कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 14 दिसंबर 2023

सॉनेट, रश्मि, व्यंग्य मुक्तिका, नर्मदा, Poem, श्री राधे, नव गीत, दोहा, हाइकु, व्यंग्य गीत

 सलिल सृजन १४ दिसंबर 

सॉनेट 

चंद्र मणि

गगन अँगूठी रत्न चंद्र मणि जगमग चमके,

अवलोके जो दाँतों में अँगुलियाँ दबाए,

धरती मैया सुता निहारे बलि बलि जाए,

तारक दीप्ति मंद हो कहिए कैसे दमके?

गड़ गड़ मेघा रूठे क्रोधित गरजे-बमके

पवन वेग से दौड़े-भागे खून जलाए,

मिले चंद्र मणि नहीं; इंद्र बरसात कराए,

सूरज कर दीदार न पाए दिन भए तमके।

भोले भण्डारी हँस लेते सजा शीश पर,

नाग कंठ में लटकाकर हर करें सुरक्षा,

अमिय-जहर का साथ अनूठा जग जग हेरे।

जैसा भाव दिखे वैसा ही कवि कहते अक्सर,

दे प्रज्ञान चित्र, विक्रम को भाए कक्षा,

निरख चंद्र मणि रूप सलिल साथी को टेरे।

१४.१२.२०२३ 

सॉनेट

रश्मि
रश्मि कौंधती प्राची में तब पौ फटती है,
रश्मिरथी नीलाभ गगन को रँगें सुनहरा,
पंछी करते कलरव झूमे पवन मसखरा,
आलस की कुहराई रजाई भी हटती है।
आँखें खुलें मनुजता भू पर पग धरती है,
गिरि चढ़, नापे समुद, गगन में भी वह विचरा,
रश्मि सूर्य शशि की मोहे पग वहाँ भी धरा,
ग्रह-उपग्रह जय करने की कोशिश करती है।
रश्मि ज्ञान की दे विवेक सत-सुंदर-शिव भी,
नश्वर माया की छाया से मुक्त हो सकें,
काया साधन पा साधें जन-गण के हित को।
रहने योग्य रहे यह धरती, मिले विभव भी,
क्रोध घृणा विद्वेष सके हर मानव मन खो,
रश्मि प्रकाशित करें निरंतर जीवन-पथ को।
१४.१२.२०२३
•••

व्यंग्य मुक्तिका
घना कोहरा, घुप्प अँधेरा मुँह मत खोलो।
अंध भक्त हो नेता जी की जय जय बोलो।।
संविधान की गारंटी का मोल नहीं है।
नेता जी की गारंटी सुन मटको-डोलो।।
करो विभाजित नित समाज को, मेल मिटाओ।
सद्भावों के शर्बत में नफ़रत विष घोलो।।
जो बीता सो बीता कह आगे मत बढ़ना।
खोद विवादों के मुर्दे जीवन को तोलो।।
मार कुल्हाड़ी आप पैर पर आप हाथ से।
हँस लेना लेकिन पहले थोड़ा तो रो लो।।
१४.१२.२०२३
•••

