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सोमवार, 9 दिसंबर 2024

दिसंबर ९, मुक्तक, बुंदेली, नव गीत, सॉनेट गीत, दोहा, सैनिक, कचनार, धन श्लोक

सलिल सृजन दिसंबर ९ 
*
कचनार 
बीज पर्ण जड़ छाल अरु, फूल फली निष्काम।
मानव को कचनार दे, सहता कष्ट तमाम।।
वास्तु सूत्र 
धन संचय 
        धन के दो अर्थ होते हैं, पहला योग या जोड़ना अर्थात संचय तथा दूसरा संपत्ति। अर्जित धन में से कम व्यय कार बचाए धन को संचित कर संपत्ति बनाई जाति है। इसीलिए धन-संपत्ति शब्द युग्म का प्रयोग संपन्नता हेतु किया जाता है। धन कई प्रकार का होता है। मुद्रा, जेवर, भूमि, विद्या, स्वास्थ्य, चरित्र आदि को प्रसंगानुसार धन कहा जा सकता है। अंग्रेजी उक्ति है- ''वेल्थ इस लॉस्ट नथिग इस लॉस्ट, हेल्थ इस लॉस्ट सम थिंग इस लॉस्ट, कैरेक्टर इस लॉस्ट एवरी थिंग इस लॉस्ट'' अर्थात धन खोया तो कुछ नहीं खोया, स्वास्थ्य खोया तो कुछ खोया, चरित्र खोया तो सब कुछ खोया।

        भारत में धन संबंधी धारणा निम्न श्लोकों में वर्णित हैं। इन्हें पढ़ें, समझें और परिस्थिति के अनुसार उपयोग में लाइए। व्यावहारिक धरातल पर धन-संचय, यथा समय समुचित उपयोग तथा भावी पीढ़ी के लिए छोड़ना सबका महत्व है। संचित धन की सुरक्षा और वृद्धि संबंधी वास्तु सूत्र अंत में दिए गए हैं।

अतितॄष्णा न कर्तव्या तॄष्णां नैव परित्यजेत्।
शनै: शनैश्च भोक्तव्यं स्वयं वित्तमुपार्जितम् ॥
        अत्यधिक तृष्णा (कामना) न करें, न पूरी तरह छोड़ दें। अपने श्रम से कमाए धन का उपभोग धीरे धीरे भोग करें।।

स हि भवति दरिद्रो यस्य तॄष्णा विशाला।
मनसि च परितुष्टे कोर्थवान् को दरिद्रा:॥
        वास्तव में दरिद्र वह है जिसकी कामनाएँ बड़ी हैं। जो मन से संतुष्ट है उसके लिए धनी या दरिद्र होना कोई अर्थ नहीं रखता। 

अर्थानाम् अर्जने दु:खम् अर्जितानां च रक्षणे।
आये दु:खं व्यये दु:खं धिग् अर्था: कष्टसंश्रया:॥
        पहले धन कमाने में कष्ट होता है, बाद में धन की रक्षा करने में भी कष्ट होता है। जिसधन की आय और व्यय दोनों  दुःख है,  ऐसे धन को धिक्कार है। 

वॄत्तं यत्नेन संरक्ष्येद् वित्तमेति च याति च।
अक्षीणो वित्तत: क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हत:॥
        चरित्र की यत्नपूर्वक रक्षा करें, धन आता-जाता रहता है। धन-नाश से मनुष्य का नाश नहीं होता, चरित्र-नाश से जीवित मनुष्य भी मृत समान हो जाता है। 

नाम्भोधिरर्थितामेति सदाम्भोभिश्च पूर्यते।
आत्मा तु पात्रतां नेय: पात्रमायान्ति संपद:।।
        समुद्र कभी जल की इच्छा नहीं करता तब भी सदा जल से भर रहता है। खुद को पात्र बनाएँ सम्पति अपने आप मिलेगी।

गौरवं प्राप्यते दानात्,न तु वित्तस्य संचयात्। 
स्थिति: उच्चै: पयोदानां, पयोधीनां अध: स्थिति:॥

        दान से गौरव प्राप्त होता है, धन-संचय से नहीं।  जल देने वालेबादल ऊपर है जबकि जल-संचय करनेवाला समुद्र नीचे है। 

दातव्यं भोक्तव्यं धनं सञ्चयो न कर्तव्यः।
पश्येह मधुकरीणां सञ्चितार्थं हरन्त्यन्ये॥
        धन का दान अथवा उपभोग करें, धन-संचय न करें। मधु-मक्खी द्वारा मधु संचित मधु कोई और ही ले जाता है। 

सहसा विदधीत न क्रियाम् अविवेकः परमापदां पदम्।
वृणुते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः॥

        मन में एकाएक आए विचार को कार्यान्वित नहीं करना चाहिए। ऐसा बुद्धिहीन कार्य करनेवाला मुसीबत में पद जाता है।  धैर्य और विवेक से कार्य करें तो सद्गुण का संपत्ति स्वयं वरण करती है। 

दानं भोगो नाशस्तिस्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य।
यो न ददाति न भुङ्क्ते तस्य तृतीयागतिर्भवति॥
        धन की तीन गतियाँ  दान, उपभोग तथा नाश हैं। धन का दान अथवा उपभोग न कर, संचय करने पर धन-नाश हो जाता है। 

सन्तोषामृततृप्तानां यत्सुखं शान्तचेतसाम्।
कुतस्तद्धनलुब्धानां एतश्चेतश्च धावताम्॥
        संतोष रूपी अमृत से तृप्त व्यक्ति सुखी और शांत रहता है। धन के पीछे भागनेवालों को सुख-शांति नहीं मिल सकती। 

अधमा: धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमा: ।
उत्तमा: मानमिच्छन्ति मानो हि महताम् धनम् ।।
        अधम मनुष्य केवल धन की कामना करते हैं, मध्यम कोटी के मनुष्य धन-मान दोनों चाहते हैं परन्तु उत्तम मनुष्य केवल मान चाहता है, महान व्यक्तिओ के लिए मान ही धन है।

यस्यास्ति वित्तं स वरः कुलिनः स पण्डितः स श्रुतवान् गुणज्ञः ।
स एव वक्ता स च दर्शनीयः सर्वे गुणाः काञ्चनं आश्रयन्ते ॥
        जिसके पास धन है उसे ही कुलीन, विद्वान, गुणी, विद्वान तथा सुंदर माना जाता है क्योंकि ये सभी गुण धन (स्वर्ण) द्वारा मिलते हैं।

वैद्यराज नमस्तुभ्यम् यमराज सहोदर: ।
यमस्तु हरति प्राणान् वैद्य: प्राणान् धनानि च ।।
        वैद्यराज (चिकित्सक) को प्रणाम है जो यमराज के भाई हैं। यम केवल प्राण हरते हैं किंतु वैद्य प्राण और धन दोनों हर लेता है ।

कॄपणेन समो दाता न भूतो न भविष्यति ।
अस्पॄशन्नेव वित्तानि य: परेभ्य: प्रयच्छति ।।
        कंजूस के समान दानवीर न हुआ, न होगा क्योंकि वह जीवन भर कमाया धन अन्यों के लिए छोड़ जाता है।

अर्था भवन्ति गच्छन्ति लभ्यते च पुन: पुन:।
पुन: कदापि नायाति गतं तु नवयौवनम्।।
        धन बार बार आता है, जाता है परंतु नवयौवन एक बार जाने के बाद दुबारा कभी नहीं आता।

परस्य पीडया लब्धं धर्मस्यौल्लंघेनेन च ।
आत्मावमानसंप्राप्तं न धनं तत् सुखाय वै।।
        दूसरों को दुख देकर, धर्म का उल्लंघन कर तथा अपमानित होकर कमाया हुआ धन कभी सुख नहीं देता।

नालसा: प्राप्नुवन्त्यर्थान न शठा न च मायिनः।
न च लोकरवाद्भीता यं न च शश्वत्प्रतीक्षिणः।।
        आलसी, शठ, लुटेरे, लोगों सेसे भयभीत रहनेवाले तथा अपने कर्तव्य का पालन न करनेवाले धनार्जन नहीं कर सकते। 

