कुल पेज दृश्य

शुक्रवार, 27 जनवरी 2023

प्रकाशन - पुस्तकालय



- : विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर : समन्वय प्रकाशन जबलपुर : - 
शांति-राज पारिवारिक पुस्तकालय योजना
*
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर के तत्वावधान में नई पीढ़ी के मन में हिंदी के प्रति प्रेम तथा भारतीय संस्कारों के प्रति लगाव उत्पन्न करने के लिए न्यूनतम लागत में साहित्य प्रकाशन, वितरण, भूमिका लेखन, समीक्षा लेखन-प्रकाशन आदि में सहयोग अव्यावसायिक आधार पर किया जाता है। इस उद्देश्य से आरंभ पारिवारिक पुस्तकालय योजना के अंतर्गत निम्न में से १०००/- से अधिक की पुस्तकें मँगाने पर मूल्य में २५% छूट, पैकिंग व डाक व्यय निशुल्क की सुविधा उपलब्ध है। पुस्तक खरीदने के लिए salil.sanjiv@gmail.com या ९४२५१८३२४४ पर सम्पर्क करें। पुस्तक प्राप्त करने के लिए नीचे दर्शित मूल्य में से 25% घटकर राशि ९४२५१८३२४४ पर पे टी एम कर पावतीस्क्रीन शॉट तथा पुस्तकों के नाम अपने डाक के पते सहित वाट्स ऐप करें। 

पुस्तक सूची

०१. मीत मेरे कविताएँ -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', १५०/-
०२. काल है संक्रांति का गीत-नवगीत संग्रह -आचार्य संजीव 'सलिल', ३००/-
०३. सड़क पर गीत-नवगीत संग्रह आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', ३००/-
०४. कुरुक्षेत्र गाथा, खंड काव्य -स्व. डी.पी.खरे - आचार्य संजीव वर्मा  'सलिल',३००/-
०५. ओ मेरी तुम, श्रृंगार गीत संग्रह - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', ३००/-
०६. आदमी अभी जिंदा है - लघु कथा संग्रह - आचार्य संजीव 'सलिल' ३७०/-
०६. कलम के देव, भक्ति गीत संग्रह, आचार्य संजीव वर्मा  'सलिल', २५०/-
०७. भूकंप के साथ जीना सीखें, जनोपयोगी, आचार्य संजीव वर्मा  'सलिल', ३००/-
०८. लोकतंत्र का मक़बरा,काव्य संग्रह, आचार्य संजीव वर्मा  'सलिल', ३००/-
०९. मध्य प्रदेश की चुनिंदा लोक कथाएँ, आचार्य संजीव वर्मा  'सलिल', ३५०/-
१०. बुंदेलखंड की चुनिंदा लोक कथाएँ, आचार्य संजीव वर्मा  'सलिल', ३५०/-
११. शिक्षाप्रद  बाल कथाएँ, आचार्य संजीव वर्मा  'सलिल', १५०/-  यंत्रस्थ 
१२. कहे सोरठा सत्य, सोरठा सतसई, आचार्य संजीव वर्मा  'सलिल', ४००/-  
१३. दोहा-दोहा नर्मदा साझा दोहा संकलन सं. आचार्य संजीव वर्मा  'सलिल'-डॉ. साधना वर्मा, २५०/-
१४. दोहा सलिला निर्मला साझा दोहा संकलन सं. आचार्य संजीव वर्मा  'सलिल'-डॉ. साधना वर्मा, २५०/-
१५. दोहा दिव्य दिनेश साझा दोहा संकलन सं. आचार्य संजीव वर्मा  'सलिल'-डॉ. साधना वर्मा, ३००/-
१६. काव्य कालिंदी - रचना संग्रह, डॉ. संतोष शुक्ला, २५०/-
१७. खुशियों की सौगात, दोहा सतसई, डॉ. संतोष शुक्ला ,२५०/-
१८. छंद सोरठा ख़ास, सोरठा सतसई, डॉ. संतोष शुक्ला, ३००/-
१९. राम नाम सुखदाई, भजान संग्रह स्व. शांति देवी वर्मा, १००/-  
२०. Off And On -English Gazals, Dr. Anil Jain, ८०/-
२१. The Second Thought, English Poetry, Dr. Anil Jain, १५०/-
२२. यदा-कदा -उक्त का हिंदी काव्यानुवाद- डॉ. बाबू जोसफ-स्टीव विंसेंट, ८०/-
२३. पहला कदम काव्य संग्रह -डॉ. अनूप निगम, १००/-
२४. कदाचित काव्य संग्रह -स्व. सुभाष पांडे, १२०/-, 
२५. Contemporary Hindi Poetry - B.P. Mishra 'Niyaz', ३००/-
२६ हस्तिनापुर की बिथा कथा - डॉ. एम. एल. खरे २५०\-
२७. महामात्य महाकाव्य दयाराम गुप्त 'पथिक', ३५०/-
२८. कालजयी महाकाव्य दयाराम गुप्त 'पथिक', २२५/-
२९. सूतपुत्र महाकाव्य दयाराम गुप्त 'पथिक', १२५/-
३०. जीतने की जिद, काव्य संग्रह, सरला वर्मा, १२५/- 
३१.  अंतर संवाद कहानियाँ, रजनी सक्सेना, २००/-
***

गुरुवार, 26 जनवरी 2023

राजेंद्र बाबू , छंद त्रिभंगी, बसंत, दोहा ग़ज़ल, हिंदी ग़ज़ल, गणतंत्र , प्रजातंत्र, जनतंत्र, नवगीत, लघुकथा