सॉनेट

नर्मदा
नर्मदा सलिला सनातन,
करोड़ों वर्षों पुरानी,
हर लहर कहती कहानी।
रहो बनकर पतित पावन।।
शिशु सदृश यह खूब मचले,
बालिका चंचल-चपल है,
किशोरी रूपा नवल है।
युवा दौड़े कूद फिसले।।
सलिल अमृत पिलाती है,
शिवांगी मोहे जगत को।
भीति भव की मिटाती है।।
स्वाभिमानी अब्याहा है,
जगज्जननी सुमाता है।
शीश सुर-नर नवाता है।।
संजीव
१४-१२-२०२२
जबलपुर,७•४७
●●●
***
Poem:Again and again
Sanjiv
*
Why do I wish to swim
Against the river flow?
I know well
I will have to struggle
More and more.
I know that
Flowing downstream
Is an easy task
As compared to upstream.
I also know that
Well wishers standing
On both the banks
Will clap and laugh.
If I win,
They will say:
Their encouragement
Is responsible for the success.
If unfortunately
I lose,
They will not wait a second
To say that
They tried their best
To stop me
By laughing at me.
In both the cases
I will lose and
They will win.
Even then
I will swim
Against the river flow
Again and again.
***
अभिनव प्रयोग
मुक्तिका
श्री राधे
*
अनहद-अक्षर अजर-अमर हो श्री राधे
आत्मा आकारित आखर हो श्री राधे
इला इडा इसरार इजा हो श्री राधे
ईक्षवाकु ईश्वर ईक्षित हो श्री राधे
उदधि उबार उठा उन्नत हो श्री राधे
ऊब न ऊसर उपजाऊ हो श्री राधे
एक एक मिल एक रंग हो श्री राधे
ऐंचातानी जग में क्यों हो श्री राधे?
और न औसर और लुभाओ श्री राधे
थके खोजकर क्यों ओझल हो श्री राधे
अंत न अंतिम 'सलिल' कंत हो श्री राधे
अ: अ: आहा छवि अब हो श्री राधे
(प्रथमाक्षर स्वर)
१४-१२-२०१९
***
नव गीत :
क्यों करे?
*
चर्चा में
चर्चित होने की चाह बहुत
कुछ करें?
क्यों करे?
*
तुम्हें कठघरे में आरोपों के
बेड़ा हमने।
हमें अगर तुम घेरो तो
भू-धरा लगे फटने।
तुमसे मुक्त कराना भारत
ठान लिया हमने।
'गले लगे' तुम,
'गले पड़े' कह वार किया हमने।
हम हैं
नफरत के सौदागर, डाह बहुत
कम करें?
क्यों करे?
*
हम चुनाव लड़ बने बड़े दल
तुम सत्ता झपटो।
नहीं मिले तो धमकाते हो
सड़कों पर निबटो।
अंग हमारे, छल से छीने
बतलाते अपने।
वादों को जुमला कहते हो
नकली हैं नपने।
माँगो अगर बताओ खुद भी,
जाँच कमेटी गठित
मिल करें?
क्यों करे?
*
चोर-चोर मौसेरे भाई
संगा-मित्ती है।
धूल आँख में झोंक रहे मिल
यारी पक्की है।
नूराकुश्ती कर, भत्ते तो
बढ़वा लेते हो।
भूखा कृषक, अँगूठी सुख की
गढ़वा लेते हो।
नोटा नहीं, तुम्हें प्रतिनिधि
निज करे।
क्यों करे?
संजीव
१४-१२-२०१८
***
जो बूझे सो ज्ञानी
छन्नी से छानने पर जो पदार्थ ऊपर रह जाता है उसे क्या कहते हैं?, जो नीचे गिर जाता है उसे क्या कहते हैं?, जो उपयोगी पदार्थ हो उसे क्या कहते हैं?, जो निरुपयोगी परार्थ हो उसे क्या कहते हैं?
छानन का क्या मतलब है?
*
नवगीत
संसद-थाना
जा पछताना।
जागा चोर, सिपाही सोया
पाया थोड़ा, ज्यादा खोया
आजादी है
कर मनमाना।
जो कुर्सी पर बैठा-ऐंठा
ताश समझ जनता को फेंटा
