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शनिवार, 7 मई 2022

जापानी छंद कतौता
*
कतौता लिखो,
अपनी राह चुनो 
नए सपने बुनो। 
*
कभी न बनो 
लकीर के फकीर,
पुरानी लीक तोड़ो। 
*
प्यार को प्यार 
कम मिलता यार,
क्यों होते हो बेज़ार?
*
दीप से दीप 
जलाते चलो भाई 
तब होगा उजाला। 
*
कोयल कूकी 
दहका है पलाश 
पर्वत पर आग। 
*
बरसात में 
नदिया है बौराई 
भूल गई मर्यादा। 
*
जो हुआ; हुआ 
बिसरा; आगे बढ़ो 
उठो! भविष्य गढ़ो। 
*
वर्ण पिरोएँ 
पाँच-सात औ' सात 
कतौता रचें आप। 
*
इंद्र धनुष 
सतरंगी कमान 
शर लापता। 
७-५-२०२२ 
*
 

   
 



भाषा नीति, मानक हिंदी, मानक भाषा

भाषा नीति, मानक हिंदी 

०१. स्वर-व्यंजन निम्न अनुसार होंगें-
(अ) स्वर - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अनुस्वार- अं विसर्ग: अ:।
(आ ) व्यंजन - क, ख, ग, घ, ङ (क़, ख़, ग़), च, छ, ज, झ, ञ (ज़, झ़), ट, ठ, ड, ढ, ण (ड़, ढ़), त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, (फ़), य, र, ल, व, श, ष, स, ह।
(इ) संयुक्त वर्ण- क्ष, त्र, ज्ञ, श्र, क्र, प्र, ब्र, स्र, ह्र, ख्र आदि। संयुक्त वर्ण (अ) खड़ी पाईवाले व्यंजन - ख्यात, लग्न, विघ्न, कच्चा, छज्जा, नगण्य, कुत्ता, पथ्य, ध्वनि, न्यास, प्यास, अब्बा, सभ्य, रम्य, अय्याश, उल्लेख, व्यास, श्लोक, राष्ट्रीय, स्वीकृति, यक्ष्मा, त्र्यंबक। (आ) अन्य व्यंजन - संयुक्त, पक्का, दफ्तर, वाङ्मय, लट्टू, बुड्ढा, विद्या, ब्रह्मा,प्रकार, धर्म, श्री, श्रृंगार, विद्वान, चिट्ठी, बुद्धि, विद्या, चंचल, अंक, वृद्ध; द्वैत आदि।
(उ) संस्कृत भाषा के मूल श्लोकों को उद्धृत करते समय मूल अंश में प्रयुक्त वर्ण, संयुक्ताक्षर तथा हिंदी वर्णमाला में जो वर्ण शामिल नहीं हैं, वे यथावत लिखे जाएँ। पाली, ब्राह्मी, प्रकृत, कैथी, शारदा आदि लिपियों के उद्धरण मूल उच्चारण के अनुसार देवनागरी में लिखे जाएँ।
(ऊ) शिरोरेखा (मुड्ढा) का प्रयोग अनिवार्य है। 
(ए) विरामचिह्न- 
पूर्णविराम - । इसका प्रयोग -
वाक्य के अंत में करें। कृष्णप्रज्ञा उत्तम पत्रिका है।  
अल्पविराम , इसका प्रयोग -
(१) तीन या अधिक शब्दों को अलग करने के लिए - गीत, ग़ज़ल, सॉनेट, माहिया आदि काव्य रूप हैं। 
(२) एक वाक्य में प्रयुक्त एक प्रकार के पदबंधों, उपवाक्यों को अलग करने के लिए - नर्मदा का शीतल जल, हरीतिमा और सौंदर्य मन मोह लेता है। 
(३) वाक्य के बीच में किसी अंश को अलग दिखाने के लिए - पाठ्यक्रम बदल जाने से, पुस्तकें बदलेंगी, परीक्षा फल भी प्रभावित होंगा।
(४) सकारात्मक और नकारात्मक अभिव्यक्ति के बाद - हाँ, चले जाओ। / नहीं, मत जाओ। 
(५) बस, सचमुच, अच्छा, वास्तव में, खैर आदि शब्दों से आरंभ होने वाले वाक्यों में इनके बाद - बस, और आगे मत जाओ। 
(६) संबोधन के बाद - संपादक जी, रचना चयनित होने की सूचना दें।  
अर्धविराम ; इसका प्रयोग 
(१) एक वाक्य पर आश्रित दो या अधिक वाक्यों की श्रृंखला में हो। विद्या विनय से आती है; विनय से पात्रता;  पात्रता से धन; धन से धर्म और धर्म से सुख की प्राप्ति होती है। 
(२) समुच्चयबोधकों से बने उपवाक्यों को अलग करने के लिए - आपने उसकी निंदा की; इसलिए वह आपका शत्रु बनेगा। 
(३) समानाधिकरण उपवाक्यों के बीच में - गाँधी जी ने सत्याग्रह किए; अहिंसा का शस्त्र दिया। 
(४) अंकों का विवरण देने में - पेन - १२ ; पेन्सिल ६; रबर ६ 
उपविराम : आगेआनेवाली सूची के पूर्व, जैसे मनुष्य के ३ शत्रु हैं : १आलस्य, हीनता, पराश्रय। 
योजक/निर्देशक  चिह्न - योजक चिह्न की आड़ी रेखा छोटी होती है जबकि निर्देशक चिह्न की आड़ी रेखा अपेक्षाकृत लंबी होती है। 
योजक चिह्न का प्रयोग - 
(१) द्वंद्व समास के बीच में।   जैसे - राम और श्याम के स्थान पर राम-श्याम
(२) शब्द की आवृत्ति होने पर। यथा :-  मुख्य-मुख्य बिंदुओं पर विचार करें। 
(३) विलोम शब्दों के बीच में।  जैसे :- रात-दिन। 
निर्देशक  चिह्न का प्रयोग 
(१) उद्धरण के बाद और लेखक के पहले - स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है - तिलक 
(२) निम्न व निम्नलिखित के बाद - पानी के समानार्थी निम्न/निम्नलिखित हैं - नीर, जल, सलिल, वारि आदि।    
विवरण चिह्न  :- यह उपविराम तथा निर्देशक चिन्ह का मिश्रित रूप है। इसका प्रयोग दोनों के विकल्प रूप में किया जाता है। 
प्रश्न चिह्न ? इसका प्रयोग प्रश्न पूछने के बाद किया जाता है - तुम्हारा नाम क्या है ? क्या, क्यों, कब, कैसे, कितने, किसने, किससे, किस लिए जैसे प्रश्न सूचक शब्द इस चिह्न के प्रयोग के पूर्व प्रयुक्त होते हैं। 
विस्मयसूचक चिह्न ! यह विस्मय, हर्ष, आह्लाद, आदि के अभिव्यक्ति के बाद प्रयुक्त होता है। जैसे :- हे राम! यह कैसे हुआ?
ऊर्ध्व अल्प विराम ' इसका प्रयोग - अंक लोपन हेतु, सन '४७ से सन '५२ तक।  
शब्द चिह्न ' ' इसका प्रयोग पुस्तक, व्यक्ति, स्थान आदि के नाम के साथ किया जाता है। 'गीता' में निष्काम कर्म को ही धर्म बताया गया है। 
उद्धरण चिह्न "  " इसका प्रयोग किसी का कथन ज्यों का त्यों उद्धृत करते समय, नाटकों-कहानियों में संवाद के साथ, किसी सिद्धांत / लोकोक्ति के साथ करें। नेता जी ने कहा - ''तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा।" 
छोटा कोष्ठक () - इसके अंदर वह सामग्री रखी जाती है जो मुख्य वाक्य का अंग होते हुए भी पृथक की जा सकती है। काल के तीन प्रकारों (भूत, वर्तमान, भविष्य) के उदाहरण दो। क्रमांक, अक्षरों तथा अंकों में लिखी संख्या को अक्षरों में लिखने के लिए भी छोटा कोष्ठक प्रयोग करें। 
मध्यम कोष्ठक  {} - एक से अधिक प्रकार की टिप्पणी हेतु माध्यम कोष्ठक का प्रयोग करें।  
बड़ा कोष्ठक [] - दो से अधिक प्रकार की टिप्पणी हेतु बड़े कोष्ठक का प्रयोग करें।
लोप चिह्न ... किसी लेखांश को न लिखना हो तो इस चिह्न का प्रयोग करें। जैसे :- तेरी ...........  
हंसपद  ^  -  दो शब्दों के मध्य कुछ लिखना हो तो यह चिन्ह बनाकर पंक्ति के ऊपर लिखें।  
सार/ संक्षेप चिह्न . इसका प्रयोग संक्षेपाक्षर के बाद करें। एम.ए., से.मी. आदि। 
(ऐ) विसर्ग और उपविराम (कोलन) चिन्ह : समान है। इनके प्रयोग में अन्तर है। 
(१) विसर्ग वर्ण से चिपकाकर (भारत:) तथा कोलन कुछ दूरी पर (सरकार के ३ अंग : विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका हैं।) रखें। (२) संख्याओं में अनुपात प्रदर्शित करने के लिए - २ : ४। 
(३) नाटक/एकांकी में उद्धरण चिह्न के बिना केवल उपविराम चिह्न का प्रयोग किया जाता है।  राम :  सीते! अग्नि देव ने यह प्रमाणित किया  है कि तुम निर्दोष, निष्कलंक हो। 
(४) सूचनाओं के लिए - स्थान : सभागार , समय अपराह्न ५ बजे 
०२. कृष्ण प्रज्ञा की मुख्य भाषा आधुनिक (खड़ी) हिंदी तथा लिपि देवनागरी है। संस्कृत, भारतीय भाषाओँ-बोलिओं, आंचलिक बोलिओं तथा विदेशी भाषा-बोलिओं के उद्धरण यथास्थान दिए जा सकते हैं। अहिन्दी भाषाओँ के उद्धरण देते समय मूल उच्चारण देवनागरी लिपि में तथा हिंदी अर्थ दिया जाना चाहिए।