त्रिभंगी सलिला:
ऋतुराज मनोहर...
*
ऋतुराज मनोहर, प्रीत धरोहर, प्रकृति हँसी, बहु पुष्प खिले.
पंछी मिल झूमे, नभ को चूमे, कलरव कर भुज भेंट मिले..
लहरों से लहरें, मिलकर सिहरें, बिसरा शिकवे भुला गिले.
पंकज लख भँवरे, सजकर सँवरे, संयम के दृढ़ किले हिले..
*
ऋतुराज मनोहर, स्नेह सरोवर, कुसुम कली मकरंदमयी.
बौराये बौरा, निरखें गौरा, सर्प-सर्पिणी, प्रीत नयी..
सुरसरि सम पावन, जन मन भावन, बासंती नव कथा जयी.
दस दिशा तरंगित, भू-नभ कंपित, प्रणय प्रतीति न 'सलिल' गयी..
*
ऋतुराज मनोहर, सुनकर सोहर, झूम-झूम हँस नाच रहा.
बौराया अमुआ, आया महुआ, राई-कबीरा बाँच रहा..
पनघट-अमराई, नैन मिलाई के मंचन के मंच बने.
कजरी-बम्बुलिया आरोही-अवरोही स्वर हृद-सेतु तने..
१४-२-२०१३
***
गीत :
किस तरह आये बसंत?...
मानव लूट रहा प्रकृति को
किस तरह आये बसंत?...
*
होरी कैसे छाये टपरिया?,
धनिया कैसे भरे गगरिया?
गाँव लीलकर हँसे नगरिया.
राजमार्ग बन गयी डगरिया.
राधा को छल रहा सँवरिया.
अंतर्मन रो रहा निरंतर
किस तरह गाये बसंत?...
*
बैला-बछिया कहाँ चरायें?
सूखी नदिया कहाँ नहायें?
शेखू-जुम्मन हैं भरमाये.
तकें सियासत चुप मुँह बाये.
खुद से खुद ही हैं शरमाये.
जड़विहीन सूखा पलाश लख
किस तरह भाये बसंत?...
*
नेह नरमदा सूखी-सूनी.
तीन-पाँच करते दो दूनी.
टूटी बागड़ ग़ायब थूनी.
ना कपास, तकली ना पूनी.
वैश्विकता की दाढ़ें खूनी.
खुशी बिदा हो गयी 'सलिल'चुप
किस तरह लाये बसंत?...
६-३-२०१०
***
बासंती दोहा ग़ज़ल (मुक्तिका)
*
स्वागत में ऋतुराज के, पुष्पित शत कचनार.
किंशुक कुसुम विहँस रहे, या दहके अंगार..
पर्ण-पर्ण पर छा गया, मादक रूप निखार.
पवन खो रहा होश निज, लख वनश्री श्रृंगार..
महुआ महका देखकर, चहका-बहका प्यार.
मधुशाला में बिन पिए, सिर पर नशा सवार..
नहीं निशाना चूकती, पंचशरों की मार.
पनघट-पनघट हो रहा, इंगित का व्यापार..
नैन मिले लड़ मिल झुके, करने को इंकार.
देख नैन में बिम्ब निज, कर बैठे इकरार..
मैं तुम यह वह ही नहीं, बौराया संसार.
फागुन में सब पर चढ़ा, मिलने गले खुमार..
ढोलक, टिमकी, मँजीरा, करें ठुमक इसरार.
फगुनौटी चिंता भुला. नाचो-गाओ यार..
घर-आँगन, तन धो लिया, अनुपम रूप निखार.
अपने मन का मैल भी, किंचित 'सलिल' बुहार..
बासंती दोहा ग़ज़ल, मन्मथ की मनुहार.
सीरत-सूरत रख 'सलिल', निर्मल सहज सँवार..
२२-१-२०१८
***

मुक्तिका
*
जनगण सेवी तंत्र बने राधे माधव
लोक जागृति मंत्र बने राधे माधव
प्रजा पर्व गणतंत्र दिवस यह अमर रहे
देश हेतु जन यंत्र बने राधे माधव
हों मतभेद न पर मनभेद कभी हममें
कोटि-कोटि जन एक बने राधे माधव
पक्ष-विपक्ष विनम्र सहिष्णु विवेकी हों
दाऊ-कन्हैया सदृश सदा राधे माधव
हों नर-नारी पूरक शंकर-उमा बनें
संतति सीता-राम रहे राधे माधव
हो संजीवित जग जीवन की जय बोलें
हो न महाभारत भारत राधे माधव
आर्यावर्त बने भारत सुख-शांतिप्रदा
रिद्धि-सिद्धि-विघ्नेश बसें राधे माधव
देव कलम के! शब्द-शक्ति की जय जय हो
शारद सुत हों सदा सुखी राधे माधव
जगवाणी हिंदी की दस दिश जय गूँजे
स्नेह सलिल अभिषेक करे राधे माधव
गणतंत्र दिवस २०२०
***
सोरठे गणतंत्र के
जनता हुई प्रसन्न, आज बने गणतंत्र हम।
जन-जन हो संपन्न, भेद-भाव सब दूर हो।
*
सेवक होता तंत्र, प्रजातंत्र में प्रजा का।
यही सफलता-मंत्र, जनसेवी नेता बनें।।
*
होता है अनमोल, लोकतंत्र में लोकमत।
कलम उठाएँ तोल, हानि न करिए देश की।।
*
खुद भोगे अधिकार, तंत्र न जन की पीर हर।
शासन करे विचार, तो जनतंत्र न सफल है।।
*
आन, बान, सम्मान, ध्वजा तिरंगी देश की।
विहँस लुटा दें जान, झुकने कभी न दे 'सलिल'।।
*
पालन करिए नित्य, संविधान को जानकर।
फ़र्ज़ मानिए सत्य, अधिकारों की नींव हैं।।
*
भारतीय हैं एक, जाति-धर्म को भुलाकर।
चलो बनें हम नेक, भाईचारा पालकर
२६-१-२०१८ 
***
नवगीत
*
प्रजातंत्र का अर्थ हो गया
केर-बेर का संग
*
संविधान कर प्रावधान
जो देता, लेता छीन
सर्वशक्ति संपन्न जनता
केवल बेबस-दीन
नाग-साँप-बिच्छू चुनाव लड़
बाँट-फूट डालें
विजयी हों, मिल जन-धन लूटें
जन-गण हो निर्धन
लोकतंत्र का पोस्टर करती
राजनीति बदरंग
प्रजातंत्र का अर्थ हो गया
केर-बेर का संग
*
आश्वासन दें, जीतें चुनाव, कह
जुमला जाते भूल
कहें गरीबी पर गरीब को
मिटा, करें निर्मूल
खुद की मूरत लगा पहनते,
पहनाते खुद हार
लूट-खसोट करें व्यापारी
अधिकारी बटमार
भीख , पा पुरस्कार
लौटा करते हुड़दंग
प्रजातंत्र का अर्थ हो गया
केर-बेर का संग
*
गौरक्षा का नाम, स्वार्थ ही
साध रहे हैं खूब
कब्ज़ा शिक्षा-संस्थान पर
कर शराब में डूब
दुश्मन के झंडे लहराते
दें सेना को दोष
बिन मेहनत पा सकें न रोटी
तब आएगा होश
जनगण जागे, गलत दिखे जो
करे उसी से जंग
प्रजातंत्र का अर्थ हो गया
केर-बेर का संग
२२-८-२०१६
***
गीत:
यह कैसा जनतंत्र...
*
यह कैसा जनतंत्र कि सहमत होना, हुआ गुनाह ?
आह भरें वे जो न और क़ी सह सकते हैं वाह...
*
सत्ता और विपक्षी दल में नेता हुए विभाजित
एक जयी तो कहे दूसरा, मैं हो गया पराजित
नूरा कुश्ती खेल-खेलकर जनगण-मन को ठगते-
स्वार्थ और सत्ता हित पल मेँ हाथ मिलाये मिलते
मेरी भी जय, तेरी भी जय, करते देश तबाह...
*
अहंकार के गुब्बारे मेँ बैठ गगन मेँ उड़ते
जड़ न जानते, चेतन जड़ के बल जमीन से जुड़ते
खुद को सही, गलत औरों को कहना- पाला शौक
आक्रामक भाषा ज्यों दौड़े सारमेय मिल-भौंक
दूर पंक से निर्मल चादर रखिए सही सलाह...
*
दुर्योधन पर विदुर नियंत्रण कर पायेगा कैसे?
शकुनी बिन सद्भाव मिटाये जी पाएगा कैसे??
धर्मराज की अनदेखी लख, पार्थ-भीम भी मौन
कृष्ण नहीं तो पीर सखा की न्यून करेगा कौन?
टल पाए विनाश, सज्जन ही सदा करें परवाह...
*
वेश भक्त का किंतु कुदृष्टि उमा पर रखे दशानन
दबे अँगूठे के नीचे तब स्तोत्र रचे मनभावन
सच जानें महेश लेकिन वे नहीं छोड़ते लीला
राम मिटाते मार, रहे फिर भी सिय-आँचल गीला
सत को क्यों वनवास? असत वाग्मी क्यों गहे पनाह?...
*
कुसुम न काँटों से उलझे, तब देव-शीश पर चढ़ता
सलिल न पत्थर से लडता तब बनकर पूजता
ढाँक हँसे घन श्याम, किन्तु राकेश न देता ध्यान
घट-बढ़कर भी बाँट चंद्रिका, जग को दे वरदान
जो गहरे वे शांत, मिले कब किसको मन की थाह...
*
२८-४-२०१४
***
गणतंत्र दिवस पर विशेष गीत:
लोकतंत्र की वर्ष गांठ पर
*
लोकतंत्र की वर्ष गांठ पर
भारत माता का वंदन...
हम सब माता की संतानें,
नभ पर ध्वज फहराएंगे.
कोटि-कोटि कंठों से मिलकर
'जन गण मन' गुन्जायेंगे.
'झंडा ऊंचा रहे हमारा',
'वन्दे मातरम' गायेंगे.
वीर शहीदों के माथे पर
शोभित हो अक्षत-चन्दन...
नेता नहीं, नागरिक बनकर
करें देश का नव निर्माण.
लगन-परिश्रम, त्याग-समर्पण,
पत्थर में भी फूंकें प्राण.
खेत-कारखाने, मन-मन्दिर,
स्नेह भाव से हों संप्राण.
स्नेह-'सलिल' से मरुथल में भी
हरिया दें हम नन्दन वन...
दूर करेंगे भेद-भाव मिल,
सबको अवसर मिलें समान.
शीघ्र और सस्ता होगा अब
सतत न्याय का सच्चा दान.
जो भी दुश्मन है भारत का
पहुंचा देंगे उसे मसान.
सारी दुनिया लोहा मने
विश्व-शांति का हो मंचन...
२६-१-२०१३
***
लघु कथा
शब्द और अर्थ
*
शब्द कोशकार ने अपना कार्य समाप्त किया...कमर सीधी कर लूँ , सोचते हुए लेटा कि काम की मेज पर कुछ खटपट सुनायी दी... मन मसोसते हुए उठा और देखा कि यथास्थान रखे शब्दों के समूह में से निकल कर कुछ शब्द बाहर आ गए थे। चश्मा लगाकर पढ़ा , वे शब्द 'लोकतंत्र', प्रजातंत्र', 'गणतंत्र' और 'जनतंत्र' थे।
शब्द कोशकार चौका - ' अरे! अभी कुछ देर पहले ही तो मैंने इन्हें यथास्थान रखा रखा था, फ़िर ये बाहर कैसे...?'
'चौंको मत...तुमने हमारे जो अर्थ लिखे हैं वे अब हमें अनर्थ लगते हैं। दुनिया का सबसे बड़ा लोक तंत्र लोभ तंत्र में बदल गया है। प्रजा तंत्र में तंत्र के लिए प्रजा की कोई अहमियत ही नहीं है। गन विहीन गन तंत्र का अस्तित्व ही सम्भव नहीं है। जन गन मन गाकर जनतंत्र की दुहाई देने वाला देश सारे संसाधनों को तंत्र के सुख के लिए जुटा रहा है। -शब्दों ने एक के बाद एक मुखर होते हुए कहा।
२९-३-२००९
***
महामानव देशरत्न राजेंद्र बाबू 