मत झूठों को
सच बतलाना।
न्याय तराजू थामे अंधा
काले कोट कर रहे धंधा
हो अन्याय
न तू चिल्लाना।
बदमाशों के साथ प्रशासन
लोकतंत्र है महज दु:शासन
चूहा बन
मनमाना खाना।
पंडा-डंडा, झंडी-झण्डा
शाकाहारी है खा अंडा
प्रभु को दिखा
भोग खुद खाना।
14.12.2016
***
एक दोहा-
चीका, बळी, फेदड़ी, तेली, खिजरा, खाओ खूब
भारत की हर भाषा बोलो, अपनेपन में डूब
***
उत्तर प्रदेश डिप्लोमा इंजीनियर्स महासंघ की स्मारिका १९८८ में प्रकाशित मेरे हाइकु
१.
ईंट रेट का
मन्दिर मनहर
देव लापता
*
२.
क्या दूँ मीता?
भौतिक सारा जग
क्षणभंगुर
*
गोली या तीर
सी चुभन गंभीर
लिए हाइकु
*
स्वेद-गंग है
पावन सचमुच
गंगा जल से
*
पर पीड़ा से
अगर न पिघला
तो मानव क्या?
*
मैले मन को
उजला तन क्यों
देते हो प्रभु?
*
चाह नहीं है
सुख की दुःख
साथी हैं सच्चे
*
मद-मदिरा
मत मुझे पिला, दे
नम्र भावना
*
इंजीनियर
लगा रहा है चूना
क्यों खुद को ही?
***
नवगीत
*
शब्दों की भी मर्यादा है
*
हल्ला-गुल्ला, शोर-शराबा
क्यों उल्लास-ख़ुशी हुडदंगा?
शब्दों का मत दुरूपयोग कर.
शब्द चाहता यह वादा है
शब्दों की भी मर्यादा है
*
शब्द नाद है, शब्द ताल है.
गत-अब-आगत, यही काल है
पल-पल का हँस सदुपयोग कर
उत्तम वह है जो सादा है
शब्दों की भी मर्यादा है
*
सुर, सरगम, धुन, लय, गति-यति है
समझ-साध सदबुद्धि-सुमति है
कर उपयोग न किन्तु भोग कर
बोझ अहं का नयों लादा है?
शब्दों की भी मर्यादा है
१४-१२-२०१६
***
व्यंग्य गीत
*
बंदर मामा
चीन्ह -चीन्ह कर
न्याय करे
*
जो सियार वह भोगे दण्ड
शेर हुआ है अति उद्दण्ड
अपना & तेरा मनमानी
ओह निष्पक्ष रचे पाखण्ड
जय जय जय
करता समर्थ की
वाह करे
*
जो दुर्बल वह पिटना है
सच न तनिक भी पचना है
पाटों बीच फँसे घुन को
गेहूं के सँग पिसना है
सत्य पिट रहा
सुने न कोई
हाय करे
*
निर्धन का धन राम हुआ
अँधा गिरता खोद कुँआ
दोष छिपा लेता है धन
सच पिंजरे में कैद सुआ
करते आप
गुनाह रहे, भरता कोई
विवश मरे
१२.१२. १५
***
नवगीत:
नवगीतात्मक खंडकाव्य रच
महाकाव्य की ओर चला मैं
.
कैसा मुखड़ा?
लगता दुखड़ा
कवि-नेता ज्यों
असफल उखड़ा
दीर्घ अंतरा क्लिष्ट शब्द रच
अपनी जय खुद कह जाता बच
बहुत हुआ सम्भाव्य मित्रवर!
असम्भाव्य की ओर चला मैं
.
मिथक-बिम्ब दूँ
कई विरलतम
निकल समझने
में जाए दम
कई-कई पृष्ठों की नवता
भारी भरकम संग्रह बनता
लिखूं नहीं परिभाष्य अन्य सा
अपरिभाष्य की ओर चला मैं
.
नवगीतों का
मठाधीश हूँ
अपने मुँह मिट्ठू
कपीश हूँ
वहं अहं का पाल लिया है
दोष थोपना जान लिया है
मानक मान्य न जँचते मुझको
तज अमान्य की ओर चला मैं
***
नवगीत:
निज छवि हेरूँ
तुझको पाऊँ
.
मन मंदिर में कौन छिपा है?
गहन तिमिर में कौन दिपा है?
मौन बैठकर
किसको गाऊँ?
.
हुई अभिन्न कहाँ कब किससे?
गूँज रहे हैं किसके किस्से??
कौन जानता
किसको ध्याऊँ?
.
कौन बसा मन में अनजाने?
बरबस पड़ते नयन चुराने?
उसका भी मन
चैन चुराऊँ?
***
दोहा
हहर हहर कर हर रही, लहर-लहर सुख-चैन
सिहर-कहर चुप प्राण-मन, आप्लावित हैं नैन
१४-१२-२०१४
***

