- *- : विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर : -*
- ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१
- *- : अखिल भारतीय दिव्य नर्मदा अलंकरण २०२३-२४ : -*
- [सकल अलंकरण राशि १ लाख रुपए* से अधिक]
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विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर द्वारा अखिल भारतीय दिव्य नर्मदा अलंकरण २०२३-२४ हेतु हिंदी में स्तरीय लेखन को प्रोत्साहित करने हेतु साहित्य, यांत्रिकी, चिकित्सा, कृषि, प्रबंधन, कंप्यूटर, वाणिज्य, उद्योग, पर्यटन, व्यवसाय, कला, संगीत, नृत्य, चित्रकारी, तथा अन्य सभी विधाओं में प्रविष्टियाँ आमंत्रित की जा रही हैं। श्रेष्ठ प्रविष्टियों के रचनाकारों ३० अलंकरणों में एक लाख रुपए से अधिक की नगद धनराशि, पदक तथा अलंकरण पत्र, पुस्तकोपहार आदि प्रदान कर सम्मानित किया जाएगा। इस हेतु हिंदी में लिखित, गत ५ वर्षों में प्रकाशित पुस्तकों की प्रविष्टियाँ (पुस्तक की २ प्रतियाँ, पुस्तक तथा लेखक संबंधी संक्षिप्त विवरण, संस्थान के नियम व निर्णय मान्य होने का सहमति पत्र) आदि संयोजक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', सभापति, विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान, ४०१, विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१ के पते पर आमंत्रित हैं। प्रति प्रविष्टि सहभागिता निधि ३०० रु., वाट्सऐप ९४२५१ ८३२४४ पर भेजें। कला क्षेत्र में शिक्षण तथा अन्य जमीनी कार्यों से जुड़े प्रविष्टिकार गत ५ वर्षों की गतिविधियों के प्रामाणिक विवरण भेज सकते हैं।
अचयनित प्रविष्टिकारों को सम्मान पत्र वाट्स एप से भेजें जाएँगे। प्रविष्टि प्राप्ति हेतु अंतिम तिथि ३० जुलाई २०२४ है। सहभागिता निधि वाट्सऐप ९४२५१८३२४४ पर भेज कर अपने नाम व वाट्स एप क्रमांक सहित स्नैप शॉट भेजिए। संस्था के सदस्य बनकर किसी प्रिय / पूज्य जन की स्मृति में अलंकरण स्थापित करने, संस्था की ईकाई आरंभ करने, पुस्तक प्रकाशित कराने, भूमिका / समीक्षा लिखाने, पांडुलिपि संशोधित कराने, कार्यशाला आयोजित करने आदि सुविधाओं का लाभ लेने हेतु चलभाष ९४२५१८३२४४ पर संपर्क कीजिए। पुस्तकोपहार में अपनी पुस्तकें भेंट करने के इच्छुक रचनाकार पुस्तकें उक्त पते पर १० अगस्त तक भेजें।
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*- : विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर : -*
६१. द़ेर है
६२. परीक्षा
६३. मुट्ठी से रेत
६४. समरसता
६५. ओवर टाइम
६६. उत्सव १
६७. गुलामी का अनुबंध
६८. उत्तराधिकारी
६९. सहिष्णुता
७०. मुझे जीने दो
७१. खरीददार
७९. थोड़ा सा चन्द्रमा
८०. नाम का प्यार
८१. गुलगुले
८२. जरा सी गिरह
८३. चन्द्र ग्रहण
८४. रिश्ते
८५. प्यार ही प्यार
'नहीं, ऐसा मत करना, माफ़ कर दो मैं जोर से चिल्लाया और आँख खुल गयी।'
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३-३-२०१६

कुछ वर्ष बाद किंचित उत्सुकता के साथ वह प्रतीक्षा कर रही थी आगंतुकों की। समय पर अतिथि पधारे, स्वल्पाहार के शिष्टाचार के साथ चर्चा आरंभ हुई: 'बिटिया! आप नौकरी करेंगी?'
मैंने जितना अध्ययन किया है, देश ने उसकी सुविधा जुटाई, मेरे ज्ञान और योग्यता का उपयोग देश और समाज के हित में होना चाहिए- उसने कहा।
लेकिन घर और परिवार भी तो.…
आप ठीक कहते हैं, परिवार मेरी पहली प्राथमिकता है किन्तु उसके साथ-साथ मैं कुछ अन्य कर सकी तो घर और अगली पीढ़ी के विकास में सहायक होना चाहूँगी।
तुम मांसाहारी हो या शाकाहारी?
मैं शाकाहारी हूँ, मेरे साथ बैठा व्यक्ति शालीनतापूर्वक जो चाहे खाये मुझे आपत्ति नहीं किंतु मैं क्या खाती पहनती हूँ यह मेरी पसंद होगी।
ऐसा तो सभी लड़कियाँ कहती हैं पर बाद में नये माहौलके अनुसार बदल जाती हैं। मेरी बड़ी बहू भी शाकाहारी थी पर बेटे ने उसके मना करने पर भी मुँह से लगा-खिला कर उसे माँसाहारी बना दिया। आगन्तुका अब उसके पिताश्री की ओर उन्मुख हुईं और पूछा: आपके यहाँ क्या रस्मो-रिवाज़ होते हैं?
