलियों में दोहा रचना करते समय उस बोली का यथासंभव शुद्ध-सरल रूप व्यवहार में लाएँ।
१०. श्रेष्ठ दोहे में अर्थवत्ता, लाक्षणिकता, संक्षिप्तता, मार्मिकता (मर्मबेधकता), आलंकारिकता, स्पष्टता, पूर्णता, सरलता व सरसता हो।
११. दोहे में संयोजक शब्दों और, तथा, एवं आदि का प्रयोग यथासंभव न करें। औ', ना, इक वर्जित, अरु, न, एक सही।
१२. दोहे में यथासंभव अनावश्यक शब्द का प्रयोग न हो। शब्द-चयन ऐसा हो जिसके निकालने या बदलने पर दोहा अधूरा सा लगे।
१३. दोहा में विराम चिन्हों का प्रयोग यथास्थान अवश्य करें।
१४. दोहे में कारक (ने, को, से, के लिए, का, के, की, में, पर आदि) का प्रयोग कम से कम हो।
१५. दोहा सम तुकांती छंद है। सम चरण के अंत में सामान्यत: वार्णिक समान तुक आवश्यक है। संगीत की बंदिशों, श्लोकों आदि में मात्रिक समान्त्तता भी राखी जाती रही है।
१६. दोहा में लय का महत्वपूर्ण स्थान है। लय के बिना दोहा नहीं कहा जा सकता। लयभिन्नता स्वीकार्य है लयभंगता नहीं।
*
मात्रा गणना नियम:
१. किसी ध्वनि-खंड को बोलने में लगनेवाले समय के आधार पर मात्रा गिनी जाती है।
२. कम समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की एक तथा अधिक समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की दो मात्राएँ गिनी जाती हैंं। तीन मात्रा के शब्द ॐ, ग्वं आदि संस्कृत में हैं, हिंदी में नहीं।
३. अ, इ, उ, ऋ तथा इन मात्राओं से युक्त वर्ण की एक मात्रा गिनें। उदाहरण- अब = ११ = २, इस = ११ = २, उधर = १११ = ३, ऋषि = ११= २, उऋण १११ = ३ आदि।
४. शेष वर्णों की दो-दो मात्रा गिनें। जैसे- आम = २१ = ३, काकी = २२ = ४, फूले २२ = ४, कैकेई = २२२ = ६, कोकिला २१२ = ५, और २१ = ३आदि।
५. शब्द के आरंभ में आधा या संयुक्त अक्षर हो तो उसका कोई प्रभाव नहीं होगा। जैसे गृह = ११ = २, प्रिया = १२ =३ आदि।
६. शब्द के मध्य में आधा अक्षर हो तो उसे पहले के अक्षर के साथ गिनें। जैसे- क्षमा १+२, वक्ष २+१, विप्र २+१, उक्त २+१, प्रयुक्त = १२१ = ४ आदि।
७. रेफ को आधे अक्षर की तरह गिनें। बर्रैया २+२+२आदि।
८. अपवाद स्वरूप कुछ शब्दों के मध्य में आनेवाला आधा अक्षर बादवाले अक्षर के साथ गिना जाता है। जैसे- कन्हैया = क+न्है+या = १२२ = ५आदि।
९. अनुस्वर (आधे म या आधे न के उच्चारण वाले शब्द) के पहले लघु वर्ण हो तो गुरु हो जाता है, पहले गुरु होता तो कोई अंतर नहीं होता। यथा- अंश = अन्श = अं+श = २१ = ३. कुंभ = कुम्भ = २१ = ३, झंडा = झन्डा = झण्डा = २२ = ४आदि।
१०. अनुनासिक (चंद्र बिंदी) से मात्रा में कोई अंतर नहीं होता। धँस = ११ = २आदि। हँस = ११ =२, हंस = २१ = ३ आदि।
मात्रा गणना करते समय शब्द का उच्चारण करने से लघु-गुरु निर्धारण में सुविधा होती है। इस सारस्वत अनुष्ठान में आपका स्वागत है। कोई शंका होने पर संपर्क करें।
१३-९-२०१७
***
समस्या पूर्ति
किसी अधर पर नहीं
*
किसी अधर पर नहीं शिवा -शिव की महिमा है
हरिश्चन्द्र की शेष न किंचित भी गरिमा है
विश्वनाथ सुनते अजान नित मन को मारे
सीढ़ी , सांड़, रांड़ काशी में, नहीं क्षमा है
*
किसी अधर पर नहीं शेष है राम नाम अब
राजनीति हैं खूब, नहीं मन में प्रणाम अब
अवध सत्य का वध कर सीता को भेजे वन
जान न पाया नेताजी को, हैं अनाम अब
*
किसी अधर पर नहीं मिले मुस्कान सुहानी
किसी डगर पर नहीं किशन या राधा रानी
नन्द-यशोदा, विदुर-सुदामा कहीं न मिलते
कंस हर जगह मुश्किल उनसे जान बचानी
*
किसी अधर पर नहीं प्रशंसा शेष की
इसकी, उसकी निंदा ही हो रही न किसकी
दलदल मचा रहे हैं दल, संसद में जब-तब
हुआ उपेक्षित सुनता कोई न सिसकी
*
किसी अधर पर नहीं सोहती हिंदी भाषा
गलत बोलते अंग्रेजी, खुद बने तमाशा
माँ को भूले। पैर पत्नी के दबा रहे हैं
जिनके सर पर है उधार उनसे क्या आशा?
*
किसी अधर पर नहीं परिश्रम-प्रति लगाव है
आसमान पर मँहगाई सँग चढ़े भाव हैं
टैक्स बढ़ा सरकारें लूट रहीं जनता को
दुष्कर होता जाता अब करना निभाव है
*
किसी अधर पर नहीं शेष अब जन-गण-मन है
स्त्री हो या पुरुष रह गया केवल तन है
माध्यम जन को कठिन हुआ है जीना-मरना
नेता-अभिनेता-अफसर का हुआ वतन है
*
क्षणिका
*
इसने दी
ईद की बधाई।
भाग, जिबह कर देगा
बकरे की आवाज़ आई।
***
मैं
न खुद को जान पाया