बुधवार, 13 दिसंबर 2023

गीत, मुक्तिका, सॉनेट, व्यंग्य लेख, नवगीत

 मुक्तिका

कर नियंत्रित कामनाएँ

हों निमंत्रित भावनाएँ

रब रखे महफूज सबको

मिटाकर सब यातनाएँ

कोशिशें अच्छी न हारें

खूब जूझें जीत जाएँ

स्नेह सुख सम्मान सम पा

खिलखिलाएँ सुत-सुताएँ

रहे निर्झर सा सलिल-मन

नेह नर्मद नित नहाएंँ

भोर अँगना में चिरैया

उतर फुदकें चहचहाएँ

साँस आखिर तक रहे दम

पसीना जमकर बहाएँ

१३.१२.२०२३

•••

सॉनेट

कामना

*
कामना हो साथ हर दम
काम ना छोड़े अधूरा
हाथ जो ले करे पूरा
कामनाएँ हों न कम
का मनाया?; का मिला है?
अनमना है; उन्मना है
क्यों इतै नाहक मुरझना?
का मना! तू कब खिला है?
काम ना- ना काम मोहे
काम ना हो तो परेशां
काम ना या काम चाहे?
भला कामी या अकामी?
बनो नामी या अनामी?
बूझता जो वही सामी
संजीव
१३-१२-२२
जबलपुर, ७•०४
●●●
***
द्विपदियाँ
फ़िक्र वतन की नहीं तनिक, जुमलेबाजी का शौक
नेता को सत्ता प्यारी, जनहित से उन्हें न काम
*
कुर्सी पाकर रंग बदल, दें गिरगिट को भी मात
काम तमाम तमाम काम का, करते सुबहो-शाम
१३-१२-२०२०
***
मुक्तक
*
कुंज में पाखी कलरव करते हैं
गीत-गगन में नित उड़ान नव भरते हैं
स्नेह सलिल में अवगाहन कर हाथ मिला-
भाव-नर्मदा नहा तारते तरते हैं
*
मनोरमा है हिंदी भावी जगवाणी
सुशोभिता मम उर में शारद कल्याणी
लिपि-उच्चार अभिन्न, अनहद अक्षर है
शब्द ब्रह्म है, रस-गंगा संप्राणी है
*
जैन वही जो अमन-चैन जी-जीने दे
पिए आप संतोष सलिल नित, पीने दे
परिग्रह से हो मुक्त निरंतर बाँट सके-
तपकर सुमन सु-मन जग को रसभीने दे
*
उजाले देख नयना मूँदकर परमात्म दिख जाए नमन कर
तिमिर से प्रगट हो रवि-छवि निरख मन झूमकर गाए नमन कर
मुदित ऊषा, पुलक धरती, हुलस नभ हो रहा हर्षित चमन लख
'सलिल' छवि ले बसा उर में करे भव पार मिट जाए अमन कर
१२-१२-२०२०, ६.४५
***
व्यंग्य लेख::
माया महाठगिनी हम जानी
*
तथाकथित लोकतंत्र का राजनैतिक महापर्व संपन्न हुआ। सत्य नारायण कथा में जिस तरह सत्यनारायण को छोड़कर सब कुछ मिलता है, उसी तरह लोकतंत्र में लोक को छोड़कर सब कुछ प्राप्य है। यहाँ पल-पल 'लोक' का मान-मर्दन करने में निष्णात 'तंत्र की तूती बोलती है। कहा जाता है कि यह 'लोक का, लोक के द्वारा, लोक के लिए' है लेकिन लोक का प्रतिनिधि 'लोक' नहीं 'दल' का बंधुआ मजदूर होता है। लोकतंत्र के मूल 'लोक मत' को गरीब की लुगाई, गाँव की भौजाई मुहावरे की तरह जब-तब अपहृत और रेपित करना हर दल अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानता है। ये दल राजनैतिक ही नहीं धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक भी हो सकते हैं। जो दल जितना अधिक दलदल मचने में माहिर होता है, उसे खबरिया जगत में उतनी ही अधिक जगह मिलती है।
हाँ, तो खबरिया जगत के अनुसार 'लोक' ने 'सेवक' चुन लिए हैं। 'लोक' ने न तो 'रिक्त स्थान की विज्ञप्ति प्रसारित की, न चीन्ह-चीन्ह कर विज्ञापन दिए, न करोड़ों रूपए आवेदन पत्रों के साथ बटोरे, न परीक्षा के प्रश्न-पत्र लीक कर वारे-न्यारे किए, न साक्षात्कार में चयन के नाम पर कोमलांगियों के साथ शयन कक्ष को गुलजार किया, न किसी का चयन किया, न किसी को ख़ारिज किया और 'सेवक' चुन लिए। अब ये तथाकथित लोकसेवक-देशसेवक 'लोक' और 'देश' की छाती पर दाल दलते हुए, ऐश-आराम, सत्तारोहण, कमीशन, घपलों, घोटालों की पंचवर्षीय पटकथाएँ लिखेंगे। उनको राह दिखाएँगे खरबूजे को देखकर खरबूजे की तरह रंग बदलने में माहिर प्रशासनिक सेवा के धुरंधर, उनकी रक्षा करेंगा देश का 'सर्वाधिक सुसंगठित खाकी वर्दीधारी गुंडातंत्र (बकौल सर्वोच्च न्यायालय), उनका गुणगान करेगा तवायफ की तरह चंद टकों और सुविधाओं के बदले अस्मत का सौदा करनेवाला खबरॉय संसार और इस सबके बाद भी कोई जेपी या अन्ना सामने आ गया तो उसके आंदोलन को गैर कानूनी बताने में न चूकनेवाला काले कोटधारी बाहुबलियों का समूह।
