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रविवार, 8 अगस्त 2021

लद्दाख

लद्दाख 1. देवेश सिसोदिया

राज्य समन्वयक(लद्दाख)

हाथरस (उत्तर प्रदेश)

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


वर्ग 1 जनसांख्यिकी

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1-राज्य की उत्पत्ति,स्थापना,आधार

2-राजधानी

3-जनसंख्या

4-आर्थिक स्थिति

5-शिक्षा का स्तर

6-धर्म

7-मंडल तथा जिले

8-नगर तथा कस्बे आदि-आदि

*दोहा*--

*सन आठ सौ ब्यालीस में,उदय हुआ यह राज्य*

*लद्दाखी नृपवंश ने, बना लिया साम्राज्य*

*चोपाई*

तीन लाख आबादी वाला

सुंदरता में सबसे आला

मुझको प्यारा तुमको प्यारा

सारे जग में सबसे न्यारा


भारत माँ की आँख का तारा

चार-पाँच है इसका पारा

बहुत मनोरम चित्रण इसका

देख लेह मन हर्षित सबका


घुमक्कड़ी लोगों की भूमी

साधु संतों ने भी चूमी

काराकोरम और हिमालय

पर्वत दोनों इसके आलय


कारगिल की प्रसिद्ध लड़ाई

कठिन बहुत है इसकी चढ़ाई

मौसम रहता बहुत सुहाना

स्थापन है बहुत पुराना

*दोहा-*

तिब्बती साम्राज्य का विघटन होता देख

सदी आठवीं में बना राज्य अनोखा एक


*चोपाई*-

सिंधु नदी ही कृपासिंधु है

कृषि सिंचन का मुख्य बिंदु है

सिंधु नदी की अविरल धारा

देती सबको ही है सहारा


मुकुट सजाए भारत माता

आन-वान से इसका नाता

रक्षा करके प्राण बचाता

सबके मन को सुख पहुँचाता


कुछ तो रहते मुस्लिम भाई

बौद्ध धर्म के कुछ अनुयाई

मिल-जुल कर सब हाथ बटाते

शत्रु नाश का पाठ पढ़ाते


कठिन बहुत जलवायु इसकी

सुंदरता फिर से है चमकी

रोज रोज सैलानी आते

घूमघाम कर घर को जाते


शिक्षा और हुनर में तेजी

लड़ने को सेना है भेजी

निन्यानवे सन की लड़ाई

कारगिल नाम प्रसिद्धि पाई


*दोहा*-

बौद्ध धर्म ने जब लिए अपने पाँव पसार

सुन उपदेश गुरुकंठ से समझ गए सुख सार

*चोपाई-*

नियंत्रित है इसकी जनसंख्या

बहुत सुहानी होती संध्या

क्षेत्रफल में बहुत बड़ा है

शत्रु सम्मुख तना खड़ा है


सब ने बौद्ध धर्म अपनाया

सबसे ऊंचा स्तूप बनाया

मंडल एक,दो जिले बनाए

राजधानी से लेह सजाए


जब जब शत्रु ने ललकारा

सिंघनाद कर उसे भगाया

लद्दाखी सैनिक जब हारा

मातृभूमि पर तन मन वारा


कारगिल की पर्वत मालाएँ

शत्रु नाश करती बालाएँ

नगर नगर में रौनक लगती

लोगों की आँखों में बसती


सुंदरता की नहीं है शानी

लेह बनी इसकी रजधानी

कृषि पर आधारित है जीवन

जड़ी बूटियाँ और संजीवन


पशुपालन में खच्चर भाता

दूध दही दे गैया माता

बोझा ढोकर काम चलाते

अतिथि देवता सम अपनाते


*दोहा--*

अठरह सौ चौबीस, में हेतु डोगरा वंश ।

जोरावर ने जीत लिया, झेल शत्रु का दंश ।


*चोपाई-*

ध्वज डोगरा वंश फहराया

राजा रणजीत नाम कहाया

जोरावर उसका सेनानी

याद दिलाए अरि को नानी


एक हुई कश्मीरी घाटी

लेह और कश्मीर की माटी

बहुत समय तक शासन कीन्हा

सुख समृद्धि कबहुँ नही दीन्हा


प्रदेश निजी बनाना चाहा

अधिकार स्वायित्व का मांगा

आतंक साथ नहीं गुजारा

हमको अब लद्दाख है प्यारा


पृथक राज्य का बिगुल बजाया

नही कश्मीरी शासन भाया

शांतिदूत के सभी पुजारी

स्वायित्व बिना सभी दुखारी


चीनी तिब्बत अत्याचारी

लद्दाख की बड़ी लाचारी

स्वयित्व का सपना देखा

निर्धारित हो सीमा रेखा


*दोहा-*

दो हजार उन्नीस में, दिया केंद्र ने साथ।

कानून बनाकर ले लिया, शासन अपने हाथ।


*चौपाई-*

केंद्र शासित राज्य बनाया

प्रशासनिक अधिकार जमाया

राज्यपाल के हाथों सौंपा

जनसेवा का स्वर्णिम मौका


हथकरघा का मान बढ़ाने

शासन साधन लगा जुटाने

हस्तशिल्प है कला निराली

कौशल दिखलाने में आली


दमिश्क ,गुलाब, चमेली ,गेंदा

शांत रखें तन मन की मैदा

मँहगे मँहगे फल लगते हैं

बहुत परिश्रम से उगते हैं


हुआ खुशहाल राज्य लद्दाख

फूली-फली कली सज शाख

ज्ञान बिना मुश्किल लिख पाना

लिखा वही जो कुछ है जाना


नहीं किसी से करता समता

घर घर में है माया ममता

कर लद्दाख नमन स्वीकार

पूरा होंगे स्वप्न हजार


नमन मंच 🙏🌹🙏

विषय -- कला संस्कृति साहित्य

वर्ग---- 2


🙏🌹

*दोहा --- जम्मू की प्राची दिशा , ऊँचा एक पठार ।*

*हम लद्दाख कहें इसे , ईश्वर का उपहार ।।*


चौपाई---

जम्मू प्राची का उजियारा ।

राज्य लद्दाख सबसे प्यारा ।।

