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सोमवार, 5 मार्च 2018

??? ॐ doha shatak: om prakash shukla


मन को मन सौगात
दोहा शतक 
ओमप्रकाश शुक्ल 

चित्र में ये शामिल हो सकता है: ओम प्रकाश शुक्ल

जन्म: ९.५.१९७७, बरौंसा, सुलतानपुर, उत्तर प्रदेश
काव्य गुरु:
आत्मज: श्रीमती सरस्वती देवी-स्व. रामकिशोर शुक्ल
जीवन संगिनी: श्रीमती नीता शुक्ल
शिक्षा: स्नातक
लेखन विधा: दोहा, कविता, लेख आदि
प्रकाशन:गाँधी और उनके बाद (काव्य संग्रह)
उपलब्धि: 
सम्प्रति: उत्तर रेलवे परिचालन विभाग में कार्यरत, महासचिव युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच
संपर्क: १२२, गली क्रमांक ४/७ सी.आरपी. ऍफ़. कैम्प के सामने, बिहारी पुर विस्तार, दिल्ली ११००९४
चलभाष: ९७१७६३४६३१, ९६५४४७७११२, ईमेल: shuklaop07@gmail.com
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संविधान पर देश के, व्यर्थ करें अभिमान।
निर्धन पिसता- दिखाता, ठेंगा हँस धनवान।।
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लूटें दोनों हाथ से, मिलकर पक्ष-विपक्ष।
सगा देश का कौन है, प्रश्न न सुलझे यक्ष।।
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हिंदी गंगा हो गई, उर्दू यमुना रूप।
बँटवारा जो कर रहे, वें मेंढक बिन कूप।।
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कड़वे-कड़वे बोल ने, दूषित किए विचार।
निज मन में लो झाँक तुम, कर न गैर पर वार।।
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संझा फगुवा सी हुई, प्रातः हुआ बसंत।
देख छटा सुखदायनी, अंतर्मन है संत।।
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दिखे अलग अंदाज अब, बदल गए हैं भाव।
मित्र समझते हम जिन्हें, रखते वे अलगाव।।
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मन से मन में झाँककर, कर लो मन की बात।
मिल जाएगा प्रेम दो, मन को मन सौगात।।
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राजनीति में व्यर्थ ही, होते वाद-विवाद।
नेता गलबहियाँ करें, जनता में अवसाद।।
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भरें खजाना टैक्स दे, सज्जन है संयोग।
निर्धन हित त्यागें- धनिक, लूट कर रहे भोग।।
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अपनी कहकर चल दिये, ज्ञानी जी हर बात।
औरों की सुन लें न हों, तब घायल जज्बात।।
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मै, मेरा, मुझको हुई, जीवन की पहचान
अगल-बगल मैं देखता, साथ खड़े भगवान
*
वाह-वाह का दौर है, वाह-वाह बस वाह।
झूठ-मूठ की आह है, झूठ-मूठ की चाह।।
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व्यस्त हुआ कुछ इस तरह, हुए प्रभावित काज।
रूखा-रूखा सा लगे, गृह-मन देह-समाज।।
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शिव भजने का दम भरे, राम न कर स्वीकार।
यह दो तरफा आचरण, शिव ने दिया नकार।।
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भक्त न होना किसी के, नहीं किसी के दास।
सत बोले कवि-लेखनी, यह मन की अरदास।।
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ऐसे लोगों से बचो, जिनके मन में चोर।
औरों को दोषी कहें, कब देखें निज ओर।।
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कड़वे-कड़वे बोल हैं, दूषित उग्र विचार।
निज मन में झाँके बिना, करें गैर पर वार।।
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कारण कोई हो न हो, करना मात्र विरोध।
चाटुकारिता ओढ़ना, राजनीति का बोध।।
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कविता करती कल्पना, मैं मेरा संसार।
प्रिय! तुम होती क्यों खफा, यह कवि का अधिकार।।
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धाक जमाए बैठते, संसद में जा चोर।
आना चाहे साधु यदि, करें श्वान सम शोर।।
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भारत की कर दुर्दशा, ठठा रहा शैतान।
रहे ताकता जो कहो, कैसा वो इंसान।।
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मस्जिद में होती रहे, पाँचों वक्त नमाज।