'लोकतंत्र' को 'लोभतंत्र' में परिवर्तित करने की चिरकालिक प्रक्रिया में चारों स्तंभों में घनघोर स्पर्धा होती रहती है। इस स्पर्धा के प्रति समर्पण और निष्ठां इतनी है की यदि इसे ओलंपिक में सम्मिलित कर लिया जाए तो स्वर्णपदक तो क्या तीनों पदकों में एक भी हमारे सिवा किसी अन्य को मिल ही नहीं सकता। दुनिया के बड़े से बड़े देश के बजट से कहीं अधिक राशि तो हमारे देश में इस अघोषित व्यवसाय में लगी हुई है। लोकतंत्र के चार खंबे ही नहीं हमारे देश के सर्वस्व तीजी साधु-संत भी इस व्यवसाय को भगवदपूजन से अह्दिक महत्व देते हैं। तभी तो घंटो से पंक्तिबद्ध खड़े भक्त खड़े ही रह जाते हैं और पुजारी की अंटी गरम करनेवाले चाट मंगनी और पैट ब्याह से भाई अधिक तेजी से दर्शन कर बाहर पहुँच जाते हैं।
लोकतंत्र में असीम संभावनाएं होती है। इसे 'कोकतंत्र' में भी सहजता से बदला जाता रहा है। टिकिट लेने, काम करने, परीक्षा उत्तीर्ण करने, शोधोपाधि पाने, नियुक्ति पाने, चुनावी टिकिट लेने, मंत्री पद पाने, न्याय पाने या कर्ज लेने में कैसी भी अनियमितता या बाधा हो, बिस्तर गरम करते ही दूर हो जाती है। और तो और नवग्रहों की बाधा, देवताओं का कोप और किस्मत की मार भी पंडित, मुल्ला या पादरी के शयनागार को आबाद कर दूर की जा सकती है। जिस तरह आप के बदले कोई और जाप कर दे तो आपके संकट दूर हो जाते हैं, वैसे ही आप किसी और को भी इस गंगा में डुबकी लगाने भेज सकते हैं। देव लोक में तो एक ही इंद्र है पर इस नर लोक में जितने भी 'काम' करनेवाले हैं वे सब 'काम' करने के बदले 'काम' होने के पहले 'काम की आराधना कर भवसागर पार उतरने का कोी मौका नहीं गँवाते।धर्म हो या दर्शन दोनों में कामिनी के बिना काम नहीं बनता।
हमारी विरासत है कि पहले 'काम' को भस्म कर दो फिर विवाह कर 'काम' के उपासक बन जाओ या 'पहले काम' को साध लो फिर संत कहलाओं। कोई-कोई पुरुषोत्तम आश्रम और मजारों की छाया में माया से ममता करने का पुरुषार्थ करते हुए भी 'रमता जोगी, बहता पानी' की तरह संग रहते हुए भी निस्संग और दागित होते हुए भी बेदाग़ रहा आता है। एक कलिकाल समानता का युग है। यहाँ नर से नारी किसी भी प्रकार पीछे रहना नहीं चाहती। सर्वोच्च न्यायालय और कुछ करे न करे, ७० साल में राम मंदिर पर निर्णय न दे सके किन्तु 'लिव इन' और 'विवाहेतर संबंधों' पर फ़ौरन से पेश्तर फैसलाकुन होने में अतिदक्ष है।
'लोक' भी 'तंत्र' बिना रह नहीं सकता। 'काम' को कामख्या से जोड़े या काम सूत्र से, 'तंत्र' को व्यवस्था से जोड़े या 'मंत्र' से, कमल उठाए या पंजा दिखाए, कही एक को रोकने के लिए, कही दूसरे को साधने के लिए 'माया' की शरण लेना ही होती है, लाख निर्मोही बनने का दवा करो, सत्ता की चौखट पर 'ममता' के दामन की आवश्यकता पड़ ही जाती है। 'लोभ' के रास्ते 'लोक' को 'तंत्र' के राह पर धकेलना हो या 'तंत्र' के द्वारा 'लोक' को रौंदना हो ममता और माया न तो साथ छोड़ती हैं, न कोई उनसे पीछा छुड़ाना चाहता है। अति संभ्रांत, संपन्न और भद्र लोक जानता है कि उसका बस अपनों को अपने तक रोकने पर न चले तो वह औरों के अपनों को अपने तक पहुँचने की राह बनाने से क्यों चूके? हवन करते हाथ जले तो खुद को दोषी न मानकर सूर हो या कबीर कहते रहे हैं 'माया महाठगिनी हम जानी।'