अन्य स्वजातीय परिवारों की तरह हमारे यहाँ भी सभी रस्में की जाती हैं. आपको स्वागत में कोई कमी नहीं मिलेगी, निश्चिन्त रहिए। पिताजी ने उत्तर दिया।
मेरे बड़े बेटे की शादी में यह-यह हुआ था। बेंगलुरु से गोरखपुर एक व्यक्ति का जाने-आने का वायुयान किराया ही १५,००० रु.है। ८ लोगों का बार-बार आना-जाना, हमारे धनी-मानी संबंधी-मित्र आदि का आथित्य, बड़े बेटे को कार और मकान मिला … इश्वर ने हमें सब कुछ दिया है, आप अपनी बेटी को जो चाहें दें, हमें आपत्ति नहीं है।
बहुत देर से बेचैन हो रही वह बोल पड़ी: आई आई टी जैसे संस्थान में पढ़ने और ३० लाख रुपये सालाना कमाने के बाद भी जिसे दूसरों के आगे हाथ पसारने में शर्म नहीं आती, जो अपने माँ-बाप को अपना सौदा करते देख चुप रहता है, मुझे ऐसे भिखारी को अपना जीवनसाथी नहीं बनाना है। मैं ठुकराती हूँ तुम्हारा प्रस्ताव, और आप दोनों उम्र में मुझसे बहुत बड़े हैं पर आपकी सोच बहुत छोटी है। आपने अपने लड़कों को कमाऊ बैल तो बना दिया पर अच्छा आदमी नहीं बना सके। आपमें मुझ जैसी बहू पाने की योग्यता नहीं है। आपकी बातचीत मैंने रिकॉर्ड कर ली है कहिए तो थाने में रिपोर्ट कर आप सबको बंद करा दूँ। आप ने सुना नहीं, पिता जी ने बताया था कि मुझे कोई गलत बात सहन नहीं होती, मैं हूँ गाइड।
२३-१०-२०१५
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२१. समाज का प्रायश्चित्य
शहर में विषम परिस्थितियों से जूझते हुए एक-दूसरे का संबल बनकर उन्होंने राष्ट्रीय दलों में चयनित होकर प्रसिद्धि प्राप्त की। संयोगवश उस खेल की अंतर्राष्ट्रीय स्पर्ध उनके अपने जिले में आयोजित थी। न चाहते हुए भी उन्हें राष्ट्रीय दलों में होने के कारण जाना ही पड़ा। स्टेशन पर दल के उतरते ही उनकी दृष्टि उस बैनर पर पड़ी जिए पर उनके बड़े-बड़े चित्रों के साथ स्वागत और गाँव को उन पर गर्व होने का नारा अंकित था।बड़े-बड़े पुष्पहार लेकर उनका स्वागत कर सेल्फी लेने की होड़ में सम्मिलित थे वे सब जो कभी उनकी जान के दुश्मन बने थे। वे समझ नहीं पा रहे थे कि यह स्वागत व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए था या समाज का प्रायश्चित्य।
१०-३-२०१६
२१. समाज का प्रायश्चित्य२२. शुद्ध आचरण
खिसियाये पंडित से जंजीर वापिस लेते हुए सेठानी ने मोटी दक्षिणा देकर प्रणाम किया और रिक्शेवाले से घर तक पहुँचाने के लिये २५ रुपये की जगह १५ रुपये देने के लिये झिकझिक करने लगीं।
मंदिर में विराजे भगवान को पुजारी द्वारा की जा रही सेवा और सेठानी द्वारा की जा रही भक्ति के स्थान पर प्रसन्नता दे रहा था रिक्शेवाले का शुद्ध आचरण।
१०-३-२०१६
२१. समाज का प्रायश्चित्य२२. शुद्ध आचरण२३. गरम आँसू
चेहरे पर गिरती अश्रु-बूँदों से उसकी नीद खुल गयी, सास को चुपाते हुए कारण पूछा तो उसने कहा- 'बहुरिया! मोय लला से माफी दिला दे रे!मैंने बापे सक करो. परोस का चुन्ना कहत हतो कि लला की आँखें कौनौ से लर गयीं, तुम नें मानीं मने मोरे मन में संका को बीज पर गओ. सिव जी के दरसन खों गई रई तो पंडत जी कैत रए बिस्वास ही फल देत है, संका के दुसमन हैं संकर जी. मोरी सगरी पूजा अकारत भई'
''नई मइया! ऐसो नें कर, असगुन होत है. तैं अपने मोंडा खों समझत है. मन में फिकर हती सो संका बन खें सामने आ गई. भली भई, मो खों असीस दे सुहाग सलामत रहे.''
एक दूसरे की बाँहों में लिपटी सास-बहू में माँ-बेटी को पाकर मुस्कुरा रहे थे गरम आँसू।
९-३-२०१६
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२४. दबा हुआ आवेश
पति ने हाथ थामते हुए दरवाज़ा बंद किया और कहा 'ऐसा तो मैंने कभी सोचा भी नहीं, कहने की बात तो दूर। हमेशा समझाता हूँ, माँ ने सारी उम्र जिन बातों पर विश्वास किया है आखिरी समय में उसे कैसे छोड़ सकती है? बहस कर उसका मन दुखाने की जगह, जितना सहजता से हो सके उसके अनुसार कर दो, बाकी छोड़ दो। लो पहले पानी पियो, फिर जो जी चाहे करना।
पानी पीते-पीते, पानी-पानी हो गई थी वह, दिन भर बाद लौटे पति से चाय-पानी पूछने की जगह माँ की शिकायत करते हुए उलझ पड़ी। माँ के कहने से शिव पूजन करने के बाद फलाहार ग्रहण कर लेती तो क्या हो जाता?
'चलो, दोनों जनी आ जाओ फलाहार करने' पति का स्वर सुन चैतन्य हुई वह, झेंपती हुई माँ के कमरे में जाते-जाते सोचा- 'अब से माँ की बात ही मान लूँगी, अब कभी मुझ पर हावी नहीं हो सकेगा मन का आवेश।
७-३-२०१६
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२५. भय की रात
गाँव की सड़क, खटारा बस में खड़े-खड़े उसके पैर दुःख रहे थे किन्तु आँखों में घूम रहा था बच्चे का चेहरा। जिला मुख्यालय पहुँचते तक आँधी-पानी ने घेर लिया और और आगे नाले में बाढ़ आ जाने का समाचार मिला। गनीमत यह कि कुछ देर बाद रेल मिल सकती थी। भीगती-भागती वह रिक्शे से रेलवे स्टशन पहुँची। आधी रात के बाद अपने शहर पहुँची सुनसान स्टेशन पर जिस और नज़र जाती भय की अनुभूति होती।
अपना शहर पराया लगाने लगा, एक और से लड़खड़ाते हुए दो आदमियों को आते देख उसकी जान निकलने लगी। चलभाष पर पति से संपर्क न हो सका। खुद को कोस रही थी वह। कुछ गडबड हुई तो कैसे घर पहुंचेगी? क्या कहेगी सबसे कि बिना सूचना दिये क्यों चल पड़ी अकेली?कोई लेने आये भी तो कैसे? चलभाष नहीं लगा तो भी वह जान-बूझकर ऊँची आवाज़ में बोलती रही ताकि आनेवाले समझें की किसी से बात हो रही है।
पति ने अनुमान किया की बात पूरी न हो सकी, कहीं वह आने का प्रयास न कर रही हो और वे अस्बके मन करने पर भी, बरसते पानी की परवाह किये बिना दौड़ते-भागते स्टेशन पहुँच ही गये। पति के आते ही लिपट गयी वह, जैसे किसी मुसीबत से मुक्ति मिली। घर पहुँच बच्चे को दुलारते हुए उसे भूल चुकी थी भय की रात।
७-३-२०१६
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२६. मान-मनुहार
मन में उफनता आक्रोश नियंत्रित कर उसने चलभाष उठाया, जिलाधिकारी को स्थिति की जानकारी दे तत्काल हस्तक्षेप का अनुरोध किया और इसके पहले कि कोई कुछ समझे वह तेज चाल से पहुँच गयी दरवाजे पर। पिताजी को सम्हालते हुए निर्णय सुनाया कि वह विवाह नहीं करेगी, बाराती वापिस जा सकते हैं।
बारातियों ने पाँसा पलटते देखा तो उनके पैरों तले से जमीन खिसकने लगी,खाली हाथ बारात लौटने पर बहुत बदनामी होगी। समाज के लोगों ने बीच-बचाव करते हुए बात सम्हालने की कोशिश की पर वह टस से मस न हुई। आखिरकार वर स्वयं उसे मनाने आया किंतु उसने मुँह फेर लिया। आत्म सम्मान के आगे बेअसर हो चुकी थी मान-मनुहार।
७-३-२०१६
२७. नया साल
२८. फल
'काहे नहीं देगा अब एइकि मोंडी जो ब्याहबे खों है'. -दूसरे ने कहा
२८-२-२०१६
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३०. घर
बर्बाद हो चुके एक परिवार की झोपड़ी पहुँचते ही छोटी सी बच्ची ने मुँह पर दरवाजा बंद करते हुए कहा 'आरक्षण की भीख चाहनेवालों के लिये यहाँ आना मना है। यह संसद नहीं, भारत के नागरिक का घर है।
२९-२-२०१६
३१. स्वतंत्रता
यही कि हमने उगायी है अविश्वास की फसल चौपाल पर हो रही चर्चा सरपंच को देखते ही थम गयी, वक्ता गण देने लगे आरक्षण के पक्ष में तर्क, दबंग सरपंच के हाथ में बंदूक को देख चिथड़ों में खुद को ढाँकने का असफल प्रयास करती सिसकती रह गयी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ।
२९-२-२०१६
३२. कानून के रखवाले
यदि ऐसी दुर्घटना प्रचार न किया जाए तो वह चंद क्षणों में चंद लोगों के बीच अपनी मौत आप न मर जाए? हम देश विरोधियों पर कठोर कार्यवाही न कर उन्हें प्रचारित-प्रसारित कर उनके प्रति आकर्षण बढ़ाने में मदद क्यों करते हैं? गद्दार कौन है नासमझी या बहकावे में एक बार गलती करने वाले या उस गलती का करोड़ गुना प्रसार कर उसकी वृद्धि में सहायक होने वाले?