०३. लेखक उद्धरणों की शुद्धता तथा प्रामाणिकता हेतु जिम्मेदार होंगे। प्रयुक्त उद्धरणों के संदर्भ आरोही (बढ़ते हुए) क्रम में लेख के अंत में देंगे। पृष्ठ डिजाइनर हर पृष्ठ पर मुद्रित सामग्री संबंधी उद्धरणों के संदर्भ उसी पृष्ठ पर पाद टिप्पणी के रूप में देंगे।

०४. रचनाओं में तत्सम-तद्भव शब्दों का प्रयोग स्वीकार्य है।
०५. रचनाओं में केवल यूनिकोड या यूनिकोड समर्थित फॉण्ट का उपयोग करें जिसे कोकिला फॉण्ट में परिवर्तित कर मुद्रित किया जायेगा।
०६. कृष्णप्रज्ञा में हिंदी संस्करण में देवनागरी अंकों तथा अंग्रेजी संस्करण में अंग्रेजी अंकों का प्रयोग किया जाए।
०७. हिंदी में पारंपरिक रूप से नुक्ता का प्रयोग नहीं किया जाता है। लेखक अपनी भाषा-शैली में चाहे तो नुक्ता का प्रयोग यथास्थान कर सकता है।
०८. कारक चिह्न (परसर्ग) -
(अ) हिंदी के कारक : कर्ता - ने, कर्म - को, करण - से; द्वारा, संप्रदान - को; के लिए, अपादान - से (पृथक होना), संबंध - का; के; की; ना, नी ने, रा, री, रे, अधिकरण - में; पर, संबोधन - हे; अहो, अरे, अजी आदि हैं।
(आ) संज्ञा शब्दों में कारक प्रतिपादक से अलग लिखें।
(इ) सर्वनाम शब्दों में करक को प्रतिपादक के साथ मिलाकर लिखें।
(ई) सर्वनाम के साथ दो कारक एक साथ हों तो पहला कारक मिलाकर तथा दूसरा अलग लिखा जाए। सर्वनाम और कारक के बीच निपात हों तो कारक को पृथक लिखें।
०९. संयुक्त क्रिया पद -
सभी अंगीभूत क्रियाएँ अलग-अलग लिखें।
१०. योजक चिह्न (हाइफ़न -) - इसका प्रयोग स्पष्टता के लिए किया जाता है।
(अ) द्वंद्व समास में पदों के बीच में योजक चिह्न हो। उदाहरण :- शिव-पार्वती, लिखना-पढ़ना आदि।
(आ) सा, से, सी के पूर्व योजक चिह्न हो। जैसे :- तुम-सा, उस-सी, कलम से आदि।
(इ) तत्पुरुष समास में योजक चिह्न का प्रयोग केवल वहीं हो जहाँ उसके बिना भ्रम की संभावना हो, अन्यथा नहीं। जैसे भू-तत्व = पृथ्वी तत्व, भूतत्व = भूत होने का भाव या लक्षण आदि।
(ई) कठिन संधियों से बचने के लिए भी योजक प्रयोग किया जा सकता है। द्वयक्षर के स्थान पर द्वि-अक्षर, त्र्यंबक के स्थान पर त्रि-अंबक। इससे अहिन्दीभाषियों के लिए समझना आसान होगा।
११. अव्यय -
(अ) 'तक', 'साथ' आदि अव्यय हमेशा अलग लिखें। जैसे :-वहाँ तक, उसके साथ।
(आ) जब अव्यय के आगे परसर्ग (कारक) आए तब भी अव्यय अलग ही लिखा जाए। अब से, सदा के लिए, मुझे जाने तो दो, बीघा भर जमीन, बात भी नहीं बनी आदि।
(इ) सब पदों में प्रति, मात्र, यथा आदि समास होने पर सकल पद एक माना जाता है। यथा :- 'दस रूपए मात्र , मात्र कुछ रुपए आदि।
१२. सम्मानसूचक अव्यय
(अ) सम्मानात्मक अव्यय पृथक लिखें। यथा :- श्री चित्रगुप्त जी, पूज्य स्वामी विवेकानंद आदि।
(आ) श्री संज्ञा का भाग हो तो अलग नहीं लिखें। जैसे :- श्रीगोपाल श्रीवास्तव।
(इ) सभी पदों में प्रति, मात्र, यथा आदि अव्यय जोड़कर लिखें। उदाहरण :- प्रतिदिन, प्रतिशत, नित्यप्रति, मानवमात्र, निमित्तमात्र, यथासमय, यथोचित, यथाशक्ति आदि।
१३. अनुस्वार (शिरोबिंदु/बिंदी)
(अ) अनुस्वार व्यंजन है।
(आ) संस्कृत शब्दों में अनुस्वार का प्रयोग अन्य वर्णीय वर्णों (य से ह तक) से पहले रहेगा। यथा :- यंत्र, रंचमात्र, लंब, वंश, शंका, संयोग, संरक्षण, संलग्न, संवाद, संक्षेप, संतोष, हंपी, अंश, कंस, सिंह आदि।
(इ) संयुक्त वर्ण में पाँचवे अक्षर ('ङ्', ञ्, ण, न, म) के बाद सवर्णीय वर्ण हो तो अनुस्वार का प्रयोग करें। यथा :- कंगाल, खंगार, गंगा, घंटा, चंचु, छंद, जंजाल, झंझट, टंकर, ठंडा, डंडी, तंदूर, थंब, दंश, धंधा, नंद, पंच, फंदा, बंधु, भंते, मंदिर आदि।
(ई) पाँचवे अक्षर के बाद अन्य वर्ग का वर्ण आए तो पांचवा अक्षर अनुस्वार के रूप में नहीं बदलेगा। जैसे :- वाङ्मय, अन्य, उन्मुख, चिन्मय, जन्मेजय, तन्मय आदि।
(उ) पाँचवा वर्ण साथ-साथ आए तो अनुस्वार में नहीं बदलेगा। जैसे :- अन्न, सम्मेलन, सम्मति आदि।
(ऊ) अन्य भाषाओँ (उर्दू, अंग्रेजी आदि) से लिए गए शब्दों में आधे वर्ण या अनुस्वार के भ्रम को दूर करने के लिए नासिक्य (न, म) व्यंजन पूरा लिखें। जैसे :- लिमका, तनखाह, तिनका, तमगा, कमसिन आदि।
१४. अनुनासिक (चंद्रबिंदु)
(अ) अनुनासिक स्वर का नासिक्य विकार है। यह, व्यंजन नहीं,स्वरों का ध्वनि गुण है। अनुनासिक स्वरों के उच्चारण में मुँह और नाक से वायु प्रवाह होता है। जैसे :- अँ, आँ, ऊँ, एँ, माँ, हूँ, आएँ आदि।
(आ) अनुस्वार और अनुनासिक के गलत प्रयोग से अर्थ का अनर्थ हो जाता है। जैसे :- हंस = पक्षी, हँस - क्रिया, आंगन
(इ) जहाँ चंद्रबिंदु के स्थान पर बिंदु का प्रयोग भ्रम न उत्पन्न करे वहाँ निषेध नहीं है। जैसे :- में, मैं, नहीं, आदि में अनुनासिक के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग।
१५. विसर्ग
(अ) तत्सम रूप में प्रयुक्त संस्कृत शब्दों में विसर्ग का प्रयोग यथास्थान किया जाए। जैसे :- दु:खानुभूति।
(आ) तत्सम शब्दों के अंत में विसर्ग का प्रयोग अवश्य हो। यथा :- अत:. पुन:, स्वत:, प्राय:, मूलत:, अंतत:, क्रमश: आदि।
(इ) विसर्ग के स्थान पर उसके उच्चरित रूप 'ह' का प्रयोग कतई न किया जाए।
(ई) दुस्साहस, निस्स्वार्थ तथा निश्शब्द का नहीं, दु:साहस, नि:स्वार्थ तथा नि:शब्द का प्रयोग करें।
(उ) निस्तेज, निर्वाचन, निश्छल लिखें। नि:तेज, नि:वचन,नि:चल न लिखें।
(ऊ) अंत:करण, अंत:पुर, दु:स्वप्न, नि:संतान, प्रात:काल विसर्ग सहित ही लिखें।
(ए) तद्भव / देशी शब्दों में विसर्ग का प्रयोग न करें। छः नहीं छह लिखें।
(ऐ) प्रायद्वीप, समाप्तप्राय आदि में विसर्ग नहीं है।
(ओ) विसर्ग को वर्ण के साथ चिपकाकर लिखा जाए जबकि उपविराम (कोलन) चिन्ह शब्द से कुछ दूरी पर हो। अत:, जैसे :- आदि।
१६. हल् चिह्न ( ् )