१३-१२-२०१८
***
द्विपदी भय की नाम-पट्टिका पर, लिख दें साहस का नाम.
कोशिश कभी न हारेगी, बाधा को दें पैगाम.
१३-१२-२०१७
***
मुक्तिका
*
मैं समय हूँ, सत्य बोलूँगा.
जो छिपा है राज खोलूँगा.
*
अनतुले अब तक रहे हैं जो
बिना हिचके उन्हें तोलूँगा.
*
कालिया है नाग काला धन
नाच फन पर नहीं डोलूँगा.
*
रूपए नकली हैं गरल उसको
मिटा, अमृत आज घोलूँगा
*
कमीशनखोरी न बच पाए
मिटाकर मैं हाथ धो लूँगा
*
क्यों अकेली रहे सच्चाई?
सत्य के मैं साथ हो लूँगा
*
ध्वजा भारत की उठाये मैं
हिन्द की जय 'सलिल' बोलूँगा
***
गीत
खाट खड़ी है
*
बड़े-बड़ों की खाट खड़ी है
मोल बढ़ गया है छोटों का.
हल्ला-गुल्ला,शोर-शराबा
है बिन पेंदी के लोटों का.
*
नकली नोट छपे थे जितने
पल भर में बेकार हो गए.
आम आदमी को डँसने से
पहले विषधर क्षार हो गए.
ऐसी हवा चली है यारो!
उतर गया है मुँह खोटों का
बड़े-बड़ों की खाट खड़ी है
मोल बढ़ गया है छोटों का.
*
नाग कालिया काले धन का
बिन मरे बेमौत मर गया.
जल, बहा, फेंका घबराकर
जान-धन खाता कहीं भर गया.
करचोरो! हर दिन होना है
वार धर-पकड़ के सोटों का
बड़े-बड़ों की खाट खड़ी है
मोल बढ़ गया है छोटों का.
*
बिना परिश्रम जोड़ लिया धन
रिश्वत और कमीशन खाकर
सेठों के हित साधे मिलकर
निज चुनाव हित चंदे पाकर
अब हर राज उजागर होगा
नेता-अफसर की ओटों का
बड़े-बड़ों की खाट खड़ी है
मोल बढ़ गया है छोटों का.
*
१३-१२-२०१६
***
नवगीत:
*
लेटा हूँ
मखमल गादी पर
लेकिन
नींद नहीं आती है
.
इस करवट में पड़े दिखाई
कमसिन बर्तनवाली बाई
देह सांवरी नयन कटीले
अभी न हो पाई कुड़माई
मलते-मलते बर्तन
खनके चूड़ी
जाने क्या गाती है
मुझ जैसे
लक्ष्मी पुत्र को
बना भिखारी वह जाती है
.
उस करवट ने साफ़-सफाई
करनेवाली छवि दिखलाई
आहा! उलझी लट नागिन सी
नर्तित कटि ने नींद उड़ाई
कर ने झाड़ू जरा उठाई
धक-धक धड़कन
बढ़ जाती है
मुझ अफसर को
भुला अफसरी
अपना दास बना जाती है
.
चित सोया क्यों नींद उड़ाई?
ओ पाकीज़ा! तू क्यों आई?
राधे-राधे रास रचाने
प्रवचन में लीला करवाई
करदे अर्पित
सब कुछ
गुरु को
जो
वह शिष्या
मन भाती है
.
हुआ परेशां नींद गँवाई
जहँ बैठूँ तहँ थी मुस्काई
मलिन भिखारिन, युवा, किशोरी
कवयित्री, नेत्री तरुणाई
संसद में
चलभाष देखकर
आत्मा तृप्त न हो पाती है
मुझ नेता को
भुला सियासत
गले लगाना सिखलाती है
१३-१२-२०१४
***
गीत
क्षितिज-फलक पर...
*
क्षितिज-फलक पर
लिखा हुआ क्या?...
*
रजनी की कालिमा परखकर,
ऊषा की लालिमा निरख कर,
तारों शशि रवि से बातें कर-
कहदो हासिल तुम्हें हुआ क्या?
क्षितिज-फलक पर
लिखा हुआ क्या?...
*
राजहंस, वक, सारस, तोते
क्या कह जाते?, कब चुप होते?
नहीं जोड़ते, विहँस छोड़ते-
लड़ने खोजें कभी खुआ क्या?
क्षितिज-फलक पर
लिखा हुआ क्या?...
*
मेघ जल-कलश खाली करता,
भरे किस तरह फ़िक्र न करता.
धरती कब धरती कुछ बोलो-
माँ खाती खुद मालपुआ क्या?
क्षितिज-फलक पर
लिखा हुआ क्या?...
*
रमता जोगी, बहता पानी.
पवन विचरता कर मनमानी.
लगन अगन बन बाधाओं का
दहन करे अनछुआ-छुआ क्या?
क्षितिज-फलक पर
लिखा हुआ क्या?...
*
चित्र गुप्त ढाई आखर का,
आदि-अंत बिन अजरामर का.
तन पिंजरे से मुक्ति चाहता
रुके 'सलिल' मन-प्राण सुआ क्या?
क्षितिज-फलक पर
लिखा हुआ क्या?...
१३-१२-२०१२
***