        उक्त श्लोकों  में कही गई बातें ठीक होते हुए भी पूरी तरह व्यवहार में नहीं लाई जा सकतीं। धन कमाने, उपयोग करने, बचाने, सुरक्षित रखने, दान देने तथा भावी पीढ़ी के लिए छोड़ने सबका महत्व है। वास्तु शास्त्र के अनुसार धन को सुरक्षित रखने तथा बढ़ाने के लिए सुझाए गए उपायों को पढ़-समझकर अपनि आवश्यकता व बुद्धि अनुसार प्रयोग करें। 

१. धन-संपत्ति लक्ष्मी माँ का प्रसाद है। इसका दुरुपयोग न करें। संचित धन व मूल्यवान रतन, गहने आदि ईशान अथवा पूर्व दिशा में रखें। हर सुबह लक्ष्मी जी का स्मरणकर संचित धन  
दोहा सलिला
करे रतजगा चंद्रमा, हो जाता तब पीत।
उषा रश्मियों से कहे, कभी न होना भीत।।
दिन करने दिनकर चला, साथ लिए आलोक।
नीलगगन रतनार लख, मुग्ध हो रहा लोक।।
९-१२-२०२२
जय जय जय कामाख्या माता।
सकर सृष्टि तेरी संतति है, सारा जग तेरे गुण गाता।
सत्य कहाँ-क्या समझ न आए, है असत्य माया फैलाए।
माटी से उपजी यह काया, माटी में वापिस मिल जाए।
भवसागर में फँसा हुआ मन, खुद ही खुद को है भरमाता।
जय जय जय कामाख्या माता।
जगत्पिता-जगजननी तारो, हर संकट हर हे हर! तारो।
सदा सुलभ हों दर्शन मैया!, हृदय विराजो मातु! उबारो।
सुख में तुम्हें भूलते, दुख में नाम तुम्हारा ही है भाता।
जय जय जय कामाख्या माता।
इस माटी में सलिल मिला दो, कूट-पीट कर दीप बना दो।
सफल साधना नव आशा हो, तुहिना- वृत्ति सदा अमला हो।
श्वास गीतिका मन्वन्तर तक, सदय शारदा हरि कमला हो।
चित्र गुप्त तव देख सकें मन, रहे हमेशा तुमको ध्याता।
जय जय जय कामाख्या माता।
संजीव
श्री कामाख्या धाम, गुवाहाटी
१५•०३, ६-१२-२०२२
●●●
गीत
नीलाभित नभ सिंदूरी हो गया किसी के नाम से।
सूर्य प्रणम्य प्रतीत हो रहे सुधिमय नम्र प्रणाम से।।
रश्मि रश्मि शाकुंतल सुषमा लिए सूर्य दुष्यंत सम।
नयन नयन से कहें-सुनें क्या; पूछो मौन दिगंत सम।।
पंछी गुंजाते शहनाई; लहरें गातीं मंगल गान-
वट पल्लव कर मंत्र-पाठ; आहुतियाँ देते संत सम।।
फुलबगिया में सँकुचाई सिय; अकथ कह गई राम से।
शाम मिली फिर मुग्धा राधा, हुलस पुलक घनश्याम से।
सूर्य प्रणम्य प्रतीत हो रहे सुधिमय नम्र प्रणाम से।
नीलाभित नभ सिंदूरी हो गया किसी के नाम से।।
ब्रह्मपुत्र नद किसको ध्याए, कल कल कल कर टेरता।
लहर लहर उत्कंठित पल पल, किसका पथ छिप हेरता।।
मेघदूत से यक्ष पठाता; व्यथा-कथा निज पाती में।
बैरागी मन को रागी चित; दसों दिशा से घेरता।।
उस अनाम को ही संबोधित; करते शत-शत नाम से।
वह आकुल मिलता है; खुद ही आकर निष्काम से।।
सूर्य प्रणम्य प्रतीत हो रहे सुधिमय नम्र प्रणाम से।
नीलाभित नभ सिंदूरी हो गया किसी के नाम से।।
किसे सुमिरता है युग युग से, लिए सुमिरनी गति-यति की।
व्यथा उमा-नंदा की कह-सुन; समय साक्ष्य दे जन-मति की।।
कहे गुवाहाटी शिव तनया गंगा से जा मिलो गले।
ब्रह्मपुत्र मंदाकिनी भेटें, लीला सरस समयपति की।।
नखत नवाशा जगा दमकते, खास बन गए आम से।
करतल ध्वनि कर मुदित शांत जन; लगते पूर्ण विराम से।।
सूर्य प्रणम्य प्रतीत हो रहे सुधिमय नम्र प्रणाम से।
नीलाभित नभ सिंदूरी हो गया किसी के नाम से।।
संजीव
६-१२-२०२२,७-५४
रॉयल डे कासा, गुवाहाटी
•••
सॉनेट - गीत
सैनिक
*
सैनिक कभी नहीं मरते हैं
*
जान हथेली पर ले जीते
चुनौतियों से टकराते हैं।
जैसे हों अपराजित चीते।।
देवोपम गरिमा पाते हैं।।
नित्य मौत से टकराते हैं।
जीते जी बनते उदाहरण।
मृत्युंजय बन जी जाते हैं।।
जूझ मौत का विहँस कर वरण।।
कीर्ति कथाएँ लोक सुनाता।
अपने दिल में करे प्रतिष्ठित।
उन्हें याद कर पुष्प चढ़ाता।।
श्रद्धा सुमन करे रो अर्पित।।
शत्रु नाम सुनकर डरते हैं।
सैनिक नहीं मरा करते हैं।।
*
सैनिक जिएँ तानकर सीना।
कठिन चुनौती हर स्वीकारें।
मार मौत को जानें जीना।।
नित आपद को अंगीकारें।।
अस्त्र-शस्त्र ले पग-पग बढ़ते।
ढाल थाम झट करते रक्षा।
लपक वक्ष पर अरि के चढ़ते।।
अरि माँगे प्राणों की भिक्षा।
हर बाधा से डटकर जूझें।
नहीं आपदाओं से डरते।
हर मुश्किल सवाल को बूझें।।
सदा देश का संकट हरते।।
होते अमर श्वास तजते हैं।
सैनिक नहीं मरा करते हैं।।
*
मत रोएँ संकल्प करें सब।
बच्चा-बच्चा बिपिन बनेगा।
मधूलिका हो हर बच्ची अब।।
हर मोर्चे पर समर ठनेगा।।
बने विरासत शौर्य-पराक्रम।
काम करें निष्काम भाव से।
याद करे दुश्मन बल-विक्रम।।
बच्चे सैनिक बनें चाव से।।
आँख आँख में डाल शत्रु की।
आँख निकाल लिया करते हैं।
जान बचाने देश-मित्र की।।
बाँह पसार दिया करते हैं।।
वीर-कथा गा कवि तरते हैं।
सैनिक नहीं मरा करते हैं।।
९-१२-२०२१
***
सूर्य चंद्र धरती गगन, रखें समन्वय खूब।
लोक तंत्र रख संतुलन, सके हर्ष में डूब।।
बोलिए भारत माँ की जय
*
सूर्य-लोक हैं केंद्र में, इन्हें साध्य लें मान।
शेष सहायक हो करें, दोनों का गुणगान।।
बोलिए भारत माँ की जय
*
चंद्र सदा रवि से ग्रहण, करता सतत उजास।
तंत्र लोक से शक्ति ले, करे लोक-हित खास।।
बोलिए भारत माँ की जय
*
धरती धरती धैर्य चुप, घूमे-चल दिन रैन।
कभी देशहित मत तजें, नहीं भिगोएँ नैन।।
बोलिए भारत माँ की जय
*