केंद्र शासित प्रदेश कहाता ।

रिपु देशों को यही दबाता ।।


काराकोरम उत्तर जानो ।

खड़ा हिमालय दक्षिण मानो ।।

क्षेत्रफलों में है बलशाली ।

कम आबादी इसकी आली ।।


सीमावर्ती क्षेत्र यही है ।

भूतल कृषि के योग्य नहीं है ।।

बहुत कठिन लोगों का जीवन ।

हँसी खुशी से करते यापन ।।


सीधे-साधे लोग यहाँ पर ।

धर्म भावना दिखे जहाँ पर ।।

नहीं झगड़ते आपस में ये ।

प्रेम भाव से रहते हैं ये ।।



लामाओं की यह है धरती ।

सज्जनता है उर में बसती ।।

बौद्ध धर्म के सभी उपासक ।

मधुरिम वाणी है सुखकारक ।।



*सशक्त नैतिक मूल्य हों , सदा रहे ये भान ।*

*कला साहित्य सभ्यता , बने राष्ट्र पहचान ।।*


चौपाई----


शांत प्रकृति के लोग यहाँ के ।

प्रेम करें हैं खूब जहाँ से ।।

भाई-चारा रग में है बसता ।

नेहिल भाव नित-नित है बढ़ता ।।



आर्य सभ्यता से है नाता ।

बौद्ध धर्म के नियम बताता । ।

तिब्बत शैली को अपनाते ।

आपस में सब हाँथ बँटाते ।।



प्रथा महोत्सव की अलबेली ।

सदी पुरानी जीवन शैली ।।

एक पक्ष तक उत्सव चलता ।

संस्कृति से है नाता जुड़ता ।।


लोग विश्व भर से हैं आते ।

जनजीवन से वे जुड़ जते ।।

आतिथ्य भाव बड़ा निराला ।

सुखमय अहसासों की माला ।।



बौद्ध यहाँ के मूल निवासी ।

छलविहीन होते सुख रासी।।

सहज भाव के लोग सभी जन ।

करते अपना तन मन अर्पन।।


*चंद्रभूमि लद्दाख को , कहते हैं सब लोग ।*

*जय-जय धर्म की हो रही ,सकल मिटे हैं रोग ।।*




सीधे सच्चे लोग यहाँ पर ।

धर्म भावना बसती अंतर ।।

स्तूप बने हैं जगह-जगह पर ।

गिनती करना अति है दुष्कर ।।


लगे प्रार्थना चक्र सभी में ।

प्रभु का सुमिरन चलता उर में ।।

सच्चे हृदय से जो घुमाता ।

पाप सकल उसका कट जाता ।।



लद्दाखी है जन की भाषा ।

पूरी होती मन अभिलाषा ।।

भोंटी भी है इसको कहते ।

प्रेम भाव से सब मिल रहते ।।


फूलों की यह घाटी सुन्दर।

हेमिस उत्सव लगता प्रियकर ।।

गीत संगीत गुंजित होता ।

लोक नृत्य का परिचय बोता ।।


कुंभ पर्व है यह कहलाता ।

लोगों का जमघट लग जाता ।।

नृत्य मुखौटा खेला जाता ।

सबके मन को यह है भाता ।।


*अजब गजब के भेद से , भरा हुआ लद्दाख ।*

*वीराने से क्षेत्र हैं , हिम से ढकती शाख ।।*



आर्य नस्ल जनजाति यहाँ पर ।

करते हैं शोध अध्ययन कर ।।

संगीत कला से इनकी जुड़ते ।

जीवनशैली पर हैं मुड़ते ।।



पोलो ट्रैकिंग के क्या कहने ।

तीरंदाजी जैसी बहनें।

सैलानी को हैं खूब लुभाती ।

दें आनन्द उर में समाती ।।



हर माह त्योहार हैं आते ।

मन में नई उमंग जगाते ।।

वैर भावना को भूल सभी जन ।

प्रेम से करते हैं आलिंगन

।।



नवल वर्ष में लोसर होता ।

यह पर्व नित खुशी संजोता ।।

एक पक्ष यह चलता है ।

पुरखों को नित भजता है ।।



खान पान है अजब निराला।

मक्खन चाय स्वाद है आला ।।

याक दूध से है ये बनती ।

रंग गुलाबी में है रंगती ।।



भाँति-भाँति के मिलते व्यंजन।

टिग्मो थुक्पा हैं प्रसिद्ध अन्न ।।

मोमोज कई सब्जियों वाला।

मोकथुक बने विविध मसाला ।।



-- स्वरचित एवं मौलिक रचना

✍🏻 *अर्चना तिवारी अभिलाषा*

*104ए/271*

*रामबाग*

*कानपुर।*

वर्ग - 3 - उपलब्धियां/ कार्य

***********************


श्रम करते नित लोग हैं, मुख रहती मुस्कान ।

सकल जगत में बढ़ा, है, लद्दाखी का मान ।।


मेहनत करके नाम कमाया ।

राज्य का सम्मान बढ़ाया।।

विकास की जब पेंग बढ़ाई ।

सूखी धरती भी मुस्काई ।।


खेती की तकनीकें सीखीं ।

जैविक अरु सूखी भी देखीं ।।

बीज उत्पादन के थे मानक ।

जिनसे होती धन की आवक ।।


सोलर ग्रीन हाउस बनाया ।

सारे मानक खरे रखाया ।।

ड्रिप स्प्रिंकलर नयी प्रणाली ।

जल बर्बाद न होता आली ।।


अधिक शीत से बच लें फसलें ।

धरतीगत गोदामों को टच लें ।।

फसल खराब न होने पाती ।

सरकारें सबको समझाती ।।


फौजी सीमा पर जब जाते ।

उनका खाना ये पहुँचाते ।।

भूखा कभी न इनको रखते ।

सब दिन सेवा इनकी करते ।।



शीत शुष्क लदाख यह, लगता चाँदी गोट।

लोग उगाते हैं यहाँ, भिन्न- भिन्न अखरोट ।


विविध जाति के फल उपजाते ।

सीयन बड को भी अपनाते ।।

तरह-तरह से सेब लगाते ।

चेरी , सीबक थॉर्न उगाते ।।


हर्बल पेय पदार्थ बनाया ।

विटामिन ए बी युत बताया।।

तनाव रोधी अद्भुत फल है ।

लाभ उठाता सैनिक दल है ।।