आज तक।
अजाना भी हूँ नहीं
मैं
सत्य कहता।
***
मुक्तक
*
काश! कभी हम भी सुधीर हो पाते
संघर्षों में जीवन-जय गुंजाते
गगन नापते, बूझ दिशा अनबूझी
लौट नीड पर ग़ज़लें-नगमे गाते
*
माँ मरती ही नही, जिया करती है संतानों में
श्वास-आस अपने -सपने कब उसे भूल पाते हैं
हो विदेह वह साथ सदा, संकट में संबल देती-
धन्य वही सुत जो मैया के गुण आजीवन गाते
*
सुर जीत रहे तो अ-सुर हार कर खुद बाहर हो जायेंगे
गीत-गुहा में स-सुर साधना कर नवगीत सुनाएँगे
हर दिन होता जन्म दिवस है, नींद मरण जो मान रहे
वे सूरज सँग जाग, करें श्रम, अपनी मन्ज़िल पाएँगे
*
सुर जीत रहे तो अ-सुर हार कर खुद बाहर हो जायेंगे
गीत-गुहा में स-सुर साधना कर नवगीत सुनाएँगे
हर दिन होता जन्म दिवस है, नींद मरण जो मान रहे
वे सूरज सँग जाग, करें श्रम, अपनी मन्ज़िल पाएँगे
***
कुण्डलिया
निर्झर -
नदी न एक से, बिलकुल भिन्न स्वभाव
इसमें चंचलता अधिक, उसमें है ठहराव
उसमें है ठहराव, तभी पूजी जाती है
चंचलता जीवन में, नए रंग लाती है
कहे 'सलिल' बहते चल,हो न किसी पर निर्भर
रुके न कविता-क्रम, नदिया हो या हो निर्झर
*
परमपिता ने जो रचा, कहें नहीं बेकार
ज़र्रे-ज़र्रे में हुआ, ईश्वर ही साकार
ईश्वर ही साकार, मूलतः: निराकार है
व्यक्त हुआ अव्यक्त, दैव ही गुणागार है
आता है हर जीव, जगत में समय बिताने
जाता अपने आप, कहा जब परमपिता ने
१३-९-२०१६
***
भावांजलि-
मनोवेदना:
ओ ऊपरवाले! नीचे आ
क्या-क्यों करता है तनिक बता?
असमय ले जाता उम्मीदें
क्यों करता है अक्षम्य खता?
कितने ही सपने टूट गये
तुम माली बगिया लूट गये.
क्यों करूँ तुम्हारा आराधन
जब नव आशा घट फूट गये?
मुस्कान मृदुल, मीठी बोली
रससिक्त हृदय की थी खोली
कर ट्रस्ट बनाया ट्रस्ट मगर
संत्रस्त किया, खाली ओली.
मैं जाऊँ कहाँ? निष्ठुर! बोलो,
तज धरा न अंबर में डोलो.
क्या छिपा तुम्हारी करनी में
कुछ तो रहस्य हम पर खोलो.
उल्लास-आसमय युवा रक्त
हिंदी का सुत, नवगीत-भक्त
खो गया कहाँ?, कैसे पायें
वापिस?, क्यों इतने हम अशक्त?
ऐ निर्मम! ह्रदय नहीं काँपा?
क्यों शोक नहीं तुमने भाँपा.
हम सब रोयेंगे सिसक-सिसक
दस दिश में व्यापेगा स्यापा.
संपूर्ण क्रांति का सेनानी,
वह जनगणमन का अभिमानी.
माटी का बेटा पतझड़ बिन
झड़ गया मौन ही बलिदानी.
कितने निर्दय हो जगत्पिता?
क्या पाते हो तुम हमें सता?
असमय अवसान हुआ है क्यों?
क्यों सके नहीं तुम हमें जता?
क्यों कर्क रोग दे बुला लिया?
नव आशा दीपक बुझा दिया.
चीत्कार कर रहे मन लेकिन
गीतों ने बेबस अधर सिया.
बोले थे: 'आनेवाले हो',
कब जाना, जानेवाले हो?
मन कलप रहा तुमको खोकर
यादों में रहनेवाले हो.
श्रीकांत! हुआ श्रीहीन गीत
तुम बिन व्याकुल हम हुए मीत.
जीवन तो जीना ही होगा-
पर रह न सकेंगे हम अभीत।
***
(जे. पी. की संपूर्ण क्रांति के एक सिपाही, नवगीतकार भाई श्रीकांत का कर्क रोग से असमय निधन हो गया. लगभग एक वर्ष से उनकी चिकित्सा चल रही थी. हिन्द युग्म पर २००९ में हिंदी छंद लेखन सम्बन्धी कक्षाओं में उनसे परिचय हुआ था. गत वर्ष नवगीत उत्सव लखनऊ में उच्च ज्वर तथा कंठ पीड़ा के बावजूद में समर्पित भावना से अतिथियों को अपने वाहन से लाने-छोड़ने का कार्य करते रहे. न वरिष्ठता का भान, न कष्ट का बखान। मेरे बहुत जोर देने पर कुछ औषधि ली और फिर काम पर. तुरंत बाद वे स्थांनांतरित होकर बड़ोदरा गये , जहाँ जांच होने पर कर्क रोग की पुष्टि हुई. टाटा मेमोरियल अस्पताल मुम्बई में चिकित्सा पश्चात निर्धारित थिरैपी पूर्ण होने के पूर्व ही वे बीड़ा हो गये. इस स्थिति में भी उन्होंने अपनी जमीन और धन का दान कर हिंदी के उन्नयन हेतु एक न्यास (ट्रस्ट) की स्थापना की. स्वस्थ होकर वे हिंदी के लिये समर्पित होकर कार्य करना चाहते थे किन्तु???)
***
विमर्श:
मेरे विचार में दो पैमाने हैं... जिन पर रचनाकार को खुद को परखना चाहिए। पहला क्या वह खराब लिख रहा है और ईमानदार प्रयास करने पर भी सुधार नहीं हो रहा है? यदि ऐसा है तो कोई कितनी भी तारीफ करे, उसकी प्रतिभा किसी अन्य क्षेत्र के लिए है उसे वह क्षेत्र तलाशना चाहिए।
दूसरा यदि वह खराब नहीं लिख रहा है और लेखन में निखार आ रहा है तो कितनी भी आलोचना करे उसे लिखते रहना चाहिए।
१३-९-२०१५