१४-२-२०१६
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३४. संदेश और माफी
कुछ दिन बाद एक मित्र ने पूछा आप लघु कथा के आयोजन में नहीं पधारे? वे चुप्पी लगा गये, कैसे कहते कि जब से निधि दी तब से किसी ने रचना लेने, आमंत्रित करने या संपर्क साधने योग्य ही नहीं समझा।
२१-२-२०१६
३६. निरुत्तर
पीढ़ियाँ गुजर गयीं जापान, इंग्लॅण्ड और रूस की प्रशंसा करते इस गीत को गाते सुनते, आज भी उपयोग की वस्तुओं पर जापान, ब्रिटेन, इंग्लैण्ड, चीन आदि देशों के ध्वज बने रहते हैं उनके प्रयोग पर किसी प्रकार की आपत्ति किसी को नहीं होती। ये देश हमसे पूरी तरह भिन्न हैं, इंग्लैण्ड ने तो हमको गुलाम भी बना लिया था। लेकिन अपने आसपास के ऐसे देश जो कल तक हमारा ही हिस्सा थे, उनका झंडा फहराने या उनकी जय बोलने पर आपत्ति क्यों उठाई जाती है? पूछा एक शिष्य ने, गुरु जी थे निरुत्तर।
१३-२-२०१६
३७. विधान
कुछ दिनों बाद बेटी का विवाह बहुत अरमनों से किया उन्होंने। कुछ दिनों बाद बेटी को अकेला देहरी पर खड़ा देखकर उनका माथा ठनका, पूछा तो पता चला कि वह अपनी सास से परेशान होकर लौट आयी फिर कभी न जाने के लिये। इससे पहले कि वे बेटी से कुछ कहें बहू अपनी ननद को अन्दर ले गयी और वे सोचती रह गयीं कि यह विधि का विधान है या शिक्षा-विधान?
९-१-२०१६
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३८. जीत का इशारा
उसने माँ के चहरे की खोटी हुई चमक और पिता की बेबसी का अनुमान कर अगले सवेरे औटो उठाया और चल पड़ी स्टेशन की ओर। कुछ देर बाद माँ जागी, उसे घर पर न देख अनुमान किया मंदिर गयी होगी। पिता के उठते ही उनकी परिचर्या के बाद तक वह न लौटी तो माँ को चिंता हुई, बाहर निकली तो देखा औटो भी नहीं है।
बीमार पति से क्या कहती?, नन्हें बेटे को जगाकर पडोसी को बुलाने का विचार किया। तभी एकदम निकट हॉर्न की आवाज़ सुनकर चौंकी। पलट कर देख तो उन्हीं का ऑटो था। ऑटो लेकर भागने वाले को पकड़ने के लिए लपकीं तो ठिठक कर रह गयीं, चालक के स्थान पर बैठी बेटी कर रही थी जीत का इशारा।
१०-१-२०१६
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३९. यह स्वप्न कैसा?
नहीं भाई! अभी तक सरकारी दौरा कर रहा था इसलिए सरकारी वाहन का उपयोग किया, अब निजी काम से जाना है इसलिए सरकारी वाहन और चालक छोड़कर अपने निजी वाहन में बैठा हूँ और इसे खुद चलाकर जा रहा हूँ अगर मैं जन प्रतिनिधि होते हुए सरकारी सुविधा का दुरूपयोग करूँगा तो दूसरों को कैसे रोकूँगा?
सोच रहा हूँ जो कभी साकार न हो सके वह स्वप्न कैसा?
१२-१-२०१६
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४० सहारे की आदत
१०-१-२०१६
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४१.चेतना शून्य
१२-१-२०१६
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४२. अनजानी राह
इसके पहले कि कोशिश हार मानती, कहीं से आवाज़ आयी 'चली आओ'। कौन हो सकता है इस बवंडर के बीच आवाज़ देनेवाला? कान अधिकाधिक सुनने के लिये सक्रिय हुए, पैर सम्हाले, हाथों ने सहारा तलाशा, सर उठा और चुनौती को स्वीकार कर सम्हल-सम्हल कर बढ़ चला उस ओर जहाँ बाँह पसारे पथ हेर रही थी अनजानी राह।
१४-१-२०१६
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४३. रफ्तार
जश्न मनाने के बहाने हरिया को जमकर पिलाई और बिटिया के फेरे अपने निकम्मे शराबी बेटे से करने का वचन ले लिया। उसने नकारा तो पंचायत बुला ली गयी जिसमें ठाकुर के चमचे ही पञ्च थे जिन्होंने धार्मिक पाखंड की बेडी उसके पैर में बाँधने वरना जात बाहर करने का हुक्म दे दिया।
उसके अपनों और सपनों पर बिजली गिर पड़ी। उसने हार न मानी और रातों-रात दद्दा को भेज महापंचायत करा दी जिसने पंचायत का फैसला उलट दिया। ठाकुर के खिलाफ दबे मामले उठने लगे तो वह मन मसोस कर बैठ रहा।
उसने धार्मिक पाखंड, सामाजिक दबंगई और आर्थिक शोषण के त्रिकोण से जूझते हुए भी फिर दे दी अपने सपनों को रफ्तार।
१४-१-२०१६
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४४. सफ़ेद झूठ
कारण पूछने पर बोला- '१८५७ से लेकर १९४६ में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के अज्ञातवास में जाने तक क्रांतिकारियों ने आत्म-बलिदान की अनवरत श्रंखला की अनदेखी कर ब्रिटेन संसद सदस्यों से में प्रश्न उठवानेवालों को शत-प्रतिशत श्रेय देना सत्य से परे है।
सत्यवादिता के दावेदार के जन्म दिन पर कैसे सहन किया जा सकता है सफ़ेद झूठ?