डॉ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार अपने गाँव जीरादेई (ज़िला सिवान, बिहार) गए।  भव्य तरीके से उनका स्वागत हुआ। ढोल और गाजे-बाजे की आवाज के साथ उनका सम्मान हुआ। गाँववालों के साथ वे अपने घर पहुँचे और पैर छूकर अपनी दादी का आशीर्वाद लिया। दादी ने आशीर्वाद देते हुए कहा- "सुनअ तनी कि बउवा बहुत बड़का आदमी बनअ गईल। जुग जुग जिय औरउ आगे बढ़अ। इतना बड़ आदमी जाई कि गाँव में ज सिपाही रही ओकर से भी बड़ -उ बहुते तंग करतअ हमरा परिवार के।" (सुना कि तुम बहुत बड़े आदमी बन गए हो। जुग जुग जियो, और भी आगे बढ़ो। इतना बड़ा आदमी कि ये गाँव में जो सिपाही है उससे बड़े आदमी- वो सिपाही हमारे परिवार को बहुत तंग करता है।)

बहुत सादा जीवन था उनका, स्वभाव भी सरल। पहनावा-ओढ़ावा और रहन सहन बेहद साधारण। मोज़े के जोड़े का एक मोजा फट जाए तो उसे फेंकते नहीं थे, दूसरे रंग के मोज़े के साथ पहन लेते कि इसे बनाने में जिसने श्रम किया है, उसका अपमान न हो। 

राष्ट्रपति बनने के बाद उन्हें दिल्ली में आवंटित निवास राष्ट्रपति भवन में व्यवस्थित होना था। रेल के माध्यम से उनका सारा सामान पटना से दिल्ली ले जाया रहा था। व्यक्तिगत रूप से इस्तेमाल होने वाली सामग्री तो १-२ सूटकेस में समाहित हो गए पर सबसे बड़ा ज़खीरा था- बाँस से बने सूप ,डलिया, चलनी इत्यादि का। गाँवों में श्रीमती राजवंशी देवी इसका इस्तेमाल अनाज से भूसा, कंकड़ और धूल इत्यादि निकालने के लिए करती रहीं। उन्होंने और उनकी पत्नी ने ये परंपरा राष्ट्रपति भवन में भी बरक़रार रखी। 