शुक्रवार, 8 दिसंबर 2023

सॉनेट, शक्ति, मुक्तिका, सच, जनजातियाँ, माया छंद, दोहा, शिव, मुक्तक, माँ

सलिल सृजन ८ दिसंबर

सॉनेट

शक्ति
आत्म चेतना परम शक्ति है
तंत्र शक्ति अर्जन की विधि है
मंत्र साधना सहज युक्ति है
यंत्र सुनिर्मित अक्षय निधि है
शक्ति न साध्य मात्र साधन है
शक्तिमान को जगत पूजता
कार्य-सिद्धि हित आराधन है
पंथ न कोई अन्य सूझता
शक्ति आत्म-परमात्म मिलाए
मिटा स्वार्थ सर्वार्थ लक्ष्य वर
श्वास-आस सह रास रचाए
इसकी टोपी उसके सिर न धर
शक्ति-भक्ति कर; मुक्ति-युक्ति कर
अनहद में लय कर अपना स्वर
संजीव
८-१२-२०२२
रॉयल डे कासा, गुवाहाटी
•••
सॉनेट
सच
*
अपनी कहे, न सुने और की।
कुर्सी बैठा अति का स्याना।
करुण कथा लिख रहा दौर की।।
घर-घर लाशें दे कोरोना।।
बौने कहते खुद को ऊँचा।
सागर को बतलाते मीठा।
गत पर थूक हो रहा नीचा।।
कुकुर चाटे दौना जूठा।।
गर्दभ बाघांबर धारण कर।
सीना ताने रेंक रहा है।
हर मुद्दे पर मुँह की खाकर।।
ऊँची-ऊँची फेंक रहा है।।
जिसने हाँ में हाँ न मिलाई।
उसकी समझो शामत आई।।
८-१२-२०२१
***
मुक्तिका
*
बैठ अँगना में ताकिए अंबर
भोर की हवा संग जी जाएँ
*
सूर्य-किरणों से किया याराना
क्या मिला तुमको कैसे बतलाएँ
*
गौर करिए दिख रही गौरैया
दूर हमसे न फिर ये हो पाएँ
*
काश कोविद बिना ही हम इंसां
खुद पे अंकुश लगा, सुधर जाएँ
*
साथ संजीव के उठा पुस्तक
पढ़ सकें, क्या मिला बता पाएँ
८-१२-२०२०
***
भारत की प्रमुख जनजातियाँ
आंध्र प्रदेश: चेन्चू, कोचा, गुड़ावा, जटापा, कोंडा डोरस, कोंडा कपूर, कोंडा रेड्डी, खोंड, सुगेलिस, लम्बाडिस, येलडिस, येरुकुलास, भील, गोंड, कोलम, प्रधान, बाल्मिक।
असम व नगालैंड: बोडो, डिमसा गारो, खासी, कुकी, मिजो, मिकिर, नगा, अबोर, डाफला, मिशमिस, अपतनिस, सिंधो, अंगामी।
झारखण्ड: संथाल, असुर, बैगा, बन्जारा, बिरहोर, गोंड, हो, खरिया, खोंड, मुंडा, कोरवा, भूमिज, मल पहाडिय़ा, सोरिया पहाडिय़ा, बिझिया, चेरू लोहरा, उरांव, खरवार, कोल, भील।
महाराष्ट्र: भील, गोंड, अगरिया, असुरा, भारिया, कोया, वर्ली, कोली, डुका बैगा, गडावास, कामर, खडिया, खोंडा, कोल, कोलम, कोर्कू, कोरबा, मुंडा, उरांव, प्रधान, बघरी।
पश्चिम बंगाल: होस, कोरा, मुंडा, उरांव, भूमिज, संथाल, गेरो, लेप्चा, असुर, बैगा, बंजारा, भील, गोंड, बिरहोर, खोंड, कोरबा, लोहरा।
हिमाचल प्रदेश: गद्दी, गुर्जर, लाहौल, लांबा, पंगवाला, किन्नौरी, बकरायल।
मणिपुर: कुकी, अंगामी, मिजो, पुरुम, सीमा।
मेघालय: खासी, जयन्तिया, गारो।
त्रिपुरा: लुशाई, माग, हलम, खशिया, भूटिया, मुंडा, संथाल, भील, जमनिया, रियांग, उचाई।
कश्मीर: गुर्जर।
गुजरात: कथोड़ी, सिद्दीस, कोलघा, कोटवलिया, पाधर, टोडिय़ा, बदाली, पटेलिया।
उत्तर प्रदेश: बुक्सा, थारू, माहगीर, शोर्का, खरवार, थारू, राजी, जॉनसारी।
उत्तरांचल: भोटिया, जौनसारी, राजी।
केरल: कडार, इरुला, मुथुवन, कनिक्कर, मलनकुरावन, मलरारायन, मलावेतन, मलायन, मन्नान, उल्लातन, यूराली, विशावन, अर्नादन, कहुर्नाकन, कोरागा, कोटा, कुरियियान,कुरुमान, पनियां, पुलायन, मल्लार, कुरुम्बा।
छत्तीसगढ़: कोरकू, भील, बैगा, गोंड, अगरिया, भारिया, कोरबा, कोल, उरांव, प्रधान, नगेशिया, हल्वा, भतरा, माडिया, सहरिया, कमार, कंवर।
तमिलनाडु: टोडा, कडार, इकला, कोटा, अडयान, अरनदान, कुट्टनायक, कोराग, कुरिचियान, मासेर, कुरुम्बा, कुरुमान, मुथुवान, पनियां, थुलया, मलयाली, इरावल्लन, कनिक्कर,मन्नान, उरासिल, विशावन, ईरुला।
कर्नाटक: गौडालू, हक्की, पिक्की, इरुगा, जेनु, कुरुव, मलाईकुड, भील, गोंड, टोडा, वर्ली, चेन्चू, कोया, अनार्दन, येरवा, होलेया, कोरमा।
उड़ीसा: बैगा, बंजारा, बड़होर, चेंचू, गड़ाबा, गोंड, होस, जटायु, जुआंग, खरिया, कोल, खोंड, कोया, उरांव, संथाल, सओरा, मुन्डुप्पतू।
पंजाब: गद्दी, स्वागंला, भोट।
राजस्थान: मीणा, भील, गरसिया, सहरिया, सांसी, दमोर, मेव, रावत, मेरात, कोली।
अंडमान-निकोबार द्वीप समूह: औंगी आरबा, उत्तरी सेन्टीनली, अंडमानी, निकोबारी, शोपन।
अरुणाचल प्रदेश: अबोर, अक्का, अपटामिस, बर्मास, डफला, गालोंग, गोम्बा, काम्पती, खोभा मिसमी, सिगंपो, सिरडुकपेन।