२३-१-२०१६
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४५. जनसेवा
अत:, इस राशि का ९०% भाग नये कराधान कर सरकार के खजाने में डालकर विधायकों का वेतन-भत्ता आदि दोगुना कर दिया जाए, जनता तो नाम मात्र की राहत पाकर भी खुश हो जाएगी। विरोधी दल भी विधान सभा में भत्ते बढ़ाने का विरोध नहीं कर सकेगा।
ऐसा ही किया गया और नेतागण दत्तचित्त होकर कर रहे हैं जनसेवा।
३०-१-२०१६
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४६. जैसे को तैसा
४७. स्थानांतरण
भतीज बहू की बात सुनकर चाची ने कहा 'तुम चिंता मत करो, बहू के साथ पढ़ा एक दोस्त वही परिवार सहित रहता है। उसके घर कुछ दिन रहेगी, फिर मकान खोजकर यहाँ से सामान बुला लेगी। बीच-बीच में आती-जाती रहेगी। बेटा बिस्तर से न लगा होता तो साथ जाता। उसके पैर का प्लास्टर एक माह बाद खुलेगा, फिर २-३ माह में चलने लायक होगा।'
'ज़माने का क्या है? भला कहता नहीं, बुरा कहने से चूकता नहीं। समय नहीं मनुष्य भले-बुरे होते हैं। अपन भले तो जग भला.… बहू पढ़ी-लिखी समझदार है। हम सबको एक-दूसरे का भरोसा है, फिर फ़िक्र क्यों?
माँ की बात सुनकर स्थानांतरण आदेश पाकर परेशान श्रीमती जी के अधरों पर मुस्कान झलकी, अभी तक मैं उन्हें हिम्मत बँधा रहा था कि किसी न किसी प्रकार साथ जाऊँगा। अब वे बोल रही थीं आपके जाने की जरूरत नहीं, आप सब यहाँ रहेंगे तो बच्चों को स्कूल नहीं छोड़ना होगा। वहाँ अच्छे स्कूल नहीं हैं। मैं सब कर लूँगी। आप अपना और बच्चों का ध्यान रखना, समय पर दवाई लेना। माँ ने साथ चलने को कहा तो बोलीं आप यहाँ रहेंगी तो मुझे इन सबकी चिंता न होगी। मैं आपकी बहू हूँ, सब सम्हाल लूँगी।
मैं अवाक देख रहा था विचारों का स्थानन्तरण।
२४-१-२०१६
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४८. संक्रांति
१५-१-२०१६
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४९. भारतीय
= मैं? भारतीय।
१९-१-२०१६
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_ हे इंसान! मेरा पिंड छोड़ तो चैन की साँस ले सकूँ।
१९-१-२०१६
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४१.चेतना शून्य४२. अनजानी राह४३. रफ्तार४४. सफ़ेद झूठ४५. जनसेवा४६. अँगूठा४७. स्थानांतरण४८. संक्
भोजन काल में मैं एक वरिष्ठ साहित्यकार से भेंट करने उनके निवास पर जा ही रहा था कि हरयाणा से पधारे अन्य साहित्यकार भी साथ हो लिये। राह में उन्हें आप बीती बताई- 'कई वर्ष पहले व्यापार में लगातार घाटे से परेशं होकर मैंने आत्महत्या का निर्णय लिया और रेल स्टेशन पहुँच गया, रेलगाड़ी एक घंटे विलंब से थी। मरता क्या न करता प्लेटफ़ॉर्म पर टहलने लगा। वहां गीताप्रेस गोरखपुर का पुस्तक विक्रय केंद्र खुला देख तो समय बिताने के लिये एक किताब खरीद कर पढ़ने लगा। किताब में एक दृष्टान्त को पढ़कर न जाने क्या हुआ, वापिस घर आ गया। फिर कोशिश की और सफलता की सीढ़ियाँ चढ़कर आज सुखी हूँ। व्यापार बेटों को सौंप कर साहित्य रचता हूँ। शायद इसे पढ़कर कल कोई और मौत के दरवाजे से लौट सके। भोजन छोड़कर आपको आते देख रुक न सका, आप जिनसे मिलाने जा रहे हैं, उन्हीं की पुस्तक ने मुझे नवजीवन दिया।
साहित्यिक सत्र की चर्चा से हो रही खिन्नता यह सुनते ही दूर हो गयी। प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता? सत्य सामने था कि साहित्य का असर आज भी बरकरार है, इसीलिये आदमी जिंदा है।
३१-१२-२०१५
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५४. बेदाग़
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उच्च शिक्षा में प्रवेश के लिए उससे पूर्व की परीक्षा में उतीर्ण होना पर्याप्त होते हुए भी शासन-प्रशासन ने मिलकर प्रवेश परीक्षा का प्रावधान कर दिया। जनतंत्र में जनमत की अभिव्यक्ति करते जनविरोध की अनदेखी कर परीक्षा थोप दी गयी और मरता क्या न करता की लोकोक्ति को क्रियान्वित करते किशोर परीक्षा देने लगे। क्रमश: परीक्षा में गडबडी की खबरें फैलने लगीं। हाथ कंगन को आरसी क्या? परीक्षा में न बैठनेवाले भी उत्तीर्ण होकर चिकित्सक बनने लगे तो जाँच आयोग का गठन करने के लिए सरकार बाध्य हो गयी।
जाँच प्रक्रिया आगे बढ़ने के साथ ही गवाहों के मरने की गति बढ़ती गयी। अंतत:, गवाहों की मौतों की जाँच आरम्भ कर दी गयी जिसने सभी मौतों को स्वाभाविक बताने में देर नहीं की गयी। जितने नेता और अफसर कारावास भेजे गए थे उन्हें शिकायत का स्पर्श हुए बिना बेदाग़ घोषित कर दिया गया.