कुछ दिनों बाद प्रख्यात कवयित्री महादेवी जी दिल्ली गईं तो राजेंद्र बाबू और राजवंशी देवी जी से मिलने बहुत संकोच के साथ गईं कि सर्वोच्च पद पाने के बाद न जाने कैसा व्यवहार करें। राजेंद्र बाबू कार्यालय में थे, इसलिए वे सीधे राजवंशी देवी के पास रसोई घर में बैठ गईं। हाल-चाल जानने के बाद पूछा कि कैसा लग रहा है? राजवंशी जी ने कहा कि गाँव की बहुत याद आती है। यहाँ कोई अपना नहीं है। महादेवी जी ने चलते समय पूछा कि यहाँ तो किसी चीज की कमी नहीं होगी? राजवंशी देवी ने सँकुचाते हुए कहा कि गाँव जैसे सूपे नहीं मिलते। कुछ दिनों बाद महादेवी जी का फिर दिल्ली जाना हुआ तो वे राजवंशी देवी के लिए कुछ सूपे ले जाना न भूलीं। सूपे पाकर राजवंशी जी बहुत प्रसन्न हुईं हुए बगल में सूपे रखकर दोनों बातचीत करने लगीं। महादेवी जी के आने का समाचार मिलने पर कुछ देर में राजेंद्र बाबू भी रसोई में आ गए। सूपे देखकर पूछ कि कहाँ से आए तो राजवंशी देवी ने बताया कि बीबी जी (ननद) लाई हैं। राजेंद्र बाबू ने नाज़िर को बुलवाया और बोले सूपे तोशाखाने (वह स्थान जहाँ बेशकीमती उपहार रखे जाते हैं) में रखवा दो और राजवंशी देवी से बोले कि मैं सरकारी पद पर हूँ, मुझे जो उपहार मिले वह सरकार का होता है, हम उसे अपने काम में नहीं ला सकते। राजवंशी जी और महादेवी जी देखती रह गईं और नाज़िर ने वे सूपे तोशाखाने में जमा करवा दिए। आज हर अधिकारी और नेता सरकारी सुख, सुविधा और संपत्ति पर अपना अधिकार समझता है, क्या कोई राजेंद्र बाबू का अनुकरण करेगा?  

बारह वर्षों के लिए राष्ट्रपति भवन राजेंद्र बाबू का घर था। उसकी राजसी भव्यता और शान सुरुचिपूर्ण सादगी में बदल गई थी। राष्ट्रपति का एक पुराना नौकर था, तुलसी। एक दिन सुबह कमरे की झाड़पोंछ करते हुए उससे राजेन्द्र प्रसाद जी के डेस्क से एक हाथी दांत का पेन नीचे ज़मीन पर गिर गया। पेन टूट गया और स्याही कालीन पर फैल गई। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद बहुत गुस्सा हुए। यह पेन किसी की भेंट थी और उन्हें बहुत ही पसन्द थी। तुलसी पहले भी कई बार लापरवाही कर चुका था। उन्होंने अपना गुस्सा दिखाने के लिये तुरंत तुलसी को अपनी निजी सेवा से हटा दिया। उस दिन वह बहुत व्यस्त रहे। कई प्रतिष्ठित व्यक्ति और विदेशी पदाधिकारी उनसे मिलने आये। मगर सारा दिन काम करते हुए उनके दिल में एक काँटा सा चुभता रहा था। उन्हें लगता रहा कि उन्होंने तुलसी के साथ अन्याय किया है। जैसे ही उन्हें मिलने वालों से अवकाश मिला राजेन्द्र प्रसाद ने तुलसी को अपने कमरे में बुलाया। पुराना सेवक अपनी ग़लती पर डरता हुआ कमरे के भीतर आया। उसने देखा कि राष्ट्रपति सिर झुकाए और हाथ जोड़े उसके सामने खड़े हैं। उन्होंने धीमे स्वर में कहा- "तुलसी मुझे माफ कर दो।"

तुलसी इतना चकित हुआ कि उससे कुछ बोला ही नहीं गया।

राष्ट्रपति ने फिर नम्र स्वर में दोहराया- "तुलसी, तुम क्षमा नहीं करोगे क्या?"

इस बार सेवक और स्वामी दोनों की आँखों में आँसू आ गए।
***

बुधवार, 25 जनवरी 2023

गीत, गणतंत्र, सॉनेट, सोरठे, मुक्तिका, नवगीत,

गीत 
अगिन नमन गणतंत्र महान
जनगण गाए मंगलगान
*
दसों दिशाएँ लिए आरती
नजर उतारे मातु भारती
धरणि पल्लवित-पुष्पित करती
नेह नर्मदा पुलक तारती
नीलगगन विस्तीर्ण वितान
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
ध्वजा तिरंगी फहरा फरफर
जनगण की जय बोले फिर फिर
रवि बन जग को दें प्रकाश मिल
तम घिर विकल न हो मन्वन्तर
सत्-शिव-सुंदर मूल्य महान
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
नीव सुदृढ़ मजदूर-किसान
रक्षक हैं सैनिक बलवान
अभियंता निर्माण करें नव
मूल्य सनातन बन इंसान
श्वास-श्वास हो रस की खान
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
केसरिया बलिदान-क्रांति है
श्वेत स्नेह सद्भाव शांति है
हरी जनाकांक्षा नव सपने-
नील चक्र निर्मूल भ्रांति है
रज्जु बंध, निर्बंध उड़ान
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
कंकर हैं शंकर बन पाएँ
मानवता की जय जय गाएँ
अडिग अथक निष्काम काम कर
बिंदु सिंधु बनकर लहराएँ 
करे समय अपना जयगान
अगिन नमन गणतंत्र महान
***
गीत
देश हमारा है
*
देश हमारा है, सरकार हमारी है,
क्यों न निभाई, हमने जिम्मेदारी है?
*
नियम व्यवस्था का पालन हम नहीं करें,
दोष गैर पर निज, दोषों का नहीं धरें।
खुद क्या बेहतर कर सकते हैं, वही करें।
सोचें त्रुटियाँ कितनी कहाँ सुधारी हैं?...
*
भाँग कुएँ में घोल, हुए मदहोश सभी
किसके मन में किसके प्रति आक्रोश नहीं?
खोज-थके, हारे पाया सन्तोष नहीं।
फ़र्ज़ भुला, हक़ चाहें मति गई मारी है...
*
एक अँगुली जब तुम को मैंने दिखलाई।
तीन अंगुलियाँ उठीं आप पर, शरमाईं
मति न दोष खुद के देखे थी भरमाई।
सोचें क्या-कब हमने दशा सुधारी है?...
*
जैसा भी है तन्त्र, हमारा अपना है।
यह भी सच है बेमानी हर नपना है।
अँधा न्याय-प्रशासन, सत्य न तकना है।
कद्र न उसकी जिसमें कुछ खुद्दारी है...
*
कौन सुधारे किसको? आप सुधर जाएँ।
देखें अपनी कमी, न केवल दिखलायें।
स्वार्थ भुला, सर्वार्थों की जय-जय गायें।
अपनी माटी सारे जग से न्यारी है ...
***
सॉनेट
उम्र नदी की नापी थाह
समल सलिल की धार अपार
सके घाट से विहँस निहार
लहरों ने की जमकर वाह

