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सोमवार, 2 अक्टूबर 2017

laghukatha: gandhi

लघुकथा:
गाँधी और गाँधीवाद
*
'बापू आम आदमी के प्रतिनिधि थे. जब तक हर भारतीय को कपडा न मिले, तब तक कपडे न पहनने का संकल्प उनकी महानता का जीवत उदाहरण है. वे हमारे प्रेरणास्रोत हैं' -नेताजी भाषण फटकारकर मंच से उतरकर अपनी मंहगी आयातित कार में बैठने लगे तो पत्रकारों ऐ उनसे कथनी-करनी में अन्तर का कारन पूछा.
नेताजी बोले- 'बापू पराधीन भारत के नेता थे. उनका अधनंगापन पराये शासन में देश की दुर्दशा दर्शाता था, हम स्वतंत्र भारत के नेता हैं. अपने देश के जीवनस्तर की समृद्धि तथा सरकार की सफलता दिखाने के लिए हमें यह ऐश्वर्य भरा जीवन जीना होता है. हमारी कोशिश तो यह है की हर जनप्रतिनिधि को अधिक से अधिक सुविधाएं दी जायें.'
' चाहे जन प्रतिनिधियों की सविधाएं जुटाने में देश के जनगण क दीवाला निकल जाए. अभावों की आग में देश का जन सामान्य जलाता रहे मगर नेता नीरो की तरह बांसुरी बजाते ही रहेंगे- वह भी गाँधी जैसे आदर्श नेता की आड़ में.' - एक युवा पत्रकार बोल पड़ा. अगले दिन से उसे सरकारी विज्ञापन मिलना बंद हो गया.
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navgeet

नवगीत:
उत्सव का मौसम
-- संजीव 'सलिल'
*
उत्सव का
मौसम आया
मन बन्दनवार बनो...
*
सूना पनघट और न सिसके.
चौपालों की ईंट न खिसके..
खलिहानों-अमराई की सुध
ले, बखरी की नींव न भिसके..
हवा विषैली
राजनीति की
बनकर पाल तनो...
*
पछुआ को रोके पुरवाई.
ब्रेड-बटर तज दूध-मलाई
खिला किसन को हँसे जसोदा-
आल्हा-कजरी पड़े सुनाई..
कंस बिराजे
फिर सत्ता पर
बन बलराम धुनो...
*
नेह नर्मदा सा अविकल बह.
गगनविहारी बन न, धरा गह..
खुद में ही खुद मत सिमटा रह-
पीर धीर धर, औरों की कह..
दीप ढालने
खातिर माटी के
सँग 'सलिल' सनो.
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saptshloki durga kavyanuvad

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र हिंदी काव्यानुवाद सहित 
*
नवरात्रि पर्व में मां दुर्गा की आराधना हेतु नौ दिनों तक व्रत किया जाता है। रात्रि में गरबा व डांडिया रास कर शक्ति की उपासना की जाती है। विशेष कामनापूर्ति हेतु दुर्गा सप्तशती, चंडी तथा सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ किया जाता है। दुर्गा सप्तशती तथा चंडी पाठ जटिल तथा प्रचण्ड शक्ति के आवाहन करने हेतु है। इसके अनुष्ठान में अत्यंत सावधानीपूर्ण आवश्यक है, अन्यथा संभावित हैं। इसलिए इसे कम किया जाता है। दुर्गा-चालीसा विधिपूर्वक दुर्गा सप्तशती या चंडी पाठ करने में अक्षम भक्तों हेतु प्रतिदिन दुर्गा-चालीसा अथवा सप्तश्लोकी दुर्गा के पाठ का विधान है जिसमें सामान्य शुद्धि और पूजन विधि ही पर्याप्त है। त्रिकाल संध्या अथवा दैनिक पूजा के साथ भी इसका पाठ किया जा सकता है जिससे दुर्गा सप्तशती,चंडी-पाठ अथवा दुर्गा-चालीसा पाठ के समान पूण्य मिलता है। 
कुमारी पूजन
नवरात्रि व्रत का समापन कुमारी पूजन से किया जाता है। नवरात्रि के अंतिम दिन दस वर्ष से कम उम्र की ९ कन्याओं को माँ दुर्गा के नौ रूप (दो वर्ष की कुमारी, तीन वर्ष की त्रिमूर्तिनी चार वर्ष की कल्याणी, पाँच वर्ष की रोहिणी, छः वर्ष की काली, सात वर्ष की चण्डिका, आठ वर्ष की शाम्भवी, नौ वर्ष की दुर्गा, दस वर्ष की सुभद्रा) मानकर पूजन कर स्वादिष्ट मिष्ठान्न सहित भोजन के पश्चात् दान-दक्षिणा भेंट की जाती है। 
सप्तश्लोकी दुर्गा 
ॐ 
निराकार ने चित्र गुप्त को, परा प्रकृति रच व्यक्त किया। 
महाशक्ति निज आत्म रूप दे, जड़-चेतन संयुक्त किया।। 
नाद शारदा, वृद्धि लक्ष्मी, रक्षा-नाश उमा-नव रूप- 
विधि-हरि-हर हो सके पूर्ण तब, जग-जीवन जीवन्त किया।।