गगन बिन थके छाँह दे, कहीं न आदि न अंत।
काम करें निष्काम हम, जनहित में बन संत।।
बोलिए भारत माँ की जय
*
लोकतंत्र की शक्ति है, जनता शासक दास।
नेता-अफसर-सेठ झुक, जन को मानें खास।।
बोलिए भारत माँ की जय
***
९-१२-२०२१
नव गीत
*
भोर हुई
छाई अरुणाई
जगना तनिक न भला लगा।
*
छायद तरु
नर बना कुल्हाड़ी
खोद रहा अरमान-पहाड़ी
हुआ बस्तियों में जल-प्लावन
मनु! तूने ही बात बिगाड़ी।
अनगिन काटे जंगल तूने
अब तो पौधा नया लगा
भोर हुई
छाई अरुणाई
जगना तनिक न भला लगा
*
टेर; नहीं
गौरैया आती
पवन न गाती पुलक प्रभाती
धुआँ; धूल; कोलाहल बेहद
सौंप रहे जहरीली थाती
अय्याशी कचरे की जननी
नाता एक न नेह पगा
भोर हुई
छाई अरुणाई
जगना तनिक न भला लगा
*
रिश्तों की
रजाई थी दादी
बब्बा मोटी धूसर खादी
नाना-नानी खेत-तलैया
लगन-परिश्रम से की शादी
सुविधा; भोग-विलास मिले जब
संयम से तब किया दगा
भोर हुई
छाई अरुणाई
जगना तनिक न भला लगा
*
रखा काम से
काम काम ने
छोड़ दिया तब सिया-राम ने
रिश्ते रिसती झोपड़िया से
बेच-खरीदी करी दाम ने
नाम हुआ पद; नाम न कोई
संग रहा न हुआ सगा
भोर हुई
छाई अरुणाई
जगना तनिक न भला लगा
*
दोष तर्जनी
सबको देती
करती मोह-द्रोह की खेती
संयम; त्याग; योग अंगुलियाँ
कहें; न भूलो चिंतन खेती
भौंरा बना नचाती दुनिया
मन ने तन को 'सलिल' ठगा
भोर हुई
छाई अरुणाई
जगना तनिक न भला लगा
६-१०-२०१९
***
एक रचना
घुटना वंदन
*
घुटना वंदन कर सलिल, तभी रहे संजीव।
घुटने ने हड़ताल की, जीवित हो निर्जीव।।
जीवित हो निर्जीव, न बिस्तर से उठने दे।
गुड न रेस्ट; हो बैड, न चलने या झुकने दे।।
छौंक-बघारें छंद, न कवि जाए दम घुट ना।
घुटना वंदन करो, किसी पर रखो न घुटना।।
*
मेदांता अस्पताल दिल्ली में डॉ. यायावर के घुटना ऑपरेशन पर भेंट
९.१२.२०१८
***
मुक्तक
शिखर पर रहो सूर्य जैसे सदा तुम
हटा दो तिमिर, रौशनी दो जरा तुम
खुशी हो या गम देन है उस पिता की
जिसे चाहते हम, जिसे पूजते तुम
दोहा
पौधों, पत्तों, फूल को, निगल गया इंसान
मैं तितली निज पीर का, कैसे करूँ बखान?
*
करें वंदना शब्द की ले अक्षर के हार
सलिल-नाद सम छंद हो, जैसे मंत्रोच्चार
*
लोकतंत्र का हो रहा, भरी दुपहरी खून.
सद्भावों का निगलते, नेता भर्ता भून.
***
बुंदेली दोहा
सबखों कुरसी चाइए, बिन कुरसी जग सून.
राजनीति खा रई रे, आदर्सन खें भून.
*
मन में का? के से कहें? सुन हँस लैहें लोग.
मन की मन में ही धरी, नदी-नाव संजोग.
९-१२-२०१७
***
क्षणिका
*
बहुत सुनी औरों की
अब तो
मनमानी कुछ की जाए.
दुनिया ने परखा अब तक
अब दुनिया भी परखी जाए
*
मुक्तक
चोट खाते हैं जवांदिल, बचाते हैं और को
खुद न बदलें, बदलते हैं वे तरीके-तौर को
मर्द को कब दर्द होता, सर्द मौसम दिल गरम
आजमाते हैं हमेशा हालतों को, दौर को
***
कार्यशाला
छंद बहर दोउ एक है - ९
रगण यगण गुरु = २१२ १२२ २
सात वार्णिक उष्णिक जातीय, बारह मात्रिक आदित्य जातीय छंद
बहर- फाइलुं मुफाईलुं
*
मुक्तक
मेघ ने लुभाया है
मोर नाच-गाया है
जो सगा नहीं भाया
वह गया भुलाया है
*
मौन मौन होता है
शोर शोर बोटा है
साफ़-साफ़ बोले जो
जार-जार रोता है
*
राजनीति धंधा है
शीशहीन कंधा है
न्याय कौन कैसे दे?
क्यों प्रतीक अँधा है
*
सूर्य के उजाले हैं
सेठ के शिवाले हैं
काव्य के सभी प्रेमी
आदमी निराले हैं
*
आपने बिसरा है
या किया इशारा है?
होंठ तो नहीं बोला
नैन ने पुकारा है
*
कौन-कौन आएगा?
देश-राग गायेगा
शीश जो कटाएगा
कीर्ति खूब पायेगा
*
नवगीत
क्यों नहीं कभी देखा?
क्यों नहीं किया लेखा??
*
वायवी हुए रिश्ते
कागज़ी हुए नाते
गैर बैर पाले जो
वो रहे सदा भाते
संसदीय तूफां की
है नहीं रही रेखा?
क्यों नहीं कभी देखा?
क्यों नहीं किया लेखा??
*
लोकतंत्र पूछेगा
तंत्र क्यों दरिंदा है?
जिंदगी रही जीती
क्यों मरी न जिंदा है?
आनुशासिकी कीला
क्यों यहाँ नहीं मेखा?
क्यों नहीं कभी देखा?
क्यों नहीं किया लेखा??
*
क्यारियाँ कभी सींचें
बागबान ही भूले
फूल को किया रुस्वा
शूल को मिले झूले
मौसमी किए वादे
फायदा नहीं सदा पेखा
क्यों नहीं कभी देखा?
क्यों नहीं किया लेखा??
***
मेखा = ठोंका, पेखा = देखा
८-१२-२०१६
***
मुक्तक सलिला
*
नाग नाथ को बिदा किया तो साँप नाथ से भी बचना
दंश दिया उसने तो इसने भी सीखा केवल डँसना
दलदल दल का दल देता है जनमत को सत्ता पाकर-
लोक शक्ति नित रहे जागृत नहीं सजगता को तजना।
*
परिवर्तन की हवा बह रही इसे दिशा-गति उचित मिले
बने न अंधड़, कुसुम न जिसमें जन-आशा का 'सलिल' खिले।
मतदाता कर्तव्यों को अधिकारों पर दे वरीयता-
खुद भ्रष्टाचारी होकर नेता से कैसे करें गिले?
*
ममो सोनिया राहुल डूबे, हुई नमो की जय-जयकार
कमल संग अरविन्द न लेकिन हाल एक सा देखो यार
जनता ने दे दिया समर्थन पर न बना सकते सरकार-
कैसी जीत मिली दोनों को जिसमें प्रतिबिंबित है हार
*
वसुंधरा शिव रमन न भूलें आगे कठिन परीक्षा है
मँहगाई, कर-भार, रिश्वती चलन दे रहा शिक्षा है
दूर करो जन गण की पीड़ा, जन-प्रतिनिधि सुविधा छोडो-
मतदाता जैसा जीवन जी, सत्ता को जन से जोड़ो
८-१२-२०१३
*