(अ) व्यंजन के नीचे लगा हल् चिह्न बताता है कि वह व्यंजन स्वर रहित है। हल् चिह्न लगा शब्द 'हलंत' शब्द है। जैसे :- जगत्।
(आ) संयुक्ताक्षर बनाने में हल् चिह्न का प्रयोग आवश्यक है। यथा :- बुड्ढा, विद्वान आदि।
(इ) तत्सम शब्दों का प्रयोग हलन्त रूपों के साथ हो। प्राक्, वाक्, सत्, भगवन्, साक्षात्, जगत्, तेजस्, विद्युत्, राजन् आदि। महान, विद्वान आदि में हल् चिह्न न लगाएँ।
१७. स्वन परिवर्तन
संस्कृतमूलक तत्सम शब्दों की वर्तनी ज्यों की त्यों रखें। 'ब्रह्मा' को ब्रम्हा, चिह्न को चिन्ह न लिखें। अर्ध, तत्त्व आदि स्वीकार्य हैं।
१८. 'ऐ' तथा 'औ' का प्रयोग
(अ) 'ै' तथा ' ौ' का प्रयोग दो तरह से (अ) मूल स्वरों की तरह - 'है', 'और' आदि में तथा सन्ध्यक्षरों के रूप में 'गवैया', कौवा' आदि में किया जा सकता है। इन्हें 'गवय्या', 'कव्वा' आदि न लिखें।
(आ) अहिन्दी शब्दों 'अय्यर', 'नय्यर', 'रामय्या' को 'ऐयर', 'नैयर', 'रामैया' न लिखें। 'अव्वल', 'कव्वाली' आदि प्रचलित शब्द यथावत प्रयोग किए जा सकते हैं।
(अ) संस्कृत शब्द 'शय्या' को 'शैया' या 'शइया' न लिखें।
१९. पूर्वकालिक कृदंत
(अ) पूर्वकालिक कृदंत क्रिया से मिलाकर लिखें। जैसे :- आकर, सुलाकर, दिखलाकर आदि।
(आ) कर + कर = 'करके', करा + कर = 'कराके' होगा।
२०. 'वाला' प्रत्यय
(अ) क्रिया रूप में अलग लिखें। जैसे :- करने वाला, बोलने वाला आदि।
(आ) योजक प्रत्यय के रूप में एक साथ लिखें। यथा :- दिलवाला, टोपीवाला, दूधवाला आदि।
(इ) निर्देशक शब्द के रूप में 'वाला' अलग से लिखें। जैसे :- अच्छी वाली बात, कल वाली कहानी, यह वाला गीत आदि।
२१. श्रुतिमूलक 'य', 'व्'
(अ) विकल्प रूप में प्रयोग न किया जाए। जैसे :- 'किए', 'नई', 'हुआ' आदि के स्थान पर 'किये', 'नयी', 'हुवा' आदि का प्रयोग न करें।
(आ) जहाँ 'य' शब्द का मूल तत्व हो वहाँ उसे न बदलें। जैसे :- 'स्थायी', 'अव्ययीभाव', 'दायित्व' आदि को 'स्थाई', 'अव्यईभाव', 'दाइत्व' आदि न लिखें।
२२. अहिन्दी-विदेशी ध्वनियाँ
(अ) अरबी-फ़ारसी (उर्दू) शब्द -
(क) हिंदी का अभिन्न अंग बन चुके अरबी-फ़ारसी शब्द बिना नुक्ते के लिखें। जैसे :- 'कलम', 'किला', 'दाग' लिखें, 'क़लम', 'क़िला', 'दाग़' न लिखें।
(ख) जहाँ शब्द को मूल भाषा के अनुसार लिखना आवश्यक हो वहाँ हिंदी रूप में यथास्थान नुक्ता (बिंदु) लगाएँ। जैसे- 'खाना', 'राज', 'फन' के स्थान पर 'ख़ाना', 'राज़', 'फ़न' आदि लिखें।
(आ) अंग्रेजी शब्द
(क) जिन अंग्रेजी शब्दों में अर्ध विवृत 'ओ' ध्वनि का प्रयोग होता है, उनके शुद्ध हिंदी रूप के लिए 'ा ' (आ की मात्रा) के ऊपर अर्धचंद्र लगाएँ। जैसे :- हॉल, मॉल, चॉल, डॉल, टॉकीज, मॉम आदि।
(ख) अंग्रेजी शब्दों का देवनागरी लिप्यंतरण मूल उच्चारण के अधिक से अधिक निकट हो।
(इ) अन्य विदेशी भाषाओँ के शब्द
चीनी, जापानी, जर्मन आदि भाषाओँ के शब्दों को देवनागरी में लिखते समय उनके उच्चारण साम्य पर ध्यान दें। 'बीजिंग' को 'पीकिंग' न लिखें।
२३. दो रूपी शब्द -
कुछ शब्दों के शब्दों के रूप चिरकाल से लोक में प्रचलित तथा साहित्य में उपयोग किये जाते रहे हैं। ऐसे शब्दों के दोनों रूपों का उपयोग किया जा सकता है। जैसे :- गरदन-गर्दन, गरम-गर्म, गरमी-गर्मी, बरफ़-बर्फ़, बिलकुल-बिल्कुल, सरदी-सर्दी, कुरसी-कुर्सी, भरती-भर्ती, फुरसत-फुर्सत, बरदाश्त-बर्दाश्त, बरतन-बर्तन, दुबारा-दोबारा आदि। 
२४. आगत शब्दों की वर्तनी - 
(अ) निम्न में संयुक्ताक्षर का प्रयोग न हो - नुकसान, इनसान, इनकार, परवाह, बरबाद, मजदूर, सरकार, फरमान, तनखाह, करवट, कुदरत, शिरकत, मरकज़, अकबर, मुजरिम, परवाना, मुगदर, मसखरा, इलजाम, फिलहाल, फुरसत, मनज़र, इनकलाब, आसमान, तकलीफ, मरहम, दरकार, किरदार, शबनम, इजलास, इकबाल, इनतहा, तनहा, तनहाई, असल, असली, असलियत, फसली, गलत, गलती, नकल, नकली, नकलची, वरना, शरबत, दफतर, सरकस, अकसर, रफतार, शरम, शरमाना आदि। अल्प प्रचलित शब्दों के साथ कोष्ठक में उनके हिंदी अर्थ दें। जैसे निस्बत (के लिए), मुख़ालफ़त (विरोध), ज़ाहिर (स्पष्ट), हैरत (आश्चर्य) आदि। 
(आ) निम्न में संयुक्ताक्षर का प्रयोग हो - फुर्ती, फुर्तीला, शिकस्त, दुरुस्त, बुजुर्ग, गिरफ्त, गिरफ्तार, रुख्सत, ज़िंदा, क़र्ज़, खर्च, ज़िंदगी, इंतकाम, इंतज़ार, इल्तिजा, अशर्फी, इम्तहान, तिलिस्म, पुख्ता,दरख्त, तर्रार, तश्तरी, लश्कर, जींस, मुंशी, नक्शा, कब्ज़, लफ्ज़, शुक्र,शुक्रिया, खटियर, इत्तेफाक, इश्तहार, बख्शीश, अक्ल, शक्ल, सख्त, सख्ती, गश्त, क़िस्त, किस्म, मुश्क, इश्क, जश्न, कश्मीर, पश्मीना, जिलम, जुर्म, जिस्म, रस्म, रस्मी, हश्र, फिक्र, मुल्क, इल्म, फर्ज, फ़र्ज़ी, इर्द-गिर्द, गोश्त, रास्ता, नाश्ता, शख्स, दर्ज़, दर्ज़ी, सुर्ख, सुर्खी,  गुर्दा, जल्द, जल्दी, चश्मा, भिश्ती,  उम्र,कुश्ती, चुस्त, चुस्ती, चसकी, फर्क, शर्म, शर्मीली आदि। 
(इ) कुछ और मानक शब्द - दुहरा, दुहराना, दुगुना, दूना, दुपहर, दुमंज़िला, दुधारी, दुकान, दुशाला, कुहनी, कुहरा, कुहराम, मुहब्बत, कुहासा, सुहाग, सुहागन, मोहताज, शोहरत, बोहनी, मोहसिन, पहनावा, पहचान, दहलीज, मेहमान, एहसान, एहसास, एहतियात, महँगा, लहँगा, तहज़ीब, गहरा, मुहल्ला, धुआँ, कुआँ, कुँवर, कुँआरा, गेहुँआ आदि। 
(ई) आगत शब्दों के बहुवचन तथा लिंग  - आगत शब्दों के बहुवचन तथा लिंग हिंदी व्याकरण के अनुसार रखें, उस भाषा के व्याकरण के अनुसार नहीं। जैसे - क़ौम - क़ौमें (अक़्वाम नहीं), किताब - किताबें (किताबात नहीं), किस्म - किस्में (अक्साम नहीं), पिन - पिनें (पिंस नहीं), बोतल - बोतलें (बॉटल - बॉटल्स नहीं) आदि। उद्धरण में वर्जित शब्द यथावत दिए जा सकेंगे। 
(उ) विश्व की विविध भाषाओं के हिंदी में प्रचलित शब्दों का प्रयोग हिंदी शब्दों की तरह ही किया जाए।   
