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शुक्रवार, 12 सितंबर 2025

केन्या, नैरोबी, पर्यटन

नेशनल संग्रहालय नैरोबी 
केन्या
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
केन्या दूतावास- अदीस अबाबा कोमोरोस स्ट्रीट, हाई 16 केबेले 01, अदीस अबाबा, इथियोपिया। info@kenyaembassyaddis.org
फ़ोन: +251-11-661-0135/6 / +251-929-234-564 ईमेल: addisababa@mfa.go.ke

आर्ट गैलरी नैरोबी 
 नैरोबी के पर्यटन स्थल-
 ०१। नैरोबी राष्ट्रीय उद्यान: शहर में स्थित इस    अनूठा वन्यजीव अभ्यारण्य है जहाँ आप शेर,  गैंडे और जिराफ जैसे जानवरों को देख सकते  हैं। 
०२. जिराफ़ सेंटर: यहाँ आप जिराफ़ों को बहुत करीब से देख सकते हैं और उन्हें खिला भी  सकते हैं। 
०३. डेविड शेल्ड्रिक वन्यजीव ट्रस्ट: यहाँ अनाथ बचाए गए युवा हाथियों को पर्यटक देख   सकते हैं।   
०४, करूरा वन: यह शहर के भीतर एक प्राकृतिक वन है जो पैदल यात्रा और प्रकृति का  अनुभव करने के लिए एक बेहतरीन जगह है। 
संस्कृति और इतिहास:

नैरोबी ज़ू 
 ०५. केन्या के बोमास: यह एक सांस्कृतिक केंद्र है जहाँ आप केन्या के विभिन्न जनजातियों के   पारंपरिक जीवन और आवासों को देख सकते हैं। 
 ०६. नैरोबी राष्ट्रीय संग्रहालय: यहाँ केन्या के   इतिहास, संस्कृति और वन्यजीवों से जुड़ी विभिन्न   प्रदर्शनियाँ देखी जा सकती हैं। 
 ०७. करेन ब्लिक्सन संग्रहालय: यह प्रसिद्ध लेखिका करेन ब्लिक्सन के पूर्व घर में स्थापित एक   संग्रहालय है। 
  खरीददारी और शहर का अनुभव:
  ०८. मासाई बाज़ार: यह एक लोकप्रिय आउटडोर बाज़ार है जहाँ पारंपरिक शिल्प, गहने और   अफ्रीकी स्मृति चिन्ह मिलते हैं। 
  ०९. नैरोबी गैलरी: यह एक सांस्कृतिक केंद्र है जो केन्या की कला और संस्कृति को बढ़ावा देता      है। 

केन्या 


             केन्या पूर्वी अफ्रीका में स्थित एक देश है जिसका तट हिंद महासागर पर स्थित है। इसमें सवाना, झीलों के मैदान, शानदार ग्रेट रिफ्ट वैली और ऊंचे पहाड़ी इलाके शामिल हैं। यह शेरों, हाथियों और गैंडों जैसे वन्यजीवों का भी घर है। राजधानी नैरोबी से, सफ़ारी के लिए मासाई मारा रिज़र्व, जो अपने वार्षिक वाइल्डबीस्ट प्रवास के लिए जाना जाता है, और अंबोसेली राष्ट्रीय उद्यान का भ्रमण किया जाता है, जहाँ से तंजानिया के ५,८९६ मीटर ऊँचे माउंट किलिमंजारो के नज़ारे दिखाई देते हैं। केन्या का नाम माउंट केन्या या 'किरिन्यागा', 'श्वेतता का पर्वत' के नाम पर रखा गया है। एक सफारी और पर्यटन स्थल के रूप में, केन्या बेजोड़ है। बर्फ और आग से जन्मी एक प्राचीन भूमि, केन्याई जलवायु की चरम सीमाएँ, जो उष्णकटिबंधीय गर्मी से लेकर हिमनदों की बर्फ तक फैली हुई हैं, इतनी विविध हैं कि इसने ऐसे आवासों का निर्माण किया है जो पृथ्वी पर कहीं और नहीं पाए जाते। भूगोल की दृष्टि से, केन्या सिंह-स्वर्ण सवाना, लहराते घास के मैदानों, प्राचीन वर्षा वनों और ज्वालामुखीय मैदानों का एक विशाल संगम प्रस्तुत करता है। केन्या हिंद महासागर के रमणीय तटों से लेकर माउंट केन्या की बर्फ से ढकी चोटियों तक फैला हुआ है, जो समुद्र तल से ५,१९९ मीटर ऊँचा, लगभग साढ़े तीन लाख वर्ष पुराना एक विलुप्त ज्वालामुखी है। एक प्राकृतिक स्वर्ग होने के साथ-साथ केन्या एक सांस्कृतिक सूक्ष्म जगत और सदियों पुराना 'मानवता का पालना' भी है। राष्ट्रीय ध्वज के हरे, काले और लाल रंग के तहत एकजुट केन्या के लोगों में ५० से अधिक जातीय समूह शामिल हैं और उनकी गर्मजोशी और आतिथ्य राष्ट्रीय आदर्श वाक्य ' हरामबी ' में सबसे अच्छी तरह व्यक्त होता है; जिसका अर्थ है 'आइए हम सब मिलकर प्रयास करें'। 

अस्पताल और डॉक्टर- नैरोबी और मोम्बासा दोनों जगहों पर उच्च योग्यता प्राप्त डॉक्टर, सर्जन और दंत चिकित्सक उपलब्ध हैं। लॉज और होटल, रेजिडेंट मेडिकल स्टाफ़ प्रदान करते हैं और फ़्लाइंग डॉक्टर सेवा के साथ रेडियो या टेलीफ़ोन संपर्क बनाए रखते हैं, जो पूर्वी अफ़्रीका में हवाई निकासी और आपातकालीन उपचार में विशेषज्ञता रखती है। अस्थायी सदस्यता उपलब्ध है। अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें: emergency@flydoc.org

राजधानी/बड़े शहर- नैरोबी (माँ में नैरोबी का अर्थ 'ठंडे पानी का स्थान' है)। नैरोबी पूर्वी अफ्रीका का सबसे अधिक ऊँचा (१,७०० मीटर) आधुनिक और तेजी से विकसित हो रहा  शहर  जिसकी अनुमानित जनसंख्या ४ मिलियन से अधिक है। अन्य बड़ा शहर मोम्बासा पूर्वी अफ़्रीकी तट की तटीय राजधानी और सबसे बड़ा बंदरगाह है। अन्य प्रमुख शहर किसुमु, एल्डोरेट, नाकुरु, न्येरी और मचाकोस हैं।

क्षेत्र/सीमा - केन्या का क्षेत्रफल ५,८३,००० वर्ग किलोमीटर है, जिसमें से १३,४०० किलोमीटर अंतर्देशीय जल है, जिसमें विक्टोरिया झील का एक हिस्सा भी शामिल है। समुद्र तट ५३६ किलोमीटर लंबा है। केन्या की सीमा इथियोपिया, सूडान, दक्षिण सूडान, सोमालिया, युगांडा और तंजानिया से लगती है।

जलवायु- तट गर्म रहता है और दिन का औसत तापमान २७-३१ डिग्री सेल्सियस रहता है, जबकि नैरोबी में दिन का औसत तापमान २१-२६ डिग्री सेल्सियस रहता है। नैरोबी में कोट और ऊनी कपड़े पहनने लायक ठंड पड़ सकती है; जुलाई और अगस्त केन्या में सर्दी का मौसम होता है। अन्य जगहों पर तापमान ऊँचाई पर निर्भर करता है। आमतौर पर, जनवरी-फरवरी शुष्क, मार्च-मई आर्द्र, जून-सितंबर शुष्क और अक्टूबर-दिसंबर आर्द्र रहता है। जनसंख्या- ३८ मिलियन (अनुमानित २००९), जिनमें से ४२.५% १४ वर्ष से कम आयु के हैं, तथा २.५६% की वृद्धि दर विश्व में सर्वाधिक है।

जातीय विविधता/धर्म - यहाँ ४० से ज़्यादा जनजातीय समूह हैं जिनकी भाषा बंटू और नीलोटिकहैं। बंटू की सबसे बड़ी जनजातियाँ किकुयू, मेरु, गुसी, एम्बू, अकाम्बा, लुइहा और मिजिकेंडा हैं। नीलोटिक की सबसे बड़ी जनजातियाँ मासाई, तुर्काना, सम्बुरु, पोकोट, लुओ और कालेंजिन हैं। कुशिटिक भाषी लोगों के एक तीसरे समूह में एल-मोलो, सोमाली, रेंडिल और गल्ला शामिल हैं। तटीय क्षेत्र स्वाहिली लोगों का निवास स्थान है। केन्या के प्रमुख धर्म ईसाई, हिंदू, सिख और इस्लाम हैं।

भाषा- केन्या की आधिकारिक भाषा अंग्रेज़ी, राष्ट्रीय भाषा स्वाहिली, जातीय भाषाएँ बंटू, कुशिटिक और नीलोटिक हैं। १५वर्ष से अधिक आयु की ८५% जनसंख्या पढ़ और लिख सकती है। 

मुद्रा/बैंकिंगकेन्या शिलिंग (Ksh); अपभाषा 'बॉब'। विदेशी मुद्रा बैंकों, विदेशी मुद्रा ब्यूरो या होटलों में बदली जा सकती है। प्रमुख केंद्रों में बैंक सोमवार से शुक्रवार सुबह ९.०० बजे से दोपहर १.०० बजे तक और हर महीने के पहले और आखिरी शनिवार को सुबह ९.०० बजे से दोपहर ११.०० बजे तक खुले रहते हैं। तटीय शहरों में बैंक आधे घंटे पहले खुलते और बंद होते हैं। केन्या में २४ घंटे एटीएम उपलब्ध हैं जो अंतरराष्ट्रीय वीज़ा कार्ड तथा प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय कार्ड स्वीकार करते हैं।अधिकांश बैंकों, ब्यूरो और होटलों में यात्री चेक स्वीकार किए जाते हैं।टिप देना अच्छा रहेगा। ज़्यादातर होटल और रेस्टोरेंट में १०% सेवा शुल्क लगता है।

खरीदारी और व्यावसायिक घंटे- सोमवार-शनिवार सुबह ८.३० से १२.३० और १४.०० से १७.३० बजे तक। पूरे साल GMT + ३१ केन्या में लगभग १२ घंटे का दिन का उजाला रहता है। सूर्योदय आमतौर पर सुबह ६.३० बजे और सूर्यास्त शाम ६.४५ बजे होता है।बिजली २२०-२४०  वोल्ट एसी, मानक १३-एम्पीयर तीन वर्ग-पिन प्लग के साथ उपलब्ध है।

डाकघर- कार्यदिवसों में खुलने का समय सुबह८.०० बजे से शाम ५.००बजे तक और शनिवार को सुबह ९.०० बजे से दोपहर १२.०० बजे तक है। डाक टिकट डाकघरों, स्टेशनरी और स्मारिका दुकानों और होटलों से खरीदे जा सकते हैं। अंतर्राष्ट्रीय टेलीफ़ोन कोड: +254. देश से बाहर जाने के लिए 000 डायल करें और उसके बाद आवश्यक देश कोड डायल करें।