विश्व की प्रमुख जनजातियाँ
🎎
एस्किमों – एस्कीमों जनजाति उत्तरी अमेरिका के कनाड़ा, ग्रीनलैण्ड और साइबेरिया क्षेत्र में पाई जाती है !
🎎
यूकाधिर – यह साइबेरिया में रहने वाली जनजाति है। यह मंगोलाइड प्रजाति से संबंधित जनजाति है, इनकी आँखें आधी खुली होती है और रंग पीला होता है !
🎎
ऐनू – यह ‘जापान’ की जनजाति है !
🎎
बुशमैन – यह दक्षिण अफ्रीका और अफ्रीका के कालाहारी मरूस्थल में पाई जाने वाली जनजाति है !
🎎
अफरीदी – पाकिस्तान !
🎎
माओरी – न्यूजीलैण्ड, आॅस्टेलिया।
🎎
मसाई – अफ्रीका के कीनिया में पाई जाने वाली जनजाति है !
🎎
जुलू – दक्षिण अफ्रीका के नेटाल प्रांत में !
🎎
बद्दू – अरब के मरूस्थल में पाई जाने वाली जनजाति है !
🎎
पिग्मी – कांगो बेसिन (अफ्रीका) !
🎎
पापुआ – न्यूगिनी !
🎎
रेड इण्डियन – दक्षिण अमेरिका !
🎎
लैप्स – फिनलैण्ड और स्काॅटलैण्ड !
🎎
खिरगीज – मध्य एषिया के स्टेपी क्षेत्र !
🎎
बोरो – अमेजन बेसिन !
🎎
बेद्दा – श्रीलंका !
🎎
सेमांग – मलेशिया !
🎎
माया – मेक्सिको !
🎎
फूलानी – अफ्रीका के नाइजीरिया में !
🎎
बांटू – दक्षिणी एवं मध्य अफ्रीका !
🎎
बोअर – दक्षिणी अफ्रीका !
८.१२.२०१८
***
छंद सलिला :
माया छंद
*
छंद विधान: मात्रिक छंद, दो पद, चार चरण, सम पदांत,
पहला-चौथा चरण : गुरु गुरु लघु-गुरु गुरु लघु-लघु गुरु लघु-गुरु गुरु,
दूसरा तीसरा चरण : लघु गुरु लघु-गुरु गुरु लघु-लघु गुरु लघु-गुरु गुरु।
उदाहरण:
१. आपा न खोयें कठिनाइयों में, न हार जाएँ रुसवाइयों में
रुला न देना तनहाइयों में, बोला अबोला तुमने कहो क्यों?
२. नादानियों का करना न चर्चा, जमा न खोना कर व्यर्थ खर्चा
सही नहीं जो मत आजमाओ, पाखंडियों की करना न अर्चा
३. मौका मिला तो न उसे गँवाओ, मिले न मौक़ा हँस भूल जाओ
गिरो न हारो उठ जूझ जाओ, चौंके ज़माना बढ़ लक्ष्य पाओ
***
दोहा-दोहा शिव बसे
.
शिव न जोड़ते श्रेष्ठता, शिव न छोड़ते त्याज्य.
बिछा भूमि नभ ओढ़ते, शिव जीते वैराग्य.
.
शिव सत् के पर्याय हैं, तभी सती के नाथ.
अंग रमाते असुंदर, सुंदर धरते माथ.
.
शिव न असल तजते कभी, शिव न नकल के साथ.
शिव न भरोसे भाग्य के, शिव सच्चे जग-नाथ.
.
शिव नअशिव से दूर हैं, शिव न अशिव में लीन.
दंभ न दाता सा करें कभी न होते दीन.
.
शिव ही मंगलनाथ हैं शिव ही जंगलनाथ.
जंगल में मंगल करें, विष-अमृत ले साथ.
.
शिव सुरारि-असुरारि भी, शिव त्रिपुरारि अनंत.
शिव सचमुच कामरि हैं, शिव रति-काम सुकंत.
.
शिव माटी के पूत हैं, शिव माटी के दूत.
माटी-सुता शिवा वरें, शिव अपूत हो पूत.
.
शिव असार में सार हैं, शिव से है संसार.
सलिल शीश पर धारते, सलिल शीश पर धार.
.
शिव न साधना लीन हों, शिव न साधना-मुक्त.
शिव न बाह्य अन्तर्मुखी, शिव संयुक्त-विमुक्त.
८.१२.२०१७
...
मुक्तक
माँ
माँ की महिमा जग से न्यारी, ममता की फुलवारी
संतति-रक्षा हेतु बने पल भर में ही दोधारी
माता से नाता अक्षय जो पाले सुत बडभागी-
ईश्वर ने अवतारित हो माँ की आरती उतारी
नारी
नर से दो-दो मात्रा भारी, हुई हमेशा नारी
अबला कभी न इसे समझना, नारी नहीं बिचारी
माँ, बहिना, भाभी, सजनी, सासु, साली, सरहज भी
सखी न हो तो समझ जिंदगी तेरी सूखी क्यारी
*
पत्नि
पति की किस्मत लिखनेवाली पत्नि नहीं है हीन
भिक्षुक हो बारात लिए दर गए आप हो दीन
करी कृपा आ गयी अकेली हुई स्वामिनी आज
कद्र न की तो किस्मत लेगी तुझसे सब सुख छीन
*
दीप प्रज्वलन
शुभ कार्यों के पहले घर का अँगना लेना लीप
चौक पूर, हो विनत जलाना, नन्हा माटी-दीप
तम निशिचर का अंत करेगा अंतिम दम तक मौन
आत्म-दीप प्रज्वलित बन मोती, जीवन सीप
*
परोपकार
अपना हित साधन ही माना है सबने अधिकार
परहित हेतु बनें समिधा, कब हुआ हमें स्वीकार?
स्वार्थी क्यों सुर-असुर सरीखा मानव होता आज?
नर सभ्यता सिखाती मित्रों, करना पर उपकार
*
एकता
तिनका-तिनका जोड़ बनाते चिड़वा-चिड़िया नीड़
बिना एकता मानव होता बिन अनुशासन भीड़
रहे-एकता अनुशासन तो सेना सज जाती है-
देकर निज बलिदान हरे वह, जनगण कि नित पीड़
*
असली गहना
असली गहना सत्य न भूलो
धारण कर झट नभ को छू लो
सत्य न संग तो सुख न मिलेगा
भोग भोग कर व्यर्थ न फूलो
६.१२.२०१६
***