१०-१-२०१६
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५५. हवा का रुख
रोज सवेरे पड़ोस से धाराप्रवाह गालियों और बद्दुआओं को सुनकर हमें कभी शर्म, कभी क्रोध हो आता पर वह सफे डीडी सड़ी पहने चुप-चाप काम करते रहती मानो बहरी हो।
आज अखबार खोलते ही चौंका उसकी चित्र और पी.एस.सी.में चयन का समाचार था। बधाई देने जाऊँ तो मूंड़ मुंडाते ओले न पड़ जाएँ। सोच ही रहा था कि कुछ पत्रकार उसे खोजते हुए पहुँच गए। पहले तो डुकरो सबको भगाती रही पर जब पूरी बात समझ में आई तो अपनी बहू को दुर्गा ,लक्ष्मी, सरस्वती और म जाने काया-क्या कहकर उसका गुण बखानने लगी। सयानी थी, देर न लगाई पहचानने में हवा का रुख।
७-१-२०१६
५६. गुलामी का अनुबंध
इसमें नया भी कुछ नहीं है. उनके चचाजान ने भी अपने पिता की उम्र के नेता के हाथों जूते पहने थे. गुलामी के सबसे बड़ा अनुबंध उनकी दादी ने आपातकाल लगाकर किया था. युवराज अपने पुरखों के नक़्शे-कदम पर चलें तो परिणाम भी याद रखें।
१०-१२-२०१५
५७. मोल
आज एक बड़े अधिकारी के आवास पर गया तो उनकी श्रीमती जी कबाड़ी को रद्दी देते हुए वज़न और भाव को लेकर बहस कर रही थी, मेरी ओर देखकर बोली- 'ठीक कह रही हूँ न?' मुझे सौजन्यता वश हामी भरनी ही पड़ी, तभी नज़र कबाड़ी की तराजू पर पड़ी, उसमें कई अन्यों के साथ रखी थी वही पुस्तक।
२७-१२-२०१५
५८. मूक दर्शक
भोज के बाद जहाँ-तहाँ फ़ैली गन्दगी के साथ-साथ सद्य विमोचित कृति की कुछ प्रतियाँ मुँह बिसूरती हुई सी बनी हुई थीं आयोजन की मूक दर्शक।
२७-१२-२०१५
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५९. विरासत
आतिथि ने उनकी जानकारी पर संतोष व्यक्त करते हुए पुस्तकालय प्रभारी से जानना चाहा कि गत २ वर्षों में कितनी पुस्तकें क्रय की गयीं, विद्यार्थियों ने कितनी पुस्तकें पढ़ने हेतु लीं तथा किन पुस्तकों की माँग अधिक थी? उत्तर मिला इस वर्ष क्रय की गयी पुस्तकों की आदित जांच नहीं हुई है, गत वर्ष खरीदी गयी पुस्तकें दी नहीं जा रहीं क्योंकि विद्यार्थी या तो विलम्ब से वापिस करते हैं या पन्ने फाड़ लेते हैं.
नदी में बहते पानी की तरह पुस्तकालय से प्रतिदिन पुस्तकों का आदान-प्रदान न हो तो उसका औचित्य और सार्थकता ही क्या है? तब तो वह किताबों का कब्रस्तान ही हो जायेगा, अतिथि बोले और आगे चल दिए.
२८-१२-२०१५
६१. द़ेर है
अनेक साहित्यकार मित्र प्रकाशक जी द्वारा शोषण के कई प्रसंग बता चुके थे। आज उल्टा होता देख सोचा रहा हूँ देर है अंधेर नहीं।
७-१२-२०१५
६२. परीक्षा
पर्यवेक्षक के नाते परीक्षार्थियों से पूछा कौन सा प्रयोग कर रहे हैं? कुछ ने उत्तर पुस्तिका से पढ़कर दिया, कुछ मौन रह गये। परिचय पत्र माँगने पर कुछ बाहर भागे और अपने बस्तों में से निकालकर लाये, कुछ की जेब में थे।जो बिना किसी परिचय पत्र के थे उन्हें परीक्षा नियंत्रक के कक्ष में अनुमति पत्र लेने भेजा। कुतूहलवश कुछ प्रयोग पुस्तिकाएँ उठाकर देखीं किसी में नाम अंकित नहीं था, कोई अन्य महाविद्यालय के नाम से सुसज्जित थीं, किसी में जाँचने के चिन्ह या जाँचकर्ता के हस्ताक्षर नहीं मिले।
प्रभारी से चर्चा में उत्तर मिला 'दस हजार वेतन में जैसा पढ़ाया जा सकता है वैसा ही पढ़ाया गया है. ये पाठ्य पुस्तकों नहीं कुंजियों से पढ़ते हैं, अंग्रेजी इन्हें आती नहीं है, हिंदी माध्यम है नहीं। शासन से प्राप्त छात्रवृत्ति के लोभ में पात्रता न होते हुए भी ये प्रवेश ले लेते हैं। प्रबंधन इन्हें प्रवेश न दे तो महाविद्यालय बंद हो जाए। हम इन्हें मदद कर उत्तीर्ण न करें तो हम पर अक्षमता का आरोप लग जाएगा। आप को तो कुछ दिनों पर्यवेक्षण कर चला जाना है, हमें यहीं काम करना है। आजकल विद्यार्थी नहीं प्राध्यापक की होती है परीक्षा कि वह अच्छा परिणाम देकर नौकरी बचा पाता है या नहीं?
७-१२-१५
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६३. मुट्ठी से रेत
यह तो होना ही है, जब मैंने आरम्भ में उसे रोक था तो तुम्हीं झगड़ने लगीं थीं कि मैं दकियानूस हूँ, अब लडकियों की आज़ादी का ज़माना है। अब क्या हुआ, आज़ाद करो और खुश रहो।
दोनों अवाक, मुठ्ठी से फिसल चुकी थी रेत।
७-१२-२०१५
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६४. समरसता
कुछ दिनों बाद जनप्रतिनिधियों ने प्रशासनिक अधिकारियों की कार्य कुशलता की प्रशंसा कर अपने वेतन भत्ते कई गुना अधिक बढ़ा लिये।
अगली बैठक में अभियंताओं और प्राध्यापकों पर हो रहे व्यय को अनावश्यक मानते हुए सेवा निवृत्ति से रिक्त पदों पर नियुक्तियाँ न कर दैनिक वेतन के आधार पर कार्य कराने का निर्णय सर्व सम्मति से लिया गया और स्थापित हो गयी समरसता।
७-१२-२०१५
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६५. ओवर टाइम
६-१२-२०१५
६६. उत्सव १
क्या करूँ मजबूर हूँ?
कैसी मजबूरी?
दल की नीति जनमत की विरोधी है. मैं दल का उम्मीदवार था, चुने जाने के बाद मुझे संसद में वही कहना पड़ेगा जो दल चाहता है.
अरे! तब तो दल का प्रत्याशी बनने का अर्थ बेदाम का गुलाम होना है, उम्मीदवार क्या हुए जैसे गुलामी का अनुबंध कर लिया हो.
२-१२-२०१५
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६८. उत्तराधिकारी
अध्यक्षता कर रही मंदोदरी ने उन्हें शांत होने की हिदायत दी तो मतभेदों के दशानन और दलीय स्वार्थों के मेघनाथ ने साथ मिलकर मेजें थपथपाना आरम्भ कर दिया।
स्थिति को नियंत्रण से बाहर होते देख राम ने सुविधाओं के सत्ताभिषेक की घोषणा कर दी। तत्काल एकत्र हो गये विभीषण के उत्तराधिकारी
१-१२-२०१५ ।
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६९. सहिष्णुता
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कुछ सोच तेजी से चल पड़ा घर की ओर, वह डबडबाई आँखों से उसी को चिंता में परेशान थी, जैसे ही उसे अपने सामने देखा, राहत की साँस ली. चार आँखें मिलीं तो आँखें चार होने में देर न लगी.