शुक्रवार, 12 सितंबर 2025

सितंबर १२, सॉनेट, तुम, गणेश विसर्जन,

सलिल सृजन सितंबर १२
० 
पूर्णिका 
० 
तुमसे जीवन फुलबगिया है
श्वास-श्वास सुरभित डलिया है
.
धूप-छाँव सम सुख-दुख हमने
मिल झेले सामना किया है
.
खूब मिला आशीष बड़ों का
छोटों ने सम्मान दिया है
.
प्रभु संग-साथ बनाए रखना
साथ रहें संकल्प लिया है
.
हाथ हाथ में लिए साथ रह
हमने जीवन विहँस जिया है
.
संजीवित है सफल साधना
पुलकित हर पल रहा हिया है
.
जब जब घेरा अँधियारों ने
हमने बाला तभी दिया है
१२.९.२०२५
०००
सॉनेट
तुम
तुमको शत-शत, साभार नमन
तुमको अर्पित निज अंतर्मन
तुम ही फागुन, तुम ही सावन
तुम ही श्वासों में पली लगन
तुम बिन मरुथल होता जीवन
तुम संग रहीं तो है मधुवन
तुम बनीं नयन, तुम बनीं वचन
तुमको पा जीवन है जीवन
तुम कहो, कौन है तुम सा धन
तुम साध्य, तुम्हीं तो हो साधन
तुम ही वादन, तुम ही गायन
तुम बिन हो पाता नहीं सृजन
तुम-मैं हम हैं कर विविध जतन
शत वर्ष हँसो, महकाओ चमन
१२-९-२०२२
●●●
मुक्तक
गीत पूर्णिमा जगमग तब हो जब राकेश प्रकाशित हो।
शब्द भाव रस लय मय ध्वनि से त्रिभुवन सकल निनादित हो।।
कलकल कलरव सुनकर श्रोता झूमे, करतल ध्वनि गूँजे-
मन से मन मिल सके, प्राण संप्राणित मुदित।।
***
एक विमर्श
विसर्जन क्यों और कैसे?
*
अनंत चतुर्दशी गणेश विसर्जन और पुनरागमन प्रार्थना का पर्व।
चतुर्थी पर स्थापना, दस दिन पूजन और फिर विसर्जन के नाम पर प्रतिभाओं की दुर्दशा और अकल्पनीय प्रदूषण।
यह त्रासदी नव दुर्गा महोत्सव पर दोहराई जाएगी।
शोचनीय है कि जिन्हें विघ्नेश कहकर उनसे विघ्न निवारण हेतु प्रार्थना की, उन्हीं को विघ्नेश में डाल दिया। मूर्तियों की दुर्दशा करने से बेहतर है परंपरा का पालन करते हुए हल्दी और सुपारी में दैवीय शक्तियों का आव्हान-पूजन कर विसर्जन हो। इससे न तो प्रदूषण फैलेगा, न मूर्तियों की दुर्दशा होगी।
पुष्प तथा अन्य पूजन सामग्री महानगरों में नगर निगम वालों को दें तथा गाँवों में एक गड्ढा खोदकर उसमें दबा दें।
प्लास्टिक, रसायनों, एस्बेस्टस, प्लास्टर अॉफ पेरिस आदि का प्रयोग कतई न करें।
मूर्ति पूजन में श्रद्धा हो तो धातु (सोना, चाँदी, ताँबा, पीतल, अष्टधातु, पत्थर या एल्यूमीनियम) की मूर्ति का पूजन करें। इसे पूरे वर्ष भी पूज सकते हैं और विसर्जन के बाद अगले वर्ष के लिए सुरक्षित भी रखते सकते हैं। इससे घर वर्ष मूर्ति पर और उसे लाने-ले जाने में होने वाला खर्च भी बचेगी जो मँहगाई का मार कुछ कम करेगा।
अन्य उपाय मिट्टी की ६ इंच तक की मूर्ति को विसर्जन पश्चात घर में ही स्वच्छ जल में विसर्जित कर उसे पेड़-पौधों का जड़ में डाल देना है।
चित्र का पूजन भी समान फल देता है। इसे विसर्जित न करें।
सनातन धर्म की मूल परंपरा प्रतीक पूजन है। वैष्णव देवी जैसे पुरातन स्थलों पर अनगढ़ पाषाण पिंड ही पूजे जाते हैं। यह सर्वमान्य है कि ईश्वर निराकार हैं। 'जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी' के अनुसार भक्त अपने इष्ट को रूपाकार देकर पूजते हैं। कई बार माताएँ पुत्र को पुत्री के रूप में अथवा पुत्री को पुत्री के रूप में सज्जित कर अपनी मनस्तुष्टि करती हैं । यही भाव भक्त से प्रतिमा बनाता है। इसीलिए कहा जाता है 'भगत के बस में हैं भगवान। भगवान सौजन्यता वश भक्त के 'बस' में होने पर भी 'बेबस' नहीं है। भक्त अपने इष्ट की प्रतिमा की दुर्दशा का निमित्त बनकर अपने ही कष्ट को आमंत्रित करता है।
आवश्यक है कि हम दैवीय शक्तियों का आह्वान अपने अंतर्मन में करें। प्रतिमा पूजन कम और लघ्वाकारी विग्रहों का हो। शिवलिंग पूजन प्रतीक पूजन का कालजयी उदाहरण है।
सनातन धर्म की परंपरानुसार बुद्ध ने भी मूर्ति का निषेध किया, भक्तों ने सबसे अधिक मूर्तियाँ बुद्ध की बनाकर समझा कि महान कार्य किया पर काल साक्षी है कि वे मूर्तियाँ तोड़ा गईं, बौद्ध धर्म का पराभव हुआ। पुरातात्त्विक अवशेषों में बड़ी संख्या में मूर्तियों के ध्वंसावशेषों को देखकर भी हम उनकी निस्सारता न समझें तो हमारी समझ का ही दोष है।
मूर्तियों के निर्माण में लगने वाला श्रम और सामग्री किसी जीवनोपयोगी निर्माण में लगे तो सबका भला होगा। 'मंदिर मंदिर मूरत तेरी, कहुँ न देखी सूरत तेरी' का अर्थ समझ मम मंदिर में देव स्थापना कर सकें तो विसर्जन करने का मन ही न होगा।
क्या हम प्रतिमा के स्थान पर देव और दिव्यता को पूजकर दैवीय गुणों से युक्त हो सकेंगे?
अनंत चौदस
१२-९-२०१९
७९९९५५९६१८
***
दोहा दुनिया
जो अच्छा उसको दिखे, अच्छा सब संसार
धन्य भाग्य जो पा रहा, 'सलिल' स्नेह उपहार
*
शरण मिली कमलेश की, 'सलिल' हुआ है धन्य
दिव्या कविता सा नहीं, दूज मीत अनन्य
*
शब्दों के संसार में, मिल जाते हैं मीत
पता न चलता समय का, कब जाता दिन बीत
* 
हिंदी दिवस पर विशेष गीत:
सारा का सारा हिंदी है
*
जो कुछ भी इस देश में है, सारा का सारा हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....
मणिपुरी, कथकली, भरतनाट्यम, कुचपुडी, गरबा अपना है.
लेजिम, भंगड़ा, राई, डांडिया हर नूपुर का सपना है.
गंगा, यमुना, कावेरी, नर्मदा, चनाब, सोन, चम्बल,
ब्रम्हपुत्र, झेलम, रावी अठखेली करती हैं प्रति पल.
लहर-लहर जयगान गुंजाये, हिंद में है और हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरजा सबमें प्रभु एक समान.
प्यार लुटाओ जितना, उतना पाओ औरों से सम्मान.
स्नेह-सलिल में नित्य नहाकर, निर्माणों के दीप जलाकर.
बाधा, संकट, संघर्षों को गले लगाओ नित मुस्काकर.
पवन, वन्हि, जल, थल, नभ पावन, कण-कण तीरथ, हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....
जै-जैवन्ती, भीमपलासी, मालकौंस, ठुमरी, गांधार.
गजल, गीत, कविता, छंदों से छलक रहा है प्यार अपार.
अरावली, सतपुडा, हिमालय, मैकल, विन्ध्य, उत्तुंग शिखर.
ठहरे-ठहरे गाँव हमारे, आपाधापी लिए शहर.
कुटी, महल, अँगना, चौबारा, हर घर-द्वारा हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....
सरसों, मका, बाजरा, चाँवल, गेहूँ, अरहर, मूँग, चना.
झुका किसी का मस्तक नीचे, 'सलिल' किसी का शीश तना.
कीर्तन, प्रेयर, सबद, प्रार्थना, बाईबिल, गीता, ग्रंथ, कुरान.
गौतम, गाँधी, नानक, अकबर, महावीर, शिव, राम महान.