एफ एल आर पंजीकृत करके ।

एफ पी ओ उपक्रम सुधर के ।।

मिला जुला सब काम कराते ।

राज काज से लाभ उठाते ।।


औषधीय पौधे लगवाये।

गुणवत्ता विकसित करवाये ।।

लाहौल स्पीति को तुम जानो ।

इनका लोहा सब जन मानो ।।


बायोटेक्नोलॉजी विकसित ।

बहु क्षमतावान अपरिमित ।।

नन्हा सा यह राज्य कहाया ।

परचम जग में अब लहराया ।।



केवल खेती में नहीं, क्षमता हुई अपार।

भाँति भाँति के काम में, उपक्रम हैं उपहार ।।


मुर्गी पालन काम बढ़ाया ।

हर्षित हो जन जन मुस्काया ।।

रूखी ठंडी जो घबराया ।

तन का यह आहार बनाया ।।


डेयरी हेतु गायें पालीं ।

भेड़ें रखकर ऊन निकाली ।।

सरकारी सुविधा लाभ उठायी ।

लद्दाखी जनता मुस्कायी ।।


घोड़ा संतति का बढ़ जाना।

खच्चर टट्टू का भी आना ।।

पर्यटन को मिले बढ़ावा ।

लेह घुमाना पक्का दावा ।।


कृषि वानिकी नियम बनाये ।

पूरे राज्य में लाभ कराये ।।

हिम बूटी पेटेंट कराया ।

सीबक से फिर जैम बनाया ।।


शीत शुष्क प्रदेश बड़भागी ।

सुंदर मोहक अरु मनलागी ।।

सकल विश्व में डंक बजाया ।

सरल सहज मनु मन भाया ।।


रचनाकार

अन्नपूर्णा बाजपेयी अंजू

कानपुर


वर्ग 4 (इतिहास)


दोहा -

शिलालेख जो भी मिले,उनसे मिलता ज्ञान।

युग में नवपाषाण के,इसका हुआ निर्माण।।


चौपाइयां-


प्रथम शताब्दी का है किस्सा ।

बना कुषाण राज का हिस्सा ।।

सदी आठवीं ऐसी आई ।

तिब्बत चीनी हुई लड़ाई ।।


चीन व तिब्बत बारी- बारी ।

बनते थे इसके अधिकारी ।।

विघटन तिब्बत का हो पाया ।

न्यिमागोन ने था कब्जाया ।।


सभी वंश करके विस्थापित ।

वंश लद्दाखी किया स्थापित ।।

तिब्बतियों का हुआ आगमन ।

बौद्ध धर्म ने किया पदार्पण ।।


भाषा सही अज्ञात अभी तक ।

इंडो - यूरोपियन का है शक ।।

तेरह से सोलवीं सदी में ।

था तिब्बती मार्गदर्शन में ।।


बात करें सत्रवीं सदी की ।

बन गए शत्रु राज पड़ोसी ।।

बौद्ध धर्म था सिर्फ जहां पर ।

आया मुस्लिम धर्म वहां पर ।।


दोहा -


मुस्लिम हमलों से हुआ,खंड खंड लद्दाख।

तब राजा ल्हाचेन ने,पुनः बनाई साख।।


चौपाइयां-


था मुस्लिम हमलों से खंडित

राजा ने कर लिया संगठित

एक नया फिर वंश चलाया

नामग्याल था नाम बताया


दुश्मन ने आतंक मचाया

कलाकृति को तोड़ गिराया

फिर से हुआ निर्माण सभी का

पुनः हो गया सब कुछ नीका


यद्यपि हार गया मुगलों से

पर आजाद रहा बंधों से

शेरखान को कर् था चुकाया

बहुत समय शांति से बिताया


सदी का आखिर ऐसा आया

तिब्बत से भूटान लड़ाया

साथ हुए लदाख भूटानी

तभी रार तिब्बत ने ठानी


ये घटना जब शुरू हुई थी

सन् सोलह सौ उन्यासी थी

सन् सोलह सौ चौरासी में

निबटी तिंगमोस बाजी में


दोहा -


तिंगमोस की संधि से,हुआ युद्ध का अंत।

सुखी हुई सारी प्रजा,हुआ हर्ष अत्यन्त।।


चौपाइयां -


सन् अट्ठारह सौ चौतिस में ।

बोला हमला जोरावर ने ।।

मान डोगरा का बढ़वाया ।

तब गुलाब ने कंठ लगाया ।।


अठरा सौ व्यालिस का किस्सा ।

बना लिया जम्मू का हिस्सा ।।

यूरोप की बढ़ी प्रभुताई ।

सदा हुई लद्दाख बड़ाई ।।


सन् उन्निस सौ सैंतालिस में ।

हुआ विभाजित भारत जिसमें ।।

यह सुंदर अवसर भी आया ।

भारत में यह गया मिलाया ।।


उन्नीस उन्यासी की घटना ।

जब लद्दाख को पड़ा बटना ।।

दो भागों में गया बटाया ।

लेह कारगिल नाम कहाया ।।


दो हजार उन्नीस का मौका ।

जब था ये सारा जग चौंका ।।

नौवां केंद्र के शासन वाला ।

बना क्षेत्र लद्दाख निराला ।।


दोहा -


बसा गोद गिरिराज की,वहैं खूबियाँ अनेक ।

मेले पर्व कई यहाँ, आप लीजिए देख।।


चौपाइयाँ


पहला है लादार्चा मेला ।

दूजा है पौरी का खेला ।।

दोनों अगस्त में हैं आते ।

सब मिलकर आनंद मनाते ।।


शिशु मेला भी एक है नामा ।

पहन मुखौटे आते लामा ।।

एक पर्व दिवाली जैसा ।

नाम खोगला, हल्डा कैसा ।।


अति विशेष फागली का उत्सव ।

तेल के दीपक जला रहे सब ।।

पिछले वर्ष हुआ जहाँ बेटा ।

गोची पर्व वहाँ पर देखा ।।


यह विशाल मेला दुनिया का ।

उत्सव है यह बौद्ध धर्म का ।।

द्रुपका पंथ के अनुयायी जो ।

वही मनाते इस उत्सव को ।।


नाम नरोपा कहलाता है ।

बारह वर्ष बाद आता है ।।

बारह वर्ष बाद है आता ।

अतः कुंभ भी है कहलाता ।।



मीनेश चौहान w/o अरुण कुमार सिंह

ग्राम - राई,पोस्ट - खंडॉली

जिला - फर्रुखाबाद(उत्तर प्रदेश)