दोनों ने एक-दुसरे का हाथ थामा और पहुँच गये वहीं जहाँ अनेकता में एकता का सन्देश दे नहीं, जी रहे थे वे सब जिन्हें अल्पबुद्धि जीव कहते हैं वे सब जो पारस्परिक विविधता के प्रति नहीं रख पा रहे अपने मन में सहिष्णुता।
६-१२-२०१५
७०. मुझे जीने दो
१-१२-२०१५
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७१. खरीददार
देखा एक कोने में मेहनत,ईमानदारी और लगन मुँह लटकाये बैठे थे. मैंने हालचाल पूछा तो समवेत स्वर में बोले आज फिर भूखा रहना होगा कोई नहीं है हमारा खरीददार।
१-१२-२०१५
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७२. निर्माण
कहिये क्या चल रहा है? कार्यों की प्रगति कैसी है? पूछा गया। जिलाध्यक्ष कार्यालय में बैठक में जानकारी दी थी मैंने बताया। महोदय ने कहा आपके संभाग में इतनी योजनाओं के लिए इतने करोड़ रुपये स्वीकृत कराये हैं, आपको समझना चाहिए, मिलना चाहिए। मेरे समर्थन के बिना कोई मेरे क्षेत्र में नहीं रह सकता। मेरे कारण ही आपको कोई तकलीफ नहीं हुई जबकि लोग कितनी शिकायतें करते हैं।
मैंने धन्यवाद दे निवेदन किया कि निर्माण कार्यों की गुणवत्ता देखना मेरा कार्य है, इससे जुडी कोई शिकायत हो तो बतायें अथवा मेरे साथ भ्रमण कर स्वयं कार्य देख लें। विभाग के सर्वोच्च अधिकारी तथा जाँच अधिकारी कार्यों की प्रगति तथा गुणवत्ता से संतुष्ट हैं। केंद्र और राज्य की योजनाओं में उपलब्ध राशि के लिए सर्वाधिक प्रस्ताव भेजे और स्वीकृत कराये गये हैं, कार्यालय में किसी ठेकेदार की कोई निविदा या देयक लंबित नहीं है। पारिवारिक स्थितियों के कारण मैं कार्यालय संलग्न रहना चाहता हूँ।
काम तो आपका ठीक है। भोपाल में भी आपके काम की तारीफ सुनी है पर हम लोगों का भी आपको ध्यान रखना चाहिए, वे बोले।
मैंने निवेदन किया कि आपका सहयोग इसी तरह कर सकता हूँ कि कार्य उत्तम और समय पर हों, शासन की छवि उज्जवल हो तो चुनाव के समय प्रतिनिधि को ही लाभ होगा।
वह तो जब होगा तब होगा, कौन जानता है कि टिकिट किसे मिलेगा? आप तो बताएं कि अभी क्या मदद कर सकते हैं?
मेरे यह कहते ही कि समय पर अच्छे से अच्छा निर्माण ही मेरी ऒर से मदद है, बोले मेरे बच्चे तो नहीं जायेंगे कभी सरकारी स्कूल-कॉलेज में फिर क्या लाभ मुझे ऐसे निर्माण से? आपको हटाना ही पड़ेगा।
मैं अभिवादन कर चला आया।
१-१२-२०१५
७३. चित्रगुप्त पूजन
सकल सृष्टि के कर्म देवता, पाप-पुण्य नियामक निराकार परात्पर परमब्रम्ह चित्रगुप्त जी और कलम का पूजन कर ध्यान लगा तो मनस-चक्षुओं ने देखा अद्भुत दृश्य.
निराकार अनहद नाद... ध्वनि के वर्तुल... अनादि-अनंत-असंख्य. वर्तुलों का आकर्षण-विकर्षण... घोर नाद से कण का निर्माण... निराकार का क्रमशः सृष्टि के प्रागट्य, पालन और नाश हेतु अपनी शक्तियों को तीन अदृश्य कायाओं में स्थित करना...
महाकाल के कराल पाश में जाते-आते जीवों की अनंत असंख्य संख्या ने त्रिदेवों और त्रिदेवियों की नाम में दम कर दिया. सब निराकार के ध्यान में लीन हुए तो हर चित्त में गुप्त प्रभु की वाणी आकाश से गुंजित हुई:
__ "इस समस्या के कारण और निवारण तुम तीनों ही हो. अपनी पूजा, अर्चना, वंदना, प्रार्थना से रीझकर तुम ही वरदान देते हो और उनका दुरूपयोग होने पर परेशान होते हो. करुणासागर बनने के चक्कर में तुम निष्पक्ष, निर्मम तथा तटस्थ होना बिसर गये हो."
-- तीनों ने सोचा:' बुरे फँसे, क्या करें कि परमपिता से डाँट पड़ना बंद हो?'.
एक ने प्रारंभ कर दिया परमपिता का पूजन, दूसरे ने उच्च स्वर में स्तुति गायन तथा तीसरे ने प्रसाद अर्पण करना.
विवश होकर परमपिता को धारण करना पड़ा मौन.
तीनों ने विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका पर कब्जा किया और भक्तों पर करुणा करने का दस्तूर और अधिक बढ़ा दिया.
१९-११-२०१५
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७४. अखबार
पुस्तकालय जाकर भी बहुत से अखबार पलटाये... खोजता रहा... थक गया पर नहीं मिली वह खबर जिसे पढ़ने के लिये मेरे प्राण तरस रहे थे....
१९-११-२०१५
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७५. अर्थ
६-११-२०१५
७६. सहिष्णुता
''यह वैसे हो संभव है जैसे हर दूरदर्शनी कार्यक्रमवाला दर्शकों से मिलनेवाली कुछ हजार प्रतिक्रियाओं को लाखों बताकर उसे देश की राय और जीते हुए उम्मीदवार को देश द्वारा चुना गया बताता है, तब तो किसी को आपत्ति नहीं होती जबकि सब जानते हैं कि ऐसी प्रतियोगिताओं में १% लोग भी भाग नहीं लेते।'' - मित्र बोला।
''तुमने जैसे को तैसा मुहावरा तो सुना ही होगा। लोक सभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के दावेदार ने ढेरों वायदे किये, जितने पर उनके दलाध्यक्ष ने इसे 'जुमला' करार दिया, यह छल नहीं है क्या? छल का उत्तर भी छल ही होगा। तब जुमला 'विदेशों में जमा धन' था, अब 'सहिष्णुता' है. जनता दोनों चुनावों में ठगी गयी।
इसके बाद भी कहीं किसी दल अथवा नेता के प्रति उनके अनुयायियों में असंतोष नहीं है, धार्मिक संस्थाएँ और उनके अधिष्ठाता समाज कल्याण का पथ छोड़ भोग-विलास और संपत्ति - अर्जन को ध्येय बना बैठे हैं फिर भी उन्हें कोई ठुकराता नहीं, सब सर झुकाते हैं, सरकारें लगातार अपनी सुविधाएँ और जनता पर कर - भार बढ़ाती जाती हैं, फिर भी कोई विरोध नहीं होता, मंडियां बनाकर किसान को उसका उत्पाद सीधे उपभोक्ता को बेचने से रोका जाता है और सेठ जमाखोरी कर सैंकड़ों गुना अधिक दाम पर बेचता है तब भी सन्नाटा .... काश! न होती हममें या सहिष्णुता।'' मित्र ने बात समाप्त की।
१८-११-२०१५
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७७. करनी-भरनी
नयी खरीदी पुस्तकों के पन्ने बेरहमी से फाड़ना, उन्हें शौच पात्रों में फेंक देना, पैरों तले रौंदना क्या यही आधुनिकता और प्रगतिशीलता है?