रास कृष्ण का, तांडव शिव का, लास्य-हास्य सब हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....
ट्राम्बे, भाखरा, भेल, भिलाई, हरिकोटा, पोकरण रतन.
आर्यभट्ट, एपल, रोहिणी के पीछे अगणित छिपे जतन.
शिवा, प्रताप, सुभाष, भगत, रैदास कबीरा, मीरा, सूर.
तुलसी. चिश्ती, नामदेव, रामानुज लाये खुदाई नूर.
रमण, रवींद्र, विनोबा, नेहरु, जयप्रकाश भी हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....
***
दोहा सलिला:
हिंदी वंदना
*
हिंदी भारत भूमि की आशाओं का द्वार.
कभी पुष्प का हार है, कभी प्रचंड प्रहार..
*
हिन्दीभाषी पालते, भारत माँ से प्रीत.
गले मौसियों से मिलें, गायें माँ के गीत..
हृदय संस्कृत- रुधिर है, हिंदी- उर्दू भाल.
हाथ मराठी-बांग्ला, कन्नड़ आधार रसाल..
*
कश्मीरी है नासिका, तमिल-तेलुगु कान.
असमी-गुजराती भुजा, उडिया भौंह-कमान..
*
सिंधी-पंजाबी नयन, मलयालम है कंठ.
भोजपुरी-अवधी जिव्हा, बृज रसधार अकुंठ..
*
सरस बुंदेली-मालवी, हल्बी-मगधी मीत.
ठुमक बघेली-मैथली, नाच निभातीं प्रीत..
*
मेवाड़ी है वीरता, हाडौती असि-धार,
'सलिल'अंगिका-बज्जिका, प्रेम सहित उच्चार ..
*
बोल डोंगरी-कोंकड़ी, छत्तिसगढ़िया नित्य.
बुला रही हरियाणवी, ले-दे नेह अनित्य..
*
शेखावाटी-निमाड़ी, गोंडी-कैथी सीख.
पाली, प्राकृत, रेख्ता, से भी परिचित दीख..
*
डिंगल अरु अपभ्रंश की, मिली विरासत दिव्य.
भारत का भाषा भावन, सकल सृष्टि में भव्य..
*
हिंदी हर दिल में बसी, है हर दिल की शान.
सबको देती स्नेह यह, सबसे पाती मान..
***
नवगीत:
हिंदी की जय हो...
*
हिंद और
हिंदी की जय हो...
*
जनगण-मन की
अभिलाषा है.
हिंदी भावी
जगभाषा है.
शत-शत रूप
देश में प्रचलित.
बोल हो रहा
जन-जन प्रमुदित.
ईर्ष्या, डाह, बैर
मत बोलो.
गर्व सहित
बोलो निर्भय हो.
हिंद और
हिंदी की जय हो...
*
ध्वनि विज्ञानं
समाहित इसमें.
जन-अनुभूति
प्रवाहित इसमें.
श्रुति-स्मृति की
गहे विरासत.
अलंकार, रस,
छंद, सुभाषित.
नेह-प्रेम का
अमृत घोलो.
शब्द-शक्तिमय
वाक् अजय हो.
हिंद और
हिंदी की जय हो...
*
शब्द-सम्पदा
तत्सम-तद्भव.
भाव-व्यंजना
अद्भुत-अभिनव.
कारक-कर्तामय
जनवाणी.
कर्म-क्रिया कर
हो कल्याणी.
जो भी बोलो
पहले तौलो.
जगवाणी बोलो
रसमय हो.
हिंद और
हिंदी की जय हो...
***
नवगीत:
अपना हर पल है हिन्दीमय....
*
अपना हर पल है हिन्दीमय
एक दिवस क्या खाक मनाएँ?
बोलें-लिखें नित्य अंग्रेजी
जो वे एक दिवस जय गाएँ...
*
निज भाषा को कहते पिछडी.
पर भाषा उन्नत बतलाते.
घरवाली से आँख फेरकर
देख पडोसन को ललचाते.
ऐसों की जमात में बोलो,
हम कैसे शामिल हो जाएँ?...
*
हिंदी है दासों की बोली,
अंग्रेजी शासक की भाषा.
जिसकी ऐसी गलत सोच है,
उससे क्या पालें हम आशा?
इन जयचंदों की खातिर
हिंदीसुत पृथ्वीराज बन जाएँ...
*
ध्वनिविज्ञान-नियम हिंदी के
शब्द-शब्द में माने जाते.
कुछ लिख, कुछ का कुछ पढने की
रीत न हम हिंदी में पाते.
वैज्ञानिक लिपि, उच्चारण भी
शब्द-अर्थ में साम्य बताएँ...
*
अलंकार, रस, छंद बिम्ब,
शक्तियाँ शब्द की बिम्ब अनूठे.
नहीं किसी भाषा में मिलते,
दावे करलें चाहे झूठे.
देश-विदेशों में हिन्दीभाषी
दिन-प्रतिदिन बढ़ते जाएँ...
*
अन्तरिक्ष में संप्रेषण की
भाषा हिंदी सबसे उत्तम.
सूक्ष्म और विस्तृत वर्णन में
हिंदी है सर्वाधिक सक्षम.
हिंदी भावी जग-वाणी है
निज आत्मा में 'सलिल' बसाएँ...
१२-९-२०१६
***
नवगीत:
*
सिसक रही है
हिंदी मैया
कॉन्वेंट स्कूल में
*
शानदार सम्मलेन होता
किन्तु न इसमें जान है.
बुंदेली को जगह नहीं है
न ही मालवी-मान है.
रुद्ध प्रवेश निमाड़ी का है
छत्तीसगढ़ी न श्लाघ्य है
बृज, अवधी, मैथिली न पूछो
हल्बी का न निशान है.
भोजपुरी को भूल
नहीं क्या
घिरते हैं हम भूल में?
सिसक रही है
हिंदी मैया
कॉन्वेंट स्कूल में
*
महीयसी को बिठलाया है
प्रेस गैलरी द्वार पर.
भारतेंदु क्या छोड़ गये हैं
सम्मेलन ही हारकर?
मातृशक्ति की अनदेखी
क्यों संतानें ही करती हैं?
घाघ-भड्डरी को बिसराया
देशजता से रार कर?
बिंधी हुई है
हिंदी कलिका
अंग्रेजी के शूल में
सिसक रही है
हिंदी मैया
कॉन्वेंट स्कूल में
*
रास, राई, बंबुलिया रोये
जगनिक-आल्हा यहाँ नहीं.
भगतें, जस, कजरी गायब हैं
गीत बटोही मिला नहीं.
सुआ गीत, पंथी या फागें
बिन हिंदी है कहाँ कहो?
जड़ बिसराकर पत्ते गिनते
माटी का संग मिला नहीं।
ताल-मेल बिन
सपने सारे
मिल जाएंगे धूल में.
सिसक रही है
हिंदी मैया
कॉन्वेंट स्कूल में
*
(१०-९-१५ को विश्व हिंदी सम्मेलन भोपाल में उद्घाटन के पूर्व लिखा गया)
***
दोहा सलिला:
करना है साहित्य बिन, भाषा का व्यापार
भाषा का करती 'सलिल', सत्ता बंटाधार
*
मनमानी करते सदा, सत्ताधारी लोग
अब भाषा के भोग का, इन्हें लगा है रोग
*
करता है मन-प्राण जब, अर्पित रचनाकार
तब भाषा की मृदा से, रचना ले आकार
*
भाषा तन साहित्य की, आत्मा बिन निष्प्राण
शिवा रहित शिव शव सदृश, धनुष बिना ज्यों बाण
*
भाषा रथ को हाँकता, सत्ता सूत अजान
दिशा-दशा साहित्य दे, कैसे? दूर सुजान
*
अवगुंठन ही ज़िन्दगी, अनावृत्त है ईश
प्रणव नाद में लीन हो, पाते सत्य मनीष
*
पढ़ ली मन की बात पर, ममता साधे मौन
अपनापन जैसा भला, नाहक तोड़े कौन
*
जीव किरायेदार है, मालिक है भगवान
हुआ किरायेदार के, वश में दयानिधान
*
रचना रचनाकार से, रच ना कहे न आप
रचना रचनाकार में, रच जाती है व्याप
*
जल-बुझकर वंदन करे, जुगनू रजनी मग्न
चाँद-चाँदनी का हुआ, जब पूनम को लग्न
*
तिमिर-उजाले में रही, सत्य संतान प्रीति
चोली-दामन के सदृश, संग निभाते रीति
*
जिसे हुआ संतोष वह, रंक अमीर समान
असंतोषमय धनिक सम, दीन न कोई जान
*
अवगुंठन ही ज़िन्दगी, अनावृत्त है ईश
प्रणव नाद में लीन हो, पाते सत्य मनीष
*
पढ़ ली मन की बात पर, ममता साधे मौन
अपनापन जैसा भला, नाहक तोड़े कौन
*
जीव किरायेदार है, मालिक है भगवान
हुआ किरायेदार के, वश में दयानिधान
*
रचना रचनाकार से, रच ना कहे न आप
रचना रचनाकार में, रच जाती है व्याप
*
जल-बुझकर वंदन करे, जुगनू रजनी मग्न
चाँद-चाँदनी का हुआ, जब पूनम को लग्न
*
तिमिर-उजाले में रही, सत्य संतान प्रीति
चोली-दामन के सदृश, संग निभाते रीति
*
जिसे हुआ संतोष वह, रंक अमीर समान
असंतोषमय धनिक सम, दीन न कोई जान
१२-९-२०१५
*