पर्यटकों के आकर्षण

राष्ट्रीय उद्यान और रिजर्व- केन्या का कुल वन्यजीव संरक्षण क्षेत्र ४४,३५९ वर्ग किमी या कुल क्षेत्रफल का ७.६% है। प्रमुख उद्यान हैं: एबरडेयर राष्ट्रीय उद्यान, अम्बोसेली राष्ट्रीय उद्यान, हेल्स गेट राष्ट्रीय उद्यान, लेक नाकुरु राष्ट्रीय उद्यान, मेरु राष्ट्रीय उद्यान, माउंट एल्गॉन राष्ट्रीय उद्यान, माउंट केन्या राष्ट्रीय उद्यान, नैरोबी राष्ट्रीय उद्यान, त्सावो पूर्व और त्सावो पश्चिम राष्ट्रीय उद्यान। सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक, मासाई मारा, को राष्ट्रीय अभ्यारण्य घोषित किया गया है। दो प्रमुख समुद्री उद्यान हैं: मोम्बासा समुद्री राष्ट्रीय उद्यान और मालिंदी/वाटामु राष्ट्रीय उद्यान। सभी केन्याई राष्ट्रीय उद्यानों और अभ्यारण्यों के बारे में जानकारी केन्या वन्यजीव सेवा (KWS) से प्राप्त की जा सकती है। दूरभाष: +254 (0) 20 600800। ईमेल: tourism@kws.org या www.kws.org

विश्व धरोहर स्थल- फोर्ट जीसस, गेदी खंडहर, कूबी फोरा, माउंट केन्या, हेल्स गेट राष्ट्रीय उद्यान और मासाई मारा राष्ट्रीय रिजर्व। 

ऐतिहासिक स्थल- केन्या में ४०० से अधिक ऐतिहासिक स्थल हैं जिनमें पुरापाषाण कालीन अवशेष, १४ वीं शताब्दी के दास व्यापारिक बस्तियाँ, इस्लामी खंडहर और १६वीं शताब्दी का पुर्तगाली किला जीसस शामिल हैं।

परिदृश्य- केन्या का परिदृश्य स्पष्ट रूप से दो हिस्सों में विभाजित है - पूर्वी मूंगा-समर्थित समुद्र तट की ओर ढलान युक्त क्षेत्र और पश्चिमी भाग, जो पहाड़ियों और पठारों की एक श्रृंखला के माध्यम से अचानक पूर्वी रिफ्ट घाटी तक उठता है। रिफ्ट के पश्चिम में पश्चिम की ओर ढलान वाला पठार है, और सबसे निचला भाग विक्टोरिया झील से ढका है। देश का सबसे ऊँचा बिंदु माउंट केन्या (५,१९९ मीटर) की बर्फ से ढकी चोटी है, जो अफ्रीका का दूसरा सबसे ऊँचा पर्वत है। समुद्र तट दक्षिण-पूर्व में तंजानियाई सीमा से उत्तर-पूर्व में सोमाली सीमा तक लगभग ५३६ कि.मी. तक फैला है। मुख्य नदियाँ अथी/गलाना और ताना हैं। प्रमुख झीलें हैं: विक्टोरिया झील, तुर्काना, बैरिंगो, नैवाशा, मगदी, जीप, बोगोरिया, नाकुरु और एलिमेंटाटा।

वनस्पतियाँ/फ्लोरा-केन्या के तटीय वनों में ताड़, मैंग्रोव, सागौन, कोपल और चंदन के वृक्ष पाए जाते हैं। बाओबाब, यूफोरबिया और बबूल के वन लगभग ९१५ मीटर की ऊँचाई तक निचले इलाकों को ढँकते हैं। सवाना के विस्तृत क्षेत्र बबूल और पपीरस के वृक्षों से घिरे हुए समुद्र तल से ९१५ से २,७४५ मीटर की ऊँचाई तक के भूभाग की विशेषता हैं। पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी पर्वतीय ढलानों के घने वर्षावनों में बाँस और कपूर आम हैं। अल्पाइन क्षेत्र (३,५५० मीटर से ऊपर) में सेनेसियो और लोबेलिया के कई पौधे पाए जाते हैं। 

पशु/पक्षीयहाँ ८० प्रमुख पशु प्रजातियाँ हैं, जिनमें 'बिग फाइव' (हाथी, भैंसा, गैंडा, शेर और तेंदुआ) से लेकर छोटे मृग जैसे डिक-डिक (जो खरगोश से थोड़ा बड़ा होता है) तक शामिल हैं। कम से कम ३२ स्थानिक प्रजातियाँ लुप्तप्राय हैं। केन्या में पक्षियों की लगभग १,१३७ प्रजातियाँ पाई जाती हैं। एक दिन में १०० से ज़्यादा पक्षी प्रजातियों को देखना कोई असामान्य बात नहीं है।

हवाई संपर्क: केन्याई एयरलाइन और जोमो केन्याटा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा पूर्वी अफ्रीका में श्रेष्ठ हैं। मोई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा तथा ३० से अधिक अन्य छोटे नागरिक हवाई अड्डे हैं। कई अंतरराष्ट्रीय विमान सेवा प्रदाता केन्या में सेवाएँ प्रदान करते हैं, और नैरोबी पूर्वी अफ्रीकी क्षेत्र का केंद्र है। केन्या में दो अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे हैं: जोमो केन्याटा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा नैरोबी के शहर के केंद्र से आधे घंटे की ड्राइव पर है, और मोम्बासा का मोई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा शहर के केंद्र से और भी करीब है। अधिकांश पर्यटक होटलों में मेहमानों के परिवहन के लिए मिनी बसें होती हैं, और सार्वजनिक बसें जोमो केन्याटा और मोई दोनों हवाई अड्डों पर सेवा प्रदान करती हैं। दोनों हवाई अड्डों पर टैक्सियाँ आसानी से उपलब्ध हैं (आधिकारिक रूप से विनियमित शुल्क प्रदर्शित किए जाने चाहिए)। नैरोबी के विल्सन हवाई अड्डे और मोम्बासा तथा मालिंदी से मुख्य कस्बों और राष्ट्रीय उद्यानों के लिए लगातार उड़ानें (अनुसूचित और चार्टर दोनों) संचालित होती हैं।

वीज़ा और स्वास्थ्य प्रमाणन- केन्या में प्रवेश के लिए एक वैध पासपोर्ट आवश्यक है, जिसकी वैधता कम से कम छह महीने से अधिक न हो। एक वैध प्रवेश वीज़ा भी आवश्यक है, जिसे आप अपने मूल देश में केन्याई दूतावास या उच्चायोग से पहले ही प्राप्त कर सकते हैं, या केन्या पहुँचने पर प्राप्त कर सकते हैं। पीले बुखार के टीकाकरण प्रमाणपत्र की आवश्यकता केवल तभी होती है जब आप किसी संक्रमित क्षेत्र से केन्या आ रहे हों।केन्या आने वाले पर्यटकों के लिए कई टीकाकरण की सिफारिश की जाती है (इस बारे में पहले ही अपने डॉक्टर से जांच कर लें)। मलेरिया उष्णकटिबंधीय अफ्रीका में स्थानिक है और इससे बचाव आवश्यक है। केन्या आने वाले यात्रियों को आगमन से पहले चिकित्सा/यात्रा बीमा प्राप्त करने की सलाह दी जाती है। 

करो और ना करो- सार्वजनिक स्थान पर धूम्रपान करना; सार्वजनिक रूप से पेशाब करना; बिना कपड़ों के धूप सेंकना; नशीली दवाएँ खरीदना या लेना; केन्या से वन्य जीव उत्पादों को हटाना, हाथी, गैंडे या समुद्री कछुए से बने उत्पादों का निर्यात करना, या मूंगे को हटाना अपराध है। गाली-गलौज और ईशनिंदा की सलाह नहीं दी जाती है। आगंतुकों से अनुरोध है कि वे केन्याई राष्ट्रगान बजने या राष्ट्रीय ध्वज फहराए या उतारे जाने पर खड़े रहें। उन्हें यह भी सलाह दी जाती है कि बिना पूर्व अनुमति के राष्ट्रपति या किसी सैन्य प्रतिष्ठान की तस्वीर लेने की अनुमति नहीं है। पुलिस या मजिस्ट्रेट के विवेक पर ज़मानत दी जा सकती है और सभी मामलों को अदालत में लाया जाना चाहिए।

फोटोग्राफी- लोगों से उनकी तस्वीर लेने से पहले यह पूछना शिष्टाचार माना जाता है कि क्या आप उनकी तस्वीर ले सकते हैं। तस्वीर के लिए एक छोटा सा (सांकेतिक) भुगतान अपेक्षित हो सकता है, जो किसी और चीज़ से ज़्यादा एक विनम्र प्रशंसा का प्रतीक है। ००० 

गुरुवार, 11 सितंबर 2025

सितंबर ११, कुण्डलिया, बुंदेली, दोहा, पुराण, बघेली, हाइकु, पूर्णिका, महादेवी, आग्नेय महापुराण, स्कन्द पुराण

