राजलक्ष्मी रचनाएँ
आधुनिक संस्कृति
डॉण्राजलक्ष्मी शिवहरे
आज आधुनिकता का जमाना है।सभी के हाथ में मोबाइल होता है।यहाँ तक कि बाइयों के पास भी।घरों में टीवी फोन सब होता है। गुगल का जमाना है जो जानकारी चाहिए मिल जाती है।इलेक्ट्रॉनिक काजमाना है।वायुयान की यात्रा अब सुलभ है।
यदि हम इन सबका उपयोग करते हैं तो आधुनिक कहलाते हैं आधुनिक होना बुरा भी नहीं है।पर अति हर चीज की बुरी होती है।चालीस पचास साल में ह्दयरोग से पीडित होकर कालकवलित होना क्या आधुनिकता की निशानी है।छोटे छोटे बच्चों की आँखों पर चश्मा चढ गया है। स्पेंडोलाइटिस ने गले पर पट्टा चढा दिया है।
आइये आधुनिकता का अंधानुकरण छोड कर भारतीय संस्कृति को अपनाइये।सुबह उठकर घूमिए।आराम देह कपडे पहनिए।
आधुनिक बनना बुरा नहीं पर दूसरों को फूहड समझना कि वो जिन्स नहीं पहनता हिंदी बोलता है कमतर आँकना गलत है छप्पन इंच की चौडी छाती ने हिला दिया हिन्दुस्तान।लोग दाँतो तले ऊँगली दबायेंगे। और कहेंगे जय श्री राम। अच्छे दिन आ गये।हर घाट पर सिंह छा गये। बकरे दुम दबा कर भाग गये। सियार कहीं मुँह छिपाये पडें होंगे। जय श्री राम।
एक व्यक्ति बुद्ध के पास आया। उसने कहा मुझे शिष्य बना लीजिए। पहले
तुम कुछ सीख कर आओ। उसने संगीत
सीखा। हर कलाकारी सीखी। फिर वह तथागत के पास आया। कल जरूर तुम्हें
दीक्षा दुंगा। दुसरे दिन बुद्ध के
एक शिष्य ने उसे बहुत गाली दी। उस व्यक्ति को बहुत
क्रोध आया उसने भी गाली दी। वह बुद्ध के पास गया।
तो अभी दीक्षा देना असंभव है।
चोरीए झूठ बोलनाए हिंसा है उसी प्रकार क्रोध भी हिंसा है।
यह मत सोचो तुम मेरे शिष्य नहीं। पर पहले इस लायक बनो।
बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बनी शहर में हुआ। बचपन में ही माता महामाया का
निधन हो गया। राजा शुद्धोधन ने दासियों के सहारे उनका पालन पोषण किया।
ज्योतिष ने कहा था या तो यह बालक सम्राट बनेगा या संत।
एक दिन वे कपिलवस्तु के मार्ग पर जा रहे थे तो एक रोगी दिखाए एक बूढ़ा फिर अर्थी
समय उनके मन में यह भावना आई कि मनुष्य की नियती यही है। राजा ने
उनका विवाह यशोधरा से किया। सात दिन के पुत्र को छोड़कर वे वनगामी हुये। आइये
बुद्ध की जीवनी पर हम सब मिलकर मीमांसा करें।
यद्यपि उन्होंने कठिन मार्ग चुना राजपाट छोड़ा। घर द्वार छोड़ा। सुन्दर सी पत्नी
छोड़ी। नवजात शिशु छोड़ा। मोह का त्याग ज्ञान की प्राप्ति के लिये किया। ये
तथागत के लिये ही संभव था।
समय समय की बात है। सांझ ढल गई थी। सामने पेड़ पर बहुत से जुगनु सितारों
अंधेरे में एक परछाईं दिखी। अक्सर
अकेले रहती हूँ। डर लगा फिर पूछा.. कौन हैं क्या चाहिए। मैं
बुद्ध या उनके अनुयायी हैं आप मैं कुर्सी से उठ गयी थी।
तुम लेखिका हो इसलिए दर्द बाँटने आया हूँ। आइये
बैठिये। पानी लाती हूँ। पानी पीकर
वो बोले.. बहुत सारे आक्षेप हैं मुझ पर पत्नी को छोड़कर चला गया। बच्चे की देखभाल
भी सोचती हूँ। इतना बड़ा राजपाट था आपका फिर क्योंघ् मैं
बैचेन था। सारे सुख थे मेरे पास। पर लगता था मुझे कुछ खोजना है यह संसार किस