रविवार, 8 दिसंबर 2024

दिसंबर ८, माया छंद, सॉनेट, जन जातियाँ, शिव, दोहा मुक्तक, नारी, कुंडलिया, भोजन

सलिल सृजन दिसंबर ८
*
वास्तु सूत्र 
ग्रहानुकूल भोजन 
*
भारतीय कैलेंडर के अनुसार हर दिन किसी देवता का है जो किसी विशेष शक्ति के इष्ट देव है। इस देव को प्रसन्न कर उनका आशीष पाने के लिए उस देव / ग्रह के गुणों के अनुसार  खाद्य पदार्थ ग्रहण करें। हर घर में आटा, भात या दाल रोज बनता है। आप निम्न अनुसार एक-दो चुटकी खाद्य पदार्थ आटा, भात या दाल में मिला लें।  
दिन        देवता      खाद्य पदार्थ        
सोम        चंद्र               दूध  
मंगल      मंगल          लाल मिर्च 
बुध          बुध          हरा धनिया/मिर्च, भाजी  
गुरु          गुरु       केसर, हल्दी, बेसन  
शुक्र       शुक्र             देसी घी 
शनि       शनि             सरसों तेल 
रवि         सूर्य                  गुड़ 
***  
कुंडलिया
छोड़ दिया सारांश ने, शेष रहा विस्तार।
इस संसार असार में, खोज पा सकें सार।।
खोज पा सकें सार, न साहस कोशिश कम हो।
जहर आप ले अमिय, बाँट दें सब प्रति सम हो।।
दे विवेक पा सकें, लक्ष्य तज नाहक होड़।
भूल न जाएँ पंथ, पकड़ प्रभु हाथ न छोड़।
८.१२.२०२४
०००
सॉनेट
शक्ति
आत्म चेतना परम शक्ति है
तंत्र शक्ति अर्जन की विधि है
मंत्र साधना सहज युक्ति है
यंत्र सुनिर्मित अक्षय निधि है
शक्ति न साध्य मात्र साधन है
शक्तिमान को जगत पूजता
कार्य-सिद्धि हित आराधन है
पंथ न कोई अन्य सूझता
शक्ति आत्म-परमात्म मिलाए
मिटा स्वार्थ सर्वार्थ लक्ष्य वर
श्वास-आस सह रास रचाए
इसकी टोपी उसके सिर न धर
शक्ति-भक्ति कर; मुक्ति-युक्ति कर
अनहद में लय कर अपना स्वर
संजीव
८-१२-२०२२
रॉयल डे कासा, गुवाहाटी
•••
सॉनेट
सच
*
अपनी कहे, न सुने और की।
कुर्सी बैठा अति का स्याना।
करुण कथा लिख रहा दौर की।।
घर-घर लाशें दे कोरोना।।
बौने कहते खुद को ऊँचा।
सागर को बतलाते मीठा।
गत पर थूक हो रहा नीचा।।
कुकुर चाटे दौना जूठा।।
गर्दभ बाघांबर धारण कर।
सीना ताने रेंक रहा है।
हर मुद्दे पर मुँह की खाकर।।
ऊँची-ऊँची फेंक रहा है।।
जिसने हाँ में हाँ न मिलाई।
उसकी समझो शामत आई।।
८-१२-२०२१
***
मुक्तिका
*
बैठ अँगना में ताकिए अंबर
भोर की हवा संग जी जाएँ
*
सूर्य-किरणों से किया याराना
क्या मिला तुमको कैसे बतलाएँ
*
गौर करिए दिख रही गौरैया
दूर हमसे न फिर ये हो पाएँ
*
काश कोविद बिना ही हम इंसां
खुद पे अंकुश लगा, सुधर जाएँ
*
साथ संजीव के उठा पुस्तक
पढ़ सकें, क्या मिला बता पाएँ
८-१२-२०२०
***
भारत की प्रमुख जनजातियाँ
आंध्र प्रदेश: चेन्चू, कोचा, गुड़ावा, जटापा, कोंडा डोरस, कोंडा कपूर, कोंडा रेड्डी, खोंड, सुगेलिस, लम्बाडिस, येलडिस, येरुकुलास, भील, गोंड, कोलम, प्रधान, बाल्मिक।
असम व नगालैंड: बोडो, डिमसा गारो, खासी, कुकी, मिजो, मिकिर, नगा, अबोर, डाफला, मिशमिस, अपतनिस, सिंधो, अंगामी।
झारखण्ड: संथाल, असुर, बैगा, बन्जारा, बिरहोर, गोंड, हो, खरिया, खोंड, मुंडा, कोरवा, भूमिज, मल पहाडिय़ा, सोरिया पहाडिय़ा, बिझिया, चेरू लोहरा, उरांव, खरवार, कोल, भील।
महाराष्ट्र: भील, गोंड, अगरिया, असुरा, भारिया, कोया, वर्ली, कोली, डुका बैगा, गडावास, कामर, खडिया, खोंडा, कोल, कोलम, कोर्कू, कोरबा, मुंडा, उरांव, प्रधान, बघरी।
पश्चिम बंगाल: होस, कोरा, मुंडा, उरांव, भूमिज, संथाल, गेरो, लेप्चा, असुर, बैगा, बंजारा, भील, गोंड, बिरहोर, खोंड, कोरबा, लोहरा।
हिमाचल प्रदेश: गद्दी, गुर्जर, लाहौल, लांबा, पंगवाला, किन्नौरी, बकरायल।
मणिपुर: कुकी, अंगामी, मिजो, पुरुम, सीमा।
मेघालय: खासी, जयन्तिया, गारो।
त्रिपुरा: लुशाई, माग, हलम, खशिया, भूटिया, मुंडा, संथाल, भील, जमनिया, रियांग, उचाई।
कश्मीर: गुर्जर।
गुजरात: कथोड़ी, सिद्दीस, कोलघा, कोटवलिया, पाधर, टोडिय़ा, बदाली, पटेलिया।
उत्तर प्रदेश: बुक्सा, थारू, माहगीर, शोर्का, खरवार, थारू, राजी, जॉनसारी।
उत्तरांचल: भोटिया, जौनसारी, राजी।
केरल: कडार, इरुला, मुथुवन, कनिक्कर, मलनकुरावन, मलरारायन, मलावेतन, मलायन, मन्नान, उल्लातन, यूराली, विशावन, अर्नादन, कहुर्नाकन, कोरागा, कोटा, कुरियियान,कुरुमान, पनियां, पुलायन, मल्लार, कुरुम्बा।
छत्तीसगढ़: कोरकू, भील, बैगा, गोंड, अगरिया, भारिया, कोरबा, कोल, उरांव, प्रधान, नगेशिया, हल्वा, भतरा, माडिया, सहरिया, कमार, कंवर।
तमिलनाडु: टोडा, कडार, इकला, कोटा, अडयान, अरनदान, कुट्टनायक, कोराग, कुरिचियान, मासेर, कुरुम्बा, कुरुमान, मुथुवान, पनियां, थुलया, मलयाली, इरावल्लन, कनिक्कर,मन्नान, उरासिल, विशावन, ईरुला।