सलिल सृजन सितंबर ११
*
मुक्तक 
दोस्त हों गर जिंदगी में जिंदगी हो जिंदगी सी
दोस्त ही जब जिंदगी हों जिंदगी हो बंदगी सी
दोसत बिन सुनसान बियाबान होती जिंदगी
दोस्त जब भुजपाश में ले जिंदगी हो चंदनी सी
***
पूर्णिका 
० 
भोर दिन साँझ झुककर नमन कीजिए 
ईश को नित सुमिरिए भजन कीजिए 
आचरण से न मन हो किसी का दुखी 
मीत! ऐसा ही निशि-दिन जतन कीजिए 
हाथ थामा अगर छोड़ना फिर नहीं 
दीप-बाती सी मन की लगन कीजिए 
प्रेम करिए, न डरिए किसी से कभी 
श्वास सुधि से सुवासित हवन कीजिए 
काम से काम हो किंतु निष्काम हो 
नाम गुमनाम रख, मन मगन कीजिए 
है बिछौना धरा, हैं दिशाएँ वसन 
आसमां छत प्रकृति को सदन कीजिए 
धूप हो, छाँह हो, शीत हो, घाम हो 
हो न विचलित सलिल, चुप सहन कीजिए
११.९.२०२५
०००
राधा जयंती
आ राधे आराधे तुझको सरला वसुधा कर संतोष।
छाया पा रुचि भक्ति सुनीता, सुमन मुकुल अर्पित जयघोष।।
धारा राधा को उर में, कर लीला लाला अमर हुआ।
सलिल कर रहा पद प्रक्षालन, मिले कृपा है यही दुआ।।
११.९.२०२४
•••
कुण्डलिया
है अनामिका नाम पर खूब कमाया नाम।
रामानुज तनया बनीं प्राध्यापक सरनाम ।।
प्राध्यापक सरनाम नृत्य-संगीत प्रवीणा।
कंठ शारदा-वास, वाक् ज्यों बाजे वीणा।।
'सलिल' करे अभिषेक, कर्मरत रहीं निष्काम।
नाम मिल भरपूर पर, है अनामिका नाम।।
११.९.२०२४
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हिंदी साहित्य की सरस्वती महादेवी जी
*
जन्म और परिवार
महादेवी का जन्म २६ मार्च १९०७ को प्रातः ८ बजे फ़र्रुख़ाबाद उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ। उनके परिवार में लगभग २०० वर्षों या सात पीढ़ियों के बाद पहली बार पुत्री का जन्म हुआ था। अतः बाबा बाबू बाँके विहारी जी हर्ष से झूम उठे और इन्हें कुल की देवी, महादेवी मानते हुए पुत्री का नाम महादेवी रखा। उनके पिता श्री गोविंद प्रसाद वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्राध्यापक थे। उनकी माता का नाम हेमरानी देवी था। हेमरानी देवी बड़ी धर्म परायण, कर्मनिष्ठ, भावुक एवं शाकाहारी महिला थीं। विवाह के समय अपने साथ सिंहासनासीन भगवान की मूर्ति भी लायी थीं। वे प्रतिदिन कई घंटे पूजा-पाठ तथा रामायण, गीता एवं विनय पत्रिका का पारायण करती थीं और संगीत में भी उनकी अत्यधिक रुचि थी। इसके बिल्कुल विपरीत उनके पिता गोविन्द प्रसाद वर्मा सुन्दर, विद्वान, संगीत प्रेमी, नास्तिक, शिकार करने एवं घूमने के शौकीन, मांसाहारी तथा हँसमुख व्यक्ति थे। महादेवी वर्मा के मानस बंधुओं में सुमित्रानंदन पंत, इलाचंद्र जोशी एवं निराला का नाम लिया जा सकता है, जो उनसे जीवन पर्यन्त राखी बँधवाते रहे। निराला जी से उनकी अत्यधिक निकटता थी, उनकी पुष्ट कलाइयों में महादेवी जी लगभग चालीस वर्षों तक राखी बाँधती रहीं।
शिक्षा
महादेवी जी की शिक्षा इंदौर में मिशन स्कूल से प्रारम्भ हुई साथ ही संस्कृत, अंग्रेज़ी, संगीत तथा चित्रकला की शिक्षा अध्यापकों द्वारा घर पर ही दी जाती रही। बीच में विवाह जैसी बाधा पड़ जाने के कारण कुछ दिन शिक्षा स्थगित रही। विवाहोपरान्त महादेवी जी ने १९१९ में क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद में प्रवेश लिया और कॉलेज के छात्रावास में रहने लगीं। १९२१ में महादेवी जी ने आठवीं कक्षा में प्रान्त भर में प्रथम स्थान प्राप्त किया। यहीं पर उन्होंने अपने काव्य जीवन की शुरुआत की। वे सात वर्ष की अवस्था से ही कविता लिखने लगी थीं और १९२५ तक जब उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की, वे एक सफल कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थीं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी कविताओं का प्रकाशन होने लगा था। कालेज में सुभद्रा कुमारी चौहान के साथ उनकी घनिष्ठ मित्रता हो गई। सुभद्रा कुमारी चौहान महादेवी जी का हाथ पकड़ कर सखियों के बीच में ले जाती और कहतीं ― “सुनो, ये कविता भी लिखती हैं”। १९३२ में जब उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम॰ए॰ पास किया तब तक उनके दो कविता संग्रह नीहार तथा रश्मि प्रकाशित हो चुके थे।
वैवाहिक जीवन
सन् १९१६ में उनके बाबा श्री बाँके विहारी ने इनका विवाह बरेली के पास नबाव गंज कस्बे के निवासी श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कर दिया, जो उस समय दसवीं कक्षा के विद्यार्थी थे। श्री वर्मा इण्टर करके लखनऊ मेडिकल कॉलेज में बोर्डिंग हाउस में रहने लगे। महादेवी जी उस समय क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद के छात्रावास में थीं। श्रीमती महादेवी वर्मा को विवाहित जीवन से विरक्ति थी। कारण कुछ भी रहा हो पर श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कोई वैमनस्य नहीं था। सामान्य स्त्री-पुरुष के रूप में उनके संबंध मधुर ही रहे। दोनों में कभी-कभी पत्राचार भी होता था। यदा-कदा श्री वर्मा इलाहाबाद में उनसे मिलने भी आते थे। श्री वर्मा ने महादेवी जी के कहने पर भी दूसरा विवाह नहीं किया। महादेवी जी का जीवन तो एक संन्यासिनी का जीवन था ही। उन्होंने जीवन भर श्वेत वस्त्र पहना, तख्त पर सोईं और कभी शीशा नहीं देखा। सन् १९६६ में पति की मृत्यु के बाद वे स्थाई रूप से इलाहाबाद में रहने लगीं।
महादेवी का रचना संसार
महादेवी जी कवयित्री होने के साथ-साथ विशिष्ट गद्यकार भी थीं। उनकी कृतियाँ इस प्रकार हैं।
१. नीहार (१९३०)
२. रश्मि (१९३२)
३. नीरजा (१९३४)
४. सांध्यगीत (१९३६)
५. दीपशिखा (१९४२)
६. सप्तपर्णा (अनूदित-१९५९)
७. प्रथम आयाम (१९७४)
८. अग्निरेखा (१९९०)
कविता संग्रह
श्रीमती महादेवी वर्मा के अन्य अनेक काव्य संकलन भी प्रकाशित हैं, जिनमें उपर्युक्त रचनाओं में से चुने हुए गीत संकलित किये गये हैं, जैसे आत्मिका, परिक्रमा, सन्धिनी (१९६५), यामा (१९३६), गीतपर्व, दीपगीत, स्मारिका, नीलांबरा और आधुनिक कवि महादेवी आदि।
महादेवी वर्मा का गद्य साहित्य
रेखाचित्र: अतीत के चलचित्र (१९४१) और स्मृति की रेखाएं (१९४३),
संस्मरण: पथ के साथी (१९५६) और मेरा परिवार (१९७२) और संस्मरण (१९८३)
चुने हुए भाषणों का संकलन: संभाषण (१९७४)
निबंध: श्रृंखला की कड़ियाँ (१९४२), विवेचनात्मक गद्य (१९४२), साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध (१९६२), संकल्पिता (१९६९)
ललित निबंध: क्षणदा (१९५६)
कहानियाँ: गिल्लू
संस्मरण, रेखाचित्र और निबंधों का संग्रह: हिमालय (१९६३),
अन्य निबंध में संकल्पिता तथा विविध संकलनों में स्मारिका, स्मृति चित्र, संभाषण, संचयन, दृष्टिबोध उल्लेखनीय हैं। वे अपने समय की लोकप्रिय पत्रिका ‘चाँद’ तथा ‘साहित्यकार’ मासिक की भी संपादक रहीं। हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने प्रयाग में ‘साहित्यकार संसद’ और रंगवाणी नाट्य संस्था की भी स्थापना की।
महादेवी वर्मा का बाल साहित्य
महादेवी वर्मा की बाल कविताओं के दो संकलन छपे हैं।
ठाकुरजी भोले हैं
आज खरीदेंगे हम ज्वाला
डाकटिकट
उन्हें प्रशासनिक, अर्धप्रशासनिक और व्यक्तिगत सभी संस्थाओँ से पुरस्कार व सम्मान मिले।
१९४३ में उन्हें ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ एवं ‘भारत भारती’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद १९५२ में वे उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या मनोनीत की गयीं। १९५६ में भारत सरकार ने उनकी साहित्यिक सेवा के लिये ‘पद्म भूषण’ की उपाधि दी। १९७९ में साहित्य अकादमी की सदस्यता ग्रहण करने वाली वे पहली महिला थीं।[20] 1988 में उन्हें मरणोपरांत भारत सरकार की पद्म विभूषण उपाधि से सम्मानित किया गया।
सन १९६९ में विक्रम विश्वविद्यालय, १९७७ में कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल, १९८० में दिल्ली विश्वविद्यालय तथा १९८४ में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी ने उन्हें डी.लिट की उपाधि से सम्मानित किया।
इससे पूर्व महादेवी वर्मा को ‘नीरजा’ के लिये १९३४ में ‘सक्सेरिया पुरस्कार’, १९४२ में ‘स्मृति की रेखाएँ’ के लिये ‘द्विवेदी पदक’ प्राप्त हुए। ‘यामा’ नामक काव्य संकलन के लिये उन्हें भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ प्राप्त हुआ। वे भारत की ५० सबसे यशस्वी महिलाओं में भी शामिल हैं।
१९६८ में सुप्रसिद्ध भारतीय फ़िल्मकार मृणाल सेन ने उनके संस्मरण ‘वह चीनी भाई’ पर एक बांग्ला फ़िल्म का निर्माण किया था जिसका नाम था नील आकाशेर नीचे।[
१६ सितंबर १९९१ को भारत सरकार के डाकतार विभाग ने जयशंकर प्रसाद के साथ उनके सम्मान में २ रुपए का एक युगल टिकट भी जारी किया है।
कार्यक्षेत्र