कोशिश मछली करे न डाह
देखो मिले न भाटा-ज्वार
तैरो अनथक उतरो पार
जलकुंभी से बच अवगाह

हिम्मत रखो न जाना हार
श्वास-आस प्रभु का उपहार
हर दिन मना तीज-त्यौहार

सुधियों का अमृत कर पान
संबंधों का कर जयगान
हरा न पाए पीड़ा ठान
२५•१•२०२३
•••
सोरठे गणतंत्र के
जनता हुई प्रसन्न, आज बने गणतंत्र हम।
जन-जन हो संपन्न, भेद-भाव सब दूर हो।
*
सेवक होता तंत्र, प्रजातंत्र में प्रजा का।
यही सफलता-मंत्र, जनसेवी नेता बनें।।
*
होता है अनमोल, लोकतंत्र में लोकमत।
कलम उठाएँ तोल, हानि न करिए देश की।।
*
खुद भोगे अधिकार, तंत्र न जन की पीर हर।
शासन करे विचार, तो जनतंत्र न सफल है।।
*
आन, बान, सम्मान, ध्वजा तिरंगी देश की।
विहँस लुटा दें जान, झुकने कभी न दे 'सलिल'।।
*
पालन करिए नित्य, संविधान को जानकर।
फ़र्ज़ मानिए सत्य, अधिकारों की नींव हैं।।
*
भारतीय हैं एक, जाति-धर्म को भुलाकर।
चलो बनें हम नेक, भाईचारा पालकर।।
***
२६.१.२०१८
***
मुक्तिका
मिल गया
*
घर में आग लगानेवाला, आज मिल गया है बिन खोजे.
खुद को खुदी मिटानेवाला, हाय! मिल गया है बिन खोजे.
*
जयचंदों की गही विरासत, क्षत्रिय शकुनी दुर्योधन भी
बच्चों को धमकानेवाला, हाथ मिल गया है बिन खोजे.
*
'गोली' बना नारियाँ लूटीं, किसने यह भी तनिक बताओ?
निज मुँह कालिख मलनेवाला, वीर मिल गया है बिन खोजे.
*
सूर्य किरण से दूर रखा था, किसने शत-शत ललनाओं को?
पूछ रहे हैं किले पुराने, वक्त मिल गया है बिन खोजे.
*
मार मरों को वीर बन रहे, किंतु सत्य को पचा न पाते
अपने मुँह जो बनता मिट्ठू, मियाँ मिल गया है बिन खोजे.
*
सत्ता बाँट रही जन-जन को, जातिवाद का प्रेत पालकर
छद्म श्रेष्ठता प्रगट मूढ़ता, आज मिल गया है बिन खोजे.
*
अब तक दिखता जहाँ ढोल था, वहीं पोल सब देख हँस रहे
कायर से भी ज्यादा कायर, वीर मिल गया है बिन खोजे.
***
२५.१.२०१८
***
नवगीत:
कागतन्त्र है
*
कागतन्त्र है
काँव-काँव
करना ही होगा
नहीं किया तो मरना होगा
.
गिद्ध दिखाते आँख
छीछड़े खा फ़ैलाते हैं.
गर्दभ पंचम सुर में,
राग भैरवी गाते हैं.
जय क्षत्रिय की कह-कह,
दंगा आप कराते हैं.
हुए नहीं सहमत जो
उनको व्यर्थ डराते हैं
नाग तंत्र के
दाँव-पेंच,
बचना ही होगा,
नहीं बचे तो मरना होगा.
.
इस सीमा से आतंकी
जब मन घुस आते हैं.
उस सरहद पर डटे
पड़ोसी सड़क बनाते हैं.
ब्रम्ह्पुत्र के निर्मल जल में
गंद मिलाते हैं.
ये हारें तो भी अपनी
सरकार बनाते हैं.
स्वार्थ तंत्र है
जन-गण को
जगना ही होगा
नहीं जगे तो मरना होगा.
.
नए साल में नए तरीके
हम अपनाएँगे.
बाँटें-तोड़ें, बेच-खरीदें
सत्ता पाएँगे.
हुआ असहमत जो उसका
जीना मुश्किल कर दें
सौ बंदर मिल, घेर शेर को,
हम घुड़काएँगे.
फ़ूट मंत्र है
एक साथ
मिलना ही होगा
नहीं मिले तो मरना होगा.
.
३१.१२. २०१७
***
नवगीत:
भारत आ रै
.
भारत आ रै ओबामा प्यारे,
माथे तिलक लगा रे!
संग मिशेल साँवरी आ रईं,
उन खों हार पिन्हा रे!!
.
अपने मोदी जी नर इन्दर
बाँकी झलक दिखा रए
नाम देस को ऊँचो करने
कैसे हमें सिखा रए
'झंडा ऊँचा रहे हमारा'
संगे गान सुना रे!
.
देश साफ़ हो, हरा-भरा हो
पनपे भाई-चारा
'वन्दे मातरम' बोलो सब मिल
लिये तिरंगा प्यारा
प्रगति करी जो मूंड उठा खें
दुनिया को दिखला रए
.
२५-१-२०१५
***
सामयिक गीत:
पंच फैसला...
*
पंच फैसला सर-आँखों,
पर यहीं गड़ेगा लट्ठा...
*
नाना-नानी, पिता और माँ सबकी थी ठकुराई.
मिली बपौती में कुर्सी, क्यों तुम्हें जलन है भाई?
रोजगार है पुश्तों का, नेता बन भाषण देना-
फर्ज़ तुम्हारा हाथ जोड़, सर झुका करो पहुनाई.
सबको अवसर? सब समान??
सुन-कह लो, करो न ठट्ठा...
*
लोकतंत्र है लोभतन्त्र, दल दाम लगाना जाने,
लोभ तंत्र  रु ठोंकतंत्र ने काम किए मनमाने.
भोंक पीठ में छुरा, भाइयों! शोक तंत्र मुस्का-
मृतकों के घर जा पैसे दे, शासन लगा लुभाने..
संसद गर्दभ ढोएगी
सारे पापों का गट्ठा...
*
उठा पनौती करी मौज, हो गए कहीं जो बच्चे.
हम देते नकार रिश्तों को, हैं निर्मोही सच्चे.
देश खेत है राम लला का, चिड़ियाँ राम लला की-
पंडा झंडा कोई हो, हम खेल न खेले कच्चे..
कहीं नहीं चाणक्य जड़ों में
डाल सके जो मट्ठा...
*
नेता जी-शास्त्री जी कैसे मरे? न पता लगाया..
अन्ना हों या बाबा, दिन में तारे दिखा भगाया.
घपले-घोटालों से फुर्सत, कभी तनिक पाई तो-
बंदर घुड़की दे-सुन कर फ़ौजी का सर कटवाया.
नैतिक जिम्मेदारी ले वह
जो उल्लू का पट्ठा...
*
नागनाथ गर हटा, बनेगा साँपनाथ ही नेता.
फैलाया दूजा तब हमने, पहला जाल समेटा.
केर-बेर का संग बना मोर्चा झपटेंगे सत्ता-
मौनी बाबा कोई न कोई मिल जाएगा बेटा.
जोकर लिए हाथ में हम
जन को दे सत्ता-अट्ठा...
२५-१-२०१३
***