कर्नाटक: गौडालू, हक्की, पिक्की, इरुगा, जेनु, कुरुव, मलाईकुड, भील, गोंड, टोडा, वर्ली, चेन्चू, कोया, अनार्दन, येरवा, होलेया, कोरमा।
उड़ीसा: बैगा, बंजारा, बड़होर, चेंचू, गड़ाबा, गोंड, होस, जटायु, जुआंग, खरिया, कोल, खोंड, कोया, उरांव, संथाल, सओरा, मुन्डुप्पतू।
पंजाब: गद्दी, स्वागंला, भोट।
राजस्थान: मीणा, भील, गरसिया, सहरिया, सांसी, दमोर, मेव, रावत, मेरात, कोली।
अंडमान-निकोबार द्वीप समूह: औंगी आरबा, उत्तरी सेन्टीनली, अंडमानी, निकोबारी, शोपन।
अरुणाचल प्रदेश: अबोर, अक्का, अपटामिस, बर्मास, डफला, गालोंग, गोम्बा, काम्पती, खोभा मिसमी, सिगंपो, सिरडुकपेन।
विश्व की प्रमुख जनजातियाँ
एस्किमों – एस्कीमों जनजाति उत्तरी अमेरिका के कनाड़ा, ग्रीनलैण्ड और साइबेरिया क्षेत्र में पाई जाती है।
यूकाधिर – यह साइबेरिया में रहने वाली जनजाति है। यह मंगोलाइड प्रजाति से संबंधित जनजाति है, इनकी आँखें आधी खुली होती है और रंग पीला होता है।
ऐनू – यह ‘जापान’ की जनजाति है।
बुशमैन – यह दक्षिण अफ्रीका और अफ्रीका के कालाहारी मरूस्थल में पाई जाने वाली जनजाति है।
अफरीदी – पाकिस्तान।
माओरी – न्यूजीलैण्ड, ऑस्ट्रेलिया।
मसाई – अफ्रीका के कीनिया में पाई जाने वाली जनजाति है।
जुलू – दक्षिण अफ्रीका के नेटाल प्रांत में।
बद्दू – अरब के मरूस्थल में पाई जाने वाली जनजाति है।
पिग्मी – कांगो बेसिन (अफ्रीका) !
पापुआ – न्यूगिनी।
रेड इण्डियन – दक्षिण अमेरिका।
लैप्स – फिनलैण्ड और स्काॅटलैण्ड।
खिरगीज – मध्य एषिया के स्टेपी क्षेत्र।
बोरो – अमेजन बेसिन।
बेद्दा – श्रीलंका।
सेमांग – मलेशिया।
माया – मेक्सिको।
फूलानी – अफ्रीका के नाइजीरिया में।
बांटू – दक्षिणी एवं मध्य अफ्रीका।
बोअर – दक्षिणी अफ्रीका। 
८.१२.२०१८
***
छंद सलिला :
माया छंद
*
छंद विधान: मात्रिक छंद, दो पद, चार चरण, सम पदांत,
पहला-चौथा चरण : गुरु गुरु लघु-गुरु गुरु लघु-लघु गुरु लघु-गुरु गुरु,
दूसरा तीसरा चरण : लघु गुरु लघु-गुरु गुरु लघु-लघु गुरु लघु-गुरु गुरु।
उदाहरण:
१. आपा न खोयें कठिनाइयों में, न हार जाएँ रुसवाइयों में
रुला न देना तनहाइयों में, बोला अबोला तुमने कहो क्यों?
२. नादानियों का करना न चर्चा, जमा न खोना कर व्यर्थ खर्चा
सही नहीं जो मत आजमाओ, पाखंडियों की करना न अर्चा
३. मौका मिला तो न उसे गँवाओ, मिले न मौक़ा हँस भूल जाओ
गिरो न हारो उठ जूझ जाओ, चौंके ज़माना बढ़ लक्ष्य पाओ
***
दोहा-दोहा शिव बसे
.
शिव न जोड़ते श्रेष्ठता, शिव न छोड़ते त्याज्य.
बिछा भूमि नभ ओढ़ते, शिव जीते वैराग्य.
.
शिव सत् के पर्याय हैं, तभी सती के नाथ.
अंग रमाते असुंदर, सुंदर धरते माथ.
.
शिव न असल तजते कभी, शिव न नकल के साथ.
शिव न भरोसे भाग्य के, शिव सच्चे जग-नाथ.
.
शिव नअशिव से दूर हैं, शिव न अशिव में लीन.
दंभ न दाता सा करें कभी न होते दीन.
.
शिव ही मंगलनाथ हैं शिव ही जंगलनाथ.
जंगल में मंगल करें, विष-अमृत ले साथ.
.
शिव सुरारि-असुरारि भी, शिव त्रिपुरारि अनंत.
शिव सचमुच कामरि हैं, शिव रति-काम सुकंत.
.
शिव माटी के पूत हैं, शिव माटी के दूत.
माटी-सुता शिवा वरें, शिव अपूत हो पूत.
.
शिव असार में सार हैं, शिव से है संसार.
सलिल शीश पर धारते, सलिल शीश पर धार.
.
शिव न साधना लीन हों, शिव न साधना-मुक्त.
शिव न बाह्य अन्तर्मुखी, शिव संयुक्त-विमुक्त.
८.१२.२०१७
...
मुक्तक
माँ
माँ की महिमा जग से न्यारी, ममता की फुलवारी
संतति-रक्षा हेतु बने पल भर में ही दोधारी
माता से नाता अक्षय जो पाले सुत बडभागी-
ईश्वर ने अवतारित हो माँ की आरती उतारी
नारी
नर से दो-दो मात्रा भारी, हुई हमेशा नारी
अबला कभी न इसे समझना, नारी नहीं बिचारी
माँ, बहिना, भाभी, सजनी, सासु, साली, सरहज भी
सखी न हो तो समझ जिंदगी तेरी सूखी क्यारी
*
पत्नि
पति की किस्मत लिखनेवाली पत्नि नहीं है हीन
भिक्षुक हो बारात लिए दर गए आप हो दीन
करी कृपा आ गयी अकेली हुई स्वामिनी आज
कद्र न की तो किस्मत लेगी तुझसे सब सुख छीन
*
दीप प्रज्वलन
शुभ कार्यों के पहले घर का अँगना लेना लीप
चौक पूर, हो विनत जलाना, नन्हा माटी-दीप
तम निशिचर का अंत करेगा अंतिम दम तक मौन
आत्म-दीप प्रज्वलित बन मोती, जीवन सीप
*
परोपकार
अपना हित साधन ही माना है सबने अधिकार
परहित हेतु बनें समिधा, कब हुआ हमें स्वीकार?
स्वार्थी क्यों सुर-असुर सरीखा मानव होता आज?
नर सभ्यता सिखाती मित्रों, करना पर उपकार
*
एकता
तिनका-तिनका जोड़ बनाते चिड़वा-चिड़िया नीड़
बिना एकता मानव होता बिन अनुशासन भीड़
रहे-एकता अनुशासन तो सेना सज जाती है-
देकर निज बलिदान हरे वह, जनगण कि नित पीड़
*
असली गहना
असली गहना सत्य न भूलो
धारण कर झट नभ को छू लो
सत्य न संग तो सुख न मिलेगा
भोग भोग कर व्यर्थ न फूलो
६.१२.२०१६
***

