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रविवार, 13 नवंबर 2011

राजस्थानी दोहा: --ॐ पुरोहित

राजस्थानी दोहा:                                       

ॐ पुरोहित

राज बणाया राजव्यां,भाषा थरपी ज्यान ।
 
बिन भाषा रै भायला,क्यां रो राजस्थान ॥१॥ 
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रोटी-बेटी आपणी,भाषा अर बोवार ।
 
राजस्थानी है भाई,आडो क्यूं दरबार ॥२॥ 
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राजस्थानी रै साथ में,जनम मरण रो सीर ।
 
बिन भाषा रै भायला,कुत्तिया खावै खीर ।।३॥

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पंचायत तो मोकळी,पंच बैठिया मून ।
 
बिन भाषा रै भायला,च्यारूं कूंटां सून ॥४॥
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भलो बणायो बाप जी,गूंगो राजस्थान ।

 
बिन भाषा रै प्रांत तो,बिन देवळ रो थान॥५॥
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आजादी रै बाद सूं,मून है राजस्थान । 
 
अपरोगी भाषा अठै,कूकर खुलै जुबान ॥६॥
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राजस्थान सिरमोड है,मायड भाषा मान । 
 
दोनां माथै गरब है,दोनां साथै शान ॥७॥
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बाजर पाकै खेत में,भाषा पाकै हेत । 
 
दोनां रै छूट्यां पछै,हाथां आवै रेत ॥८॥
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निज भाषा सूं हेत नीं,पर भाषा सूं हेत । 
 
जग में हांसी होयसी,सिर में पड्सी रेत ॥९॥
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निज री भाषा होंवतां,पर भाषा सूं प्रीत । 
 
ऐडै कुळघातियां रो ,जग में कुण सो मीत ॥१०॥
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घर दफ़्तर अर बारनै,निज भाषा ई बोल । 
 
मायड भाषा रै बिना,डांगर जितनो मोल ॥११॥
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मायड भाषा नीं तजै,डांगर-पंछी-कीट । 
 
माणस भाषा क्यूं तजै, इतरा क्यूं है ढीट ॥१२॥
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मायड भाषा रै बिना,देस हुवै परदेस । 
 
आप तो अबोला फ़िरै,दूजा खोसै केस ॥१३॥
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भाषा निज री बोलियो,पर भाषा नै छोड । 
 
पर भाषा बोलै जका,बै पाखंडी मोड ॥१४॥
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मायड भाषा भली घणी, ज्यूं व्है मीठी खांड । 
 
पर भाषा नै बोलता,जाबक दीखै भांड ॥१५॥
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जिण धरती पर बास है,भाषा उण री बोल । 
 
भाषा साथ मान है , भाषा लारै मोल ॥१६॥
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मायड भाषा बेलियो,निज रो है सनमान । 
 
पर भाषा नै बोल कर,क्यूं गमाओ शान ॥१७॥
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राजस्थानी भाषा नै,जितरो मिलसी मान । 
 
आन-बान अर शान सूं,निखरसी राजस्थान ॥१८॥
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धन कमायां नीं मिलै,बो सांचो सनमान । 
 
मायड भाषा रै बिना,लूंठा खोसै कान ॥१९॥
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म्हे तो भाया मांगस्यां,सणै मान सनमान । 
 
राजस्थानी भाषा में,हसतो-बसतो रजथान ॥२०॥
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निज भाषा नै छोड कर,पर भाषा अपणाय । 
 
ऐडै पूतां नै देख ,मायड भौम लजाय ॥२१॥
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भाषा आपणी शान है,भाषा ही है मान । 
 
भाषा रै ई कारणै,बोलां राजस्थान ॥२२॥
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मायड भाषा मोवणी,ज्यूं मोत्यां रो हार । 
 
बिन भाषा रै भायला,सूनो लागै थार ॥२३॥
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जिण धरती पर जळमियो,भाषा उण री बोल । 
 
मायड भाषा छोड कर, मती गमाओ डोळ ॥२४॥
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हिन्दी म्हारो काळजियो,राजस्थानी स ज्यान । 
 
आं दोन्यूं भाषा बिना,रै’सी कठै पिछाण ॥२५॥
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राजस्थानी भाषा है,राजस्थान रै साथ । 
 
पेट आपणा नीं पळै,पर भाषा रै हाथ ॥२६॥



मायड़ सारु मानता,चालो चालां ल्याण।
 
जोग बणाया सांतरा,जोगेश्वर जी आण ॥२७॥
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दिल्ली बैठगी धारगै,मून कुजरबो धार ।
 