मंदिर-पूजन पर कहो, बदले क्यों अल्फाज।।
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मन में रखकर द्रोह वे, करते नित्य हलाल।
मित्र बने बस स्वार्थवश, साथ रहें बन काल।।
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बाबा साहेब रच गए, ऐसा मस्त विधान।
पैसा हो तो आप भी, रखो जेब श्रीमान।।
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कब तक सहता दाब की, बातों को सरकार। हाँ मैं भी इंसान हूँ, कुछ तो हैं अधिकार।।
* निज हित साधो शौक से, जब तक निज परिवेश। निज हित पर यदि चोट हो, तुरत छोड़ दो देश।।
* लूट रहे हैं देश को, सब मिल कर्णाधार। किस-किस पर विश्वास हो, किसे कहें गद्दार।।
* जिसने मन से कर लिया, श्री हरि को स्वीकार। करते हैं श्री हरि उसे, पल में अंगीकार।।
* औरों को क्या दोष दूँ, लगा व्यर्थ आरोप।
कृत्य स्वयं के हैं बुरे, कहे ईश का कोप।।
* होना अब यह चाहिए, सख्त बने कानून। कम से कम सबको मिले, हक से मकुनी नून।।
* मन से मन में झाँक कर, कर लो मन की बात। मिल जाएगी आपको, पुनः प्रेम सौगात।।
* जिए-मरे जो शान से, जन-जन करता याद। किया सार्थक नाम को, रहे सदा आज़ाद।।
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राजनीति के कृत्य अब, हुए कोढ़ में खाज। वक्त करे जाया उसे, मूरख कहे समाज।।
* मठाधीश साहित्य का, दें मुझको उपहार। सब मिलकर करते रहें, मेरी जय-जयकार।।
* साथ रामद्रोही लिए, चाहे शिव हों तुष्ट। मूरख को समझाइए, शिव जी होंगे रुष्ट।।
* राजा-मंत्री बन गए, चोर-सिपाही खेल। देश जा रहा भाड़ में, करते ठेलमठेल।।
* राजनीति की दुर्दशा, गर्दभ-काग भतार। चले नीति पर जो हुई, तुरत सुनिश्चित हार।।
* मन क्यों हर पल खोजता, है औरों के दोष। भीतर अवगुण छिपाए, बैठा कर संतोष।।
* राजनीति के दायरे, में मजदूर-किसान। पैसा हो तो आप भी, लो खरीद श्रीमान।।
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कडुए-कडुए बोल हैं, दूषित-मलिन विचार। निज मन में मत झाँकिए, करें अन्य पर वार।।
* शंभु राममय देखिए, राम शंभुमय जान। तन-मन-धन अर्पित करो, कष्ट हरें हनुमान।।
* नहीं किसी के भक्त हो, नहीं किसी के दास। सत-शिव-सुंदर लिख सदा, हो पूरी अरदास।।
*
दोहे में दंगल कहाँ, रस की पड़े फुहार। मन से मन का हो मिलन, झूम उठे संसार।।
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निज पुरखों के कृत्य का, करते हो परिहास। किया भला क्या आपने, पूछेगा इतिहास।।
* करता छल, चोरी-कपट, मन में नहीं मलाल। देख मनुज-दुष्कृत्य को, हँसते दीनदयाल।।
* मानव क्यों निर्णय करे, सही गलत है कौन। निर्णयकर्ता ईश्वर, देख रहा है मौन।।
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सूर्यवंश रघुकुल-हुए, मध्य दिवस श्री राम।
चंद्रवंश यदुकुल जने, मध्य रात्रि घनश्याम।
*
शुभ दिन को साझा करो, करो न कोई भूल
नव वित्तीय बरस मना, कहते-बनते 'फूल'
*
सबको सबका हक मिले, कदम-कदम हो न्याय
ऐसा हो कानून जो, रहे धर्म पर्याय
*
कृषक-देश की दुर्दशा, करते कर्णाधार
धर्म-जाति को खा रहे, लेते नहीं डकार
*
कुनबे-कुनबे में बँटा, आज देश का मान
राष्ट्र-विरोधी कृत्य कर, चाहें निज सम्मान
*
अगला-पिछला जोड़कर देते फल भगवान्
इसीलिये गीता कहे, रखो कर्म का ध्यान
*
'माँ' पुकारते बीतता, दुःख-पीड़ा का काल
उस माता को भुलाकर, खोज रहे सुख लाल
*
उन्तालिस हिंदू मरे, नहीं किसी को दर्द
राजनीति में पड़ गई, नैतिकता पर गर्द
*
स्वार्थ हेतु बाँटा गया, बार-बार संसार
जाति-धर्म-भाषा बनीं, नफरत का आधार
*
सुख से रहने का नहीं, मानव करे प्रयास
जितना पाया कम लगा, बढ़ी और की प्यास
*
सुख-दुःख दोनों बंधु सम, हरदम रहते साथ
दोनों को सम-मान दो, कृपा करेंगे नाथ
*
राजा करता कर्म रख, निज मन में संतोष
पाया कम कह भिखारी, दे विधना को दोष
*
भू-संसाधन का करें, कम-से कम उपभोग
पुरखों से पा दे सकें, बच्चों को कर योग
*
पीड़ा हर सकते नहीं, तो क्यों देते मीत?
मानव होकर भूलते, मानवता की रीत
*
अपना अनुभव बाँटिए, उन्नत हो संसार
ज्ञान न जो साझा हुआ, मिट जाता बेकार। ६१
*