जनक-जननि की कर परिक्रमा, हुए अग्र-पूजित विघ्नेश। 
आदि शक्ति हों सदय तनिक तो, बाधा-संकट रहें न लेश ।।
सात श्लोक दुर्गा-रहस्य को बतलाते, सब जन लें जान- 
क्या करती हैं मातु भवानी, हों कृपालु किस तरह विशेष?
*
शिव उवाच-
देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी।
कलौ हि कार्यसिद्धयर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः॥
शिव बोले: 'सब कार्यनियंता, देवी! भक्त-सुलभ हैं आप।
कलियुग में हों कार्य सिद्ध कैसे?, उपाय कुछ कहिये आप।।'
*
देव्युवाच-
श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम्‌।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते॥
देवी बोलीं: 'सुनो देव! कहती हूँ इष्ट सधें कलि-कैसे?
अम्बा-स्तुति बतलाती हूँ, पाकर स्नेह तुम्हारा हृद से।।'
*
विनियोग-
ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ऋषिः 
अनुष्टप्‌ छन्दः, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः 
श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः।
ॐ रचे दुर्गासतश्लोकी स्तोत्र मंत्र नारायण ऋषि ने
छंद अनुष्टुप महा कालिका-रमा-शारदा की स्तुति में
श्री दुर्गा की प्रीति हेतु सतश्लोकी दुर्गापाठ नियोजित।।
*
ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति॥१॥
ॐ ज्ञानियों के चित को देवी भगवती मोह लेतीं जब।
बल से कर आकृष्ट महामाया भरमा देती हैं मति तब।१।
*
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्‌यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता॥२॥
माँ दुर्गा का नाम-जाप भयभीत जनों का भय हरता है,
स्वस्थ्य चित्त वाले सज्जन, शुभ मति पाते, जीवन खिलता है।
दुःख-दरिद्रता-भय हरने की माँ जैसी क्षमता किसमें है?
सबका मंगल करती हैं माँ, चित्त आर्द्र पल-पल रहता है।२।
*
सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥३॥
मंगल का भी मंगल करतीं, शिवा! सर्व हित साध भक्त का। 
रहें त्रिनेत्री शिव सँग गौरी, नारायणी नमन तुमको माँ।३।

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे। 
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते॥४॥
शरण गहें जो आर्त-दीन जन, उनको तारें हर संकट हर। 
सब बाधा-पीड़ा हरती हैं, नारायणी नमन तुमको माँ ।४।
*
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते॥५॥
सब रूपों की, सब ईशों की, शक्ति समन्वित तुममें सारी। 
देवी! भय न रहे अस्त्रों का, दुर्गा देवी तुम्हें नमन माँ! ।५। 
*
रोगानशोषानपहंसि तुष्टा 
रूष्टा तु कामान्‌ सकलानभीष्टान्‌।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां 
त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति॥६॥
शेष न रहते रोग तुष्ट यदि, रुष्ट अगर सब काम बिगड़ते। 
रहे विपन्न न कभी आश्रित, आश्रित सबसे आश्रय पाते।६। 
*
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्यद्वैरिविनाशनम्‌॥७॥
माँ त्रिलोकस्वामिनी! हर कर, हर भव-बाधा। 
कार्य सिद्ध कर, नाश बैरियों का कर दो माँ! ।७।
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॥इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा संपूर्णम्‌॥ 
।श्री सप्तश्लोकी दुर्गा (स्तोत्र) पूर्ण हुआ।
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aavhaan gaan

आव्हान गान:

जागो माँ!, जागो माँ!!
*
*
सघन तिमिर आया घिर
तूफां है हावी फिर.
गौरैया घायल है
नष्ट हुए जंगल झिर.
बेबस है राम आज
रजक मिल उठाये सिर.
जनमत की सीता को
निष्ठा से पागो माँ.
जागो माँ!, जागो माँ!!
*
शकुनि नित दाँव चले
कृष्णा को छाँव छले.
शहरों में आग लगा
हाथ सेंक गाँव जले.
कलप रही सत्यवती
बेच घाट-नाव पले.
पद-मद के दानव को
मार-मार दागो माँ
जागो माँ!, जागो माँ!!
*
करतल-करताल लिये
रख ऊँचा भाल हिये.
जस गाते झूम अधर
मन-आँगन बाल दिये.
घंटा-ध्वनि होने दो
पंचामृत जगत पिये.
प्राणों को खुद भी
ज्यादा प्रिय लागो माँ!
जागो माँ!, जागो माँ!!
*

kundaliya

कुण्डलिया
पवनपुत्र की छाँव में, रहा न कोइ क्लेश
बाल न बाँका कर सके, दुश्मन नोचे केश
दुश्मन नोचे केश, पीट निज शीश अभागे
प्रभु हुंकारे, पैर शीश पर धर अरि भागे
'सलिल' चरण धो तरा, अंजनीलाल ठाँव में
रहा न कोई क्लेश, पवन पुत्र की छाँव में
*
मिनी कहे जो स्वयं को, उसे मिनी मत मान
'सलिल' मैक्सी कह उसे, खूब लिए है ज्ञान
खूब लिए है ज्ञान, मृदुल मुस्कान कनोहर
बड़भागी इंटैक, समेटे दिव्य धरोहर
ज्ञान-खान, विद्वान्, डॉक्टर शर्मा हैं गुणी
हाथ जोड़ कर ज्ञान ग्रहण, मन आप हो मिनी
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रविवार, 1 अक्टूबर 2017

एक रचना

एक रचना-
*
हल्ला-गुल्ला,  शोर-शराबा,
मस्ती-मौज, खेल-कूद, मनरंजन,
डेटिंग करती फ़ौज.
लेना-देना, बेच-खरीदी,
कर उपभोग. नेता-टी.व्ही.
कहते जीवन-लक्ष्य यही.

कोई न कहता लगन-परिश्रम,
संयम-नियम, आत्म अनुशासन,
कोशिश राह वरो.
तज उधार, कर न्यून खर्च
कुछ बचत करो.
उत्पादन से मिले सफ़लता
वही करो.

उत्पादन कर मुक्त लगे कर उपभोगों पर.
नहीं योग पर रोक लगे केवल रोगों पर.
तब सम्भव रावण मर जाए.
तब सम्भव दीपक जल पाए.
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