तथागत पैसे के लिये तो। उदरपूर्ति के बाद भी और और के पीछे।
बस यही संदेश देने गया था। हम जो हिंसा करते हैं पाप है ये। दुराचार नहीं करना।
वो तो ठीक है पर आम्रपाली को दिक्षा देने का मतलब।
आम्रपाली नगरवधू थी। बुद्ध की शरण में वह स्वेच्छा से आई थी। उसका उद्धार
वो तो ठीक है तथागत। पर आप सा बनना बेहद मुश्किल है।
वो चले गये। मैं रो रही थी। दुख सहकर फांसी पर ईसा चढ़े। जिसने भी इससे
बचाने की कोशिश की उसे ही जवाब देने पड़े। जहां
उनके चरण पड़े थे मेरा शीश उस जगह पर था। मैं
विषय..हे अवधपति करुणा निधान
सीता सुरक्षित नहीं ए हर ली
लडकी ने पूछा पगार क्या है
ओह फिर तो होगी खींचातानी।।
प्रायवेट प्रैक्टिस कर लेगा।
नहीं माँ इतने से में बिजली
माँ हैरत में थी। तेरे पापा को
वो मेरे बच्चे नहीं सहेंगे।
हर चीज ब्रांडेड होगी उनकी।
भारत में यदि कुछ है तो आस्था ही है।
हमारे बुजुर्ग जो हमें बताते हैं हम उस पर विश्वास करते
हैं।ये परम्परा बन जाती है।
त्योहार हममें उत्साह प्रेम और विश्वास जगाने के लिये आते हैं।
रुप तो एक बार जैसा मिल गया।साँवले हों गोरे हों या मोटे या पतले
हो फिर रूपचौदस की पूजा करके हम सुन्दर कैसे हो जायेंगे ये प्रश्न
यम हमारा रुप नहीं देखते हमारे कर्म देखते हैं।कर्म सुन्दर करो
तो लक्ष्मी तो आपके घर जरुर पधारेंगी।
और आप समाज के लिये उपयोगी हो जायेंगे।समाज आपका
सम्मान करेगा।और आप गोरे हो या काले सभी के लिये वांछनीय
यही आस्था हमको रुप के साथ गुण की ओर प्रेरित करती है।
सुंदर तो डाकू भी होता है पर सभी उससे दूर भागते हैं।
सुंदर तो शराबी भी होता है पर कोई उसे पास नहीं बिठाता।
सुंदर तो आम्रपाली भी थी पर थी नगरवधू।
मुझे इसलिए लगता है भीतरी रुप को सजाना सँवारना चाहिए
वरना पार्लर वाली सुंदर बना ही देगी।
हमारी जागरुकता हमारे चरित्र निर्माण को लेकर हो आज इस
रुपचौदस तभी सच्चे मायने में रुपचौदस होगा।
मैं बता रही हूँ तुझे जब आत्मा इस शरीर से अलग होती है तो वह बहुत शक्तिशाली हो जाती है।सीमा ने कहा।
मैं क्या करुँ। मेरी कुछ समझ नहीं पड रहा।
कितना समझाया था उसे हमारा मेल हो ही नहीं सकता। न तो जाति एक है।उम्र में भारी अंतर है।पर वह समझना ही नहीं चाहता
सीख देते देते तू कब उससे प्रेम कर बैठी।
पता नहीं पर मेरी माँ मुझे कहती है तू बदनाम हो जायेगी।
मौसी तो जाने कब से इस संसार में नहीं।
बीस साल हुये।पर हर पल मैं क्या सोचती हूँ इसकी तक खबर है उन्हें।
सीमा लगता है ये दुनिया प्रेम के लिये बनी ही नहीं।
हाँ तीन दिन हुये उनकी रुख्सती को।
जिद पकडे हैं तू जल जायेगी।
राखी सही है। बडे सीख भले के लिये देते हैं पर मानता कौन है।
ये आत्माओं का संसार है। वो शरीर से अलग होने पर भी हमारा भला चाहते हैं।
जाती हूँ भोर होने वाली है।
नहीं।मैंने भी शरीर छोड दिया है।कल तुझे खबर मिल जायेगी।
राखी को लगा वह कोई सपना देख रही थी।
लेकिन सुबह ही पेपर में पढा बीण्ई की छात्रा ने तिलवारा से कूद कर आत्महत्या कर ली।