अंग्रेजी शब्द - बटन, फीस, पिन, पेट्रोल, पुलिस, पेंट, पैंट, पेंसिल, पेन, निब, कैमरा, फोटो, रेडिओ, सिनेमा, साइकिल, रिक्शा, कैलेंडर, फ्रेम, लेंस, नाइट्रोजन, टॉफी, पॉलिश, फुटबाल, हॉकी, मनीऑर्डर, टी. बी., हॉस्पिटल, डॉक्टर, बुक, रेडियो, पेन, पेंसिल, स्टेशन, कार, स्कूल, कंप्यूटर, ट्रेन, सर्कस, ट्रक, टेलीफोन, टिकट, टेबल आदि। 
अरबी शब्द -  अदा, अजब, अमीर, अजीब, अजायब, अदावत, अक्ल, असर, अहमक, अल्ला, आसार, आखिर, आदमी, आदत, इनाम, इजलास, इज्जत, इमारत, इस्तीफा, इलाज, ईमान, उम्र, एहसान, औरत, औसत, औलाद, कसूर, कदम, कब्र, कसर, कमाल, कर्ज, क़िस्त, किस्मत, किस्सा, किला, कसम, कीमत, कसरत, कुर्सी, किताब, कायदा, कातिल, खबर, खत्म, खत, खिदमत, खराब, खयाल, गरीब, गैर, जिस्म, जलसा, जनाब, जवाब, जहाज, जालिम, जिक्र, तमाम, तकदीर, तारीफ, तकिया, तमाशा, तरफ, तै, तादाद, तरक्की, तजुरबा, दाखिल, दिमाग, दवा, दाबा, दावत, दफ्तर, दगा, दुआ, दफा, दल्लाल, दुकान, दिक, दुनिया, दौलत, दान, दीन, नतीजा, नशा, नाल, नकद, नकल, नहर, फकीर, फायदा, फैसला, बाज, बहस, बाकी, मुहावरा, मदद, मरजी, माल, मिसाल, मजबूर, मालूम, मामूली, मुकदमा, मुल्क, मल्लाह, मौसम, मौका, मौलवी, मुसाफिर, मशहूर, मजमून, मतलब, मानी, मान, राय, लिहाज, लफ्ज, लहजा, लिफाफा, लायक, वारिस, वहम, वकील, शराब, हिम्मत, हैजा, हिसाब, हरामी, हद, हज्जाम, हक, हुक्म, हाजिर, हाल, हाशिया, हाकिम, हमला, हवालात, हौसला आदि। 
इटालियन शब्द - कार्टून, गजट, पिआनो, मलेरिआ, लॉटरी, वायलिन, रॉकेट, सॉनेट, स्टूडियो आदि।  
चीनी (मैंडेरिन) शब्द - कारतूस, चाय, पटाखा, लीची, साबुन आदि।
जर्मन शब्द - ट्रेन, नात्सी (नाज़ी), सेमिनार। 
जापानी शब्द - कतौता, चोका, ताँका, रेंगा, जूडो, सदोका, सायोनारा, हाइकु, हाइगा आदि। 
डच शब्द - तुरूप, बम, चिडिया, ड्रिल।
तुर्की शब्द - आगा, आका, उजबक, उर्दू, कातिल, दुकान, बदनाम, कालीन, काबू, कैंची, कुली, कुर्की, चिक, चेचक, चमचा, चुगुल, चकमक, जाजिम, तमगा, तोप, तलाश, बेगम, बहादुर, मुगल, लफंगा, लाश, सौगात, सुराग, चाकू, बारूद, कलंगी, चम्मच, कालीन, खंजर, चुगली, चोगा, तमजा, तमाशा, बावर्ची, उर्दू, हवा, हफ़्ता   इत्यादि।
पर्शियन शब्द - ताज़ा। 
पुर्तगाली शब्द - अगस्त,  अचार, अलमारी, आया, आलपिन, आलू, इस्पात, कनस्तर,  कमीज, कार्बन, गमला, गोदाम, गोभी, चाबी, तंबाकू,  तौलिया, नीलाम, पतलून, पपीता, पादरी, पीपा, पिस्तौल, प्याज, फालतू, फीता, बटन, बस्ता, बाल्टी, मेज, संतरा, साबुन आदि।   
फारसी शब्द - कम, कमर, ख़ाक, गम, वापस, खुदा, अफसोस, आबदार, आबरू, आतिशबाजी, अदा, आराम, आमदनी, आवारा, आफत, आवाज, आइना, उम्मीद, कबूतर, कमीना, कुश्ती, कुश्ता, किशमिश, कमरबन्द, किनारा, कूचा, खाल, खुद, खामोश, खरगोश, खुश, खुराक, खूब, गर्द, गज, गुम, गल्ला, गवाह, गिरफ्तार, गरम, गिरह, गुलूबन्द, गुलाब, गुल, गोश्त, चाबुक, चादर, चिराग, चश्मा, चरखा, चूँकि, चेहरा, चाशनी, जंग, जहर, जीन, जोर, जबर, जिन्दगी, जादू, जागीर, जान, जुरमाना, जिगर, जोश, तरकश, तमाशा, तेज, तीर, ताक, तबाह, तनख्वाह, ताजा, दीवार, देहात, दस्तूर, दुकान, दरबार, दंगल, दिलेर, दिल, दवा, नामर्द, नाव, नापसन्द, पलंग, पैदावार, पलक, पुल, पारा, पेशा, पैमाना, बेवा, बहरा, बेहूदा, बीमार, बेरहम, मादा, माशा, मलाई, मुर्दा, मजा, मुफ्त, मोर्चा, मीना, मुर्गा, मरहम, याद, यार, रंग, रोगन, राह, लश्कर, लगाम, लेकिन, वर्ना, वापिस, शादी, शोर, सितारा, सितार, सरासर, सुर्ख, सरदार, सरकार, सूद, सौदागर, हफ्ता, हजार आदि।  
फ्रेंच (फ़्रांसिसी) शब्द - अंग्रेज, एडवोकेट, काजू, कारतूस, कूपन, मीनू, मेयर, रेस्तरां, लैंप, वारंट, सूप आदि।
यूनानी शब्द - एकेडमी, एटलस, बाइबिल, टेलिफोन, एटम।
रूसी शब्द - जार, बुजुर्ग, लूना, वोद्का, वोल्गा, स्पुत्निक।
स्पेनिश शब्द - कारक, प्यून, देस्पासीतो (क्रमश:, धीरे-धीरे). सिगरेट, सिगार, 
(ऊ) कोई अन्य भाषायी शब्द आवश्यक हो तो उसे शब्द चिन्ह (' ') एकल इन्वर्टेड कोमा में लिखें। जैसे :- यह जटिल 'प्रॉब्लम' है। 
(ए) अंग्रेजी शब्दों का लिप्यंतरण करते समय केवल 'ई'तथा 'ऊ' का प्रयोग करें। जैसे :- key की, city सिटी, blue ब्लू , shoe शू आदि। 
(ऐ) अन्य भाषाओँ की व्यक्तिवाचक संज्ञाओं (नामों)  उच्चारण यथासंभव मूल  रखें। जैसे :- जापानी :   तोक्यो (tokyo), फ्रांसीसी : दूप्ले (duplex), रूसी : तोलसतोय (टॉलस्टॉय), स्पेनी : दान किहोते (डॉनक्विज़ोट), अन्य : पोल्स्की (पोलिश नहीं), सोल (सियोल नहीं), म्याँमा (म्याँमार/मियांमार नहीं) आदि।                  
२५. तत्सम शब्द
पर्वत, दर्पण जैसे तत्सम शब्दों के देशज रूप परबत, दरपन आदि कॉल उद्धरणों या स्थानीय बोली में उपयोग करें।   
२६.तद्भव शब्द -
२७. देशज शब्द देश + ज अर्थात देश में जन्मा, जो शब्द देश के विभिन्न प्रदेशों में प्रचलित आम बोल-चाल की भाषा से हिंदी में आ गए हैं, वे देशज शब्द कहलाते हैं। इनकी व्युत्पत्ति का पता नही चलता।प्रचलित  हेमचन्द्र ने उन शब्दों को 'देशी' कहा है, जिनकी व्युत्पत्ति किसी संस्कृत धातु या व्याकरण के नियमों से नहीं हुई। विदेशी विद्वान जॉन बीम्स ने देशज शब्दों को मुख्यरूप से अनार्यस्त्रोत से सम्बद्ध माना हैं। जैसे :- चिरैया, पन्हैया, डिबिया, टेंटुआ, कटरा, चिड़िया, कटरा, कटोरा, खिरकी, जूता, खिचड़ी, पगड़ी, लोटा, तेंदुआ, कटरा, अण्टा, ठेठ, ठुमरी, खखरा, चसक, फुनगी, डोंगा आदि।  
हिंदी में प्रचलित भारतीय भाषाओँ के शब्द -
ओड़िया शब्द - अटका, अपकर्ष, हँसी-ठट्टा आदि। 
गुजराती शब्द - गरबा, बा, बापू, हड़ताल आदि। 
पंजाबी शब्द - कुड़माई, गिद्धा, जट्ट, खालसा, बेबे, भाँगड़ा, माहिया, वीर, सिक्ख आदि। 
बांगला शब्द - आपत्ति, उपन्यास, गल्प, चमचम, रसगुल्ला, आदि।  
मराठी शब्द - चालू, बाजू, लागू, वापरना आदि।  