रंगे हाथों पकड़ेजानेवालों की जुबां पर गिड़गड़ाने के शब्द पर आँखों में कहीं पछतावे की झलक नहीं देखकर स्तब्ध हूँ। प्राध्यापकों और प्राचार्य से चर्चा में उन्हें इसकी अनदेखी करते देखकर कुछ कहते नहीं बनता। उनके अनुसार वे रोकें या पकड़ें तो उन्हें जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों या गुंडों से धमकी भरे संदेशों और विद्यार्थियों के दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। तब कोई साथ नहीं देता। किसी तरह परीक्षा समाप्त हो तो जान बचे। उपाधि पा भी लें तो क्या, न ज्ञान होगा न आजीविका मिलेगी, जैसा कर रहे हैं वैसा ही भरेंगे।
२९-१२-२०१५
'क्यों नहीं मनाऊँगा?, प्लास्टिक बटोरकर सेठ को दूँगा जो पैसे मिलेंगे उससे लाई और दिया लूँगा।' उसने कहा।
'मैं लाई और दिया दूँ तो मेरा काम करोगे?' कुछ पल सोचकर उसने हामी भर दी और मेरे कहे अनुसार सड़क पर नलके से नहाकर घर आ गया। मैंने बच्चे के एक जोड़ी कपड़े उसे पहनने को दिए, दो रोटी खाने को दी और सामान लेने बाजार चल दी। रास्ते में उसने बताया नाले किनारे झोपड़ी में रहता है, माँ बुखार के कारण काम नहीं कर पा रही, पिता नहीं है।
ख़रीदे सामान की थैली उठाये हुए वह मेरे साथ घर लौटा, कुछ रूपए, दिए, लाई, मिठाई और साबुन की एक बट्टी दी तो वह प्रश्नवाचक निगाहों से मुझे देखते हुए पूछा: 'ये मेरे लिए?' मैंने हाँ कहा तो उसके चहरे पर ख़ुशी की हल्की सी रेखा दिखी। 'मैं जाऊं?' शीघ्रता से पूछ उसने कि कहीं मैं सामान वापिस न ले लूँ। 'जाकर अपनी झोपडी, कपडे और माँ के कपड़े साफ़ करना, माँ से पूछकर दिए जलाना और कल से यहाँ काम करने आना, बाक़ी बात मैं तुम्हारी माँ से कर लूँगी।
'क्या कर रही हो, ये गंदे बच्चे चोर होते हैं, भगादो' पड़ोसन ने मुझे चेताया। गंदे तो ये हमारे फेंके कचरे को बीनने से होते हैं। ये कचरा न उठायें तो हमारे चारों तरफ कचरा ही कचरा हो जाए। हमारे बच्चों की तरह उसका भी मन करता होगा त्यौहार मनाने का।
९-११-२०१५
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७९. थोड़ा सा चन्द्रमा
८०. नाम का प्यार
झनझना गया उसका दिमाग, पत्नी और बेटी के हाथों में उठे गिलास चियर्स कहते हुए जैसे ही समीप आये चूक ही गया उसका धैर्य। 'नहीं' की चीख के साथ उसका हाथ घूमा और सारा सामान गिरा जमीन पर, धम्म से गिर ही पड़ा जमीन पर 'मैं कितना बुरा हूँ, मेरे लिये तुम दोनों ने.… हे भगवान!यह देखने से अच्छा तो मैं मर ही जाऊँ।'
'नहीं पापा! तुम बहुत अच्छे हो, बहुत प्यारे' बिटिया लिपट गयी उसके गले से। सिसकती बिटिया को जैसे-तैसे चुपाकर वह पत्नी की तरफ घूमा और बोला 'आज मेरी आँखें खुल गयीं, तुम ठीक कहती हो। आज से यह सब बंद। यह जन्म दिवस मेरा मुक्ति दिवस बन गया है। चलो, हम वैसे ही मनायेंगे जैसे माँ मनाती थी, जल्दी से बनाओ गुलगुले।
६-११-२०१५
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८२. जरा सी गिरह
यह सब करना मेरा कर्तव्य था, वे मेरी एकमात्र भाभी जो थीं। उन्हें विश्राम करने के लिए कहकर मैं रसोई समेटने में जुट गयी, बच्चों के लौटने के पहले उनके नाश्ते की व्यवस्था की, फिर रात का खाना। सोने के पूर्व एक बार उन्हें देखने गयी कि कोई असुविधा तो नहीं है। उन्हें सिसकता पाकर एक पल को ठिठकी की लौट जाऊँ पर मन न माना। वे बीमारी को लेकर चिंतित न हों यह सोचकर आगे बढ़ी और उनके निकट बैठ हाथ में हाथ लेकर थपथपाते हुए कहा कि चिंता की कोई बात नहीं हैं, वे शीघ्र ही पूरी तरह ठीक हो जाएँगी और जब तक ठीक नहीं हो जातीं मैं उन्हें जाने नहीं दूँगी। वे सब फ़िक्र छोड़कर मुझ पर भरोसा करें।
इतना सुनते ही वे लिपटते हुए फफक पड़ीं- 'आप पर भरोसा न कर ज़िन्दगी में एक बार गलती कर चुकी हूँ, दोबारा नहीं करूँगी। आपने मन पसंद लडके से शादी ही तो की थी। आपसे और लाला जी से किस मुँह से कुछ कहूँ? तब आपसे कैसा सलूक किया था? आप भरोसा करके ही तो आईं थीं दुधमुँही बच्ची के साथ और मैंने बासी रोटी दे दी, बिना पंखे के सुलाया और आपने चूं भी न की। तब से कितनी बार चाहा कि बात करूँ पर खुद ही खुद को कोसती रह गयी। आपके भैया से कहा तो बोले खुद ही जाओ। आज इस बहाने हिम्मत कर आयी हूँ। आप दोनों मुझे माफ़ कर वह बात भूल.… '
'अरे!ऐसे कैसे भूल जाएँ? जब तक आप पूरी तरह स्वस्थ होकर गरमागरम रोटी बनाकर नहीं खिलातीं तब तक कैसे?' इन्होंने अचानक प्रवेश करते हुए कहा।
'अच्छा जी, छिप-छिपकर ननद-भौजाई की बातें सुनी जा रही हैं।' प्रगल्भता से भाभी बोल पडीं, मेरी चिंता दूर हुई कि इस बहाने ही सही खुल गयी वह जरा सी गिरह।
१६-११-२०१५
