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सोमवार, 9 अक्टूबर 2017

navgeet

नवगीत:
महका... महका...

संजीव 'सलिल'
*
महका... महका...
मन-मन्दिर रख सुगढ़-सलौना
चहका...चहका...
*
आशाओं के मेघ न बरसे,
कोशिश तरसे.
फटी बिमाई, मैली धोती
निकली घरसे..
बासन माँजे, कपड़े धोये,
काँख-काँखकर.
समझ न आये पर-सुख से
हरषे या तरसे?
दहका...दहका...
बुझा हौसलों का अंगारा
लहका...लहका...
*
एक महल, सौ यहाँ झोपड़ी
कौन बनाये?
ऊँच-नीच यह, कहो खोपड़ी
कौन बताये?
मेहनत भूखी, चमड़ी सूखी,
आँखें चमकें.
कहाँ जाएगी मंजिल?
सपने हों न पराये.
बहका...बहका..
सम्हल गया पग, बढ़ा राह पर
ठिठका-ठहका...
******
salil.sanjiv@gmail.com
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baal geet

बाल गीत / नव गीत:

खोल झरोखा....

संजीव 'सलिल'
*
खोल झरोखा, झाँक- 
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.
मेघ बजेंगे, पवन बहेगा,
पत्ते नृत्य दिखायेंगे.....

बाल सूर्य के संग ऊषा आ,
शुभ प्रभात कह जाएगी.
चूँ-चूँ-चूँ-चूँ कर गौरैया
रोज प्रभाती गायेगी..

टिट-टिट-टिट-टिट करे टिटहरी, 
करे कबूतर गुटरूं-गूं-
कूद-फांदकर हँसे गिलहरी
तुझको निकट बुलायेगी..

                                                                                             
आलस मत कर, आँख खोल,
हम सुबह घूमने जायेंगे.
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.....
*
आई गुनगुनी धूप सुनहरी
माथे तिलक लगाएगी.
अगर उठेगा देरी से तो
आँखें लाल दिखायेगी..

मलकर बदन नहा ले जल्दी,
प्रभु को भोग लगाना है. 
टन-टन घंटी मंगल ध्वनि कर-
विपदा दूर हटाएगी.

मुक्त कंठ-गा भजन-आरती,
सरगम-स्वर सध जायेंगे.
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.....
*
मेरे कुँवर कलेवा कर फिर,
तुझको शाला जाना है.
पढ़ना-लिखना, खेल-कूदना,
अपना ज्ञान बढ़ाना है..

अक्षर,शब्द, वाक्य, पुस्तक पढ़,
तुझे मिलेगा ज्ञान नया.
जीवन-पथ पर आगे चलकर
तुझे सफलता पाना है..

सारी दुनिया घर जैसी है,
गैर स्वजन बन जायेंगे.
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.....
*

*****

harigitika chhand

हरिगीतिका:
--संजीव 'सलिल'
*
उत्सव सुहाने आ गये हैं, प्यार सबको बाँटिये.
भूलों को जाएँ भूल, नाहक दण्ड दे मत डाँटिये..
सबसे गले मिल स्नेह का, संसार सुगढ़ बनाइये. 
नेकी किये चल 'सलिल', नेकी दूसरों से पाइये.. 
*
हिल-मिल मनायें पर्व सारे, बाँटकर सुख-दुःख सभी.
ऐसा लगे उतरे धरा पर, स्वर्ग लेकर सुर अभी.
सुर स्नेह के छेड़ें, सुना सरगम 'सलिल' सद्भाव की.
रच भावमय हरिगीतिका, कर बात नहीं अभाव की..
*
दिल से मिले दिल तो बजे त्यौहार की शहनाइयाँ.
अरमान हर दिल में लगे लेने विहँस अँगड़ाइयाँ..
सरहज मिले, साली मिले या सँग हों भौजाइयाँ.
संयम-नियम से हँसें-बोलें, हो नहीं रुस्वाइयाँ..
*
कस ले कसौटी पर 'सलिल', खुद आप अपने काव्य को.
देखे परीक्षाकर, परखकर, गलतियां संभाव्य को..
एक्जामिनेशन, टेस्टिंग या जाँच भी कर ले कभी.
कविता रहे कविता, यहे एही इम्तिहां लेना अभी..
*
अनुरोध है हम यह न भूलें एकता में शक्ति है.
है इल्तिजा सबसे कहें सर्वोच्च भारत-भक्ति है..
इसरार है कर साधना हों अजित यह ही युक्ति है.
रिक्वेस्ट है इतनी कि भारत-भक्ति में ही मुक्ति है..
*****

navgeet

 नवगीत:   
उत्सव का मौसम
*
उत्सव का मौसम 
बिन आये ही सटका है...
*
मुर्गे की टेर सुन 
आँख मूँद सो रहे.
उषा की रूप छवि
बिन देखे खो रहे.
ब्रेड बटर बिस्कुट
मन उन्मन ने
गटका है.....
*
नाक बहा, टाई बाँध
अंगरेजी बोलेंगे.
अब कान्हा गोकुल में
नाहक ना डोलेंगे..
लोरी को राइम ने
औंधे मुँह पटका है...
*
निष्ठा ने मेहनत से
डाइवोर्स चाहा है.
पद-मद ने रिश्वत का
टैक्स फिर उगाहा है..
मलिन बिम्ब देख-देख
मन-दर्पण चटका है...
*
देह को दिखाना ही
प्रगति परिचायक है.
राजनीति कहे साध्य
केवल खलनायक है.
पगडंडी भूल
राजमार्ग राह भटका है...
*
मँहगाई आयी
दीवाली दीवाला है.
नेता है, अफसर है
पग-पग घोटाला है. 
अँगने  को खिड़की
दरवाजे से खटका है...
*
*

navgeet

नवगीत:
*
नेताजी को
श्रद्धांजलि है
नेताजी की
अनुयायी के
विरोध में हैं
कहते बिलकुल
अबोध ये हैं
कई बरस का
साथ न प्यारा
प्यारी सत्ता
नहीं मित्रता
नेताजी की
*
अपनी कथनी
अपना काम
मुँह पर
गाँधीजी का नाम
गह नव आशा
गढ़ नव भाषा
निज हितकारक
साफ़-सफाई
नेताजी की
*
salil.sanjiv@gmail.com

navgeet

नवगीत  
*
आस कबीर
नहीं हो पायी
हास भले कल्याणी है
*
प्यास प्राण को
देती है गति
रास न करने
देती है मति
परछाईं बन
त्रास संग रह
रुद्ध कर रहा वाणी है
*
हाथ हाथ के
साथ रहे तो
उठा रख सकें
विनत माथ को
हाथ हाथ मिल
कर जुड़ जाए
सुख दे-पाता प्राणी है
*
नयन मिलें-लड़
झुक-उठ-बसते
नयनों में तो
जीवन हँसते
श्वास-श्वास में
घुलकर महके
जीवन चोखी ढाणी है
*