gopi chhand

छंद - " गोपी " ( सम मात्रिक )
शिल्प विधान: मात्रा भार - १५, आदि में त्रिकल अंत में गुरु/वाचिक अनिवार्य (अंत में २२ श्रेष्ठ)। आरम्भ में त्रिकल के बाद समकल, बीच में त्रिकल हो तो समकल बनाने के लिए
एक और त्रिकल आवश्यक  यह श़ृंगार छंद की प्रजाति (उपजाति नहीं ) का है। आरम्भ और मध्य की लय मेल खाती है। 
उदाहरण:
१. आरती कुन्ज बिहारी की।
    कि गिरधर कृष्ण मुरारी की।।
२. नीर नैनन मा भरि लाए।
     पवनसुत अबहूँ ना आए
३. हमें निज हिन्द देश प्यारा ।
    सदा जीवन जिस पर वारा।।
    सिखाती हल्दी की घाटी ।
    राष्ट्र की पूजनीय माटी ।।     -राकेश मिश्र
४. हमारी यदि कोई माने।
    प्यार को ही ईश्वर जाने।
    भले हो दुनियाँ की दलदल।
    निकल जायेगा अनजाने।।     -रामप्रकाश भारद्वाज
हिंदी आरती
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
भारती भाषा प्यारी की।
आरती हिन्दी न्यारी की।।
*
वर्ण हिंदी के अति सोहें,
शब्द मानव मन को मोहें।
काव्य रचना सुडौल सुन्दर
वाक्य लेते सबका मन हर।
छंद-सुमनों की क्यारी की
आरती हिंदी न्यारी की।।
*
रखे ग्यारह-तेरह दोहा,
सुमात्रा-लय ने मन मोहा।
न भूलें गति-यति बंधन को-
न छोड़ें मुक्तक लेखन को।
छंद संख्या अति भारी की
आरती हिन्दी न्यारी की।।
*
विश्व की भाषा है हिंदी,
हिंद की आशा है हिंदी।
करोड़ों जिव्हाओं-आसीन
न कोई सकता इसको छीन।
ब्रम्ह की, विष्णु-पुरारी की
आरती हिन्दी न्यारी की।।


*

doha

दोहा सलिला
*
खिली मंजरी देखकर, झूमा मस्त बसंत
फगुआ के रंग खिल गए, देख विमोहित संत
*
दोहा-पुष्पा सुरभि से, दोहा दुनिया मस्त
दोस्त न हो दोहा अगर, रहे हौसला पस्त
*
जब से ईर्ष्या बढ़ हुई, है आपस की जंग
तब से होली हो गयी, है सचमुच बदरंग
*
दोहे की महिमा बड़ी, जो पढ़ता हो लीन
सारी दुनिया सामने, उसके दिखती दीन
*
लता सुमन से भेंटकर, है संपन्न प्रसन्न
सुमन लता से मिल गले, देखे प्रभु आसन्न
*
भक्ति निरुपमा चाहती, अर्पित करना आत्म
कुछ न चाह, क्या दूँ इसे, सोच रहे परमात्म
*
५-३-२०१८