महादेवी का कार्यक्षेत्र लेखन, संपादन और अध्यापन रहा। उन्होंने इलाहाबाद में प्रयाग महिला विद्यापीठ के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया। यह कार्य अपने समय में महिला-शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम था। इसकी वे प्रधानाचार्य एवं कुलपति भी रहीं। १९३२ में उन्होंने महिलाओं की प्रमुख पत्रिका ‘चाँद’ का कार्यभार संभाला। १९३० में नीहार, १९३२ में रश्मि, १९३४ में नीरजा, तथा १९३६ में सांध्यगीत नामक उनके चार कविता संग्रह प्रकाशित हुए। १९३९ में इन चारों काव्य संग्रहों को उनकी कलाकृतियों के साथ वृहदाकार में यामा शीर्षक से प्रकाशित किया गया। उन्होंने गद्य, काव्य, शिक्षा और चित्रकला सभी क्षेत्रों में नए आयाम स्थापित किये। इसके अतिरिक्त उनकी १८ काव्य और गद्य कृतियां हैं जिनमें मेरा परिवार, स्मृति की रेखाएं, पथ के साथी, शृंखला की कड़ियाँ और अतीत के चलचित्र प्रमुख हैं। सन १९५५ में महादेवी जी ने इलाहाबाद में साहित्यकार संसद की स्थापना की और पं इलाचंद्र जोशी के सहयोग से साहित्यकार का संपादन संभाला। यह इस संस्था का मुखपत्र था। उन्होंने भारत में महिला कवि सम्मेलनों की नीव रखी। इस प्रकार का पहला अखिल भारतवर्षीय कवि सम्मेलन १५ अप्रैल १९३३ को सुभद्रा कुमारी चौहान की अध्यक्षता में प्रयाग महिला विद्यापीठ में संपन्न हुआ। वे हिंदी साहित्य में रहस्यवाद की प्रवर्तिका भी मानी जाती हैं।महादेवी बौद्ध धर्म से बहुत प्रभावित थीं। महात्मा गांधी के प्रभाव से उन्होंने जनसेवा का व्रत लेकर झूसी में कार्य किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया। १९३६ में नैनीताल से २५ किलोमीटर दूर रामगढ़ कसबे के उमागढ़ नामक गाँव में महादेवी वर्मा ने एक बँगला बनवाया था। जिसका नाम उन्होंने मीरा मंदिर रखा था। जितने दिन वे यहाँ रहीं इस छोटे से गाँव की शिक्षा और विकास के लिए काम करती रहीं। विशेष रूप से महिलाओं की शिक्षा और उनकी आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए उन्होंने बहुत काम किया। आजकल इस बंगले को महादेवी साहित्य संग्रहालय के नाम से जाना जाता है। श्रृंखला की कड़ियाँ में स्त्रियों की मुक्ति और विकास के लिए उन्होंने जिस साहस व दृढ़ता से आवाज़ उठाई हैं और जिस प्रकार सामाजिक रूढ़ियों की निंदा की है उससे उन्हें महिला मुक्तिवादी भी कहा गया। महिलाओं व शिक्षा के विकास के कार्यों और जनसेवा के कारण उन्हें समाज-सुधारक भी कहा गया है। उनके संपूर्ण गद्य साहित्य में पीड़ा या वेदना के कहीं दर्शन नहीं होते बल्कि अदम्य रचनात्मक रोष समाज में बदलाव की अदम्य आकांक्षा और विकास के प्रति सहज लगाव परिलक्षित होता है।
उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद नगर में बिताया। ११ सितंबर १९८७ को इलाहाबाद में रात ९ बजकर ३० मिनट पर उनका देहांत हो गया।
साहित्य में महादेवी वर्मा का आविर्भाव उस समय हुआ जब खड़ीबोली का आकार परिष्कृत हो रहा था। उन्होंने हिन्दी कविता को बृजभाषा की कोमलता दी, छंदों के नये दौर को गीतों का भंडार दिया और भारतीय दर्शन को वेदना की हार्दिक स्वीकृति दी। इस प्रकार उन्होंने भाषा साहित्य और दर्शन तीनों क्षेत्रों में ऐसा महत्त्वपूर्ण काम किया जिसने आनेवाली एक पूरी पीढ़ी को प्रभावित किया। शचीरानी गुर्टू ने भी उनकी कविता को सुसज्जित भाषा का अनुपम उदाहरण माना है। उन्होंने अपने गीतों की रचना शैली और भाषा में अनोखी लय और सरलता भरी है, साथ ही प्रतीकों और बिंबों का ऐसा सुंदर और स्वाभाविक प्रयोग किया है जो पाठक के मन में चित्र सा खींच देता है। छायावादी काव्य की समृद्धि में उनका योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। छायावादी काव्य को जहाँ प्रसाद ने प्रकृतितत्त्व दिया, निराला ने उसमें मुक्तछंद की अवतारणा की और पंत ने उसे सुकोमल कला प्रदान की वहाँ छायावाद के कलेवर में प्राण-प्रतिष्ठा करने का गौरव महादेवी जी को ही प्राप्त है। भावात्मकता एवं अनुभूति की गहनता उनके काव्य की सर्वाधिक प्रमुख विशेषता है। हृदय की सूक्ष्मातिसूक्ष्म भाव-हिलोरों का ऐसा सजीव और मूर्त अभिव्यंजन ही छायावादी कवियों में उन्हें ‘महादेवी’ बनाता है। वे हिन्दी बोलने वालों में अपने भाषणों के लिए सम्मान के साथ याद की जाती हैं। उनके भाषण जन सामान्य के प्रति संवेदना और सच्चाई के प्रति दृढ़ता से परिपूर्ण होते थे। वे दिल्ली में १९८३ में आयोजित तीसरे विश्व हिन्दी सम्मेलन के समापन समारोह की मुख्य अतिथि थीं। इस अवसर पर दिये गये उनके भाषण में उनके इस गुण को देखा जा सकता है।
यद्यपि महादेवी ने कोई उपन्यास, कहानी या नाटक नहीं लिखा तो भी उनके लेख, निबंध, रेखाचित्र, संस्मरण, भूमिकाओं और ललित निबंधों में जो गद्य लिखा है वह श्रेष्ठतम गद्य का उत्कृष्ट उदाहरण है। उसमें जीवन का संपूर्ण वैविध्य समाया है। बिना कल्पना और काव्यरूपों का सहारा लिए कोई रचनाकार गद्य में कितना कुछ अर्जित कर सकता है, यह महादेवी को पढ़कर ही जाना जा सकता है। उनके गद्य में वैचारिक परिपक्वता इतनी है कि वह आज भी प्रासंगिक है।[ञ] समाज सुधार और नारी स्वतंत्रता से संबंधित उनके विचारों में दृढ़ता और विकास का अनुपम सामंजस्य मिलता है। सामाजिक जीवन की गहरी परतों को छूने वाली इतनी तीव्र दृष्टि, नारी जीवन के वैषम्य और शोषण को तीखेपन से आंकने वाली इतनी जागरूक प्रतिभा और निम्न वर्ग के निरीह, साधनहीन प्राणियों के अनूठे चित्र उन्होंने ही पहली बार हिंदी साहित्य को दिये।
मौलिक रचनाकार के अलावा उनका एक रूप सृजनात्मक अनुवादक का भी है जिसके दर्शन उनकी अनुवाद-कृत ‘सप्तपर्णा’ (१९६०) में होते हैं। अपनी सांस्कृतिक चेतना के सहारे उन्होंने वेद, रामायण, थेरगाथा तथा अश्वघोष, कालिदास, भवभूति एवं जयदेव की कृतियों से तादात्म्य स्थापित करके ३९ चयनित महत्वपूर्ण अंशों का हिन्दी काव्यानुवाद इस कृति में प्रस्तुत किया है। आरंभ में ६१ पृष्ठीय ‘अपनी बात’ में उन्होंने भारतीय मनीषा और साहित्य की इस अमूल्य धरोहर के सम्बंध में गहन शोधपूर्ण विमर्ष किया है जो केवल स्त्री-लेखन को ही नहीं हिंदी के समग्र चिंतनपरक और ललित लेखन को समृद्ध करता है।
क. ^ छायावाद के अन्य तीन स्तंभ हैं, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और सुमित्रानंदन पंत।
ख. ^ हिंदी के विशाल मंदिर की वीणापाणी, स्फूर्ति चेतना रचना की प्रतिमा कल्याणी ―निराला
ग. ^ उन्होंने खड़ी बोली हिन्दी को कोमलता और मधुरता से संसिक्त कर सहज मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति का द्वार खोला, विरह को दीपशिखा का गौरव दिया और व्यष्टि मूलक मानवतावादी काव्य के चिंतन को प्रतिष्ठापित किया। उनके गीतों का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। ―निशा सहगल[29]
घ. ^ “इस वेदना को लेकर उन्होंने हृदय की ऐसी अनुभूतियाँ सामने रखी हैं, जो लोकोत्तर हैं। कहाँ तक ये वास्तविक अनुभूतियाँ हैं और कहाँ तक अनुभूतियों की रमणीय कल्पना, यह नहीं कहा जा सकता।” ―आचार्य रामचंद्र शुक्ल
ङ. ^ “महादेवी का ‘मैं’ संदर्भ भेद से सबका नाम है।” सच्चाई यह है कि महादेवी व्यष्टि से समष्टि की ओर जाती हैं। उनकी पीड़ा, वेदना, करुणा और दुखवाद में विश्व की कल्याण कामना निहित है। ―हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
च. ^ वस्तुत: महादेवी की अनुभूति और सृजन का केंद्र आँसू नहीं आग है। जो दृश्य है वह अन्तिम सत्य नहीं है, जो अदृश्य है वह मूल या प्रेरक सत्य है। महादेवी लिखती हैं: “आग हूँ जिससे ढुलकते बिन्दु हिमजल के” और भी स्पष्टता की माँग हो तो ये पंक्तियाँ देखें: मेरे निश्वासों में बहती रहती झंझावात/आँसू में दिनरात प्रलय के घन करते उत्पात/कसक में विद्युत अंतर्धान। ये आँसू सहज सरल वेदना के आँसू नहीं हैं, इनके पीछे जाने कितनी आग, झंझावात प्रलय-मेघ का विद्युत-गर्जन, विद्रोह छिपा है। ―प्रभाकर श्रोत्रिय
छ. महादेवी जी की कविता सुसज्जित भाषा का अनुपम उदाहरण है ―शचीरानी गुर्टू
ज. महादेवी के प्रगीतों का रूप विन्यास, भाषा, प्रतीक-बिंब लय के स्तर पर अद्भुत उपलब्धि कहा जा सकता है। ―कृष्णदत्त पालीवाल
झ. एक महादेवी ही हैं जिन्होंने गद्य में भी कविता के मर्म की अनुभूति कराई और ‘गद्य कवीतां निकषं वदंति’ उक्ति को चरितार्थ किया है। विलक्षण बात तो यह है कि न तो उन्होंने उपन्यास लिखा, न कहानी, न ही नाटक फिर भी श्रेष्ठ गद्यकार हैं। उनके ग्रंथ लेखन में एक ओर रेखाचित्र, संस्मरण या फिर यात्रावृत्त हैं तो दूसरी ओर संपादकीय, भूमिकाएँ, निबंध और अभिभाषण, पर सबमें जैसे संपूर्ण जीवन का वैविध्य समाया है। बिना कल्पनाश्रित काव्य रूपों का सहारा लिए कोई रचनाकार गद्य में इतना कुछ अर्जित कर सकता है, यह महादेवी को पढ़कर ही जाना जा सकता है। ―रामजी पांडेय[33]
ञ. महादेवी का गद्य जीवन की आँच में तपा हुआ गद्य है। निखरा हुआ, निथरा हुआ गद्य है। १९५६ में लिखा हुआ उनका गद्य आज ६५ वर्ष बाद भी प्रासंगिक है। वह पुराना नहीं पड़ा है। ―राजेन्द्र उपाध्याय
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बघेली हाइकु
*
जिनखें हाथें
किस्मत के चाभी
बड़े दलाल
*
आम के आम
नेता करै कमाल
गोई के दाम
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सुशांत-रिया
खबरचियन के
बाप औ' माई
*
लागत हय
लिपा पुता चिकन
बाहेर घर
*
बाँचै किताब
आँसू के अनुबाद
आम जनता
११.९.२०२०
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विमर्श: पुराणों में क्या है???
*
सामान्य धारणा है कि वेद-पुराण-उपनिषद आदि धार्मिक ग्रंथ हैं किंतु वास्तविकता सर्वथा विपरीत है। वस्तुत: इनमें जीवन से जुड़े हर पक्ष विज्ञान, कला, याँत्रिकी, चिकित्सा, सामाजिक, आर्थिक आदि विषयों का विधिवत वर्णन है। अग्नि पुराण में साहित्य से संबंधित कुछ जानकारी निम्नानुसार है।
आग्नेय महापुराण अध्याय ३२८
छंदों के गण और गुरु-लघु की व्यवस्था
"अग्निदेव कहते हैं- वसिष्ठ! अब मैं वेद मन्त्रों के अनुसार पिन्गलोक्त छंदों का क्रमश: वर्णन करूँगा। मगण, नगण, भगण, यगण, जगण, रगण, सगण, और तगण ये ८ गण होते हैं। सभी गण ३-३ अक्षरों के हैं। इनमें मगण के सभी अक्षर गुरु (SSS) और नगण के सब अक्षर लघु होते हैं। आदि गुरु (SII) होने से 'भगण' तथा आदि लघु (ISS) होने से 'यगण' होता है। इसी प्रकार अन्त्य गुरु होने से 'सगण' तथा अन्त्य लघु होने से 'तगण' (SSI) होता है। पाद के अंत में वर्तमान ह्रस्व अक्षर विकल्प से गुरु माना जाता है। विसर्ग, अनुस्वार, संयुक्त अक्षर (व्यंजन), जिव्हामूलीय तथाउपध्मानीय अव्यहित पूर्वमें स्थित होने पर 'ह्रस्व' भी 'गुरु' माना जाता है, दीर्घ तो गुरु है ही। गुरु का संकेत 'ग' और लघु का संकेत 'ल' है। ये 'ग' और 'ल' गण नहीं हैं। 'वसु' शब्द ८ की और 'वेद' शब्द ४ की संज्ञा हैं, इत्यादि बातें लोक के अनुसार जाननी चाहिए। १-३।।
इस प्रकार आदि आग्नेय पुराण में 'छंदस्सार का कथन' नामक तीन सौ अट्ठाईसवाँ अध्याय पूरा हुआ।।३२८।।
*