शनिवार, 7 दिसंबर 2024

दिसंबर ६, गीत, सॉनेट, मुक्तक, दोहा, लघुकथा, बुंदेली, ब्याहुल

सलिल सृजन दिसंबर ६
*
मुक्तक 
अंजली भर अंजली में भाव रस लय गीत गा।
कह रही है शारदा से मातु! रचना पथ दिखा।।
शब्द-सुमनों का बनाऊँ हार अर्पित कर तुझे-
धन्य हो पाऊँ सनातन सत्य नित मुझसे लिखा।।
६.१२.२०१९
०००
गीत
नीलाभित नभ सिंदूरी हो गया किसी के नाम से।
सूर्य प्रणम्य प्रतीत हो रहे सुधिमय नम्र प्रणाम से।।
रश्मि रश्मि शाकुंतल सुषमा लिए सूर्य दुष्यंत सम।
नयन नयन से कहें-सुनें क्या; पूछो मौन दिगंत सम।।
पंछी गुंजाते शहनाई; लहरें गातीं मंगल गान-
वट पल्लव कर मंत्र-पाठ; आहुतियाँ देते संत सम।।
फुलबगिया में सँकुचाई सिय; अकथ कह गई राम से।
शाम मिली फिर मुग्धा राधा, हुलस पुलक घनश्याम से।
सूर्य प्रणम्य प्रतीत हो रहे सुधिमय नम्र प्रणाम से।
नीलाभित नभ सिंदूरी हो गया किसी के नाम से।।
ब्रह्मपुत्र नद किसको ध्याए, कल कल कल कर टेरता।
लहर लहर उत्कंठित पल पल, गंगा का पथ हेरता।।
मेघदूत से यक्ष पठाता; व्यथा-कथा निज पाती में।
बैरागी मन को रागी चित; दसों दिशा से घेरता।।
उस अनाम को ही संबोधित; करते शत-शत नाम से।
वह आकुल मिलता है; खुद ही आकर निष्काम से।।
सूर्य प्रणम्य प्रतीत हो रहे सुधिमय नम्र प्रणाम से।
नीलाभित नभ सिंदूरी हो गया किसी के नाम से।।
किसे सुमिरता है युग युग से, लिए सुमिरनी गति-यति की।
व्यथा उमा-नंदा की कह-सुन; समय साक्ष्य दे जन-मति की।।
कहे गुवाहाटी शिव तनया गंगा से जा मिलो गले।
ब्रह्मपुत्र मंदाकिनी भेटें, लीला सरस समयपति की।।
नखत नवाशा जगा दमकते, खास बन गए आम से।
करतल ध्वनि कर मुदित शांत जन; लगते पूर्ण विराम से।।
सूर्य प्रणम्य प्रतीत हो रहे सुधिमय नम्र प्रणाम से।
नीलाभित नभ सिंदूरी हो गया किसी के नाम से।।
६-१२-२०२२,७-५४
रॉयल डे कासा, गुवाहाटी
●●●
झूलना
*
नर्मदा वर्मदा शर्मदा धर्मदा मातु दो नीर हर लो पिपासा।
प्राण-मन तृप्त हो, भू न अभिशप्त हो, दो उजाला न तम हो जरा सा।।
भारती तारती आरती हम करें हो सदय कर जगत यह हरा सा।
वायु निर्मल रहे कर सुवासित बहे भाव नव संचरे रस नया सा।।
***
सॉनेट
वंदना
*
वंदन देव गजानन शत-शत।
करूँ प्रणाम शारदा माता।
कर्मविधाता चित्र गुप्त प्रभु।।
नमन जगत्जननी-जगत्राता।।
अंतरिक्ष नवगृह हिंदी माँ।
दसों दिशाएँ सदा सदय हों।
छंदों से आनंदित आत्मा।।
शब्द शक्ति पा भाव अजय हों।।
श्वास-श्वास रस बरसाओ प्रभु!
अलंकार हो आस हास में।
सत-शिव-सुंदर कह पाऊँ विभु।।
रखूँ भरोसा सत्प्रयास में।।
नाद ताल लिपि अक्षर वाणी।
निर्मल मति दे माँ कल्याणी।।
६-१२-२०२१
***
नवगीत
*
जुगनू हुए इकट्ठे
सूरज को कहते हैं बौना।
*
शिल्प-माफिया छाती ठोंके,
मुखपोथी कुरुक्षेत्र।
अँधरे पुजते दिव्य चक्षु बन,
गड़े शरम से नेत्र।
खाल शेर की ओढ़ दहाड़े
'चेंपो' गर्दभ-छौना।
जुगनू हुए इकट्ठे
सूरज को कहते हैं बौना।
*
भाव अभावों के ऊँचे हैं,
हुई नंगई फैशन।
पाचक चूर्ण-गोलियाँ गटकें,
कहें न पाया राशन।
'लिव इन' बरसों जिया,
मौज कर कहें 'छला बिन गौना।
*
स्यापा नकली, ताल ठोंकते
मठाधीश षडयंत्री।
शब्द-साधना मान रुदाली
रस भूसे खल तंत्री।
मुँह काला कर गर्वित,
खुद ही कहते लगा डिठौना।
५-१२-२०१८
***
कुसुम-कली सम महककर, जग महका दो मीत.
'सलिल' सुवासित सुरूपा, मन हारे मन जीत..
*
मुक्तक
.
नेह से कोई नआला
मन तरा यदि नेह पाला
नेह दीपक दिवाली का
नेह है पावन शिवाला
.
सुनीता पुनीता रहे जिंदगी
सुगीता कहे कर्म ही बंदगी
कर ईश-अर्पण न परिणाम सोच
महकती हों श्वासें सदा संदली
.
बंद कौन है काया की कारा में?
बंदा है वह बँधा कर्म-धारा में
काया बसी आत्मा ही कायस्थ
करे बंदगी, सार यही सारा में
.
गौ भाषा को दुह करे,
अर्थ-दुग्ध का पान.
श्रावण या रमजान हो,
दोहा रस की खान.
६.१२.२०१७
.
दोहा दुनिया
*
जो चाहें वह बेच दें, जब चाहे अमिताभ
अच्छा है जो बच गए, हे बच्चन अजिताभ
*
हे माँ! वर दे टेर सुन, हुआ करिश्मा आज
हेमा से हेमा कहे, डगमग तेरा ताज
*
हैं तो वे धर्मेन्द्र पर, बदल लिया निज धर्म
है पत्थर तन में छिपा, मक्खन जैसा मर्म
*
नूतन है हर तनूजा, रखे करीना याद
जहाँ जन्म ले बिपाशा, हो न वहाँ आबाद
*
नयनों में काजोल भर, हुई शबाना मौन
शबनम की बूँदें झरीं, कहो पी गया कौन?
*
जय ललिता की बोलिए, शंकर रहें प्रसन्न
कहें जय किशन अगर तो, हो संगीत प्रसन्न
**
अमिताभ = बहुत आभायुक्त, अजिताभ = जिसकी आभा अजेय हो, करिश्मा =चमत्कार, हेमा = धरती, सोना, धर्मेन्द्र = परम धार्मिक, नूतन = नयी, तनूजा = पुत्री, करीना = तरीका,बिपाशा = नदी, काजोल = काजल, शबाना = रात, शबनम = ओस, जय ललिता = पार्वती की जय,जय किशन = कृष्ण की जय
६.१२.२०१६
***
लघुकथा-
ओवर टाइम
*
अभी तो फैक्ट्री में काम का समय है, फिर मैं पत्ते खेलने कैसे आ सकता हूँ? ५ बजे के बाद खेल लेंगे।
तुम भी यार! रहे लल्लू के लल्लू। शाम को देर से घर जाकर कौन अपनी खाट खड़ी करवाएगा? चल अभी खेलते हैं काम बाकी रहेगा तभी तो प्रबंधन समय पर कराने के लिये देगा ओवर टाइम।
*
लघु कथा -
सहिष्णुता
*
कहा-सुनी के बाद वह चली गयी रसोई में और वह घर के बाहर, चलते-चलते थक गया तो एक पेड़ के नीचे बैठ गया. कब झपकी लगी पता ही न चला, आँख खुली तो थकान दूर हो गयी थी, कानों में कोयल के कूकने की मधुर ध्वनि पड़ी तो मन प्रसन्न हुआ. तभी ध्यान आया उसका जिसे छोड़ आया था घर में, पछतावा हुआ कि क्यों नाहक उलझ पड़ा?
कुछ सोच तेजी से चल पड़ा घर की ओर, वह डबडबाई आँखों से उसी को चिंता में परेशान थी, जैसे ही उसे अपने सामने देखा, राहत की साँस ली. चार आँखें मिलीं तो आँखें चार होने में देर न लगी.
दोनों ने एक-दुसरे का हाथ थामा और पहुँच गये वहीं जहाँ अनेकता में एकता का सन्देश दे नहीं, जी रहे थे वे सब जिन्हें अल्पबुद्धि जीव कहते हैं वे सब जो पारस्परिक विविधता के प्रति नहीं रख पा रहे अपने मन में सहिष्णुता।
६.१२.२०१५
***
गीत :...
सच है
*
कुछ प्रश्नों का कोई भी औचित्य नहीं होता यह सच है.
फिर भी समय-यक्ष प्रश्नों से प्राण-पांडवी रहा बेधता...
*
ढाई आखर की पोथी से हमने संग-संग पाठ पढ़े हैं.
शंकाओं के चक्रव्यूह भेदे, विश्वासी किले गढ़े है..
मिलन-क्षणों में मन-मंदिर में एक-दूसरे को पाया है.
मुक्त भाव से निजता तजकर, प्रेम-पन्थ को अपनाया है..
ज्यों की त्यों हो कर्म चदरिया मर्म धर्म का इतना जाना-
दूर किया अंतर से अंतर, भुला पावना-देना सच है..
कुछ प्रश्नों का कोई भी औचित्य नहीं होता यह सच है.
फिर भी समय-यक्ष प्रश्नों से प्राण-पांडवी रहा बेधता...
*
तन पाकर तन प्यासा रहता, तन खोकर तन वरे विकलता.
मन पाकर मन हुआ पूर्ण, खो मन को मन में रही अचलता.
जन्म-जन्म का संग न बंधन, अवगुंठन होता आत्मा का.
प्राण-वर्तिकाओं का मिलना ही दर्शन है उस परमात्मा का..
अर्पण और समर्पण का पल द्वैत मिटा अद्वैत वर कहे-
काया-माया छाया लगती मृग-मरीचिका लेकिन सच है
कुछ प्रश्नों का कोई भी औचित्य नहीं होता यह सच है.
फिर भी समय-यक्ष प्रश्नों से प्राण-पांडवी रहा बेधता...
*
तुमसे मिलकर जान सका यह एक-एक का योग एक है.
सृजन एक ने किया एक का बाकी फिर भी रहा एक है..
खुद को खोकर खुद को पाया, बिसरा अपना और पराया.
प्रिय! कैसे तुमको बतलाऊँ, मर-मिटकर नव जीवन पाया..
तुमने कितना चाहा मुझको या मैं कितना तुम्हें चाहता?
नाप माप गिन तौल निरुत्तर है विवेक, मन-अर्पण सच है.
कुछ प्रश्नों का कोई भी औचित्य नहीं होता यह सच है.
फिर भी समय-यक्ष प्रश्नों से प्राण-पांडवी रहा बेधता...
६.१२.२०१३
***
मुक्तिका:
है यही वाजिब...
*
है यही वाज़िब ज़माने में बशर ऐसे जिए।
जिस तरह जीते दिवाली रात में नन्हे दिए।।
रुख्सती में हाथ रीते ही रहेंगे जानते
फिर भी सब घपले-घुटाले कर रहे हैं किसलिए?
घर में भी बेघर रहोगे, चैन पाओगे नहीं,
आज यह, कल और कोई बाँह में गर चाहिए।।
चाक हो दिल या गरेबां, मौन ही रहना 'सलिल'
मेहरबां से हो गुजारिश- 'और कुछ फरमाइए'।।
आबे-जमजम की सभी ने चाह की लेकिन 'सलिल'
कोई तो हो जो ज़हर के घूँट कुछ हँसकर पिए।।
***
लोकभाषा-काव्य में श्री गणेश :
*
पारंपरिक ब्याहुलों (विवाह गीत) से दोहा : संकलित
पूरब की पारबती, पच्छिम के जय गनेस.
दक्खिन के षडानन, उत्तर के जय महेस..
*
बुन्देली पारंपरिक तर्ज:
मँड़वा भीतर लगी अथाई के बोल मेरे भाई.
रिद्धि-सिद्धि ने मेंदी रचाई के बोल मेरे भाई.
बैठे गनेश जी सूरत सुहाई के बोल मेरे भाई.
ब्याव लाओ बहुएँ कहें मताई के बोल मेरे भाई.
दुलहन दुलहां खों देख सरमाई के बोल मेरे भाई.
'सलिल' झूमकर गम्मत गाई के बोल मेरे भाई.
नेह नर्मदा झूम नहाई के बोल मेरे भाई.
*अवधी मुक्तक:
गणपति कै जनम भवा जबहीं, अमरावति सूनि परी तबहीं.
सुर-सिद्ध कैलास सुवास करें, अनुराग-उछाह भरे सबहीं..
गौर की गोद मा लाल लगैं, जनु मोती 'सलिल' उर मा बसही.
जग-छेम नरमदा-'सलिल' बहा, कछु सेस असेस न जात कही..
६.१२.२०१२
***