केन्या, नैरोबी, पर्यटन

नेशनल संग्रहालय नैरोबी 
केन्या
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
केन्या दूतावास- अदीस अबाबा कोमोरोस स्ट्रीट, हाई 16 केबेले 01, अदीस अबाबा, इथियोपिया। info@kenyaembassyaddis.org
फ़ोन: +251-11-661-0135/6 / +251-929-234-564 ईमेल: addisababa@mfa.go.ke

आर्ट गैलरी नैरोबी 
 नैरोबी के पर्यटन स्थल-
 ०१। नैरोबी राष्ट्रीय उद्यान: शहर में स्थित इस    अनूठा वन्यजीव अभ्यारण्य है जहाँ आप शेर,  गैंडे और जिराफ जैसे जानवरों को देख सकते  हैं। 
०२. जिराफ़ सेंटर: यहाँ आप जिराफ़ों को बहुत करीब से देख सकते हैं और उन्हें खिला भी  सकते हैं। 
०३. डेविड शेल्ड्रिक वन्यजीव ट्रस्ट: यहाँ अनाथ बचाए गए युवा हाथियों को पर्यटक देख   सकते हैं।   
०४, करूरा वन: यह शहर के भीतर एक प्राकृतिक वन है जो पैदल यात्रा और प्रकृति का  अनुभव करने के लिए एक बेहतरीन जगह है। 
संस्कृति और इतिहास:

नैरोबी ज़ू 
 ०५. केन्या के बोमास: यह एक सांस्कृतिक केंद्र है जहाँ आप केन्या के विभिन्न जनजातियों के   पारंपरिक जीवन और आवासों को देख सकते हैं। 
 ०६. नैरोबी राष्ट्रीय संग्रहालय: यहाँ केन्या के   इतिहास, संस्कृति और वन्यजीवों से जुड़ी विभिन्न   प्रदर्शनियाँ देखी जा सकती हैं। 
 ०७. करेन ब्लिक्सन संग्रहालय: यह प्रसिद्ध लेखिका करेन ब्लिक्सन के पूर्व घर में स्थापित एक   संग्रहालय है। 
  खरीददारी और शहर का अनुभव:
  ०८. मासाई बाज़ार: यह एक लोकप्रिय आउटडोर बाज़ार है जहाँ पारंपरिक शिल्प, गहने और   अफ्रीकी स्मृति चिन्ह मिलते हैं। 
  ०९. नैरोबी गैलरी: यह एक सांस्कृतिक केंद्र है जो केन्या की कला और संस्कृति को बढ़ावा देता      है। 

केन्या 


             केन्या पूर्वी अफ्रीका में स्थित एक देश है जिसका तट हिंद महासागर पर स्थित है। इसमें सवाना, झीलों के मैदान, शानदार ग्रेट रिफ्ट वैली और ऊंचे पहाड़ी इलाके शामिल हैं। यह शेरों, हाथियों और गैंडों जैसे वन्यजीवों का भी घर है। राजधानी नैरोबी से, सफ़ारी के लिए मासाई मारा रिज़र्व, जो अपने वार्षिक वाइल्डबीस्ट प्रवास के लिए जाना जाता है, और अंबोसेली राष्ट्रीय उद्यान का भ्रमण किया जाता है, जहाँ से तंजानिया के ५,८९६ मीटर ऊँचे माउंट किलिमंजारो के नज़ारे दिखाई देते हैं। केन्या का नाम माउंट केन्या या 'किरिन्यागा', 'श्वेतता का पर्वत' के नाम पर रखा गया है। एक सफारी और पर्यटन स्थल के रूप में, केन्या बेजोड़ है। बर्फ और आग से जन्मी एक प्राचीन भूमि, केन्याई जलवायु की चरम सीमाएँ, जो उष्णकटिबंधीय गर्मी से लेकर हिमनदों की बर्फ तक फैली हुई हैं, इतनी विविध हैं कि इसने ऐसे आवासों का निर्माण किया है जो पृथ्वी पर कहीं और नहीं पाए जाते। भूगोल की दृष्टि से, केन्या सिंह-स्वर्ण सवाना, लहराते घास के मैदानों, प्राचीन वर्षा वनों और ज्वालामुखीय मैदानों का एक विशाल संगम प्रस्तुत करता है। केन्या हिंद महासागर के रमणीय तटों से लेकर माउंट केन्या की बर्फ से ढकी चोटियों तक फैला हुआ है, जो समुद्र तल से ५,१९९ मीटर ऊँचा, लगभग साढ़े तीन लाख वर्ष पुराना एक विलुप्त ज्वालामुखी है। एक प्राकृतिक स्वर्ग होने के साथ-साथ केन्या एक सांस्कृतिक सूक्ष्म जगत और सदियों पुराना 'मानवता का पालना' भी है। राष्ट्रीय ध्वज के हरे, काले और लाल रंग के तहत एकजुट केन्या के लोगों में ५० से अधिक जातीय समूह शामिल हैं और उनकी गर्मजोशी और आतिथ्य राष्ट्रीय आदर्श वाक्य ' हरामबी ' में सबसे अच्छी तरह व्यक्त होता है; जिसका अर्थ है 'आइए हम सब मिलकर प्रयास करें'। 

अस्पताल और डॉक्टर- नैरोबी और मोम्बासा दोनों जगहों पर उच्च योग्यता प्राप्त डॉक्टर, सर्जन और दंत चिकित्सक उपलब्ध हैं। लॉज और होटल, रेजिडेंट मेडिकल स्टाफ़ प्रदान करते हैं और फ़्लाइंग डॉक्टर सेवा के साथ रेडियो या टेलीफ़ोन संपर्क बनाए रखते हैं, जो पूर्वी अफ़्रीका में हवाई निकासी और आपातकालीन उपचार में विशेषज्ञता रखती है। अस्थायी सदस्यता उपलब्ध है। अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें: emergency@flydoc.org

राजधानी/बड़े शहर- नैरोबी (माँ में नैरोबी का अर्थ 'ठंडे पानी का स्थान' है)। नैरोबी पूर्वी अफ्रीका का सबसे अधिक ऊँचा (१,७०० मीटर) आधुनिक और तेजी से विकसित हो रहा  शहर  जिसकी अनुमानित जनसंख्या ४ मिलियन से अधिक है। अन्य बड़ा शहर मोम्बासा पूर्वी अफ़्रीकी तट की तटीय राजधानी और सबसे बड़ा बंदरगाह है। अन्य प्रमुख शहर किसुमु, एल्डोरेट, नाकुरु, न्येरी और मचाकोस हैं।

क्षेत्र/सीमा - केन्या का क्षेत्रफल ५,८३,००० वर्ग किलोमीटर है, जिसमें से १३,४०० किलोमीटर अंतर्देशीय जल है, जिसमें विक्टोरिया झील का एक हिस्सा भी शामिल है। समुद्र तट ५३६ किलोमीटर लंबा है। केन्या की सीमा इथियोपिया, सूडान, दक्षिण सूडान, सोमालिया, युगांडा और तंजानिया से लगती है।