सॉनेट, माहिया गीत, दोहा, मुक्तक

सॉनेट 
विनय
प्रभु! जो करवाना, करवा लो
मैं हूँ केवल यंत्र तुम्हारा
चाहे जिसके पग पुजवा लो
एक बार तो हो पौ बारा

रमा रहा मन सदा रमा में
रति से रति पल पल करता है
जमा रखा है कमा कमा के
क्षति हो तनिक न छिप धरता है

क्षमा करो हे भव भय हारी
तुम मायापति हो संरक्षक
माया दे मम दशा सँवारी
जनम-जनम का मैं हूँ भिक्षुक 

मंदिर-मस्जिद सिर झुकवा लो
लेकिन अंबानी बनवा दो
७-५-२०२२
•••
माहिया गीत
मौसम के कानों में
*
(माहिया:पंजाब का त्रिपदिक मात्रिक छंद है. पदभार १२-१०-१२, प्रथम-तृतीय पद सम तुकांत, विषम पद तगण+यगण+२ लघु = २२१ १२२  ११, सम पद २२ या २१ से आरंभ, एक गुरु के स्थान पर दो गुरु या दो गुरु के स्थान पर एक लघु का प्रयोग किया जाता है, पदारंभ में २१ मात्रा का शब्द वर्जित।)
*
मौसम के कानों में
कोयलिया बोले,
खेतों-खलिहानों में।
*
आओ! अमराई से
आज मिल लो गले,
सरसों सरसाई से।
बोलो सौदाई से
दिल न मिला करता
रूपया या पाई से।।
आमों के दानों में,
गर्मी रस घोले,
बागों-बागानों में---
*
होरी, गारी, फगुआ
गाता है फागुन,
बच्चा, बब्बा, अगुआ।
हो पैर-खड़े बबुआ
काम नहीं आते
यारां लगा-भगुआ।।
प्राणों में, गानों में,
मस्ती है छाई,
दाना-नादानों में---
*
***
दोहा सलिला:
मन में अब भी रह रहे, पल-पल मैया-तात।
जाने क्यों जग कह रहा, नहीं रहे बेबात।।
*
कल की फिर-फिर कल्पना, कर न कलपना व्यर्थ।
मन में छवि साकार कर, अर्पित कर कुछ अर्ध्य।।
*
जब तक जीवन-श्वास है, तब तक कर्म सुवास।
आस धर्म का मर्म है, करें; न तजें प्रयास।।
*
मोह दुखों का हेतु है, काम करें निष्काम।
रहें नहीं बेकाम हम, चाहें रहें अ-काम।।
*
खुद न करें निज कद्र गर, कद्र करेगा कौन?
खुद को कभी सराहिए, व्यर्थ न रहिए मौन.
*
प्रभु ने जैसा भी गढ़ा, वही श्रेष्ठ लें मान।
जो न सराहे; वही है, खुद अपूर्ण-नादान।।
*
लता कल्पना की बढ़े, खिलें सुमन अनमोल।
तूफां आ झकझोर दे, समझ न पाए मोल।।
*
क्रोध न छूटे अंत तक, रखें काम से काम।
गीता में कहते किशन, मत होना बेकाम।।
*
जिस पर बीते जानता, वही; बात है सत्य।
देख समझ लेता मनुज, यह भी नहीं असत्य।।
*
भिन्न न सत्य-असत्य हैं, कॉइन के दो फेस।
घोडा और सवार हो, अलग न जीतें रेस।।
७.५.२०१८
***
मुक्तक
बात हो बेबात तो 'क्या बात' कहा जाता है.
छू ले गर दिल को तो ज़ज्बात कहा जाता है.
घटती हैं घटनाएँ तो हर पल ही बहुत सी लेकिन-
गहरा हो असर तो हालात कहा जाता है.
दोहा
कौन अकेला जगत में, प्रभु हैं सबके साथ.
काम करो निष्काम रह, उठा-झुकाओ माथ..
७-५-२०२२

बुधवार, 4 मई 2022

छंद उपमान, छंद दृढ़पत, छंद हरि,मुक्तक,दोहा,उत्सव,नवगीत,

नवगीत
जोड़-तोड़ है
मुई सियासत
*
मेरा गलत
सही है मानो।
अपना सही
गलत अनुमानो।
सत्ता पाकर,
कर लफ्फाजी-
काम न हो तो
मत पहचानो।
मैं शत गुना
खर्च कर पाऊँ
इसीलिए तुम
करो किफायत
*
मैं दो दूनी
तीन कहूँ तो
तुम दो दूनी
पाँच बताना।
मैं तुमको
झूठा बोलूँगा
तुम मुझको
झूठा बतलाना।
लोकतंत्र में
लगा पलीता
संविधान से
करें बगावत
*
यह ले उछली
तेरी पगड़ी।
झट उछाल तू
मेरी पगड़ी।
भत्ता बढ़वा,
टैक्स बढ़ा दें
लड़ें जातियाँ
अगड़ी-पिछड़ी।
पा न सके सुख
आम आदमी,
लात लगाकर
कहें इनायत।
***
नवगीत
आओ!
मिल उपवास करें.....
*
गरमा-गरम खिला दो मैया!
ठंडा छिपकर पी लें भैया!
भूखे आम लोग रहते हैं
हम नेता
कुछ खास करें
आओ!
मिल उपवास करें......
*
पहले वे, फिर हम बैठेंगे।
गद्दे-एसी ला, लेटेंगे।
पत्रकार!
आ फोटो खींचो।
पिओ,
पिलाओ, रास करें
आओ!
मिल उपवास करें.....
*
जनगण रोता है, रोने दो।
धीरज खोता है, खोने दो।
स्वार्थों की
फसलें काटें।
सत्ता
अपना ग्रास करें
आओ!
मिल उपवास करें.....
***
उत्सव
एकाकी रह भीड़ का अनुभव है अग्यान।
छवि अनेक में एक की, मत देखो मतिमान।।
*
दिखा एकता भीड़ में, जागे बुद्धि-विवेक।
अनुभव दे एकांत का, भीड़ अगर तुम नेक।।
*
जीवन-ऊर्जा ग्यान दे, अमित आत्म-विश्वास।
ग्यान मृत्यु का निडरकर, देता आत्म-उजास।।
*
शोर-भीड़ हो चतुर्दिक, या घेरे एकांत।
हर पल में उत्सव मना, सज्जन रहते शांत।।
*