मंगलवार, 24 जनवरी 2023

रस सागर, समीक्षा , कृष्ण, फाग, चित्रगुप्त, बसंत पंचमी, मुक्तिका, सोरठा, हिंदी,

सोरठा सलिला
कंठ करोड़ों वास, हिंदी जगवाणी नमन।
हर मन भरे उजास, हर जन हरि जन हो विहँस।।
हिंदी है रसवान, जी भरकर रस-पान कर।
हो रसनिधि रसलीन, बन रसज्ञ रसखान भी।।
हिंदी प्राची लाल, कर प्रकाश कहती उठो।
कलरव करे निहाल, नभ नापो आगे बढ़ो।।
नेह नर्मदा धार, हिंदी कलकल कर बहे।
बाँटे पाया प्यार, कभी नहीं कुछ भी गहे।।
सरला तरला वाक्, बोलें-सुनिए मुग्ध हों।
मौन न रहें अवाक्, गले मिलें मत दग्ध हों।।
२४-१-२०२३
•••

सोरठा सलिला 
*
गुमी स्नेह की छाँव, नदिया रूठी गाँव से।
घायल युग के पाँव, छेद हुआ है नाव में।।
*
फूलों की मुस्कान, शूलों से है प्रताड़ित।
कली हुई बेजान, कभी रही जो सुवासित।।
*
हैं जिज्ञासु न आज, नादां दाना बन रहे।
राज न हो नाराज, कवि भी मुँह देखी कहे।।
*
देखें भ्रमित विकास, सिसकती अमराइयाँ।
पैर झेलते त्रास, एड़ी लिए बिमाइयाँ।।
*
जो नाजुक बेजान, जा बैठी शोकेस में।  
थामे रही कमान, जो वह जीती रेस में।।
***
कृति चर्चा-
रस सागर - फागों ३३७ फागों की गागर
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
कृति विवरण - रस सागर, फाग संग्रह, संकलक-संपादक : भगीरथ शुक्ल 'योगी', तृतीय संस्करण, आवरण पेपरबैक बहुरंगी, पृष्ठ १६४, मूल्य ६०/-, प्रकाशक- खेमराज श्रीकृष्ण दास, श्री वैंकटेश्वर प्रेस, खेमराज श्रीकृष्ण दास मार्ग, मुंबई ४००००४।
*
भारत का तंत्र भले ही लोक को महत्व न दे किंतु भारत की संस्कृति लोक को ही प्रधानता देती है। लोक गाँवों में बसता है। 'भारत माता ग्रामवासिनी है। मानव सभ्यता के बढ़ते चरणों के साथ लोक जैसे-जैसे अस्तित्व में आता गया वैसे-वैसे लोक गीत, लोक संगीत और लोक नृत्य का उद्भव और विकास होता गया। भारतीय लोक मानस ने गीत-संगीत-नृत्य को केवल मनरंजन या बौद्धिक विलास का साधन नहीं माना अपितु इसे सामाजिक समरसता, सद्भाव, सहकार और आध्यात्मिक उन्नयन का स्रोत भी माना। ऋतुराज बसंत के आगमन के साथ विंध्याटवी ही नहीं समस्त भारत के ग्राम्यांचलों में लघ्वाकारी पदों की स्वर लहरी गूँजने लगती है। विविध अंचलों में भिन्न-भिन्न भाषाओँ में इन पदों के नाम भले ही अलग-अलग हों, उनमें लालित्य, चारुत्व, उत्साह, उल्लास और जीवंतता भरपूर होती है। मध्य और उत्तर भारत में ऐसे पदों में 'फाग' का स्थान अनन्य है।

विवेचय कृति हिंदी का प्रथम काव्य संग्रह है जिसमें ३३७ फागों का प्रकाशन हुआ है। फाग हमारी गौरवपूर्ण सांस्कृतिक लोक संस्कृति की अनमोल धरोहर है। फाग केवल मनबहलाव का साधन नहीं है, यह समस्या ग्रस्त जीवन में संघर्ष कर थके-हारे-टूटे जन-मन में नव चेतना, नव जागरण, उमंग और सामाजिक सहकार बढ़ानेवाला अमृत है। फाग सकल मनोमालिन्य को लोपकर जन-मन को निर्मल कर देता है। फाग के अनुष्ठान में गति-यति, स्वर-ताल और नाद की त्रिवेणी प्रवाहित होती है। फाग नर-नारी, संपन्न-विपणन, शिक्षित-अशिक्षित, उच्च-निम्न माँ भेद-भाव मिटाकर समानता और सद्भाव की नेह नर्मदा बहा देती है। फाग शब्द सुनते ही मन में फगुहारों की टोली, ढोलक पर पड़ती लयबद्ध थाप, मंजीरों को कारण प्रिय झंकार, गायकों की मधुर वाणी और नर्तकों के थिरकते पदों की स्मृति मन को प्रमुदित कर बरबस गुनगुनाने के लिए प्रवृत्त कर देती है।

शास्त्रीय संगीत के विपरीत लोक श्रेष्ठि वर्ग पर संगीत जन सामान्य को वरीयता देता है। फाग रचयिता कालजयी कवियों ने फागों में श्रृंगार (संयोग-वियोग), हास्य-व्यंग्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अद्भुत, शांत, वात्सल्य आदि रसों का सम्यक समावेशन कर फागों को अमर कर दिया है। सूर, कबीर, तुलसी, मीरा, ईसुरी आदि ने फागों को रस सागर बना दिया। संभवत:, पहली बार ३३७ फागों का संकलन-संपादन कर भगीरथ शुक्ल 'योगी' ने 'रस सागर' संकलन का प्रकाशन किया है। इस संकलन का वैशिष्ट्य केवल धमार फागों का संकलन किया जाना है। जिन फागों में अश्लीलता या असमाजिकता मिली उन्हें संकलन में नहीं लिया गया है। इस नीति ने संकलन को स्तरीय तथा सुरुचिपूर्ण बनाया है।

संपादक ने शंकर, राम तथा कृष्ण विषयक फागों को पृथक-पृथक वर्गीकृत किया है। परस्पर जुड़े हुए, प्रश्नोत्तरी अथवा एक साथ गाए जानेवाले फाग एक साथ रखकर सुसंगति स्थापित की गई है। संकलन में सम्मिलित फागों की वर्ण माला क्रमानुसार सूची ने इच्छित फाग की तलाश को सुगम बना दिया है। फाग गेयता (लय) पर आधारित पद्य रचना हैं। संपादक ने फागों का पाठ देते समय अर्थ-बोध पर गेयता को वरीयता दी है। अन्य लोक गीतों की तरह फागों के भी भिन्न-भिन्न रूप भिन्न-भिन्न भागों में प्रचलित हैं। फागों में प्रक्षिप्त पंक्तियाँ भी पाई जाती हैं, इसलिए कुशल संपादन आवश्यक है। योगी जी ने अप्रचलित तथा स्वरचित फागों को भी संकलन में स्थान दिया है।