जलवायु- तट गर्म रहता है और दिन का औसत तापमान २७-३१ डिग्री सेल्सियस रहता है, जबकि नैरोबी में दिन का औसत तापमान २१-२६ डिग्री सेल्सियस रहता है। नैरोबी में कोट और ऊनी कपड़े पहनने लायक ठंड पड़ सकती है; जुलाई और अगस्त केन्या में सर्दी का मौसम होता है। अन्य जगहों पर तापमान ऊँचाई पर निर्भर करता है। आमतौर पर, जनवरी-फरवरी शुष्क, मार्च-मई आर्द्र, जून-सितंबर शुष्क और अक्टूबर-दिसंबर आर्द्र रहता है। जनसंख्या- ३८ मिलियन (अनुमानित २००९), जिनमें से ४२.५% १४ वर्ष से कम आयु के हैं, तथा २.५६% की वृद्धि दर विश्व में सर्वाधिक है।

जातीय विविधता/धर्म - यहाँ ४० से ज़्यादा जनजातीय समूह हैं जिनकी भाषा बंटू और नीलोटिकहैं। बंटू की सबसे बड़ी जनजातियाँ किकुयू, मेरु, गुसी, एम्बू, अकाम्बा, लुइहा और मिजिकेंडा हैं। नीलोटिक की सबसे बड़ी जनजातियाँ मासाई, तुर्काना, सम्बुरु, पोकोट, लुओ और कालेंजिन हैं। कुशिटिक भाषी लोगों के एक तीसरे समूह में एल-मोलो, सोमाली, रेंडिल और गल्ला शामिल हैं। तटीय क्षेत्र स्वाहिली लोगों का निवास स्थान है। केन्या के प्रमुख धर्म ईसाई, हिंदू, सिख और इस्लाम हैं।

भाषा- केन्या की आधिकारिक भाषा अंग्रेज़ी, राष्ट्रीय भाषा स्वाहिली, जातीय भाषाएँ बंटू, कुशिटिक और नीलोटिक हैं। १५वर्ष से अधिक आयु की ८५% जनसंख्या पढ़ और लिख सकती है। 

मुद्रा/बैंकिंगकेन्या शिलिंग (Ksh); अपभाषा 'बॉब'। विदेशी मुद्रा बैंकों, विदेशी मुद्रा ब्यूरो या होटलों में बदली जा सकती है। प्रमुख केंद्रों में बैंक सोमवार से शुक्रवार सुबह ९.०० बजे से दोपहर १.०० बजे तक और हर महीने के पहले और आखिरी शनिवार को सुबह ९.०० बजे से दोपहर ११.०० बजे तक खुले रहते हैं। तटीय शहरों में बैंक आधे घंटे पहले खुलते और बंद होते हैं। केन्या में २४ घंटे एटीएम उपलब्ध हैं जो अंतरराष्ट्रीय वीज़ा कार्ड तथा प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय कार्ड स्वीकार करते हैं।अधिकांश बैंकों, ब्यूरो और होटलों में यात्री चेक स्वीकार किए जाते हैं।टिप देना अच्छा रहेगा। ज़्यादातर होटल और रेस्टोरेंट में १०% सेवा शुल्क लगता है।

खरीदारी और व्यावसायिक घंटे- सोमवार-शनिवार सुबह ८.३० से १२.३० और १४.०० से १७.३० बजे तक। पूरे साल GMT + ३१ केन्या में लगभग १२ घंटे का दिन का उजाला रहता है। सूर्योदय आमतौर पर सुबह ६.३० बजे और सूर्यास्त शाम ६.४५ बजे होता है।बिजली २२०-२४०  वोल्ट एसी, मानक १३-एम्पीयर तीन वर्ग-पिन प्लग के साथ उपलब्ध है।

डाकघर- कार्यदिवसों में खुलने का समय सुबह८.०० बजे से शाम ५.००बजे तक और शनिवार को सुबह ९.०० बजे से दोपहर १२.०० बजे तक है। डाक टिकट डाकघरों, स्टेशनरी और स्मारिका दुकानों और होटलों से खरीदे जा सकते हैं। अंतर्राष्ट्रीय टेलीफ़ोन कोड: +254. देश से बाहर जाने के लिए 000 डायल करें और उसके बाद आवश्यक देश कोड डायल करें।

पर्यटकों के आकर्षण

राष्ट्रीय उद्यान और रिजर्व- केन्या का कुल वन्यजीव संरक्षण क्षेत्र ४४,३५९ वर्ग किमी या कुल क्षेत्रफल का ७.६% है। प्रमुख उद्यान हैं: एबरडेयर राष्ट्रीय उद्यान, अम्बोसेली राष्ट्रीय उद्यान, हेल्स गेट राष्ट्रीय उद्यान, लेक नाकुरु राष्ट्रीय उद्यान, मेरु राष्ट्रीय उद्यान, माउंट एल्गॉन राष्ट्रीय उद्यान, माउंट केन्या राष्ट्रीय उद्यान, नैरोबी राष्ट्रीय उद्यान, त्सावो पूर्व और त्सावो पश्चिम राष्ट्रीय उद्यान। सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक, मासाई मारा, को राष्ट्रीय अभ्यारण्य घोषित किया गया है। दो प्रमुख समुद्री उद्यान हैं: मोम्बासा समुद्री राष्ट्रीय उद्यान और मालिंदी/वाटामु राष्ट्रीय उद्यान। सभी केन्याई राष्ट्रीय उद्यानों और अभ्यारण्यों के बारे में जानकारी केन्या वन्यजीव सेवा (KWS) से प्राप्त की जा सकती है। दूरभाष: +254 (0) 20 600800। ईमेल: tourism@kws.org या www.kws.org

विश्व धरोहर स्थल- फोर्ट जीसस, गेदी खंडहर, कूबी फोरा, माउंट केन्या, हेल्स गेट राष्ट्रीय उद्यान और मासाई मारा राष्ट्रीय रिजर्व। 

ऐतिहासिक स्थल- केन्या में ४०० से अधिक ऐतिहासिक स्थल हैं जिनमें पुरापाषाण कालीन अवशेष, १४ वीं शताब्दी के दास व्यापारिक बस्तियाँ, इस्लामी खंडहर और १६वीं शताब्दी का पुर्तगाली किला जीसस शामिल हैं।