रविवार, 4 मार्च 2018

dohe: kanta roy

दोहे- कांता रॉय 1. सुरा-पान ने कर दिया, तन का कैसा हाल हड्डी का ढाँचा बचा, पिचके सुंदर गाल 2. दीन भटकता फिर रहा, अस्पताल में रीस खाने को रोटी नहीं, डॉक्टर माँगे फीस 3. धूम्रपान कर, सुरा पी, करता खुद से द्वेष अपनों का बैरी बना, नाहक करे कलेश 4. वायु सोखती प्रदूषण, पानी सोखे कीच मानव दुर्गुण सोखता, जीवन खींचमखींच 5. देख रूपैया मनुज भी, मन बिहुँसाये आप ज्यों कुत्ते के दिन फिरे, बने बाप के बाप
6.मृगतृष्णा जीवन-तृषा, कब पूरी हो आस?
जब तक तन में प्राण है, कब मिटती है प्यास??
7.पानी तन की चाह है, पानी जीवन-राह पानी जीवन-सखा है, कौन गह सका थाह? 8. सूखी धरती राम की, सूखा हरि का गाँव पानी को मनु छल रहा, शेष न तरु की छाँव 9. गली-गली में लग गई, हैंडपम्प -तस्वीर बाहर कब तस्वीर से, आएगी तकदीर 10. बोतल-पानी पिलाती, नदी पाट सरकार आटा गीला हो रहा, मचता हाहाकार 11. खोज रहे हर दिशा में, बूँद-बूँद हम नीर टाल-तलैया पूरकर, बढ़ा रहे खुद पीर 12. जीव-जीव में प्रभु बसे, मानव का है धर्म दो अनाथ को आसरा, कर लो कुछ सत्कर्म
13. देव पधारे महल में, करें आरती भक्त देख दक्षिणा पुजारी, हुए अधिक अनुरक्त 14. प्याला पीकर प्रेम का, मधुशाला हो देह देख रही सुख नशे में, बिसरा मन का नेह 15. करे आचरण दोगला, बन पाखंडी संत मुँह में राम बगल रखे, छुरी बचाए कंत 16. होली पर्व अबीर का, खेलें सब चहुँ ओर काला रंग कलेश का, मत डालो बल-जोर 17. फागुन मौसम प्रीत का, बहे बसंत बयार पिचकारी ले हाथ में, प्रीतम है तैयार 18. फागुन गाए ताल दे, नाचे मन का मोर आया प्रियतम पाहुना, जिया धड़कता जोर 19. लड़ जीवन-संग्राम नित, बिन भला बिन तीर लड़ते-लड़ते जो जयी, वही सिकंदर वीर २०. मधुरम-मधुरम प्रेम है, जग-जीवन का सार चख ले बंदे प्रेम रस, शेष सभी निस्सार

panchak chhand

छंद पंचक / पंजा
न गति-यति,
नहीं विराम।  
छंद-अछंद
जी चाहा नाम,
जय श्री राम। 
***

छंद पंचक 
पाँच पंक्तियाँ, 
पाँच ही शब्द 
हर पंक्ति में,
मूर्तिभंजक।  
***
सिर है गंजा 
हाथ ले कंघा 
जी बहलाते।
लिख-सुनाते 
हैं छंद पंजा
*** 

navgeet

नवगीत:
संजीव
.
खफ़ा रहूँ तो
प्यार करोगे 
यह कैसा दस्तूर है ?
प्यार करूँ तो
नाजो-अदा पर
मरना भी मंज़ूर है.
.
आते-जाते रंग देखता
चेहरे के
चुप-दंग हो.
कब कबीर ने यह चाहा
तुम उसे देख
यूं तंग हो?
गंद समेटी सिर्फ इसलिए
प्रिय! तुम
निर्मल गंग हो
सोचा न पाया पल आयेगा
तुम्हीं नहीं
जब सँग हो.
होली हो ली
अब क्या होगी?
भग्न आस-सन्तूर है.
खफ़ा रहूँ तो
प्यार करोगे
यह कैसा दस्तूर है ?
प्यार करूँ तो
नाजो-अदा पर
मरना भी मंज़ूर है.
.
फाग-राग का रिश्ता-नाता
कब-किसने
पहचाना है?
द्वेष-घृणा की त्याज्य सियासत
की होली
धधकाना है.
जड़ जमीन में जमा जुड़ सकें
खेत-गाँव
सरसाना है.
लोकनीति की रंग-पिचकारी
संसद में
भिजवाना है.
होली होती
दिखे न जिसको
आँखें रहते सूर है.
खफ़ा रहूँ तो
प्यार करोगे
यह कैसा दस्तूर है ?
प्यार करूँ तो
नाजो-अदा पर
मरना भी मंज़ूर है.
***
तकनीकी आलेख 
 ​
सभी के लिए आवास
​ 
 2022