दिसंबर ७, भुजंगप्रयात, शुभगति, गंग, छवि, दोहा, रोला, सोरठा, छंद, लघुकथा, कुण्डलिया, कचनार,बसंत

सलिल सृजन ७ दिसंबर
० 
दोहा बसंत में 
रश्मि रूप पर मुग्ध हो, दिनकर नभ का भूप।
प्रणय याचना कर रहा, भू पर उतर अनूप।।
कनकाभित हरितिमा लख, नीलाभित नभ मौन।
रतिपति सी गति हो नहीं, सच समझाए कौन?
पर्ण-पर्ण पर छा रहा, नूतन प्रणय निखार।
कली-कली पर भ्रमर दल, है निसार दिल हार।।
वनश्री नव वधु सी सजी, करने पीले हाथ।
माँ वसुधा बेचैन है, उठा झुकाए माथ।।
कुड़माई करने चला, सूर्य धरा के संग।
रश्मि बलैया ले हँसी, बिखरे स्नेहिल रंग
७.१२.२०२४
०००
मौसम 
*
मौसम कहे न कोई मो सम।
रंग बदलता गिरगिट जैसे। 
पल में तोला, पल में माशा, 
कभी नरम है, कभी गरम है। 
इस पल करता पक्का वादा 
उस पल कह देता है जुमला। 
करता दगा चीन के जैसे, 
कभी पाक की माफिक हमला।
देश बांग्ला भटका-अटका  
खुद ने खुद को खुद ही पटका।
करे सियासत मौन-मुखर हो 
पक्ष-विपक्ष सरीखे उलझे। 
धरती हैरां, थका आसमां 
श्वान-पूँछ टेढ़ा का टेढ़ा। 
साथ न छोड़े जन्म सात तक 
अलस्सुबह से देर रात तक।   
कभी हँसाए; करे आँख नम
मौसम कहे न कोई मो सम। 
०००  
कचनार गाथा
सुंदर सुमन सुमन मन मोहे,
झूम रहा गाता मल्हार।
माह बारहों हैं बसंत सम,
शांत अशोक मौन कचनार।।
मीनाकारी कली लली की,
भर अंजलि में सरला देख।
प्रमुदित रेखा पर्ण पर्ण पर,
पवन पढ़े किस्मत का लेख।।
अनिल अनल भू सलिल गगन का,
मीत हमेशा कर संतोष।
हृदय बसाए सरला-शन्नो,
राजकुमार अस्मिता कोष।।
मदन मुग्ध सुंदर फूलों पर,
वसुधा तनुजा कर सिंगार।
कहें अर्जिता कीर्ति बढ़े नित,
पाओ-बाँटो प्यार अपार।।
७.१२.२०१९
०००
दोहा-दोहा चिकित्सा
*
खाँसी कफ टॉन्सिल अगर, करती हो हैरान।
कच्ची हल्दी चूसिए, सस्ता, सरल निदान।।
*
खाँस-खाँस मुँह हो रहा, अगर आपका लाल।
पान शहद अदरक मिला, चूसें करे कमाल।।
*
करिए गर्म अनार रस, पिएँ न खाँसें मीत।
चूसें काली मिर्च तो, खाँसी हो भय-भीत।।
*
दमा ब्रोन्कियल अस्थमा, करे अगर बेचैन।
सुबह पिएँ गो मूत्र नित, ताजा पाएँ चैन।।
*
पिसी दालचीनी मिला, शहद पीजिए मीत।
पानी गरम सहित घटे, दमा न रहिए भीत।।
*
ग्रस्त तपेदिक से अगर, पिएँ आप छह माह।
नित ताजा गोमूत्र तो, मिले स्वास्थ्य की राह।।
*
वात-पित्त-कफ दोष का, नीबू करता अंत।
शक्ति बढ़ाता बदन की, सेवन करिए कंत।।
*
ए बी सी त्रय विटामिन, लौह वसा कार्बोज।
फॉस्फोरस पोटेशियम, सेवन देता ओज।।
*
मैग्निशियम प्रोटीन सँग, सोडियम तांबा प्राप्य।
साथ मिले क्लोरीन भी, दे यौवन दुष्प्राप्य।।
*
नेत्र ज्योति की वृद्धि कर, करे अस्थि मजबूत।
कब्ज मिटा, खाया-पचा, दे सुख-ख़ुशी अकूत।।
*
जल-नीबू-रस नमक लें, सुबह-शाम यदि छान।
राहत दे गर्मियों में, फूँक जान में जान।।
*
नींबू-बीज न खाइए, करे बहुत नुकसान।
भोजन में मत निचोड़ें, बाद करें रस-पान।।
*
कब्ज अपच उल्टियों से, लेता शीघ्र उबार।
नीबू-सेंधा नमक सँग, अदरक है उपचार।।
*
नींबू अजवाइन शहद, चूना-जल लें साथ।
वमन-दस्त में लाभ हो, हँसें उठकर माथ।।
*
जी मिचलाए जब कभी, तनिक न हों बेहाल।
नीबू रस-पानी-शहद, आप पिएँ तत्काल।।
*
नींबू-रस सेंधा नमक, गंधक सोंठ समान।
मिली गोलियाँ चूसिए, सुबह-शाम गुणवान।
*
नींबू रस-पानी गरम, अम्ल पित्त कर दूर।
हरता उदर विकार हर, नियमित पिएँ हुज़ूर।।
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आधा सीसी दर्द से, परेशान-बेचैन।
नींबू रस जा नाक में, देता पल में चैन।।
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चार माह के गर्भ पर, करें शिकंजी पान।
दिल-धड़कन नियमित रहे, प्रसव बने आसान।।
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कृष्णा तुलसी पात ले, पाँच- चबाएँ खूब।
नींबू-रस पी भगा दें, फ्लू को सुख में डूब।।
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पिएँ शिकंजी, घाव पर, मलिए नींबू रीत।
लाभ एक्जिमा में मिले, चर्म नर्म हो मीत।।
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कान दर्द हो कान में, नींबू-अदरक अर्क।
डाल साफ़ करिए मिले, शीघ्र आपको फर्क।।
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नींबू-छिलका सुखाकर, पीस फर्श पर डाल।
दूर भगा दें तिलचटे, गंध करे खुशहाल।।
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नीबू-छिलके जलाकर, गंधक दें यदि डाल।
खटमल सेना नष्ट हो, खुद ही खुद तत्काल।।
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पीत संखिया लौंग संग, बड़ी इलायची कूट।
नींबू-रस मलहम लगा, करें कुष्ठ को हूट।।
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नींबू-रस हल्दी मिला, उबटन मल कर स्नान।
नर्म मखमली त्वचा पा, करे रूपसी मान।।
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मिला नारियल-तेल में, नींबू-रस नित आध।
मलें धूप में बदन पर, मिटे खाज की व्याध।।
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खूनी दस्त अगर लगे, घोलें दूध-अफीम।
नींबू-रस सँग मिला पी, सोयें बिना हकीम।।
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बवासीर खूनी दुखद, करें दुग्ध का पान।
नींबू-रस सँग-सँग पिएँ, बूँद-बूँद मतिमान।।
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नींबू-रस जल मिला-पी, करें नित्य व्यायाम।
क्रमश: गठिया दूर हो, पाएँगे आराम।।
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गला बैठ जाए- करें, पानी हल्का गर्म।
नींबू-अर्क नमक मिला, कुल्ला करना धर्म।।
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लहसुन-नींबू रस मिला, सिर पर मल कर स्नान।
मुक्त जुओं से हो सकें, महिलायें अम्लान।।
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नींबू-एरंड बीज सम, पीस चाटिए रात।
अधिक गर्भ संभावना, होती मानें बात।।
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प्याज काट नीबू-नमक, डाल खाइए रोज।
गर्मी में हो ताजगी, बढ़े देह का ओज।।
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काली मिर्च-नमक मिली, पियें शिकंजी आप।
मिट जाएँगी घमौरियाँ, लगे न गर्मी शाप।।