पिन कोड - 209621


लद्दाख - वर्ग 5 (प्राकृतिक संरचना)

खनिज



03/07/2021


केंद्र प्रशासित राज्य जो, पड़ा नाम लद्दाख।

अप्रतिम सौंदर्य जिसका, बर्फ भरी हर शाख।।1।।


छवि लगे लद्दाख की प्यारी।

सुषमा उसकी न्यारी-न्यारी।।

लोग वहाँ के लगते प्यारे।

बर्फ ढँके पर्वत हैं सारे।।


सौम्य रूप पावन अति लागे।

धवल केश कपास के धागे।।

कुदरत का यह शुभ्र नजारा।

आँखों को लगता है प्यारा।।


पहले था कश्मीरी हिस्सा।

विलग हुआ है ताजा किस्सा।।

खुश हो जाते हैं सैलानी।

देख-देख मौसम बर्फानी।।


पश्मीना ऊनें मिलती हैं।

सुंदर-सी शालें बनती हैं।।

लेह, कारगिल दोउ जिले हैं।

हिम के गिरि पर फूल खिले हैं।।


विधि कार्य कश्मीर में होते।

पर झगड़े भी कम ही होते।।

पर्वत से हैं झरने गिरते।

अधिक ठंड से वे भी जमते।।


हाड़ काँपती शीत में, कार्य करें सब लोग।

ईश्वर की इन पर कृपा, होते कम ही रोग।।2।।


हिम तेंदुए वहाँ हैं मिलते।

पशु में चीरू, याक विचरते।।

भेड़ नयान भरल बहुतेरे।

जमे बर्फ पर करते फेरे।।


पशु-बालों से ऊन बनाते।

जम्मू में भी भेजे जाते।।

जहाँ गर्म शाॅलें हैं बनतीं।

फिर वो दुनिया भर में बिकती।।


पश्मीना की उन्नत किस्में।

रेशम-सी चिकनाई जिसमें।।

कीमत भी होती है ज्यादा।

पर गर्मी का पक्का वादा।।


है मैग्नेटिक वहाँ पहाड़ी।

स्वयं एव खिंच जाती गाड़ी।।

नदियाँ मुख्य सिंधु जास्कर हैं।

हिमकण बनते जल जमकर हैं।।


रहित वनस्पति क्षेत्र जहाँ के।

कुछ फल के भी वृक्ष वहाँ पे।।

सेब संग अखरोट खुबानी।

मिले स्वाद भी खूब बखानी।।


पक्षी रंग-बिरंग के, करते वहाँ प्रवास।

उड़ते राॅबिन प्लंबियस, मनहर दिखे अकास।।3।।


बारह मास शीत रहती है।

जमी नदी कम ही बहती है।।

जीवन-यापन होता मुश्किल।

पर्यटन जीविका में शामिल।।


खेती योग्य जमीन नहीं है।

कोई सिंचन-स्त्रोत नहीं है।।

पशु-पालन ही पेशा होता।

याक सरिस वाहन बन ढोता।।


दूध- चीज़ पनीर भोजन का।

जीवन सादा है जन-जन का।।

भोले-भाले लोग वहाँ हैं।

होता अधिक न द्वंद्व जहाँ है।।


अन्य नदियाँ सिंधु में मिलतीं।

जांस्कर, डोडा मिलकर बहतीं।।

हिम नदियों में तरते दिखते।

दृश्य बड़े ये अद्भुत लगते।।


मानों बिछी बर्फ की चादर।

उतरा हुआ भूमि पर बादर।।

दिखती धरती स्वर्ग समाना।

मनु भी त्यागे निज अभिमाना।।


पुष्प एक विशेष यहाँ, सोलो उसका नाम।

रोडिओला भी कहते, अद्भुत उसका काम।।4।।


बढ़ती उम्र असर कम करता।

गुण औषध के तन में लगता।।

आक्सीजन उपलब्ध कराता।

सब्जी बन भोजन में आता।।


डायबिटिज नियंत्रित करता।

संतुलित मस्तिष्क को रखता।।

खाली पेट न सेवन करना।

शयन पूर्व भी इसे न चखना।।


पर्यटन-स्थल अनेक यहाँ पर।

आकर्षक मठ जगह-जगह पर।।

झीलें भी मन को हर लेतीं।

नयी ताजगी से भर देतीं।।


पैंगोंग को सभी हैं जानें।

आए निर्माता फिल्माने।।

अति प्रसिद्ध वह फिल्म हुआ था।

जब अद्भुत यह सीन लिया था।।


झील त्सोकर और मोरीरी।

भीड़ यहाँ होती बहुतेरी।।

देश भारत चीन में आधा।

झीलें कभी न बनतीं बाधा।।


———----------———




— स्वरचित

गीता चौबे गूँज

राँची झारखंड