अनिल जी खंडेलवाल,
बी.ई. (सिविल), एम.आई.ई, एफ.आई.वी.

सार:
यह पत्र 2022 तक 
​'
सभी के लिए आवास
​'
 के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विभिन्न भारत सरकार की योजनाओं को 
​ 
वर्तमान प्रशासनिक ढांचे में,
 ​ 
बहुत कम संशोधन के साथ,
 
पुनर्निर्मित करने और
​ ​
एकीकृत करने के लिए एक समर्पित और सरलीकृत दृष्टि विकसित करने की एक विनम्र कोशिश है
परिचय :
सभ्यता के इतिहास का मानवशास्त्र बहुत ही अच्छी तरह से प्रकट करता है।  हम इस तथ्य से सहमत 
​हैं
 कि प्रौद्यौगिकीय नवाचारों
​ ​
(व्हील से मोबाइल एप्लिकेशन) में कलाओं, रंगों, पंथ, संस्कृति, लिंग, धर्म और राष्ट्रीयता के बावजूद अरबों लोगों के जीवन में सुधार
​ ​
हुआ है जबकि सामाजिक, राजनैतिक क्रांतियाँ या उत्क्रांतियाँ लाखों लोगों के जीवन में परिवर्तन करती हैं और अंत में आध्यात्मिक
​ ​
जागरूकता कुछ 
​की
 ब्रह्मांडीय चेतना को बदलती है
 
खा
​द्य
 पदार्थ, वस्त्र और आश्रय जीवित रहने के लिए मूलभूत जरूरत हैं
। स्वतंत्रता के पिछले ७० वर्षों में राष्ट्र पहले दो के लिए लगभग आत्मनिर्भर हो गया है, लेकिन लाखों नागरिकों के लिए विशेष रूप से ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्रों में तीसरे के बारे में बहुत कुछ करना आवश्यक है अब सूचना प्रौद्योगिकी की गतीय प्रगति के साथ एक सरकार के एकल कार्यकाल के भीतर एक छतरी के तहत सिविल इंजीनियरिंग में कई लक्ष्य हो सकते हैं। भारत सरकार की योजनाओं में कई तकनीकी नवाचार लाए गए हैं जैसे मिशन के लिए समर्पित पोर्टल। इस पोर्टल में सभी नागरिकों अपने मोबाइल पर अपनी स्वयं की भाषा में पहुँच सकते हैं। 2011 की जनगणना के आवास डेटा के आधार पर आवास की मांग चित्र 1 में प्रस्तुत की गई है।
पृष्ठभूमि:
स्वतंत्रता के बाद भारत ने तीन उल्लेखनीय तकनीकी क्रांतियों का लाभ उठाया है, जिससे लगभग हर भारतीय को लाभ हुआ है: 
1.  1960 के दशक में हरित क्रांति पद्मविभूषण डॉ एमएस स्वामिनाथन (1925-), 1970 के दशक में सफेद क्रांति, पद्मविभूषण वर्गीज कुरियन, एम. टेक. (मेट.) (1921-2012) और 1980 के दशक में कॉम क्रान्ति पद्मभूषण सैम पित्रोदा, एम.टेक. (ए.आई.) (1 942-) के नेतृत्व में थी और अब यह लगता है कि 'हाउसिंग फॉर आल: 2022-39; विकसित करना संभव है।
इसके अलावा निम्नलिखित महान लोगों के समर्पित कार्यों को हमें ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्रों में प्राथमिकता पर नवीनतम निर्माण प्रौद्योगिकीय विकास को शामिल करने के लिए प्रेरित करना चाहिए, लेकिन अपने कस्टम, परंपरा और जीवित व्यवस्था को संरक्षित करना तथा आसपास के निकट रोजगार अवसर बनाना: 1930-40: 'ग्राम स्वराज'; राष्ट्र के पिता, पूर्व स्वतंत्रता दिवसों के दौरान महात्मा गांधी द्वारा रखे गए। 1950 के दशक में: 'भूदान आंदोलन'; अपने महानतम शिष्य भारत रत्न विनोबा भावे के नेतृत्व में, जिस देश में देश भर में दान 50 लाख एकड़ के ऊपर था, जो अकेले बेघर आबादी के लिए पर्याप्त था! 2000: भारतरत्न ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने भारत के राष्ट्रपति के रूप में अपने प्रावधान में व्यक्तिगत रूप से प्रस्तुत किया और संसद में कई राज्य विधानसभाएं (बाद में आई.आई.एम., मैंने उनके मार्गदर्शन के तहत बड़े पैमाने पर काम किया) के तहत प्रस्तुत 'पुरा';। 2014: लाल किले के अपने पहले स्वतंत्रता दिवस के भाषण में वर्तमान प्रधान मंत्री द्वारा घोषित 'संसद आदर्श ग्राम योजना'; ने गाँवों पर जोर दिया, न केवल इसलिए कि अधिकांश आबादी वहाँ रह गई थी, लेकिन दूरदर्शिता के कारण भी भारतीय जनसंख्या और सामर्थ्य के संदर्भ में , गांव में एक बेहतर आजीविका न केवल गांवों को बनाए रखने में मदद करेगी बल्कि शहरों में प्रवास भी कर सकती हैं और इस तरह से बढ़ती शहरीकरण के दबाव के कारण शहरों को पंगु बनाते हैं, जिससे सड़कें यातायात से खड़ी हो जाती हैं, अस्वच्छ गड़गड़ाहट बढ़ रही हैं आदि। ग्रामीण बनाम जनगणना आधारित भिन्नता स्वतंत्रता के बाद से शहरी आबादी आंकड़ा 2 में प्रस्तुत की गई है