जीवन हो उत्सव सदा, रहे मौन या शोर।
जन्म-मृत्यु उत्सव मना, रहिए भाव-विभोर।।
*
12.4.2018
दोहा सलिला 
ओ' शो करना जरूरी, तभी सके जग देख.
मन की मन में रहे तो, कौन कर सके लेख?

कुछ सुनना; कुछ सुनाना, तभी बनेगी बात.
अपने-अपने तक रहे, सीमित क्यों जज़्बात?

गला न घोंटें छंद का, बंदिश लगा अनेक.
सहज गेय जो वह सही, माने बुद्धि-विवेक.

दोहा मैं लिखता नहीं, दोहा प्रगटे आप।
कथ्य, भाव, रस आप ही, जाते दोहा-व्याप।।

जिया जिया में बसा ले, दोहा छंद पुनीत.
दोहा छंद जिया अगर, दिन दूनी हो प्रीत.

दोहा ने दोहा सदा, शब्द-शब्द का अर्थ.
दोहा तब ही सार्थक, शब्द न हो जब व्यर्थ.
***
मुक्तक:
*
बोल जब भी जबान से निकले
पान ज्यों पानदान से निकले
कान में घोल दे गुलकंद 'सलिल
ज्यों उजाला विहान से निकले
*
आज प्रियदर्शी बना है अम्बर,
शिव लपेटे हैं नाग- बाघम्बर।
नेह की भेंट आप लाई हैं-
चुप उमा छोड़ सकल आडम्बर।।
*
मन सागर, मन सलिला भी है, नमन अंजुमन विहँस कहें
प्रश्न करे यह उत्तर भी दे, मन की मन में रखेँ-कहें?
शमन दमन का कर महकाएँ चमन, गमन हो शंका का-
बेमन से कुछ काम न करिए, अमन-चमन 'सलिल' में रहे
*
तेरी निंदिया सुख की निंदिया, मेरी निंदिया करवट-करवट”
मेरा टीका चौखट-चौखट, तेरी बिंदिया पनघट-पनघट
तेरी आसें-मेरी श्वासें, साथ मिलें रच बृज की रासें-
तेरी चितवन मेरी धड़कन, हैं हम दोनों सलवट-सलवट
*
बोरे में पैसे ले जाएँ, संब्जी लायें मुट्ठी में
मोबाइल से वक़्त कहाँ है, जो रुचि ले युग चिट्ठी में
कुट्टी करते घूम रहे हैं सभी सियासत के मारे-
चले गये वे दिन जब गले मिले हैं संगा मिट्ठी में
*
नहीं जेब में बचीं छदाम, खास दिखें पर हम हैँ आम
कोई तो कविता सुनकर, तनिक दाद दे करे सलाम
खोज रहीं तन्मय नज़रें, कहाँ वक़्त का मारा है?
जिसकी गर्दन पकड़ें हम फ़िर चकेवा दें बिल बेदाम
***
छंद सलिला: हरि छंद
*
छंद-लक्षण: जाति रौद्राक, प्रति चरण मात्रा २३ मात्रा, चरणारंभ गुरु, यति ६ - ६ - ११, चरणान्त गुरु लघु गुरु (रगण) ।
लक्षण छंद:
रास रचा / हरि तेइस / सखा-सखी खेलते
राधा की / सखियों के / नखरे हँस झेलते
गुरु से शुरु / यति छह-छह / ग्यारह पर सोहती
अंत रहे / गुरु लघु गुरु / कला 'सलिल' मोहती
उदाहरण:
१. राखो पत / बनवारी / गिरधारी साँवरे
टेर रही / द्रुपदसुता / बिसरा मत बावरे
नंदलाल / जसुदासुत / अब न करो देर रे
चीर बढ़ा / पीर हरो / मेटो अंधेर रे
२. सीता को / जंगल में / भेजा क्यों राम जी?
राधा को / छोड़ा क्यों / बोलो कुछ श्याम जी??
शिव त्यागें / सती कहो / कैसे यह ठीक है?
नारी भी / त्यागे नर / क्यों न उचित लीक है??
३. नेता जी / भाषण में / जो कुछ है बोलते
बात नहीं / अपनी क्यों / पहले वे तोलते?
मुकर रहे / कह-कहकर / माफी भी माँगते
देश की / फ़िज़ां में / क्यों नफरत घोलते?
४. कौन किसे / बिना बात / चाहता-सराहता?
कौन जो न / मुश्किलों से / आप दूर भागता?
लोभ, मोह / क्रोध द्रोह / छोड़ सका कौन है?
ईश्वर से / कौन और / अधिक नहीं माँगता?
***
छंद सलिला:
दृढ़पद (दृढ़पत/उपमान) छंद 
*
छंद-लक्षण: जाति रौद्राक, प्रति चरण मात्रा २३ मात्रा, यति १३ - १०, चरणान्त गुरु गुरु (यगण, मगण) ।
लक्षण छंद:
तेईस मात्रा प्रति चरण / दृढ़पद रचें सुजान
तेरह-दस यति अन्त में / गुरु गुरु- है उपमान
कथ्य भाव रस बिम्ब लय / तत्वों का एका
दिल तक सीधे पहुँचता / लगा नहीं टेका
उदाहरण:
१. हरि! अवगुण से दूरकर / कुछ सद्गुण दे दो
भक्ति - भाव अर्पित तुम्हें / दिक् न करो ले लो
दुनियादारी से हुआ / तंग- शरण आया-
एक तुम्हारा आसरा / साथ न दे साया
२. स्वेद बिन्दु से नहाकर / श्रम से कर पूजा
फल अर्पित प्रभु को करे / भक्त नहीं दूजा
काम करो निष्काम सब / बतलाती गीता
जो आत्मा सच जानती / क्यों हो वह भीता?
३. राम-सिया के रूप हैं / सच मानो बच्चे
बेटी-बेटे में करें / फर्क नहीं सच्चे
शक्ति-लक्ष्मी-शारदा / प्रकृति रूप तीनो
जो न सत्य पहचानते / उनसे हक़ छीनो
***
४.५.२०१४
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, रसामृत, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