संकलन के द्वितीय विभाग श्रीकृष्ण चरित्र में १४९ (क्रमांक ६९ से क्रमांक २१८ तक) फागें हैं। इनमें कृष्ण जन्म, बाल लीला, वृंदावन का प्राकृतिक वैभव, बसंत, गोपियों के संग फाग, होरी, यमुना किनारे बाल लीला, दधि लूटना, कृष्ण वंदना, कृष्ण महिमा, मुरली वादन, वर्षा, पुष्प-सौंदर्य, कंदुक क्रीड़ा, अबीर क्रीड़ा, रंग वृष्टि, कृष्ण सौंदर्य, राधा महिमा, राधा सौंदर्य, बृज की होली, विष्णु अवतार, राधा की होरी क्रीड़ा, गोपियों द्वारा छेड़, सावन वर्णन, इंद्र प्रकरण, बरसाने में होरी, कुञ्ज क्रीड़ा, रास लीला, कृष्ण द्वारा बिसाती रूप रख राधा से मिलना, मोर मुकुट, गैल छेकना, द्वारकाधीश, ऊधौ प्रकरण, कुब्जा प्रकरण, बृज से बिदाई, बृज वनिताओं की व्याकुलता, सुदामा प्रसंग, कृष्ण द्वारा वैद्य रूप, दधि गगरिया भंग, गाय दुहना, गौ पालन, यशोदा का दाढ़ी मंथन, मधुबन लीला, गेंद चोरी, वंशी चोरी, नटवर वेश, शिव द्वारा कृष्ण दर्शन, चंद्र खिलौना, वेणु वादन, वस्त्र हरण,भजन, कृष्ण प्रेम आदि सभी महत्वपूर्ण प्रसंग हैं।

उल्लेखनीय है कि फागों में राक्षस वध, कंस वध, कृष्ण-पांडव, कृष्ण-द्रौपदी, कृष्ण-कौरव, कृष्ण-कुरुक्षेत्र, गीता, द्वारक विवाद, महाप्रस्थान जैसे प्रसंग नहीं है। स्पष्ट है कि फागकारों ने लोक मंगल और रसानंद को लक्ष्य माना है और नकारात्मक, हिंसा प्रधान घटनाओं को अनदेखा किया है। रचनाकर्म में सकारात्मकता और शुभता के प्रति आग्रह तथाकथित प्रगतिवादियों के लिए ग्रहणीय है। दूसरी और फागकारों ने वर्ण विभाजन, उंच-नीच, छूआछूत, विप्र माहात्म्य, अंध श्रद्धा, पूजाडंबर आदि से भी परहेज किया है। संकीर्ण अंधविश्वासियों को फाग से औदार्य तथा समानता का पाठ ग्रहण करना चाहिए। संकलन में शैव-वैष्णव विभाजन को शिव फागों का सम्मिलन कर अमान्य किया गया है। एक भी फाग में अन्य धर्मावलंबियों यहाँ तक कि असुरों आदि की भी निन्दा नहीं है। स्पष्ट है की कृष लीलाओं और फागों का लक्ष्य सामाजिक समरसता, लोक मांगल्य और शुभता का प्रसार ही है।
२४-१-२०२२
***
संपर्क - विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,
चलभाष ९४२५१८३२४४, ई मेल salil.sanjiv@gmail.com