सभी के लिए आवास: 'मिशन के लिए विभिन्न सरकारी योजनाओं को पुनर्निर्माण और एकीकृत करना
 सामान्य :
1. यह मिशन सरकार द्वारा सक्रिय रूप से सक्रियता, उत्साह और लोगों की जागरूकता के लिए मीडिया अभियान के साथ-साथ 2018 के 2014 के जीएसटी और जीएसटी के स्वच्छ भारत मिशन के लिए सरकार द्वारा किए जाने की उम्मीद है।
2. आधार के रूप में पैन, बैंक खाता और मोबाइल नंबर के आधार पर जल्द ही पूरा होने की संभावना है, सरकार बेघर नागरिकों की पहचान करने के लिए एक तंत्र विकसित कर सकती है और स्वयं के घर के लिए उनकी जुटती को आगे बढ़ा सकती है।
3. मिशन के सहज गति से निष्पादन के लिए जीएसटी परिषद की तरह एक "आवास परिषद" को सभी के साथ समन्वयित करने के लिए तैयार किया जा सकता है: मैं । सरकार के विभिन्न मंत्रालयों के साथ अन्य योजनाएं, उदाहरण के लिए प्रधानमंत्री अवास योजना (पीएमए), संसद आदर्श ग्राम योजना (एसएजीवाई), स्मार्ट सिटी मिशन, प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) आदि।
ii। राज्य सरकारें
iii। सार्वजनिक और निजी संस्थानों और संगठनों