अध्याय ३२९- गायत्री छंद, अध्याय ३३०- जगती छंद, अध्याय ३३१- वैदिक छंद, अध्याय ३३२- विषम छंद, अध्याय ३३३अर्द्धसमवृत्त छंद, अध्याय ३३४- समवृत्त छंद। अध्याय ३३५- प्रस्तार निरूपण, अध्याय ३३६ शिक्षा निरूपण, अध्याय ३३७ काव्य, अध्याय ३३८ नाटक, अध्याय ३३९ रस, भाव, नायक, अध्याय ३४० रीति, अध्याय ३४१ नृत्य, अध्याय ३४२अभिनय-अलंकार, अध्याय ३४३ शब्दालंकार, अध्याय ३४४ अर्थालंकार, अध्याय ३४५ शब्दार्थोभयालंकार, अध्याय ३४६ काव्य गुण, ३४७ काव्य दोष, अध्याय ३४८ एकाक्षर कोष, अध्याय ३४९ व्याकरण सार, अध्याय ३३८ नाटक, संधि, अध्याय ३५१-३५३ लिंग, अध्याय ३५४ कारक, अध्याय ३५५ समास, अध्याय ३५६ प्रत्यय, अध्याय ३५७ शब्द रूप, अध्याय ३५८ विभक्ति, अध्याय ३५९ कृदंत, अध्याय ३६० स्वर्ग-पाताल, अध्याय ३६१ अव्यय।
अध्याय ३२९- गायत्री आदि छंद।
अध्याय ३३०- जगती, त्रिष्टुप, उष्णिक, ककुप उष्णिक, त्रिपाद अनुष्टुप, बृहती, उरो बृहती, न्यंगुसरणी बृहती, पुरस्ताद बृहती, पंक्ति, सतपंक्ति, आस्तार पंक्ति, संस्तार पंक्ति, अक्षर पंक्ति, पद पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती-ज्योतिष्मती, पुरस्ताज्ज्योति, उपरिष्टाज्ज्योसि, शंकुमती, ककुदमती, यवमध्य छंद।
अध्याय ३३१- वैदिक छंद: उत्कृति, अभिकृति, विकृति, प्रकृति, अधिकृति, धृति, अत्यष्टि, आश्ती, अतिशक्वरि, शक्वरि, अतिजगती। लौकिक छंद: त्रिष्टुप, बृहती, अनुष्टुप, उष्णिक, गायत्री, सुप्रतिष्ठा, प्रतिष्ठा, मध्या, अत्युक्तात्युक्त, आदि छंद। छंद के ३ प्रकार गण छंद, मात्र छंद, अक्षर छंद। छंद का चौथाई भाग पाद या चरण। गण, आर्य, गीति, उपगीति, उद्गीति, आर्यागीति। मात्रा छंद- वैतालीय, औपच्छंदसक, प्राच्य वृत्ति, उदीच्य वृत्ति, प्रवृत्तिक, चारुहासिनी, अपरांतिका, मात्रासमक, वानवसिका, विश्लोक, चित्रा, उपचित्रा, पादाकुवक, गीतयार्या, ज्योति, सौम्या, चूलिका।
अध्याय ३३२- विषम वृत्त: समानी, प्रमाणी, वितान, वक्त्र, अनुश्तुब्वक्त्र, विपुला, पदचतुरुर्ध्व, आपीड़, प्रत्यापीड़, मंजरी, लवली, अमृतधारा, उद्गता, सौरभ, ललित, प्रचुपित, वर्धमान, विराषभ छंद।
अध्याय ३३३अर्द्धसम वृत्त: उपचित्रक, द्रुतमध्या, वेगवती, भद्रविराट, केतुमती, आख्यानिकी, विपरीताख्यानिकी, हरिणप्लुता, अपरवक्त्र, पुष्पिताग्रा, यवमती, शिखा छंद।
अध्याय ३३४- समवृत्त:।
[आभार: कल्याण, अग्निपुराण, गर्ग संहिता, नरसिंहपुराण अंक, वर्ष ४५, संख्या १, जनवरी १९७१, पृष्ठ ५४६, सम्पादक- हनुमान प्रसाद पोद्दार, प्रकाशक गीताप्रेस, गोरखपुर।]
११.९.२०१८
***
स्कन्द पुराण में प्रमुख पाँच खण्ड के साथ साथ अन्य दो खण्ड और है, जिनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
माहेश्वरखण्ड
पहले खण्ड का नाम माहेश्वर खण्ड है, यह परम पवित्र तथा विशाल कथाओं से परिपूर्ण है, इसमें सैकडों उत्तम चरित्र है। माहेश्वर खण्ड के भीतर केदार माहात्मय में पुराण आरम्भ हुआ है, उसमें पहले दक्ष यज्ञ की कथा है, इसके बाद शिवलिंग पूजन का फ़ल बताया गया है, इसके बाद समुद्र मन्थन की कथा और देवराज इन्द्र के चरित्र का वर्णन है, फ़िर पार्वती का उपाख्यान और उनके विवाह का प्रसंग है, तत्पश्चात कुमार स्कन्द की उत्पत्ति और तारकासुर के साथ उनके युद्ध का वर्णन है, फ़िर पाशुपत का उपाख्यान और चण्ड की कथा है, फ़िर दूत की नियुक्ति का कथन और नारदजी के साथ समागम का वृतान्त है, इसके बाद कुमार माहात्म्य के प्रसंग में पंचतीर्थ की कथा है, धर्मवर्मा राजा की कथा तथा नदियों और समुद्रों का वर्ण है, तदनन्तर इन्द्रद्युम्न और नाडीजंग की कथा है, फ़िर महीनदी के प्रादुर्भाव और दमन की कथा है, तत्पश्चात मही साकर संगम और कुमारेश का वृतान्त है, इसके बाद नाना प्रकार के उपाख्यानों सहित तारक युद्ध और तारकासुर के वध का वर्णन है, फ़िर पंचलिंग स्थापन की कथा आयी है, तदनन्तर द्वीपों का पुण्यमयी वर्णन ऊपर के लोकों की स्थिति ब्रह्माण्ड की स्थिति और उसका मान तथा वर्करेशकी कथा है, फ़िर वासुदेव का मात्म्य और कोटितीर्थ का वर्णन है। तदनन्तर गुप्तक्षेत्र में नाना तीर्थों का आख्यान कहा गया है, पाण्डवों की पुण्यमयी कथा और बर्बरीक की सहायता से महाविद्या के साधन का प्रसंग है, तत्पश्चात तीर्थयात्रा की समाप्ति है, तदनन्तर अरुणाचल का माहात्मय है तथा सनक और ब्रह्माजी का संवाद है। गौरी की तपस्या का वर्णन तथा वहां के भिन्न भिन्न तीर्थों का वर्णन है, महिषासुर की कथा और उसके वध का परम अद्भुत प्रसंग कहा गया है।
वैष्णव-खण्ड[संपादित करें]
वैष्णवखण्ड
इसमें पहले भूमि और वाराह भगवान के संवाद का वर्णन है, फ़िर कमला की पवित्र कथा और श्रीनिवास की स्थिति का वर्णन है, तदनन्तर कुम्हार की कथा तथा सुवर्णमुखरी नदी के माहात्मय का वर्णन है, फ़िर अनेक उपाख्यानों से युक्त भरद्वाज की अद्भुत कथा है, इसके बाद मतंग और अंजन के पापनाशक संवाद का वर्णन है, फ़िर उत्कल प्रदेश के पुरुषोत्तम क्षेत्र का माहात्मय कहा गया है, तत्पश्चार मार्कण्डेयजी की कथा, राजा अम्बरीष का वृतान्त, इन्द्रद्युम्न का आख्यान और विद्यापति की शुभ कथा का उल्लेख है। ब्रह्मन ! इसके बाद जैमिनि और नारद का आख्यान है, फ़िर नीलकण्ठ और नृसिंह का वर्णन है, तदनन्तर अश्वमेघ यज्ञ की कथा और राजा आ ब्रह्मलोक में गमन कहा गया है, तत्पश्चात रथयात्रा विधि और जप तथा स्नान की विधि कही गयी है। फ़िर दक्षिणामूर्ति का उपाख्यान और गुण्डिचा की कथा है, रथ रक्षा की विधि और भगवान के शयनोत्सव का वर्णन है, इसके बाद राजा श्वेत का उपाख्यान कहा गय अहै विर पृथु उत्सव का निरूपण है, भगवान के दोलोत्सव तथा सांवत्सरिक व्रत का वर्णन है, तदनन्तर उद्दालक के नियोग से भगवान विष्णु की निष्काम पूजा का प्रतिपादन किया गया है, फ़िर मोक्ष साधन बताकर नाना प्रकार के योगों का निरूपण किया गया है, तत्पश्चात दशावतार की कथा अर स्नान आदि का वर्णन है, इसके बाद बदरिकाश्रम तीर्थ का पाप नाशक माहात्मय बताया गया है, उस प्रसंग में अग्नि आदि तीर्थों और गरुण शिला की महिमा है, वहां भगवान के निवास का कारण बताया गया है। फ़िर कपालमोचन तीर्थ पंचधारा तीर्थ और मेरुसंस्थान की कथा है, तदनन्तर कार्तिक मास का माहात्म्य प्रारम्भ होता है, उसमे मदनालस के माहात्मय का वर्णन है, धूम्रकेशका उपाख्यान और कार्तिक मास में प्रत्येक दिन के कृत्य का वर्णन है, अन्त में भीष्म पंचक व्रत का प्रतिपादन किया गया है, जो भोग और मोक्ष देने वाला है। तत्पश्चात मार्गशीर्ष के माहात्म्य में स्नान की विधि बतायी गयी है, फ़िर पुण्ड्रादि कीर्तन और माला धारण का पुण्य कहा गया है, भगवान को पंचामृत से स्नान करवाने तथा घण्टा बजाने आदि का पुण्यफ़ल बताया गया है। नाना प्रकार के फ़ूलों से भगवत्पूजन का फ़ल और तुलसीदल का माहात्म्य बताया गया है, भगवान को नैवैद्य लगाने की महिमा, एकादशी के दिन कीर्तन अखण्ड एकादसी व्रत रहने का पुण्य और एकादशी की रात में जागरण करने का फ़ल बताया गया है। इसके बाद मत्स्योत्सव का विधान और नाममाहात्म्य का कीर्तन है, भगवान के ध्यान आदि का पुण्य तथा मथुरा का माहात्म्य बताया गया है, मथुरा तीर्थ का उत्तम माहात्मय अलग कहा गया है और वहां के बारह वनों की महिमा वर्णन किया गया है। तत्पश्चात इस पुराण में श्रीमदभागवत के उत्तम माहात्म्य का प्रतिपादन किया गया है इस प्रसंग में बज्रनाभ और शाण्डिल्य के संवाद का उल्लेख किया गया है जो ब्रज की आन्तरिक लीलाओं का प्रशासक है। तदनन्तर माघ मास में स्नान दान और जप करने का माहात्म्य बताया गया है, जो नाना प्रकार के आख्यानों से युक्त है, माघ माहात्म्य का दस अध्यायों में प्रतिपादन किया गया है, तत्पश्चात बैशाख माहात्म्य में शय्यादान आदि का फ़ल कहा गया है, फ़िर जलदान की विधि कामोपाख्यान शुकदेव चर्त व्याध की अद्भुत कथा और अक्षयतृतीया आदि के पुण्य मा विशेष रूप से वर्णन है, इसके बाद अयोध्या माहात्म्य प्रारम्भ करके उसमे चक्रतीर्थ ब्रह्मतीर्थ ऋणमोचन तीर्थ पापमोचन तीर्थ सहस्त्रधारातीर्थ स्वर्गद्वारतीर्थ चन्द्रहरितीर्थ धर्महरितीर्थ स्वर्णवृष्टितीर्थ की कथा और तिलोदा-सरयू-संगम का वर्णन है, तदनन्तर सीताकुण्ड गुप्तहरितीर्थ सरयू-घाघरा-संगम गोप्रचारतीर्थ क्षीरोदकतीर्थ और बृहस्पतिकुण्ड आदि पांच तीर्थों की महिमा का प्रतिपादन किया गया है, तत्पश्चात घोषार्क आदि तेरह तीर्थों का वर्णन है। फ़िर गयाकूप के सर्वपापनाशक माहात्म्य का कथन है, तदननतर माण्डव्याश्रम आदि, अजित आदि तथा मानस आदि तीर्थों का वर्णन किया गया है।
***
मुक्तक
*
जन्म दिवस पर बहुत बधाई
पग-तल तुमने मन्ज़िल पाई
शतजीवी हो, गगन छू सको
खुशियों की नित कर पहुनाई
*
अपनी ख्वाहिश नहीं मरने देना
मन को दुनिया से न डरने देना
हौसलों को बुलंद ही रखना
जी जो चाहे उसे करने देना
११-९-२०१६
***
बुंदेली दोहांजलि
*
जब लौं बऊ-दद्दा जिए, भगत रए सुत दूर
अब काए खों कलपते?, काए हते तब सूर?
*
खूबई तौ खिसियात ते, दाबे कबऊं न गोड़
टँसुआ रोक न पा रए, गए डुकर जग छोड़
*
बने बिजूका मूँड़ पर, झेलें बरखा-घाम
छाँह छीन काए लई, काए बिधाता बाम
*
ए जी!, ओ जी!, पिता जी, सुन खें कान पिराय
'बेटा' सुनबे खों जिया, हुड़क-हुड़क अकुलाय
*
संध्या बंदन कर रए, महाबीर जी मौन
खरे बुंदेला हम भए, करी साधना जौन
*
सब जग भओ असोक जब, भईं बंदना साथ
सीस प्रार्थना को नबा, खुस अनूप जगनाथ
***
मुक्तक:
*
मरघट में है भीड़ पनघट है वीरान
मोल नगद का न्यून है उधार की शान
चमक-दमक की चाह हुई सादगी मौन
सब अपने में लीन किसको पूछे कौन
११-९-२०१४
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कुण्डलिया :
दन्त-पंक्ति श्वेता रहे.....
*
दन्त-पंक्ति श्वेता रहे, सदा आपकी मीत.
मीठे वचन उचारिये, जैसे गायें गीत..
जैसे गायें गीत, प्रीत दुनिया में फैले.
मिट जायें सब झगड़े, झंझट व्यर्थ झमेले..
कहे 'सलिल' कवि, सँग रहें जैसे कामिनी-कंत.
जिव्हा कोयल सी रहे, मोती जैसे दन्त.
११.९.२०११
***

