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बुधवार, 7 नवंबर 2018

navgeet

नवगीत:
लछमी मैया!
पैर तुम्हारे
पूज न पाऊँ
*
तुम कुबेर की
कोठी का
जब नूर हो गयीं
मजदूरों की
कुटिया से तब
दूर हो गयीं
हारा कोशिश कर
पल भर
दीदार न पाऊँ
*
लाई-बताशा
मुठ्ठी भर ले
भोग लगाया
मृण्मय दीपक
तम हरने
टिम-टिम जल पाया
नहीं जानता
पूजन, भजन
किस तरह गाऊँ?
*
सोना-चाँदी
हीरे-मोती
तुम्हें सुहाते
फल-मेवा
मिष्ठान्न-पटाखे
खूब लुभाते
माल विदेशी
घाटा देशी
विवश चुकाऊँ
*
तेज रौशनी
चुँधियाती
आँखें क्या देखें?
न्यून उजाला
धुँधलाती
आँखें ना लेखें
महलों की
परछाईं से भी
कुटी बचाऊँ
*
कैद विदेशी
बैंकों में कर
नेता बैठे
दबा तिजोरी में
व्यवसायी
खूबई ऐंठे
पलक पाँवड़े बिछा
राह हेरूँ
पछताऊँ
*
कवि मजदूर
न फूटी आँखों
तुम्हें सुहाते
श्रद्धा सहित
तुम्हें मस्तक
हर बरस नवाते
गृह लक्ष्मी
नन्हें-मुन्नों को
क्या समझाऊँ?
***
salil.sanjiv@gmail.com
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मंगलवार, 6 नवंबर 2018

diwali aur diwala

एक रचना
दीवाली और दीवाला
*
सजनी मना रही दीवाली
पर साजन का दीवाला है
दूने दाम बेच दिन दूना
होता लाला, घोटाला है
*
धन ते रस, बिन धन सब सूना,
निर्धन हर त्यौहार उपासा
नरक चौदहों दिन हैं उसको,
निर्जल व्रत बिन भी है प्यासा
कौन बताये, किससे पूछें?
क्यों ऐसा गड़बड़झाला है?
सजनी मना रही दीवाली
पर साजन का दीवाला है
*
छोड़ विष्णु आयी है लछमी,
रिद्धि-सिद्धि तजकर गणेश भी
एक साथ रह पुजते दोनों
विस्मित चूहा, चुप उलूक भी
शेष करें तो रोक रहा जग
कहता करते मुँह काला है
सजनी मना रही दीवाली
पर साजन का दीवाला है
*
समय न मिलता, भूमि नहीं है
पाले गाय कब-कहाँ बोलो
गोबर धन, गौ-मूत्र कौन ले?
किससे कहें खरीदो-तोलो?
'गो वर धन' बोले मम्मी तो
'जा धन कमा' अर्थ आला है
सजनी मना रही दीवाली
पर साजन का दीवाला है
*
अन्न कूटना अब न सुहाता
ब्रेड-बटर-बिस्कुट भाता है
छप्पन भोग पचायें कैसे?
डॉक्टर डाइट बतलाता है
कैलोरी ज्यादा खाई तो
खतरा भी ज्यादा पाला है
सजनी मना रही दीवाली
पर साजन का दीवाला है
*
भाई दूज का मतलब जानो
दूजा रहे हमेशा भाई
पहला सगा स्वार्थ निज जानो
फिर हैं बच्चे और लुगाई
बुढ़ऊ-डुकरिया से क्या मतलब?
निज कर्तव्य भूल टाला है
सजनी मना रही दीवाली
पर साजन का दीवाला है
*
चित्र गुप्त, मूरत-तस्वीरें
खुद गढ़ पूज रहे हैं लाला
दस सदस्य पर सभा बीस हैं
घर-घर काट-छाँट घोटाला
घरवाली हावी दहेज ला
मन मारे हर घरवाला है
सजनी मना रही दीवाली
पर साजन का दीवाला है
*
संजीव, ३१.१०.२०१६

diwali ke dohe

दोहा की दीपावली
*
दोहा की दीपावली, तेरह-ग्यारह दीप
बाल 'सलिल' के साथ मिल, मन हो तभी समीप
*
गो-वर्धन गोपाल बन, करें शुद्ध पय-पान
अन्न-कूट कर पकाकर, खाएँ हो श्री-वान
*
जो अव्यक्त है उसी को, व्यक्त करे हर पर्व
जुड़ औरों की म्द्द्कर, करिए खुद पर गर्व
*
शांत न रहिए शांत अब, है समाज दिग्भ्रांत
कूड़ा फैला पर्व पर, गर्व करे संभ्रांत
*
श्री वास्तव में पा सकें, तब जब बाँटें प्रीत
गुण पूजन की बढ़ सके, 'सलिल' जगत में रीत
*
बहिना का आशीष ही, भाई की तकदीर
शुभाशीष पा बहिन का, भाई होता वीर
*
मंजु मूर्ति श्री लक्ष्मी, महिमावान गणेश
सदा सदय हों नित मिले, कीर्ति -समृद्धि अशेष
*
दीप-कांति उजियार दे, जीवन भरे प्रकाश
वामन-पग भी छू सकें, हाथ उठा आकाश
*
दूरभाष चलभाष हो, या सम्मुख संवाद
भाष सुभाष सदा करे, स्नेह-जगत आबाद
*
अमन-चैन रख सलामत, निभा रहे कुछ फर्ज़
शेष तोड़ते हैं नियम, लाइलाज यह मर्ज़
*
लागू कर पायें नियम, भेदभाव बिन मित्र!
तब यह निश्चय मानिए, बदल सकेगा चित्र
*
शशि तम हर उजियार दे, भू को रहकर मौन
कर्मव्रती ऐसा कहाँ, अन्य बताये कौन?
*
यथातथ्य बतला सके, संजय जैसी दृष्टि
कर सच को स्वीकार-बढ़, करे सुखों की वृष्टि
*
खुद से आँख मिला सके, जो वह है रणवीर
तम को आँख दिखा सके, रख दीपक सम धीर
*
शक-सेना को जीत ले, जिसका दृढ़ विश्वास
उसकी आभा अपरिमित, जग में भरे उजास
*
वर्मा वह जो सच बचा लें, करे असत का नाश
तभी असत के तिमिर का, होगा 'सलिल' विनाश
*
हर रजनी दीपावली, अगर कृपालु महेश
हर दिन को होली करें, प्रमुदित उमा-उमेश
*
आशा जिसके साथ हो, होता वही अशोक
स्वर्ग-सदृश सुख भोगता, स्वर्ग बने भू लोक
*
श्याम अमावस शुक्ल हो, थाम कांति का हाथ
नत मस्तक करता 'सलिल', नमन जोड़कर हाथ
*
तिमिर अमावस का हरे, शुक्ल करे रह मौन
दींप वंद्य है जगत में, कहें दूसरा कौन?
*
जो चाहें राजेश हों, पहले करे प्रयास
दीप-वर्तिका बन जले, तब हो दीप्त उजास
*
संजीव, ३१-१०-२०१६