वर्ग 6 लद्दाख वन्दना चौधरी

************************

भारत मां का भाल है ,अनुपम इसकी साख ।

शासित केंद्र राज्य है ,ये अपना लद्दाख।।१।।


भाल मुकुट यह भारत माँ का,

भूमि लेह लद्दाख पताका।

वर्ष छियासठ लड़ी लड़ाई,

जाकर तभी साख है पाई।


शुष्क ऋतु और धरा कठोरा,

पूरे वर्ष शीत का घेरा ।

ताप शून्य का हरदम फेरा,

प्राणवायु का कम है डेरा।।


उत्तर पश्चिम वास हिमाला,

है हर तरफ चोटी विशाला।

तीन इंच है वार्षिक वृष्टि ,

देखो कितनी सुंदर सृष्टि।।


स्वर्ग समान दृश्य है देखा ,

सिंधु यहां की जीवन रेखा।

कारगिल में शौर्य की माटी ,

जो है बसा सुरू की घाटी।।


स्कार्दू है शीत राजधानी ,

लेह ग्रीष्म में करे प्रधानी।

चारों तरफ पर्वती माला ,

सुंदर प्रकृति नशा ज्यौ हाला।।


सीमा इसकी नाप लो ,पूरब पश्चिम द्वार ।

अक्साई अब चीन लो, ये भारत उद्गार ।।२।।


गिलगित और चीन अक्साई ,

चीन ,पाक ने मुँह की खाई।

नहीं चलेगा इनका धोखा,

निश्चित सब भारत का होगा।।


पूरब में तिब्बत है छाया ,

पश्चिम दूर पाक पसराया।

उत्तर काराकोरम दर्रा ,

सुंदर दक्खिन जर्रा जर्रा।।


भारत का यह शौर्य सितारा,

सुंदरता से शोभित सारा।

विरल यहाँ लोगों का डेरा ,

चारों तरफ पहाड़ी घेरा।।


एल ए सी नियम था तोड़ा,

भारत ने चीनी को फोड़ा।

सुन ले चुंदी आंखों वाले,

काहे तुच्छ सोच तू पाले।।


मत ले भारत से तू पंगा ,

हो जाएगा अब तू नंगा ।

अब ना भारत बासठ वाला ,

देगा चीर पाँव जो डाला।।


खनिज ,श्रेणियों से भरा, अनुपम सुंदर सर्व,

कितनी सुंदर है धरा ,कर लो इस पर गर्व।।३।।


सुंदर एक लेह रजधानी ,

जिसकी है हर छठा सुहानी।

जास्कर पर्वत श्रेणी बीचा,

धरती माँ ने इसको सींचा।।


जास्कर पर्वत श्रेणी फैली,

धरती नहीं तनिक भी मैली ।

सिंधू से श्रेणी विस्तारा ,

श्योक दक्षिणा पाँव पसारा।।


सबसे ऊँची राकापोशी ,

तीव्र ढाल वाली यह चोटी।

काराकोरम छत दुनिया की,

कई चोटियाँ है शोभा की।।


जौ,कुटु, शलगम होती खेती,

प्रकृति यहाँ की यह सब देती।

सन् सत्तर से हुआ विकासा ,

साग ,सब्जियाँ अब चौमासा।।


खनिज संपदा को मत खोना,

यूरेनियम, ग्रेनाइट, सोना।

धातु ये सभी हैं अनमोल,

संरक्षण में रखें न झोल।।




रेतीली माटी मृदा ,बहुरंगी चट्टान।

सीबकथोर्न पौध सदा, रोके भूमि कटान।।४।।


बंजर भूमि मृदा है सूखी,

वन सौंदर्य से प्रकृति रूखी।

कठिन परिस्थिति में उग आता,

सीबकथोर्न झाड़ कहलाता ।।


वृक्ष यह आकार में बोना,

फल इसका लद्दाखी सोना ।

लेह और है वंडर बेरी,

खाने में अब नाकर देरी।।


फल रंगों में बड़े सुहाते,

जामुननुमा सभी फल आते।

पोषक तत्वों में है उत्तम,

सभी फलों में यह सर्वोत्तम।।


लिकिर गाँव लद्दाख में आता,

मिट्टी के जो पात्र बनाता।

सब कुम्हार यहीं से आते ,

कुशल शिल्प से जाने जाते।।


वर्षा यहाँ बर्फ की होती,

जब गिरती लगती सम मोती।

शीतल ,शुष्क हवा भी बहती,

कठिन यहाँ जीवन है कहती।।



स्वरचित मौलिक रचना

वन्दना चौधरी

ए.जी ऑफिस

ऑडिट भवन पर्वरी

पणजी गोवा

403521

*प्रदेश -लद्दाख*वर्ग -7

*प्रमुख व्यक्तित्व*

डॉ उपेंद्र झा

हाथरस( उ ,.प्र)