बुधवार, 10 सितंबर 2025

सितंबर १०, सॉनेट, बिटिया, कौन हैं हम?, सॉनेट गीत, श्रौता-वक्ता

सलिल सृजन सितंबर १०
*
सॉनेट गीत 
श्रौता-वक्ता 
० 
मैं श्रोता हूँ, मैँ श्रौता हूँ
वक्ता गण आते-जाते हैं
क्या जाने क्या कह जाते हैं
कर सुना अनसुना सोता हूँ।
हो जहाँ न कुछ मैं होता हूँ
कुछ गर्दभ स्वर में गाते हैं
भाषण दे तनिक न भाते हैं
कर हूट उन्हें मैं धोता हूँ।
पहले सोचो तब ही बोलो
घोलो मौलिकता की मिसरी
महकाओ जग की बगिया को।
जब भी बोलो पहले तोलो
बिखरे न विचारों की गठरी
चहकाओ मन गौरैया को।
० 
मैं वक्ता हूँ, मैँ वक्ता हूँ
श्रोता गण आते-जाते हैं
क्या छोड़ें, क्या ले जाते हैं
दिन-रात बोल नहिं थकता हूँ।
सब सोते तब भी जगता हूँ
पंडित नेता कहलाते हैं
बन प्राध्यापक भरमाते हैं
खुद को खुद ही मैं ठगता हूँ।
चाहो आँखें मूँदो सो लो 
धीरज की बँध जाए ठठरी
लूटो हो जहाँ रुपैया को।
दुनिया हिल जाए मत डोलो 
चुभलाओ नफरत की मठरी
ठेंगा दिखलाता दुनिया को।
१०.९.२०२५
०००
विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर
समन्वय प्रकाशन जबलपुर विश्व
कीर्तिमान धारी पुस्तकें

*हिंदी सॉनेट सलिला*
१. पहला हिंदी सॉनेट साझा संकलन
२. पहला सॉनेट संकलन जिसमें ३२ सॉनेटकार हैं।
३. पहला सॉनेट संकलन जिसमें ३२१ सॉनेट हैं।
हर सॉनेट प्रेमी के लिए पठनीय-संग्रहणीय। २१६ पृष्ठ, बहुरंगी सजिल्द जैकेट युक्त आवरण, उत्तम छपाई, स्तरीय कागज और बँधाई।
सीमित प्रतियाँ। अपनी प्रति तुरंत मँगाने के लिए ९४२५१ ८३२४४ पर भेजिए ५००/-।
पैकिंग-डाक व्यय निशुल्क।

*चंद्र विजय अभियान*
१. हिंदी का पहला काव्य संकलन जिसमें वैज्ञानिक परियोजना पर २६८ कविताएँ हैं।
२. हिंदी का पहला काव्य संकलन जिसमें ५१ भाषा-बोलिओं की रचनाएँ हैं।
३. हिंदी का पहला काव्य संकलन जिसमें ५ देशों के २१७ कवि सम्मिलित हैं।
हर काव्य प्रेमी के लिए पठनीय-संग्रहणीय। ३०० पृष्ठ, बहुरंगी पेपरबैक आवरण, उत्तम छपाई, स्तरीय कागज और बँधाई।
सीमित प्रतियाँ। अपनी प्रति तुरंत मँगाने के लिए ९४२५१ ८३२४४ पर भेजिए ५००/-।
पैकिंग-डाक व्यय निशुल्क।

*फुलबगिया*
१. हिंदी का पहला काव्य संकलन जिसमें १२१ फूलों पर ७७ कवियों की २७० कविताएँ सम्मिलित हैं।
२. हिंदी का पहला काव्य संकलन जिसमें फूलों पर प्रकाशित भारत के ४८ डाक तिकीटों के चित्र हैं।
३. हिंदी का पहला काव्य संकलन जिसमें फूलों पर चित्रपटीय गीतों के मुखड़ों की सूची है।
हर काव्य प्रेमी के लिए पठनीय-संग्रहणीय। ३१८ पृष्ठ, बहुरंगी पेपरबैक आवरण, उत्तम छपाई, स्तरीय कागज और बँधाई।
सीमित प्रतियाँ। अपनी प्रति तुरंत मँगाने के लिए ९४२५१ ८३२४४ पर भेजिए ५००/-।
पैकिंग-डाक व्यय निशुल्क।

*ओ मेरी तुम *
१. हिंदी का पहला काव्य संकलन जिसमें ५३ शृंगार गीत  तथा ५२ हिंदी-बुंदेली सम्मिलित हैं।
हर काव्य प्रेमी के लिए पठनीय-संग्रहणीय। ११२ पृष्ठ, बहुरंगी पेपरबैक आवरण, उत्तम छपाई, स्तरीय कागज और बँधाई।
सीमित प्रतियाँ। अपनी प्रति तुरंत मँगाने के लिए ९४२५१ ८३२४४ पर भेजिए ३००/-।
पैकिंग-डाक व्यय निशुल्क।
*
सॉनेट
कर-कलम

कर कलम थामे समय का सच कहें,
ढहें मत, थिर रहे कोशिश की कशिश,
तपिश हर बदलाव की हँसकर सहें,
हो न जब तक पूर्ण मन में पली विश।
कर कलम को लें बना तलवार झट,
नट न पाएँ रास्ते पग मंजिलें,
काफिले पीछे चलें तू बढ़ सतत,
विगत से ले सीख, आगत से मिलें।
कर कलम कर दें कलम बाधा सभी,
अभी को टालें कभी पर आप मत,
मत-विमत सम्मत व्यवस्था हो सभी,
तभी करतल ध्वनि करें सब रख सुमत।
कर कलम करवाल हो, करताल हो।
कर कलम हड़ताल हो, पड़ताल हो।
१०.९.२०२३
•••
बाल रचना
बिटिया छोटी
*
फ़िक्र बड़ी पर बिटिया छोटी
क्यों न खेलती कन्ना-गोटी?
*
ऐनक के काँचों से आँखें
झाँकें लगतीं मोटी-मोटी
*
इतनी ज्यादा गुस्सा क्यों है?
किसने की है हरकत खोटी
*
दो-दो फूल सजे हैं प्यारे
सर पर सोहे सुंदर चोटी
*
हलुआ-पूड़ी इसे खिलाओ
तनिक न भाती इसको रोटी
*
खेल-कूद में मन लगता है
नहीं पढ़ेगी पोथी मोटी
१०-९-२०१७
***
दोहा सलिला-
तन मंजूषा ने तहीं, नाना भाव तरंग
मन-मंजूषा ने कहीं, कविता सहित उमंग
*
आत्म दीप जब जल उठे, जन्म हुआ तब मान
श्वास-स्वास हो अमिय-घट, आस-आस रस-खान
*
सत-शिव-सुंदर भाव भर, रचना करिये नित्य
सत-चित-आनन्द दरश दें, जीवन सरस अनित्य
*
मिले नकार नकार को, स्वीकृत हो स्वीकार।
स्नेह स्नेह को दीजिए, सके प्रहार प्रहार।।
***
एक रचना
कौन हैं हम?
*
कौन हैं हम?
देह नश्वर,
या कि हैं आत्मा चिरन्तन??
*
स्नेह सलिला नर्मदा हैं।
सत्य-रक्षक वर्मदा हैं।
कोई माने या न माने
श्वास सारी धर्मदा हैं।
जान या
मत जान लेकिन
मित्र है साहस-प्रभंजन।
कौन हैं हम?
देह नश्वर,
या कि हैं आत्मा चिरन्तन??
*
सभ्यता के सिंधु हैं हम,
भले लघुतम बिंदु हैं हम।
गरल धारे कण्ठ में पर
शीश अमृत-बिंदु हैं हम।
अमरकंटक-
सतपुड़ा हम,
विंध्य हैं सह हर विखण्डन।
कौन हैं हम?
देह नश्वर,
या कि हैं आत्मा चिरन्तन??
*
ब्रम्हपुत्रा की लहर हैं,
गंग-यमुना की भँवर हैं।
गोमती-सरयू-सरस्वति
अवध-ब्रज की रज-डगर हैं।
बेतवा, शिव-
नाथ, ताप्ती,
हमीं क्षिप्रा, शिव निरंजन।
कौन हैं हम?
देह नश्वर,
या कि हैं आत्मा चिरन्तन??
*
तुंगभद्रा पतित पावन,
कृष्णा-कावेरी सुहावन।
सुनो साबरमती हैं हम,
सोन-कोसी-हिरन भावन।
व्यास-झेलम,
लूनी-सतलज
हमीं हैं गण्डक सुपावन।
कौन हैं हम?
देह नश्वर,
या कि हैं आत्मा चिरन्तन??
*
मेघ बरसे भरी गागर,
करी खाली पहुँच सागर।
शारदा, चितवन किनारे-
नागरी लिखते सुनागर।
हमीं पेनर
चारु चंबल
घाटियाँ हम, शिखर- गिरिवन
कौन हैं हम?
देह नश्वर,
या कि हैं आत्मा चिरन्तन??
१०-९-२०१६
***
गीत
कौन?
*
कौन रचेगा राम-कहानी?
कौन कहेगा कृष्ण-कथाएँ??
खुशियों की खेती अनसिंचित,
सिंचित खरपतवार व्यथाएँ।
*
खेत
कारखाने-कॉलोनी
बनकर, बिना मौत मरते हैं।
असुर हुए इंसान,
न दाना-पानी खा,
दौलत चरते हैं।
वन भेजी जाती सीताएँ,
मन्दिर पुजतीं शूर्पणखाएँ।
कौन रचेगा राम-कहानी?
कौन कहेगा कृष्ण-कथाएँ??
*
गौरैयों की देखभाल कर
मिली बाज को जिम्मेदारी।
अय्यारी का पाठ रटाती,
पैठ मदरसों में बटमारी।
एसिड की शिकार राधाएँ
कंस जाँच आयोग बिठाएँ।
कौन रचेगा राम-कहानी?
कौन कहेगा कृष्ण-कथाएँ??
*
रिद्धि-सिद्धि, हरि करें न शिक़वा,
लछमी पूजती है गणेश सँग।
'ऑनर किलिंग' कर रहे दद्दू
मूँछ ऐंठकर, जमा रहे रंग।
ठगते मोह-मान-मायाएँ
घर-घर कुरुक्षेत्र-गाथाएँ।
कौन रचेगा राम-कहानी?
कौन कहेगा कृष्ण-कथाएँ??
*
हर कर्तव्य तुझे करना है,
हर अधिकार मुझे वरना है।
माँग भरो, हर माँग पूर्ण कर
वरना रपट मुझे करना है।
देह मात्र होतीं वनिताएँ
घर को होटल मात्र बनाएँ।
कौन रचेगा राम-कहानी?
कौन कहेगा कृष्ण-कथाएँ??
*
दोष न देखें दल के अंदर,
और न गुण दिखते दल-बाहर।
तोड़ रहे कानून बना, सांसद,
संसद मंडी-जलसा घर।
बस में हो तो साँसों पर भी
सरकारें अब टैक्स लगाएँ।
कौन रचेगा राम-कहानी?
कौन कहेगा कृष्ण-कथाएँ??
*****
९-८-२०१६
गोरखपुर दंत चिकित्सालय
जबलपुर
*