(बी) तकनीकी पहलू:
4. कई शोध, डिजाइन और निष्पादन कार्य पहले से ही विभिन्न सरकारी / अर्ध सरकारी / सार्वजनिक / निजी संस्थानों और संगठन द्वारा किया गया है पिछले कुछ दशकों में आर्थिक और किफायती ग्रामीण और जन आवास के क्षेत्र में और हाल ही में बुद्धिमान क्षेत्र में किया जाता है और ऊर्जा कुशल इमारतों, जो सभी आसानी से प्रत्येक लाभार्थी को ज्ञान चैनल के रूप में एक पोर्टल के एक छाता के तहत लाया जा सकता है, जिसे वे स्थानीय स्थितियों और सामर्थ्य के अनुसार चयन और चुन सकते हैं।
5. आवश्यक मानव संसाधन के लिए, विद्यमान पेशेवरों जैसे अभियंता, आर्किटेक्ट्स (लेखाकार, अधिवक्ताओं) आदि को उनके माता- पिता वैधानिक निकायों की संबद्धता के साथ पीएमकेवीवाई के तहत शुरू किए गए अल्पावधि ऑनलाइन और ऑफलाइन 'क्षमता निर्माण कार्यक्रम' के माध्यम से अधिकार किया जाना चाहिए।
6. स्वतंत्रता के बाद चंडीगढ़ जैसे पूरी तरह से नए शहरों की शायद ही कभी योजना बनाई गई है लेकिन गैर-कृषि क्षेत्रों पर पूरी तरह से नए शहरों या शहर की योजना बनाना बहुत अधिक मददगार होगा, जनसंख्या घनत्व संतुलन और बेहतर कनेक्टिविटी। 
(सी) आर्थिक पहलू:
7. पीएमएवाई जैसे ब्याज राशि के लिए सीएलएसएस (क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी स्कीम) के तहत, अनुवर्ती कारणों से लाभ को सीधे लाभार्थियों के खाते में जमा किया जाना चाहिए:
मैं। राज्य सरकारों द्वारा संपत्ति के पंजीकरण के लिए नाममात्र टोकन स्टाम्प शुल्क शुल्क
ii। स्थानीय सरकारों द्वारा मानक योजना के स्वत: अनुमोदन के लिए नाममात्र टोकन शुल्क
iii। केन्द्रीय सरकार द्वारा सामग्री, श्रम और सेवाओं का लाभ उठाने पर जीएसटी का इनपुट क्रेडिट।
8. एमजीएनआरईजी जैसी अन्य सरकारी योजनाओं के तहत लाभार्थियों के लिए रोजगार के अवसरों को ईएमआई के सुरक्षित पुनर्भुगतान से जोड़ा जा सकता है।
9. आवास ऋणों को अनिवार्य रूप से और सामूहिक रूप से सीएनए, मध्य केंद्रीय नोडल एजेंसी के जरिये बीमा के साथ
लाभार्थियों द्वारा वैकल्पिक रूप से और व्यक्तिगत रूप से बीमा करने की आवश्यकता है।
पीएलआई अर्थात् प्राइम लेंडिंग इंस्टीट्यूशंस
(डी) वैधानिक प्रावधान:
मिशन की सफलता के लिए दो महत्वपूर्ण वैधानिक प्रावधान वांछनीय हैं, हालांकि कठिन लगता है
10. योजना के तहत बनाए गए घरों के लिए बिक्री या किराए पर समय सीमा तय की जानी चाहिए।
11. आवासीय उद्देश्य के लिए किसी व्यक्ति के स्वामित्व वाले घर की संख्या और क्षेत्र की एक ऊपरी सीमा भी तय की जानी चाहिए।
इन सभी को योजनाबद्ध रूप से चित्र 3 में प्रस्तुत किया गया है। 

निष्कर्ष:
यह मिशन न केवल प्रत्येक नागरिक को अपने आवास के गर्व के साथ सशक्त बनाएगा बल्कि अल्पकालिक और दीर्घ अवधि में भी जीडीपी विकास में योगदान देगा और गांवों के नवीनीकरण के कारण उन्हें अधिक योगदान करने के लिए सक्षम करेगा।

संदर्भ:
1. विभिन्न योजनाओं के लिए भारत सरकार की वेबसाइटों और पोर्टल्स
2. एमओएस एंड टी द्वारा अनुसंधान संगठन की निर्देशिका
3. ग्राम स्वाज
4. भूदन आंदोलन
5. पुरा
6. ग्रामीण बैंक, ढाका द्वारा सूक्ष्म वित्तपोषण के मामले में केस अध्ययन
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लेखक परिचय: अनिल जी खंडेलवाल, 1986 में जबलपुर सरकार एंज कॉलेज से स्नातक, iei के सक्रिय सदस्य हैं., और 1991 से इंदौर के स्वतंत्र स्ट्रक्चरल इंजीनियर के रूप में स्नातक हैं।  संपर्क  anil.khandelwal64@gmail.com।