*दोहा-*

*तिब्बत सीमा पूर्व की, उत्तर में है चीन।*

*राज्य एक सुन्दर बसे, जो रहे केंद्र आधीन ।।*


*चौपाई-*

उत्तर जिसके चीन विराजत,

पूरव में सीमा है तिब्बत।

सिंधु नदी कम ही बह पाती

ज्यादा समय बर्फ जम जाती।

लेह कारगिल दो ही जिले हैं,

जैसे कमल गुलाब खिले हैं।

भाषा अपना रंग जमाती,

तिबती हिंदी और लद्दाखी।

चित्रकारिता अजब निराली,

भित्तिचित्र पर उकेर डाली।


*दोहा-*

*क्षेत्रफल में सबसे बड़ा, सुन्दर एक प्रदेश।*

*केंद्र करे शासन यहाँ, नहीं कोई लवलेश।।*


*चौपाई-*

सबसे बड़ा क्षेत्रफल जिसका,

सुंदरता में जोड़ न इसका।

घुमक्कड़ी जनसँख्या भारी,

मेहनतकश सारे नर-नारी।

पंद्रह दिन त्यौहार मनावें,

दुनिया देख देख हर्षावे।

झील और चट्टानें सोहें,

पर्यटकों का झट मन मोहें।

पोलो मैच संग तीरंदाजी,

सबसे पहले मारे बाजी।

*दोहा-*

*पोलो मैच प्रसिद्ध है, तीरंदाजी संग।*

*क्रीड़ा कौशल देख कर, सब रह जाते दंग।।*


*चौपाई-*

पूजा-पाठ में आगे रहते,

चन्द्रभूमि लद्दाख को कहते।

धर्मध्वजा की बात जो आए,

लद्दाख क्यों पीछे रह जाए।

अग्रिम रहते सब परिवारा,

धर्म हेतु नहीं करत विचारा।

भक्ति देख सब करत प्रनामा,

धर्मगुरु बन जाते लामा।

ल्हासा जाकर लेते दीक्षा,

होती है तब कठिन परीक्षा।

*दोहा-*

*ल्हासा में दीक्षा मिली, लामा हो तैयार।*

*धार्मिक शिक्षा प्राप्त कर, करते धर्म प्रचार।।*


*चौपाई-*

पांगोंग झील बहे अति सुन्दर,

मन मोहे पर्यटक निरंतर।

घर घर बने शांति स्तूपा,

मंदिर सूक्ष्म कहाता प्रभु का।

माउंटेन बाइकिंग खेल रिझाए,

नजर हटाए हट नहीं पाए।

हुआ केंद्र शासित लद्दाख

उन्नति हुई बढ़ी है साख।

*दोहा-*

*उप राज्यपाल प्रदेश का, होता यहाँ प्रधान।*

*धर्म सभी हैं एक जुट, सबका मान समान।।*


*चौपाई-*

पूजा प्रार्थना चक्र कहाए

माने तंजर नाम रखाए।

नदी तैराकी नुवरा उत्सव,

पंद्रह दिन तक चले महोत्सव।

सुन्दर खेल होत घाटी में,

अद्भुत गंध है इस माटी में।

ग्यारह वर्ष की एक कुमारी,

पड़ गयी गीत ग़ज़ल पर भारी।

प्रसिद्ध हुई छोटी सी गायिका,

बन गयी वो गीतों की नायिका।

समीक्षा सुदर्शन कुमार सोनी व्यंग्य

 'महँगाई का शुक्ल पक्ष'-सामयिक विसंगतियों की शल्यक्रिया

-आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
[पुस्तक विवरण- महँगाई का शुक्ल पक्ष, व्यंग्य लेख संग्रह, सुदर्शन कुमार सोनी, ISBN ९७८-९३-८५९४२-११-२, प्रथम संस्करण २०१६, आकार- २०.५ सेमी X १४ सेमी, आवरण पेपरबैक, बहुरंगी, लेमिनेटेड, पृष्ठ १४४, मूल्य १२०/-,बोधि प्रकाशन, ऍफ़ ७७, सेक्टर ९, करतारपुरा औद्योगिक क्षेत्र, बाईस गोदाम, जयपुर ३०२००६, दूरभाष ०१४१ २५०३९८९, ९८२६० १८०८७, व्यंग्यकार संपर्क- डी ३७ चार इमली, भोपाल, ४६२०१६, चलभाष ९४२५६३४८५२, sudarshanksoniyahoo.co.in ] 
*
विवेच्य कृति एक व्यंग्य संग्रह है। संस्कृत भाषा का शब्द ‘व्यंग्य’ शब्द ‘अज्ज’ धातु में ‘वि’ उपसर्ग और ‘ण्यत्’ प्रत्यय के लगाने से बनता है। यह व्यंजना शब्द शक्ति से संबंधित है तथा ‘व्यंग्यार्थ’ के रूप में प्रयोग किया जाता है। आम बोलचाल में व्यंग्य को ‘ताना’ या ‘चुटकी’ कहा जाता है जिसका अर्थ है “चुभती हुई बात जिसका कोई गूढ़ अर्थ हो।” आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार “व्यंग्य कथन की एक ऐसी शैली है जहाँ बोलने वाला अधरोष्ठों में मुस्करा रहा हो और सुननेवाला तिलमिला उठे।” व्यंग्य सोद्देश्य, तीखा व तेज-तर्रार कथन है जिसका प्रभाव तिलमिला देने वाला होता है। कथन की एक शैली के रूप में जन्मा व्यंग्य क्रमश: साहित्य की ऊर्जस्वित विधा के रूप में विक्सित हो रहा है।
आज़ादी के बाद आमजन का रामराज की परिकल्पना से शासन-प्रशासन की व्यवस्था में मनोवांछित परिवर्तन न पाकर मोह-भंग हुआ। राजनैतिक-सामाजिक विद्रूपताओं ने व्यंग्य शैली को विधा का रूप धारण करने के लिए उर्वर जमीन प्रदान की है। व्यंग्य ‘जो गलत है’ उस पर तल्ख चोट कर ‘जो सही होना चाहिए’ उस सत्य ओर इशारा भी करता है। इसलिए व्यंग्य आमें साहित्य की केन्द्रीय विधा बनने की पूरी संभावना सन्निहित है। आधुनिक हिंदी साहित्य का व्यंग्य अंग्रेजी की 'सैटायर' विधा से प्रेरित है जिसमें व्यवस्था का मजान उदय जाता है। व्यंग्य में उपहास, कटाक्ष, मजाक, लुत्फ़, आलोचना तथा यत्किंचित निंदा का समावेश होता है।
इस पृष्ठ भूमि में सुदर्शन कुमार सोनी के व्यंग्य लेख संग्रह 'मँहगाई का शुक्ल पक्ष' को पढ़ना सैम सामयिक विसंगतियों से साक्षात् करने की तरह है। उनके व्यंग्य लेख न तो परसाई जी के व्यंग्य की तरह तिलमिलाते हैं, न शरद जोशी के व्यंग्य की तरह गुदगुदाते हैं, न लतीफ़ घोंघी के व्यंग्य लेखों की तरह गुदगुदाते हैं। सनातन सलिल नर्मदा तट स्थित संस्कारधानी जबलपुर में जन्में सुदर्शन जी प्रशासनिक अधिकारी हैं, अत: उनकी भाषा में गाम्भीर्य, अभिव्यक्ति में संतुलन, आक्रोश में मर्यादा तथा असहमति में संयम होना स्वाभाविक है। विवेच्य कृति के पूर्व उनके ३ कहानी संग्रह नजरिया, यथार्थ, जिजीविषा तथा एक व्यंग्य संग्रह 'घोटालेबाज़ न होने का गम' छप चुके हैं।