सोमवार, 8 सितंबर 2025

सितंबर ८, मुक्तिका, तेवरी, शहर, हाइकु, सॉनेट, चाँद, सरस्वती

सलिल सृजन सितंबर ८
*
शारद माँ का रूप सुहाना लगता है २२ 
सत-शिव-सुंदर नाद अनाहद सजता है  
नीर-क्षीर मति लेकर राजहंस पुलकित 
चरण शरण पा हर्षित-हुलसित रहता है 
श्वेत वसन गौरांगी सरस्वती माता 
मैया के कर में सितार सज बजता है  
निराकार-साकार बिंदु-रेखा तुम ही  
नाद-ताल भाषा-अक्षर तम हरता है   
अनल अनिल भू गगन सलिल में संजीवित 
कृपा दृष्टि पाने जनगण-मन भजता है 
००० 
गीत 
लाजवंती 
० 
लाजवंती! हो कहाँ तुम
खोजते हैं नैन?
० 
ज़िंदगी की बंदगी करती रहीं 
छुई-मुई हे! तारती तरती रहीं। 
मार पाया काल भी तुमको नहीं-
दे परीक्षा मौत खुद वरती रहीं। 
बिन तुम्हारे विष्णु-शिव 
विधि अधूरे-बेचैन
लाजवंती! हो कहाँ तुम
खोजते हैं नैन?
० 
अग्नि में दह क्यों परीक्षा दी कहो?१    
चीर हरने दिया क्यों पीड़ा तहो।२  
बाँध पग में राइफल कर क्रांति दो३-
शक्ति खुद हो शक्ति बिन आगे न हो।   
घूमते बेफिक्र एसिड डाल जो न उनको 
मिले पल भर चैन 
लाजवंती! हो कहाँ तुम
खोजते हैं नैन?
०   
मोह में पड़ सत्य मत भूलो
वासना झूला नहीं झूलो। 
रहे ममता हृदय में पर हाथ 
शस्त्र थामे दुष्ट-हृद हूलो। 
रमा-शारद-शक्ति युग अनुरूप 
यथोचित बोलो हमेशा बैन 
लाजवंती! हो कहाँ तुम
खोजते हैं नैन?
० 
१ सीता जी, २ द्रौपदी, ३ दुर्गा भाभी। भगवतीचरण वोहरा की पत्नी, लाहौर कांड के बाद भागात सिंह की पत्नी के रूप में पैरों में राइफल बाँध कर भागने में सहायक हुईं।
८.९.२०२५  
०००  
 