मंगलवार, 3 मई 2022

लघुकथा, परशुराम

लघुकथा
मौन?
*
आज परशुराम जयंती है, समाचार पत्र में कई कार्यकर्मों की सूचनाएँ,, कुछ मित्र मुझे भी पकड़कर एक कार्यक्रम में ले गए। परशुराम जी की प्रशंसा में बहुत कुछ कहा गया, नारे लगाए गए। मुझे मौन देख एक ने एक वक्ता ने मेरी और घूरते हुए कहा जिस तरह परशुराम ने क्षत्रियों का संहार किया था उसी तरह हमें भी विधर्मियों का संहार करना होगा।

मेरी बारी आई तो मैंने कहा की परशुराम जी ने अपने पिता के कहने पर अपनी माँ का वध बिना कुछ आगा-पीछा किये कर दिया था। उनका अनुकरण आपमें से कौन करेगा?

उत्तर में छाया रहा मौन।
***

सोमवार, 2 मई 2022

दोहांजलि

दोहांजलि
*
गुरुवर सुरेश उपाध्याय जी, होशंगाबाद

निकट पढ़े अध्याय कुछ, जब 'सुरेश' के संग।
ऐसा चढ़ा न उतरता, मन से हिंदी-रंग।।
*
स्मृतिशेष गुरुवर रामचंद्र दास जी, जबलपुर

वीतराग प्रभु भक्ति में, मिले सदा लवलीन।
शुभाशीष उसको दिया, पहले जो था दीन।।
*
अग्रजवत डॉ. सुरेश कुमार वर्मा जी, जबलपुर

ठाठ कबीराना जिया, वाक् व्यास सी संग।
कर प्रयास लूँ सीख कुछ, सत्-चिंतन का ढंग।।
*
आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी जी, जबलपुर

कृष्ण कांत आशीष पा, धन्य सलिल तू धन्य।
लोहे को सोना करे, चंद्रा-संग अनन्य।।
*
स्मृति शेष भगवती प्रसाद देवपुरा, श्रीनाथद्वारा

हिंदी के हित समर्पित, रहे समर्पित आप।
सलिल-प्रेरणा स्रोत बन, रहे श्वास में व्याप।।
*

स्मृतिशेष प्रो, भागवत प्रसाद मिश्र 'नियाज़', अहमदाबाद

सत्य साई आशीष पा, किया सृजन पठनीय।
श्रेष्ठ शलाका पुरुष हे!, हर पुस्तक मननीय।।

*
अग्रजवत अमरनाथ जी, लखनऊ

'अमरनाथ' ने रख दिया, ज्यों ही सर पर हाथ।
पग पखारते सलिल को, चढ़ा लिया निज माथ।।
*
डॉ. रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर', फ़िरोज़ाबाद

'राम सनेही' ने दिया, जब जी भरकर स्नेह।
संजीवित संजीव हो, झट हो गया विदेह।।
*
पूर्णिमा बर्मन, लखनऊ

पा प्रवीण सत्संग में, शरत पूर्णिमा आभ।
सलिल-लहर ज्योतित हुईं, छंद-छंद अरुणाभ।।
*
देवकीनंदन 'शांत' जी, लखनऊ

शांत प्रशांत निशांत सम, जैसे उजली भोर।
नूर-नूर पा रच रहे, दोहे-ग़ज़ल अँजोर।।
*
मनोज श्रीवास्तव जी, लखनऊ

ओज-तेज मसि-कलम है, श्री वास्तव में मीत।
मिला तुम्हें मन ओज मय, रचे मनोरम गीत।।
*
वीणा तिवारी जी, जबलपुर

नेह नर्मदा निर्मला, तुममें दिखी सदैव।
आशीषित करती रहें सदा- सदय हो दैव।।
*
डॉ. छाया राय जी, जबलपुर

नमन वाग्वैदग्ध्य को, सक 'कांट' को जान।
दर्शन का दर्शन करा, तार दिया मतिमान।।
*
साधना उपाध्याय जी, जबलपुर

कर्मठता-संघर्ष की, ज्योतित दीप्त मशाल।
अटल प्रेरणा-स्रोत तुम, पग छू हुआ निहाल।।
*
डॉ. इला घोष जी, जबलपुर

सृजन अकुंठित कर रहीं, लुटा रहीं सद्ज्ञान।
मथकर वैदिक वांग्मय, करा रहीं सत्-पान।।
*