इस संग्रह में बैंडवालों से माफी की फरियाद, अनोखा मर्ज़, देश में इस समय दो ही काम बयान हो रहे हैं, सबके पेट पर लात, कुछ घट रहा है तो कुछ बढ़ रहा है, इट्स रेनिंग डिक्शनरीज एंड ग्रामर बुक्स, मँहगाई का शुक्ल पक्ष, चिर यौवनता की धनी, आज अफसर बहुत खुश है, आम और ख़ास, आवश्यकता नहीं उचक्कापन ही आविष्कार की जननी है, आई एम वोटिंग फॉर यू, धूमकेतु समस्या, सबसे ज्यादा असरकारी इंसान नहीं उसके रचे शब्द हैं, लाइन में लगे रहो, हाय मैंने उपवास रखा, नींद दिवस, समस्या कभी खत्म नहीं होती, सरकार के लिए कहाँ स्कोप है?, मीटिंग अधिकारी, देश का रोजनामचा, झाड़ू के दिन जैसे सबके फिरे, ये ही मेरे आदर्श हैं, फूलवालों की सैर, इन्सान नहीं परियोजनाएं अमर होती हैं, उदासी का सेलिब्रेशन, महिला सशक्तिकरण के सही पैमाने, नेता का पियक्कड़ से चुनावी मौसम में आमना-सामना, भरे पेट का चिंतन खालीपेट का चिंतन, पलटे पेटवाला आदमी, खूब जतन कर लिये नहीं हो पाया, मानसून व पत्नी की तुलना, अनोखी घुड़दौड़, रत्नगर्भा अभियान, पेड़ कटाई, बेचारे ये कुत्ते घुमानेवाले, जेनरेशन गैप इन कुत्तापालन, इंसान की पूंछ होती तो क्या होता?, इन्सान के इंजिन व ऑटोमोबाइल के हार्ट का परिसंवाद, धांसू अंतिम यात्रा की चाहत, 'अच्छे दिन आने वाले हैं' पर पीएच डी, आक्रोश ज़ोन तथा इन्सान तू सच में बहुरूपिया है शीर्षक ४३ व्यंग्य लेख सम्मिलित हैं।
प्रस्तुत संग्रह से देश के सामाजिक-राजनैतिक परिदृश्य में व्याप्त अराजकता के साथ-साथ हिंदी के भाषिक लिखित-वाचिक रूप में व्याप्त अराजकता का भी साक्षात् हो जाता है। व्यंग्यकार सुशिक्षित, अनुभवी और समृद्ध शब्द-भण्डार के धनी हैं। साहित्य का उद्देश्य मनोरंजन मात्र नहीं होता, वह भाषा के स्वरूप को संस्कारित भी करता है। नई पीढ़ी पुरानी पुस्तकों से ही भाषा को ग्रहण करती है। यह सर्वमान्य तथ्य है की किसी भाषा के श्रेष्ठ साहित्य में अन्य भाषा के शब्द आवश्यक होने पर ही लिये जाते हैं। विवेच्य कृति में हिंदी, संस्कृत, उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्दों का उदारतापूर्वक और बहुधा उपयुक्त प्रयोग हुआ है। अप्रतिम, उत्तरार्ध, शाश्वत, अदृश्य, गरिष्ठ, अपसंस्कृति, वयस्कता जैसे संस्कृतनिष्ठ शब्द, नून तलक, बावला, सयाना आदि देशज शब्द, खास, रिश्तों, खत्म, माशूक, अय्याश, खुराफाती, जंजीर जैसे उर्दू शब्द और क्रिकेट, एस एम एस, डोक्टर, इलेक्ट्रोनिक, डॉलर, सोफ्टवेयर जैसे अंग्रेजी शब्दों के समुचित प्रयोग से लेखों की भाषा जीवंत और सहज हुई है किन्तु ऐसे अंग्रेजी शब्द जिनके सरल, सहज और प्रचलित हिंदी शब्द उपलब्ध और जानकारी में हैं उनका प्रयोग न कर अंग्रेजी शब्द को ठूँसा जाना खीर में कंकर की प्रतीति कराता है। ऐसे शताधिक शब्दों में से कुछ इंटरेस्ट (रूचि), लेंग्थ (लंबाई), ड्रेस (पोशाक), क्वालिटी (गुणवत्ता), क्वांटिटी (मात्रा), प्लाट (भूखंड), साइज (परिमाप), लिस्ट (सूची), पैरेंट (अभिभावक), चैप्टर (अध्याय), करेंसी (मुद्रा), इमोशनल (भावनात्मक) आदि हैं। इससे भाषा प्रदूषित होती है।
कोढ़ में खाज यह कि मुद्रण-त्रुटि ने भी जाने-अनजाने शब्दों को विरूपित कर दिया है। महँगाई (बृहत हिंदी कोश, पृष्ठ ८७८) शब्द के दो रूप महंगाई तथा मंहगाई मुद्रित हुए हैं किन्तु दोनों ही गलत हैं। गजब यह कि 'मंह' का मतलब 'मुंह' बता दिग गया है। यह भाषा विज्ञानं के किस नियम से संभव है? यदि वह सन्दर्भ दे दिया जाता तो मुझ पाठक का ज्ञान बढ़ पाता। अनुस्वार तथा अनुनासिक के प्रयोग में भी स्वच्छन्दता बरती गयी है। 'ढ' और 'ढ़' के मुद्रण की त्रुटि ने 'मेंढक' को 'मेंढ़क' बना दिया। 'लड़ाई' के स्थान पर 'लड़ी', 'ढूँढना' के स्थान पर 'ढूंढ़ने' जैसी मुद्रण त्रुटी सम्भवत:शीघ्रता के कारण हुई हो क्योंकि प्रकाशक की अन्य पुस्तकें पथ्य त्रुटियों से मुक्त हैं। व्यंग्यकार का भाषा कौशल 'आम के आम गुठली के दाम', 'नाक-भौं सिकोड़ना' आदि मुहावरों तथा 'आवश्यकता अविष्कार की जननी है' जैसे सूक्ति वाक्यों के प्रयोग में निखरा है। 'लोकलीकरण' जैसे नये शब्द का प्रयोग लेखक की सामर्थ्य दर्शाता है। ऐसे प्रयोगों से भाषा समृद्ध होती है।
व्यंग्य लेखों के विषय सामयिक, चिन्तन सार्थक तथा भाषा शैली सहज ग्राह्य है। 'व्यंजना' शक्ति का अधिकाधिक प्रयोग भाषा के मारक प्रभाव में वृद्धि करेगा। पाठकों के बीच यह संग्रह लोकप्रिय होगा।
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शुक्रवार, 6 अगस्त 2021

बाल गीत: बरसे पानी

बाल गीत:
बरसे पानी
संजीव 'सलिल'
*
रिमझिम रिमझिम बरसे पानी.
आओ, हम कर लें मनमानी.
बड़े नासमझ कहते हमसे
मत भीगो यह है नादानी.
वे क्या जानें बहुतई अच्छा
लगे खेलना हमको पानी.
छाते में छिप नाव बहा ले.
जब तक देख बुलाये नानी.
कितनी सुन्दर धरा लग रही,
जैसे ओढ़े चूनर धानी.
काश कहीं झूला मिल जाता,
सुनते-गाते कजरी-बानी.
'सलिल' बालपन फिर मिल पाये.
बिसराऊँ सब अकल सयानी.
६-८-२०११ 
*