                    लाजवंती को आमतौर पर "छू-छू" पौधे के रूप में जाना जाता है। इसे आमतौर पर उच्च सजावटी मूल्य का पौधा माना जाता है और इसका उपयोग विभिन्न औषधीय प्रयोजनों के लिए भी किया जाता है। लाजवंती अपने एंटीऑक्सीडेंट गुणों के कारण इंसुलिन के स्राव को बढ़ाकर रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करती है। यह मूत्र संबंधी समस्याओं के लिए उपयोगी है क्योंकि यह अपने मूत्रवर्धक गुण के कारण मूत्र उत्पादन को बढ़ाती है। लाजवंती मिर्गी के प्रबंधन में भी मदद कर सकती है क्योंकि इसमें ऐंठनरोधी गुण होते हैं। आप इसके एंटीऑक्सीडेंट और रोगाणुरोधी गुणों के कारण घाव को जल्दी भरने के लिए लाजवंती के लेप का उपयोग कर सकते हैं। यह अपने सूजनरोधी गुणों के कारण घावों से संबंधित दर्द और सूजन को कम करने में भी मदद करती है। आयुर्वेद के अनुसार, लाजवंती अपने सीता (शीतल) और कषाय (कसैले) गुणों के कारण बवासीर के प्रबंधन में मदद कर सकती है। 
                    लाजवंती के समानार्थी शब्द मिमोसा पुडिका, समांगा, वराक्रांता, नमस्कारकारी, लजुबिलाटा, अदामालती, लजाका, लज्जावंती, टच-मी-नॉट, रिसामणि, लजावंती, लजामनी, छुइमुई, लजौनी, मुत्तिदसेनुई, माचिकेगिडा, लज्जावती, थोट्टा वटी, लजालू, लजाकुरी, लजाना, थोट्टावाडी, टोटलचुरुंगी, मुदुगुदमारा आदि हैं। 
लाजवंती के फायदे
बवासीर
                    बवासीर, जिसे आयुर्वेद में अर्श के रूप में जाना जाता है, अस्वास्थ्यकर आहार और गतिहीन जीवन शैली के कारण होता है। इससे तीनों दोषों, मुख्य रूप से वात और पित्त दोषों की हानि होती है, जिसके परिणामस्वरूप पाचन अग्नि कम होती है और अंततः लगातार कब्ज होता है। इससे मलाशय क्षेत्र में नसों में सूजन और बवासीर का विकास होता है। लाजवंती का लेप या मलहम अपने सीता (शीतल) और कषाय (कसैले) गुणों के कारण जलन या खुजली की स्थिति से राहत पाने के लिए बवासीर के मस्सों पर लगाया जा सकता है।
माइग्रेन
                    माइग्रेन एक ऐसी स्थिति है जो पित्त दोष के बढ़ने के कारण होती है। लाजवंती का लेप अपने पित्त संतुलन गुण के कारण माइग्रेन से राहत प्रदान करने के लिए माथे पर लगाया जाता है ।
लाजवंती का पेस्ट-  कुछ ताज़ा लाजवंती के पत्ते लें। पत्तों को पीसकर पेस्ट बना लें। चिकना पेस्ट बनाने के लिए आप इसमें थोड़ा पानी भी मिला सकते हैं।  घाव या सूजन पर इस पेस्ट को लगाने से घाव जल्दी भर जाता है।
८.९.२०२५ 
०००      
सॉनेट
चले चाँद की ओर १
जय जय सोमनाथ की कहकर,
चले चांँद की ओर साथ मिल,
इसरो जा रॉकेट से बँधकर,
फुर्र उड़ें, चंदा है मंजिल।
चंद्रमुखी पथ हेर रही है,
आते हैं हम मत घबराना,
जाने कब से टेर रही है,
बने चाँद ही नया ठिकाना।
मत रोको टोको जी हमको,
चलना है काँधे पर बैठो,
ट्रैफिक पुलिस ने हमसे दमड़ी,
मिल पाएगी एकउ तुमको।
मोदी जी-राहुल जी आओ,
ये दिल मांँगे मोर दिलाओ।।
८-९-२०२३
•••
चले चाँद की ओर २
आएँ सॉनेटवीरों! आप, चलें आप भी साथ
इस दल का हो या उस दल का; नेता का ले नाम
मनमानी करते हैं हम सब चलें उठाकर माथ
डरते नहीं पुलिस से लाठी का न यहाँ कुछ काम
घरवाली थी चंद्रमुखी अब सूर्यमुखी विकराल
सात सात जन्मों को बाँधे इसीलिए हम भाग
चले चाँद की ओर बजाए घर पर बैठी गाल
फुर्र हो रहे हम वह चाहे जितनी उगले आग
चीन्ह न पाए इसीलिए तो हम ढाँकें हैं मुखड़ा
चलें मून शिव-शक्ति वहीं पर छान रहे हैं भाँग
दुर्घटना है ताने सुनना, किसे सुनाएँ दुखड़ा
छह के कंधे पर छह बैठें, नहीं अड़ाएँ टाँग
सॉनेट सलिला के सब साथी व्यंजन लाएँ खूब
खाकर अमिधा और लक्षणा में गपियाएँ डूब
८-९-२०२३
***
सॉनेट
थोथा चना
*
थोथा चना; बाजे घना
मनमानी मन की बातें
ठूँठ सरीखा रहता तना
अपनों से करता घातें
बने मिया मिट्ठू यह रोज
औरों में नित देखे दोष
करा रहा गिद्धों को भोज
दोनों हाथ लुटाए कोष
साइकिल पंजा हाथी फूल
संसद में करते हैं मौज
जनता फाँक रही है धूल
बोझ बनी नेता की फ़ौज
यह भौंका; वह गुर्राया
यह खीझा, वह टर्राया
८-९-२०२२
*
हिन्दी के बारे में विद्वानों के विचार
सी.टी.मेटकॉफ़ ने १८०६ ई.में अपने शिक्षा गुरु जॉन गिलक्राइस्ट को लिखा-
'भारत के जिस भाग में भी मुझे काम करना पड़ा है,कलकत्ता से लेकर लाहौर तक,कुमाऊं के पहाड़ों से लेकर नर्मदा नदी तक मैंने उस भाषा का आम व्यवहार देखा है,जिसकी शिक्षा आपने मुझे दी है। मैं कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक या जावा से सिंधु तक इस विश्वास से यात्रा करने की हिम्मत कर सकता हूं कि मुझे हर जगह ऐसे लोग मिल जाएंगे जो हिन्दुस्तानी बोल लेते होंगे।'
टॉमस रोबक ने १८०७ ई.में लिखा-
'जैसे इंग्लैण्ड जाने वाले को लैटिन सेक्सन या फ़्रेंच के बदले अंग्रेजी सीखनी चाहिए,वैसे ही भारत आने वाले को अरबी-फारसी या संस्कृत के बदले हिन्दुस्तानी सीखनी चाहिए।'
विलियम केरी ने १८१६ ई. में लिखा-
'हिन्दी किसी एक प्रदेश की भाषा नहीं बल्कि देश में सर्वत्र बोली जाने वाली भाषा है।'
एच.टी. केलब्रुक ने लिखा-
'जिस भाषा का व्यवहार भारत के प्रत्येक प्रान्त के लोग करते हैं,जो पढ़े-लिखे तथा अनपढ़ दोनों की साधारण बोलचाल की भाषा है,जिसको प्रत्येक गांव में थोड़े बहुत लोग अवश्य ही समझ लेते हैं, उसी का यथार्थ नाम हिन्दी है।'
८-९-२०२२
***
लेख :
श्वास-प्रश्वास की गति ही गीत-नवगीत
*
भाषा का जन्म
प्रकृति के सानिंध्य में अनुभूत ध्वनियों को स्मरण कर अभिव्यक्त करने की कला और सामर्थ्य से भाषा का जन्म हुआ। प्राकृतिक घटनाओं वर्ष, जल प्रवाह, तड़ित, वायु प्रवाह था जीव-जंतुओं व पशु-पक्षियों की बोली कूक, चहचहाहट, हिनहिनाहट, फुँफकार, गर्जन आदि में अन्तर्निहित ध्वनि-खंडों को स्मरण रखकर उनकी आवृत्ति कर मनुष्य ने अपने सहयोगियों को संदेश देना सीखा। रुदन और हास ने उसे रसानुभूति करने में समर्थ बनाया। ध्वनिखंडों की पुनरावृत्ति कर श्वास-प्रश्वास के आरोह-अवरोह के साथ मनुष्य ने लय की प्रतीति की। सार्थक और निरर्थक ध्वनि का अंतर कर मनुष्य ने वाचिक अभिव्यक्ति की डगर पर पग रखे। अभिव्यक्त को स्थाई रूप से संचित करने की चाह ने ध्वनियों के लिए संकेत निर्धारण का पथ प्रशस्त किया, संकेतों के अंकन हेतु पटल, कलम और स्याही या रंग का उपयोग कर मनुष्य ने कालांतर में चित्र लिपियों और अक्षर लिपियों का विकास किया। अक्षरों से शब्द, शब्द से वाक्य बनाकर मनुष्य ने भाषा विकास में अन्य सब प्राणियों को पीछे छोड़ दिया।
भाषा की समझ
वाचिक अभिव्यक्ति में लय के कम-अधिक होने से क्रमश: गद्य व पद्य का विकास हुआ। नवजात शिशु मनुष्य की भाषा, शब्दों के अर्थ नहीं समझता पर वह अपने आस-पास की ध्वनियों को मस्तिष्क में संचित कर क्रमश: इनका अर्थ ग्रहण करने लगता है। लोरी सुनकर बच्चा लय, रस और भाव ग्रहण करता है। यही काव्य जगत में प्रवेश का द्वार है। श्वास-प्रश्वास के आरोह-अवरोह के साथ शिशु लय से तादात्म्य स्थापित करता है जो जीवन पर्यन्त बन रहता है। यह लय अनजाने ही मस्तिष्क में छाकर मन को प्रफुल्लित करती है। मन पर छह जाने वाली ध्वनियों की आवृत्ति ही 'छंद' को जन्म देती है। वाचिक व् लौकिक छंदों में लघु-दीर्घ उच्चार का संयोजन होता है। इन्हे पहचान और गईं कर वर्णिक-मात्रिक छंद बनाये जाते हैं।
गीत - नवगीत का शिल्प और तत्व
गीति काव्य में मुखड़े अंतरे मुखड़े का शिल्प गीत को जन्म देता है। गीत में गीतकार की वैयक्तिक अनुभूतियों की अभिव्यक्ति होती है। गीत के अनिवार्य तत्व कथ्य, लय, रस, बिम्ब, प्रतीक, भाषा शैली आदि हैं। वर्ण संख्या, मात्रा संख्या, पंक्ति संख्या, पद संख्या, अलंकार, मिथक आदि आवश्यकतानुसार उपयोग किये जाते हैं। गीत सामान्यत: नवगीत से अधिक लंबा होता है।
लगभग ७० वर्ष पूर्व कुछ गीतकारों ने अपने गीतों को नवगीत कहा। गत सात दशकों में नवगीत की न तो स्वतंत्र पहचान बनी, न परिभाषा। वस्तुत: गीत वृक्ष का बोनसाई की तरह लघ्वाकारी रूप नवगीत है। नवगीत का शिल्प गीत की ही तरह मुखड़े और अंतरे का संयोजन है। मुखड़े और अंतरे में वर्ण संख्या, मात्रा संख्या, पंक्ति संख्या आदि का बंधन नहीं होता। मुखड़ा और अंतरा में छंद समान हो सकता है और भिन्न भी। सामान्यत: मुखड़े की पंक्तियाँ सम भारीय होती है। अंतरे की पंक्तियाँ मुखड़े की पंक्तियों के समान अथवा उससे भिन्न सम भार की होती हैं। सामान्यत: मुखड़े की पंक्तियों का पदांत समान होता है। अंतरे के बाद एक पंक्ति मुखड़े के पदभार और पड़ंत की होती है जिसके बाद मुखड़ा दोहराया जाता है।
गीत - नवगीत में अंतर
गीत कुल में जन्मा नवगीत अपने मूल से कुछ समानता और कुछ असमानता रखता है। दोनों में मुखड़े-अंतरे का शिल्प समान होता है किन्तु भावाभिव्यक्ति में अन्तर होता है। गीत की भाषा प्रांजल और शुद्ध होती है जबकि नवगीत की भाषा में देशज टटकापन होता है। गीतकार कथ्य को अभिव्यक्त करते समय वैयक्तिक दृष्टिकोण को प्रधानता देता है जबकि नवगीतकार सामाजिक दृष्टिकोण को प्रमुखता देता है। गीत में आलंकारिकता को सराहा जाता है, नवगीत में सरलता और स्पष्टता को। नवगीतकारों का एक वर्ग विसंगति, विडम्बना, टकराव, बिखराव, दर्द और पीड़ा को नवगीत में आवश्यक मंटा रह है किन्तु अब यह विचार धारा कालातीत हो रही है। मेरे कई नवगीत हर्ष, उल्लास, श्रृंगार, वीर, भक्ति आदि रसों से सिक्त हैं। कुमार रवींद्र, पूर्णिमा बर्मन, निर्मल शुक्ल, धनंजय सिंह, गोपाल कृष्ण भट्ट 'आकुल', जय प्रकाश श्रीवास्तव, अशोक गीते, मधु प्रधान, बसंत शर्मा, रविशंकर मिश्र, प्रदीप शुक्ल, शशि पुरवार, संध्या सिंह, अविनाश ब्योहार, भावना तिवारी, कल्पना रामानी , हरिहर झा, देवकीनंदन 'शांत' आदि अनेक नवगीतकारों के नवगीतों में सांस्कृतिक रूचि और सकारात्मक ऊर्जा का प्राधान्य है। पूर्णिमा बर्मन ने भारतीय पर्वों, पेड़-पौधों और पुष्पों पर नवगीत लेखन कराकर नवगीत को विसंगतिपरकता के कठमुल्लेपन से निजात दिलाने में महती भूमिका निभाई है।
नवगीत का नया कलेवर
साम्यवादी वैचारिक प्रतिबद्धता के नाम पर सामाजिक विघटन, टकराव और द्वेषपरक नकारात्मकता से सामाजिक समरसता को क्षति पहुँचा रहे नवगीतकारों ने समाज-द्रोह को प्रोत्साहित कर परिवार संस्था को अकल्पनीय क्षति पहुँचाई है। नवगीत हे इन्हीं लघुकथा, व्यंग्य लेख आदि विधाओं में भी यह कुप्रवृत्ति घर कर गयी है। नवगीत ने नकारात्मकता का सकारात्मकता से सामना करने में पहल की है। कुमार रवींद्र की अप्प दीपो भव, पूर्णिमा बर्मन की चोंच में आकाश, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' की काल है संक्रांति का और सड़क पर, देवेंद्र सफल की हरापन बाकी है, आचार्य भगवत दुबे की हिरन सुगंधों के, जय प्रकाश श्रीवास्तव की परिंदे संवेदनाओं के, अशोक गीते की धूप है मुंडेर की आदि कृतियों में नवाशापरक नवगीत संभावनाओं के द्वार खटखटा रहे हैं।
नवगीत अब विसंगति का ढोल नहीं पीट रहा अपितु नव निर्माण, नव संभावनाओं, नवोत्कर्ष की राह पर पग बढ़ा रहा है। नवगीत के आवश्यक तत्व सम-सामयिक कथ्य, सहज भाषा, स्पष्ट कथन, कथ्य को उभार देते प्रतीक और बिंब, सहज ग्राह्य शैली, लचीला शिल्प, लयात्मकता, छांदसिकता। लाक्षणिकता, व्यंजनात्मकता और जमीनी जुड़ाव हैं। आकाश कुसुम जैसी कल्पनाएँ नवगीत के लिए उपयुक्त नहीं हैं। क्लिष्ट भाषा नवगीत के है। नवगीत आम आदमी को लक्ष्य मानकर अपनी बात कहता है। नवगीत प्रयोगधर्मी काव्य विधा है। कुमार रवींद्र ने बुद्ध के जीवन से जुड़े पात्रों के माध्यम से एक-एक नवगीत कहकर प्रथम नवगीतात्मक प्रबंध काव्य की रचना की है। इन पंक्तियों के लेखक है संक्रांति का में नवगीत में शारद वंदन, फाग, सोहर आदि लोकगीतों की धुन, आल्हा, सरथा, दोहा आदि छंदों प्रयोग प्रथमत: किया है। पूर्णिमा बर्मन ने भारतीय सांस्कृतिक प्रतीकों को नवगीतों में बखूबी पिरोया है।
नवगीत के तत्वों का उल्लेख करते हुए एक रचना की कुछ पंक्तियाँ देखें-
मौन तजकर मनीषा कह बात अपनी
नव्यता संप्रेषणों में जान भरती
गेयता संवेदनों का गान करती
तथ्य होता कथ्य का आधार खाँटा
सधी गति-यति अंतरों का मान बनती
अंतरों के बाद मुखड़ा आ विहँसता
छंदहीना नई कविता क्यों सिरजनी
सरलता-संक्षिप्तता से बात बनती
मर्मबेधकता न हो तो रार थांती
लाक्षणिकता, भाव, रस,रूपक सलोने
बिम्ब टटकापन सजती नाचता
नवगीत के संग लोक का मन
ताल-लय बिन बेतुकी क्यों रहे कथनी?
नवगीत का भविष्य तभी उज्जवल होगा जब नवगीतकार प्रगतिवाद की आड़ में वैचारिक प्रतिबद्धता के नाम पर समाप्तप्राय राजनैतिक विचारधारा के कठमुल्लों हुए अंध राष्ट्रवाद से तटस्थ रहकर वैयक्तिकता और वैश्विकता, स्व और सर्व के मध्य समन्वय-संतुलन स्थापित करते हुए मानवीय जिजीविषा गुंजाते सकारात्मकता ऊर्जा संपन्न नवगीतों से विश्ववाणी हिंदी के रचना कोष को समृद्ध करते रहें।
८-९-२०२०
***
हाइकु सलिला
*
हाइकु करे
शब्द-शब्द जीवंत
छवि भी दिखे।
*
सलिल धार
निर्मल निनादित
हरे थकान।
*
मेघ गरजा
टप टप मृदंग
बजने लगा।
*
किया प्रयास
शाबाशी इसरो को
न हो हताश
*
जब भी लिखो
हमेशा अपना हो
अलग दिखो।
***
मुक्तिका
अपना शहर
*
अपना शहर अपना नहीं, दिन-दिन पराया हो रहा।
अपनत्व की सलिला सुखा पहचान अपनी खो रहा।।
मन मैल का आगार है लेकिन नहीं चिंता तनिक।
मल-मल बदन को खूब मँहगे सोप से हँस धो रहा।।
था जंगलों के बीच भी महफूज, अब घर में नहीं।
वन काट, पर्वत खोद कोसे ईश को क्यों, रो रहा।।
थी बेबसी नंगी मगर अब रईसी नंगी हुई।
है फूल कुचले फूल, सुख से फूल काँटे बो रहा।।
आती नहीं है नींद स्लीपिंग पिल्स लेकर जागता
गद्दे परेशां देख तनहा झींक कहता सो रहा।।
संजीव थे, निर्जीव नाते मर रहे बेमौत ही
संबंध को अनुबंध कर, यह लाश सुख की ढो रहा।।
सिसकती लज्जा, हया बेशर्म खुद को बेचती।
हाय! संयम बिलख आँसू हार में छिप पो रहा।।
८-९-२०१९
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दोहा
गोविन्द गुस्सा कब हुआ, कोई सके न जान
जौहर करे न जौहरी, क्या उपमा-उपमान
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मुक्तिका:
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तेवर बिन तेवरी नहीं, ज्यों बिन धार प्रपात
शब्द-शब्द आघात कर, दे दर्दों को मात
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तेवरीकार न मौन हो, करे चोट पर चोट
पत्थर को भी तोड़ दे, मार लात पर लात
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निज पीड़ा सहकर हँसे, लगा ठहाके खूब
तम का सीना फाड़ कर, ज्यों नित उगे प्रभात
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हाथ न युग के जोड़ना, हाथ मिला दे तोड़
दिग्दिगंत तक गुँजा दे, क्रांति भरे नग्मात
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कंकर को शंकर करे, तेरा दृढ़ संकल्प
बूँद पसीने के बने, यादों की बारात
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चाह न मन में रमा की, सरस्वती है इष्ट
फिर भी हमीं रमेश हैं, राज न चाहा तात
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ब्रम्ह देव शर्मा रहे, क्यों बतलाये कौन?
पांसे फेंकें कर्म के, जीवन हुआ बिसात
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लोहा सब जग मान ले, ऐसी ठोकर मार
आडम्बर से मिल सके, सबको 'सलिल' निजात
८-९-२०१५
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