गीत, घनाक्षरी, नज़्म, लघुकथा, कुण्डलिया, हास्य कविता,

हास्य कविता
*
प्रभु! तुम करते गड़बड़ झाला
हमसे कह मत कर घोटाला
दुनिया रच दी तुमने गोल
बाहर-भीतर पोलमपोल
चूहे को बिल्ली धमकाती
खुद कुत्ते से है भय खाती
देख आदमी कुत्ता डरता
जैसा मालिक बोले करता
डरे आदमी बीबी जी से
बेमन से या मनमर्जी से
चूहे से बीबी डरती है
कहती है पति पर मरती है
पति जीता कह तुझ पर मरता
नज़र पड़ोसन पर है धरता
जहाँ सफेद वहीं है काला
प्रभु! तुम करते गड़बड़ झाला
२-५-२०२१
***
विषय - मोड़
दोहा
मोड़ मिलें स्वागत करो, नई दिशा लो देख
पग धरकर बढ़ते चलो, खींच सफलता रेख
***
कुण्डलिया
दिल्ली का यशगान ही, है इनका अस्तित्व
दिल्ली-निंदा ही हुआ, उनका सकल कृतित्व
उनका सकल कृतित्व, उडी जनगण की खिल्ली
पीड़ा सह-सह हुई तबीयत जिसकी ढिल्ली
संसद-दंगल देख, दंग है लल्ला-लल्ली
तोड़ रहे दम गाँव, सज रही जमकर दिल्ली
***
लघुकथा
अकेले
*
'बिचारी को अकेले ही सारी जिंदगी गुजारनी पड़ी।'
'हाँ री! बेचारी का दुर्भाग्य कि उसके पति ने भी साथ नहीं दिया।'
'ईश्वर ऐसा पति किसी को न दे।'
दिवंगता के अन्तिम दर्शन कर उनके सहयोगी अपनी भावनाएँ व्यक्त कर रहे थे।
'क्यों क्या आप उनके साथ नहीं थीं? हर दिन आप सब सामाजिक गतिविधियाँ करती थीं। जबसे उनहोंने बिस्तर पकड़ा, आप लोगों ने मुड़कर नहीं देखा।
उन्होंने स्वेच्छा से पारिवारिक जीवन पर सामाजिक कार्यक्रमों को वरीयता दी। पिता जी असहमत होते हुए भी कभी बाधक नहीं हुए, उनकी जिम्मेदारी पिताजी ने निभायी। हम बच्चों को पिता के अनुशासन के साथ-साथ माँ की ममता भी दी। तभी माँ हमारी ओर से निश्चिन्त थीं। पिताजी बिना बताये माँ की हर गतिविधि में सहयोग करते रहेऔर आप लोग बिना सत्य जानें उनकी निंदा कर रही हैं।' बेटे ने उग्र स्वर में कहा।
'शांत रहो भैया! ये महिला विमर्श के नाम पर राजनैतिक रोटियाँ सेंकने वाले प्यार, समर्पण और बलिदान क्या जानें? रोज कसमें खाते थे अंतिम दम तक साथ रहेंगे, संघर्ष करेंगे लेकिन जैसे ही माँ से आर्थिक मदद मिलना बंद हुई, उन्हें भुला दिया। '
'इन्हें क्या पता कि अलग होने के बाद भी पापा के पर्स में हमेश माँ का चित्र रहा और माँ के बटुए में पापा का। अपनी गलतियों के लिए माँ लज्जित न हों इसलिए पिता जी खुद नहीं आये पर माँ की बीमारी की खबर मिलते ही हमें भेजा कि दवा-इलाज में कोइ कसर ना रहे।' बेटी ने सहयोगियों को बाहर ले जाते हुए कहा 'माँ-पिताजी पल-पल एक दूसरे के साथ थे और रहेंगे। अब गलती से भी मत कहियेगा कि माँ ने जिंदगी गुजारी अकेले।
२-५-२०१७
***
नज़्म:
*
ग़ज़ल
मुकम्मल होती है तब
जब मिसरे दर मिसरे
दूरियों पर
पुल बनाती है बह्र
और एक दूसरे को
अर्थ देते हैं
गले मिलकर
मक्ते और मतले
काश हम इंसान भी
साँसों और
आसों के मिसरों से
पूरी कर सकें
ज़िंदगी की ग़ज़ल
जिसे गुनगुनाकर कहें:
आदाब अर्ज़
आ भी जा
ऐ अज़ल!
***
घनाक्षरी:
हिंदी के मुक्तक छंदों में घनाक्षरी सर्वाधिक लोकप्रिय, सरस और प्रभावी छंदों में से एक है. घनाक्षरी की पंक्तियों में वर्ण-संख्या निश्चित (३१, ३२, या ३३) होती है किन्तु मात्रा गणना नहीं की जाती. अतः, घनाक्षरी की पंक्तियाँ समान वर्णिक किन्तु विविध मात्रिक पदभार की होती हैं जिन्हें पढ़ते समय कभी लघु का दीर्घवत् उच्चारण और कभी दीर्घ का लघुवत् उच्चारण करना पड़ सकता है. इससे घनाक्षरी में लालित्य और बाधा दोनों हो सकती हैं. वर्णिक छंदों में गण नियम प्रभावी नहीं होते. इसलिए घनाक्षरीकार को लय और शब्द-प्रवाह के प्रति अधिक सजग होना होता है. समान पदभार के शब्द, समान उच्चार के शब्द, आनुप्रासिक शब्द आदि के प्रयोग से घनाक्षरी का लावण्य निखरता है. वर्ण गणना करते समय लघु वर्ण, दीर्घ वर्ण तथा संयुक्ताक्षरों को एक ही गिना जाता है अर्थात अर्ध ध्वनि की गणना नहीं की जाती है।
२ वर्ण = कल, प्राण, आप्त, ईर्ष्या, योग्य, मूर्त, वैश्य आदि.
३ वर्ण = सजल,प्रवक्ता, आभासी, वायव्य, प्रवक्ता आदि.
४ वर्ण = ऊर्जस्वित, अधिवक्ता, अधिशासी आदि.
५ वर्ण. = वातानुकूलित, पर्यावरण आदि.
घनाक्षरी के ९ प्रकार होते हैं;
१. मनहर: कुल वर्ण संख्या ३१. समान पदभार, समतुकांत, पदांत गुरु अथवा लघु-गुरु, चार चरण ८-८-८-७ वर्ण।
२. जनहरण: कुल वर्ण संख्या ३१. समान पदभार, समतुकांत, पदांत गुरु शेष सब वर्ण लघु।
३. कलाधर: कुल वर्ण संख्या ३१. समान पदभार, समतुकांत, पदांत लघु-गुरु, चार चरण ८-८-८-७ वर्ण ।
४. रूप: कुल वर्ण संख्या ३२. समान पदभार, समतुकांत, पदांत गुरु-लघु, चार चरण ८-८-८-८ वर्ण।
५. जलहरण: कुल वर्ण संख्या ३२. समान पदभार, समतुकांत, पदांत लघु-लघु, चार चरण ८-८-८-८ वर्ण।
६. डमरू: कुल वर्ण संख्या ३२. समान पदभार, समतुकांत, पदांत बंधन नहीं, चार चरण ८-८-८-८ लघु वर्ण।
७. कृपाण: कुल वर्ण संख्या ३२. समान पदभार, समतुकांत, पदांत गुरु-लघु, चार चरण, प्रथम ३ चरणों में समान अंतर तुकांतता, ८-८-८-८ वर्ण।
८. विजया: कुल वर्ण संख्या ३२. समान पदभार, समतुकांत, पदांत लघु-गुरु, चार चरण ८-८-८-८ वर्ण।
एक घनाक्षरी
चाहते रहे जो हम / अन्य सब करें वही / हँस तजें जो भी चाह / उनके दिलों में रही
मोह वासना है यह / परार्थ साधना नहीं / नेत्र हैं मगर मुँदे / अग्नि इसलिए दही
मुक्त हैं मगर बँधे / कंठ हैं मगर रुँधे / पग बढ़े मगर रुके / सर उठे मगर झुके
जिद्द हमने ठान ली / जीत मन ने मान ली / हार छिपी देखकर / येन-केन जय गही
२-५-२०१५
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गीत:
मन विहग
*
मन विहग उड़ रहा,
खोजता फिर रहा.
काश! पाये कभी-
कोई अपना यहाँ??
*
साँस राधा हुई, आस मीरां हुई,
श्याम चाहा मगर, किसने पाया कहाँ?
चैन के पल चुके, नैन थककर झुके-
भोगता दिल रहा
सिर्फ तपना यहाँ...
*
जब उजाला मिला, साथ परछाईं थी.
जब अँधेरा घिरा, सँग तनहाई थी.
जो थे अपने जलाया, भुलाया तुरत-
बच न पाया कभी
कोई सपना यहाँ...
*
जिंदगी का सफर, ख़त्म-आरंभ हो.
दैव! करना दया, शेष ना दंभ हो.
बिंदु आगे बढ़े, सिंधु में जा मिले-
कैद कर ना सके,
कोई नपना यहाँ...
२-५-२०१२
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