गुरुवार, 5 अगस्त 2021

करवट ले इतिहास

आज विशेष
करवट ले इतिहास
*
वंदे भारत-भारती
करवट ले इतिहास
हमसे कहता: 'शांत रह,
कदम उठाओ ख़ास
*
दुनिया चाहे अलग हों, रहो मिलाये हाथ
मतभेदों को सहनकर, मन रख पल-पल साथ
देश सभी का है, सभी भारत की संतान
चुभती बात न बोलिये, हँस बनिए रस-खान
न मन करें फिर भी नमन,
अटल रहे विश्वास
देश-धर्म सर्वोच्च है
करा सकें अहसास
*
'श्यामा' ने बलिदान दे, किया देश को एक
सीख न दीनदयाल की, तज दो सौख्य-विवेक
हिमगिरि-सागर को न दो, अवसर पनपे भेद
सत्ता पाकर नम्र हो, न हो बाद में खेद
जो है तुमसे असहमत
करो नहीं उपहास
सर्वाधिक अपनत्व का
करवाओ आभास
*
ना ना, हाँ हाँ हो सके, इतना रखो लगाव
नहीं किसी से तनिक भी, हो पाए टकराव
भले-बुरे हर जगह हैं, ऊँच-नीच जग-सत्य
ताकत से कमजोर हो आहात करो न कृत्य
हो नरेंद्र नर, तभी जब
अमित शक्ति हो पास
भक्ति शक्ति के साथ मिल
बनती मुक्ति-हुलास
(दोहा गीत: यति १३-११, पदांत गुरु-लघु )
***
५-८-२०१९
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
७९९९५५९६१८

मुक्तिका

मुक्तिका
बिन सपनों के सोना क्या
बिन आँसू के रोना क्या
*
वह मुस्काई, मुझे लगा
करती जादू-टोना क्या
*
नहीं वफा जिसमें उसकी
खातिर नयन भिगोना क्या
*
दाने चार न चाँवल के
मूषक तके भगोना क्या
*
सेठ जमीनें हड़प रहे
जानें फसलें बोना क्या
*
गिरती हो जब सर पर छत
सोच न घर का खोना क्या
*
जीव न यदि 'संजीव' रहे
फिर होना-अनहोना क्या
*

मुक्तक

मुक्तक सलिला-
*
कौन पराया?, अपना कौन?
टूट न जाए सपना कौन??
कहें आँख से आँख चुरा
बदल न जाए नपना कौन??
*
राह न कोई चाह बिना है।
चाह अधूरी राह बिना है।।
राह-चाह में रहे समन्वय-
पल न सार्थक थाह बिना है।।
*
हुआ सवेरा जतन नया कर।
हरा-भरा कुछ वतन नया कर।।
साफ़-सफाई रहे चतुर्दिक-
स्नेह-प्रेम, सद्भाव नया कर।।
*
श्वास नदी की कलकल धड़कन।
आस किनारे सुन्दर मधुवन।।
नाव कल्पना बैठ शालिनी-
प्रतिभा-सलिल निहारे उन्मन।।
*
मन सावन, तन फागुन प्यारा।
किसने किसको किसपर वारा?
जीत-हार को भुला प्यार कर
कम से जग-जीवन उजियारा।।
*
मन चंचल में ईश अचंचल।
बैठा लीला करे, नहीं कल।।
कल से कल को जोड़े नटखट-
कर प्रमोद छिप जाए पल-पल।।
*

आपको आपसे सुख नित्य मिले।
आपमें आपके ही स्वप्न पले।।
आपने आपकी ही चाह करी-
आप में व्याप गए आप, पुलक वाह करी।।
*
समय से आगे चलो तो जीत है।
उगकर हँस ढल सको तो जीत है।।
कौन रह पाया यहाँ बोलो सदा?
स्वप्न बनकर पल सको तो जीत है।।
*
आए थे हम अकेले और अकेले जाएँगे।
बीच राह में यारियाँ कर कुछ उन्हें निभाएँगे।।
वादे-कसमें, प्यार-वफ़ा, नातों का क्या बन-टूटें
गले लगाया है कुछ ने, कुछ को गले लगाएँगे।।
*
शालिनी मन-वृत्ति हो, अनुगामिनी हो दृष्टि।
तभी अपनी सी लगेगी तुझे सारी सृष्टि।।
कल्पना की अल्पना दे, काव्य-देहरी डाल-
भाव-बिम्बों-रसों की प्रतिभा करे तब वृष्टि।।
*
स्वाति में जल-बिंदु जाकर सीप में मोती बने।
स्वप्न मधुरिम सृजन के ज्यों आप मृतिका में सने।।
जो झुके वह ही समय के संग चल पाता 'सलिल'-
वाही मिटता जो अकारण हमेशा रहता तने।।
*
सीने ऊपर कंठ, कंठ पर सिर, ऊपरवाला रखता है।
चले मनचला. मिले सफलता या सफलता नित बढ़ता है।।
ख़ामोशी में शोर सुहाता और शोर में ख़ामोशी ही-
माटी की मूरत है लेकिन माटी से मूरत गढ़ता है।।
*
तक रहा तकनीक को यदि आम जन कुछ सोचिए।
ताज रहा निज लीक को यदि ख़ास जन कुछ सोचिए।।
हो रहे संपन्न कुछ तो यह नहीं उन्नति हुई-
आखिरी जन को मिला क्या?, निकष है यह सोचिए।।
*
चेन ने डोमेन की, अब मैन को बंदी किया।
पीया को ऐसा नशा ज्यों जाम साकी से पीया।।
कल बना, कल गँवा, कलकल में घिरा खुद आदमी-
किया जाए किस तरह?, यह ही न जाने है जिया।।
*
किस तरह स्मार्ट हो सिटी?, आर्ट है विज्ञान भी।
यांत्रिकी तकनीक है यह, गणित है, अनुमान भी।।
कल्पना की अल्पना सज्जित प्रगति का द्वार हो-
वास्तविकता बने ऐपन तभी जन-उद्धार हो।।
***