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चेहरे पर नींबू मलें, फिर धो रखिए शांति।
दाग मिटें आभा बढ़े, अम्ल-विमल हो कांति।।
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नमक आजवाइन मिला, नीबू रस के संग।
आधा कप पानी पिएँ, करती वायु न तंग।।
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अदरक अजवाइन नमक, नीबू रस में डाल।
हो जाए जब लाल तब, खाकर हों खुशहाल।।
घटे पीलिया नित्य लें, गहरी-गहरी श्वास।
सुबह-शाम उद्यान में, अधरों पर रख हास।।
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लहसुन अजवाइन मिला, लें सरसों का तेल।
गरम करें छानें मलें, जोड़-दर्द मत झेल।।
कान-दर्द खुजली करे, खाएँ कढ़ी न भात।
खारिश दाद न रह सके, मिले रोग को मात।।
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डालें बकरी-दूध में, मिसरी तिल का चूर्ण।
रोग रक्त अतिसार हो, नष्ट शीघ्र ही पूर्ण।।
७.१२.२०१८
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छंद सप्तक १.
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शुभगति
कुछ तो कहो
चुप मत रहो
करवट बदल-
दुःख मत सहो
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छवि
बन मनु महान
कर नित्य दान
तू हो न हीन-
निज यश बखान
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गंग
मत भूल जाना
वादा निभाना
सीकर बहाना
गंगा नहाना
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दोहा:
उषा गाल पर मल रहा, सूर्य विहँस सिंदूर।
कहे न तुझसे अधिक है, सुंदर कोई हूर।।
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सोरठा
सलिल-धार में खूब,नृत्य करें रवि-रश्मियाँ।
जा प्राची में डूब, रवि ईर्ष्या से जल मरा।।
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रोला
संसद में कानून, बना तोड़े खुद नेता।
पालन करे न आप, सीख औरों को देता।।
पाँच साल के बाद, माँगने मत जब आया।
आश्वासन दे दिया, न मत दे उसे छकाया।।
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कुण्डलिया
बरसाने में श्याम ने, खूब जमाया रंग।
मैया चुप मुस्का रही, गोप-गोपियाँ तंग।।
गोप-गोपियाँ तंग, नहीं नटखट जब आता।
माखन-मिसरी नहीं, किसी को किंचित भाता।।
राधा पूछे "मजा, मिले क्या तरसाने में?"
उत्तर "तूने मजा, लिया था बरसाने में??"
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एक दोहा
शिव नरेश देवेश भी, हैं उमेश दनुजेश.
सत-सुन्दर पर्याय हो, घर-घर पुजे हमेश.
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कार्यशाला
यगण x ४ = यमाता x ४ = (१२२) x ४
बारह वार्णिक जगती जातीय भुजंगप्रयात छंद,
बीस मात्रिक महादैशिक जातीय छंद
बहर फऊलुं x ४
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हमारा न होता, तुम्हारा न होता
नहीं बोझ होता, सहारा न होता
नहीं झूठ बोता, नहीं सत्य खोता-
कभी आदमी बेसहारा न होता
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करों याद, भूलो न बातें हमारी
नहीं प्यार के दिन न रातें हमारी
कहीं भी रहो, याद आये हमेशा
मुलाकात पहली, बरातें हमारी
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सदा ही उड़ेगी पताका हमारी
सदा भी सुनेगा जमाना हमारी
कभी भी न छोड़ा, कभी भी न छोड़ें
अदाएँ तुम्हारी, वफायें हमारी
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कभी भी, कहीं भी सुनाओ तराना
हमीं याद में हों, नहीं भूल जाना
लिखो गीत-मुक्तक, कहो नज्म चाहे
बहाने बनाना, हमीं को सुनाना
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प्रथाएँ भुलाते चले जा रहे हैं
अदाएँ भुनाते छले जा रहे हैं
न भूलें भुनाना,न छोड़ें सताना
नहीं आ रहे हैं, नहीं जा रहे हैं
७.१२.२०१६
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लघुकथा -
द़ेर है
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एक प्रकाशक महोदय को उनके द्वारा प्रकाशित पुस्तक विश्वविद्यालय में स्वीकृत होने पर बधाई दी तो उनहोंने बुझे मन से आभार व्यक्त किया। कारण पूछने पर पता चला कि विभागाध्यक्ष ने पाठ्यक्रम में लगवाने का लालच देकर छपवा ली, आधी प्रतियाँ खुद रख लीं। शेष प्रतियाँ अगले सत्र में विद्यार्थियों को बेची जाना थीं किन्तु विभागाध्यक्ष जुगाड़ फिट कर किसी अकादमी के अध्यक्ष बन गये। नये विभाध्यक्ष ने अन्य प्रकाशक की किताब पाठ्यक्रम में लगा दी।
अनेक साहित्यकार मित्र प्रकाशक जी द्वारा शोषण के कई प्रसंग बता चुके थे। आज उल्टा होता देख सोचा रहा हूँ देर है अंधेर नहीं।
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लघु कथाएँ -
मुट्ठी से रेत
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आजकल बिटिया रोज शाम को सहेली के घर पढ़ाई करने का बहाना कर जाती है और सवेरे ही लौटती है। समय ठीक नहीं है, मना करती हूँ तो मानती नहीं। कल पड़ोसन को किसी लडके के साथ पार्क में घूमते दिखी थी।
यह तो होना ही है, जब मैंने आरम्भ में उसे रोक था तो तुम्हीं झगड़ने लगीं थीं कि मैं दकियानूस हूँ, अब लडकियों की आज़ादी का ज़माना है। अब क्या हुआ, आज़ाद करो और खुश रहो।
मुझे क्या मालूम था कि वह हाथ से बाहर निकल जाएगी, जल्दी कुछ करो।
दोनों बेटी के कमरे में गए तो मेज पर दिखी एक चिट्ठी जिसमें मनपसंद लडके के साथ घर छोड़ने की सूचना थी।
दोनों अवाक, मुठ्ठी से फिसल चुकी थी रेत।
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समरसता
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भृत्यों, सफाईकर्मियों और चौकीदारों द्वारा वेतन वृद्धि की माँग मंत्रिमंडल ने आर्थिक संसाधनों के अभाव में ठुकरा दी।
कुछ दिनों बाद जनप्रतिनिधियों ने प्रशासनिक अधिकारियों की कार्य कुशलता की प्रशंसा कर अपने वेतन भत्ते कई गुना अधिक बढ़ा लिये।
अगली बैठक में अभियंताओं और प्राध्यापकों पर हो रहे व्यय को अनावश्यक मानते हुए सेवा निवृत्ति से रिक्त पदों पर नियुक्तियाँ न कर दैनिक वेतन के आधार पर कार्य कराने का निर्णय सर्व सम्मति से लिया गया और स्थापित हो गयी समरसता।
७.१२.२०१५
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