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दरवाज़ा खोलते ही कुछ लोगों ने उसेउसे घेर लिया। गालियाँ देते हुए, उस पर प्रशंसिका से छेड़छाड़ और जबरदस्ती के आरोप लगाये गए, मोबाइल की सेल्फ़ी और रात के समय कमरे में साथ होना साक्ष्य बनाकर उससे रकम मांगी गयी, उसका कीमती कैमरा और रुपये छीन लिए गए। किंकर्तव्यविमूढ़ उसने इस कूटजाल से टकराने का फैसला किया और बात मानने का अभिनय करते हुए द्वार के समीप आकर झटके से बाहर निकलकर द्वार बंद कर दिया अंदर कैद हो गई प्रशंसिका और उसके साथी।
तत्काल काउंटर से उसने पुलिस और अपने कुछ मित्रों से संपर्क किया। पुलिसिया पूछ-ताछ से पता चला वह प्रशंसिका इसी तरह अपने साथियों के साथ मिलकर भयादोहन करती थी और बदनामी के भय से कोई पुलिस में नहीं जाता था किन्तु इस बार पाँसा उल्टा पड़ा और उस चंद्रमुखी को लग गया चंद्रग्रहण।
१०-११-२०१५
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८४. रिश्ते
९३. साँसों का कैदी
९४. पिंजरा
९५. जेबकतरे
९६. अर्थ १
मेरे बाद भागलपुर से पधारे ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता बांगला प्रोफ़ेसर ने बांगला में बोलना प्रारम्भ किया। विस्मय हुआ की बांगलाभाषी जनों ने हिंदी में कही बात मन से सुनी किन्तु बांगला वक्तव्य आरम्भ होते ही उनकी रूचि लगभग समाप्त हो गयी, आपस में बात-चीत होने लगी. वोिदवान वक्त ने आंकड़े देकर बताया कि गीतांजलि के कितने अनुवाद किस-किस भाषा में हुए. शरत, बंकिम, विवेकानंद आदि कासाहित्य किन-किन भाषाओँ में अनूदित हुआ किन्तु यह नहीं बता सके कि कितनी भाषाओँ का साहित्य बांगला में अनूदित हुआ.
कोई कितना भी धनी हो उसके कोष से धन जाता रहे किन्तु आये नहीं तो तिजोरी खाली हो ही जाएगी। प्रयास कर रहा हूँ कि बांगला भाषा को देवनागरी लिपि में लिखा जाने लगे तो हम मूल रचनाओं को उसी तरह पढ़ सकें जैसे उर्दू की रचनाएँ पढ़ लेते हैं. लिपि के प्रति अंध मोह के कारण वे नहीं समझ पा रहे हैं मेरी बात का अर्थ
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फिर आरम्भ हुआ गवाहों के मरने का क्रम लगभग वैसे ही जैसे श्री आसाराम बापू और अन्य इस तरह के प्रकरणों में हुआ।
सत्ताधारियों के सिंहासन डोलने और परिवर्तन के खबरों के बीच विश्व हिंदी सम्मेलन का भव्य आयोजन, चीन्ह-चीन्ह कर लेने-देने का उपक्रम, घोटाले के समाचारों की कमी, रसूखदार गुनहगारों का जमानत पर रिहा होना, समान अपराध के गिरफ्तार अन्य को जमानत न मिलना, सत्तासीनों के कदम अंगद के पैर की तरह जम जाना, समाचार माध्यमों से व्यापम ही नहीं छात्रवृत्ति और अन्य घोटालों की खबरों का विलोपित हो जाना, पुस्तक हाथ में लिए मैं कोशिश कर रहा हूँ किन्तु समझ नहीं पा रहा हूँ समानता, मौलिक अधिकारों और लोककल्याणकारी गणतांत्रिक गणराज्य का अर्थ।
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अगले दिन स्कूल जाते समय माँ ने बेटी को एक पैकेट दिया कि उस लड़की के लिये है, दे देना। लड़की स्कूल से लौटी तो माँ से पूछा कि बिना माँगे, अपने पैसे खर्च कर पढ़ाई का सामान क्यों भिजवाया?
माँ बोली: 'तुम खाना खा रही हो और एक चिड़िया भूख से मर रही हो तो देखती रहोगी?'
' नहीं, उसको थोड़ा खाना-पानी दे दूँगी, वह खा-पीकर फुर्र से उड़ जाएगी। दाना लेकर घर जाएगी तो उसके बच्चे कित्ते खुश होंगे'
'यही तो, तुम्हारी सहेली घर जाकर पढ़ेगी, अच्छी नंबर लाएगी तो वह और उसके घर के सब लोग खुश होंगे, तुमको दुआ देंगे, तभी तो मनेगा उत्सव।'
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- आपका प्रान्त अब तक आगे नहीं बढ़ सका, इसके कसूरवार वे हैं जो खुद को सम्पूर्ण क्रांति का मसीहा कहते रहे किन्तु सरकार बनाने के बाद ऐसे कारनामे किये की माननीय न्यायालय ने उनके चुनाव लड़ने पर ही प्रतिबन्ध लगा दिया। हमारी पार्टी को मत दें।
- आपका प्रदेश बेरोजगारी का शिकार है, दोषी कौन? वे जो केंद्र में बैठे हैं और आपके प्रदेश के लिए कुछ नहीं करते। हमारे गठबंधन को जिताइए।
मेज पर फैले हैं अखबार और उनमें छपे हैं नेताओं के बयान। एक भी बयान ऐसा नहीं मिला जो कहता हो 'आपके पिछड़ेपन के लिये जिम्मेदार आप खुद हैं। जब तक मेहनत नहीं करेंगे, कुरीतियाँ नहीं छोड़ेंगे, बच्चों को नहीं पढ़ायेंगे, दहेज़ लेना बंद नहीं करेंगे, कानून का पालन नहीं करेंगे आगे नहीं बढ़ सकेंगे। किसी भी दल को चुनें, कोई नेता और कोई दल आपको आगे नहीं बढ़ा सकता। आपको कोई आगे बढ़ा सकता है तो वह हैं आप खुद। उठिए, जागिये और लक्ष्य पाइए। जो आपको भीख में अधिकार और उन्नति देने की बात करते हैं वे जनप्रतिनिधि नहीं हो सकते क्यों की वे हैं सपनों के सौदागर और शब्दों का मायाजाल रचनेवाले बाजीगर।
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३०-१-२०१६