हेलो मारां कान मेँ,आंखां खोलां जा'॥२८॥
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हक है जूनो मांगस्यां, जे चूकां तो मार ।
 
दिल्ली डेरा घालस्यां,भेजै लेवो धार ॥२९॥
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माथा मांगै आज भी,राज चलावणहार ।
 
माथा मांडो जाय नै,दिल्लड़ी रै दरबार ॥३०॥
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लोकराज मेँ भायला, माथां रो है मान ।
 
जाय गिणाओ स्यान सूं.चोड़ा सीना ताण ॥३१॥
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भाषण छोडो भायलां,आसण मांडो जाय।
 
अब जे आपां चूकग्या,लाज मरै ली माय ॥३२॥
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देव भौमिया धोक गै, हो ल्यो सारा साथ ।
 
माथां सूं माथा भेळ,ले हाथां मेँ हाथ ॥३३॥
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झंडा डंडा छोड गै,छोड राज गो हेत ।
 
दिल्ली चालो भाईड़ां,निज भाषा रै हेत ॥३४॥
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शनिवार, 12 नवंबर 2011

श्रीमद्भगवत गीता का भी श्लोकशः पद्यानुवाद

श्रीमद्भगवत गीता विश्व का अप्रतिम ग्रंथ है !
धार्मिक भावना के साथ साथ दिशा दर्शन हेतु सदैव पठनीय है !
जीवन दर्शन का मैनेजमेंट सिखाती है ! पर संस्कृत में है !
हममें से कितने ही हैं जो गीता पढ़ना समझना तो चाहते हैं पर संस्कृत नहीं जानते !
मेरे ८४ वर्षीय पूज्य पिता प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध जी संस्कृत व हिन्दी के विद्वान तो हैं ही , बहुत ही अच्छे कवि भी हैं , उन्होने महाकवि कालिदास कृत मेघदूत तथा रघुवंश के श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद किये , वे अनुवाद बहुत सराहे गये हैं . हाल ही उन्होने श्रीमद्भगवत गीता का भी श्लोकशः पद्यानुवाद पूर्ण किया . जिसे वे भगवान की कृपा ही मानते हैं .
उनका यह महान कार्य http://vikasprakashan.blogspot.com/ पर सुलभ है . रसास्वादन करें . व अपने अभिमत से सूचित करें . कृति को पुस्तकाकार प्रकाशित करवाना चाहता हूं जिससे इस पद्यानुवाद का हिन्दी जानने वाले किन्तु संस्कृत न समझने वाले पाठक अधिकतम सदुपयोग कर सकें . नई पीढ़ी तक गीता उसी काव्यगत व भावगत आनन्द के साथ पहुंच सके .
प्रसन्नता होगी यदि इस लिंक का विस्तार आपके वेब पन्ने पर भी करेंगे . यदि कोई प्रकाशक जो कृति को छापना चाहें , इसे देखें तो संपर्क करें ..०९४२५८०६२५२, विवेक रंजन श्रीवास्तव

दोहा सलिला गले मिले दोहा यमक --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला
गले मिले दोहा यमक
--संजीव 'सलिल'
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जिस का रण वह ही लड़े, किस कारण रह मौन.
साथ न देते शेष क्यों?, बतलायेगा कौन??
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ताज महल में सो रही, बिना ताज मुमताज.
शिव मंदिर को मकबरा, बना दिया बेकाज..
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भोग लगा प्रभु को प्रथम, फिर करना सुख-भोग.
हरि को अर्पण किये बिन, बनता भोग कुरोग..
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योग लगते सेठ जी, निन्यान्नबे का फेर.
योग न कर दुर्योग से, रहे चिकित्सक-टेर..
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दस सर तो देखे मगर, नौ कर दिखे न दैव.
नौकर की ही चाह क्यों, मालिक करे सदैव?
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करे कलेजा चाक री, अधम चाकरी सौत.
सजन न आये चौथ पर, अरमानों की मौत..
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चढ़े हुए सर कार पर, हैं सरकार समान.
सफर करे सर कार क्यों?, बिन सरदार महान..
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चाक घिस रहे जन्म से. कोइ न समझे पीर.
गुरु को टीचर कह रहे, मंत्री जी दे पीर..
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रखा आँख पर चीर फिर, दिया कलेजा चीर.
पीर सिया की सलिल थी, राम रहे प्राचीर..
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पी मत खा ले जाम तू, है यह नेक सलाह.
जाम मार्ग हो तो करे, वाहन इंजिन दाह..
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कर वट की आराधना, ब्रम्हदेव का वास.
करवट ले सो चैन से, ले अधरों पर हास..
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