***
मुक्तिका
*
ये राजनीति लोक को छलती चली गई
ऊषा उदित हुई ही कि ढलती चली गई
रोटी बना रही थी मगर देख कर उसे
अनजाने ही पूड़ियाँ तलती चली गई
कोशिश बहुत की उसने मुझे कर सके निराश
आशा मनस में आप ही पलती चली गई
आभा का राज दूनवी घाटी ने कह दिया
छाया तिमिर घना मिटे, जलती चली गई
हिंदी गजल है, बर्फ की सिल्ली न मानना
जो हार कर तपिश से पिघलती चली गई
है जिंदगी या नाजनीं कोई कहे सलिल
संजीव होके हँसती मचलती चली गई
*
२४-१-२०२०
***
बसंत पंचमी
.
महत्व
भारत में जीवन के हर पहलू को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है | और इसी आधार पर पूजा - उपासना की व्यवस्था की गयी है | अगर धन के लिए दीपावली पर माता लक्ष्मी की उपासना की जाती है तो नेघा और बुद्धि के लिए माघ शुक्ल पंचमी को माता सरस्वती की भी उपासना की जाती है | धार्मिक और प्राकृतिक पक्ष को देखे तो इस समय व्यक्ति का मन अत्यधिक चंचल होता है | और भटकाव बड़ता है | इसीलिए इस समय विद्याऔर बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की उपासना से हम अपने मन को नियंत्रित और बुद्धि को कुशाग्र करते है | वर्तमान संदर्भो की बात करे तो आजकल विधार्थी भटकाव से परेशान है | पढाई में एकाग्रता की समस्या है | और चीजो को लम्बे समय तक याद नहीं रख सकते है , इस दशा में बसंत पंचमी को की गयी माँ सरस्वती की पूजा से न केवल एकाग्रता में सुधार होगा बल्कि बेहतर यादाश्त और बुद्धि की बदोलत विधार्थी परीक्षा में बेहतरीन सफलता भी पायेंगे | विधार्थियों के आलावा बुद्धि का कार्य करने वाले तमाम लोग जैसे पत्रकार , वकील , शिक्षक आदि भी इस दिन का विशेष लाभ ले सकते है |
राशी अनुसार पूजन विधान :-
मेष :- स्वभावत: चंचल राशी होती है | इसीलिए अक्सर इस राशी के लोगो को एकाग्रता की समस्या परेशान करती है | बसंत पंचमी को सरस्वती को लाल गुलाब का पुष्प और सफ़ेद तिल चढ़ा दे | इससे चंचलता और भटकाव से मुक्ति मिलेगी |
वृष:- गंभीर और लक्ष के प्रति एकाग्र होते है परन्तु कभी कभी जिद और कठोरता उनकी शिक्षा और करियर में बाधा उत्पन्न कर देती है | चूँकि इनका कार्य ही आम तौर पर बुद्धि से सम्बन्ध रखने वाला होता है , अत : इनको नीली स्याही वाली कलम और अक्षत सरस्वती को समर्पित करना चाहिए | ताकि बुद्धि सदेव नियंत्रित रहती है |
मिथुन : - बहुत बुद्धिमान होने के बावजूद भ्रम की समस्या परेशान करती है | इसीलिए ये अक्सर समय पर सही निर्णय नहीं ले पाते | बसंत पंचमी के दिन सरस्वती को सफ़ेद पुष्प और पुस्तक अर्पित करने से भ्रम समाप्त हो जाता है एवं बुद्धि प्रखर होती है |
कर्क : - इन पर ज्यादातर भावनाए हावी हो जाती है | यही समस्या इनको मुश्किल में डाले रखती है | अगर बसंत पंचमी के दिन सरस्वती को पीले फूल और सफ़ेद चन्दन अर्पित करे तो भावनाए नियंत्रित कर सफलता पाई जा सकती है |
सिंह : - अक्सर शिक्षा में बदलाव व् बाधाओ का सामना करना पड़ता है | ये योग्यता के अनुसार सही जगह नहीं पहुच पाते है शिक्षा और विधा की बाधाओ से निपटने के लिए सरस्वती को पीले फूल विशेष कर कनेर और धान का लावा अर्पित करना चाहिए |
कन्या : - अक्सर धन कमाने व् स्वार्थ पूर्ति के चक्कर में पड़ जाते है | कभी कभी बुद्धि सही दिशा में नहीं चलती है | बुद्धि सही दिशा में रहे इसके लिए सरस्वती को कलम और दावत के साथ सफ़ेद फूल अर्पित करना चाहिए |
तुला :- जीवन में भटकाव के मौको पर सबसे जल्दी भटकने वाले होते है | चकाचोंध और शीघ्र धन कमाने की चाहत इसकी शिक्षा और करियर में अक्सर बाधा ड़ाल देती है | भटकाव और आकर्षण से निकल कर सही दिशा पर चले इसके लिए नीली कमल और शहद सरस्वती को अर्पित करे |
वृश्चिक : - ये बुद्धिमान होते है | लेकिन कभी कभार अहंकार इनको मुश्किल में ड़ाल देता है | अहंकार और अति आत्म विश्वास के कारण ये परीक्षा और प्रतियोगिता में अक्सर कुछ ही अंको से सफलता पाने से चुक जाते है | इस स्थिति को बेहतर करने के लिए सरस्वती को हल्दी और सफ़ेद वस्त्र अर्पित करना चाहिए |
धनु : - इस राशी के लोग भी बुद्धिमान होते है | कभी कभी परिस्थितिया इनकी शिक्षा में बाधा पहुचाती है | और शिक्षा बीच में रुक जाती है | जिस कारण इन्हें जीवन में अत्यधिक संघर्ष करना पड़ता है | इस संघर्ष को कम करने के लिए इनको सरस्वती को रोली और नारियल अर्पित करना चाहिए |
मकर : - अत्यधिक मेहनती होते है | पर कभी कभी शिक्षा में बाधाओ का सामना करना पड़ता है | और उच्च शिक्षा पाना कठिन होता है | शिक्षा की बाधाओ को दूर करके उच्च शिक्षा प्राप्ति और सफलता प्राप्त करने के लिए इनको सरस्वती को चावल की खीर अर्पित करनी चाहिए |
कुम्भ :- अत्यधिक बुद्धिमान होते है | पर लक्ष के निर्धारण की समस्या इनको असफलता तक पंहुचा देती है | इस समस्या से बचने के लिए और लक्ष पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए इसको बसंत पंचमी के दिन सरस्वती को मिश्री का भोग चडाना चाहिए |
मीन : - इस राशी के लोग सामान्यत : ज्ञानी और बुद्धिमान होते है | पर इनको अपने ज्ञान का बड़ा अहंकार होता है | और यही अहंकार इनकी प्रगति में बाधक बनता है | अहंकार दूर करके जीवन में विनम्रता से सफलता प्राप्त करने के लिए इनको बसंत पंचमी के दिन सरस्वती को पंचामृत समर्पित करना चाहिए |
बसंत पंचमी के दिन अगर हर राशी के जातक इन सरल उपायों को अपनाये तो उनको बागिस्वरी , सरस्वती से नि: संदेह विधा और बुद्धि का वरदान मिलेगा |
कैसे करे सरस्वती आराधना : -
बसंत पंचमी के दिन प्रात: कल स्नान करके पीले वस्त्र धारण करे | सरस्वती का चित्र स्थापित करे यदि उनका चित्र सफ़ेद वस्त्रो में हो तो सर्वोत्तम होगा | माँ के चित्र के सामने घी का दीपक जलाए और उनको विशेष रूप से सफ़ेद फूल अर्पित करे | सरस्वती के सामने बैठ " ऍ सरस्वतये नम : " का कम से कम १०८ बार जप करे | एसा करने से विधा और बुद्धि का वरदान मिलेगा तथा मन की चंचलता दूर होगी |
पूजा अर्चना और उसके लाभ : -
लाल गुलाब , सफ़ेद तिल अर्पित करे तथा अक्षत चढाए |
सफ़ेद पुष्प , पुस्तक अर्पित करे |
पीले फूल , सफ़ेद चन्दन अर्पित करे |
पीले पुष्प , धान का लावा चढाए |
कलम - दवात , सफ़ेद फूल अर्पित करे |
नीली कलम , शहद अर्पित करे |
हल्दी और सफ़ेद वस्त्र अर्पित कर रोली , नारियल अर्पित करे |
चावल की खीर और मिश्री का भोग अर्पित करे |
लाभ : -
मन की स्थिरता और ताजगी महसूस होगी तथा बुद्धि विवेक नियंत्रित होंगे |
मन की कशमकश ख़त्म होगी बुद्धि प्रखर होगी |
भावनाए काबू में रहेगी , सफलता मिलेगी |
शिक्षा में सफलता , बुद्धि में वृद्धि होगी |
बुद्धि तेज , सोच सकारात्मक होगी |
सही दिशा मिलेगी |
अहंकार से मुक्ति मिलेगी |
संघर्ष और बाधाऍ कम होगी |
एकाग्रचित्तता में बढ़ोतरी होगी |
***
स्तवन:
शरणागत हम
.
शरणागत हम
चित्रगुप्त प्रभु!
हाथ पसारे आये
.
अनहद अक्षय अजर अमर हे!
अमित अभय अविजित अविनाशी
निराकार-साकार तुम्हीं हो
निर्गुण-सगुण देव आकाशी
पथ-पग लक्ष्य विजय यश तुम हो
तुम मत मतदाता प्रत्याशी
तिमिर मिटाने
अरुणागत हम
द्वार तिहारे आये
.
वर्ण जात भू भाषा सागर
सुर नर असुर समुद नद गागर
ताण्डवरत नटराज ब्रम्ह तुम
तुम ही बृजरज के नटनागर
पैगंबर ईसा गुरु बनकर
तारो अंश 'सलिल' हे भास्वर!
आत्म जगा दो
चरणागत हम
झलक निहारें आये
२४-१-२०१५
***