परिदृश्य- केन्या का परिदृश्य स्पष्ट रूप से दो हिस्सों में विभाजित है - पूर्वी मूंगा-समर्थित समुद्र तट की ओर ढलान युक्त क्षेत्र और पश्चिमी भाग, जो पहाड़ियों और पठारों की एक श्रृंखला के माध्यम से अचानक पूर्वी रिफ्ट घाटी तक उठता है। रिफ्ट के पश्चिम में पश्चिम की ओर ढलान वाला पठार है, और सबसे निचला भाग विक्टोरिया झील से ढका है। देश का सबसे ऊँचा बिंदु माउंट केन्या (५,१९९ मीटर) की बर्फ से ढकी चोटी है, जो अफ्रीका का दूसरा सबसे ऊँचा पर्वत है। समुद्र तट दक्षिण-पूर्व में तंजानियाई सीमा से उत्तर-पूर्व में सोमाली सीमा तक लगभग ५३६ कि.मी. तक फैला है। मुख्य नदियाँ अथी/गलाना और ताना हैं। प्रमुख झीलें हैं: विक्टोरिया झील, तुर्काना, बैरिंगो, नैवाशा, मगदी, जीप, बोगोरिया, नाकुरु और एलिमेंटाटा।

वनस्पतियाँ/फ्लोरा-केन्या के तटीय वनों में ताड़, मैंग्रोव, सागौन, कोपल और चंदन के वृक्ष पाए जाते हैं। बाओबाब, यूफोरबिया और बबूल के वन लगभग ९१५ मीटर की ऊँचाई तक निचले इलाकों को ढँकते हैं। सवाना के विस्तृत क्षेत्र बबूल और पपीरस के वृक्षों से घिरे हुए समुद्र तल से ९१५ से २,७४५ मीटर की ऊँचाई तक के भूभाग की विशेषता हैं। पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी पर्वतीय ढलानों के घने वर्षावनों में बाँस और कपूर आम हैं। अल्पाइन क्षेत्र (३,५५० मीटर से ऊपर) में सेनेसियो और लोबेलिया के कई पौधे पाए जाते हैं। 

पशु/पक्षीयहाँ ८० प्रमुख पशु प्रजातियाँ हैं, जिनमें 'बिग फाइव' (हाथी, भैंसा, गैंडा, शेर और तेंदुआ) से लेकर छोटे मृग जैसे डिक-डिक (जो खरगोश से थोड़ा बड़ा होता है) तक शामिल हैं। कम से कम ३२ स्थानिक प्रजातियाँ लुप्तप्राय हैं। केन्या में पक्षियों की लगभग १,१३७ प्रजातियाँ पाई जाती हैं। एक दिन में १०० से ज़्यादा पक्षी प्रजातियों को देखना कोई असामान्य बात नहीं है।

हवाई संपर्क: केन्याई एयरलाइन और जोमो केन्याटा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा पूर्वी अफ्रीका में श्रेष्ठ हैं। मोई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा तथा ३० से अधिक अन्य छोटे नागरिक हवाई अड्डे हैं। कई अंतरराष्ट्रीय विमान सेवा प्रदाता केन्या में सेवाएँ प्रदान करते हैं, और नैरोबी पूर्वी अफ्रीकी क्षेत्र का केंद्र है। केन्या में दो अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे हैं: जोमो केन्याटा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा नैरोबी के शहर के केंद्र से आधे घंटे की ड्राइव पर है, और मोम्बासा का मोई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा शहर के केंद्र से और भी करीब है। अधिकांश पर्यटक होटलों में मेहमानों के परिवहन के लिए मिनी बसें होती हैं, और सार्वजनिक बसें जोमो केन्याटा और मोई दोनों हवाई अड्डों पर सेवा प्रदान करती हैं। दोनों हवाई अड्डों पर टैक्सियाँ आसानी से उपलब्ध हैं (आधिकारिक रूप से विनियमित शुल्क प्रदर्शित किए जाने चाहिए)। नैरोबी के विल्सन हवाई अड्डे और मोम्बासा तथा मालिंदी से मुख्य कस्बों और राष्ट्रीय उद्यानों के लिए लगातार उड़ानें (अनुसूचित और चार्टर दोनों) संचालित होती हैं।

वीज़ा और स्वास्थ्य प्रमाणन- केन्या में प्रवेश के लिए एक वैध पासपोर्ट आवश्यक है, जिसकी वैधता कम से कम छह महीने से अधिक न हो। एक वैध प्रवेश वीज़ा भी आवश्यक है, जिसे आप अपने मूल देश में केन्याई दूतावास या उच्चायोग से पहले ही प्राप्त कर सकते हैं, या केन्या पहुँचने पर प्राप्त कर सकते हैं। पीले बुखार के टीकाकरण प्रमाणपत्र की आवश्यकता केवल तभी होती है जब आप किसी संक्रमित क्षेत्र से केन्या आ रहे हों।केन्या आने वाले पर्यटकों के लिए कई टीकाकरण की सिफारिश की जाती है (इस बारे में पहले ही अपने डॉक्टर से जांच कर लें)। मलेरिया उष्णकटिबंधीय अफ्रीका में स्थानिक है और इससे बचाव आवश्यक है। केन्या आने वाले यात्रियों को आगमन से पहले चिकित्सा/यात्रा बीमा प्राप्त करने की सलाह दी जाती है। 

करो और ना करो- सार्वजनिक स्थान पर धूम्रपान करना; सार्वजनिक रूप से पेशाब करना; बिना कपड़ों के धूप सेंकना; नशीली दवाएँ खरीदना या लेना; केन्या से वन्य जीव उत्पादों को हटाना, हाथी, गैंडे या समुद्री कछुए से बने उत्पादों का निर्यात करना, या मूंगे को हटाना अपराध है। गाली-गलौज और ईशनिंदा की सलाह नहीं दी जाती है। आगंतुकों से अनुरोध है कि वे केन्याई राष्ट्रगान बजने या राष्ट्रीय ध्वज फहराए या उतारे जाने पर खड़े रहें। उन्हें यह भी सलाह दी जाती है कि बिना पूर्व अनुमति के राष्ट्रपति या किसी सैन्य प्रतिष्ठान की तस्वीर लेने की अनुमति नहीं है। पुलिस या मजिस्ट्रेट के विवेक पर ज़मानत दी जा सकती है और सभी मामलों को अदालत में लाया जाना चाहिए।

फोटोग्राफी- लोगों से उनकी तस्वीर लेने से पहले यह पूछना शिष्टाचार माना जाता है कि क्या आप उनकी तस्वीर ले सकते हैं। तस्वीर के लिए एक छोटा सा (सांकेतिक) भुगतान अपेक्षित हो सकता है, जो किसी और चीज़ से ज़्यादा एक विनम्र प्रशंसा का प्रतीक है। ०००